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Monday, June 20, 2022

BSEB Class 11 Chemistry पर्यावरणीय रसायन Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Chemistry पर्यावरणीय रसायन Book Answers

BSEB Class 11 Chemistry पर्यावरणीय रसायन Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Chemistry पर्यावरणीय रसायन Book Answers
BSEB Class 11 Chemistry पर्यावरणीय रसायन Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Chemistry पर्यावरणीय रसायन Book Answers


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Bihar Board Class 11th Chemistry पर्यावरणीय रसायन Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 11th
Subject Chemistry पर्यावरणीय रसायन
Chapters All
Provider Hsslive


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Bihar Board Class 11 Chemistry पर्यावरणीय रसायन Text Book Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 14.1
पर्यावरणीय रसायन शास्त्र को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरणीय रसायन शास्त्र, विज्ञान की वह शाखा है, जो पर्यावरण में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों से सम्बन्धित है। इसमें हमारे चारों ओर का वातावरण सम्मिलित होता है; जैसे-वायु, जल, मिट्टी, जंगल, सूर्य का प्रकाश आदि।

प्रश्न 14.2
क्षोभमण्डलीय प्रदूषण को लगभग 100 शब्दों में समझाइए।
उत्तर:
क्षोभमण्डलीय प्रदूषण वायुमण्डल का सबसे निचला क्षेत्र, जिसमें मनुष्य तथा अन्य प्राणि रहती हैं, क्षोभमण्डल कहलाता है। यह समुद्र-तल से 10 किमी की ऊँचाई तक होता है। क्षोभमण्डल धूलकणों से युक्त क्षेत्र होता है जिसमें वायु, अधिक जलवाष्प तथा बादल उपस्थित होते हैं। इस क्षेत्र में वायु का तीव्र प्रवाह एवं बादलों का निर्माण होता है। वस्तुतः वायु में उपस्थित अवांछनीय ठोस अथवा गैस कणों के कारण क्षोभमण्डलीय प्रदूषण होता है। क्षोभमण्डल में मुख्यतः निम्नलिखित गैसीय तथा कणिकीय प्रदूषक उपस्थित होते हैं –

(क) गैसीय वायुप्रदूषक:
ये सल्फर, नाइट्रोजन तथा कार्बन के ऑक्साइड, हाइड्रोजन, सल्फर, हाइड्रोकार्बन, ओजोन तथा अन्य ऑक्सीकारक हैं। जीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोलियम आदि) के दहन के परिणामस्वरूप सल्फर के ऑक्साइड (मुख्यत: सल्फर ऑक्साइड SO2) उत्पन्न होते हैं। SO2 की सूक्षम सान्द्रता मनुष्य में विभिन्न श्वसन-रोगों (जैसे-अस्थमा, श्वसनी शोथ, ऐम्फाइसीमा आदि) का कारण होती है। इसके कारण आँखों में जलन होती है तथा आँखें लाल हो जाती हैं। SO2 की उच्च सान्द्रता फूलों की कलियों में कड़ापन उत्पन्न करती है।

जिससे ये पौधों से शीघ्र गिर जाती है। यातायात तथा सघन स्थानों पर उत्पन्न तीक्ष्ण लाल धूम्र नाट्रोजन ऑक्साइड के कारण होता है। NO2 की अधिक सान्द्रता होने पर पौधों की पत्तियाँ गिर जाती हैं तथा प्रकाश-संश्लेषण की दर कम हो जाती है। कार्बन मोनोक्साइड भी एक प्राणघातक गैस है। इसके स्त्रोत मोटरवाहनों से निकला धुआँ तथा कोयला, ईंधन-लकड़ी, पेट्रोल का अपूर्ण दहन हैं इसकी 1300 ppn सान्द्रता आधे घण्टे में प्राणघातक हो जाती हैं। इसी प्रकार कार्बन डाइऑक्साइड की वायुमण्डल में बढ़ी हुई मात्रा भूमण्डलीय तापवृद्धि के लिए उत्तरदायी होती है।

(ख) कणिकीय प्रदूषक:
कणिकीय पदार्थ वायु में निलम्बित सूक्ष्म ठोस कण अथवा द्रवीय बूंद होते हैं। यह मोटरवाहनों के उत्सर्जन, अग्नि के धूम्र, धूल कण तथा उद्योगों की राख होते हैं। वायुमण्डल में कणिकाएँ जीवित तथा अजीवित दोनो ‘प्रकार की हो सकती हैं। जीवित कणिकाओं में जीवाणु, कवक, फफूंद, शैवाल आदि सम्मिलित हैं।

हवा में पाए जाने वाले कुछ कवक मनुष्य में एनर्जी उत्पन्न करते हैं। ये पौधों के रोग भी उत्पन्न कर सकते हैं। कणिकीय प्रदूषकों का प्रभाव मुख्यतया उनके कणों के आकार पर निर्भर करता है। हवा में ले जाए जाने वाले कण; जैसे-धूल, धूम, कोहरा आदि मानवीय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। 5 माइक्रोम से बड़े कणिक प्रदूषक नासिका द्वार में जमा हो जाते हैं, जबकि लगभग 1.0 माइक्रोन के कण फेफड़ों में आसानी से प्रवेश कर जाते हैं।

प्रश्न 14.3
कार्बन डाइ-ऑक्साइड की अपेक्षा कार्बन मोनोक्साइड अधिक खतरनाक क्यों है? समझाइए।
उत्तर:
कार्बन डाइ-ऑक्साइड की अपेक्षा कार्बन मोनोक्साइड अधिक खतरनाक है; क्योंकि यह श्वसित किए जाने पर हीमोग्लोबिन के साथ ऑक्सीजन की अपेक्षा अधिक प्रबलता से संयुक्त हो जाती है तथा कॉर्बोक्सीहीमोग्लोबिन बनाती है, जो ऑक्सीजन-हीमोग्लोबिन से लगभग 300 गुना अधिक स्थायी संकुल है।

जब रक्त में कोर्बोक्सीहीमोग्लोबिन की मात्रा 3.4% तक पहुँच जाती है, तब रक्त में ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता काफी कम हो जाती है। ऑक्सीजन की इस न्यूनता से सिरदर्द, नेत्रदृष्टि की क्षीणत, तंत्रकीय आवेश में न्यूनतम हृदयवाहिका में तन्त्र अव्यवस्था आदि की विसंगतियाँ हो जाती हैं। कार्बन मोनोक्साइड की 1300 ppm सान्द्रता आधे घण्टे में प्राणघातक हो जाती है। दूसरी ओर, कार्बन डाइ-ऑक्साइड का हानिकारक प्रभाव केवल यह है कि इसकी वायुमण्डल में बढ़ी हुई मात्रा भूमण्डलीय तापवृद्धि के लिए उत्तरदायी होती है।

प्रश्न 14.4
ग्रीनहाउस-प्रभाव के लिए कौन-सी गैसें उत्तरदायी हैं? सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
ग्रीनहाउस-प्रभाव के लिए कार्बन डाइ-ऑक्साइड, मेथेन, ओजोन, क्लोरोफ्लोरो कार्बन यौगिक आदि उत्तरदायी हैं। ये गैसें वायुमण्डल में विकिरित सौर-ऊर्जा की कुछ मात्रा ग्रहण करके भूमण्डल का ताप बढ़ा देती हैं।

प्रश्न 14.5
अम्लवर्षा मूर्तियों तथा स्मारकों को कैसे दुष्प्रभावित करती हैं?
उत्तर:
अम्लवर्षा में वायुमण्डल से पृथ्वी-सतह पर अम्ल निक्षेपित हो जाती है। अम्लीय प्रकृति के नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड वायुमण्डल में ठोस कणों के साथ हवा में बहकर या तो ठोस रूप में अथवा जल में द्रव रूप में कुहासे से या हिम की भाँति निक्षेपित होते हैं। नाइट्रोजन तथा सल्फर के ऑक्साइड ऑक्सीकरण के पश्चात् जल के साथ अभिक्रिया कर अम्लवर्षा में प्रमुख योगदान देते हैं, क्योंकि प्रदूषित वायु में सामान्यतया कणिकीय द्रव्य उपस्थित होते हैं, जो ऑक्सीकरण को उत्प्रेरित करते हैं।

2SO2 (g) + O2 (g) + 2H2O (l) → 2H2SO4 (aq)
4NO2 (g) + O2 (g) + 2H2O (l) → 4HNO3 (aq)

अम्लवर्षा पत्थर एवं धातुओं से बनी संरचनाओं; जैसेमूर्तियों तथा स्मारकों को नष्ट करती है। जोकि संगमरमर (CaCO3) से निम्नलिखित अभिक्रिया करती है –

प्रश्न 14.6
धूम कुहरा क्या है? सामान्य धूम कुहरा प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे से कैसे भिन्न है?
उत्तर:
धूम कोहरा-‘धूम-कोहरा’ शब्द ‘धूम’ एवं “कोहरे’ से मिलकर बना है। अतः जब धूम, कोहरे के साथ मिल जाता है तब यह धूम-कोहरा कहलाता है। विश्व के अनेक शहरों में प्रदूषण इसका आम उदाहरण है। धूम कोहरे दो प्रकार के होते है –

1. सामान्य धूम कोहरा:
यह ठण्डी नम जलवायु में होता है तथा धूम, कोहरे एवं सल्फर डाइऑक्साइड का मिश्रण होता है। रासायनिक रूप से यह एक अपचायक मिश्रण है। अतः इसे ‘अपचायक धूम-कोहरा’ भी कहते हैं।

2. प्रकाश रासायनिक धूम कोहरा:
उष्ण, शुष्क एवं साफ धूपमयी जलवायु में होता है। यह स्वचालित वाहनों तथा कारखानों से निकलने वाले नाइट्रोजन के ऑक्साइडों तथा हाइड्रोकार्बनों पर सूर्यप्रकाश की क्रिया के कारण उत्पन्न होता है। प्रकाश रासायनिक धूम कोहरे की रासायनिक प्रकृति ऑक्सीकारक है। चूंकि इसमें ऑक्सीकारक अभिकर्मकों की सान्द्रता उच्च रहती है; अतः इसे ‘ऑक्सीकारक धूम कोहरा’ कहते हैं।

प्रश्न 14.7
प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के निर्माण के दौरान होने वाली अभिक्रिया लिखिए।
उत्तर:
प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के निर्माण के दौरान होने वाली अभिक्रियाएँ निम्नवत् हैं –

ओजोन एक जहरीली गैस है। NO2 तथा O3 दोनों ही प्रबल ऑक्सीकारक हैं। इस कारण प्रदूषित वायु में उपस्थित अदहित हाइड्रोकार्बनों के साथ अभिक्रिया करके कई रसायनों जैसे-फार्मेल्डिहाइड, एक्रोलीन एवं परॉक्सी ऐसीटिल नाइट्रेट (PAN) का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 14.8
प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के दुष्परिणाम क्या हैं? इन्हें कैसे नियन्त्रित किया जा सकता है?
उत्तर:
प्रकाश रासायनिक धूम-कोहरे के दुष्परिणामप्रकाश रासायनिक धूम कोहरे के सामान्य घटक ओजोन, नाइट्रिक ऑक्साइड, सक्रोलीन, फॉर्मेल्डिहाइड एवं परॉक्सीऐसीटिल नाइट्रेट (PAN) हैं। प्रकाश रासायनिक धूम-कोहरे के कारण गम्भीर स्वास्थ्य समस्याएँ होती हैं। ओजोन एवं नाइट्रिक ऑक्साइड नाक एवं गले में जलन पैदा करते हैं।

इनकी उच्च सान्द्रता से सरदर्द, छाती में दर्द, गले का शुष्क होना, खाँसी एवं श्वास अवरोध हो सकता है। प्रकाश रासायनिक धूम-कोहरा रबर में दरार उत्पन्न करता है एवं पौधों पर हानिकारक प्रभाव डालता है। यह धातुओं, पत्थरों; भवन-निर्माण के पदार्थों एवं रंगी हुई सतहों (painted surfaces) का क्षय भी करता है।

प्रकाश रासायनिक धूम-कोहरे के नियंत्रण के उपायप्रकाश रासायनिक धूम-कोहरे को नियन्त्रित या कम करने के लिए कई तकनीकों का उपयोग किया जाता है। यदि हम प्रकाश रासायनिक धूम-कोहरे के प्राथमिक पूर्वगामी; जैसे – NO2, एवं हाइड्रोकार्बन को नियन्त्रित कर लें, तो द्वितीयक पूर्वगामी; जैसेओजोन एवं PAN तथा प्रकाश रासायनिक धूम-कोहरा स्वतः ही कम हो जाएगा।

सामान्यतया स्वचालित वाहनों में उत्प्रेरित परिवर्तक उपयोग में लाए जाते हैं, जो वायुमण्डल में नाइट्रोजन ऑक्साइड एवं हाइड्रोकार्बन के उत्सर्जन को रोकते हैं। कुछ पौधों (जैसे-पाइनस, जुनीठर्स, क्वेरकस, पायरस तथा विटिस), जो नाइट्रोजन ऑक्साइड का उपापचय कर सकते हैं, का रोपण इस सन्दर्भ में सहायक हो सकता है।

प्रश्न 14.9
क्षोभमण्डल पर ओजोन परत के क्षय में होने वाली अभिक्रिया कौन-सी है?
उत्तर:
ओजोन परत में अवक्षय का मुख्य कारण क्षोभमण्डल से क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) यौगिकों का उत्सर्जन है। CFC वायुमण्डल की अन्य गैसों से मिश्रित होकर सीधे समतापमण्डल में पहुँच जाते हैं। समतापमण्डल में ये शक्तिशाली विकिरणों द्वारा अपघटित होकर क्लोरीन मुक्त मूलक उत्सर्जित करते हैं।

क्लोरीन मुक्त मूलक तब समतापमण्डलीय ओजोन से अभिक्रिया करके क्लोरीन मोनोक्साइड मूलक तथा आण्विक ऑक्सीजन बनाते हैं।

क्लोरीन मोनोक्साइड मूलक परमाण्वीय ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया करके अधिक क्लोरीन मूलक उत्पन्न करता है।

प्रश्न 14.10
ओजोन छिद्र से आप क्या समझते हैं? इसके परिणाम क्या हैं?
उत्तर:
ओजोन-छिद्र:
सन् 1980 में वायुमण्डलीय वैज्ञानिकों ने अटार्कटिका पर कार्य करते हुए दक्षिणी ध्रुव के ऊपर ओजोन परत के क्षय जिसे सामान्य रूप से ‘ओजोन-छिद्र’ कहते हैं, के बारे में बताया। यह पाया गया कि ओजोन छिद्र के लिए परिस्थितियों का एक विशेष समूह उत्तरदायी था। गर्मियों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड परमाणुओं [अभिक्रिया (i)] एवं क्लोरीन परमाणुओं [अभिक्रिया (ii)] से अभिक्रिया करके क्लोरीन सिंक बनाते हैं, जो ओजोन-क्षय को अत्यधिक सीमा तक रोकता है।

जबकि सर्दी के मौसम में विशेष प्रकार के बादल, जिन्हें ‘ध्रुवीय समतापमण्डलीय बादल’ कहा जाता है, अंटार्कटिका के ऊपर बनते हैं। ये बादल एक प्रकार की सतह प्रदान करते हैं, जिस पर बना हुआ क्लोरीन नाइट्रेट [अभिक्रिया (i)] जलयोजित होकर हाइपोक्लोरस अम्ल बनाता है। [अभिक्रिया (iii)] अभिक्रिया में उत्पन्न हाइड्रोजन क्लोराइड से भी अभिक्रिया करके यह आण्विक क्लोरीन देता है।

ClO(g) + NO2 (g) → ClONO2 (g) … (i)
Cl (g) + CH4 (g) → CH3 (g) + HCl (g) … (ii)
ClONO2 (g) + H2O (g) → HOCl(g) + HNO3 (g) … (iii)
ClONO2 (g) + HCl(g) → Cl2 (g) + HNO3 (g) … (iv)

वसन्त में अंटार्कटिका पर जब सूर्य का प्रकाश लौटता है, तब । सूर्य की गर्मी बादलों को विखण्डित कर देती है एवं HOCl तथा Cl2 सूर्य के प्रकाश से अपघटित हो जाते हैं [अभिक्रिया तथा vi]

इस प्रकार उत्पन्न क्लोरीन मूलक, ओजोन-क्षय के लिए श्रृंखला अभिक्रिया प्रारम्भ कर देते हैं। ओजोन छिद्र के परिणाम (Results of Ozone hole) ओजोन परत के साथ अधिकाधिक पराबैंगनी विकिरण क्षोभमण्डल में छनित होते हैं। पराबैंगनी विकिरण से त्वचा का जीर्णन, मोतियाबिन्द, सनबर्न, त्वचा-कैन्सर, कई पादपप्लवकों की मृत्यु, मत्स्य उत्पाद की क्षाति आदि होते हैं।

यह भी देखा गया है कि पौधों के प्रोटीन पराबैंगनी विकिरणों से आसानी से प्रभावित हो जाते हैं, जिससे कोशिकाओं का हानिकारक उत्परिवर्तन होता है। इससे पत्तियों के रंध्र से जल का वाष्पीकरण भी बढ़ जाता है, जिससे मिट्टी की नमी कम हो जाती है। बढ़े हुए पराबैंगनी विकिरण रंगों एवं रेशों की भी हानि पहुँचाते हैं, जिससे रंग जल्दी हल्के हो जाते हैं।

प्रश्न 14.11
जल-प्रदूषण के मुख्य कारण क्या हैं? समझाइए।
उत्तर:
जल-प्रदूषण के मुख्य कारण:

1. रोगजनक:
सबसे अधिक गम्भीर जल-प्रदूषक रोगों के कारकों को ‘रोगजनक’ कहा जाता है। रोगजनकों में जीवाणु एवं अन्य जीव हैं, जो घरेलू सीवेज एवं पशु-अपशिष्ट द्वारा जल में प्रवेश करते हैं। मानव-अपशिष्ट एशरिकिआ कोली, स्ट्रेप्टोकॉकस फेकेलिस आदि जीवाणु होते है, जो जठरांत्र बीमारियों के कारण होते हैं।

2. कार्बनिक अपशिष्ट:
अन्य मुख्य जल-प्रदूषण कार्बनिक पदार्थ; जैसे-पत्तियाँ, घास, कूडा-करकट आदि हैं। ये जल को प्रदूषित करते हैं। जल में पादप-प्लवकों की अधिक बढ़ोत्तरी भी जल-प्रदूषण का एक कारण है।

प्रश्न 14.12
क्या आपने अपने क्षेत्र में जल-प्रदूषण देखा है? इसे नियन्त्रित करने के कौन-से उपाय हैं?
उत्तर:
हाँ, हमारे क्षेत्र में जल प्रदूषित है। जल के प्रदूषित होने की जाँच भी हम स्वयं ही कर सकते हैं। इसके लिए हम स्थानीय जल-स्त्रोतों का निरीक्षण कर सकते हैं। जैसे कि नदी, झील, हौद, तालाब आदि का पानी अप्रदूषित या आंशिक प्रदूषित या सामान्य प्रदूषित अथवा बुरी तरह प्रदूषित है। जल को देखकर या उसकी pH जाँचकर इसे देखा जा सकता है। निकट के शहरी या औद्योगिक स्थल, जहाँ से प्रदूषण उत्पन्न होता है, के नाम का प्रलेख करके इसकी सूचना सरकार द्वारा प्रदूषण-मापन के लिए गठित ‘प्रदूषण नियन्त्र बोर्ड’ कार्यालय को दी जा सकती है तथा समुचित कार्यवाही सुनिश्चित की जा सकती है।

हम इसे मीडिया को भी बता सकते हैं। जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए हमें नदी, तालाब, जलधारा या जलाशय में घेरलू अथवा औद्योगिक अपशिष्ट को सीधे नहीं डालना चाहिए। बगीचों में रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए। डी०डी०टी०, मैलाथिऑन आदि कीटनाशी के प्रयोग से बचना चाहिए तथा यथासम्भव नीम की सूखी पत्तियों का प्रयोग कीटनाशी के रूप में करना चाहिए। घरेलू पानी टंकी में पोटैशियम परमैंगनेट (KMnO4) के कुछ क्रिस्टल अथवा ब्लीचिंग पाउडर की थोड़ी मात्रा डालनी चाहिए।

प्रश्न 14.13
आप अपने ‘जीव रसायनी ऑक्सीजन आवश्यकता’ (BOD) से क्या समझते हैं?
उत्तर:
जल के एक नमूने के निश्चित आयतन में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ को विखण्डित करने के लिए जीवाणु द्वारा आवश्यक ऑक्सीजन को जैव – रासायनिक ऑक्सीजन माँग (BOD) कहा जाता है। अत: जल में BOD की मात्रा कार्बनिक पदार्थ को जैवीय रूप में विखण्डित करने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा होगी। स्वच्छ जल की BOD का मान 5ppm से कम होता है जबकि अत्यधिक प्रदूषित में यह 17 ppm या इससे अधिक होता है।

प्रश्न 14.14
क्या आपने आस-पास के क्षेत्र में भूमि-प्रदूषण देखा है? आप भूमि-प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए क्या प्रयास करेंगे?
उत्तर:
हाँ, हमने अपने आस-पास के क्षेत्र में भूमि-प्रदूषण देखा है।

भूमि प्रदूषण की रोकथाम के उपाय
मृदा प्रदूषण की रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय है –

  1. फसलों पर विषैले कीटनाशकों का छिड़काव सावधानीपूर्व करना चाहिए।
  2. डी० डी० टी० का प्रयोग बहुत अधिक न करें।
  3. सिंचाई तथा उर्वरकों का प्रयोग करने के पूर्व मिट्टी और जल का परीक्षण करा लेना चाहिए।
  4. रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर कम्पोस्ट तथा हरी खाद को वरीयता देनी चाहिए।
  5. खेतों में जल के निकास की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
  6. क्षारीय भूमि को वैज्ञानिक ढंग से शोधित किया जाना चाहिए। जिप्सम, सिंचाई तथा रासायनिक खादों का प्रयोग करके क्षारीय मिट्टी को उर्वर बनाया जा सकता है।
  7. मिट्टी के कटाव को रोकने के उपाय किए जाने चाहिए।
  8. खेतों के किनारे (मेंडों पर) तथा ढालू भूमि पर वृक्षारोपण किया जाना चाहिए।

प्रश्न 14.15
पीडकनाशी तथा शाकनाशी से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
पीडकनाशी (Pesticides):
पीडकनाशी मूल रूप से संश्लेषित रसायन होते हैं। इनका प्रयोग फसलों को हानिकारक कीटों तथा कई रोगों से बचाने हेतु किया जाता है। ऐल्ड्रीन, डाइऐल्ड्रीन, बी०एच०सी० आदि पीडकनाशी के कुछ उदाहरण हैं। ये कार्बनिक जीव-विष जल में अविलेय तथा अजैवनिम्नीकरणीय होते हैं। ये उच्च प्रभाव वाले जीव-विषय भोजन श्रृंखला द्वारा निम्नपोषी स्तर से उच्चपोषी स्तर तक स्थानान्तरित होते हैं। समय के साथ-साथ उच्च प्राणियों में जीव-विषों की सान्द्रता इस स्तर तक बढ़ जाती है कि उपापचयी तथा शरीर क्रियात्मक अव्यवस्था का कारण बन जाते हैं।

शाकनाशी (Herbicides):
वे रसायन जो खरपतवार (weeds) का नाश करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं, शाकनाशी कहलाते हैं। सोडियम क्लोरेट (NaClO3) सोडियम आर्सिनेट (Na3AsO3) आदि शाकनाशी के उदाहरण हैं। अधिकांश शाकनाशी स्तनधारियों के लिए विषैले होते हैं, परन्तु ये कार्ब-क्लोराइड्स के समोन स्थायी नहीं होते तथा कुछ ही माह में अपघटित हो जाते हैं। मानव में जन्मजात कमियों का कारण कुछ शाकनाशी हैं। यह पाया गया है कि मक्का के खेत, जिनमें शाकनाशी का छिड़काव किया गया हो, कीटों के आक्रमण तथा पादप रोगों के प्रति उन खेतों से अधिक सुग्राही होते हैं, जिनकी निराई हाथों से की जाती है।

प्रश्न 14.16
हरित रसायन से आप क्या समझते हैं? यह वातावरणीय प्रदूषण को रोकने में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
हरित रसायन यह सर्वविदित है कि हमारे देश ने 20वीं सदी के अन्त तक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग तथा कृषि की उन्नत विधियों का प्रयोग करके अच्छी किस्म के बीजों, सिंचाई आदि से खाद्यान्नों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली है। परन्तु मृदा के अधिक शोषण एवं उर्वरकों तथा कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से मृदा, जल एवं वायु की गुणवत्ता घटी है। इस समस्या का समाधान विकास के प्रारम्भ हो चुके प्रक्रम को रोकना नहीं अपितु उन विधियों को खोजना है, जो वातावरण के असन्तुलन रोक सके। रसायन विज्ञान तथा अन्य विज्ञानों के उन सिद्धान्तों का ज्ञान, जिससे पर्यावरण के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके, ‘हरित रसायन’ कहलाता है।

हरित रसायन उत्पाद का वह प्रक्रम है, जो पर्यावरण में न्यूनतम प्रदूषण या असन्तुलन लाता है। इसके आधार पर यदि एक-प्रक्रम में उत्पन्न होने वाले सह-उत्पादों को यदि लाभदायक रूप से उपयोग नहीं किया गया है तो वे पर्यावरण प्रदूषण के कारक होते हैं। ऐसे प्रक्रम न सिर्फ पर्यावरणीय दृष्टि से हानिकारक हैं अपितु महँगे भी हैं।

विकास कार्यों के साथ-साथ वर्तमान ज्ञान का रासायनिक हानि को कम करने के लिए उपयोग में लाना ही हरित रसायन का आधार है। एक रासायनिक अभिक्रिया की सीमा, ताप, दाब उत्प्रेरक के उपयोग आदि भौतिक मापदण्ड पर निर्भर करती हैं। हरित रसायन के सिद्धान्तों के अनुसार यदि एक रासायनिक अभिक्रिया में अभिकारक एक पर्यावरण अनुकूल माध्यम में पूर्णत: पर्यावरण अनुकूल उत्पादों में परिवर्तित हो जाए, तो पर्यावरण में कोई रासायनिक प्रदूषक नहीं होगा।

संश्लेषण के दौरान प्रारम्भिक पदार्थ का चयन करते समय हमें सावधानी रखनी चाहिए, जिससे जब भी वह अन्तिम उत्पाद परिवर्तित हो तो अपविष्ट उत्पन्न ही न हो। यह संश्लेषण के दौरान अनुकूल परिस्थितियों को प्राप्त करके किया जाता है। जल की उच्च विशिष्ट ऊष्मा तथा कम वाष्पशीलता के कारण इसे संश्लेषित अभिक्रियाओं के माध्यम के रूप में प्रयुक्त किया जाना वांछित है। जल सस्ता अज्वलनशील तथा अकैंसरजन्य प्रभाव वाला माध्यम है। हरित रसायन के उपयोग से वातावरणीय प्रदूषण को रोकने में किए जाने वाले कुछ महत्त्वपूर्ण प्रयासों का वर्णन निम्नलिखित है –

1. कपड़ों की निर्जल धुलाई में-टेट्राक्लोरोएथीन [Cl2C = CCl2] का उपयोग प्रारम्भ में निर्जल धुलाई के लिए विलायक के रूप में किया जाता था। यह यौगिक भू-जल को प्रदूषित कर देता है। यह एक सम्भावित कैंसरजन्य भी है।

धुलाई की प्रक्रिया में, इस यौगिक का द्रव कार्बन डाइ-ऑक्साइड एवं उपयुक्त उपमार्जक द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। हैलोजेनीकृत 1 लायक का द्रवित CO2 से प्रतिस्थापन भू-जल के लिए कम ह निकारक है। आजकल हाइड्रोजन परॉक्साइड का उपयोग लॉण्ड्री में कपड़ों के विरंजन के लिए किया जाता है, जिससे परिणाम तो अच्छे नि कलते ही हैं, जल का भी कम उपयोग होता है।

2. पेपर का विरंजन:
पूर्व में पेपर के विरंजन के लिए क्लोरीन गेस उपयोग में आती थी। आजकल उत्प्रेरक की उपस्थिति में हाइड्रोजन परॉक्साइड, जो विरंजन क्रिया की दर को बढ़ाता है, उपयोग में लाया जाता है।

3. रसायनों का संश्लेषण:
औद्योगिक स्तर पर एथीन का ऑक्सीकरण आयनिक उत्प्रेरकों एवं जलीय माध्यम की उपस्थिति में करवाया जाए, तो लगभग 90% ऐथेनॉल प्राप्त होता है –

इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि हरित रसायन एक कम लागत उपागम है, जो कम पदार्थ, ऊर्जा-उपभोग एवं अपविष्ट जनन से सम्बन्धित है।

प्रश्न 14.17
क्या होता, जब भू-वायुमण्डल में ग्रीनहाउस गैसें नहीं होती? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जब भू-वायुमण्डल में ग्रीनहाउस गैसें न होती तो पृथ्वी का ताप घट जाता है। इससे पौधे प्रकाश-संश्लेषण नहीं कर पाते। इससे पौधों की अनुपस्थिति में मानव-जीवन सम्भव नहीं होता।

प्रश्न 14.18
एक झील में अचानक असंख्य मृत मछलियाँ तैरती हई मिलीं। इसमें कोई विषाक्त पदार्थ नहीं था, परन्तु बहुतायत में पादप्लवक पाए गए। मछलियों के मरने का कारण बताइए।
उत्तर:
जल प्रदूषक कार्बनिक पदार्थ; जैसे-पत्तियाँ, घास, कूड़ा-करकट आदि हैं। इनकी उपस्थिति में पादपप्लवक विकसित हो जाते हैं। ये जल में घुलित ऑक्सीजन की अत्यधिक मात्रा का उपभोग कर लेते हैं जो जलीय जीवों; जैसे-मछली के जीवन हेतु अत्यन्त आवश्यक होती है। यदि जल में घुली ऑक्सीजन की सान्द्रता 6 पीपीएम से नीचे हो जाए, तो मछलियों का विकास रुक जाता है।

जल में ऑक्सीजन या तो वातावरण या कई जलीय पौधों द्वारा दिन में प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रम से पहुँचती है। रात में प्रकाश-संश्लेषण रुक जाता है परन्तु पौधे श्वसन करते हैं, जिससे जल में घुलित ऑक्सीजन कम हो जाती है। घुलित ऑक्सीजन सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा कार्बनिक यौगिकों के ऑक्सीकरण में भी उपयोग में ली जाती है। इस प्रकार पादपप्लवकों तथा अन्य कारणों से जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाने के कारण मछलियाँ मृत पाई गईं।

प्रश्न 14.19
घरेलू अपशिष्ट किस प्रकार खाद के रूप में काम आ सकते हैं?
उत्तर:
घरेलू अपशिष्ट में जैवनिम्नीकरण तथा अजैवनिम्नीकरण, दोनों घटकों का समावेश होता है। अपशिष्ट में से दोनों घटक को छाँटकर पृथक् कर लेते हैं। जैव अनिम्नीकरण पदार्थों जैसे – प्लास्टिक, काँच, धातु, छीलन आदि को पुनर्चक्रण के लिए भेज दिया जाता है। जैवनिम्नीकरण अपशिष्टों को खुले मैदानों में मिट्टी में दबा दिया जाता है। जैवनिम्नीकरण अपशिष्ट में कार्बनिक द्रव्य होते हैं, जो कम्पोस्ट खाद में परिवर्तित हो जाते हैं।

प्रश्न 14.20
आपने अपने कृषि-क्षेत्र अथवा उद्यान में कम्पोस्ट खाद के लिए गड्डे बना रखे हैं। उत्तम कम्पोस्ट बनाने के लिए इस प्रक्रिया की व्याख्या दुर्गंध, मक्खियों तथा अपविष्टों के चक्रीकरण के सन्दर्भ में कीजिए।
उत्तर:
यदि अपशिष्ट को कम्पोस्ट में परिवर्तित न किया जाए तो वह नालियों में चला जाएगा। इसमें से कुछ मवेशियों द्वारा खा लिया जाता है। कम्पोस्ट खाद बनाने की प्रक्रिया दुर्गन्धपूर्ण होती है। इस पर मक्खियाँ उड़ती रहती हैं, परन्तु इसे दुर्गन्ध तथा मक्खियों से बचाने के लिए मिट्टी से ढक दिया जाता है। अपशिष्ट के कम्पोस्ट खाद में परिवर्तन के पश्चात् इस पर डाली गई मिट्टी को हटा दिया जाता है तथा कम्पोस्ट खाद प्राप्त कर ली जाती है। यह खाद पौधों के लिए अत्यन्त उपयोगी होती है।


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