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Wednesday, June 22, 2022

BSEB Class 11 Sociology and Society Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Sociology and Society Book Answers

BSEB Class 11 Sociology and Society Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Sociology and Society Book Answers
BSEB Class 11 Sociology and Society Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Sociology and Society Book Answers


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Bihar Board Class 11th Sociology and Society Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 11th
Subject Sociology and Society
Chapters All
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Bihar Board Class 11 Sociology समाजशास्त्र एवं समाज Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
समाजशास्त्रीय उपागम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
समाजशास्त्रीय उपागम द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानव समाज का एक व्यवस्था के रूप में मनुष्य तथा मनुष्यों के बीच, मनुष्यों तथा समूहों के बीच तथा विभिन्न समूहों के बीच अंत:क्रिया के रूप में अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
उन महत्त्वपूर्ण परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए जिन्होंने समाजशास्त्र का एक विषय के रूप में आविर्भाव अपरिहार्य बना दिया।
उत्तर:
समाजशास्त्र की उत्पत्ति यूरोप में 10वीं सदी में हुई। औद्योगिक क्रांति, नगरीकरण तथा पूँजीवादी व्यवस्था से उत्पन्न होने वाले सामाजिक तथा आर्थिक दुष्परिणामों ने एक विषय के रूप में समाजशास्त्र के आविर्भाव को अपरिहार्य बना दिया।

प्रश्न 3.
उन प्रमुख समाजशास्त्रियों के नामों का उल्लेख कीजिए जिन्हें समाजशास्त्र का संस्थापक माना जाता है।
उत्तर:
अगस्त कोंत, एमिल दुर्खाइम, हरबर्ट स्पैंसर, कार्ल मार्क्स तथा बैबर को समाजशास्त्र का संस्थापक माना जाता है। इन समाजशास्त्रियों के द्वारा समाज की विभिन्न समस्याओं तथा पहलुओं का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से वैज्ञानिक पद्धतियों के आधार पर अध्ययन किया गया।

प्रश्न 4.
भारत में सर्वप्रथम समाजशास्त्र का अध्ययन कब और कहाँ प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
भारत में समाजशास्त्र का अध्यापन 1908 में कोलकाता (कलकत्ता) विश्वविद्यालय के राजनीतिक, आर्थिक तथा दर्शन विभाग में प्रारम्भ हुआ।

प्रश्न 5.
भारत में समाजशास्त्र की उत्पत्ति का इतिहास मुंबई (बंबई) विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स से किस प्रकार संबद्ध है?
उत्तर:
पैट्रिक गीड्स को मुंबई (बंबई) विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में समाजशास्त्र का संस्थापक माना जाता है। जी. एस. घुर्ये द्वारा गीड्स के समाजशास्त्रीय प्रतिमानों को आगे जारी रखा गया। 1919 में मुंबई विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र को स्नातकोत्तर स्तर पर राजनीति विज्ञान के साथ जोड़ा गया।

प्रश्न 6.
भारतीय समाज को समझने तथा उसका विश्लेषण करने में प्रसिद्ध सामाजिक क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा के योगदान का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी तथा सामाजिक क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा ने पैट्रिक गीड्स से भी पहले भारतीय समाज को समझने में अपनी रुचि दिखाई थी। श्यामजी कृष्ण वर्मा ने यूरोप के प्रसिद्ध समाजशास्त्री अगस्त कोंत तथा हरबर्ट स्पैंसर से विचार-विमर्श के पश्चात् ‘इंडियन सोशियोलॉजिस्ट’ नामक शोध पत्रिका का प्रकाशन किया था।

प्रश्न 7.
भारत के किन तीन विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र की प्रथम पीढ़ी तैयार हुई? तत्कालीन प्रसिद्ध समाजशास्त्रीयों के नाम बताइए।
उत्तर:
भारत के तीन विश्वविद्यालय हैं-कोलकाता, मुंबई तथा लखनऊ। इन विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्रियों की प्रथम पीढ़ी तैयार हुई। समकालीन प्रसिद्ध समाजशास्त्रियों में राधाकमल मुखर्जी, डी. एन. मजूमदार, एम. एन. श्रीनिवास, के. एम. कपाड़िया, एम. आर. देसाई तथा एस. सी. दुबे आदि के नाम प्रमुख हैं।

प्रश्न 8.
समाजशास्त्र की प्रकृति के विषय में एमिल दुर्खाइम के विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र की प्रकृति के विषय में एमिल दुर्खाइम के विचार अधिक स्पष्ट तथा तथ्यात्मक हैं। दुर्खाइम के अनुसार समाजशास्त्र के द्वारा सामाजिक प्रघटनाओं का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 9.
समाज क्या है?
उत्तर:
समाज सामाजिक संबंधों का जाल है। मेकाइवर तथा पेज के अनुसार, “समाज रीतियों, कार्य प्रणालियों, अधिकार एवं पारस्परिक सहयोग, अनेक समूह और उनके विभागों, मानव व्यवहारों के नियंत्रणों तथा स्वतंत्रताओं की व्यवस्था है।”

प्रश्न 10.
मानव समाज तथा पशु समाज में दो अंतर बताइए।
उत्तर:
मानव समाज तथा पशु समाज में दो मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं –

  • मानव समाज मूल प्रवृत्तियों को परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित करने की क्षमता रखता है, जबकि पशु सामज पूर्णरूपेण मूल प्रवृत्तियों तथा सहज क्रियाओं पर आधारित है।
  • भाषा का स्पष्ट विकास होने के कारण मनुष्य अपनी एक पीढ़ी का ज्ञान दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित कर सकने में सक्षम है जबकि पशु
  • समाज भाषा का विकास न होने के कारण ज्ञान का हस्तांतरण नहीं कर सकता है।

प्रश्न 11.
मेकाइवर तथा पेज के अनुसार समाज के प्रमुख आधार क्या हैं?
उत्तर:
प्रसिद्ध समाजशास्त्री मेकाइवर तथा पेज के अनुसार समाज के प्रमुख आधार इस प्रकार हैं –

  • रीतियाँ
  • कार्यप्रणालियाँ
  • अधिकार
  • आपसी सहयोग
  • समूह तथा विभाग
  • मानव-व्यवहार का नियंत्रण एवं
  • स्वतंत्रता

प्रश्न 12.
जैमिन शैफ्ट का अर्थ बताइए।
उत्तर:
ग्रामीण जीवन में जैमिन शैफ्ट संबंध मिलते हैं। इसमें हम सामूहिक जीवन का वास्तविक तथा स्थायी रूप पाते हैं। सदस्यों के बीच प्राथमिक संबंध पाये जाते हैं। एफ. टॉनीज ने जैमिन शैफ्ट का अर्थ बताते हुए कहा है कि जैमिन शैफ्ट (समुदाय) के समस्त सदस्य आत्मीयता से व्यक्तिगत और अनन्य रूप से साथ रहते हुए जीवन व्यतीत करते हैं।

प्रश्न 13.
गैसिल शैफ्ट का अर्थ बताइए।
उत्तर:
एफ. टॉनीज के अनुसार गैसिल शैफ्ट का अर्थ बताते हुए कहा है कि –

  • गैसिल शैफ्ट समाज में लोगों का जीवन है।
  • गैसिल शैफ्ट एक नयी सामाजिक प्रघटना है तथा यह अल्पकालिक व औपचारिक है। इसमें सदस्यों के बीच द्वितीयक संबंध पाये जाते हैं।

प्रश्न 14.
हेरी एम. जॉनसन द्वारा बताई गई समाज की विशेषताएं बताइए।
उत्तर:
हेरी एम. जॉनसन ने समाज की निम्नलिखित विशेषताएँ बतायी हैं –

  • निश्चित भू-क्षेत्र
  • संतति
  • संस्कृति तथा
  • स्वावलंबन

प्रश्न 15.
समाज में संतति का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
समाज में संपति का महत्त्व निम्नलिखित है –

  • मनुष्य अपने जन्म के आधार पर ही एक समूह का सदस्य होता है।
  • अनेक समाजों में मनुष्यों की सदस्यता गोद लेने, दासता, जाति या अप्रवास के जरिए भी मिल जाती है लेकिन समूह में नए सदस्यों के लिए पुनरुत्पादन ही मौलिक स्रोत है।

प्रश्न 16.
समाज को एक प्रक्रिया के रूप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाज को एक प्रक्रिया के रूप में निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है –

  • समाज में ही व्यक्ति एक-दूसरे से निरंतर अंत:क्रिया करते हैं। समाज को व्यक्तियों पर थोपा नहीं जाता है, अपितु सहभागियों द्वारा इसका अनुमोदन किया जाता है।
  • सामाजिक अंत:क्रिया के माध्यम से समाज की रचना तथा पुनर्रचना होती है। संधिवार्ता स्व अन्य तथा प्रतिबिंबिता इसके प्रमुख शब्द हैं।

प्रश्न 17.
क्या समाज स्वतंत्र रूप से स्थिर रह सकता है?
उत्तर:
समाज निश्चित रूप से स्वतंत्र रूप से स्थिर रह सकता है। इस संबंध में निम्नलिखित तथ्य दिये जा सकते हैं –

  • समाज एक मौलिक संस्था है। यह किसी का उप-समूह नहीं है।
  • समाज एक स्थानीय, अपने आप में निहित तथा एकीकृत समूह है।

प्रश्न 18.
समाज का संगठन किस प्रकार सामाजिक नियंत्रणों पर आधारित है?
उत्तर:
समाज के संगठन को सुचारु रूप से चलाने के लिए व्यक्तियों के व्यवहार पर निम्नलिखित परम्पराएँ, रुढ़ियाँ, जनरीतियाँ, संहिताएँ तथा कानून आदि द्वारा समाज की प्रत्येक सामाजिक संरचना सामाजिक नियंत्रण का कार्य करती है।

प्रश्न 19.
अगस्त कोंत को समाजशास्त्र का जनक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
फ्रांस के दार्शनिक अगस्त कोंत सन् 1839 में मानव-व्यवहार का अध्ययन करने वाली सामाजिक विज्ञान की शाखा को समाजशास्त्र का नाम दिया था। इसलिए उन्हें समाजशास्त्र का जनक कहा जाता है।

प्रश्न 20.
समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ बताइए।
उत्तर:
समाजशास्त्र शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के दो शब्दों ‘सोशियस’ तथा ‘लोगोस’ से हुई है। ‘सोशियस’ का अर्थ समाज तथा ‘लोगोस’ का अर्थ है विज्ञान। इस प्रकार समाजशास्त्र का अर्थ है-समाज का विज्ञान।

प्रश्न 21.
अपनी या अपने दोस्त अथवा रिश्तेदार को किसी व्यक्तिगत समस्या को चिह्नित कीजिए। इसे सामाजशास्त्रीय समझ द्वारा जानने की कोशिश कीजिए।
उत्तर:
आप कोई भी समस्या लें इस प्रश्न को छात्र या छात्राओं को स्वयं हल करना है। जैसे पढ़ाई में मन न लगना, किसी बात से डर लगना, स्कूल जाने में भव, समय के समायोजन को समग्या आदि। इन सभी पर आप आपने परिवार के लोगों की राय या मशविरा ले सकते हैं, शिक्षक से सलाह भी ले सकते हैं।

प्रश्न 22.
अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र मूल रूप से समाज में मनुष्य की आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन करता है। एफ. आर. फेयरचाइल्ड तथा अन्य के अनुसार, “अर्थशास्त्र में मनुष्य की उन क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जो आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु मौलिक साधनों की प्राप्ति के लिए की जाती हैं।”

प्रश्न 23.
अर्थशास्त्र तथा समाजशास्त्र एक-दूसरे के पूरक हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र तथा समाजशास्त्र मानव समाज का करते हैं। प्रत्येक आर्थिक घटना का सामाजिक पहलू होता है। आर्थिक पहलुओं का व्यापक अध्ययन करने के लिए उनका समाजशास्त्रीय विश्लेषण आवश्यक है।

मेकाइवर के अनुसार, “इकार, आर्थिक घटनाएँ सदैव सामाजिक आवश्यकताओं तथा। क्रियाओं के समस्त स्वरूपों द्वारा निश्चित होती हैं तथा वे (आर्थिक घटनाएँ) सदैव प्रत्येक प्रकार की सामाजिक क्रियाओं को पुनः निर्धारित, सृजित, स्वरूपित तथा परिवर्तित करती हैं।”

प्रश्न 24.
अर्थशास्त्र तथा समाजशास्त्र में मौलिक अंतर बताइए।
उत्तर:

  • समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों का अध्ययन करता है, इसलिए यह एक सामान्य विज्ञान है। अर्थशास्त्र आर्थिक संबंधों का अध्ययन करता है अतएव यह एक विशेष विज्ञान है।
  • समाजशास्त्र मनुष्य की समस्त सामाजिक गतिविधियों का अध्ययन करता है। अतः समाजशास्त्र का क्षेत्र व्यापक है।
  • अर्थशास्त्र का अध्ययन-क्षेत्र मनुष्य की आर्थिक गतिविधियों तक ही सीमित है।
  • अतः अर्थशास्त्र का क्षेत्र समाजशास्त्र की अपेक्षा क व्यापक है।

प्रश्न 25.
राजनीति शास्त्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
राजनीति शास्त्र के अंतर्गत अनेक राजनीतिक संस्थाओं जैसे राज्य सरकार तथा उसके अंगों, संवैधानिक तथा न्यायिक संस्थाओं एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं तथा संबंधों का अध्ययन किया जाता है।

वेनबर्ग तथा शेबत के अनुसार, “राजनीतिशास्त्र उन पद्धतियों का अध्ययन है जिनमें कि एक समाज अपने को संगठित करता है तथा राज्य का संचालन करता है।”

प्रश्न 26.
समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान में अंतर बताएँ।
उत्तर:
समाजशास्त्र का मनोविज्ञान के साथ घनिष्ठ संबंध है। समाजशास्त्र समाज का अध्ययन करता है तो मनोविज्ञान मानसिक प्रक्रियाओं एवं विचारों का अध्ययन है। मनोविज्ञान की एक प्रमुख शाखा है-सामाजिक मनोविज्ञान इसे मनोविज्ञान समाजशास्त्र भी कहते हैं। सामाजिक मनोविज्ञान में व्यक्ति मनोविज्ञान और समाजशास्त्र दोनों का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 28.
मैक्स वैबर ने समाजशास्त्र को किस रूप में परिभाषित किया है?
उत्तर:
मैक्स वैबर के अनुसार, “समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो सामाजिक क्रिया का अर्थपूर्ण बोध कराने का प्रयास करता है।” उनका मत है कि समस्त मानवीय गतिविधियों का संबध क्रिया से होता है। ये क्रियाएँ ही समाजशास्त्र की विषय-वस्तु हैं।

प्रश्न 29.
समाजशास्त्रीय परिपेक्ष्य का अर्थ समझाइए।
उत्तर:
समाजशास्त्र द्वारा सामाजिक संबंधों का नियामक रूप में तथा प्रयोगात्मक स्तरों पर अध्ययन किया जाता है। इसके अलावा समाजशास्त्रीय अध्ययन के अंतर्गत निरंतरता तथा परिवर्तन का विश्लेषण तथा व्याख्या भी की जाती है। वस्तुतः यही समाजशास्त्रीय परिपेक्ष्य है।

प्रश्न 30.
अगस्त कोंत के प्रत्यक्षवादी समाजशास्त्र की दो मूल अवधारणाएँ बताइए।
उत्तर:
अगस्त कोंत के प्रत्यक्षवादी समाजशास्त्र की दो मूल अवधारणाएँ इस प्रकार हैं –

  • सामाजिक स्थितिक (सामाजिक संरचना) तथा
  • सामाजिक गतिशीलता (सामाजिक परिवर्तन)।

प्रश्न 31.
अगस्त कोंत के त्रि-स्तरीय नियम को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
भौतिक शास्त्र के नियमों की तर ही समाज में नियम बनाए जा सकते हैं। इसी धारणा को आधार मानकर कोंत ने त्रि-स्तरीय नियम का प्रतिपादन किया –

  • धर्मशास्त्रीय स्थिति
  • तत्त्व मीमांसा स्थिति तथा
  • प्रत्यक्षात्मक स्थिति

कोंत ने पोजिटिविस्ट फिलॉसोफी द्वारा अपनी उपरोक्त धारणा का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत किया।

प्रश्न 32.
मैक्स वैबर की एक प्रसिद्ध कृति का नाम बताइए। समाजशास्त्र की उनकी। परिभाषा का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मैक्स वैबर की एक प्रसिद्ध कृति ‘थ्योरी ऑफ सोशल ऑरगेनाइजेशन’ है। मैक्स वैबर के समाजशास्त्र की परिभाषा “यह एक विज्ञान है जो सामाजिक क्रियाओं की विवेचनात्मक व्याख्या करने का प्रयत्न करता है, जो अंततः अपने कार्यों के परिणामों में कार्य-कारण सम्बन्धों की व्याख्या प्राप्त करता है।”

प्रश्न 33.
इतिहास की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
इतिहास में अतीत की घटनाओं का क्रमबद्ध तरीके तथा वैज्ञानिक नजरिए से अध्ययन किया जाता है। पार्क के अनुसार, “इतिहास मानव-अनुभवों तथा मानव-प्रकृति का स्थूल विज्ञान है।”

प्रश्न 34.
‘समाजशास्त्र तथा इतिहास एक-दूसरे के पूरक हैं।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इतिहास तथा समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन करते हैं। प्रत्येक ऐतिहासिक घटना का एक सामाजिक पहलू होता है। वर्तमान समय के सामाजिक परिप्रेक्ष्य को समझने के लिए आवश्यक है कि ऐतिहासिक तथ्यों की समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से व्याख्या की जाए। जी. ई. हॉवर्ड ने सही कहा है कि “इतिहास भूतकाल का समाजशास्त्र है तथा समाजाशास्त्र – वर्तमान इतिहास है।”

प्रश्न 35.
इतिहास तथा समाजशास्त्र में मौलिक अंतर बताइए।
उत्तर:
इतिहासकार के लिए मुख्य अध्ययन की वस्तु ऐतिहासिक घटनाएँ हैं जबकि समाजशास्त्र के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु वे प्रतिमान होते हैं, जिनमें से घटनाएँ घटती हैं। इतिहास में एक जैसी घटनाओं में पायी जाने वाली विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है जबकि समाजशास्त्र में विभिन्न घटनाओं में पायी जाने वाली समानता का अध्ययन किया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
धर्मशास्त्र, अधिभौतिक तथा प्रत्यक्षवाद अवस्थाओं में विभेद कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्रीय अगस्त कोंत भौतिक शास्त्र के सिद्धांतों की भाँति समाज के सिद्धांतों का निर्धारण करना चाहते थे। उनका मत था कि सभी समाजों में मानवीय बुद्धि का विकास निम्नलिखित तीन सोपानों से होकर गुजरता है –

  • धर्मशास्त्र का सोपान – धर्मशास्त्र के सोपान के अंतर्गत सभी व्याख्याएँ अति प्राकृतिक होती हैं। इस अवस्था में मानव-मन विभिन्न घटनाओं, पदार्थों तथा वस्तुओं की व्याख्या करने का प्रयत्न करता है।
  • अधिभौतिक सोपान – अधिभौतिक अवस्था के अंतर्गत व्याख्याएँ अति प्राकृतिक न होकर परंपराओं, अंतर्ज्ञान तथा अनुमानों पर आधारित होती हैं लेकिन ये व्याख्याएँ किसी प्रमाण द्वारा समर्थित नहीं होती हैं।
  • प्रत्यक्षवाद का सोपान – प्रत्यक्षता के सोपान के अंतर्गत व्याख्याएँ अवलोकित तथ्यों पर आधारित होती हैं। इस सोपान में तार्किक आधार पर निरीक्षण तथ परीक्षण योग्य सिद्धांतों का विकास किया जाता है।

प्रश्न 2.
समाजशास्त्र में एमिल दुर्खाइम का मुख्य संबंध किस बात से था?
उत्तर:
एमिल दुर्खाइम (1858-1917 ई.) ने समाजशास्त्र के क्षेत्र में एकीकरण को समाजशास्त्र के केन्द्रीय अध्ययन की वस्तु स्वीकार किया है। दुर्खाइम का मुख्य संबंध निम्नलिखित बातों से था –

  • सामाजिक तथ्य
  • आत्महत्या तथा
  • धर्म

1. सामाजिक तथ्य – दुर्खाइम के अनुसार समाजशास्त्र वास्तव में सामाजिक तथ्यों का अध्ययन है। दुर्खाइम का कहना है कि समाजशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र कुछ घटनाओं तक सीमित है। इन्हीं घटनाओं को उसने सामाजिक तथ्य कहा है। दुर्खाइम का मत है कि सामाजिक तथ्य कार्य करने, चिंतन तथा अनुभव की ऐसी पद्धति है जिसका अस्तित्व व्यक्ति की चेतना के बाहर होता है। उसने सामाजिक तथ्य की निम्नलिखित दो विशेषताएँ बतायी हैं-बाह्यता तथा बाध्यता।

2. आत्महत्या – दुर्खाइम ने आत्महत्या की व्याख्या सामाजिक एकता, सामूहिक चेतना, सामाजिकता तथा प्रतिमानहीनता के विशिष्ट संदर्भ में की है। दुर्खाइम ने आत्महत्या के निम्नलिखित तीन प्रकार बताए हैं –

  • परमार्थमूलक आत्महत्या
  • अहंवादी आत्महत्या तथा
  • प्रतिमानहीनता मूलक आत्महत्या।

3. धर्म – धर्म की उत्पत्ति के बारे में दुर्खाइम सामूहिक उत्सवों तथा कर्मकाडों को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। उन्होंने धर्म को पवित्रता की धारणा से संबद्ध किया है।

प्रश्न 3.
“समाजशास्त्र अन्य सामाजिक विज्ञानों की न तो गृह-स्वामिनी है और न ही उनकी दासी है वरन् उनकी बहन मानी जाती है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र के सम्बन्ध में प्रश्नान्तर्गत पूछी गई बातों का स्पष्टीकरण इसका प्रकार दी जा सकती है –

  • समाजशास्त्र एक स्वतंत्र सामाजिक विज्ञान है। गिडिंग्स का मत है कि समाजशास्त्र के द्वारा समाज का व्यापक तथा संपूर्ण अध्ययन में किया जाता है।
  • अतः अन्य सामाजिक विज्ञानों से इसका संबंध स्वाभाविक है लेकिन समाजशास्त्र का अपना विशिष्ट दृष्टिकोण है।
    समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण ही समाजशास्त्र को एक विशिष्ट स्थान दिलाता है।
  • इस प्रकार समाजशास्त्र सामाजिक विज्ञानों का योग समन्वय मात्र नहीं है।
  • प्रसिद्ध समाजशास्त्री सोरोकिन समाजशास्त्र को एक विशिष्ट सामाजिक विज्ञान मानते हैं।
  • उनका मत है कि समाजशास्त्र अन्य सामाजिक विज्ञानों की तरह एक स्वतंत्र सामाजिक विज्ञान है।
  • समाजशास्त्र के द्वारा ने केवल समाज के सामान्य सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है वरन् विभिन्न सामाजिक विज्ञानों के मध्य संबंध भी स्थापित किया जाता है।

इस प्रकार, समाजशास्त्र एक स्वतंत्र सामाजिक विज्ञान है। अन्य सामाजिक विज्ञानों से इसके संबंध समानता के आधार पर हैं। इसकी विशिष्ट अध्ययन पद्धतियाँ तथा दृष्टिकोण इसे एक पृथक् सामाजिक विज्ञान बनाते हैं।

प्रश्न 4.
क्या समाज अमूर्त है?
उत्तर:
निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है समाज अमूर्त है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री यूटर के अनुसार, “समाज एक अमूर्त धारणा है जो एक समूह के सदस्यों के बीच पाए जाने वाले पारस्परिक संबंधों की संपूर्णता का ज्ञान कराती है।”

मेकाइवर तथा पेज ने समाज को सामाजिक संबंधों का जाल कहा है। सामाजिक संबंधों को न तो देखा जा सकता है और न ही स्पर्श किया जा सकता है, उन्हें केवल अनुभव किया जा सकता है। अतः समाज अमूर्त है। यह वस्तु के मुकाबले प्रक्रिया तथा संरचना के मुकाबले गति है।

राइट के अनुसार, “यह (समाज) व्यक्तियों का समूह नहीं है। यह समूह के सदस्यों के बीच स्थापित संबंधों की व्यवस्था है।” राइट ने समाज को सामाजिक संबंधों के समूह के रूप में परिभाषित किया है न कि व्यक्तियों के समूह के रूप में।

समाज के संबंधों का निर्माण तथा विस्तार सामाजिक अंत:क्रियाओं से होता है। चूंकि सामाजिक अंत:क्रियाओं का स्वरूप अमूर्त है। अतः समाज भी अमूर्त है। निष्कर्षतः राइट के शब्दों में कहा जा सकता है कि समाज सार रूप में एक स्थिति, अवस्था अथवा संबंध है, इसलिए आवश्यक रूप से यह अमूर्त है।

प्रश्न 5.
समाजशास्त्र के उद्भव के विषय में संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
एक सामाजिक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र का जन्म यूरोप में 19वीं सदी में हुआ। प्रसिद्ध फ्रांसीसी दार्शनिक अगस्त कोंत ने 1839 ई. में समाजशास्त्र शब्द का प्रयोग किया। हालांकि, कोंत ने शुरू में इस विज्ञान का नाम सामाजिक भौतिकी रखा था। एक पृथक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र का अध्ययन अमेरिका में 1879 में, फ्रांस में 1989 ई. में, ब्रिटेन में 1907 ई. में तथा भारत में 1919 ई. में शुरू हुआ।

प्रश्न 6.
समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण की क्या विशेषता है?
उत्तर:
समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण की विशेषताओं का अध्ययन निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत किया जा सकता है –

  1. समाजाशास्त्र के जनक अगस्त कोंत से लेकर वर्तमान समय तक समाजशास्त्रीय समाजशास्त्र की एक स्वीकार्य परिभाषा निर्धारित करने के लिए सतत् प्रयासरत हैं।
  2. समाजशास्त्री समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र तथा उसके अध्ययन के लिए विभिन्न वैज्ञानिक पद्धतियों को निर्धारित करने में लगे हुए हैं।
    समाजशास्त्र के द्वारा मानव व्यवहार तथा सामाजिक जीवन का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।
  3. दुर्खाइम, सोरोकिन तथा हॉबहाउस का मत है कि समाजशास्त्र भी अन्य प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति एक सामान्य विज्ञान है।
  4. जहाँ तक समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण का सवाल है, यह कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र के द्वारा सामाजिक प्रयोगात्मक स्तरों पर अध्ययन किया जाता है।
  5. दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण के अंतर्गत समाज तथा उससे संबंधित तथ्यों का अध्ययन निरंतरता व वैज्ञानिक पद्धतियों के आधार पर किया जाता है।

प्रश्न 7.
समाजशास्त्र क्या है?
उत्तर:
समाजशास्त्र शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘सोशियस’ तथा यूनानी भाषा के शब्द ‘लोगोस’ से हुई है। ‘सोशियस’ का अर्थ है। सामाजिक ‘लोगोस’ का अर्थ है विज्ञान। इस प्रकार समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ है सामाजिक विज्ञान। समाजशास्त्र समूह में मानव व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन करता है। विभिन्न विद्वानों का समाजशास्त्र के संबंध में निम्न मत है वार्ड के अनुसार-“समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है।” ए. एम. रोज के अनुसार – “समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के विषय में तथा संबंधों के जाल को हम समाज कहते हैं।” “समाजशास्त्र सामूहिक व्यवहारों का विज्ञान है।” पार्क तथा बर्गेस “समाजशास्त्र सामाजिक प्रघटनाओं का अध्ययन करता है।”

एमिल दुर्खाइम अर्थात् सामाजिक संबंधों का नियामक के रूप में तथा प्रयोगात्मक स्तरों पर क्रमबद्ध ज्ञान को समाजशास्त्र कहा जाता है, जो समाज का विज्ञान है और इसमें समाज के सामूहिक व्यवहारों का सामाजिक घटनाओं का वैज्ञानिक कारणों सहित क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 8.
समाज के उद्विकास पर स्पेंसर का क्या दृष्टिकोण है?
उत्तर:
समाज के उद्विकास पर हरबर्ट स्पेंसर (1820-1903 ई.) के विचारों का निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत अध्ययन किया जा सकता है –

  • अगस्त कोंट की भाँति स्पेंसर भी समाज की व्याख्या उद्विकासीय पद्धति के आधार पर करते हैं।
  • स्पेंसर के दृष्टिकोण में समाज अनेक व्यक्तियों का सामूहिक नाम है।
  • स्पेंसर समाज के पृथक-पृथक अंगों की तुलना सजीव शरीर के अलग-अलग अंगों से करते हैं। उनकी मान्यता है कि जिस प्रकार प्राणी का उद्विकास हुआ, उसी प्रकार समाज भी उद्विकास का परिणाम है।

स्पेंसर सामाजिक उद्विकास की प्रक्रिया के निम्नलिखित सोपान बताते हैं –

  • समाज सदैव सरल स्थिति से स्थिति की तरफ आगे बढ़ता है।
  • सामाजिक उद्विकास के साथ-साथ सामाजिक सजातीयता के बजाए सामाजिक विजातीयता की स्थिति बन जाती है।
  • समाज में उद्विकास की प्रक्रिया कम विभिन्नीकृत से अधिक विभिन्नीकृत स्थिति की तरफ तथा निम्न स्तर से उच्च स्तर की तरफ बढ़ती रहती है।

प्रश्न 9.
समाजशास्त्र के उद्गत और विकास का अध्ययन क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
समाजशास्त्र का उद्गम यूरोप में हुआ। समाजशास्त्र के अधिकांश मुद्दे एवं सरोकार भी उस समय की बात करते हैं जब यूरोपियन समाज 18वीं और 19वीं सदी के औद्योगिक और पूँजीवाद के आने के कारण गंभीर रूप से परिवर्तन की चपेट में था। जैसे नगरीकरण या कारखानों के उत्पादन, सभी आधुनिक समाजों के लिए प्रासांगिक थे, यद्यपि उनकी कुछ विशेषताएँ हटकर हो सकती थीं, जबकि भारतीय समाज अपने औपनिवेशिक अतीत और अविश्वसनीय विविधता के कारण भिन्न है। भारत का समाजशास्त्र इसे दर्शाता है।

यूरोप में समाजशास्त्र के आरम्भ और विकास को पढ़ना क्यों आवश्यक है? वहाँ से शुरूआत करना क्यों प्रासंगिक है? क्योंकि भारतीय होने के नाते हमारे अतीत अंग्रेजी पूँजीवाद और उपनिवेशवाद के इतिहास से गहरा जुड़ा है। पश्चिम में पूँजीवाद विश्वव्यापी विस्तार पर गया था। उपनिवेशवाद आधुनिक पूँजीवाद एवं औद्योगिकरण का आवश्यक हिस्सा था। इसलिए पश्चिमी समाजशास्त्रियों का पूँजीवाद एवं आधुनिक समाज के अन्य पक्षों पर लिखित दस्तावेज भारत में हो रहे सामाजिक परिवर्तनों को समझने के लिए सर्वथा प्रासंगिक है। इस प्रकार उपर्युक्त कारकों से समाजशास्त्र के उद्गम और विकास का अध्ययन आवश्यक है।

प्रश्न 10.
‘सभी सामाजिक विज्ञानों के विषय-वस्तु समान है, फिर भी विभिन्न सामाजिक विज्ञान पृथक-पृथक हैं।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सभी सामाजिक विज्ञान जैसे राजनीतिक विज्ञान, अर्थशास्त्र, इतिहास, मानवशास्त्र, मनोविज्ञान, नीतिशास्त्र आदि समाज में मनुष्यों के व्यवहार का अध्ययन करते हैं। सामाजिक विज्ञानों की विषय-वस्तु समान होते हुए भी उनके दृष्टिकोण में अंतर पाया जाता है। जिस प्रकार एक वृक्ष की विभिन्न शाखाएँ अलग-अलग दिशाओं की ओर संकेत करती हैं ठीक उसी प्रकार ज्ञान रूपी वृक्ष की विभिन्न शाखाएँ मानव व्यवहार का विभिन्न गतिविधियों का अध्ययन करती हैं।

सामाजिक विज्ञानों को एक-दूसरे से पृथक् करके उनका एकीकृत अध्ययन नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए चिकित्सा के लिए अलग-अलग विशेषज्ञ हैं। ठीक उसी प्रकार समाज का अध्ययन करने के लिए अलग-अलग सामाजिक विज्ञान हैं। इस प्रकार, सभी सामाजिक विज्ञानों की विषय-वस्तु समान होते हुए भी दृष्टिकोणों में विभिन्नता पायी जाती है लेकिन विभिन्न विषयों के बीच पायी जाने वाली विभिन्नताएँ ज्ञान रूपी नदी हैं जिनके उद्गम का स्रोत एक ही है।

जार्ज सिम्पसन ने अपनी पुस्तक ‘Man in Society’ में लिखा है कि “सामाजिक विज्ञानों के बीच एक अटूट एकता है, यह एकता काल्पनिक एकता नहीं है, यह विभिन्न भागों की गतिशील एकता है तथा एक भाग दूसरे प्रत्येक भाग के लिए तथा अन्य भागों के लिए आवश्यक है।’

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ – समाजशास्त्र शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘सोशियस’ तथा यूनानी भाषा के शब्द ‘लोगोस’ से हुई है। सोशियस का अर्थ है सामाजिक तथा लोगोस का अर्थ है विज्ञान। इस प्रकार समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ है सामाजिक विज्ञान।

समाजशास्त्र की परिभाषा – समाजशास्त्र समूह में मानव व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन करता है। समाजशास्त्रियों द्वारा समाजशास्त्र की परिभाषा निम्नलिखित रूपों में दी गई है –
1. समाजशास्त्र समाज एक विज्ञान के रूप में – वार्ड के अनुसार, “समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है।” ओडम के अनुसार, “समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो समाज का अध्ययन करता है।” गिडिंग्स के अनुसार, “समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है।”

2. समाजशास्त्रीय सामाजिक संबंधों के अध्ययन के रूप में – ए. एम. रोज के अनुसार, “समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के विषय में तथा संबंधों के जाल को हम समाज कहते हैं।”

3. समाजशास्त्र सामाजिक जीवन के अध्ययन के रूप में – आग्बर्न तथा निमकॉफ के अनुसार, “समाजशास्त्र सामाजिक जीवन का वैज्ञानिक अध्ययन है।” बेनट तथा ट्यमिन के अनुसार, “समाजशास्त्र सामाजिक जीवन की संरचना तथा कार्यों का विज्ञान है।”

4. समाजशास्त्र समूह में मानव – व्यवहार के अध्ययन के रूप में-पार्क तथा बर्गेस के अनुसार, “समाजशास्त्र सामूहिक व्यवहारों का विज्ञान है।” किंबाल यंग के अनुसार, “समाजशास्त्र समूह में मनुष्यों के व्यवहार का अध्ययन करता है।”

5. समाजशास्त्र सामाजिक प्रघटनाओं के अध्ययन के रूप में – एमिल दुर्खाइम के अनुसार समाजशास्त्र सामाजिक प्रघटनाओं का अध्ययन करता है।

6. समाजशास्त्र सामाजिक क्रियाओं के अध्ययन के रूप में – मैक्स वैबर के अनुसार समस्त मानवीय गतिविधियों का सामाजिक संबंध क्रिया से होता है।

प्रश्न 2.
चर्चा कीजिए कि आजकल अलग-अलग विषयों में परस्पर लेन-देन कितना ज्यादा है?
उत्तर:
समाजशास्त्रीय अध्ययन का विषय क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है। यह एक दुकानदार और उपभोक्ता के बीच, एक अध्यापक और विद्यार्थी के बीच, दो मित्रों के बीच अथवा परिवार के सदस्यों के बीच की अंतः क्रिया के विश्लेषण को अपना केन्द्रबिन्दु बना सकता है। इसी प्रकार यह राष्ट्रीय मुद्दों जैसे बेरोजगारी अथवा जातीय संघर्ष या सरकारी नीतियों या आदिवासी जनसंख्या के जंगल पर अधिकार या ग्रामीण कों को अपना केन्द्र बिन्दु बना सकता है अथवा वैश्विक सामाजिक प्रक्रिया, जैसे-नए लचीले श्रम कानूनों का श्रमिक वर्ग पर प्रभाव अथवा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम का नौजवानों पर प्रभाव अथवा विदेशी विश्वविद्यालयों के आगमन का देश की शिक्षा-प्रणाली पर प्रभाव की जाँच कर सकता है।

इस प्रकार समाजशास्त्र का विषय परिभाषित नहीं होता कि वह क्या अध्ययन (परिवार या व्यापार संघ अथवा गाँव) करता है बल्कि इससे परिभाषित होता है वह एक चयनित क्षेत्र का अध्ययन कैसे करता है। समाजशास्त्र के ये विवेचित विषय अन्य विषयों के भी अंग हैं। इसलिए अन्य विषय आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और विषय-सामग्री का इनमें परस्पर लेन-देन अनिवार्य है।

प्रश्न 3.
समाजशास्त्र के जनक के रूप में अगस्त कोंत जाने जाते हैं, कैसे?
उत्तर:
समाजशास्त्र शब्द से संसार को सर्वप्रथम परिचित कराने का श्रेय फ्रांसीसी दार्शनिक तथा समाजशास्त्री अगस्त कोंत को है। सर्वप्रथम अगस्त कोंत ही सामाजिक विचारक थे। जिन्होंने सामाजिक घटनाओं के अध्ययन क्षेत्र की कल्पना या आध्यात्मिक विचारों को दृढ़ता से निकालकर उसे वैज्ञानिक तथ्यों से सींचा। वे 1789 ई. के फ्रांसीसी क्रांति के फलस्वरूप उत्पन्न फ्रांस की राजनीतिक उथल-पुथल सधे प्रभावित थे।

उनकी प्रारंभिक रचनाओं में पुर्नजागरण और परम्पराओं के अवैज्ञानिक विचारों पर प्रत्यक्ष प्रहार किया गया। उन्होंने अवलोकन और प्रयोग पर आधारित समाज के अध्ययन हेतु तार्किक उपागम का विकास किया। कोंत एक ऐसे विज्ञान का सृजन करना चाहते थे जो कि सामाजिक घटनाओं का अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से कर सके।

प्रश्न 4.
‘समाज’ शब्द के विभिन्न पक्षों की चर्चा कीजिए। यह आपके सामान्य बौद्धिक ज्ञान की समझ से किस प्रकार अलग है?
उत्तर:
प्रसिद्ध समाजशास्त्री मेकाइवर तथा पेज ने समाज के प्रमुख आधारों को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि “समाज रीतियों, कार्य-प्रणालियों, अधिकार-सत्ता एवं पारस्परिक संयोग, अनेक समूह तथा उनके विभागों, मानव-व्यवहार के नियंत्रणों तथा स्वतंत्रताओं की व्यवस्था है।”

उपरोक्त परिभाषा के समाज के प्रमुख आधार निम्नलिखित हैं –
1. रीतियाँ – रीतियों के अंतर्गत समाज के उन स्वीकृत तरीकों को सम्मिलित किया जाता है, जिन्हें समाज व्यवहार के क्षेत्र में उचित मानता है। रीतियाँ अथवा चलन समाज में मनुष्य की एक निश्चित तथा समाज स्वीकृत व्यवहार करने के लिए बाध्य करते हैं। इस प्रकार रीतियाँ सामाजिक संबंधों को निश्चित स्वरूप प्रदान करने में सहयोग देती हैं।

2. कार्य – प्रणालियाँ – कार्य-प्रणालियों का तात्पर्य सामाजिक संस्थाओं से है। संस्थाएँ वास्तव में प्रस्थापित कार्यविधियाँ होती हैं। समाज के सदस्यों से यह अपेक्षित है कि वे प्रचलित कार्य-प्रणालियों के माध्यम से अपने कार्यों को पूरा करें। कार्य-प्रणालियाँ समाज को एक निश्चित स्वरूप प्रदान करने में सहायक होती हैं।

3. अधिकार – सत्ता-अधिकार-सत्ता भी सामाजिक संबंधों को सुचारू रूप से चलाने तथा नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण हैं। प्रसिद्ध समाजशास्त्री जॉर्ज सिमल ने अधिकार-सत्ता पर विशेष जोर दिया है। अधिकार सत्ता तथा अधीनता दो परस्पर संबंधित सामाजिक संबंध हैं। किसी स्थिति में व्यक्ति अधिकार-सत्ता तथा किसी अन्य स्थिति में अधीनता रखता है। अधिकार-सत्ता व्यवहार के प्रतिमानों को परिभाषित तथा परिचालित करती है।

4. पारस्परिक सहयोग – पारस्परिक सहयोग समाज के अस्तित्व को स्थायित्व तथा निरंतरता प्रदान करता है। क्रोप्टकिन ने पारस्परिक सहयोग को अत्यधिक महत्त्व प्रदान किया है। बोगार्डस के अनुसार, “पारस्परिक सहयोग, सहयोग का एक विशिष्ट नाम है।” समाज की प्रगति, श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण की प्रक्रियाएँ पारस्परिक सहयोग पर निर्भर हैं। राइट के अनुसार, “यह (समाज) व्यक्तियों का एक समूह नहीं है। यह समूह के सदस्यों के बीच स्थापित संबंधों की व्यवस्था है।”

पारस्परिक सहयोग की अनुपस्थिति में सामाजिक अंतः क्रियाओं की कल्पना नहीं की जाप सकती है।

5. समूह तथा विभाग – समाज विभिन्न समूहों, विभागों तथा उप-विभागों का समीकरण है। मनुष्य इन समूहों तथा विभागों में रहकर ही सामाजिक व्यवहार करता है। समाज एक व्यापक तथा विस्तृत अवधारणा है तथा इसके अंतर्गत राष्ट्र, नगर, गाँव, विभिन्न समुदाय, समितियाँ तथा संस्थाएँ आदि सभी सम्मिलित होते हैं। समूह तथा विभागों के माध्यम से मानव-व्यवहार को एक निश्चित आधार तथा दिशा मिलती है।

6. मानव – व्यवहार का नियंत्रण-सामाजिक व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए मानव-व्यवहार पर नियंत्रण आवश्यक है। मानव व्यवहार को आपैचारिक तथा अनौपचारिक नियंत्रणें द्वारा नियंत्रित किया जाता है। औपचारिक नियंत्रण के अंतर्गत राज्य द्वारा निर्मित कानून तथा पुलिस व्यवस्था आदि आते हैं। अनौपचारिक नियंत्रण के अंतर्गत परंपराएँ, रूढ़ियाँ जनरीतियाँ तथा रिवाज आदि आते हैं।

7. मानव – व्यवहार की स्वतंत्रताएँ – मानव-व्यवहार में नियंत्रणों के साथ-साथ स्वतंत्रताएँ भी आवश्यक हैं। मनुष्यों को समाज द्वारा प्रतिस्थापित नियमों की संरचना के अंतर्गत व्यवहार करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। स्वतंत्रताओं के माध्यम से सामाजिक प्रतिमानों का विकास होता है जो सामाजिक परिवर्तन तथा प्रगति के लिए जरूरी हैं। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मेकाइवर तथा पेज द्वारा दिए गए समाज के विभिन्न आधार सामाजिक संबंधों के जाल को एक निश्चित स्वरूप प्रदान करने में सहायक हैं।

समाजशास्त्र और सामान्य बौद्धिक ज्ञान-समाजशास्त्रीय ज्ञान ईश्वरमीमांसीय और दार्शनिक अवलोकनों से अलग है। इसी प्रकार समाजशास्त्र सामान्य बौद्धिक अवलोकनों से भी अलग है। सामान्य बौद्धिक वर्णन सामान्यतः उन पर आधारित होते हैं जिन्हें हम प्रकृतिवादी और व्यक्तिवादी वणन कह सकते हैं। व्यवहार का एक प्रकृतिवादी वर्णन इस मान्यता पर निर्भर करता है कि एक व्यक्ति व्यवहार के प्राकृतिक कारणों की पहचान कर सकता है।

अतः समाजशास्त्र सामान्य बौद्धिक अवलोकनों एवं विचारों तथा साथ ही साथ दार्शनिक विचारों दोनों से ही अलग है। यह हमेशा या सामान्यत: भी चमत्कारिक परिणाम नहीं देता लेकिन अर्थपूर्ण और असंदिग्ध संपर्कों की छानबीन द्वारा ही पहुंचा जा सकता है। समाजशास्त्री ज्ञान में बहुत अधिक प्रगति हुई है। ज्यादा प्रगति तो सामान्य रूप से हुई परंतु कभी-कभी नाटकीय उद्भवों से भी प्रगति हुई है।

समाजशास्त्र में अवधारणाओं, पद्धतियों और आँकड़ों का एक पुरा तंत्र है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि यह किस तरह संयोजित है। यह सामान्य बौद्धिक ज्ञान से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। सामान्य बौद्धिक ज्ञान अपरावर्तनीय है क्योंकि यह अपने उद्गम के बारे में कोई प्रश्न नहीं पूछता है। या दूसरे शब्दों में यह अपने आप से यह नहीं पूछता–“मैं यह विचार क्यों रखता हूँ?” एक समाजशास्त्री को अपने स्वयं के बारे में तथा अपने किसी भी विश्वास के बारे में प्रश्न पूछने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए चाहे वह विश्वास कितना भी प्रिय क्यों न हों-“क्या वास्तव में ऐसा है?”

समाजशास्त्र के दोनों ही उपागम, व्यवस्थित एवं प्रश्नकारी, वैज्ञानिक खोज की एक विस्तृत परंपरा से निकलते हैं। वैज्ञानिक विधियों के इस महत्व को तभी समझा जा सकता है, जब हम अतीत की तरफ लौटे और उस समय की सामाजिक परिस्थिति को समझें जिसमें समाजशास्त्री दृष्टिकोण का उद्भव हुआ था क्योंकि आधुनिक विज्ञान में हुए विकासों का समाजशास्त्र पर गहरा पड़ा था।

प्रश्न 5.
समाजशास्त्र तथा राजनीति शास्त्र में संबंध की व्याख्या कीजिए। अथवा, समाजशास्त्र तथा राजनीति शास्त्र में समानताएँ तथा विभिन्नताएँ बताइए।
उत्तर:
समाजशास्त्र तथा राजीतिशास्त्र एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं । यही कारण है कि मोरिस गिंसबर्ग ने कहा है कि “ऐतिहासिक दृष्टि से समाजशास्त्र की मुख्य जड़ें राजनीति एवं इतिहास दर्शन में हैं।” समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण के अभाव में राजनीतिशास्त्र का अध्ययन अधूरा ही रहेगा । बार्स के अनुसार, “समाजशास्त्र तथा आधुनिक राजनीतिशास्त्र के विषय में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पिछले 30 वर्षों में राजनीतिक सिद्धांत में जो परिवर्तन हुए हैं, वे सभी समाजशास्त्र द्वारा अंकित तथा सुझाए गए विकास के अनुसार ही हुए हैं।

समाजशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र में समानता –
1. समाजशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र दोनों ही समाज में मनुष्य के व्यवहार तथा गतिविधियों का अध्ययन करते हैं। प्रसिद्ध विद्वान अरस्तू के अनुसार, “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।”

2. सामाजिक जीवन तथा राजनीतिक जीवन एक-दूसरे से अत्यधिक जुड़े हुए हैं। जी. ई. जी. कॉलिन के अनुसार, “राजनीतिशास्त्र तथा समाजशास्त्र एक ही आकृति के दो रूप हैं।’ इसी तथ्य को स्पष्ट करते हुए एफ. जी. विल्सन ने कहा है कि “यह अवश्य स्वीकार कर लेना चाहिए कि आम तौर पर यह फैसला करना कठिन हो जाता है कि विशिष्ट लेखक को समाजशास्त्री, राजनीतिशास्त्री या दर्शनशास्त्री क्या मान जाए?”

3. समाजशास्त्री संस्थाएँ राजनीतिक संस्थाओं को प्रभावित करती हैं। राजनीतिक संस्थाओं के स्वरूप तथा प्रकृति समाज के स्वरूप तथा प्रकृति से निर्धारित होते हैं । गिडिंग्स के अनुसार, “जिस व्यक्ति को पहले समाजशास्त्र के मूल सिद्धांतों का ज्ञान न हो, उसे राज्य के सिद्धांत की शिक्षा देना वैसा ही है, जैसे न्यूटन के गति सिद्धांत को न जानने वाले को खगोलशास्त्र या ऊष्मा विज्ञान की शिक्षा देना।”

4. मनुष्य के सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन में अत्यधिक पारस्परिकता तथा अंत:निर्भरता पायी जाती है। दोनों ही एक-दूसरे पर प्रभाव डालते हैं। प्रसिद्ध विद्वान गिंसबर्ग के अनुसार, “यह कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र की उत्पत्ति राज्य के अतिरिक्त अन्य संस्थाओं के अध्ययन हेतु राजनीतिक अन्वेषण के क्षेत्र में विकास के परिणामस्वरूप हुई । उदाहरण के लिए परिवार या सम्पत्ति के स्वरूप और संस्कृति और सभ्यता के अन्य तत्त्व जैसे आचार, धर्म और कला, ये सामाजिक उपज माने जाते हैं तथा एक-दूसरे के संदर्भ में इनका अवलोकन किया जाता है।

समाजशास्त्र तथा राजनीति शास्त्र में विभिन्नताएँ अथवा अंतर –
1. समाजशास्त्र का क्षेत्र तथा दृष्टिकोण राजनीतिशास्त्र की अपेक्षा अधिक व्यापक तथा विस्तृत है। समाजशास्त्र में सभी सामाजिक संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है जबकि राजनीति शास्त्र में राज्य तथा सरकार के संगठन का ही अध्ययन किया जाता है। गार्नर के अनुसार, “राजनीतिशास्त्र मानव समुदाय के केवल एक रूप-राज्य से संबंधित, समाजशास्त्र मानव समुदाय के सभी रूपों से संबंधित है।”

2. समाजशास्त्र के द्वारा जीवन के समान्य पक्षों का अध्ययन किया जाता है जबकि राजनीतिशास्त्र जीवन के एक विशिष्ट पक्ष का अध्ययन करता है। गिलक्राइस्ट के अनुसार, “समाजशास्त्र मनुष्य का सामाजिक प्राणी के रूप में अध्ययन करता है। चूंकि राजनीति संगठन सामाजिक संगठन का एक विशिष्ट स्वरूप होता है, अतः राजनीति शास्त्र समाजशास्त्र की अपेक्षा अधिक विशिष्ट शास्त्र है।”

3. समाजशास्त्र का दृष्टिकोण समग्र है तथा यह चेतन व अचेतन दोनों ही अवस्थाओं का अध्ययन करता है जबकि राजनीतिशास्त्र का दृष्टिकोण एकपक्षीय है तथा यह केवल चेतन अवस्था का ही अध्ययन करता है।

4. समाजशास्त्रीय अध्ययन तथा ज्ञान जीवन के समस्त क्षेत्रों के लिए लाभदायक हैं जबकि राजनीति शास्त्र का ज्ञान केवल राजनीति के लिए लाभदायक है।

5. समाजशास्त्र के अंतर्गत सामाजिक संगठन तथा विघटन की उत्तरदायी प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जबकि राजनीतिशास्त्र शास्त्र में मुख्य रूप से राज्य तथा सरकार का अध्ययन किया जाता है जो मूल रूप से संगठित संस्थाएँ हैं।

अंत में गिलक्राइस्ट के शब्दां में हम कह सकते हैं कि “दोनों विज्ञानों की वास्तविक सीमाएँ अनमनीय रूप से परिभाषित नहीं की जा सकतीं। वे कभी-कभी एक-दूसरे की सीमाओं का अतिक्रमण करती हैं लेकिन दोनों के बीच एक स्पष्ट सामान्य भेद है।”

प्रश्न 6.
समाजशास्त्र तथा इतिहास में समानताएँ तथा विभिन्नताएँ बताइए। अथवा, समाजशास्त्र तथा इतिहास के बीच संबंध बताइए।
उत्तर:
समाजशास्त्र तथा इतिहास दोनों ही मानव समाज का अध्ययन करते हैं । इतिहास द्वारा प्रदान किए गए तथ्यों की व्याख्या तथा उनमें समन्वय समाजशास्त्र के द्वारा किया जाता है।

समाजशास्त्र तथा इतिहास में समानताएँ –

  • दोनों ही विषय मानव समाज का अध्ययन करते हैं।
  • समाजशास्त्रीय विश्लेषण ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर किया जाता है।
  • समाजशास्त्र तथा इतिहास दोनों ही मानवीय गतिविधियों तथा घटनाओं का अध्ययन करते हैं।
  • सामाजिक प्रक्रियाओं को समझने के लिए ऐतिहिासिक घटनाओं का अध्ययन आवश्यक है।
  • इतिहास तथा समाजशास्त्र की पारस्परिक निर्भरता के विषय में जी. ई. हावर्ड ने लिखा है कि, “इतिहास भूतकाल का समाजशास्त्र है और समाजशास्त्र वर्तमान इतिहास है।”
  • समाजशास्त्र के द्वारा ऐतिहासिक घटनाओं के अध्ययन हेतु सामाजिक पृष्ठभूमि प्रदान की जाती है । इसी प्रकार समाजशास्त्र अपनी अध्ययन सामग्री के लिए इतिहास पर निर्भर करता है।
  • यही कारण है कि बुलो ने समाजशास्त्र को इतिहास से पृथक् मानने से इंकार कर दिया

समाजशास्त्र तथा इतिहास में विभिन्नताएँ अथवा अंतर –

  • समाजशास्त्र विभिन्न घटनाओं में पायी जाने वाली समानताओं का अध्ययन करता है; जबकि इतिहास में समान घटनाओं में पायी जाने वाली भिन्नता का अध्ययन किया जाता है।
  • समाजशास्त्र के द्वारा समाज का समाजीकरण किया जाता है जबकि इतिहास के द्वारा विशिष्टीकरण तथा वैयक्तिकता की खोज की जाती है।
  • पार्क के अनुसार, “इतिहास जहाँ मानव अनुभवों तथा मानव प्रकृति का मूर्त विज्ञान है, समाजशास्त्र एवं अमूर्त विज्ञान है।”
  • समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं का अध्ययन सामाजिक संबंधों की दृष्टि से करता है जबकि इतिहास में घटनाओं के समस्त पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।
  • उदाहरण के लिए समाजशास्त्रीय युद्ध को सामाजिक घटना स्वीकार करके उसका व्यक्तियों के जीवन तथा सामाजिक संस्थाओं पर प्रभाव का अध्ययन करेगा। दूसरी तरफ, इतिहासकार युद्ध तथा उससे संबंधित सभी परिस्थिति का अध्ययन करेगा।

प्रश्न 7.
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र का संबंध स्पष्ट कीजिए। अथवा, समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में समानताएँ तथा विभिन्नताएँ बताइए।
उत्तर:
समाजशास्त्र तथा इतिहास एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं। सामाजिक गतिविधियों तथा व्यवहार आर्थिक गतिविधियों तथा व्यवहार से अत्यधिक प्रभावित होते हैं। समाजशास्त्र तथा इतिहास के पारस्परिक संबंधों के बारे में मेकाइवर ने लिखा है कि “इस प्रकार की आर्थिक घटनाएँ सदेव सामाजिक आवश्यकताओं तथा क्रियाओं के समस्त रूपों से निश्चित होती हैं तथा वे (आर्थिक घटनाएँ) सदैव प्रत्येक प्रकार की सामाजिक आवश्यकताओं व क्रियाओं को पुनर्निर्धारित, सृजित, स्वरूपीकृत एवं परिवर्तित करती हैं।”

वास्तव में आर्थिक संबंधों तथा गतिविधियों का पर्यावरण से सामाजिक संबंध है। थॉमस के अनुसार, “वास्तव में, अर्थशास्त्र समाजशास्त्र के विस्तृत विज्ञान की एक शाखा है…..”।

समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में समानताएँ –
1. समाजशास्त्रीय अध्ययन तथा अर्थशास्त्रीय अध्ययन समाजरूपी वस्त्र के ताने-बाने हैं। यही कारण है कि सामाजिक कारकों तथा आर्थिक कारकों को पृथक नहीं किया जा सकता है। अनेक विद्वानों ने सामाजिक तथा आर्थिक प्रघटनाओं का मिला-जुला अध्ययन किया है। इन विद्वानों में कार्ल मार्क्स, मैक्स वैबर तथा वेबलन आदि प्रमुख हैं।

2. सामाजिक घटनाओं का आर्थिक पहलू भी होता है। उदाहरण के लिए अपराध, निर्धनता, बेकारी, दहेज आदि सामाजिक घटनाओं का सशक्त आर्थिक पहल है। कार्ल मार्क्स ने तो आर्थिक तत्वों को समाज की एकमात्र गत्यात्मक शक्ति स्वीकार किया है।

समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में विभिन्नताएँ अथवा अंतर –
1. समाजशास्त्र मनुष्य के सामाजिक जीवन के समस्त पहलुओं तथा गतिविधियों का अध्ययन करता है जबकि अर्थशास्त्र मनुष्य के केवल आर्थिक पहलू का अध्ययन करता है।

2. समाजशास्त्र का अध्ययन, क्षेत्र तथा विषय-सामग्री अधिक व्यापक है जबकि अर्थशास्त्र के अध्ययन की प्रकृति व्यक्तिवादी है।

3. अध्ययन की प्रकृति एवं दृष्टिकोण से समाजशास्त्र समूहवादी सामाजिक विज्ञान है, जबकि अर्थशास्त्र के अध्ययन की प्रकृति व्यक्तिवादी है।

4. समाजशास्त्रीय विश्लेषण बहुकारकीय होते हैं जबकि अर्थशास्त्रीय विश्लेषण में आर्थिक कारकों को ही प्रमुखता तथा महत्त्व प्रदान किया जाता है।

5. समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जबकि अर्थशास्त्रीय दृष्टिकोण से मनुष्य एक आर्थिक प्राणी है।

प्रश्न 8.
समाजशास्त्र की प्रकृति तथा विषय-क्षेत्र की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(i) समाजशास्त्र की प्रकृति-समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है। समाजशास्त्र वैज्ञानिक पद्धति के निम्नलिखित सोपानों का प्रयोग करता है –

  • आनुभाविकता
  • सिद्धांत
  • संचयी ज्ञान तथा
  • मूल्य तटस्थता

जबकि दूसरी तरफ, कुछ विद्वान निम्नलिखित तर्कों के आधार पर समाजशास्त्र को एक विज्ञान स्वीकार नहीं करते हैं –

  • वस्तुनिष्ठता का अभाव
  • अवलोकन का अभाव
  • प्रयोग का अभाव
  • विषय-सामग्री मापने का अभाव तथा
  • भीवष्यवाणी का अभाव

समाजशास्त्र के विरुद्ध उपरोक्त वर्णित उपलब्धियों का सूक्ष्म विश्लेषण करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि समाजशास्त्र में विषय-वस्तु का क्रमबद्ध तरीके से वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।

समाजशास्त्र में निम्नलिखित विधियों अथवा यंत्रों का प्रयोग किया जाता है –

  • समाजमिति
  • प्रश्नावली
  • अनुसूची
  • साक्षात्कार
  • केस स्टडी

समाजशास्त्री का विषय – क्षेत्र-समाजशास्त्र की परिभाषा तथा प्रकृति की भाँति इसके विषय-क्षेत्र के बारे में भी विद्वानों में मतभेद हैं। वी. एफ. काल्बर्टन का मत है कि “क्योंकि समाजशास्त्र एक ऐसा लचीला विज्ञान है कि यह निर्णय करना कठिन है कि इसकी सीमा कहाँ शुरू होती है तथा कहाँ समाप्त…….”

समाजशास्त्र के क्षेत्र के बारे में समाजशास्त्रियों में निम्नलिखित दो संप्रदाय प्रचलित हैं –
1. विशिष्टीकृत या स्वरूपात्मक संप्रदाय – स्वरूपात्मक संप्रदाय के अनुसार समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के विशिष्ट स्वरूपों का अमूर्त दृष्टिकोण से अध्ययन करता है। उदाहरण के लिए यदि किसी बोतल में कोई भी द्रव पदार्थ जैसे दूध या पानी आदि डाला जाए तो बोतल के स्वरूप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस संप्रदाय के विद्वानों का मत है कि सामाजिक संबंध भी बोतल के समान हैं तथा उनका आकार अंतर्वस्तु के अनुसार नहीं बदलता है।

उदाहरण के लिए संघर्ष, सहयोग तथा प्रतिस्पर्धा के स्वरूप में कोई अंतर नहीं आएगा, चाहे उनका अध्ययन आर्थिक क्षेत्र में किया जाए अथवा राजनीतिक क्षेत्र में। इस संप्रदाय के प्रमुख समाजशास्त्री हैं-जॉर्ज सिमल, स्माल, वीरकांत, मैक्स वैबर तथा वॉन वीडा आदि।

आलोचना –

  • समाजशास्त्र में सामाजिक संबंधों के स्वरूपों के स्वरूप तथा अन्तर्वस्तु के बीच भेद भ्रामक है।
  • स्वरूपात्मक संप्रदाय ने समाजशास्त्र के क्षेत्र को संकुचित बना दिया है।
  • स्वरूपों का अध्ययन अंतर्वस्तुओं से पृथक नहीं किया जा सकता।

सोरोकिन ने ठीक ही कहा है कि “हम एक गिलास को उसके स्वरूप को बदले बिना शराब, पानी या चीनी से भर सकते हैं, परंतु मैं एक ऐसी सामाजिक संस्था के विषय में कल्पना भी नहीं कर सकता जिसका स्वरूप सदस्यों के बदलने पर भी न बदले।”

2. समन्वयात्मक संप्रदाय – समन्वयात्मक संप्रदाय के अनुसार समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है जिसका प्रमुख कार्य सामाजिक जीवन की सामान्य दशाओं का अध्ययन करना है। इस संप्रदाय के प्रमुख समाजशास्त्री हैं-दुर्खाइम, हॉबहाउस, सोरोकिन तथा गिंसबर्ग आदि।

आलोचना –

  • समन्वयात्मक संप्रदाय की विचारधारा भ्रामक है।
  • समाजशास्त्र अनेक सामाजिक विज्ञानों का समन्वय मात्र नहीं हो सकता।

प्रश्न 9.
समाजशास्त्र के विभिन्न दृष्टिकोणों का स्पष्टीकरण कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र के विभिन्न दृष्टिकोणों का अध्ययन करने के लिए कुछ प्रमुख समाजशास्त्रियों के विचारों का उल्लेख आवश्यक है –
(i) अगस्त कोंत (-1778-1857 ई.)-फ्रांस के दार्शनिक अगस्त कोंत को समाजशास्त्र का पिता कहा जाता है। उनका मत था कि समाजशास्त्र का स्वरूप वैज्ञानिक है तथा यह समग्र रूप से समाज का अध्ययन करेगा।

कोंत का मत था कि जो उपकरण तथा यंत्र प्राकृतिक विज्ञानों द्वारा प्रयोग में लाये जाते हैं, उनका प्रयोग समाजशास्त्रियों द्वारा किया जाना चाहिए।

अगस्त कोत ने समाजशास्त्र के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए निम्नलिखित विधियों का उल्लेख किया –

  • निरीक्षण
  • परीक्षण
  • ऐतिहासिक तथा
  • तुलनात्मक

अगस्त कोत ने सामाजिक यथार्थ को प्रत्यक्षवाद कहा। उसने प्रत्यक्षवादी समाजशास्त्र की दो मूल अवधारणाएँ बतायीं –

  • स्थिति मूलक तथा
  • गति मूलक

अगस्त कोंत का मत था कि भौतिकशास्त्र के नियमों की भाँति समाज के नियमों का विकास किया जा सकता है तथा इसी आधार पर उन्होंने अपना त्रि-स्तरीय नियम दिया –

  • धर्मशास्त्रीय स्थिति
  • तत्व मीमांसा स्थिति तथा
  • प्रत्यक्षात्मक अथवा वैज्ञानिक स्थिति

अगस्त कोंत के प्रमुख ग्रंथ हैं –

  • Positive Philosophy
  • System of Positive Polity
  • Religion of Humanity

(ii) हरबर्ट स्पेंसर (1820-1903 ई.) –

  • हरबर्ट स्पेंसर का जन्म इंगलैण्ड में हुआ था। कोंत की भाँति उन्होंने भी समाज की व्याख्या उद्विकासीय पद्धति के आधार पर की है।
    स्पेंसर का मत था कि सभी समाज सरलता से जटिलता की ओर बढ़ते हैं।
  • स्पेंसर का विचार था कि जिस प्रकार प्राणी का विकास हआ है, उसी प्रकार समाज का भी विकास हुआ है।
  • स्पेंसर ने समितियों, समुदायों, श्रम-विभाजन, सामाजिक विभेदीकरण, सामाजिक स्तरीकरण, विज्ञान तथा कलात्मक समाजशास्त्र के अध्ययन पर विशेष बल दिया है।
  • स्पेंसर के अनुसार समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र हैं-परिवार, धर्म, राजनीति, सामाजिक नियंत्रण तथा उद्योग आदि।

स्पेंसर के प्रमुख ग्रंथ –

  • Social Statics
  • The study of Sociology
  • The Principles of Sociology

(iii) कार्ल मार्क्स (1818-1883 ई.)-कार्ल मार्क्स का जन्म जर्मनी में हुआ था। यद्यपि मार्क्स ने अपने लेखों में कहीं भी समाजशास्त्र शब्द का प्रयोग नहीं किया है तथापि उन्होंने ‘सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं का सूक्ष्म निरीक्षण तथा विश्लेषण किया है। – यदि मार्क्स के विचारों को समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य के अन्तर्गत रखा जाए तो उनके विचारों का प्रभाव परिवार, संपत्ति, राज्य. विकास तथा स्तरण पर दिखाई देता है।

सामाजिक प्रक्रियाओं को समझने के लिए मार्क्स की निम्नलिखित अवधारणाएँ महत्त्वपूर्ण हैं-द्वंद्वात्मक भौतिकवाद, ऐतिहासिक भौतिकवाद तथ वर्ग तथा वर्ग-संघर्ष की अवधारणा। मार्क्स द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की अवधारणा को आर्थिक प्रघटनाओं की व्याख्या हेतु आवश्यक मानते थे। यही कारण है कि उन्होंने भौतिक जगत में वाद, प्रतिववाद तथा संश्लेषण को प्रमुखता प्रदान की है।

मार्क्स ने कहा है कि आज तक के सभी समाजों का इतिहास वर्ग-संघर्ष का इतिहास है। मार्क्स के अनुसार समाज अपने विकास की प्रक्रिया में इतिहास के निम्नलिखित विकास क्रमों से होकर गुजरता है

  • आदिम साम्यवादी व्यवस्था
  • दास प्रथा
  • कृषि व्यवस्था
  • सामंतवादी व्यवस्था
  • पूँजीवादी व्यवस्था।

मार्क्स का मत था कि वर्ग विहीन समाज संघर्ष के द्वारा प्राप्त हो सकता है। कार्ल मार्क्स के प्रमुख ग्रंथ –

  • The Proverty of Philosophy
  • The Communist Manifesto
  • The First Indian War of Independence

(iv) एमिल दुर्खाइम (1858-1917) – फ्रांसीसी समाजशास्त्री एमिल दुर्खाइम ने समाजशास्त्र के क्षेत्र में अगस्त कोंत की परंपरा का अनुसरण किया है। उनका मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक समाजशासत्र का विकास करना था।

दुर्खाइम का मत है कि समाजशास्त्र का क्षेत्र कुछ घटनाओं तक सीमित है तथा ये घटनाएँ सामाजिक तथ्य हैं । दुर्खाइम के अनुसार सामाजिक तथ्य कार्य करने, चिंतन तथा अनुभव करने की पद्धति है जो व्यक्ति की चेतना से बाहर होता है। बाह्यता बाध्यता सामाजिक तथ्य की दो प्रमुख विशेषताएँ हैं।

दुर्खाइम ने धर्म को समाज के सदस्यों के मध्य एक शक्तिशाली एकीकरण का माध्यम बताया है। वे धर्म को एक सामाजिक तथ्य बातते हैं।

दुर्खाइम के चिंतन के दो मुख्य केन्द्र हैं –

  • सामाजिक दृढ़ता एवं
  • सामूहिक चेतना।

दुर्खाइम के मुख्य अध्ययन क्षेत्र थे –

  • सामाजिक तथ्य
  • आत्महत्या एवं
  • धर्म

दुर्खाइम के प्रमुख ग्रंथ –

  • Division of Labour in Society
  • Suicide
  • The Elementary forms of Religious Life.

(v) मैक्स वैबर (1864-1920) – मैक्स वैबर का जन्म जर्मनी में हुआ था। वैबर ने समाजशास्त्र की परिभाषा करते हुए लिखा है कि “यह एक विज्ञान है, जो सामाजिक क्रियाओं की विवेचनात्मक व्याख्या करने का प्रयास करता है।”

मैक्स वैबर ने समाजशास्त्र को सामाजिक क्रिया का व्याख्यात्मक बोध बताया है। प्रत्येक क्रिया के लक्ष्य होते हैं। सामाजिक क्रिया के निम्नलिखित चार प्रकार हैं –

  • धार्मिक क्रिया
  • विवेकपूर्ण क्रिया
  • परंपरागत क्रिया
  • भावात्मक क्रिया
  • मैक्स वैबर द्वारा अधिकारी तंत्र, प्राधिकार, सत्ता तथा रजानीति आदि की विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है।

मैक्स वैबर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक Methodology of Social Sciences में कहा कि समाजशास्त्र को एक विषय के रूप में बोध की पद्धति को अपनाना चाहिए। मैक्स वैबर ने अपनी अध्ययन विधि को आदर्श रूप कहा है। उसने वस्तुपरकता की बजाए आंतरिकता एवं निरीक्षण-परीक्षण की बजाए बोध पर अधिक बल दिया है।

मैक्स वैबर के प्रमुख ग्रंथ –

  • The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism
  • The Theory of Social and Economic Organisation
  • The City

प्रश्न 10.
समाजशास्त्र क्या है? समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र-समाजशास्त्र शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘सोशियस’ तथा यूनानी भाषा के ‘लोगोंस’ शब्द से हुई है। ‘सोशियस’ का अर्थ है सामाजिक तथा ‘लोगोस’ का अर्थ है विज्ञान । इस प्रकार शाब्दिक अर्थ के दृष्टिकोण से समाजशास्त्र का अर्थ है सामाजिक अथवा समाज का विज्ञान।

अगस्त कोंत को ‘समाजशास्त्र का पिता’ कहा जाता है। 1839 ई. में उन्होंने समाजशास्त्र शब्द का प्रयोग किया था। कोंत का मत था कि समाजशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक है तथा यह संपूर्ण समाज का समग्रतापूर्ण अध्ययन करेगा।

हॉबहाउस के अनुसार, ‘समाजशास्त्र मानव मस्तिष्क की अंत:क्रियाओं का अध्ययन करता है।” पार्क तथा बर्गेस के अनुसार, “समाजशास्त्र सामूहिक व्यवहारों का विज्ञान है।” एमिल दुर्खाइम के अनुसार, “समाजशास्त्र सामूहिक प्रतिनिधियों का अध्ययन है।”

सोरोकिन के अनुसार, “समाजशास्त्र सामाजिक-सांस्कृतिक घटनाओं, सामान्य स्वरूपों तथा विभिन्न प्रकार के अंत:संबंधों का सामान्य विज्ञान है।” प्रसिद्ध समाजशास्त्री मैक्स वैबर ने सामाजिक क्रियाओं को समाजशास्त्र का प्रमुख अध्ययन विषय स्वीकार किया है। समाजशास्त्र समूह में मानव व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन करता है। समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति की व्याख्या-समाजशास्त्र विज्ञान है अथवा नहीं, इस संबंधों में विद्वानों में अत्यधिक मतभेद हैं।

इस प्रश्न का सही समाधान प्राप्त करने के लिए यह जानना जरूरी है कि विज्ञान किसे कहते हैं तथा विज्ञान द्वारा कौन-कौन सी पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है? जहाँ तक विज्ञान का प्रश्न है-कोई भी विषय सामग्री विज्ञान हो सकती है, यदि उसे क्रमबद्ध तरीके से, वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा प्राप्त किया गया हो।

इस संबंध में गिलिन तथा गिलिन ने लिखा है कि “जिस क्षेत्र में हम अनुसंधान करना चाहते हैं, उसकी ओर एक निश्चित प्रकार की पद्धति ही विज्ञान का वास्तविक चिह्न है।” समाजशास्त्र अन्वेष” हेतु वस्तुनिष्ठता, निष्पक्षता तथा व्यवस्थित सिद्धांतों का अवलंबन करता है।

समाजशास्त्र द्वारा अध्ययन हेतु वैज्ञानिक विविध के निम्नलिखित सोपानों का प्रयोग किया जाता है –
(i) आनुभाविकता – आनुभाविकता का अर्थ है अनुभवों की जानकारी हासिल करना। अवलोकन तथा तार्किकता के आधार पर तथ्यों का सामान्यीकरण किया जाता है। आनुभाविक प्रमाण के आधार पर समाजशास्त्रीय ज्ञान के समस्त पक्षों का वैज्ञानिक परीक्षण किया जा सकता है।

(ii) सिद्धांत – सिद्धांत समाजशास्त्रीय अध्ययन का केन्द्रीय बिन्दु है। सिद्धांत आनुभाविक तथा तार्किक दोनों होता है। सिद्धांत तथा तथ्य में घनिष्ठ पारस्परिकता होती है। सिद्धांत के माध्यम से जटिल अवलोकनों को सार रूप में अमूर्त तार्किक अंतर्संबंधित अवस्था में प्रस्तुत किया जाता है। सिद्धांत कार्य-कारण संबंधों के वैज्ञानिक तथा तार्किक विश्लेषण में सहायक सिद्ध हो सकता है। सिद्धांतों का मुख्य उद्देश्य सामाजिक प्रघटनाओं तथा प्राकल्पनाओं की प्रकृति को समझने के लिए सामाजिक तथ्यों की व्याख्या करना तथा उनमें अंतर्संबंध स्थापित करना है। इन प्राकलपनाओं की वैधता की जाँच पुनः आनुभाविक अनुसंधान के द्वारा की जा सकती है।

(iii) संचयी ज्ञान – समाजशास्त्री के संचयी ज्ञान अथवा ज्ञान भंडार का व्यवस्थित परीक्षण किया जा सकता है। अत: हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र संचयी ज्ञान है क्योंकि इसके सिद्धांत परस्पर संबद्ध हैं। पुराने सिद्धांतों के आधार पर ही नवीन संशोधित सिद्धांतों को विकसित किया जाता है।

(iv) मूल्य तटस्थता – समाजशास्त्र को एक आदेशात्मक या अग्रदर्शी विज्ञान नहीं कहा जा सकता है। समाजशास्त्र का संबंध विषयों से है। मैक्स वैबर का मत है कि मूल्य-तटस्थता उपागम ही वैज्ञानिक विकास को संभव बना सकता है। वास्तव में, समाजशास्त्र के शोधकर्ता को मूल्यों के बारे में तटस्थ रहना चाहिए। मोरिस गिंसबर्ग का भी मत है कि वस्तुनिष्ठता तथा तार्किकता का अवलंबन करके ही समाजशास्त्र को वैज्ञानिक स्थिति प्रदान की जा सकती है। अतः शोधकर्ता को पूर्वग्रहों तथा पक्षपातों से दूर रहना चाहिए। उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है। समाजशास्त्र के द्वारा समाजमिति के पैमाने, प्रश्नावली, अनुसूची, साक्षात्कार तथा केस स्टडी आदि यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
आप समाज की अवधारण को कैसे स्पट करेंगे?
उत्तर:
समाज की अवधारणा निम्नलिखित बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट की जा सकती है –
(i) समाज एक संरचना के रूप में-समाज को समझने के लिए इसे एक संरचना के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसका अभिप्राय है कि समाज अंतर्संबंधित संस्थाओं का ‘अभिज्ञेय’ ताना-बाना है। इस संदर्भ में अभिज्ञेय शब्द अत्यंत महत्वपूर्ण तथा सार्थक है।

(ii) समाज पुनरावर्तन के रूप में-यह धारणा कि समाज संरचनात्मक होते हैं, यह उनके पुनरुत्पादन पर निर्भर है। इस संदर्भ में ‘संस्था’ शब्द अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सामाजिक व्यवहार के संस्थागत स्वरूप विश्वास तथा व्यवहार के प्रकारों को बताते हैं तथा जिसकी आवृत्ति तथा पुनरावृत्ति होती रहती है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि उनका सामाजिक पुनरुत्पादन होता रहता है।

(iii) समाज अंतर्विरोध के रूप में यह बात स्वीकार की जाती है कि समाज संरचनात्मक है तथा इसका पुनरुत्पादन होता है लेकिन यह बात नहीं बताई जाती है कि संरचनात्मक तथा पुनरुत्पादन क्यों और कैसे होता है ? प्रसिद्ध विद्वान कार्ल मार्क्स उन आधारों को स्पष्ट करते हैं जिनसे पता चलता है कि विशिष्ट सामाजिक रचनाओं की उत्पत्ति कैसे होती है तथा विशिष्ट उत्पादनों के प्रकारों से इसका क्या संबंध है ? इस प्रकार समाज को स्थायी या शांतिपूर्ण उद्विकास संरचना नहीं कहा जा सकता है लेकिन इसे उत्पादन के बोर में सामाजिक संबंधों के परस्पर विरोधों द्वारा उत्पन्न संघर्षों के एक अस्थायी समाधान के रूप में समझा जा सकता है। इस प्रकार, पूँजीबादी समाज की प्रक्रिया में होने वाली परिवर्तन उत्पादकता के साधनों में होने वाले तनावों तथा अंत:क्रियाओं में पाए जाते हैं।

(iv) समाज संस्कृति के रूप में-समाजशास्त्रियों द्वारा सामाजिक संबंधों के सांस्कृतिक पहलुओं को लगातार महत्त्व प्रदान किया गया है। समाज की रचना सदस्यों की पारस्परिक समझदारी से ही संभव है। मनुष्याओं के द्वारा भाषा का निर्माण किया गया है, क्योंकि उनका (मनुष्य का) अस्तित्व भाषा तथा सांकेतिक रूप से विचारों के आदान-प्रदान पर निर्भर करता है। मैक्स वैबर तथा टालकॉप परसंस ने संस्कृति का संबंध समाज के विचारों तथा मूल्यों की धारणाओं से स्वीकार किया है।

(v) समाज एक प्रक्रिया के रूप में-समाज सामाजिक संबंधे का जाल है तथा सामाजिक संबंधों का निर्माण मनुष्यों के बीच अंतःक्रियाओं से होता है। समाज गतिशील हैं, अत: उसमें निरंतर परिवर्तन होते रहता है। इस प्रकार समाज एक प्रक्रिया है। वास्तव में, जब सामाजिक परिवर्तन निरंतर तथा निश्चयात्मक होता है, तो ऐसे परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है।
सामाजिक प्रक्रिया के मुख्य शब्द निम्नलिखित हैं –

  • संधिवार्ता
  • स्व तथा अन्य तथा
  • प्रतिबिंबता।

समाज का निर्माण तथा पुनःनिर्माण सामाजिक अंतःक्रिया के द्वारा होता है। समाज को व्यक्तियों पर थोपा नहीं जाता है, वरन् सहभागियों द्वारा इसे स्वीकार किया जाता है। मेकाइवर तथा पेज ने सामाजिक प्रक्रिया की परिभाषा करते हुए लिखा है कि “एक प्रक्रिया का तात्पर्य होता है कि अवस्थाओं में अंतर्निहित शक्तियों की क्रियाओं के द्वारा उत्पन्न निरंतर परिवर्तन, जो निश्चित प्रकार से होता है।”

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र सामाजिक प्रतिनिधियों का अध्ययन है, यह किसका कथन है?
(a) मेकाइवर
(b) दुर्थीम
(c) मैक्स वैबर
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(b) दुर्थीम

प्रश्न 2.
मानवशास्त्र और समाजशास्त्र जुड़वाँ बहनें हैं, किसने कहा है?
(a) मेकाइवर
(b) क्रोवर
(c) हॉवेल
(d) मैक्स बेबर
उत्तर:
(b) क्रोवर

प्रश्न 3.
दोनों विज्ञानों को जोड़नेवाली शाखा कौन है?
(a) समाजशास्त्र और मनोविज्ञान
(b) समाजशास्त्र और मानवशास्त्र
(c) समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र
(d) समाजशास्त्र और इतिहास
उत्तर:
(d) समाजशास्त्र और इतिहास

प्रश्न 4.
किसका कथन है? सामाजिक प्रक्रियाएँ सामाजिक अन्तःक्रिया के विशिष्ट रूप हैं।
(a) मेकाइवर
(b) ग्रीन
(c) लुण्डवर्ग
(d) गिलिन एवं गिलिन
उत्तर:
(b) ग्रीन

प्रश्न 5.
संगठनकारी सामाजिक प्रक्रिया समूह में एकता संतुलन एवं संगठन बनाये रखने में सहयोग देती है …………………..
(a) सहयोग
(b) समायोजन
(c) समाजीकरण
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 6.
समितियों की विशेषता निम्नलिखित में से क्या है?
(a) संगठन
(b) निश्चित उद्देश्य
(c) मनुष्यों का समूह
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 7.
समाजशास्त्र संबंध स्थापित करती है …………………
(a) व्यक्तिगत समस्या एवं जनहित मुद्दों के बीच
(b) समाज एवं परिवार के बीच
(c) व्यक्ति और परिवार के बीच
(d) उपर्युक्त कोई सही नहीं हैं
उत्तर:
(a) व्यक्तिगत समस्या एवं जनहित मुद्दों के बीच

प्रश्न 8.
समाजशास्त्र बँधा हुआ है …………………
(a) दार्शनिक अनुचिंतनों से
(b) ईश्वरवादी व्याख्यानों से
(c) सामान्य बौद्धिक प्रेक्षणों से
(d) वैज्ञानिक कार्यविधियों से
उत्तर:
(d) वैज्ञानिक कार्यविधियों से

प्रश्न 9.
एक समाजशास्त्री का दायित्व है …………………
(a) मूल्यरहित रिपोर्ट तैयार करना
(b) मूल्य रिपोर्ट तैयार करना
(c) सापेक्ष रिपोर्ट तैयार करना
(d) उपर्युक्त सभी तीनों
उत्तर:
(a) मूल्यरहित रिपोर्ट तैयार करना

प्रश्न 10.
समाजशास्त्र संघ को समझता है …………………..
(a) कला
(b) कला, विज्ञान
(c) कला, विज्ञान और गणित
(d) विज्ञान
उत्तर:
(d) विज्ञान

प्रश्न 11.
समाजशास्त्र में मूल संबंधित होते हैं ………………….
(a) वस्तुओं के नियत से
(b) आचरण के प्रतिमानों से
(c) अनैतिक व्यवहारों से
(d) क्रिया-प्रतिक्रिया से
उत्तर:
(b) आचरण के प्रतिमानों से

प्रश्न 12.
समाजशास्त्र के पिता या जनक कौन थे?
(a) अगस्त कोंत
(b) कार्ल मार्क्स
(c) मैक्स वैबर
(d) हॉव हाउस
उत्तर:
(a) अगस्त कोंत

प्रश्न 13.
समाजशास्त्र के क्षेत्रों को कितने भागों में बाँटा गया है?
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) पाँच
उत्तर:
(a) दो

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में समाजशास्त्र की विजय सामग्री क्या है?
(a) सभी सामाजिक तथा असामाजिक प्रक्रियाएँ
(b) सभी सामाजिक संस्थाएँ तथा प्रक्रियाएँ
(c) सभी प्रकार की संस्थाएँ
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 15.
किस वैज्ञानिक का मानना है कि समाजशास्त्र समाज का अध्ययन है?
(a) मेकाइवर
(b) मैक्स बेवर
(c) वार्ड
(d) सारोकिन
उत्तर:
(a) मेकाइवर

प्रश्न 16.
समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों का विज्ञान है, यह किसने कहा है?
(a) सोरोकिन
(b) मेकाइवर
(c) मैक्स बेवर
(d) दुखाईम
उत्तर:
(a) सोरोकिन


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