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Monday, June 27, 2022

BSEB Class 10 Hindi Godhuli Chapter 9 हमारी नींद Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 10th Hindi Godhuli Chapter 9 हमारी नींद Book Answers

BSEB Class 10 Hindi Godhuli Chapter 9 हमारी नींद Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 10th Hindi Godhuli Chapter 9 हमारी नींद Book Answers
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Bihar Board Class 10th Hindi Godhuli Chapter 9 हमारी नींद Textbooks Solutions PDF

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Bihar Board Class 10th Hindi Godhuli Chapter 9 हमारी नींद Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 10th
Subject Hindi Godhuli Chapter 9 हमारी नींद
Chapters All
Provider Hsslive


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Bihar Board Class 10 Hindi हमारी नींद Text Book Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि एक बिप्य की रचना करता है। उसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि वीरेन डंगवाल ने मानव जीवन एक बिंब उपस्थित किया है। सुविधाभोगी आरामपसंद जीवन नींद रूपी अकर्मण्यता के चादर से अपने आपको ढंककर जब सो जाता है तब भी प्रकृति के वातावरण के एक छोटा बीज अपनी कर्मठता रूपी सींगों से धरती के सतह रूपी संकटों को तोड़ते हुए आगे बढ़ जाता है। यहाँ नींद, अंकुर, कोमल सींग, फूली हुई बीज, छत ये सभी बिम्ब रूप में उपस्थित है।

प्रश्न 2.
मक्खी के जीवन-क्रम का कवि द्वारा उल्लेख किये जाने का क्या आशय है ?
उत्तर-
मक्खी के जीवन-क्रम का कवि द्वारा उल्लेख किये जाने का आशय है निम्न स्तरीय जीवन की संकीर्णता को दर्शाना। सष्टि में अनेक जीवन-क्रम चलता रहता है। उसका जीवन-क्रम की व्यापकता को लेकर कर्मठता और अकर्मठता का बोध कराता है लेकिन मक्खी के जीवन-क्रम केवल सुविधापयोगी एवं परजीवी-जीवन का बोध कराता है।

प्रश्न 3.
कवि गरीब बस्तियों का क्यों उल्लेख करता है ?
उत्तर-
कवि गरीब बस्तियों के उल्लेख के माध्यम से कहना चाहता है कि जहाँ के लोग दो जून रोटी के लिए काफी मसक्कत करने के बाद भी तरसते हैं वहाँ पूजा-पाठ, देवी जागरण जैसे महोत्सव कितना सार्थक हो सकता है ? यहाँ कुछ स्वार्थी लोग अपनी उल्लू सीधा करने के लिए गरीब लोगों का उपयोग करते हैं। लेकिन गरीबी से ग्रसित लोग अपने वास्तविक विकास हेतु सचेत नहीं होते हैं।

प्रश्न 4.
कवि किन अत्याचारियों का और क्यों जिक्र करता है?
उत्तर-
कवि यहाँ उन अत्याचारियों का जिक्र करता है जो हमारी सुविधाभोगी, आराम पसंद जीवन से लाभ उठाते हैं। समाज का एक वर्ग जो ऐशो-आराम की जिंदगी में अपने आपको ढाल लेता है उसी का लाभ अत्याचारी उठाते हैं। हमारी बेपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितियों से लगातार लड़ते हुए बढ़ते जाने वाले जीवन नहीं रह पाते हैं और इस अवस्था में अत्याचारी अत्याचार करने के बाह्य और आंतरिक सभी साधन जुटा लेते हैं।

प्रश्न 5.
इनकार करना न भूलने वाले कौन हैं ? कवि का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
आज भी हमारे समाज में कुछ ऐसे हठधर्मी हैं जो संवैधानिक और वैधानिक स्तर पर ‘कई गलतियाँ कर जाते हैं लेकिन अपनी भूलें या गलतियों को स्वीकार नहीं करते हैं। वे साफ तौर पर अपनी भूल को इनकार कर देते हैं। जैसे लगता है कि उनका दलील काफी साफ और मजबूत है।

प्रश्न 6.
कविता के शीर्षक की सार्थकता पर विचार कीजिए।
उत्तर-
किसी भी कविता का शीर्षक कवितारूपी शरीर का मुख होता है। शीर्षक कविता की सारगर्भिता लिए रहता है। शीर्षक रखने के समय कुछ बातें इस प्रकार होती हैं-शीर्षक, सार्थक लघु और समीचीन होना चाहिए। साथ ही शीर्षक घटना प्रधान, जीवन प्रधान या विषय-वस्तु प्रधान होता है। यहाँ शीर्षक विषय-वस्तु प्रधान हैं। शीर्षक छोटा है और आकर्षक भी है। इसका शीर्षक पूर्ण रूप से केन्द्र में चक्कर लगाता है जहाँ शीर्षक सुनकर ही जानने की इच्छा प्रकट हो जाता है। अत: सब मिलाकर शीर्षक सार्थक है।

प्रश्न 7.
व्याख्या करें-
गरीब बस्तियों में भी
धमाके से हुआ देवी जागरण
लाउडस्पीकर पर।
उत्तर –
प्रस्तुत पद्यांश हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि वीरेन डंगवाल के द्वारा लिखित ‘हमारी नींद’ से ली गई है। इस अंश में कवि उन लोगों का चित्र खींचा है जो गरीब बस्तियों में जाकर अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए देवी जागरण जैसे महोत्सव का आयोजन करते हैं।

कवि कहते हैं कि आज भी हमारे समाज में कुछ ऐसे स्वार्थपरक लोग हैं जिनके हृदय में गरीबों के प्रति हमदर्दी नहीं है। केवल उनसे समय-समय पर झूठे -वादे करते हैं। नेता, पूँजीपति एवं अत्याचारी ये सभी गरीबों की आंतरिक व्यथा से खिलवाड़ कर उनकी विवशता से लाभ उठाते हैं।

प्रश्न 8.
‘याने साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी साहित्य के हमारी नींद नामक शीर्षक से उद्धृत है। कवि वीरेन डंगवाल सामाजिक अत्याचारियों के करतूतों का पर्दाफाश किये हैं।
आज हमारे समाज में अनेक लोग हैं जो अपनी जिंदगी को आरामतलबी बना लिये हैं। ऐसी जिंदगी समाज और राष्ट्र के लिए खतरनाक परिधि में रहती है और इन्हीं में से कुछ लोग ऐसे हैं जो इनकी विवशता का लाभ उठाने के लिए गलत अंजाम देने में पीछे नहीं हटते हैं। अत्याचारी आंतरिक और बाह्य रूप से अपने स्वार्थपूर्ति के लिए सभी प्रकार के साधन अपनाते हैं।

प्रश्न 9.
“हमारी नींद के बावजूद’ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्य-पुस्तक के “हमारी- नींद” नामक शीर्षक से उद्धृत है। इस अंश में हिन्दी काव्यधारा के समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल ने वैसे लोगों का चित्रण किया है जो आरामतलबी जीवन पंसद करते हैं।
प्रस्तुत अंश में कवि कहते हैं कि जीवन-क्रम कभी रुकता नहीं है। समय-चक्र के समान बिना किसी की प्रतीक्षा किये हुए अनवरत आगे ही बढ़ता जाता है। यदि हमारे समाज के कोई भी व्यक्ति सुविधोपयोगी आराम पसंद जीवन पसंद करते हैं तो भी कहीं एक पक्ष जरूर ऐसा होता है जिसका सिलसिला हमेशा आगे बढ़ते जाता है जो कर्मवाद का संदेश देता है।

प्रश्न 10.
‘हमारी नींद’ कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल ने हमारी नींद’ कविता में विभिन्न चित्रों के माध्यम से सुविधाभोगी जीवन और हमारी बेपरवाही के बावजूद बेहतर जिन्दगी के लिए चलने वाले संघर्ष का चित्रण बड़ी स्पष्टता से किया है।

कवि कहता है कि छोटी धरती के नीचे बीज अंकुरा और उस छोटे अंकुर ने अपने ऊपर की धरती को दरकाया और खुली हवा में उसने साँस ली। उसने अपने ऊपर के अवरोध को तोड़ा। पेड़ ने भी अपना कद ऊँचा किया।

प्रकृति के इस क्रम के बाद कवि समाज की ओर निहारता है। मक्खियों की तरह लोग जी रहे हैं और उनकी तरह ही बच्चे उत्पन्न कर रहे हैं। नतीजा है कि जीवन की इस अफरा-तफरी में ही रंगे हो रहे कुछ लोग आगजनी कर रहे हैं, बम फोड़ रहे हैं ताकि अपने लिए सुविधा का सामान जुटा सकें। कुछ की जिन्दगी जाती है तो जाए। हमें क्या ?

दूसरी ओर कुछ गरीब लोग हैं जो अपनी गरीबी को अपना नसीब मान चुके हैं, वे गरीबी से छुटकारा पाने के लिए लड़ने की अपेक्षा अपनी गाढ़ी कमाई में लाउडस्पीकर लगाकर, रात-रात भर देवी के भजन गा रहे हैं वे इस भ्रम में हैं कि देवी-पूजा से उनका जीवन बदल जाएगा। वस्तुतः वे नींद में हैं। दरअसल भाग्य, पूजा-पाठ समाज के दुश्मनों के बिछाए हुए जाल हैं ताकि ये अत्याचारी आनन्द-सुख भोग सकें। किन्तु जीवन ऐसा है कि उनके लाख चाहने के बाद रुकता नहीं है। उपेक्षाकृत से उस पर कोई असर नहीं पड़ता।

कवि कहता है कि लाख कोशिशों के बावजूद कुछ लोग हैं जो अनाचार के आगे सिर नहीं झुकाते। वे दृढतापूर्वक अनुचित कार्य करने से मना कर देते हैं। उनकी ओर से आँख बन्द कर लेने पर भी वे रुकते नहीं, बढ़ते जाते हैं। यह संघर्ष ही उनकी ताकत है, मानव के विकास की यही कहानी है।

प्रश्न 11.
कविता में एक शब्द भी ऐसा नहीं है जिसका अर्थ जानने की कोशिश करनी पड़े। यह कविता की भाषा की शक्ति है या सीमा ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
यह भाषा की शक्ति है जो अपने साधारण अर्थ से सबकुछ समझाने में सफल हो जाती है। सीमा का रूपान्तर नहीं होता है किन्तु भाषा का रूपान्तर कविता की सौष्ठवता को प्रदर्शित करने में समर्थ हो जाती है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नांकित के दो-दो समानार्थी शब्द लिखें-
पेड़, शिशु, दंगा, गरीब, अत्याचारी, हठीला, साफ, इनकारा
उत्तर-
पेड़ – तरू, वृक्ष
शिशु- बालक, बाल
दंगा – सांप्रदायिकता, सांप्रदायिक युद्ध
गरीब – दीन, निर्धन
अत्याचारी – दुराचारी
हठीला – स्थैर्य, अडिग रहने वाला
साफ – एकदम, बेहिचक
इनकार – मनाही, मना करना।

प्रश्न 2.
निम्नांकित वाक्यों में कर्ता कारक बताएँ
(क) मेरी नींद के दौरान / कुछ इंच बढ़ गए / कुछ सूत पौधे।
(ख) अंकुर ने अपने नाममात्र कोमल सींगों से धकेलना शुरू की। बीज की फूली हुई। छत भीतर से।
(ग) गरीब बस्तियों में भी / धमाके से हा देवी जागरण लाउडस्पीकर पर।
(घ) मगर जीवन हठीला फिर भी : बढ़ता ही जाता आगे / हमारी नींद के बावजूद।
उत्तर-
(क) पौधे
(ख) अंकुर
(ग) देवी जागरण
(घ) जीवन

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों में कर्मकारक की पहचान कीजिए
(क)अंकर ने अपने नाममात्र कोमल सींगों से / धकेलना शुरू की / बीज की फूली हुई / छत भीतर से।
(ख) कई लोग हैं / अभी भी / जो भूले नहीं करना , साफ और मजबूत / इनकार।
उत्तर-
(क) छत
(ख) इनकार

काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मेरी नींद के दौरान
कुछ इंच बढ़ गए पेड़
कुछ सूत पौधे
अंकर ने अपने नाममात्र कोमल सींगों से
धकेलना शुरू की
बीज की फूली हुई
छत, भीतर से।
एक मक्खी का जीवन-क्रम पूरा हुआ
कई शिशु पैदा हुए, और उनमें से
कई तो मारे भी गए
दंगे, आगजनी और बमबारी में।

प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता-हमारी नींद।
कवि-वीरेन डंगवाल।

(ख) प्रसंग हिन्दी साहित्य के समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल ने प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से सुविधाभोगी, आराम पसंद जीवन अथवा हमारी बेपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितियों से लगातार लड़ते हुए बढ़ते जीवन का चित्रण किया है।

(ग) सरलार्थ प्रस्तुत पद्यांश में कवि एक बिम्ब की रचना करते हैं जो मानव जीवन और मानवेत्तर प्राणियों के आंतरिक और बाह्य जीवन चक्र, संघर्षशीलता के साथ चल रहे हैं। कवि स्वयं कविता के केन्द्र में बिम्ब के रूप में उपस्थित होकर कहता है कि जब मैं सुविधाभोगी बनकर आराम की नींद में सो रहा था तो इधर प्रकृति अन्य प्राणियों के जीवनक्रम को आगे बढ़ा रही थी। प्रकृति के आगोश में पलने वाले पेड़-पौधे के बीज भी धरातल के अन्दर प्रवेश कर अपने अंकुररूपी कोमल सींगों से बीज की छत को धकेल कर कुछ इंच पौधे के रूप में आगे बढ़ आये हैं। उसी प्रकार मक्खी का जीवन-क्रम पूरा हुआ तो इस जीवन क्रम में कई शिशु उत्पन्न हुए, उनमें से कई मारे गये। कई जगह दंगे-फसाद, आगजनी और बमबारी से मानव और मानवेत्तर प्राणियों का जीवनक्रम चलता रहा।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत पद्यांश में कवि आराम तलबी, विलासिता में लिप्त जो मानव जीवन-यापन करते हैं और उनके ही इर्द-गिर्द घूमने वाले अन्य प्राणियों का जीवन-चक्र किस तरह से चलता है इसी का यहाँ दार्शनिक आकलन किया गया है। कवि मानवीय जीवन की लधुता और विधाता के समय की व्यापकता के माध्यम से कहता है कि मानव जीवन अति लघु है। इस लघु जीवन दुःख-सुख, जुल्म-अत्याचार, सहते हुए जीवन को विकास क्रम में ले जाना है। अतः विलासितापूर्ण जीवन को छोड़कर जीवन की यथार्थता को समझना चाहिए।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) सम्पूर्ण कविता खड़ी बोली में रचित है।
(ii) छंद मुक्त होते हुए भी कहीं-कहीं कविता में संगीतमयता आ गयी है।
(iii) कवि की भाषा सरल और सुबोध है।
(iv) बिम्ब-प्रतिबिम्ब की झलक कविता की लाक्षणिकता पूर्णरूप से प्रकट होती है।
(v) भाव के अनुसार भाषा का वर्णन कविता की परिपक्वता दिखाई पड़ रही है।

2. गरीब बस्तियों में भी ।
धमाके से हुआ देवी जागरण
लाउडस्पीकर पर।
याने साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने
मगर जीवन हठीला फिर भी
बढ़ता ही जाता आगे
हमारी नींद के बावजूद
और लोग भी हैं, कई लोग हैं
अभी भी
जो भूले नहीं करना
साफ और मजबूत
इनकार।

प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) दिये गये पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता- हमारी नींद।
कवि- वीरेन डंगवाल।

(ख) प्रसंग-पस्तुत पद्यांश में कवि काल-क्रम की व्यापक एवं संघर्षशील गतिविधियों के दार्शनिक रूप का वर्णन करता है। जीवन-क्रम में जीव-जंतु से लेकर मानवीय जीवन जो प्रभावित होता है उनमें विपरीत परिस्थितियाँ जीवन को कुछ कहने-सुनने के लिए बाध्य करती है। यहाँ कवि यह बताना चाहता है कि सर्वदा सामंतशाहियों के चक्र में कमजोर और ईमानदार पिसता रहा है।

(ग) सरलार्थ-कवि मानव जीवन-क्रम का चित्रण करते हुए कहता है कि जहाँ झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीब लोग हैं जो केवल किसी तरह से अपने पेट की ज्वाला शांत करने की अपेक्षा कुछ नहीं जानते हैं। वहाँ भी विलासी लोग भगवती जागरण तथा अन्य ढोंगी कार्यक्रम के आड़ में लाउडस्पीकर बजवाकर ठगने का कार्य करते हैं। साथ ही समाज के कुछ लोग सुशिक्षित होकर भी मानवता की परिभाषा को झुठलाते हुए अत्याचारियों के द्वारा जुटाये गये साधनों को मूक होकर देखते रहते हैं। हम आराम तलबी जिंदगी में कर्महीनता का परिचय देकर मानवता को कलंकित करने में पीछे नहीं हट रहे हैं। इनमें आज भी ऐसे लोग हैं जो अपने सामने कमजोर, बेबस, मजबूर लोगों पर अत्याचारियों के द्वारा होते अत्याचार को देखकर केवल यह सोचकर चुप रह जाते हैं कि यह मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत कविता का भाव यह है कि आज के परिवेश में मनुष्य केवल स्वार्थपरता पर केन्द्रित है। साथ ही साथ कहा जा रहा है कि जमाना बाह्य जगत से काफी खतरनाक पैमाने पर टूट रहा है। लोग सच्चाई से मुख मोड़ रहे हैं।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) सम्पूर्ण कविता खड़ी बोली में है।
(ii) तद्भव तत्सम के साथ-साथ कहीं-कहीं उर्दू शब्दों का भी समागम हुआ है।
(iii) पूरी कविता लक्षण शक्ति पर आधारित है।
(iv) भाव के अनुसार कविता में ओज गुण के लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं।
(v) अलंकार और छंद के विशेष परिस्थितियों से दूर रहने पर भी कविता के उद्देश्य में अंतर नहीं आया है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चुनें

प्रश्न 1.
‘हमारी नींद’ के रचयिता कौन हैं ?
(क) सुमित्रानंदन पंत
(ख) वीरेन डंगवाल
(ग) रामधारी सिंह दिनकर
(घ) कुँवर नारायण
उनर-
(ख) वीरेन डंगवाल

प्रश्न 2.
वीरेन डंगवाल किस विचारधारा के कवि हैं ?
(क) जनवाद
(ख) रहस्यवादी
(ग) रीतिवादी
(घ) सूफी
उत्तर-
(क) जनवाद

प्रश्न 3.
‘हमारी नींद’ में ‘नींद’ किसका प्रतीक है?
(क) गफलत
(ख) बेहोशी
(ग) पागलनपन
(घ) मदहोशी
उत्तर-
(क) गफलत

प्रश्न 4.
‘दुश्चक्र में सृष्टा’ पुस्तक पर वीरेन डंगवाल को कौन-सा पुरस्कार प्राप्त हुआ?
(क) ज्ञानपीठ
(ख) सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
(ग) साहित्य अकादमी
(घ) नोबेल पुरस्कार
उत्तर-
(ग) साहित्य अकादमी

प्रश्न 5.
हमारी नींद’ कैसी कविता है ?
(क) समकालीन
(ख) नकेनवादी
(ग) हालावादी
(घ) छायावादी
उत्तर-
(क) समकालीन

प्रश्न 6.
कवि वीरेन डंगवाल के अनुसार जीवन में महत्त्वपूर्ण क्या है ?
(क) सुख
(ख) नकेनवादी
(ग) भ्रमण
(घ) संघर्ष
उत्तर-
(घ) संघर्ष

II. रिक्त स्थानों की पर्ति करें

प्रश्न 1.
वीरेन डंगवाल ………….. परिवर्तन के पक्षधर हैं।
उत्तर-
जनवादी

प्रश्न 2.
‘हमारी नींद’ कविता काव्य-संकलन …….से संकलित है।
उत्तर-
दुष्चक्र में स्रष्टा

प्रश्न 3.
मेरी नींद के दौरान कुछ इंच बढ़ गए ………… ।
उत्तर-
पंड

प्रश्न 4.
कई लोग मारे गए दंगे, आगजनी और …….. में।
उत्तर-
बमबारी

प्रश्न 5.
गरीब बस्तियों में भी धमाके से हुआ ………. जागरण।
उत्तर-
देवी

प्रश्न 6.
डंगवाल की कविताओं के दृश्य “………” करनेवाले हैं।
उत्तर-
बेचैन

प्रश्न 7.
नाजिम हिकमत ………. भाषा के महाकवि हैं।
उत्तर-
तुकी

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वीरेन डंगवाल का जन्म कहाँ हुआ है ?
उत्तर-
वीरेन डंगवाल का जन्म उत्तरांचल के कीर्तिनगर में हुआ।

प्रश्न 2.
वीरेन डंगवाल ने काव्य रचना के अलावा क्या कर हिन्दी को समृद्ध किया है ?
उत्तर-
वीरेन डंगवाल ने काव्य-रचना के अलावा विश्व के श्रेष्ठ कवियों की कविताओं का अनुवाद कर हिन्दी को समृद्ध किया है।

प्रश्न 3.
यथार्थ को डंगवाल किस प्रकार प्रस्तुत करते हैं?
उत्तर-
यथार्थ को डंगवाल बिल्कुल नये अंदाज में प्रस्तुत करते हैं।

प्रश्न 4.
वीरेन डंगवाल कैसे कवि हैं ?
उत्तर-
वीरेन डंगवाल जनवादी परिवर्तन के पक्षधर प्रमुख सामयिक कवि हैं।

प्रश्न 5.
‘हमारी नींद’ कविता का संदेश क्या है ?
उत्तर-
‘हमारी नींद’ कविता का संदेश है संघर्ष ही जीवन है।

प्रश्न 6.
वीरेन डंगवाल की काव्य भाषा कैसी है ?
उत्तर-
वीरेन डंगवाल की काव्य-भाषा में देशी ठाठ दिखाई देता है।

व्याख्या खण्ड

प्रश्न 1.
मेरी नींद के दौरान
कुछ इंच बढ़ गए पेड़
कुछ सूत पौधे
अंकुर ने अपने नाममात्र कोमल सींगों से
धकेलना शुरू की
बीज की फूली हुई
छत, भीतर से।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी प नुस्तक के ‘हमारी नींद’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों का प्रसंग कवि की नींद से जुड़ा हुआ है जिसमें नींद के माध्यम से एक पेड़ के सृजन एवं विकास-क्रम की चर्चा है। कवि सपने देखता है। सपने में पेड़ कुछ इंच बढ़ गए हैं—कुछ छोटे-छोटे पौधे पेड़ पुत्र के रूप में विकसित हो रहे हैं। अंकुर अपने स्वरूप में कैसे बदलाव क्रमानुसार लाता है, उसकी व्याख्या कवि ने अपनी कविता में किया है। बीज जब अंकुरित होते हैं, धीरे-धीरे फूल के रूप में छतनुमा आकार ग्रहण करते हैं। भीतर से बीज का अंकुरित रूप विकसित होकर पौधे-पेड़ के रूप में अपने विराट अस्तित्व को प्राप्त कर लेता है।

कवि की नींद कितनी सुखद है इसकी व्याख्या स्वयं कवि ने किया है। जैसे मनुष्य का जीवन-क्रम है—ठीक वैसा ही बीज-पौधे-पेड़ का है। कवि ने नींद में देखे गए सपने के माध्यम से पेड़ के जन्म से लेकर विकसित रूप तक का सूक्ष्म चित्रण करते हुए मानवीय जीवन से उसके संबंधों को व्याख्यायित किया है। जैसे मानव के भीतर कई विचार मंथन के द्वारा एक आकार रूप ग्रहण करता है। ठीक उसी प्रकार बीजरूप भी अंकुरण के द्वारा विराटता को प्राप्त करता है। इस कविता में प्रकृति की सृजन-प्रक्रिया का चित्रण हुआ है।

प्रश्न 2.
एक मक्खी का जीवन-क्रम पूरा हुआ
कई शिशु पैदा हुए और उनमें से
कई तो मारे भी गए
दंगे, आगजनी और बमबारी में।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘हमारी नींद’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पक्तियों का संबंध मक्खी के जीवन-क्रम, शिशु-प्रजनन, आगजनी, बमबारी से जुड़ा हुआ है।

कवि कहता है कि एक मक्खी का जीवन-क्रम धीरे-धीरे पूर्णता को प्राप्त करता है। कई शिशु पैदा होते हैं और उनमें से कई मार दिये भी जाते हैं-दंगों द्वारा, आगजनी द्वारा और बमबारी द्वारा। यहाँ मक्खी के जीवन क्रम को मानव के जीवन क्रम को तुलनात्मक रूप में दिखाया गया है। मनुष्य आज अपने जीवन-क्रम ने विकास की सीढ़ियों पर दूर-दूर तक पहुँचाया है। हमारे बच्चे भी सृजन-प्रक्रिया से गुजरते हुए विकास की सीढ़ियों पर चढ़ते हैं। आज चारों तरफ कितनी भयावह स्थिति है। कहीं दंगे हो रहे हैं, कहीं आगजनी हो रही है, कहीं बमबारी हो रही है। पूरी मानवता आज कराह रही है। आज चारों तरफ अराजक स्थिति है। सभी असुरक्षित हैं। जीवन को खतरे से बचाकर विकास-पथ की ओर ले चलने में आज काफी कठिनाइयाँ हो रही हैं।

प्रश्न 3.
गरीब बस्तियों में भी
धमाके से हुआ देवी जागरण
लाउा पीकर पर।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “हमारी नींद” नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों का प्रसंग दीन-हीन जन के अंध-विश्वासों, देवी-जागरण और धूम-धमाका से है। कवि कहता है कि गरीब बस्तियों में भी देवी-जागरण के बहाने धूम-धमाका, लाउडस्पीकर को बजाना आदि कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। ये दीन-जन अपनी यथार्थ स्थिति से रू-ब-रू न होकर भटके हुए हैं। भावुकता एवं अंधविश्वास में समय और शक्ति का अपव्यय करते हैं। इनमें अपनी गरीबी, बेबसी-लाचारी के प्रति चेतना नहीं जगी है। ये कोरे अंधविश्वास और नकलची जीव ! अभी भी जी रहे हैं। इनमें सारी शक्तियाँ तो हैं किन्तु चेतना के अभाव में अपने लक्ष्य से भटके हुए हैं। कवि गरीबों, उनकी बस्तियों, उनके कार्यक्रमों के प्रति ध्यान आकृष्ट करता है। उनके जीवन की विसंगतियों का सही चित्रण प्रस्तुत कर कवि ने सच्चाई से हमें अवगत कराया है।

प्रश्न 4.
याने साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने
मगर जीवन हठीला फिर भी
बढ़ता ही जाता आगे
हमारी नींद के बावजूद।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “हमारी नींद” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन कविताओं का प्रसंग हमारे मानवीय जीवन के अनेक पक्षों से जुड़ा है। समाज में रह रहे अनेक किस्म के लोगों, उनके रहन-सहन और क्रियाकलापों से संबंधित है। कवि कहता है कि अनेक तरह के साधन-संसाधन को लोगों ने जुटा लिया है। अत्याचारियों ने अपने अत्याचार से, ‘ शोषण दमन से सबको त्रस्त कर रखा है। किन्तु जीवन की गति भी कहाँ अवरुद्ध हो रही है। वह तो अपनी गति में अग्रसर है। जीवन तो संघर्ष का ही नाम है। उसे जीवटता के साथ जीने में ही मजा है। जीवन सदैव प्रगति-पथ पर आगे की ओर ही बढ़ता गया है, भले ही उसके मार्ग में क्यों न अनेक बाधाएँ खड़ी हों। जीवन हठधर्मी होता है। उसमें दृढ़-संकल्प शक्ति निहित होती है। लाख नींद बाधा बनकर खड़ी हो किन्तु यात्रा-क्रम कभी रुका है क्या ? सीमित लोगों के पास संसाधन सिमटे हुए हैं। विषमता के बीच जीवन को जीते हुए लक्ष्य के शिखर तक पहुँचाना है। कवि सामाजिक विसंगतियों के बीच जीते हुए लड़ते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहा है।

प्रश्न 5.
और लोग भी हैं, कई लोग हैं
अभी भी
जो भूलें नहीं करता
साफ और मजबूत
इनकार।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “हमारी नींद” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग समाज के आमलोगों से जुड़ा है, जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी को सृजन कर्म में लगाया है।

इस धरा पर उन अत्याचारियों के अलावा दूसरे लोग भी हैं जो अभी भी अपने साफ और मजबूत इरादों के साथ भूलों को स्वीकार करते हैं इनकार नहीं करते हैं। उनके भीतर नैतिकता, ईमानदारी, कर्मठता और साहस विद्यमान है। समाज के ये तपे-तपाये लोग हैं जिन्होंने समाज के लिए, राष्ट्र के लिए, लोकहित के लिए मजबूत इरादों के साथ संघर्ष किया है, संघर्ष कर रहे हैं। समाज के ये अगली पंक्ति के लोग हैं जिनमें त्याग, करुणा, दया और सहनशक्ति भरी हुई है। इस प्रकार समाज के शोषक वर्ग के अलावा एक सृजन वर्ग भी है जो अपनी कर्तव्यनिष्ठता के साथ, संकल्पशक्ति के साथ समाज-निर्माण, राष्ट्र निर्माण में लगा हुआ है।

हमारी नींद कवि परिचय

प्रमुख समकालीन कवि वीरेन डंगवाल का जन्म 5 अगस्त 1947, ई० में कीर्तिनगर, टिहरी-गढ़वाल, उत्तरांचल में हुआ । मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, कानपुर, बरेली, नैनीताल में शुरुआती शिक्षा प्राप्त करने के बाद डंगवाल जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम० ए० किया और यहीं से आधुनिक हिंदी कविता के मिथकों और प्रतीकों पर डी० लिट् की उपाधि पायी । वे 1971 ई० से बरेली कॉलेज में अध्यापन करते रहे । डंगवाल जी हिंदी और अंग्रेजी में पत्रकारिता भी करते हैं। उन्होंने इलाहाबाद से प्रकाशित अमृत प्रभात’ में कुछ वर्षों तक ‘घूमता आईना’ शीर्षक . से स्तंभ लेखन भी किया । वे दैनिक ‘अमर उजाला’ के संपादकीय सलाहकार भी हैं। ]

कविता में यथार्थ को देखने और पहचानने का वीरेन डंगवाल का तरीका बहुत अलग, अनूठा और बुनियादी किस्म का है । सन् 1991 में प्रकाशित उनका पहला कविता संग्रह ‘इसी दुनिया में आज भी उतना ही प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण लगता है । उन्होंने कविता में समाज के साध परण जनों और हाशिये पर स्थित जीवन के जो विलक्षण ब्यौरे और दृश्य रचे हैं, वे कविता में और कविता से बाहर भी बेचैन करने वाले हैं । उन्होंने कविता के मार्फत ऐसी बहुत-सी वस्तुओं और उपस्थितियों के विमर्श का संसार निर्मित किया है जो प्रायः ओझल और अनदेखी थीं। उनकी कविता में जनवादी परिवर्तन की मूल प्रतिज्ञा है और उसकी बुनावट में ठेठ देसी किस्म के, खास और आम, तत्सम और तद्भव, क्लासिक और देशज अनुभवों की संश्लिष्टता है।

वीरेन डंगवाल को ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ काव्य संग्रह पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। उन्हें ‘इसी दुनिया में’ पर रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार मिला । उन्हें श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार और कविता के लिए शमशेर सम्मान भी प्राप्त हो चुका है । डंगवाल जी ने विपुल परिमाण में अनुवाद कार्य भी किए हैं। तुर्की के महाकवि नाजिम हिकमत की कविताओं के अनुवाद उन्होंने ‘पहल पुस्तिका’ के रूप में किया । उन्होंने विश्वकविता से पाब्लो नेरुदा, वर्ताल्त ब्रेख्त, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊष रूजेविच आदि की कविताओं के अलावा कुछ आदिवासी लोक कविताओं के भी अनुवाद किए ।

समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल की कविताओं के संकलन ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ से उनकी कविता ‘हमारी नींद’ यहाँ प्रस्तुत है । सुविधाभोगी आराम पसंद जीवन अथवा हमारी बेपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितियों से लगातार लड़ते हुए बढ़ते जानेवाले जीवन का चित्रण करती है यह कविता।

हमारी नींद Summary in Hindi

पाठ का अर्थ

नई कविता के यशस्वी कवि हिन्दी साहित्य में अपना अलग पहचान बनानेवाले वीरेन डंगवाल एक चर्चित कवि हैं। इनकी रचनाओं में यथार्थ का बहुत अलग, अनूठा और बुनियादी किस्म का . वर्णन मिलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं ने समाज के साधरण जनों और हाशिये पर स्थित जीवन को विशेष रूप से स्थान दिया है। उनकी कविता में जनवादी परिवर्तन की मूल प्रतिज्ञा है और उसकी बनावट में ठेठ देशी किस्म के खास और आम, तत्सम और तद्भव, क्लासिक और देशज अनुभवों की संश्लिष्टता है।

प्रस्तुत कविता कवि की कविताओं के संकलन ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ से संकलित है। इस कविता में कवि सुविधाभोगी आराम पसंद जीवन अथवा हमारी लपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितओं से लगातार लड़ते हुए बढ़ते जानेवाले जीवन का चित्रण है। ‘हमारी नींद’ अनमना-सा है। नींद में भी सूत के पौधे कुछ बढ़ते हुए नजर आते हैं। मक्खियों की भाँति अत्याचारी अपना जीवन यापन करते हैं। अत्याचारी बढ़ते हैं और मारे जाते हैं। आर्थिक स्थिति से कमजोर वाले भी धना के के साथ जीवन जीना चाहते हैं। हम उन अत्याचारियों से डरते हैं फिर भी हमारी नींद में कोई परिवर्तन नहीं होता है। हम बेपरवाह जीवन जीते हैं। बहुत से ऐसे लोग हैं ज्यों अपने जीवन जीने की कला से इंकार नहीं कर सकते हैं। वस्तुतः यहाँ कवि कहना चाहता है कि हम देखकर भी न देखने का भाव दिखाते हैं। न सो कर भी गहरी नींद का ढोंग करते हैं।


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