Hsslive.co.in: Kerala Higher Secondary News, Plus Two Notes, Plus One Notes, Plus two study material, Higher Secondary Question Paper.

Monday, June 20, 2022

BSEB Class 11 Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Book Answers

BSEB Class 11 Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Book Answers
BSEB Class 11 Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Book Answers


BSEB Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbooks Solutions and answers for students are now available in pdf format. Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Book answers and solutions are one of the most important study materials for any student. The Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना books are published by the Bihar Board Publishers. These Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना textbooks are prepared by a group of expert faculty members. Students can download these BSEB STD 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना book solutions pdf online from this page.

Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbooks Solutions PDF

Bihar Board STD 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Books Solutions with Answers are prepared and published by the Bihar Board Publishers. It is an autonomous organization to advise and assist qualitative improvements in school education. If you are in search of BSEB Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Books Answers Solutions, then you are in the right place. Here is a complete hub of Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना solutions that are available here for free PDF downloads to help students for their adequate preparation. You can find all the subjects of Bihar Board STD 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbooks. These Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbooks Solutions English PDF will be helpful for effective education, and a maximum number of questions in exams are chosen from Bihar Board.

Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 11th
Subject Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना
Chapters All
Provider Hsslive


How to download Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbook Solutions Answers PDF Online?

  1. Visit our website - Hsslive
  2. Click on the Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Answers.
  3. Look for your Bihar Board STD 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbooks PDF.
  4. Now download or read the Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbook Solutions for PDF Free.


BSEB Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbooks Solutions with Answer PDF Download

Find below the list of all BSEB Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbook Solutions for PDF’s for you to download and prepare for the upcoming exams:

पृथ्वी पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
कवि को पृथ्वी की तरह क्यों लगती है?
उत्तर-
विद्वान कवि नरेश सक्सेना रचित पृथ्वी शीर्षक कविता में पृथ्वी और एक आम स्त्री के गुण-धर्म का साम्य स्थापित किया गया है। ऊपरी तौर पर बात पृथ्वी की हुई है, जबकि तात्पर्य स्त्री से है। कवि को पृथ्वी स्त्री की तरह लगती है, क्योंकि एक स्त्री अपने पूरे जीवनकाल अनेक भूमिकाओं में अनेक केन्द्रों (धूरियों) के चारों तरफ घूमती रहती है। क्षमा, दया, प्यार, ममता, त्याग, तपस्या की प्रति नें बनी स्त्री अपना सर्वस्व औरों को पूर्ण करने में, बुरे को अच्छा बनाने में, गुणी को और अधिक गुणवान बनाने में न्योछावर कर देती है।

इस प्रक्रिया में उसे जो उपेक्षाएँ मिलती हैं तनाव मिलता है, सहानुभूति की जगह आलोचना मिलती है, उससे उसके भीतर आक्रोश-विद्रोह की ज्वाला भी धधकती है। कभी-कभी वह अपना संतुलन खो देती है और अपने ही संसार को बिखरने के कगार पर आ जाता है। किन्तु दूसरे ही क्षण वह अपने आक्रोश-विद्रोह की आग को शिवम् बनाकर, नया रूप देकर ऐसा कुछ सार्थक मूल्यवान प्रस्तुत करती है कि संसार चकित रह जाता है। यही सब कुछ पृथ्वी भी बड़े फलक पर करती है। यही कारण है कि कवि को पृथ्वी स्त्री की तरह लगती है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी के काँपने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
पृथ्वी के भीतर की बनावट स्थायी न होकर परतदार है। हवा, पानी (समुद्र का) और भूगर्भ ताप के प्रभाव से परतों का स्थान बदलता रहता है। जिसके प्रभाव से प्रतिदिन दुनिया के किसी-न-किसी हिस्से में भूकंप के झटके आते रहते हैं। किन्तु जब यह प्रक्रिया बहुत तीव्रता से होती है, तब भयंकर तबाही वाला भूकंप आता है, इसी को कवि ने पृथ्वी का काँपना कहा है!

प्रश्न 3.
पृथ्वी की सतह पर जल है और सतह के नीचे भी। लेकिन उसके गर्भ के केन्द्र में अग्नि है। स्त्री के सन्दर्भ में इसका क्या आशय है?
उत्तर-
कविवर सक्सेना ने ‘पृथ्वी’ शीर्षक कविता में नारी की सहनशीलता और उग्रता को पृथ्वी के माध्यम से रेखांकित एवं विश्लेषित किया है। जिस प्रकार पृथ्वी के सतह और सतह के नीचे जल है, ठीक उसी प्रकार नारी का हृदय करुणा, दया, सहनशीलता, ममता का अथाह सागर है। पृथ्वी के गर्भ के केन्द्र में अग्नि है, जो ज्वालामुखी के रूप विस्फोटित होता है। नारी भी जब क्रोधाग्नि से आवेगित होती है, तो गृहस्थी-रूपी गाड़ी चरमरा जाती है। कवि ने नारी के गौरव का अंकन उसके कर्ममय जीवन के आँगन में स्वस्थ रूप में प्रतिबिंबित किया है। पृथ्वी और नारी के रहस्यों का अन्वेषण-कार्य कवि की तकनीकी दृष्टिकोण से कर दोनों के समानता को उद्घाटित किया है।

प्रश्न 4.
पृथ्वी कायेलों को हीरों में बदल देती है। क्या इसका कोई लक्ष्यार्थ है? यदि हाँ तो स्पष्ट करें।
उत्तर-
कोयला और हीरा रासायनिक भाषा में कार्बन के अपरूप (Altropes) है। पृथ्वी के गर्भ में प्राकृतिक वानस्पतिक जीवाश्म जब गर्भस्थ ऊष्मा ऑक्सीजन की अल्पता तथा भूगर्भीय मा दबाव से जब जल जाते हैं तो कोयला बना जाता है। यही जीवाश्म यदि बहुत अधिक दाब और ताप झेलता है तो हीरा जैसी कीमती कठोर पदार्थ बन जाता है।

कवि के इस पंक्ति लक्ष्यार्थ है कि नारी अपने त्याग, अपनी तपस्या और बलिदान की अग्नि में साधारण पात्र को भी सुपात्र बना देती है। संसार में जितनी भी महान् विभूतियाँ हैं। सबका निर्माण माँ रूपी धधकती भट्ठी में ही हुआ है। स्त्रियों ने सारा दुःख गरल अपमान पीकर सहकर एक से बढ़कर एक नवरत्न उत्पन्न किए हैं। कोयले को हीरा अर्थात् मूर्ख को विद्वान बनाने की साधनात्मक कला स्त्रियों को ही आती है।

प्रश्न 5.
“रलों से ज्यादा रत्नों के रहस्यों से भरा है तुम्हारा हृदय” -कवि ने इस पंक्ति के माध्यम से क्या कहना चाहा है?
उत्तर-
महाकवि नरेश सक्सेना ने पृथ्वी के विषय में कहा है कि ‘रत्नों से ज्यादा रत्नों के रहस्यों से भरा है, तुम्हारा हृदय’-पृथ्वी की रहस्यों की गूढ़ती को प्रतिबिंबित करता है। पृथ्वी के गर्भ से प्राप्त हीरा, कोयला, सोना, लोहा इत्यादि जैसे दृश्य रत्नों से तो व्यक्ति परिचित हो जाता है, परन्तु पृथ्वी के हृदय (अन्दर) में पानी, अग्नि जो एक दूसरे के प्रबल शत्रु हैं, वे एक साथ कैसे रह पाते हैं। कवि विस्मय प्रकट करते हुए कहता है कि रत्नों का निर्माण प्रक्रिया के दौरान पृथ्वी को कितना दबाव, आर्द्रता और ताप को सहना पड़ता है, यह भी अज्ञात (पृथ्वी की जानता) है।

पृथ्वी के रहस्यों का समय-समय पर जनहित में कुछ महामानव (वैज्ञानिक) उद्घाटित करने का अंशतः प्रयास किया है। अनेकों रहस्यों से परिचित होने के बावजूद अभी भी पृथ्वी के सम्पूर्ण रहस्य को जानना एक अनछुआ पहलू, शोध का विषय है। कवि कहना चाहता है कि पृथ्वी के गर्भ से निकले रत्नों के गुण-दोष से हम परिचित हो जाते हैं परन्तु उसके हृदय के अन्दर व्याप्त रहस्यों का जटिलता से पूर्णत: परिचित होने में हम अब भी असफल हैं।

प्रश्न 6.
“तुम घूमती हो तो घूमती चली जाती हो” यहाँ घूमना का क्या अर्थ है?
उत्तर-
कविवर नरेश सक्सेना ने यहाँ पृथ्वी और नारी की समानता का बिंबात्मक चित्र प्रस्तुत किया है। कवि कहता है कि पृथ्वी अपने केन्द्र मे घूती हुई अपनी दैनिक और वार्षिक गति के द्वारा अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती है। खनिज सम्पदा, वन सम्पदा और थल सम्पदा को अपने ऊपर निवास करने वाले जीव-जन्तुओं को पृथ्वी मुफ्त में उपहार स्वरूप देकर दनका लालन-पालन में सदा गतिमान रहती है।

कवि के अनुसार नारी भी अपनी गृहस्थी के केन्द्र में गतिमान रहकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती है। अपनी सेवा, त्याग, ममता, सहिष्णुता, स्नेह की बारिश अपने परिवार को पुष्पित एवं पल्लवित करती है। वह सदा पृथ्वी की तरह बिना थके हुए अपने कर्तव्य-पथ पर घूमती रहती है। कवि ने पृथ्वी और नारी के कर्तव्य निर्वहन को ‘घूमना’ से प्रतिबिंबित किया है।

प्रश्न 7.
क्या यह कविता पृथ्वी और स्त्री को अक्स-बर-अक्स रखकर देखने में सफल रही है इस कविता का मूल्यांकन अपने शब्दों में करें।
उत्तर-
आधुनिक संश्लिष्ट जीवन पद्धति के हिस्सेदार विद्वान कवि नरेश सक्सेना का कवि अभियंता एक तीर से दो शिकार सफलतापूर्वक कर लेता है।

पृथ्वी शीर्षक कविता समानान्तर चलने वाली दो कविताओं का संयोजन है। कवि को ऐसा लगता है जैसे पृथ्वी में जितने गुण-अवगुण हैं उसी का लघु संस्करण एक आम स्त्री है। पृथ्वी की जो भी गतिविधियों हैं, जो भी अवदान है ठीक वैसी ही गतिविधियों स्त्री की भी हैं। पृथ्वी भी धारण करती है (इसीलिए इसका एक नाम धरती है) स्त्री भी धारण करती इसलिए इसका भी एक नाम है।

पृथ्वी एक से बढ़कर एक अमूल्य-बहुमूल्य रत्न अपने गर्भ से निकाल कर धरणी दे चुकी है जिससे अपने संतान को उसका जीवन अधिक सुख-सुविधा सम्पन्न हो सका है। पृथ्वी जीवन के उपकरण साधन संसाधन उपलब्ध कराती है। पानी, वायुमंडल, प्राकृतिक सम्पदा सब कुछ पृथ्वी के अवदान हैं।

एक स्त्री पृथ्वी की तरह मसृण भावनाओं संवेदनाओं को अपने हृदय में धारण करती है। आदर्श, सर्वोच्च जीवन मूल्यों की वह उत्पादिका, संरक्षिका और वाहिका है। सृष्टि का वस्तुजगत सत्य है जिसे स्त्री अपनी कल्पना, ममता, कठोरता, अनुशासन, उद्बोधन, प्रेरणा, सहायता, सहचरता आदि के द्वारा सत्यम, शिवम् और सुन्दरम में परिणत कर देती है।

पृथ्वी की गतिद्वय सतत् है और इसी सातत्य के कारण जीवन शेष है जीवन प्रवाहमान है। एक स्त्री का तपसचर्या वाला जीवन भी सतत् है जिसके कारण सृष्टि का सृजन का महत् यज्ञ जारी है।

इस प्रकार निश्चय ही पृथ्वी और स्त्री एक-दूसरे के बिम्ब प्रतिबिम्ब ही हैं।

पृथ्वी भाषा की बात।

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें पृथ्वी, जल, अग्नि, स्त्री, दिन, हीरा।
उत्तर-

  • पृथ्वी – धरती,
  • जल – पानी,
  • अग्नि – आग,
  • स्त्री – पत्नी,
  • दिन – दिवस,
  • हीरा – हीरक।

प्रश्न 2.
कभी-कभी कांपती हो’ में ‘कभी-कभी’ में कौन-सा समास है? ऐसे चार अन्य उदाहरण दें।
उत्तर-
‘कभी-कभी’ में अव्ययीभाव समास है। व्याकरण का नियम है कि ‘संज्ञा की द्विरूक्ति वाले शब्द अव्ययी भाव होते हैं अव्ययीभाव समास वहाँ होता है जहाँ समस्त सामासिक पद क्रिया विशेषण (अव्यय) के रूप में प्रयुक्त होता है। अव्ययीभाव सामासिक पद का रूप लिंग, वचन आदि के कारण कभी-कभी नहीं बदलता।

अन्य उदाहरण-कभी-कभी, हाथों-हाथ, दिनों-दिन, रातों-रात, कोठे-कोठे, आप-ही-आप, एका-एक, मुहाँ-मुँह आदि।

प्रश्न 3.
इन शब्दों से विशेषण बनाएँ-
स्त्री, पृथ्वी, केन्द्र, पर्वत, शहर, सतह, अग्नि
उत्तर-

  • संज्ञा – विशेषण
  • स्थी – स्त्रैण
  • पृथ्वी – पार्थिव
  • केंद्र – केन्द्रीय
  • पर्वत – पर्वतीय
  • शहर – शहरी
  • सतह – सतही
  • अग्नि – आग्नेय

प्रश्न 4.
इस कविता में पृथ्वी प्रस्तुत है और स्त्री अप्रस्तुत। आप प्रस्तुत और अप्रस्तुत के भेद स्पष्ट करते हुए इस कविता से अलग चार उदाहरण दें।
उत्तर-
काव्य शास्त्र के अनुसार प्रस्तुत को ही उपमेय और अप्रस्तुत को उपमान कहा जाता है। उपमेय उपमान का उपयोग अपना और रूपक अलंकार में सर्वाधिक होता है।

कतिपय उदाहरण-

  • प्रस्तुत – अप्रस्तुत
  • आँख – मीन, पंकज (कमल के फूल)
  • मुख – चन्द्र
  • मन – मयर
  • उरोज – शीर्षफल (बेल)
  • जंध – कदली स्तम्भ

प्रश्न 5.
‘पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो’-यह प्रश्न वाचक वाक्य है या संकेत वाचक। उदारण के साथ इन दोनों वाक्य प्रकारों का अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
पृथ्वी शीर्षक कविता में ‘पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो’ वाक्य तीन बार प्रयुक्त हुआ है। ‘क्या’ का प्रयोग होने के बावजूद यह प्रश्न वाचक वाक्य नहीं है क्योंकि कहीं भी प्रश्न वाचक चिह्न का उपयोग नहीं हुआ है। प्रश्न वाचक वाक्य से किसी प्रकार प्रश्न पूछे जाने का बोध होता है और वाक्यांत में प्रश्न वाचक चिह्न लगा रहता है। जैसे-

क्या तुम पढ़ रहे हो? तुम क्या पढ़ रहे हो?
तुम जी रहे हो न? तुम्हें कौन नहीं जानता?
कौन क्या जानता है?

संकेत वाचक वाक्य का ही उदाहरण है “पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो”। संकेत वाचक वाक्य में कोई संकेत या शर्त सूचित होता है।

यदि बचाया होता तो आज मजा करते।
तुम क्या खयाली पुलाव पकाते हो कुछ काम करो।
आपकी दृष्टि में क्या करना चाहिए।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्य-प्रयोग द्वारा लिंग-निर्णय करें पृथ्वी, स्त्री, केन्द्र, गर्भ, जल, अँधेरा, उजाला, ताप, हृदय, प्रक्रिया, गृहस्थी, घरबार।
उत्तर-
पृथ्वी (स्त्री.)-हमारी पृथ्वी गोल है।
स्त्री (स्त्री)-राम की स्त्री मर गई।
केन्द्र (पु.)- पृथ्वी का केन्द्र कहाँ स्थित है।
गर्भ (पु.)-पृथ्वी के गर्भ में रत्न भरा है।
जल (पु.)- इस तालाब का जल मीठा है।
अँधेरा(पु.)-यहाँ दिन में भी अँधेरा है।।
उजाला(पु.)-यहाँ दिन-रात उजाला ही रहता है।
ताप (पु.)- सूर्य के ताप से जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।
हृदय (पु.)-आपका हृदय महान है।
प्रक्रिया (स्त्री.)-तुम्हारी ऐसी प्रक्रिया अशोभनीय है।
गृहस्थी (स्त्री.)-आपकी गृहस्थी कैसी है।
घरबार (पु.)-उसका घरबार सँवर चुका है।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

पृथ्वी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी के नारीरूप का संक्षेप में विवेचन करें।
उत्तर-
पृथ्वी कविता में इस पंक्ति की आवृत्ति हुई है-“पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो” इससे स्पष्ट है कि पृथ्वी को स्त्री मानने के प्रति कवि के मन में आग्रह है। इस आग्रह के कारण कवि ने पूरी कविता में पृथ्वी को नारीपरक अर्थ देने का प्रयास किया है।

पृथ्वी को नारी मानकर कवि ने धरती पर उगे पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं तथा बसे हुए नगरों तथा गाँवों के सम्मिलित रूप को उसकी गृहस्थी कहा है।

इसी तरह नारी भीतर-बाहर तरल होती है। लेकिन कभी-कभी प्रचण्ड रूप धारण कर अपने अग्निगर्भा होने का प्रमाण देती है। ज्वालामुखी मों फूटनेवाली पृथ्वी भी अग्निगर्भा है।

धरती रत्नगर्भ है। अनेक रत्न उसे खोदने पर प्राप्त होते है।। स्त्री भी एक से एक तेजस्वी और मूल्यवान संतानों को जन्म देने के कारण रत्नगर्भा है। इन तीन विशेषताओं के आलोक में हम कह सकते हैं कि कवि ने स्त्री और पृथ्वी में साम्य अनुभव कर पृथ्वी को नारीरूप माना है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी शीर्षक कविता का समीक्षात्मक विवेचन कीजिए।
उत्तर-
समीक्षा : ‘पृथ्वी’ नरेश सक्सेना की एक ऐसी सशक्त कविता है जो उनकी मानवीय संवेदनाओं को उजागर करती है। पृथ्वी में निरंतर गतिशीलता बनी रहती है, वह अपने केन्द्र पर सतत घूमने के साथ ही एक ओर केन्द्र के चारों ओर घूमती रहती है। वह कभी-कभी अपने अन्तर की ज्वालाओं से द्रवित हो, अपनी ऊपरी सतह पर कंपन उत्पन्न पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न कर देती है।

पृथ्वी की तुलना कवि ने एक स्त्री से की है, और एक कटु सत्य का अन्वेषण किया है। कवि का दृष्टिकोण आस्थामूलक दिशा की खोज करने का है। स्त्री में जिजीविषा है, आस्था है, वह अपने मन की गहराइयों में उठनेवाली आकुल तरंगों को रोक कर जीवन के सारे प्रश्नों को हल करती है। पृथ्वी की ऊपरी सतह पर जल है, और नीचे भी जल है, लेकिन उसके गर्भ में, गर्भ के केन्द्र में अग्नि है, यही अग्नि उसे उपादेय बनाती है।

वस्तुतः इसी ताप और आर्द्रता से कोयले को हीरे में बदलने की क्षमता होती है। कवि ने कविता में पृथ्वी की तुलना नारी से की है, जो नर को शक्तिवान बनाती है, जिसमें ममता, वात्सल्य, के लिए त्याग, कोमलता एवं मधुरता की मात्रा पुरुषों की उपेक्षा अधिक होती है। स्त्री हमें पुत्ररत्न देती है। वह जीवन की प्रत्येक धड़कनों से कल्याणकारिणी होती है उसका हृदय पृथ्वी की तरह ही रहस्यों से भरा रहता है।

प्रश्न 3.
नरेश सक्सेना की कविता ‘पृथ्वी’ का भाव-सारांश प्रस्तुत करें।
उत्तर-
देखें-कविता-परिचय, सारांश एवं समीक्षा।

पृथ्वी लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि पूरे विश्वास के साथ पृथ्वी को स्त्री क्यों नहीं मान पाता है?
उत्तर-
कवि नयी कविता का कवि है। वह आशंका, जिज्ञासा और यथार्थता की भूमि पर स्थित है। वह पृथ्वी और स्त्री में इतनी समानता नहीं अनुभव कर पाता कि पूरे विश्वास से पृथ्वी का मानवीकरण कर उसे स्त्री मान ले।

प्रश्न 2.
पृथ्वी शीर्षक कविता का संक्षेप में परिचय दीजिए।
उत्तर-
नरेश सक्सेना की ‘पृथ्वी’ शीर्षक कविता ‘समुद्र पर हो रही बारिश’ संकलन में संकलित है इस कविता में प्रकृति (पृथ्वी) मानवीय रागों एवं संवेदनाओं की प्रतिच्छाया के रूप में उभरी है। पृथ्वी और स्त्री में एकरूपता स्थापित करते हुए कवि ने भारतीय नारी के आत्म-संघर्ष, आत्मदान और त्याग का अत्यन्त ही सादगीपूर्ण चित्रण किया है कवि की यह कविता अनुभूति की गंभीरता एवं तन्मयता की दृष्टि से अत्यन्त मार्मिक है।

पृथ्वी तो मानो एक भारतीय नारी है, जिसके बाहर भी (आँखों में) जल है और सतह के नीचे भी जल है, लेकिन नारी अग्निगर्भा भी है। पृथ्वी के नीचे जैसे आग है, वैसे ही भारतीय नारी के भीतर आग है जो रत्नों को उत्पन्न करती है। नारी में अगर कोमलता, महणता है, जो कठोरता भी है। पठित कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि पृथ्वी की तरह स्त्री भी अद्भुत गरिमा एवं गौरव से परिपूर्ण होती है।

पृथ्वी अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि क्यों पृथ्वी से बार-बार पूछता है कि क्या तुम कोई स्त्री हो?
उत्तर-
कवि पृथ्वी की गति और क्रियाकलाप में जो विशेषताएँ पाता है वही स्त्रियों में भी पाता है। अतः वह बार-बार स्त्री होने की बात पूछता है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी शीर्षक कविता किस काव्य संकलन से ली गई है?
उत्तर-
नरेश सक्सेना द्वारा लिखित पृथ्वी नामक कविता समुद्र पर हो रही है बारिश नामक काव्य संकलन से ली गई है।

प्रश्न 3.
पृथ्वी शीर्षक कविता में किस बात की अभिव्यक्ति हुई है?
उत्तर-
पृथ्वी शीर्षक कविता में पृथ्वी की गतिशीलता और उसके चक्र की अभिव्यक्ति हुई है। साथ ही इसमें स्त्री के आत्म-संघर्ष की भी अभिव्यंजना हुई है।

प्रश्न 4.
पृथ्वी शीर्षक कविता में पृथ्वी के साथ किसकी एकरूपता स्थापित हुई है।
उत्तर-
पृथ्वी शीर्षक कविता में पृथ्वी के साथ स्त्री की एकरूपता स्थापित हुई है।

प्रश्न 5.
पृथ्वी के घूमते रहने से क्या होता है?
उत्तर-
पृथ्वी के घूमते रहने से दिन और रात तथा मौसम में परिवर्तन होता है। .

पृथ्वी वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

प्रश्न 1.
‘पृथ्वी’ कविता के कवि हैं
(a) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(b) नागार्जुन
(c) त्रिलोचन
(d) नरेश सक्सेना
उत्तर-
(d) नरेश सक्सेना

प्रश्न 2.
नरेश सक्सेना का जन्म कब हुआ था?
(a) 1939 ई.
(b) 1945 ई.
(c) 1936 ई.
(d) 1940 ई.
उत्तर-
(a) 1939 ई.

प्रश्न 3.
नरेश सक्सेना की शिक्षा कहाँ हुई?
(a) पटना
(b) राँची
(c) जबलपुर
(d) बनारस
उत्तर-
(c) जबलपुर

प्रश्न 4.
नरेश सक्सेना का जन्मस्थान है
(a) उत्तरप्रदेश
(b) हिमाचल प्रदेश
(c) दिल्ली
(d) मध्यप्रदेश
उसर-
(d) मध्यप्रदेश

प्रश्न 5.
नरेश सक्सेना की वृत्ति है
(a) जल निगम में उपप्रबंधक
(b) टेक्नोलॉजी कमिशन के कार्यकारी निदेशक
(c) त्रिपोली के वरिष्ठ सलाहकार
(d) सरकारी सेवा से निवृत्ति
उत्तर-
(a) जल निगम में उपप्रबंधक

प्रश्न 6.
नरेश सक्सेना को ‘पहला सम्मान’ कब मिला?
(a) 2006 में
(b) 1990 में
(c) 2004 में
(d) 1995 में
उत्तर-
(a) 2006 में

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
नरेश सक्सेना बीसवीं शती के सातवें दशक में ……………………… के रूप में आए है।
उत्तर-
महत्वपूर्ण कवि।

प्रश्न 2.
प्रस्तुत कविता ……………………… कवि का ठोस साक्ष्य है।
उत्तर-
पृथ्वी।

प्रश्न 3.
यह कविता ………………… से संकलित है।
उत्तर-
समुद्र पर हो रही है बारीश।

प्रश्न 4.
प्रस्तुत कविता को कवि ने ……………… के साथ ढालकर दुर्लभ उदाहरण प्रस्तुत किया
उत्तर-
विज्ञान और तकनीक।

प्रश्न 5.
…………………… शीर्षक कविता में पृथ्वी की गति की चर्चा करते हुए भारतीय नारी की जीवन-शैली के ऊपर प्रकाश डाला है।
उत्तर-
पृथ्वी

प्रश्न 6.
प्रस्तुत कविता में पृथ्वी की तुलना ……………………… से की गई है।
उत्तर-
स्त्री।

प्रश्न 7.
नारी और पृथ्वी दोनों के ……………………… का भण्डार से भरा पड़ा है।
उत्तर-
रहस्यों।

प्रश्न 8.
नारी की तुलना पृथ्वी से करना कवि की ……………………… नहीं है।
उत्तर-
अतिशयोक्ति।

प्रश्न 9.
नारी पृथ्वी की ……………………… है।
उत्तर-
प्रतिमूर्ति।

पृथ्वी कवि परिचय – नरेश सक्सेना (1939)

नरेश सक्सेना का जन्म 1939 ई. में ग्वालियर मध्य प्रदेश में हुआ है। वे बीसवीं शदी के सातवें दशक में एक अच्छे और विश्वसनीय कवि के रूप में जाने जाते हैं।

जिस कवि ने आजादी के 20 वर्षों के बाद का भारत देखा हो, पहली बार उस कवि की कविताओं में कल्पना का अंश, मनोरंजन का अंश आ ही नहीं सकता। पाकिस्तान का दो-दो बार हमला करना, चीन का भारत पर हमला करना, भुखमरी, अकाल सबको देखने, भोजने वाले नरेश मेहता को मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था उत्पन्न होती है और मानवीय मूल्यों, आदर्शों का उत्स नारी है।

नारी का हृदय है तो वे नाम की वर्तमान विपन्न विषण्ण स्थिति को देखकर क्षुब्ध हो उठते हैं। आरम्भिक दौर में नरेश सक्सेना काव्यान्दोलन से जुड़े। किन्तु समय की कटु कठोर सच्चाइयों ने इन्हें बाध्य किया और ये अपेक्षाकृत अधिक बौद्धिकता, वैचारिकता और संवेदनशीलता के साथ कविता रचने लगे। समकालीन घटनाओं पर इनकी लेखनी खूब चली। कोई घटना, अनछुई नहीं रह सकी।

सक्सेना जी ने “मैं” को अपने काव्य का उपजीव्य नहीं बनाया। ये पूर्णतः निर्वैयक्तिक और वस्तुपरक होकर, तटस्थ होकर लिखते हैं। उन्हें कवि कर्म और उत्पाद के बीच के सम्बन्ध पर संदेह है।

“जैसे चिड़ियों की उड़ान में
शामिल होते हैं पेड़”

क्या कविताएँ होंगी मुसीबत में हमारे साथ? कवि को लगता है कि कविताओं से जीवन को नहीं चलाया जा सकता। कविता के सहारे संघर्ष नहीं किया जा सकता। नरेश सक्सेना को अपनी रचनाओं से राग, मोह नहीं है। कवि की प्रतीक्षा आगे के कई विषय करते मिलते हैं।

आज का जीवन कितना संघर्षपूर्ण प्रतियोगितात्मक है, इसे स्वयं नरेश सक्सेना ने भोगा। जल निगम के उपप्रबंधक पत्रिकाओं के सम्पादक और टेलीविजन रंगमंच के लेखक के रूप में चुनौतियों से दो-चार होना आज भी जारी है। फिर भी उनका हृदय कटु भावनाओं से भरा नहीं है, बल्कि उनमें मानवीय संवेदनाएँ भरी पड़ी हैं।

वस्तुतः ये दृष्टिकोण के विस्तार और संवेदनाओं की प्रगाढ़ता के भीतर ही युगधर्म के प्रचलित सरोकारों यथा, राजनीति, सामाजिकता एवं प्रतिबद्धताओं और उनके वास्तविक अर्थपूर्ण रुख, रुझानों को अपना बनाते चलते हैं। अभियंता का जीवन जीने वाला जब कवि कर्म को अपनाता है तो उसकी रचना दृष्टि ज्यादा तथ्यपरक होती है। वस्तु को वह वस्तुपरक ढंग से रखता है। भाषा नपी-तुली होती है। कविता में ज्ञान-विज्ञान के तथ्यों का – समायोजन एक कठोर संयमित साधना का ही प्रतिफलन है।

नरेश मेहता का काव्य संसार ठोस साक्ष्यों पर आधारित है। किन्तु प्रभाव में वही मसृणता . प्राप्त होता है।

मेहता भी बिम्बों के सृजनहार है। मुक्त छंद तो आजादी के बाद का कविता धर्म ही बन गया। किन्तु मुक्त छंद में भी बातें प्रभावशाली बन जाती हैं, मारक क्षमता प्राप्त कर लेती हैं।

मेहता जी का मुक्त छंद भी हमें नई वैचारिक भूमि उपलब्ध कराता है। वास्तव में समसामयिक जीवन की समस्याओं और संघर्षों से नरेश का गहरा लगाव स्पष्ट होता है। ऐसा करते हुए उनका दृष्टिकोण संवेदना मानवीय पक्ष का उजागर करता है।

पृथ्वी कविता का सारांश

नरेश सक्सेना रचित ‘पृथ्वी’ शीर्षक कविता समसामयिक जीवन की समस्याओं और संघर्षों से हमारा अद्भुत तरीके से साक्षात्कार करती है।

प्रस्तुत कविता में कवि पृथ्वी को सम्बोधित करते हुए उसकी भौगोलिक बनावट, उसकी नियति, उसके आक्रोश आदि का लेखा-जोखा तो लेता ही है। कवि पृथ्वी के बहाने नारी, स्त्री जीवन की उच्चता और विडंबना को भी प्रस्तुत करता है।

भूगोल और विज्ञान के सत्य के साथ कवि पृथ्वी से कहता है कि तुम घुमती हो और लगातार। बिना रुके अपने केन्द्र पर तो तुम घूर्णन करती ही हो एक अन्य बाह्य केन्द्र (सूर्य) के परितः पर चक्रण करती है। एक ही साथ दो अलग प्रकृति के घुमाव से क्या तुम्हें चक्कर नहीं आते? तुम्हारी आँखों के आगे अंधेरा नहीं छाता? तुम हमेशा दो विपरीत प्रकृतियों को साथ लिए चलती है। तुम्हारे आधे भाग में सूर्य के कारण उजाला और आधे भाग में तुम्हारी बनावट के कारण अँधेरा होता है। तुम रात-दिन एक करते हुए दिन को रात और रात को दिन में बदलने के लिए गतिमान रहती हो।

अनथक परिश्रम रत रहती हो। तुम्हें हमने कभी चक्कर खाकर गिरते नहीं देखा। हाँ कभी-कभी तुम कॉपती हो जब तुम्हारी आन्तरिक बनावट में कोई विक्षोभ उत्पन्न होता है। तब लगता है कि सम्पूर्ण अस्ति को नास्ति में बदलकर ही दम लोगी। तुमने अपनी गृहस्थी को सजाने-संवारने के लिए पेड़, पर्वत, नदी, गाँव, टीले की व्यवस्था की है लगता है भूकंप की स्थिति में तु अति क्रोध में आकर इन्हें नष्ट करने पर उद्धत हो प्रतिबद्ध हो गई हो।

तुम्हारा सारा स्वभाव एक स्त्री से मिलता है। क्या तुम भी स्त्री हो। स्त्री के भी कम-से-कम दो व्यक्तित्व होते हैं। वह भी पूरे जीवन नर्तन घूर्णन चक्रण में व्यस्त रहती है वह भी विन्यास करती है और आक्रोश की पराकाष्ठा पर वह भी अपने ही संसार को नष्ट करने पर उतारू हो जाती है।

पृथ्वी तुम्हारी सतह पर जीवन के लिए अपरिहार्य तत्त्व जल प्रचुरता में उपलब्ध है। यह जल तत्व तुम्हारी सतह के नीचे भी है जो शीतलता संचरण संतुलन में लगा है। किन्तु तुम्हारे भी केन्द्र में एक स्त्री की तरह केवल आग दहकता है। क्या तुम्हें भी सदियों से उपेक्षा, तिरस्कार का सामना करना पड़ रहा है जो आक्रोश का पूँजीभूत रूप अग्नि बन गया है। पृथ्वी तुम एक स्त्री की तरह तपस्या साधना करने वाली हो।

एक स्त्री अपने कठोर अनुशासन और मसृण ममत्व के बल पर अपने बच्चे को सर्वगुण सम्पन्न बना देती है। वैसे ही तुम भी अपने क्रोड के चरम ताप, दाब और जल तत्त्व के आर्द्रगुण के सहयोग से वह भी बिना किसी विज्ञापन के कष्टकर जटिल प्रक्रियाओं से गुजर कर कोयले को हीरा बना देती हो। तुम्हारे गर्भ में हृदय में हीरा ही नहीं अन्य अनेक असंख्य रत्न, धातु संरक्षित हैं। उनका रहस्यमय संसार तुम्हारे हृदय की रहस्यमयता को कई गुणा बढ़ा देता है। ठीक जैसे एक स्त्री के असली और सम्पूर्ण भावों की कोई लाख कोशिका करके नहीं पकड़ सकता, पढ़ना-समझना तो बहुत दूर की बात है।

पृथ्वी तुम अपनी अनंत रहस्यमयता के साथ एक स्त्री की तरह ही लगातार सतत् चलायमान हो, घूर्णनरत हो। कवि ने विज्ञान के सायों को मानवीय भावनाओं, क्रियाओं की संगति में रखकर स्वयं एक स्त्री के श्वेत-श्याम पक्ष को सतर्क ढंग से प्रस्तुत किया है।

एक स्त्री का सम्पूर्ण दाम त्यागमय है, गरिमामय है। किन्तु बदले से उसे क्या मिला है? और चाहकर भी, चिड़चिड़ा कर भी एक स्त्री अपने ही घरौंदे को क्यों नहीं रौंदती। शायद इसी लिए कि एक स्त्री का ही वृहत् रूप पृथ्वी. है सकल जीव जड़ चेतन की माँ है।

पृथ्वी कवि की प्रस्तुति बेजोड़ है।

आधुनिक कविता में अलंकारों का वैसे भी कोई महत्त्व नहीं है। जहाँ वैचारिकता का प्रधान्य हो वहाँ तो अलंकार भार स्वरूप ही लगते हैं। फिर भी अनायास रूप से अनुप्रास, उत्प्रेक्षा जैसे अलंकार ‘पृथ्वी’ शीर्षक कविता में प्राप्त हो ही जाते हैं।

वास्तव में इस कविता में कवि ने पृथ्वी और स्त्री का तुलनात्मक विवेचन करते हुए भारतीय स्त्री के आत्मसंघर्ष, आत्मदान और त्याग को त्याग पर प्रकाश डाला है।

पृथ्वी कठिन शब्दों का अर्थ

आर्द्रता-नमी। गृहस्थी-गृह-व्यवस्था। सतह-ऊपरी तल। प्रक्रिया-किसी काम को करने की प्रणाली।

पृथ्वी काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. पृथ्वी तुम घूमती हो ……… नहीं आते।
व्याख्या-
पृथ्वी’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में नरेश सक्सेना कहते है। कि पृथ्वी निरन्तर घूम रही है। भौगोलिक तथ्य के अनुसार पृथ्वी की दो गतियाँ हैं-प्रथम वह अपनी धुरी पर घूम रही है, द्वितीय वह वह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रही है। प्रथम से दिन-रात होते हैं और दूर से ऋतु परिवर्तन। इस तथ्य को व्यक्त करते हुए कवि एक शब्द को पकड़ता है-घूमना। पृथ्वी न जाने कब से, अनन्त काल से घूम रही है। इस आधार पर कवि एक जिज्ञासा करता है-पृथ्वी क्या इस तरह निरन्तर घूमते रहने से तुम्हें चक्कर नहीं आते और इस जिज्ञासा के द्वारा कवि पृथ्वी की जड़ता में मानव-चेतना भर देता है।

2. कभी-कभी काँपती हो……… कोई स्त्री हो।
व्याख्या-
नरेश सक्सेना ने अपनी ‘पृथ्वी’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में पृथ्वी को एक मानवी के रूप में देखा है। पृथ्वी काँपती है तो भूकम्प होता है जिससे धरती की सतह भी प्रभावित होती है और उस पर बसे-उगे नगर गाँव पेड़-पौधे आदि भी। इस सहज कम्पन की घटना को चेतना से जोड़ते हुए कवि मानता है कि पृथ्वी कभी-कभी काँपती है। उसका यह काँपना प्राकृतिक सहजता नहीं उसकी चेतना सत्ता का विषय है।

इस काँपने के कारण कवि को लगता है कि यह एक ऐसी स्त्री का क्रोध में काँपना है जो क्रोध के आवेग में अपनी ही गृहस्थी को नष्ट-भ्रष्ट करती है। यहाँ कवि ने पेड़, पर्वत, नदी, टीले गाँव, शहर आदि के सम्मिलित रूप को पृथ्वी की गृहस्थी माना है और पृथ्वी को गृहस्थिन नारी। मानवीकरण की इस संभावना के बीच कवि प्रश्न करता है कि क्या तुम एक स्त्री हो? स्पष्टतः कवि की दृष्टि में पृथ्वी का आचरण तक तेजस्विनी अग्नि गुण प्रधान नारी का है।

3. तुम्हारी सतह पर कितना जल है …….. सिर्फ अग्नि।
व्याख्या-
‘पृथ्वी’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में नरेश सक्सेना ने भौगोलिक तथ्य को काव्यत्व में परिवर्तित किया है। पृथ्वी की सतह पर प्रायः दो-तिहाई भाग में जल है। इसके नीचे भी विभिन्न स्तरों पर जल है जो खुदाई द्वारा ज्ञात होता है। लेकिन यह भी भौगोलिक सच है कि पृथ्वी के भीतर स्थित जल की सतहों से बहुत नीचे भारी मात्रा में आग है। इसलिए धरती अग्निगर्भा है।

कवि की दृष्टि में स्त्री ऊपर से भी जल की तरह तरल है और हृदय के स्तर पर भीतर भी भावनाओं के कारण तरल है। लेकिन उसमें भीतर अग्नि-तत्त्व भी प्रबल है जो प्रायः विशेष परिस्थितियों में उसे ज्वालामुखी बनता देती है और वह चण्डी बन जाती है। इस तरह सभी पृथ्वी में समानता तलाशते हुए कवि पृथ्वी से पूछता है-“क्या तु कोई स्त्री हो?”

4. कितने ताप कितने दबाव ……………… कोई स्त्री हो।
व्याख्या-
‘पृथ्वी’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में नरेश सक्सेना ने पृथ्वी के रत्नगर्भा रूप का वर्णन किया है। भौगोलिक सच के अन्तर्गत हम जानते हैं कि धरती के नीचे से कोयला निकलता है। वैज्ञानिकों ने अधिक ताप के स्तर पर कोयला से हीरा बनाकर यह सिद्ध किया है कि उच्चतम ताप की स्थिति होने पर विशेष उपादानों के संयोग के कारण कोयला हीरा बन जाता है। धरती के भीतर से खोदकर ही हम अन्य कई रत्न निकालते हैं ये रत्न ताप, आर्द्रता और दबाव की प्रक्रियाओं के कारण निर्मित होते हैं और धरती का रत्नगर्भा नाम सार्थक करते हैं। यह प्रक्रिया अप्रकट घटित होती है।

अतः कवि मानता है कि एक चतुर स्त्री की तरह चुपचाप पृथ्वी विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरकर रत्नों का निर्माण कर लेती है। अतः रत्नों से ज्यादा रत्नों की रचना से रहस्य से पृथ्वी का हृदय भरा है। यही स्थिति नारी की होती है वह भी रहस्यमय हृदयवाली होती है। अतः कवि विश्वासपूर्वक जिज्ञासा करता है-“पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो?”


BSEB Textbook Solutions PDF for Class 11th


Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbooks for Exam Preparations

Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbook Solutions can be of great help in your Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना exam preparation. The BSEB STD 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbooks study material, used with the English medium textbooks, can help you complete the entire Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Books State Board syllabus with maximum efficiency.

FAQs Regarding Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbook Solutions


How to get BSEB Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbook Answers??

Students can download the Bihar Board Class 11 Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Answers PDF from the links provided above.

Can we get a Bihar Board Book PDF for all Classes?

Yes you can get Bihar Board Text Book PDF for all classes using the links provided in the above article.

Important Terms

Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना, BSEB Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbooks, Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना, Bihar Board Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbook solutions, BSEB Class 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbooks Solutions, Bihar Board STD 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना, BSEB STD 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbooks, Bihar Board STD 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना, Bihar Board STD 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbook solutions, BSEB STD 11th Hindi पृथ्वी नरेश सक्सेना Textbooks Solutions,
Share:

0 Comments:

Post a Comment

Plus Two (+2) Previous Year Question Papers

Plus Two (+2) Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus Two (+2) Physics Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus Two (+2) Chemistry Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus Two (+2) Maths Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus Two (+2) Zoology Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus Two (+2) Botany Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus Two (+2) Computer Science Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus Two (+2) Computer Application Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus Two (+2) Commerce Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus Two (+2) Humanities Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus Two (+2) Economics Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus Two (+2) History Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus Two (+2) Islamic History Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus Two (+2) Psychology Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus Two (+2) Sociology Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus Two (+2) Political Science Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus Two (+2) Geography Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus Two (+2) Accountancy Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus Two (+2) Business Studies Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus Two (+2) English Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus Two (+2) Hindi Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus Two (+2) Arabic Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus Two (+2) Kaithang Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus Two (+2) Malayalam Previous Year Chapter Wise Question Papers

Plus One (+1) Previous Year Question Papers

Plus One (+1) Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus One (+1) Physics Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus One (+1) Chemistry Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus One (+1) Maths Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus One (+1) Zoology Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus One (+1) Botany Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus One (+1) Computer Science Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus One (+1) Computer Application Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus One (+1) Commerce Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus One (+1) Humanities Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus One (+1) Economics Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus One (+1) History Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus One (+1) Islamic History Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus One (+1) Psychology Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus One (+1) Sociology Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus One (+1) Political Science Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus One (+1) Geography Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus One (+1) Accountancy Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus One (+1) Business Studies Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus One (+1) English Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus One (+1) Hindi Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus One (+1) Arabic Previous Year Chapter Wise Question Papers, Plus One (+1) Kaithang Previous Year Chapter Wise Question Papers , Plus One (+1) Malayalam Previous Year Chapter Wise Question Papers
Copyright © HSSlive: Plus One & Plus Two Notes & Solutions for Kerala State Board About | Contact | Privacy Policy