BSEB Class 11 Biology जैव अणु Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Biology जैव अणु Book Answers |
Bihar Board Class 11th Biology जैव अणु Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 11th |
Subject | Biology जैव अणु |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 11th Biology जैव अणु Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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प्रश्न 1.
वृहत् अणु क्या है? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वृहत् अणु (Macromolecules):
जीव ऊतक (जैसे – यकृत या सब्जी आदि) को ड्राइक्लोरोऐसीटिक अम्ल के साथ पीसकर जो गाढ़ा तरल (slurry) प्राप्त होता है, उसे कपड़े में रखकर निचोड़ लेते हैं। अम्ल में घुलनशील निस्यंद (filtrate) में जैव अणु (biomolecules) तथा अम्ल अविलेय अंश में वृहत् अणु (macromolecules) पाए जाते हैं; जैसेपॉलीसैकेराइड्स (polysaccharides), प्रोटीन्स (proteins), न्यूक्लीक अम्ल (nucleic acids)। वृहत् अणु बहुलक (polymers) होते हैं। इनका अणुभार बहुत अधिक (दस हजार डाल्टन या अधिक) होता है। लिपिड्स का अणुभार 800 डाल्टन से अधिक नहीं होता; अतः ये वृहत् अणु नहीं कहलाते।
प्रश्न 2.
ग्लाइकोसिडिक, पेप्टाइड तथा फॉस्फोडाइएस्टर बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ग्लाइकोसिडिक बन्ध (Glycosidic Bonds):
अनेक मोनोसैकेराइड अणु परस्पर ग्लाइकोसिडिक बन्ध से जुड़कर पॉलीसैकेराइड्स बनाते हैं। ग्लाइकोसिडिक बन्ध दो समीपवर्ती मोनोसैकेराइड के मध्य बनता है। यह क्रिया संघनन (condensation) एवं निर्जलीकरण (dehydration) के फलस्वरूप होती है। ग्लाइकोसिडिक बन्ध उत्क्रमणीय होता है, अर्थात् जल अपघटन (hydrolysis) द्वारा जुड़े अणु पृथक् हो जाते हैं।
पेप्टाइड बन्ध (Peptide Bond):
प्रोटीन्स ऐमीनो अम्लो के बहुलक हैं। प्रोटीन अणु में बहुत-से ऐमीनो अम्ल पेप्टाइड बन्ध (peptide bonds) द्वारा जुड़े रहते हैं। एक ऐमीनो अम्ल का कार्बोक्सिल समूह (-COOH) दूसरे ऐमीनो अम्ल के ऐमीनो समूह (-NH2) से पेप्टाइड बन्ध द्वारा जुड़ा रहता है। यह क्रिया निर्जलीकरण के फलस्वरूप होती है और जल अणु मुक्त होता हैं।
फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध (Phosphodiester Bonds):
न्यूक्लीक अम्ल के न्यूक्लिओटाइड्स (nucleotides) फॉस्फोडाइएस्टर बन्धों (phosphodiester bonds) द्वारा एक-दूसरे से संयोजित होकर पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला बनाते हैं। फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध समीपवर्ती दो न्यूक्लियोटाइड्स के फॉस्फेट अणुओं के मध्य बनता है। D.N.A. की दोनों पॉलीन्यूक्लियोटाइड शृंखलाओं के नाइट्रोजन क्षारक हाइड्रोजन बन्धों द्वारा जुड़े होते हैं।
प्रश्न 3.
प्रोटीन की तृतीयक संरचना से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
प्रोटीन की तृतीयक संरचना (Tertiary Structure of Protein):
चित्र – एक कल्पित प्रोटीन अणु की तृतीयक संरचना।
पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला में त्रिविमीय वलन (three dimensional folding) से बनी सघन गोलाकार आकृतियाँ प्रोटीन की तृतीयक संरचना को प्रदर्शित करती हैं। यह संरचना ग्लोबुलर प्रोटीन्स (globular proteins) में पाई जाती है। इसमें द्वितीयक संरचना वाली लहरदार या α – कुण्डलिनी श्रृंखलाओं का पुन: कुण्डलन एवं वलन होता है।
ये वलन पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला में दूर-दूर स्थित ऐमीनो अम्लों के R – समूहों (पार्श्व शृंखलाओं) के बीच में तथा पास-पास आने और मुड़ने से बनते हैं इसके फलस्वरूप ऐमीनो अम्लों के अध्रुवीय जलविरागी (hydrophobic) R – समूह प्रोटीन अणु के अन्दर की ओर छुप जाते हैं तथा जलस्नेही (hydrophilic) ऐमीनो (NH2) समूह प्रोटीन अणु की सतह पर आ जाते हैं।
प्रोटीन के सक्रिय भाग भी सतह पर आ जाते हैं। प्रोटीन अणु के सक्रिय क्षेत्रों को डोमेन (domaiii) कहते हैं। त्रिविन संरचना वाली पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला के ऐमीनो अम्लों के R-समहों के मध्य हाइड्रोजन बन्ध, आयनिक बन्ध, कोवैलेन्ट बन्ध (hydrogen, ionic and covalent bonds) आदि पाए जाते हैं। ये प्रोटीन अणु की संरचना को स्थिरता प्रदान करते हैं।
प्रश्न 4.
10 ऐसे रुचिकर सूक्ष्म जैव अणुओं का पता लगाइए जो कम अणुभार वाले होते हैं व इनकी संरचना बनाइए। ऐसे उद्योगों का पता लगाइए जो इन यौगिकों का निर्माण विलगन द्वारा करते हैं? इनको खरीदने वाले कौन हैं? मालूम कीजिए।
उत्तर:
सूक्ष्म जैव अणु (Micro Biological Molecules):
जीवधारियों में पाए जाने वाले सभी कार्बनिक यौगिकों को जैव अणु कहते हैं।
- कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates); जैसे – ग्लूकोस, फ्रक्टोस, राइबोस, डिऑक्सीराबोस शर्करा, माल्टोस आदि।
- वसा व तेल (Fat & Oils) – पामिटिक अम्ल, ग्लिसरॉल, ट्राइग्लिसराइड, फॉस्फोलिपिड्स, कोलेस्टेरॉल आदि।
- ऐमीनो अम्ल (Amino Acids) – ग्लाइसीन, ऐलेनीन, सीरीन आदि।
- नाइट्रोजन क्षारक (Nitrogenous Base) – ऐडेनीन (adenine), ग्वानीन (guanine), थायमीन (thymine), यूरेसिल (uracil), सायटोसीन (cytosine) आदि।
जीव ऊतकों में पाये जाने वाले कम अणुभार के कार्बनिक यौगिकों की संरचनाएँ:
शर्करा (कार्बोहाइड्रेट्स)
ऐमीनो अम्ल
ट्राइग्लिसराइड R2, R2 व R3
फॉस्फोलिपिड (लेसीथीन)
वसा व तेल (लिपिड्स)
शर्करा उद्योग, तेल एवं घी उद्योग, औषधि उद्योग आदि इनका निर्माण करते हैं। मनुष्य इनका उपयोग अपनी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु करता है।
प्रश्न 5.
प्रोटीन में प्राथमिक संरचना होती है, यदि आपको जानने हेतु ऐसी विधि दी गई है जिसमें प्रोटीन के दोनों किनारों पर ऐमीनो अम्ल है तो क्या आप इस सूचना को प्रोटीन की शुद्धता अथवा समांगता (homogeneity) से जोड़ सकते हैं?
उत्तर:
प्रोटीन्स की पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ लम्बी व रेखाकार होती हैं। प्रोटीन कुण्डलन एवं वलन द्वारा विभिन्न प्रकार की आकृति धारण करती है। इन्हें प्रोटीन्स के प्राकृत संरूपण (native conformation) कहते हैं। प्रोटीन के प्राकृत संरूपण चार स्तर के होते हैं – प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक एवं चतुष्क स्तर। पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला में पेप्टाइड बन्धों द्वारा जुड़े ऐमीनो अम्लों के अनुक्रम प्रोटीन की संरचना का प्राथमिक स्तर प्रदर्शित करते हैं। प्रोटीन से ऐमीनो अम्लों का अनुक्रम इसके जैविक। प्रकार्य का निर्धारण करता है।
चित्र – कल्पित प्रोटीन के अंश की प्राथमिक संरचना N व C प्रोटीन के दो सिरों को प्रकट करता है। ऐमीनो अम्ल का एकल अक्षरीय कूट तथा 3-अक्षरीय कूट दर्शाया गया है।
पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला के एक सिर पर प्रथम ऐमीनो अम्ल का खुला ऐमीनो समूह तथा दूसरे सिरे पर अन्तिम ऐमीनो अम्ल का खुला कार्बोक्सिल समूह (carboxyl group) होता है। अतः इन सिरों को क्रमश: N – छोर तथा C – छोर कहते हैं। इससे प्रोटीन की शुद्धता या समांगता प्रदर्शित होती है।
प्रश्न 6.
चिकित्सार्थ अभिकर्ता (therapeutic agents) के रूप में प्रयोग में आने वाले प्रोटीन का पता लगाइए व सूचीबद्ध कीजिए। प्रोटीन की अन्य उपयोगिताओं को बताइए। (जैसे-सौन्दर्य प्रसाधन आदि)।
उत्तर:
कुछ प्रोटीन्स विषाक्त (toxic) होते हैं; जैसे – रोगजनक जीवाणुओं के प्रोटीन्स, सर्पविष का प्रोटीन, कपास के बीज में पाए जाने वाला प्रोटीन (Gossypiun) रेंडी के बीज का प्रोटीन (ricin) आदि। इन प्रोटीन्स का उपयोग औषधियों के रूप में रोगों के उपचार हेतु किया जाता है।
प्रोटीन्स के अन्य उपयोग (Other Uses of Proteins):
- पोषक प्रोटीन्स: दूध का केसीन (casein), पक्षी के अण्डों का ऐल्बुमिन (albumin), अनाज; जैसे – गेहूँ का ग्लूटेलिन, मक्का का जाइन्स (zeins), मटर का फैसिओलिन (phaseolin) प्रोटीन आदि पोषक प्रोटीन हैं।
- रेशम कीट की फाइब्रोइन प्रोटीन सूखकर रेशम धागे का निर्माण करता है।
- कुछ पौधों द्वारा निर्मित मोनेलिन (monellin) अत्यन्त मीठा होता है। इसका उपयोग मधुमेह रोगियों के लिए कृत्रिम शर्करा के रूप में किया जाता है।
- शीतल जल में रहने वाली मछलियों में रुधिर को जमने. से रोकने के लिए प्रतिहिम प्रोटीन (antifreeze protein) पाया जाता है। इसका उपयोग ट्रान्सजेनिक जन्तु एवं पादपों के लिए किया जा रहा है।
प्रश्न 7.
ट्राइग्लिसराइड के संघटन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ट्राइग्लिसराइड (Triglyceride):
ग्लिसरॉल (glycerol) का एक अणु वसीय अम्लों (fatty acids) के तीन अणुओं से क्रिया करके वसा का एक अणु बनाता है। ग्लिसरॉल तथा वसा अम्ल अणुओं के बीच सहसंयोजन बन्धों को एस्टर बन्ध (ester bonds) कहते है।
ग्लिसरॉल एक ट्राइहाइड्रिक ऐल्कोहॉल है जिसकी कार्बन शृंखला के तीनों कार्बन परमाणुओं से एक-एक हाइड्रॉक्सिल समूह (-OHgroup) जुड़ा होता है। इसी कारण वसा अणु को ट्राइग्लिसराइड (triglyceride) कहते हैं। यह क्रिया निर्जलीकरण-संघनन संश्लेषण (dehydrationcondensationsynthesis) द्वारा होती है। ट्राइग्लिसराइड अणु के तीनों वसा अम्ल समान या असमान हो सकते हैं।
ट्राइग्लिसराइड (R1, R2 व R3 वसीय अम्ल हैं।)
प्रश्न 8.
क्या आप प्रोटीन की अवधारणा के आधार पर वर्णन कर सकते हैं कि दूध का दही अथवा योगर्ट में परिवर्तन किस प्रकार होता है?
उत्तर:
दूध की विलेय प्रोटीन केसीनोजन (caseinogen) की अविलेय केसीन (casein) में बदलने का कार्य रेनिन (rennin) एन्जाइम तथा स्ट्रेप्टोकोकस जीवाणु करते हैं। ये किण्वन द्वारा दूध को दही या योगर्ट में बदल देते हैं; क्योंकि केसीनोजन प्रोटीन अवक्षेपित हो जाती है।
प्रश्न 9.
क्या आप व्यापारिक दृष्टि से उपलब्ध परमाणु मॉडल (बॉल व स्टिक नमूना) का प्रयोग करते हुए जैव अणुओं के उन प्रारूपों को बना सकते हैं?
उत्तर:
बॉल व स्टिक नमूना (Ball and Stick Model) के द्वारा जैव अणुओं के प्रारूपों को प्रदर्शित किया जा सकता है।
प्रश्न 10.
ऐमीनो अम्लों को दुर्बल क्षार से अनुमापन (titrate) कर, ऐमीनो अम्ल में वियोजी क्रियात्मक समूहों का पता लगाने का प्रयास कीजिए।
उत्तर:
ऐमीनो अम्लों का दुर्बल क्षार से अनुमापन करने से कार्बोक्सिल समूह (-COOH) तथा ऐमीनो समूह (-NH2) पृथक हो जाते हैं।
प्रश्न 11.
ऐलैनीन ऐमीनो अम्ल की संरचना बताइए।
उत्तर:
ऐलैनीन एमीनो अम्ल एक उदासीन अम्ल है जिसका निर्माण एक एमीनो समूह तथा कार्बोक्सिल समूह से होता है।
एमीनो अम्ल
प्रश्न 12.
गोंद किससे बने होते हैं? क्या फेविकोल इससे भिन्न है?
उत्तर:
गोंद (Gum):
यह एक द्वितीयक उपापचयज (secondary metabolite) है। यह एक कार्बोहाइड्रेट बहुलक, (polymer) है। गोंद पौधों की काष्ठ वाहिकाओं (xylem vessels) से प्राप्त होने वाला उत्पाद है। यह कार्बनिक घोलक में अघुलनशील होता है। गोंद जल के साथ चिपचिपा घोल (sticky solution) बनाता है। फेविकोल (fevicol) एक कृत्रिम औद्योगिक उत्पाद है।
प्रश्न 13.
प्रोटीन, वसा व तेल, ऐमीनो अम्लों का विश्लेषणात्मक परीक्षण बताइए एवं किसी भी फल के रस, लार, पसीना तथा मूत्र में इनका परीक्षण कीजिए?
उत्तर:
प्रोटीन एवं अमीनो अम्ल का परीक्षण (Protein and Amino Acid Test):
प्रोटीन के वृहत् अणु (macromolecules) ऐमीनो अम्लों की लम्बी श्रृंखलाएँ होते हैं। ऐमीनो अम्ल पेप्टाइड बन्धों द्वारा जुड़े रहते हैं। इनका आण्विक भार बहुत अधिक होता है। अण्डे की सफेदी, सोयाबीन, दालों (मटर, राजमा आदि) में प्रोटीन (ऐमीनो अम्ल) प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। अण्डे की सफेदी या दालों (सेम, चना, मटर, राजमा) आदि को जल के साथ पोरकर पतली लुगदी बना लेते हैं। इसे जल के साथ उबाल कर छान लेते हैं। निस्वंद द्रव में प्रोटीन (ऐमीनो अम्ल) होती है।
प्रयोग 1:
एक परखनली में 3 मिली प्रोटीन निस्यंद लेकर, इसमें 1 मिली सान्द्र नाइट्रिक अम्ल (HNO3) मिलाइए। सफेद अवक्षेप बनता है। परखनली को गर्म करने पर अवक्षेप घुल जाता है तथा विलयन का रंग पीला हो जाता है। अब इसे ठण्डा करके इसमें 10% सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) विलयन मिलाते हैं। परखनली में विलयन का रंग पीले से नारंगी हो जाता है।
प्रयोग 2:
एक परखनली में प्रोटीन निस्यंद की 1 मिली मात्रा लेकर इसमें लगभग 1 मिली मिलन अभिकर्मक (Millon’s Reagent) मिलाने पर हल्के पीले रंग का अवक्षेप बनता है। इस अवक्षेप में 4-5 बूँदे सोडियम नाइट्रेट (NaNO3) की मिलाकर विलयन को गर्म करने पर अवक्षेप का रंग लाल हो जाता है।
वसा व तेल का परीक्षण (Fat and Oil Test):
ये जल में अविलेय और ईथर, पेट्रोल, क्लोरोफार्म आदि में घलनशील (विलेय) होती है। साधारण ताए पर जब वसाएँ ठोस होती हैं तो वसा (चर्बी – Fat) और जब ये तरल होती है तो तेल (oil) कहलाती है। पादप वस्साएँ असंतृप्त (नारियल का तेल तथा ताड़ का तेल संतृप्त) तथा जन्तु वसाएँ संतृप्त होती हैं।
प्रयोग 1:
मूंगफली के कच्चे दाने लेकर उनको सफेद कागज पर रखकर पीस लीजिए। अब इस कागज के टुकड़े को प्रकाश के किसी स्रोत की ओर रखकर देखिए। यह अल्पपारदर्शी नजर आता है। इस पर एक बूंद पानी डालकर देखिए। कागज पर पानी का प्रभाव नहीं होता। यह प्रयोग जन्तु वसा (देशी घी) के साथ भी किया जा सकता है।
प्रयोग 2:
एक परखनली में 0.5 मिली परीक्षण तेल या वसा तथा 0.5 मिली जल (दोनों बराबर मात्रा में) लेते है। अब इसमें 2-3 बूंदे सुडान – III विलयन की डालकर हिलाते हैं तथा पाँच मिनट तक ऐसे ही रख देते हैं। परखनली में जल तथा तेल की पृथक् पतों में, तेल की पर्त लाल नजर आती है। नोट-फल के रस, लार, पसीना तथा मूत्र में इनका परीक्षण उपर्युक्त विधियों द्वारा किया जा सकता है।
प्रश्न 14.
पता लगाइए कि जैवमण्डल में सभी पादपों द्वारा कितने सेलुलोस का निर्माण होता है? इसकी तुलना मनुष्यों द्वारा उत्पादित कागज से करें। मानव द्वारा प्रतिवर्ष पादप पदार्थों की कितनी खपत की जाती है? इसमें वनस्पतियों की कितनी हानि होती है?
उत्तर:
सेलुलोस (cellulose) पृथ्वी पर सबसे अधिक मात्रा में पाए जाने वाला कार्बोहाइड्रेट है। यह जटिल बहुलक होता है। पादपों में सेलुलोस की मात्रा सर्वाधिक होती है। यह पादप कोशिकाओं की कोशिका भित्ति को यान्त्रिक दृढ़ता प्रदान करता है। पौधों के काष्ठीय भागों व कपास तथा रेशेदार पौधों में इसकी मात्रा बहुत अधिक होती है। काष्ठ में लगभग 50% तथा कपास के रेशे में इसकी मात्रा लगभग 90% होती है। मनुष्य द्वारा सेलुलोस का उपयोग ईधन तथा इमारती लकड़ी के रूप में, तन्तुओं के रूप में वस्त्र निर्माण, कृत्रिम रेशे निर्माण, कागज निर्माण में प्रमुखता से किया जाता है।
नाइट्रोसेलुलोस का उपयोग विस्फोटक पदार्थ के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग पारदर्शी प्लास्टिक सेलुलॉयड (celluloid) बनाने के लिए किया जाता है जिससे खिलौने, कंघे आदि बनाए जाते हैं। मनुष्य सेलुलोस का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनस्पतियों को हानि पहुँचा रहा है। इसके फलस्वरूप प्राकृतिक वन क्षेत्रों में निरन्तर कमी होतो जा रही है। पारितन्त्र के प्रभावित होने के कारण अनेक पादप प्रजातियाँ विलुप्त होती जा रही हैं।
प्रश्न 15.
एन्जाइम के महत्त्वपूर्ण गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एन्जाइम्स की विशेषताएँ (गण) (Characteristics of Enzymes):
एन्जाइम्स के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं –
- एन्जाइम्स कोलॉइडी प्रोटीन्स होते हैं। ये जल, नमक के घोल तथा ग्लिसरीन में विलेय होते हैं।
- एन्जाइम्स का कार्य-क्षेत्र अति विशिष्ट होता है। सामान्यतया एक एन्जाइम एक प्रतिक्रिया को ही उत्प्रेरित करता हैं।
- एन्जाइम्स 25-35°C पर सर्वाधिक क्रियाशील होते हैं। 60°C से अधिक ताप पर ये नष्ट हो जाते हैं। 0°C ताप पर ये निष्क्रिय हो जाते हैं।
- इनकी कार्य-क्षमता अत्यधिक होती है। ये प्रति मिनट लाखों अणुओं को उत्प्रेरित कर सकते हैं।
- एन्जाइम्स की सूक्ष्म मात्रा ही क्रिया को प्रेरित कर देती हैं।
- एन्जाइम्स की क्रियाशीलता pH मान से प्रभावित होती है। pH मान की अधिकता या कमी इनकी कार्य-क्षमता को प्रभावित या नष्ट कर देती है।
- एन्जाइम नष्ट नहीं होते। एन्जाइम क्रिया के पश्चात् जैसे के तैसे बच जाते हैं।
- एन्जाइम्स सहकारक (cofactor) की उपस्थिति में क्रियाशील होते हैं। सहकारक प्रोस्थैटिक समूह (prosthetic group), सहएन्जाइम (coenzyme) या अकार्बनिक आयन (inorganic ions) होते हैं।
- एन्जाइम की क्रियाएँ प्रायः शृंखलाबद्ध होती हैं। एक एन्जाइम क्रिया का उत्पाद (product) दूसरे एन्जाइम के लिए क्रियाधार (substrate) का कार्य करता है।
- एन्जाइम सामान्यतया जल-अपघटन (hydrolysis), कार्बोक्सिलीकरण (decarboxylation), ऑक्सीकरण व अवकरण (oxidation and reduction) आदि रासायनिक क्रियाओं को प्रेरित करते हैं।
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