BSEB Class 11 Political Science Rights in the Indian Constitution Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Political Science Rights in the Indian Constitution Book Answers |
Bihar Board Class 11th Political Science Rights in the Indian Constitution Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 11th |
Subject | Political Science Rights in the Indian Constitution |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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प्रश्न 1.
निम्नलिखित में कौन मौलिक अधिकारों का सबसे सटीक वर्णन है?
(क) किसी व्यक्ति को प्राप्त समस्त अधिकार।
(ख) कानून द्वारा नागरिक को प्रदत्त समस्त अधिकार।
(ग) संविधान द्वारा प्रदत्त तथा सुरक्षित समस्त अधिकार।
(घ) संविधान द्वारा प्रदत्त वे अधिकार जिन पर कभी प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता।
उत्तर:
(ग) संविधान द्वारा प्रदत्त तथा सुरक्षित समस्त अधिकार।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रत्येक कथन के बारे में बताएँ कि वह सही है या गलत –
- अधिकार-पत्र में किसी देश की जनता को हासिल अधिकारों का वर्णन रहता है।
- अधिकार-पत्र स्वतन्त्रता की रक्षा करता है।
- विश्व के हर देश में अधिकार-पत्र होता है।
उत्तर:
- सही
- सही
- गलत
प्रश्न 3.
निम्नलिखित स्थितियों को पढ़ें। प्रत्येक स्थिति के बारे में बताएं कि किस मौलिक अधिकार का उपयोग या उल्लंघन हो रहा है और कैसे?
(क) राष्ट्रीय एयरलाइन के चालक-परिचालक दल के ऐसे पुरुषों को जिनका वजन ज्यादा है-नौकरी में तरक्की दी गई, लेकिन उनकी ऐसी महिला-सहकर्मियों को दंडित किया गया, जिनका वजन बढ़ गया था।
(ख) एक निर्देशक एक डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म बनाता है, जिसमें सरकारी नीतियों की आलोचना है।
(ग) एक बड़े बाँध के कारण विस्थापित हुए लोग अपने पुनर्वास की माँग करते हुए रैली निकलते हैं।
(घ) आन्ध्र-सोसायटी आन्ध्रप्रदेश के बाहर तेलगू माध्यम में विद्यालय चलाती है।
उत्तर:
(क) नेशनल एयरलाइन्स के अधिक भारी पुरुष कर्मचारी को प्रोन्नति दी जाती है। परन्तु उनके साथी महिला कर्मचारी जो अधिक भारी हो जाती हैं, को प्रोन्नति नहीं दी जाती वरन उनको पेनेलाइज्ड किया जाता है। इस दशा में समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है, क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार राज्य भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समानता से या समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। अनुच्छेद 15 (i) में कहा गया है कि राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।
अनुच्छेद 16 (i) के अनुसार राज्य के अधीन किसी नियोजन या नियुक्ति से सम्बन्धित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी। अनुच्छेद 16 (ii) के अनुसार राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के सम्बन्ध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा। परन्तु उपरोक्त घटना में लिंग के आधार पर भेदभाव किया गया है। अत: महिला कर्मचारियों को लिंग भेद के कारण प्रोमोशन नहीं दिया गया। यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
(ख) इस घटना में एक निर्देशक के द्वारा डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म बनाकर सरकार की नीतियों की आलोचना की गयी है। अनुच्छेद 19 (i) के अनुसार व्यक्ति को (सभी नागरिकों को) विचार, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है।
(ग) इस घटना में क्योंकि बड़े बाँध के निर्माण को लेकर विस्थापित व्यक्तियों द्वारा पुनः स्थापित करने की माँग को लेकर रैली का आयोजन किया गया। यहाँ पर अनुच्छेद 19 (ii) में दिए गए शान्तिपूर्वक सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता के अधिकार का प्रयोग हुआ है।
(घ) इस घटना में अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षण संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार प्राप्त है। उसी के आधार पर आन्ध्र सोसायटी, आन्ध्रप्रदेश के बाहर तेलगू भाषा का विद्यालय चलाती है। यहाँ अल्पसंख्यकों के अधिकार का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित में कौन सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की सही व्याख्या है?
(क) शैक्षिक-संस्था खोलने वाले अल्पसंख्यक वर्ग के ही बच्चे इस संस्थान में पढ़ाई कर सकते हैं।
(ख) सरकारी विद्यालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अल्पसंख्यक-वर्ग के बच्चों को उनकी संस्कृति और धर्म-विश्वासों से परिचित कराया जाए।
(ग) भाषाई और धार्मिक-अल्पसंख्यक अपने बच्चों के लिए विद्यालय खोल सकते हैं और उनके लिए इन विद्यालयों को आरक्षित कर सकते हैं।
(घ) भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यक यह माँग कर सकते हैं कि उनके बच्चे उनके द्वारा संचालित शैक्षणिक-संस्थाओं के अतिरिक्त किसी अन्य संस्थान में नहीं पढ़ेंगे।
उत्तर:
उपरोक्त चारों कथनों में से (ग) भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपने बच्चों को शिक्षा देने के लिए और अपनी व संस्कृति की रक्षा के लिए स्कूल खोलने का अधिकार है। यह कथन सत्य है, क्योंकि यही संस्कृति और शैक्षणिक अधिकार की सही अभिव्यक्ति है। अनुच्छेद 29 (i) के अनुसार अल्पसंख्यक वर्गों के हितों के संरक्षण हेतु भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को जिनकी अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना प्रशासन का अधिकार होगा।
प्रश्न 5.
इनमें कौन-मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और क्यों?
(अ) न्यूनतम देय मजदूरी नहीं देना।
(ब) किसी पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगाना।
(स) 9 बजे रात के बाद लाउड-स्पीकर बजाने पर रोक लगाना।
(द) भाषण तैयार करना।
उत्तर:
भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है। प्रारम्भ में 7 मूल अधिकार दिए गए थे किन्तु 44वें संविधान द्वारा सम्पत्ति का अधिकार समाप्त कर दिया गया। दिसम्बर 2002 में 86वें संविधान संशोधन द्वारा 6 – 14 वर्ष आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा का मूल अधिकार प्रदान किया गया है। अत: मूल अधिकारों की संख्या पुन: 7 हो गयी है। उपरोक्त प्रश्न में 4 घटनाएँ दी गयी हैं। इनमें से पहली घटना न्यूनतम मजदूरी न देना ‘शोषण के विरुद्ध अधिकार’ का उल्लंघन माना जाएगा।
परन्तु अन्य तीन घटनाओं में मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं होता, क्योंकि किसी पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगाने से उस पुस्तक के लेखक के विचार, अभिव्यक्ति पर यद्यपि प्रतिबन्ध तो है। परन्तु समाज के किसी वर्ग की भावनाओं को ठेस पहुँचाने पर किसी पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। इसी प्रकार तीसरी घटना में रात्रि 9 बजे के बाद लाउडस्पीकर पर प्रतिबन्ध भी समाज के हित में लगाया जाता है। भाषण देना तो विचार अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के अधिकार की पूर्ति ही है। अत: उपरोक्त घटनाओं में से प्रथम घटना जिसमें न्यूनतम मजदूरी नहीं दी गयी, में उस श्रमिक के ‘शोषण के विरुद्ध मौलिक अधिकार’ का उल्लंघन हुआ है।
प्रश्न 6.
गरीबों के बीच काम कर रहे एक कार्यकर्ता का कहना है कि गरीबों को मौलिक अधिकारों की जरूरत नहीं है। उनके लिए जरूरी यह है कि नीति निर्देशक सिद्धान्तों को कानूनी तौर पर बाध्यकारी बना दिया जाय। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण बताएँ।
उत्तर:
मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ, क्योंकि नागरिकों के लिए मौलिक अधिकार नीति निर्देशक तत्त्वों से अधिक जरूरी है. दूसरे नीति निर्देशक तत्त्वों को बाध्यकारी (न्यायसंगत) नहीं बनाया जा सकता है, क्योंकि हमारे पास सभी को नीति निर्देशक तत्त्वों में दी गयी सुविधाओं को देने के लिए पर्याप्त श्रोत नहीं है।
प्रश्न 7.
अनेक रिपोर्टों से पता चलता है कि जो जातियाँ पहले झाडू देने के काम में लगी थीं, उन्हें मजबूरन यही काम करना पड़ रहा है, जो लोग अधिकार-पद पर बैठे हैं, वे इन्हें कोई और काम नहीं देते। इनके बच्चों को पढ़ाई-लिखाई करने पर हतोत्साहित किया जाता है। इस उदाहरण में किस मौलिक-अधिकार का उल्लंघन हो रहा है।
उत्तर:
इस उदाहरण में निम्न मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है –
1. स्वतन्त्रता का अधिकार:
जब उन व्यक्तियों को हमेशा उसी व्यवसाय को अपनाने को बाध्य किया गया हो तो उनके स्वतन्त्रता अधिकार का उल्लंघन हुआ है, क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार संविधान ने सभी नागरिकों को वृत्ति, उपजीविका, व्यापार अथवा व्यवसाय की स्वतन्त्रता प्रदान की है। यह स्वतन्त्रता उनको नहीं दी जा रही है। अत: उनके स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार का हनन हुआ है।
2. संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार:
उपरोक्त घटना में उन व्यक्तियों के संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार का भी उल्लंघन हुआ है। अनुच्छेद 29 के उपखंड (2) के अनुसार राज्य द्वारा घोषित वा राज्यनिधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के भी आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।
3. समानता का अधिकार:
उपरोक्त घटना में समानता के अधिकार का भी उल्लंघन होता है। अनुच्छेद 14 के अनुसार भारत के राज्य क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति कानून के समक्ष समान समझा जाएगा। अनुच्छेद 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध करता है।
प्रश्न 8.
एक मानवाधिकार-समूह ने अपनी याचिका में अदालत का ध्यान देश में मौजूद भूखमरी की स्थिति की तरफ खींचा। भारतीय खाद्य-निगम के गोदामों में 5 करोड़ टन से ज्यादा अनाज भरा हुआ था। शोध से पता चलता है कि अधिकांश राशन-कार्डधारी यह नहीं जानते कि उचित-मूल्य की दुकानों से कितनी मात्रा में वे अनाज खरीद सकते हैं। मानवाधिकार समूह ने अपनी याचिका में अदालत से निवेदन किया कि वह सरकार को सार्वजनिक-वितरण-प्रणाली में सुधार करने का आदेश दे।
(अ) इस मामले में कौन-कौन से अधिकार शामिल हैं? ये अधिकार आपस में किस तरह जुड़े हैं?
(ब) क्या ये अधिकार जीने के अधिकार का एक अंग हैं?
उत्तर:
(अ) उक्त उदाहरण के अन्तर्गत संवैधानिक उपचारों का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार तथा स्वतन्त्रता का अधिकार लिप्त है। ये अधिकार आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। भूख से मरने के कारण जीने के अधिकार का उल्लंघन हुआ। गोदामों में पाँच करोड़ टन अनाज होते हुए भी सरकार ने वितरण व्यवस्था ठीक नहीं की और मानव अधिकार समूह द्वारा कोर्ट से प्रार्थना की गयी कि सरकार को पब्लिक वितरण व्यवस्था सुधारने के लिए आदेश दिया जाए अर्थात् संवैधानिक उपचारों का अधिकार सम्मिलित है।
(ब) ये अधिकार यद्यपि सभी अलग-अलग मूल अधिकार हैं। परन्तु ये इस मामले में जीव के अधिकार के भाग बने हुए हैं।
प्रश्न 9.
इस अध्याय में उद्धृत सोमनाथ लाहिड़ी द्वारा संविधान-सभा में दिए गए वक्तव्य को पढ़ें। क्या आप उनके कथन से सहमत हैं? यदि हाँ तो इसकी पुष्टि में कुछ उदाहरण दें। यदि नहीं तो उनके कथन के विरुद्ध तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर:
सोमनाथ लाहिड़ी का संविधान सभा में दिया गया कथन इस प्रकार है – “मैं समझता हूँ कि इसमें ये अनेक मौलिक अधिकारों को एक सिपाही के दृष्टिकोण से बनाया गया है। … आप देखेंगे कि काफी कम अधिकार दिए गए हैं और प्रत्येक अधिकार के बाद एक उपबन्ध जोड़ा गया है। लगभग प्रत्येक अनुच्छेद के बाद एक उपबन्ध है, जो इन अधिकारों को वापस ले लेता है। … मौलिक अधिकारों की हमारी क्या अवधारणा होनी चाहिए? … हम उस प्रत्येक अधिकार को संविधान में पाना चाहते हैं, जो हमारी जनता चाहती है।”
इस कथन से यह तात्पर्य निकलता है कि हमारे संविधान में मौलिक अधिकार दिए ही कम हैं, बहुत सी ऐसी बातों को छोड़ दिया गया है, जो मौलिक अधिकारों में शामिल होनी चाहिए थीं। जैसे काम करने का अधिकार, निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार, आवास का अधिकार, सूचना प्राप्त करने का अधिकार आदि। दूसरी आलोचना इस कथन से पता चलती है कि प्रत्येक मौलिक अधिकारों के साथ अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए गए हैं, जिससे यह समझना कठिन हो जाता है कि व्यक्ति को मौलिक अधिकारों से क्या मिला? आलोचकों का मत है कि भारतीय संविधान एक हाथ से अधिकार देता है, तो दूसरे हाथ से उन्हें छीन लेता है।
तीसरी महत्त्वपूर्ण बात उक्त कथन से प्रकट होती है कि हमारे संविधान में मौलिक अधिकार पुलिस के सिपाही के दृष्टिकोण से दिए गए हैं। इसका यह अर्थ है कि प्रत्येक अधिकार पर प्रतिबन्ध लगा दिए गए हैं। हरिविष्णु कामथ ने भी संविधान सभा में कहा था कि “इस व्यवस्था द्वारा तानाशाही राज्य और पुलिस राज्य की स्थापना कर रहे हैं।”
इसी प्रकार सरदार हुकमसिंह ने कहा था “यदि हम इन स्वतन्त्रताओं को व्यवस्थापिका की इच्छा पर ही छोड़ देते हैं, जो कि एक राजनीतिक दल के अलावा कुछ नहीं है, तो इन स्वतन्त्रताओं के अस्तित्व में भी सन्देह हो जाएगा।” संविधान में मौलिक अधिकारों पर जो प्रतिबन्ध लगे हैं जैसे विचार अभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया कि किसी की भावना को ठेस न पहुँचे। बिना शस्त्र सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता के अधिकार पर कभी यह प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है कि इससे साम्प्रदायिक दंगा भड़कने की आशंका है। इस प्रकार मौलिक अधिकारों की उपयोगिता ही समाप्त हो जाती है।
प्रश्न 10.
आपके अनुसार कौन-सा मौलिक अधिकार सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है? इसके प्रावधानों को संक्षेप में लिखें और तर्क देकर समझायें कि यह क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में दिया गया अन्तिम अधिकार संवैधानिक उपचारों का अधिकार सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह अधिकार है कि अगर संविधान में दिये गये अन्य मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो तो यह अधिकार नागरिकों को न्यायालय में जाने का अधिकार देता है। न्यायालय केस के आधार पर आवश्यक आदेश जारी करता है, जिससे उस अधिकार की रक्षा की जाती है। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने भी इस अधिकार को संविधान का हृदय व आत्मा (Heart and Soul) कहा है।
Bihar Board Class 11 Political Science भारतीय संविधान में अधिकार Additional Important Questions and Answers
अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
अधिकारों से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अधिकार:
व्यक्ति की उन माँगों को, जिन्हें समाज द्वारा मान्यता प्राप्त हो तथा राज्य द्वारा संरक्षण प्राप्त हो, अधिकार कहते हैं। कभी-कभी असंरक्षित माँगें भी अधिकार बन जाती हैं, भले ही उन्हें कानून का संरक्षण प्राप्त न हुआ हो। उदाहरण के लिए काम पाने का अधिकार राज्य ने भले ही स्वीकार न किया हो परन्तु उसे अधिकार ही माना जाएगा क्योंकि काम के बिना कोई भी व्यक्ति अपना सर्वोच्च विकास नहीं कर सकता।
बेन तथा पीटर्स ने अधिकार की परिभाषा देते हुए कहा है, “अधिकारो की स्थापना एक। सुस्थापित नियम द्वारा होती है। वह नियम चाहे कानून पर आधारित हो या परम्परा पर।” अस्टिन के अनुसार, “अधिकार एक व्यक्ति की वह सामर्थ्य है, जिससे वह किसी दूसरे से कोई काम करा सकता हो या दूसरे को कोई काम करने से रोक सकता है।” लास्की के अनुसार, “अधिकार सामान्य जीवन की वह परिस्थितियाँ हैं जिनके बिना कोई व्यक्ति अपने जीवन को पूर्ण नहीं पर सकता।”
प्रश्न 2.
मौलिक अधिकारों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मौलिक अधिकार-किसी देश के नागरिकों को लोकतन्त्रिक शासन व्यवस्था में जिन अनेक व्यक्तियों की प्राप्ति होती है, उनमें से कुछ प्रमुख अधिकार, जिनके बिना व्यक्ति अपनी उन्नति व विकास नहीं कर सकता, मौलिक अधिकार कहलाते हैं। जैसे-जीवन का अधिकार, समानता का अधिकार, स्वतन्त्रता का अधिकार, शिक्षा व संस्कृति का अधिकार इत्यादि। जिन कारणों से इन अधिकारों को मौलिक कहा जाता है, वे हैं –
- ये व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए अत्यावश्यक है।
- देश के संविधान में इन अधिकारों का वर्णन किया गया है। कोई सरकार स्वेच्छा से इनमें परिवर्तन नहीं कर सकती।
प्रश्न 3.
भारतीय संविधान में दिए गए मूल अधिकारों का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
ब्रिटिश शासन में जनता के अधिकारों का हनन हुआ जिस कारण भारतीय समाज पिछड़ता गया। इस कारण संविधान निर्माताओं ने मौलिक अधिकारों को संवैधानिक प्रावधानों के द्वारा सुरक्षित बना दिया। संविधान में दिए गए इन अधिकारों का बहुत महत्त्व है। इन अधिकारों के द्वारा व्यक्ति के जीवन, सम्पत्ति और स्वतन्त्रता की रक्षा होती है। ये अधिकार शासन को निरन्कुश होने से रोकते हैं, तथा नागरिकों को आत्म-विकास का अवसर देते हैं। मूल अधिकार देश की एकता बनाए रखने में सहायक होते हैं।
प्रश्न 4.
नागरिकों के दो धार्मिक अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- धार्मिक विश्वास का अधिकार-कोई भी मनुष्य अपनी इच्छानुसार धार्मिक विश्वास रख सकता है। धर्म उसका व्यक्तिगत मामला है। अतः प्रत्येक मनुष्य को अपने धार्मिक विश्वास के अनुसार पूजा-पाठ करने का अधिकार है।
- धार्मिक प्रचार का अधिकार-प्रत्येक धर्म के मानने वालों को अपने धर्म का प्रचार करने का समान अधिकार प्राप्त है। धर्म-प्रचारक अपने धर्म के प्रचार के लिए शान्तिपy सम्मेलन कर सकते हैं।
प्रश्न 5.
नागरिक के किन्हीं दो राजनीतिक अधिकारों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक अधिकार –
- चुनाव में उम्मीदवार के रूप में खड़ा होने का अधिकार।
- चुनाव में मत देने का अधिकार।
- रातनीतिक पद प्राप्त करने का अधिकार।
- कानून के समक्ष समानता का अधिकार।
प्रश्न 6.
भारत में स्त्रियों के कल्याण से सम्बन्धित कोई दो निर्देशक सिद्धान्त लिखें।
उत्तर:
- महिला और पुरुष दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाए।
- स्त्रियों व बच्चों का शोषण न किया जाए। महिला और पुरुष कामगारों के स्वास्थ्य और शक्ति तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो।
- पुरुष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो।
प्रश्न 7.
राज्य के दो नीति निर्देशक सिद्धान्त लिखें जो भारत में बाल कल्याण से सम्बन्धित हैं।
उत्तर:
भारत में बाल कल्याण से सम्बन्धित राज्य के दो नीति निर्देशक तत्व निम्नलिखित हैं –
- बालकों को स्वतन्त्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएँ दी जाएँ और बालकों व अल्पवय व्यक्तियों की शोषण तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाए।
- राज्य इस संविधान के प्रारम्भ से दस वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालकों को चौदह वर्ष की आयु पूरी करने तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबन्ध करने का प्रयास करेगा।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
‘प्रतिषेध लेख’ तथा ‘अधिकार पृच्छा’ पर टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
मौलिक अधिकारों से किसी को वंचित न किया जाए इस हेत संविधान ने मौलिक अधिकारों की रक्षा का भार सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों को सौंपा है। ये न्यायालय बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध लेख, अधिकार पृच्छा तथा उत्प्रेषण लेख या आदेश जारी करते हैं। इनमें से प्रतिबन्ध लेख तथा अधिकार पृच्छा का वर्णन निम्नलिखित है –
1. प्रतिषेध लेख:
प्रतिषेध का अर्थ है ‘मना करना’। जब कोई अधीनस्थ न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जा रहा हो या कानूनी प्रक्रिया के विरुद्ध जा रहा हो तो उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय उस अधीनस्थ न्यायालय को ऐसा करने पर प्रतिषेध (मना) कर सकता है। इसके लिए सम्बन्धित उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय को इस प्रतिषेध लेख द्वारा उचित कार्यवाही करने के लिए आदेश दे सकता है।
2. अधिकार पृच्छा:
इसका अर्थ है ‘किस अधिकार से?’ यदि किसी व्यक्ति ने कानून के विरुद्ध किसी पद पर अधिकार प्राप्त कर रखा है, तो उच्च न्यायालय उसे ऐसा करने से रोक सकता है। जैसे केन्द्रीय लोकसेवा आयोग के सदस्य की आयु की सीमा 65 वर्ष है। यदि कोई व्यक्ति इस आयु के पश्चात् भी सदस्य बना हुआ है, तो उच्चतम न्यायालय उससे यह पूछ सकता है, कि किस कानून के अन्तर्गत उसने ऐसा किया है, और उसे अधिकार है, कि,आवश्यक समझने पर वह उस व्यक्ति को पदमुक्त करने का आदेश दे सकता है।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए –
(क) गिरफ्तारी और निरोध के विरुद्ध संरक्षण।
(ख) अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा।
(ग) बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेख।
(घ) परमादेश।
उत्तर:
(क) गिरफ्तारी और निरोध के विरुद्ध संरक्षण:
अनुच्छेद 22 के अनुसार जब कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया जाता है, तो यथाशीघ्र इसकी गिरफ्तारी का कारण बताया जाना आवश्यक है। गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर निकटतम न्यायाधीश के सम्मुख पेश किया जाना चाहिए। गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी रुचि का वकील करने या वकील से परामर्श लेने का अधिकार है।
(ख) अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा:
अनुच्छेद 39 अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षण संस्थाएँ स्थापित करने तथा उनका प्रबन्ध करने की स्वतन्त्रता देता है। यदि राज्य किसी ऐसी शिक्षण संस्थाओं का आधिपत्य ग्रहण करता है, जिसकी स्थापना अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा हुई हो तो उतना मुआवजा देना अनिवार्य होगा जिससे अल्पसंख्यक के अधिकार समाप्त अथवा सीमित न हों।
(ग) बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेख:
लैटिन भाषा के इस शब्द का अर्थ है, कि ‘शरीर को हमारे सम्मुख प्रस्तुत करो।’ इसके द्वारा न्यायालय को अधिकार प्राप्त होता है, कि वह बन्दी बनाए गए किसी व्यक्ति को अपने समक्ष उपस्थित करने का आदेश दे सके यदि बन्दी बनाया गया व्यक्ति यह अनुभव करता है, कि उसे गैरकानूनी अथवा अवैध रूप से बन्दी बनाया गया है, तो वह स्वयं अथवा उसका कोई साथी उच्च या सर्वोच्च न्यायालय में आवेदन पत्र दे सकता है, कि बन्दी बनाए गए व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष उपस्थित किया जाए।
(घ) परमादेश:
लैटिन भाषा के इस शब्द का अर्थ है, ‘हम आज्ञा देते हैं। जब कोई व्यक्ति या संस्था अपने कर्त्तव्य की पूर्ति न करे तो न्यायालय उसे अपने कर्त्तव्य पालन के लिए परमादेश द्वारा आदेश दे सकता है। जैसे कोई विश्वविद्यालय अपने किसी सफल विद्यार्थी को डिग्री न दे अथवा कोई संस्था अपने कर्मचारी को बिना समुचित कारण बताए नौकरी से निकाल दे और न्यायालय के निर्णय के बाद भी उसे पुनः नियुक्त न करे। ऐसी अवस्था में उच्च तथा सर्वोच्च न्यायालय परमादेश के द्वारा इन संस्थाओं को कर्तव्य पालन करने के लिए आदेश दे सकती है।
प्रश्न 3.
किन्हीं दो मौलिक अधिकारों का उल्लेख करें, जो संविधान अल्पसंख्यकों को देता है।
उत्तर:
किसी देश के नागरिकों को लोकतन्त्रीय शासन व्यवस्था में जिन अधिकारों की प्राप्ति होती है, उनमें से कुछ प्रमुख अधिकार, जिनके बिना व्यक्ति अपनी उन्नति व विकास नहीं कर सकता, मौलिक अधिकार कहलाते हैं। जैसे-जीवन का अधिकार, समानता का अधिकार, स्वतन्त्रता का अधिकार, शिक्षा व संस्कृति का अधिकार इत्यादि। भारतीय संविधान द्वारा भारत के सभी नागरिकों को छः प्रकार के मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, उनमें से दो मौलिक अधिकार जो अल्पसंख्यकों को दिए गए हैं, निम्नलिखित हैं –
- संविधान के अनुच्छेद 16 के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक को योग्यता होने पर बिना किसी भेदभाव के नौकरी के लिए समान अवसर प्रदान किए गए हैं, परन्तु अल्पसंख्यकों अथवा पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में कुछ स्थान सुरक्षित रखे गए हैं।
- अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षण संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार होगा। उसका प्रबन्धन वे स्वयं कर सकेंगें, राज्य उसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा।
प्रश्न 4.
मौलिक अधिकारों तथा निर्देशक तत्वों में कोई दो अन्तर बताएँ।
उत्तर:
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों तथा नीति-निर्देशक सिद्धान्तों को एक महत्त्वपूर्ण अंग मानकर इसकी व्याख्या की गई है, ताकि इनके द्वारा प्रत्येक अपना विकास कर सकें और सभी को सामाजिक और आर्थिक न्याय मिल सके। यद्यपि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, किन्तु फिर भी दोनों में भिन्न अन्तर हैं –
1. मौलिक अधिकारों को कानूनी संरक्षण प्राप्त है, लेकिन निर्देशक सिद्धान्त को नहीं-संविधान द्वारा मौलिक अधिकारों को कानूनी संरक्षण प्रदान किया गया है, अर्थात् यदि सरकार किसी कानून या प्रशासनिक आदेश द्वारा नागरिकों के अधिकार पर आक्षेप करती है तो, नागरिक सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय से न्याय की माँग कर सकता है। इन न्यायालयों का कर्तव्य है, कि वे अधिकारों की रक्षा करें परन्तु निर्देशक सिद्धान्तों को इस प्रकार का कोई कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है।
2. नीति निर्देशक सिद्धान्त राज्य से संबन्धित हैं, लेकिन मौलिक अधिकार नागरिकों से-मौलिक अधिकार नागरिकों को प्राप्त हैं और इनका सम्बन्ध नागरिकों से है, किन्तु नीति निर्देशक सिद्धान्त राज्य से सम्बन्धित हैं। इनका पालन करना राज्य का काम है। मौलिक अधिकार संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान की गई सुविधाएँ हैं, जब कि निर्देशक सिद्धान्तों के द्वारा सरकार को जनता के कल्याण के कार्य करने के लिए निर्देश दिए गए हैं।
प्रश्न 5.
संविधान के 42 वीं संशोधन द्वारा जोड़े गए राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
42 वीं संविधान संशोधन द्वारा नीति निर्देशक तत्वों का विस्तार किया गया जो निम्नलिखित है –
- राज्य अपनी नीति का संचालन इस प्रकार करेगा कि बच्चों को स्वस्थ, स्वतन्त्र और प्रतिष्ठापूर्ण वातावरण में अपने विकास के लिए अवसर और सुविधाएँ प्राप्त हों।
- राज्य ऐसी कानून प्रणाली के प्रचलन की व्यवस्था करेगा जो समाज में अवसर के आधार पर न्याय का विकास करे। राज्य उपयुक्त कानून या अन्य ढंग से आर्थिक दृष्टि से कमजोर व्यक्तियों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता की व्यवस्था करने का प्रयत्न करंगा।
- राज्य उपयुक्त कानून द्वारा या अन्य उपायों से श्रमिकों को उद्योगों के प्रबन्धन में भागीदार बनाने के लिए कदम उठाएगा।
- राज्य पर्यावरण की सुरक्षा और विकास तथा देश के वन और वन्य जीवों को सुरक्षित रखने का प्रयत्न करेगा।
प्रश्न 6.
शिक्षा और संस्कृति से सम्बन्धित कौन से अधिकार भारतीय नागरिकों को प्रदान किए गए हैं?
उत्तर:
संस्कृति तथा शिक्षा-सम्बन्धी अधिकार- भारतीय संविधान की धारा 29 व 30 में इन अधिकारों का वर्णन है। इन अधिकारों को संविधान में स्थान देकर अल्पसंख्यकों के लिए नया युग आरम्भ किया गया है।
- भारत के नागरिकों को अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार है।
- धर्म, वंश, जाति, भाषा अथवा इनमें से किसी एक के आधार पर किसी भी नागरिक को किसी राजकीय संस्था या राजकीय सहायता प्राप्त संस्था में प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता।
- अल्पसंख्यकों को अपनी इच्छानुसार स्कूल, कॉलेज खोलने का अधिकार होगा। इस प्रकार की संस्थाओं को अनुदान देने में राज्य कोई भेदभाव नहीं करेगा।
प्रश्न 7.
अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना से आप क्या समझते हैं? राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धान्तों में इसे किस प्रकार व्यक्त किया गया है?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का अर्थ है, कि भिन्न देशों के बीच सहयोग व सद्भावना का वातावरण बना रहे। इससे अभिप्राय यह भी है, कि भिन्न देश एक-दूसरे के साथ मित्र की भाँति व्यवहार करे। निर्देशक सिद्धान्तों में अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना को और अधिक दृढ़ करने के लिए संविधान की धारा 51 में निम्न प्रावधान का मुख्य रूप से उल्लेख किया गया है –
- सदस्य देश अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर का पालन करें।
- आपसी झगड़ों को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाने का प्रयास करें। अन्तर्राष्ट्रीय विवाद को मध्यस्थता द्वारा सुलझाने की व्यवस्था को राज्य प्रोत्साहन दे।
- आपसी सहयोग को बढ़ाने के लिए एक दूसरे के साथ हरेक प्रकार के सहयोग का आदान-प्रदान करें।
- सह-अस्तित्व की भावना पर बल दें। राज्य विभिन्न राज्यों के बीच न्याय और सम्मानपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना के लिए प्रयत्न करे।
- अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों व अन्तर्राष्ट्रीय संधियों के प्रति राज्य सरकार आदर की भावना बढ़ाने की कोशिश करे।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के अन्तर्गत प्रदत्त छः स्वतन्त्रताओं का मूल्यांकन करें। इनकी रक्षा किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
नागरिक स्वतन्त्रता:
अनुच्छेद 19 द्वारा नागरिकों को सात स्वतन्त्रताएँ दी गई थीं जिनमें से 44 वें संशोधन द्वारा सम्पत्ति के अर्जन स्वतन्त्रता को निकाल दिया गया है। शेष छः स्वतन्त्रताएँ निम्नलिखित हैं –
1. भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता:
नागरिकों को भाषण, लेख, चलचित्र अथवा अन्य किसी माध्यम से अपने विचार को प्रकट करने की स्वतन्त्रता प्राप्त है। 44 वें संशोधन द्वारा संविधान में एक नया अनुच्छेद 361 – A जोड़ा गया है, जिसके अन्तर्गत समाचार पत्रों को संसद, विधानमण्डलों की कार्यवाही प्रकाशित करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होगी परन्तु राज्य को अधिकार है कि देश की अखंडता, सुरक्षा, शान्ति, नैतिकता, न्यायालयों के सम्मान और विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध को ध्यान में रखते हुए इन अधिकारों पर उचित प्रतिबन्ध लगा सकता है।
2. शान्तिपूर्ण ढंग से बिना हथियारों के सभा:
सम्मेलन करने की स्वन्तत्रता-नागरिकों को शान्तिपूर्वक एकत्र होकर सभा करने की स्वन्तत्रता है, परन्तु सुरक्षा और शान्ति की दृष्टि से इस अधिकार पर भी उचित प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।
3. संस्था या संघ बनाने की स्वतन्त्रता:
नागरिकों को संस्था व संघ बनाने की पूर्ण स्वतन्त्रता है, परन्तु उसका उद्देश्य सुरक्षा व शान्ति को खतरा पहुँचाना न हो।
4. भ्रमण की स्वतन्त्रता:
नागरिकों को देश की सीमाओं के भीतर घूमने-फिरने की पूर्ण स्वतन्त्रता है, परन्तु सार्वजनिक हितों तथा जनजातियों की रक्षा के लिए राज्य इस स्वतन्त्रता पर रोक लगा सकता है।
5. देश के किसी भाग में निवास करने और बसने की स्वतन्त्रता:
नागरिकों को देश के किसी भाग में निवास करने और बसने की पूर्ण स्वतन्त्रता है, परन्तु सार्वजनिक हित और जनजाति, संस्कृति की रक्षा के लिए इस अधिकार पर भी प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।
6. व्यवसाय अपनाने की स्वतन्त्रता:
नागरिकों को अपना कोई भी व्यवसाय करने की स्वतन्त्रता दी गई है, पर सार्वजनिक हित में इस पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। सितम्बर 1989 में एक विवाद में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि “पटरियों और गली-कूचों में बैठकर या फेरी लगाकर व्यापार करना नागरिकों का मौलिक अधिकार है, पर उसके लिए किसी भी जगह पर स्थायी रूप से बैठने या जम जाने का कोई भी बुनियादी हक उन्हें नहीं है।”
प्रश्न 2.
राज्य-नीति के निर्देशक सिद्धान्तों को व्यवहारिक रूप देने के लिए भारत सरकार तथा भारत के राज्यों की सरकारों ने क्या किया?
उत्तर:
भारत में केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों ने 1950 ई. से लेकर अब तक निर्देशक सिद्धान्तों को लागू करने के लिए बहुत से प्रयत्न किए हैं। उनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं –
- भारत में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, कबीलों और अन्य पिछड़े हुए वर्गों को बहुत सी सुविधाएँ प्रदान की गयी हैं। जैसे-संसद और राज्य विधान मण्डलों में इनके लिए सीटें सुरक्षित रखी गयी हैं। इन्हें सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्राप्त है।
- भारत के प्रायः सभी राज्यों में प्राथमिक शिक्षा निःशुल्क तथा अनिवार्य है। कुछ राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा व केन्द्रशासित प्रदेश दिल्ली में तो माध्यमिक स्तर तक शिक्षा निःशुल्क है।
- संसद द्वारा कानून बनाकर स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार दिए गए है। अब स्त्रियों को समान कार्य के लिए पुरुषों के समान वेतन दिया जाता है।
- महिला कल्याण के लिए सरकार द्वारा प्रसूति गृह खोले गए हैं, और वेश्यावृत्ति को कानूनन समाप्त किया जा रहा है।
- केन्द्र में व भारत के अधिकांश राज्यों में न्यायापालिका को कार्यपालिका से मुक्त रखा गया है।
- भारत में कई राज्यों ने नशाबन्दी के लिए प्रयास किए हैं। इन राज्यों में शराब बनाने, बेचने, खरीदने पर पाबन्दी लगा दी गयी है।
- समाजवाद के उद्देश्य की पूर्ति के लिए बड़े-बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया है। भूतपूर्व राजाओं के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए हैं।
- भारत के प्राचीन स्मारकों की रक्षा के लिए भारतीय संसद द्वारा कई कानून बनाए गए हैं, और कार्यपालिका ने उन कानूनों को लागू किया है।
- कृषि की उन्नति के लिए सिंचाई योजनाएँ, ट्रैक्टर, उन्नत किस्म के बीज, किसानों को ऋणी सुविधाएँ आदि प्रदान की गयी हैं।
- पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया है। पंचायतों को अधिक शक्तियाँ भी दी गई हैं।
- विदेश नीति को पंचशील के सिद्धान्तों पर आधारित किया है। अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा के लिए भारत ने सदा ही संयुक्त राष्ट्र जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं को सहयोग प्रदान किया है।
प्रश्न 3.
संवैधानिक उपचारों का अधिकार से क्या तात्पर्य है? इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों का अधिकार (धारा 32 व 36 ):
इस अधिकार के अनुसार प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार दिया गया है, कि यदि उसे प्राप्त मौलिक अधिकारों में आक्षेप किया जाए या छीना जाए, चाहे वह सरकार की ओर से ही क्यों न हो, वह सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय से न्याय की माँग कर सकता है। मूल अधिकारों की रक्षा के लिए ये न्यायालय भिन्न प्रकार के निर्देश, आदेश या लेख जारी कर सकते हैं –
1. बंदी प्रत्यक्षीकरण:
इसके अन्तर्गत न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त होता है, कि वह बन्दी बनाए गए किसी व्यक्ति को अपने सामने उपस्थित करने का आदेश दे सके ताकि इस बात की जाँच की जा सके कि उसे गैर-कानूनी तौर पर बन्दी नहीं बनाया गया। निर्दोष साबित होने पर उसे तुरन्त छोड़ दिया जाता है।
2. परमादेश:
लैटिन भाषा के इस शब्द का अर्थ है, हम आज्ञा देते हैं। जब किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा अपना कर्त्तव्य पालन न किए जाने की दशा में परमादेश जारी किया जाता है, तो परमादेश जारी होने पर उसे अपना कर्त्तव्य पालन करने का आदेश दिया जाता है।
3. प्रतिषेध:
प्रतिषेध द्वारा किसी अधिकारी या न्यायालय को ऐसा करने से रोका जाता है, जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर हो।
4. अधिकार पृच्छा:
गैरकानूनी एवं अनुचित तरीके से किसी व्यक्ति द्वारा किसी सरकारी, अर्धसरकारी या निर्वाचित पद को सम्भालने का प्रयत्न जारी करने की स्थिति में सर्वोच्च या उच्च अधिकार पृच्छा जारी करके उसे रोक सकता है। संवैधानिक उपचारों के अधिकार की महत्ता-भारतीय संविधान में भारतीय नागरिकों को जो मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, उनका तब तक कोई महत्त्व नहीं जब तक कि संविधान उनकी सुरक्षा की व्यवस्था न करे।
संविधान में संवैधानिक उपचारों के अधिकार द्वारा मौलिक अधिकारों की सुरक्षा दी गई है। इन उपचारों का उल्लेख संविधान के 32 और 226 अनुच्छेदों, में किया गया है। इस अधिकार द्वारा संविधान मौलिक अधिकारों के लिए प्रभावी कार्यविधियाँ प्रतिपादित करता है। इस अधिकार के बिना मौलिक अधिकार खोखले वायदे साबित होते हैं। संविधान के 32 और 226 अनुच्छेदों द्वारा नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा का उत्तरदायित्व सर्वोच्च न्यायालय तथा राज्य के उच्च न्यायालयों को सौंपा गया है। यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, तो वह उन न्यायालयों में प्रार्थना पत्र देकर अपने अधिकार की रक्षा कर सकता है।
प्रश्न 4.
आपके अनुसार कौन-सा मौलिक अधिकार सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है? इसके प्रावधानों को लिखें और तर्क देकर बताएँ कि यह क्यो महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
मौलिक अधिकार जो भारतीय संविधान में दिए गए थे, उनकी संख्या प्रारम्भ में 7 थी। 44 वें संशोधन द्वारा 1979 में सम्पत्ति का अधिकार समाप्त कर दिया गया और इनकी संख्या 6 हो गयी। परन्तु 86 वें संशोधन द्वारा प्राथमिक शिक्षा का अधिकार भी मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया । इस प्रकार पुनः इसकी संख्या 7 हो गई। भारतीय संविधान द्वारा छः
अधिकारों की सूची निम्न प्रकार है –
- समानता का अधिकार
- स्वतन्त्रता का अधिकार
- धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
- शोषण के विरुद्ध अधिकार
- संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार
इन सभी अधिकारों की उपयोगिता तभी सम्भव है, जबकि इन सभी अधिकारों को भारतीय संविधान में सुरक्षा की गारंटी मिले। यह गारंटी संविधान में संवैधानिक उपचारों के अधिकार द्वारा दी गई है। इन उपचारों का उल्लेख संविधान के 32 और 226 अनुच्छेदों में किया गया है। अधिकार के बिना अन्य मौलिक अधिकारों के लिए प्रभावी कार्यविधियाँ प्रतिपादित करता है। इस अधिकार के बिना अन्य मौलिक अधिकार खोखले वायदे साबित होते हैं।
संविधान के द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा का उत्तरदायित्व सर्वोच्च न्यायालय तथा राज्य के उच्च न्यायालयों को सौंपा गया है। यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, तो वह न्यायालयों में प्रार्थना पत्र (application) देकर अपने अधिकार की रक्षा कर सकता है। न्यायालय इस हेतु बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा तथा उत्प्रेषण लेख जारी कर सकता है। इस अधिकार के अन्तर्गत एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है, कि न्यायालय ऐसे मामलों में तुरन्त कार्यवाही करता है, ताकि एक क्षण के लिए भी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो सके। संक्षेप में संवैधानिक उपचारों का अधिकार सर्वश्रेष्ठ मौलिक अधिकार है।
प्रश्न 5.
‘राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग’ पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत के संविधान में मूल अधिकारों का प्रावधान होते हुए भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एमनेस्टी इण्टरनेशनल तथा कुछ अन्य मानव अधिकार समर्थकों द्वारा यह कहा जा रहा था कि राज्य के पुलिस बल, अर्धसैनिक बल, सेना और जेल अधिकारियों द्वारा व्यक्ति के अधिकारों का हनन किया जाता है। अतः इस प्रसंग में पहले तो सितम्बर 1993 में राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश जारी किया गया उसके बाद दिसम्बर 1993 में “मानव अधिकार अयोग व न्यायालय’ गठन सम्बन्धी विधेयक पारित किया गया। यह आयोग भारतीय संविधान द्वारा स्वीकृत अधिकारों तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रसविदाओं से मान्यता प्राप्त अधिकारों के हनन की स्थिति में सरकारी कर्मचारियों की उपेक्षा की शिकायतों पर विचार करता है।
आयोग को केवल जाँच करने व सिफारिश करने का अधिकार है। इस आयोग में 8 सदस्य होते हैं। आयोग की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश करते हैं। आयोग के अन्य सदस्यों में सर्वोच्च न्यायालय का एक वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश, दो प्रतिष्ठित व्यक्ति जिन्हें मानवी अधिकारों के विषय में ज्ञान और व्यावहारिक अनुभव प्राप्त हो, अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष, अनुसूचित जाति व जनजाति का अध्यक्ष तथा महिला आयोग का अध्यक्ष शामिल होंगे। आयोग को सशस्त्र बलों या अन्य सैनिक बलों के सम्बन्ध में जाँच करने का अधिकार नहीं है।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को मानव अधिकारों के उल्लंघन की घटनाओं की स्वतन्त्र रूप से जाँच करने का अधिकार है। आयोग अपने जाँच कार्य में ‘एमनेस्टी इण्टरनेशनल’ अथवा अन्य किसी अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सी की सहायता भी ले सकता है। आयोग को यह भी अधिकार है, कि वह मानवीय अधिकारों की रक्षा की दृष्टि से, विद्यमान कानूनों में संशोधन के लिए शासन को सुझाव दे सके। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने 1994 ई. के प्रारम्भिक दिनों से ही अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया। टाडा कानून की समाप्ति और बाल श्रम का निषेध करने के बारे में इस आयोग का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
प्रश्न 6.
भारतीय संविधान में दी गई विभिन्न मूल स्वतन्त्रताओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत के संविधान में अनुच्छेद 19 से 22 तक विभिन्न स्वतन्त्रताओं का वर्णन किया गया है। अनुच्छेद 19 में नागरिक स्वतन्त्राओं का वर्णन दिया है।
1. नागरिक स्वतन्त्रताएँ:
अनुच्छेद 19 द्वारा नागरिकों को सात स्वतन्त्रताएँ दी गई थीं, जिनमें से 44वें संशोधन द्वारा सम्पत्ति के अर्जन सम्बन्धी स्वतन्त्रता को निकाल दिया गया है। शेष छः स्वतन्त्रताएँ हैं –
(क) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता:
नागरिकों को भाषण, लेख, चलचित्र अथवा अन्य किसी माध्यम से अपने विचारों को प्रकट करने की स्वतन्त्रता प्राप्त है। 44 वें संशोधन द्वार संविधान में एक नया अनुच्छेद 361 A जोड़ा गया जिसके अन्तर्गत समाचार-पत्रों को संसद, विधानमण्डलों की कार्यवाही प्रकाशित करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होगी परन्तु. राज्य को अधिकार है कि देश की अखन्डता, सुरक्षा, शान्ति, नैतिकता, न्यायालयों के सम्मान और विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को ध्यान में रखते हुए इन अधिकारों पर उचित प्रतिबन्ध लगा सकता है।
(ख) शान्तिपूर्ण ढंग से बिना हथियारों के सभा:
सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता-नागरिकों को शान्तिपूर्ण एकत्र होने की स्वतन्त्रता है, परन्तु सुरक्षा और शान्ति की दृष्टि से इस अधिकार पर भी उचित प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।
(ग) संस्था या संघ बनाना:
नागरिकों को संस्था व संघ बनाने की पूर्ण स्वतन्त्रता है, परन्तु सार्वजानिक हितों तथा जनजातियों की रक्षा के लिए इस स्वतन्त्रता पर रोक लगाया जा सकता है।
(घ) देश के किसी भाग में निवास करने और बसने की स्वतन्त्रता:
नागरिकों को देश में कहीं भी बसने की स्वतन्त्रता दी गई है, सार्वजानिक हित में इस पर भी प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।
(ङ) व्यवसाय अपनाने की स्वतन्त्रता:
नागरिकों को अपना कोई भी व्यवसाय करने की स्वतन्त्रता दी गई है पर सार्वजानिक हित में इस पर भी प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। दूसरे, किसी भी व्यवसाय के लिए कुछ व्यावसायिक योग्यताएँ निर्धारित की जा सकता हैं। तीसरे राज्य को स्वयं या किसी सरकारी कम्पनी द्वारा किसी भी व्यापार या धन्धे को अपने हाथों में लेने का अधिकार है।
2. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता:
अनुच्छेद 20, 21, 22 में ये स्वतन्त्रताएँ दी गई हैं। अनुच्छेद 20 के अनुसार –
(क) किसी भी व्यक्ति को किसी ऐसे कानून का उल्लंघन करने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता जो अपराध करते समय लागू न हो।
(ख) किसी व्यक्ति को उससे अधिक दण्ड नहीं दिया जा सकता जो उस कानून के लिए उल्लंघन करते समय निश्चित हो।
(ग) किसी भी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक न तो मुकद्दमा चलाया जा सकता है, और न ही दोबारा दण्डित किया जा सकता है।
(घ) किसी भी व्यक्ति को अपने विरुद्ध किसी अपराध में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 21 में जीवन तथा निजी स्वतन्त्रता की रक्षा की व्यवस्था की गई है। किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त अन्य किसी तरीके से जीवन अथवा निजी स्वतन्त्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। अनुच्छेद 20 तथा 21 में प्राप्त अधिकारों को आपात स्थिति में भी निलम्बित नहीं किया जा सकता।
3. बन्दीकरण व नजरबन्दी से रक्षा:
अनुच्छेद 22 के अन्तर्गत –
(क) बन्दी बनाये गए व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी का कारण शीघ्र बताया जाएगा।
(ख) बन्दी व्यक्ति को अपनी इच्छा से वकील से सलाह लेने का अधिकार होगा।
(ग) बन्दी बनाए गए व्यक्ति को 24 घंटे के अन्दर न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है।
44 वें संशोधन के अनुसार नजरबन्दी का मामला दो महीने के भीतर सलाहकार मण्डल के पास जाना आवश्यक है। सलाहकार मण्डल का गठन उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा किया जाएगा।
आलोचना:
उपरोक्त स्वतन्त्रताओं की निम्न आधार पर आलोचना की जाती है –
- नागरिकों की स्वतन्त्रताओं पर अनेक सीमाएँ लगा दी गई हैं। ये स्वतन्त्रताएँ यदि एक हाथ से दी गई हैं तो दूसरे हाथ से छीन ली गई हैं।
- सीमाएँ अत्यधिक व्यापक होने के कारण अस्पष्टता से ग्रसित हो जाती है। परिणामस्वरूप विधायिका व न्यायापालिका में टकराव की संभावना बनी रहती है।
- निवारक नजरबन्दी का अधिकार राज्य को प्राप्त है, जिसके कारण शान्तिकाल में भी जीवन तथा निजी स्वतन्त्रता का अधिकार अर्थहीन हो जाता है।
- न्यायाधीश मुखर्जी के शब्दों में, “जहाँ तक मुझे मालूम है, संसार के किसी भी देश में निवारक मिरोध को संविधान का अटूट भाग नहीं बनाया गया हैं, जैसे भारत में किया गया है। यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है।”
प्रश्न 7.
भारतीय संविधान में दिए गए समानता के अधिकार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समानता का अधिकार-समानता का अधिकार का वर्णन अनुच्छेद 14 से 18 तक दिया गया है।
1. कानून के समक्ष समानता:
संविधान के अनुच्छेद 14 में कहा गया है – “राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता अथवा कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। “कानून के समक्ष समानता का तात्पर्य यह है, कि एक जैसे लोगों के साथ एक सा व्यवहार किया जाए।”
2. भेदभाव की मनाही:
अनुच्छेद 15 दो बातें स्पष्ट करता है। प्रथम “राज्य केवल धर्म, वंश, जाति, लिंग व जन्म स्थान या इनमें से किसी एक आधार पर कोई नागरिक दुकानों, भोजनालयों, मनोरंजन की जगहों, तालाबों और कुओं का प्रयोग करने से वंचित नहीं किया जा सकेगा। परन्तु महिलाओं और बच्चों को विशेष सुविधाएँ प्रदान की जा सकती हैं। अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए राज्य विशेष प्रकार की व्यवस्था कर सकता है।
3. अवसरों की समानता:
अनुच्छेद 16 के अनुसार सरकारी नियुक्तियों के लिए सभी नागरिकों को समान अवसर दिए जाएंगे। कोई भी नागरिक धर्म, वंश, जाति, जन्मस्थान या निवास स्थान के आधार पर सरकारी नियुक्तियों के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा। इस अनुच्छेद 16 के कुछ अपवाद भी दिए गए हैं –
(क) कुछ विशेष पदों के लिए निवास स्थान सम्बन्धी शर्ते आवश्यक मानी जा सकती हैं।
(ख) पीछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में स्थान आरक्षित किए जा सकते हैं।
(ग) यह व्यवस्था. की जा सकेगी कि धार्मिक या साम्प्रदायिक संस्थाओं के पदाधिकारी किसी विशेष धर्म या सम्प्रदाय के ही हों।
अगस्त, 1990 ई. में भारत सरकार ने, सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए समुदायों के लिए सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की। यह घोषणा मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए की गई थी। राज्य स्तर पर तो आरक्षण पिछले कई दशकों से चला आ रहा है, पर केन्द्र के अधीन नौकरियों में आरक्षण की घोषणा पहली बार की गई।
4. अस्पृश्यता की समाप्ति:
अस्पृश्यता अथवा छुआछूत का अन्त अनुच्छेद 17 में कर दिया गया है, और किसी भी रूप में छुआछूत को बरतने की मनाही की गई है। 1976 ई. में संसद ने कैद और जुर्माने की व्यवस्था को और कठोर बना दिया। छुआछूत बरतने या उसका प्रचार करने के अपराध में तीसरी बार या उससे अधिक बार दोषी पाये जाने वाले व्यक्तियों को दो साल की सजा और एक हजार जुर्माना किया जाएगा।
पहली बार किए गए अपराध के लिए कम से कम एक महीने की कैद और एक सौ रुपया जुर्माने की व्यवस्था की गई है। कानून में यह भी कहा गया है, कि छुआछूत के अन्तर्गत दोषी पाया गया व्यक्ति सजा की तारीख से छः वर्षों तक संसद और राज्य विधानमण्डल का चुनाव नहीं लड़ सकता।
5. उपाधियों की समाप्ति:
अनुच्छेद 18 के अनुसार –
- राज्य सेना या शिक्षा सम्बन्धी सम्मान के सिवाय कोई ओर उपधि प्रदान नहीं करेगा।
- भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।
- कोई व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है, राज्य के अधीन लागू या विश्वास के किसी पद को धारण करते हुए किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।
- राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य के या उसके अधीन संस्थान से किसी रूप में कोई भेंट उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।
प्रश्न 8.
भारतीय संविधान में वर्णित शोषण के विरुद्ध अधिकार का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
शोषण के विरुद्ध का उद्देश्य है समाज के निर्बल वर्ग को शक्तिशाली वर्ग के अन्याय से बचाना। इस मौलिक अधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित व्यवस्थाएँ दी गई है –
1. मानव के क्रय-विक्रय तथा शोषण पर प्रतिबन्ध:
अनुच्छेद 23 के अनुसार मानव तथा किसी भी व्यक्ति से बेगार लेना गैरकानूनी घोषित किया गया है, परन्तु इस अधिकार का यह अपवाद है कि राज्य सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अनिवार्य सेवा लागू कर सकता है। उदाहरण के लिए अनिवार्य सैन्य कानून के अन्तर्गत लोग सेना में भर्ती किए जा सकते हैं । शोषण की मनाही के बावजूद पिछड़े वर्गों के लोग, जनजातियाँ, महिलाएँ और बन्धक मजदूर आज भी शोषण के शिकार हैं।
2. कारखानों आदि में बच्चों को काम करने की मनाही:
अनुच्छेद 24 के अनुसार चौदह वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को फैक्ट्री या खान में नहीं लगाया जाएगा और न किसी अन्य जोखिम के काम पर लगाया जाएगा। ऐसा करना अब एक दण्डनीय अपराध है। यह व्यवस्था इसलिए की गई है, ताकि उनके स्वास्थ्य पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े। भारत में मध्यकाल में जमींदार, राजा और नवाब तथा अन्य लोग अपने अधीनस्थ लोगों से बेगार लेते थे।
अपना निजी कार्य कराकर उनको बदले में कुछ नहीं देते थे। इसके विपरीत ग्रामों में स्त्रियों, दासों व बालकों के क्रय-विक्रय की कुरीति प्रचलन में थी। स्वतन्त्र हो जाने के बाद भी समाज के दुर्बल वर्ग का सर्वत्र शोषण होता रहा है। भारत के संविधान में दी गई उपरोक्त व्यवस्थाओं से शोषण कुछ रुका है। इस प्रकार बालकों व उपेक्षित वर्ग के शोषण या बेगार पर प्रतिबन्ध लगा है।
प्रश्न 9.
राज्य के नीति निर्देशक तत्व एवं मौलिक अधिकारों में अन्तर स्पष्ट करें और यह भी स्पष्ट करें की सरकार निर्देशक तत्वों को उपेक्षा कर सकती है।
उत्तर:
मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक तत्व दोनों ही भारतीय लोकतंत्र की आधारभूत संरचना है। फिर भी दोनों में मौलिक अन्तर है, जो निम्नलिखित है –
- मौलिक अधिकार नकारात्मक प्रकृति का है। ये राज्य को कुछ कार्य करने से रोकती है। जबकि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्त सकारात्मक प्रकृति के हैं। ये राज्य को कुछ कार्य करने के लिए निर्देश है।
- मौलिक अधिकार का उद्देश्य भारत में राजनीतिक लोकतन्त्र की स्थापना करना है, जबकि नीति निर्देशक सिद्धान्तों का मुख्य उद्देश्य आर्थिक लोकतन्त्र एवं लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।
- मौलिक अधिकार की प्रकृति कानूनी है। अर्थात् मौलिक अधिकार के उल्लंघन होने पर न्यायालय में जा सकते हैं। जबकि नीति निर्देशक तत्व की प्रकृति राजनीतिक है । लागू नहीं होने पर न्यायालय में नहीं जा सकते हैं। अर्थात् यह न्याय-योग्य नहीं है।
- मौलिक अधिकार अधिक स्पष्ट और निश्चित है, जबकि निर्देशक सिद्धान्त अस्पष्ट और अनिश्चित है। इस तरह स्पष्ट है, कि मौलिक अधिकार और निर्देशक तत्व में व्यापक अन्तर है।
- जहाँ तक सरकार द्वारा निर्देशक तत्वों की उपेक्षा का प्रश्न है, इसमें उत्तर में कहा जा सकता है। कि निर्देशक तत्वों का संवैधानिक और व्यावहारिक दोनों दृष्टि से काफी महत्त्व है, इसलिए इसकी उपेक्षा नहीं कर सकती है।
नीति निर्देशक तत्व का मुख्य उद्देश्य लोक कल्याणकारी राज्य और आर्थिक लोकतन्त्र एवं सामाजिक न्याय की स्थापना करना है। यह हमारे पूर्वजों एवं महापुरुषों का सपना है, इसके पीछे जनमत की शक्ति है। इसलिए सरकार इसकी उपेक्षा नहीं कर सकती है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
भारतीय संविधान स्वीकृत हुआ था –
(क) 30 जनवरी, 1948
(ख) 26 नवंबर, 1949
(ग) 15 अगस्त, 1947
(घ) 26 जनवरी, 1950
उत्तर:
(ख) 26 नवंबर, 1949
प्रश्न 2.
‘संविधान की आत्मा’ की संज्ञा दी गई है?
(क) अनुच्छेद 14 को
(ख) अनुच्छेद 19 को
(ग) अनुच्छेद 21 को
(घ) अनुच्छेद 32 को
उत्तर:
(घ) अनुच्छेद 32 को
प्रश्न 3.
भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में राज्यों को ग्राम पंचायतों की स्थापना का निर्देश दिया गया है?
(क) अनुच्छेद 38
(ख) अनुच्छेद 39
(ग) अनुच्छेद 40
(घ) अनुच्छेद 44
उत्तर:
(ग) अनुच्छेद 40
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