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Wednesday, June 22, 2022

BSEB Class 11 Sociology Doing Sociology Research Methods Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Sociology Doing Sociology Research Methods Book Answers

BSEB Class 11 Sociology Doing Sociology Research Methods Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Sociology Doing Sociology Research Methods Book Answers
BSEB Class 11 Sociology Doing Sociology Research Methods Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Sociology Doing Sociology Research Methods Book Answers


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Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 11th
Subject Sociology Doing Sociology Research Methods
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Bihar Board Class 11 Sociology समाजशास्त्र : अनुसंधान पद्धतियाँ Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सामाजिक विज्ञान में विशेषकर समाजशास्त्र जैसे विषय में ‘वस्तुनिष्ठता’ के अधिक जटिल होने का क्या कारण है?
उत्तर:
प्रतिदिन की बोलचाल की भाषा में ‘वस्तुनिष्ठता’ का आशय पूर्वाग्रह रहित, तटस्थ या केवल तथ्यों पर आधारित होता है। किसी भी वस्तु के बारे में वस्तुनिष्ठ होने के लिए, हमें वस्तु के बारे में अपनी भावनाओं या प्रवृत्तियों को अनदेखा करना चाहिए। सामाजिक विज्ञान और समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठता की अधिक जटिलता का कारण ‘व्यक्तिपरकता’ है। इसमें व्यक्ति पूर्वाग्रह से ग्रस्त रहता है और परिणाम स्पष्ट नहीं आते हैं।

प्रश्न 2.
सर्वेक्षण का अर्थ बताइए।
उत्तर:
सर्वेक्षण विधि का अर्थ : सर्वेक्षण विधि का प्रयोग सामाजिक विज्ञानों में गणनात्मक अध्ययन के लिए किया जाता है। अध्ययनकर्ता के द्वारा अध्ययन की समस्या के अनुसार व्यक्तियों से सुनियोजित एवं क्रमबद्ध रूप से प्रश्न पूछे जाते हैं । मोर्स के अनुसार, “संक्षेप में, सर्वेक्षण किसी सामाजिक स्थिति या समस्या अथवा जनसंख्या के परिभाषित उद्देश्यों के लिए वैज्ञानिक तथा व्यवस्थित रूप से विश्लेषण की एक पद्धति है।”

सर्वेक्षण पद्धति की निम्नलिखित चार प्रमुख प्रक्रियाएँ हैं –

  • सर्वेक्षण का नियोजन
  • आँकड़ों का एकत्रीकरण
  • आँकड़ों का विश्लेषण तथा विवेचन
  • आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण।

प्रश्न 3.
वैज्ञानिक पद्धति का प्रश्न विशेषताः समाजशास्त्र में क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
अन्य सभी वैज्ञानिक विषयों की तरह समाजशास्र में भी पद्धतियाँ प्रक्रियाएँ महत्पूर्ण हैं जिसके द्वारा ज्ञान एकत्रित होता है। अंतिम विश्लेषण में सभी समाजशास्त्री एक आम आदमी से अलग होने का दावा कर सकते हैं। इसका कारण यह नहीं है कि वे कितना जानते हैं या वे क्या जानते हैं, परन्तु इसका कारण है कि वे किस ज्ञान को प्राप्त करते हैं? यही एक कारण है कि समाजशास्र में वैज्ञानिक पद्धति का विशेष महत्व है।

प्रश्न 4.
सहभागी प्रेक्षण के दौरान समाजशास्त्री और नृजाति विज्ञानी क्या करते हैं?
उत्तर:
सहभागी प्रेक्षण विधि के अंतर्गत समाजशास्त्री और नृजाति विज्ञान अनुसंधानकर्ता स्वयं भूमिका का संपादन करता है अथवा वह अध्ययन की स्थिति में स्वयं हिस्सा लेता है। प्रतिभागी प्रेक्षण आँकड़े एकत्र करने की एक प्रविधि है। इसमें समाजशास्त्री और नृवंश विधानशास्री अध्ययन किए जाने वाले व्यक्तियों के व्यवहारों को बिना प्रभावित किए उनकी गतिविधियों में भाग लेता है । चूँकि इसमें अनुसंधाकर्ता स्वयं भाग लेता है अत: इसके निष्कर्ष में इसके (अनुसंधानकर्ता संवेगात्मक रूप से संबंद्ध होने का भय बना रहता है।

प्रश्न 5.
“प्रतिबिंबता’ का क्या तात्पर्य है तथा समाजशास्त्र में क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
‘प्रतिबिंबता का तात्पर्य है-एक अनुसंधानकर्ता की वह क्षमता जिसमें वह स्वयं को अवलोकन और विश्लेषण करता है। समाजशास्त्र में अनुसंधानकर्ता प्रतिबिंबित होने के पश्चात् पूर्वाग्रहों से ग्रस्त नहीं रहता जिस कारण परिणाम सदैव सटीक आते हैं।

प्रश्न 6.
असहभागी अवलोकन का अर्थ बताइए।
उत्तर:
असहभागी अवलोकन का अर्थ-असहभागी अवलोकन के अंतर्गत अवलोकनकर्ता जिस समूह का अध्ययन करता है, वह उससे पृथक् अथवा असम्बद्ध रहता है। समूह के लोगों को साधारणतया इस बात की जानकारी नहीं होती है कि उनका अवलोकन किया जा रहा है हमेरस्ले तथा अकिंसन के अनुसार, “इस अपरिचित स्थिति को अनुसंधानकर्ता केवल देखकर तथा सुनकर ही समझ पाता है तथा इसी से (देखकर, सुनकर) वह उस समूह की संरचना तथा संस्कृति को भी समझता है। असहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्ता अवलोकित व्यक्तियों की गतिविधियों में भागीदारी अथवा हस्तक्षेप नहीं करता है।

प्रश्न 7.
प्रविधियों की परिभाषा दीजिए तथा इसकी विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
प्रविधियों की परिभाषा-समाज विज्ञानों में वास्तविक तथ्यों तथा संरचनाओं के एकत्रीकरण हेतु कुछ विशेष तरीकों का प्रयोग करना पड़ता है, इन्हें प्रविधि कहा जाता है। मोजर के अनुसार, “प्रविधियाँ एक समाज वैज्ञानिक के लिए वे मान्य तथा सुव्यवस्थित तरीके होते हैं, जिन्हें वह अपने अध्ययन में संबंधित विश्वसनीय तथ्यों को प्राप्त करने हेतु प्रयोग में लाता है।”

प्रविधियों की विशेषताएँ –

  • प्रविधियों के द्वारा संबंधित वस्तुपरक तथा विश्वसनीय तथ्यों को वैज्ञानिक तरीके से एकत्रित किया जाता है।
  • प्रविधियों का चुनाव अनुसंधान की प्रकृति के अनुसार किया जाता है।
  • प्रविधियों का प्रयोग तर्कसंगत तरीके से किया जाता है।

प्रश्न 8.
निदर्शन सर्वेक्षण अथवा प्रतिदर्श का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
निदर्शन सर्वेक्षण अथवा प्रतिदर्श का अर्थ-निदर्शन सर्वेक्षण अथवा प्रतिदर्श के अंतर्गत अध्ययन किए जाने वाले समस्त व्यक्तियों से प्रश्न नहीं पूछे जाते हैं। इसके अंतर्गत जिन इकाइयों का अध्ययन किया जाता है, उनका चयन समग्र से सावधानीपवूक किया जाता है। चयन में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि निदर्शन सर्वेक्षण में सम्मिलित समस्त व्यक्ति जनसमुदाय की विशेषताओं के प्रतिनिधि हों।

उदाहरण के लिए जब हम दाल पकाते हैं तो एक अथवा दो दानों की जाँच करके यह बता देते हैं कि दाल पक गई अथवा नहीं। इस प्रकार एक या दो पके दाल के दोन संपूर्ण पकी दाल के प्रतिनिधि बन जाते हैं। निदर्शन सर्वेक्षण का प्रयोग वर्तमान समय से सभी सामाजिक विज्ञानों में हो रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल सेम्पल सर्वे विकास योजनाओं का अध्ययन निदर्शन सर्वेक्षण द्वारा करता है।

प्रश्न 9.
एक प्रविधि के रूप में अवलोकन की सीमाएँ बताइए।
उत्तर:
एक प्रविधि के रूप में अवलोकन की निम्नलिखित सीमाएँ हैं –

  • किसी घटना विशेष के बारे में पूर्वानुमान काफी कठिन कार्य है।
  • किसी घटना विशेष की अवधि के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं होती है।।
  • अवलोकन प्रविधि के माध्यम से एकत्रित सामग्री को परिमाणीकत नहीं किया जा सकता है।
  • अवलोकन प्रविधि अपेक्षाकृत एक व्ययपूर्ण प्रविधि है।
  • अवलोकन की प्रविधि में विश्वसनीयता तथा वैधता की समस्याएँ आती है।

प्रश्न 10.
प्रश्नावली प्रविधि के मुख्य लाभ बताइए।
उत्तर:
प्रश्नावली प्रविधि के प्रमुख लाभ निम्नलिखित है।

  • प्रश्नावली प्रविधि अपेक्षाकृत कम खर्चीली है।
  • प्रश्नावली प्रविधि के द्वारा प्रशासकीय समय की भी बचत होती है।
  • प्रश्नावलियाँ एक ही समय में डाक द्वारा सूचनादाताओं के पास भेजी जा सकती हैं।
  • प्रश्नावली प्रविधि की सहायता से एक विस्तृत क्षेत्र से सूचनाएँ एकत्रित की जा सकती हैं।

लुंडबर्ग के अनुसार, “मूल रूप से, प्रश्नावली प्रेरणाओं का एक समूह है, जिसके प्रति शिक्षित व्यक्ति उत्तेजित किए जाते हैं तथा इन उत्तेजनाओं के अंतर्गत वे अपने व्यवहार का वर्णन करते हैं।”

प्रश्न 11.
प्रश्नावली प्रविधि का अर्थ तथा प्रकार बताइए।
उत्तर:
(i) प्रश्नावली प्रविधि का अर्थ – प्रश्नावली प्रविधि के अंतर्गत क्रमब तरीके से प्रश्न पूछे जाते हैं तथा आवश्यक आकड़े एकत्रित किए जाते हैं। इस प्रकार क्रमबद्ध तरीके से तैयार किए गए प्रश्नों के सूचीक्रम को प्रश्नावली अथवा साक्षात्कार तालिका कहते हैं। जे0 डी0 पोप के अनुसार, “एक प्रश्नावली को प्रश्नों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” सूचनादाता को बिना एक अनुसंधानकर्ता या प्रगणक की व्यक्तिगत सहायता के उत्तर देना होता है। साधारणतया, प्रशनावली डाक द्वारा भेजी जाती है, लेकिन इसे व्यक्तियों को बाँटा भी जा सकता है। प्रत्येक स्थिति में यह सूचना प्रदान करने वाले द्वारा भरकर भेजी जाती है।

(ii) प्रश्नावली के प्रकार : प्रश्नावली के प्रमुख निम्नलिखित है।

  • स्तरीय प्रश्नावली
  • खुली अथवा अप्रतिबंधित प्रश्नावली
  • बंद अथवा प्रतिबंधित प्रश्नावली
  • चित्रित प्रश्नावली तथा
  • मिश्रित प्रश्नावली

प्रश्न 12.
वैज्ञानिक पद्धति क्या है?
उत्तर:
वैज्ञानिक पद्धति उस पद्धति को कहते हैं जिसमें अध्ययनकर्ता निष्पक्ष ढंग से किसी विषय समस्या या घटना का वर्णन करता है। वैज्ञानिक पद्धति तथ्यों का व्यवस्थित अवलोकन, वर्गीकरण तथा व्याख्या करता है। इतना ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक पद्धति एक सामूहिक शब्द है जो अनेक प्रक्रियाओं को व्यक्त करता है तथा जिनकी सहायता से विज्ञान का निर्माण होता है। वैज्ञानिक पद्धति के अन्तर्गत व्यवस्थित ज्ञान प्राप्त किया जाता है। अतः वैज्ञानिक पद्धति का अर्थ ज्ञान के विशिष्ट संचय से है।

प्रश्न 13.
सामाजिक सर्वेक्षण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सामाजिक सर्वेक्षण समाजिक अनुसंधान की एक विधि है। सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करता है। कोई भी शोधकर्ता किसी क्षेत्र में जाकर किसी समस्या से संबंधित तथ्यों का संकलन करता है, उसे सामाजिक सर्वेक्षण कहते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण बताइए।
उत्तर:
वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं –

  1. समस्या का निर्धारण – वैज्ञानिक पद्धति के अंतर्गत सर्वप्रथम समस्या का निर्धारण किया जाता है। समस्या से संबंधित सामान्य अवधारणाओं में परिभाषा देनी पड़ती है।
  2. अनुसंधान की रूपरेखा का नियोजन करना – वैज्ञानिक पद्धति के दूसरे चरण के अंतर्गत क्रमबद्ध तरीके से आँकड़ों का संकलन, विश्लेषण तथा मूल्यांकन किया जाता है।
  3. क्षेत्र कार्य – आँकड़ों का एकत्रीकरण पूर्व निर्धारित योजना के अंतर्गत किया जाता है।
  4. आँकड़ों का विश्लेषण करना – समाज वैज्ञानिकों द्वारा सावधानीपूर्वक आँकड़ों को संहिताबद्ध किया जाता है। इसके पश्चात् इसका वर्गीकरण तथा सारणीबद्ध करते हैं।
  5. निष्कर्ष निकालना – अनसंधानकर्ता द्वारा आँकड़ों का क्रमबद्ध अंकलन करने के पश्चात् परिणामों का सामान्यीकरण किया जाता है। इस प्रकार, निष्कर्ष निकाल जाते हैं।
  6. निष्कर्षों का पुनः सत्यापन भी किया जाता है।

प्रश्न 2.
वैज्ञानिक अवलोकन की दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • वैज्ञानिक अवलोकन में भी अन्य विज्ञानों की भाँति आँकड़े इंद्रिजन्य अवलोकन के माध्यम से एकत्रित किए जाते हैं।
  • अवलोकन जैसा कि हम जाते हैं कि एक प्रविधि है, जो सामाजिक प्रघटना की प्रत्यक्ष जानकारी को संभव बनाती है।
  • अवलोकन प्रविधिं तुलनात्मक रूप से अच्छी जानकारी तथा विश्वसनीयता निश्चित करती है।
  • अवलोकन शब्द का प्रयोग यहाँ तथा दूसरे स्थानों पर उन समस्त स्वरूपों के लिए किया जाता है, जिनके विषय में हमें जानकारी होती है तथा जो हमारी इंद्रियों पर प्रभाव डालते हैं।
  • हमें यह प्रत्युत्तर तथा एक आँकड़े में अंतर करना चाहिए। एक प्रत्युत्तर किया का प्रकटीकरण है। एक आँकड़ा प्रत्युत्तर के अभिलेखन का उत्पाद है।
    (a) विश्वसनीयता तथा अंतर-व्यक्तिनिष्ठता।
    (b) विश्सनीयता तथा अंतर-व्यक्तिनिष्ठा को अवलोकन प्रक्रिया के दो तत्वों के साथ कार्य करना पड़ता है जिन्हें बोध तथा अभिलेखन कहते हैं।

गालतुंग ने दो सिद्धान्त दिए हैं –

  • अंतर – व्यक्तिनिष्ठा तथा विश्वसनीयता का सिद्धान्त-एक ही अवलोकनकर्ता द्वारा एक ही प्रत्युत्तर का जब बार-बार अवलोकन किया जाता है तो समान आँकड़े प्राप्त होंगे।
  • अंतर – वस्तुनिष्ठता का सिद्धान्त-जब एक ही प्रत्युत्तर को विभिन्न अवलोकनकर्ताओं द्वारा बार-बार दोहराया जाता है तो समान आँकड़े प्राप्त होंगे।

उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर वैधता के सिद्धान्त का उल्लेख किया जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार एक अवलोकन वैध है, जब अवलोकनकर्ता वही अवलोकित रहता है जो वह चाहता है। इस प्रकार वैधता प्रकट तथा प्रच्छन्न संबंधों को स्पष्ट रूप से देखते हैं वैधता के सिद्धान्त के अंतर्गत आँकड़ों को इस प्रकार एकत्रित किया जाता है कि उसके आधार पर उपयुक्त अनुमान प्राप्त किए जा सकें। इन निष्कर्ष द्वारा प्रकट स्तर तथा प्रच्छन्न स्तर के अंतर को स्पष्ट किया जाता है।

प्रश्न 3.
अवलोकन की परिभाषा दीजिए। इसके लक्षण बताइए।
उत्तर:
(i) अवलोकन की परिभाषा – अवलोकन वस्तुत: वैज्ञानिक पद्धति की मूल प्रविधि है। वैज्ञानिक अवलोकन के माध्यम से ऐसे तथ्यात्मक प्रमाणों को एकत्रित किया जाता है, जिन्हें सत्यापित किया जा सके । वैज्ञानिक अवलोकन के लिए निम्नलिखित चरणों का अनुसरण आवश्यक है –

  • यथार्थता
  • सुस्पष्टता अथवा शुद्धता
  • क्रमबद्धता
  • प्रतिवेदन

मोजर के अनुसार, “अवलोकन को स्पष्ट रूप से वैज्ञानिक अन्वेषण की शास्त्रीय पद्धति कहा जा सकता है।………….वास्तविक रूप में अवलोकन में कानों तथा वाणी की अपेक्षा आँखों का अधिक प्रयोग होता है। पी० वी० यंग के अनुसार, “अवलोकन नेत्रों द्वारा एक विचारपूर्वक अध्ययन है-जिस सामूहिक व्यवहार तथा जटिल सामाजिक संस्थाओं तथा साथ ही साथ संपूर्णता वाली पृथक इकाइयों के अन्वेक्षण हेतु प्रणाली में उपयोग किया जाता है।”

(ii) अवलोकन के प्रमुख लक्षण : ब्लैक तथा चैपियन ने अवलोकन के निम्नलिखित प्रमुख लक्षण बताए हैं –

  • मानव व्यवहार का अवलोकन किया जाता है।
  • अवलोकन के जरिए उन महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है जिनसे सहभागियों का सामाजिक व्यवहार प्रभावित होता है।
  • जिस व्यक्ति का अवलोकन किया जाता है उसके विषय में वास्तविक ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
  • सामाजिक जीवन की आधार सामग्री जो नियमित थी बार-बार अवलोकित की जाती है, कि परिभाषित की जा सकती है तथा दूसरे अध्ययनों की तुलना में इसे काम में लाया जा सकता है।
  • अवलोकन प्रविधि के माध्यम से अवलोकनकर्ता पर कुद नियंत्रण रखा जाता है। हालाँकि, जिन व्यक्तियों तथा वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है, उन पर अवलोकन प्रविधि कोई नियंत्रण नहीं रखती है।
  • अवलोकन पद्धति उपकल्पनाओं से मुक्त अन्वेषण पर केन्द्रित होती है।
  • अवलोकन प्रविधि स्वतंत्र चर के साथ किसी भी प्रकार के फेर-बदल से बचती है।
  • भिलेखन चयनित नहीं होता है।

प्रश्न 4.
सहभागी अवलोकन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
सहभागी अवलोकन का अर्थ – सहभागी अवलोकन के अंतर्गत अवलोकनकर्ता के अध्ययन की स्थिति में स्वयं भाग लिया जाता है। सहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्ता के द्वारा भूमिका का संपादन स्वयं किया जाता है।

सहभागी अवलोकन तीन प्रकार का होता है –

  • सहभागी अवलोकनकर्ता के रूप में – अवलोकन का यह स्वरूप छिपा हुआ नहीं होता है। अवलोकनर्ता की भूमिका संपादन न होकर केवल अवलोकर्ता ही होता है।
  • अवलोकनकर्ता सहभागी के रूप में – अवलोकनकर्ता संबंधित व्यक्ति से मिलकर कुछ प्रश्न पूछता है । इसके साथ-साथ वह परिस्थिति का अवलोकन भी करता है। इस प्रविधि के अंतर्गत अवलोकनकर्ता अवलोकन करता है तथा वह उत्तरदाता का सहभागी बन जाता है।
  • अवलोकनकर्ता एक अवलोकनकर्ता के रूप में – अवलोकन की इस प्रविधि के अंतर्गत अवलोकनकर्ता परिस्थिति का अवलोकन करता है, लेकिन जिन व्यक्तियों का वह अवलोकन करता है उन्हें इस विषय में कोई जानकारी नहीं होती है।

प्रश्न 5.
प्रश्नावली की संचार और वैधता की समस्या का विवेचना कीजिए।
उत्तर:
(i) प्रश्नावली के संचार की समस्या –

  • यद्यपि प्रश्नावली की विषयवस्तु अध्ययन के उद्देश्या से नियंत्रित होती है तथापि सर्वेक्षण में संचार की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • प्रश्नों की भाषा स्पष्ट, संक्षिप्त तथा सरल होना चाहिए जिससे उत्तरदाताओं को उन्हें समझने में आसानी हो।

(ii) प्रश्नावली की वैधता की समस्या –

  • प्रश्नों की संरचना इस प्रकार की जानी चाहिए जिससे अनुसंधानकर्ता को इच्छित सूचना मिल जाए।
  • प्रश्नों के उत्तर के विषय में वास्तविक समस्या उस समय उत्पन्न होती है जब उत्तरदाता सही तथ्यों की जानकारी देता है लेकिन अनुसंधानकर्ता उन उत्तरों की विश्वसनीयता तथा तथ्यात्मकता के विषय में आश्वस्त नहीं हो पाता है।
  • वैधता की समस्या उस समय उतपन्न हो जाती है तब उत्तरदाता का कथन तकनीकी रूप से सत्य होता है, लेकिन वास्तव में यह कथन असत्य होता है।
  • उत्तरदाताओं के उत्तरों की वैधता के सत्यापन हेतु वैकल्पिक प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

प्रश्न 6.
पद्धति तथा प्रविधि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पद्धति तथा प्रविधि में निम्नलिखित अन्तर हैपद्धति प्रविधि –

प्रश्न 7.
एक पद्धति के रूप में सहभागी प्रेक्षण की क्या-क्या खूबियाँ और कमियाँ हैं?
उत्तर:
खूबियाँ –

  • यह छिपा हुआ प्रेक्षण नहीं होता है।
  • अनुसंधानकर्ता समुदाय में अवलोकनकर्ता के रूप में प्रवेश करता है।
  • सीधे व्यक्ति से संपर्क होता है।
  • उत्तरदाता भी सहभागी बन जाता है।

कमियाँ –

  • इससे प्राप्त निष्कर्षों का सामान्यीकरण नहीं हो सकता।
  • यह अधिक समय लेने वाली खर्चीली पद्धति है।
  • निष्कर्षों में वास्तुनिष्ठता की कमी आ जाती है।

प्रश्न 8.
सर्वेक्षण और वैयक्तिक अध्ययन में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
सर्वेक्षण तथा वैयक्तिक अध्ययन में निम्नलिखित अंतर हैं –

प्रश्न 9.
सामाजिक अनुसंधान क्या है?
उत्तर:
अनुसंधान का अर्थ है अन्वेषण या शोध या खोज से हैं। जब कोई भी अनुसंधान सामाजिक जीवन सामाजिक घटनाओं अथवा सामाजिक जटिलताओं से संबद्ध होता है तब उसे सामाजिक अनुसंधान कहा जाता है । सामाजिक अनुसंधान में सर्वप्रथम किसी व्यवहार समस्या या घटना से संबंधित मूल-भूत तथ्यों का अवलोकन किया जाता है ताकि उसकी सामान्य प्रकृति को भली-भाँति समझा जा सके।

सामाजिक अनुसंधान में यर्थाथताओं की वैज्ञानिक विधि द्वारा खोज पर विशेष बल दिया जाता है। सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य तार्किक एवं क्रमांक पद्धतियों के द्वारा नवीन तथ्यों की खोज अथवा पुराने तथ्यों की परीक्षा और सत्यापन, उनके क्रमों, पारस्परिक संबंधों, कार्य-कारण की व्याख्या एवं उन्हें संचालित करनेवाले स्वभाविक नियमों का विश्लेषण करना है।

प्रश्न 10.
अवलोकन की सीमाएँ या कमियाँ बताइए।
उत्तर:
अवलोकन की कमियाँ निम्नलिखित हैं –

  1. मानव व्यवहार का अवलोकन करते समय अवलोकनकर्ता की प्राथमिकताओं तथा पक्षपातों के कारण अवलोकन में वस्तुनिष्ठता की कमी आ सकती है। इस प्रकार के निष्कर्ष वैज्ञानिक अवलोकन की श्रेणी में रखे जा सकते हैं।
  2. कोई सामाजिक प्रघटना कितनी अवधि तक घटेगी, इसका पूर्वानुमान करने में व्यवहारिक कठिनाइयाँ आती हैं।
  3. अवलोकनकर्ता के मूल्यों, आदर्शों, अभिरुचियों तथा पूर्व निर्धारित दृष्टिकोणों तथा विश्वासों का प्रभाव अवलोकन की प्रक्रिया पर पड़ सकता है।
  4. अवलोकन की प्रविधि में विश्वसनीयता तथा वैधता की समस्याएँ भी उत्पन्न हो जाती हैं।
  5. अवलोकनकर्ता का प्रशिक्षित होना आवश्यक हैं, लेकिन प्रायः प्रशिक्षित अवलोकनकर्ता भी निरपेक्षा रूप से अवलोकन प्रविधि का प्रयोग नहीं कर पाते हैं।’
  6. कभी-कभी अवलोकनकर्ता द्वारा दिए गए निष्कर्षों का पुनः सत्यापन करने पर निष्कर्षों में विभिन्नता आ जाती है।
  7. अवलोकन प्रविधि द्वारा प्राप्त निष्कर्षों में वस्तुनिष्ठता तथा निश्चितता का अभाव हो सकता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
प्रश्नावली और साक्षात्कार अनुसूची को परिभाषित करते हुए उनमें अंतर बताइए।
उत्तर:
(i) प्रश्नावली की परिभाषा – प्रश्नावली का प्रयोग किसी विशेष स्थिति अथवा समस्या के बारे में महत्वपूर्ण आधार सामग्री प्राप्त करने के लिए किया जाता है। जे0 डी0 पोप के अनुसार, “एक प्रश्नावली को प्रश्नों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” सूचनादाता को बिना एक अनुसंधानकर्ता या प्रगणक की व्यक्तिगत सहायता के उत्तर देना होता है लेकिन इसे व्यक्तियों में बाँटा भी जा सकता है। प्रत्येक स्थिति में यह सूचना प्रदान करने वाले द्वारा भरकार भेजी जाती है।

(ii) साक्षात्कार अनुसूची की परिभाषा – संरचित प्रश्नों या समूह जिनके उत्तर स्वयं साक्षात्कारकर्ता द्वारा अभिलेखित किए जाते हैं, साक्षात्कार अनूसूची कहलाती है।
प्रश्नावली तथा साक्षात्कार सूची में अंतर –

प्रश्न 2.
सर्वेक्षण पद्धति की कुछ कमजोरियों का वर्णन करें।
उत्तर:
अन्य अनुसंधान पद्धतियों की तरह से सर्वेक्षणों की भी अपनी कमजोरियाँ होती हैं। यद्यपि इसमें व्यापक विस्तार की संभावना होती है तथा यह विस्तार की गहनता के आधार पर प्राप्त किया जाता है। सामान्यतया एक बड़े सर्वेक्षण के भाग के रूप में उत्तरदाताओं से गहन सूचना प्राप्त करना संभव नहीं होता। उत्तरदाताओं की संख्या अधिक होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति पर व्यय किया जाने वाला समय सीमित होता है। साथ ही अन्वेषकों की अपेक्षाकृत बड़ी संख्या द्वारा सर्वेक्षण प्रश्नावलियाँ उत्तरदाता को उपलब्ध कराई जाती हैं। इससे यह सुनिश्चित करना कठिन हो जाता है कि जटिल प्रश्नों या जिन प्रश्नों के लिए विस्तृत सूचना चाहिए, उन्हें उत्तरदाताओं से ठीक एक ही तरीके से पूछा जाएगा।

प्रश्न पूछने या उत्तर रिकार्ड करने के तरीके में अन्तरहोने पर सर्वेक्षण में त्रुटियाँ आ सकती हैं। यही कारण है कि किसी भी सर्वेक्षण के लिए प्रश्नावली (कभी-कभी इन्हें सर्वेक्षण का उपकरण भी कहा जाता है) की रूपरेखा सावधानीपूर्वक तैयार करनी चाहिए क्योंकि इसका प्रयोग अनुसंधानकर्ता के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों द्वारा किया जायेगा, अतः इसके प्रयोग के दौरान इसमें त्रुटि को दूर करने या संशोधित करने की थोड़ी-बहुत संभावना रहती है। अन्वेषक तथा उत्तरदाता के बीच किसी प्रकार के दीर्घकालिक संबंध नहीं होते अतः कोई आपसी पहचान या विश्वास नहीं होता। किसी भी सर्वेक्षण में पूछे गए प्रश्न ऐसे होने चाहिए जो कि अजनवियों के मध्य पूछे जा सकते हों तथा उनका उत्तर दिया जा सकता हो।

कोई भी निजी या संवेदनशील प्रश्न पूछा जा सकता या अगर पूछा भी जाता है तो इसका उत्तर सच्चाईपूर्वक देने के स्थान पर ‘सावधानीपूर्वक’ दिया जाता है। इस प्रकार की समस्याओं को कभी-कभी ‘गैर-प्रतिदर्शा त्रुटियाँ’ कहा जाता है अर्थात् ऐसी त्रुटियाँ जो प्रतिदर्श की प्रक्रिया के कारण न हों अपितु अनुसंधान रूपरेखा में कभी या त्रुटि के कारण हों। दुर्भाग्यवश इनमें से कुछ त्रुटियों का पता लगाना तथा इनसे बचना कठिन होता है । इस कारण से सर्वेक्षण में गलती होना तथा जनसंख्या की विशेषताओं के बारे में भ्रामक या गलत अनुमान लगाना संभव होता है।

अंत में, किसी भी सर्वेक्षण के लिए सबसे महत्वपूर्ण सीमा यह है कि इसे सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए इन्हें कठोर संरचित प्रश्नावली पर आधारित होना पड़ता है। इसके अतिरिक्त प्रश्नावली की. रूपरेखा चाहे कितनी भी अच्छी क्यों न हो, इसकी सफलता अंत में अन्वेषकों तथा उत्तरदाताओं की अंतःक्रिया की प्रकृति पर और विशेष रूप से उत्तरदाता की सद्भावना तथा सहयोग पर निर्भर करती है।

प्रश्न 3.
वस्तुनिष्ठता परिणाम को प्राप्त करने के लिए समाजशास्त्री को किस प्रकार की कठिनाइयों और प्रयत्नों से गुजरना पड़ता है।
उत्तर:
किसी भी वस्तु के बारे में वस्तुनिष्ठ होने के लिए अथवा वास्तविक परिणाम को प्राप्त करने के लिए हमें वस्तु के अपनी भावनाओं या प्रवृत्तियों को अनदेखा करना चाहिए। दूसरी तरफ ‘व्यक्तिपरकता’ से छुटकारा पाना होगा। व्यक्तिपरकता से आशय है कुछ ऐसा जो व्यक्तिगत मूल्यों तथा मान्यताओं पर आधारित हो । सभी विज्ञानों से वस्तुनिष्ठ होने व केवल तथ्यों पर आधारित पूर्वाग्रह रहित ज्ञान उपलब्ध कराने की आशा की जाती है, परन्तु प्राकृतिक विद्वानों की तुलना में समाज विज्ञान में ऐसा करना बहुत कठिन है।

जब कोई भू-वैज्ञानिक चट्टानों का अध्ययन करता है या वनस्पतिशास्त्री पौधों का अध्ययन करता है तो वे सावधान रहते हैं कि उनके व्यक्तिगत पूर्वाग्रह या मान्यताएँ उनके काम को प्रभावित न कर पाएँ । उन्हें सही तथ्यों को ही प्रस्तुत करना चाहिए। उदाहरण के लिए, उन्हें अपने अनुसंधान कार्य के परिणामों पर किसी विशेष वैज्ञानिक सिद्धान्त या सिद्धांतवादी के प्रति अपनी पसंद का प्रभाव नहीं पड़ने देना चाहिए। हालांकि भू-वैज्ञानिक तथा वनस्पतिशास्त्री स्वयं उस संसार का हिस्सा नहीं होते जिनका वे अध्ययन करते हैं, चट्टानों या पौधों की प्राकृतिक दुनिया इसे विपरीत समाज वैज्ञानिक जिस संसार में रहते हैं, उसका ही अध्ययन करते हैं जो मानव संबंधों की सामाजिक दुनिया है। इससे समाजशास्त्र जैसे सामाजिक विज्ञान में वस्तुनिष्ठता की विशेष समस्या उत्पन्न होती है।

सर्वप्रथम पर्वाग्रह की स्पष्ट समस्या है कि क्योंकि समाजशास्त्री भी समाज के सदस्य हैं. उनकी भी लोगों की तरह से सामान्य पसंद तथा नापसंद होती है। पारिवारिक संबंधों का अध्ययन करने वाला समाजशास्त्री भी स्वयं किसी परिवार का सदस्य होगा और उसके अनुभव का इस पर प्रभाव हो सकता है। यहाँ तक कि समाजशास्त्री को अपने अध्ययनशील समूह के साथ कोई प्रत्यक्ष या व्यक्तिगत अनुभव न होने पर भी उसके अपने सामाजिक संदर्भो के मूल्यों तथा पूर्वाग्रहों का प्रभाव होने का संभावना रहती है। उदाहरणार्थ अपने से अलग किसी जाति या धार्मिक समुदाय का अध्ययन करते समय समाजशास्त्री उस समुदाय की कुछ प्रवृतियों से प्रभावित हो सकता है जो कि उसे अतीत या वर्तमान के सामाजिक वातावरण में प्रचलित हैं।

समाजशास्त्री इनसे किस प्रकार बचते हैं ? –
इसकी प्रथम पद्धति अनुसंधान के विषय के बारे में अपनी भावनाओं तथा विचारों की कठोरता से लगातार जाँचना है। अधिकांशतः समाजशास्त्री अपने कार्य के लिए किसी बाहरी व्यक्ति के दृष्टिकोण को ग्रहण करने का प्रयास करते हैं। वे अपने आपको तथा अपने अनुसंधान कार्य को दूसरे की आँखों से देखने का प्रयास करते हैं। इस तकनीक को ‘स्ववाचक’ या कभी-कभी ‘आत्मवाचक’ कहते हैं। समाजशास्त्री निरंतर अपनी प्रवृत्तियों तथा मतों की स्वयं जाँच करते रहते हैं। वह अन्य व्यक्तियों के मतों को सावधानीपूर्वक अपनाते रहते हैं, विशेष रूप से उनके बारे में जो उनके अनुसंधान का विषय होते हैं।

आत्मवाचक का एक व्यावहारिक पक्ष है किसी व्यक्ति द्वारा किए जा रहे कार्य का सावधानीपूर्वक दस्तावेजीकरण करना। अनुसंधान पद्धतियों में श्रेष्ठता के दावे का एक हिस्सा सभी विधियों के दस्तावेजीकरण तथा साक्ष्य के सभी स्रोतों के औपचारिक संदर्भ में निहित है जो यह सुनिश्चित करता है कि हमारे द्वारा किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचने हेतु किए गए उपायों को अन्य अपना सकते हैं तथा वे स्वयं देख सकते हैं, हम सही हैं या नहीं। इससे हमें अपनी सोच या तर्क की दिशा को परखने या पुनः परखने में भी सहायता मिलती है। तथापि समाजशास्त्री आत्मवाचक होने का कितना भी प्रयास करें, अवचेतन पूर्वाग्रह की संभावना सदा रहती है। इस संभावना से निपटने के लिए समाजशास्त्री अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि के उन लक्षणों को स्पष्ट रूप से उल्लिखित करते हैं जो कि अनुसंधान के विषय पर संभावित पूर्वाग्रह के स्रोत के रूप में प्रासांगिक हो सकते हैं। यह पाठकों के पूर्वाग्रह की संभावना से सचेत करता है तथा अनसंधान अध्ययन को पढते समय यह उन्हें मानसिक रूप से इसकी ‘क्षतिपूर्ति करने के लिए तैयार करता है।

समाजशास्र में वस्तुनिष्ठता के साथ एक अन्य स्थिति यह है कि सामाजिक विश्व में ‘सत्य’ के अनेक रूप होते हैं। वस्तुएँ विभिन्न लाभ के बिन्दुओं से अलग-अलग दिखाई देती हैं तथा इसी कारण से सामाजिक विश्व में सच्चाई के अनेक प्रतिस्पर्धी रूप या व्याख्याएँ शामिल हैं। उदाहणार्थ, ‘सही’ कीमत के बारे में एक दुकानदार तथा एक ग्राहक के अलग-अलग विचार हो सकते हैं, एक युवा व्यक्ति के लिए ‘अच्छे भोजन’ या इसी तरह से अन्य विषयों के बारे में अलग-अलग विचार हो सकते हैं।

कोई भी ऐसा सरल तरीका नहीं है जिससे किसी विशेष व्याख्या के अन्य या सही हो के बारे में निर्णय लिया जा सके एवं प्राय: इन शर्तों के तहत सोचना भी लाभप्रद नहीं होता । वास्तव में समाजशास्र इस तरीके से जाँचने का प्रयास भी नहीं करता क्योंकि इसकी वास्तविक रुचि इसमें होती है कि लोग क्या सोचते हैं तथा वे जो सोचते हैं वैसा क्यों सोचते हैं।

एक अन्य कठिनाई स्वयं समाज विज्ञान में उपस्थित बहुविध मतों से उत्पन्न होती है। समाज विज्ञान की तरह समाजशास्त्र भी एक ‘बहु-निर्देशात्मक’ विज्ञान है इसका अर्थ है कि इस विषय में प्रतिस्पर्धी तथा परस्पर विरोधी विचारों वाले विद्यमान हैं। इन सबसे समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठ एक बहुत कठिन तथा जटिल वस्तु बन जाती है। वास्तव में, वस्तुनिष्ठता की प्राचीन धारणा को व्यापक तौर पर एक प्राचीन दृष्टिकोण माना जाता है। समाज वैज्ञानिक अब विश्वास नहीं करते कि ‘वस्तुनिष्ठता एवं अरुचि’ की पारंपरिक धारणा, समाज विज्ञान में प्राप्त की जा सकती है।

वास्तव में ऐसे आदर्श भ्रामक हो सकते हैं। इसका यह आशय नहीं है कि समाजशास्त्र के माध्यम से कोई लाभप्रद ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता या वास्तविक एक व्यर्थ धारणा है। इसका तात्पर्य है कि वस्तुनिष्ठता को पहले से प्राप्त अंतिम परिणाम के स्थान पर लक्ष्य प्राप्ति हेतु निरंतर चलती रहने वाले प्रक्रिया के रूप में लिया न जाना चाहिए।

प्रश्न 4.
सर्वेक्षण पद्धति के आधारभूत तत्त्व क्या हैं ? इस पद्धति का प्रमुख लाभ क्या है?
उत्तर:
सर्वेक्षण पद्धति का प्रयोग सामाजिक विज्ञान में गणनात्मक अध्ययन के लिए किया जाता है। अध्यनकर्ता के द्वारा अध्ययन की समस्या के अनुसार व्यक्तियों से सुनियोजित एवं क्रमबद्ध रूप से प्रश्न पूछे जाते हैं। सर्वेक्षण पद्धति के निम्नलिखित चार आधारभूत तत्व हैं –

  • सर्वेक्षण का नियोजन
  • आँकड़ों का एकत्रीकरण
  • आँकड़ों का विश्लेषण तथा विवेचन
  • आँकड़ों का प्रस्तुतिकरण

सर्वेक्षण पद्धति के लाभ –

  • सामान्यतः सर्वेक्षण का अध्ययन क्षेत्र विशाल होता है।
  • सर्वेक्षण की अवधि कम होती है।
  • सर्वेक्षण प्रविधियाँ विशाल होती हैं।
  • सर्वेक्षण में सामाजिक प्रघटना को विस्तृत आकार में देखा जाता है।
  • सर्वेक्षण में अन्वेषक अपनी समस्या के अनुसार व्यक्तियों से सुनियोजित तथा क्रमबद्ध प्रश्न पूछता है तथा उनका अभिलेख करता है।
  • सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों तथा निष्कर्षों का सामान्यीकरण हो सकता है।
  • सर्वेक्षण प्रणाली में निदर्शन सर्वेक्षण अथवा प्रतिदर्श संभव है।

प्रश्न 5.
प्रतिदर्श प्रतिनिधित्व चयन के कुछ आधार बताएँ।
उत्तर:
प्रतिदर्श प्रतिनिधित्व चयन की प्रक्रिया दो मुख्य सिद्धान्तों पर आधारित है –
पहला सिद्धान्त यह है कि जनसंख्या में सभी महत्वपूर्ण उपसमूहों को पहचाना जाए और प्रतिदर्श में उन्हें प्रतिनिधित्व दिया जाए। अधिकतर बड़ी जनसंख्याएँ एक समान नहीं होती, उनमें भी स्पष्ट उप-श्रेणियाँ होती हैं। इसे समाजीकरण कहा जाता है। उदाहरणार्थ जब भारत की जनसंख्या के बारे में बात करते हैं तो हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि यह जनसंख्या शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बँटी हुई है जो कि एक-दूसरे से काफी हद तक अलग है। कभी भी एक राज्य की ग्रामीण जनसंख्या पर विचार करते समय हमें ध्यान रखना होगा कि यह जनसंख्या विभिन्न आकार वाले गाँवों में रहती है।

इसी तरह से किसी एक गाँव की जनसंख्या भी वर्ग, जाति लिंग, आयु, धर्म या अन्य मापदंडों के आधार पर स्तरीकृत हो सकती है। सारांश में स्तरीकरण की संकल्पना हमें बताती है कि प्रतिदर्श का प्रतिनिधित्व दी गई जनसंख्या के सभी संबद्ध स्तरों की विशेषताओं को दर्शाने की सक्षमता पर निर्भर है। किस प्रकार के प्रतिदर्शों को प्रासंगिक माना जाए यह अनुसंधान के अध्ययन के विशिष्ट उद्देश्यों पर निर्भर है। उदाहरणार्थ धर्म के प्रति प्रवृत्तियों के बारे में अध्ययन करते समय यह महत्वपूर्ण हो सकता है कि सभी धर्मों के सदस्यों . को शामिल किया जाए। मजदूर संसाधनों के प्रति प्रवृत्तियों पर अनुसंधान करते समय कामगारों, प्रबंधकों तथा उद्योगपतियों एवं अन्य को शामिल करना चाहिए।

प्रतिदर्श चयन का दूसरा सिद्धांत है वास्तविक इकाई अर्थात् व्यक्ति या गाँव या घर का चयन पूर्णतया अवसर आधारित होना चाहिए। इसे यादृच्छीकरण कहा जाता है जोकि स्वयं संभावित की संकल्पना पर आधारित है। आपने अपने पाठ्यक्रम में संभावित के बारे में पढ़ा होगा। संभावित का आशय घटना के घटित होने के अवसरों तथा विषमताओं से है। उदाहरण के लिए, जब हम सिक्का उछालते हैं तो यह चित की ओर पड़ता है या फिर पट की ओर । सामान्य सिक्कों में चित या पट आने का अवसर या संभावित लगभग एक समान अर्थात् प्रत्येक की 50 प्रतिशत दिखाई देती है। वास्तव में जब आप सिक्का उछालते हैं दोनों में से कौन-सी घटना होनी है अर्थात् चित्त आता है या पट, यह पूरी तरह से अवसर पर निर्भर करता है। इस प्रकार की घटनाओं को यादृच्छिक घटनाएँ कहा जाता है।

हम एक प्रतिदर्श को चुनने में समान आँकड़े का उपयोग करते हैं। हम सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि प्रतिदर्श में चयन किए गए व्यक्ति या घर या गाँव पूर्णतः अवसर द्वारा चयनित हों, किसी अन्य तरह से नहीं। अतः प्रतिदर्श में चयन होना किस्मत की बात है, जैसे कि लॉटरी जीतना। यह तभी हो सकता है जब यह सच हो कि प्रतिदर्श एक प्रतिनिधित्व प्रतिदर्श होगा। यदि कोई सर्वेक्षण दल अपने में केवल उन्हीं गाँवों का चयन करता है जो मुख्य सड़क के निकट हों तो यह प्रतिदर्श यादृच्छिक या संयोगवश न होकर पूर्वाग्रहित होंगे। इसी तरह से यदि हम अधिकतर के मध्यवर्ग के परिवारों को या अपने जानकर परिवरों का चयन करते हैं तो प्रतिदर्श पुनः पूर्वाग्रहित होंगे।

यह बात है कि जनसंख्या से संबंधित स्तरों का पता लगाने के बाद प्रतिदर्श घरों या उत्तरदाताओं का वास्तविक चयन पूर्णतया संयोग के आधार पर होना चाहिए । इसे विभिन्न तरीकों से सुनिश्चित किया जा सकता है। इसे प्राप्त करने के लिए विभिन्न तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। इनमें सामान्य रूप से (लॉटरी) निकालना, पांसे फेंकना, इस उद्देश्यों हेतु विशेष रूप से बनाई गई प्रतिदर्श नंबर प्लेटों का प्रयोग आदि।

प्रश्न 6.
प्रश्नावली से आप क्या समझते हैं ? एक प्रश्नावली की विशेषताएँ, प्रकार, गुण तथा दोष बताइए।
उत्तर:
प्रश्नावली का अर्थ तथा परिभाषा-प्रश्नावली प्रविधि के अंतर्गत क्रमबद्ध तरीके से प्रश्न पूछे जाते हैं तथा आवश्यक आँकड़े एकत्रित किए जाते हैं। इस प्रकार क्रमबद्ध तरीके से तैयार किए जा सकते हैं।” इसे साधारणतया, प्रश्नावली अथवा साक्षात्कार तालिका कहते हैं। जे० डी० पोप के अनुसार, “एक प्रश्नावली को प्रश्नों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” साधारणतया, प्रश्नावली डाक द्वारा भेजी जाती है, लेकिन इसे व्यक्तियों को बाँटा भी जा सकता है।

प्रत्येक स्थिति में यह सूचना प्रदान करने वाले द्वारा भरकर भेजी जाती है। लुंडबर्ग के अनुसार, “मूलरूप में, प्रश्नावली प्रेरणाओं का एक समूह है जिसके प्रति शिक्षित व्यक्ति उत्तेजित किए जाते हैं तथा वे इन उत्तेतनाओं के अंतर्गत अपने व्यवहार का वर्णन करते हैं।

प्रश्नावली प्रविधि की विशेषताएँ –

  • प्रश्नावली प्रविधि के द्वारा विशाल क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों से जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
  • किसी स्थिति विशेष अथवा समस्या के विषय में प्रश्नावली विधि के माध्यम से महत्वपूर्ण आधारभूत सामग्री प्राप्त की जा सकती है।
  • सूचनादाता अनुसंधानकर्ता के समक्ष आए बिना प्रश्नों का उत्तर देता है।
  • प्रश्नावली प्रविधि में वैज्ञानिक अन्वेषण की अन्य पद्धति की अपेक्षा कम खर्च होती है।
  • प्रश्नावली प्रविधि के माध्यम से जटिल प्रश्नों तथा समस्याओं के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्नावली के प्रकार : प्रश्नावली के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित है –

  • स्तरीयय प्रश्नावली,
  • खुली प्रश्नावली तथा
  • बंद प्रश्नावली

1. स्तरीय प्रश्नावली –

  • स्तरीय प्रश्नावली के अंतर्गत निश्चित, ठोस तथा पूर्व-विचारित प्रश्न होते हैं।
  • पेक्षाकृत जटिल प्रश्नों के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने हेतु कुछ अतिरिक्त प्रश्न भी होते हैं।
  • सभी उत्तरदाताओं को समान क्रम में संगठित प्रश्न दिए जाते हैं।
  • स्तरीय प्रश्नावली के उत्तरों की तुलना सुगमतापूर्वक की जा सकती है।
  • स्तरीय प्रश्नावली का प्रयोग आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक आदि विषयों तथा घटनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने हेतु किया जाता है।

2. खुली प्रश्नावली –

  • खुली प्रश्नावली के अंतर्गत वैकल्पिक उत्तर नहीं होते हैं।
  • खुली प्रश्नावली में प्रश्नों को इस प्रकार संचित किया जाता है, जिससे उत्तरदाता प्रश्नों का उत्तर खुले रूप से दे सकें।
  • खुली प्रश्नावली के अंतर्गत विषयों को उठाया जाता है, लेकिन सूचनादाता के लिए वैकल्पिक उत्तरों का प्रावधान नहीं होता है।
  • खुली प्रश्नावली की प्रकृति नमनीय होती है, जिसके कारण अनुसंधानकर्ता को पर्याप्त सूचना मिल जाती है।
  • खुली प्रश्नावली के उत्तर अनुसंधान के उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करते हैं।

3. बंद प्रश्नावली –

  • बंद प्रश्नावली में उत्तर सीमाबद्ध होते हैं।
  • बंद प्रश्नावली में एक प्रश्न के कई वैकल्पिक उत्तर भी दिए जाते हैं।
  • अनेक बार प्रश्न के बार ही संभावित उत्तरों का उल्लेख कर दिया जाता है।
  • आमतौर पर तीन वैकल्पिक उत्तर दिए जाते हैं।
  • बंद प्रश्नावली के निष्कर्ष भ्रमरहित, स्पष्ट तथा तुलनात्मक होते हैं।

प्रश्नावली प्रविधि के गुण –

  • प्रश्नावली प्रविधि द्वारा कम समय में एक विस्तृत क्षेत्र से सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती है।
  • प्रश्नावली प्रविधि में खर्चा कम आता है।
  • प्रश्नावली एक ही समय में डाक सभी सूचनादाताओं के पास भेजी जा सकती हैं।
  • प्रश्नावली एक ही समय में डाक द्वारा सभी सूचनादाताओं के पास भेजी जा सकती है।
  • प्रश्नावली में दिए गए प्रश्नों का उत्तर सूचनदाता बिना किसी दबाव के देते हैं।

प्रश्नावली प्रविधि के दोष –

  • प्रश्नावली प्रविधि में व्यक्ति के दृष्टिकोण का कोई अधिक महत्व नहीं होता है।
  • प्रश्नावली प्रविधि में भौतिक अभिव्यक्ति को कोई महत्व प्रदान नहीं किया जाता है।
  • प्रश्नावली प्रविधि के माध्यम से प्राप्त निष्कर्षों में विश्वासनीयता तथा सत्यता का अभाव पाया जाता है।
  • सूचनादाता प्रश्नों का उत्तर देते समय तथ्यों को दिखा सकता है।
  • प्रश्नावली प्रविधि अशिक्षित लोगों के लिए उपयागी नहीं होती है।

प्रश्न 7.
सामाजिक अनुसंधान एवं सामाजिक सर्वेक्षण में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
सामाजिक अनुसंधान एवं सामाजिक सर्वेक्षण को प्रायः एक ही मान लिया जाता है। क्योंकि सामाजिक सर्वेक्षण, सामाजिक अनुसंधान की ही एक विधि है फिर भी दोनों में प्रर्याप्त अंतर है। यद्यपि दोनों ही विज्ञान सामाजिक घटनाओं का ही अध्ययन करता है। दोनों में नवीन तथ्यों की खोज करने का प्रयत्न किया जाता है। इतना ही नहीं बल्कि सामाजिक व्यवहार और उसाकी यर्थाथता को जानने का प्रयत्न किया जाता है ताकि सामाजिक जीवन पर अधिक नियंत्रण पाया जा सके तथापि सामाजिक अनुसंधान एवं सामाजिक सर्वेक्षण में अन्तर पाया जाता है, जो निम्न है –

  • सामाजिक सर्वेक्षण में सामाजिक तथ्यों और घटनाओं का अध्ययन करने में उपकल्पना की आवश्यकता नहीं पड़ती। जबकि सामाजिक अनुसंधान का प्रारंभ ही किसी उपकल्पना का परीक्षण करने हेतु किया जाता है।
  • सामाजिक सर्वेक्षण का संबंध किसी एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र अथवा एक समुदाय में निवास करने वाले लोगें से होता है जबकि सामाजिक अनुसंधान का संबंध अमूर्त समस्याओं से होता है।
  • सामाजिक सर्वेक्षण का प्रमुख उद्देश्य समाज सुधार एवं समाज कल्याण से है जबकि सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य इससे अधिक महत्त्वपूर्ण है।
  • सामाजिक अनुसंधान का संबंध प्रत्येक प्रकार की सामाजिक घटना संबंधों एवं व्यवहारों से है जबकि सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करता है।
  • सामाजिक सर्वेक्षण का संबंध तात्कालिक समस्याओं, आवश्यकताओं के नियंत्रण से है जबकि सामाजिक अनुसंधान सामाजिक समस्याओं के शीघ्र निवारण से संबंध नहीं रखता है।

प्रश्न 8.
अनुसंधान पद्धति के रूप में साक्षात्कार के प्रमुख लक्षणों का वर्णन करें।
उत्तर:
साक्षात्कार-एक साक्षात्कार मूलत: अनुसंधानकर्ता तथा उत्तरदाता के बीच निर्देशित बातचीत होती है, हालांकि इसके साथ कुछ तकनीकी पक्ष जुड़े होते हैं। प्रारूप की सरलता भ्रामक हो सकती है क्योंकि एक अच्छा साक्षात्कारकर्ता बनने के लिए व्यापक अनुभव तथा कौशल होना जरूरी है। साक्षात्कार. सर्वेक्षण में प्रयोग की गई संरचित प्रश्नावली तथा सहभागी अवलोकन पद्धति की तरह पूर्णरूप से खुली अंत:क्रियाओं के बीच स्थान रखते हैं।

इसका सबसे बड़ा लाभ प्रारूप का अत्यधिक लचीलापन है । प्रश्नों को पुनः निर्मित किया जा सकता है या अलग ढंग से बताया जा सकता है; बातचीत में हुई प्रगति (या प्रगति कम होने पर) के अनुसार विषयों या प्रश्नों का क्रम बदला जा सकता है; जिन विषयों पर अच्छी सामग्री मिल रही हो, उन्हें विस्तारित किया जा सकता है या किसी अन्य अवसर पर बाद में जानने हेतु स्थगित किया जा सकता है और यह . सब स्वयं साक्षात्कार के दौरान किया जा सकता है। । दूसरी तरफ साक्षात्कार विधि के रूप में साक्षात्कार से संबंधित लाभों के साथ अनेक हानियाँ भी हैं।

इसका यह लचीलापन उत्तरदाता की मनोदशा बदल जाने के कारण या फिर साक्षात्कार करने वाले की एकाग्रता में त्रुटि होने के कारण साक्षात्कार को कमजोर बना देता है । इस प्रकार यह एक अविश्वसनीय तथा अस्थिर प्रारूप है जो जब कार्य करता है तो बहुत अच्छा करता है तथा जब असफल होता है तो बहुत बुरी तरह से होता है। साक्षात्कार लेने की अनेक शैलियाँ हैं तथा इससे संबंधित विचार तथा अनुभव लाभों के अनुसार बदलते रहते हैं। कुछ व्यक्ति अत्यंत असंगठित प्रारूप को प्राथमिकता देते हैं जिसमें वास्तविक प्रश्नों के स्थान पर विषय की जाँच सूची ही होती है। अन्य व्यक्ति इसके संगठित रूप से वरीयता देते हैं जिसमें सभी उत्तरदाताओं से विशेष प्रश्न पूछे जाते हैं। परिस्थितियों तथा वरीयताओं के अनुसार साक्षात्कार को रिकार्ड करने के तरीके भी अलग-अलग हैं जिनमें वास्तविक विडियो या ऑडियो रिकार्ड करना, साक्षात्कार के दौरान विस्तृत नोट तैयार करना या स्मरण शक्ति पर निर्भर करना और साक्षात्कार समाप्त होने पर इसे लिखना शामिल है।

रिकार्ड करने वाले या इसी प्रकार के अन्य उपकरणों का बार-बार प्रयोग करने से उत्तरदाता असमान्य महसूस करता है तथा इससे बातचीत में काफी हद तक औपचारिकता आ जाती है। दूसरी तरफ जब रिकार्ड करने की अन्य कम व्यापक विधियों का प्रयोग किया जाता है तो कभी-कभी महत्त्वपूर्ण सूचना छूट जाती है या रिकार्ड नहीं हो पाती है। कभी-कभी साक्षात्कार के समय भौतिक या सामाजिक परिस्थितियाँ भी रिकार्ड के माध्यम को निर्धारित करती हैं। बाद में प्रकाशन के लिए साक्षात्कार को लिखने या अनुसंधान रिपोर्ट के हिस्से के रूप में लिखने का तरीका भी भिन्न हो सकता है। कुछ अनुसंधानकर्ता प्रतिलिपि को संपादित करना तथा इसे ‘स्पष्ट’ नियमित वर्णनात्मक रूप से प्रस्तुत करना पसंद करते हैं; जबकि दूसरे मूल वार्तालाप को यथासंभव वैसा ही बनाए रखना चाहते हैं तथा इसके लिए वे हरसंभव प्रयास करते हैं।

साक्षात्कार को प्रायः अन्य पद्धतियों के साथ अनुरूप के रूप में विशेषता सहभागी अवलोकन तथा सर्वेक्षणों के साथ प्रयुक्त किया जाता है। ‘महत्वपूर्ण सूचनादाता’ (सहभागिता अवलोकन अध्ययन का मुख्य सूचनादाता) के साथ लंबी बातचीत से प्रायः संकेन्द्रित जानकारी प्राप्त हाती है जो साथ में लगाई गई सामग्री प्रदान करती है, स्पष्ट करती है तथा इसी तरह से गहन साक्षात्कारो द्वारा सर्वेक्षण के निष्कर्षों को गहनता तथा व्यापकता प्राप्त होती है। हालांकि एक पद्धति के रूप में साक्षात्कार व्यक्तिगत पहुँच पर और उत्तरदाता तथा अनुसंधानकर्ता के आपसी संबंधों या आपसी विश्वास पर निर्भर होता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
“मूल रूप से, प्रश्नावली प्रेरणओं का एक समूह है, जिसके प्रति शिक्षित व्यक्ति उत्तेजित किए जाते हैं तथा इन उत्तेजनाओं के अन्तर्गत वे अपने व्यवहार का वर्णन करते हैं।” यह कथन है …………………….
(अ) मोजर
(ब) लुंडबर्ग
(स) मोर्स
(द) पी० वी० यंग
उत्तर:
(ब) लुंडबर्ग

प्रश्न 2.
“अवलोकन नेत्रों द्वारा एक विचारपूर्वक अध्ययन है-जैसे सामूहिक व्यवहार तथा जटिल सामाजिक संस्थाओं तथा साथ ही साथ संपूर्णता वाली पृथक् इकाइयों के अन्वेक्षण हेतु प्रणाली के रूप में उपयोग किया जाता है।” यह कथन है ……………………
(अ) मेजर
(ब) लुंडबर्ग
(स) मोर्स
(द) पी० वी० यंग
उत्तर:
(द) पी० वी० यंग

प्रश्न 3.
“एक प्रश्नावली के प्रश्नों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। सूचनादाता को बिना अनुसंधानकर्ता या प्रगणक की व्यक्तिगत सहायता के उत्तर देना होता है।साधारणतया प्रश्नावली डाक द्वारा भेजी जाती है, लेकिन इसे व्यक्तियों को बाँटा भी जा सकता है। प्रत्येक स्थिति में यह सूचना प्रदान करने वाले द्वारा भरकर भेजी जाती है।” यह कथन है ………………….
(अ) मोजर
(ब) लुंडबर्ग
(स) मोर्स
(द) पी० वी० यंग
उत्तर:
(स) मोर्स

प्रश्न 4.
“प्रविधियाँ एक समाज वैज्ञानिक के लिये वे मान्य तथा सुव्यवस्थित तरीके होते हैं, जिन्हें वह अपने अध्ययन से संबंधित विश्वसनीय तथ्यों (Reliable facts) को प्राप्त करने हेतु प्रयोग में लाता है।” यह कथन है …………………….
(अ) मोज
(ब) लुंडबर्ग
(स) मोर्स
(द) पी० वी० यंग
उत्तर:
(अ) मोजर

प्रश्न 5.
“सर्वेक्षण किसी सामाजिक स्थिति या समस्या अथवा जनसंख्या के परिभाषित उद्देश्यों के लिए वैज्ञानिक तथा व्यवस्थित रूप से अवश्लेषण की एक पद्धति है।” यह कथन …………………….
(अ) मोज़र
(स) मोर्स
(ब) लुंडबर्ग
(द) पी० वी० यंग
उत्तर:
(स) मोर्स


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