BSEB Class 11 Psychology What is Psychology Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Psychology What is Psychology Book Answers |
Bihar Board Class 11th Psychology What is Psychology Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 11th |
Subject | Psychology What is Psychology |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 11th Psychology What is Psychology Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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प्रश्न 1.
व्यवहार क्या है? प्रकट एवं अप्रकट व्यवहार का उदहारण दीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण की विभिन्न घटनाओं से उत्पन्न स्थितियों के प्रभाव में मानव मन उद्दीपक (S) और अनुक्रिया (R) में संतुलन बनाये रखने के लिए अपनी प्रकृति तथा प्रवृति के अनुसार जैसा आचरण करता है, उसे संलग्न स्थितियों के प्रति व्यवहार (behaviours) माना जाता है। हमारे मानसिक निर्णय का कार्यकारी परिणाम हमारा व्यवहार माना जाता है। व्यवहार व्यक्ति एवं उसके वातावरण का उत्पाद है। अर्थात् B=f (P.E.)। व्यवहार सामान्य अथवा जटिल, अल्पकालिक या दीर्घकालिक, लाभकारी या हानिकारक किसी भी श्रेणी में रखे जा सकते हैं। कुछ व्यवहार प्रकट होते हैं तो कुछ अप्रकट ।
प्रकट व्यवहार के उदाहरण –
- मालिक को सामने पाकर नौकर का सतर्क और सभ्य आचरण करना।
- साँप या बाघ को देखते ही उपने को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने के लिए यथासंभव तेजी से भागना।
- जेब में डाले हुए हाथ को पकड़ लिये जाने पर पॉकेटमार तथा यात्री के मुखमुद्रा तथा क्रियाओं में आने वाला अन्तर।
अप्रकट व्यवहार के उदहारण –
- परीक्षार्थी के परीक्षाभवन में बैठ जाने पर कठिन प्रश्नों की आशंका में किया जाने वाला आचरण।
- शतरंज, ताश या कैरमबोर्ड खेलते समय की जाने वाली आगामी चाल के प्रति चिंतित होना।
- मित्र के घर मिलने वाल स्वागत, भोजन तथा आमंत्रण की सुखद याद करना।
प्रश्न 2.
आप वैज्ञानिकामनोविज्ञान को मनोविज्ञान विद्या शाखा की प्रसिद्ध धारणाओं से कैसे अलग करेंगे?
उत्तर:
वैज्ञानिक मनोविज्ञान अनुसंधान एवं अनुप्रयोग की दिशा प्रयोग करने वाले कथ्य पर पूर्णतः आधारित होते हैं। अनुसंधान में व्यवहार और मानसिक घटनाओं की समझ, व्याख्या एवं दोष मुक्त बनाने की क्षमता होती है। यह मात्र कोरी कल्पना पर आधारित नहीं होती है। इसके अन्तर्गत अनेक प्रयोग किये जाते हैं। प्रयोगिक कार्यों से प्राप्त निष्कर्षों को मानव-हित में उपयोग में लाते हैं। सर्वप्रथम प्रयोगों की अभिकल्पना की जाती है।
प्रयोगों को संपादित करते है। अर्थात् प्रयोगों के वृहत्तर आयाम के मनोवैज्ञानिक गोचरों का नियंत्रिण दिशा में अध्ययन किया जाता है जिसका प्रधान उद्देश्य व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं के सामान्य सिद्धातों का विकास करना होता है। प्रयोगिक मनोविज्ञान प्रत्यक्षण, अधिगम, स्मृति, चिंतन एवं अभिप्रेरण आदि प्रक्रियाओं से जुड़ी रहती है। वैज्ञानिक मनोवैज्ञानिक के लिए निम्नांकित कथ्य सार्थक प्रतित होते हैं –
- मनोविज्ञान व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं के सिद्धांतों का विकास करने का प्रयास करता है।
- मानव व्यवहार व्यक्तियों एवं वातावरण के लक्षणों का एक प्रकार्य है।
- मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुप्रयोग द्वारा मानव व्यवहार को नियंत्रित एवं परिवर्तित किया जा सकता है।
- मानव व्यवहार उत्पन्न किया जा सकता है।
- मानव व्यवहार की समझ से संस्कृति निर्मित होती है।
यही कारण है कि मनोविज्ञान की सार्थकता को बढ़ाने के लिए तंत्रिका विज्ञान, शरीर क्रिया विज्ञान, जीवन विज्ञान, आयुर्विज्ञान तथा कम्प्यूटर विज्ञान की सहायता ली जाती है। मनोविज्ञान की सभी विद्या एवं शाखाओं में मानव हित को ध्यान में रखा गया है, किन्तु वैज्ञानिक मनोविज्ञान की तरह यह सर्वमान्य नही होता है। दशा और समय के बदलने से निर्धारित मूल्यों एवं समझदारियों में भी अन्तर आ जाता है।
इसमें विशिष्ट अनुसंधान, कौशल एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। समाज-सेवा हो या मन की उत्सुकता, मानवीय उलझन हो या किसी प्रकार कि समस्या; एक निदान उपयोगी नहीं होता। गरीब-अमीर, शांति-क्रांति, मिलन-वियोग, बरसात-गर्मी जैसे परिवर्तन धारणाओं में अन्तर उत्पन्न कर देते हैं। साधारण-सा उदाहरण है एक मित्र का कही दूर चला जाना। नया मित्र मिल जाने पर ‘दृष्टि ओझल मन ओझल’ का सिद्धांत सही लगता है जबकि नये मित्र के अभाव में मान लिया जाता है कि ‘दूरी से हृदय में प्रेम और प्रगाढ़ होता है।
अर्थात् मनोविज्ञान की विभिन्न विद्या शाखाओं की प्रसिद्ध धारणाओं का विज्ञान अंधकार में तीर चलाने जैसा प्रतीत होता है। मनोविज्ञान द्वारा उत्पादित वैज्ञानिक ज्ञान सामान्य बोझ के प्रायः विरुद्ध होता है। परीक्षा में अनुत्तीर्ण छात्र प्रश्न-पत्र को ही बदनाम कर संतोष कर लेते हैं जबकि उन्हें जानना चाहिए कि –
- पलायन के बदले प्रयास करते रहना चाहिए।
- असफलता का कारण प्रयास की कमी होती है।
- अच्छा अभ्यास ही अच्छा निष्पादन का कारण बनता है।
अर्थात् एक सामाजिक-सांस्कृतिक के संदर्भ में मानव व्यवहार के लिए मनोविज्ञान अपने ज्ञान को मानव विज्ञान, समाजशास्त्र, समाज कार्य विज्ञान, राजनीति विज्ञान एवं अर्थशास्त्र के साथ भी मिलकर बाँटता है। आजकल वास्तविकता की अच्छी समझ के लिए बहु/अंतर्विषयक पहल की आवश्यकता अनुभव की जा रही है। इससे विद्या शाखाओं में आपसी सहयोग का उदय हुआ है। मनोविज्ञान की रुचि सामाजिक विज्ञानों में परस्पर रूप से व्याप्त है। ऐसे प्रयासों से फलदायी अनुसंधानों एवं उनुप्रयोगों को बढ़ावा मिलता है। मनोविज्ञान अनेक समस्याओं के समाधान में भी समर्थ सिद्ध हुआ है।
प्रश्न 3.
मनोविज्ञान के विकास का संक्षिप्त रूप प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन दर्शनशास्त्र के मनोवैज्ञानिक सार्थकता से जुड़ी सूचनाओं से मनोविज्ञान का उद्भव हुआ।
1. संरचनावादी (1879):
मन के अवयवों अथवा निर्माण की इकाइयों का विश्लेषण करने की इच्छा से विलियम वुण्ट ने लिपजिंग, जर्मनी में प्रथम मनोविज्ञान प्रयोगशाला स्थापित किया।
2. प्रकार्यवादी (1890):
एक अमेरीकी मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स ने कैम्ब्रिज, मेसाचुसेट्स में इसका प्रयोगशाला स्थापित किया। उन्होंने मानव मन के अध्ययन के लिए प्रकार्यवादी उपागम का विकास किया। इन्होंने ‘प्रिंसपल ऑफ साइकोलॉजी’ प्रकाशित की। इसी अवधि में जॉन डीवी ने मानव के कार्य करने की पद्धति पर अपना विचार प्रकट किया। सन् 1895 में मनोविज्ञान की एक व्यवस्था के रूप में प्रकार्यवाद की स्थापना हुई। सन् 1990 में सिगमंड फ्रायड ने मनोविश्लेषणवाद का विकास किया।
3. व्यवहारवाद (1910):
जॉन वाटसन ने मानव मन एवं चेतना को अध्ययन का आधार बनाया।
4. 1916 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान का प्रथम विभाग खुला।
5. स्किनर ने व्यवहारवाद का अनुप्रयोग किया।
6. सिगमंड फ्रायड ने मानव व्यवहार को अचेतन इच्छाओं एवं द्वन्द्वों का गतिशील प्रदर्शन बताया। इन्होंने मनोविश्लेषण को एक पद्धति के रूप में स्थापित किया।
7. मानवतावादी परिदृश्य:
कार्ल रोजर्स तथा अब्राहम मैस्लो ने बताया कि व्यवहारवाद, वातावरण की दशाओं से निर्धारित व्यवहार पर बल देता है।
8. संज्ञानात्मक परिदृश्य (1920):
जर्मनी में गेस्टाल्ट मनोविज्ञान का उदय हुआ। चिंतन, समझ, प्रत्यक्षण, स्मरण करना, समस्या सामाधान तथा अनेक मानसिक प्रक्रियाओं के द्वारा संज्ञानात्मक परिदृश्य प्रस्तुत किया।
9. निर्मितवाद:
मानव मन के विकास का निर्मितपरक सिद्धांत के द्वारा पियाजे (piaget) ने. मानव मन की सक्रिय रचना की खोज की। रूस के एक अन्य मनोविज्ञानिक व्यगाट्स्की (Vygotsky) ने बताया कि मानव का विकास सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है। मन एक संयुक्त सांस्कृतिक निर्मित है तथा वयस्कों एवं बच्चों की अंतः क्रिया के परिणामस्वरूप विकसित हो पाता है।
इसके अतिरिक्त सन् 1978 में निर्णयन पर हर्बर्ट साइमन के द्वारा कार्य किया गया। सन् 2002 में डेनियल बहनेमन द्वारा मानव निर्णयन पर शोध किया गया। सन् 2005 में थामस शेलिंग ने आर्थिक व्यवहार में सहयोग एवं द्वन्द्व की समझ में खेल सिद्धान्त का अनुप्रयोग किया।
प्रश्न 4.
वे कौन-सी समस्याएं होती हैं जिनके मनोवैज्ञानिकों का अन्य विद्या शाखा के लोगों के साथ सहयोग लाभप्रद हो सकता है? किन्हीं दो समस्याओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मनोविज्ञान, व्यवहार, अनुभव एवं मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है। मनोविज्ञान की जड़ें दर्शनशास्त्र में हाती हैं। मनोविज्ञान केवलं मानव व्यवहार के विषय में सैद्धान्तिक ज्ञान का विकास ही नहीं करता है बल्कि यह विभिन्न स्तरों पर समस्याओं का समाधान भी करती है। मानव व्यवहार को समझने तथा मानव जीवन से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए मनोविज्ञान कई विद्या शाखाओं से जुड़ी होती है। निम्नांकित
विद्या शाखाएँ ऐसी हैं जो मनोविज्ञान की सार्थकता को सुपरिणामी बनाने में समर्थ होते हैं इसी श्रेणी के रुझान के कारण मनोविज्ञान में अंतर्विषयक उपागम का उदय हुआ।
1. दर्शनशास्त्र:
मन का स्वरूप, अभिप्रेरण, संवेग आदि के आधार पर ज्ञान की विधि तथा मानव स्वभाव के विभिन्न क्षेत्रों का अध्ययन।
2. अनुर्विज्ञान:
स्वस्थ शरीर के लिए स्वस्थ मन की आवश्यकता होती है।
3. अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान एवं समाजशास्त्र:
आर्थिक व्यवहार, उपभोक्ताओं की भावुकताओं एवं आवश्यकताओं का अध्ययन, अर्थशास्त्र के माध्यम से सरल हो जाता है। शक्ति एवं प्रभुक्त के उपयोग, मतदान, मानसिक आचरणों, सामाजिक-सांस्कृतिक अवधारणाओं से जुड़ी समस्याओं आदि का समाधान राजनीति विज्ञान एवं समाजशास्त्र से संभव होता है।
4. कम्प्यूटर विज्ञान:
मानव स्वभाव पर आधारित संज्ञानात्मक विज्ञान का उपयोग करके संवेद एवं अनुभूति को जाना जा सकता है।
5. विधि एवं अपराधशास्त्र:
अभियुक्त की पहचान, सजा का निर्धारण, गवाहों की मानसिकता, पश्चाताप का महत्व आदि को समझने के लिए मनोविज्ञान को विधि एवं अपराधशास्त्र की मदद लेनी होती है।
6. जनसंचार:
मानवीय घटनाओं के अभिप्रेरकों एवं संवेगों का ज्ञान जनसंचार के माध्यम से सरल हो जाता है।
7. संगीत एवं ललितकला:
कार्य निष्पादन तथा संगीत चिकित्सा आदि मानव हित में व्याधि निवारक माने जाते हैं।
8. वास्तुकला एवं अभियांत्रिकी:
भौतिक एवं मानसिक संतुष्टि, सौंदर्यशास्त्रीय विवेचन, सुरक्षा एवं अच्छी आदतों के संरक्षण में सहायता मिलती है। इसी प्रकार –
9. शिक्षा।
10. मनोरोग विज्ञान।
11. शिक्षा आदि से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए मनोवैज्ञानिकों को अन्य विद्या शाखा के लोगों के साथ सहयोग लाभप्रद होता है। जीवन की समस्याओं के निदान में मनोविज्ञान के विभव को अधिक-अधिक महत्व दिया जा रहा है। इस संबंध में संचार सधानों की भूमिका महत्वपूर्ण है। विद्यालयों, चिकित्सालयों, उद्योगों, काराग़ारों, व्यावसायिक संगठनों तथा निजी अभ्यास में मनोवैज्ञानिक परामर्श से काफी हायता मिलती है।
दूसरों के लिए समाज-सेवा प्रदान करने में विद्या शाखाओं की सहयोग सार्थक प्रतीत होती है। अर्थात् मनोविज्ञान मात्र एक विषय के रूप में हमारे मन की उत्सुकताओं को ही नहीं संतुष्ट करता है बल्कि यह अनेक प्रकार की समस्याओं का समाधान भी करता है। शिक्षा, स्वास्थ, पर्यावरण, समाजिक न्याय, महिला विकास, अंर्तसमूह संबंध आदि समस्याओं का समाधान यह किसी अन्य विद्या शाखा के सहयोग से करता है।
प्रश्न 5.
अंतर कीजिए (अ) मनोवैज्ञानिक एवं मनोरोग विज्ञानी तथा (ब) परामर्शदाता एवं नैदानिक मनोवैज्ञानिक में।
उत्तर:
(अ) मनोवैज्ञानिक एव मनोरोग विज्ञानी में अन्तर-मनोवैज्ञानिक लोगों के अनुभवों का अध्ययन करके उत्पन्न समस्याओं का निदान ढूँढता है। मनोवैज्ञानिक व्यवहार एवं अनुभव की व्याख्या से ऐसी अभिनतियों को अनेक तरीकों से कम करने का प्रयास करते हैं। आत्म परावर्तन, व्यक्तिपरकता, वैज्ञानिक विशलेषण आदि को समझ का आधार माना जाता है। मनोवैज्ञानिकों ने अधिगम, स्मृति, अवधान, प्रत्यक्षण, अभिप्रेरणा एवं संवेग आदि के सिद्धान्तों को विकसित किया है तथा सार्थक प्रगति की है। मनोवैज्ञानिक गोचरों के विषय में सिद्धांत विकसित करता है।
मनोवैज्ञानिक व्यक्तिगत समस्याओं एवं जीवन-वृति योजना के विषय में अपनी सलाह देते हैं। मनोवैज्ञानिक जैविक, शिक्षा, क्रीड़ा, औद्योगिक, विद्यालय आदि से संबंधित अनुसंधान और अनुप्रयोग का अध्ययन कर प्राप्त परिणाम से मानव हित में कार्य करता है। मनोवैज्ञानिक कारणपरक प्रतिरूपों को खोजते हैं।
मनोरोग विज्ञानी-मनोवैज्ञानिक व्यतिक्रमों कारणों, उपचारों तथा उनसे बचाव का अध्ययन करते हैं। मनोरोग विज्ञानी के पास चिकित्सा विज्ञान की उपाधि होती है जो मनोवैज्ञानिक व्यतिक्रम के निदान हेतु वर्षों का विशष्ट प्रशिक्षण प्राप्त किए हुए होते है। मनोरोग विज्ञानी ही दवाइयों का सूझाव दे सकता है तथा विद्युत आघात उपचार प्रदान कर सकता है।
(ब) परामर्शदाता एवं नैदानिक मनोवैज्ञातिक में अन्तर-समाज सेवा प्रदान करने में मनोवैज्ञान के विविध सिद्धांतों की जानकारी रखनेवाले विभिन्न परिस्थितियों से उत्पन्न समस्याओं के सफल निदान हेतु अपने अनुभव के आधार पर परामर्श देते हैं। विद्यालयों, चिकित्सालयों, उद्योगों, कारागारों, व्यावसायिक संगठनों, सैन्य प्रतिष्ठानों तथा प्राइवेट प्रैक्टिस में परामर्शदाता के रूप में जहाँ वे लोगों को अपने क्षेत्र में समस्याओं के समाधान में सहायता करते हैं।
परामर्शदाता मात्र सलाह देता है न कि स्वयं निदान मे जुट जाता है। परामर्श पाने वाले परामर्शदाता के परामर्श के प्रति सकारात्मक तथा संतुलित समझ से रक्षात्मक व्यवहार करते हैं। अर्थात् परामर्शदाता मात्र सलाहकार होता है वह किसी को बाध्य नहीं करता है।
दूसरी ओर नैदानिक मनोविज्ञानिक व्यवहारिक समस्या वाले रोगियों की सहायता करने में विशिष्टता रखते हैं। नैदानिक मनोवैज्ञानिक अनेक मानसिक व्यतिक्रमों तथा दुश्चिता, भय या कार्यस्थल के दबावों के लिए चिकित्सा प्रदान करते हैं। रोगियों की दशाओं का अध्ययन के लिए ये उनका साक्षात्कार करते हैं। उपचार, पुनर्वास, जीविकोपार्जन आदि क्षेत्रों में ये मनोवैज्ञानिक विधियों का उपयोग करते हैं। नैदानिक मनोवैज्ञानिक दवाइयों का सुझाव, विद्युत आघात उपचार आदि में हाथ बँटना नहीं चहाता है।
प्रश्न 6.
दैनंदिन जीवन के कुछ क्षेत्रों का वर्णन कीजिए जहाँ मनोविज्ञान की समझ को अभ्यास रूप में लाया जा सके।
उत्तर:
मनोविज्ञान का ज्ञान, हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन में बहुत ही उपयोगी है तथा व्यक्तिगत एवं सामाजिक दुष्टि से भी लाभप्रद है। मनोविज्ञान मात्र किसी एक विषय के रूप में हमारे मन की उत्सुकताओं को ही नहीं संतुष्ट करता है बल्कि यह एक ऐसा विषय है जो अनेक प्रकार की समस्याओं का समाधान करता है।
(क) व्यक्तिगत क्षेत्र में किसी युवा लकड़ी का अपने शराबी पिता से सामना करने हेतु मनोविज्ञान की समझ उपयोगी होती है। इसी प्रकार किसी माँ का अपने समस्याग्रस्त बच्चों के दिल में आशा और हिम्मत की भावना जगाने में मनोविज्ञान के सिद्धांत का प्रयोग किया जाना चाहिए।
(ख) पारिवारिक पृष्ठभूमि में:
परिवार के सभी सदस्यों के किसी परिवारिक समस्या के समाधान हेतु विचार-विमर्श के क्रम में उत्पन्न उलझन को संवाद एवं अंत:क्रिया की कमी का अभास कराकर खुशनुमा स्थिति उत्पन्न करने में मनोविज्ञान की सहायता ली जा सकती है।
(ग) समुदायिक परिवेश में आतंकवादी समूह को अनैतिक कार्यों के प्रति घृणा उत्पन्न करना, सामाजिक रूप से एकांतिक होने से बचने की प्रेरणा देना मनोविज्ञान के ज्ञान से संभव हो सकता है।
(घ) राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय विमाओं वाली समस्या:
शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, सामाजिक न्याय, महिला विकास, अंतर्समूह संबंध, सीमा युद्ध, खेल प्रतियोगिता जैसी स्थितियों के कारण उत्पन्न विवाद या समस्याओं को सुलझाने में मनोवैज्ञानिक पद्धति सुपरिणामी सिद्ध होती है। इस श्रेणी की समस्याओं के कारण अस्वस्थ चिंतन, अपने प्रति ऋणात्मक प्रवृत्ति तथा व्यवहार की आवांछित शैली आदि का पाया जाना है। इनका समाधान राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक सुधार तथा वैयक्तिक स्तर पर हस्तक्षेप आदि में अन्तर लाकर संभव होता है।
(ड.) जीवन की समस्याओं का निदान:
मनोवैज्ञानिक लोगों के गुणात्मक रूप से अच्छे जीवन के लिए हस्तक्षेपी कार्यक्रमों की अभिकल्पना एवं संचालन में सक्रिय भूमिका का निर्वहन करते हैं। समाजिक परिवर्तन तथा विकास, जनसंख्या विस्फोट, गरीबी का अभिशाप, सुनामी लहर का कहर, हिंसा, लूटपाट, बलात्कार, असंख्य समस्याओं से ग्रसित मानव को मनोविज्ञान का ज्ञान ही सही रास्ता बता सकता है।
(च) समाज-सेवा:
दूसरों के लिए समाज सेवा प्रदान करने की प्रेरणा तथा साधन या सिद्धांत मनोविज्ञान के ज्ञान से ही संभव हो पाता है। मनोविज्ञान के सिद्धांत एवं विधियों की सही जानकारी से ही हम दूसरों के दुख का कारण और निदान पा सकते हैं । रक्षात्मक व्यवहार, सर्वप्रिय आदतें, ‘बहुजन हिताय,बहुजन सुखाय’ का सुविचार सकारात्मक कार्य प्रणाली, संतुलित समझ आदि मनोविज्ञान की ही देन है।
प्रश्न 7.
पर्यावरण के अनुकूल मित्रवत व्यावहार को किस प्रकार उस क्षेत्र में ज्ञान द्वारा बढ़ाया जा सकता है?
उत्तर:
तापमान, आर्द्रता, प्रदूषण तथा प्राकृतिक आपदा पर्यावरण एवं मानव के लिए अहितकारी स्थिति उत्पन्न कर देते हैं। इस दुष्प्रभाव के कारण के रूप में उत्सर्ग प्रबन्धन, जनसंख्या “विस्फोट, ऊर्जा संरक्षण, वन-विनाश, प्राकृतिक संसाधनों का अनुपयोगी दोहन तथा समुदायिक संसाधनों का उपयोग आदि जुड़े हैं जो मानव व्यवहार के प्रकार्य होते हैं।
पर्यावरण अनुकूल मित्रवत व्यवहार को बढ़ाने के लिए मनोवैज्ञानिक अनुसंधान का सार्थक अध्ययन करना उपयोगी होता है। ज्ञान है कि –
- मनोवैज्ञानिक व्यतिक्रमों के निदान एवं बचाव से संबंधित होते हैं। संसार में हमारी अंत:क्रियाएँ एवं अनुभव एक व्यवस्था के रूप में गतिमान होकर संगठित होते हैं जो विविध प्रकार की मानसिक प्रक्रियाओं के घटित होने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
- मानव समुदाय मे क्यों और कैसे समुदायों में लोग एक-दूसरे की कठिनाई के समय सहायता करते हैं तथा त्याग करते हैं।
- यदि हम किसी कार्यकर्ता से चाहते हैं कि अपने विगत कार्य से अच्छा कार्य करे तो उसे उत्साहित करना होता है।
- फ्रायड ने मानव व्यवहार को अचेतन इच्छाओं एवं द्वन्द्वों का गतिशील प्रदर्शन बताया। मनोविशलेषण को उन्होंने एक पद्धति के रूप में स्थापित किया।
- मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों की सहायता से लोगों को समस्याओं के प्रति दक्षतापूर्वक सामना करने योग्य बनाया है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि मानव अर्जित ज्ञान भाईचारा, सहिष्णुता, विनम्रता, सहभागिता आदि का पाठ पढ़ाकर पर्यावरण को अपने अनुकूल बनाया जा सकता है। उदाहरणस्वरूप जनसंख्या विस्फोट पर नियंत्रण लाकर बेरोजगारी, आंतकवाद, असंतोष, शिक्षा भुखमरी आदि दोषों पर काबू पाया जा सकता है। मनोविज्ञान के रूप में अनुसंसाधन, अनुप्रयोग, प्रकार्यवाद, व्यवहारवाद, बुद्धि परीक्षण, मानववादी सिद्धांत निर्णयन, आर्थिक संतुलन आदि का समुचित अध्ययन के पश्चात् कोई भी मानव पर्यावरण के स्वभाव और महत्व को समझने लगेगा तथा पर्यावरण को अपनी जीवन-शैली के अनुकूल बनाये रखने में समर्थ हो जायगा।
प्राकृतिक आपदा को यदि आधार माना जाय तो मानव की कराह को सांत्वना, सहयोग, साधना एवं सहकार्यिता के द्वारा कम किया जा सकता है। किसी भी क्षेत्र में मानवीय व्यवहार के माध्यम से पर्यावरण को संतुलित बनाये रखना संभव होता है।
प्रश्न 8.
अपराध जैसी महत्त्वपूर्ण सामाजिक समस्या का समाधान खोजने में सहायता करने के लिए आपे अनुसार मनोविज्ञान की कौन-सी शाखा सबसे उपयुक्त है। क्षेत्र की पहचान कीजिए एवं उस क्षेत्र के कार्य करने वाले मनोवैज्ञानिकों के सरोकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मनोविज्ञान की प्रत्येक शाखा का सीधा संबंध मानवीय क्रियाकलापों से जुड़ा हुआ है। मनोविज्ञान प्रत्येक क्षेत्र में मानवीय समस्याओं की खोज करता है तथा उनके निदान का उपाय बतलाता है। अपराध जैसी महत्त्वपूर्ण सामाजिक समस्या का समाधान की खोज में सहायता करने के लिए विकासात्मक मनोविज्ञान का अध्ययन एवं उपयोग सर्वाधिक उपयुक्त है। विकासात्मक मनोविज्ञान सम्पूर्ण मानव-जीवन के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करता है।
भौतिक, समाजिक एवं मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों का अध्ययन करके कारण, परणिाम और सरल निदान की खोज करता है। जो हम हैं वह कैसे हुआ ? बच्चों एवं किशोरों के विकास के साथ-साथ यह वयस्कों एवं काल-प्रभावक विषय में उपयोगी सूचना देता है। वे जैविक समाजिक सांस्कृतिक तथा पर्यावरणीय कारकों जो मनोवैज्ञानिक विशेषताओं (बुद्धि, संज्ञान, संवेग, मिजाज, नैतिकता एवं सामाजिक संबंध) को प्रभावित करते है। यह मनुष्य की संवृद्धि एवं विकास के लिए अन्य शाखाओं से मिलकर कार्य करता है।
विधि एवं अपराधशास्त्र से जुड़कर विकासात्मक मनोविज्ञान अपराध का स्वरूप, अपराधी की छवि, अधिवक्ता का कर्तव्य, गवाहों की प्राथमिकता, न्याय अथवा दंड का आधार से संबधित विभिन्न कारकों की खोज करके अपराध नियंत्रण में सहयोग करता है। दुर्घटना, शीतयुद्ध, गली की लड़ाई, हत्या, बलात्कार, झूठ, पश्चाताप, उम्रकैद, फाँसी, आर्थिक दण्ड, अवहेलना, बहिष्कार जैसी विधियों के द्वारा अपराध को नष्ट करने का सहास जुटाता है। विधी व्यवस्था एवं अपराध नियंत्रण से जुड़े निम्नांकित प्रश्नों के सही उत्तर बतलाने का सफल प्रयास करता है –
- अपराध क्यों और कैसे किया गया?
- गवाही में कितनी सत्यता है?
- जूरी के निर्णयों पर किसका अंकुश है?
- क्या उपराधी अपनी करनी पर पछता रहा है?
- क्या दिया गया निर्णय या दंड अपराधी की प्रवृति को बदल पायेगा?
अपराध नियंत्रण से जुड़ी सभी संभावनाओं की खोज करने तथा भविष्य में उसके विनाश की स्थिति उत्पन्न करने में मनोवैज्ञानिक अनुसंधान काफी उपयोगी सिद्ध हुए हैं।
Bihar Board Class 11 Psychology मनोविज्ञान क्या है? Additional Important Questions and Answers
अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
अनुभव किससे प्रभावित होता है?
उत्तर:
अनुभव, अनुभवकर्ता की आंतरिक एवं बाह्य दशाओं से प्रभावित होते हैं।
प्रश्न 2.
व्यवहार की विशिष्टताएँ क्या हैं?
उत्तर:
व्यवहार क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं के प्रति किया गया आचरण होता है जो सामान्य अथवा जटिल, लघुकालिक या दीर्घकालिक तथा प्रकट या अप्रकट कुछ भी हो सकता है।
प्रश्न 3.
मनोविज्ञान की प्रथम प्रयोगशाला कब और कहाँ स्थापित किया गया था?
उत्तर:
सन् 1879 में विलहम वुण्ट ने लिपजिंग, जर्मनी में प्रथम मनोविज्ञान प्रयोगशाला स्थापित किया था।
प्रश्न 4.
मनोविज्ञान क्या है?
उत्तर:
मनोविज्ञान एक विशिष्ट विद्या शाखा है जो प्राकृतिक विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान के रूप में मानवीय व्यवहारों को नियंत्रित रखता है।
प्रश्न 5.
मानसिक प्रक्रिया क्या है?
उत्तर:
मानवीय चेतना के रूप मे अनुभव करने वाल व्यक्ति के द्वारा प्राप्त आंतरिक ज्ञान का अनुप्रयोग मानसिक क्रिया मानी जाती है।
प्रश्न 6.
मानसिक क्रियाओं के घटित होने के लिए कौन उत्तदायी है?
उत्तर:
संसार में हमारी अंतःक्रियाएँ एवं अनुभव एक व्यवस्था के रूप में गतिमान होकर संगठित होते हैं जो विविध प्रकार की मानसिक प्रक्रियाओं के घटित होने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
प्रश्न 7.
व्यवहारवाद से संबंधित पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर:
जॉन. बी. वाटसन ने व्यवहारवाद पुस्तक लिखी जिससे व्यवहारवाद की नींव पड़ी।
प्रश्न 8.
किन-किन मनोवैज्ञानिकों को नोबल पुरस्कार मिला?
उत्तर:
- कोनराड लारेंज-1973
- हर्ट साइमन-1978
- डेविड ह्यूवल-1981
- रोजर स्पेरी-1981
- डेनियल कहनेमन-2002
- थॉमस शेलिंग-2005
प्रश्न 9.
गेस्टाल्ट मनोविज्ञान का उदय कब और कहाँ हुआ?
उत्तर:
सन् 1920 में जर्मनी में गेस्टाल्ट मनोविज्ञान का उदय हुआ।
प्रश्न 10.
सिगमंड फ्रायड ने किस वाद का विकास किया?
उत्तर:
सिगमंड फ्रायड ने मनोविश्लेषवाद का विकास सन् 1900 में किया।
प्रश्न 11.
NAOP से क्या बोध होता है?
उत्तर:
NAOP = नेशनल एकेडमी ऑफ साइकोलॉजी इसकी स्थापना सन् 1989 में भारत में हुई।
प्रश्न 12.
NBRC क्या है? इसकी स्थापना कब, क्यों और कहाँ की गई?
उत्तर:
NBRC = नेशनल ब्रेन रिसर्च सेन्टर । इसकी स्थापना गुड़गाँव, हरियाणा में सन् 1997 में कि गई जहाँ मनोरोग की जाँच एवं चिकित्सा की जाती है।
प्रश्न 13.
राँची में हास्पीटल फॉर मेंटल डिजीजिज की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
सन् 1962 में राँची में हॉस्पीटल फॉर मेंटल डिजीजिज की स्थापना की गई थी।
प्रश्न 14.
मस्तिष्क विच्छेदन अनुसंधान के लिए किसे और कब नोबल पुरस्कार दिया गया था।
उत्तर:
सन् 1981 में रोजर स्पेरी को मस्तिष्क विच्छेदन अनुसंधान के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था।
प्रश्न 15.
क्या मन को मस्तिष्क के समान माना जा सकता है?
उत्तर:
मन मस्तिष्क के बिना नहीं रह सकता है, फिर भी मन एक पृथक सत्ता है।
प्रश्न 16.
मानसिक प्रतिमा से क्या समझते है?
उत्तर:
किसी व्यक्ति द्वारा अतार्किक भय को मिटाने हेतु निरन्तर अभ्यास करने के फलस्वरूप रोग प्रतिरोधक तंत्र को सशक्त करने में मन की भूमिका पर बल देती है।
प्रश्न 17.
मानव व्यवहार के लिए कोई मानक सिद्धांत होते हैं यानहीं?
उत्तर:
अच्छा कार्यफल पाने के लिए उत्साहित करना या दंड देना सर्वमान्य सिद्धांत नहीं है।
प्रश्न 18.
दो समान्य बोध धारणाएँ बतायें जो सदा सत्य नहीं होते?
उत्तर:
- पुरुष महिलाओं से अधिक बुद्धिमान होते हैं।
- पुरुषों की तुलना में महिलाएँ अधिक दुर्घटना करती हैं।
प्रश्न 19.
मनोवैज्ञानिकों को ज्योतिषयों, तांत्रिकों एवं हस्तरेखा विशारदों जैसा क्यों नही माना जाता है?
उत्तर:
क्योंकि मनोवैज्ञानिक प्रदत्तों पर आधारित बातों का व्यवस्थित अध्ययन करके मानव व्यवहार एवं अन्य मनोवैज्ञानिक गोचरों के विषय में सिद्धांत विकसित करता है।
प्रश्न 20.
प्रकार्यवादी उपागम का विकास क्यों और किसने किया?
उत्तर:
एक अमेरीकी मनोवैज्ञानिक विलियम जैम्स ने मानव मन को अध्ययन के लिए प्रकार्यवादी उपागम का विकास किया।
प्रश्न 21.
व्यवहारवाद से आप क्या समझते है?
उत्तर:
संरचनावाद की प्रतिक्रियास्वरूप विकसित नई धारा को व्यवहारवाद कहा जाता है जो मानव स्वभाव को इंगित करता है।
प्रश्न 22.
भारतीय मनोविज्ञान का आधुनिक काल कब प्रारंभ हुआ?
उत्तर:
भारतीय मनोविज्ञान का आधुनिक काल कोलकत्ता विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में सन् 1915 में प्रारंभ हुआ।
प्रश्न 23.
भारत में प्रथम मनोविज्ञान विभाग का प्रारम्भ कब हुआ?
उत्तर:
कोलकत्ता विश्वविद्यालय ने सन् 1916 में प्रथम मनोविज्ञान तथा 1938 में अनुप्रयुक्त मनोविज्ञान विभाग प्रारंभ किया गया।
प्रश्न 24.
डॉ. एन. एन. सेन गुप्ता की क्या देन थी?
उत्तर:
प्रोफेसर बोस ने ‘इंडियन साइकोएलिटिकल एसोसिएशन’ की स्थापना 1922 में की थी। उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय एवं पटना विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के अध्ययन एवं अनुसंधान के प्रारम्भिक केन्द्र आरंभ किया।
प्रश्न 25.
दुर्गानन्द सिन्हा की प्रसिद्धि का कारण बतायें।
उत्तर:
श्री सिन्हा ने भारत में सामाजिक विज्ञान के रूप में चार चरणों में आधुनिक मनोविज्ञान के इतिहास को खोजा है। सन् 1986 में इनकी एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई थी। भारत में मनोविज्ञान का
अनुप्रयोग अनेक व्यवसायिक क्षेत्रों में किया जाने लगा।
प्रश्न 26.
मनोविज्ञान की पाँच प्रमुख शाखाओं के नाम बतायें।
उत्तर:
- संज्ञानात्मक मनोविज्ञान
- जैविक मनोविज्ञान
- विकासात्मक मनाविज्ञान
- सामाजिक मनोविज्ञान
- पर्यावरणीय मनोविज्ञान
प्रश्न 27.
मनोविज्ञान के अनुसंधान एवं अनुप्रयोग को दिशा प्रदान करने वाले पाँच कथ्य लिखें।
उत्तर:
- मानव व्यवहार व्यक्तियों एवं वातारण के लक्षणों का एक प्रकार्य है।
- मानव व्यवहार उत्पन्न किया जा सकता है।
- मानव व्यवहार की समझ संस्कृति निर्मित होती है।
- मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुप्रयोग द्वारा मानव व्यवहार को नियंत्रित एवं परिवर्तित किया जा सकता है।
- मनोविज्ञान व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं के सिद्धान्तों का विकास करने का प्रयास करता है।
प्रश्न 28.
निम्नांकित नाम के साथ संबंधित प्रकाशन का नाम दें।
उत्तर:
- विलियम जेम्स
- जॉन वी. वाटसन
- सन. एम. सेनगुप्ता
- कार्ल रोजर्स
- वी. एफ. स्किनर
- अब्राहम मैस्लो
प्रश्न 29.
मानवतावादी परिदृश्य ने मानव स्वभाव को कैसा बताया?
उत्तर:
मानवतावादी परिदृश्य ने मानव स्वाभव को एक धनात्मक विचार बताया जिसके अनुसार व्यवहावाद, वातारण की दशाओं से निर्धारित व्यवहार पर बल देता है।
प्रश्न 30.
संज्ञानात्मक परिदृश्य को स्पष्ट करें।
उत्तर:
गेस्टाल्ट उपागम के विविध पक्ष तथा संरचनावाद के पक्ष संयुक्त होकर संज्ञानात्मक परिदृश्य का विकास करते हैं जो इस बात पर केन्द्रित होते हैं कि हम दुनिया को कैसे जानते हैं।
प्रश्न 31.
निर्मितावाद किसे कहते हैं?
उत्तर:
मन की सक्रिय रचना तथा मानव मन के विकास से संबंधित विचारधारा को निर्मितावाद कहते हैं।
प्रश्न 32.
मनोविज्ञान से जुड़ी पाँच विद्या शाखाओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
- दर्शनशास्त्र
- अर्थशास्त्र
- आयुर्विज्ञान
- कम्प्यूटर विज्ञान तथा
- जन-संचार
प्रश्न 33.
उपबोधन मनोवैज्ञानिक क्या करते हैं?
उत्तर:
एक उपबोधन मनोवैज्ञानिक व्यावसायिक पुनर्वास कार्यक्रमों अथवा व्यावसायिक चयन में सहायता करते हैं। ये पब्लिक एजेन्सियों के लिए कार्य करते हैं जिसमें मानसिक स्वास्थ केन्द्र, चिकित्सालय, विद्यालय आदि जुड़े होते हैं।
प्रश्न 34.
मनोवैज्ञानिकों के महत्त्वपूर्ण कार्य क्या हैं?
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक लोगों के गुणात्मक रूप से अच्छे जीवन के लिए हस्तक्षेपी कार्यक्रमों की अभिकल्पना एवं संचारलन में सक्रिय भूमिका का निर्वहन करते हैं।
प्रश्न 35.
मनोवैज्ञानिक किन क्षेत्रों में परामर्शदाता के रूप में कार्य करते हैं?
उत्तर:
विद्यालयों, चिकित्सालयों उद्योगों, कारागारों, व्यावसायिक संगठनों, सैन्य प्रतिष्ठानों तथा प्राइवेट प्रैक्टिस में परामर्शदाता के रूप में समस्या समाधान के लिए सरल युक्ति बताते हैं।
प्रश्न 36.
वह कौन-सा कार्य है जिसे मनोरोग विज्ञानी कर सकते हैं, किन्तु नैदानिक। मनोरोग वैज्ञानिक नहीं कर सकते हैं?
उत्तर:
मनोरोग विज्ञानी दवाइयों का सुझाव दे सकता है तथा विधुत आघात उपचार प्रदान कर सकता है जबकि नैदानिक मनोवैज्ञानिक ऐसा नहीं कर सकते हैं।
प्रश्न 37.
विद्यालय मनोविज्ञान का महत्व बतायें।
उत्तर:
बच्चों के बौद्धिक, सामाजिक एवं सांवेगिक विकास पर ध्यान केन्द्रित करके मनोविज्ञान के ज्ञान का स्कूल परिवेश में अनुप्रयोग करते हैं।
प्रश्न 38.
क्रीड़ा मनोविज्ञान का प्रमुख कार्य क्या हैं?
उत्तर:
क्रीड़ा मनोविज्ञान क्रीड़ा निष्पादन का अभिप्रेरण स्तर बढ़ाकर मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों द्वारा सुधार लाने का प्रयास करता है।
प्रश्न 39.
मनोविज्ञान की पाँच उद्भुत शाखाएँ कौन-कौन हैं?
उत्तर:
- वैमानिकी
- सैन्य
- महिल
- राजनैतिक तथा
- सामुदायिक मनोविज्ञान
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
सिद्ध करें कि मनोविज्ञान एक सामाजिक विज्ञान के रूप में अपनाया जाने लगा है।
उत्तर:
मनोविज्ञान मनुष्यों को समाजिक प्राणी मानते हुए उसके व्यवहार का अध्ययन उसके सामाजिक-सांस्कृति संदर्भो में करना चाहता है। मनोविज्ञान एक सामाजिक विज्ञान है जो व्यक्तियों एवं समुदायों पर उनके सामाजिक सांस्कृतिक एवं भौतिक वातारण के संदर्भ में ध्यान केन्द्रित करता है। जटिल सामाजिक एवं सांस्कृतिक दशाओं में रहने वाले व्यक्तियों के स्वाभाव, अनुभव एवं मानसिक प्रक्रियाओं के कुछ असमानता, कुछ नियमितता एवं व्यवहार में अंतर पाना स्वाभाविक है।
मनोवैज्ञानिक भाँति-भाँति के लोगों में दया, सहयोग, घृणा, त्याग, दान जैसी प्रवृति, को देखता परखता है। मनोविज्ञान अपने प्रमुख लक्षण के रूप में जानना चहता है कि क्यों और कैसे समुदायों में लोग एक-दूसरे की कठिनाई के समय सहायता करते हैं तथा त्याग करते हैं। मनोविज्ञान समाज की सोच के विपरीत रुख पर भी ध्यान देता है जिसमें लोग समान परीस्थितियों में असामाजिक हो जाता है तथा विपदा में लुटने तथा शोषण करने में संलग्न हो जाते हैं। अर्थात् मनोविज्ञान मानव व्यवहार एवं अनुभव का अध्ययन उनके समाज तथा संस्कृति को ध्यान में रखते हुए पुरी करता है। समाज की संरचना, प्रथाएँ, लक्षणों, कुप्रथाओं, परम्परागत नियमों आदि का अध्ययन करके उन्नत समाज की कामना करता है।
प्रश्न 2.
प्रश्नावली सर्वेक्षण का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
प्रश्नावली सूचना प्राप्त करने की सबसे प्रचलित अल्प-लागत वाली विधि है इसमें पूर्व-निर्धारित प्रश्नों का समुच्चय होता है। प्रतिक्रिया दात तो प्रश्न को पढ़ता है और कागज पर उत्तर देता है इसमें दो प्रकार के प्रश्न होते है।
- मुक्त-मुक्त प्रश्न में प्रतिक्रिया द्वारा कुछ भी उत्तर दे सकता है जो वह ठीक समझता है।
- अमुक्त-इसके प्रश्न तथा उसके उत्तर दिये रहते हैं तथा प्रतिक्रियादाता को सही उत्तर चुनना पड़ता है।
- प्रश्नावली का उपयोग पृष्ठभूमी संबंधी एवं जनांकिकीय सूचना, अभिवृति एवं मत व्यक्ति की प्रत्याशाओं एवं आकांक्षाओं की जानकारी
- के लिए किया जाता है कभी-कभी सर्वेक्षण डाक द्वारा प्रश्नावाली भेजकर भी किया जाता है।
प्रश्न 3.
मन एवं व्यवहार की समझ की व्याख्या करें।
उत्तर:
मन एवं व्यवहार की समझ लिए तंत्रिका वैज्ञानिक तथा भौतिकविदों की खोज, प्रयोग एवं उदाहरण, खोज एवं निष्कर्ष का समुचित अध्ययन आवश्यक है। भावपरक तंत्रिका विज्ञान के अनुसार मन एवं व्यवहार में सम्बंध है। यह भी सत्य कि मन मस्तिष्क के बिना नहीं रह सकता, फिर भी मन एक पृथक सत्ता है। धनात्मक चाक्षुषीय तकनीकों तथा धनात्मक संवेगों की अनुभूतियों द्वारा शारीरिक प्रक्रियाओं में सार्थक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा पाया गया है किसी दुर्घटना में एक व्यक्ति मस्तिष्क के किसी भाग की क्षतिग्रस्तता का शिकार हुआ था, परन्तु उसका मन बिल्कुल सही था। बाँह खो देने वाला व्यक्ति सामने रखी वस्तु को उठा लेने के प्रयास में बाँह को हिलाने लगता है।
उसके व्यवहार में कोई मौलिक अन्तर नहीं देखा जाता हैं। मस्तिष्क अघात में प्रभावित व्यक्ति अभिभावकों को बिना पहचाने पाखंडी तक कह डालता है। आर्निश नामक मनोवैज्ञानिक ने मानसिक प्रतिमा उदय के माध्यम से रोगियों को गलत सूचना देकर उसे आराम पहुँचाने में सफल हुआ। मनोविज्ञान अब मन और व्यवहार की सही समझ पाकर रोग प्रतिरोधक तंत्र को सशक्त बनाने में सफल हो रहे हैं । अर्थात् मन और व्यवहार को मनोवैज्ञानिक विधियों द्वारा बदला जा सकता है। परिस्थितियों में अंतर लाकर मनुष्य के मन को बिगाड़ना या संभालना संभव है जिसके कारण उसके व्यवहार में भी अन्तर आ जाता है।
प्रश्न 4.
मनोविज्ञान विद्या शाखा की प्रसिद्ध धारणाएँ क्या हैं?
उत्तर:
मनोविज्ञान को ज्योतिषियों, तांत्रिकों एवं हस्तरेखा विशारदों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि मनोवैज्ञानिक प्रदत्तों पर आधारित सूचनाओं का व्यवस्थित अध्ययन करने के बाद ही मानव व्यवहार एवं अन्य मनोवैज्ञानिक गोचरों के विषय में सिद्धांत विकसित करता है। मनोवैज्ञानिक का मानना है कि मानव व्यवहार की समान्य बोध आधारित व्याख्याएँ अंधकार में तीर चलाने जैसी होती है। उदाहरणार्थ, निम्नांकित समझ सही और गलत दोनों हो सकती हैं
- उत्साहित करने पर कार्यकर्ता अधिक काम करता है।
- छड़ी प्रयोग द्वारा आलसी को सक्रिय बनाया जा सकता है।
- घनिष्ठ मित्र के दूर चले जाने पर मित्र पछताता है।
मनोवैज्ञानिक ड्वेक की खोज के अनुसार मनोविज्ञान द्वारा उत्पादित वैज्ञानिक ज्ञान सामान्य , बोध के प्रायः विरुद्ध होता है। उन्होंने असफल छात्रों को समझाने का प्रयास किया था –
- पलायन के बदले प्रयास की कमी मानी जाती है।
- असफलता का कारण प्रयास में कमी मानी जाती है।
- अच्छा अभ्यास करते रहने से अच्छा निष्पादन बढ़ाया जा सकता है।
इस प्रकार मनोविज्ञान विद्या शाखा की प्रसिद्ध धारणाएँ निम्न रूप में संकलित किया जा सकता है –
- मानव व्यवहार से संबंधित व्यक्तिपरक सिद्धान्त होते हैं।
- मनोविज्ञान एक विज्ञान के रूप में व्यवहार के स्वरूप को देखता है जिसका पूर्व कथन किया जा सके न कि घटित होने के पश्चात की गई व्याख्या का ।
- मानव व्यवहार की समान्य बोध पर अधारित व्याख्याएँ अंधकार में तीर चलाने जैसी हैं जिसकी व्याख्या करना सहज नहीं होता है।
- मनोविज्ञान द्वारा उत्पादित वैज्ञानिक ज्ञान सामान्य बोध के प्रायः विरुद्ध होता है।
- सत्य प्रतीत होने वाली सामान्य बोध धारणाएँ गलत भी हो सकती हैं।
- मनोवैज्ञानिक सत्य सूचनाओं के आधार पर कोई निर्णय लेता है।
प्रश्न 5.
गेस्टाल्ट मनोविज्ञान क्या है?
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक वुण्ट के संरचनावाद के विरुद्ध अपनायी जाने वाली नयी धारा गेस्टाल्ट मनोविज्ञान के रूप में प्रचलित हुआ । इसके अनुसार जब हम दुनिया को देखते हैं तो हमारा प्रत्यक्षित अनुभव प्रत्यक्षण के अवयवों के समस्त भोग से अधिक होता है। अनुभव समग्रतावादी होता है। गेस्टाल्ट मनोविज्ञान का प्रमुख आधार मन के अवयवों की अवहेलना करते हुए प्रत्याक्षित अनुभवों के संगठन पर अधिक ध्यान देना है। उदाहरणार्थ, बल्बों की रोशनी को देखकर प्रकाश की गति का अनुभव होना अथवा चलचित्र देखने के क्रम में स्थिर चित्र को गतिमान मान लेते हैं।
प्रश्न 6.
समसामयिक मनोविज्ञान का सामान्य परिचय दें।
उत्तर:
समसामयिक मनोविज्ञान बहुआयामी छवि के साथ लोकप्रिय हो चुका है। इसमें तरह-तरह के विचारों एवं सिद्धांतों के संग्रह एवं अनुप्रयोग की रुचि पाई जाती है। इसको कई उपागमों अथवा बहुविध विचारों द्वारा पहचाना जाता है। यह विभिन्न स्तरों पर व्यवहार की व्याख्या करके लोगो को अपनी कमी महसूस करने की प्रवृति जगाता है। इससे जुड़े मानवतावादी उपागम में यह क्षमता होती है कि मानव अपने कार्यों की पद्धति और परिणाम को सरलताप से समझ लेता है। प्रत्येक उपागम मानव प्रकार्य की जटिलताओं में अन्तदृष्टि प्रदान करता है। मनोवैज्ञानिक प्रकार्यों के लिए संज्ञानात्मक उपागम चिंतन प्रक्रियाओं को केन्द्रीय महत्व को मानता है।
प्रश्न 7.
अनुप्रयुक्त मनोविज्ञान से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सभी मनोविज्ञान अनुप्रयोग का विभव रखते हैं तथा स्वभाव से अनुप्रयुक्त होते हैं। अनुप्रयुक्त मनोविज्ञान हमें वह संदर्भ देता है जिनमें अनुसंधान से प्राप्त सिद्धान्तों एवं नियमों को सार्थक ढंग से प्रयोग में लाया जा सकता है। बहुत-से क्षेत्र जो पिछले दशकों में अनुसंधान केन्द्रित माने जाते थे, वे भी धीरे-धीरे अनुप्रयुक्त केन्द्रित होने लगे हैं। अनुप्रयुक्त मनोविज्ञान को मूल मनोविज्ञान भी माना जा सकता है। अनुप्रयुक्त मनोविज्ञान के महत्वपूर्ण घटक निम्नांकित हैं।
प्रश्न 8.
सामुदायिक मनोविज्ञान की उपयोगिता बनायें।
उत्तर:
सामुदायिक मनोविज्ञान की उपयोगिता समाज में उत्पन्न विभिन्न समस्याओं को सुलझाना है। मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना इसका प्रधान लक्ष्य है। मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित चिकित्सालयों, संस्थानों, सरकारी नीतियों का अध्ययन कर उचित परामर्श एवं सहायता प्रदान करना इनका प्रमुख कार्य है। ये औषधि, पुनर्वास, मनोचिकित्सा आदि से संबंधित कार्यकारी योजना बनाकर समाज हित के कार्य करते है। वयोवृद्धों अथवा विकलांगो की सहायता के लिए भवन, साधन से जुड़े कार्यक्रमों को नई दिशा प्रदान करना इनकी प्रधान रुचि होती है। समुदाय आधारित समस्या अथवा प्रथाओं का अध्ययन करते हुए पुनर्वास जैसे लाभकारी कार्य करके समाज को लाभ पहुंचाते हैं।
प्रश्न 9.
समाज मनोविज्ञान की परिभाषा दें।
उत्तर:
समाज मनोविज्ञान-मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति के व्यवहार तथा अनुभूति का अध्ययन सामाजिक परिस्थिति में किया जाता है। समाज मनोविज्ञान को एक ओर शुद्ध मनोविज्ञान (Pure Psychology) तथा दूसरी ओर व्यवहारिक मनोविज्ञान माना जाता है। शुद्ध मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक अध्ययन किये जाते हैं और प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर सिद्धांत नियम बनाये जाते हैं । व्यवहारिक मनोविज्ञान में शुद्ध मनोविज्ञान के नियमों का उपयोग भिन्न-भिन्न व्यवहारिक समस्याओं के समाधान के लिए किया जाता है। समाज मनोविज्ञान इन दोनों प्रकार के कार्यों को करता है। मनुष्य समाज में रहता है और कई रूपों में व्यवहार करता है।
एक ही मनुष्य कहीं आर्थिक मनुष्य के रूप में कहीं सामाजिक मनुष्य के रूपों में तो कहीं राजनैतिक मनुष्य के रूप में देखा जाता है। समाज मनोविज्ञान का संबंध सामाजिक मनुष्य से है। समाज में मनुष्य किस प्रकार दूसरे मनुष्य से प्रभावित होता है और अपने विचार से दूसरे के व्यवहार को किस प्रकार प्रभावित करता है, इसका अध्ययन समाज मनोविज्ञान करता है। एक शुद्ध मनोविज्ञान के रूप में समाज-मनोविज्ञान व्यक्ति के समाजिक परिस्थिति में होनेवाले व्यवहारों का अध्ययन करता है। भिन्न-भिन्न प्रकार के सिद्धान्तों तथा नियमों का निमार्ण करता है।
प्रश्न 10.
मनोविज्ञान की परिभाषा से जुड़े तीन प्रमुख पदों-(क) मानसिक प्रक्रियाएँ (ख) अनुभव और (ग) व्यवहार को स्पष्टतः समझाइये।
उत्तर:
(क) मानसिक प्रक्रियाएँ:
प्रक्रियाएँ सोच एवं चेतना के निकट का पद है। किसी समस्या का समाधान करने के क्रम में हम मानसिक प्रक्रियाओं का उपयोग करते हैं। मानसिक प्रक्रियाओं को मस्तिष्क की क्रियाओं से थोड़ा भिन्न माना गया है। ये दोनों एक-दूसरे पर आश्रित होते हैं। मस्तिष्क की क्रियाओं के स्तर पर मानसिक प्रक्रियाएँ परिलक्षित होती हैं। संसार में हमारी अंतः क्रियाएँ एवं अनुभव एक व्यवस्था के रूप में गतिमान होकर संगठित होते हुए तथा मिलकर मानसिक प्रक्रियाओं को सक्रिय बनाता है। हमारे अनुभव एवं मानसिक प्रक्रियाओं की चेतना कोशिकीय अथवा मस्तिष्क की क्रियाओं से बहुत अधिक होती है। मन और मस्तिष्क की क्रियाएँ दोनो मानसिक प्रक्रियाओं के निकट का पद है।
हमारा मन कैसे कार्य करता है? हम मानसिक क्षमताओं के अनुप्रयोग में कैसे सुधार ला सकते हैं? इन दोनों प्रश्नों का उत्तर पाने के क्रम में मानसिक प्रक्रियाओं के उपयोग की आवश्यकता होती है जिसके लिए मनोविज्ञानिक स्मरण करने, सीखने, जानने प्रत्यक्षण करने एवं अनेक अनुभूतियों में हम रुचि लेने लगते हैं। मानसिक प्रक्रिया हमारे अनुभव संबंधित आंतरिक प्रक्रिया होती है। जब हम किसी बात को जानने या उसका स्मरण करने के लिए चिंतन करते हैं तो समस्या के समाधान हेतु हम मानसिक प्रक्रियाओं का उपयोग करते हैं।
(ख) अनुभव:
पर्यावरण के प्रभाव में पड़कर काई व्यक्ति कैसा महसूस करता है यह उसका अनुभव माना जाता है। अनुभव स्वाभव से आत्मपरक होते हैं जो हमारी चेतना में रचा-बसा रहता है। अनुभव के स्वरूप को आंतरिक एवं बाह्य दशाओं के जटिल परिदृश्य का विश्लेषण करके समझा जा सकता है। अनुभव, अनुभवकर्ता के लिए आंतरिक होता है। अपने मित्र से मिलने की खुशी में कोई व्यक्ति वाहन के भीड़ से उत्पन्न गर्मी या कठिनाई को खुशी-खुशी झेल लेता है। नशीले पदार्थ से होने वाली समस्या क्षति का ज्ञान रखनेवाला व्यक्ति भी नशा करके खुश दिखाई देता है।
जब कोई योगी ध्यानावस्थित होता है तो वह चेतना के एक भिन्न धरातल पर पहुँचता है। भूख और कष्ट सहन के बाद भी उसे परमात्मा से कुछ पाने की खुशी मिलती है। रोमांस करते समय भी धनात्मक अनुभूतियों की प्रभाव अलग-अलग व्यक्ति को तरह-तरह के
अनुभव का आभास दिलाता है। घटा छा जाने पर कोई मस्काता है तो कोई नाचता है। सर्कस के झूला पर लटकने वाले व्यक्ति को संशय की दशा में रहने पर भी दर्शक मचलता है। अर्थात् असुविधा, सुविधा, खुशी-गम, हँसना-रोना सब अनुभवकर्ता की भवना, दशा स्थिति और स्वार्थ पर निर्भर करता है, जो उसका अनुभव माना जाता है। चोर की भरपूर पिटाई होते समय उसे कैसा महसूस होता है, यह चोर का अपना अनुभव माना जाता है । व्यक्तिपरकता मानव अनुभव का महत्त्वपूर्ण अंग है।
(ग) व्यवहार:
अनुक्रियाओं तथा प्रतिक्रियाओं के बीच पड़ा व्यक्ति कैसा आचरण करता है, यह उसका व्यवहार माना जाता है। काँटा चुभने पर पैर झटक लेने अथवा मुँह से आह की ध्वनि निकालना, उसका व्यवहार माना जा सकता है। परीक्षा में हृदय का धड़कना, अपनी ओर पत्थर का टुकड़ा आता देखकर पलकें बन्द कर लेना, धूप में बाहर निकलने पर माता-पिता के रोके जाने पर बच्चों का चेहरा तमतमा उठना आदि अलग-अलग व्यवहार के लक्षण प्रतित होते हैं । व्यवहार प्रकट या अप्रकट, सामान्य या जटिल, लघुकालीन या दीर्घकालीन कुछ भी हो सकता है। भय, क्रोध, मचलना, इठलाना, पछाताना, रोना, हँसना आदि व्यवहार के प्रत्यक्ष दर्शन माने जाते हैं।
व्यवहार के उद्दीपक (S) एवं अनुक्रिया (B) के मध्य साहचर्य के रूप में अध्ययन किया जो सकता है। उद्दीपक एक अनुक्रिया दोनों आंतरिक अथवा बाहम कुछ भी हो सकते हैं । मित्र के द्वारा पुस्तक लेकर नहीं लौटने पर आप मित्र के लिए कैसा व्यवहार प्रकट करते हैं। यह आपकी दशा पर निर्भर करता है।
प्रश्न 11.
प्रेक्षण से क्या तात्पर्य है इसके गुण-दोषों को संक्षेप मे वर्णन करें।
उत्तर:
प्रेक्षण का साधारण अर्थ है किसी व्यवहार या घटना को देखना किसी घटना को देखकर क्रमबद्ध रुप से उसका वर्णन कहलाता है।
गुण:
- यह विधि वस्तुनिष्ठ तथा अवैयक्तिक होता है।
- इसका प्रयोग बच्चे, बूढ़े, पशु, पक्षी सभी पर किया जा सकता है।
- इस विधि द्वारा संख्यात्मक परिणाम प्राप्त होता है।
- इसमें एक साथ कई व्यक्तियों का अध्ययन संभव है।
- इस विधि में पुनरावृति की विशेषता है।
दोष:
- इस विधि में श्रम एवं समय का व्यय होता है।
- प्रेक्षक के पूर्वाग्रह के कारण, गलती का डर रहता है।
- प्रयोगशाला की नित्रित परिस्थिति नहीं होने के कारण निष्कर्ष प्रभावित होता है।
प्रश्न 12.
मनोविज्ञान, एक बहुत पुरानी ज्ञान विद्या शाखा है फिर भी यह एक आधुनिक विज्ञान माना जाता है। क्यों?
उत्तर:
मनोविज्ञान व्यवहार, अनुभव एवं मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करने में सक्षम है। आत्म-परिवर्तन एवं आत्मज्ञान की भूमिका को मानव व्यवहार एवं अनुभव की व्याख्या करने वाला कारक माना जाता है। मनोविज्ञान, मानवीय दशाओं का अध्ययन करता है। मानवीय प्रक्रियाओं को वैज्ञानिक एवं वस्तुनिष्ठ बनाकर उनका विश्लेषण करना मनोविज्ञान का प्रधान लक्षण है।
मनोविज्ञान को आधुनिक विज्ञान मानने का प्रथम कारण सन् 1879 में जर्मनी में प्रथम प्रयोगशाला की स्थापना हुई जहाँ मानवीय व्यवहार से संबंधित तरह-तरह के प्रयोग किये जाते हैं। अब मनोविज्ञान के छात्रों को स्नातक विज्ञान की उपाधियाँ मिलने लगी है।
मस्तिष्क प्रतिभा तकनीक (S.M.R.I. तथा E.C.G.) से मस्तिष्क की क्रियाओं का अध्ययन करना, सूचना तकनीक के क्षेत्र में, मानव कम्प्यूटर अत:क्रिया तथा कृत्रिम बुद्धि का विकास संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं में मनोवैज्ञानिक ज्ञान के बिना संभव नहीं हो सकता है। इसी कारण अनेक मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक तथ्यों के अध्ययन में भौतिक एवं जैविक विज्ञान की विधियों का उपयोग किये जाने लगा है।
अब तो सांस्कृतिक विज्ञान को भी मनोविज्ञान के साथ रखा जाने लगा है। अनुसंधानकर्ता का लक्ष्य कारण-प्रभाव संबंध को समझकर व्यवहारपरक गोचरों की व्याख्या अत:क्रिया के रूप में करने की होती है। अंत:क्रिया व्यक्ति एवं उसके सामाजिक-सांस्कृति संदर्भो में घटित होती रहती है। अर्थात् मनोविज्ञान की दो समांतर धाराएँ मान्य हैं –
- एक विद्या शाखा के रूप में जो सामाजिक तथ्यों का अध्ययन करता है तथा
- एक आधुनिक विज्ञान के रूप में जो सांस्कृतिक विज्ञान तथा मस्तिष्क प्रतिभा के तकनीक पर आधारित होती है।
प्रश्न 13.
मनोविज्ञान को प्राकृतिक विज्ञान मानने का कारण स्पष्ट करें।
उत्तर:
आधुनिक मनोविज्ञान का विकास वैज्ञानिक विधियों के अनुप्रयोग से हुआ है। देकार्त (Descartes) से प्रभावित तथा बाद में भौतिकी में हुए विकास से मनोविज्ञान में परिकल्पनात्मक-निगमनात्मक प्रतिरूप का अनुसरण होने लगा। मनोवैज्ञानिकों ने अब अधिगम, स्मृति, अवधान, प्रत्यक्षण, अभिप्रेरण एवं संवेग आदि के सिद्धांतों को विज्ञान की तरह विकसित किया है। किसी गोचर की व्याखा हेतु सिद्धांत उपलब्ध होने पर वैज्ञानिक उन्नति हो सकती है।
वैज्ञानिक निगमन की परिकल्पना, परिकल्पना का परीक्षण, परिणामों अथवा निष्कर्षों की पहचान आदि वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग अब मनोविज्ञान में भी होने लगा है। विकासात्मक उपागम, जो जैव विज्ञान का एक प्रमुख अंग है, का उपयोग लगाव तथा आक्रोश जैसे विविध मनोविज्ञानिक गोचरों की व्याख्या करने में उपयोगी माना जाने लगा है। लक्ष्य और क्रमिक विधियों के कारण मनोविज्ञान को अब प्राकृतिक विज्ञान माना जाने लगा है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
दैनिक जीवन में मनोविज्ञान की उपयोगिता स्पष्ट करें।
उत्तर:
दैनिक जीवन में मनोविज्ञान की उपयोगिता-मनोविज्ञान ऐसा विषय है जो हमारे दैनिक जीवन की अनेक समस्या का समाधान करता है ये समस्याएँ व्यक्तिगत या पारिवारिक और बड़े समूह या राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय विमा वाली होती है शिक्षा, स्वास्थ, पर्यावरण आदि समस्या का समाधान राजनैतिक, आर्थिक पर हस्तक्षेप में परिवर्तन लाकर किए जाते हैं इनमें अधिकांश समस्या मनोविज्ञान होती है जिसका उदय हमारे अस्वस्थ चिंतन लोगों के प्रति अवांछित मनोवृति तथा व्यवहार की आवांछित शैली के कारण होता है।
बहुत से मनोविज्ञानिक लोगों के गुणात्मक रूप से अच्छे जीवन के लिए हस्तक्षेपी कार्यक्रम के संचालन में सक्रिय भूमिका का निर्वाहन करते हैं ये विविध परिस्थिति जैसे- विद्यालय, उद्योगों, सैन्य प्रतिष्ठान में परामर्शदाता के रूप में लोगों की समस्या का सामाधान करते हैं। मनोविज्ञान जनसंख्या, गरीबी, पर्यावरणीय गिरावट से संबंधित समस्या का भी समाधान करता है। मनोविज्ञान का ज्ञान हमारे व्यक्तिगत रूप से प्रतिदिन की समस्या का समाधान करता है हमें अपने विषय में सकारात्मक तथा संतुलित समझ रखनी चाहिए। मनोविज्ञान सिद्धांतों का उपयोग कर हम अपने अधिगम एवं स्मृति में सुधार कर अध्ययन की अच्छी आदत विकसित कर सकते हैं, इस प्रकार मनोविज्ञान का ज्ञान, हमारे दिन प्रतिदिन के जीवन मे बहुत उपयोगी है तथा व्यक्तिगत एवं सामाजिक दृष्टि से भी लाभप्रद है।
प्रश्न 2.
मनोविज्ञान की आधुनिक परिभाषा दें। तथा उसकी व्याख्या करें।
उत्तर:
मनोविज्ञान की आधुनिक परिभाषा-मनोविज्ञान की परिभाषा समयानुसार बदलती रही है। दार्शनिकों ने मनोविज्ञान को आत्मा का विज्ञान माना परंतु सार्थक परिणाम की प्राप्ति हो पाने से मनोविज्ञान की विषय वस्तु मन को रखा गया अर्थात् मनोविज्ञान को मन का विज्ञान माना गया। 1879 ई० में उण्ट ने मनोविज्ञान की परिभाषा इस प्रकार दी “मनोविज्ञान चेतन अनुभूति का विज्ञान है।” लेकिन 1912 में वाटसन ने उण्ट द्वारा दी गयी परिभाषा को अस्वीकारा। उन्होंने चेतन अनुभूति के स्थान पर प्राणी व्यवहार को विषय वस्तु माना।
वाटसन के अनुसार मनोविज्ञान की परिभाषा लोकप्रिय हुई। कुछ समय पश्चात् बैरोन ने मनोविज्ञान की परिभाषा इस प्रकार दी है-‘मनोविज्ञान व्यवहार तथा संज्ञात्मक प्रक्रियाओं का विज्ञान है।’ यह परिभाषा सर्वाधिक संतोषजनक एवं आधुनिक साबित हुई। – इसकी व्याख्या-बैरोन द्वारा दी गयी परिभाषा के विश्लेषण से कुछ प्रमुख तथ्य स्पष्ट हुई जो इस प्रकार है
- मनोविज्ञान एक विज्ञान है। जैसे-समर्थक विज्ञान, सामाजिक विज्ञान तथा व्यवहार परक विज्ञान।
- मनोविज्ञान प्राणी के व्यवहार का अध्ययन करता है। यह सूक्ष्म एवं वृद्ध प्राणी के व्यवहारों का अध्ययन करता है।
- मनोविज्ञान प्राणी के संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का अध्ययन करने वाला विज्ञान है अर्थात् सीखना, प्रत्यक्षीकरण अवधान, स्मरण, वृद्धि,चिंतन व्यक्तित्व आदि का अध्ययन करता है।
- मनोविज्ञान विषयगत विधि द्वारा प्राणि के संज्ञानात्मक व्यवहार एवं विदित प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है।
- मनोविज्ञान में प्राणी के व्यवहारों का अध्ययन अन्तनिरिक्षण विधि, प्रेक्षण विधि, प्रयोगात्मक आदि द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 3.
‘भारत में मनोविज्ञान का विकास’ से संबंधित एक संक्षिप्त निबंध लिखे। अथवा, भारत में मनोविज्ञान का स्तर क्या था और क्या है?
उत्तर:
मनोविज्ञान की जड़े दर्शनशास्त्र में होती हैं। भारतीय दार्शनिक परम्मरा के अनुसार मानसिक प्रक्रियाओं तथा मानव चेतन स्व, मन-शरीर के अनेक पहलू का अध्ययन सुलभ है। अनेक मानसिक प्रकार्य (संज्ञान, प्रत्यक्षण, भ्रम, अवधान, तर्कक आदि) भारतीय दर्शन के सिद्धांत से पूर्णतः आच्छादित हैं। दुर्भाग्य से भारतीय दर्शनिक परम्परा का सीधा प्रभाव आधुनिक मनोविज्ञान के विकास को उपलब्ध नहीं हो सका । भारतीय मनोविज्ञान का विकास पर पाश्चात्य मनोविज्ञान का प्रभुत्व माना गया । कई प्रयास किये जा रहे हैं जससे भारतीय मनोविज्ञान को स्वतंत्र अस्तित्व बताने का अवसर मिले।
भारतीय मनोविज्ञान का आधुनिक काल कोलकत्ता विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में 1915 में हुआ । यहाँ प्रयोगिक मनोविज्ञान के लिए प्रयोगशाला स्थापित किए गए, नया पाठ्यक्रम निर्धारित किया गया। सन् 1916 मे प्रथम मनोविज्ञान विभाग तथा 1938 में अनुप्रयुक्त मनोविज्ञान विभाग प्रारम्भ किया गया। डॉ. एन. एन. सेनगुप्ता अपने ज्ञान और प्रशिक्षण के कारण मनोविज्ञान के विकास में योगदान दिया। सन् 1922 में प्रोफेसर बोस ने ‘इंडियन साइकोएनेलिटिकल एसोसिएशन’ की स्थापना की। मैसूर और पटना में अनुसंधान केन्द्र प्रारम्भ किया। करीब 70 विश्वविद्यालय (उत्कल, भुवनेश्वर, इलाहाबाद, आदि) में मनोविज्ञान के पाठ्यक्रम चलाए गए।
प्रारम्भ में मनोविज्ञान भारत में एक सशक्त विद्या शाखा के रूप में विकसित हुआ। मनोविज्ञान अध्यापन, अनुसंधान तथा अनुप्रयोग के अनेक केन्द्र स्थापित किए गए। महान मनोविज्ञानिक दुर्गानन्द सिन्हा की पुस्तक ‘साइकोलॉजी इन ए वर्थ वर्ल्ड कम्पनी : दि इंडियन एक्सपीरियन्स’ सन् 1986 में प्रकाशित हुई । इस पुस्तक मे श्री सिन्हा ने भारत में सामाजिक विज्ञान के रूप में चार चरणों में आधुनिक मनोविज्ञान के इतिहास को खोजा है।
उनकी पुस्तक के अनुसार स्वंतत्रता प्राप्ति तक भारतीय मनोविज्ञान पूर्णतः पाश्चात्य देशों पर आश्रित रहा । सन् 1960 के बाद भारतीय मनोवैज्ञानिक स्वतंत्र अस्तित्व बनाने का प्रयास करने लगे। 1970 के अंतिम समय में देशज मनोविज्ञान का उदय हुआ। 1970 से अब तक मनोविज्ञान का विकास तेजी से हो रहा है। प्राचीन ग्रन्थों से मिली सूचनाओं के अधार पर मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों की रचना की जाने लगी। आज भारतीय मनोविज्ञान को सम्पूर्ण विश्व में एक अलग अस्तित्व के रूप में जाना जाने लगा। कठिन प्रयास से सार्थक परिणाम मिलने लगा। अब भारतीय मनोविज्ञान का अनुप्रयोग व्यवसाय, शिक्षा, बाल विकास, पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में होने लगा है। सूचना प्रौद्योगिकी भारतीय मनोविज्ञान की सहायता लेने लगा है।
प्रश्न 4.
दुर्गानन्द सिन्हा ने किन चार चरणों में आधुनिक मनोविज्ञान के इतिहास को खोजा है?
उत्तर:
पहला चरण – स्वतंत्रता प्राप्ति तक प्रयोगात्मक, मनोविश्लेषात्मक एवं मनोविज्ञानिक परीक्षण अनुसंधान पर आधारित तथ्यों के कारण पाश्चात्य देशों का मनोविज्ञान में विकास का लक्षण देखा गया।
दूसरा चरण – सन् 1960 तक भारतीय मनोविज्ञान में कई प्रमुख शाखाओं का उदय हुआ जिसमें पाश्चात्य मनोविज्ञान को भारतीय मनोविज्ञान के साथ जोड़कर परिणामी सिद्धांत निकाले गये।
तीसरा चरण – 1960 के बाद भारतीय समाज के लिए समस्या केन्द्रित अनुसंधानों द्वारा मानव हित के कार्य किया गया। इस समय भारतीय मनोवैज्ञानिक अपने सामाजिक संदर्भ में पाश्चात्य मनोविज्ञान पर अतिशय निर्भता का अनुभव किया जसे वे नहीं चाहते थे।
चौथा चरण – सन् 1970 के अंतिम समय में देशज मनोविज्ञान का उदय हुआ। सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूप से सार्थक ढाँचे को आधार मानकर मनोवैज्ञानिक समझ को बढ़ावा दिया जाने लगा। फलतः पारम्परिक भारतीय मनोविज्ञान पर आधारित उपागर्मों का विकास हुआ जो हमने प्राचीन ग्रन्थों एवं धर्मग्रन्थों से लिए थे।
आज नए अनुसंधान अध्ययन, जिसमें तंत्रिका-जैविक तथा स्वास्थ्य विज्ञान के अन्तरापृष्ठीय स्वरूप समाविष्ट हैं, किए जा रहे हैं।
प्रश्न 5.
कार्यरत मनोवैज्ञानिक से क्या अभिप्राय है? इनके पाँच प्रमुख क्षेत्रों की चर्चा करें।
उत्तर:
कार्यरत मनोविज्ञानिक से वैसे मनोवैज्ञानिकों का बोध होता है जो मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों की सहायता से लोगों को जीन से जुड़ी समस्याओं का दक्षतापूर्वक सामना करने के योग्य बनाने के लिए संवाद संचरण तथा आवश्यक प्रशिक्षण देने का काम करते हैं। कार्यरत मनोवैज्ञानिक के पाँच प्रमुख क्षेत्र हैं –
- नैदानिक
- उपबोधन
- सामुदायिक
- विद्यालय तथा
- संगठनात्मक
1. नैदानिक मनोवैज्ञानिक – इस श्रेणी के मनोवैज्ञानिक मानसिक व्यतिक्रमों तथा दुश्चिता, भय या कार्यस्थल के दबावों के लिए चिकित्सा प्रदान करने है । इसका काम रोगियों का साक्षात्कार और परीक्षण करके लाभकारी उपचार की व्यवस्था करना होता है। ये उपचार के साथ-साथ पुनर्वास एवं नौकरी पाने में भी सहायता करते हैं।
2. उपबोधन मनोवैज्ञानिक – इस श्रेणी के मनोवैज्ञानिक अभिप्रेरणात्मक एवं संवेगात्मक समस्याओं को उलझाने में अपना योगदान देते हैं। इसका प्रमुख कार्य क्षेत्र व्यावसायिक पुनर्वास कार्यक्रमों का सफल संचालन होता है। ये मानसिक स्वास्थ्य केन्द्र, चिकित्सालय, विद्यालय आदि के लिए विकासात्मक कार्य करते हैं।
3. सामुदायिक मनोवैज्ञानिक – इस श्रेणी के मनोवैज्ञानिक समुदायिक मानसिक स्वास्थ पर अधिक ध्यान देते हैं। औषधि पुनर्वास कार्यक्रम का संचालन, अशक्त (वृद्धा अथवा विकलांग) लोगों के लिए सार्थक कार्य करते हैं।
4. विद्यालय मनोवैज्ञानिक -इस श्रेणी के मनोवैज्ञानिक शैक्षिक व्यवस्था में कार्य करते हैं। परीक्षण और प्रशिक्षण के द्वारा ये छात्रों की समस्या को सुलझाते हैं। विद्यालय के लिए नीति निर्धारण, अभिभावक, अध्यापक तथा प्रशंसकों के बीच संवाद-संचरण द्वारा शैक्षिक प्रगति की योजना बनाते हैं।
5. संगठनात्मक मनोवैज्ञानिक – इस श्रेणी के मनोवैज्ञानिक किसी भी संगठन में अधिकारियों एवं कर्मचारियों के हित में सहायता प्रदान करते हैं। उचित परामर्श एवं सेवा के माध्यम से ये संबंधीत लोगों की दक्षता, कौशल, प्रबंधन आदि को उपयोगी स्तर तक बढ़ाने में सक्रिय भूमिका अदा करते हैं । मानव संसाधन विकास तथा संगठनात्मक विकास एवं परिवर्तन प्रबंधन कार्यक्रमों में विशिष्टता के साथ जुड़े होते हैं।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
बिहार में सर्वप्रथम मनोविज्ञान का विभाग कहाँ खोला गया था?
(a) नालंदा
(b) दरभंगा
(c) पटना
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) नालंदा
प्रश्न 2.
मनोविज्ञान का सर्वप्रथम मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला कब खोला गया था?
(a) 1879 ई० में
(b) 1885 ई० में
(c) 1890 ई० में
(d) 1900 ई० में
उत्तर:
(a) 1879 ई० में
प्रश्न 3.
मनोविश्लेषणवाद का उदय कब हुआ?
(a) 1879 ई० में
(b) 1890 ई० में
(c) 1900 ई० में
(d) 1905 ई० में
उत्तर:
(c) 1900 ई० में
प्रश्न 4.
व्यवहारवादी सम्प्रदाय का प्रतिपादन किसने किया?
(a) वरदाईमर
(b) वुण्ट
(c) विलियम जेम्स
(d) वाटसन
उत्तर:
(b) वुण्ट
प्रश्न 5.
गेस्टाल्टवाद की स्थापना किसने की थी?
(a) मेक्सवदाईमर
(b) वुण्ट
(c) फ्रायड
(d) कोहलर
उत्तर:
(a) मेक्सवदाईमर
प्रश्न 6.
भारत में मनोविज्ञान का प्रथम विभाग कब आरंभ किया गया?
(a) 1879 ई० में
(b) 1885 ई० में
(c) 1900 ई० में
(d) 1924 ई० में
उत्तर:
(c) 1900 ई० में
प्रश्न 7.
मनोविज्ञान किस विषय से निःसृत है?
(a) इतिहास
(b) भूगोल
(c) समाजशास्त्र
(d) दर्शनशास्त्र
उत्तर:
(c) समाजशास्त्र
प्रश्न 8.
भारत में मनोविज्ञान का आधुनिक काल का प्रारंभ कब से माना जाता है?
(a) 1879 ई० में
(b)1885 ई० में
(c) 1900 ई० में
(d) 1915 ई० में
उत्तर:
(d) 1915 ई० में
प्रश्न 9.
आधुनिक मनोविज्ञान के पिता हैं ……………………
(a) फ्रायड
(b) विल्हम वुण्ट
(c) विलियम जेम्स
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) विल्हम वुण्ट
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