BSEB Class 11 Biology वनस्पति जगत Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Biology वनस्पति जगत Book Answers |
Bihar Board Class 11th Biology वनस्पति जगत Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 11th |
Subject | Biology वनस्पति जगत |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 11th Biology वनस्पति जगत Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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प्रश्न 1.
शैवाल के.वर्गीकरण का क्या आधार है?
उत्तर:
शैवालों को मुख्य रूप से प्रकाश संश्लेषी वर्णक, संचित भोज्य पदार्थ, कोशिका भित्ति की संरचना तथा कशाभ की उपस्थिति, अनुपस्थिति एवं संख्या के आधार पर वर्गीकृत करते हैं।
ह्वीटेकर वर्गीकरण के अनुसार शैवालों को तीन प्रमुख भागों में बाँटते हैं – क्लोरोफाइसी (chlorophyceae), फिओफाइसी (phaeophyceae) तथा रोडोफाइसी (rhodophyceae) तालिका शोवाल के दिवसों तथा उनके प्रमुख अभिलक्षण (Divison of Alagae and their Main Characteristics)
प्रश्न 2.
लिवरवर्ट, मॉस, फर्न, जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म के जीवन चक्र में कहाँ और कब निम्नीकरण विभाजन होता है?
उत्तर:
1. लिवरवर्ट (Liverwort):
बीजाणुउद्भिद् के सम्पुट (capsule) में बीजाणु मातृ कोशिकाओं में बीजाणु (spores) बनते समय।
2. मॉस (Moss):
बीजाणुउद्भिद् के सम्पुट में बीजाणु बनते समय बीजाणु मातृ कोशिकाओं में निम्नीकरण (meiosis) विभाजन होता है।
3. फर्न (Fern):
बीजाणुधानी में बीजाणु मातृ कोशिकाओं में निम्नीकरण होता है।
4. जिम्नोस्पर्म (Gymnosperms):
लघु बीजाणुधानी में परागकण बनते समय लघु-बीजाणु मातृ कोशिका में निम्नीकरण उपस्थिति, अनुपस्थिति एवं संख्या के आधार पर वर्गीकृत करते हैं। ह्वीटेकर वर्गीकरण के अनुसार शैवालों को तीन प्रमुख भागों में बाँटते हैं – क्लोरोफाइसी (chlorophyceae), फिओफाइसी (phaeophyceae) तथा रोडोफाइसी (rhodophyceae) विभाजन होता है।
बीजाण्ड (ovule) के बीजाण्डकाय (nucellus) की गुरुबीजाणु मातृ कोशिका में निम्नीकरण विभाजन होता है। इससे गुरुबीजाणु बनते हैं। एक गुरुबीजाणु वृद्धि करके मादा युग्मकोद्भिद् अथवा भ्रूणपोष बनाता है।
5. एन्जियोस्पर्म (Angiosperms):
परागकोष की पराग मात कोशिकाओं (pollen mother cells) में निम्नीकरण विभाजन होता है। इससे परागकण अथवा लघुबीजाणु बनते हैं। बीजाण्डकाय की गुरुबीजाणु मातृ कोशिका निम्नीकरण विभाजन द्वारा विभाजित होकर चार अगुणित गुरुबीजाणु बनाती है। अगुणित बीजाणु भ्रूणकोष का निर्माण करता है।
प्रश्न 3.
पौधे के तीन वर्गों के नाम लिखो, जिनमें स्त्रीधानी होती है। इनमें से किसी एक के जीवन-चक्र का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर:
ब्रायोफाइटा, टेरिडोफाइटा तथा जिम्नोस्पर्म वर्ग के पौधों में स्त्रीधानी पाई जाती है।
मॉस (ब्रायोफाइट पादप) का जीवन-चक्र (Life Cycle of Moss – A Bryophyte):
इसकी प्रमुख अवस्था युग्मकोभिद् (gametophyte) होती है। युग्मकोद्भिद् की दो अवस्थाएँ पाई जाती हैं –
(क) शाखामय, हरे, तन्तुरूपी, प्रोटोनीमा (protonema) का निर्माण अगुणित बीजाणुओं के अंकुरण से होता है। इस पर अनेक कलिकाएँ विकसित होती हैं जो वृद्धि करके पत्तीमय अवस्था का निर्माण करती है।
(ख) पत्तीमय अवस्था पर नर तथा मादा जननांग समूह के रूप में बनते हैं। नर जननांग को पुंधानी (antheridium) तथा मादा जननांग को स्त्रीधानी (archegonium) कहते हैं। पुंधानी में द्विकशाभिक घुमणु (antherozoids) तथा स्त्रीधानी में अण्डाणु (ovum) बनता है। निषेचन जल की उपस्थिति में होता है। घुमणु तथा अण्डाणु संलयन के फलस्वरूप द्विगुणित युग्मनज (oospore) बनाते हैं। युग्मनज से वृद्धि तथा विभाजन द्वारा द्विगुणित बीजाणुउद्भिद् (sporophyte) का निर्माण होता है। यह युग्मकोद्भिद् पर अपूर्ण परजीवी होता है। बीजाणुउद्भिद् के तीन भाग होते हैं –
- पाद (foot)
- सीटा (seta) तथा
- सम्पुट (capsule)
चित्र – फ्यूनेरिया (मॉस) के जीवन-चक्र का रेखाचित्र
सम्पुट के बीजाणुकोष्ठ में स्थित द्विगुणित बीजाणु मातृ कोशिकाओं से अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित बीजाणु (spores) बनते हैं। सम्पुट के स्फुटन से बीजाणु मुक्त हो जाते हैं। बीजाणुओं का प्रकीर्णन वायु द्वारा होता है। अनुकूल परिस्थितियाँ मिलने पर बीजाणु अंकुरित होकर तन्तुरूपी, स्वपोषी प्रोटीनीस (protenema) बनाते हैं।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित की सूत्रगुणता बताओ –
- मॉस के प्रथम तन्तुक कोशिका
- द्विबीजपत्री के प्राथमिक भ्रूणपोष का केन्द्रक
- मॉस की पत्तियों की कोशिका
- फर्न के प्रोथैलस की कोशिकाएँ
- मार्केन्शिया की जेमा कोशिका
- एकबीजपत्री की मैरिस्टेम कोशिका
- लिवरवर्ट के अण्डाशय
- फर्न के युग्मनज।
उत्तर:
- माँस के प्रथम तन्तुक कोशिका-अगुणित (x) होती है।
- द्विबीजपत्री के प्राथमिक भ्रूणपोष का केन्द्रक-त्रिगुणित (3x) होता है।
- मॉस की पत्तियों की कोशिका-अगुणित (x) होती है।
- फर्न के प्रोथैलस की कोशिकाएँ-अगुणित (x) होती है।
- मार्केन्शिया की जेमा कोशिका-अगुणित (x) होती
- एक बीजपत्री की मैरिस्टेम कोशिका-द्विगुणित (2x) होती है।
- लिवरवर्ट का अण्डाशय–द्विगुणित (2x) होता है।
- फर्न का युग्मनज-द्विगुणित (2x) होता है।
प्रश्न 5.
शैवाल तथा जिम्नोस्पर्म के आर्थिक महत्त्व पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
शैवाल का आर्थिक महत्त्व (Economic importance of Algae):
1. भोजन के रूप में (Algae as Food):
पृथ्वी पर होने वाले प्रकाश संश्लेषण का 50% शैवालों द्वारा होता है। शैवाल कार्बोहाइड्रेट, खनिज तथा विटामिन्स से भरपूर होते हैं। पोरफाइरा (Porphyra), एलेरिया (Alaria), अल्वा (Ulva), सारगासम Sargassum), लेमिनेरिया (Laminaria) आदि खाद्य पदार्थ के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।
क्लोरेला (Chlorella) में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन्स तथा विटामिन्स पाए जाते हैं। इसे भविष्य के भोजन के रूप में पहचाना जा रहा है। इससे हमारी बढ़ती जनसंख्या की खाद्य समस्या के हल होने की पूरी सम्भावना है।
2. शैवाल व्यवसाय में (Algae in Industry):
(i) डायटम के जीवाश्म/मृत शरीर डायटोमेशियस मृदा (diatomaceous earth or Kiselghur) बनाते हैं। यह मृदा 1500°C ताप सहन कर लेती है। इसका उद्योगों में विविध प्रकार से उपयोग किया जाता है; जैसे-धातु प्रलेप, वार्निश, पॉलिश, टूथपेस्ट, ऊष्मारोधी सतह आदि।
(ii) कोन्ड्रस (Chondrus), यूक्यिमा (Eucheuma) आदि शैवालों से केरागीनिन (carrageenin) प्राप्त होता है। इसका उपयोग श्रृंगार-प्रसाधनों, शैम्पू आदि बनाने में किया जाता है।
(iii) एलेरिया (Alaria), लेमिनेरिया (Laminaria) आदि से एल्जिन (algin) प्राप्त होता है। इसका उपयोग अज्वलनशील फिल्मों, कृत्रिम रेशों आदि के निर्माण में किया जाता है। यह शल्य चिकित्सा के समय रक्त प्रवाह रोकने में प्रयोग किया जाता है।
(iv) अनेक समुद्री शैवालों से आयोडीन, ब्रोमीन आदि प्राप्त की जाती है।
(v) क्लोरेला से प्रतिजैविक (antibiotic) क्लोरीन (chlorellin) प्राप्त होती है। यह जीवाणुओं को नष्ट करती है। कारा (Chara) तथा नाइटेला (Nitella) शैवालों की उपस्थिति से जलाशय के मच्छर नष्ट होते हैं; अतः ये मलेरिया उन्मूलन में सहायक होते हैं।
(vi) लाल शैवालों से एगार-एगार (agar-agar) प्राप्त होता है, इसका उपयोग कृत्रिम संवर्धन के लिए किया जाता है।
जिम्नोस्पर्म का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Gymnosperm):
1. सजावट के लिए (Ornamental Plants):
साइकस, पाइनस, एरोकेरिया (Araucaria), गिंगो (Ginkgo), थूजा (Thuja), क्रिप्टोमेरिया (Cryptomeria) आदि पौधों का उपयोग सजावट के लिए किया जाता है।
2. भोज्य पदार्थों के लिए (Plants of Food Value):
साइकस, जैमिया से साबूदाना (sago) प्राप्त होता है। चिलगोजा (Pinus gerardiana) के बीज खाए जाते हैं। नीटम (Gnetum), गिंगो (Ginkgo) व साइकस के बीजों को भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
3. फर्नीचर के लिए लकड़ी:
चीड़ (Pinus), देवदार (Cedrus), कैल (Pinus wallichiana), फर (Abies) से प्राप्त लकड़ी का उपयोग फर्नीचर तथा इमारती लकड़ी के रूप में किया जाता है।
4. औषधियाँ (Medicines):
साइकस के बीज, छाल व गुरुबीजाणुपर्ण को पीसकर पुल्टिस बनाई जाती है। टेक्सस ब्रेवफोलिया (Tarus brevfolia) से टेक्साल औषधि प्राप्त होती है जिसका उपयोग कैन्सर में किया जाता है। थूजा (Thuja) की पत्तियों को उबालकर बुखार, खाँसी, गठिया रोग निदान के लिए प्रयोग किया जाता है।
5. एबीस बालसेमिया (Abies balsamea) से कनाडा बालसम जूनिपेरस (Juniperus) से सिडारवुड ऑयल (cedar wood oil), पाइनस से तारपीन का तेल प्राप्त होता है।
प्रश्न 6.
जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म दोनों में बीज होते हैं, फिर भी उनका वर्गीकरण अलग-अलग क्यों है?
उत्तर:
जिम्नोस्पर्म में बीजाण्ड अण्डाशय भित्ति से ढका नहीं होता है जबकि एन्जियोस्पर्म में बीजाण्ड ढका होता है।
प्रश्न 7.
विषमबीजाणुता क्या है? इसकी सार्थकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो। इसके दो उदाहरण दो।
उत्तर:
विषमबीजाणुता (Heterospory)-टेरिडोफाइटा वर्ग के पौधों में बीजाणुओं का निर्माण बीजाणुधानियों में होता है। कुछ जातियों में समबीजाणुता (homospory) पाई जाती है। कुछ जातियों में विषमबीजाणुता पाई जाती है। इसमें दो प्रकार के बीजाणु बनते हैं, इन्हें लघुबीजाणु (microspoeres) तथा गुरुबीजाणु (megaspores) कहते हैं। लघुबीजाणु का निर्माण लघुबीजाणुधानी. (microporangia) में तथा गुरुबीजाणु का निर्माण गुरुबीजाणुधानी (megasporangia) में होता है।
लघु तथा गुरुबीजाणु वृद्धि तथा विभाजन द्वारा क्रमशः नरयुग्मकोद्भिद् तथा मादा युग्मकोद्भिद का निर्माण करते हैं। मादा युग्मकोद्भिद् कुछ समय तक मातृ बीजाणुउद्भिद् पादप पर लगा रहता है।
निषेचन के फलस्वरूप युग्मनज (zygote) का निर्माण तथा नवोद्भिद् पादप (young embryo) मादा युग्मकोद्भिद् से ही भोजन प्राप्त होता है। अतः यह बीज-निर्माण प्रक्रिया में जैव विकास को प्रदर्शित करता है। विषमबीजाणुता सिलैजिनेला (Selaginella), साल्वीनिया (Salvinia) नामक टेरिडोफाइट्स में पाई जाती है। इसके अतिरिक्त जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म भी विषमबीजाणुता को प्रदर्शित करते हैं।
प्रश्न 8.
उदाहरण सहित निम्नलिखित शब्दावली का संक्षिप्त वर्णन कीजिए –
- प्रथम तन्तु
- पुंधानी
- स्त्रीधानी
- द्विगुणितक
- बीजाणुपर्ण
- समयुग्मकी।
उत्तर:
1. प्रथम तन्तु (Protonema):
यह मॉस के युग्मकोद्भिद् की प्रथम अवस्था है। बीजाणु अंकुरित होकर शाखामय, तन्तुरूपी, हरे रंग स्वपोषी प्रथम तन्तु बनाते हैं। इन पर कलिकाएँ विकसित होती हैं। कलिकाएँ पत्तीमय अवस्था (leaf stage) में विकसित हो जाती हैं।
2. पुंधानी (Antheridium):
ब्रायोफाइट तथा टेरिडोफाइट्स में नर जननांग पुंधानी (antheridium) में होते हैं। ये युग्मकोद्भिद् पर विकसित होती हैं। ये नाशपाती के आकार की या गोलाकार संरचनाएं होती हैं। इनके चारों ओर एकस्तरीय चोलक स्तर (jacket layer) होता है। पुमणु मातृ कोशिकाओं से पुमणु (antherozoids) बनते हैं। पुमणु नर युग्मक होते हैं। मॉस के पुमणु द्विकशाभिक तथा फर्न के पुमणु बहुकशाभिक होते हैं।
3. स्त्रीधानी (Archegonium):
यह ब्रायोफाइट्स ‘तथा टेरिडोफाइट्स में पाई जाने वाली मादा जननांग है। ये फ्लास्क रूपी होती है। इनका आधारीय चौड़ा भाग अण्डधानी (venter) तथा ऊपरी सँकरा भाग ग्रीवा (neck) कहलाता है। अण्डधानी में एक अण्डाणु (ovum or egg cell) बनती है। स्त्रीधानियाँ युग्मकोद्भिद् पर विकसित होती हैं।
4. द्विगुणितक (Diplontic):
जब बीजाणुउद्भिद् पीढ़ी स्वतन्त्र, प्रभावी तथा प्रकाशसंश्लेषी होती है, तब इससे अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा बीजाणु बनते हैं। अगुणित बीजाणु युग्मकोद्भिद् पीढ़ी का निर्माण करते हैं तथा युग्मक बनाते हैं। नर तथा मादा युग्मक मिलकर युग्मनज बनाते हैं। युग्मनज से बीजाणुउद्भिद् पीढ़ी का पुनः निर्माण होता है। इस प्रकार के जीवन-चक्र को द्विगुणित (diplontic) कहते हैं; जैसे जिम्नोस्पर्म, एन्जियोस्पर्म में।
5. बीजाणुपर्ण (Sporophyll):
बीजाणुउद्भिद् अवस्था; जैसे – फर्न में; वास्तविक जड़, तना और पत्तियों में विभेदित होती है। परिपक्व पत्तियों पर बीजाणुओं का निर्माण बीजाणुधानी में होता है। बीजाणुधानी के समूह सोराई (sori) कहलाते हैं। बीजाणुओं का निर्माण करने वाली इन पत्तियों को बीजाणुपर्ण (sporophyll) कहते हैं। जिम्नोस्पर्म में लघु तथा गुरु बीजाणुपर्ण क्रमशः नर शंकु तथा मादा शंकु (cone or strobila) बनाते हैं।
6. समयुग्मकी (Isogamy):
आकृति तथा आकार में समान युग्मकों के संलयन को समयुग्मकी संलयन (isogamous syngamy or fertilization) कहते हैं।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित में अन्तर कीजिए –
- लाल शैवाल तथा भूरे शैवाल
- लिवरवर्ट तथा मॉस
- विषणबीजाणुक तथा समबीजाणुक टेरिडोफाइट
- युग्मक संलयन तथा त्रिसंलयन
उत्तर:
1. लाल शैवाल तथा भूरे शैवाल में अन्तर (Difference between Red Algae and Brown Algae):
2. लिवरवर्ट तथा मॉस अन्तर (Difference between Liverwort and Moss)
3. विषणबीजाणुक तथा समबीजाणुक टेरिडोफाइट अन्तर (Difference between Heterosporous and Homosporous Pteridophytes)
4. युग्मक संलयन तथा त्रिसंलयन अन्तर (Difference between Syngamy and Triple fusion)
प्रश्न 10.
एकबीजपत्री को द्विबीजपत्री से किस प्रकार विभेदित करोगे?
उत्तर:
एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री में भिन्नता (Difference between Monocot and Dicot Angiosperms)
प्रश्न 11.
स्तम्भ I में दिए गए पादपों का स्तम्भ II में दिए गए वर्गों से मिलान करो –
उत्तर:
(अ) (iii), (ब) (iv), (स) (ii), (द) (i)
प्रश्न 12.
जिम्नोस्पर्मस के महत्त्वपूर्ण अभिलक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जिम्नोस्पर्मस के महत्त्वपूर्ण अभिलक्षण –
- इनको सामान्यतया नग्न बीजी पौधे कहते हैं। ये मुख्यतया मरूदभिदी, काष्ठीय, बहुवर्षी होते हैं।
- इनमें सामान्य मूसला जड़ पायी जाती है। कुछ पौधों में प्रवाल जड़े भी पायी जाती हैं।
- पत्तियाँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं –
- शल्क पर्ण तथा
- वास्तविक पर्ण।
- रन्ध्र पत्तियों की निचली सतह पर गड्ढों में धंसे हुए होते है।
- पत्तियाँ प्राय: संकरी, सुई सदृश्य होती हैं। इन पर उपचर्म का मोटा आवरण होता है।
- संवहन ऊतक जाइलम में वाहिकाओं (vasseles) तथा फ्लोएम में सहकोशिकाओं (companion cells) का अभाव होता है।
- पौधे विषमबीजाणुक होते हैं।
- पुष्प शंकु (cone) कहलाते हैं। ये एकलिंगी होते हैं। नर शंकु का निर्माण लघुबीजाणु पर्णो से तथा मादा शंकु का निर्माण गुरु बीजाणु पर्तों से होता है।
- वायु परागण होता है।
- भ्रूणपोष अगुणित होता है। यह निषेचन से पहले बनता
- प्राय: बहुभ्रूणता (Polyembryony) पाई जाती है।
- बीजाण्ड नग्न होता है।
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