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Tuesday, June 21, 2022

BSEB Class 11 Political Science Equality Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Political Science Equality Book Answers

BSEB Class 11 Political Science Equality Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Political Science Equality Book Answers
BSEB Class 11 Political Science Equality Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Political Science Equality Book Answers


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Bihar Board Class 11th Political Science Equality Textbooks Solutions PDF

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Bihar Board Class 11th Political Science Equality Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 11th
Subject Political Science Equality
Chapters All
Provider Hsslive


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Bihar Board Class 11 Political Science समानता Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कुछ लोगों का तर्क है कि असमानता प्राकृतिक है जबकि कुछ अन्य का कहना है कि वास्तव में समानता प्राकृतिक है और जो असमानता हम चारों ओर देखते हैं उसे समाज ने पैदा किया है। आप किस मत का समर्थन करते हैं? कारण दीजिए।
उत्तर:
ये दोनों दृष्टिकोण सही प्रतीत होते हैं। यह कि अमानता प्राकृतिक है और समानता भी प्राकृतिक है। इस दृष्टिकोण के बिन्दु को इस प्रकार समझा जा सकता है। इन दोनों अवधारणाओं में भिन्नता है परंतु स्थान विशेष पर दोनों सत्य हो सकती हैं। प्राकृतिक असमानता कहीं सही हो सकती है तो कहीं गलत। यह वैसे ही है जैसे कहीं रात होती है, तो कहीं दिन।

इस प्रकार कहीं गर्म होता है तो कहीं ठंडा, कुछ स्थान पर भूमि समतल होती है तो कुछ स्थानों पर पहाड़ी होती है। कहीं सुबह होती है तो कहीं शाम होती है। इसी प्रकार एक आदमी काला हो सकता है तो दूसरा गोरा हो सकता है, एक व्यक्ति लम्बा हो सकता है तो दूसरा ठीगना हो सकता है। इसी प्रकार व्यक्ति में भी जैविक असमानता मिलती है यथा कुछ लोग पुरुष होते हैं तो दूसरे स्त्री हो सकती हैं। इन दोनों में जैविक असमानताएँ होती हैं।

प्रकृति ने भी व्यक्ति को योग्यताओं और क्षमताओं में समान बनाया है और प्रत्येक व्यक्ति समान होना चाहता है। समानता एक प्राकृतिक शर्त भी है परंतु समानता पूर्ण दृष्टिकोण है, सामूहिक दृष्टिकोण में सम्भव नहीं है। इसलिए समानता का अर्थ समाज के सामाजिक – आर्थिक दशाओं को ध्यान में रखकर निकाला जा सकता है। समानता की आवश्यकता व्यक्ति के रहने पर पर्यावरणीय प्रभाव में सुनिश्ति किया जा सकता है। यहाँ तक कि असमान दशा को भी समझा जा सकता है। व्यक्ति द्वारा निर्मित अन्यायपूर्ण समानता को हटाया नहीं जा सकता एक डॉक्टर के काम और मजदूर के काम में अंतर स्वाभाविक है।

प्रश्न 2.
एक मत है कि पूर्ण आर्थिक समानता न तो संभव है और न ही वांछनीय। एक समाज ज्यादा से ज्यादा बहुत अमीर और बहुत लोगों के बीच की खाई को कम करने का प्रयास कर सकता है। क्या आप इस तर्क से सहमत हैं? अपना तर्क दीजिए।
उत्तर:
हम इस कथन से कारणों सहित सहमत हैं कि पूर्ण समानता न तो सम्भव है और न ही ऐच्छिक है। इस सम्बन्ध में डाक्टर और मजदूर की उदाहरण ले सकते हैं। एक डाक्टर और एक मजदूर को समान पारिश्रमिक (Wages) न तो सम्भव है और न ऐच्छिक है, क्योंकि डाक्टर ने अधिक निवेश करके अपनी क्षमताओं और योग्यताओं को बढ़ाया है। यही नहीं, डाक्टर का उत्तरदायित्व और कार्य मजदूर के उत्तरदायित्व और कार्य से अधिक होता है।

एक डाक्टर को 10 हजार रुपये प्रतिमाह का भुगतान किया जाता है। यह आशा नहीं की जा सकती कि एक मजदूर को 10000 रुपये प्रतिमाह का भुगतान किया जाय। उसकी न्यायसंगत मजदूरी 3000 रुपये प्रतिमाह हो सकती है इसलिए यहाँ दोनों के पारिश्रमिक में 7000 रुपये प्रतिमाह का अंतर है।

इसकी आलोचना नहीं होनी चाहिए और इसे समानता के रूप में स्वीकार करना चाहिए। यदि दो मजदूरों में पुरुष मजदूर को 3000 रुपये प्रतिमाह और दूसरे स्त्री मजदूर को 1000 रुपये प्रतिमाह दिया जाता है, तो उस स्थिति को व्यक्ति निर्मित असमानता कहा जा सकता है। यह समानता का अलगाव भी है जो लिंग (Sex) के आधार पर किया जाता है।

सभी व्यक्ति अत्यधिक धनी या अत्यधिक गरीब नहीं हो सकते। यह कल्पना नहीं किया जा सकता कि सभी व्यक्ति महलों में रह सकते हैं या सभी व्यक्ति बिना किसी आवश्यकता के झोपड़ियों में रह सकते हैं। समानता सापेक्षिक शर्त के रूप में होनी चाहिए जिसमें सभी को समान अवसर मिलना चाहिए। योग्यताओं एवं क्षमताओं के विकास और जीवन की आवश्यकताओं पर ही पूर्ति होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
नीचे दी गई अवधारणा और उसके उचित उदाहरणों में मेल बैठायें।

उत्तर:
(क) – (ii)
(ख) – (iii)
(ग) – (i)

प्रश्न 4.
किसानों की समस्या से संबंधित एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार छोटे और सीमांत किसानों को बाजार से अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता। रिपोर्ट में सलाह दी गई कि सरकार को बेहतर मूल्य सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए। लेकिन यह प्रयास केवल लघु और सीमांत किसानों तक ही सीमित रहना चाहिए।.क्या यह सलाह समानता के सिद्धांत से संभव है?
उत्तर:
यह तथ्य स्पष्ट रूप से समानता के सिद्धांत के विरुद्ध है और समानता के सिद्धांत से मेल नहीं खाता। क्योंकि विभिन्न लोगों के लिए दो नीतियों नहीं अपनाई जा सकतीं। एक छोटे और सीमांकित किसानों के लिए और दूसरी बड़े और धनी किसानों के दो नीतियाँ हो जाती हैं। यदि लघु किसान अपनी उपज की अच्छी कीमत नहीं प्राप्त कर रहे हैं, तो इसका कारण भिन्न हो सकता है। लघु और सीमांकित किसानों की कुछ स्वीकृत कार्यों यथा-उच्च रियायत (Subsidiary) और निम्न ब्याज वाले ऋण देकर उनकी सहायता की जा सकती है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से किस में समानता के किस सिद्धांत का उल्लंघन होता है और क्यों?
(क) कक्षा का हर बच्चा नाटक का पाठ अपना क्रम आने पर पढ़ेगा।
(ख) कनाडा सरकार ने दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति से 1960 तक यूरोप के श्वेत नागरिक को कनाडा में आने और बसने के लिए प्रोत्साहित किया।
(ग) वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग से रेलवे आरक्षण की एक खिड़की खोली गई।
(घ) कुछ वन क्षेत्रों को निश्चित आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित कर दिया गया है।
उत्तर:
प्रश्न के पैरा में समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है। कनाडा की सरकार ने रंग के आधार पर भिन्न कार्य अपनाया। उसने केवल गोरे यूरोपीय लोगों को द्वितीय विश्व युद्ध के अंत से 1960 तक कनाडा प्रवजन का आदेश दिया। यह स्पष्ट रूप से समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है। प्रश्न के पैरा ‘क’ और पैरा ‘ग’ में समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं है। प्रश्न के पैरा ‘घ’ में समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है, क्योंकि इसमें कुछ जंगल केवल जनजाति समुदाय को देने की बात कही गई है जबकि सभी के लिए इस प्रकार प्रावधान करना चाहिए।

प्रश्न 6.
यहाँ महिलाओं को मताधिकार देने के पक्ष में तर्क दिए गए हैं। इसमें से कौन-से तर्क समानता के विचार से संगत हैं। कारण भी दीजिए।
(क) स्त्रियाँ हमारी माताएँ हैं। हम अपनी माताओं को मताधिकार से वंचित करके अपमानित नहीं करेंगे?
(ख) सरकार के निर्णय पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी प्रभावित करते हैं इसलिए शासकों के चुनाव में उनका भी मत होना चाहिए।
(ग) महिलाओं को मताधिकार न देने से परिवारों में मतभेद पैदा हो जाएंगे।
(घ) महिलाओं से मिलकर आधी दुनिया बनती है। मताधिकार से वंचित करके लंबे समय तक उन्हें दबाकर नहीं रखा जा सकता है।
उत्तर:
प्रश्न के पैरा ‘ख’ और पैरा ‘घ’ समानता से अधिक मेल रखते हैं। पैरा ‘ख’ में कहा गया है कि सरकार के निर्णय पुरुष और महिला दोनों को प्रभावित करते हैं। इसलिए दोनों को शासकों के चुनाव में सहभागी होना चाहिए। पैरा ‘घ’ में कहा गया है महिलाओं के मतदान के अधिकार को इंकार किया जा सकता है जो सम्पूर्ण जनसंख्या का 50% है।

Bihar Board Class 11 Political Science समानता Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत को स्पष्ट करें। (Explain the concept of equality before law) अथवा, कानून के समक्ष समानता से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by equality before law)
उत्तर:
कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में कहा गया है कि कानून के सामने सब समान होंगे “कानून सबकी एक जैसे तरीके से रक्षा करेगा।” इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति कानून से बड़ा या ऊपर नहीं है। कानून के लिए कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। कानून सबको एक समान मानता है। कानून धनी-निर्धन, छोटा-बड़ा, ऊँचा-नीचा, शिक्षित-अशिक्षित का भेदभाव नहीं मानता है।

प्रश्न 2.
असमानता के किन्हीं दो प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. प्राकृतिक असमानता:
सभी व्यक्ति जन्म से ही असमान होते हैं। कोई भी दो व्यक्ति एक समान नहीं हैं। किन्तु कुछ समाजशास्त्रियों का मत है कि जन्म से ही नैतिकता की भावना सबमें समान रूप से होती है। यह माना जा सकता है कि नैतिकता की भावना समान हो, परंतु दो व्यक्तियों की प्रकृति कभी एक समान नहीं होती। एक विकलांग व्यक्ति को कभी भी एक स्वस्थ शरीर की तुलना में नहीं रखा जा सकता है। इस प्रकार यह प्राकृतिक असमानता है।

2. नागरिक असमानता:
नागरिक असमानता के अन्तर्गत एक देश के सभी व्यक्तियों को समान रूप से अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं। दूसरा, मौलिक अधिकारों व अन्य अधिकारों से भी जब कुछ नागरिकों को दूर रखा जाए तो उसे नागरिक असमानता कहते हैं। इसलिए सभी को समान रूप से नागरिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए व सभी नागरिक कानून के सम्मुख बराबर होने चाहिए।

प्रश्न 3.
समानता से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by the term equality?)
उत्तर:
साधारण भाषा में समानता का अर्थ है:
सब व्यक्तियों का समान दर्जा हो, सबकी आय एक जैसी हो, सब एक ही प्रकार से जीवन-यापन करें। पर यह सम्भव नहीं है। लास्की ने कहा है, “समानता का अर्थ यह नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति को समान वेतन दिया जाए, यदि ईंट ढोने वाले का वेतन एक प्रसिद्ध गणितज्ञ अथवा वैज्ञानिक के समान कर दिया जाए, तो समाज का उद्देश्य ही नष्ट हो जाएगा। इसलिए समानता का यह अर्थ है कि कोई विशेष अधिकार वाला वर्ग न. रहे। सबको उन्नति के समान अवसर प्राप्त हों।”

प्रश्न 4.
समानता के कोई चार रूप बताइए। (Explain any four kinds of equality)
उत्तर:
समानता के चार रूपों की विवेचना निम्नलिखित हैं –

1. प्राकृतिक समानता (Natural of Equality):
प्राकृतिक समानता का अर्थ है कि प्रकृति ने सभी व्यक्तियों को समान बनाया है, परंतु यह विचार ठीक नहीं है। सभी व्यक्तियों के रंग, रूप, बनावट, शक्ति, बुद्धि तथा स्वभाव में असमानता होती है। वास्तव में प्राकृतिक समानता का यह अर्थ है कि प्रत्येक में कुछ मौलिक समानताएँ हैं जिनके कारण सभी व्यक्तियों को समान माना जाना चाहिए।

2. नागरिक समानता (Civil Equality):
सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त हों और सभी व्यक्ति कानून के समक्ष समान हों।

3. सामाजिक समानता (Social Equality):
सामाजिक समानता का अर्थ है कि समाज के सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए। ऊँच-नीच की भावना नहीं होनी चाहिए।

4. राजनीतिक समानता (Political Equality):
समाज में सभी व्यक्तियों को समान राजनैतिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए। चुनाव में खड़े होने या मतदान करने के अधिकार से किसी को वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

प्रश्न 5.
आर्थिक समानता के बारे में आप क्या जानते हैं? (What do you know about economic euqality?)
उत्तर:
वर्तमान काल में आर्थिक समानता ने एक महत्वपूर्ण स्थान ले लिया है। इसका यह अर्थ नहीं है कि सब व्यक्तियों की आय अथवा वेतन समान कर दिया जाए। इसका अर्थ है-सबको उन्नति के समान अवसर प्रदान किए जाएँ। सभी की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की जाए। प्रत्येक व्यक्ति को काम मिले।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
“सभी व्यक्ति समान पैदा होते हैं।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए। (“All men are born equal.” Discuss)
उत्तर:
सभी व्यक्ति समान पैदा होते हैं (All men are born equal):
यह बात साधारण तौर पर भी कही जाती है और अमेरिका के स्वतंत्रता घोषणा-पत्र में भी कही गयी है। सब व्यक्ति समान पैदा हुए हैं। फ्रांस की राष्ट्रीय सभा में मानवीय अधिकारों की घोषणा में इस समानता को स्वीकार किया गया है कि “मनुष्य जन्म से समान पैदा होते हैं और अपने अधिकारों के सम्बन्ध में समान ही रहते हैं।” परंतु इसका आशय यह भी नहीं है कि सब व्यक्ति पूर्ण रूप से समान होंगे। सबको समान नहीं बनाया जा सकता। गोरा-काला, छोटा-बड़ा, बुद्धिमान-निर्बुद्धि सभी प्रकार के व्यक्ति होते हैं।

प्रश्न 2.
“समानता के अभाव में स्वतंत्रता निरर्थक है।” अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए। (“Liberty is meaningless without equality.” Do you agree with this view ? Give reason for your answer)
उत्तर:
लास्की के शब्दों में ‘जहाँ धनी और निर्धन, शिक्षित और अशिक्षित हैं वहाँ पर स्वामी और दास सदैव पाए जाते हैं।’ (Where there are rich and poor, educated and uneducated, we find always master and servant)। समानता ही स्वतंत्रता को सुनिश्चित करती है और उसे लाभदायक बनाती है। निर्बल व्यक्ति शक्तिशाली के सामने और निर्धन व्यक्ति धनवान के सामने अपनी स्वतंत्रता का वास्तविक प्रयोग नहीं कर सकता। जिसके पास धन की शक्ति होती है उसके पास राजनीतिक शक्ति भी चली जाती है। अतः निर्धन व्यक्ति की स्वतंत्रता वास्तविक नहीं रहती। जहाँ सामाजिक समानता नहीं मिलती वहाँ निम्न श्रेणी के लोगों की स्वतंत्रता व्यर्थ और निरर्थक हो जाती है।

प्रश्न 3.
समानता किसे कहते हैं? सामाजिक समानता का वर्णन करें। (What is equality? Discuss social equality)
उत्तर:
लास्की ने कहा है कि “समानता का अर्थ सर्वप्रथम तो विशेषाधिकारों का अभाव है और दूसरे उसका अर्थ है कि सभी लोगों को विकास के लिए उपयुक्त अवसर प्राप्त हों।” सामाजिक समानता का अर्थ समाज में जाति, धर्म, रंग, वंश आदि के आधार पर भेदभाव के बिना विकास के समान अवसरों की प्राप्ति है।

सामाजिक समानता (Social Equality):
सामाजिक समानता का अर्थ है कि समाज में जाति, धर्म, वंश, रंग विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होना चाहिए। सबका सामाजिक स्तर समान होना चाहिए। छुआछूत अवैध होनी चाहिए। अमेरिका में गोरे-काले का भेद आज भी सामाजिक असमानता का प्रमाण है।

प्रश्न 4.
प्राकृतिक समानता किसे कहते हैं? (What is Natural Equality?)
उत्तर:
प्राकृतिक समानता (Natural Equality):
कुछ लोग इस बात पर जोर देते हैं कि “सभी व्यक्ति प्राकृतिक रूप से समान हैं” तथा कुछ धार्मिक परम्पराओं तथा विचारकों को समान नहीं बनाया है। यहाँ तक कि जुड़वाँ भाई-बहनों में भी कुछ अंतर मिलता है।

प्रश्न 5.
समानता के राजनीति पक्ष का विवेचन कीजिए। (Describe the poltical dimension of equality)
उत्तर:
राजनीतिक समानता का अर्थ है कि राज्य में सभी नागरिकों को समान राजनैतिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए। प्रत्येक नागरिक को चुनाव में खड़ा होने का अधिकार होना चाहिए। अपनी योग्यता के अनुसार सरकारी पद प्राप्त करने का अवसर मिलना चाहिए। सरकार यदि नागरिकों पर अत्याचार करती है तो प्रत्येक नागरिक को उसकी आलोचना करने का अधिकार होना चाहिए। किसी भी नागरिक को उसकी जाति, रंग, लिंग, संपत्ति, शिक्षा तथा धर्म आदि के आधार पर मतदान करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। एशिया और अफ्रीका के अभी ऐसे बहुत से देश हैं जहाँ राजनीतिक समानता स्थापित नहीं हुई है।

प्रश्न 6.
राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक समानता में सम्बन्ध बताइए। (Define the relation between political freedom and economic freedom)
उत्तर:
स्वतंत्रता और समानता एक-दूसरे के पूरक हैं। लास्की का कहना है कि आर्थिक समानता के बिना राजनैतिक स्वतंत्रता मात्र एक कल्पना है। इस कथन का आशय यह है कि जब तक आर्थिक समानता स्थापित नहीं होती तब तक राजनैतिक स्वतंत्रता व्यर्थ होती है। इस आशय को निम्न तर्कों द्वारा समझा जा सकता है –

  1. पूर्ण आर्थिक स्वतंत्रता से आर्थिक शोषण में वृद्धि होती है तथा उससे आर्थिक असमानता पनपती है।
  2. स्वतंत्रता का अर्थ मात्र बंधनों का अभाव नहीं होता। बंधन मुक्त स्वतंत्रता शक्तिशाली की स्वतंत्रता होती है। ऐसी स्वतंत्रता से आर्थिक समानता नष्ट हो जाती है।
  3. आर्थिक असमानता के वातावरण में व्यक्ति का विकास असम्भव होता है। हॉब्स का कहना है कि भूख से मरते व्यक्ति के लिए स्वंत्रता का कोई अर्थ नहीं होता।
  4. आर्थिक असमानता के अन्तर्गत लोकतंत्र की सफलता की आशा नहीं की जा सकती है।

प्रश्न 7.
समानता की परिभाषा कीजिए। इसके विभिन्न प्रकार समझाइए। (Define the equality. What are its type?)
उत्तर:
समानता प्रजातंत्र का एक मुख्य स्तम्भ है। व्यक्तित्व के विकास के लिए यह एक आवश्यक शर्त है। समानता का तात्पर्य ऐसे परिस्थितियों के अस्तित्व से होता है जिसके कारण सब व्यक्तियों के विकास हेतु समान अवसर प्राप्त हो सके और इस प्रकार उस असमानता का अंत हो सके, जिनका मूल कारण सामाजिक वैषम्य है। लास्की ने भी लिखा है कि समानता मूल रूप में समानीकरण की एक प्रक्रिया है। समानता का आशय विशेषाधिकारों के अभाव से है और इसका यह भी आशय है कि सभी व्यक्तियों को विकास हेतु समान अवसर प्राप्त होने चाहिए।

स्वतंत्रता के समान ही समानता के अनेक प्रकार हैं जो निम्नलिखित हैं –

  1. सामाजिक समानता (Social Equality): सामाजिक दृष्टि से सभी व्यक्ति समान होने चाहिए और उन्हें सामाजिक उत्थान के समान अवसर प्राप्त होने चाहिए।
  2. नागरिक समानता (Civics Equality): नागरिक समानता के दो भेद हैं। प्रथम राज्य के कानूनों की दृष्टि से सभी व्यक्ति समान होने चाहिए। द्वितीय सभी व्यक्तियों को नागरिकता के अवसर या नागरिक अधिकार एवं स्वतंत्रताएँ समान रूप से प्राप्त होनी चाहिए।
  3. राजनीतिक समानता (Political Equality): राजनीतिक समानता का अभिप्राय सभी व्यक्तियों को समान राजनीतिक अधिकार एवं अवसर प्राप्त होने से है।
  4. आर्थिक समानता (Economics Equality): आर्थिक समानता से तात्पर्य है कि मनुष्यों की आय में बहुत अधिक असमानता नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न 8.
राजनीतिक समानता क्या है? (What is political equality?)
उत्तर:
राजनीतिक समानता का तात्पर्य है कि सभी नागरिकों को राज्य की राजनीतिक प्रक्रियाओं को प्रभावित तथा उसमें भागीदारी करने का अवसर समान रूप से प्राप्त हो। हालांकि यह धारणा सिर्फ लोकतांत्रिक राज्य से ही सम्बन्धित होती है, नहीं तो राजतंत्र, तानाशाही राज्यों में लोकतंत्र की इस राजनीतिक समानता के विचारधारा को उत्पन्न किया जाता है, वह वास्तव में राजनीतिक समानता के गुण को प्रदर्शित करती है, अर्थात् इसके अलावा राज्य और व्यक्ति को लेकर न्यायपूर्ण राजनीतिक समानता का अर्थ नहीं हो सकता है।

लोकतंत्रीय पद्धति में नागरिकों की राजनीतिक समानता का तात्पर्य निम्न तथ्यों से पाया जा सकता है। जैसे मतदान का अधिकार, चुनाव में उम्मीदवार बनने का अधिकार, प्रार्थना पत्र का अधिकार, सार्वजनिक नियुक्ति जो राज्य के माध्यम से हो उसे प्राप्त करने का सभी को समान अधिकार प्राप्त है। विचारों की स्वतंत्रतापूर्ण अभिव्यक्ति और राजनीतिक दलों का स्वतंत्रतापूर्वक निर्माण सम्बन्धी समानता सभी नागरिकों को समान रूप से प्रदान की जाती है, जबकि ऐसी पद्धति राजनीतिक समानता को लेकर निरंकुशवादी राज्यों के संदर्भ में नहीं पायी जाती हैं। अतः उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट है कि राजनीतिक समानता का वास्तविक अर्थ सिर्फ लोकतंत्रीय पद्धति में दिए गए अर्थ के माध्यम से स्पष्ट होता है।

प्रश्न 9.
सामाजिक समानता के अर्थ को वर्णित करें। (Define the social equality)
उत्तर:
सामाजिक समानता का अर्थ-सामाजिक जीवन में सभी व्यक्तियों को समान समझा जाना चाहिए और धर्म, जाति, वंश, लिंग अथवा जन्म के आधार और स्थान पर किसी व्यक्ति का व्यक्ति से कोई भेद नहीं किया जाना चाहिए। सामाजिक समानता के अर्थ में समाज के सभी अधिकार व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के प्राप्त हो सकें, यही सामाजिक समानता का मूलभूत उद्देश्य है और इस तथ्य की वास्तविकता सिर्फ लोकतंत्रीय समाज में ही है। भारतीय संविधान में सामाजिक समानता को मूल अधिकार के तहत वर्णित किया गया है।

अर्थात् अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता को एक दण्डनीय अपराध माना गया है। सामाजिक समानता के मुख्यतः इन तथ्यों को प्रबल रूप से स्थान दिया जाता है कि वंश, धर्म, जाति और वर्ण के आधार पर किसी को श्रेष्ठ या किसी को हेय न समझा जाए। स्त्रियों और पुरुषों में किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव न हो। अर्थात् सामाजिक समानता की माँग है कि स्त्रियों और पुरुषों को बराबर सम्मानजनक व्यवहार प्राप्त होना चाहिए।

सामाजिक समानता ही वास्तव में लोगों के बीच राजनीतिक समानता को उत्पन्न करने का कारण बनती है। सामाजिक समानता की अवधारणा निरंकुश राज्य पद्धति में सम्भव नहीं होती, क्योंकि वहाँ पर स्वतंत्रता, समानता और न्याय का कोई अर्थ नहीं रहता है, यहाँ पर यह सब सम्बन्धित अधिकार केवल निरंकुश शासक वर्ग के लिये होते हैं। इस कारण सामाजिक समानता की मूल अवधारणा केवल लोकतंत्रीय पद्धति में ही सम्भव है।

प्रश्न 10.
आर्थिक समानता से आप क्या समझते हैं? (What do you know about the economic equality?)
उत्तर:
आर्थिक समानता का मूल अभिप्राय रूसो के इस कथन में समझा जा सकता है, अर्थात् रूसो ने कहा, “सरकार की नीति यह होनी चाहिए कि न तो अमीरों की संख्या बढ़ने पाये और न ही भिखमंगों की।” अर्थात् यह कथन आर्थिक समानता के इस रूप को प्रदर्शित करता है कि पूँजी की व्यवस्था और उसका वितरण इस रूप में हो कि पूँजी किसी के शोषण का माध्यम न बन जाए। मार्क्सवादी साम्यवाद ने इसी पूँजीवादी शोषण व्यवस्था को खत्म करने के लिए अपने तरीके से वर्गविहीन समाज को आर्थिक समानता के साथ सम्बद्ध किया।

आर्थिक समानता की मूल अवधारणा यही थी कि समाज का कोई वर्ग दूसरे वर्ग का आर्थिक शोषण न कर सके तथा इसके लिए आर्थिक समानता की यह मूल अवधारणा रही कि आर्थिक स्वतंत्रता सभी वर्गों को इस रूप में प्रदान की गई कि हर व्यक्ति अपनी दक्षता से किसी को अन्यायपूर्ण तरीके से आर्थिक स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े। इसलिए आर्थिक समानता की मूल अवधारणा ही आर्थिक समानता की न्यायगत अवधारणा बनी। इस आर्थिक समानता की अवधारणा को लोकतंत्रीय और समाजवादी देशों की शासन व्यवस्था में अपनाया जाता है, न कि निरंकुशवादी व्यवस्था में।

प्रश्न 11.
समानता किन तीन तत्वों पर आधारित है? (On Which three elements is equality based?)
उत्तर:
समानता निम्नलिखित तीन आवश्यक तत्वों पर आधारित है –

  1. विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति-किसी व्यक्ति को वंश, लिंग, धर्म व स्थान के कारण ऐसे विशेष अधिकारों की प्राप्ति न हो, जिससे अन्य लोग वंचित हों।
  2. सभी के लिए उचित अवसरों की प्राप्ति हो।
  3. व्यक्तियों के बीच भेदभाव तर्कसंगत आधार पर हो।

प्रश्न 12.
समानता का मार्क्सवादी दृष्टिकोण क्या है? (What is Marxist view of equality?)
उत्तर:
समानता का मार्क्सवादी दृष्टिकोण (marxist view of Equality):]
समानता के मार्क्सवादी दृष्टिकोण में आर्थिक रूप से समानता पर बल दिया जाता है। उनके अनुसार जब सम्पत्ति कुछ ही व्यक्तियों के हाथ में केन्द्रित हो जाती है तो समाज में विषमता पैदा होती है और राजनीतिक सत्ता भी कुछ ही व्यक्तियों के हाथ में आने लगती है। इसलिए सम्पत्ति का राष्ट्रीयकरण होना चाहिए ताकि समाज के सभी लोग आर्थिक समानता का उपभोग कर सकें।

प्रश्न 13.
व्यवहार की समानता से आपका क्या अभिप्राय है? (What do you understand by equality of treatment?)
उत्तर:
व्यवहार की समानता (Equality of Treatment):
साधारण शब्दों में व्यवहार की समानता का यह अर्थ है कि राज्य अथवा सरकार द्वारा किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग के पक्ष या विपक्ष में किसी प्रकार का कोई पक्षपात न किया जाए। राज्य द्वारा अपने नागरिकों के साथ समान व्यवहार किया जाए। जाति, धर्म, लिंग, जन्म-स्थान आदि के आधार पर उनमें किसी प्रकार का भेदभाव न किया जाए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
क्या समानता तथा स्वतंत्रता परस्पर विरोधी हैं? चर्चा कीजिए। (Are equality and liberty opposed to each other? Explain) अथवा, “समानता के अभाव में स्वतंत्रता निरर्थक है।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? (“Liberty is meaningless without equality.” Do you agree with this line?)
उत्तर:
हाँ। स्वतंत्रता और समानता लोकतंत्र के मूल आधार हैं। दोनों के परस्परिक सम्बन्धों का विवेचना निम्नलिखित है –

(क) स्वतंत्रता व समानता परस्पर विरोधी हैं (Liberty and equality are opposed to each other):
इस विचारधारा के प्रमुख समर्थक लॉर्ड एक्टन व डी. टॉकविल हैं। उनके विचार में स्वतंत्रता और समानता दोनों एक साथ नहीं रह सकते, क्योंकि समानता व्यक्तिगत स्वतंत्रता को नष्ट कर देती है। इन विचारकों ने निम्न आधारों पर स्वतंत्रता तथा समानता को एक-दूसरे का विरोधी माना है –

1. सभी मनुष्य समान नहीं हैं (All the individuals are not equal):
संसार में सभी व्यक्ति एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। असमानता प्राकृतिक देन है। कुछ व्यक्ति शक्तिशाली होते हैं तो कुछ कमजोर। कुछ व्यक्ति बहुत बुद्धिमान होते हैं तो कुछ मूर्ख। इन असमानताओं के होते हुए सभी व्यक्तियों को समान नहीं समझा जा सकता।

2. समान स्वतंत्रता का सिद्धांत अनैतिक हैं (The theory of equal liberty is immoral):
सभी व्यक्तियों की मूल योग्यताएँ समान नहीं होती। अतः सबको समान अधिकार देना या समान स्वतंत्रता प्रदान करना अन्यायपूर्ण होगा।

(ख) स्वतंत्रता और समानता परस्पर विरोधी नहीं है (Liberty and equality are not opposed to each other):
जो विचारक स्वतंत्रता और समानता को परस्पर विरोधी न मानकर एक-दूसरे का पूरक मानते हैं और इनका आपस में घनिष्ठ संबंध बतलाते हैं, उनमें रूसो, आर, एच. टोनी व पोलार्ड प्रमुख हैं। रूसो के अनुसार, “बिना स्वतंत्रता के समानता जीवित नहीं रह सकती। “आर. एच. टोनी के अनुसार, “समानता की प्रचुर मात्रा स्वतंत्रता की विरोधी नहीं वरन् अत्यन्त आवश्यक है।” प्रो. पोलार्ड के अनुसार “स्वतंत्रता की समस्या का केवल एक ही समाधान है और वह समानता।” ये विचारक अपने पक्ष में निम्नलिखित तर्क देते हैं –

1. स्वतंत्रता और समानता का विकास एक साथ हुआ है (Liberty and equality have grown simul-taneously):
स्वतंत्रता और समानता का सम्बन्ध जन्म से है। जब निरंकुशता और असमानता के विरुद्ध मानव ने आवाज उठाई और क्रांतियाँ हुईं तो स्वतंत्रता और असमानता के सिद्धांतों का जन्म हुआ।

2. दोनों के उद्देश्य समान हैं (Both have the same objectives):
दोनों का एक ही उद्देश्य है और वह है-व्यक्ति के विकास के लिए सुविधाएँ प्रदान करना ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके। एक के बिना दूसरे का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। स्वतंत्रता के बिना समानता असम्भव है और समानता के बिना स्वतंत्रता का कोई मूल्य नहीं है।

निष्कर्ष (Conclusion):
स्वतंत्रता और समानता के आपसी सम्बन्धों के उपरोक्त विवेचन का अध्ययन करने के बाद कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता व समानता एक-दूसरे के पूरक हैं, क्योंकि दोनों का एक ही उद्देश्य है। दोनों ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करने के लिए उचित वातावरण की व्यवस्था करती हैं।

प्रश्न 2.
राजनीतिक समानता और आर्थिक समानता के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए। (Describe the relationship between Political Equality and Economic Equality)
उत्तर:
समानता के अनेक रूप हैं, परंतु राजनीतिक समानता तथा आर्थिक समानता का घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। राजनीतिक समानता का अर्थ है कि सभी नागरिकों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त हो, जबकि आर्थिक समानता का अर्थ है कि लोगों में कोई आर्थिक भेदभाव न हो। राज्य में एक वर्ग दूसरे वर्ग का शोषण न करे। समाजवादी दलों का आधार आर्थिक समानता ही है। यदि आर्थिक समानता रूपी नीवें पक्की हैं तो राजनीतिक समानता रूपी भवन का निर्माण भी मजबूत हो सकता है। यदि आर्थिक समानता न हो तो राजनीतिक समानता की कल्पना करना ही व्यर्थ है। लास्की (Laski) के शब्दों में, “जहाँ धनी और निर्धन, शिक्षित और अशिक्षित हैं वहाँ स्वामी और दास सदैव पाये जाते हैं।” (Where there are rich and poor, educated and uneducated we find always masters and servants.-Laski)

वर्तमान काल में आर्थिक समानता ने एक महत्वपूर्ण स्थान ले लिया है। इसका अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को न्यूनतम आय की गारंटी होनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए। सभी लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान सरलता से सुलभ हो जाए। शोषण का अन्त हो। इतिहास बताता है कि जब तक धनी व्यक्ति निर्धनों का शोषण करते रहते हैं अथवा उन्हें शोषण करने की छूट रहती है तब तक समाज शोषक व शोषित, स्वामी तथा सेवक, धनी और निर्धन दो वर्गों में बँटा रहता है। शासन पर उन्हीं शक्तियों का नियंत्रण रहता है जो आर्थिक साधनों पर नियंत्रण रखते हैं।

शासन उन्हीं के इच्छानुसार चलता है। स्टालिन के इस कथन में सच्चाई है कि “बेरोजगार व्यक्ति जिसे उसके परिश्रम का फल नहीं मिलता, जो भूखा रहता है उसके लिए राजनीतिक समानता का कोई अर्थ नहीं।” केवल सिद्धांत रूप में सबको वोट देने का अधिकार देने या चुनाव लड़ने या सरकारी पद पर चुने जाने का समान रूप से अधिकार देने मात्र से कोई व्यक्ति राजनीतिक स्वतंत्रता का उपभोग नहीं कर सकता जब तक कि उसे आर्थिक रूप से भी समानता प्राप्त नहीं हो जाती। निर्धन राजनीतिक में सक्रिय भाग नहीं लेते। उनको न्याय प्राप्त करने में भी कठिनाई होती है।

प्रश्न 3.
स्वतंत्रता और समानता में सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (Discuss the relationship between liberty and equality) अथवा, “समानता का तात्पर्य यह नहीं है कि सभी व्यक्तियों से समान व्यवहार किया जाए।” व्याख्या कीजिए। (“Equality does not mean equal treatment to all the people.” Discuss)
उत्तर:
समानता की भ्रामक धारण (Wrong view of Equality):
कुछ लोग समानता का यह अर्थ लगाते हैं कि जीवन के सभी क्षेत्रों में उन्हें समान होना चाहिए। सभी समान रूप से शिक्षित हों, सबको समान धन प्राप्त हो, समान नौकरी करें तथा सब समान वेतन प्राप्त करें। किन्तु यह धारणा भ्रामक है। सबको समान नहीं बनाया जा सकता। हाथ की पाँचों उंगलियाँ भी समान नहीं होती हैं। ईश्वर ने भी सबको समान नहीं बनाया है। कोई गोरा, कोई काला, कोई छोटा, कोई बड़ा, कोई दुर्बल है कोई सबल है, कोई बुद्धिमान है, कोई मूर्ख है।

समानता का वास्तविक अर्थ (Correct view of Equality):
अब प्रश्न यह उठता है कि समानता का वास्तविक अर्थ क्या है? वास्तव में समानता एक ओर उस अवस्था का नाम है जिसमें विशेषाधिकारों का अन्त तक दिया गया हो और दूसरी ओर सबको आत्मविकास के समान अवसर प्राप्त हों। समान अवसरों की प्राप्ति से तात्पर्य केवल यह है कि सभी को बिना अवरोध के विकास के समान अवसर प्राप्त हों।

प्रश्न 4.
“नागरिक समानता स्वतंत्रता की पूर्व शर्त के रूप में” पर टिप्पणी लिखों। (Write shortnote on “Civil equality as a precondition of freedom.”)
उत्तर:
नागरिक समानता अर्थात् कानून के समक्ष समानता और सभी के लिए एक सा कानून लागू होना स्वतंत्रता के उपभोग के लिए एक महत्वपूर्ण तथा आवश्यक शर्त है। इसके बिना कोई भी व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता का वास्तविक उपभोग नहीं कर सकता। नागरिक समानता अर्थात् किसी भी व्यक्ति के साथ उसके वंश, जाति, धर्म, रंग, जन्म स्थान तथा लिंग के आधार पर कानून कोई भेदभाव नहीं करेगा और कानून का उल्लंघन करने वाले सभी व्यक्तियों को, चाहे उनका सामाजिक स्तर कुछ भी हो, समान दण्ड मिलेगा।

कानूनी दृष्टि से समान समझे जाने पर ही प्रत्येक व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति कानून की परवाह न करे और कानून उसका कुछ न बिगाड़ सके तो वह अन्य व्यक्तियों की स्वतंत्रता पर कुठाराघात कर सकता है। जब कानून समान रूप से सब व्यक्तियों के जीवन तथा सम्पत्ति की रक्षा करता है तभी वह निर्भीक होकर अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग वास्तविक रूप में कर सकता है। इस प्रकार नागरिक समानता स्वतंत्रता की पूर्व शर्त है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
समानता का अर्थ है?
(क) सभी के लिए समान अवसर
(ख) समान शिक्षा
(ग) समान कार्य के लिए समान वेतन
(घ) विशेषाधिकारों का अभाव
उत्तर:
(क) सभी के लिए समान अवसर

प्रश्न 2.
बीसवीं शताब्दी में निम्नलिखित में से किस पर तुलनात्मक दृष्टि पर जोर दिया गया था?
(क) राजनीतिक समानता पर
(ख) नागरिक समानता पर
(ग) सामाजिक एवं आर्थिक समानता पर
(घ) राजनीतिक एवं आर्थिक समानता पर
उत्तर:
(ग) सामाजिक एवं आर्थिक समानता पर

प्रश्न 3.
राजनीति समानता की सर्वश्रेष्ठ गारंटी है।
(क) लोकतंत्र में
(ख) तानाशाही में
(ग) उच्चतम न्यायालय
(घ) अभिजात तंत्र
उत्तर:
(क) लोकतंत्र में


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