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Thursday, February 3, 2022

इयत्ता ११ हिंदी स्वागत है ! मराठी स्वाध्याय PDF

 

इयत्ता ११ हिंदी स्वागत है ! मराठी स्वाध्याय PDF
इयत्ता ११ हिंदी स्वागत है ! मराठी स्वाध्याय PDF


या लेखात, आम्ही हिंदी स्वागत है ! विषयासाठी इयत्ता ११ मराठी सोल्यूशन्स देऊ. इयत्ता ११ मधील विद्यार्थी पाठ्यपुस्तकांमध्ये उपस्थित असलेल्या व्यायामांसाठी प्रश्न आणि उत्तरे डाउनलोड आणि कॉपी करण्यास सक्षम असतील.

इयत्ता ११ हिंदी स्वागत है !ाच्या पुस्तकात महाराष्ट्र बोर्डाच्या अभ्यासक्रमातील सर्व प्रश्नांचा समावेश आहे. येथे सर्व प्रश्न पूर्ण स्पष्टीकरणासह सोडवले आहेत आणि डाउनलोड करण्यासाठी विनामूल्य उपलब्ध आहेत. महाराष्ट्र बोर्ड इयत्ता ११ हिंदी स्वागत है !ाचे पुस्तक खाली दिले आहे. आम्‍हाला आशा आहे की आमच्‍या इयत्‍ता ११ वीच्‍या हिंदी स्वागत है !ाचे पुस्‍तक तुमच्‍या अभ्यासात मदत करेल! जर तुम्हाला आमचे इयत्ता ११ चे पुस्तक आवडले असेल तर कृपया ही पोस्ट शेअर करा.


इयत्ता ११ हिंदी स्वागत है ! स्वाध्याय

मंडळाचे नाव

Maharashtra Board

ग्रेडचे नाव

११

विषय

हिंदी स्वागत है !

वर्ष

2022

स्वरूप

PDF/DOC

प्रदाता

hsslive.co.in

अधिकृत संकेतस्थळ

mahahsscboard.in


समाधानासह महाराष्ट्र बोर्ड आठवा स्वाध्याय कसे डाउनलोड करायचे?

महाराष्ट्र बोर्ड ११ स्वाध्याय PDF डाउनलोड करण्यासाठी खालील स्टेप्स फॉलो करा:

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  3. आता महाराष्ट्र बोर्ड ११ स्वाध्याय तपासा.
  4. डाउनलोड करा आणि भविष्यातील संदर्भांसाठी जतन करा.

इयत्ता ११ हिंदी स्वागत है ! स्वाध्याय उपाय

इयत्ता ११ स्वाध्याय मधील विद्यार्थी खालील लिंक्सवरून हिंदी स्वागत है !ाचे उपाय डाउनलोड करू शकतील.


आकलन

1. उत्तर लिखिए:

प्रश्न अ.
‘स्वागत हैं’ काव्य में दी गई सलाह।
उत्तर :
युग-युगांतरों के बाद आज हम मिले हैं – हमारा इतिहास, कष्ट सब भूलकर हमें इकट्ठा होना है – नैहर आकर अपनों को मिलना है, शेष जिंदगी सुखपूर्वक बितानी है।

प्रश्न आ.
प्रथम स्वागत करते हुए दिलाया विश्वास
उत्तर :
सब बिखरे थे आज मिलन होगा। इस धरती को स्वर्ग बना देंगे।

प्रश्न इ.
मारीच’ से बना शब्द
उत्तर :
‘मारीच’ से मॉरिशस यह शब्द बना।

काव्य सौंदर्य

2.
प्रश्न अ.
“यह तो तब था, घास ही पत्थर
पत्थर में प्राण हमने डाले।”
उपर्युक्त पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अंग्रेजों ने सभी बांधवों को गिरमिटिया बनाकर गुलामी की जंजिरों में जकड़कर भिन्न-भिन्न देशों में बिखेर दिया। मॉरिशस की भूमि पर ये सभी बांधव अब इकट्ठा हुए। उस समय कोमलता भी पत्थर के समान कठोर बन गई थी। इस देश को घूमकर देखने पर पता चलेगा कि आज हमने पत्थर में प्राण फूंके हैं। सभी बांधवों को इकट्ठा किया है।

प्रश्न आ.
‘स्वागत है’ कविता में ‘डर’ का भाव व्यक्त करने वाली पंक्तियाँ ढूँढ़कर अर्थ लिखिए।
उत्तर :
कविता में डर का भाव व्यक्त करने वाली पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं पनिया-जहाज पर कौन चढ़ेगा अब भैया, बडा डर लग रहा है उससे तो अर्थ : हमारे सब बांधवों के मन में पानी में चलने वाले जहाज को लेकर डर-सा समा गया है। भय लग रहा है कि कहीं वह काला, भयंकर इतिहास फिर से दोहराया न जाए। फिर एक बार अंग्रेज सभी बांधवों को गुलाम बनाकर अलग-अलग देशों में भेज न दें।

3.
प्रश्न अ.
‘विश्वबंधुत्व आज के समय की आवश्यकता’, इसपर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
विश्वबंधुत्व आज के समय की माँग है क्योंकि आज वैश्वीकरण का युग है। विश्व की बढ़ती जनसंख्या ने उत्पादों की त्वरित प्राप्ति हेतु परस्पर एक दूसरे के साथ सह अस्तित्व को बढ़ावा दिया है। किसी भी देश की छोटी-बड़ी गतिविधि का प्रभाव आज संसार के सभी देशों पर किसी न किसी रूप में अवश्य पड़ रहा है।

फलत: समस्त देश अब यह अनुभव करने लगे हैं कि पारस्परिक सहयोग, स्नेह, सद्भाव, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और भाईचारे के बिना उनका काम नहीं चलेगा। विश्वबंधुत्व की अवधारणा (concept) भारतीय मनीषियों (wise) के सूत्र ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ पर आधारित है जो शाश्वत (eternal) तो है ही, व्यापक एवं उदार नैतिक-मानवीय मूल्यों पर आधारित भी है। संसाधनों की बढ़ती माँग और उसकी पूर्ति के मनुष्य-मात्र के अथक प्रयत्नों ने दूरियों को कम किया है। फलस्वरूप विश्वबंधुत्व का विशाल दृष्टिकोण वर्तमान स्थितियों का महत्त्वपूर्ण परिचायक बना है।

प्रश्न आ.
मातृभूमि की महत्ता को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
जिस व्यक्ति का जन्म जहाँ पर होता है उसे वह भूमि बहुत प्यारी होती है। वह उस भूमि की गोद में बड़ा होता है और वह उसकी माँ के समान होती है और उसे उसकी मातृभूमि कहा जाता है। मेरी मातृभूमि भारत है और मुझे इसे बहुत ही ज्यादा प्यार है। यह कला, संस्कृति और साहित्य से भरपूर है। इसे ऋषि-मुनियों की भूमि भी कहा जाता है और यहाँ पर बहुत से महापुरुषों का भी जन्म हुआ है। मेरी मातृभूमि चारों तरफ से प्रकृति से घिरी हुई है।

इसमें कहीं पर घने जंगल हैं तो कहीं पर पहाड़ और कहीं पर नदियाँ हैं। इसकी राष्ट्रभाषा हिंदी है। यहाँ पर सभी त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं।

मेरी मातृभूमि विविधता में एकता का प्रतीक है। यहाँ पर सभी धर्मों के लोग रहते हैं और प्रत्येक राज्य की अपनी विशेषता है। इसके कण-कण में माँ की ममता छिपी है और कृषिप्रधान देश होने के कारण यहाँ पर हर समय खेतों में फसलें लहलहाती नजर आती है। मेरी मातृभूमि बहुत ही सुंदर है और इसकी सुंदरता को देखने हर साल बहुत से पर्यटक विदेशों से भी आते हैं।

रसास्वादन

4. गिरमिटियों की भावना तथा कवि की संवेदना को समझते हुए कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(i) शीर्षक : स्वागत है
(ii) रचनाकार : शाम दानीश्वर
(iii) केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत कविता में कवि ने अंग्रेजों के गुलाम बनकर झेले गए अपार कष्टों का हृदयविदारक वर्णन किया है। इतिहास की उस लंबी कहानी को जीना मतलब कीचड़ की दलदल में फँस जाना था। उस समय कोमलता भी पत्थर के समान कठोर बन गई थी। इस देश को घूमकर देखने पर पता चलेगा कि आज तक बिछड़े सारे लहूलुहान बंधु अब मॉरिशस में इकट्ठे हो रहे हैं। अब उस कीचड़ में कमल के फूल उगने लगे हैं। हमने पत्थर में प्राण फूंके हैं। इन सब बंधु-बाँधवो का मॉरिशस में हृदय से स्वागत करते हैं।

(iv) रस-अलंकार : यह कविता प्रवासी साहित्य है। विदेशों में बसे भारतीयों द्वारा रचा साहित्य इस श्रेणी में आता है।

शाम दानीश्वर जी मॉरिशस में बसे हिंदी कवि हैं। स्वागत है कविता में कहीं पर भयानक रस “कहीं पुन: दोहरा न दे इतिहास हमारा, इस-उस धरती पर बिखर न जाएँ” तो कहीं पर वीर रस – ‘तो स्वर्ग इसे तुम बना जाओ, स्वागत – स्वागत – स्वागत है!’ की निष्पत्ति हुई है। प्रतीक विधान : प्रस्तुत कविता में कवि प्रवासी भारतीयों को अपनी विगत दुखद स्मृतियाँ भुलाकर मॉरिशस आने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

(vi) कल्पना : मॉरिशस की भूमि के लिए नैहर की कल्पना की है क्योंकि इस भूमि पर बिखरे परिजनों का मिलाप होगा। विविध देशों में विखरे हुए बंधुओं का मॉरिशस की भूमि पर स्वागत है।

(vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव :
‘पर दासता पंक में जा गिरे थे
कितने युग लगे पंकज बनने में,
‘मारीच’ से मॉरिशस बनने में,
देखो इस पावन भूमि पर
बन बांधवों का सफल प्रणयन।’

इन पंक्तियों में कवि कह रहे हैं हम अग्रेजों के गुलाम बनकर कीचड़ की दल-दल में जा गिरे थे। कई युग लग गए कीचड़ में कमल खिलने के लिए। कई दिशाओं से इकट्ठा कर हमारे बांधवों को मॉरिशस की इस पवित्र भूमि पर सफलतापूर्वक ले जाया गया है। गिरमिटियों के जीवन में आए सकारात्मक पहलुओं को उजागर करने वाली ये पंक्तियाँ मुझे पसंद हैं।

(viii) कविता पसंद आने के कारण : मॉरिशस हिंद महासागर का स्वर्ग है, यह कल्पना गिरमिटियों को सत्य में तबदील करनी है। कवि का गिरमिटियों की सृजनात्मक प्रतिभा पर विश्वास इस कविता में व्यक्त हुआ है।

इसीलिए मुझे यह कविता पसंद है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

5. जानकारी दीजिए:

प्रश्न अ.
प्रवासी साहित्य की विशेषता – ………………………………………….
उत्तर :

  • स्थानिक संस्कृति-संस्कारों की झलक
  • स्थानिक रीति-रिवाजों की झलक
  • स्थानिय भाषा-मुहावरों एवं प्रतीकों का प्रयोग
  • स्थानिय परिवेश एवं वातावरण का चित्रण
  • देश-विदेश के जीवन मूल्यों का चित्रण

प्रश्न आ.
अन्य प्रवासी साहित्यकारों के नाम – ………………………………………….
उत्तर :

  • डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी (लंदन)
  • उषा वर्मा (यॉर्क, लंदन)
  • कृष्ण बिहारी (अबुधाबी)

Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 7 स्वागत है! Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका

(अ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : स्वागत है! ……………………………………………………………………………………………….. फिर उस जहाज पर तो चढ़े थे। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 35)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :

उत्तर :

प्रश्न 2.
कारण लिखिए :

(i) सब अलग-अलग जहाज पर चढ़े थे क्योंकि ……………………………………………..
उत्तर :
सब अलग-अलग जहाज पर चढ़े थे क्योंकि वे अलग-अलग देशों से आ रहे थे।

(ii) सब हक्का-बक्का ताकने लगे क्योंकि ……………………………………………..
उत्तर :
सब हक्का-बक्का ताकने लगे क्योंकि उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वे कहाँ आ गए हैं?

प्रश्न 3.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
कवि प्रवासी भारतीयों को बिछड़ने का गम भुलाकर, इतिहास के दुःस्वप्न को पीछे धकेलकर मॉरिशस की भूमि पर लौट आने का आमंत्रण (न्यौता) देते हैं। कवि कहते हैं कि एक ही भारत माँ के हम सभी बालक हैं लेकिन अंग्रेजों ने हमें गुलामगिरी में जकड़कर विविध देशों में बिखेर दिया। कई युगों के बाद हमारा मिलन मॉरिशस में होने जा रहा है इसलिए इस भूमि पर आपका स्वागत है।

हम सब जहाज से प्रवास करने वाले जहाजिया बांधव ठहरे। अलग-अलग देशों से कोई इस जहाज पर, कोई उस जहाज से हमारे बांधव यहाँ आ रहे हैं। समुद्र तट पर जहाज का लंगर पड़ा तब सब चकित होकर यहाँ-वहाँ ताकने लगे। किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था कि हम कहाँ आ गए हैं?

मेरे भाई-भतीजे कहाँ हैं? इस जहाज पर उन्हें जगह नहीं मिली थी लेकिन दूसरे जहाज पर तो चढ़े ही थे फिर वे कहाँ हैं? आने वाले सभी बांधवों का, दोस्तों का कवि सहर्ष स्वागत कर रहे हैं।

(आ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : भूल जाओ …………………………………………………………………………………………………………………….. आँसू थामे वहीं मिलेंगे (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 35)

प्रश्न 1.
प्रवाहतालिका पूर्ण कीजिए :

उत्तर :

प्रश्न 2.
मॉरिशस की भूमि पर उतरने के कारण
(i) ……………………………
(ii) ……………………………
उत्तर :
मॉरिशस की भूमि पर उतरने के कारण –
(i) वह हमारा नैहर है जहाँ बाबुल के लोग मिलेंगे।
(ii) वहाँ निज बंधुओं को खोज पाएँगे और देश-परदेश का नाम मिट सकेगा।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए :
उत्तर :
कवि अपने बांधवों से उस पुरानी लंबी कहानी को, गुलामी के दंश, और पीड़ा को भूलने की बिनती करते हैं। जो भी हमारे नसीब में था वह सब अब हो चुका। अब उसे याद कर हम क्यों रोए? वह हमारा भूतकाल था। युग-युगांतरों के बाद ही सही लेकिन आज तो हम मिल ही रहे हैं, यह वास्तव है।

कवि इन सारे बांधवों का, दोस्तों का मॉरिशस में स्वागत करतें हैं। हमारे सब बांधवों के मन में पानी में चलने वाले जहाज को लेकर डर-सा समा गया है। भय लग रहा है कि कहीं वह काला भयंकर इतिहास फिर से दोहराया न जाए। उनके सामने सवाल है कि जहाज पर अब कौन चढ़ेगा? यहाँ पर फिर से हम बिखर न जाएँ ना ही फिर एक बार अपने बंधुओं को ढूँढ़ते रह जाना पड़ें। अब तो हम सब आसमान में उड़कर मॉरिशस की धरती पर उतर जाएँगे।

वहीं पर हमारा मायका होगा और वहीं पर हमें हमारे परिवार के लोग मिलेंगे। अब देश-परदेश से छुटकारा मिलेगा। दुःखाश्रुओं को थामकर वहीं पर हम सब मिलेंगे।

(इ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : हे मेरे गिरमिटिया ……………………………………………………………………………………………………….. स्वर्ग इसे तुम बना जाओ (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 36)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :

उत्तर :

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दजाल से सार्थक शब्द ढूँढकर लिखिए :

उत्तर :

प्रश्न 3.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए:
उत्तर :
हे मेरे गिरमिटिया भाइयो, (अंग्रेजो के गुलाम बनकर झेले गए अपार कष्टों को सहने में आपने जो हिम्मत दिखाई है वह प्रशंसनीय है।) इतिहास की उस लंबी कहानी को जीना मतलब कीचड़ की दलदल में फँस जाना है। जिस प्रकार मारीच (राक्षस) से मॉरिशस (स्वर्ग) बनने में युग बीते।

मॉरिशस की इस पवित्र भूमि पर कई देशों के लोग इकट्ठा हुए। कीचड़ से कमल उगने में भी कई युग बीते। उस समय कोमलता भी पत्थर के समान कठोर बन गई थी। हमने पत्थर में प्राण फूंके हैं। आज तक बिछड़े बंधुओं का मॉरिशस में हृदय से स्वागत करते है।

मेरे भारत – नेपाल – श्रीलंका, फीजी सूरीनाम – पाक – गयाना के चहेते भाइयो साऊथ अफ्रिका – युके – युएसए – कनाडा – फ्रांस – रेनियन के प्यारे भाइयो मॉरिशस की इस भूमि में तुम्हारी सारी यादें गहराई-तक खुदी हुई हैं।

इस भूमि को हिंद महासागर का स्वर्ग कहते हैं। यह कल्पना है या वास्तव पता नहीं परंतु मेरे प्यारे भाइयों मुझे विश्वास है कि आप सब यहाँ आकर इस धरती को स्वर्ग में तब्दील कर देंगे इसलिए कवि सभी प्रियजनों का मॉरिशस में हार्दिक स्वागत करते हैं।

अलकार

काव्य की शोभा बढ़ाने वाले कारक, गुण, धन अथवा तत्त्व को अलंकार कहा जाता है। जिस प्रकार स्वर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ती है उसी प्रकार जिन साधनों से काव्य की सुंदरता में अभिवृद्धि होती है, वहाँ अलंकार की उत्पत्ति होती है।

मुख्य रूप से अलंकार के तीन भेद हैं – शब्दालंकार, अर्थालंकार , उभयालंकार हम शब्दालंकार का अध्ययन करेंगे।

अनुप्रास – जब काव्य में किसी वर्ण की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

उदा. –
(१) तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए। – भारतेंदु हरिश्चंद्र
(२) चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही थीं जल-थल में। – मैथिलीशरण गुप्त

वक्रोक्ति – वक्ता के कथन का श्रोता द्वारा वक्ता के अभिप्रेत आशय से चमत्कारपूर्ण भिन्न अर्थ लगाया जाए, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।
उदा. –
(१) को तुम इत आये कहाँ ? घनश्याम हौं, तौ कितहू बरसो।
चितचोर कहावत है हम तो ! तँह जाहू जहाँ धन है सरसो।
रसिकेश नये रंगलाल भले ! कहूँ जाय लगो तिय के गर सो।
बलि पे जो लखो मनमोहन हैं ! पुनि पौरि लला पग क्यों परसो।
– रसकेश

(२) मैं सुकुमारी नाथ बन जोगू।
तुमहिं उचित तप मो कहँ भोगू।
– संत तुलसीदास

काव्य की शोभा बढ़ाने वाले कारक, गुण, धन अथवा तत्त्व को अलंकार कहा जाता है। जिस प्रकार स्वर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ती है उसी प्रकार जिन साधनों से काव्य की सुंदरता में अभिवृद्धि होती है, वहाँ अलंकार की उत्पत्ति होती है।

मुख्य रूप से अलंकार के तीन भेद हैं – शब्दालंकार, अर्थालंकार, उभयालंकार हम शब्दालंकार का अध्ययन करेंगे।

अनुप्रास : जब काव्य में किसी वर्ण की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
उदा. :
(1) तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए। – भारतेंदु हरिश्चंद्र
(2) चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही थीं जल-थल में। – मैथिलीशरण गुप्त

वक्रोक्ति : वक्ता के कथन को श्रोता द्वारा वक्ता के अभिप्रेत आशय से चमत्कारपूर्ण भिन्न अर्थ लगाया जाए, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।
उदा. :
(1) को तुम इत आये कहाँ? घनश्याम हौं, तो कितहू बरसो।
चितचोर कहावत है हम तो ! तँह जाहु जहाँ धन है सरसो।
रसिकेश नये रंगलाल भले ! कहुँ जाय लगो तिय के गर सो।
बलि पे जो लखो मनमोहन हैं ! पुनि पौरि लला पग क्यों परसो।
– रसकेश

(2) मैं सुकुमारी नाथ बन जोगू।
तुमहिं उचित तप मो कहँ भोगू।
– संत तुलसीदास

यमक : जहाँ शब्दों, शब्दांशों या वाक्यांशों की आवृत्ति होती है किंतु अर्थ भिन्न होता है वहाँ यमक अलंकार होता है।
उदा. :
(1) कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय (कनक – सोना, कनक = धतूरा) – बिहारी
(2) सजना है मुझे सजना के लिए (सजना – सँवरना, सजना = पति) – रवींद्र जैन

श्लेष : जब एक ही शब्द के विभिन्न अर्थ मिलते हैं तब श्लेष अलंकार होता है। यहाँ शब्द का प्रयोग एक ही बार किया जाता है परंतु अर्थ कई निकलते हैं।
उदा. :
(1) जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो करें, बढ़े अँधेरा होय।
– रहीम
बढ़े शब्द के दो अर्थ – बढ़ना = बुझ जाना, बढ़ना = बड़ा होना।

(2) सुवरन को खोजत फिरत
कवि, व्यभिचारी, चोर।
– केशव दास
सुवरन – अच्छे शब्द (कवि के संदर्भ में), सुवरन – अच्छा रुप (व्यभिचारी के संदर्भ में)
सुवरन – स्वर्ण (चोर के संदर्भ में)


इयत्ता ११ हिंदी स्वाध्याय उपाय

निष्कर्ष

आम्हाला आशा आहे की महाराष्ट्रावरील हा लेख तुम्हाला '११ हिंदी स्वागत है ! स्वाध्याय' मदत करेल. तुम्हाला काही प्रश्न असल्यास, त्यांना खाली टिप्पणी विभागात मोकळ्या मनाने पोस्ट करा. आम्ही लवकरात लवकर तुमच्याकडे परत येऊ.
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