BSEB Class 11 Philosophy तर्कशास्त्र की प्रकृति एवं विषय-क्षेत्र Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Philosophy तर्कशास्त्र की प्रकृति एवं विषय-क्षेत्र Book Answers |
Bihar Board Class 11th Philosophy तर्कशास्त्र की प्रकृति एवं विषय-क्षेत्र Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 11th |
Subject | Philosophy तर्कशास्त्र की प्रकृति एवं विषय-क्षेत्र |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 11th Philosophy तर्कशास्त्र की प्रकृति एवं विषय-क्षेत्र Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
सत्य कथन को चुनें –
(क) आकारिक सत्यता वास्तविक सत्यता के लिए आवश्यक है
(ख) वास्तविक सत्यता आकारिक सत्यता के लिए आवश्यक नहीं है
(ग) (क) एवं (ख) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) (क) एवं (ख) दोनों
प्रश्न 2.
‘Logike’ किस भाषा का शब्द है?
(क) ग्रीक
(ख) लैटिन
(ग) ग्रीक एवं लैटिन
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) ग्रीक
प्रश्न 3.
निगमन तर्कशास्त्र में हम जाते हैं –
(क) सामान्य से विशेष की ओर
(ख) विशेष से सामान्य की ओर
(ग) (क) एवं (ख) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) सामान्य से विशेष की ओर
प्रश्न 4.
आगमन तर्कशास्त्र में हम जाते हैं –
(क) सामान्य से विशेष की ओर
(ख) विशेष से सामान्य की ओर
(ग) (क) एवं (ख) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) विशेष से सामान्य की ओर
प्रश्न 5.
धुआँ देखकर हमें आग का ज्ञान होता है। यह उदाहरण है –
(क) अनुमान का
(ख) प्रत्यक्ष का
(ग) दोनों का
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) अनुमान का
प्रश्न 6.
निगमन तर्कशास्त्र का सम्बन्ध है –
(क) आकारिक सत्यता से
(ख) वास्तविक सत्यता से
(ग) उपर्युक्त दोनों से
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) आकारिक सत्यता से
प्रश्न 7.
तर्कशास्त्र की उपयोगिता है –
(क) परिशोधनात्मक
(ख) सृजनात्मक
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) परिशोधनात्मक
प्रश्न 8.
तर्कशास्त्र है –
(क) आदर्शमूलक विज्ञान
(ख) भौतिक विज्ञान
(ग) यथार्थ विज्ञान
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) आदर्शमूलक विज्ञान
प्रश्न 9.
सोने का पहाड़, उड़ता घोड़ा, दूध की नदी आदि जैसे विचार हैं –
(क) आकारिक सत्य
(ख) वास्तविक सत्य
(ग) आकारिक एवं वास्तविक सत्य
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) आकारिक सत्य
प्रश्न 10.
“तर्कशास्त्र तर्क करने की कला एवं विज्ञान दोनों है।” यह किसने कहा था?
(क) हेटली ने
(ख) हैमिल्टन ने
(ग) थॉमसन ने
(घ) मिल ने
उत्तर:
(क) हेटली ने
प्रश्न 11.
“तर्कशास्त्र विचार के नियमों का विज्ञान है।” यह परिभाषा किसने प्रस्तुत की थी?
(क) हेटली
(ख) हैमिल्टन
(ग) थॉमसन
(घ) एलड्रिच
उत्तर:
(ग) थॉमसन
प्रश्न 12.
“तर्क करने की कला को तर्कशास्त्र कहते हैं।” यह किसकी उक्ति है?
(क) एलड्रिच
(ख) थॉमसन
(ग) हेटली
(घ) यूबरबेग
उत्तर:
(क) एलड्रिच
प्रश्न 13.
“तर्कशास्त्र विचार के आकार सम्बन्धी नियमों का विज्ञान है।” यह कथन किसका
(क) हैमिल्टन
(ख) थॉमसन
(ग) एलड्रिच
(घ) किसी का नहीं
उत्तर:
(क) हैमिल्टन
प्रश्न 14.
‘उड़ता घोड़ा’ यह विचार किसकी सत्यता को प्रस्तुत करेगा?
(क) आकारिक सत्यता
(ख) वास्तविक सत्यता
(ग) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) आकारिक सत्यता
प्रश्न 15.
दैनिक जीवन में सत्य को क्या कहते हैं?
(क) आकारिक सत्य
(ख) वास्तविक सत्य
(ग) व्यावहारिक सत्य
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ग) व्यावहारिक सत्य
प्रश्न 16.
“तर्कशास्त्र सभी कलाओं की कला है” यह किसने कहा था?
(क) डन्स स्कॉटस (Duns Scotus)
(ख) हैटली
(ग) हैमिल्टन
(घ) एलड्रिच
उत्तर:
(क) डन्स स्कॉटस (Duns Scotus)
प्रश्न 17.
सभी जीव मरणशील है। घोड़ा एक जीव है। घोड़ा मरणशील है। उपरोक्त में किस प्रकार सत्यता समाहित है?
(क) वास्तविक (Natural truth)
(ख) आकारिक सत्यता (Formal truth)
(ग) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) दोनों
प्रश्न 18.
तर्कशास्त्र का उद्देश्य है –
(क) सत्य की प्राप्ति एवं असत्य का निराकरण
(ख) सत्य की प्राप्ति
(ग) असत्य का निराकरण
(घ) अनुमान करना
उत्तर:
(क) सत्य की प्राप्ति एवं असत्य का निराकरण
Bihar Board Class 11 Philosophy तर्कशास्त्र की प्रकृति एवं विषय-क्षेत्र Additional Important Questions and Answers
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
तर्कशास्त्र के दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
तर्कशास्त्र के दो लाभों की चर्चा हम इस प्रकार कर सकते हैं-प्रथम, प्रत्येक विज्ञान को तार्किक नियमों से परिचित होना आवश्यक है; यह परिचय तर्कशास्त्र से ही मिल पाता है। दूसरा, तर्कशास्त्र के अध्ययन से मानसिक व्यायाम हो जाता है।
प्रश्न 2.
व्यावहारिक सत्य क्या है?
उत्तर:
जो दैनिक जीवन में सत्य हो, उसे व्यावहारिक सत्य कहते हैं। जैसे – ईश्वर, जीव एवं जगत् इत्यादि।
प्रश्न 3.
तर्कशास्त्र की परिभाषा दें।
उत्तर:
तर्कशास्त्र वह विज्ञान है जो अनुमान के व्यापक नियमों तथा अन्य सहायक मानसिक क्रियाओं का अध्ययन इस ध्येय से करता है कि उनके व्यवहार से सत्यता की प्राप्ति हो।
प्रश्न 4.
थॉमसन के अनुसार तर्कशास्त्र की परिभाषा दें।
उत्तर:
थॉमसन के अनुसार तर्कशास्त्र विचार के नियमों का विज्ञान है।
प्रश्न 5.
हेमिल्टन के अनुसार तर्कशास्त्र की परिभाषा दें।
उत्तर:
हेमिल्टन के अनुसार, “तर्कशास्त्र विचार के आकार सम्बन्धी नियमों का विज्ञान है।” (Logic is the science of the formal laws of thought)
प्रश्न 6.
एलचि के अनुसार तर्कशास्त्र की परिभाषा दें।
उत्तर:
एलचि के अनुसार, “तर्कशास्त्र तर्क करने की कला है।” (Logic is the art of reasoning)
प्रश्न 7.
यूबरबेग के अनुसार तर्कशास्त्र की क्या परिभाषा है?
उत्तर:
“तर्कशास्त्र मानव-ज्ञान के व्यवस्थापरक नियमों का विज्ञान है।” (Logic is the science of the regulative laws of human knowledge)
प्रश्न 8.
ह्वेटली ने तर्कशास्त्र की क्या परिभाषा दी?
उत्तर:
हेटली ने तर्कशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार दी, “तर्कशास्त्र तर्क करने का विज्ञान और कला है।” (Logic is the science and also the art of reasoning)
प्रश्न 9.
Logic शब्द की उत्पत्ति कहाँ से हुई है?
उत्तर:
तर्कशास्त्र को अंग्रेजी में (Logic कहा जाता है, जो ग्रीक भाषा के विशेषण Logike (लॉजिकी) से आया है। यह शब्द पुनः ग्रीक संज्ञा Logos से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ होता है ‘विचार’ या ‘शब्द’।
प्रश्न 10.
आकारिक सत्यता (Formal Truth) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आकारिक सत्य (Formal Truth) केवल हमारे विचारों में या मानसिक प्रदेश में होता है। इस प्रकार के सत्य में हमारे विचारों के बीच संगति रहती है। यह कोई आवश्यक नहीं है कि हमारे विचारों के अनुरूप बाह्य विश्व में कोई वस्तु अस्तित्ववान हो ही। जैसे-सोने का पहाड़, उड़ता घोड़ा आदि।
प्रश्न 11.
वास्तविक सत्यता (Material Truth) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब हमारे मन में विद्यमान विचारों के अनुरूप ही बाह्य विश्व में उस विचार से मिलता-जुलता कोई पदार्थ अस्तित्ववान होता है तब उसे वास्तविक सत्य (Material Truth) कहते हैं। इसकी जाँच निरीक्षण एवं प्रयोग से संभव है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
तर्कशास्त्र की ‘आकारिक सत्यता’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
तर्कशास्त्र में आकारिक सत्यता का तात्पर्य ‘उस तरीका से है जिसके द्वारा हम किसी वस्तु पर विचार करते हैं’ (The way in which we think about a thing) तर्कशास्त्र अनुमान से सम्बद्ध है और अनुमान का भी एक आकार होता है। अनेक अर्थशास्त्रियों का यह मानना है कि तर्कशास्त्र का सम्बन्ध केवल अनुमान के आकार से रहता है। उनके अनुसार यदि तर्कशास्त्र का विषय वास्तविक दृष्टि से सही नहीं भी हो, तब भी तर्कशास्त्र इस बात पर बल देता है कि अनुमान के नियमों का पालन अवश्य हो, जैसे –
All men are dogs
Sohan is a man
∴ Sohan is a dog
उपर्युक्त अनुमान आकारिक रूप में सत्य है क्योंकि इसका निष्कर्ष आधार वाक्य पर आधारित तथा तार्किक नियम के अनुकूल है। इस तर्क की प्रक्रिया में तर्कशास्त्र की आकारिक सत्यता दिखाई पड़ती है।
प्रश्न 2.
क्या तर्कशास्त्र कला है?
उत्तर:
डन्स स्कॉटस (Duns Scotus) का कथन है कि तर्कशास्त्र सभी कलाओं की कला इसलिए है, क्योंकि यह सबसे अधिक ‘सामान्य कला’ है। इसे ‘सामान्य’ इसलिए कहा जाता है। क्योंकि इसमें प्रत्येक कला का मूल तत्त्व सामान्य रूप से पाया जाता है। प्रत्येक कला का एक निश्चित लक्ष्य होता है तथा उस लक्ष्य की प्राप्ति के कुछ नियम होते हैं। सत्य की प्राप्ति के लिए तर्कशास्त्र में जिन-जिन नियमों व सिद्धान्तों का सहारा लिया जाता है, उन सभी नियमों का अनुसरण अन्य कलाओं में भी किया जाता है।
कला हमें कोई कार्य करना सिखाती है। तैरना एक कला है जिसके कुछ नियम हैं तथा उन नियमों का पालन करने से ही कोई व्यक्ति तैराक बन सकता है। जिस प्रकार संगीतकला संगीत सिखाती है, नृत्यकला नृत्य सिखाती है; उसी प्रकार तर्कशास्त्र तर्क करना सिखाता है। यह कलाओं की कला इस अर्थ में है कि सभी कलाओं में अनुमान के सहारे कलाओं के नियमों की व्यापकता सिद्ध की जाती है और तर्कशास्त्र अनुमान पद पर आधारित होता है।
प्रश्न 3.
शब्द की व्युत्पत्ति के अनुसार तर्कशास्त्र का क्या अर्थ है?
उत्तर:
ग्रीक भाषा के ‘Logike शब्द से अंग्रेजी का ‘Logic’ वना है। ‘Logike’ विशेषण शब्द है जिसका संज्ञा रूप ‘Logos’ होता है। ‘Logos’ का अर्थ विचार (thought) और शब्द (word) दोनों होता है। इस प्रकार हम शब्द की व्युत्पत्ति के अनुसार यह कह सकते हैं कि ‘Logic’ (तर्कशास्त्र) उन विचारों का शास्त्र है जो विचार शब्दों में व्यक्त होते हैं। तर्कशास्त्र में हम विचारों को शुद्ध रूप में शब्दों में व्यक्त करते हैं। भाषा में व्यक्त तर्क यदि युक्तिसंगत होता है तो हमें सही निष्कर्षों की प्राप्ति होती है।
शब्द की व्युत्पत्ति के अनुसार ‘Logic’ शब्दों में व्यक्त वह विज्ञान है जो नियमों का निर्धारण भाषा के अनुसार करता है। यदि हम यह कहें कि ‘बर्फ जल रही है’ तो बर्फ के साथ जलना कहना व्याघातक हो जाता है, क्योंकि आग के साथ जलना शब्द कहना ही युक्तिसंगत है। अतः ‘बर्फ जल रही है’ कहना तार्किक नियमों के अनुकूल नहीं है। इसलिए शब्दों में ऐसा व्यक्त करना अशुद्ध है। इस प्रकार तर्कशास्त्र का अर्थ हुआ भाषा में अभिव्यक्त विचारों के वे शब्द जो तार्किक नियमों के अनुकूल और युक्तसंगत हों।
प्रश्न 4.
अनुमान क्या है?
उत्तर:
जो ज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान पर आधारित होता है, उसे अनुमान कहते हैं। तर्कशास्त्र की भाषा में अनुमान को इस तरह परिभाषित किया गया है … “अनुमान वह ज्ञान है जिसमें सामने दिये हुए तथ्यों से उसके पीछे के कारणों को जाना जाता है और उसके आधार पर जो सामने .. नहीं है उस तथ्य का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।” अनुमान दो शब्दों के मेल से बना है-अनु का अर्थ है ‘बाद’ और मान का अर्थ है ‘ज्ञान’। इस प्रकार अनुमान का शाब्दिक अर्थ हुआ-‘बाद का ज्ञान’।
इस तरह यह कहा जा सकता है कि प्रत्यक्ष ज्ञान के बाद का ज्ञान ही अनुमान है। उदाहरण के लिए–‘सभी मनुष्य मरणशील हैं – इस तथ्य के आधर पर हम अनुमान (तर्कशास्त्रीय अर्थ में) द्वारा किसी भी व्यक्ति की मरणशीलता का ज्ञान प्राप्त करते हैं। धुएँ को देखकर हम आग का ज्ञान प्राप्त करते हैं। आग होने का ज्ञान अनुमानजन्य ज्ञान है जो धुएँ का ज्ञान होने के बाद हुआ। धुएँ को देखकर हम यह तर्क करते हैं जहाँ-जहाँ धुआँ, वहाँ-वहाँ आग। यहाँ धुआँ यहाँ आग।
प्रश्न 5.
तर्कशास्त्र सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक विज्ञान दोनों है। कैसे?
उत्तर:
तर्कशास्त्र सैद्धान्तिक विज्ञान इसलिए है कि इसमें विभिन्न सिद्धान्तों के द्वारा सत्य-असत्य की जानकारी की जाती है। तर्कशास्त्र अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन आगमनात्मक और निगमनात्मक विधि द्वारा निरीक्षण और विश्लेषण के आधार पर सामान्यीकरण के अनुसार करता है। तर्कशास्त्र सैद्धान्तिक विज्ञान इसलिए है कि इसमें सिद्धान्तों के अनुकूल तर्क किया जाता है और सही ज्ञान की प्राप्ति की जाती है।
तर्कशास्त्र केवल तर्क का शास्त्र नहीं है बल्कि उन सिद्धान्तों का भी विज्ञान है जो तर्क करने में सहायता पहुँचाते हैं। हैमिल्टन ने तर्कशास्त्र को सैद्धान्तिक विज्ञान मानते हुए इन शब्दों में परिभाषित किया है, “तर्कशास्त्र विचार के आकारिक नियमों का विज्ञान है” (Logic is the science of the formal laws of thought)।
तर्कशास्त्रं व्यावहारिक विज्ञान इसलिए है, क्योंकि इसमें तर्क के द्वारा जीवन के व्यावहारिक पक्ष की समस्याओं का हल प्रस्तुत किया जाता है। तर्कशास्त्र का सम्बन्ध अनुमान से है और अपने ‘ व्यावहारिक जीवन में हमें अनुमान की आवश्यकता पड़ती है। विचार करना, तर्क करना मनुष्य के स्वाभाविक गुण हैं, जिस प्रकार बोलना, हँसना, रोना, भूख लगना आदि। चूँकि तर्क करना। हमारे व्यवहार का एक आवश्यक अंग है, इसलिए तर्कशास्त्र एक पूर्ण व्यावहारिक विज्ञान भी है जिसके द्वारा हम व्यवहार के नियमों के शुद्ध निष्कर्ष तक पहुँच पाते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
तर्कशास्त्र की विभिन्न परिभाषाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रायः देखा गया है कि, “तर्कशास्त्र में जितने लेखक हैं उतनी ही इसकी परिभाषाएँ दी गई है और सबों में कुछ-न-कुछ दोष अवश्य पाया जाता है। इसमें से प्रमुख दोषयुक्त निम्नलिखित परिभाषाओं को रखा जा सकता है जो या तो संकुचित हैं, या वृहत् –
1. थॉमसन के अनुसार:
Logic is the science of the laws of thought अर्थात् “तर्कशास्त्र विचार के नियमों का ‘विज्ञान है।” इस परिभाषा में तर्कशास्त्र को केवल विज्ञान कहा गया है। जबकि तर्कशास्त्र की दूसरी त्रुटि है कि इसे विचार का विज्ञान कहा गया है। जबकि ‘विचार’ बहुत व्यापक शब्द है। अतः यह वृहत् (Wide) परिभाषा है।
2. हैमिल्टन के अनुसार:
Logic is the science of the formal laws of thought Hamilton:
अर्थात् तर्कशास्त्र विचार के आकार संबंधी नियमों का विज्ञान है। इससे भी तर्कशास्त्र को सिर्फ विज्ञान माना गया है परन्तु हम जानते हैं कि तर्कशास्त्र विज्ञान के साथ ही कला भी है।
यह भी स्पष्ट है कि तर्कशास्त्र का संबंध केवल आकारिक सत्यता से ही है क्योंकि इसको आकार संबंधी नियमों का ही विज्ञान कहा गया है। परन्तु हम जानते हैं कि तर्कशास्त्र का संबंध सिर्फ आकारिक सत्यता (Formal truth) से ही नहीं, बल्कि वास्तविक सत्यता (Natural truth) से भी उतना ही है, अतः यहाँ तर्कशास्त्र का क्षेत्र बहुत व्यापक कर दिया गया है, जो अनुचित है।
3. एल्ड्चि के अनुसार:
Logic is the art of reasoning-Aldrich:
अर्थात् तर्कशास्त्र तर्क की कला है।
(क) इस परिभाषा में तर्कशास्त्र को केवल कला ही कहा गया है, जबकि तर्कशास्त्र विज्ञान भी है। जिसकी चर्चा भी नहीं की गई है, अतः यह परिभाषा संकीर्ण है।
(ख) संकीर्णता के अलावा इस परिभाषा में सिर्फ क्रियात्मक पक्ष का ही जिक्र किया गया है जबकि सिद्धान्त पक्ष की ओर भी निर्देश करना चाहिए था।
(ग) इस परिभाषा से यह ज्ञात होता है कि तर्कशास्त्र का संबंध सिर्फ तर्क (Reasoning) से ही है परन्तु ऐसी बात सही नहीं है। तर्कशास्त्र से संबंध तर्क में सही पता पहुँचाने वाली अन्य क्रियाओं जैसे परिभाषा, विभाग, वर्गीकरण, नामकरण इत्यादि से भी है। लेकिन इन क्रियाओं पर एल्ड्रिच महोदय ने विचार ही नहीं किया।
4. अलबर्ट्स मैगनस के अनुसार:
Logic is the science of argumentation Albertus Magnus अर्थात् तर्कशास्त्र तर्क का विज्ञान है। यह परिभाषा भी संकुचित है क्योंकि यहाँ तर्कशास्त्र के सभी आवश्यक एवं सामान्य गुणों का वर्णन नहीं किया गया है।
5. स्पैल्डिंग के अनुसार:
Logic is the theory of inference-Spalding-अर्थात् तर्कशास्त्र अनुमान का सिद्धान्त है। यह परिभाषा भी संकुचित ही है।
6. अरनॉल्ड के अनुसार:
Logic is the science of understanding in the pur suit of truth-Arnauld:
अर्थात् तर्कशास्त्र बुद्धि विषयक विज्ञान है जिसके द्वारा सत्य की प्राप्ति की जाती है। इस परिभाषा में भी दोष है।
(क) यहाँ सैद्धान्तिक पक्ष पर जोर दिया गया है और क्रियात्मक पक्ष को छोड़ दिया गया है जबकि तर्कशास्त्र सिद्धान्त और क्रिया दोनों से संबंधित है।
(ख) इस परिभाषा में ‘सत्य’ शास्त्र का प्रयोग किया गया है परन्तु यह स्पष्ट नहीं बताया गया है कि इस सत्य में सत्य के दोनों ही पहलू (आकारिक सत्यता और वास्तविक सत्यता) समाविष्ट है या नहीं। अतः ‘सत्य’ शब्द संदिग्ध है।
7. ह्वेटली के अनुसार:
Logic is the art and science of reasoning-Whately:
अर्थात् तर्कशास्त्रा तर्क की कला एवं विज्ञान है। यह भी दोषयुक्त परिभाषा ही है। इसमें अनुमान की चर्चा तो हुई है किन्तु अन्य सहायक क्रियाओं, जैसे विभाजन, परिभाषा, वर्गीकरण आदि की चर्चा नहीं की गई है। अतः यह भी संकुचित परिभाषा है।
8. यूबरवेग के अनुसार:
Logic is the science of the regulative laws of human knowledge-Ueberweg:
अर्थात् तर्कशास्त्र मानव ज्ञान के नियंत्रणात्मक नियमों का विज्ञान है। इस परिभाषा में वृहत् परिभाषा का दोष है। तर्कशास्त्र का संबंध सिर्फ अनुमान से है प्रत्यक्ष से नहीं। परन्तु इस परिभाषा के अनुसार इसे मानव ज्ञान का शास्त्र बतलाया गया है। मानव-ज्ञान बहुत ही विस्तृत शब्द है। अतः इसमें वृहत् परिभाषा का दोष है।
9. पोर्ट-रॉयल लॉजिक के अनुसार:
Logic is the science of the operation of the human understanding in the persuit of truths-Port Royal Logic:
अर्थात् तर्कशास्त्र मनुष्यों की आकस्मिक प्रक्रियाओं का वह विज्ञान है जिसके द्वारा सत्य की खोज की जाती है। यह परिभाषा भी दोषपूर्ण ही हैं इसमें तर्कशास्त्र का सम्बन्ध सभी मानसिक क्रियाओं में प्रत्यक्ष ज्ञान भी है। परन्तु तर्कशास्त्र का संबंध सिर्फ अनुमान से है। यह परिभाषा वृहत् (Wide) हो जाती है। दूसरा दोष है कि इसमें ‘सत्य’ शब्द भी है। यहाँ स्पष्ट करना था कि सत्य का अर्थ है आकारिक और वास्तविक सत्यता।
10. वेल्टन के अनुसार:
“Logic is science of the principles which regulate valid thought”-Welton:
अर्थात् तर्कशास्त्र उन सिद्धान्तों का विज्ञान है जिनके द्वारा सत्य विचारों का नियंत्रण होता है।
विश्लेषण:
वेल्टन की परिभाषा में निम्नलिखित गुण हैं।
(क) तर्कशास्त्र विज्ञान है क्योंकि यहाँ सिद्धान्तों का निरूपण तथा उनके द्वारा लक्ष्य प्राप्ति का प्रयास होता है।
(ख) इस परिभाषा से स्पष्ट हो जाता है कि तर्कशास्त्र विज्ञान होने के साथ ही साथ कला भी है। इसमें तार्किक सिद्धान्तों के द्वारा सत्य की प्राप्ति की चेष्टा की जाती है।
(ग) यह एक आदर्श निर्धारक भी है। क्योंकि इसका लक्ष्य सत्य की प्राप्ति से है।
(घ) तर्कशास्त्र का संबंध तर्क करने के सिद्धान्तों से तो है ही साथ-ही-साथ तर्क करने में सहायता पहुँचाने वाली क्रियाओं परिभाषा, विभाजन, नामकरण, वर्गीकरण से भी इसका अभीष्ट सम्बन्ध है। इस प्रकार हम देखते हैं कि इन परिभाषाओं में तर्कशास्त्र के सभी सामान्य एवं आवश्यक गुणों (Common essential qualities) का समावेश है।
प्रश्न 2.
क्या तर्कशास्त्र विज्ञान है?
उत्तर:
तर्कशास्त्र का अंग्रेजी शब्द Logic है। यह लौजिक शब्द ग्रीक भाषा के विशेषण Logike से बना है और इसका संज्ञा के रूप में Logos व्यवहार होता है। Logos का अर्थ ‘विचार’ (Thought) या ‘शब्द’ (Word) होता है। अर्थात् Logos का अर्थ Thought and word हुआ जिसका अर्थ विचार और शब्द से हुआ। अतः स्पष्ट सिद्ध है कि ‘विचार एवं शब्द’ में घनिष्ठ संबंध है। यहाँ पर हम तर्कशास्त्र को विचारों का शास्त्र कह सकते हैं।
विचारों को शब्दों में व्यक्त करना आसान काम नहीं है। क्योंकि मन में एक ऐसा भी विचार आ सकता है कि बर्फ जल रही है। लेकिन शब्द में व्यक्त कर देने पर यह युक्तिसंगत नहीं मालूम पड़ता है, क्योंकि बर्फ के साथ जलना कहना व्याघातक हो जाता है।
‘बर्फ जल रही है’ यह तार्किक नियमों के अनुकूल वाक्य नहीं है। शब्दों का उचित प्रयोग नहीं करना अशुद्ध है। अतः तर्कशास्त्र के बारे में कह सकते हैं कि तर्कशास्त्र का संबंध भाषा में अभिव्यक्त तर्क से है, अर्थात् तर्कशास्त्र वह आदर्शात्मक विज्ञान है जो नियमों का निर्धारण सत्य-असत्य के निर्णय के लिए करता है।
‘तर्कशास्त्र’ दो शब्दों के योग से बना है-‘तर्क और शास्त्र’। तर्क का अर्थ है ज्ञात से अज्ञात की ओर जाना। विचारों में सुव्यवस्थित सम्बन्ध हुआ या नहीं यह इसी पर निर्भर करता है कि हमारा तर्क युक्तिसंगत है या नहीं। नियमानुकूल तर्क करने पर ही शुद्ध निष्कर्ष की प्राप्ति होती है। अतः तर्कशास्त्र तर्क’ की शुद्धि एवं अशुद्धि का निर्णय करता है। जैसे –
सभी मनुष्य मरणशील हैं।
राम मनुष्य है।
∴ राम मरणशील है।
ऐसा निष्कर्ष निकालना अशुद्ध है। अब प्रश्न यह भी उठ सकता है कि ‘राम मरणशील है।’ यही निष्कर्ष क्यों शुद्ध है और ‘राम रोटी दूध खाता है’ यह निष्कर्ष क्यों अशुद्ध है? इसी तरह के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए तर्कशास्त्र का अध्ययन जरूरी हो जाता है। हम जो अनुमान करते हैं, निष्कर्ष निकालते हैं तब हमारा तर्क शुद्ध हुआ या अशुद्ध इसका निर्णय ‘तर्कशास्त्र’ ही करता है। इस तरह कुछ शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि तर्कशास्त्र तर्क को शुद्ध और अशुद्ध घोषित करने का एक मापदंड है।
अतः तर्कशास्त्र वह शास्त्र है जहाँ तर्क के सभी नियमों और सिद्धान्तों का विशद वर्णन है। इन्हीं नियमों और सिद्धान्तों के सहारे तर्क की लड़ी को शुद्ध एवं अशुद्ध सिद्ध किया जाता है। ‘ऊपर के उदाहरण में सभी मनुष्य मरणशील हैं, राम मनुष्य है, इसलिए राम मरणशील है। यही निष्कर्ष शुद्ध होगा और यह निष्कर्ष कि राम रोटी दूध खाता है, अशुद्ध होगा; क्योंकि ऐसा नियम है कि निष्कर्ष आधार-वाक्य से ही निकाले जाते हैं और वह निष्कर्ष इन आधार वाक्यों के अन्तर्गत ही होता है।
परिभाषा भी दो तरह की होती है –
(क) विश्लेषणात्मक और
(ख) संश्लेषणात्मक।
(क) विश्लेषणात्मक:
जब हम किसी वस्तु के अंग-प्रत्यंग का वर्णन अलग-अलग विस्तारपूर्वक करते हैं तब वह विश्लेषणात्मक कहलाती है।
(ख) संश्लेषणात्मक:
जब किसी वस्तु के सार गुणों का वर्णन कुछ ही सारगर्भित शब्दों द्वारा करते हैं तब उसे संश्लेषणात्मक कहते हैं।
तर्कशास्त्र की संश्लेषणात्मक (Synthetic) परिभाषा इस प्रकार दे सकते हैं:
“Logic is the science of reasoning as expressed in language for the attaiment of truth and avoidence of error.” अर्थात् तर्कशास्त्र भाषा में अभिव्यक्त तर्क का वह विज्ञान है जिसके द्वारा सत्य की प्राप्ति एवं दोष का परिहार किया जाता है। इस संश्लेषणात्मक परिभाषा का जब हम विश्लेषण करते हैं तब निम्नलिखित विशेषताएँ पाते हैं –
1. तर्कशास्त्र विज्ञान है:
Logic is the science:
विज्ञान विश्व के किसी खास विभाग के क्रमबद्ध (Systematic) ज्ञान को कहते हैं – Systematic knowledge of anything is called science. क्रमबद्ध का अर्थ होता है जो नियमों से बंधा हुआ हो।
अर्थात् विज्ञान में कुछ नियम होते हैं और जब कुछ निश्चित प्रणाली इन्हीं नियमों से बंधी रहती है, तब उसे हम नियमबद्ध कहते हैं और उस प्रकार का ज्ञान ही विज्ञान कहलाता है। इन नियमों के कारण ही विज्ञान में एक सिलसिला बंध जाता है और यह सिलसिला नियमों पर ही निर्भर करता है।
इसी तरह हम देखते हैं कि तर्कशास्त्र भी प्रकृति के एक खास विभाग से संबंधित है और यह विभाग है तर्क का। यह तर्क मन (mind) से संबंधित है। कोई भी अनुमान (Inference) सत्य है या असत्य, इसकी जाँच के पहले यह देखना जरूरी है कि वह तार्किक नियमों के अनुकूल है या प्रतिकूल। अनुमान तर्कसंगत रहने पर सत्य एवं प्रतिकूल रहने पर असत्य होता है। इस तरह तर्कशास्त्र इन्हीं कारणों से विज्ञान कहा गया है।
2. यह तर्क का विज्ञान है:
“It is the science of reasoning”:
तर्कशास्त्र को तर्क का विज्ञान इसलिए कहा गया है कि इसमें तर्क से संबंधित तर्क करने के अनेक नियम एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। अतः विभिन्न नियमों के प्रतिपादन एवं उसके अनुसार तर्क करने की रीति बताने के कारण तर्कशास्त्र को तर्क का विज्ञान कहा गया है।
3. तर्क को भाषा में व्यक्त करते हैं:
Reasoning is expressed in the language. तर्कशास्त्र का संबंध निर्णय से नहीं बल्कि भाषा में व्यक्त किये हुए निर्णय से है। यहाँ पर यह विचार करना जरूरी है कि जब हम मन-ही-मन सोचते हैं कि ‘बर्फ जल रही है’ तब मानसिक प्रदेश में इस प्रकार के निर्णय का संबंध तर्कशास्त्र से ही रहता है। तार्किक दृष्टि से सत्य या असत्य हम तभी कहते हैं जब निर्णय को व्यक्त किया जाता है। भाषा में व्यक्त हो जाती है तब वह तर्कशास्त्र के अधीन हो जाती है। मन के विचार को कई तरह से व्यक्त किया जाता है यथा लिखकर, बोलकर एवं इशारे से।
लेकिन जब हम कहते हैं कि तर्कशास्त्र का संबंध व्यक्त निर्णय (Expressed judgement) से है तब वहाँ व्यक्ति का संबंध इशारे से नहीं है। इशारे में मनोभाव को व्यक्त करना.तार्किक दृष्टि से सत्य या असत्य नहीं कहा जा सकता है। विचारों को बोलकर या लिखकर व्यक्त करना ही तर्कशास्त्र का विषय बनता है।
जब हम बर्फ जल रही है, ऐसा बोलते हैं या लिख देते हैं तव कहा जाता है कि वह तर्क संगत नहीं हुआ। इन्हीं कारणों से कहा गया है कि “Logic is concerned not with the process of though but with the product of thought” अर्थात् तर्कशास्त्र का संबंध विचारों की प्रक्रिया से नहीं बल्कि उनकी निष्पत्ति से है।
यहाँ प्रक्रिया और निष्पत्ति में अन्तर बताना जरूरी है। कागज बनाने की एक मशीन होती है। इस जगह फटे-पुराने कपड़े, बाँस की कोपलें या कागज संबंधी सामग्री रख दी जाती है और इसके बाद मशीन चला दी जाती है। इसके बाद उन सामग्रियों की पिसाई, बेलाई, सुखाई, कटाई एवं इसी तरह के कई पहलुओं से गुजरने के बाद कागज बन कर निकल आता है। यहाँ पर कागज निकलने के पहले जितने भी पहलू दिखाई देते हैं, वे सब प्रक्रियाएँ हैं और कागज निकलना ही निष्पत्ति है।
इसी तरह विचारों के साथ भी है। किसी अनुमान पर पहुँचने के लिए मानसिक क्षेत्र में अनेक प्रक्रियाएँ होती हैं, जैसे-कुछ विचारों को हटाना, कुछ को चुनना, कुछ को जोड़ना। फिर तार्किक नियमानुसार उन चुने विचारों में सुव्यस्थित संबंध देना। ये सब विचारों की प्रक्रियाएँ हैं और तब ये विचार सुसंगठित होकर अनुमान बनकर मन से निकल आते हैं अर्थात् शब्दों द्वारा व्यक्त हो जाते हैं तव ऐसे व्यक्त विचारों (expressed thought) को विचारों की निष्पत्ति (Product of thought) कहते हैं।
विचारों की इसी निष्पत्ति से तर्कशास्त्र का संबंध है। विचारों की प्रक्रियाओं से तर्कशास्त्र का संबंध नहीं है। जैसे बर्फ के साथ जलना का संबंध मानसिक प्रदेश में एक विचरण है जो विचारों की पक्रिया मात्र है।
तर्कशास्त्र उससे संबंधित नहीं है। परन्तु जब विचार छनकर आपस में संबंधित होकर मन से निकल आता है तब वह तर्कशास्त्र का विषय हो जाता है। बर्फ जल रही है, यह अतार्किक विचार है और बर्फ गल रही है, यही तार्किक विचार है। अतः तर्कशास्त्र भाषा में व्यक्त तर्क से संबंधित है (Resoning expressed in Language)।
4. इसके द्वारा सत्य की प्राप्ति होती है:
It attains truth-अर्थात् संश्लेषणात्मक (Synthetic) दृष्टि से विचार करने पर सत्य के संबंध में तीन विचार दिये गये हैं –
(क) चरम सत्य या परम सत्य (Ultimate truth):
इसमें केवल सत्य को ही चरम लक्ष्य के रूप में समझा जाता है। इस रूप में सत्य का अर्थ है ईश्वर, सत्य के ऐसे रूप का निरूपण तात्विक क्षेत्र में किया गया है जहाँ सत्य के अर्थ को मूलतः मूलतत्त्व (ultimate reality in the metaphysical field) ही समझते हैं।
(ख) व्यावहारिक सत्य (Practical truth):
इसका अर्थ इस सत्य से है जिसका संबंध जीवन के किसी अंग से है। यह सत्य संबंध-युक्त (Relative) हुआ करता है। अर्थात् एक दृष्टि से एक स्थान पर सत्य है तो दूसरी दृष्टि से दूसरे स्थान पर असत्य भी है। अतः व्यावहारिक जीवन में समयानुसार उपयोगिता की दृष्टि से इस सत्यता का महत्त्व होता है, जैसे संसार व्यावहारिक दृष्टि से सत्य है किन्तु चरम दृष्टि से, दिव्यदृष्टि से असत्य है।
(ग) तार्किक सत्य (Logical truth):
तार्किक सत्य का अर्थ उस सत्य से है जिसका सामंजस्य विचार एवं बाह्य जगत् से है। साथ-ही-साथ यह भी देखा गया है कि तार्किक नियमों से इसकी अनुकूलता है एवं इसमें व्याघातक विचारों की अवहेलना की गई है।
विश्लेषणात्मक (Analytical) ढंग से सत्य को हम दो खंडों में विभाजित कर अध्ययन करते हैं।
(क) आकारिक सत्यता (Formal truth)
(ख) वास्तविक सत्यता (Matetial truth)।
(क) आकारिक सत्यता (Formal truth):
आकारिक सत्य वह है जिसमें सत्यता केवल आकार में ही हो। जैसे एक फूल का चित्र बना दें तो इस चित्र में सिर्फ आकारिक सत्यता ही है। यह चित्र वास्तविक फूल नहीं है यह सिर्फ आकार में ही फूल है परन्तु एक फूल को टेबुल पर रख देते हैं तो वास्तव में फूल में वास्तविकता है।
इस आकारिक और वास्तविक सत्य को अर्थशास्त्र में क्रमशः बाह्य और आंतरिक (Facial and intrinsic) मूल्य कहा गया है और दर्शन शास्त्र में इसे दृश्य तथा तथ्य (appearance and reality) कहते हैं। जैसे यह जगत् जो हम देख रहे हैं झूठा है। यह दृश्य में ही सत्य है वास्तव में यह वैसा नहीं है, जैसा दीख रहा है। इसकी वास्तविकता का संबंध तो चिरंतन सत्य से है जो अदृश्य है किन्तु वास्तव में सत्य है। तर्कशास्त्र में सत्य के उन दोनों अंगों का नाम है आकारिक सत्य एवं वास्तविक सत्य। आकारिक सत्य का अर्थ है तार्किक नियमों की अनुकूलता, जैसे
सभी मनुष्य जानवर हैं।
राम मनुष्य है।
∴ राम जानवर है।
यह अनुमान आकारिक रूप में सत्य है क्योंकि इसका निष्कर्ष आधार वाक्य पर आश्रित एवं तार्किक नियमानुकूल है। अतः इस तर्क की प्रक्रिया में आकारिक सत्यता है।
(ख) वास्तविक सत्यता (Material truth):
वास्तविक सत्यता हेतु विचार एवं बाह्य जगत् में सामंजस्य होना आवश्यक है। जैसे जब हम कहते हैं कि फूल लाल है तब इसमें वास्तविक सत्यता है, क्योंकि इसमें जो लाल फूल की अवधारणा है उसी के अनुरूप बाह्य जगत् में भी ‘लाल देखने को मिलता है’, अतः बाह्य जगत् एवं अन्तर्जगत में अनुकूलता रहने की वह इसमें वास्तविकता है, जैसे –
सभी मनुष्य मरणशील हैं।
सभी भारतीय मनुष्य हैं।
∴ सभी भारतीय मरणशील हैं।
इस अनुमान में आकारिक सत्यता के साथ ही साथ वास्तविक सत्यता भी है। किन्तु आकारिक सत्यता के साथ वास्तविक सत्यता रह भी सकती है और नहीं भी रह सकती है जैसे –
सभी मनुष्य मरणशील हैं।
मोहन मनुष्य है।
∴ मोहन मरणशील है।
तो इसमें वास्तविक सत्यता के साथ-साथ आकारिक सत्यता भी है। परन्तु जब हम यह कहते हैं कि सभी मनुष्य जानवर हैं।
मोहन मनुष्य है।
∴ मोहन जानवर है।
तो इस अनुमान में आकारिक सत्यता तो है, परन्तु वास्तविक सत्यता नहीं है। तर्कशास्त्र में नियम प्रणाली से आकारिक सत्यता की प्राप्ति होती है तथा आगमन प्रणाली से वास्तविक सत्यता की। इस प्रकार आगमन एवं निगमन प्रणाली से पूर्ण सत्य की प्राप्ति ही तर्कशास्त्र का लक्ष्य है।
(v) तर्कशास्त्र दोष को हटाता है:
Logic avoids error:
तर्कशास्त्र का विषय अनुमान है और अनुमान शुद्ध होना चाहिए। अतः इससे स्पष्ट है कि तर्कशास्त्र का काम शुद्धता से भी है और कहा भी गया है – “Logic is a corrective science and not a creative science.” अर्थात् तर्कशास्त्र शुद्धात्मक विज्ञान है, सर्जनात्मक विज्ञान नहीं है। अनुमान को शुद्ध करने के. लिए बहुत से तार्किक नियमों का अनुसंधान किया गया है जिसके सहारे तर्क की प्रणाली को शुद्ध किया जाता है।
तर्क करने की शक्ति ईश्वरीय देन है। पर इसकी उत्पत्ति पर मनुष्यों का कुछ भी अधिकार नहीं है। तर्क करना और सुधार करना दोनों दो कार्य हैं। सृष्टि करना ब्रह्म का कार्य है और उसमें सुधार कर देना मनुष्य का काम है। इस तरह जिसमें तर्कशक्ति का अभाव है वह तार्किक नहीं हो सकता है।
प्रश्न 3.
आकारिक एवं वास्तविक सत्यता से आप क्या समझते हैं? अथवा, तर्कशास्त्र की विषय-वस्तु का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रत्यक्ष के आधार पर अप्रत्यक्ष के ज्ञान को अनुमान कहते हैं। अनुमान में अनु + मान दो शब्द हैं जिसका अर्थ है बाद का ज्ञान, अर्थात् किसके बाद का? उत्तर है – प्रत्यक्ष के बाद का। धुएँ को देखकर आग का ज्ञान अनुमान है। इसमें धुएँ का ज्ञान प्रत्यक्ष होता है और आग का ज्ञान अनुमान से प्राप्त करते हैं। जैसे –
जहाँ-जहाँ धुआँ है, वहाँ-वहाँ आग है।
यहाँ धुआँ है।
∴ यहाँ आग है।
इसी तरह सिगनल झुका हुआ देखकर गाड़ी के आने का अनुमान करते हैं। यहाँ गाड़ी अप्रत्यक्ष है, परन्तु झुके हुए सिगनल के प्रत्यक्ष से इस अप्रत्यक्ष का बोध होता है। अतः ज्ञानोपार्जन का अनुमान एक काव्य साधन है। इस तरह अनुमान करना हमारा स्वाभाविक धर्म है। बुद्धि विकास के साथ-साथ जीवन के अन्त तक अनुमान किया जाता है।
इस तरह हरेक व्यक्ति अनुमान करता है। छात्र-शिक्षक सभी अनुमान करते हैं कि अगर वे चार घंटा प्रतिदिन पढ़ेंगे तो प्रथम श्रेणी में पास कर जाएँगे। इसी तरह अच्छी वर्षा देखकर किसान अच्छी फसल होगी का अनुमान करते हैं। इस तरह ज्ञान का भंडार अनुमान से खूब भरता है। इस तरह ज्ञानोपार्जन के लिए अनुमान की बहुत महत्ता है।
परन्तु अनुमान का दोष यह भी है कि यह गलत भी हो सकता है। उमड़े हुए बादल को देखकर किसान वर्षा का अनुमान करते हैं किन्तु वर्षा नहीं होती है। किसी के मीठे-मीठे वचन को सुनकर हम उसके सज्जन होने का अनुमान करते हैं परन्तु वह दुर्जन रहता है और ठगने हेतु मीठे वचन का प्रयोग करता हैं इस तरह अनुमान असंदिग्ध ज्ञान नहीं दे पाता है। शंका की गुंजाइश रह जाती है। इसीलिए एक शास्त्र बना जिसे तर्कशास्त्र (Logic) कहते हैं जो सही-सही अनुमान करना सिखलाता है।
तर्कशास्त्र अनुमान का नियम प्रतिपादित करता है जिसका अनुशरण कर हम सत्य की प्राप्ति करते हैं। हम किस तरह सोचें, कैसे तर्क करें, कैसे अनुमान करें ताकि सत्य की प्राप्ति हो यही तर्क की समस्या है। तर्कशास्त्र में अनुमान के व्यापक क्रियाओं का वर्णन है। इन नियमों के अनुसार अनुमान करने पर वास्तविकता को प्राप्त करते हैं और गलती से छुटकारा पाते हैं।
इसलिए कहा गया है कि “Attainment of truth and avoidence of error are the aims of Logic” अर्थात् सत्य की प्राप्ति और असत्य का निराकरण ही तर्कशास्त्र का उद्देश्य है।
अतः अनुमान की सत्यता का अध्ययन तर्कशास्त्र में होता है। इससे साफ हो जाता है कि तर्कशास्त्र के अध्ययन का विषय अनुमान है। इसमें अनुमान संबंधी सारी समस्याओं को हल किया जाता है। अतः तर्कशास्त्र की विषय-वस्तु अनुमान है प्रत्यक्ष नहीं। तर्कशास्त्र का लक्ष्य है सत्यता की प्राप्ति करना और सत्य दो तरह के होते हैं –
(क) आकारिक सत्यता (Formal truth) तथा
(ख) वास्तविक सत्यता (Material truth)।
(क) आकारिक सत्यता (Formal truth):
जब हमारे विचारों में विरोध या संघर्ष नहीं होता है तो उनमें आकारिक सत्यता होती है। यहाँ एक भावना दूसरे के अनुकूल होती है। ऐसी भी हो सकता है कि उन विचारों या भावनाओं के अनुकूल बाहर में कोई वस्तु न हो। फिर भी विरोध निहित होने के कारण उनमें आकारिक सत्यता होती है, यथा-सोने का पहाड़, दूध-घी की नदी। यहाँ वास्तविक जगत् में सोने का पहाड़ और दूध-घी की नदी नहीं पाया जाता है। फिर भी इसमें आकारिक सत्यता हैं। ये विचार आपस में विरोधी नहीं हैं। वास्तविक जगत में सोने का पहाड़ नहीं पाया जाता है फिर भी इसकी आकारिक सत्यता है।
बहुत-सी भावनाएँ असंभव होती हैं। उनका विचार नहीं किया जा सकता है। जैसे वृत्ताकार वर्ग (circular square), बंध्या माता (barren mother) आदि। यहाँ वृत्त और वर्ग एक-दूसरे के विरोधी हैं। इसी तरह बन्ध्या और माता कभी मेल नहीं खा सकते हैं। इनमें वास्तविक सत्यता तो है ही नहीं और आकारिक सत्यता भी नहीं है क्योंकि इनके बारे में सोचा नहीं जा सकता है। स्वर्णिम पर्वत, दूध की नदी, नाचता हुआ नगर, उड़ता हुआ घोड़ा आदि सबों में आकारिक सत्यता है क्योंकि इसकी कल्पनाओं में विरोध नहीं है।
हम इनके बारे में सोच सकते हैं। भले वे वास्तविक जगत् में नहीं पाये जाते हैं परन्तु विचार के जगत् में सत्य हैं। परन्तु वृत्ताकार वर्ग और बन्ध्या माता न तो वास्तविक जगत् में सत्य हैं और न विचार के जगत् में ही। ये असंभव धारणाएँ हैं। इनमें आकारिक सत्यता नहीं है।
(ख) वास्तविक सत्यता (Material truth):
जब विचारों या भावनाओं में मेल रहता है और उनके अनुकूल वस्तुएँ पायी जाती हैं तो उनमें वास्तविक सत्यता होती है। जैसे-‘लाल गुलाब’ एक वास्तविक सत्य है। यहाँ लाल और गुलाव की भावनाओं में विरोध नहीं बल्कि मेल है। लाल गुलाव वास्तविक सत्यता है। स्वर्णिम पहाड़ में आकारिक सत्यता है, वास्तविक सत्यता नहीं है परन्तु जिसमें वास्तविक सत्यता होती है उसमें आकारिक सत्यता भी होती है। परन्तु जिसमें आकारिक सत्यता हो उसमें वास्तविक सत्यता का होना जरूरी नहीं है।
जैसे वास्तविक गुलाव में गुलाब का आकार भी होता ही है, परन्तु कागज के गुलाब में गुलाब का आकार वास्तविक नहीं होती है। अर्थात वास्तविक सत्यता के लिए आकारिक सत्यता का होना जरूरी है, किन्तु आकारिक सत्यता के लिए वास्तविक सत्यता का होना जरूरी नहीं है। (Formal truth is essential for material truth but material truths not essential for formal truth) क्या तर्कशास्त्र का संबंध दोनों तरह के सत्यों से है?
आकारिक तर्कशास्त्रियों के अनुसार तर्कशास्त्र का संबंध दोनों तरह के सत्यों से है? आकारिक तर्कशास्त्रियों के अनुसार तर्कशास्त्र का संबंध सिर्फ अनुमान के आकार से रहता है। अनुमान की वस्तु से नहीं। इसलिए इन विचारों के अनुसार तर्कशास्त्र का संबंध सिर्फ आकारिक सत्यता से है। अनुमान का आकार यदि सही है, तो सब ठीक है। जैसे –
सभी छात्र गदहे हैं।
राम छात्र है।
∴ राम गदहा है।
यह अनुमान आकारिक दृष्टि से सही है। निष्कर्ष भी आधार वाक्यों से नियमानुकूल निकाला गया है। यह प्रथम आकार में बारबारा (Barbara) योग में है। परन्तु इसमें वास्तविक सत्यता का सर्वथा अभाव है। आकारिक तर्कशास्त्रियों के अनुसार सत्य का अर्थ आकारिक सत्यता है और निगमन तर्कशास्त्र का संबंध विशेषतः आकारिक सत्यता से है। इसमें अरस्तू, हैमिल्टन, जेवन्स, मैनसेल आदि इस प्रकार के विचार को मानने वाले हैं।
दूसरा विचार वस्तुवादी तर्कशास्त्रियों का है कि तर्कशास्त्र का संबंध आकारिक सत्यता के साथ-साथ वास्तविक सत्यता से है। आकारिक सत्यता के साथ-ही-साथ वास्तविक सत्यता का रहना आवश्यक है। इस मत के समर्थकों में मिल, बेन, ब्रैडले आदि प्रमुख हैं। इन लोगों के अनुसार अनुमान का संबंध वास्तविक जीवन से होना चाहिए।
यदि तर्कशास्त्र का संबंध केवल आकारिक सत्यता से रहेगा तो तर्कशास्त्र हास्य का विषय हो जाएगा। इसलिए इन लोगों ने आगमन को तर्कशास्त्र का सच्चा रूप माना है। आगमन का संबंध आकारिक सत्यता के साथ-साथ वास्तविक सत्यता से रहता है। अतः निष्कर्ष निकलता है कि तर्कशास्त्र का संबंध दोनों प्रकार के सत्य से है। निगमन का संबंध आकारिक सत्यता से अधिक है और तर्कशास्त्र का लक्ष्यपूर्ण सत्यता की प्राप्ति से है, जिसमें दोनों प्रकार के सत्य आते हैं। दोनों के द्वारा तर्कशास्त्र अपने लक्ष्य की प्राप्ति करता है।
प्रश्न 4.
तर्कशास्त्र की उपयोगिता की विवेचना करें।
उत्तर:
तर्कशास्त्र के अध्ययन से निम्नलिखित लाभ हैं –
1. तर्कशास्त्र हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी है। इसका कारण है कि तर्कशास्त्र का संबंध अनुमान से है तथा अनुमान का संबंध हमारे जीवन से है। अनुमान जीवन के लिए आवश्यक है। अनुमान के बिना हमारा काम नहीं चल सकता है। अतः तर्कशास्त्र जीवन के लिए बहुत उपयोगी है।
2. यह सत्य है कि तर्कशास्त्र तर्क करने की शक्ति पैदा नहीं कर सकता है क्योंकि यह शक्ति प्राकृतिक है। परन्तु यदि तर्क में गलती हुई तो इसे सुधारने में काम कर सकता है। अतः यह सृजनात्मक नहीं बल्कि परिशोधनात्मक है (The function of logic is not creative but corrective)। जिसने तर्कशास्त्र को नहीं पढ़ा है वह तर्क की गलती को नहीं समझ सकता हैं अनुमान की गलती में वह उधेड़बुन में पड़ जाएगा।
गलती को नहीं समझने के कारण, उसका निराकरण भी नहीं कर सकेगा। परन्तु एक तर्कशास्त्री गलती करने पर गलती को समझ सकता है और सुधार भी सकता है। इसलिए तर्कशास्त्र का अध्ययन आवश्यक है। प्रकृति ने हमें स्वास्थ्य दिया है, परन्तु बीमार पड़ने पर दवाई की जरूरत पड़ जाती है। इसी तरह प्रकृति न हमें तर्क करने की शक्ति दी है, परन्तु गलती करने पर तर्कशास्त्र की जरूरत हो जाती है।
3. सभी विज्ञान और कला की जड़ में तर्क है। अतः विभिन्न शास्त्रों के लिए तर्कशास्त्र के नियमों से परिचित होना जरूरी है। अतः तर्कशास्त्र का अध्ययन जरूरी है।
4. जिस तरह शरीर वृद्धि के लिए शारीरिक व्यायाम की आवश्यकता है उसी तरह मानसिक वृद्धि के लिए तर्कशास्त्र के अध्ययन की आवश्यकता है।
5. मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह अपने विचार को भाषा के द्वारा दूसरे के समक्ष रखता है। यदि उसका विचार तर्कसंगत होता है तो उससे लोग प्रभावित होते हैं। इसलिए भी तर्कशास्त्र का अध्ययन लाभकारी है। वक्ता, वकील, व्यापारी, शिक्षक, छात्र, मनोवैज्ञानिक वैज्ञानिक तथा नेताओं के लिए तर्कशास्त्र विशेषकर सहायक होता है।
6. तर्कशास्त्र का अध्ययन दर्शनशास्त्र के लिए भी जरूरी है। दर्शनशास्त्र का विषय अति सूक्ष्म है, जैसे-आत्मा, परमात्मा आदि। इनका ज्ञान प्रत्यक्ष द्वारा प्राप्त नहीं होता है। हम अनुमान से ही इन विषयों का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। अतः तर्कशास्त्र के अध्ययन से दर्शनशास्त्र के विवेचन में लाभ होता है।
7. तर्कशास्त्र अलंकार शास्त्र के लिए भी उपयोगी सिद्ध हुआ है। अलंकारशास्त्र के बारे में कहा गया है कि यह Art of effective speaking or writing है अर्थात् अलंकार प्रभावशाली भाषण या लेखन की कला है। भाषण या लेखन तभी प्रभावोत्पादक हो सकता है जब तक तर्कपूर्ण है। तर्कपूर्ण अलंकारशास्त्र में छिछलापन नहीं होता है और वह दूसरों पर बराबर समानरूप से प्रभाव डालता है।
इन बातों से हम निष्कर्ष पर आते हैं कि तर्कशास्त्र के अध्ययन पर बहुत महत्त्व है। इसकी महत्ता को पूर्वीय तथा पाश्चात्य दोनों विद्वानों ने स्वीकार किया है। पाश्चात्य विद्वान Bosanquet तर्कशास्त्र के बारे में कहते हैं – यह Morphology of human knowledge अर्थात् मानवीय ज्ञान का ढाँचा है।
वहीं भारतीय विद्वानों ने भी तर्कशास्त्र की महत्ता को सर्वोपरि मानते हुए इसके संबंध में कहा है – “प्रदीपः सर्व शास्त्रानां उपायः सर्वकर्मणाम्” अर्थात् तर्कशास्त्र सभी शास्त्रों के लिए दीपक के समान है एवं सभी कार्यों में सफलता हेतु उपाय बताने वाला शास्त्र है। अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि ज्ञान दीपके से अपने को एवं दूसरों को आलोकित करने के लिए तर्कशास्त्र का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है। तर्कशास्त्र बहुत उपयोगी है।
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