इयत्ता ११ हिंदी पंद्रह अगस्त मराठी स्वाध्याय PDF |
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इयत्ता ११ हिंदी पंद्रह अगस्त स्वाध्याय
मंडळाचे नाव |
Maharashtra Board |
ग्रेडचे नाव |
११ |
विषय |
हिंदी पंद्रह अगस्त |
वर्ष |
2022 |
स्वरूप |
PDF/DOC |
प्रदाता |
|
अधिकृत संकेतस्थळ |
mahahsscboard.in |
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इयत्ता ११ हिंदी पंद्रह अगस्त स्वाध्याय उपाय
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आकलन
1.
प्रश्न अ.
संकल्पना स्पष्ट कीजिए –
(a) नये स्वर्ग का प्रथम चरण
उत्तर :
स्वतंत्रता प्राप्त करना हमारा स्वर्ग प्राप्त करने जैसे लक्ष्य था हमें अभी अनेक कार्य करने शेष हैं। कवि यह संकेत करते हैं कि स्वतंत्रता प्राप्त हो गई “अब सब काम खत्म हो गया” ऐसा सोचकर विश्राम नहीं करना है। वास्तव में अभी-अभी तो हमारा कार्य आरंभ हुआ है। हमारे देश को स्वर्ग बनाना है यही हमारा लक्ष्य है और आजादी उसका प्रथम चरण है।
(b) विषम शृंखलाएँ
उत्तर :
बड़ी कठिनाई से हमने आज़ादी प्राप्त की है। गुलामी की बेड़ियाँ तोड़ पाएँ हैं। हमारे देश की सीमा हर ओर से आज़ाद है।
(c) युग बंदिनी हवाएँ
उत्तर :
हे देशवासियो, यह ध्यान रहे कि इस विश्व में तूफान की तरह तेजी से बंदी बनाने वाली हवाएँ चल रही हैं। अर्थात कई देशों से आक्रमण का खतरा हमारे देश पर बढ़ गया है। ऐसी दुर्घटना को रोकने का उत्तरदायित्व हमारा है।
प्रश्न आ.
लिखिए –
उत्तर :
(1) शोषण से मृत है समाज
(2) कमजोर हमारा घर है।
काव्य सौंदर्य
2. आशय लिखिए :
प्रश्न अ.
“ऊँची हुई मशाल हमारी ………………………………………………… हमारा घर है।”
उत्तर :
आज़ादी प्राप्त करने के बाद हमारी जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है। हमारा रास्ता और कठिन हो गया है। माना कि शत्रु चला गया है पर वह अपनी पराजय से अत्यंत विकल (restless) हुआ है। कोई न कोई कूटनीति उसके मन मस्तिष्क में चल रही होगी। हमारा जनसमुदाय इतने सालों की गुलामी से सामाजिक, आर्थिक एवं मानसिक रूप से कमजोर हो गया है इसलिए अपनी मशाल अर्थात अपनी सतर्कता और अधिक बढ़ा दो।
प्रश्न आ.
“युग बंदिनी हवाएँ ………………………………………………… टूट रहीं प्रतिमाएँ।”
उत्तर :
जहाँ हमने आज़ादी प्राप्त करके देश की सभी सीमाओं को स्वतंत्र कर लिया है। वही ब्रिटिश सरकार अपनी पराजय से विकल है। वह हमारे देश की उन्नति के विरूद्ध कूटनीति भी कर रही होगी। देश को जाति, धर्म, भाषा और प्रांत के नाम पर कमजोर, अलग-थलग करना जैसी समस्या देश में उत्पन्न हो सकती है।
अभिव्यक्ति
3.
प्रश्न अ.
‘देश की रक्षा-मेरा कर्तव्य’, इसपर अपना मत स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं,
वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं.” (गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’)
देश की रक्षा किसी व्यक्ति का केवल कर्तव्य ही नहीं बल्कि उसका धर्म भी होता है। व्यक्ति द्वारा कोई भी ऐसा कार्य नहीं होना चाहिए जिससे देश धर्म में बाधा पहुँचे। हमारा देश सबसे सर्वोपरि (above all) है। कोई भी लाभ और हानि हमारे देश को सीमित नहीं कर सकती।
देश के प्रति पूरी निष्ठा होनी चाहिए। देश केवल भूभाग नहीं है। देश का आर्थिक विकास व वृद्धि, साफ-सफाई, सुशासन, भेदभाव न करना, कानून का पालन करना आदि जिम्मेदारियाँ निभाना हमारा कर्तव्य है। एक जिम्मेदार नागरिक बनकर हमें ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे देश की आन, बान और शान में वृद्धि हो। हमारी राष्ट्रीय धरोहर (heritage) और सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान और रक्षा करना भी हमारा कर्तव्य है।
देश के कानून का पालन और सम्मान करना चाहिए। हमें अपने करों का समय पर सही तरीके से भुगतान करना चाहिए। देश को प्रदूषण मुक्त करने में सहयोग देना, पर्यावरण संतुलन हेतु वृक्षारोपण (plantation) करना जैसे कार्यों में रुचि दिखाना भी देश की रक्षा करना ही है; इस तथ्य को स्वयं समझना और औरों को समझाना भी हमारा कर्तव्य है।
प्रश्न आ.
‘देश के विकास में युवकों का योगदान’, इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
किसी भी देश की तीन प्रकार की संपत्ति से देश की उन्नति का आकलन लगाया जाता है। वह संपत्ति है – धन संपत्ति, युवा संपत्ति और संस्कृति संपत्ति। जिस देश के पास ये तीनों संपत्तियाँ विद्यमान हैं उस देश को तीनों लोकों का सुख प्राप्त है।
युवा देश की ऐसी संपत्ति है, जो देश को उन्नति के उच्चतम शिखर तक पहुँचा सकती है। इतिहास और शास्त्र दोनों ही इस बात के गवाह हैं, चाहे वे सतयुग, त्रेता, द्वापर के युवा हो चाहे वर्तमान काल के युवा। जो भी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सकारात्मक परिवर्तन होता है उसमें युवाओं का हिस्सा अधिकाधिक होता है।
युवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है। वे देश और समाज को नए शिखर पर ले जाते हैं। उनमें गहन (intensive) ऊर्जा और महत्त्वाकांक्षाएँ (ambitions) होती हैं। उनकी आँखों में इंद्रधनुषी स्वप्न होते हैं। उनके योगदान से देश उन्नति के पथ पर अग्रसर (proceed) होगा।
क्योंकि युवा ही वर्तमान का निर्माता और भविष्य का नियामक (regulator) होता है। अत: समस्त भारतीय युवाओं को यह संकल्प लेना चाहिए कि राष्ट्र के सम्मुख जितनी भी चुनौतियाँ हैं हम उनका डटकर सामना करेंगे।
रसास्वादन
4. स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ समझते हुए प्रस्तुत गीत का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(i) शीर्षक : पंद्रह अगस्त
(ii) रचनाकार : गिरीजाकुमार माथुर ‘पंद्रह अगस्त’ कविता कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा लिखा एक गीत है।
(iii) केंद्रीय कल्पना : स्वतंत्रता के पश्चात देश में चारों ओर उल्लास छाया है और साथ ही इस स्वतंत्रता को बरकरार रखने हेतु सावधान एवं सतर्क रहना जरूरी है यह आह्वान भी है।
(iv) रस-अलंकार : कविता में वीर रस की निष्पत्ति के साथ साथ लयात्मकता का सुंदर प्रयोग हर अंतरे में स्पष्ट झलकता है। जैसे – छोर, हिलोर (wave), डोर (string), कोर (edge) जैसे शब्दों का प्रयोग हो या दिशाएँ, हवाएँ, सीमाएँ, प्रतिमाएँ या फिर डगर, डर, घर, अमर जैसे शब्दों के प्रयोग से गेयता (singable) साध्य हुई है। ‘पहरुए सावधान रहना’ मुखड़ा हर अंतरे के बाद आया है।
(v) प्रतीक विधान : देशवासियों को देश के पहरेदार बनकर सावधान रहने की बात कवि कह रहे हैं।
(vi) कल्पना : कवि ने स्वतंत्रता को स्वर्ग का प्रथम चरण माना है और अनेकों लक्ष्य पाने की कल्पना की है।
(vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : ‘किंतु आ रही नई जिंदगी
यह विश्वास अमर है,
जनगंगा में ज्वार
लहर तुम प्रवाहमान रहना’
इन पंक्तियों में स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ समझाने का प्रयास कवि ने किया है। देश में चारों ओर उल्लास है, जनगंगा में ज्वार है। परंतु जब शोषित पीड़ित और मृतप्राय समाज का पुनरुत्थान होगा तभी सही मायने में देश आजाद होगा। किंतु हमारा यह विश्वास कि हमारे जीवन में एक नई शुरुआत हो गई है हमारा मनोबल बढ़ाता है और इस बल को कभी टूटने नहीं देना है। जनशक्ति की लहर बनकर प्रगति की ओर आगे बढ़ना है।
(viii) कविता पसंद आने के कारण : कविता के ये भाव मन में उल्लास भर देते हैं और कविता की गेयता कविता गुनगुनाने पर बाध्य करती हुई आनंद की प्राप्ति कराने में सक्षम है।
साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान
जानकारी दीजिए:
5.
प्रश्न अ.
गिरिजाकुमार माथुर जी के काव्यसंग्रह –
उत्तर :
धूप के धान
मैं वक्त के हूँ सामने
प्रश्न आ.
‘तार सप्तक’ के दो कवियों के नाम –
उत्तर :
प्रभाकर माचवे
भारतभूषण अग्रवाल
रस
वीर रस – किसी पद में वर्णित प्रसंग हमारे हृदय में ओज, उमंग, उत्साह का भाव उत्पन्न करते हैं, तब वीर रस का निर्माण होता है। ये भाव शत्रुओं के प्रति विद्रोह, अधर्म, अत्याचार का विनाश, असहायों को कष्ट से मुक्ति दिलाने में व्यंजित होते हैं।
उदा. –
(१) साजि चतुरंग सैन, अंग में उमंग धरि।
सरजा सिवाजी, जंग जीतन चलत है।
भूषण भनत नाद, बिहद नगारन के
नदी-नद मद, गैबरन के रलत है।
– भूषण
(२) दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसीवाली रानी थी।
– सुभद्राकुमारी चौहान
भयानक रस – जब काव्य में भयानक वस्तुओं या दृश्यों के प्रत्यक्षीकरण के फलस्वरूप हृदय में भय का भाव उत्पन्न होता है, तब भयानक रस की अभिव्यंजना होती है।
उदा. –
(१) प्रथम टंकारि झुकि झारि संसार-मद चंडको दंड रह्यो मंडि नवखंड को।
चालि अचला अचल घालि दिगपालबल पालि रिषिराज के वचन परचंड कों।
बांधि बर स्वर्ग को साधि अपवर्ग धनु भंग को सब्ध गयो भेदि ब्रह्मांड कों।
– केशवदास
(२) उधर गरजती सिंधु लहरिया, कुटिल काल के जालों-सी।
चली आ रही है, फेन उगलती, फन फैलाए व्यालों-सी।।
– जयशंकर प्रसाद
Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त Additional Important Questions and Answers
कृतिपत्रिका
(अ) पन्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
पदयांश : आज जीत की ……………………………………………………….. बने अंबुधि महान रहना। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 9-10) |
प्रश्न 1.
जाल पूर्ण कीजिए :
उत्तर :
प्रश्न 2.
विधान सत्य है या असत्य लिखिए :
उत्तर :
(i) इस जनमंथन से उठ आई है पहली रतन हिलोर। – सत्य
(ii) नए स्वर्ग का अंतिम चरण। – असत्य
प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ सरल हिंदी में लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश ‘तारसप्तक’ (सात कवियों का एक मंडल) के प्रमुख कवि गिरिजा कुमार माथुर जी की कविता ‘पंद्रह अगस्त’ से लिया गया है। कवि आज़ादी के बाद देशवासियों को संबोधित करते हुए कहते हैं – हे देशवासियो !….. हमारा देश अभीअभी आज़ाद हुआ है। अब इसकी सुरक्षा की सभी तरह की जिम्मेदारी हमारी है। इसलिए हमें और अधिक सावधान रहना पड़ेगा। स्वतंत्रता हमारे जीवन का पहला लक्ष्य था, जो अभी पूरा हुआ है। शेष उद्देश्य तो अभी भी बाकी है। कवि कहते हैं कि हमें समुद्र की तरह मन में गहराई एवं हृदय में विशालता रखनी होगी।
(आ) एद्याश पड़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
पद्यांश : विषम श्रृंखलाएँ टूटी ……………………………………………………….. तुम दीप्तिमान रहना। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 10) |
प्रश्न 1.
लिखिए :
उत्तर :
प्रश्न 2.
निम्न शब्दों के लिए पद्यांश में आए शब्द लिखिए :
(i) आँधी – ……………………………………….
(iii) मूर्ति – ……………………………………….
(iii) चंद्र – ……………………………………….
(iv) पहेरदार – ……………………………………….
उत्तर :
(i) प्रभंजन
(ii) प्रतिमा
(iii) इंदु
(iv) पहरुए
प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश कवि गिरिजाकुमार माथुर जी की कविता ‘पंद्रह अगस्त’ से लिया गया है। प्रस्तुत पद्यांश में कवि कह रहे हैं कि परतंत्रता (dependance) की बेड़ियाँ टूट गई हैं और आजादी की खुली हवा देश में बहने लगी है। युगों से गुलामी सहने वाले स्वतंत्र होते ही दिशाहीन, लक्ष्यहीन हो गए हैं।
विभाजन के कारण वे सीमाओं में सीमटकर अपना होश खो बैठे हैं। दुर्बल हो गए हैं। ऐसे में अधिक सतर्कता की आवश्यकता है। कहीं आपस में लड़कर हम एक-दूसरे को ही नुकसान न पहुँचा दें इस बात का ख्याल रखना होगा। चंद्र के समान शीतल रोशनी फैलाकर देशवासियों को रास्ता दिखाने का काम कवि हमें करने को कह रहे हैं।
(इ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
पद्यांश : ऊँची हुई मशाल’……………………………………….. तुम प्रवाहमान रहना। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 10) |
प्रश्न 1.
प्रवाह तालिका पूर्ण कीजिए :
उत्तर :
प्रश्न 2.
पद्यांश के आधार पर दो ऐसे प्रश्न तैयार कीजिए जिनके उत्तर निम्न शब्द हो :
(i) ज्वार : ………………………………….
(ii) लहर : ………………………………….
उत्तर :
(i) जनगंगा में क्या है?
(ii) किसे प्रवाहमान रहना है?
प्रश्न 3.
पद्यांश द्वारा मिलने वाला संदेश लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश गिरिजाकुमार माथुर जी की कविता ‘पंद्रह अगस्त’ से लिया गया है। प्रस्तुत पद्यांश में तत्काल मिली हुई स्वतंत्रता की कवि चिंता करता है इसलिए देशवासियों को सतर्क रहने का आह्वान किया है। देश में एकता, अखंडता और भाई-चारे को बनाए रखने के लिए सजग किया है।
कवि देशवासियों को सावधान रहने के लिए कहते हैं। उनका कहना हैं कि शत्रु भले ही हमारे देश को छोड़कर चला गया है, पर पलटकर वार करें तो उसके प्रत्युत्तर के लिए सतर्क रहना चाहिए। धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर हमें आपसी विवाद से बचना चाहिए।
रस:
वीर रस – किसी पद में वर्णित हमारे प्रसंग हृदय में ओज, उमंग, उत्साह का भाव उत्पन्न करते हैं, तब वीर रस का निर्माण होता है। ये भाव शत्रुओं के प्रति विद्रोह, अधर्म, अत्याचार का विनाश, असहायों को कष्ट से मुक्ति दिलाने में व्यंजित (express) होते हैं।
उदा. :
(1) साजि चतुरंग सैन, अंग में उमंग धरि।
सरजा सिवाजी, जंग जीतन चलत है।
भूषण भनत नाद, बिहद नगारन के
नदी-नद मद, गैबरन के रलत है।
– भूषण
(2) दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसीवाली रानी थी।
– सुभद्राकुमारी चौहान
भयानक रस – जब काव्य में भयानक वस्तुओं या दृश्यों के प्रत्यक्षीकरण के फलस्वरूप हृदय में भय का भाव उत्पन्न होता है, तब भयानक रस की अभिव्यंजना होती है।
उदा. :
(1) प्रथम टंकारि झुकि झारि संसार-मद चंडको दंड रह्यो मंडि नवखंड कों।
चालि अचला अचल घालि दिगपालबल पालि रिषिराज के वचन परचंड को।
बांधि बर स्वर्ग को साधि अपवर्ग धनु भंग को सब्ध गयो भेदि ब्रह्मांड कों। – केशवदास
(2) उधर गरजती सिंधु लहरिया, कुटिल काल के जालों-सी।
चली आ रही है, फेन उगलती, फन फैलाए व्यालों-सी।।
– जयशंकर प्रसाद
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