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BSEB Class 10 Hindi व्याकरण अलंकार Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 10th Hindi व्याकरण अलंकार Book Answers |
Bihar Board Class 10th Hindi व्याकरण अलंकार Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 10th |
Subject | Hindi व्याकरण अलंकार |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
How to download Bihar Board Class 10th Hindi व्याकरण अलंकार Textbook Solutions Answers PDF Online?
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BSEB Class 10th Hindi व्याकरण अलंकार Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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प्रश्न 1.
अलंकार किसे कहते हैं ? साहित्य में इनकी क्या उपयोगिता है ?
उत्तर-
अलंकार का शाब्दिक अर्थ है-सजावट, शृंगार, आभूषण, गहना आदि। साहित्य में । अलंकार शब्द का प्रयोग काव्य-सौंदर्य के लिए होता है। संस्कृत के विद्वानों के अनुसार ‘अलंकरोति इति अलंकारः’ अर्थात् जो अलंकृत करे या शोभा बढ़ाए, उसे अलंकार कहते हैं। दूसरे शब्दों में, काव्य की सुंदरता बढ़ाने वाले गुण-धर्म अलंकार कहलाते हैं।
प्रश्न 2.
अलंकारों के कितने भेद हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
मुख्यतः अलंकारों के दो भेद हैं शब्दालंकार और अर्थालंकारा
शब्दालकार
शब्दालंकार शब्द द्वारा काव्य में चमत्कार उत्पन्न करते हैं। यदि जिस शब्द द्वारा चमत्कार उत्पन्न हो रहा है, उसे हटाकर अन्य समान शब्द वहाँ रख दिया जाए, तो वहाँ अलंकार नहीं रहता। अनुप्रास, यमक,ग्लेष आदि शब्दालंकार हैं। इनमें सौंदर्य ‘शब्द’ पर आश्रित रहता है।
1. अनुप्रास
प्रश्न
अनुप्रास अलंकार की परिभाषा देते हुए कुछ उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
जहाँ व्यंजनों की आवृत्ति ध्वनि-सौंदर्य को बढ़ाए, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। व्यंजनों की आवृत्ति एक विशेष क्रम से होनी चाहिए। सौंदर्य-वर्धक व्यंजन शब्दों के प्रारंभ, मध्य या अंत में आने चाहिए।
उदाहरणतया-
- कल कानन कुंडल मोरपखा उर पै बनमाल बिराजति है।
- जो खग हौं तो बसैरो करौ मिलि-
कालिंदी कुल कदंब की डारनि।
स्पष्टीकरण-इन उदाहरणों में ‘क’, ‘ब’, ‘र’ तथा ‘क’ वर्गों की आवृत्ति से सौंदर्य में वृद्धि
अन्य उदाहरण-
- कायर क्रूर कपूत कुचाली यों ही मर जाते हैं। (‘क’ की आवृत्ति)
- मुदित महीपति मंदिर आए।
सेवक सचिव सुमंत बुलाए। (‘स’ की आवृत्ति) - कंकन किकिन नुपूर धुनि सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि।। (‘क’ तथा ‘न’ की आवृत्ति) - तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए। (‘त’ की आवृत्ति)
- मधुर-मधुर मुस्कान मनोहर, मनुज वेश का उजियाला। (‘म’ की आवृत्ति)
- कानन कठिन भयंकर भारी, घोर घाम वारि बयारी। (‘क’, ‘र’ तथा ‘म’ की आवृत्ति)
- चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल थल में। (‘च’ तथा ‘ल’ की आवृत्ति)
- भुज भुजगेस की बै संगिनी भुगिनी-सी
खेदि खेदि खाती दीह दारुन दलन को - मुदित महीपति मंदिर आए।
- बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा।
2. यमक
प्रश्न
यमक अलंकार की परिभाषा देते हुए कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
‘यमक’ का शाब्दिक अर्थ है ‘जोड़ा’। ‘वहै शब्द पुनि-पुनि परै अर्थ भिन्न-ही-भिन्न। अर्थात् जब कविता में एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आता है किंतु हर बार अर्थ भिन्न होता है, वहाँ यमक अलंकार होता है। उदाहरणार्थ-
1. काली घटा का घमंड घटा।
स्पष्टीकरण-यहाँ ‘घटा’ शब्द दो बार आया है। दोनों जगह अर्थ में भिन्नता है।
घटा-वर्षाकालीन घुमड़ती हुई बादलों की माला।
घटा-कम हुआ।
2. कहै कवि बेनी-बेनी ब्याल की चुराई लीनी।
-यहाँ पहले बेनी का तात्पर्य है ‘कवि बेनी प्रसाद’ तथा दूसरे का तात्पर्य है ‘चोटी’।
अन्य उदाहरण
- कनक-कनक तै सौगुनी मादकता अधिकाय।
वा खाए बौराए जग या पाए बौराया। - माला फेरत युग भया, मिटा न मन का फेर।
करका मनका डारि दे, मन का मनका फेर।। - जेते तुम तारे, तेरे नभ में न तारे हैं।
- खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा।
- पच्छी परछीने ऐसे परे पर छीने बीर।
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।
3. श्लेष
प्रश्न
श्लेष अलंकार की परिभाषा देते हुए कुछ उदाहरण प्रस्तुत कीजिए। अथवा, श्लेष अलंकार का एक उदाहरण दीजिए। .
उत्तर-
श्लेष’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘चिपकना’। अतः जहाँ एक शब्द से दो या दो से अधिक अर्थ प्रकट होते हैं, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
उदाहरणतया –
1. मधुवन की छाती को देखो.
सूखी कितनी इसकी कलियाँ।
यहाँ ‘कलियाँ’ शब्द का प्रयोग एक बार हुआ है, किंतु इसमें अर्थ की भिन्नता है।
(क) खिलने से पूर्व फूल की दशा।
(ख) यौवन-पूर्व की अवस्था।
2. जो रहीम गति दीप की कुल कपूत गति सोय।।
बारे उरियारो करै बढ़े अंधेरा होय।।
यहाँ ‘बारे’ और ‘बढ़े’ शब्दों में श्लेष है।
‘बारे’ का एक अर्थ है-‘जलाने पर’ तथा दूसरा अर्थ है ‘बचपन में।
‘बढ़े’ के दो अर्थ हैं-‘बुझने पर’ तथा ‘बड़े होने पर।
अन्य उदाहरण
- ‘रहिमन’ पानी रखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
इस दोहे में ‘पानी’ के तीन अर्थ हैं-चमक, प्रतिष्ठा और जल। - मेरी भव-बाधा हरों राधा नागरि सोइ।
जा तन की झाई परै स्यामु हरित दुति होय।। - सुबरन को ढूँढे फिरत, कवि, व्यभिचारी चोर।
अर्थालंकार
अर्थालंकार में सौंदर्य ‘भाव’ से संबंधित होता है, ‘शब्द’ से नहीं। अर्थालंकार चमत्कार की. बजाय भाव की अनुभूति में तीव्रता लाते हैं अथवा भाव संबंधी चमत्कार उत्पन्न करते हैं। उपमा. रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, अन्योक्ति आदि अर्थालंकार है।
4. उपमा
प्रश्न
‘उपमा’ की परिभाषा देते हुए उसके तत्त्वों का परिचय दीजिए तथा उदाहरणों द्वारा अलंकार स्पष्ट कीजिए। .
उत्तर-
उपमा का अर्थ है ‘समानता’। जहाँ किसी वस्तु अथवा प्राणी के गुण, धर्म, स्वभाव । और शोभा को व्यक्त करने के लिए उसी के समान गुण, धर्म वाली किसी अन्य प्रसिद्ध वस्तु अथवा प्राणी से उसकी समानता की जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है। जैसे- ‘चाँद-सा सुंदर मुख’।
उपमा अलंकार को समझने के लिए निम्नलिखित चार अंगों को समझना आवश्यक है
(क) उपमेय_जिसकी उपमा दी जाए अर्थात् जिसका वर्णन हो रहा है, उसे उपमेय या प्रस्तुत कहते हैं। ‘चाँद-सा सुंदर मुख’ में ‘मुख’ उपमेय है।
(ख) उपमान- वह प्रसिद्ध वस्तु या प्राणी जिससे उपमेय की समानता प्रकट की जाए, उपमान कहलाता है। उसे अप्रस्तुत भी कहते हैं। ऊपर के उदाहरण में ‘चांद’ उपमेय है।
(ग) साधारण धर्म- उपमेय और उपमान के समान गुण या विशेषता व्यक्त करने वाले शब्द साधारण धर्म कहलाते हैं। ऊपर के उदाहरण में ‘सुंदर’ साधारण धर्म को बता रहा है।
(घ) वाचक शब्द- जिन शब्दों की सहायता से उपमेय और उपमान में समानता प्रकट की जाती है और उपमा अलंकार की पहचान होती है उन्हें वाचक शब्द कहते हैं। सा, सी, सम, जैसी, ज्यों, के समान-आदि शब्द वाचक शब्द कहलाते हैं।
यदि ये चारों तत्त्व उपस्थित हों तो ‘पूर्णोपमा’ होती है; परंतु कई बार इसमें से एक या दो लुप्त भी हो जाते हैं, तब उसे ‘लुप्तोपमा’ कहते हैं।
पूर्णोपमा का उदाहरण-
- हाय फूल-सी कोमल बच्ची। हुई राख की थी ढेरी।
-यहाँ ‘फूल’ उपमान, ‘बच्ची’ उपमेय, ‘कोमल’ साधारण धर्म तथा ‘सी’ वाचक शब्द है। अतः पूर्णोपमा अलंकार है। - रति सम रमणीय मूर्ति राधा की।
-यहाँ ‘राधा की मूर्ति’ उपमेय, ‘रति’ उपमान, ‘रमणीय’ साधारण धर्म तथा ‘सम’ वाचक शब्द है। अतः पूर्णोपमा अलंकार है।
अन्य उदाहरण-
- पीपर पात सरिस मन डोला।
- मुख बाल रवि सम लाल होकर ज्वाला-सा बोधित हुआ।
लुप्तोपमा के उदाहरण-
1. यह देखिए, अरविंद से शिशुवृंद कैसे सो रहे।
-यहाँ ‘शिशुवृंद’ उपमेय, अरविंद’ उपमान तथा ‘से’ वाचक शब्द है। साधारण धर्म लुप्त है। अतः ‘लुप्तोपमा अलंकार है।
2. पड़ी थी बिजली-सी विकराला .
-यहाँ बिजली’ उपमान, ‘विकराल’ साधारण धर्म तथा ‘सी’ वाचक शब्द है, परंतु ‘उपमेय’ लुप्त है। अतः लुप्तोपमा अलंकार है।
अन्य उदाहरण-
- वह नव नलिनी से नयन वाला कहाँ है ?
- नदियाँ जिनकी यशधारा-सी,
बहती हैं अब भी निशि-बासर। - मखमल के झूल पड़े हाथी-सा टीला।
- असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
- जो नत हुआ, वह मृत हुआ, ज्यों वृंत से झरकर कुसुम।
- सूरदास अबला हम भोरी, गुर चाँदी ज्यौं पागी।
5. रूपक
प्रश्न
रूपक अलंकार की परिभाषा देते हुए उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर- जहाँ गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाए, वहाँ रूपक अलंकार होता है। यह आरोप कल्पित होता है। इसमें उपमेय और उपमान में अभिन्नता होने पर भी दोनों साथ-साथ विद्यमान रहते हैं। यथा
1. चरण कमल बंदौं हरिराई।
यहाँ सादृश्य के कारण उपमेय ‘चरण’ पर उपमान ‘कमल’ का आरोप कर दिया गया है। चरण पर कमल का आरोप कल्पित है। चरण वास्तव में कमल नहीं बन सकता, परंतु सदृश्य के कारण यहाँ चरण को कमल मान लिया गया है। दोनों की अभिन्नता स्थापित होने पर भी दोनों साथ-साथ विद्यमान हैं, अत: रूपक अलंकार है।
2. मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहौं।
-यहाँ चंद्रमा (उपमेय) पर खिलौना (उपमान) का आरोप है। .. अन्य उदाहरण
(क) सक-प्राणियों वत्तमनोमयूर अहा नचा रहा।
(ख) संत-हस गन गहहिं पय, परिहतारि विकार।
(ग) पायो जी मनम-रतन धन पायो।
(घ) सुख चपला-सुःख घन में,
उलझा है चंचलन कुरंग।
(ङ) बीती विभावरी जागरी
अंबर पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा-नागरी।
6. उत्प्रेक्षा
प्रश्न
उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा देते हुए दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना की जाए, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
दोनों वस्तुओं में कोई समान धर्म होने के कारण ऐसी संभावना करने के लिए कुछ शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जो उत्प्रेक्षा के वाचक शब्द कहलाते हैं, यथा-
मानो, मनो, मनु, मनहुँ, जानो, जनु आदि।
उदाहरण- कहती हुई यों उत्तरा के, नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो, हो गए पंकज नए।।
प्रस्तुत पाश में उत्तरा के अरु-पूरित नेत्र उपमेय हैं, जिनमें कमल की पंखुड़ियों पर पड़े हुए ओस-कणों की (उपमान की) कल्पना की गई है। इसी प्रकार निम्नलिखित पंक्तियों में भी उत्प्रेक्षा अलंकार देखा जा सकता है-
उस काल मारे क्रोध के, तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।।
अन्य उदाहरण-
सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात!
मनो नीलमणि सैल पर, आतप परयौ प्रभात।।
प्रस्तुत दोहे में ‘पीत पट’ में ‘नीलमणि सैल’ पर ‘प्रभात’ के ‘आतप’ के आरोप की ‘मानो’ । शब्द द्वारा संभावना की गई है, अतः उत्प्रेक्षा अलंकार है।
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के।।
7. मानवीकरण
जहाँ जड़ प्रकृति या वस्तु पर मानवीय भावनाओं या क्रियाओं का आरोप हो, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है। सरल शब्दों में, जहाँ किसी अचेतन वस्तु को मानत की तरह गतिविधि करता दिखाया जाए, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।
उदाहरण. 1.
मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के
माधीकरण यहाँ मेघों को सजा-संवरा और बना-ठना दिखाया गया है।
उदाहरण 2.
दिवसावसन का समय
मेघमय आसमान से उतर रही
संध्या-सुंदरी परी-सी धीरे-धीरे
सायीकरण यहाँ संध्या को एक सुंदरी के रूप से धीरे-धीरे आसमान से उतरता हुआ दिखाया गया है। अतः मानवीकरण है।
अन्य उदाहरण-
(क) खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा।
लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।।
(ख)तनकर भाला यह बोल उठा-
राणा मुझको विश्राम न दे
मुझको शोणित की प्यास लगी
बढ़ने दे, शोणित पीने दे।
(ग) मैं तो मात्र मृत्तिका हूँ।
(घ) कार्तिक की एक हँसमुख सुबह
नदी-तट से लौटती गंगा नहाकर।
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