BSEB Class 11 Hindi मातृभूमि अरुण कमल Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Hindi मातृभूमि अरुण कमल Book Answers |
Bihar Board Class 11th Hindi मातृभूमि अरुण कमल Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 11th |
Subject | Hindi मातृभूमि अरुण कमल |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 11th Hindi मातृभूमि अरुण कमल Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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प्रश्न 1.
यह कविता किसे संबोधित है?
उत्तर-
यह कविता माता, मातृभूमि और मातृभाषा को सम्बोधित है।
प्रश्न 2.
कवि ने स्वयं को मेले में खोए बच्चे-सा दौड़ना कहा है। उन्होंने अपनी गति की तुलना समुद्र से की है। कवि ने ऐसी तुलना क्यों की है? काव्य पंक्तियों को उद्धत करते हुए स्पष्ट करें।
उत्तर-
कवि ने स्वयं को मेले में खोए बच्चे-सा दौड़ता कहा है। उन्होंने अपनी गति की तुलना समुद्र से करते हुए कहा है कि-“और मैं मेले में खोए बच्चे-सा दौड़ता हूँ तुम्हारी ओर जैसे वह समुद्र जो दौड़ता आ रहा है छाती के सारे बटन खोले हहाता।”
कवि आर्थिक उदारीकरण के आधुनिक युग में सामाजिक विषमता के मेले में खो गया है। मेले में खोए बच्चे को अगर उसकी जननी का अक्स अकस्मात दिखाई पड़े तो उत्कट अभिलाषा से आवेशित होकर वह तूफानी वेग से अपनी माता की ओर दौड़ पड़ता है-अपनी मैया के ममता भरी आँचल के शीतल छाँव में। समुद्री तूफान को कोई सीमा या दिशा रुकावट नहीं डाल सकती वैसे ही माँ और शिशु का मिलन कवि द्वारा बच्चे की गति की तुलना समुद्री गति से कर कवि ने वात्सल्य की वाटिका को गौरवान्वित किया है।
वस्तुतः कवि के दृष्टिकोण, सोच और संवेदना एक स्वावलम्बी, समृद्ध और समतामूलक समाज का मूर्त रूप देखना चाहता है और आशा की किरण देखते ही समुद्री वेग से अपने लक्ष्य को पाने के लिए दौड़ता है। कवि वैश्विकता से उपजे घोर आर्थिक विषमता के बीच अपने को मेले में खोए बच्चों के रूप में पाता है।
प्रश्न 3.
‘वे मजदूर सो सोख रहे हैं बारिश मिट्टी के ढेले की तरह’ कवि ने मजदूरों के लिए ऐसी उपमा क्यों दी हैं?
उत्तर-
कवि ने मजदूर को मिट्टी के ढेले सादृश्य प्रतिपादित किया है। इस कविता में आर्थिक विषमता पर करारा व्यंग किया गया है। मिट्टी के ढेले के समान मजदूर अतृप्त रहता है। मिट्टी के ढेले पर बारिश पड़ने पर वह सोख लेता है उसी प्रकार मजदूर जो कि आर्थिक विपन्नता से भरे हैं, थोड़ी सी मजदूरी से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते। आर्थिक उदारीकरण के वर्तमान युग में आर्थिक गति की बाढ़ सी आ गई है, परन्तु मजदूरों का उनका उचित मेहताना भी नहीं मिलता; वे आर्थिक विषमता से अभिशप्त है।
वैश्विकता के इस युग में वर्षा (अर्थ) का अधिक से अधिक हिस्सा हड़प लेने की मनसा लिए हमारे प्रतिनिधि (साँद) खुलेआम विचरण कर रहे हैं। हमारे परिवेश में उपलब्ध साधन केवल दबंगों के निमित्त ही रह जाता है। मजदूर तो कोमल हाड़-मांस से सृजित है परन्तु अभिशप्त है, वर्षा की बूंदे सोखने के लिए। जब तक वे वर्षा में भीगेगे नहीं तबतक उनके परिवार की जठराग्नि शान्त नहीं होगी। मजदूरी रूपी वर्षा तो उनके परिवार में ऐसे ही विलीन हो जाता है जैसे वर्षा की बूंदों को मिट्टी की ढेले सोख लेता है।
प्रश्न 4.
नीचे उद्धत काव्य पंक्तियों का मर्म उद्घाटित करें
“घर के आँगन में वो नवोढ़ा भींगती नाचती और काले पंखों के नीचे कौवो के सफेद रोएँ तक भीगते और इलाइची के छोटे-छोटे दाने इतने प्यार से गुत्थमगुत्था ये सब तुम्ही तो हो”
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हिन्दी की प्रगतिशील यथार्थवादी भावधारा के ध्वजावाहक कविवर अरुण कमल रचित ‘मातृभूति’ शीर्षक कविता से उद्धत हैं। कवि व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए जड़ और चेतन दोनों में मातृभूमि की तस्वीर देखता है।
वर्षा प्रकृति का वरदान है जिससे पृथ्वी पर जीवन का संचार होता है। परन्तु वर्षा में घर के आँगन में नव नवेली दुल्हन भींगती है और कौओं के उपरी पंख भिंगने के बाद आवरण से ढंका सफेद रोएँ भी भीग गये हैं। इलाइची के दाने भी वर्षा की बूंदों से तृप्त होकर आपस में गुथमगुत्था हो गए हैं। इन सभी रूपों में “हे मातृभूमि तुम्हीं तो प्रतिबिंबित होती हो।”
कवि ने समाज में विभाजित आर्थिक विषमता जो कि क्रमशः उच्चवर्ग, मध्यम वर्ग तथा निम्नवर्गों की दशा और दिशा की ओर संकेत किया है।
प्रश्न 5.
“आज जब भीख में मुट्ठी भर अनाज भी दुर्लभ है तब चारों तरफ क्यों इतनी भाप फैल रही है गर्म रोटी की”-यह कैसी भाप है? इस भाप के इतना फैलने में किस तरह की व्यंजना है?
उत्तर-
कवि समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता से व्याकुल है। वह परोक्ष रूप से हमारी शोषणपूर्ण तथा घोर विषम अर्थव्यवस्था पर की करारी चोट की है। साथ ही साथ हमें आर्थिक विषमताजन्य स्थिति और परिस्थिति को समाप्त करने की दिशा में सोचने के लिए वाध्य करती है।
कवि का इशारा आर्थिक उदारीकरण की ओर है। कवि कहना चाहता है जब भीख माँगने आशय है कि औद्योगिक क्रान्ति, बौद्धिक जागरण और वैश्विकता के इस दौड़ में मानवीय संवेदना स्वयं तक सिमट कर रह गई है। बौद्धिक छल-बल के बीच मानव कराह रही है।
प्रश्न 6.
कई दिनों से भूखे-प्यासे कवि को माँ किस रूप में दिखलाई पड़ती है? कवि ने किन स्थानों के बच्चों का उल्लेख कविता में किया है, और क्यों?
उत्तर-
कविवर अरुण कमल ने विपन्नता की मार से त्रस्त भूखे बच्चों की मार्मिक चित्रण किया है। भूखे बच्चे माँ की ओर मेवा, अखरोट, मखाना और काजू अर्थात सुख समृद्धि देने वाली करुणामय देवी के रूप दिखलाई पड़ती है।
कवि ने प्रकृति के क्रूर मजाक का शिकार आन्ध्रप्रदेश के किसानों के बच्चे, उड़ीसा के कालहाँड़ी के बच्चे और झारखण्ड के पलामू के बच्चे की दारुण दशा का मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है। प्रकृति के श्राप से अभिशप्त इन क्षेत्रों में पानी का तल काफी नीचे और जमीन ऊपर होने के कारण इन्हें ‘मौत का दूत’ के रूप में दुनियाँ देखती है। कवि चाहता है कि इन क्षेत्रों का भी उद्धार हो और वहाँ भी विकास की रोशनी पहुँचाई जाय।
प्रश्न 7.
“ये यतीम ये अनाथ ये बंधुआ
इनके माथे पर हाथ फेर दो माँ
इनके भींगे केश सँवार दो अपने श्यामल हाथों से”
-इन पंक्तियों का अर्थ लिखें। कवि ने यहाँ ‘भींगे केश’ क्यों लिखा है? अपनी कल्पना से उत्तर दें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हिन्दी की प्रगतिशील यथार्थवादी विचारधारा के कवि अरुण कमल रचित ‘मातृभूमि’ शीर्षक कविता से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि का दृष्टिकोण, सोच और संवेदना में दृढ़ता, गहराई, व्यापकता और अमोघता परिलक्षित होती है।
कवि कहना चाहता है कि मामूली कर्ज के बदले में पराधीन बेगारी की जिंदगी जीने के लिए अभिशप्त अपने यतीम और अनाथ बच्चों को अपने श्यामल हाथों से आशीर्वाद देकर उनको बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराकर उसके जीवन को सँवार दो हे मातृभूमि।
कवि ने मातृभूमि से अपनी हाथों से ‘भीगे केश’ संवारने का अनुरोध किया है। ‘भीगे केश’ से कवि का अभिप्राय ‘गरीबी का बवंडर में उलझी जिंदगी’ से है। औद्योगीकरण, बौद्धिक जागरण और वैश्विकता के चक्रव्यूह में शोषित, दलित मानवता को पीसते देखकर कवि व्यथित हो उठा है। आधुनिक जीवन-शैली में जो त्वरित गति रो परिवर्तन हो रहा है उसका दुःप्रभाव समाज के साधनहीन वेवश गरीब मजदूर और किसानों पर पड़ रहा है।
बौद्धिक छल-बल के कारण व्यवहार और विचार में कहीं साम्यता नहीं है। समाज का एक बड़ा वर्ग कृषि जमीदारों तथा आधुनिक औद्योगिक जमींदारों की चक्की के दो पाटों के बीच उनकी स्वार्थपरता का शिकार हो रहा है। उनकी जिन्दगी ‘भींगे केश’ की भाँति इलझ कर खुद तक सिमट गई सी प्रतीत होती है।
प्रश्न 8.
‘तुम किसकी माँ हो मातृभूमि’-इस प्रश्न का मूल भाव आपके विचार में क्या है?
उत्तर-
‘तुम किसकी माँ हो मेरी मातृभूमि’ के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि वैश्विकता के इस आधुनिक युग में आज समाज का एक बड़ा तबका यतीम अंत अनाथ सदृश कृषि अथवा औद्योगिक बंधुआ मजदूर बनने को अभिशप्त है। समाज का एक तबका विकास की बाढ़ से सिंचित है तो दूसरा तबका शोषण, उत्पीड़न तथा भुखमरी का शिकार है।
वह मातृभूमि से पूछता है कि तुम किसकी माँ हो-सम्पन्नता के साँढ़ की या निर्धनता रूपी बकरा की। एक तरफ विकास का गगा बह रही है तो दूसरे तरफ साधनहीनता का रेगिस्तान। वस्तुतः कवि कहना चाहता है कि मानवीय जीवन में हम विकास की अनगिनत सोपानों पर बढ़े परन्तु बौद्धिक छल-बल के बीच मानवता पीस रही है, कराह रही है। संक्रमण के इस काल में मातृभूमि को ही फैसला लेना है ताकि मानवता खुशियों से लहलहा उठे।
प्रश्न 9.
और मैं भींज रहा हूँ
नाच रही धरती नाचता आसमान मेरी कील पर नाचता-नाचता
मैं खड़ा रहा भीजता बीचों-बीच।
-इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
कविवर अरुण कमल ने समाज में व्याप्त विषमता पर करारा चोट किया है। कवि आसमान और धरती के बीच खड़ा भीग रहा है। समाज का एक वर्ग अट्टालिकाओं और महलों के साये में विलासी जिन्दगी बिता रहा है तो दूसरा वर्ग आश्रय देने में असमर्थ झोपड़ी में शोषण पूर्ण तथा घोर विषम अर्थव्यवस्था में जी रहा है। कवि दोनों के बीच का केन्द्र अर्थात मध्यम वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। कवि का भाव दोनों के बीच अर्थात् धरती और आसमान के बीच ‘भीजना’ है। कवि की संवेदना में व्यापक गहराई, अक्षुण्ण दृढ़ता, व्यापकता और अमोघता यथार्थ रूप में परिलक्षित होता है।
प्रश्न 10.
कविता में कवि ने स्वयं के भींगने को ‘भींजना’ कहा है जबकि सिंधु घाटी का चौड़े पट्टे वाला साँढ़, बच्चों के केश, नवोढ़ा या कौए के पंखों के लिए ‘भींगना’ ऐसा क्यों? क्या इसका कोई भौगोलिक भाषाई आधार है?
उत्तर-
कविता में कवि ने सिंधु घाटी का चौड़े पट्टे वाला साँढ़ को कृषि और औद्योगिक जमींदार तथा बच्चे, नवोढ़ा या कौए को यतीम, अनाथ और बंधुआ मजदूर का प्रतीक और खुद को दोनों के बीच अर्थात् मध्यम वर्ग का प्रतिनिधि के रूप में रेखांकित किया है।
कवि ने स्वयं के लिए ‘भींजना’ कहकर अपने गँवई भाषा भोजपुरी के प्रति श्रद्धा प्रदर्शित किया है। सिंधु घाटी की सभ्यता प्राचीन काल से ही समुन्नत एवम् सपन्नता के शिखर पर है। कवि का भोजपुर क्षेत्र अभी भी विकास की रोशनी से कोशों दूर है। दोनों क्षेत्रों के भौगोलिक और भाषाई आधार में जमीन और आसमान का अन्तर है।
प्रश्न 11.
शब्दों के प्रयोग में कवि अपनी पीढ़ी में अतिशय सावधान है। उसके सावधान शब्द प्रयोगों के कुछ उदाहरण कविता से चून कर उनका अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रगतिशील यथार्थवादी कवि अरुण कमल ने शब्दों के प्रयोग में परंपरा से अपना एक जीवंत और स्वतंत्र संबंध बनाया है। उनके शब्दों में हिन्दी और भारतीय धातु और प्रकृति है, तो वैश्विक उसका परिवेश और प्रत्यय। शब्दों के प्रयोग में कवि अपनी पीढ़ी में अतिशय सावधानी बरतने के कारण इनकी उपलब्धियाँ चढ़ती दोपहरी के समान है। भोजपुरी शब्दों का कविता में अतिशय प्रयोग कर कवि ने अपनी गँवई भाषा के प्रति श्रद्धा अर्पित की है।
कवि के सावधान शब्द प्रयोगों के उदाहरण भीजता, बँक, हहाता, ओट, छेके, बारिश, नवोदा, गुत्थमगुत्था, खुबनियाँ, चौखट, श्यामल, धूसर, छप्परों, देहरी, टेक, बंधुआ, अनाथ, सँवार और तकती आदि हैं। जिसका अर्थ क्रमशः भींजना, आच्छादित, उत्कट अभिलाषा से भरना, हलचल पैदा करती, सहारा, आरक्षित, वर्षा, नई नवेली दुल्हन, एक दूसरे से गुंथा हुआ, एक प्रकार का मेवा, कमरा का निकास द्वारा, साँवला, धूल से भरा, झोपड़ी का छत, दरवाजा, सहारा, मामूली कर्ज के बदले पराधीन बेगारी जिन्दगी जीने के लिए अभिषप्त व्यक्ति, सजाना है।
प्रश्न 12.
इस कविता में ‘माँ’ और मातृभूमि की छवियाँ एक-दूसरे में घुल-मिलकर एकाकार हो जाती है। तथा देश और काल के पटल पर माँ की प्रतिमा व्याप्ति और विस्तार पा जाती है। इस दृष्टि से कविता पर विचार करें और एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
हिन्दी की प्रगतिशील यथार्थवादी भावधारा के उन्नायक कवि अरूण कमल ने ‘मातृभूमि’ कविता में आधुनिक भावबोध, सामयिक जीवनानुभव, संवेदना और कलात्मक उत्कृर्ष की प्राणाणिक और प्रभावशाली अभिव्यक्ति है। इस कविता में जननी, जनमभूमि की मातृ-प्रतिमाएँ बिना अधिदैविक अथवा धार्मिक-दार्शनिक प्रतिपत्तियों, आशयों या विवक्षाओं के, एक दुसरे में घुल-मिलकर एकाकार हो जाती हैं।
मातृभूमि के संदर्भ में कवि के वैचारिक बिन्दुओं की आधुनिक परिवेश में अनन्य प्रस्तोता सदृश दिखते हैं। इस कविता में भारतीय सामाजिक और आर्थिक विषमता का अतीत तथा वर्तमान के सन्दर्भ में व्यंगात्मक चित्र प्रतिबिंबित किया गया है। हमारी मातृभूमि अपनी समृद्धि तथा उत्कर्ष के कारण विश्व के तल पर अतुलनीय तथा अन्यतम वर्तमान समय सुख-समृद्धि के साध्य की प्राप्ति के लिए अपेक्षित साधनों के वहन का सुखद काल है जिसका समुचित उपयोग से इसका भविष्य भी सिद्धि और सफलता का स्वर्णिम काल होगा।
कवि जननी और जन्मभूमि से आग्रह करता है कि औद्योगिक क्रान्ति, बौद्धिक जागरण और वैश्विकता के इस युग में भी समाज का एक बड़ा तबका शोषित, दलित तथा दारुण जीवन जीने को अभिशप्त है, उसकी जिन्दगी सँवार दो माँ! माँ तो वात्सल्य की वाटिका होती है। जिससे उसके पुत्र चैन की नींद लेते हैं। कवि ममता की मंजूषा से आग्रह करता है कि हे माँ, करूणामयी छाँव में तुम्हारी संतानों को तुम्हारे अलावे कोई भी देख नहीं सकता, एक तुम ही हो जो इन्हें शान्ति के शिविर और स्नेह के सुख-सदन तक पहुँचा सकती हो। माँ को बच्चों के दुःख से द्रवित होना पड़ता है।
कवि कहना चाहता है बौद्धिक छल-बल के बीच माँ की संतानों का एक तबका आर्थिक उदारीकरण की चक्का में पिसकर कराह रहा है। संकट की इस घड़ी से मुक्ति की युक्ति के लिए अन्वेषण-कार्य करने के लिए कवि माँ से प्रार्थना करता है।
वस्तुतः कविवर अरुण कमल आधुनिक समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता, सामाजिक तनाव और वैमनस्यता को दूर करने के लिए माँ का आशीर्वाद चाहता है। उनका कहना है कि समाज के सारे अनर्थों की जड़ समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता और बौद्धिक छल-बल है। अगर हम प्रत्येक मनुष्य को अधिकार दें तो सारे अनर्थ एक ही साथ समाप्त हो जाएँगे।
हमें ऐसा समझना चाहिए कि भिन्न-भिन्न तबके के लोग एक दूसरे से भिन्न नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं। जैसे-शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में किसी भी अंग के पीड़ित अथवा आनंदित होने से पूरा शरीर पीड़ित अथवा आनंदित होता है, उसी प्रकार किसी भी तबका के पीड़ित तथा आनंदित होने से सम्पूर्ण भारतवासियों को पीड़ा अथवा आनन्द की अनुभूति होनी चाहिए।
अगर कोई तबका आहत हो जाए तो दूसरे तबके का कर्तव्य है कि उसके जख्मों पर स्नेह का लेप लगा दे तो आहतों को पीड़ा अनुभव न हो पाएगा। कवि भारतवासियों से संकीर्णता के दायरे से ऊपर उठकर अपने विशाल हृदय का परिचय देने की आशा करता है, ताकि गरीब और अमीर घुल-मिल-कर एकाकार हो जाएँ।
प्रश्न 13.
मातृभूमि कविता का भावार्थ लिखिए? [B.M.2009(A)]
उत्तर-
अपने समकालीन समाज के विद्रूप चेहरे को प्रस्तुत करने वाली कविता मातृभूमि है, जिसके यशस्वी रचनाकार अरुण कमल हैं।
यहाँ कवि भारत के बच्चों के उस वर्ग की चर्चा करता है जो प्राकृतिक आपदाओं में अपने माँ-बाप खो चुका है और वर्तमान में पेट भरने के लिए कहीं बाल मजदूरी या बंधुआ मजदूरी कर रहा है। इनके दु:खों का कहीं अंत नहीं। ये बच्चे ममता से वंचित हैं। इनके सिर पर छत नहीं है। वर्षा में भीगते हुए ये अपना शोषण करा रहे हैं। कवि का ‘भींगे केश’ का उपयोग इस संदर्भ में है कि मौसम की मार से इनका बचाव करने वाला कोई नहीं। ये बच्चे ममता से पूर्णतः वंचित है। इन्हें भी स्नेह, प्यार, ममत्व भरा स्पर्श चाहिए, जो मातृभूमि ही दे सकती है। इसलिए मातृभूमि से कवि इन बच्चों के जीवन में प्रेम, आशा, ममता का संचार करने का आग्रह करता है।
मातृभूमि भाषा की बात
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के वचन परिवर्तित करें
पौधों, रास्ता, बकरियाँ, पेड़, मजदूर, पंखों, कौवों, रोटी, रूमाल, तश्तरी, गिलास, छप्परों, हाथों, किसानों।
उत्तर-
पौधों-पौधा, रास्ता-रास्ते, बकरियाँ-बकरी, पेड़-पेड़ों, मजदूर-मजदूरों, पंखों-पंख, कौवों-कौवा, रोटी-रोटियाँ, रूमाल-रूमालें, तश्तरी-तश्तरियाँ, गिलास-गिलासों, छप्परों, छप्पर, हाथों-हाथ, किसानों-किसान।
प्रश्न 2.
अनाथ शब्द में कौन-सा समास है?
उत्तर-
अनाथ शब्द में न समास है। नञ् समाज तत्पुरुष समास का वह भेद है जिसका प्रथम पद न, ना, अन् जैसे निषेधवाचक होता है।
- अनाथ = न, नाथ
- अनिष्ठ = न, इष्ट
- अनजाना = न, जाना आदि।
प्रश्न 3.
कविता में उनपंक्तियों को चुनें जिनमें निजवाचक सर्वनामों का प्रयोग हुआ है?
उत्तर-
निवाचक सर्वनाम ‘आप’ है, जिसका उपयोग निश्चय, निरकारण, सर्वसाधारण और अवधारणा के अर्थ में होता है।
मातृभूमि कविता में निजवाचक सर्वनाम (आप) का प्रयोग हुआ ही नहीं है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखें आसमान, धरती, समुद्र, पेड़, माँ, दूध।
उत्तर-
- आसमान – गगन, व्योम, आकाश
- धरती – धरा, धरित्रि, पृथ्वी, भूमि
- समुद्र-सागर, अर्णव, अम्बुपति
- पेड़ – वृक्ष, रुख, तरु
- माँ – माता, जननी
- दूध – पय
प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों से विशेषण चनें
उत्तर-
(क) और काले पंखों के नीचे कौवों के सफेद रोयें तक भीगते।
विशेषण-काले, सफेद
(ख) तब चारों तरफ क्यों इतनी भाप फैल रही है गर्म रोटी की।
विशेषण-इतनी गर्म।
(ग) धरती. का रंग हरा होता है, फिर सुनहला फिर धूसर।
विशेषण-हरा, सुनहला, धूसर।
(घ) इनके भीगे केश सँवार दो अपने श्यामल हाथों से।
विशेषण-भींगे, श्यामल।
(ङ) मेरे थके माथे पर हाथ फेरती तुम्हीं तो हो मुझे प्यार से तकती।
विशेषण-थके।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
मातृभूमि दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मातृभूमि शीर्षक कविता का परिचय संक्षेप में दीजिए।
उत्तर-
अरुण कमल द्वारा रचित ‘मातृभूमि’ शीर्षक कविता समसामयिक कविता में एक दुर्लभ उदाहरण है। इसकी संवेदना, विषय-वस्तु और कलात्मकता अपने ढंग की अकेली है। इस कविता में मातृभूमि, जननी और मातृभाषा की मातृ-प्रतिमाएँ एक-दूसरे से घुलमिल गई है। मातृभूमि का चित्रण यहाँ कवि ने पारम्परिक ढंग से आधिदैविक अथवा धार्मिक-दार्शनिक भावभूमि पर नहीं किया है। इस कविता में माँ, मातृभूमि और अंशत: मातृभाषा की मिली-जुली प्रतिमा व्यक्ति, देश और काल की सीमित परिधियों से अलग होकर एक विशद् चेतन सत्ता बन जाती है, जो दुःख-ताप, रोग-शोक को हरने वाली करुणा तथा तृप्ति-सुख, शान्ति-प्रेम और वात्सल्य से परिपूर्ण है।
अरुण कमल की यह कविता प्रतिपादित करती है कि आज का सामान्य मानव अपनी त्रासद स्थितियों से भयभीत है। यहाँ के बच्चे यतीम, अनाथ है, दुख-दर्द से आहत है। कवि मातृभूमि की दया के प्रति आस्थावान है। उसे विश्वास है कि अभावग्रस्त भारत की संतानों का जीवन ज्यांतित होगा, नई आशा की ज्योति फूटेगी, और कलुषित जीवन का क्रन्दर दूर होगा, अंधेरे से प्रकाश की ओर लोग बढ़ेगे। इसीलिए तो कवि कहता है-“ये यतीम, ये अनाथ, ये बंधुआ, इनके माथे पर हाथ फेर दो माँ”।
प्रश्न 2.
मातृभूमि शीर्षक कविता की समीक्षा करें।
उत्तर-
अरुण कमल की ‘मातृभूमि’ कविता पारस्परिक ढंग से मातृभूमि की वंदना एवं उनकी उपादेयता स्पष्ट करने वाली कविताओं से सर्वथा भिन्न है। यह समसामयिक कविताओं में अपनी विषय-वस्तु, संवेदना और अप्रतिम कलात्मकता के कारण अत्यन्त ही दुर्लभ उदाहरण है। यह मातृभूमि ही है, जिसके कण-कण में हमारी जिन्दगी की धड़कनें कैद हैं। पग-पग पर हम इसके उपकारों में उपकृत होते रहते हैं। जीवन शतदल का खिलना, इसी पर निर्भर है। हम अपनी पीड़ा, वेदना और अन्तर्दाह को मातृभूमि की छत्र-छाया में ही भूल जाते हैं।
मातृभूमि में अगाध ममत्व है, प्रेम और दया है। इसकी गोद में असंतोष के कांटे नहीं फूल ही फूल है। हमारी मातृभूमि का धरातल सुविस्तृत है। पीड़ित मन की वेचैनी एवं उसके अभावग्रस्त जीवन, उपेक्षित शोषितों के अन्तर्दाह को शामिल करनेवाली यह मातृभूमि ही है। कवि ने स्पष्ट किया है कि सभी अनाथ, यतीम व्यक्ति जो जीवनव्यापी विसंगतियों एवं विकृतियों को झेलते हुए जी रहे हैं, उसके लिए मातृभूमि आस्थामयी माँ की तरह है, जो उसके कष्टों को दूर करती है। तभी तो कवि कहता है-
“कई दिनों से भूखा-प्यासा तुम्हें ही तो ढूँढ रहा था चारों तरफ
आज जब भीख में मुट्ठी भर अनाज भी दुर्लभ है
तब चारों तरफ क्यों इतनी भाप फैल रही है गर्म रोटी की,
लगता है मेरी माँ आ रही है, नक्काशीदार रुमाल से ढंकी तश्तरी में,
खुबानियाँ अखरोट मखाने और काजू भरे।”
इस कविता में मातृभूमि का स्वरूप एक आस्थामयी माँ के रूप में अंकित है, जो हमारी हताशा को दूर करती है। माँ की तरह हमारी धरती माँ हमें दुलार देती है, प्यार और स्नेह देती है। जीवन को जीवन बनाये रखने की शक्ति हम मातृभूमि से ही प्राप्त करते हैं। कवि मातृभूमि रूपी माँ की करुणा का आकांक्षी है। वह अभावग्रस्त यतीम, अनाथ, बन्धुता लोगों के प्रति अत्यधि क संवेदनशील है। वह चाहता है कि मातृभूमि इन यतीमों, अनाथों के दुःख-दर्द को दूर कर दे। माँ वात्सल्यमयी है, वह रोग-शोक को हरने वाली एक विराट् चेतना सत्ता है।
मातृभूमि लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘मातृभूमि’ कविता में प्रकृति का कैसा चित्रण किया गया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में प्रकृति को माँ माना गया है। वह माँ रूपा प्रकृति वर्षा के रूप में स्नेह वर्षा कर रही है। धान के पौधों से वह इस तरह ढंकी हैं कि रास्ता तक नहीं दिखाई पड़ता है। सत् होती वर्षा में पशु, पक्षी मनुष्य सब भीग रहे हैं। साँढ़ बीच सड़क पर खड़ा भीग रहा है। कौओं के रोंये तक भींग गये हैं।
प्रश्न 2.
‘मातृभूमि’ कविता में वर्षा के विवरण की समीक्षा कीजिए।
उत्तर-
‘मातृभूमि’ कविता में मूलतः वर्षा में भींगने का वर्णन हुआ है। कवि स्वयं के भींगने शाग्रस्त पत्र उन्ह हम धरती भीगते साँढ़ तथा मजदूर के भींगने, नवोढ़ा स्त्री के भीगते नाचन तथा कौओं के भींगने का वर्णन करता है।
प्रश्न 3.
‘मातृभूमि’ कविता में बच्चे का कैसा चित्रण किया गया है?
उत्तर-
‘मातृभूमि’ कविता में बच्चों का कई बार उल्लेख हुआ है। बच्चे उन स्थानों के किसानों के बच्चे है जिन किसानों ने अलाभकर खेती से ऊबकर आत्महत्या कर ली है। अतः ये बच्चे अनाथ हैं, यतीम हैं और बंधुआ हैं। वस्तुत: कवि ने यहाँ बच्चे को प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया है। ये धरती पर कृषि-कर्म पर आरित जितने भी किसान हैं उन्हें हम धरती-पुत्र भी कहते हैं। इसीलिए कवि ने किसानों को माँ धरती का दुर्दशाग्रस्त पुत्र कहा है।
मातृभूमि अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वर्षा में भींगने का सुख कौन-कौन ले रही हैं?
उत्तर-
वर्षा में भींगने का सुख मजदूर, नवोढ़ा स्त्री, कौए और साँढ़ ले रहे हैं। स्वयं कवि भी यह सुख ले रहा है।
प्रश्न 2.
आंध्र के किसानों के बच्चे कैसे हैं?
उत्तर-
आंध्र के किसानों के बच्चे भूखे, यतीम और अनाथ हैं, बंधुआ हैं।
प्रश्न 3.
कवि को रास्ता क्यो नहीं सूझ रहा है?
उत्तर-
धान के पौधों से धरती हँकी है। बढ़े हुए पौधों ने अधिक फैलकर रास्तों को भी बैंक लिया है। इसलिए कवि को रास्ता नहीं सूझता है।
प्रश्न 4.
बच्चे रसोई घर की देहरी पर क्यों खड़े हैं?
उत्तर-
बच्चे यतीम और अनाथ हैं। इनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है। अतः ये भोजन की आशा में रसोईघर की देहरी पर खड़े हैं।
प्रश्न 5.
कवि मातृरूप भूमि के बच्चों के विषय में क्या अनुरोध करता है?
उत्तर-
कवि मातृरूपा भूमि से बच्चों के माथे पर हाथ फेरने तथा इनके भींगे केशों को अपने श्यामल हाथों से सँवार देने का अनुरोध करता है।
प्रश्न 6.
मातृभूमि शीर्षक कविता किससे संबोधित है?
उत्तर-
मातृभूमि शीर्षक कविता मातृभूमि के साथ-साथ मातृप्रतिमाओं को सम्बोधित है।
प्रश्न 7.
मातृभूमि में किन बातों का समावेश है?
उत्तर-
मातृभूमि में इन बातों का समावेश है-
(क) अगाध ममता
(ख) प्रेम और दया
(ग) फूल-ही-फूल इत्यादि।
मातृभूमि वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
I. निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएं
प्रश्न 1.
‘मातृभूमि’ कविता के कवि कौन हैं?
(क) विद्यापति
(ख) मीराबाई
(ग) अरुण कमल
(घ) कबीर
उत्तर-
(ग)
प्रश्न 2.
अरुण कमल का जन्म कब हुआ था?
(क) 1950 ई०
(ख) 1953 ई०ई०
(ग) 15, फरवरी, 1954
(घ) 1952 ई०
उत्तर-
(ग)
प्रश्न 3.
अरुण कमल का जन्म स्थान कहाँ है?
(क) झारखंड
(ख) बनारस
(ग) बलिया
(घ) बिहार
उत्तर-
(घ)
प्रश्न 4.
अरुण कमल की माता का नाम क्या था?
(क) सुरेश्वरी देवी
(ख) सरस्वती देवी
(ग) वीणा देवी
(घ) मीना देवी
उत्तर-
(क)
प्रश्न 5.
अरुण कमल के पिता का नाम क्या था?
(क) भरद्वाज मुनि
(ख) बाल्मीकि
(ग) कपिल देव मुनि
(घ) जाझवल्क्य मुनि
उत्तर-
(ग)
प्रश्न 6.
अरुण कमल को पुरस्कार मिला
(क) भारत भूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार (1980)
(ख) सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार (1989)
(ग) श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार (1996)
(घ) रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (1996)
(ङ) शमशेर सम्मान (1997)
उत्तर-
(सभी)
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
प्रश्न 1.
…………… हिन्दी की प्रगतिशील यथार्थवादी भावधारा के महत्वपूर्ण कवि हैं।
उत्तर-
अरुण कमला
प्रश्न 2.
तपोमय इसलिए कि इसमें रात-दिन का …………… है।
उत्तर-
होम और पावनता।
प्रश्न 3.
अरुण कमल ने ………. अपना एक जीवंत स्वतंत्र संबंध बनाया है।
उत्तर-
परंपरा से।
प्रश्न 4.
प्रस्तुत कविता नवीनतम कविता संग्रह …………….. से ली गई है।
उत्तर-
पुतली में संसार।
प्रश्न 5.
हिन्दी की प्रगतिशील यथार्थवादी भावधारा के उन्नयाक कवि द्वारा रचित …….. उत्कृष्ट रचना है।
उत्तर-
मातृभूमि।
प्रश्न 6.
इस कविता में कवि ने माता के सम्पन्न एवं समृद्ध भंडार तथा उनके विपन्न संतानों की ……………. चर्चा की है।
उत्तर-
मार्मिक।
प्रश्न 7.
यह कविता …………….. को संबोधित है।
उत्तर-
माता और मातृभूमि।
प्रश्न 8.
कवि व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए ……………. में मातृभूमि की तस्वीर देखता है।
उत्तर-
जड़ और चेतन दोनों।
प्रश्न 9.
प्रकृति के श्राप से अभिशप्त इन क्षेत्रों में पानी का तल काफी नीचे और जमीन ऊसर होने के कारण इन्हें ……………. के रूप में दुनियाँ देखती है।
उत्तर-
मौत का दूत।
मातृभूमि कवि परिचय – अरूण कमल (1954)
अरुण कमल का जन्म 15 फरवरी, 1954 को बिहार के नासरीगंज में हुआ था। वे हिन्दी की प्रगतिशील यथार्थवादी भाव धारा के प्रबल समर्थक और महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं। इनका लेखन आँठवें दशक से शुरू हुआ, जो बिना किसी रुकावट के जारी है। समय के साथ सोच चिंतन में निखार, दृष्टि विस्तार, संवेदना की गहनता, सबका परिचय इनके क्रमागत लेखन से प्राप्त होता है।
कवि अपने कर्म क प्रति आस्थावान है, वह किसी दूसरे की संवेदना का वाहक नहीं है। वह जो कुछ है, पूरी निष्ठा से है। कवि श्रम में निष्ठा रखता है। उसे विश्वास है कि अपने पर विश्वास जमाकर हम अपना और संसार दोनों का भाग्य बदल सकते हैं। कवि स्वांतः सुखाय से प्रेरित होकर कविता नहीं करता, बल्कि वह जग को देखता है, भोगता है, भोगे जा रहे सुख-दुःख से गहरे प्रभावित होकर, तब उसे कविता का रूप देता है। इसीलिए उसमें ऊष्मा है, वजन है, प्रभावोत्पादकता है।
अरुण कमल हिन्दी के होकर भी अपनी माटी, मातृभाषा के दामन को लेकर चलने में विश्वास रखते हैं, इसलिए वे परम्परा से लोहा लेते भी नजर आते हैं। उनकी कविताओं में विषय-वस्तु, संवेदना, कलात्मक और समसामयिकता तीनों का मणिकांचन संयोग मिलता है। कवि को अपने पर भरोसा है, अपनी कलम पर विश्वास है। अरुण जी विश्व नियामक का एक अंश मानते हुए लिखते हैं-
“चारों ओर अंधेरा छाया
मैं भी उठू जला लूँ बत्ती
जितनी भी है दीप्ति भुवन में
सब मेरी पुतली में कसती”
स्वदेश के अनेक भागों तथा विदेशों की साहित्यिक यात्राएँ करने वाले अरूण जी अंग्रेजी के शिक्षक और हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्रिका आलोचना के सम्पादक हैं। पत्रकारिता ने उनकी दृष्टि को और पैना कर दिया है। महान् लेखिका महाश्वेता देवी की टिप्पणी है-“अरुण कमल ने जीवन और संघर्ष दोनों को नये बिम्बों में प्रकट किया है। वे खेतों, बधारों और मैदानों के कवि हैं, उनकी कविताएँ मनुष्य के स्वाभिमान के लिए संघर्ष करती हैं।”
अरुण कमल जी का सृजन अभी जारी है। अभी वैचारिकता के कई पड़ाव आयेंगे। कल्पनाओं की नई ऊँचाइयाँ वे छूते दिखेंगे। अभी उनको लेकर कोई अन्तिम राय नहीं बनायी जा सकती। मातृभूमि के प्रति आज कवि संवेदनाशील है तो कल उसके भाव कुछ और हो सकते हैं।
अरुण कमल वास्तविकता के धरातल पर संभावनाओं के कुशल चितेरे हैं। वस्तुतः कवि अरुण कमल आधुनिक हिन्दी के हितों के एक सशक्त हिन्दी कवि हैं।
मातृभूमि कविता का सारांश
हमारे पाठ्य-पुस्तक दिगंत भाग-1 में संकलित आधुनिक काल के चिंतक, कवि अरुण कमल रचित. मातृभूमि शीर्षक कविता एक ही साथ वर्षा ऋतु, शिशु-माँ सम्बन्ध और मन को झकझोर देने वाली घटनाओं तथा समस्याओं का दस्तावेज है।
संध्या का समय, वर्षा की झड़ी लगी है और कवि धरती से ऊपर और आसमान के नीचे उसमें भीग रहा हैं। जिस तरह से भींगने की प्रक्रिया चल रही है, कवि कल्पना लोक में चला जाता है और यह धरती उसे अपनी माँ नजर आने लगती है, जो कहीं दूरी पर है और बीच में धान के बड़े-बड़े पौधे से रास्ता दीख नही रहा है। अचानक माँ तक पहुँचने के लिए लड़का बदहवास होकर दौड़ता है, जैसे समुद्र अपनी लहरों के माध्यम से अनर्गलाओं को तोड़ता किनारे की ओर दहाता हुआ दौड़ता है।
दूर कहीं कंदराओं से पूजा के क्रम में शंख घोष होता है, जो अंधकार के बितान में आलोड़न उत्पन्न करती है। – बकरियाँ पहली ही बौछार से अपने को बचाती पेड़ों की शरण में है तो लम्बा-चौड़ा हट्टा-कट्टा साँढ़ जिसकी तस्वीर सिन्धु घाटी की सभ्यता पढ़ते समय देखा था, वह बेखबर सड़क के बीचो-बीच रास्ता रोके खड़ा है। मजदूर अभी-भी अपने काम पर डटे हुए हैं। दिन-भर श्रम करने से उसके शरीर की नमी समाप्त हो गयी है। उनके ऊपर वर्षा की बूंदें पड़ती हैं और उनके शरीर के द्वारा सोख ली जाती है। जैसे सूखी मिट्टी का ढेला पानी सोख लेता है।
आँगन में बिखरे सामानों को बचाने के लिए एक नयी-नवेली दुल्हन अपने पूरे शृंगार के साथ वर्षा में भीगते हुई बिखरे सामानों को इकट्ठा करने में आँगन में दौड़ती नाचती आती है। पेड़ों पर पत्ती की मुरझट में छिपे कौवे अब अपने रोमान्त (पंख के नीचे के ऊजले रोये) तक भीग चुके हैं। कवि को यह सारा कुछ मातृभूमि का ही विस्तृत रूप दीखता है, जो एक-दूसरे से इलायची के दानों की तरह एक-दूसरे से सम्बद्ध (गुत्थम गुत्थ) हैं।
कवि बच्चा, बना कह रहा है कि कई दिनों से भूखा-प्यासा वह माँ को खोज रहा था, क्योंकि चारों तरफ रोटी की गर्म भाप का आभास तो होता था, किन्तु वास्तविकता में एक मुट्ठी अनाज भी कहीं से नहीं मिला। लेकिन हे मातृभूमि ! जबसे तुम्हें देखा है, लगता है तश्तरी में सूखे मेवे को समाप्त कर रुका ही है कि तुम गर्म दूध से भरा गिलास लिए तुम मेरे लिए आ रही हो। फिर कवि कल्पना करता है कि उसकी तरह सैकड़ों बच्चे तुम्हारी रसोई के दरवाजे पर खाना पाने के लिए खड़े हैं। हरी-भरी धरती पर फसल उगती है, पकती है और फिर खेत खाली हो जाते हैं। घरों में अन्न पकाने की प्रक्रिया शुरू होती है। फिर भी बच्चों को भोजन नहीं मिल पाता।
आखिर, काला-हाँडी, आन्ध्र, पलामू के पट्टन नरौदा पटिया के बच्चों के लिए अन्न क्यो नहीं है। इनका जीवन इतना रूखा-सूखा क्यों है? ये बंधुओ बने अपने बचपन को बेच रहे हैं। इन अनाथ-यतीम बच्चों को भी तुम्हारी ममता की आवश्यकता है। ऐसा तो नहीं कि तुम केवल मेरी माँ हो, तुम्हारा हाथ मेरे माथे पर फिर रहा है और मैं तुम्हारी ममता की बौछार में भींज रहा हूँ। लगता है आज धरती और आसमान दोनों मेरी धूरी पर मेरे इंगित पर नाच रहे हैं।
कविता अति बौद्धिक और वैचारिक पृष्ठ-भूमि की है। कवि एक ही साथ बच्चा और वयस्क दोनों नजर आता है। मातृभूमि कभी धरती तो कभी कवि को माँ के रूप में अनुभूत होती है।
किन्तु मुख्य कथ्य यही है कि इस धरती पर असमानता क्यों है। प्रकृति काला हाँडी, आन्ध्रप्रदेश आदि स्थानों पर इतनी निष्ठुर क्यों है। भोजन के अभाव में बेटा मर जाए तो माँ की ममता का महत्त्व ही क्या रह जायेगा। वास्तव में मातृभूमि के सभी सपूतों को अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन अवश्य उपलब्ध रहना चाहिये जिससे जीवन-स्तर में सुधार हो सके।
मातृभूमि कठिन शब्दों का अर्थ
हहाना-उत्कट अभिलाषा से भर उठना। कंदरा-गुफा। हिलाइती-हिलाती, हचचल पैदा करती। नवोढ़ा-नयी-नवेली दुलहन। नक्काशीदार-बेल-बूटेदार। यतीम-बेसहारा। श्यामल-साँवला। तकती-देखती। गुत्थमगुत्था-एक-दूसरे में गुंथा हुआ। दुर्लभ-आसानी से न मिलने वाला। खुबानियाँ-एक प्रकार का मेवा। कालाहाँडी-उड़ीसा का एक क्षेत्र जहाँ की जमीन ऊसर है, वहाँ पानी का तल नीचे है, वहाँ जीवन बहुत दूभर है, यह स्थान भूख से मरने वाले निवासियों का पर्याय बन चुका है। बंधुआ-जो मामूली कर्ज के बदले में पराधीन बेगारी की जिंदगी जीने के लिए अभिशक्त हो।
मातृभूमि काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या
1. आज इस शाम …………….. मेरी माँ मेरी मातृभूमि।
व्याख्या-
अरुण कमल रचित ‘मातृभूमि’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों का चित्र यह है कि संध्या काल में हो रही वर्षा में कवि भीग रहा है। स्वभावतः ऊपर आसमान है और पैरों तले धरती। वह बीचों बीच हैं। इस भींगत क्षण में अचानक उसके भीतर एक अनुभूति कौंधती है। इस अनुभूति में वह मातृभूमि अर्थात अपनी जन्मभूमि का जननी के रूप में अनुभव करता है। कवि का अभिप्राय यह है कि धरती और माँ दोनों दो भौतिक अस्तित्व हैं। इन दोनों को एक अनुभव करना किसी विशिष्ट क्षण में संभव होता है। कवि के जीवन में इस एकात्मकता की अनुभूति वर्षा में भी गाते हुए क्षण में संभव हुई है।
2. धान के पौधों ने तुम्हें …………….. अंधकार को हिलोरती।
व्याख्या-
‘मातृभूमि’ शीर्षक कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अरुण कमल ने एक चित्र खींचा है। चित्र के अनुसार धरती, धान की फसल से इनती भरी हुई है कि धरती पूरी तरह ढक गयी है। रास्ता तक इतना ढंक गया है कि दिखाई नहीं पड़ता है कवि अपने को मेले में खो गये बच्चे की तरह अनुभव करता है। ऐसे बच्चे में अपनी माँ को खोजने की तीव्र उत्कंठा होती है और पा जाने पर वह बेतहाशा माँ की तरफ दौड़ पड़ता है। कवि इसी प्रकार की आतुरता से ध रती की ओर दौड़ पड़ता है। इस दौड़ने की ललक और तीव्रता को व्यक्त करने के लिए यह दूसरा चित्र देता है।
वह चित्र है समुद्र का। समुद्र में जब ज्वार उठता है तो पानी का आवेग बड़ी तीव्रता से तट की ओर दौड़ता है और तट की धरती को अपने भीतर समेट लेता है। ऐसा लगता है मानो समुद्र ने कोई कोट पहन रखा हो और उसके सारे बटन खोलकर हटाता हुआ तट की और उसे अपनी छाती में चिपका लेने के लिए दौड़ रहा हो।
यहाँ यह टिप्पणी करना आवश्यक समझता है कि छाती के सारे बटन खोले हहाते समुद्र के दौड़ते आने का यह बिम्ब कहीं से भी कविता की सुन्दरता में कोई योगदान नहीं देता। यदि बटन खोलने से कवि का कोई विशेष अभिप्राय है, तो वह स्पष्ट नहीं है। इसी तरह कन्दराओं से अन्धकार को हिलोरती आने वाली शंख-ध्वनि का क्यों वर्णन हुआ है यह स्पष्ट नहीं है। यदि इसका अर्थ प्रकाश का शंखनाद है और अन्धेरेपन को तोड़ने का उपक्रम है तो उसका प्रयोजन व्यक्त नहीं है।
3. वे बकरियाँ जो पहली बूंद …………….. पूरी सड़क छेके।
व्याख्या-
‘मातृभूमि’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में बारिश होने से घटित दो चित्र दिये गये हैं। प्रथम वर्षा की पहली बूंद गिरते हो बकरियाँ भागकर किसी घर या वृक्ष के नीचे छिप जाती हैं। यह उनकी स्वाभाविक वृत्ति हैं। इसके विपरीत साँढ़ बड़े मजे से सड़क पर भींगता खड़ा रहता है। साँढ़ के प्रसंग में कवि ने तीन विशेषताओं का उल्लेख किया है। प्रथम यह कि उसके अगले पैरों से लेकर मुँह के बीच गले के नीचे पट्टा जैसा भाग लटका है वह काफी चौड़ा है।
अर्थात् साँढ़ लम्बे चौड़े डील डौल वाला है। द्वितीय यह कि कवि को सड़क पर भींगता वह भारी-भरकम साँढ़ सिन्धु घाटी की खुदाई में मिले उपादान पर बने साँढ़ के चित्र की याद दिलाते हैं। तृतीय साँढ़ पूरी सड़क छेककर खड़ा है। इन चित्रों के माध्यम से संभवतः कवि यह बताना चाहता है वर्षा क्रान्ति का विस्फोट है। जब क्रान्ति होती है तो बकरी जैसे लोग भाग खड़े होते हैं जबकि साँढ़ जैसे बलवान लोग पर्वत की तरह अडिग भाव से डटे रहते हैं। साँढ़ और बकरी के इस बिम्ब को ‘योग्य जन जीता है’ की उक्ति की व्याख्या के रूप में भी ग्रहण किया जा सकता है।
4. वे मजदूर जो सोख रहे हैं ……………. वे सब तुम्हीं तो हो।
व्याख्या-
अरुण कमल ने अपनी मातृभूमि कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में वर्षा भीगते कुछ . लोगों के चित्र दिये हैं। प्रथम चित्र उस मजदूर का है जिसका शरीर ढेले की तरह वर्षा के जल को सोख रहा है अर्थात् मजदूर भीगता हुआ भी अपने काम में तन्मय है। दूसरा चित्र उस नवविवाहिता का है जो घर से बाहर न निकलने के लिए विवश है।
अतः वह घर के आँगन में भीग रही है और भींगने की प्रसन्नता को नाच-नाच कर व्यक्त कर रही है। अर्थात् वर्षा उस नवोढ़ा के लिए आनन्ददायक है। तीसरा चित्र कौवे का है। वह कहीं बैठा भीग रहा है। उसके पंख तो गीले हो ही गये हैं। पंखों के नीचे जो हल्के सफेद रंग के रोये हैं वे भी भींग गये हैं। अत: वह भींगते रहने को विवश है।
चौथा चित्र इलायची का जिसके भीतर दाने आपस में इस तरह चिपके हैं मानो प्यार के अतिरेक में गुत्थमगुत्था हो गये हैं। कवि बताना चाहता है कि हे मातृरूपा मातृभूमि इन सभी चित्रों में तुम्हारी ही अभिव्यक्ति है तुम्हारी ही तन्मयता तुम्हारा ही उल्लास और प्यार व्यक्त है।
5. कई दिनों से भूखा प्यासा …………….. दूध का गिलास लिए।
व्याख्या-
अरूण कमल ने अपनी प्रस्तुत पंक्तियों में धरती के मातृरूप को चिह्नित करने के लिए एक चित्र दिया है। कवि के माध्यम से भूखे प्यासे लोग कई दिनों से चारों तरफ मातृरूपा भूमि को ढूँढ रहे हैं। दूँढने का कारण स्पष्ट है। कवि इच्छा और यथार्थ की विषमता का विडम्बना भरा चित्र अंकित करता है कि आज जब भूखे लोगों को भीख में एक मुट्ठी अनाज दुर्लभ है। तब चारों तरफ गर्म रोटी की, इतनी भाप क्यों फैल रही है? कवि का तात्पर्य संभवतः यह है कि एक तरफ लोग रोटी के लिए तड़प रहे हैं और दूसरों की भूख को उत्तेजित कर रही है।
लेकिन शायद यह अभिप्राय कवि का नहीं है। रोटियों की भाप से भूखे लोगों को अनुमान होता है कि शायद माँ नक्काशीदार रूमाल से ढंकी तश्तरी में खुबानी, अखरोट, काजू भरे और हाथ में गर्म दूध का गिलास लिए आ रही है।
6. ये सारे बच्चे तुम्हारी रसोई ……………. फिर टोकसो रहे माँ।
व्याख्या-
कवि अरुण कमल ने अपनी ‘मातृभूमि’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में भूमि को माँ के रूप में चित्रित किया है। जिस तरह भूख लगने पर बच्चे रसोई घर की चौखट पर जाकर खड़े तो जाते हैं भोजन पाने की प्रत्याशा में, उसी तरह भारतमाता के भूखे बेटे गरीब बेटे न जाने कवि से इसके रसोई घर की चौखट पर खड़े इस बात के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं कि धरती माँ के द्वारा दिये गये अन्न-धन में से उन्हीं भी उनका उचित भाग मिलेगा। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। धरती पौधों से हरी होती है, फिर अन्न की बालियों से सुनहली और फिर उनके कट जाने पर धूसर।
उसका रंग बदलता रहता है अर्थात् इसी तरह प्रत्येक वर्ष बीतता जाता है। जिनके पास अन्न होता है वे पकाते हैं जिसका धुंआ छप्परों से निकलता है और इसी तरह क्रम चलता रहता है। लेकिन जो बच्चे बेघर हो गये हैं वे वहीं के नहीं हैं। वे मातृरूपा धरती की देहरी पर भूखे ही सो गये हैं। अर्थात् उनकी दशा नहीं बदली है।
ये बच्चे कालाहांडी, आंध्रप्रदेश, पलामू आदि स्थानों के उन किसानों के, धरती पुत्रों के बेटे हैं जिनके पिताओं ने कृषि-कर्म की निरन्तर उपेक्षा की है। बढ़ती लागत और कम होती आय तथा कर्ज से ऊबकर आत्महत्या कर ली है। यहाँ कवि का तात्पर्य कम उम्र वाले बच्चों से नहीं है। उसका आशय कृषि-कर्म से जुड़े उन हजारों किसानों से है जो अब तक आत्महत्या कर चुके हैं या कर रहे हैं।
7. ये यतीम ये अनाथ ये बंधुआ ……………. तुम किसकी माँ हो मेरी मातृभूमि?
व्याख्या-
अरुण कमल की ‘मातृभूमि’ शीर्षक कविता की प्रस्तुत पंक्तियाँ अत्यन्त मार्मिक हैं। कवि भूखे किसानों को यतीम, अनाथ और बंधुआ मानते हुए धरती माँ से प्रार्थना करता है कि अपने श्यामल हाथ इनके माथे पर फेर दो, इनके भीगे केशों को सँवार दो। अर्थात् इन्हें विपन्नता से मुक्ति का आशीर्वाद दो। यहीं कवि एक ज्वलन्त प्रश्न उठता है।
तुम किसकी माँ हो मेरी मातृभूमि? स्पष्टतः वह सीधा सवाल पूछना चाहता है समाज से, व्यवस्था से कि धरती किसकी है उपजाते-बेकार अन्न, उपजाने वाले किसानों को या उनके द्वारा उपजाये अन्न को शोषण के बल पर हस्तगत कर मौज उड़ाने वाले अमरलता सदृश परजीवी लोगों की? प्रश्न की भंगिमा में आक्रोश है। कृषक-विरोधी सारे तत्त्वों के प्रति और यह स्पष्ट घोषणा भी कि धरती की सेवा करने वाले पुत्रों की है शोषकों की नहीं।
8. मेरे थके माथे पर हाथ फरेती …………….. भीगता बीचोंबीच।
व्याख्या-
‘मातृभूमि’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अरुण कमल ने माँ और मातृभूमि में तदाकारता का बोध व्यक्त किया है। अनुभव करता है कि मातृरूपा भूमि उसे प्यार से ताक रही है, उसके माथे पर हाथ फेर रही है और वह भींग रहा है। उसे लगता है कि वह ध रती-आसमान के बीचोंबीच कील की तरह खड़ा है और उसी कील पर धरती नाच रही है, आसमान नाच रहा है।
यहाँ कवि को ऐसी प्रतीति दो कारणों से होती है। प्रथम यह कि वर्षा में मग्न धरती के स्नेह से उत्पन्न आनन्द की अभिव्यक्ति हो रही है। दूसरे कवि सारी प्रकृति में लय की विराट कल्पना करता है जिस लय के फलस्वरूप यह सारा संसार किसी विराट् सत्ता के संकेत पर नृत्य करता होता है।
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