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Monday, June 27, 2022

BSEB Class 10 Hindi Godhuli Chapter 7 हिरोशिमा Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 10th Hindi Godhuli Chapter 7 हिरोशिमा Book Answers

BSEB Class 10 Hindi Godhuli Chapter 7 हिरोशिमा Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 10th Hindi Godhuli Chapter 7 हिरोशिमा Book Answers
BSEB Class 10 Hindi Godhuli Chapter 7 हिरोशिमा Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 10th Hindi Godhuli Chapter 7 हिरोशिमा Book Answers


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Bihar Board Class 10th Hindi Godhuli Chapter 7 हिरोशिमा Textbooks Solutions PDF

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Bihar Board Class 10th Hindi Godhuli Chapter 7 हिरोशिमा Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 10th
Subject Hindi Godhuli Chapter 7 हिरोशिमा
Chapters All
Provider Hsslive


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Bihar Board Class 10 Hindi हिरोशिमा Text Book Questions and Answers

कविता के साथ

हिरोशिमा कविता का सारांश Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 1.
कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज क्या है ? वह कैसे निकलता है?
उत्तर-
कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज आण्विक बम का प्रचण्ड गोला है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह क्षितिज से न निकलकर धरती फाड़कर निकलता है। अर्थात् हिरोशिमा की धरती पर बम गिरने से आग का गोला चारों ओर फैल जाता है, चारों ओर आग की लपटें फैल जाती हैं। धरती पर भयावह दृश्य उपस्थित हो जाता है। आण्विक बम नरसंहार करते हुए उपस्थित होता है।

हिरोशिमा कविता का भावार्थ Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 2.
छायाएं दिशाहीन सब ओर क्यों पड़ती हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
सूर्य के उगने से जो भी बिम्ब-प्रतिबिम्ब या छाया का निर्माण होता है वे सभी निश्चित दिशा में लेकिन बम-विस्फोट से निकले हुए प्रकाश से जो छायाएँ बनती हैं वे दिशाहीन होती
हैं। क्योंकि आण्विक शक्ति से निकले हुए प्रकाश सम्पूर्ण दिशाओं में पड़ता है। उसका कोई निश्चित दिशा नहीं है। बम के प्रहार से मरने वालों की क्षत-विक्षत लाशें विभिन्न दिशाओं में जहाँ-तहाँ पड़ी हुई हैं। ये लाशें छाया-स्वरूप हैं परन्तु चतुर्दिक फैली होने के कारण दिशाहीन छाया कही गयी है। बम के रूप में सूरज की छायाएँ दिशाहीन सब ओर पड़ती हैं।

Hiroshima Kavita Ka Saransh In Hindi Bihar Board Class 10 प्रश्न 3.
प्रज्ज्वलित क्षण की दोपहरी से कवि का आशय क्या है ?
उत्तर-
हिरोशिमा में जब बम का प्रहार हुआ तो प्रचण्ड गोलों से तेज प्रकाश निकला और वह चतुर्दिक फैल गया। इस अप्रत्याशित प्रहार से हिरोशिमा के लोग हतप्रभ रहे गये। उन्हें सोचने का अवसर नहीं मिला। उन्हें ऐसा लगा कि धीरे-धीरे आनेवाला दोपहर आज एक क्षण में ही उपस्थित हो गया। बम से प्रज्वलित अग्नि एक क्षण के लिए दोपहर का दृश्य प्रस्तुत कर दिया। कवि उस क्षण में उपस्थित भयावह दृश्य का आभास करते हैं जो तात्कालिक था। वह दोपहर उसी क्षण वातावरण से गायब भी हो गया।

हिरोशिमा कविता की व्याख्या Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 4.
मनुष्य की छायाएँ कहाँ और क्यों पड़ी हुई हैं?
उत्तर-
मनुष्य की छायाएँ हिरोशिमा की धरती पर सब ओर दिशाहीन होकर पड़ी हुई हैं।
जहाँ-तहाँ घर की दीवारों पर मनुष्य छायाएँ मिलती हैं। टूटी-फूटी सड़कों से लेकर पत्थरों पर छायाएँ प्राप्त होती हैं। आण्विक आयुध का विस्फोट इतनी तीव्र गति में हुई कि कुछ देर के लिए समय का चक्र भी ठहर गया और उन विस्फोट में जो जहाँ थे वहीं उनकी लाश गिरकर सट गयी। वही सटी हुई लाश अमिट छाया के रूप में प्रदर्शित हुई।

Hiroshima Kavita Ki Vyakhya Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 5.
हिरोशिमा में मनुष्य की साखी के रूप में क्या है ?
उत्तर-
आज भी हिरोशिमा में साखी के रूप में अर्थात् प्रमाण के रूप में जहाँ-तहाँ जले हुए पत्थर दीवारें पड़ी हुई हैं यहाँ तक कि पत्थरों पर, टूटी-फूटी सड़कों पर, घर के दीवारों पर लाश के निशान छाया के रूप में साक्षी है। यही साक्षी से पता चलता है कि अतीत में यहाँ अमानवीय दुर्दान्तता का नंगा नाच हुआ था।

Hiroshima Ki Pida Question Answer Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 6.
व्याख्या करें:
(क) “एक दिन सहसा / सूरज निकता’
(ख) ‘काल-सूर्य के रथ के पहियों के ज्यों अरे टूट कर / बिखर गये हों / दसों दिशा में’
(ग) ‘मानव का रचा हुआ सूरज / मानव को भाप बनाकर सोख गया।
उत्तर-
(क)प्रस्तुत पद्यांश हिन्दी प्रयोगवादी विचारधारा के महान प्रवर्तक कवि अज्ञेय द्वारा लिखित ‘हिरोशिमा’ नामक शीर्षक से अवतरित है। प्रस्तुत अंश में हिरोशिमा में हुए बम विस्फोट के बाद दुष्परिणाम का जो अंश उपस्थित हुआ है उसी का मार्मिक चित्रण है। – कवि कहना चाहते हैं कि जब हिरोशिमा में आण्विक आयुध का प्रयोग हुआ उस समय प्रकृति के शाश्वत तत्त्व भी कुंठित हो गये। सूरज जैसा ब्रह्माण्ड का शक्ति सनव को ही वाष्प बनाकर सांख गया। उस समय सड़कों, गलियों में चल-फिर रहे लोग, वाष्प की भाँति विलीन हो गए। आस-पास के पत्थरों पर, सड़कों पर, दीवारों पर उस त्रासदी के फलस्वरूप बनी मानव छायाएँ दुर्दान्त मानव के कुकृत्य की साक्षी हैं।

यहीं द्वितीय विश्व युद्ध अणु-बम का विस्फोट हुआ और एक अनहोनी होती है।

भाषा की बात

Hiroshima Poem Summary In Hindi Bihar Board Class 10 प्रश्न 1.
कविता में प्रयुक्त निम्नांकित शब्दों का कारक स्पष्ट कीजिए-
क्षितिज, अंतरिक्ष, चौक, मिट्टी, बीचो-बीच; नगर, रथ, गय, छाया।
उत्तर-
क्षितिज – अधिकरण कारक
अंतरिक्ष – अपादान कारक
चौक – संबंधकारक
मिट्टी – अपादान कारक
बीचो-बीच – संबंध कारक
नगर – संबंध कारक
रथ – संबंध कारक
गच – अधिकरण
छाया – कृर्ता कारक

Hiroshima Kavita Ka Saransh Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 2.
कविता में प्रयुक्त क्रियारूपी का चयन करते हुए उनकी काल रचना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
निकला – वर्तमान काल
पड़ी – भूतकाल
उगा था – भूतकाल
गये हां – भूतकाल
लिखी हैं – भूतकाल
लिखी हुई – भूतकाल
है – वर्तमान काल

Hiroshima Poem In Hindi Bihar Board Class 10 प्रश्न 3.
कविता से तद्भव शब्द चुनिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
सूरज – सूरज निकल आया।
धूप – धूप निकल गया।
मिट्टी – मिट्टी गीली है।
पहिया – पहिया टूट गया।
पत्थर – पत्थर बड़ा है।
सड़क – सड़क चौड़ी है।

Hiroshima Kavita Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 4.
कविता से संज्ञा पद चुनें और उनकी प्रकार भी बताएँ।
उत्तर-
सूरज – व्यक्तिवाचक
नगर – जातिवाचक
चौक – जातिवाचक
मानव – जातिवाचक
रथ – जातिवाचक
पहिया – जातिवाचक
अरे – जातिवाचक
पत्थर – जातिवाचक
सड़क – जातिवाचक

Hiroshima Poem By Agyeya In Hindi Bihar Board Class 10 प्रश्न 5.
निम्नांकित के वचन परिवर्तित कीजिए-
छायाएँ, पड़ी, उगा, हैं, पहियों, अरे, पत्थरों, साखी।
उत्तर-
छायाएँ – छाया
पड़ीं – पड़ी
उगा – उगे
हैं – है
पहियों – पहिया
अरे – अरें
पत्थरों – पत्थर
साखी – साखियाँ

काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक
धूप बरसी
पर अन्तरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से।
छायाएँ मानव-जन की
दिशाहीन
सब ओर पड़ीं-वह सूरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टूट कर
बिखर गये हों
दसों दिशा में।

हिरोशिमा नागासाकी Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता–हिरोशिमा।
कवि-सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।

(ख) प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश में प्रयोगवादी विचारधारा के प्रमुख कवि अज्ञेय ने आधुनिक सभ्यता का दुर्दात मानवीय विभीषिका का चित्रण किया है। जापान के प्रमुख शहर हिरोशिमा पर मानव जाति ने आण्विक तत्त्वों का क्रूरता के साथ दुरुपयोग करने से जो भीषणतम परिणाम सामने आया उसी का एक साक्ष्य है। इस साक्ष्य के माध्यम से कवि एक अनिवार्य चेतावनी दे रहे हैं।

(ग) सरलार्थ-प्रस्तुत पद्यांश में जापान के प्रमुख शहर हिरोशिमा पर अमरीका द्वारा क्रूरता से जब आण्विक आयुध का प्रयोग किया गया तो हिरोशिमा तो क्या संपूर्ण विश्व की सभ्यता कराह उठी। उस भीषणतम आण्विक शक्ति के प्रयोग के बाद जो हिरोशिमा की स्थिति हुई उसी स्थिति का वर्णन कवि साक्ष्य के धरातल पर करते हैं। कवि कहते हैं कि अचानक एक प्रचण्ड ज्वाला से प्रज्वलित धरातल को फोड़ता हुआ आण्विक बम रूपी सूरज निकला। हिरोशिमा नामक शहर के खबूसरत चौक चौराहे पर प्रचण्ड ताप लिये हुए धूप निकली।

यह धूप अंतरिक्ष के स्थल से नहीं निकलकर धरती की छाती को फोड़कर निकली और अपनी प्रचण्डता को बिखरती हुई पूरे हिरोशिमा को जलाने लगी। बम विस्फोट से चारों ओर इतनी ज्वाला फैली कि समस्त जन-जीवन क्रूरता के गाल में समाहृत हो गया। प्रकृति प्रदत्त सूरज जब पूरब से उगता है तब एक निश्चित दिशा में निश्चित छाया बनती है लेकिन इस आण्विक बम रूपी सूर्य के उगने से समस्त जीवों की छायाएँ जहाँ-तहाँ पड़ी हुई मिलीं। जैसे लगा कि पूर्व दिशा का एक सूरज नहीं उगा है चारों ओर सूर्य ही सूर्य उगा हुआ है। कवि साक्ष्य के आधार पर कहते हैं कि जैसे लगता है महाकाल-रूपी सूर्य के रथ के पहिये टूटकर दसों दिशाओं के साथ शहर के केन्द्र में बिखर गये हैं। अर्थात् चारों ओर हाहाकार और कोहराम की ध्वनि गुजित हो रही है। आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका चित्र दिखाई पड़ रहे थे। विनाश का भीषणतम लीला का रूप मुंह बाये खड़ा था।

(घ) भाव-सौंदर्य – प्रस्तुत पद्यांश का भाव पूर्ण रूप से चित्रात्मक शैली में उद्धत है। प्रयोगवादी वातावरण स्पष्ट रूप से मिल रहे हैं। हिरोशिमा पर बम विस्फोट के बाद उभरे हुए नतीजे वर्षों तक मानव के, संवेदनाओं को झकझोर रहे हैं और जैसे उनसे प्रश्न पूछ रहे हैं कि क्या तुम्हारी सभ्यता की यही पहचान है?

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) कविता की भाषा पूर्णतः खड़ी बोली है।
(ii) यहाँ तद्भव के साथ तत्सम शब्दों का प्रयोग अर्थ की गंभीरता में सहायक है।
(iii) सम्पूर्ण कविता मुक्तक छंद में लिखी गयी है।
(iv) अलंकार योजना की दृष्टि से उपमा, अनुप्रास, दृष्टांत की छटा प्रशंसनीय है।
(v) इसमें वस्तु, भाव, भाषा, शिल्प आदि के धरातल पर प्रयोगों और नवाचरों की बहुलता है।
(vi) कविता में प्रयोगवाद की झलक मिल रही है।
(vii) ओजगुण में लिखी कविता भाव को सार्थक बना रही है।

2. कुछ क्षण का वह उदय-अस्त !
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृश्य सोख लेने वाली दोपहरी।
फिर?
छायाएँ मानव जन की
नहीं मिटीं लम्बी हो-हो कर;
मानव ही सब भाप हो गये।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर।
मानव का रचा हुआ सूरज
मानव को भाप बना कर सोख गया।
पत्थर पर लिखी हुई यह
जली हुई छाया
मानव की साखी है।

प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ). काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता-हिरोशिमा।
कवि- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।

(ख) प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश में कवि अज्ञेय हिरोशिमा पर हुए बम विस्फोट के कठोरतम परिणाम का साक्ष्य प्रकट करते हैं। साक्ष्य इतना अमानवीय है कि आज भी इसके समस्त मानस पटल पर किसी-न-किसी रूप में उभरते रहते हैं।

(ग) सरलार्थ- इतिहास प्रसिद्ध हिरोशिमा की घटना आज भी राजनीति से उपजते संकट की आशंकाओं से जुड़ी हुई है। कवि कहते हैं कि यह घटना कुछ क्षण के उदयास्त में इस तरह का दोपहरी वातावरण निर्माण हुआ जिसमें केवल धूप की प्रचण्डता ही थी। वह प्रचण्डता उदय-अस्त के वातावरण को मिटाकर केवल ज्वलनशीलता रूपी दोपहर सामने उभरकर आया।

अनेक लोग जलकर राख हो गये। जो जहाँ था इस आण्विक बम प्रयोग से वहीं मरकर सट गया। जिसके दाग और निशान वर्षों तक अंकित रहे। मानवीय छायाएँ इतनी लम्बी और गहरी हुई कि अभी भी यह अंकित है। जैसे लगा कि सभी मानव भाप बनकर ब्रह्माण्ड में व्याप्त हो गये हैं। ज्वाला इतनी भीषण थी कि पत्थर भी झुलस गए। सड़कें क्षत-विक्षत हो गईं। मानव के द्वारा निर्मित बम रूपी सूरज खुद मानव को ही भाप बनाकर सोख गया। अर्थात् मानव के द्वारा रचित यह आण्विक बम मानव को ही विनाश कर बैठा। आज भी जहाँ-तहाँ मरे हुए मानव की छाया जो अंकित है वह आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका की कहानी का गवाह है।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत अंश में अतीत की भीषणतम मानवीय दुर्घटना का साक्ष्य प्रकट किया गया है। साथ ही आण्विक आयुधों की होड़ में फंसी आज की वैश्विक राजनीति से उपजते
संकट की आशंकाओं से जुड़ी हुई है।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) कविता खड़ी बोली में है।
(ii) सम्पूर्ण कविता में प्रयोगवाद की झलक मिलती है। स्वतंत्र छंद में लिखी कविता मुक्तक की पहचान करा रही है।
(ii) साहित्यिक गुण की दृष्टि से ओज गुण के अंश देखने को मिल रहे हैं।
(iv) इसमें वस्तु, भाव, भाषा, शिल्प आदि के धरातल पर प्रयोगों और नवाचरों की बहुलता है। अलंकार की योजनाओं से उपमा पुनरुक्ति प्रकाश एवं अनुप्रास की छटा प्रशंसनीय है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्व

I. सही विकल्प चुनें

प्रश्न 1.
‘हिरोशिमा’ के कवि कौन हैं ?
(क) रामधारी सिंह दिनकर
(ख) कुँवर नारायण
(ग) ‘अज्ञेय’
(घ) जीवानंद दास
उत्तर-
(ग) ‘अज्ञेय’

प्रश्न 2.
‘अज्ञेय’ किसका उपनाम है ?
(क) सच्चिदानंद वात्स्यायन
(ख) रामधानी सिंह
(ग) बदरी नारायण चौधरी
(घ) वीरेन डंगवाल
उत्तर-
(क) सच्चिदानंद वात्स्यायन

प्रश्न 3.
‘हिरोशिमा’ कहाँ है ?
(क) जापान में
(ख) म्यानमार में
(ग) कोरिया में
‘(घ) चीन में
उत्तर-
(क) जापान में

प्रश्न 4.
‘हिरोशिमा’ कविता में सूरज की संज्ञा किसे दी गई है ?
(क) जापान बम को
(ख) अणुबम को
(ग) हाइड्रोजन बम को
(घ) रडार को
उत्तर-
(ख) अणुबम को

प्रश्न 5.
“अज्ञेय’ किस काव्य-धारा के कवि हैं?
(क) रहस्यवाद
(ख) छायावाद
(ग) नकेनवाद
(घ) प्रयोगवाद
उत्तर-
(घ) प्रयोगवाद

प्रश्न 6.
किस काव्य-संकलन के प्रकाशन से हिन्दी में नयी हवा के झोंके आए
(क) तार-सप्तक
(ख) हरी घास पर क्षण भर
(ग) चक्रवाल
(घ) इन दिनों
उत्तर-
(क) तार-सप्तक

II. रिक्त स्थानों की पर्ति करें-

प्रश्न 1.
‘अज्ञेय’ का असली नाम …………. है।
उत्तर-
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन

प्रश्न 2.
अज्ञेय कवि कथाकार, नाटककार के अतिरिक्त सुधी ………… भी थे।
उत्तर-
सम्पादक

प्रश्न 3.
‘हिरोशिमा’ कविता अणु बम विस्फोट की ………….. में लिखी गई।
उत्तर-
पृष्ठभूमि

प्रश्न 4.
अणु बम फटने पर मानव ही सब ………….. हो गए।
उत्तर-
भाप

प्रश्न 5.
धूप बरसी पर ………. से नहीं।
उत्तर-
अन्तरिक्ष

प्रश्न 6.
‘अज्ञेय’ हिन्दी में ……… प्रवृत्तियाँ लेकर आए।
उत्तर-
नयी।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हिन्दी काव्य में ‘अज्ञेय’ ने क्या किया?
उत्तर-
हिन्दी-काव्य में ‘अज्ञेय’ ने छायावाद की धारा को प्रगतिवाद में समाहित किया और प्रयोगवाद की शुरुआत की।

प्रश्न 2.
‘तार सप्तक’ क्या है ?
उत्तर-
तार सप्तक’ सात प्रयोगधर्मी कवियों के काव्य का संकलन है।

प्रश्न 3.
‘काल-सूर्य’ का अर्थ क्या है ?
उत्तर-
काल-सूर्य का अर्थ है मृत्यु का सूरज।

प्रश्न 4.
‘अज्ञेय’ किस-किस साहित्य-पुरस्कार से सम्मानित हुए ?
उत्तर-
‘अज्ञेय’ को साहित्य अकादमी के अतिरिक्त ज्ञानपीठ सुगा (युगोस्लाविया) का अंतर्राष्ट्रीय स्वर्णमाल और अनेकों पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

प्रश्न 5.
‘अज्ञेय’ ने किस साप्ताहिक पत्र का संपादन कर हिन्दी पत्रकारिता का हिमालय खड़ा किया?
उत्तर-
‘अज्ञेय’ ने साप्ताहिक ‘दिनमान’ का संपादन कर हिन्दी पत्रकारिता का हिमालय खड़ा किया।

प्रश्न 6.
“हिरोशिमा’ कविता किस छंद में लिखी गई है ?
उत्तर-
‘हिरोशिमा’ कविता मुक्त छंद में लिखी गई है।

व्याख्या खण्ड

1. एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक
धूप बरसी
पर अन्तरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘हिरोशिमा’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग हिरोशिमा पर गिराये गये बम से हैं।
कवि कहता है कि अचानक एक दिन चौक पर सूरज का विस्फोट हुआ। उस सूरज ने क्षितिज पर नहीं, पूरब में नहीं बल्कि चौक पर अपनी तीखी धूप से जन-जीवन को तहस-नहस कर दिया।

अंतरिक्ष से सूरज नहीं निकला था। बम विस्फोट से धरती दहल गयी थी और उसकी आंतरिक संरचना में उथल-पुथल मच गयी थी। यहाँ कवि ने नये प्रयोगों द्वारा शब्दों के माध्यम से मानवीय क्रूरतम् पक्षों को उद्घाटित किया है। हिरोशिमा पर बम विस्फोट भयंकर मानवीय दुर्घटना थी। आज के आणविक आयुध की होड़ में हम कितने क्रूर हो गए हैं। इस सृष्टि के विनाश में सदैव तत्पर रहते हैं। वैश्विक राजनीति के कारण अनेक संकट की आशंकाएँ बनी रहती हैं। सृष्टि का पालनकर्ता सूर्य नहीं बल्कि सृष्टि का विनाशक सूर्य धरती पर उगा था। कहने का मूल भाव है कि मनुष्य ही आज सबसे खतरनाक जीव हो गया है। वह दिन-रात विध्वंसक कार्यों में संलग्न रहता है।

उसी के काले कारनामों में हिरोशिमा पर बरसाया गया बम भी था जो सृष्टिकाल का भयंकर विस्फोट था। अपार धन-जन और संस्कृति की हानि हुई थी। इन पंक्तियों में सूर्य को प्रतीक रूप में कवि ने प्रयोग किया है। कवि ने मानव के विध्वंसकारी रूप का वर्णन किया है। कैसे हम वैसे विनाशकारी सूर्य की कल्पना और सृजन कर रहे हैं जो सारी सृष्टि का विनाशक सिद्ध हो रहा है।

प्रश्न 2.
छायाएँ मानव-जन की
दशाहीन
सब ओर पड़ीं-वह सूरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टूट कर
बिखर गये हों
दसों दिशा में।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक हिरोशिमा काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग हिरोशिमा पर बरसाए गए बम और उससे हुए अपार धन-जन के महाविनाश से है। कवि ने अपनी काव्य-पक्तियों में अपने भावों को व्यक्त करते हुए कहा है कि जब बम विस्फोट हुआ था उस समय चारों तरफ अफरा-तफरी मच गयी थी—कुहराम मच गया था। लोग जान बचाने के लिए दिशाहीन होकर जिधर-जिधर भाग रहे थे। अपनी प्राण रक्षा के लिए आकुल-व्याकुल दिख रहे थे। वह सूरज पूरब में उगकर नहीं आया था-धरती पर। वह अचानक शहर के बीचोंबीच में गिरा। लगता था कि कालरूपी सूर्य के रथ के पहिये धूरी के साथ टूटकर बिखर गये हों।

इन पंक्तियों में सूर्य को प्रतीक मानते हुए बम की विध्वंसकारी लीलाओं, उससे हुई अपार धन-जन की हानि, मानवीय पीड़ाओं का यथार्थ और पीडादायी वर्णन हुआ है। यह कवि के जीवन : की सबसे बड़ी दर्दनाक घटना है आज आदमी अपनी क्रूरता की सीमाओं को लाँघ गया है और स्वयं के महाविनाश में लगा हुआ है।

3. कुछ क्षण का वह उदय-अस्त।
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृश्य सोख लेनेवाली दोपहरी।
फिर?
छायाएँ मानव जन की
नहीं मिटीं लम्बी हो-होकर;
मानव ही सब भाप हो गए।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘हिरोशिमा’ नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग हिरोशिमा पर गिराये गए बम से है जिससे अपार धन-जन की हानि हुई थी।

कवि कहता है कि बम विस्फोट काल में कुछ क्षण तक स्तब्धता छा गयी थी। चारों तरफ धुआँ ही धुआँ और विस्फोटक पदार्थों से धरती पट गयी थी। प्रतीत होता था कि यह दोपहरी प्रज्ज्वलित क्षण के दृश्यों को सोख लेगी। कहने का मूल भाव यह है कि दोपहर का सूर्य ज्यादा गरमी वाला होता है। उसने यानी सूर्यरूपी बम ने जन-जन के अस्तित्व को मिटा दिया था क्षणभर

प्रश्न 4.
मानव का रचा हुआ सूरज
मानव को भाप बनाकर सोख गया।
पत्थर पर लिखी हुई यह जली हुई छाया
मानव की साखी है।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक के “हिरोशिमा” शीर्षक काव्य-पाठ से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों का संबंध मानव तथा उसके द्वारा रचे गए सूरज अर्थात् अणु-बम से है जिसके विस्फोट के समय चारों ओर प्रकाश फैलता है, जिस प्रकार सूर्य प्रकाश-पुंज है ऊर्जावान है, उसी प्रकार अणु बम में भी अपार ऊर्जा है तथा मानव-निर्मित सूरज है। किन्तु प्राकृतिक सूरज जहाँ सृष्टि का निर्माण एवं रक्षा करता है वहीं मानव-निर्मित यह सूरज अणु-बम ध्वंस एवं संहार का प्रतीक है।

मानव निर्मित सूरज-‘अणु-बम’ ने मानव को ही वाष्प बनाकर सोख लिया, चट कर गया, दीवारों, पत्थरों और सड़कों के धरातल पर अंकित वाली छायाएँ मानव के इस अमानवीय एवं क्रूर कृत्य की साक्षी हैं।

उपरोक्त पंक्तियों में व्यक्त भाव का तात्पर्य यह है कि मानव ने अपनी रचनात्मक शक्ति का जो दुरुपयोग किया है उसका दुष्परिणाम आज उसके सामने है। वस्तुतः विश्व-राजनीति में आयुद्धों की होड़ से जो संकट गहरा गया है वह नितान्त दुःखद है।

हिरोशिमा कवि परिचय

अज्ञेय का जन्म 7 मार्च 1911 ई० में कसेया, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ, किंतु उनका मूल निवास कर्तारपुर (पंजाब) था। अज्ञेय की माता व्यंती देवी थीं और पिता डॉ० हीरानंद शास्त्री एक प्रख्यात पुरातत्त्वेत्ता थे । अज्ञेय की प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ में घर पर हुई। उन्होंने मैट्रिक 1925 ई० में पंजाब विश्वविद्यालय से, इंटर 1927 ई० में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से, बी० एससी० 1929 ई० में फोरमन कॉलेज, लाहौर से और एम० ए० (अंग्रेजी) लाहौर से किया ।

अज्ञेय बहुभाषाविद् थे। उन्हें संस्कृत, अंग्रेजी, हिन्दी, फारसी, तमिल आदि अनेक भाषाओं का ज्ञान था । वे आधुनिक हिंदी साहित्य के एक प्रमुख कवि, कथाकार, विचारक एवं पत्रकार थे । उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – काव्य : भग्नदूत’, ‘चिंता’, ‘इत्यलम’, ‘हरी घास पर क्षण भर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘आँगन के पार द्वार’, ‘कितनी नावों में कितनी बार’, ‘सदानीरा’ आदि; कहानी संग्रह : ‘विपथगा’, ‘जयदोल’, ‘ये तेरे प्रतिरूप’, ‘छोड़ा हुआ रास्ता’, ‘लौटती पगडडियाँ’ आदि; उपन्यास : ‘शेखर : एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’, ‘अपने-अपने अजनबी’, यात्रा-साहित्यः अरे यायावर रहेगा याद’, ‘एक बूँद सहसा उछली’; निबंध : ‘त्रिशंकु’, ‘आत्मनेपद’, ‘अद्यतन’, ‘भवंती’, ‘अंतरा’, ‘शाश्वती’ आदि; नाटक : ‘उत्तर प्रियदर्शी’; संपादित ग्रंथ : ‘तार सप्तक’, ‘दूसरा सप्तक’, ‘तीसरा सप्तक’, ‘चौथा सप्तक’, ‘पुष्करिणी’, ‘रूपांबरा’ आदि । अज्ञेय ने अंग्रेजी में भी मौलिक रचनाएँ की और अनेक ग्रंथों के अनुवाद भी किए । वे देश-विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर रहे । उन्हें साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ, नुगा (युगोस्लाविया) का अंतरराष्ट्रीय स्वर्णमाल आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए । 4 अप्रैल 1987 ई० में उनका देहांत हो गया ।

अज्ञेय हिंदी के आधुनिक साहित्य में एक प्रमुख प्रतिभा थे। उन्होंने हिंदी कविता में प्रयोगवाद का सूत्रपात किया । सात कवियों का चयन कर उन्होंने ‘तार सप्तक’ को पेश किया और बताया कि कैसे प्रयोगधर्मिता के द्वारा बासीपन से मुक्त हुआ जा सकता है । उनमें वस्तु, भाव, भाषा, शिल्प आदि के धरातल पर प्रयोगों और नवाचरों की बहुलता है।

आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका का चित्रण करनेवाली यह कविता एक अनिवार्य प्रासंगिक चेतावनी भी है । कविता अतीत की भीषणतम मानवीय दुर्घटना का ही साक्ष्य नहीं है, बल्कि आणविक आयुधों की होड़ में फंसी आज की वैश्विक राजनीति से उपजते संकट की आशंकाओं से भी जुड़ी हुई है । आधुनिक कवि अज्ञेय की प्रस्तुत कविता उनकी समग्र कविताओं के संग्रह ‘सदानीरा’ से यहाँ संकलित है ।

हिरोशिमा Summary in Hindi

पाठ का अर्थ

बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन ‘अज्ञेय’ द्वारा रचित ‘हिरोशिमा’ शीर्षक कविता मानवीय विभीषिका का सजीवात्मक चित्रण करती है। ‘अज्ञेय’ आधुनिक हिन्दी साहित्य के एक प्रखर कवि, कथाकार, विचारक और पत्रकार हैं। उन्होंने हिन्दी कविता में प्रयोगवाद का सूत्रपात किया है। सात कवियों का चयन कर उन्होंने ‘तार सप्तक’ प्रस्तुत की यह सिद्ध कर दिया कि प्रयोगधर्मिता के द्वारा बासीपन से मुक्त कैसे हुआ जा सकता है।

प्रस्तुत कविता में कवि आज की वैश्विक राजनीति से उपजाते संकर और आशंकाओं को प्रदर्शित किया है। आज दुनिया आण्विक आयुधों को जमा करने में लगी है। विश्व में छायं काले त्रासदी के बादल ये संकेत कर रहे हैं कि कभी वीभत्सकारी रूप ले सकते हैं। ‘हिरोशिमा’ इसी शक्ति का शिकार हुआ है। आज भी वहाँ की त्रासदी कण-कण में प्रदीप्त दिख रही है। अमेरिका द्वारा गिराया गया ‘बम’ साधारण शक्तिवाला नहीं था। वह आग के गोली की तरह आकाश से उनर और पूरे हिरोशिमा को निःशेष कर गया। आज भी उस त्रासदी का दंश वहाँ के वासी झेल रहे हैं। मानव द्वारा निर्मित वह सूरज मानव को ही जलाकर राख कर दिया।

शब्दार्थ

अरं : पहिये की धुरी और परिधि या नमि को जोड़ने वाले दंड
गच : पत्थर या सीमेंट से बना पक्का धरातल
साखी (साक्षी) : गवाही, सबूत


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