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BSEB Class 10 Social Science Economics Chapter 4 हमारी वित्तीय संस्थाएँ Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 10th Social Science Economics Chapter 4 हमारी वित्तीय संस्थाएँ Book Answers |
Bihar Board Class 10th Social Science Economics Chapter 4 हमारी वित्तीय संस्थाएँ Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 10th |
Subject | Social Science Economics Chapter 4 हमारी वित्तीय संस्थाएँ |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 10th Social Science Economics Chapter 4 हमारी वित्तीय संस्थाएँ Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
I. सही विकल्प चुनें।
प्रश्न 1.
गैर-संस्थागत वित्त प्रदान करने वाला सबसे लोकप्रिय साधन है
(क) देशी बकर
(ख) महाजन
(ग) व्यापारी
(घ) सहकारी बैंक
उत्तर-
(ग) व्यापारी
प्रश्न 2.
इनमें से कौन संस्थागत वित्त का साधन है ?
(क) सेठ-साहूकार
(ख) रिश्तेदार
(ग) व्यावसायिक बैंक
(घ) महाजन
उत्तर-
(ग) व्यावसायिक बैंक
प्रश्न 3.
भारत के केन्द्रीय बैंक कौन हैं ?
(क) रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया
(ख) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
(ग) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
(घ) पंजाब नेशनल बैंक
उत्तर-
(क) रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया
प्रश्न 4.
राज्य में कार्यरत केन्द्रीय सहकारी बैंक की संख्या कितनी है?
(क) 50
(ख) 75
(ग) 35
(घ) 25
उत्तर-
(घ) 25
प्रश्न 5.
दीर्घकालीन ऋण प्रदान करनेवाली संस्था कौन सी है
(क) कृषक महाजन
(ख) भूमि विकास बैंक
(ग) प्राथमिक कृषि साख समिति
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ख) भूमि विकास बैंक
प्रश्न 6.
भारत की वित्तीय राजधानी (Financial Capital) किस शहर को कहा गया है
(क) मुंबई
(ख) दिल्ली
(ग) पटना
(घ) बंगलौर
उत्तर-
(क) मुंबई
प्रश्न 7.
सहकारिता प्रांतीय सरकारों का हस्तांतरित विषय कब बनी?
(क) 1929 ई.
(ख) 1919 ई.
(ग) 1918 ई.
(घ) 1914 ई.
उत्तर-
(ख) 1919 ई
प्रश्न 8.
देश में अभी कार्यरत क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की संख्या है
(क) 190
(ख) 192
(ग) 199
(घ) 196
उत्तर-
(घ) 196
प्रश्न 9.
व्यावसायिक बैंक का राष्ट्रीयकरण कब किया गया-
(क) 1966 ई.
(ख) 1980 ई०
(ग) 1969 ई.
(घ) 1975 ई.
उत्तर-
(ग) 1969 ई.
II. रिक्त स्थानों को भरें:
प्रश्न 1.
साख अथवा ऋण की आवश्यकताओं की पूर्ति……..संस्थानों के द्वारा की जाती है।
उत्तर-
वित्तीय
प्रश्न 2.
ग्रामीण क्षेत्र में साहूकार द्वारा प्राप्त ऋण की प्रतिशत मात्रा…………..है।
उत्तर-
30
प्रश्न 3.
प्रतिशत प्राथमिक कृषि साख समिति कृषकों को ऋण प्रदान करती है।
उत्तर-
अल्पकालीन
प्रश्न 4.
भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना…………..में हई।
उत्तर-
1935 ई.
प्रश्न 5.
वित्तीय संस्थाएं किसी भी देश का………..माना जाता है।
उत्तर
मेरूदंड
प्रश्न 6.
स्वयं सहायता समूह में लगभग………..सदस्य होते हैं।
उत्तर-
15-20
प्रश्न 7.
SHG में बचत और ऋण संबंधित अधिकार निर्णय लेते हैं।
उत्तर-
समूह के सदस्य
प्रश्न 8.
व्यावसायिक बैंक……प्रकार की जमा राशि को स्वीकार करते हैं।
उत्तर-
चार
प्रश्न 9.
भारतीय पूँजी बाजार……… वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
उत्तर-
दीर्घकालीन
प्रश्न 10.
सूक्ष्म वित्त योजना के द्वारा …… पैमाने पर साख अथवा ऋण की सुविधा उपलब्ध होता है।
उत्तर-
छोटे या लघु
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
वित्तीय संस्थान स आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
वित्तीय संस्थान मौद्रिक क्षेत्र में देश अथवा राज्य की ऐसी संस्थाओं को कहते हैं, जो लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु साख एवं मुद्रा संबंधी कार्यों का संपादन करती हैं। वित्तीय संस्थान के द्वारा कृषि, उद्योग, व्यापार जैसे आर्थिक कार्यों के लिए मौद्रिक प्रबंधन किया जाता है। ये संस्थाएँ समाज के आर्थिक विकास के लिए उनकी आवश्यकता के अनुरूप अल्पकालीन, मध्यकालीन और दीर्घकालीन साख अथवा ऋण की सुविधा प्रदान करती हैं। किसी भी आर्थिक और व्यावसायिक कार्य के संपादन के लिए रुपये की आवश्यकता होती है। किसी भी उद्यमी के पास इतने अधिक आर्थिक साधन नहीं होते कि वे अपने बलबूते पर अपने व्यवसाय को चला सकें। ऐसी परिस्थिति में वित्तीय संस्थान उनके लिए उनकी आवश्यकता एवं माँग के अनुरूप वित्तीय साधन उपलब्ध कराती है।
प्रश्न 2.
राज्य के वित्तीय संस्थान को कितने भागों में बाँटा जाता है, संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
(a) संस्थागत वित्तीय संस्थाएँ तथा (b) गैर-संस्थागत वित्तीय संस्थाएं। संस्थागत वित्तीय संख्याओं के अन्तर्गत सहकारी बैंक, प्राथमिक सहकारी समितियाँ, भूमि विकास बैंक व्यावसायिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, नाबार्ड आते हैं। :गैर-संस्थागत वित्तीय संस्थाओं में महाजन, सेठ-साहुकार, किसान, रिश्तेदार आदि आते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण के सहज स्रोत हैं।
प्रश्न 3.
किसानों को साख अथवा ऋण की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर-
किसानों को साख अथवा ऋण की आवश्यकता इसलिए पड़ती है कि अधिकांश किसान छोटे या सीमांत श्रेणी के होते हैं जिनके पास आय की कमी है तथा वे अपना बचत नहीं के बराबर कर पाते हैं। परिणामस्वरूप कृषि एवं उससे संबंधित उद्योगों में अपेक्षित निवेश नहीं कर पाते हैं। इसके लिए उन्हें वित्तीय संस्थाओं द्वारा प्राप्त साख अथवा ऋण की आवश्यकता पड़ती है।
प्रश्न 4.
व्यावसायिक बैंक कितने प्रकार की जमा राशि को स्वीकार करते हैं ? संक्षिप्त वर्णन करों
उत्तर-
व्यावसायिक बैंक प्रायः चार प्रकार की जमा राशि को स्वीकार करते हैं जो निम्नलिखित हैं-
- स्थायी जमा स्थायी जमा खाते में रुपया एक निश्चित अवधि जैसे एक वर्ष या इससे अधिक के लिए भी जमा किया जाता है। इस निश्चित अवधि के अन्दर साधारणतया यह रकम : नहीं निकाली जा सकती है। इस प्रकार के जमा को सावधि जमा भी कहा जाता है। इस अवधि के अन्दर जमा की गयी राशि पर बैंक आकर्षक ब्याज भी देते हैं।
- चालू-चालू जमा खाते में रुपया जमा करने वाला अपनी इच्छानुसारं रुपया जमा कर सकता है अथवा निकाल सकता है। इसमें किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं रहता है। सामान्यतः इस प्रकार का जमा व्यापारियों तथा बड़ी-बड़ी संस्थाओं के लिए विशेष सुविधाजनक होता है। उ माँग जमा भी कहते हैं।
- संचयी जमा-इस प्रकार के खाते में रुपया जमा करने वाला जब चाहे रु कर सकता है। किन्तु रुपया निकालने का अधिकार सीमित रहता है, वह भी एक निश्चित रकम से अधिक नहीं। इसमें चेक की सुविधा भी प्रदान की जाती है।
- आवती जमा-इस प्रकार के खाते में व्यावसायिक बैंक साधारणतया अपने ग्राहकों से तिमाह एक निश्चित रकम जमा के रूप में एक निश्चित अवधि जैसे 60 माह या 72 माह के लए ग्रहण करता है और इसके बाद एक निश्चित रकम भी देता है। इसी प्रकार का एक अन्य जमा संचयी समयावधि जमा भी होता है।
प्रश्न 5.
सहकारिता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
सहकारिता का अर्थ है “एक साथ मिल-जुलकर कार्य करना” लेकिन अर्थशास्त्र में : इस शब्द का प्रयोग अधिक व्यापक अर्थ में किया जाता है, “सहकारिता वह संगठन है जिसके द्वारा दो या दो से अधिक व्यक्ति स्वेच्छापूर्वक मिल-जुलकर समान स्तर पर आर्थिक हितों की वृद्धि करते हैं।” इस प्रकार सहकारिता उस आर्थिक व्यवस्था को कहते हैं जिसमें मनुष्य किसी आर्थिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिल-जुलकर कार्य करते हैं। सहकारिता का सिद्धांत यह भी बतलाता है कि विपन्न एवं शक्तिहीन व्यक्ति एक-दूसरे के साथ मिलकर व्यापारिक सहयोग के शरा ऐसे भौतिक लाभ अथवा सुख प्राप्त कर सकें जो धनी और शक्ति-सम्पन्न व्यक्तियों को उपलब्ध हो और जिससे उनका नैतिक विकास हो। सहकारिता के द्वारा जीवन के ऐसे उच्च एवं अधिक समुन्नत स्तर की वास्तविक सिद्धि की आशा की जाती है जिसमें श्रेष्ठतम कृषि तथा समृद्ध जीवन संभव हो सके। अंततः इसका सिद्धांत “सब प्रत्येक के लिये और प्रत्येक सब के लिये है।”
प्रश्न 6.
स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
स्वयं सहायता समूह वास्तव में ग्रामीण क्षेत्र में 15-20 व्यक्तियों (खासकर महिलाओं) का एक अनौपचारिक समूह होता है जो अपनी बचत तथा बैंकों से लघु ऋण लेकर अपने सदस्यों के पारिवारिक जरूरतों को पूरा करता है और विकास गतिविधियाँ चलाकर गांवों के विकास और पहिला सशक्तिकरण में योगदान करता है।
प्रश्न 7.
भारत में सहकारिता की शुरूआत किस प्रकार हुई, संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
भारत में सहकारिता की शुरूआत पिछली शताब्दी के प्रारंभ में हुई। इसमें निर्धन तथा कमजोर वर्ग के लोगों के उत्थान एवं किसानों को सस्ती दर पर ऋण उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सहकारी समितियों की स्थापना पर जोर दिया जाने लगा। इसके लिए सर्वप्रथम 1904 ई. में एक “सहकारिता साख समिति विधान” पारित हुआ जिसके अनुसार गाँव या नगर में कोई भी स व्यक्ति मिलकर सहकारी साख समिति की स्थापना कर सकते थे।
इसमें सुधार लाने तथा इसके क्षेत्र को विस्तृत रूप देने के लिए 1912 ई. में एक और अधिनियिम बनाया गया। 1919 ई. के राजनीतिक सुधारों के अनुसार सहकारिता प्रांतीय सरकारों का हस्तांतरित विषय बन गयी। अतएव इसके संचालन का भार अब राज्य सरकारों के हाथ में आ गया।
सहकारिता समितियों की वित्तीय आवश्यकता की पूर्ति सहकारी बैंक के द्वारा होती है। जो हमारे देश में तीन स्तर पर काम करते हैं। पहला स्तर प्राथमिक सहकारी समितियाँ, दूसरा स्तर केन्द्रीय सहकारी बैंक तीसरा स्तर राज्य सहकारी बैंक हैं।
प्रश्न 8.
सूक्ष्म वित्त योजना को परिभाषित करें।
उत्तर-
सूक्ष्म वित्त योजना के द्वारा गाँव, कस्बा और जिला में गरीब परिवारों को स्वयं सहायता समूह से जोड़कर ऋण मुहैया कराया जाता है। इससे छोटे पैमाने पर साख अथवा ऋण की सुविधा प्रदान होती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान किसे कहते हैं ? इसे कितने भागों में बाँटा जाता है ? वर्णन करें।
उत्तर-
ऐसी वित्तीय संस्थाएं जो देश के लिए वित्तीय और साख नीतियों का निर्धारण एवं निर्देशन करती हैं तथा राष्ट्रीय स्तर पर वित्त प्रबंधन के कार्यों का संपादन करती हैं उन्हें हम राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ कहते है-
राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं को दो भागों में बाँटा जाता है-
(i) भारतीय मदा बाजार भारतीय मुद्रा बाजार ऐसा मौद्रिक बाजार है जहाँ उद्योग एव व्यवसाय के क्षेत्र के लिए अल्पकालीन एवं मध्यकालीन वित्तीय व्यवस्था एवं प्रबंधन किया जात है। भारतीय मुद्रा बाजार को संगठित और असंगठित क्षेत्रों में विभक्त किया जाता है। संगठित क्षेत्र में वाणिज्य बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक एवं विदेशी बैंक शामिल किये जाते हैं जबकि असंगठित क्षेत्र में देशी बैंकर जिनमें गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ शामिल की जाती हैं।
(ii)भारतीय पंजी बाजार भारतीय पूंजी बाजार मुख्यतः दीर्घकालीन पूँजी उपलब्ध करातः है। दीर्घकालीन पूँजी की मांग बड़े-बड़े उद्योग घराने एवं सार्वजनिक निर्माण कार्यों के लिए होत है। इसका वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है
भारतीय पंजी-(i) प्रतिभूति बाजार- इसके अन्तर्गत प्राथमिक बाजार और द्वितीयक बाजा आते हैं। (ii) औद्योगिक बाजार। (iii) विकास वित्त संस्थान। (iv) गैर-बैंकिंग वित्त कम्पनियाँ।
भारतीय पूंजी बाजार मूलतः इन्हीं चार वित्तीय संस्थानों पर आधारित है जिसके चल राष्ट्र-स्तरीय सार्वजनिक विकास जैसे-सड़क, रेलवे, अस्पताल, शिक्षण-संस्थान, विद्युत उत्पादन संयंत्र एवं बड़े-बड़े निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग संचालित किये जाते हैं। फलस्वरूप राष्ट्र
के निर्माण में इन वित्तीय संस्थानों का काफी योगदान होता है। भारत की वित्तीय राजधानी मुम्बई में एक सुसंगठित बाजार है जिसके माध्यम से औद्योगिक क्षेत्रों के लिए वित्त की व्यवस्था होती है। भारत को यह पूंजी बाजार इतना दृढ़ है कि वर्तमान में विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का जो दौ चल रहा है उसमें विश्व के अन्य देशों की अपेक्षाकृत कम प्रभावित हुआ है। मुंबई के जिस जगह पर इस पूंजी बाजार का प्रधान क्षेत्र है उसे दलाल स्ट्रीट कहा जाता है।
प्रश्न 2.
राज्य स्तरीय संस्थागत वित्तीय स्रोत के कार्यों का वर्ण करें
उत्तर-
राज्य स्तरीय संस्थागत वित्तीय स्रोत के निम्नलिखित कार्य हैं-
- सरकारी बैंक के कार्य-इसके माध्यम से राज्य के किसानों को अल्पकालीन मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है।
- प्राथमिक सहकारी समितियों के कार्य उत्पादक कार्यों के लिए अल्पकालीन (1 वा के लिए) ऋण देती है परन्तु विशेष परिस्थितियों में इनकी अवधि 3 वर्ष तक बढ़ायी जाती है
- भूमि विकास बैंक के कार्य राज्य में किसानों को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करने व लिए भूमि बंधक बैंक खोला गया था, जिसे अब भूमि विकास बैंक कहा जाता है। यह किसान की भूमि को बंधक रखकर कृषि में स्थायी सुधार एवं विकास के लिए दीर्घकालीन ऋण प्रदान करता है। ट्रैक्टर, पावर टीलर, पंपिंग सेट, मकान बनाने या पुराने ऋणों का भुगतान, कृषि में स्थार्य सुधार के लिये 15 से 20 वर्षों तक का ऋण भूमि विकास बैंक द्वारा प्राप्त होता है।
- व्यावसायिक बैंक के कार्य व्यावसायिक बैंक अधिक मात्रा में किसानों को ऋण प्रदान करती है। यह राज्य में किसानों को साख की सुविधा प्रदान करती है।
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के कार्य-यह राज्य में साख की सुविधा प्रदान करती है। छोले । एवं सीमांत किसानों, कारीगरों तथा अन्य कमजोर वर्गों की जरूरतों को पूरा करने के लिए सारु एवं ऋण प्रदान करती है।
- नाबार्ड के कार्य-यह राज्य में कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए सरकारी, संस्थाओं, व्यावसायिक बैंकों तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को वित्त की सुविधा प्रदान करता है। जो बाद में किसानों को यह सुविधा प्रदान करते हैं इसके अतिरिक्त यह राज्य में किसानों को सूक्ष्म वित्त भी प्रदान करती है।
प्रश्न 3.
व्यावसायिक बैंकों के प्रमुख कार्यों की विवेचना करें।
उत्तर-
व्यावसायिक बैंकों के प्रमुख कार्य निम्न हैं
(i)जमा राशि को स्वीकार करना -व्यावसायिक बैंकों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य अपने ग्राहकों से जमा के रूप में मुद्रा प्राप्त करना है। समाज में अधिकांश व्यक्ति अथवा संस्था अपनी आय का एक अंश बचाकर रखते हैं। अधिकांश लोग अपनी बचत को चोरी हो जाने के भय से अथवा ब्याज कमाने के उद्देश्य से किसी बैंक में ही जमा करते हैं। बैंक के लिए भी इस प्रकार का जमा विशेष महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि इसी के आधार पर कर्ज देकर वे अपने लाभ का एक प्रमुख भाग प्राप्त करते हैं।
(ii) ऋण प्रदान करना-व्यावसायिक बैंक का दूसरा मुख्य कार्य लोगों को ऋण प्रदान – करना है। बैंक के पास जो रुपया जमा के रूप में आता है उसमें से एक निश्चित राशि नकद कोष में रखकर बाकी रुपया बैंक द्वारा दूसरे व्यक्तियों को उधार दे दिया जाता है। ये बैंक प्रायः उत्पादक कार्यों के लिए ऋण देते हैं तथा उचित जमानत की मांग करते हैं। ऋण की रकम प्रायः जमानत के मूल्य से कम होती है।
(iii) सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्य-इसके अतिरिकत व्यावसायिक बैंक अन्य बहुत से कार्यों को भी सम्पन्न करते हैं जिन्हें सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्य भी कहा जाता है।
(iv) एजेंसी संबंधी कार्य-वर्तमान समय में व्यावसायिक बैंक ग्राहकों की एजेंसी के रूप : में सेवा करते हैं। इसके अतिरिक्त बैंक चेक, बिल व ड्राफ्ट का संचालन, ब्याज तथा लाभांश का संकलन तथा वितरण, ब्याज, ऋण की किस्त बीमे की किस्त का भुगतान प्रतिभूतियों का – क्रय-विक्रय तथा ड्राफ्ट तथा डाक द्वारा कोष का हस्तांतरण आदि क्रियाएँ करते हैं।
प्रश्न 4.
सहकारिता के मूल तत्व क्या हैं ? राज्य के विकास में इसकी भूमिका का वर्णन करो
उतर-
सहकारिता के तीन मूलभूत तत्व हैं। एक तो यह कि यहाँ संगठन की सदस्यता स्वैच्छिक * होती है। लोग अपनी इच्छा से सहकारी संगठन के सदस्य बनते हैं। उनपर कोई बाहरी बंधन का दबाव नहीं रहता।
दूसरा इसका प्रबंधन व संचालन जनतंत्रात्मक आधार पर होता है। इसके सदस्यों के बीच पूँजी, हैसियत अथवा किसी अन्य आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। वे एक-दूसरे के बराबर समझे जाते हैं और सबकों एक जैसे अधिकार व अवसर प्राप्त होते हैं।
तीसरा इसके आर्थिक उद्देश्यों में नैतिक और सामाजिक तत्व भी शामिल रहते हैं। यह केवल ‘ आर्थिक लाभ कमाने के लिए नहीं बल्कि नैतिक और सामाजिक पहलू से भी सदस्यों के हित लाभ के लिए कार्य करता है। इसका ध्येय दूसरों को लूट-खसोट करके धनवान बनाना नहीं है। बल्कि
आत्म-सहायता और पारस्परिक सहयोग द्वारा व्यक्ति और समूह के लाभ व सुख-समृद्धि को बढ़ाना है।
बिहार भारत का एक पिछड़ा राज्य है। एकीकृत बिहार (झारखण्ड सहित) के समय इसका – आर्थिक संसाधन अत्यधिक था। परन्तु राज्य बँटवारा के बाद यह सारी सम्पदा आज के बिहार से अलग हो गयी। वह सारा भूखण्ड राज्य बँटवारे के बाद झारखण्ड के पास चला गया। – फलस्वरूप शेष बचे बिहार में खेती ही एक मात्र मूल साधन है जिसपर बिहार की कुल जनसंख्या का 80% आबादी निर्भर करती है। यहाँ की खेती भी मॉनसून पर आधारित है। सामान्चतः खेती में निवेश एक जुआ के समान माना जाता है। चूंकि, खेती बिहारवासियों की जीविका का आधार है इसलिए आर्थिक तंगी के बावजूद बिहारी कृषक एवं मजदूर कृषि पर धन लगाने के लिए विवश है।
बिहार में खासकर ग्रामीण स्तर पर धनकुट्टी, अगरबत्ती निर्माण, बीड़ी निर्माण, जूता निर्माण, ईंट निर्माण इत्यादि जैसे महत्वपूर्ण रोजगार सहकारिता के सहयोग से चलाये जा रहे हैं। इसके लिए राज्य स्तरीय सहकारी बैंक ऋण मुहैया कराती है। इस सहकारी बैंक से रोजगार को बढ़ावा ग्रामीण स्तर पर काफी हद तक किया जा रहा है। जहाँ भी इस तरह के रोजगार चलाये जा रहे हैं वहाँ की जनता पर अनुकूल आर्थिक प्रभाव देखने को मिल रहा है। फलस्वरूप व्यक्ति की आय धीरे-धीरे बढ़ रही है और लोगों का जीवन-स्तर ऊँचा उठ रहा है।
प्रश्न 5.
स्वयं सहायता समूह में महिलाएं किस प्रकार अपनी अहम भूमिका निभाती हैं ? वर्णन करें।
उत्तर-
स्वयं सहायता समूह वास्तव में ग्रामीण क्षेत्रों में 15-20 व्यक्तियों (खासकर महिलाओं) का एक अनौपचारिक समूह होता है जो अपनी बचत तथा बैंकों से लघु ऋण लेकर अपने सदस्यों के पारिवारिक जरूरतों को पूरा करता है और विकास गतिविधियाँ चलाकर गाँव के विकास और महिला सशक्तिकरण में योगदान करता है। स्वयं सहायता समूह में महिलाएँ विशेषकर गरीब महिलाएं अपनो बचत पूँजी को एकत्रित करती हैं और उस एकत्रित पूँजी से निर्धन लोगों को कर्ज देती हैं। उन कों पर वे ब्याज भी लेती हैं। लेकिन यह साहूकार द्वारा लिए गये ब्याज से कम होता है। इस स्वयं सहायता समूह में महिलाएँ बढ़-चढ़कर भाग लेती हैं।
इस स्वयं सहायता समूह में छोटे पैमाने पर साख अथवा ऋण की सुविधा प्रदान की जाती है। क्योंकि साधारणतः ये महिलाओं द्वारा चलायी जाती हैं। महिलाओं द्वारा बचत की गयी पूँजी को उचित ब्याज दर पर जमीन छुड़वाने के लिए, घर बनाने के लिए, सिलाई मशीन खरीदने के लिए, हथकरघा एवं पशु खरीदने के लिए, बीज, खाद और बाँस खरीदने के लिए ऋण दिये जाते हैं। इन ऋणों पर जो ब्याज आता है इससे स्वयं सहायता समूह की पूँजी का निर्माण हो जाता है। इससे न केवल महिलाएँ आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो जाती हैं बल्कि समूह के नियमित बैठकों के जरिये लोगों को एक आम मंच मिल जाता है, जहाँ वे तरह-तरह के सामाजिक जैसे स्वास्थ्य, पोषण और घरेलू हिंसा इत्यादि पर आपस में चर्चा कर पाती हैं और इन समस्याओं का निदान करने की कोशिश भी करती हैं।
स्वयं सहायता समह के जरिये महिलाएँ छोटे-मोटे स्वरोजगार कर अपनी आमदनी कमाती हैं जिससे वे आर्थिक रूप में सशक्त हो रही हैं और दूसरी जरूरतमंद महिलाओं को सामाजिक तथा आर्थिक रूप से मदद कर उनके जीवन-स्तर को ऊंचा उठाने की कोशिश करती हैं। अतः महिलाएँ स्वयं सहायता समूह में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।
अतिरिक्त परियोजना/कार्यकलाप
नीचे दी गयी प्रश्नावली के अनुरूप अपने पास-पड़ोस के किसी भी बैंक में जाकर वहाँ इस बात का सर्वेक्षण करें कि किस वर्ग समूह को कितने ऋण की आवश्यकता थी, उन्हें ऋण उपलब्ध कराया गया अथवा नहीं, यदि ऋण उपलब्ध कराया गया तो ऋण की कितनी राशि मिली और कितने दिनों में ऋण उपलब्ध कराया गया। यदि नहीं, तो उसके कारण की चर्चा करें। परियोजना
कार्यक्रम में निम्नलिखित चार बिन्दुओं को दिखायें।
1. बैंक का नाम 2. ऋण आवेदक की पृष्ठभूमि 3. ऋण की राशि जो माँगी/जो दी गयी 4. ऋण उपलब्ध कराने की अवधि
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।
Bihar Board Class 10 Economics हमारी वित्तीय संस्थाएँ Additional Important Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
वित्तीय सेवाओं की आवश्यकता होती है
(क) व्यक्तियों को
(ख) व्यावसायिक संस्थानों को
(ग) सरकार को
(घ) इनमें सभी को
उत्तर-
(घ) इनमें सभी को
प्रश्न 2.
भारतीय बैकिंग प्रणाली के शीर्ष पर हैं
(क) व्यावसायिक बैंक
(ख) सहकारी बैंक ।
(ग) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
(घ) रिजर्व बैंक
उत्तर-
(क) व्यावसायिक बैंक
प्रश्न 3.
निम्नांकित में संस्थागत वित्त का साधन कौन है ?
(क) महाजन
(ख) साहुकार
(ग) व्यावसायिक बैंक
(घ) व्यापाकरी
उत्तर-
(ग) व्यावसायिक बैंक
प्रश्न 4.
किस शहर को भारत की वित्तीय राजधानी कहा जाता है ?
(क) कोलकात्ता
(ख) चेन्नई
(ग) दिल्ली
(घ) मुंबई
उत्तर-
(घ) मुंबई
प्रश्न 5.
बिहार के वित्त के संस्थागत स्रोतों में कौन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ?
(क) सहकारी बैंक
(ख) व्यावसायिक बैंक
(ग) राजकीय संस्थाएँ
(घ) राष्ट्रीय संस्थाएँ
उत्तर-
(ख) व्यावसायिक बैंक
प्रश्न 6.
बिहार में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की संख्या है
(क) 5
(ख) 10
(ग) 15
(घ) 25
उत्तर-
(क) 5
प्रश्न 7.
भारत में सहकारिता का प्रारंभ किस वर्ष हुआ?
(क) 1901
(ख) 1904
(ग) 1912
(घ) 1915
उत्तर-
(ख) 1904
प्रश्न 8.
गैर-संस्थागत वित्त प्रदान करने वाला सबसे लोकप्रिय साधन है
(क) देशी बैंकर
(ख) महाजन
(ग) व्यापारी
(घ) सहकारी बैंक
उत्तर-
(ख) महाजन
प्रश्न 9.
राज्य में कार्यरत केन्द्रीय सहकारी बैंक की संख्या कितनी है ?
(क) 50.
(ख) 75
(ग) 35
(घ) 25.
उत्तर-
(घ) 25.
प्रश्न 10.
दीर्घकालीन ऋण प्रदान करनेवाली संस्था कौन-सी है ?
(क) कृषक महाजन
(ख) भूमि विकास बैंक
(ग) प्राथमिक कृषि साख समिति
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ख) भूमि विकास बैंक
अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
वित्तीय संस्थाओं का मुख्य कार्य क्या है ?
उत्तर-
वित्तीय संस्थाओं का मुख्य कार्य जमा स्वीकार करना अल्पकालीन या दीर्घकालीन साख या ऋण को देना है। वित्तीय संस्थाएँ व्यावसायिक संस्थाओं को वित्तीय सुविधाएँ जैसे ड्राफ्ट और साख पत्र जारी करना, ऋण-पत्रों की गारंटी इत्यादि देने का कार्य भी करती है।
प्रश्न 2.
छोटे किसानों को वित्त या साख की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर-
छोटे किसानों की आर्थिक तंगी के कारण खाद, बीज, हल बैल आदि खरीदने के लिए अल्पकालीन या मध्यकालीन तथा कृषि के क्षेत्र में स्थायी सुधार के लिए दीर्घकालीन साख की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 3.
बैंकों के ऋण-जमा अनुपात का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
ऋण जमा अनुपात का अभिप्राय राज्य में बैंकों द्वारा एकत्र किए गए जमा में से ऋण की मांग पूरी करने हेतु दी गई राशि के परिमाण से है। .
प्रश्न 4.
बिहार में सहकारी वित्तीय संस्थाओं की क्या स्थित है ?
उत्तर-
सहकारी वित्तीय संस्थाओं की बिहार में स्थिति संतोषजनक नहीं है। राज्य के कृषि ऋणों में सहकारी बैंकों की हिस्सेदारी मात्र 10 प्रतिशत है तथा राज्य के 16 जिलों में इन बैंकों
का कोई अस्तित्व नहीं है।
प्रश्न 5.
सहकारिता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
सहकारिता एक ऐच्छिक संगठन है जो सामान्य आर्थिक एवं सामाजिक हितों की वृद्धि के लिए समानता के आधार पर स्थापित किया जाता है। सहकारिता का अर्थ मिलकर कार्य करना है।
प्रश्न 6.
प्रारंभिक कृषि-साख समितियाँ क्या है?
उत्तर-
प्रारंभिक कृषि-साख समितियाँ एक ग्राम स्तर पर स्थापित किया जाता है। प्रारंभिक कृषि-साख समितियाँ प्रायः उत्पादक कार्यों के लिए किसानों को अल्पकालीन तथा मध्यकालीन ऋण प्रदान करती है।
प्रश्न 7.
सहकारी विक्रय समितियाँ क्या है ?
उत्तर-
सहकारी विक्रय समितियाँ गैर साख कृषि समितियाँ है। सहकारी वित्तिय समितियाँ अपने सदस्यों द्वारा उत्पादित फसल को बेचने के लिए प्रतिनिधि का कार्य करती है तथा साथ ही उनकी उपज के बदले ऋण प्रदान करती है।
प्रश्न 8.
स्वयं-सहायता समूह से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
स्वयं-सहायता समूह ग्रामीण निर्धन परिवारों तथा विशेषकर महिलाओं के सहायता के लिए अपनाया गया एक तरीका है। इसमें गाँव के व्यक्ति या महिलाएं ही 15 से 20 सदस्यों को संगठित कर अपने विकास के लिए नियमित छोटे बचत कर संगठन या समूह का निर्माण करते हैं।
प्रश्न 9.
स्वयं-सहायता समूहों के संचालन में महिलाओं की क्या भूमिका होती है ?
उत्तर-
स्वयं सहायता समूह में ग्रामीण क्षेत्र के निर्धन व्यक्तियों विशेषकर महिलाओं को छोटे-छोटे स्वयं सहायता समूहों में संगठित करना है। महिलाओं को आत्मनिर्भर तथा स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से उनके समुहों को बैंक लघु ऋण उपलब्ध कराती है। इसलिए महिलाओं की भूमिका स्वयं सहायता समूहों में महत्वपूर्ण हो जाती है।
प्रश्न 10.
स्वयं-सहायता समूहों से निर्धन परिवारों को क्या लाभ हुआ है ?
उत्तर-
स्वयं-सहायता समूहों का निर्माण मुख्यतः निर्धन परिवारों की सहायता के लिए अपनाया गया एक तरीका है। इसके माध्यम से सरकार अथवा बैंक उन्हें कर्ज से उबरने में सहायता प्रदान करती है। इससे किसानों की जमीन की सुरक्षा तथा सेठ, साहुकारों के चंगुल से बचने में सहायता प्रदान होती है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
सरकार को साख या ऋण लेने की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर-
सरकार को विकासात्मक कार्यों जैसे-परिवहन, संचार, विद्युत, गैस तथा विनिर्माण के अतिरिक्त कृषि, कुटीर एवं लघु उद्योगों को अनुदान तथा निर्धन परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। इस प्रकार सरकार का व्यय उसकी आय की तुलना में अधिक होता है और इस घाटे को पूरा करने के लिए केंद्रीय तथा अन्य बैंकों से साख
या ऋण लेने की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 2.
मुद्रा बाजार तथा पूँजी बाजार की वित्तीय संस्थाओं में अंतर बताएँ।
उत्तर-
मुद्रा बाजार तथा पूंजी बाजार, वित्तीय संस्थाओं के दो वर्ग है। मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाएं साख या ऋण का अल्पकालीन लेन-देन करती है। इसके विपरीत पूंजी बाजार की संस्थाएँ उद्योग तथा व्यापार की दीर्घकालीन साख की आवश्यकताओं को पूरा करती है। मुद्रा बाजार में बैंक तथा देशी बैंकर आदि है तथा पूँजी बाजार में शेयर मार्केट शामिल है।
प्रश्न 3.
उद्योग एवं व्यापार को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करनेवाली विशिष्ठ वित्तीय संस्थाओं का उल्लेख करें।
उत्तर-
उद्योग एवं व्यापार को दीर्घकालीन साख प्रदान करनेवाली संस्थाओं में भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, भारतीय औद्योगिक विकास बैंक, भारतीय औद्योगिक साख एवं निवेश निगम यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया निर्यात-आयात बैंक आदि महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 4.
बैंक जमा कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-
व्यवसायिक बैंक चार प्रकार की जमा राशि को स्वीकार करते हैं
- स्थायी जमा इसे सावधि जमा भी कहते हैं। इसमें बैंक एक निश्चित अवधि के लिए : राशि जमा कर लेती है और उसकी निकासी समय से पूर्व नहीं होती।
- चालू जमा-इसे मांग जमा भी कहते हैं। इसमें व्यक्ति अपनी इच्छानुसार रुपया जमा या निकाल सकता है।
- संचयी जमा- इस जमा में बैंक ग्राहकों को निकासी के अधिकार को सीमित कर देता है। इसमें एक निश्चित रकम से अधिक निकासी नहीं हो सकती है।
- आवर्ती जमा-आवर्ती जमा खाते में ग्राहकों को प्रतिमाह एक निश्चित राशि जमा करना होता है। आवर्ती जमा एक निश्चित अवधि (60 माह या 72 माह) तक होता
प्रश्न 5.
व्यावसायिक बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने के मुख्य तरीके क्या है ?
उत्तर-
लोगों की बचत को जमा के रूप में स्वीकार करना तथा ऋण या कर्ज देना व्यावसायिक बैंकों का एक महत्वपूर्ण कार्य है। बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने के मुख्य तरीके निम्नांकित है।
- अधविकर्ष (Overdraft)इसके अंतर्गत बैंक अपने ग्राहकों को उनकी जमा राशि से अधिक रकम निकालने की सुविधा देता है।
- नकद साख (Cash Credit)-नकद साख में बैंक अपने ग्राहकों को माल आदि की जमानत पर ऋण देते हैं।
- ऋण एवं अग्रिम (Cash and advances)_इसमें बैंक अपने ग्राहकों को उचित जमानत के आधार पर पूर्व-निश्चित अवधि के लिए ऋण देते हैं।
- विनिमय विलों का भुगतान (Discounting of Bills of exchange)-व्यावसायिक बैंक विनिमय बिलों को भुनाकर भी व्यापारियों को ऋण देते हैं।
प्रश्न 6.
कुटीर एवं लघु उद्योगों के क्षेत्र में किस प्रकार की सहकारी समितियाँ स्थापित की जाती है ?
उत्तर-
कुटीर एवं लघु उद्योगों के क्षेत्र में सहकारिता का महत्वपूर्ण स्थान है। इस क्षेत्र में भी सहकारी समितियाँ भी दो प्रकार की होती है साख समितियों तथा गैर-साख समितियाँ।
- प्रारंभिक गैर-कृषि साख समितियाँ व्यवसाय में लगे हुए व्यक्तियों को साख-सुविधा प्रदान करने के लिए प्रारंभिक गैर-कृषि साख समितियों की स्थापना की जाती है। इस प्रकार की समितियाँ प्रायः नगरों में स्थित होती हैं तथा इन्हें ‘नगर साख समिति’ भी कहते हैं।
- प्रारंभिक गैर कृषि गैर साख समितियाँ-प्रारंभिक गैर कृषि मैर-साख समितियाँ साख देने के लिए नहीं वरन् कारीगरों तथा शिल्पकारों को अन्य आर्थिक कार्यों में सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित की जाती है। इनमें औद्योगिक समितियाँ, मत्स्यपालन समितियाँ तथा बुनकर समितियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 7.
वित्तीय संस्थाओं से आप क्या समझते हैं ? इनका मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर-
आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं के संचालन में साख की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होती है। आज प्रायः सभी प्रकार की उत्पादक क्रियाओं के लिए वित्त या साख की आवश्यकता होती है। वित्तीय संस्थाओं के अंतर्गत बैंक, बीमा कंपनियों, सहकारी समितियों तथा महाजन, साहूकार आदि देशी बैंकरों को सम्मिलित किया जाता है जो साख अथवा ऋण के लेन-देन का कार्य करती है। लोग प्रायः अपनी बचत को बैंक आदि संस्थाओं में जमा अथवा निवेश करते हैं। वित्तीय संस्थाएँ इस बचत को स्वीकार करती हैं और इसे ऐसे व्यक्तियों को उधार देती हैं जिन्हें धन की आवश्यकता है। इस प्रकार, वित्तीय संस्थाएँ ऋण लेने और देनेवाले व्यक्तियों के बीच मध्यस्थ का कार्य करती हैं।
प्रश्न 8.
किसानों को वित्त या साख की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर-
भारत में किसानों को अल्पकालीन, मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन तीन प्रकार के साख की आवश्यकता होती है। अल्पकालीन साख की आवश्यकता प्रायः 6 से 12 महीने तक की होती है, इसलिए इसे मौसमी साख भी कहते हैं। इनकी मांग खाद एवं बीज खरीदने, मजदूरी चुकाने तथा ब्याज आदि का भुगतान करने के लिए की जाती है। प्रायः फसल कटने के बाद किसान इन्हें वापस लौटा देता है। मध्यकालीन साखं कृषि यंत्र, हल, बैल आदि खरीदने के लिए ली जाती है। इनकी अवधि प्रायः एक वर्ष से 5 वर्ष तक की होती है। दीर्घकालीन साख की अवधि प्राय: 5 वर्षों से अधिक की होती है। किसानों को सिंचाई की व्यवस्था करने, भूमि को समतल बनाने तथा महो कृषि यंत्र आदि खरीदने के लिए इस प्रकार के ऋण की आवश्यकता होती है। ये ऋण कृषि क्षेत्र में स्थायी सुधार लाने के लिए होते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पूँजी बाजार क्या है ? इसके कार्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
मूंजी बाजार वह है जिसमें व्यावसायिक संस्थाओं के हिस्सों तथा ऋणपत्रों का क्रय-विक्रय होता है। उद्योग एवं व्यापार की साख या पूँजी की दीर्घकालीन आवश्यकता की पूर्ति पूँजी बाजार से होती है।
आधुनिक समय में सभी वृहत उद्योग या संस्थान संयुक्त पूँजी कंपनी के रूप में चलाए जाते हैं जिसमें बहुत बड़ी मात्रा में पूँजी या साख की आवश्यकता होती है। व्यावसायिक बैंकों द्वारा इतनी मात्रा में पूंजी या साख की व्यवस्था संभव नहीं है। संयुक्त पूँजी कंपनी दीर्घकालीन पूँजी की आवश्यकता की पूर्ति अंशपत्रों या हिस्सों को विक्रय कर तथा ऋणपत्रों के निर्गमन द्वारा करती है।
संयुक्त पूँजी कंपनी के हिस्सों और ऋणपत्रों का क्रय-विक्रय पूँजी बाजार में होता है। पूँजी बाजार के दो मुख्य अंग होते हैं।
- प्राथमिक बाजार-प्राथमिक बाजार का संबंध कंपनियों के नए हिस्सों के निर्गमन से होता है।
- द्वितीयक बाजार-द्वितीयक बाजार को स्टॉक एक्सचेंज अथवा शेयर बाजार भी कहते हैं। इस बाजार में संयुक्त पूँजी कंपनियों के वर्तमान हिस्सों और ऋणपत्रों का क्रय-विक्रय होता है।
हमारे देश में मुंबई देश की वित्तीय गतिविधियों का केन्द्र है। मुंबई का शेयर बाजार दबाव स्ट्रीट में स्थित है जिसके माध्यम से इस पूँजी बाजार का संचालन होता है।
प्रश्न 2.
‘राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक’ के कणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
ग्रामीण तथा कृषि क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार ने जुलाई 1982 में ‘राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की यह बैंक कृषि तथा ग्रामीण साख की पूर्ति के लिए देश की शीर्ष संस्था है।
देश में कृषि एवं ग्रामीण साख की आवश्यकताओं की पूर्ति तथा इस कार्य में संलग्न विभिन्न संस्थाओं के कार्यों में समन्वय स्थापित करने का कार्य करता है। कृषि एवं अन्य क्रियाकलापों के लिए ऋण उपलब्ध कराने तथा इस संबंध में नीति-निर्धारण के लिए यह एक शीर्ष संस्था है। विकास कार्यों के लिए निवेश तथा उत्पादक ऋण देनेवाली संस्थाओं के पुनर्वित के लिए मुख्य प्रतिनिधि का कार्य करता है।
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य पुनर्वास योजनाएँ तैयार, ‘ करना उनपर निगरानी रखना तथा ऋण उपलब्ध करानेवाली संस्थाओं का पुनर्गठन एवं उनके कर्मचारियों का प्रशिक्षण है।
बैंक का एक अन्य कार्य ऋण वितरण प्रणाली की क्षमता को बढ़ाने के लिए उनकी संस्थागत व्यवस्था को विकसित करना है। इसके साथ ही यह परियोजनाओं की देखरेख तथा मूल्यांकन करता है जिनके लिए उसने पुनर्वित की व्यवस्था की है।
लघु सिंचाई, कृषि यंत्रीकरण, स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना स्वयं सहायता समूह तथा ग्रामीण गैर-कृषि प्रक्षेय आदि के लिए वर्ष 2007-08 में नाबार्ड द्वारा बिहार में लगभग 184 करोड़ रुपये का ऋण वितरित किया गया है।
प्रश्न 3.
हमारे देश में सहकारी बैंकों के मुख्य प्रकार क्या है ?
उत्तर-
सहकारिता के क्षेत्र में सहकारी बैकों का महत्वपूर्ण स्थान है। हमारे देश में इन बैंकों के तीन मुख्य रूप है केंद्रीय सहकारी बैंक, राज्य सहकारी बैंक तथा भूमि विकास बैंक।
(i) केंद्रीय सहकारी बैंक- केंद्रीय सहकारी बैकों का मुख्य कार्य प्रारंभिक समितियों का संगठन करना तथा उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करना है। अपनी अंशपूँजी एवं जमा-राशि, जनता द्वारा जमा की गई राशि तथा राज्य सहकारी बैंक से प्राप्त ऋण एवं अग्रिम केंद्रीय सहकारी बैंकों के पूँजी के मुख्य स्रोत है। केंद्रीय सहकारी बैंक उन सभी कार्यों का संपादन करते हैं जो एक व्यावसायिक बैंक द्वारा किए जाते हैं, जैसे जनता के धन को जमा के रूप में स्वीकार करना, ऋण देना, चेक, बिल, हुंडी आदि
का भुगतान करना आदि।
(ii) राज्य सहकारी बैंक- प्रत्येक राज्य में इस प्रकार का केवल एक ही बैंक होता है जो उसके मुख्यालय में स्थित होता है। राज्य सहकारी बैंक राज्य के सभी केंद्रीय सहकारी बैंकों के प्रधान होते हैं। राज्य सहकारी बैंक के वित्तीय साधन उनकी अपनी अंशपूंजी, केंद्रीय सहकारी बैंक एवं जनता की जमाराशि तथा राज्य सरकार से प्राप्त ऋण एवं अग्रिम है। राज्य, सहकारी बैकों का मुख्य कार्य केंद्रीय सहकारी बैंकों का संगठन तथा उन्हें ऋण प्रदान करना है। भूमि विकास बैंक- प्रारंभिक कृषि-साख समितियाँ कृषि की अल्पकालीन एवं मध्यकालीन साख की आवश्यकताओं को पूरा करती है। भूमि विकास बैंक किसानों के लिए दीर्घकालीन ऋण की व्यवस्था करते हैं। दीर्घकालीन ऋणि सिंचाई, ट्रेक्टर आदि जैसे महंगे कृषि-यंत्र, पुराने ऋणों के भुगतान तथा भूमि में स्थायी सुधार के लिए होते हैं। भूमि विकास बैंक को पहले ‘भूमि.बंधक बैंक भी कहा जाता था। भूमि विकास बैंक अपनी अंशपूँजी, जमाराशि तथा ऋणपत्रों की बिक्री आदि से वित्तीय साधन एकत्र
करते हैं।
भूमि विकास बैंक भी दो प्रकार की होती हैं केंद्रीय भूमि विकास बैंक तथा प्रारंभिक भूमि, विकास बैंक। देश के कई राज्यों में प्रारंभिक भूमि विकास बैंक नहीं है। ऐसे राज्यों में किसानों को सीधा केंद्रीय भूमि विकास बैंक से ही ऋणों की प्राप्ति होती है।
प्रश्न 4.
मद्रा बाजार की प्रमुख वित्तीय संस्थाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
वित्तीय संस्थाओं को प्रायः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है—मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाएँ तथा पूँजी बाजार की वित्तीय संस्थाएँ। मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाएँ साख या ऋण का अल्पकालीन लेन-देन करती हैं। इसके विपरीत, पूँजी बाजार की संस्थाएँ उद्योग तथा व्यापार की दीर्घकालीन साख की आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाओं में बैंकिंग संस्थाएँ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। भारतीय बैंकिंग प्रणाली के शीर्ष पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया है जिसकी स्थापना अप्रैल 1935 में हुई थी। यह भारत का केंद्रीय बैंक है जो. देश की संपूर्ण बैंकिंग व्यवस्था का नियमन एवं नियंत्रण करता है।
भारत की बैंकिंग प्रणाली व्यावसायिक बैंकों पर आधारित है। व्यावसायिक बैंकों का मुख्य कार्य जनता की बचत को जमा के रूप में स्वीकार करना तथा उद्योग एवं व्यवसाय को उत्पादन कार्यों के लिए ऋण प्रदान करना है। व्यावसायिक बैंक कई प्रकार की अन्य वित्तीय सेवाएँ भी प्रदान करते हैं, जैसे मुद्रा का हस्तांतरण, साखपत्र जारी करना इत्यादि। कुछ समय पूर्व तक हमारे देश के अधिकांश व्यावसायिक बैंकों की शाखाएँ शहरी क्षेत्रों में स्थित थीं। ये बैंक उद्योग एवं व्यापार के लिए केवल अल्पकालीन ऋण की व्यवस्था करते थे। परंतु, हमारी अर्थव्यवस्था में बैंकिंग के महत्त्व को देखते हुए सरकार ने देश के प्रमुख व्यावसायिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर लिया है। इसका मुख्य उद्देश्य समाज के पिछड़े और उपेक्षित वर्ग को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में इनकी अधिक-से-अधिक शाखाओं का विस्तार करना था।
1975 से सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों को ऋण प्रदान करने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की एक नई योजना आरंभ की है। इन बैंकों का मुख्य कार्य ग्रामीण क्षेत्र के छोटे एवं सीमांत किसानों, कृषि श्रमिकों, कारीगरों, छोटे व्यापारियों आदि को आर्थिक सहायता प्रदान करना है।
कृषि-साख की आवश्यकताओं को पूरा करनेवाली वित्तीय संस्थाओं में सहकारी साख समितियों की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण है। ग्रामीण तथा कृषि क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार ने जुलाई 1982 में ‘राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक’ की स्थापना की है। यह बैंक कृषि तथा ग्रामीण साख की पूर्ति के लिए देश की शीर्ष संस्था है।
भारतीय मुद्रा बाजार का एक असंगठित क्षेत्र भी है जिसे देशी बैंकर की संज्ञा दी जाती है। यह क्षेत्र प्राचीन पद्धति के अनुसार ऋणों के लेन-देन का कार्य करता है तथा इसे देश के विभिन्न भागों में साहूकार, महाजन, चेट्टी, सर्राफ आदि नामों से पुकारा जाता है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी देशी बेंकरों की ही प्रधानता है।
Bihar Board Class 10 Economics हमारी वित्तीय संस्थाएँ Notes
- वित्तीय संस्थाएँ हमारी आर्थिक संरचना के प्रमुख अंग है।
- वित्तीय संस्थाओं के विकसित होने पर आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है।
- वित्तीय सेवाओं की आवश्यकता व्यक्ति या परिवार, व्यावसायिक संस्थान तथा सरकार सभी को होती है।
- विनीयों को प्रायः दो वर्गों मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाएँ तथा पंजी बाजार की वित्तीय संस्थाएं में विभाजित किया जाता है।
- बैंक आदि मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाएं अल्पकालीन साख या ऋण के लेन-देन का कार्य करती है।
- पूंजी बाजार की संस्थाएँ उद्योग एवं व्यापार की दीर्घकालीन साख की आवश्यकताओं को – पूरा करती है।
- मुद्रा बाप की वित्तीय संस्थाओं में बैंकिंग संस्था सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
- भारतीय बाजार को संगठित एवं असंगठित दो भागों में विभक्त किया जा सकता है।
- संगठित क्षेत्र (बैंक) पर जि का नियंत्रण होता है।
- असंगठित क्षेत्र में पद आदि देशी बैंकर आये है।
- पूंजी बाजार वह है जिसमें व्यावसायिक बैंकों के हिस्सों तथा ऋणपत्रों का होता है।
- हमारे देश की वित्तीय गतिविधियों का केन्द्र मलई है। यहाँ का पूँजी बाजार अत्यंत सुसंगठित है।
- मुम्बई का शेयर बाजार दलाल स्ट्रीट में स्थित है जिसके माध्यम से पूंजी बाजार का संचालन होता है।
- कृषि-साख की दीर्घकालीन वित्त की आवश्यकताओं को पूरा करनेवाली संस्थाओं में पाय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक’ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
- बिहार में संस्थागत तथा गैर-संस्थागत दो प्रकार की वितीय या कार्यरत है।
- अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में व्यावसायिक बैंकों का ऋण-जमा अनुपात बहुत कम है।
- बिहार में 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक है जिनमें प्रत्येक राज्य के एक विशेष क्षेत्र में सेवा प्रदान करता है।
- बिहार में व्यावसायिक बैंक संस्थागत ऋण प्रदान करने के माय मोत है।
- नावाई अथात् राष्टीय कषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना सन् 1982 में की गई।
- बिहार के कृषि-ऋण मागों की हिस्सेदारी मात्र 10 प्रतिशत है।
- बिहार को वित्तीय सहायता उपलब्ध करानेवाली राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में गाय की एवं ग्रामीण विकास बैंक सबसे महत्वपूर्ण है।
- सहकारिता एक सा है जिसे सामान्य आर्थिक एवं सामाजिक हितों की वृद्धि के लिए समानता के आधार पर स्थापित किया जाता है।
- भारत में सहकारिता का विकास 1904 में आरंभ हुआ।
- स्वयं सहायता समह निर्धन परिवारों की ऋणधारा की कमी की समस्या के समाधान में सहायक हुआ है।
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