BSEB Class 11 Hindi एक दीक्षांत भाषण हरिशंकर परसाई Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Hindi एक दीक्षांत भाषण हरिशंकर परसाई Book Answers |
Bihar Board Class 11th Hindi एक दीक्षांत भाषण हरिशंकर परसाई Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 11th |
Subject | Hindi एक दीक्षांत भाषण हरिशंकर परसाई |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 11th Hindi एक दीक्षांत भाषण हरिशंकर परसाई Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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प्रश्न 1.
दीक्षांत समारोह में नेताजी का मन क्या देखकर आनंदित हो उठा?
उत्तर-
विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में नेताजी (मंत्री महोदय) दीक्षांत भाषण देने को पहुँचते हैं। समारोह स्थल पर छात्रों, पुलिस के सिपाहियों, प्राध्यापकों एवं अन्य श्रोताओं का विशाल जन-समूह उपस्थित था। मंत्री महोदय (नेताजी) यह देखकर गदगद हो गए कि छात्रों की संख्या से अधिक पुलिस सभा स्थल पर मौजूद है। वे इस बात से गर्वित थे कि इस विश्वविद्यालय में यह अत्यन्त सुखद बात है कि छात्रों से पुलिस की संख्या अधिक है।
नेताजी की मान्यता थी कि ऐसी प्रगति तो विश्व के अन्य विश्वविद्यालयों में भी नहीं होगी कि समारोह स्थल पर विद्यार्थियों की अपेक्षा पुलिस के जवान उक्त कार्यक्रम की शोभा बढ़ा रहे हों। नेताजी इसका श्रेय शासन के साथ-साथ छात्रों को भी दे रहे थे। उनके लिए यह एक सुखद अनुभव था कि दीक्षांत समारोह में वर्दीधारी पुलिस कर्मियों की संख्या छात्रों की अपेक्षा कहीं अधिक है। यह दृश्य देखकर वे आनन्दित हो गए।
प्रश्न 2.
विश्वविद्यालय में हूटिंग होने पर भी नेताजी खुश क्यों हैं?
उत्तर-
विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह आयोजित है। नेताजी का धाराप्रवाह भाषण जारी है। बीच-बीच में लड़के शोरगुल अथवा आवाजकशी करके उनकी हूटिंग कर रहे हैं, पर नेताजी को कोई गम नहीं। उल्टे वे खुश हैं कि अनपढ़ जनता के बजाय वे शिक्षित नवयुवकों से हूट हो रहे हैं।
प्रश्न 3.
‘ज्ञानी कायर होता है। अविद्या साहस की जननी है। आत्मविश्वास कई तरह का होता है-धन का, बल का, ज्ञान का। मगर मूर्खता का आत्मविश्वास सर्वोपरि होता है।’ इस कथन का व्यंग्यार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त कथन हमारे पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-1 के हरिशंकर परसाई लिखित हास्य निबंध ‘एक दीक्षांत भाषण’ का है। हिन्दी के सर्वाधिक सशक्त एवं समर्थ व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का है। इसके माध्यम से उन्होंने मूखों की हठधर्मिता पर व्यंग्य किया है। उक्त कथन में ज्ञानी को कायर कहने से यह अभिप्राय है कि ज्ञानीजन बहुधा किसी बात को लेकर आवश्यकता से अधिक सोच-विचार करने लगते हैं। फलतः निर्णय लिये जाने में देर होती है और उनका जोश ठंडा पड़ जाता है, अतएव वे कोई वीरोचित कदम नहीं उठा पाते हैं।
अविद्या अर्थात् अज्ञान से साहस पैदा होता है। व्यावहारिक जगत् में बहुत बार ऐसा देखा जाता है कि ज्ञान के कारण व्यक्ति काम करने से डर जाता है, जबकि अज्ञानी उस क्षेत्र में साहसपूर्वक आगे बढ़ जाता है। पुनः व्यंग्यकार ने आत्मविश्वास को कई प्रकार का बताते हुए मूखों के आत्मविश्वास पर करारा प्रहार किया है। मूर्ख या नासमझ लोग किसी की बात नहीं मानते उनका हठ दृढ़ नहीं होता है प्रबुद्ध जन समझाने पर समझ जाते हैं, पर मूर्ख लोग तो अपनी ही बात पर अड़े रहते हैं। अत: उनके आत्मविश्वास को व्यंग्य में सर्वोपरि कहा गया है।
प्रश्न 4.
नेताजी के अनुसार वे वर्तमान को बिगाड़ रहे हैं, ताकि छात्र भविष्य का निर्माण कर सकें। इस कथन का व्यंग्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
हरिशंकर परसाई ने अपने व्यंगात्मक निबंध “एक दीक्षांत भाषण” में अत्यन्त सरस ढंग से यह बताने का प्रयास किया है कि आज के राजनीतिक नेता राष्ट्र के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं तथा उसे क्षति पहुंचाने में व्यस्त हैं, वे इसे खोखला बना रहे हैं।
नेताजी (मंत्री महोदय) दीक्षांत भाषण के क्रम में छात्रों को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि देश के वर्तमान को वे इस उद्देश्य से बर्बाद कर रहे हैं ताकि भविष्य में छात्र उसका पुनर्निर्माण कर सकें। इस प्रकार वे अपने द्वारा किए जाने वाले गलत कार्य को उचित ठहरा रहे हैं। अपने कुकृत्य पर पर्दा डालने के लिए नेताजी इस ढंग की बयानबाजी कर रहे हैं।
नेताजी के उक्त कथन द्वारा वर्तमान समय में व्याप्त भ्रष्टचार उजागर होता है। अपने निजी हित के लिए देश तथा छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करने में प्रसन्नता तथा गर्व का अनुभव करते हैं।
प्रश्न 5.
नेताजी ने सच्चे क्रांतिकारियों के क्या लक्षण बताए हैं? .
उत्तर-
विश्वविद्यालय में आयोजित दीक्षांत समारोह के अपने भाषण-क्रम में नेताजी ने सच्चे क्रांतिकारियों के लक्षण बताते हुए कहा है कि जो सच्चे क्रांतिकारी होते हैं, वे बुनियादी परिवर्तन के लिए आंदोलन कभी नहीं करते, बल्कि कंडक्टर, गेटकीपर, चपरासी वगैरह से ही संघर्ष करते हैं। इस प्रकार, नेताजी द्वारा बताये गये क्रांतिकारियों के लक्षण से वर्तमान परिप्रेक्ष्य में होने वाले आंदोलनों और उनके पीछे पड़े रहने वाले तथाकथित आंदोलनकारियों का असली चेहरा उजागर हो जाता है।
प्रश्न 6.
‘सत्य को इसी तरह दांतों से पकड़ा जाता है।” इस कथन से नेताजी का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
‘एक दीक्षांत भाषण’ शीर्षक निबंध में हरिशंकर परसाई ने समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार के वर्तमान स्वरूप का युक्तियुक्त विवेचन किया है। लेखक ने आज के नेतागण के कपटपूर्ण व्यवहार को कुशलता से निरूपित किया है।
नेताजी के शब्दकोष में ‘सत्य’ शब्द का अर्थ अवसरवादिता है। उनका सत्य है-ईमान, धर्म इत्यादि सात्विक गुणों का परित्याग करना। प्रत्येक अनैतिक कार्य करने के लिए वे सत्य शब्द का प्रयोग करते हैं। उनके जीवन का सत्य मंत्री बनना था। ईमान तथा धर्म का परित्याग कर अनुचित तरीका का उन्होंने सहारा लिया। सरकार किसी भी दल की रही हो, वे उसमें मंत्री पद पर आसीन हुए। पार्टी बदलने में उन्होंने तनिक भी विलम्ब नहीं किया, क्योंकि वे इस सत्य को पकड़े हुए थे कि उन्हें मंत्री बनना है। उन्होंने छात्रों को परामर्श दिया कि यदि उनको (छात्रों) को सत्य डिग्री लेना है तो वे इसके लिए प्रश्न आउट करके तथा नकल करके डिग्री प्राप्त करें। यदि उनको इस सत्य की रक्षा के लिए अध्यापकों से मारपीट करनी पड़े तो वह भी करें।
इस प्रकार लेखक ने नेताजी के द्वारा आज के इस कथित सत्य का यथार्थ उद्घाटित किया है।
प्रश्न 7.
“मैं जानता हूँ कि यदि मैं मंत्री न होता, तो कानूनी डॉक्टर क्या कंपाउंडर भी मुझे कोई न बनाता।’ इस पंक्ति की सप्रसंग व्याख्या करें।
सप्रसंग व्याख्या-
प्रस्तुत व्यंग्यात्मक पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘दिगंत, भाग-1’ में संकलित ‘एक दीक्षांत भाषण’ शीर्षक व्यंग्य लेख से उद्धृत है। इसके लेखक सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई हैं। इस पाठ में लेखक ने मंत्री महोदय के भाषण के माध्यम से आज की राजनीति और शैक्षणिक हकीकत को उजागर करने की भरपूर कोशिश है। प्रस्तुत कथन भाषणांत में नेताजी द्वारा कथित है।
प्रस्तुत पंक्ति में नेताजी दीक्षांत समारोह में भाषण कर रहे हैं। इसी क्रम में अंत में वे यह बताते हैं कि आज इस समारोह में मुझे विश्वविद्यालय की ओर से डॉक्टरेट की मानद उपाधि मिलने वाली है। हालाँकि मैं इसके काबिल कदापि नहीं। वास्तव में यह मेरे मंत्री बनने का लाभ है। यदि मैं मंत्री न बनता तो मुझे डॉक्टर क्या, कंपाउंडर भी कोई न बनाता। इस प्रकार यह कथन जहाँ नेतावर्ग की योग्यता-क्षमता पर ऊँगली उठाता है, वहीं वर्तमान शैक्षिक जगत् की सिद्धांतविहीनता और पथभ्रष्टता पर भी बड़ा कड़ा प्रहार करता है। इस प्रकार लेखक कहना चाहते हैं कि आज सर्वत्र शक्ति की पूजा होती है निर्बल व्यक्ति को हमेशा उपेक्षा का दंश झेलना पड़ता है।
आज के जीवन पर सरकार तथा सत्ता से जुड़े लोगों की अनावश्यक एवं अतिरिक्त रौब-दाब की झलक भी मिलती है।
प्रश्न 8.
पाठ का अंत ‘ओम शांति ! शांति ! शांति!’ से हुआ है। आपके विचार से लेखक ने ऐसा प्रयोग क्यों किया है? इसका कोई व्यंग्यार्थ भी है? लिखिए।
उत्तर-
हरिशंकर परसाई लिखित ‘एक दीक्षांत भाषण’ शीर्षक व्यंग्य-निबंध का अंत ‘ओऽम शांति ! शांति ! शांति ! के साथ हुआ है। लेखक ने ऐसा प्रयोग जान-बूझकर वर्तमान जीवन में व्याप्त विसंगतियों की हद को पूरी तरह उभरने के प्रयोजन से किया है। हमारे वर्तमान राजनीतिक शैक्षणिक एवं सामाजिक जीवन में अनैतिकता एवं स्वार्थपरता परवान पर है। ये स्थितियाँ अत्यंत चिंताजनक एवं भयावह है। इनसे तमाम आदर्श एवं मूल्य नि:शेष होने को हैं। अत: इन स्थितियों के उत्तरदायी विधायक, स्वार्थपरता, अनैतिकता, सिद्धांतहीनता, कर्त्तव्यविमुखता, सत्तालोलुपता, चाटुकारिता आदि विसंगतियों के शमन एवं समाप्ति के लिए उक्त प्रयोग किया है। इस प्रयोग से वर्तमान जीवन की विसंगतियाँ पूर्णरूपेण स्पष्ट हुई हैं।
प्रश्न 9.
देश की आर्थिक अवस्था पर व्यंग्य करने के लिए लेखक ने क्या कहा है?
उत्तर-
हरिशंकर परसाई लिखित “एक दीक्षांत भाषण’ शीर्षक व्यंग्यात्मक निबंध में देश की आर्थिक अवस्था पर कटाक्ष किया गया है। निबंधकार ने मंत्री के माध्यम से समाज में व्याप्त घोर अव्यवस्था तथा आर्थिक स्थिति की ओर इशारा किया है।
मंत्री महोदय द्वारा छात्रों को संबोधित करते हुए देश के विकास करने का दावा किया जाता है। जब छात्र मंच पर कंकड़-पत्थर फेंकने लगते हैं तो मंत्री जी उन्हें कहते हैं कि पश्चिम के देशों में तो ऐसे समय पर मंच पर अंडे फेंके जाते हैं। मंत्री जी यह भी मानते हैं कि देश की आर्थिक दुर्दशा के कारण यहाँ के छात्रों के पास अंडे खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। इसलिए वे ऐसा नहीं कर सकते। साथ ही वह छात्रों को निराश नहीं होने की सलाह देते हैं। साथ ही उन्हें आश्वासन देते हैं कि वह देश का विकास करने में दृढ़-संकल्पित हैं।
इस प्रकार लेखक ने देश की आर्थिक स्थिति पर चुटकीला व्यंग्य किया है। उन्होंने सरकार के कार्यकलाप पर रोचक कटाक्ष किया है।
एक दीक्षांत भाषण भाषा की बात
प्रश्न 1.
इस पाठ में अंग्रेजी के कई शब्द आए हैं। उन्हें चुनकर लिखें और शब्दकोश की सहायता से उनका हिंदी अर्थ लिखें।
उत्तर-
- बाथरूम – स्नानगृह
- पुलिसमैन – आरक्षी
- हूटिंग – शोरगुल करते हुए बहिष्कार करना
- ग्रांट – अनुदान
- रिफ्रेशिंग – तरोताजा
- स्टेज – मंच
- सिनेमा – चलचित्र
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का समास विग्रह करें शोरगुल, हल्ला-गुल्ला, बस-कंडक्टर, नवयुवक
उत्तर-
- शोरगुल – शोर-गुल (तत्पुरुष)
- हल्ला-गुल्ला – हल्ला-गुल्ला (द्वंद्व समास)
- बस-कंडक्टर – बस का कंडक्टर (संबंध तत्पुरुष समास)
- नवयुवक – नया है जो युवक (कर्मधारय समास)
प्रश्न 3.
‘अहा! छात्र जीवन भी क्या है, क्यों न इसे सबका मन चाहे !’ यह एक विस्मयवाचक वाक्य है। विस्मयवाचक वाक्य के पांच अन्य उदाहरण दें।
उत्तर-
विस्मयवाचक वाक्य के पाँच उदाहरण
(a) अहा ! कितना सुन्दर दृश्य है।
(b) वाह ! तुम्हारी हाजिरजवाबी का क्या कहना !
(c) ओह ! मैं कहाँ फंस गया।
(d) हाय ! मैं मर गया।
(e) उफ् ! कितनी गर्मी है?
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
एक दीक्षांत भाषण लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
नेताओं पर व्यंग्य पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
परसाई जी ने मंत्री जी के माध्यम से नेताओं के हूटिंग प्रूफ व्यक्तित्व पर व्यंग्य किया है। दूसरे व्यंग्य में उन्हें मूर्खता से उत्पन्न आत्मविश्वास का धनी बताया है। इसी के बल पर वे समाज के सभी वर्गों की हूटिंग झेलते हैं। तीसरे नेताओं को बेईमान, चरित्रहीन, कपूत और देश को पतन के गर्त में ले जाने वाला बताया गया है।
प्रश्न 2.
शासन-पुलिस-छात्र सम्बन्ध का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
उत्तर-
परसाई जी ने शिक्षा संस्थाओं को पुलिस छावनी बनाने का श्रेय छात्रों को दिया है। बात-बेबात पर उपद्रव और आन्दोलन छात्रों का स्वभाव बन गया है। इसलिए प्रशासन के सामने बराबर विधि-व्यवस्था का प्रश्न उठता है प्रशासन के पास एक ही हथियार-पुलिस की सहायता से नियंत्रण पाना। यह एक स्वाभाविक प्राकृतिक घटनाक्रम का रूप धारण कर चुका है। मंत्री की व्यंग्यपूर्ण उक्ति है कि अगर शासन और छात्रगण परस्पर सहयोग करते रहेंगे तो वह दिन दूर नहीं जब कुलपति के पद पर कोई थानेदार विराजमान होगा। मंत्री की यह कल्पना छात्रों के चरित्र पर करारा व्यंग्य है कि मैं उस दिन की कल्पना कर रहा हूँ जब आप में से हर एक के बाथरूम में एक सिपाही होगा।
एक दीक्षांत भाषण अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
दीक्षान्त समारोह में छात्र से ज्यादा सिपाही की उपस्थिति में निहित व्यंग्य क्या है?
उत्तर-
छात्र से अधिक की उपस्थिति बतलाता है कि छात्र अराजक हो ये हैं और उनसे जुड़े किसी भी कार्यक्रम को शान्तिपूर्वक सम्पन्न करने के लिए पुलिस बल का प्रयोग अनिवार्य हो गया है।
्रश्न 2.
शासन और छात्रों के रवैये से भविष्य में क्या परिणाम निकलने की संभावना है?
उत्तर-
छात्र अगर उपद्रवी बनते गये तो शासन विधि-व्यवस्था के लिए बल प्रयोग करता रहेगा और अन्ततः किसी पुलिस अधिकारी को पुलिस बल की सहायता से विश्वविद्यालय चलाने के लिए कुलपति बना दिया जायेगा।
प्रश्न 3.
मंत्री को दीक्षान्त भाषण के लिए क्यों बुलाया गया है?
उत्तर-
अगर मंत्री को नहीं बुलाया जाता तो वह विश्वविद्यालय को मिलनेवाला ग्रान्ट रुकवा देता और तब विश्वविद्यालय का अस्तित्व ही संकटग्रस्त हो जाता।
प्रश्न 4.
ज्ञानी को कायर और मूर्ख को साहसी क्यों कहा गया है?
उत्तर-
ज्ञानी अपनी बुद्धि और तर्क के सहारे किसी क्रिया के परिणाम का अनुमान कर निर्णय लेता है जबकि मूर्ख पूरे आत्मविश्वास के साथ परिणाम की परवाह किये बिना खतरों से खेलता है।
प्रश्न 5.
मंत्री के अनुसार नेता लोग क्या कर रहे हैं?
उत्तर-
नेता लोग देश बिगाड़ रहे हैं, उसे गर्त में ले जा रहे हैं। क्योंकि वे अयोग्य और बेईमान हैं। आज के नेता अपने कर्तव्यों का पालन सही रूप से नहीं कर पाते हैं। वे केवल स्वयं लाभ पर ध्यान देते हैं।
प्रश्न 6.
एक दीक्षांत भाषण नामक पाठ किसकी रचना है?
उत्तर-
एक दीक्षांत भाषण नामक पाठ हरिशंकर परसाई की रचना है।
प्रश्न 7.
एक दीक्षांत भाषण किस विधा की रचना है?
उत्तर-
एक दीक्षांत भाषण व्यंग्य-निबंध है।
प्रश्न 8.
लेखक हरिशंकर परसाई के अनुसार नेता देश का क्या बिगाड़ रहे हैं?
उत्तर-
लेखक हरिशंकर परसाई के अनुसार नेता देश का वर्तमान हालत बिगाड़ रहे हैं।
प्रश्न 9.
मंत्री विश्वविद्यालय के किस समारोह में भाषण देने आए हैं?
उत्तर-
मंत्री विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाषण देने आए हैं।
प्रश्न 10.
मंत्री की दृष्टि से युवक क्या है?
उत्तर-
मंत्री की दृष्टि में युवक क्रांतिकारी है।
प्रश्न 11.
मंत्री जी अपने संदेश में छात्रों को किस काम में भाग लेने से मना करते हैं?
उत्तर-
मंत्री जी अपने संदेश में छात्रों को राजनीति में भाग लेने से मना करते हैं।
एक दीक्षांत भाषण वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
I. सही उत्तर का सांकेतिक चिह्न (क, ख, ग या घ) लिखें।
प्रश्न 1.
‘एक दीक्षांत भाषण’ किनकी रचना है?
(क) रामचन्द्र शुक्ल
(ख) हरिशंकर परसाई
(ग) कृष्ण कुमार
(घ) कृष्ण सोबती
उत्तर-
(ख)
प्रश्न 2.
‘एक दीक्षांत भाषण’ कैसी रचना है?
(क) व्यंग्यात्मक
(ख) हास्यात्मक
(ग) निबंधात्मक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(क)
प्रश्न 3.
‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’ किसकी रचना है?
(क) मेहरून्निसा परवेज
(ख) कृष्ण सोबती
(ग) हरिशंकर परसाई
(घ) प्रेमचंद
उत्तर-
(ग)
प्रश्न 4.
‘एक दीक्षांत भाषण’ कहाँ से ली गई है?
(क) पाखंड का आध्यात्म
(ख) वैष्णव की फिसलन
(ग) परसाई रचनावली भाग-4
(घ) हँसते हैं-रोते हैं
उत्तर-
(ग)
प्रश्न 5.
नेताजी ने ‘हूटिंग’ को कैसे लिया?
(क) रिफ्रेशिंग माना
(ख) अपमान समझा
(ग) हँसकर टाल दिया
(घ) दुष्टवा के रूप लिया
उत्तर-
(क)
प्रश्न 6.
एक दीक्षांत भाषण में लेखक ने आज के नेताओं और मंत्रियों पर
(क) व्यंग्य किया है
(ख) प्रशंसात्मक वक्तव्य दिया है
(ग) चरित्र हीन होने का आरोप लगाया है
(घ) इनमें से कुछ नहीं
उत्तर-
(क)
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।
प्रश्न 1.
इस समारोह में छात्रों से ज्यादा पुलिस के सिपाही देखकर मेरा मन…………..हो उठा।
उत्तर-
आनंदित
प्रश्न 2.
अविद्या…………..की जननी है।
उत्तर-
साहस
प्रश्न 3.
मूर्खता का…………….सर्वोपरि होता है।
उत्तर-
आत्मविश्वास
एक दीक्षांत भाषण लेखक परिचय हरिशंकर परसाई (1924-1995)
हिन्दी व्यंग्य साहित्य की दुनिया में हरिशंकर परसाई एक विलक्षण नाम है। सच पूछिये तो इन्होंने ही अपनी उत्कृष्ट रचनाओं के माध्यम से व्यंग्य साहित्य को श्रेष्ठ साहित्य का सम्मान दिलाया, अन्यथा इनसे पूर्व वह बहुत हल्दी-फुल्की चीज समझा जाता था, श्रेष्ठ साहित्य के अंतर्गत उसकी गिनती न होती थी। ऐसे अनुपम एवं अप्रतिम व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिलान्तर्गत ‘जमानी’ गाँव में 22 अगस्त, 1924 ई० में हुआ था। उन्होंने हिन्दी में एम० ए० तक की शिक्षा प्राप्त की थी। तत्पश्चात् स्पेस ट्रेनिंग कॉलेज, जबलपुर से शिक्षक के रूप में दो वर्षों का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया था। परसाईजी ने सर्वप्रथम खंडवा में अध्यापन किया।
फिर मॉडल हाई स्कूल, जबलपुर में 1943 से 1952 तक अध्यापन कार्य करते हुए सन् 1953 से’ 1957 तक प्राइवेट स्कूलों में अध्यापन करते रहे। सन् 1957 से वे सर्वतोभावेन स्वतंत्र लेखन में संलग्न हो गये। उनके साहित्यिक अवदानों के लिए जबलपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी० लि. की मानद उपाधि से विभूषित किया था तथा साहित्य अकादमी एवं अन्य पुरस्कारों से भी वे अलंकृत- पुरस्कृत किये गये। उन्होंने सन् 1956 से 1959 तक जबलपुर में ‘वसुधा’ नामक पत्रिका का संपादन किया था तथा विश्वशांति सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में 1962 ई० में सोवियत रूस की यात्रा भी की थी। उनका निधन 10 अगस्त, 1995 ई० में हुआ।
हरिशंकर परसाई का कृतित्व जितना विपुल और बहुमुखी है, उतना ही मर्मबोधक और प्रभावशाली भी। उनकी प्रमुख कृतियों में हँसते हैं, भूत के पाँव पीछे, तब की बात और थी, जैसे उनके दिन फिरे, सदाचार का ताबीज, पगडंडियों का जमाना, वैष्णव की फिसलन, पाखंड का अध्यात्मक, सुनो भाई साधो, विकलांग श्रद्धा का दौर, ठिठुरता हुआ, गणतंत्र, निठल्ले की डायरी आदि उल्लेखनीय हैं। उनकी समस्त रचनाएँ ‘परसाई रचनावली’ के नाम से राजमहल प्रकाशन द्वारा छह खंडों में प्रकाशित हैं। उनकी अनेक रचनाओं का अंग्रेजी, उर्दू, मलयालम, मराठी, बंगला आदि में भाषांतरण भी हुआ है। इससे उनकी लोकप्रियता एवं लेखकीय क्षमता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
वस्तुतः अपनी विलक्षण व्यंग्य-प्रतिभा, गहरी और व्यापक प्रतिबद्ध रचना दृष्टि, सजग-सोद्देश्य, रचनाधार्मिता आदि लेखकीय गुणों के कारण परसाईजी स्वतंत्र्योत्तर भारत के एक समर्थ एक ‘सशक्त लेखक हैं। यद्यपि उन्होंने निबंधों के अतिरिक्त कथा साहित्य का भी सृजन किया है, तथापि उनकी व्यंग्य दृष्टि प्रायः सर्वत्र ही प्रधान रही है। उनकी पैनी नजर आधुनिक जीवन के सभी पक्षों और दिशाओं पर पड़ी है। धर्म, संस्कृति, राजनीति, व्यापार, वाणिज्य आदि विविध क्षेत्रों के साथ ही अंधविश्वास, कुरीति, जाति-व्यवस्था, अशिक्षा, अकर्मण्यता आदि कुसंस्कारों पर भी अत्यंत तीव्र व्यंग्य प्रहार किये हैं। कहना न होगा कि युग-जीवन की तमाम विसंगतियों का उन्होंने बड़ी बेबाकी से पर्दाफश किया है। उनकी तुलना कभी कबीर से तो कभी प्रेमचंद से की जाती है।
पर, सच तो यह है कि व्यंग्य जगत् में परसाईजी अपने-आप में अनूठे और विलक्षण हैं। उनके संबंध में कवि नागार्जुन ने ठीक ही कहा है
“रवि की प्रतिभा को नमस्कार शनि की प्रतिभा को नमस्कार वक्रोक्ति विशारद् महासिद्ध हरि की प्रतिभा को नमस्कार।”
एक दीक्षांत भाषण पाठ का सारांश
हरिशंकर परसाई हिन्दी के विलक्षण एवं विशिष्ट व्यंग्यकार हैं। ‘एक दीक्षांत भाषण’ उन्हीं का एक महत्त्वपूर्ण व्यंग्य लेख है, जो राजमहल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘परसाई रचनावली’ (खंड 4) में संपादित-संकलित है। इसमें मुख्य रूप से एक मंत्री महोदय के दीक्षांत भाषण के माध्यम से आज की भारतीय राजनीति के उस कलुषित चरित्र पर चौतरफा व्यंग्य-प्रहार है, जो शिक्षा-संस्कृति के साथ ही जीवन-जगत् के सभी व्यवहार क्षेत्रों को अपना चारागाह समझता है।
एक विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह का आयोजन है। अतः दीक्षांत भाषण के लिए मंत्री महोदय बुलाये गये हैं। उनके बुलाये जाने के पीछे उनकी योग्यता नहीं, बल्कि अनुदान रुकवाये जाने का डर रहा है। मंत्री महोदय के भाषण से आज के सफेदपोश नेताओं की असलियत उजागर होती है। सर्वप्रथम उन्होंने विद्यार्थियों को संबोधित कर इस बात पर हर्ष जताया कि इस समारोह में छात्रों से ज्यादा सिपाहियों की उपस्थिति है। इस बात को लेकर सरकार और समाज की जो तारीफ की गई है, भला वह कौन होगा, जो सोचने पर मजबूर न होगा। भाषण निरंतर जारी है, अल्पविराम या अर्द्धविराम की कोई जरूरत नहीं, वह एक ही बार पूर्ण विराम लेगा।
बीच-बीच में यद्यपि श्रोता-दीर्घा से अवरोध भी उत्पन्न होता है, पर भाषण के भूखे मंत्री को कोई परवाह नहीं। वे तो फूले नहीं समा रहे हैं कि उन्हें शिक्षित नवयुवक हूंट कर रहे हैं। इसी संदर्भ में यह कितना कटु व्यंग्य प्रकट है कि आजकल बृहस्पति जैसे गुरु तो ऐसे समाराहों में आने से इंकार करेंगे, जबकि मंत्री जैसे धन-मद और मूर्खता के आत्मविश्वासी सहर्ष तैयार होते हैं। भाषण-क्रम में मंच पर कंकड़ फेंके जाने और मंत्री द्वारा अंडे फेंके जाने की बात से देश की आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डाला गया है। पुनः जानवरों की बोली बोलने के उदाहरण द्वारा वर्तमान समय के तरुण छात्र-छात्राओं का चारित्रिक छिछलापन उजागर हो जाता है।
अंत में, मंत्री महोदय प्रबोधन की मुद्रा में आते हैं और युवकों को देश की आशाएं बताते हैं और उन्हें भविष्य-निर्माता कहते हैं। क्योंकि अभी तो उनके जैसे लोग बिगाड़ने का काम कर ही रहे हैं। इसी संदर्भ में युवक द्वारा समय-असमय चलाये जाने वाले आंदोलनों का जिक्र है, जिसके पीछे क्षुद्र स्वार्थों का प्राबल्य होता है कोई बड़ा उद्देश्य या विचार नहीं। मंत्री संदेश स्वरूप सत्य की अनूठी व्याख्या पेश करते हुए यहाँ तक कहते हैं कि यदि आपको सत्य डिग्री लेना है तो उसके लिए आप नकल, पेपर आउट से अध्यापक से मार-पीट तक बखूबी करें। वर्तमान शिक्षा-पद्धति की कैसी सीधी-सच्ची तस्वीर है यह ! बाद में मंत्री छात्रों से राजनीति में भाग न लेने की अपील करते हैं, ताकि उनकी गंदी राजनीति खूब चलती रहे। साथ ही, यहाँ पर ऐसे समारोहों में डॉक्टरेट जैसे उपाधियों को खुशामदस्वरूप प्रदान किये जाने की बात कितनी बड़ी बिडंबना को किस तल्खी से उजागर करती है, वह सहज ही अनुभवगम्य है।
संपेक्षतः ‘एक दीक्षांत भाषण’ परसाई जी का एक ऐसे व्यंग्य लेख है, जो हमारे वर्तमान समय की राजनीति के साथ ही शैक्षिक एवं सामाजिक क्षेत्र की ढेर सारी विसंगतियों को बड़ी तल्खी से उभारकर सामने ला देता है। प्रस्तुत लेख की भाषा बड़ी धारदार है, जसके मारक प्रभाव से पाठक अछूता नहीं रह पाता।
कठिन शब्दों का अर्थ
दीक्षांत-दीक्षा का अन्त, पढ़ाई का सम्पन्न होना। आवाजकशी-तरह-तरह की आवाजें . और फिकरे कसना। अविद्या-अज्ञान। सर्वोपरि-सबके ऊपर। गर्त-खाई, गड्ढा। क्लेश-कष्ट, दु:ख। हूटिंग-शोर-गुल करते हुए बहिष्कार करना। रिफ्रेशिंग-नया-तरोताजा।
एक दीक्षांत भाषण महत्त्वपूर्ण पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या
1. मेरे साहस का कारण यह है कि मैं बृहस्पति की तरह ज्ञानी हूँ। ज्ञानी कायर होता है अविद्या साहस की जननी है। आत्मविश्वास कई तरह का होता है-धन का, बल का, ज्ञान का। मगर मूर्खता का आत्मविश्वास सर्वोपरि होता है।
व्याख्या-
‘एक दीक्षांत भाषण’ व्यंग्य से ली गयी इन पंक्तियों में हरिशंकर परसाई जी ने यह बताया है कि आत्मविश्वास सबसे बड़ी शक्ति होती है। यह विश्वास कई वस्तुओं पर आधारित होता है। जैसे धन पर, बल पर और ज्ञान पर। मगर इन सबसे बड़ी चीज है मूर्खता। जो मूर्ख होते हैं वे अति आत्मविश्वासी होते हैं। अतः वे कोई भी मूर्खता निर्द्वन्द्व होकर कर सकते हैं। इसके विपरीत ज्ञानी के पास बुद्धि होती है अत: कोई कार्य करने के पहले परिणाम के विषय में सोचता है और जहाँ परिणाम विपरीत ज्ञात होता है, हानि की संभावना होती है वहाँ वह कोई खतरा नहीं लेता।
इसीलिए ज्ञानी को कायर कहा जाता है। अपने विषय में मंत्री बतलाता है कि वह मूर्ख है। अतः वह छात्रों द्वारा हूट किये जाने के परिणाम को जानते हुए भी भाषण करने चला आया है। प्रकारान्तर से वह कहना चाहता है कि नेता मूर्ख होते हैं। अतः उनमें आत्मविश्वास अधिक होता है। इसी आत्मविश्वास के सहारे वे किसी भी खतरे में कूद पड़ते हैं। कोई सोच विचार नहीं करते हैं।
2. “वर्तमान की चिन्ता आप न करें। वर्तमान को तो हम बिगाड़ रहे हैं। यदि हम वर्तमान को नहीं बिगाड़ेंगे तो आप भविष्य को कैसे बनायेंगे? आपको भविष्य बनाने का मौका देने के लिए हम वर्तमान को बिगाड़ रहे हैं। यह आपके प्रति हमारा दायित्व है।”
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ व्यंग्य रचना एक दीक्षांत भाषण से ली गयी हैं। यह रचना एक नेता द्वारा किये गये भाषण के रूप में है। इन पंक्तियों में नेता के माध्यमों से लेखक छात्रों को यह बताना चाहता है कि छात्रों को देश का भविष्य निर्माता कहा जाता है। खासकर नेता इस जुमले का बहुत प्रयोग करते हैं। लेखक का पक्ष है, जब वर्तमान बिगड़ा रहेगा तभी न भविष्य में बनाने की जरूरत पड़ेगी। इसी जरूरत की पूर्ति के लिए नेता देश का वर्तमान बिगाड़ रहे हैं।
इस तरह लेखक सीधे शब्दों में मंत्री के बहाने कहना चाहता है कि देश के सारे नेता मूर्ख और अयोग्य हैं। वे देश को बिगाड़ रहे हैं।
3. जिस दिन आप बुनियादी परिवर्तन के लिए संघर्ष करने लगेंगे, उस दिन हम उखड़ जायेंगे। इसलिए आप सच्चे क्रांतिकारी बनें। सच्चा क्रांतिकारी कंडक्टर, गेटकीपर, चपरासी वगैरह से ही संघर्ष करता है।
व्याख्या-
‘एक दीक्षांत भाषण’ शीर्षक व्यंग्य से गृहीत इन पंक्तियों में परसाई जी ने मंत्री के माध्यम से छात्रों को हूट किया है। प्रायः देखा जाता है कि छात्र सिनेमा टिकट को लेकर गेटकीपर से। छूट को लेकर बस कंडक्टर से झंझट करते हैं और बात बिगड़ने पर उसे आन्दोलन का रूप दे देते हैं। मंत्री छात्रों की इस प्रवृत्ति को क्रांति कहता है। उसका सुझाव है कि आप इन्हीं मुद्दों पर क्रांति कीजिए। इससे हम नेताओं की सत्ता सुरक्षित रहेगी।
जिस दिन आप वास्तविक समस्याओं को लेकर आन्दोलन करेंगे हम नेताओं का तम्बू उखड़ जायेगा अतः आप सच्चे क्रांतिकारी बनकर इन्हीं आन्दोलनों में लगे रहिए। लेखक तीखी चुटकी लेते हुए कहता है कि आप सच्चे क्रांतिकारी हैं और सच्चा क्रांतिकारी कंडक्टर चपरासी आदि के विरुद्ध आन्दोलन करता है। स्पष्टतः लेखक छात्रों की आन्दोलनात्मक प्रवृत्ति का मजाक उड़ाता है और बतलाता है कि छात्रों के आन्दोलन मूर्खता के नमूने होते हैं और इनसे राजनीतिबाज स्वार्थी नेताओं को पोषण प्राप्त होता है।
4. मेरी इच्छा है कि आप देश के सच्चे सपूत बनें। अगर आप नहीं बनेंगे, तो हमें बनना पड़ेगा और हमारी सच्चे सपूत बनने की उम्र नहीं रही। तरुण मित्रों, देश को आप की ही भरोसा है तो फिर उसे हम पर भरोसा करना पड़ेगा और यह उसके लिए अच्छा नहीं होगा।
व्याख्या-
एक दीक्षांत भाषण की इन पंक्तियों में परसाई जी ने नेताओं को कपूत और अविश्वसनीय माना है। मंत्री के माध्यम से लेखक देश के युवाओं को बताना चाहता है कि यदि आप देश के सच्चे सपूत नहीं बनेंगे तो इन कपूत नेताओं को पुत्र की भूमिका निभानी पड़ेगी और ये कभी सपूत बनी बन सकते। इसी तरह यदि देश आप पर भरोसा नहीं करेगा तो इन नालायक नेताओं पर भरोसा करना पड़ेगा और यह देश के लिए हितकर नहीं होगा, क्योंकि आज ये देश को गर्त की ओर ले जा रहे हैं और कल ये देश को गर्त में पहुँचा कर ही दम लेंगे। अतः आपलोगों को अपनी मूर्खताओं का त्याग कर देश को इन कपूत नेताओं से बचाने की चेष्टा करनी चाहिए।
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