BSEB Class 10 Science Chapter 14 उर्जा के स्रोत (Sources of Energy) Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 10th Science Chapter 14 उर्जा के स्रोत (Sources of Energy) Book Answers |
Bihar Board Class 10th Science Chapter 14 उर्जा के स्रोत (Sources of Energy) Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 10th |
Subject | Science Chapter 14 उर्जा के स्रोत (Sources of Energy) |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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अनुच्छेद 14.1 पर आधारित
प्रश्न 1.
ऊर्जा का उत्तम स्रोत किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऊर्जा का उत्तम स्रोत, वह स्रोत है जो।
- प्रति इकाई द्रव्यमान या आयतन में अधिक कार्य करता हो।
- आसानी से प्राप्त हो सके।
- आसानी से भंडारित एवं परिवहित हो सके।
- सस्ता और सुरक्षित हो।
प्रश्न 2.
उत्तम ईंधन किसे कहते हैं?
उत्तर:
उत्तम ईंधन वह ईंधन है –
- जिसका कैलोरी मान अधिक हो।
- जिसका मध्यम ज्वलन ताप हो।
- जिसके दहन के पश्चात् हानिकारक गैसें उत्पन्न न होती हों।
- जो दहन के पश्चात् ठोस अवशेष न छोड़ता हो।
- जो सस्ता हो एवं जिसका रख-रखाव आसान हो।
प्रश्न 3.
यदि आप अपने भोजन को गरम करने के लिए किसी भी ऊर्जा-स्रोत का उपयोग कर सकते हैं तो आप किसका उपयोग करेंगे और क्यों?
उत्तर:
हम ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत का उपयोग करेंगे जो प्रदूषण उत्पन्न न करता हो; क्योंकि उपर्युक्त विशेषता का ईंधन प्रकृति में असंतुलन उत्पन्न नहीं करेगा और पुनः स्थापित हो जाएगा जिससे बार-बार उपयोग हो सके।
अनुच्छेद 14.2 पर आधारित
प्रश्न 1.
जीवाश्मी ईंधन की क्या हानियाँ हैं?
उत्तर:
जीवाश्मी ईंधन उपयोग करने की निम्नलिखित हानियाँ हैं –
- जीवाश्मी ईंधन बनने में लाखों वर्ष लगते हैं और इनके भंडार सीमित हैं।
- जीवाश्मी ईधन अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत हैं।
- जीवाश्मी ईंधन जलने से वायु-प्रदूषण होता है।
कार्बन, सल्फर और नाइट्रोजन के ऑक्साइडों का जलीय विलयन अम्लीय होता है। अत: जीवाश्मी ईंधनों के धुएँ अम्लीय वर्षा
के कारक हैं जो मनुष्य में श्वसन सम्बन्धी तथा शरीर के खुले अंगों में जलन पैदा करते हैं।
प्रश्न 2.
हम ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की ओर क्यों ध्यान दे रहे हैं?
उत्तर:
तकनीकी विकास के साथ-साथ ऊर्जा की खपत भी बढ़ रही है। हमारी बदलती जीवन शैली, अपने आराम के लिए अधिक-से-अधिक मशीनों के उपयोग के कारण भी ऊर्जा की माँग अधिक हो रही है। यह ऊर्जा की माँग की आपूर्ति परंपरागत ऊर्जा स्रोतों से पूरी नहीं हो पा रही है। अतः हम ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
प्रश्न 3.
हमारी सुविधा के लिए पवनों तथा जल ऊर्जा के पारंपरिक उपयोग में किस प्रकार के सुधार किए गए हैं?
उत्तर:
जल और पवनें ऊर्जा के परंपरागत स्रोत हैं। शुरू में इनकी ऊर्जा का उपयोग बहुत सीमित था, परन्तु तकनीकी विकास के कारण ये एक मुख्य ऊर्जा स्रोत की तरह विकसित हो रहे हैं। इस क्रम में निम्नलिखित सुधार किए गए हैं –
1. पवन ऊर्जा एक प्रदूषण-मुक्त ऊर्जा स्रोत है। पवन-चक्की द्वारा पवन की गतिज ऊर्जा का उपयोग यांत्रिक कार्य जैसे कुएँ से जल निकालना और विद्युत जनित्र चलाकर इसे विद्युत ऊर्जा में बदलकर विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जा रहा है।
2. बहते जल का उपयोग सामान्यत: यातायात के लिए किया जाता था परन्तु अब बाँध बनाकर इस ऊर्जा को जल विद्युत ऊर्जा में बदलकर विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जा रहा है। उपर्युक्त सम्बन्ध में नई तकनीक के प्रयोग द्वारा उच्च दक्षता की मशीनें बनाकर अधिक मात्रा में ऊर्जा का दोहन सुलभ हो गया है।
अनुच्छेद 14.3 पर आधारित
प्रश्न 1.
सौर कुकर के लिए कौन-सा दर्पण-अवतल, उत्तल अथवा समतल सर्वाधिक उपयुक्त होता है? क्यों?
उत्तर:
सौर कुकर के लिए अवतल दर्पण सर्वाधिक उपयुक्त होता है क्योंकि यह सूर्य से आने वाले विकिरण को ठीक से एक बिन्दु पर फोकस कर सकता है जिससे उच्च ऊष्मा उत्पन्न होती है।
प्रश्न 2.
महासागरों से प्राप्त हो सकने वाली ऊर्जाओं की क्या सीमाएँ हैं?
उत्तर:
यद्यपि महासागर ऊर्जा के बडे स्रोत हैं, परन्तु औद्योगिक स्तर पर इनका दोहन कठिन है।
प्रश्न 3.
भूतापीय ऊर्जा क्या होती है?
उत्तर:
भूमि के नीचे स्थित गर्न स्थानों से प्राप्त ऊष्मा अथवा ऊष्मीय ऊर्जा भूतापीय ऊर्जा कहलाती
प्रश्न 4.
नाभिकीय ऊर्जा का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
नाभिकीय ऊर्जा एक गैर परंपरागत ऊर्जा है। आजकल विखंडन से प्राप्त ऊर्जा का सफलतापूर्वक उपयोग हो रहा है। संलयन अभिक्रिया से प्राप्त ऊर्जा के दोहन की संभावना व्यक्त की जा रही है।
अनुच्छेद 14.4 पर आधारित
प्रश्न 1.
क्या कोई ऊर्जा स्रोत प्रदूषण मुक्त हो सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर:
किसी भी प्रकार के ऊर्जा स्रोत के समाप्त होने से वातावरण असंतुलित होता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि कोई भी ऊर्जा स्रोत प्रदूषण मुक्त नहीं हो सकता है। उदाहरणार्थ, यदि हम लकड़ी को ऊर्जा स्रोत की तरह उपयोग करते हैं तब पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न होता है। वायु में CO2 और O2 का भी संतुलन प्रभावित होता है। लकड़ी जलने से उत्पन्न CO2 SO2 और NO2 वायु-प्रदूषण करते हैं। यहाँ तक कि सौर ऊर्जा के अधिक उपयोग से भूमंडलीय ऊष्मीय प्रभाव उत्पन्न होगा।
प्रश्न 2.
रॉकेट ईंधन के रूप में हाइड्रोजन का उपयोग किया जाता रहा है? क्या आप इसे CNG की तुलना में अधिक स्वच्छ ईंधन मानते हैं? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों से हाइड्रोजन CNG की अपेक्षा एक स्वच्छ ईंधन माना जाता है –
- हाइड्रोजन का कैलोरी मान CNG की अपेक्षा अधिक है।
- CNG एक परंपरागत ऊर्जा स्रोत है जबकि H2 नहीं है।
- CNG एक ग्रीन हाउस गैस है जबकि H2 नहीं है। H2 प्रदूषण नहीं फैलाती है।
- CNG के दहन से CO तथा CO2 मुक्त होती हैं जबकि H2 के दहन से ऐसी हानिकारक गैसें उत्पन्न नहीं होती हैं।
अनुच्छेद 14.5 पर आधारित
प्रश्न 1.
ऐसे दो ऊर्जा स्रोतों के नाम लिखिए जिन्हें आप नवीकरणीय मानते हैं। अपने चयन के लिए तर्क दीजिए।
उत्तर:
दो नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत निम्नवत् हैं –
(a) जल ऊर्जा बहते जल में उपस्थित ऊर्जा को जल ऊर्जा कहते हैं। यहाँ ऊँचाई से नीचे बहते जल की ऊर्जा का उपयोग कर लिया जाता है तथा उपयोग के बाद बहता हुआ जल समुद्र में चला जाता है। जल चक्र के कारण जल पुन: ऊँचाई पर पहुँच जाता है। इसलिए जल ऊर्जा को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहते हैं।
(b) पवन ऊर्जा हम पवन ऊर्जा का विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग करते हैं। प्रकृति में पवनें चक्रीय प्रक्रमों के कारण उत्पन्न होती हैं। इसलिए यह भी ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है।
प्रश्न 2.
ऐसे दो ऊर्जा स्रोतों के नाम लिखिए जिन्हें आप समाप्य मानते हैं। अपने चयन के लिए तर्क दीजिए।
उत्तर:
कोयला और पेट्रोलियम ऊर्जा के समापन योग्य स्रोत हैं क्योंकि यदि वे पुनर्स्थापित भी हों तो इस प्रक्रिया में लाखों वर्ष लग जाएँगे।
Bihar Board Class 10 Science उर्जा के स्रोत Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
गर्म जल प्राप्त करने के लिए हम सौर जल तापक का उपयोग किस दिन नहीं कर सकते?
(a) धूप वाले दिन
(b) बादलों वाले दिन
(c) गरम दिन
(d) पवनों (वायु) वाले दिन
उत्तर:
(b) बादलों वाले दिन
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन जैवमात्रा ऊर्जा स्रोत का उदाहरण नहीं है?
(a) लकड़ी
(b) गोबर गैस
(c) नाभिकीय ऊर्जा
(d) कोयला
उत्तर:
(c) नाभिकीय ऊर्जा
प्रश्न 3.
जितने ऊर्जा स्रोत हम उपयोग में लाते हैं उनमें से अधिकांश सौर ऊर्जा को निरूपित करते हैं। निम्नलिखित में से कौन-सा ऊर्जा स्रोत अंततः सौर ऊर्जा से व्युत्पन्न नहीं है?
(a) भूतापीय ऊर्जा
(b) पवन ऊर्जा
(c) नाभिकीय ऊर्जा
(d) जैवमात्रा
उत्तर:
(c) नाभिकीय ऊर्जा
प्रश्न 4.
ऊर्जा स्रोत के रूप में जीवाश्मी ईंधनों तथा सूर्य की तुलना कीजिए और उनमें अंतर लिखिए।
उत्तर:
जीवाश्मी ईंधनों तथा सूर्य की तुलना –
प्रश्न 5.
जैव मात्रा तथा ऊर्जा स्रोत के रूप में जल विद्युत की तुलना कीजिए और उनमें अंतर लिखिए।
उत्तर:
जैव मात्रा तथा जल विद्युत की तुलना –
प्रश्न 6.
निम्नलिखित से ऊर्जा निष्कर्षित करने की सीमाएँ लिखिए
(a) पवनें
(b) तरंगें
(c) ज्वार-भाटा
उत्तर:
प्रश्न 7.
ऊर्जा स्रोतों का वर्गीकरण निम्नलिखित वर्गों में किस आधार पर करेंगे?
(a) नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय
(b) समाप्य तथा अक्षय
क्या
(a) तथा
(b) के विकल्प समान हैं?
उत्तर:
(a) नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत जल ऊर्जा, पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा आदि ऊर्जा के वे स्रोत जो बार-बार उपयोग किए जा सकते हैं, उन्हें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहते हैं। परन्तु वे ऊर्जा स्रोत जिनके भंडार सीमित हैं और जिनके पुनर्स्थापन में लाखों वर्ष लगते हैं उन्हें अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहते हैं; जैसे-कोयला और पेट्रोलियम।
(b) समाप्य तथा अक्षय ऊर्जा स्रोत अनवीकरणीय स्रोत की पुनर्स्थापना में लाखों वर्ष लगते हैं। अतः इसे समाप्य ऊर्जा स्रोत कहा जा सकता है। ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत; जैसे-पवन, जल और सौर ऊर्जा का उपयोग बार-बार और लम्बे समय तक किया जा सकता है। अत: ये अक्षय ऊर्जा स्रोत हैं।
उपर्युक्त तथ्य के आधार पर हम कह सकते हैं कि –
(a) और
(b) के विकल्प समान हैं।
प्रश्न 8.
ऊर्जा के आदर्श स्रोत में क्या गुण होते हैं?
उत्तर:
ऊर्जा के आदर्श स्रोत में निम्नलिखित गुण होते हैं।
- इकाई द्रव्यमान ऊर्जा स्रोत से अधिक मात्रा में कार्य होना चाहिए।
- यह आसानी से प्राप्त होने वाला होना चाहिए।
- इसका भंडारण और परिवहन भी आसान होना चाहिए।
- यह सस्ता होना चाहिए।
प्रश्न 9.
सौर कुकर का उपयोग करने के क्या लाभ तथा हानियाँ हैं? क्या ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ सौर कुकरों की सीमित उपयोगिता है?
उत्तर:
लाभ सौर कुकर उपयोग करने के निम्नलिखित लाभ हैं –
- यह बिना प्रदूषण किए भोजन पकाने में सहायक है।
- सौर कुकर का उपयोग सस्ता है; क्योंकि सौर ऊर्जा के उपयोग का मूल्य नहीं चुकाना पड़ता है।
- सौर कुकर का रख-रखाव आसान होता है। इसमें किसी प्रकार के खतरे की संभावना नहीं होती है।
हानियाँ सौर कुकर उपयोग करने की निम्नलिखित हानियाँ हैं –
- रात में और बादल वाले दिनों में सौर कुकर का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
- यह भोजन पकाने में अधिक समय लेता है।
- सौर कुकर के परावर्तक की दिशा लगातार बदलते रहना पड़ता है जिससे सूर्य की रोशनी सौर कुकर में प्रवेश कर सके।
- सभी स्थानों पर हर समय सूर्य की रोशनी उपलब्ध नहीं होती है।
सौर कुकर के सीमित उपयोगिता वाले क्षेत्र हाँ, कछ ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ सौर ककर की सीमित उपयोगिता है। ध्रुवों पर जहाँ सूर्य आधे वर्ष तक नहीं दिखाई देता है वहाँ सौर कुकर का उपयोग सीमित है। पहाड़ी क्षेत्रों में जहाँ सूर्य की किरणें कुछ समय के लिए और काफी तिरछी पड़ती हैं वहाँ सौर कुकर का उपयोग बहुत कठिन है।।
प्रश्न 10.
ऊर्जा की बढ़ती माँग के पर्यावरणीय परिणाम क्या हैं? ऊर्जा की खपत को कम करने के उपाय लिखिए।
उत्तर:
आधुनिकीकरण तथा बढ़ती जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने में जुटे उद्योगों में ऊर्जा की अधिक आवश्यकता है। ऊर्जा की बढ़ती माँग के निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं –
1. ऊर्जा की बढ़ती माँग ऊर्जा स्रोत को समाप्त कर सकती है जो पर्यावरणीय असन्तुलन उत्पन्न कर सकती है।
2. ऊर्जा की बढ़ती माँग से परंपरागत ऊर्जा स्रोतों का अधिक दोहन होगा। इनके प्राकृतिक भंडार सीमित हैं। अतः भविष्य में ऊर्जा ह्रास की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
ऊर्जा के उपयोग को सीमित करने के लिए निम्नलिखित सुझाव हैं –
1. ऊर्जा के दुरुपयोग को रोककर एवं न्यायसंगत उपयोग से ऊर्जा का उपयोग घटाया जा
सकता है।
2. ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोतों पर भार को कम करने के लिए गैर-परंपरागत और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों; जैसे—पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा, महासागरीय ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए।
Bihar Board Class 10 Science उर्जा के स्रोत Additional Important Questions and Answers
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जैव गैस एक उत्तम ईंधन है, इसमें कितने प्रतिशत ईंधन गैस होती है?
(a) 65%
(b) 75%
(c) 85%
(d) 70%
उत्तर:
(b) 75%
प्रश्न 2.
भारत का पवन ऊर्जा द्वारा विद्युत उत्पादन करने वाले देशों में कौन-सा स्थान है?
(a) पहला
(b) दूसरा
(c) चौथा
(d) पाँचवाँ
उत्तर:
(d) पाँचवाँ
प्रश्न 3.
तमिलनाडु में कन्याकुमारी के समीप भारत का विशालतम पवन ऊर्जा फॉर्म कितनी विद्युत उत्पन्न करता है?
(a) 380 MW
(b) 480 MW
(c) 280 MW
(d) 400 MW
उत्तर:
(a) 380 MW
प्रश्न 4.
हमारा देश प्रतिवर्ष लगभग कितनी सौर ऊर्जा प्राप्त करता है?
(a) 450,000,000 करोड़ किलोवाट-घण्टा
(b) 400,000,000 करोड़ किलोवाट-घण्टा
(c) 500,000,000 करोड़ किलोवाट-घण्टा
(d) 550,000,000 करोड़ किलोवाट-घण्टा
उत्तर:
(c) 500,000,000 करोड़ किलोवाट-घण्टा
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रकाश संश्लेषण क्या है?
उत्तर:
प्रकाश संश्लेषण वह क्रिया है, जिसमें हरे पेड़-पौधे अपना भोजन प्राप्त करने के लिए सौर-ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा के रूप में बदलते हैं।
प्रश्न 2.
नदियों पर बाँध बनाकर जल-विद्युत उत्पादन के दो लाभ तथा दो हानियाँ लिखिए।
उत्तर:
लाभ नदियों पर बाँध बनाकर जल-विद्युत उत्पादन करने से सिंचाई के लिए जल उपलब्ध होता है तथा बाढ़-नियन्त्रण में सहायता मिलती है। हानियाँ बाँध बनाने से बहुत-सी भूमि जलमग्न हो जाती है तथा बाँध के इब क्षेत्र में आने वाले गाँवों से लोगों को पलायन करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त नदी के जल-प्रवाह क्षेत्र का पर्यावरण भी प्रभावित होता है।
प्रश्न 3.
भारत में जल विद्युत-शक्ति की क्षमता कितनी है?
उत्तर:
भारत में जल विद्युत-शक्ति की क्षमता लगभग 4 x 1011 किलोवाट-घण्टा है।
प्रश्न 4.
जल विद्युत-गृह, तापीय विद्यत-गृह की अपेक्षा क्यों उपयोगी है?
उत्तर:
तापीय विद्युत-गृह के समीपवर्ती क्षेत्रों में कोयले के धुएँ के कारण वायु प्रदूषित हो जाती है, जबकि जल विद्युत-गृह से प्रदूषण उत्पन्न नहीं होता।
प्रश्न 5.
पवन चक्की से उपयोगी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पवन का न्यूनतम वेग कितना होना चाहिए?
उत्तर:
पवन चक्की से उपयोगी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पवन का न्यूनतम वेग 15 किमी/ घण्टा होना चाहिए।
प्रश्न 6.
सौर-ऊर्जा को अप्रत्यक्ष रूप में उपयोग करने की कौन-कौन-सी विधियाँ हैं?
उत्तर:
1. पवन-ऊर्जा का उपयोग
2. समुद्री लहरों की ऊर्जा का उपयोग
3. सागर की विभिन्न गहराइयों पर जल के तापान्तर का उपयोग आदि।
प्रश्न 7.
सौर कुकर कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
सौर-कुकर दो प्रकार के होते हैं –
(1) बॉक्सनुमा सौर-कुकर तथा
(2) गोलीय परावर्तक-युक्त सौर-कुकर।
प्रश्न 8.
उन चार क्षेत्रों के नाम लिखिए जहाँ सौर-सेलों को ऊर्जा-स्त्रोत के रूप में उपयोग किया जाता है।
उत्तर:
कृत्रिम उपग्रहों में, सुदूर स्थानों पर स्थित अनुसन्धान केन्द्रों में, दूरदर्शन रिले स्टेशनों में तथा ट्रैफिक लाइटों में सौर-सेलों का उपयोग ऊर्जा-स्रोत के रूप में किया जाता है।
प्रश्न 9.
आधुनिक सेलेनियम सौर-सेलों तथा अर्द्धचालकों से निर्मित सौर-सेलों की दक्षता कितनी होती है?
उत्तर:
आधुनिक सेलेनियम सौर-सेलों की दक्षता 25% तथा अर्द्धचालकों से निर्मित सौर-सेलों की दक्षता 10% से 18% तक होती है।
प्रश्न 10.
अर्द्धचालक क्या हैं?
उत्तर:
अर्द्धचालक वे पदार्थ, जिनकी विद्युत चालकता बहुत कम होती है, अर्द्धचालक कहलाते हैं। ये न तो विद्युत के सुचालक होते हैं और न ही पूर्णतया विद्युतरोधी होते हैं।
प्रश्न 11.
ऊर्जा के उन तीन रूपों के नाम बताइए, जो महासागर में उपलब्ध हैं।
उत्तर:
महासागर से दोहन (harness) किए जा सकने वाले ऊर्जा के तीन रूप –
1. सागरीय तापीय ऊर्जा
2. सागरीय लहरों की ऊर्जा तथा
3. ज्वारीय-ऊर्जा हैं।
प्रश्न 12.
भारत में ज्वारीय लहरों की ऊर्जा के दोहन हेतु कौन-कौन-से स्थान चुने गए हैं?
उत्तर:
भारत में ज्वारीय लहरों की ऊर्जा के दोहन हेतु तीन स्थान-गुजरात में कच्छ की खाड़ी, कैम्बे और पश्चिम बंगाल के पूर्वी समुद्री तट पर सुन्दरवन-चुने गए हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जीवाश्म ईंधन क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जीवाश्म ईंधन आज से करोड़ों वर्ष पूर्व पृथ्वी पर उपस्थित विशालकाय पेड़ पृथ्वी की भूपर्पटी के नीचे दब गए थे। ये वनस्पति अवशेष, समय बीतने के साथ, उच्च ताप तथा उच्च दाब की अवस्था में, ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ईंधन के रूप में बदलते चले गए। वनस्पति अवशेषों से बने इस प्रकार के ईंधन को जीवाश्म ईंधन कहते हैं। कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस जीवाश्म ईंधन के उदाहरण हैं।
प्रश्न 2.
पेट्रोलियम गैस कैसे प्राप्त की जाती है? उस गैस का नाम लिखिए जो पेट्रोलियम गैस का मुख्य घटक है।
उत्तर:
पेट्रोलियम गैस, तेल शोधक संयन्त्रों में पेट्रोलियम के प्रभाजी आसवन के दौरान उपोत्पाद के रूप में प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त पेट्रोलियम गैस, पेट्रोल के भंजन से भी प्राप्त की जाती है। पेट्रोलियम गैस का मुख्य घटक ब्यूटेन नामक गैस है।
प्रश्न 3.
जल-विद्युत उत्पन्न करने का मूल सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:
जल-विद्युत उत्पन्न करने का मूल सिद्धान्त इसके लिए नदियों के बहते हुए जल को एक ऊँचा बाँध बनाकर एकत्र कर लिया जाता है। बाँध की तली के समीप जल टरबाइन लगा देते हैं। बाँध के ऊपरी भाग से इस जल को लगातार नीचे की ओर गिराते हैं। जब तेजी से गिरता हुआ जल, ‘जल टरबाइन’ के ब्लेडों पर गिरता है, तो उसकी ऊर्जा से जल टरबाइन तेजी से घूमने लगता है। जल टरबाइन की शाफ्ट विद्युत जनित्र के आमेचर से जुड़ी होने के कारण, इसका आमेचर भी जल टरबाइन के घूमने के कारण तेजी से घूमने लगता है। इस प्रकार, विद्युत का उत्पादन होने लगता है; अत: गतिज ऊर्जा विद्युत-ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है।
प्रश्न 4.
भारत में जल विद्युत-शक्ति की कुल क्षमता कितनी है? इस क्षमता का कितना भाग प्रयुक्त होता है?
उत्तर:
भारत में जल विद्युत-शक्ति की कुल क्षमता 4 x 1011 किलोवाट-घण्टा है। आज तक इस क्षमता का 11% से कुछ अधिक भाग ही उपयोग किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, यह भी अनुमान लगाया गया है कि लगभग 2.5 x 1010 किलोवाट-घण्टा विद्युत-ऊर्जा लघु तथा सूक्ष्म जल-विद्युत परियोजनाओं द्वारा भी उत्पन्न की जा सकती है। आजकल हमारे देश में उत्पादित कुल विद्युत-शक्ति का 23% से कुछ अधिक भाग जल-विद्युत से आता है।
प्रश्न 5.
व्यावसायिक स्तर पर पवन ऊर्जा का दोहन करने हेतु पहला चरण क्या है? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
व्यावसायिक स्तर पर पवन ऊर्जा का दोहन व्यावसायिक स्तर पर पवन ऊर्जा का दोहन करने हेतु पहला चरण ‘पवन ऊर्जा मानचित्र’ बनाना है। इस मानचित्र को बनाने के लिए यह आवश्यक है कि किसी दिए गए स्थान पर पूरे वर्ष पवन की चाल मापी जाए।
1. पवन ऊर्जा के मानचित्र विभिन्न स्थानों पर पवन की वार्षिक औसत चाल दर्शाते हैं। ये जनवरी तथा जुलाई माह में पवन की औसत चाल भी दर्शाते हैं (क्योंकि पवन की चाल जनवरी में अत्यधिक मन्द तथा जुलाई में अत्यधिक तीव्र होती है)।
2. पवन ऊर्जा के मानचित्र भूमि तल से लगभग 10 मीटर की ऊँचाई पर प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में उपलब्ध पवन-ऊर्जा के बारे में प्रमुख सूचनाएँ किलोवाट-घण्टे में देते हैं।
प्रश्न 6.
भारत में पवन ऊर्जा के उपयोग हेतु बनाई गई योजनाएँ क्या हैं? या भारत में पवन ऊर्जा से विद्युत उत्पादन किस प्रदेश में होता है? इनकी उत्पादन क्षमता क्या है?
उत्तर:
पवन ऊर्जा के उपयोग हेतु बनाई गई योजनाएँ भारत में उपलब्ध पवन ऊर्जा की क्षमता का लाभ उठाने हेतु विस्तृत योजनाएँ बनाई गई हैं। इनमें से कुछ योजनाओं को तो विद्युत उत्पादन हेतु लागू भी किया जा चुका है। भारत में पवन ऊर्जा से विद्युत उत्पादन संयन्त्र गुजरात प्रदेश के ‘ओखा’ नामक स्थान पर स्थित है। इसकी उत्पादन क्षमता 1 मेगावाट (1 MW) है। दूसरा पवन ऊर्जा संयन्त्र गुजरात के पोरबन्दर में स्थित ‘लांबा’ नामक स्थान पर है। यह 200 एकड़ से भी अधिक भूमि पर फैला हुआ है। इसमें 50 पवन ऊर्जाचालित टरबाइन लगी हैं, जिनकी क्षमता 200 करोड़ यूनिट विद्युत उत्पन्न करने की है।
प्रश्न 7.
पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत क्या है? ऊर्जा के इस स्रोत को व्यापारिक स्तर पर उपयोग करने की क्यों आवश्यकता हुई?
उत्तर:
पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे विशाल स्रोत सूर्य है। सूर्य द्वारा दी गई ऊर्जा को सौर-ऊर्जा कहते हैं। पृथ्वी पर प्रतिदिन पड़ने वाले सूर्य के प्रकाश द्वारा दी गई ऊर्जा संसार के सभी देशों द्वारा एक वर्ष में उपयोग की गई कुल ऊर्जा का 50,000 गुना है। व्यापारिक स्तर पर ऊर्जा के इस स्रोत को उपयोग करने की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि जीवाश्म ईंधनों के ज्ञात भण्डार बहुत कम रह गए हैं जो कुछ ही दशकों में समाप्त हो जाएंगे। इस ऊर्जा के संकट को दूर करने के लिए मानव ने ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों की खोज की। इनमें से एक नवीकरणीय स्रोत सौर-ऊर्जा भी है।
प्रश्न 8.
बॉक्सनुमा सौर-कुकर तथा संकेन्द्रक सौर-ऊष्मक में अन्तर बताइए। या बॉक्सनुमा सौर-कुकर तथा गोलीय परावर्तक-युक्त सौर-कुकर में अन्तर बताइए।
उत्तर:
बॉक्सनुमा सौर कुकर तथा संकेन्द्रक सौर-ऊष्मक में अन्तर –
प्रश्न 9.
OTEC शक्ति संयन्त्र क्या है? ये किस प्रकार कार्य करते हैं?
उत्तर:
OTEC शक्ति संयन्त्र महासागरों की तापीय ऊर्जा को विद्युत-ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले संयन्त्रों को OTEC शक्ति संयन्त्र कहा जाता है। कार्य-सिद्धान्त ये संयन्त्र समुद्र की ऊपरी परत की ऊष्मा का प्रयोग कुछ तीव्र वाष्पशील पदार्थों को वाष्पित करने के लिए करते हैं। तत्पश्चात् इन वाष्पों की ऊष्मीय ऊर्जा का प्रयोग टरबाइन को चलाने के लिए किया जाता है। सबसे अन्त में टरबाइन की गतिज ऊर्जा द्वारा विद्युत जनित्र को चलाकर विद्युत-ऊर्जा उत्पन्न की जाती है।
प्रश्न 10.
नाभिकीय रिऐक्टरों के प्रमुख उद्देश्यों की सूची बनाइए। इनमें से कौन-से उद्देश्य लोगों की व्यापक भलाई के लिए महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
नाभिकीय रिऐक्टरों के उद्देश्य नाभिकीय रिऐक्टर विभिन्न उद्देश्यों को दृष्टिगत रखते हुए बनाए जाते हैं जो कि निम्नलिखित हैं।
1. विद्युत-ऊर्जा का उत्पादन नाभिकीय रिऐक्टरों का यह सर्वप्रमुख उद्देश्य है।
2. नए विखण्डनीय पदार्थों का उत्पादन कुछ नाभिकीय रिऐक्टरों का उद्देश्य विद्युत-ऊर्जा उत्पादन के अतिरिक्त नए विखण्डनीय पदार्थों का उत्पादन करना भी होता है। ऐसे रिऐक्टरों को ब्रीडर रिऐक्टर कहते हैं।
3. तीव्रगामी न्यूट्रॉनों का उत्सर्जन रिऐक्टर में U235 के विखण्डन से तीव्रगामी न्यूट्रॉन उत्सर्जित होते हैं, जिनके द्वारा अन्य तत्वों के कृत्रिम नाभिकीय विघटनों का अध्ययन किया जाता है।
4. कृत्रिम रेडियो आइसोटोपों का उत्पादन रिऐक्टर में अनेक तत्वों के कृत्रिम रेडियोऐक्टिव आइसोटोप बनाए जाते हैं, जिनका उपयोग चिकित्सा, जीवविज्ञान, उद्योगों तथा कृषि आदि में होता है। उपर्युक्त सभी उद्देश्यों में से विद्युत-ऊर्जा का उत्पादन तथा कृत्रिम रेडियो आइसोटोपों का उत्पादन ऐसे। उद्देश्य हैं जो लोगों की व्यापक भलाई के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
प्रश्न 11.
यूरेनियम के विखण्डन को समीकरण से समझाइए।
उत्तर:
यूरेनियम का विखण्डन यूरेनियम के दो आइसोटोप 92U238 तथा 92U235 हैं। 92U238 का विखण्डन केवल तीव्रगामी न्यूट्रॉनों द्वारा ही सम्भव है जबकि 92U235 का विखण्डन मन्दगामी न्यूट्रॉनों द्वारा होता है। जब मन्दगामी न्यूट्रॉन92U235 से टकराता है तो वह उसमें अवशोषित कर लिया जाता है तथा92U236 बन जाता है। चूंकि 92U236 अत्यन्त अस्थायी है; अतः यह दो खण्डों बेरियम तथा क्रिप्टन में टूट जाता है तथा न्यूट्रॉनों व ऊर्जा का उत्सर्जन करता है।
प्रश्न 12.
यूरेनियम के विखण्डन उत्पाद क्या हैं?
उत्तर:
यूरेनियम के विखण्डन उत्पाद जब यूरेनियम आइसोटोप (U235) के नाभिक पर न्यूट्रॉनों की बमबारी की जाती है तो यह दो अपेक्षाकृत हल्के नाभिकों में टूट जाता है और इसके साथ ही बहुत अधिक ऊर्जा मुक्त होती है। U235 के विखण्डन से अनेक प्रकार के भिन्न-भिन्न नाभिक प्राप्त होते हैं। इस प्रकार किसी विशिष्ट U235 नाभिक के विखण्डन से कौन-कौन से दो नाभिक उत्पन्न होंगे पहले से यह बता पाना सम्भव नहीं है। U235 नाभिक के विखण्डन से मुख्यत: नाभिकों के दो सह उत्पन्न होते हैं –
- नाभिकों का भारी समूह इनकी द्रव्यमान संख्या 130 से 149 के बीच पाई जाती है।
- नाभिकों का हल्का समूह इनकी द्रव्यमान संख्या 84 से 104 के बीच पाई जाती है।
नाभिकों के भारी समूह के दो प्रमुख उदाहरण बेरियम-139 तथा लैन्थेनम-139 हैं, जबकि नाभिकों के हल्के समूह के दो उदाहरण – क्रिप्टन-94 तथा मॉलिब्डेनम-95 हैं। इस प्रकार U 235 के विखण्डन उत्पाद 56Ba139तथा 36Kr94 अथवा 57La139 तथा 42Mo95 हो सकते हैं।
प्रश्न 13.
तापीय न्यूट्रॉन किसे कहते हैं? तापीय न्यूट्रॉन द्वारा प्रारम्भिक U235 नाभिक के विखण्डन को एक चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
तापीय न्यूट्रॉन कम ऊर्जा (1ev ऊर्जा से कम) वाले वे न्यूट्रॉन जिनका उपयोग U235 नाभिक का विखण्डन करने के लिए किया जाता है, तापीय न्यूट्रॉन कहलाते हैं।
प्रश्न 14.
रेडियोऐक्टिव विघटन तथा नाभिकीय विखण्डन में क्या अन्तर है?
उत्तर:
रेडियोऐक्टिव विघटन तथा नाभिकीय विखण्डन में अन्तर –
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जैव-गैस प्राप्त करने के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए। स्पष्ट कीजिए कि अवायुजीवी (अनॉक्सी) अपघटन से क्या तात्पर्य है? या जैव अपशिष्ट से जैव-गैस प्राप्त करने की विधि का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जैव-गैस का निर्माण जैव-गैस; कई ईंधन गैसों का मिश्रण है। इसे ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में जैव पदार्थों के अपघटन से प्राप्त किया जाता है। जैव-गैस का मुख्य घटक मेथेन (CH4) गैस है जो कि एक आदर्श ईंधन है। जैव-गैस उत्पन्न करने के लिए गोबर, वाहित मल, फल-सब्जियों तथा कृषि आधारित उद्योगों के अपशिष्ट आदि का प्रयोग किया जाता है। जैव-गैस बनाने के लिए दो प्रकार के संयन्त्रों का प्रयोग किया जाता है –
1. स्थायी गुम्बद प्रकार तथा
2. प्लावी (तैरती) टंकी प्रकार।
गोबर से जैव-गैस प्राप्त करने के लिए प्रायः ‘प्लावी टंकी प्रकार’ के संयन्त्र का प्रयोग करते हैं जबकि मानव मल तथा अन्य अपशिष्टों से जैव-गैस प्राप्त करने के लिए ‘स्थिर गुम्बद प्रकार’ के संयन्त्र का प्रयोग किया जाता है।
जैव-गैस प्राप्त करने के विभिन्न चरण –
प्रथम चरण: स्लरी का निर्माण सर्वप्रथम गाय-भैंस आदि घरेलू पशुओं के गोबर को पानी के साथ मिलाकर मिश्रण-टंकी में एक गाढ़ा घोल (स्लरी) तैयार कर लेते हैं। तत्पश्चात् स्लरी को डाइजेस्टर में डालकर छोड़ देते हैं। डाइजेस्टर, ईंटों का बना हुआ एक भूमिगत टैंक होता है जो चारों ओर से बन्द रहता है।
द्वितीय चरण: स्लरी का अपघटन डाइजेस्टर में उपस्थित अवायुजीवी या अनॉक्सी सूक्ष्मजीव, पानी की उपस्थिति में, स्लरी में उपस्थित जैव-मात्रा का अपघटन कर उसे सरल यौगिकों में बदलने लगते हैं। इस क्रिया को पूरा होने में कुछ दिन लग जाते हैं तथा। निर्गम टंकी क्रिया पूर्ण होने पर डाइजेस्टर में मेथेन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन तथा सल्फर डाइऑक्साइड गैसों का मिश्रण प्राप्त होता है। यह मिश्रण ही जैव-गैस है।
यह गैसीय मिश्रण डाइजेस्टर में ऊपर उठकर प्लावी डाइजेस्टर टंकी या स्थिर गुम्बद में एकत्र हो जाता है। प्लाती टंकी या स्थिर गुम्बद के ऊपरी भाग में लगी नलिका द्वारा इस गैस को उपभोक्ता की रसोई तक ले जाया जाता है और गैस चूल्हों में जलाया जाता है।
जैव-गैस के लाभ जैव-गैस एक उत्तम ईंधन है जो बिना धुआँ दिए जलती है। इसको जलाने से राख जैसा कोई ठोस अपशिष्ट भी नहीं बचता है। इस प्रकार, जैव-गैस एक पर्यावरण-हितैषी ईंधन है। डाइजेस्टर में, जैव गैस प्राप्त करने के पश्चात् शेष स्लरी में नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस के यौगिक प्रचुर मात्रा में होते हैं; अतः यह एक उत्तम खाद का कार्य करती है।
इस प्रकार, जैव-गैस प्राप्त करने की क्रिया में न केवल हमें एक उत्तम ईंधन प्राप्त होता है, साथ-ही खेतों के लिए खाद भी प्राप्त होता है तथा पर्यावरण भी प्रदूषित होने से बच जाता है। अवायुजीवी (अनॉक्सी) अपघटन डाइजेस्टर में उपस्थित अवायुजीवी सूक्ष्मजीवों को ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है; अतः ये ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ही स्लरी का अपघटन करते हैं। ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होने वाला इस प्रकार का अपघटन अवायुजीवी अथवा अनॉक्सी अपघटन कहलाता है।
प्रश्न 2.
पवन चक्की का कार्य-सिद्धान्त क्या है? पवन चक्की का विवरण चित्र सहित समझाइए।
उत्तर:
पवन चक्की पवन चक्की एक ऐसी युक्ति है, जिसमें वायु की गतिज ऊर्जा ब्लेडों को घुमाने में प्रयुक्त की जाती है। यह बच्चों के खिलौने ‘फिरकी’ जैसी होती है। पवन चक्की के ब्लेडों की बनावट विद्युत पंखे के ब्लेडों के समान होती है। इनमें केवल इतना अन्तर है कि विद्युत पंखे में जब पंखे के ब्लेड घूमते हैं तो पवन अर्थात् वायु चलती है। इसके विपरीत, पवन चक्की में जब पवन चलती है, तो पवन चक्की के ब्लेड घूमते हैं।
घूमते हुए ब्लेडों की घूर्णन गति के कारण पवन चक्की से गेहूँ पीसने की चक्की को चलाना, जल-पम्प चलाना, मिट्टी के बर्तन के चाक को घुमाना आदि कार्य किए जा सकते हैं। पवन चक्की ऐसे स्थानों पर लगाई जाती है, जहाँ वायु लगभग पूरे वर्ष तीव्र वेग से चलती रहती है। यह पवन ऊर्जा को उपयोगी यान्त्रिक-ऊर्जा के रूप में बदलने का कार्य करती है। रचना पवन चक्की की रचना को चित्र में प्रदर्शित किया गया है। इसमें ऐलुमिनियम के पतले-चपटे आयताकार खण्डों के रूप में, बहुत-सी पंखुड़ियाँ लोहे के पहिये पर लगी रहती हैं।
यह पहिया एक ऊर्ध्वाधर स्तम्भ के ऊपरी सिरे पर लगा रहता है तथा अपने केन्द्र से गुजरने वाली लौह शाफ्ट (अक्ष) के परितः घूम सकता है। पहिये का तल स्वत: वायु की गति की दिशा के लम्बवत् समायोजित हो जाता है, जिससे वायु सदैव पंखुड़ियों पर सामने से टकराती है। पहिये की अक्ष एक लोहे की फ्रैंक से जुड़ी रहती है। फ्रैंक का दूसरा सिरा उस मशीन अथवा डायनमो से जुड़ा रहता है, जिसे पवन-ऊर्जा द्वारा गति प्रदान करनी होती है।
कार्य-विधि:
चित्र में पवन चक्की द्वारा पानी खींचने की क्रिया का प्रदर्शन किया गया है। पवन चक्की की बैक एक जल-पम्प की पिस्टन छड़ से जुड़ी है। जब वायु, पवन चक्की की पंखुड़ियों से टकराती है तो चक्की का पहिया घूमने लगता है और पहिये से जुड़ी अक्ष घूमने लगती है। अक्ष की घूर्णन गति के कारण बॅक ऊपर-नीचे होने लगती है और जल-पम्प की पिस्टन छड़ भी ऊपर-नीचे गति करने लगती है तथा जल-पम्प से जल बाहर निकलने लगता है।
कार्य-सिद्धान्त तेजी से बहती हई पवन जब पवन चक्की के ब्लेडों से टकराती है तो वह उन पर एक बल लगाती है जो एक प्रकार का घूर्णी प्रभाव उत्पन्न करता है और इसके कारण पवन चक्की के ब्लेड घूमने लगते हैं। पवन चक्की का घूर्णन उसके ब्लेडों की विशिष्ट बनावट के कारण होता है जो विद्युत के पंखे के ब्लेडों के समान होती है। पवन चक्की को विद्युत के पंखे के समान माना जा सकता है जो कि विपरीत दिशा में कार्य कर रहा हो, क्योंकि जब पंखे के ब्लेड घूमते हैं तो पवन चलती है।
इसके विपरीत, जब पवन चलती है तो पवन चक्की के ब्लेड घूमते हैं। पवन चक्की के लगातार घूमते हुए ब्लेडों की घूर्णन गति से जल-पम्प तथा गेहूँ पीसने की चक्की चलाई जा सकती है। पवन चक्की की भाँति ‘फिरकी’ भी पवन ऊर्जा से ही घूमती है।
प्रश्न 3.
चित्र की सहायता से बॉक्सनुमा सौर-कुकर की संरचना व कार्य-विधि का वर्णन कीजिए।
या सौर-ऊर्जा क्या है? सोलर-कुकर का सिद्धान्त एवं कार्य-विधि समझाइए। सोलर कुकर के लाभ भी लिखिए।
या सोलर कुकर के उपयोग, लाभ एवं सीमाएँ लिखिए।
उत्तर:
सूर्य द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा को सौर-ऊर्जा कहते हैं। बॉक्सनुमा सोलर-कुकर यह एक ऐसी युक्ति है, जिसमें सौर-ऊर्जा का उपयोग करके भोजन को पकाया जाता है, इसलिए इसे सौर-चूल्हा भी कहते हैं। चित्र में बॉक्सनुमा सौर-कुकर को प्रदर्शित किया गया है। संरचना सामान्यतः यह एक लकड़ी का बक्सा A होता है जिसे बाहरी बक्सा भी कहते हैं। इस लकड़ी के बक्से के अन्दर लोहे अथवा ऐलुमिनियम की चादर का बना एक और बक्सा होता है, इसे भीतरी बक्सा कहते हैं। भीतरी बक्से के अन्दर की दीवारें तथा नीचे की सतह काली कर दी जाती है।
भीतरी बक्से के अन्दर काला रंग इसलिए किया जाता है, जिससे कि सौर-ऊर्जा का अधिक-से-अधिक अवशोषण हो तथा परावर्तन द्वारा ऊष्मा की कम-से-कम हानि हो। भीतरी बक्से तथा बाहरी बक्से के बीच के खाली स्थान में थर्मोकोल अथवा काँच की रुई अथवा कोई भी ऊष्मारोधी पदार्थ भर देते हैं, इससे सौर-कुकर की ऊष्मा बाहर नहीं जा पाती। सौर कुकर के बक्से के ऊपर एक लकड़ी के फ्रेम में मोटे काँच का एक ढक्कन G लगा होता है, जिसे आवश्यकतानुसार खोला तथा बन्द किया जा सकता है। सौर-कुकर के बक्से में एक समतल दर्पण M भी लगा होता है जो कि परावर्तक तल का कार्य करता है।
कार्य-विधि:
सर्वप्रथम पकाए जाने वाले भोजन को स्टील अथवा ऐलमिनियम के एक बर्तन C में डालकर जिसकी बाहरी सतह काली पुती हो, सौर-कुकर के अन्दर रख देते हैं तथा ऊपर से शीशे के ढक्कन को बन्द कर देते हैं। परावर्तक तल M अर्थात् समतल दर्पण को चित्रानुसार खड़ा करके सौर-कुकर को भोजन पकाने के लिए धूप में रख देते हैं। जब सूर्य के प्रकाश की किरणें परावर्तक तल M पर गिरती हैं तो परावर्तक तल उन्हें तीव्र प्रकाश-किरण पुंज के रूप में सौर-कुकर के ऊपर डालता है। सूर्य की ये किरणें काँच के ढक्कन में से गुजरकर सौर-कुकर के बक्से में प्रवेश कर जाती हैं तथा कुकर के अन्दर की काली सतह द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं। चूँकि सूर्य की किरणों का
लगभग एक-तिहाई भाग ऊष्मीय प्रभाव वाली अवरक्त किरणों का होता है, इसलिए जब ये किरणें कुकर के बक्से में प्रवेश कर जाती हैं तो काँच का ढक्कन G इन्हें वापस बाहर नहीं आने देता। इस प्रकार सूर्य की और अधिक अवरक्त किरणें धीरे-धीरे कुकर के बक्से में प्रवेश करती जाती हैं, जिनके कारण सौर-कुकर के अन्दर का ताप बढ़ता जाता है। लगभग दो अथवा तीन घण्टे में सौर-कुकर के अन्दर का ताप 100°C तथा 140°C के बीच हो जाता है।
यही ऊष्मा सौर-कुकर के अन्दर बर्तन में रखे भोजन को पका देती है। उपयोग बॉक्सनुमा सौर-कुकर को उन खाद्य पदार्थों को पकाने के लिए प्रयुक्त करते हैं, जिन्हें पकाने के लिए धीमी आँच की आवश्यकता होती है। इस कुकर को रोटियाँ सेंकने में प्रयुक्त नहीं करते।
सोलर-कुकर के लाभ इसके निम्नलिखित लाभ हैं –
- सोलर-कुकर से किसी प्रकार का धुआँ अथवा गन्ध नहीं निकलती है; अत: इसके प्रयोग से प्रदूषण नहीं होता।
- सोलर-कुकर में मिट्टी का तेल, कोयला, विद्युत आदि जैसे किसी ईंधन की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार इसके प्रयोग से ईंधन तथा विद्युत दोनों की बचत होती है।
- सोलर-कुकर से बहुत धीमी गति से खाना पकता है; अत: इसके द्वारा पके भोजन से पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते।
- सोलर-कुकर से खाना पकाते समय निरन्तर देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है।
सोलर-कुकर की परिसीमाएँ इसकी निम्नलिखित परिसीमाएँ हैं –
- सोलर-कुकर रात्रि में, बरसात में तथा बादल वाले दिनों में काम नहीं करते।
- सोलर-कुकर को रोटी बनाने में प्रयुक्त नहीं कर सकते।
- सोलर-कुकर को खाने वाली वस्तुओं को तलने में प्रयुक्त नहीं कर सकते।
प्रश्न 4.
सौर-सेल क्या है? सौर-सेलों के विकास तथा उपयोगों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सौर-सेल यह एक ऐसी युक्ति है, जो सूर्य से पृथ्वी तक पहुँचने वाली ऊर्जा को सीधे विद्युत ऊर्जा में बदल देती है। सौर-सेल का विकास आज से लगभग 100 वर्ष पहले यह खोज हो चुकी थी कि सेलीनियम की किसी पतली पर्त को सौर प्रकाश में रखने पर विद्युत उत्पन्न होती है। यह भी ज्ञात था कि सेलेनियम के किसी टुकड़े पर आपतित सौर-ऊर्जा का केवल 0.6% भाग ही विद्युत-ऊर्जा में परिवर्तित हो पाता है।
चूँकि इस प्रकार के सौर-सेल की दक्षता बहुत कम थी, इसलिए विद्युत उत्पादन के लिए इस परिघटना का उपयोग करने के कोई विशेष प्रयास नहीं किए गए। प्रथम व्यावहारिक सौर-सेल सन् 1954 में बनाया गया था। यह सौर-सेल लगभग 1.0% सौर-ऊर्जा को विद्युत-ऊर्जा में परिवर्तित कर सकता था। इस सौर-सेल की दक्षता भी बहुत कम थी। अन्तरिक्ष कार्यक्रमों द्वारा उत्पन्न बढ़ती हुई माँग के कारण अधिक-से-अधिक दक्षता वाले सौर-सेलों को विकसित करने की दर तेजी से बढ़ी है। सौर सेलों के निर्माण के लिए अर्द्धचालकों के उपयोग से सौर-सेलों की दक्षता बहुत अधिक बढ़ गई है।
सिलिकन, गैलियम तथा जर्मेनियम जैसे अर्द्धचालकों से बने हुए सौर-सेलों की दक्षता 10 से 18% तक होती है अर्थात् ये 10 से 18% सौर-ऊर्जा को विद्युत-ऊर्जा में परिवर्तित कर सकते हैं। सेलेनियम से बने आधुनिक सौर-सेलों की दक्षता 25% तक होती है। सौर-सेलों के उपयोग सौर-सेलों का उपयोग दुर्गम तथा दूरस्थ स्थानों में विद्युत-ऊर्जा उपलब्ध कराने में अत्यन्त प्रभावशाली सिद्ध हुआ है। सौर-सेलों के महत्त्वपूर्ण उपयोग अनलिखित हैं –
1. सौर-सेलों का उपयोग कृत्रिम उपग्रहों तथा अन्तरिक्ष यानों में विद्युत उपलब्ध करने के लिए किया जाता है। वास्तव में, सभी कृत्रिम उपग्रह तथा अन्तरिक्ष यान मुख्यत: सौर-पैनलों के द्वाराउत्पादित विद्युत-ऊर्जा पर ही निर्भर करते हैं।
2. भारत में सौर-सेलों का उपयोग सड़कों पर प्रकाश व्यवस्था करने में, सिंचाई के लिए जलपम्पों को चलाने तथा रेडियो व टेलीविजन सैटों को चलाने में किया जाता है।
3. सौर सेलों का उपयोग समुद्र में स्थित द्वीप स्तम्भों में तथा तट से दूर निर्मित खनिज तेल के कुएँ खोदने वाले संयन्त्रों को विद्युत-शक्ति प्रदान करने में किया जाता है।
4. आजकल सौर-सेलों का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक घड़ियों तथा कैलकुलेटरों को चलाने में भी किया जाता है।
प्रश्न 5.
महासागर में ऊर्जा का दोहन कितने रूपों में और किस प्रकार किया जा सकता है? या महासागर में किन-किन रूपों में ऊर्जा भण्डारित है? ऊर्जा के उन तीन रूपों के नाम बताइए जिनका महासागर से दोहन किया जा सकता है।
उत्तर:
महासागरों में ऊर्जा का भण्डारण अथवा दोहन महासागरों में ऊर्जा भण्डारण अथवा दोहन के निम्नलिखित स्वरूप हैं –
1. सागरीय तापीय-ऊर्जा महासागर की सतह के जल तथा गहराई के जल के ताप में सदैव कुछ अन्तर होता है। इस तापान्तर के कारण उपलब्ध ऊर्जा को सागरीय तापीय-ऊर्जा कहते हैं। कहीं-कहीं पर यह तापान्तर 20°C तक भी होता है। इस सागरीय तापीय-ऊर्जा को विद्युत के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। इसके लिए सागरीय तापीय ऊर्जा रूपान्तरण विद्युत संयंत्र का प्रयोग किया जाता है।
2. सागरीय लहरों की ऊर्जा वायु का प्रवाह अधिक होने के कारण समुद्र की सतह पर जल की लहरें बहुत तेजी से चलती हैं, जिसके कारण उनमें गतिज ऊर्जा होती है। इस प्रकार, उत्पन्न ऊर्जा को सागरीय लहरों की ऊर्जा कहते हैं। इन गतिशील समुद्री लहरों की ऊर्जा का उपयोग विद्युत उत्पादन में किया जाता है।
3. ज्वारीय-ऊर्जा चन्द्रमा के आकर्षण के कारण समुद्र के जल के ऊपर उठने को ज्वार तथा जल के नीचे उतरने को भाटा कहते हैं। ज्वार-भाटा की लहरें दिन में दो बार चढ़ती हैं तथा दो बार उतरती हैं। समुद्रतटीय क्षेत्रों में ज्वार तथा भाटा के बीच जल की विशाल मात्रा की गतिशीलता, ऊर्जा का एक बहुत बड़ा स्रोत उत्पन्न करती है।
ज्वारीय लहरों की ऊर्जा ज्वारीय बाँध बनाकर काम में लाई जाती है। ज्वार के समय उठे जल को बाँध द्वारा रोककर, जल को ऊँचाई से धीरे-धीरे जल टरबाइन के ब्लेडों पर गिराकर जल टरबाइन को घुमाते हैं और विद्युत उत्पादित करते हैं। भारत में ज्वारीय लहरों की ऊर्जा का दोहन करने के लिए तीन स्थान चुने गए हैं-कच्छ की खाड़ी, कैम्बे (गुजरात) तथा सुन्दरवन (पश्चिम बंगाल)।
4. समुद्रों में लवणीय प्रवणता से ऊर्जा चूँकि भिन्न-भिन्न समुद्रों के जल में लवणों की सान्द्रता भिन्न-भिन्न होती है; अतः दो समुद्रों के जल के लवणों की सान्द्रता के अन्तर को ‘लवणीय प्रवणता’ कहते हैं। दो भिन्न-भिन्न समुद्रों का जल जिस स्थान पर आपस में मिलता है, उस स्थान पर लवणों की सान्द्रता के अन्तर का उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने हेतु किया जाता है।
5. समुद्री वनस्पतियों अथवा जैव-द्रव्यमान से ऊर्जा समुद्री वनस्पतियाँ अर्थात् पेड़-पौधे अथवा जैव-द्रव्यमान सागरीय ऊर्जा प्राप्त करने का एक स्रोत हैं। भविष्य में सागर में उपस्थित समुद्री शैवाल की विशाल मात्रा मेथेन नामक ईंधन प्रदान कर सकती है।
6. सागरीय ड्यूटीरियम के नाभिकीय संलयन से ऊर्जा सागर का जल, हाइड्रोजन के भारी परमाणु अर्थात् ड्यूटीरियम का एक असीमित स्रोत है। यह सागर में भारी जल के रूप में उपस्थित रहता है। डयूटीरियम, हाइड्रोजन का समस्थानिक है, जिसके नाभिक में एक प्रोटॉन तथा एक न्यूट्रॉन होता है। ड्यूटीरियम का नाभिकीय संलयन करके ऊर्जा प्राप्त करने के प्रयास चल रहे हैं। इन प्रयासों में सफलता मिल जाने पर सागर, ऊर्जा का एक विशाल स्रोत बन जाएगा, जो करोड़ों वर्षों तक हमें ऊर्जा प्रदान करता रहेगा।
प्रश्न 6.
किसी नाभिकीय रिऐक्टर के प्रमुख घटकों के नाम लिखिए तथा उनके प्रकार्यों का वर्णन कीजिए।
या नाभिकीय रिऐक्टर के प्रमुख भागों का उल्लेख करते हुए इसकी प्रक्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए।
या समझाइए कि नाभिकीय रिऐक्टर में विमन्दकों तथा नियन्त्रकों की सहायता से श्रृंखला अभिक्रिया को किस प्रकार नियन्त्रित किया जाता है?
उत्तर:
नाभिकीय रिऐक्टर के प्रमुख घटक: नाभिकीय रिऐक्टर एक ऐसा उपकरण है, जिसके भीतर नाभिकीय विखण्डन की नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया द्वारा ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। इसके निम्नलिखित मुख्य भाग हैं –
1. ईंधन: (Fuel) विखण्डित किए जाने वाले पदार्थ (U235 अथवा Pu 239 ) को रिऐक्टर का ईंधन कहते हैं।
2. मन्दक: (Moderator) विखण्डन में उत्पन्न न्यूट्रॉनों की गति (ऊर्जा) को कम करने के लिए मन्दक प्रयोग किए जाते हैं। इसके लिए भारी जल, ग्रेफाइट अथवा बेरिलियम ऑक्साइड (BeO) प्रयोग किए जाते हैं। भारी जल सबसे अच्छा मन्दक है।
3. परिरक्षक (Shield) नाभिकीय विखण्डन के समय कई प्रकार की तीव्र किरणें (जैसे–किरणे) निकलती हैं, जिनसे रिऐक्टर के पास काम करने वाले व्यक्ति प्रभावित हो सकते हैं। इन किरणों से उनकी रक्षा करने के लिए रिऐक्टर के चारों ओर कंक्रीट की मोटी-मोटी (सात फुट मोटी) दीवारें बना दी जाती हैं।
4. नियन्त्रक: (Controller) रिऐक्टर में विखण्डन की गति पर नियन्त्रण करने के लिए कैडमियम की छड़ें प्रयुक्त की जाती हैं। रिऐक्टर की दीवार में इन छड़ों को आवश्यकतानुसार
अन्दर-बाहर करके विखण्डन की गति को नियन्त्रित किया जा सकता है।
5. शीतलक: (Coolant) विखण्डन के समय उत्पन्न होने वाली ऊष्मा को शीतलक पदार्थ द्वारा हटाया जाता है। इसके लिए वायु, जल अथवा कार्बन डाइऑक्साइड को रिऐक्टर में प्रवाहित करते हैं। ऊष्मा प्राप्त कर जल अतितप्त हो जाता है और जलवाष्प में परिवर्तित हो जाता है, जिससे टरबाइन चलाकर विद्युत उत्पादित की जाती है।
रचना नाभिकीय रिऐक्टर का सरल रूप चित्र में दिखाया गया है। इसमें ग्रेफाइट की ईंटों से बना एक ब्लॉक है, जिसमें निश्चित स्थानों पर साधारण यूरेनियम की छड़ें लगी रहती हैं। इन छड़ों पर ऐलुमिनियम के खोल चढ़ा दिए जाते हैं जिससे इनका ऑक्सीकरण न हो। ब्लॉक के बीच-बीच में कैडमियम की छड़ें लगी होती हैं, जिन्हें ‘नियन्त्रक-छड़ें’ कहते हैं। इन्हें इच्छानुसार अन्दर अथवा बाहर खिसका सकते हैं।
ग्रेफाइट मन्दक का कार्य करता है तथा कैडमियम न्यूट्रॉनों का अच्छा अवशोषक होने के कारण नाभिकीय विखण्डन को रोक सकता है। कैडमियम छड़ों के अतिरिक्त इसमें कुछ सुरक्षा छड़ें भी लगी रहती हैं जो दुर्घटना होने पर स्वत: रिऐक्टर में प्रवेश कर जाती हैं और अभिक्रिया को रोक देती हैं। रिऐक्टर के चारों ओर सात फुट मोटी कंक्रीट की दीवार बना दी जाती है, जिससे कर्मचारियों को हानिकारक विकिरणों से बचाया जा सके।
कार्य-विधि:
रिऐक्टर को चलाने के लिए किसी बाह्य स्रोत की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि इसमें सदैव कुछ न्यूट्रॉन उपस्थित रहते हैं; अत: जब रिऐक्टर को चलाना होता है तो कैडमियम की छड़ों को बाहर खींच लेते हैं, तब रिऐक्टर में मौजूद न्यूट्रॉन यूरेनियम नाभिकों का विखण्डन प्रारम्भ कर देते हैं। जब रिऐक्टर में उपस्थित न्यूट्रॉनों द्वारा U235 का विखण्डन होता है तो इससे उत्पन्न तीव्रगामी न्यूट्रॉनों का ग्रेफाइट के साथ बार-बार टकराने से मन्दन हो जाता है, जिससे ये अगले U235के नाभिक का विखण्डन करने लगते हैं।
इस प्रकार, विखण्डन की श्रृंखला-अभिक्रिया शुरू हो जाती है। जब कभी अभिक्रिया अनियन्त्रित होने लगती है, तब कैडमियम की छड़ों को अन्दर खिसका देते हैं। कैडमियम की छड़ें कुछ न्यूट्रॉनों को अवशोषित कर लेती हैं, जिससे विखण्डन दर कम हो जाती है और इस प्रकार, उत्पन्न ऊर्जा पर नियन्त्रण हो जाता है और विस्फोट नहीं हो पाता। रिऐक्टर में श्रृंखला-अभिक्रिया चलाने के लिए यूरेनियम की छड़ों का आकार, क्रान्तिक आकार से बड़ा रखते हैं।
प्रश्न 7.
श्रृंखला अभिक्रिया किसे कहते हैं तथा यह कैसे सम्पन्न की जाती है?
उत्तर:
नाभिकीय विखण्डन में श्रृंखला अभिक्रिया:
Ban जब यूरेनियम (92U235) पर न्यूट्रॉनों की बमबारी की जाती है तो यूरेनियम नाभिक दो लगभग बराबर खण्डों में टूट जाता है। विखण्डन की इस अभिक्रिया में 2 या 3 नए न्यूट्रॉन निकलते हैं तथा अपार ऊर्जा उत्सर्जित मन्द गति होती है। अनुकूल परिस्थितियों में ये नए न्यूट्रॉन अन्य न्यूट्रॉन यूरेनियम नाभिकों को विखण्डित कर देते हैं और प्रत्येक नाभिक के विखण्डन से 2 या 3 नए न्यूट्रॉन उत्पन्न होते हैं, जो अन्य नाभिकों का विखण्डन करते हैं। इस प्रकार नाभिकों के विखण्डन की श्रृंखला बन जाती है जो एक बार प्रारम्भ होने के पश्चात् स्वत: नाभिकीय विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया। चालू रहती है और तब तक चलती रहती है, जब तक कि समस्त यूरेनियम समाप्त नहीं हो जाता।
इस प्रकार की अभिक्रिया को नाभिकीय विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया कहते हैं। चूँकि यूरेनियम के एक नाभिक के विखण्डित होने से लगभग 200 Mev ऊर्जा उत्पन्न होती है; अतः शृंखला अभिक्रिया में विखण्डित होने वाले नाभिकों की संख्या तेजी से बढ़ने के कारण उत्पन्न ऊर्जा बहुत शीघ्र ही अपार रूप धारण कर लेती है।
शृंखला अभिक्रिया निम्नलिखित दो प्रकार की होती है –
1. अनियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया: (Uncontrolled chain reaction) इस अभिक्रिया में प्रत्येक विखण्डन से उत्पन्न न्यूट्रॉनों में से औसतन एक से अधिक न्यूट्रॉन आगे विखण्डन करते हैं, जिसके कारण विखण्डनों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है; अत: यह अभिक्रिया अति तीव्र गति से होती है और कुछ क्षणों में सम्पूर्ण पदार्थ का विखण्डन हो जाता है। इससे ऊर्जा की बहुत अधिक मात्रा मुक्त होती है, जो भयानक विस्फोट का रूप ले लेती है। परमाणु बम में यही क्रिया होती है।
2. नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया: (Controlled chain reaction) इस अभिक्रिया में कृत्रिम उपायों द्वारा (मन्दक एवं नियन्त्रक पदार्थों से) इस प्रकार का नियन्त्रण किया जाता है कि प्रत्येक विखण्डन से प्राप्त न्यूट्रॉनों में से केवल एक ही न्यूट्रॉन आगे विखण्डन कर सके। इस प्रकार, इसमें विखण्डनों की दर नियत रहती है; अत: यह अभिक्रिया धीरे-धीरे होती है तथा उत्पन्न ऊर्जा का उपयोग रचनात्मक कार्यों में किया जा सकता है। नाभिकीय रिऐक्टर अथवा परमाणु-भट्टी में यही क्रिया होती है।
श्रृंखला अभिक्रिया में कठिनाइयाँ तथा उनका निवारण शृंखला अभिक्रिया के प्रचलन में निम्नलिखित दो कठिनाइयाँ आती हैं –
1. प्रथम कठिनाई यह है कि साधारण यूरेनियम में U238 तथा U235 दो आइसोटोप होते हैं। इनमें U235 केवल 0.7% होता है, जबकि U23899.3% होता है। जहाँ U238 केवल तीव्रगामी (ऊर्जा 1 MeV से अधिक) न्यूट्रॉनों द्वारा ही विखण्डित होता है, वहीं U238 मन्द न्यूट्रॉनों (ऊर्जा 0.025 ev) द्वारा ही विखण्डित हो जाता है, जबकि U238 आइसोटोप मन्द गति न्यूट्रॉनों को अवशोषित कर लेता है।
प्राकृतिक यूरेनियम में U238 की मात्रा अधिक होने के कारण, विखण्डन क्रिया में उत्पन्न हुए न्यूट्रॉनों के U238 नाभिकों द्वारा अवशोषित कर लिए जाने की सम्भावना अधिक होती है। इससे विखण्डन की क्रिया शीघ्र ही रुक जाती है। इसलिए श्रृंखला अभिक्रिया को सम्पन्न करने के लिए प्राकृतिक यूरेनियम में विसरण विधि द्वारा U235 का अनुपात बढ़ाया जाता है। इस क्रिया को यूरेनियम संवर्द्धन कहते हैं तथा इस प्रकार प्राप्त यूरेनियम को संवर्द्धित यूरेनियम कहते हैं।
2. श्रृंखला अभिक्रिया को चलाने में द्वितीय कठिनाई यह है कि U235 नाभिक के विखण्डन से प्राप्त न्यूट्रॉन की गति इतनी तीव्र होती है कि वे सीधे ही अन्य U235 नाभिकों का विखण्डन नहीं कर पाते। इसलिए विखण्डन में भाग लेने से पूर्व इन न्यूट्रॉनों को मन्दित करना होता है। इसके लिए विखण्डनीय पदार्थ को कुछ विशेष प्रकार के पदार्थों से घेरकर रखा जाता है।
इन पदार्थों को मन्दक पदार्थ कहते हैं। जब विखण्डन में उत्पन्न न्यूट्रॉन बार-बार मन्दक पदार्थ के अणुओं से टकराते हैं तो उनकी ऊर्जा कम होती जाती है। जब न्यूट्रॉनों की ऊर्जा 0.025 ev तक कम हो जाती है तो वे U235 नाभिकों का विखण्डन करने लगते हैं। इस प्रकार श्रृंखला अभिक्रिया जारी रहती है।
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