BSEB Class 11 Biology जीव जगत Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Biology जीव जगत Book Answers |
Bihar Board Class 11th Biology जीव जगत Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 11th |
Subject | Biology जीव जगत |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 11th Biology जीव जगत Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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प्रश्न 1.
जीवों को वर्गीकृत क्यों करते हैं?
उत्तर:
विश्व में कई मिलियन पौधे तथा प्राणी हैं, जो आकृति, आकार तथा रंग आदि में भिन्न होते हैं। अब तक लगभग 1.7-1.8 मिलियन स्पीशीज ज्ञात हो सकी हैं। इसे हम जैविक विविधता (biological diversity) कहते हैं। विविधता का लैटिन भाषा में तात्पर्य प्रकार (variety) से है। अभी भी ऐसे अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ पर पाए जाने वाले प्राणी तथा पौधे अज्ञात हैं।
जैसे-जैसे हम नए और पुराने क्षेत्रों में खोज करते हैं, नए-नए जीवों का पता लगता रहता है। जैविक विविधता जैव विकास (evolution) तथा अनुकूलनता का प्रमाण है। विश्व में पाए जाने वाले सभी जीवों का अध्ययन करना असम्भव है, इसीलिए वर्गीकरण की आवश्यकता पड़ती है। वर्गीकरण वह प्रक्रिया है, जिसमें दृश्य गुणों के आधार पर _सुविधाजनक वर्ग में जीवधारियों को वर्गीकृत किया जाता है।
वर्गीकरण के मानक समय और आवश्यकता के अनुरूप बदलते रहे हैं। वर्गीकरण के कारण ही एक वर्ग के किसी एक जीव का अध्ययन कर लेने से उस वर्ग के अन्य सभी जीवों के सामान्य लक्षणों का ज्ञान हो जाता है। वर्गीकरण से विकास क्रम का ज्ञान होता है। वर्गीकरण से ही ज्ञात होता है कि पहले जलीय जीवों का उद्भव हुआ और उनसे बाद में उभयचर तथा उनसे स्थलीय जीवों का विकास हुआ है। वर्गीकरण के फलस्वरूप जीवधारियों के विकासीय सम्बन्धों का ज्ञान होता है।
प्रश्न 2.
वर्गीकरण प्रणाली को बार-बार क्यों बदलते हैं?
उत्तर:
आदिकाल से ही मानव जीवों के विषय में अधिकाधिक जानने का प्रयत्न करता रहा है। आदिकाल में मनुष्य अपनी मूलभूत आवश्यकताओं; जैसे-भोजन, वस्त्र, आश्रय के आधार पर जीवों को वर्गीकृत करता था। मनुष्य ने जन्तुओं को घातक-अघातक, भक्ष्य-अभक्ष्य, लाभदायक-हानिकारक आदि अनेक प्रकार से वर्गीकृत किया। आयुर्वेद आचार्य चरक ने लगभग 200 प्रकार के जन्तुओं और 340 प्रकार के पौधों का उल्लेख उनके महत्त्व के आधार पर किया। अरस्तू ने पौधों को शाक (herb), झाड़ी (shrub) तथा वृक्ष (tree) में वर्गीकृत किया।
प्रारम्भ में जीवधारियों का कृत्रिम वर्गीकरण प्रस्तुत किया गया; जैसे –
1. आकार व आकृति के आधार पर पौधों को शाक, झाड़ी तथा वृक्ष में वर्गीकृत किया गया।
2. जीवन-अवधि के आधार पर पौधों को एकवर्षी, द्विवर्षी तथा बहुवर्षी में वर्गीकृत किया गया।
3. आवास के आधार पर जीवों को जलीय, स्थलीय, वायवीय में वर्गीकृत किया गया। उपर्युक्त कृत्रिम वर्गीकरण से कोई स्पष्ट जानकारी प्राप्त नहीं होती और न ही किसी वर्ग के सदस्यों के बीच प्राकृतिक सम्बन्धों का ज्ञान होता है; जैसे-कीट, पक्षी और चमगादड़ को पंखों के आधार पर उड़ने वाले प्राणियों के समूह में वर्गीकृत कर दिया गया, लेकिन इनमें परस्पर सम्बन्ध प्रदर्शित नहीं होता।
इसके पश्चात् जीवों का वर्गीकरण उनकी प्राकृतिक संरचना, कार्यिकी, स्वभाव, व्यवहार तथा परिवर्धन में समानताओं और विभिन्नताओं के आधार पर किया गया। इसे प्राकृतिक वर्गीकरण कहते हैं। आधुनिक वर्गीकरण जीरों के जातिवृत्त सम्बन्धों पर आधारित हैं; क्योंकि मनुष्य जैव विविधता और जीवधारियों के पारस्परिक सम्बन्धों का ज्ञान प्राप्त करना चाहता है।
प्रश्न 3.
जिन लोगों से आप प्रायः मिलते रहते हैं, आप उनको किस आधार पर वर्गीकृत करना पसन्द करेंगे? (संकेत-ड्रेस, मातृभाषा, प्रदेश जिसमें वे रहते हैं, आर्थिक स्तर आदि)।
उत्तर:
जीवधारियों को उनकी समानता एवं भिन्नता के आधार पर विभिन्न समूहों एवं वर्गों में रखना ही वर्गिकी (systematics) है। जातिवृत्तीय सम्बन्धों के आधार पर जीवधारियों को वर्गीकृत किया जाता है। इसके लिए जीवधारी के लक्षणों का ज्ञात होना अति आवश्यक है। लक्षणों की समानता और भिन्नता के आधार पर किसी जीवधारी को पहचाना जा सकता है।
अगर व्यक्तियों को ड्रेस, मातृभाषा, प्रदेश, आर्थिक स्तर आदि के आधार पर वर्गीकृत करना पड़े तो प्रदेश के आधार पर उसे वर्गीकृत करना अधिक उपयुक्त होगा; क्योंकि प्रदेश के भौगोलिक वातावरण, वहाँ की भाषा का व्यक्ति-विशेष पर प्रभाव पड़ता है; ड्रेस तो प्रदेश की जलवायु के अनुसार बदल जाती है। एक ही स्थान पर रहने वाले व्यक्तियों का आर्थिक स्तर भी भिन्न-भिन्न होता है।
प्रश्न 4.
व्यष्टि तथा समष्टि की पहचान से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर:
व्यष्टि (Individual) तथा समष्टि (Population):
व्यष्टि तथा समष्टि की पहचान से हमें जीवधारी के वैज्ञानिक नाम तथा उसकी विशेषताओं (characters) का ज्ञान होता है। जीवधारियों के आकार, रंग, आवास, कोशिकीय संगठन, शरीर क्रियात्मक तथा आकारिकीय लक्षणों के आधार पर जीवों की व्याख्या की जाती है।
व्यष्टि या जाति जीवधारियों के उस समूह को कहते हैं जो प्रकृति में परस्पर जनन करके प्रजनन योग्य सन्तान उत्पन्न करते हैं। एक ही जाति के सदस्य जब अलग-अलग भौगोलिक वातावरण में रहते हैं तो उनके रंग, रूप तथा आकार में भिन्नता आ जाती है, इस समूह को समष्टि या आबादी (Population) कहते हैं। समष्टि में जीवों की संख्या अस्थिर रहती है अर्थात् यह अधिक या कम हो सकती है।
प्रश्न 5.
आम का वैज्ञानिक नाम निम्नलिखित है। इसमें से कौन-सा सही है? मेंजीफेरा इंडिका (Mangiferra indica) मेंजीफेरा इंडिका (Mangiferra indica)
उत्तर:
आम का वैज्ञानिक नाम मेंजीफेरा इंडिका (Mangifera indica) है।
प्रश्न 6.
टैक्सॉन की परिभाषा लिखिए। विभिन्न पदानुक्रम स्तर पर टैक्सा के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
टैक्सॉन (Taxon):
वर्गीकरण में अनेक पदानुक्रम सोपान होते हैं, जिसका प्रत्येक संवर्ग एक सोपान को प्रदर्शित करता है। इसे वर्गिकी संवर्ग या टैक्सॉन (taxon) कहते हैं। वर्गीकरण अध्ययन में विभिन्न स्तर के वर्गक या टैक्सॉन निम्न हैं –
जाति (species), वंश (genus), कुल (family), गण (order), वर्ग (class), संघ (phylum), जगत (kingdom)
उदाहरण:
आलू, टमाटर, बैंगन अलग-अलग जातियाँ हैं किन्तु इन सभी को एक वंश सोलेनम के अन्तर्गत रखते हैं क्योंकि इनमें अनेक समानताएँ पाई जाती हैं। सोलेनम, पिटूनिआ, धतूरा अलग-अलग वंश है किन्तु इन सभी को जातिवृत्तीय सम्बन्धों के आधार पर एक ही कुल सोलेनेसी के अन्तर्गत रखते है।
प्रश्न 7.
क्या आप वर्गिकी संवर्ग का सही क्रम पहचान सकते हैं?
(अ) जाति (स्पीशीज) → गण (आर्डर) → संघ (फाइलम) → जगत (किंगडम)
(ब) वंश (जीनस) → जाति → गण → जगत (स) जाति → वंश → गण → संघ
उत्तर:
सही वर्गिकी संवर्ग है –
(स) जाति → वंश → गण → संघ।
प्रश्न 8.
जाति शब्द के सभी मानवीय वर्तमान कालिक अर्थों को एकत्र कीजिए। क्या आप अपने शिक्षक से उच्चकोटि के पौधों, प्राणियों तथा बैक्टीरिया की स्पीशीज का अर्थ जानने के लिए चर्चा कर सकते हैं?
उत्तर:
जाति (Species):
जॉन रे (John Ray) ने सर्वप्रथम किसी एक प्रकार के जीवधारी के लिए जाति या स्पीशीज शब्द का प्रयोग किया। जाति वर्गीकरण की मूल इकाई है। पुरानी धारणा के अनुसार जाति एक स्थायी इकाई है, जिसमें कोई परिवर्तन नहीं होता। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार जाति एक गतिशील तथा परिवर्तनशील इकाई है, जिसमें वातावरण के अनुसार परिवर्तन होते रहते हैं। ये परिवर्तन लाखों-करोड़ों वर्षों में एक नई जाति का निर्माण करते हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि प्रकृति में जितनी भी जातियाँ हैं वे सभी आदिकाल में पाई जाने वाली जातियों से विकसित हुई हैं।
मेयर (1942) के अनुसार, “जाति जीवधारियों का वह समूह है जो परस्पर जनन करके प्रजनन योग्य सन्तानें उत्पन्न कर सकें।” एक जाति के सदस्यों को अन्य जाति के सदस्यों से आकारिकीय लक्षणों के आधार पर एक-दूसरे से पृथक कर सकते हैं। उच्च श्रेणी के पौधों, प्राणियों तथा बैक्टीरिया की जातियाँ आकारिकीय लक्षणों; जैसे – कोशिका संरचना, शारीरिक संगठन, पोषण प्राप्त करने की विधि, पर्यावरणीय जीवन-शैली तथा जातिवृत्तीय सम्बन्धों के आधार पर भिन्न होती है। पादप स्वपोषी एवं उत्पादक कहलाते हैं। प्राणी परपोषी एवं उपभोक्ता होते हैं। बैक्टीरिया प्रायः परपोषी एवं अपघटक होते हैं।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित शब्दों को समझिए तथा परिभाषित कीजिए –
- संघ
- वर्ग
- कुल
- गण
- वंश।
उत्तर:
1. संघ:
यह विभिन्न सम्बन्धित वर्गों का समूह है जिसमें कुल गुण समान होते हैं। जैसे-पिसीज, एम्फीबिया, रेप्टीलिया, एवीज तथा मैमेलिया वर्ग के सदस्यों को संघ काटा में रखते हैं क्योंकि इन सभी में पृष्ठ रज्जु युक्त खोखला तन्त्रिका तन्त्र, ग्रसनीय गिल दरारें पायी जाती हैं।
2. वर्ग:
यह अनेक सम्बन्धित गणों का समूह है। जैसे – मैमेलिया वर्ग में सिटेसिया, काइरोप्टेरा, कार्नीवोरा तथा प्राइमेटा गण आते हैं। सिटेसिया में समुद्री स्तनी, काइरोप्टेरा में उड़ने वाले स्तनी, कार्नीवोरा में मांसाहारी स्तनी तथा प्राइमेटा में बुद्धिमान स्तनी आते हैं। इन सभी के शरीर पर बाल, बाह्य कर्ण तथा स्तनग्रन्थियाँ पाई जाती हैं।
3. कुल:
इसके अन्तर्गत सम्बन्धित वंश आते हैं। जैसे – सोलेनेसी कुल में सोलेनम, पिटूनिआ तथा धतूरा रखते हैं।
4. गण:
यह समान लक्षण वाले कुलों का समूह है। जैसे-कार्नीवोरा गण के अन्तर्गत फेलिडि तथा कैनसीडी कुलों को रखा गया है।
5. वंश:
बहुत सी जातियों के समूह को वंश कहते हैं। इनके कुछ लक्षण समान तथा अन्य लक्षण भिन्न होते हैं। जैसे-शेर, चीता तथा तेंदुआ अलग जातियाँ हैं किन्तु ये सभी एक ही वंश पेंथेरा के अन्तर्गत आते हैं।
प्रश्न 10.
जीव के वर्गीकरण तथा पहचान में कुंजी किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
वर्गीकरण तथा पहचान में जो लक्षण वर्गिकी में सहायक होते हैं उन्हें वर्गीकरण की कुंजी (key of classification) कहते हैं। यह अज्ञात जीवधारी की पहचान में सहायक होती है। यह तुलनात्मक लक्षणों पर आधारित होती है। वर्गीकरण संवर्ग के प्रत्येक टैक्सॉन (taxon); जैसे-जाति, वंश, कुल, गण, वर्ग, संघ के लिए अलग-अलग कुंजी (key) का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 11.
पौधों तथा प्राणियों के उचित उदाहरण देते हुए वर्गिकी पदानुक्रम का चित्रण कीजिए।
उत्तर:
वर्गिकी पदानुक्रम-वर्गीकरण में अनेक पदानुक्रम सोपान होते हैं, जिसका प्रत्येक संवर्ग एक सोपान को प्रदर्शित करता है। इसे वर्गिकी संवर्ग या टैक्सॉन (taxon) कहते हैं। इसमें विभिन्न टैक्सा उच्चतम से निम्नतम श्रेणी में निश्चित क्रम में व्यवस्थित होते हैं। वर्गीकरण की आधारभूत इकाई जाति है तथा उच्चतम इकाई जगत है। जीवों को विभिन्न टैक्सा में रखने के लिए मूलभूत आवश्यक व्यष्टि अथवा उस टैक्सा के गुणों का ज्ञान होना आवश्यक है। इसके द्वारा समान प्रकार के जीवों तथा अन्य प्रकार के जीवों में समानता तथा विभिन्नता को पहचानते हैं।
आरोही क्रम में पदानुक्रम वर्गिकी संवर्ग को निम्न प्रकार प्रदर्शित करते हैं –
जाति (species) → वंश (genus) → कुल (family) → गण (order) → वर्ग (class) → संघ (phylum) → जगत (kingdom)।
उदाहरण:
शेर (Panthera leo), चीता (Panthera tigris), तेंदुआ (Panthera pardus) अलग-अलग जाति के सदस्य हैं किन्तु ये सभी एक ही वंश (genus) पेंथेरा के अन्तर्गत आते हैं। बिल्ली का वंश फेलिस इनसे भिन्न है। लेकिन इन दोनों को ही एक ही कुल फेलिडि में रखते हैं।
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