इयत्ता १२ हिंदी पल्लवन मराठी स्वाध्याय PDF |
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इयत्ता १२ हिंदी पल्लवन स्वाध्याय
मंडळाचे नाव |
Maharashtra Board |
ग्रेडचे नाव |
१२ |
विषय |
हिंदी पल्लवन |
वर्ष |
2022 |
स्वरूप |
PDF/DOC |
प्रदाता |
|
अधिकृत संकेतस्थळ |
mahahsscboard.in |
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इयत्ता १२ हिंदी पल्लवन स्वाध्याय उपाय
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कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर
पल्लवन पाठ पर आधारित
(१) पल्लवन की प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
पल्लवन की प्रक्रिया के निम्नलिखित सोपान हैं :
- सर्वप्रथम मूल विषय के वाक्य, सूक्ति, काव्यांश अथवा कहावत को भली-भाँति पढ़ा जाता है। उनके भाव को समझने का प्रयास किया जाता है। उन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। अर्थ स्पष्ट होने पर एक बार पुनः विचार किया जाता है।
- पल्लवन करने से पूर्व मूल तथा गौण विचारों को समझ लेने के बाद विषय की संक्षिप्त रूपरेखा बनाई जाती है। मूल तथा गौण विचारों के पक्ष-विपक्ष में भली प्रकार सोचा जाता है। फिर विपक्षी तर्कों को काटने के लिए तर्कसंगत विचारों को एकत्रित किया जाता है।
- इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कोई भी भाव अथवा विचार छूटने न पाए। उसके बाद असंगत विचारों को हटाकर तर्कसंगत विचारों को संयोजित किया जाता है।
- शब्द सीमा को ध्यान में रखते हुए सरल और स्पष्ट भाषा में पल्लवन किया जाता है। पल्लवन लेखन में वाक्य छोटे होते हैं। लिखित रूप को पुनः ध्यानपूर्वक पढ़ा जाता है। पल्लवन विस्तार में लिखा जाता है।
- पल्लवन लेखन में परोक्ष कथन, भूतकालिक क्रिया के माध्यम से सदैव अन्य पुरुष में लिखा जाता है। पल्लवन में लेखक के मनोभावों का ही विस्तार और विश्लेषण किया जाता है।
(२) पल्लवन की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पल्लवन का अर्थ है विस्तार अथवा फैलाव। यह संक्षेपण का विरुद्धार्थी है। पल्लवन की विशेषताओं को इस प्रकार लिखा जा सकता है :
- कल्पनाशीलता – पल्लवन करते समय लेखक कल्पनाशीलता का सहारा लेता है। कल्पना के सहारे सूक्ति अथवा उद्धरण का भाव विस्तार करता है। परंतु पल्लवन में विषय का विस्तार एक निश्चित सीमा के अंतर्गत किया जाता है।
- मौलिकता – पल्लवन में मौलिकता का ध्यान रखा जाता है।
- सर्जनात्मकता – पल्लवन में लेखक को सर्जनात्मकता का अवसर व संतोष दोनों मिलते हैं।
- प्रवाहमयता – पल्लवन लेखन में प्रवाहमयता होना आवश्यक है। लेखक इस बात का ध्यान रखता है कि पाठक को पढ़ते समय बीच-बीच में किसी प्रकार का अवरोध अनुभव न हो।
- भाषा-शैली – पल्लवन करते समय लेखक को भाषा ज्ञान व भाषा का विस्तार जानना आवश्यक है। साथ ही विश्लेषण, संश्लेषण, तार्किक क्षमता के साथ-साथ अभिव्यक्तिगत कौशल की आवश्यकता होती है।
- शब्द चयन – पल्लवन में शब्द चयन का बहुत अधिक महत्त्व है। तर्कसंगत और सम्मत शब्दों का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। लेखक को शृंखलाबद्ध, रोचक एवं उत्सुकता से परिपूर्ण वाक्य लिखने चाहिए। छोटे-छोटे वाक्यों या वाक्य खंडों में बंद विचारों को खोल देना, फैला देना, विस्तृत कर देना ही पल्लवन है।
- क्रमबद्धता – पल्लवन में विचारों में, अभिव्यक्ति में क्रमबद्धता का बहुत अधिक ध्यान रखा जाता है।
- सहजता – पल्लवन का सहज रूप सभी को आकर्षित करता है।
- स्पष्टता – पल्लवन में स्पष्टता का होना अत्यावश्यक है। जिस भी विचार, अंश, लोकोक्ति आदि का पल्लवन किया जा रहा है, केंद्र में वही रहना चाहिए। पाठक को पल्लवन पढ़ते समय ऐसा प्रतीत न हो कि मूल विचार कुछ और है, जबकि पल्लवन का प्रवाह किसी अन्य दिशा में जा रहा है।
व्यावहारिक प्रयोग।
(१) “ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होइ’, इस पंक्ति का भाव पल्लवन कीजिए।
उत्तर :
संत कबीरदास जी का बड़ा प्रसिद्ध दोहा है –
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोइ।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होइ।।
इस छोटे-से दोहे में जीवन का ज्ञान है। कबीर जी का कहना है कि पुस्तकें पढ़कर ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। परंतु केवल पुस्तकें पढ़कर प्रभु का साक्षात्कार नहीं किया जा सकता। जब तक ईश्वर का साक्षात्कार न हो जाए, किसी को पंडित या ज्ञानी नहीं माना जा सकता। अनगिनत लोग जीवन भर ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करते हुए संसार से विदा हो गए परंतु कोई पंडित या ज्ञानी नहीं हो पाया। क्योंकि वे कोरे ज्ञान प्राप्ति के लोभ में ही पड़े रहे। बड़े-बड़े ग्रंथ पढ़कर भी जो प्रेम करना नहीं सीखा, वह अज्ञानी है।
प्रेम शब्द केवल ढाई अक्षर का है, जिसने उसे पढ़ लिया, अर्थात जिसने प्रभु से, जीवमात्र से प्रेम कर लिया, उसने ईश्वर का साक्षात्कार कर लिया। वास्तव में वही पंडित है। जिस व्यक्ति ने प्रेम को चखा, उसे कुछ और जानना शेष नहीं रहता, क्योंकि उसने परम ज्ञान को पा लिया। प्रेम ही ज्ञान है, प्रेमी ही असली ज्ञानी है। जिसने प्यार को पढ़ लिया, उसके लिए संसार में कुछ भी शेष नहीं रहता। जिसने प्रेम रस पी लिया, उसकी हर प्रकार की क्षुधा शांत हो गई।
प्राणिमात्र को प्रेम करने वाला व्यक्ति जब दूसरों के कष्ट, दुख और पीड़ाएँ देखता है, तो उसके नेत्र छलछला उठते हैं। वह जहाँ भी स्नेह का अभाव देखता है, वहीं जा पहुँचता है और कहता है – लो मैं आ गया। मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। ऐसे प्रेमी अंतःकरण वाले मनुष्य के चरणों में संसार अपना सब कुछ न्योछावर कर देता है। प्रेम संसार की ज्योति है। जीवन के सुंदरतम रूप की यदि कुछ अभिव्यक्ति होती है, तो वह प्रेम ही है।
प्रेम वह रचनात्मक भाव है, जो आत्मा की अनंत शक्तियों को जाग्रत कर उसे पूर्णता के लक्ष्य तक पहुँचा देता है। इसीलिए विश्व प्रेम को ही भगवान की सर्वश्रेष्ठ उपासना के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। परमेश्वर की सच्ची अभिव्यक्ति ही प्रेम है। प्रेम की भावना का विकास करके मनुष्य परमात्मा को प्राप्त कर सकता है।
(२) ‘लालच का फल बुरा होता है, इस उक्ति का विचार पल्लवन कीजिए।
उत्तर :
लालच का फल सदैव बुरा होता है। लालच दूसरों का हक मारने की प्रवृत्ति है। लालच का अर्थ ही है अपनी आवश्यकता से अधिक पाने का प्रयास करना। और जब हम अपनी आवश्यकता से अधिक हासिल करने का प्रयास करते हैं तो कहीं न कहीं किसी का हक मार रहे होते हैं। लालच हमारे चरित्र का हनन भी करता है। लालच करने से भले ही हमें त्वरित लाभ होता दिखे लेकिन अंत में लालच से नुकसान ही होता है।
जीवन में अनेक अवसरों पर हमारे साथ ऐसा होता है जब हम किसी बात पर लालच कर बैठते हैं। और अधिक पाने की लालसा में हम ऐसा कुछ कर बैठते हैं कि हमारे पास जो कुछ होता है हम उसे भी गँवा बैठते हैं। लालच ऐसी बुरी चीज है कि उसके फेर में पड़कर मानव कई बार मानवता तक को ताक पर रख देता है। मानव जीवन में कामनाओं और लालसाओं का एक अटूट सिलसिला चलता ही रहता है।
सब कुछ प्राप्त होने के बावजूद कुछ और भी प्राप्त करने की लालसा से मनुष्य जीवनपर्यंत मुक्त नहीं हो पाता। जो स्वभाव से ही लालची होता है, उसे तो कुबेर का कोष भी संतुष्ट नहीं कर सकता। दुनिया में अगर किसी भी रिश्ते में लालच है तो वह रिश्ता अधिक समय तक नहीं चल पाता। लालच के कारण हमारे सभी रिश्ते-नाते भी बिगड़ जाते हैं। जब हम लालच करते हैं तो अपने परिवार, यार-दोस्तों सभी की नजर में गिर जाते हैं।
लोग हम पर भरोसा करना बंद कर देते हैं। लालची व्यक्ति को कोई पसंद नहीं करता। परिणामस्वरूप कभी किसी तरह की सहायता की आवश्यकता हो तो भी लालची मनुष्य की सहायता के लिए कोई खड़ा नहीं होता।
यदि जीवन में आगे बढ़ना है, सफल होना है तो एक अच्छा इन्सान बनना होगा। दूसरों के बारे में सोचना होगा। जो व्यक्ति लालच करता है, वह कामयाबी से कोसों दूर रहता है। एक-न-एक दिन लालच का दुष्परिणाम सामने आता ही है। अगर समय रहते लालच की प्रवृत्ति को त्याग देंगे तो लालच के दुष्परिणाम से बच भी सकते हैं। इसके लिए हमें सदैव लालच करने से बचना चाहिए। अगर किसी लालच के जाल में फँस भी गए, तो समय रहते उससे बाहर निकलने का प्रयास करना चाहिए। हमें लालच को त्याग देना चाहिए।
पल्लवन के बिंदु
- पल्लवन में सूक्ति, उक्ति, पंक्ति या काव्यांश का विस्तार किया जाता है।
- पल्लवन के लिए दिए वाक्य सामान्य अर्थवाले नहीं होते।
- पल्लवन में अन्य उक्ति का विस्तार नहीं जोड़ना चाहिए।
- क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग न करें।
- पल्लवन करते समय अर्थों, भावों को एकसूत्र में बाँधना आवश्यक है।
- विस्तार प्रक्रिया अलग-अलग दृष्टिकोण से प्रस्तुत करनी चाहिए।
- पल्लवन में भावों-विचारों को अभिव्यक्त करने का उचित क्रम हो।
- वाक्य छोटे-छोटे हों जो अर्थ स्पष्ट करें।
- भाषा का सरल, स्पष्ट और मौलिक होना अनिवार्य है।
- पल्लवन में आलोचना तथा टीका-टिप्पणी के लिए स्थान नहीं होता।
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