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Wednesday, June 22, 2022

BSEB Class 11 Philosophy प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Philosophy प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र Book Answers

BSEB Class 11 Philosophy प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Philosophy प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र Book Answers
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Bihar Board Class 11th Philosophy प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र Textbooks Solutions PDF

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Bihar Board Class 11th Philosophy प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 11th
Subject Philosophy प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र
Chapters All
Provider Hsslive


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Bihar Board Class 11 Philosophy प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘और’, ‘तथा’, ‘सिवाय’ ‘और भी’, ‘लेकिन’, ‘यद्यपि’, ‘तो भी’ आदि हैं –
(क) संयोजन
(ख) निषेधात्मक प्रकथन
(ग) सोपाधिक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) संयोजन

प्रश्न 2.
‘राम तेज है या नटखट है।’ इस यौगिक प्रकथन को क्या कहते हैं?
(क) वियोजन
(ख) निषेध
(ग) सोपाधिक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) वियोजन

प्रश्न 3.
‘यदि परीक्षा जल्द हुई, तो वह प्रथम करें’ यह कौन-सा यौगिक प्रकथन है?
(क) सोपाधिक प्रकथन
(ख) वियोजन
(ग) निषेधात्मक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) सोपाधिक प्रकथन

प्रश्न 4.
सोपाधिक प्रकथन को अन्य किस नाम से जाना जाता है?
(क) आपादानात्मक प्रकथन
(ख) हेत्वाश्रित प्रकथन
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) उपर्युक्त दोनों

प्रश्न 5.
यदि ‘P’ कोई एक प्रकथन हो तो उसका निषेध होगा –
(क) ‘p.d’
(ख) ‘p vq’
(ग) ‘P’
(घ) ‘VP’
उत्तर:
(ग) ‘P’

प्रश्न 6.
‘A ⊃ B’ से किस यौगिक तर्कवाक्य का संकेत मिलता है?
(क) संयुक्त यौगिक तर्कवाक्य
(ख) वैकल्पिक यौगिक तर्कवाक्य
(ग) आपादिक यौगिक तर्कवाक्य
(घ) निषेध तर्कवाक्य
उत्तर:
(ग) आपादिक यौगिक तर्कवाक्य

प्रश्न 7.
प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र (Symbolic logic) प्रक्रिया है –
(क) प्रतीकों के माध्यम से सत्यता की स्थापना
(ख) प्रतीकों के माध्यम से सत्यान्वेषण
(ग) प्रतीकों के माध्यम से नये ज्ञान की प्राप्ति
(घ) प्रतीकों के माध्यम से छात्रों में असमंजस की स्थिति उत्पन्न करना
उत्तर:
(क) प्रतीकों के माध्यम से सत्यता की स्थापना

प्रश्न 8.
उक्तियों के (Argument) के प्रकार हैं –
(क) सरल
(ख) जटिल
(ग) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) दोनों

प्रश्न 9.
कीलक (V) क्या है?
(क) वियोजक की सत्यता मूल्य
(ख) निषेधात्मक उक्ति की सत्यता मूल्य
(ग) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) वियोजक की सत्यता मूल्य

प्रश्न 10.
किसी सत्य उक्ति का निषेध होता है –
(क) असत्य
(ख) सत्य
(ग) सत्यासत्य
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) असत्य

प्रश्न 11.
प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र (Symbolic Logic) ज्ञान की किस विद्या का विकसित तथा व्यवस्थित रूप है?
(क) तर्कगणित
(ख) जीव विज्ञान
(ग) भौतिकी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) तर्कगणित

प्रश्न 12.
प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र के लाभ हैं –
(क) भाषा की अस्पष्टता से बचने हेतु
(ख) समय की बचत
(ग) स्थान की बचत
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 13.
सरल प्रकथन किस प्रकथन को कहते हैं?
(क) जिस प्रकथन में केवल एक ही उक्ति हो
(ख) जिस प्रकथन में दो या दो से अधिक उक्ति हो
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) जिस प्रकथन में केवल एक ही उक्ति हो

प्रश्न 14.
‘आम लाल है ।’ यह प्रकथन है –
(क) सरल
(ख) जटिल
(ग) आपादित
(घ) सोपाधिक
उत्तर:
(क) सरल

प्रश्न 15.
जटिल उक्ति किसे कहते हैं?
(क) जिस प्रकथन में केवल एक उक्ति हो
(ख) जिस प्रकथन में दो या दो से अधिक उक्ति हो
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) जिस प्रकथन में दो या दो से अधिक उक्ति हो

Bihar Board Class 11 Philosophy प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सरल उक्ति किसे कहते हैं? अथवा, सरल प्रकथन किसे कहते हैं?
उत्तर:
सरल उक्ति उसे कहा जाता है जिसके निर्णायक तत्त्व के रूप में कोई अन्य उक्ति नहीं हो। जैसे-आम लाल है, टेबुल चौकोर है आदि।

प्रश्न 2.
प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र के क्या लाभ हैं?
उत्तर:
भाषा की अस्पष्टता से बचने हेतु तथा समय एवं स्थान में मितव्ययिता के लिए प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र बहुत उपयोगी है।

प्रश्न 3.
प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र (symbolic logic) क्या है?
उत्तर:
तर्कगणित के विकसित तथा व्यवस्थित रूप को ही प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र कहा जाता है।

प्रश्न 4.
जटिल उक्ति (Compound) किसे कहते हैं?
उत्तर:
जटिल उक्ति वह है, जिसके नियामक तत्त्व के रूप में एक से अधिक उक्तियाँ हों। जैसे-‘मोहन मुजफ्फरपुर जाएगा और राम पटना’, ‘वह कला पढ़ेगा या वह पढ़ाई छोड़ देगा’।

प्रश्न 5.
संयोजन क्या है? अथवा, संयोजन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
दो या दो से अधिक सरल उक्तियों के बीच ‘और’ या ‘तथा’ शब्द लगाकर एक ६ जटिल उक्ति की रचना की जाती है, उसे ही संयोजन (conjunction) कहते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सरल एवं जटिल उक्ति के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
वाक्य कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे क्या आप तर्कशास्त्र पढ़ना चाहते हैं? एक ग्लास पानी दें, गुलाब लाल है आदि। सभी वाक्य एक प्रकार के नहीं हैं, कोई प्रश्नार्थक है तो कोई आज्ञार्थक और कोई वर्णनात्मक। ‘क्या आप तर्कशास्त्र पढ़ना चाहते हैं?’ यह वाक्य प्रश्नार्थक है, ‘एक ग्लास पानी दें’ – यह वाक्य आज्ञार्थक है, पर ‘गुलाब लाल है’ एक वर्णनात्मक वाक्य है। किंसी वर्णनात्मक वाक्य को ही उक्ति कहा जाता है। उक्ति वैसे वाक्य होते हैं, जो सत्य हों या असत्य हों। उक्तियाँ दो प्रकार की होती हैं, सरल या जटिल। सरल उक्ति उसे कहा जाता है, जिसके निर्मायक तत्त्व के रूप में कोई अन्य उक्ति नहीं हो, जैसे, गुलाब लाल है, यह कुर्सी चौकोर है आदि।

इसमें केवल एक उक्ति होती है। जटिल उक्ति वह है, जिसके निर्मायक तत्त्व के रूप में एक से अधिक उक्तियाँ हो, जैसे – ‘राम कलकत्ता जाएगा और श्याम पटना’। वह विज्ञान पढ़ेगा या वह पढ़ाई छोड़ देगा।’ प्रत्येक उदाहरण में दो-दो उक्तियाँ हैं। ‘राम कलकत्ता जाएगा और श्याम पटना’ में दो उक्तियाँ हैं –

  1. राम कलकत्ता जाएगा और
  2. श्याम पटना जाएगा और दूसरी उक्ति में भी दो उक्तियाँ हैं –
    • वह विज्ञान पढ़ेगा या
    • वह पढ़ाई छोड़ देगा। जटिल उक्तियों में एक से अधिक उक्तियाँ होती हैं। जटिल उक्तियों के निर्मायक अंश स्वयं जटिल भी हो सकते हैं। सरल उक्तियों को विभिन्न विधियों से सम्बन्धित कर एक जटिल उक्ति की रचना की जाती है।

प्रश्न 2.
प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भाषा की अस्पष्टता तथा दुरूहता से बचने के लिए तथा समय और स्थान में मितव्ययिता के लिए समकालीन युग में तर्कशास्त्र के क्षेत्र में प्रतीकों का प्रयोग प्रारम्भ किया गया। प्रत्येक विज्ञान में प्रतीकों की आवश्यकता होती है। गणित में, x × x × x × x × x को बहुत संक्षिप्ति रूप x5 में व्यक्त कर देते हैं। इससे समय और स्थान की बचत तो होती ही है, साथ-साथ ध्यान भी बिखरता नहीं है और स्मृति में सहायता मिलती है। पदार्थ तथा रसायन-विज्ञान में प्रतीकों का प्रयोग होता है। इसी लक्ष्य से तर्कशास्त्र में भी प्रतीकों का प्रयोग होता है। प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र और प्राचीन तर्कशास्त्र में गुणात्मक भेद नहीं है, पर प्रतीकों का प्रयोग विश्लेषण तथा तों की प्रामाणिकता की परीक्षा का अधिक शक्तिशाली अस्त्र सिद्ध हुआ है।

प्रश्न 3.
यदि अ और ब सत्य उक्तियों हों और स और प असत्य, तो निम्नलिखित जटिल उक्तियों का सत्यता – मूल्य बतलाएँ।
(क) ~ (अ V स)
(ख) ~ (~[~(अ ~ स) ~ अ] ~ स)
उत्तर:
(क) चूँकि अ सत्य उक्ति है और स असत्य, इसलिए वियोजन (अ V स) सत्य होगा और इसका निषेध ~ (अ V स), असत्य। अतः, जटिल उक्ति ~ (अ V स) का सत्यता-मूल्य असत्य होगा।

(ख) चूँकि स असत्य है, इसलिए उसका निषेध ~ स सत्य होगा और चूँकि अभी सत्य है, अतः संयोजन (अ ~ स) सत्य होगा और उसका निषेध (अ ~ स), असत्य। चूँकि अ सत्य है, इसलिए उसका निषेध ~ अ असत्य होगा और इसका संयोजन [~ (अ . ~ स) ~ अ] असत्य होगा। इसलिए इस सयोजन का निषेध ~ [~ (अ . ~ स) . ~ अ], सत्य होगा। चूँकि स असत्य है, इसलिए उसका निषेध ~ स, सत्य होगा और उसका संयोजन {~ {~ (अ . ~ स)} सत्य होगा और इसका निषेध जो दी हुई जटिल उक्ति है ~ {~ [~ (अ . ~ स). ~ अ] . ~ स}, असत्य होगा।

प्रश्न 4.
संयोजन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
संयोजन (Conjunction):
दो या दो से अधिक सरल उक्तियों के बीच और, या, तथा, शब्द लगाकर एक जटिल उक्ति की रचना की जाती है। जैसे –

  1. कुर्सी बैठने की सामग्री है और कलम लिखने की –
  2. ‘राम तेज है तथा वह गरीब है’-दोनों जटिल उक्तियाँ हैं।

दो या दो से अधिक उक्तियों को ‘और’, ‘या’, ‘तथा’ लगाकर सम्बन्धित करने पर जिस सरल उक्ति की रचना होती है, उसे संयोजन (Conjunction) कहते हैं। जिन सरल उक्तियों को इस तरह मिलाया जाता है, उन्हें ‘संयुक्त’ (Conjuncts) कहा जाता है। पहली जटिल उक्ति में ‘कुर्सी बैठने की सामग्री है’ एक संयुक्त और ‘कलम लिखने की सामग्री है’ दूसरा संयुक्त। दूसरी जटिल उक्ति में ‘राम तेज है’ एक संयुक्त है और ‘राम गरीब है’ दूसरा संयुक्त। ‘और’ शब्द के लगा देने से ही कोई उक्ति जटिल नहीं हो जाती।

‘और’ शब्द का प्रयोग दूसरी तरह भी होता है, जैसे-राम और श्याम शत्रु हैं। यह एक जटिल उक्ति नहीं है, हालाँकि इसमें ‘और’ शब्द का प्रयोग हुआ है। यह एक, सरल उक्ति है, जिसमें एक विशेष सम्बन्ध को व्यक्त किया गया है। दो उक्तियों को संयोजित रूप में सम्बन्धित करने के लिए ‘और’ या ‘तथा’ के लिए एक विशिष्ट प्रतीक ‘.’ (बिन्दु) का प्रयोग किया गया है, जैसे, कुर्सी बैठने की सामग्री है और कलम लिखने की = कुर्सी बैठने की सामग्री है, कलम लिखने की। यदि प और फ को सरल उक्तियाँ मान लें तो इनका संयोजन होगा-प, फ। हिन्दी या अंग्रेजी में ‘और’ के अतिरिक्त अन्य शब्द जैसे सिवाय, और भी, फिर भी, लेकिन, यद्यपि, तो भी का प्रयोग संयोजन में होता है, अतः उनका प्रतीक भी बिन्दु ‘ . ‘ ही होगा।

प्रश्न 5.
प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र (Symbolic logic) की उपयोगिता बताएँ।
उत्तर:
प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र की उपयोगिता –

  1. प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र का अध्ययन बौद्धिक स्तर को ऊँचा करता है।
  2. यह सभी विषयों को तार्किक ढंग से हल करने में सहायता करता है।
  3. यह शुद्ध एवं स्पष्ट अनुमान निकालने में सहायता करता है।
  4. इसकी सहायता से सही युक्तियों (Correct argument) का स्पष्ट विश्लेषण पहुँचाया जा सकता है।
  5. इसकी सहायता से विचारों को पूर्ण अभिव्यक्तियों का सही अर्थ दूसरों तक पहुँचाया जा सकता है।

प्रश्न 6.
किन्हीं चार प्रतीकों का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
चार प्रतीकों के अर्थ हम निम्नलिखित ढंग से स्पष्ट कर सकते हैं –
(क) A. B यहाँ . संयुक्तक है।
(ख) AV यहाँ V वैकल्पिक है।
(ग) A ⊃ B यहाँ ⊃ आपादिक है।
(घ) – A यहाँ – निषेधक है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र में कोष्ठों के प्रयोग को समझाएँ।
उत्तर:
कोष्ठों का प्रयोग-अस्पष्टता को दूर करने के लिए भाषाओं में विरामचिह्न का, गणित में कोष्ठों का प्रयोग किया जाता है। न को किसके साथ माना जाए इस आधार पर ‘बेटा न बेटी’ के कई अर्थ हो सकते हैं। 6 + 3 ÷ 3 से 9 ÷ 3 = 3 या 6 + (3 ÷ 3) = 7 का बोध हो सकता है। इसलिए विराम-चिह्न तथा कोष्ठों का प्रयोग किया जाता है। प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र में भी भाषा की दुरूहता को दूर करने के लिए विराम – चिह्नों के प्रयोग की आवश्यकता होती है।

प फ Vब में अस्पष्टता है। इसका अर्थ हो सकता है –

1. प का फ V ब के साथ संयोजन या प . फ का ब के साथ वियोजन। इन अर्थों का स्पष्टीकरण विराम-चिह्नों के प्रयोग से होता है – जैसे,

  • प (फ V ब) या
  • (प . फ) V ब। यदि प और फ दोनों सत्य हों और ब सत्य हो तो –

2. प . (फ V ब) अ स असत्य होगा। चूँकि इसका पहला संयुक्त असत्य है और –

3. (प, फ) V ब, सत्य होगा, अ स क्योंकि इसका एक वियुतक सत्य है। इसलिए विरामचिह्न में अन्तर होने से सत्यता-मूल्य में अन्तर हो जाता है। विराम-चिह्न के लिए प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र में लघु कोष्ठ, कोष्ट और वृहत् कोष्ठ का प्रयोग किया जाता है।

विराम चिह्नों की संख्या कम करने के लिए कुछ परम्पराएँ स्थापित की गयी हैं, जैसे, ~ प Vफ का अर्थ हो सकता है (~प) V फ या ~ (प V फ)। पर एक परम्परा स्थापित की गयी है कि किसी अभिव्यक्ति के सबसे छोटे अंश पर ही ‘ कुटिल ~ ‘ प्रतीक लागू होगा इसलिए ~ प V फ का अर्थ होगा (~प) V फ न कि ~ (प V फ)।

व्यावर्तक वियोजन में कम-से-कम एक वियुतक सत्य है और कम-से-कम एक असत्य, जैसे गुलाब लाल है या पीला। दोनों सत्य नहीं हो सकते। इसलिए उसे यह प्रतीकात्मक रूप दिया जा सकता है – (प V फ) . (~प V~ फ)। उपर्युक्त विधियों से भिन्न प्रकार की जटिल उक्तियों का प्रतीकात्मक रूप हो सकता है। जिस जटिल उक्ति की रचना सत्यता-फल-सम्बन्धी सम्बन्धकों के द्वारा सरल उक्तियों को सम्बन्धित करने से होती है, उसका सत्यता-मूल्य उसकी निर्मायक सरल उक्तियों के सत्यता-मूल्य पर निर्भर है।

उदाहरण के लिए. यदि अ और ब को असत्य उक्तियाँ और क और ख को सत्य उक्तियाँ मान लें तो ~ [(~ अ V क) V~ ( ब ख)] का सत्यता-मूल्य निम्न तरीके से निकलेगा। चूँकि अ असत्य है, इसलिए ~ अ सत्य होगा, चूँकि क भी सत्य है, इसलिए वियोजन (~ अ Vक) सत्य होगा। चूँकि ब असत्य है और ख. सत्य, इसलिए संयोजन (ब . ख) असत्य होगा और इसका निषेध ~ (ब . ख), सत्य। अतः वियोजन (~अ V क) V~ (ब . ख) सत्य होगा। इसलिए इसका निषेध ~ [(~ अ V क) V~ (ब ख)] असत्य होगा। इसी प्रकार क्रम से किसी सत्यता-फलन-सम्बन्धी जटिल उक्ति का सत्यता-मूल्य इसकी निर्मायक सरल उक्तियों के सत्यता-मूल्य से निर्धारित किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र के लाभ की व्याख्या करें।
उत्तर:
तर्कशास्त्र का सम्बन्ध युक्तियों से है। युक्तियों के घटक (Constituents) तर्कवाक्य या प्रकथन होते हैं।

(क) सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं।
(ख) मंगल एक ग्रह है।
(ग) अतः, मंगल सूर्य के चारों ओर घूमता है।

यह एक युक्ति का उदाहरण है। इस युक्ति के घटक (क) (ख) और (ग) तर्कवाक्य हैं। इस तर्क-वाक्यों में ‘क’ और ‘ख’ आधार-वाक्य हैं और ‘ग’ उनका निष्कर्ष। ये आधार-वाक्य तथा निष्कर्ष वर्णनात्मक (declarative) वाक्यों की भाँति भाषा से सम्बन्धित नहीं है अपितु उन वाक्यों के अर्थ से। पर किसी भी तथ्य को व्यक्त करने का माध्यम भाषा ही है। किसी भाषा में व्यक्त किसी तथ्य का प्रसंगानुसार ठीक-ठीक अर्थ लगा लेना कठिन होता है क्योंकि किसी भी शब्द के अनेक अर्थ होते हैं।

कभी वाक्यों की बनावट के कारण, कभी कहावतों और मुहावरों के प्रयोग के कारण, कभी शब्दों के अनेकार्थकता के कारण, जो अर्थ होना चाहिए वह अर्थ नहीं लग पाता है। भाषा की दुरूहता को शुद्ध करना तर्कशास्त्र का लक्ष्य नहीं है पर जब तक भाषा शुद्ध नहीं हो जाती तब तक युक्तियों की वैधता या अवैधता की समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। भाषा की कठिनाई से बचने के लिए बहुत-से विद्वानों ने अपनी तकनीकी शब्द-कोष को विकसित किया है। रसायन-शास्त्र में, भौतिक विज्ञान में, गणित में अपने प्रतीकों का प्रयोग होता है।

फिर, एक कठिनाई और उपस्थित होती है। विज्ञानों में दत्त सामग्रियाँ अनेक होती हैं। उन्हें भाषा में विस्तारपूर्वक अंकित करने में समय और स्थान दोनों की बहुत अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। प्रतीकों के प्रयोग से उनका रूप छोटा हो जाता है। उन्हें अंकित करने में न उतने स्थान, न उतने समय की आवश्यकता होती है।

फिर यह भी कि दत्त सामग्रियों के छोटे रूप पर ध्यान देना जितना सरल है, उतना अन्यथा नहीं। दत्त सामग्रियों के संकलित रूपों की तुलना करना भी सरल सरल होता है। गणित में या संख्यांत प्रणाली में व्याख्यात्मक प्रतीकों के प्रयोग से किसी समीकरण को बहुत ही संक्षिप्त रूप में व्यक्त किया जाता है, जैसे –
क × क × क × क × क × क × क = ख × ख × ख इसका संक्षिप्त रूप, का7 = ख3 प्रायः सभी विज्ञानों में प्रतीकों का प्रचलन हो गया है।

इन्हीं सुविधाओं के कारण तर्कशास्त्र में भी विशेष चिह्नों का विकास हुआ है। अरस्तू ने भी प्रतीकों तथा चिह्नों का अपने अन्वेषण में प्रयोग किया था, जैसे पूर्णव्यापी भावात्मक वाक्य के लिए A, पूर्णव्यापी निषेधात्मक के लिए E इत्यादि। आधुनिक तर्कशास्त्र में इन चिह्नों को और भी विकसित किया गया है। वर्तमान तर्कशास्त्र ने मात्र तर्कवाक्यों के लिए चिह्नों का प्रयोग नहीं, उन तर्कवाक्यों के सम्बन्धों के लिए भी प्रतीकों का प्रयोग किया है। इसलिए पारम्परिक और नवीन तर्कशास्त्र में गुणात्मक अर्थात् किस्म का अन्तर नहीं है अपितु केवल मात्रा में अन्तर है (they do not differ in kind but only in degrees)।

पर यह अन्तर साधारण नहीं है। विश्लेषण तथा निगमन के लिए यह एक शक्तिशाली अस्त्र सिद्ध हुआ है। आज की वैज्ञानिक प्रणाली में इसका प्रयोग हर क्षेत्र में हो रहा है। आधुनिक तर्कशास्त्र के प्रतीक किसी युक्ति की तार्किक बनावट को सरलता से स्पष्ट कर देते हैं, जो साधारण भाषा के प्रयोग से अस्पष्ट रहता है।

भाषा की कठिनाईयाँ इससे दूर हो जाती हैं और वैध या अवैध युक्तियों का वर्गीकरण आसान हो जाता है। प्रतीकों के प्रयोग से निगमनात्मक अनुमान के स्वरूप भी स्पष्टीकरण हो जाता है। हाइटहेड ने ठीक ही कहा है कि प्रतीकों की सहायता से एक बार देखकर ही यांत्रिक रूप से युक्तियों की वैधता जानी जा सकती है, जिसके लिए अन्यथा उच्च मानसिक योग्यता की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 3.
सत्यता मूल्य के बारे में आप क्या जानते हैं? समझाकर लिखें। अथवा, सत्यता-सारणी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्रत्येक उक्ति या तो सत्य होती है या असत्य। सत्य उक्ति या सत्यता-मूल्य ‘सत्य’ होता है तथा असत्य उक्ति का सत्यता-मूल्य ‘असत्य’ होता है। किसी जटिल उक्ति को सत्यता-मूल्य के आधार पर दो भागों में बाँटा जा सकता है। कुछ जटिल उक्तियाँ ऐसी होती हैं जिनको सत्यता-मूल्य उनकी निर्णायक उक्तियों पर निर्भर नहीं होता है, जैसे – ‘मेरा विश्वास है कि लोहा सोना से भारी होती है।

‘इस जटिल उक्ति का सत्यता-मूल्य इसकी निर्णायक सरल उक्ति ‘लोहा सोना से भारी है’ के सत्यता-मूल्य से स्वतंत्र है। सरल उक्ति सत्य हो या असत्य, ‘मुझे ऐसा विश्वास है’ तो वह विश्वास असत्य नहीं होगा, क्योंकि लोगों को गलत और सही दोनों प्रकार का विश्वास रहता है। कुछ जटिल उक्तियाँ ऐसी होती हैं, जिनका सत्यता-मूल्य उनकी निर्मायक सरल उक्तियों के सत्यता-मूल्य पर निर्भर होता है।

संयोजन के सत्यता-मूल्य और उसके संयुक्त के सत्यता-मूल्य में आवश्यक सम्बन्ध है। कोई संयोजन तभी सत्य होता है जब उसके संयुक्त सत्य होते हैं, जैसे, ‘छड़ी सीधी है’ और ‘टेबुल गोल-यह संयोजन तभी सत्य होगा जब दोनों संयुक्त ‘छड़ी सीधी है’ और ‘टेबुल गोल है’, सत्य हों। यदि उनमें एक भी असत्य हो या दोनों असत्य हों तब संयोजन असत्य होगा। वैसी जटिल उक्ति को, जिसका सत्यता-मूल्य उसकी निर्मायक उक्तियों के सत्यता-मूल्य से निर्धारित हो, सत्यता-फलन सम्बन्धी (Truth functionally) जटिल उक्ति कहा जाता है।

संयोजन सत्यता-फलन-सम्बन्धी जटिल युक्ति है, क्योंकि इसका सत्यता-मूल्य संयुक्त के सत्यता-मूल्य पर निर्भर है। इसलिए संयोजन का प्रतीक सत्यता-फलनीय सम्बन्धक (Connective) है। यदि दो दी हुई उक्तियाँ प और फ हों तो उनके सिर्फ चार प्रकार सत्यता-मूल्य सम्भव हैं और प्रत्येक स्थिति में संयोजन का सत्यता मूल्य अपने रूप से निर्धारित होता है। प और फ के सत्यता-मूल्य निम्नांकित चार प्रकार से हो सकते हैं –

  1. उस दशा में जब प सत्य है, और फ सत्य है, प . फ सत्य होगा।
  2. उस दशा में जब प सत्य है, और फ असत्य है, प . फ असत्य होगा।
  3. उस दशा में जब प असत्य है, और फ सत्य है, प . फ असत्य होगा।
  4. उस दशा में जब प असत्य है और फ असत्य है, प . फ असत्य होगा।

यदि सत्यता का ‘स’ से और असत्यता का ‘अ’ से संकेत करें तो सत्यता-सारणी (Truth table) के द्वारा संक्षेप में यह बतलाया जा सकता है कि किस तरह संयोजन का सत्यता-मूल्य उसके संयुक्त के सत्यता-मूल्य से निर्धारित होता है –

उपर्युक्त सत्यता सारणी को बिन्दु प्रतीक (.) की परिभाषा माना जा सकता है।

प्रश्न 4.
निषेधात्मक उक्ति का सत्यता मूल्य कैसे निर्धारित किया जाता है?
उत्तर:
निर्मायक उक्ति का निषेध करके भी जटिल उक्ति की रचना की जाती है। जैसे, यह बात नहीं है कि राम अमीर है’। यह उक्ति जटिल है, क्योंकि इसमें निर्मायक सरल उक्ति ‘राम अमीर है’ का निषेध किया गया है। निषेध को व्यक्त करने के कई रूप हैं। जैसे – यह गलत है कि राम अमीर है, यह सत्य नहीं है कि राम अमीर है, राम अमीर नहीं है, राम कदापि अमीर नहीं है, इत्यादि। निषेध या व्याघातक के लिए ~ (कुटिल) प्रतीक का प्रयोग किया जाता है। जैसे, ‘यह बात नहीं है कि राम अमीर है’ = ~ राम अमीर है। यदि प कोई एक उक्ति हो तो उसका निषेध होगा ~ प।

निषेध का सत्यता-मूल्य:
चूंकि किसी सत्य उक्ति का निषेध असत्य होता है और असत्य उक्ति का निषेध सत्य, इसलिए कुटिल ~ प्रतीक की परिभाषा निम्न सत्यता-सारणी से कर सकते हैं –

प्रश्न 5.
वियोजन का सत्यता मूल्य कैसे दर्शाया जाता है?
उत्तर:
दो या दो से अधिक उक्तियों को ‘या’, ‘वा’ लगाकर वियोजित रूप से सम्बन्धित किया जाता है, जैसे राम मूर्ख है या बदमाश है। ऐसी उक्तियाँ भी जटिल हैं। इन्हें ‘वियोजन’ (Disjunction) कहा जाता है। जिन उक्तियों को इस प्रकार सम्बन्धित किया जाता है, उन्हें वियुतक या विकल्प (Disjuncts) कहा जाता है। ‘या’, ‘वा’ शब्दों का प्रयोग दो रूपों में हो सकता है।

जैसे, ‘राम मूर्ख है या बदमाश है’ का अर्थ यह नहीं है कि राम केवल मूर्ख है या केवल बदमाश है, पर यह भी कि वह मूर्ख और बदमाश दोनों हो सकता है। यह ‘या’ शब्द का निर्बल या समावेशित (Weak or inclusive) अर्थ है। ‘या’ शब्द का अर्थ ‘यह गुलाब लाल है या पीला’ उक्ति में पहले अर्थ में भिन्न है। यह गुलाब लाल और पीला दोनों नहीं हो सकता। दोनों विकल्पों या वियुतकों में केवल एक ही सत्य होगा, दोनों नहीं।

‘या’ का ऐसा प्रयोग सबल या व्यावर्तक (Strong or exclusive) कहा जाता है। दोनों प्रयोगों में अन्तर यह है कि पहले में ‘या’ लगाने का अर्थ हुआ कि कम-से-कम एक विकल्प या वियुतक सत्य है (दोनों भी सत्य हो सकते हैं), दूसरे में कम-से-कम एक विकल्प या वियुतक सत्य है और कम-से-कम एक असत्य (दोनों सत्य नहीं हो सकते)। दोनों प्रयोगों में एक बात सामान्य है कि कम-से-कम एक विकल्प सत्य होगा।

इसलिए समावेशित वियोजन का यह पूर्ण अर्थ होगा और व्यावर्तक वियोजन का आंशिक अर्थ। लैटिन भाषा में ‘भेल’ (Vel) शब्द ‘या’ शब्द के समावेशित अर्थ को व्यक्त करता है और ‘ऑट’ (aut) शब्द ‘या’ शब्द के व्यावर्तक अर्थ को। प्रचलित रूप में ‘भेल’ (Vel) शब्द के प्रथम अक्षर ‘भी’ (V) को समावेशित ‘या’ के प्रतीक के रूप में माना गया है। जैसे, राम मूर्ख है या बदमाश = राम मूर्ख है V बदमाश। यदि प और फ दो उक्तियाँ हों, तो उनका समावेशित वियोजन लिखा जाएगा–प Vफ।

वियोजन का सत्यता-मूल्य:
‘V’ प्रतीक जिसे ‘कीलक’ कहा जाता है, एक सत्यता फलन-सम्बन्धी सम्बन्धक है, जिसकी परिभाषा निम्नांकित सत्यता-सारणी के द्वारा दी जाती है –


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