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Thursday, June 23, 2022

BSEB Class 10 Science Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है (How do Organisms Reproduce?) Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 10th Science Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है (How do Organisms Reproduce?) Book Answers

BSEB Class 10 Science Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है (How do Organisms Reproduce?) Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 10th Science Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है (How do Organisms Reproduce?) Book Answers
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Bihar Board Class 10th Science Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है (How do Organisms Reproduce?) Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 10th
Subject Science Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है (How do Organisms Reproduce?)
Chapters All
Provider Hsslive


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Bihar Board Class 10 Science जीव जनन कैसे करते है InText Questions and Answers

अनुच्छेद 8.1 पर आधारित

प्रश्न 1.
डी०एन०ए० प्रतिकृति का प्रजनन में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
प्रजनन की मूल घटना है डी०एन०ए० की दो प्रतिकृतियाँ तैयार करना। इसके लिए कोशिकाएँ रासायनिक अभिक्रियाएँ करती हैं जिससे डी०एन०ए० की दो प्रतिकृतियाँ बन जाती हैं। इन प्रतिकृतियों को अलग होने के लिए एक अलग कोशिकीय संरचना की आवश्यकता होती है। डी०एन०ए० की दोनों प्रतिकृतियाँ अलग होकर दो कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। इस प्रकार प्रजनन में दो कोशिकाओं को बनाने के लिए डी०एन०ए० प्रतिकृति आवश्यक है।

प्रश्न 2.
जीवों में विभिन्नता स्पीशीज़ के लिए तो लाभदायक है परंतु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है, क्यों?
उत्तर:
जीवों में विभिन्नताओं की किसी जीव के अस्तित्व के लिए आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसके जीवित रहने पर कुछ विभिन्नताओं का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। वह समानता के आधार पर अधिक अनुकूल होता है। लेकिन डी०एन०ए० की दोनों प्रतिकृतियाँ बिल्कुल समान नहीं होतीं उनमें कुछ-न-कुछ विभिन्नताएँ अवश्य होती हैं जो धीरे-धीरे गहरी होती जाती हैं। जनन में होने वाली ये विभिन्नताएँ अन्ततः नई स्पीशीज़ के विकास में योगदान देती हैं तथा जैव विकास का आधार बनती हैं। अतः विभिन्नताएँ स्पीशीज़ के उद्भव के लिए आवश्यक हैं लेकिन जीव के जीवित रहने के लिए इनकी कोई आवश्यकता नहीं है।

अनुच्छेद 8.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
द्विखंडन बहुखंडन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
द्विखंडन इस विधि द्वारा एककोशिकीय जीव दो भागों में विभक्त होता है और प्रत्येक भाग एक नए जीव में विकसित होता है; जैसे-अमीबा । बहुखंडन इस विधि में एककोशिकीय जीव अनेक भागों में विभक्त होता है तथा प्रत्येक भाग एक नए जीव में विकसित होता है; जैसे मलेरिया परजीवी (प्लैज़्मोडियम)।

प्रश्न 2.
बीजाणु द्वारा जनन से जीव किस प्रकार लाभान्वित होता है? उत्तर-बहुत-से सरल बहुकोशिकीय जीवों के वृन्त पर एक कैप्सूल जैसी संरचना होती है जिसे बीजाणुधानी कहते हैं। बीजाणुधानी में बहुत-से बीजाणु भरे होते हैं। ये बीजाणु बड़ी संख्या में होते हैं। इस प्रकार एक बीजाणुधानी से एक बड़ी संख्या में नए जीव उत्पन्न हो सकते हैं। इस प्रकार यह ऐसे जीवों के लिए लाभदायक होता है जिनमें जनन बीजाणु द्वारा होता है। जैसे – राइजोपस।

प्रश्न 3.
क्या आप कुछ कारण सोच सकते हैं जिससे पता चलता हो कि जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नयी संतति उत्पन्न नहीं कर सकते?
उत्तर:
जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नई संतति उत्पन्न नहीं कर सकते; क्योंकि –

  1. ऐसे जीवों की संरचना अत्यन्त जटिल होती है।
  2. ऐसे जीवों में एक विशिष्ट कार्य करने के लिए विशिष्ट अंग/अंगों की आवश्यकता होती है।
  3. ऐसे जीवों में श्रम विभाजन होता है।
  4. पुनरुद्भवन विशिष्ट कोशिकाओं द्वारा होता है। ऐसी कोशिकाएँ जटिल जीवों में नहीं होती।

प्रश्न 4.
कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर:
कायिक प्रवर्धन केवल ऐसे पौधों में ही संभव है जिनके जड, तना या पत्तियों में नए पौधों को उगाने की क्षमता होती है। कुछ पौधों में बीज नहीं होते, ऐसे पौधों को केवल कायिक प्रवर्धन द्वारा ही उगाया जा सकता है। कायिक प्रवर्धन बीजरहित पौधों को उगाना संभव बनाता है। केला, नारंगी, गुलाब, जासमीन व गन्ने में बीज बनने की क्षमता कम है या बिल्कुल नहीं है अतः ऐसे पौधे कायिक प्रवर्धन द्वारा ही उगाये जा सकते

प्रश्न 5.
डी०एन०ए० की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक क्यों है?
उत्तर:
डी०एन०ए० की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक है। यह जनन के लिए एक मूल घटना है। डी०एन०ए० की दो प्रतिकृतियों से ही जनक कोशिका की दो कोशिकाएँ बनती हैं। ये दोनों प्रतिकृतियाँ अलग होना आवश्यक हैं तभी जनन हो सकता है। इसके लिए एक अलग से कोशिकीय संरचना आवश्यक है। एक प्रतिकृति नई संरचना में तथा एक मूल कोशिका में रह जाती है। इस प्रकार दो प्रतिकृतियाँ दो नई कोशिकाएँ बनाने में सहायता करती हैं; और जनन होता है।

अनुच्छेद 8.3 पर आधारित

प्रश्न 1.
परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
परागण परागकणों के परागकोष से वर्तिकाग्र तक पहुँचने की क्रिया को परागण क्रिया कहते हैं। इस प्रक्रिया में किसी प्रकार की दो कोशिकाओं में संलयन नहीं होता है। यह निषेचन से पहले की क्रिया है। निषेचन निषेचन में नर व मादा युग्मकों का संलयन होता है तथा युग्मनज बनता है। यह परागण के बाद की क्रिया है।

प्रश्न 2.
शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि की क्या भूमिका है?
उत्तर:
नर जनन तंत्र में कुछ ग्रंथियाँ; जैसे-शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथियाँ होती हैं। इन ग्रंथियों के स्राव शुक्राणु के साथ मिलते हैं। इस प्रकार शुक्राणु एक द्रव में आ जाते हैं। यह द्रव शुक्राणुओं के स्थानांतरण को आसान बनाता है। यह द्रव शुक्राणुओं को पोषण भी प्रदान करता है।

प्रश्न 3.
यौवनारंभ के समय लड़कियों में कौन से परिवर्तन दिखाई देते हैं?
उत्तर:
यौवनारंभ के समय लड़कियों में निम्न परिवर्तन दिखाई देते है –

  1. स्तनों के आकार में वृद्धि होने लगती है।
  2. स्तनाग्र की त्वचा का रंग गहरा होने लगता है।
  3. रजोधर्म प्रारम्भ होने लगता है।
  4. त्वचा तैलीय हो जाती है, चेहरे पर मुहासे निकलने लगते हैं।
  5. श्रोणिभाग चौड़ा तथा नितम्भ भारी हो जाते हैं।
  6. आवाज महीन एवं सुरीली हो जाती है।

प्रश्न 4.
माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है?
उत्तर:
निषेचन के बाद युग्मनज बनता है जो धीरे-धीरे भ्रूण में विकसित होने लगता है। भ्रण गर्भाशय की भित्ति से चिपक जाता है। इस प्रक्रिया को इम्प्लांटेशन कहते हैं। भ्रूण माता के शरीर से अपना भोजन प्राप्त करता है। इसके लिए एक विशिष्ट ऊतक, जिसे प्लेसेंटा कहते हैं, होता है। यह एक तश्तरीनुमा संरचना है जो गर्भाशय की भित्ति में घुसा होता है। माता के गर्भाशय की भित्ति विलाई से बनी होती है जो गर्भाशय का क्षेत्रफल बढ़ाता है। इससे भ्रूण को अधिक ग्लूकोज व ऑक्सीजन मिलती है। इस प्रकार भ्रूण माता के शरीर से अपना पोषण प्राप्त करता है।

प्रश्न 5.
यदि कोई महिला कॉपर-टी का प्रयोग कर रही है तो क्या यह उसकी यौन-संचरित रोगों से रक्षा करेगा?
उत्तर:
यदि कोई महिला कॉपर-टी का प्रयोग कर रही है तो यह उसकी यौन-संचरित रोगों से रक्षा नहीं करेगा।

Bihar Board Class 10 Science जीव जनन कैसे करते है Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
अलैंगिक जनन मुकुलन द्वारा होता है –
(a) अमीबा में
(b) यीस्ट में
(c) प्लैज्मोडियम में
(d) लेस्मानिया में
उत्तर:
(b) यीस्ट में

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन मानव में मादा जनन तंत्र का भाग नहीं है?
(a) अंडाशय
(b) गर्भाशय
(c) शुक्रवाहिका
(d) डिबवाहिनी
उत्तर:
(c) शुक्रवाहिका

प्रश्न 3.
परागकोश में होते हैं।
(a) बाह्यदल
(b) अंडाशय
(c) अंडप
(d) परागकण
उत्तर:
(d) परागकण

प्रश्न 4.
अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के क्या लाभ हैं?
उत्तर:
अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. लैंगिक जनन से जनन संतति में विविधता आती है।
  2. जीन के नए युग्मक बनते हैं जिसके कारण आनुवंशिक विविधिता का विकास होता है।
  3. नए जीवों के विकास में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

प्रश्न 5.
मानव में वृषण के क्या कार्य हैं?
उत्तर:
नर में प्राथमिक जनन अंग अंडाकार आकृति का वृषण होता है। नर में एक जोड़ी वृषण उदर गुहा के बाहर छोटे अंडानुमा मांसल संरचना में रहते हैं जिसे वृषण कोष कहते हैं। वृषण में शुक्राणु तथा टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन की उत्पत्ति होती है। वृषण कोष शुक्राणु बनने के लिए उचित ताप प्रदान करता है।

प्रश्न 6.
ऋतुस्राव क्यों होता है?
उत्तर:
यदि अंडाणु का निषेचन नहीं होता है तो वह एक दिन बाद नष्ट हो जाता है। गर्भाशय भी निषेचित अंडाणु को प्राप्त करने की तैयारी करता है। गर्भाशय की दीवार मोटी तथा स्पंजी हो जाती है। लेकिन निषेचन न होने पर ये धीरे-धीरे टूटती है और रुधिर व म्यूकस के रूप में योनि मार्ग से बाहर निकलती है। इस प्रक्रिया को रजोधर्म या ऋतुस्राव कहते हैं। अतः ऋतुस्राव निषेचन न होने की अवस्था में होता है।

प्रश्न 7.
पुष्प की अनुदैर्घ्य काट का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:

प्रश्न 8.
गर्भनिरोधन की विभिन्न विधियाँ कौन-सी हैं? (2011, 13, 14, 16, 17)
या परिवार नियोजन की स्थायी विधियाँ कौन-कौन सी हैं? किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2018)
उत्तर:
गर्भनिरोधन के लिए बहुत-सी विधियों का विकास किया गया है जो निम्नवत् हैं –

  1. अवरोधिका विधियाँ इन विधियों में कंडोम, मध्यपट और गर्भाशय ग्रीवा आच्छद का उपयोग किया जाता है। ये मैथुन के दौरान मादा जननांग में शुक्राणुओं के प्रवेश को रोकती हैं।
  2. रासायनिक विधियाँ इस प्रकार की विधि में स्त्री दो प्रकार – मुखीय गोलियाँ तथा योनि गोलियाँ प्रयोग करती है। ये गोलियाँ मुख्यतः हॉर्मोन्स से बनी होती हैं जो अंडाणु को डिम्बवाहिनी नलिका में उत्सर्जन से रोकती हैं।
  3. शल्य या स्थायी विधियाँ इस विधि में पुरुष शुक्रवाहिका तथा स्त्री की डिम्बवाहिनी नली के छोटे-से भाग को शल्यक्रिया द्वारा काट या बाँध दिया जाता है। इसे क्रमशः नर नसबंदी तथा स्त्री नसबंदी कहते हैं।

प्रश्न 9.
एक-कोशिक एवं बहुकोशिक जीवों की जनन पद्धति में क्या अंतर है?
उत्तर:
एक-कोशिक जीवों में केवल एक ही कोशिका होती है। उनमें जनन के लिए अलग से कोई ऊतक या अंग नहीं होता है। अत: उनमें जनन केवल द्विविखंडन या बहुविखंडन द्वारा ही हो सकता है। कुछ जीवों जैसे यीस्ट में मुकुलन द्वारा भी जनन होता है। बहुकोशिक जीवों का शरीर बहुत-सी कोशिकाओं से बना होता है। इनमें जनन के लिए अलग से ऊतक या जनन तंत्र होते हैं। अतः इनमें जनन लैंगिक व अलैंगिक दोनों प्रकार से होता है।

प्रश्न 10.
जनन किसी स्पीशीज़ की समष्टि के स्थायित्व में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
अपनी जनन क्षमता का उपयोग कर जीवों की समष्टि पारितंत्र में स्थान अथवा निकेत ग्रहण करते हैं। जनन के दौरान DNA प्रतिकृति का बनना जीव की शारीरिक संरचना एवं डिजाइन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है जो उसे विशिष्ट निकेत के योग्य बनाती है। अतः किसी प्रजाति (स्पीशीज़) की समष्टि के स्थायित्व का सम्बन्ध जनन से है।

प्रश्न 11.
गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनाने के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर:
जनन एक ऐसा प्रक्रम है जिसके द्वारा जीव अपनी समष्टि की वृद्धि करते हैं। एक समष्टि में जन्मदर एवं मृत्युदर उसके आकार का निर्धारण करते हैं। जनसंख्या का विशाल आकार बहुत लोगों के लिए चिन्ता का विषय है। इसका मुख्य कारण यह है कि बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्रत्येक व्यक्ति के जीवन-स्तर में सुधार लाना आसान कार्य नहीं है। अत: जनसंख्या की बढ़ती हुई संख्या पर नियन्त्रण रखना जरूरी है। इसलिए गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनानी चाहिए।

Bihar Board Class 10 Science जीव जनन कैसे करते है Additional Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवों में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं – (2014)
(a) वर्धी (कायिक) जनन द्वारा
(b) अलैंगिक जनन द्वारा
(c) लैंगिक जनन द्वारा
(d) स्पोर (बीजाणु) निर्माण द्वारा
उत्तर:
(c) लैंगिक जनन द्वारा

प्रश्न 2.
मुकुलन (Budding) द्वारा अलिंगी जनन निम्नलिखित में से किस जन्तु में होता है? (2017)
(a) मेंढक
(b) अमीबा
(c) केंचुआ
(d) हाइड्रा
उत्तर:
(d) हाइड्रा

प्रश्न 3.
लघु बीजाणु पैदा होते हैं – (2010)
(a) पुमंग में
(b) जायांग में
(c) पुंकेसरों में
(d) परागकोष में
उत्तर:
(d) परागकोष में

प्रश्न 4.
पुष्प में कितने भाग होते हैं? (2017)
(a) तीन
(b) चार
(c) पाँच
(d) छः
उत्तर:
(b) चार

प्रश्न 5.
एक पुष्प के स्त्रीकेसर के मध्य भाग को कहते हैं (2014)
(a) वर्तिकाग्र
(b) वर्तिका
(c) अण्डाशय
(d) अण्ड (बीजाण्ड)
उत्तर:
(b) वर्तिका

प्रश्न 6.
परागकणों का परागकोष से वर्तिकाग्र तक स्थानान्तरण कहलाता है। (2014)
(a) परागण
(b) अण्डोत्सर्ग
(c) निषेचन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) परागण

प्रश्न 7.
परागकण का जनन केन्द्रक नर युग्मक बनाता है – (2010)
(a) 4
(b) 2
(c) 3
(d) 1
उत्तर:
(b) 2

प्रश्न 8.
कीट परागण होता है – (2010)
(a) मक्का में
(b) वैलिस्नेरिया में
(c) सैल्विया में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) सैल्विया में

प्रश्न 9.
परागनली में नरयुग्मक की संख्या होती है – (2017)
(a) 1
(b) 2
(c) 3
(d) 8
उत्तर:
(b) 2

प्रश्न 10.
द्विनिषेचन विशेष लक्षण है – (2014)
या द्विनिषेचन पाया जाता है – (2015, 16)
(a) जन्तुओं का
(b) आवृतबीजी पादप का
(c) अनावृतबीजी पादप का
(d) शैवाल का
उत्तर:
(b) आवृतबीजी पादप का

प्रश्न 11.
द्विनिषेचन क्रिया में त्रिक संलयन के पश्चात् बनने वाले ऊतक का नाम है? (2011)
(a) इन्डोस्पर्म
(b) भ्रूण
(c) मूलांकुर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) इन्डोस्पर्म

प्रश्न 12.
पुष्पी पादपों में निषेचन होता है – (2009)
(a) बीजाण्ड में
(b) अण्डाशय में
(c) पराग नलिका में
(d) भ्रूणकोष में
उत्तर:
(d) भ्रूणकोष में

प्रश्न 13.
एन्जिओस्पर्स में निषेचनोपरान्त बीज कवच बनता है – (2012)
(a) द्वितीयक केन्द्रक से
(b) अध्यावरण से
(c) अण्डाशय भित्ति से
(d) भ्रूणपोष से
उत्तर:
(b) अध्यावरण से

प्रश्न 14.
निषेचन के बाद पुष्प का कौन-सा भाग फल में बदल जाता है? (2013, 15, 18)
(a) पुंकेसर
(b) वर्तिका
(c) अण्डाशय
(d) बीजाण्ड
उत्तर:
(c) अण्डाशय

प्रश्न 15.
निषेचन के दौरान परागकण से निकलने वाली परागनलिका सामान्यतः किसके द्वारा बीजाण्ड में प्रवेश करती है? (2016)
(a) अध्यावरण
(b) बीजाण्डकाय
(c) निभागी
(d) अण्डद्वार
उत्तर:
(d) अण्डद्वार

प्रश्न 16.
परिवार नियोजन की स्थायी विधि है – (2018)
(a) गर्भ निरोधक गोलियाँ
(b) निरोध का प्रयोग
(c) वैसेक्टॉमी
(d) गर्भ समापन (गर्भपात)
उत्तर:
(c) वैसेक्टॉमी

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कायिक प्रवर्धन की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
पौधे के किसी भी कायिक भाग से जब इसी अवस्था में जनन हो जाता है तो इसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं।

प्रश्न 2.
पुमंग एवं जायांग में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2014, 17)
उत्तर:
पुमंग पुष्प के नर जननांग हैं जबकि जायांग पुष्प के मादा जननांग हैं।

प्रश्न 3.
आवृतबीजी बाह्यअण्डप के अनुदैर्घ्य काट का नामांकित चित्र बनाइए। (2013, 17)
उत्तर:

प्रश्न 4.
फल तथा बीज निर्माण करने वाले पुष्प के भागों के नाम बताइए।
उत्तर:
फल अण्डाशय से तथा बीज बीजाण्ड से बनते हैं।

प्रश्न 5.
परिवार नियोजन से आप क्या समझते हैं? छोटे परिवार के महत्त्व को समझाइए। (2017)
उत्तर:
परिवार कल्याण हेतु बच्चों की संख्या सीमित कर परिवार को नियोजित करने की प्रक्रिया को परिवार नियोजन कहते हैं। यदि परिवार में बच्चों की संख्या सीमित होगी तो वह परिवार अधिक सुखी जीवन तथा अच्छा रहन-सहन रख सकेगा।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बीजरहित पौधों में जनन क्रिया किस विधि द्वारा होती है? उदाहरण भी दीजिए। (2013)
या पौधों में कायिक प्रजनन की दो विधियों का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए। (2012, 16)
या कायिक जनन किसे कहते हैं? तने द्वारा इस विधि का एक उदाहरण दीजिए। (2014, 17)
या कायिक जनन किसे कहते हैं? पौधों में इस विधि से क्या लाभ है? (2015, 17)
या पादपों में, अलैंगिक जनन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2016)
उत्तर:
बीजरहित पौधों में जनन क्रिया, कायिक जनन (अलैंगिक जनन) विधि द्वारा होती है। इसके अन्तर्गत पौधे के किसी कायिक अंग; जैसे-जड़, तना, पत्ती, कलिकाओं द्वारा नया पौधा तैयार हो जाता है। पौधों में कायिक जनन की दो प्रमुख विधियाँ कलम लगाना व दाब लगाना हैं।

1. कलम लगाना: (Cutting) इस विधि में तने के कलिका युक्त छोटे-छोटे टुकड़े काट लिए जाते हैं। इन टुकड़ों को कलम (cutting) कहते हैं। इनके निचले सिरों को उचित स्थान पर भूमि में दबा देते हैं, जिनसे कुछ दिनों के बाद जड़ें निकल आती हैं और उपस्थित कलिकाएँ वृद्धि करके नया पौधा बना लेती हैं। गुलाब, कैक्टस, अन्नास, गुड़हल आदि में हम कलम से ही
पौधे उगाते हैं। गन्ने में कलम को भूमि के अन्दर क्षैतिज अवस्था में दबा देते हैं।

2. दाब लगाना: (Layering) कुछ पौधों में हम पौधे की किसी शाखा को झुका कर नम मिट्टी में दबा देते हैं। कुछ समय बाद इससे जड़ें निकल आती हैं और उसके बाद नयी पौध बन जाती है। नयी पौध को इसके पैतृक पौधे से काटकर अलग कर देते हैं। यह वृद्धि करके पूर्ण पौधा बन जाता है। बेला, चमेली, कनेर आदि में यह विधि अपनायी जाती है।

कायिक जनन से लाभ –

  1. जिन पौधों में बीज नहीं बनते (जैसे – केला, अंगूर व अन्नास) इनमें कायिक जनन द्वारा नये पौधे उगाये जाते हैं।
  2. नये पौधे कम समय में उत्पन्न हो जाते हैं।
  3. नये पौधे मातृ पौधों के समान होते है। इनमें विभिन्नताएँ नहीं होती हैं।
  4. पौधों के विशेष ऐच्छिक लक्षणों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनाये रखा जा सकता है।

प्रश्न 2.
स्वपरागण व परपरागण में अन्तर बताइए तथा एक-एक उदाहरण दीजिए। (2011, 16)
या परपरागण के महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2015, 18)
या स्वपरागण के लिए आवश्यक अनुकूलन तथा इनके लाभ एवं हानियाँ बताइए। (2018)
उत्तर:
स्वपरागण व परपरागण में अन्तर क्र०सं० स्वपरागण –

प्रश्न 3.
निषेचन क्या है? बाह्य एवं आंतरिक निषेचन में अन्तर बताइए। (2014, 17)
उत्तर:
युग्मकों (एक नर व एक मादा) के संलयन को निषेचन कहते हैं। जब निषेचन मादा जन्तु के शरीर के बाहर होता है तो इसे बाह्य निषेचन कहते हैं। इसके विपरीत यदि निषेचन मादा जन्तु के शरीर के अन्दर होता है तो इसे आन्तरिक निषेचन कहते हैं।

प्रश्न 4.
पौधों तथा जंतुओं के अलैंगिक व लैंगिक जनन में अन्तर बताइए। (2014, 16, 18)
उत्तर:
अलैंगिक व लैंगिक जनन में अन्तर –

प्रश्न 5.
एक मानव शुक्राणु का नामांकित चित्र बनाइए तथा उस कोशिका का उल्लेख कीजिए जिससे इसका निर्माण होता है। (2013, 17)
उत्तर:
शुक्राणु एक विशिष्ट, दीर्घित (elongated), पुच्छयुक्त कोशिका है जो पोषक तरल (वीर्य) में रहती है। यह नर युग्मक है, जिसका निर्माण शुक्राणु जन कोशिका के अर्द्धसूत्री विभाजन से होता है। वीर्य में सहस्रों की संख्या में शुक्राणु होते हैं।

प्रश्न 6.
जनसंख्या विस्फोट क्या है ? जनसंख्या वृद्धि से होने वाली हानियाँ तथा बचाव का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2012)
या मानव जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्यायें (चार हानियाँ ) बताइये। (2012)
या जनसंख्या वृद्धि का मानव समाज पर दुष्प्रभाव पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए। (2014)
या जनसंख्या वृद्धि से होने वाली हानियों का उल्लेख कीजिए तथा इसकी वृद्धि को रोकने के उपाय बताइए। (2016)
उत्तर:
किसी क्षेत्र विशेष में जनसंख्या का उस स्थिति तक बढ़ जाना कि उस क्षेत्र में उपलब्ध खाद्य सामग्री व जल तथा अन्य प्राकृतिक संसाधन उस जनसंख्या के लिए अपर्याप्त हो जाए जनसंख्या विस्फोट कहलाता है। इससे निम्नलिखित प्रमुख हानियाँ (समस्यायें) उत्पन्न होती हैं –

  1. अपर्याप्त भोजन, कुपोषण आदि के कारण बच्चों की मृत्यु दर बढ़ना तथा दुर्बल सन्तति उत्पन्न होना।
  2. अपर्याप्त आवासों के कारण गन्दे स्थानों पर रहना, जिससे अनेक बीमारियाँ फैलती हैं।
  3. अपर्याप्त वस्त्रों व साधनों के कारण विषम परिस्थितियों ( भीषण गर्मी व सर्दी) में अकाल मृत्यु।
  4.  अपर्याप्त रोजगार के अवसरों के कारण बेरोजगारी जो मानसिक तनाव व अपराधों को बढ़ावा देती है।

जनसंख्या वृद्धि को रोकने के निम्नलिखित बचाव हैं –

  1. शिक्षा की सुविधाओं का अत्यधिक विस्तार होना चाहिए।
  2. प्रति परिवार बच्चों की संख्या निर्धारित की जानी चाहिए।
  3. विवाह की आयु स्त्रियों के लिए कम से कम 21 वर्ष तथा पुरुषों के लिए 25 वर्ष की जानी चाहिए।
  4. गर्भपात को ऐच्छिक एवं सुविधापूर्ण बनाया जाना चाहिए।
  5. परिवार कल्याण कार्यक्रमों को अधिक प्रभावी बनाना चाहिए।

प्रश्न 7.
भारत में जनसंख्या वृद्धि के कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर:
भारत में जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख चार कारण निम्नवत् हैं –

  1. जन्म दर का अत्यधिक तथा मृत्यु दर का कम होना।
  2. विवाह बन्धन, विवाह की आयु कम तथा वंश चलाने हेतु सन्तान, वह भी पुत्र की अनिवार्यता।
  3. अनेक प्रकार के अन्धविश्वास तथा अशिक्षा।
  4. सन्तति निरोध का अल्प-ज्ञान होना।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुष्प का नामांकित चित्र बनाइए। इसके विभिन्न चक्रों के कार्य बताइए। (2012)
उत्तर:
आवृतबीजी पौधों में नर तथा मादा जननांग पुष्पों में स्थित होते हैं। पुष्प को रूपान्तरित शाखा कहते हैं। इसमें निम्नलिखित चार चक्र (whorls) होते हैं –

  1. बाह्यदल: यह हरे रंग की पत्ती सदृश रचनाओं का चक्र है, जो पुष्प के भीतरी चक्रों की रक्षा करता है।
  2. दल: ये रंगीन होते हैं तथा परागण की क्रिया के लिए कीटों को आकर्षित करते हैं।
  3. पुमंग या एंड्रीशियम: नर जनन अंग इसकी प्रत्येक इकाई को पुंकेसर कहते हैं। पुंकेसर का अगला फूला हुआ भाग परागकोष होता है। परागकोष या एंथर के अन्दर नरयुग्मक या परागकण बनते हैं। परागकण में एकसूत्री नर केन्द्रक होता है।
  4. जायांग या गाइनीशियम: मादा जनन अंग इसकी प्रत्येक इकाई को अण्डप या काल कहते हैं। काल का निचला फूला हुआ भाग अण्डाशय होता है जिसमें बीजाण्ड या ओव्यूल होता है। बीजाण्ड में मादा युग्मक या अण्ड बनता है। बीजाण्ड से बीज बनता है।

प्रश्न 2.
पुष्पी पौधों में परागण के उपरान्त निषेचन तथा बीज बनने तक जनन की प्रकियाओं को समझाइये।
या द्विनिषेचन या निषेचनोपरान्त पुष्प में होने वाले परिवर्तनों को समझाइए।
या फूलों वाले पौधों में निषेचन क्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए। परागण को परिभाषित कीजिए।
या परागण की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए तथा इसके महत्त्व को समझाइए।
या पर-परागण किसे कहते हैं? पर-परागण की विभिन्न विधियों का केवल नाम लिखिए।
या निषेचन के बाद पुष्प के विभिन्न भागों में होने वाले परिवर्तनों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
या द्विनिषेचन पर टिप्पणी लिखिए। (2012, 13, 17)
या पर-परागण को परिभाषित कीजिए। इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2018)
उत्तर:
पौधों में परागण से बीज निर्माण तक की अवस्थाएँ लैंगिक जनन के सभी भाग पुष्प में होते हैं।
1. परागकण तथा परागण:
परागकोषों में परागकण बनने के बाद आवश्यक है कि परागकण के –
नर केन्द्रक मादा युग्मक (अण्ड) तक पहुँचे। पुष्प के परागकोष से परागकणों के उसी पुष्प अथवा दूसरे पौधों के किसी पुष्प के वर्तिकान पर पहुँचने की क्रिया को परागण (pollination) कहते हैं। जब एक पुष्प में परागकोषों से परागकण निकलकर उसी पुष्प के वर्तिकान पर गिर जाते हैं तथा अंकुरित हो जाते हैं तो वह क्रिया स्वपरागण (self pollination) तथा जब एक पुष्प से परागकण किसी दूसरे पुष्प (उसी जाति) के वर्तिकाग्र पर आते हैं तो इसे परपरागण (cross pollination) कहते हैं।

इस प्रकार, सभी एकलिंगी पुष्पों में परपरागण ही होता है, किन्तु द्विलिंगी पुष्पों में दोनों में से किसी भी प्रकार का परागण हो सकता है। इनमें परपरागण अधिक महत्त्वपूर्ण है। परपरागण में परागकणों को एक पुष्प से दूसरे पौधे पर उपस्थित पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुँचाना होता है। इसके लिए किसी-न-किसी साधन या कारक की आवश्यकता पड़ती है। परपरागण के इन कारकों को कर्मक (agents) भी कहते हैं, और ये सामान्यत: वायु, जल अथवा जन्तु (प्रायः कीट) होते हैं। इन्हीं कारकों के आधार पर परपरागण की विभिन्न विधियाँ कीट-परागण, वायु-परागण, जल-परागण आदि होती हैं।

2. परागकण का अंकुरण:
परागण के द्वारा वर्तिकान पर आये हुए परागकण वर्तिकाग्र के तरल पदार्थ को अवशोषित कर फूल जाते हैं। उनका अन्त:कवच अंकुरण छिद्र (germ pore) से एक नलिका के रूप में बाहर निकलता है जिसे पराग नलिका (pollen tube) कहते हैं। इस समय परागकण का केन्द्रक, दो केन्द्रकों, वर्धी केन्द्रक तथा जनन केन्द्रक में विभाजित हो जाता है। वर्धी केन्द्रक नलिका में आ जाता है और नलिका केन्द्रक कहलाता है। जनन केन्द्रक दो बराबर भागों में विभाजित होकर दो अचल, नर युग्मक (male gametes) बनाता है, जो पराग नलिका में आ जाते हैं।

3. पराग नलिका का बढ़ना तथा भ्रूणकोष में पहुँचना:
पराग नलिका वर्तिकाग्र के ऊतक में होकर वर्तिका में पहुँचती है। यह दोनों नर युग्मकों तथा अपने सिरे पर उपस्थित नलिका केन्द्रक के साथ वर्तिका में नीचे की ओर बढ़ती ही रहती है। इस प्रकार पराग नलिका वर्तिका में से होती हई अण्डाशय में पहुँचती है और बीजाण्ड में प्रवेश कर नर युग्मकों को भ्रूणकोष (embryo sac) के जीवद्रव्य में मुक्त कर देती है [देखें चित्र (b)]

4. निषेचन बीजाण्ड के भ्रूणकोष (embryo sac) में प्रवेश करने के बाद पराग नलिका का शीर्ष गल जाता है तथा इसमें उपस्थित नलिका केन्द्रक भी लुप्त हो जाता है। दोनों नर युग्मक अब भ्रूणकोष के जीवद्रव्य में मुक्त हो जाते हैं और इनमें से एक अण्ड-कोशिका में घुसकर उसके केन्द्रक के साथ संलयित (fuse) हो जाता है। इस प्रकार, मुख्य निषेचन क्रिया समाप्त हो जाती है। इसमें युग्मनज (zygote) का निर्माण होता है। यह युग्मनज आगे चलकर भ्रूण बनाता है।

दूसरा नर युग्मक, दोनों ध्रुवीय केन्द्रकों (या द्विगुणित केन्द्रक) के साथ संलयन करके एक त्रिगुणित केन्द्रक बनाता है जिसे प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक कहते हैं। इस क्रिया को त्रिक संलयन कहते हैं। प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक बार-बार विभाजित हो जाता है तथा इसके फलस्वरूप सभी केन्द्रकों के चारों ओर भित्तियाँ बन जाती हैं। इस प्रकार जो ऊतक बनता है उसे भ्रूणपोष कहते हैं। भ्रूणपोष में भोज्य-पदार्थ एकत्रित हो जाते हैं। यह भ्रूण के परिवर्धन के समय उसे पोषण प्रदान करता है। दोहरा निषेचन होने के कारण ही, आवृतबीजियों में यह क्रिया द्विनिषेचन (double fertilization) कहलाती है।

5. निषेचन के पश्चात् बीज का निर्माण:
निषेचन के पश्चात् बीजाण्ड के भीतर युग्मनज से भ्रूण का तथा त्रिगुणित केन्द्रक से भ्रूणपोष का निर्माण होता है। बीजाण्डों का आकार बढ़ जाता है। अध्यावरण सख्त होकर बीजावरण बनाते हैं। जिस स्थान पर बीजाण्ड बीजाण्डवृन्त से जुड़ता है, वहाँ एक चिह्न बन जाता है जो वृन्तक कहलाता है। भोज्य पदार्थ या तो बीजपत्र में, या भ्रूणपोष में एकत्र हो जाते हैं।

पानी की मात्रा धीरे-धीरे कम हो जाती है। कोमल बीजाण्ड अब कड़ी व शुष्क रचना में बदल जाता है। धीरे-धीरे बीजाण्ड के अन्दर की जैविक क्रियाएँ रुक जाती हैं तथा भ्रूण सुषुप्तावस्था में पहुँच जाता है। अत: बीजाण्ड बीजावरण से घिरे, भोजन संचित किये हुए तथा सुषुप्त भ्रूण को अपने अन्दर समेटे होते हैं, इस रचना को बीज कहते हैं।

प्रश्न 3.
प्रजनन क्या है? नामांकित चित्र की सहायता से नर अथवा मादा मानव जनन तंत्र का वर्णन कीजिए। (2012, 14)
उत्तर:
जीवधारियों द्वारा लैंगिक क्रियाओं के फलस्वरूप अपने जैसी सन्तानों की उत्पत्ति करने की क्रिया को प्रजनन कहते हैं। पुरुष (नर ) जनन तन्त्र पुरुषों के जनन तन्त्र में एक जोड़ा वृषण (testes) तथा अन्य कई सहायक अंग होते हैं। ये निम्नलिखित हैं –

1. वृषण: (Testes) मनुष्य में लगभग 5 सेमी लम्बे तथा 2.5 सेमी मोटे, गुलाबी रंग के तथा अण्डाकार दो वृषण पाये जाते हैं। ये वृषण उदरगुहा के निकट दो छोटी-छोटी थैलियों जैसी रचनाओं, वृषण कोष (scrotal sacs) में स्थित होते हैं। वृषण कोष उदर गुहा से वंक्षण नाल (inguinal canal) द्वारा सम्बन्धित रहते हैं। वृषणों का उदरगुहा के बाहर वृषण कोषों में स्थित होने का यह लाभ है कि शुक्राणु उदरगुहा के अधिक ताप से बच जाते हैं तथा वृषण कोषों के कम ताप पर इनका परिपक्वन सहज हो जाता है।

प्रत्येक वृषण की संरचना एक पेशी से युक्त लचीले वृषण खोल (testicular capsule) के अन्दर संयोजी ऊतक से बने पिण्डकों से होती है। प्रत्येक पिण्डक में अत्यधिक कुण्डलित शुक्रजनन नलिकाएँ (seminiferous tubules) एक ढीले संयोजी ऊतक में निलम्बित होती हैं। इन नलिकाओं के अन्दर जनन एपिथीलियम कोशिकाओं से शुक्रजनन (spermatogenesis) के द्वारा शुक्राणुओं (sperms) का निर्माण होता है।

2. अधिवृषण या एपिडिडाइमिस: (Epididymis) प्रत्येक वृषण से चिपकी एक लम्बी, संकरी व चपटी संरचना होती है। यह लगभग 6 मीटर लम्बी व अत्यधिक कुण्डलित नली होती है जो वृषण की अपवाहक नलिकाओं के मिलने से बनती है। इसका निचला भाग लचीले तन्तुओं के बने गुबरनैकुलम (gubernaculum) नामक गुच्छे द्वारा वृषण कोष की पिछली भित्ति से जुड़ा रहता है। इसी प्रकार के लचीले तन्तु एपिडिडाइमिस के ऊपरी भाग को वंक्षण नाल में होकर उदरगुहा की पृष्ठ भित्ति से जोड़ते हैं। इन्हीं तन्तुओं के साथ वृषण से सम्बन्धित धमनी, शिरा, तन्त्रिका आदि भी वंक्षण नाल से होकर आती-जाती हैं। ये सभी संयोजी ऊतक के साथ मिलकर छड़ जैसे आकार का वृषण दण्ड (spermatic cord) बनाते हैं।

3. शुक्रवाहिनियाँ: (Vas deferens) अधिवृषण के निचले पश्च भाग से लगभग 45 सेमी लम्बी शुक्रवाहिनी (vas deferens) निकलती है। यह पहले वंक्षण नाल में होकर उदरगुहा में मूत्राशय के पृष्ठ तल पर स्थित अपनी ओर की मूत्रवाहिनी पर एक फन्दा (loop) बनाती है। बाद में यह नीचे मुड़कर पास में ही स्थित शुक्राशय की छोटी-सी नलिका से जुड़ जाती है।

4. शुक्राशय: (Seminal vesicles) ये मूत्राशय के पीछे स्थित लगभग 5 सेमी लम्बी, वलित थैली के समान संरचनाएँ होती हैं। इनकी भित्तियाँ ग्रन्थिल होती हैं। इनमें एक हल्का पीला, क्षारीय, चिपचिपा तथा पोषक तरल स्रावित होता है। यही तरल वीर्य (semen) का अधिकांश (लगभग 60%) भाग बनाता है जिसमें शुक्राणु गति कर सकते हैं। शुक्राशय से निकलने वाली छोटी-सी नलिका शुक्रवाहिनी के साथ मिलकर स्खलन नलिका (ejaculatory duct) बनाती है जो मूत्रमार्ग (urethra) में खुलती है।

5. शिश्न: (Penis) यह पेशीय मैथुनांग (copulatory organ) है। शिश्न की संरचना पेशियों एवं रुधिर कोटरों (blood sinuses) से होती है।

6. सहायक ग्रन्थियाँ: (Accessory glands) निम्नलिखित प्रमुख ग्रन्थियाँ जनन की किसी-न-किसी क्रिया में सहायता करने के लिए विशेष स्राव बनाती हैं।

(i) प्रोस्टेट ग्रन्थियाँ: (Prostate glands) एक जोड़ा, द्विपालित ग्रन्थियाँ मूत्राशय के मूत्रमार्ग में खुलने के स्थान से लगी रहती हैं। इससे विशेष गन्धयुक्त, पतला तथा दूधिया तरल स्रावित होता है। यह तरल वीर्य का लगभग 25% भाग बनाता है।

(ii) काउपर ग्रन्थियाँ: (Cowper’s glands) एक जोड़ा, फ्लास्क के आकार की ये ग्रन्थियाँ मूत्रमार्ग के शिश्न में प्रवेश के स्थान पर खुलती हैं। इनसे निकलने वाला स्राव श्लेष्मी तथा क्षारीय होता है। यह वीर्य के साथ मिलकर मार्ग को चिकना बनाता है तथा अम्लता को नष्ट करता है। वीर्य तथा उसके कार्य यह पुरुष के जननांगों के परिपक्वन के बाद बनने वाला एक सफेद तरल पदार्थ है।

इसी तरल पदार्थ में शुक्राणु, श्लेष्मक तथा नर जननांगों में उपस्थित सहायक ग्रन्थियों का स्राव होता है। यह शुक्राणुओं का पोषण करता है। यह एक तरल माध्यम का कार्य करता है जिससे शुक्राणु सुरक्षित स्थानान्तरित हो सकें। मनुष्य में शुक्राणु (Sperms in Man) शुक्राणु एक विशिष्ट, दीर्घित (elongated), पुच्छयुक्त कोशिका है जो पोषक तरल (वीर्य) में रहती है। यह नर युग्मक है। वीर्य में सहस्त्रों की संख्या में शुक्राणु होते हैं।


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