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Sunday, June 19, 2022

BSEB Class 12 Economics Income Determination Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Economics Income Determination Book Answers

BSEB Class 12 Economics Income Determination Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Economics Income Determination Book Answers
BSEB Class 12 Economics Income Determination Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Economics Income Determination Book Answers


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Bihar Board Class 12th Economics Income Determination Textbooks Solutions PDF

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Bihar Board Class 12th Economics Income Determination Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 12th
Subject Economics Income Determination
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Bihar Board Class 12 Economics आय निर्धारण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति किसे कहते हैं? यह किस प्रकार सीमान्त बचत प्रवृत्ति से सम्बन्धित है?
उत्तर:
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से अभिप्राय:
आय में परिवर्तन के कारण उपभोग में परिवर्तन तथा आय में परिवर्तन के अनुपात को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
MPC = ∆𝑐∆𝑦

सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति में सम्बन्ध:
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति का योग सदैव एक (इकाई) के बराबर होता है।
MPC + MPS = 1
यदि किसी एक MPC (MPS) का मान दिया हो तो MPS (MPC) का मूल्य ज्ञात किया जा सकता है। M यदि MPC या MPS में किसी एक का मूल्य घटता है तो दूसरे के मूल्य में वृद्धि होती है।

प्रश्न 2.
प्रत्याशित निवेश और यथार्थ निवेश में क्या अंतर है?
उत्तर:

  1. नियोजित निवेश-यह वह निवेश होता है, जिसकी एक अर्थव्यवस्था एक लेखा वर्ष की अवधि के लिए योजना बनाती है। दूसरे शब्दों में अनुमानित निवेश को नियोजित निवेश कहते हैं। जबकि Ex post Investment (कार्योंत्तर निवेश) वह निवेश होता है, जिसे एक अर्थव्यवस्था एक वर्ष की अवधि में वास्तव में करती है।
  2. नियोजित पूर्णत:-अनुमानित या काल्पनिक विचार है, जबकि Expost Investment (कार्योत्तर निवेश) वास्तविक विचार है।
  3. नियोजित निवेश भावी संभावनाओं पर आधारित होता है, जबकि Expost Investment अर्थव्यवस्था में अनेक आर्थिक गतिविधियों का परिणाम होता है।

प्रश्न 3.
“किसी रेखा में पैरामेट्रिक शिफ्ट” से आप क्या समझते हैं? रेखा में किस प्रकार शिफ्ट होता है, जब इसकी –

  1. ढाल घटती है और
  2. इसके अंत: खंड में वृद्धि होती है

उत्तर:
b = ma + “प्रकार की समीकरण लीजिए जहाँ m > 0 जिसे रेखा/वक्र का ढाल कहते हैं” > 0 यह उर्द्धावाधर अक्ष का Intercept (भाग) होता है। जब a के मूल्य में 1 (इकाई) वृद्धि होती है तो b में m इकाई की बढ़ोतरी होती है। इन्हें रेखा के साथ चरों में संचरण कहते हैं। तथा m को रेखा के Parameter (स्थिरांक) कहते हैं।

जैसे m के मूल्य में वृद्धि होती है तो रेखा ऊपर की ओर खिसक जाती है। इसे रेखा Parametric Shift कहते हैं।

  1. यदि किसी धनात्मक रेखा का ढाल कम होता है तो रेखा नीचे की ओर खिसक जाती है।
  2. धनात्मक ढाल वाली रेखा ऊपर की ओर खिसक जाती है यदि इसका Intercept (भाग) घटता है तो।

प्रश्न 4.
प्रभावी माँग क्या है? जब अन्तिम वस्तुओं की कीमत और ब्याज की दर दी हुई हो, तब आप स्वायत्त व्यय गुणक कैसे प्राप्त करेंगे?
उत्तर:
यदि आपूर्ति लोच पूर्णतयाः लोचदार है तो दी गई कीमत पर उत्पाद का निर्धारण पूर्णतः सामूहिक माँग पर निर्भर करता है। इसे प्रभावी माँग कहते हैं। दी गई कीमत पर साम्य उत्पाद, सामूहिक माँग और ब्याज की दर का निर्धारण/गणना निम्नलिखित समीकरण से की जाती है –
y = AD
y = A + Cy
या y – Cy = A
या y (1 – C) = A
या y = 𝐴1−𝐶
y का मान A तथा C के मान पर निर्भर करता है।
या ∆𝑌∆𝐶 = 11−𝐶

प्रश्न 5.
जब स्वायत्त निवेश और उपभोग व्यय (A)50 करोड़ रु. हो और सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) 0.2 तथा आय (Y) का स्तर 4000.00 करोड़ रु. हो, तो प्रत्याशित समस्त माँग ज्ञात करें। यह भी बताएँ कि अर्थव्यवस्था संतुलन में है या नहीं (कारण भी बताएँ)।
उत्तर:
A = 50 करोड़ रु.
MPS = 0.2
Y = 4000.00 करोड़ रु.
AD = A + CY
= 500 + (1-0.2) 4000.00
(c = 1 – MPS तथा Y का मान रखने पर)
= 500 + 0.8 × 4000.00
= 500 + 3200.00
= 3700.00 करोड़ रु.
अत: AD>Y (∵3700 < 4000)
अत: अर्थव्यवस्था सन्तुलन में नहीं है। यहाँ अभावी माँग या अधिशेष आपूर्ति की स्थिति है।

प्रश्न 6.
मितव्ययिता के विरोधाभास की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बचत (मित्तव्ययता) का विरोधाभास यह बताता है कि यदि एक अर्थव्यवस्था में सभी लोग अपनी आय का अधिक भाग बचत करना आरम्भ कर देते हैं तो कुल बचत का स्तर या तो स्थिर रहेगा या कम हो जायेगा। दूसरे शब्दों में यदि अर्थव्यवस्था में सभी लोग अपनी आय का कम बचाना आरम्भ कर देते हैं तो अर्थव्यवस्था में कुल बचत का स्तर बढ़ जायेगा। इस बात को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि यदि लोग ज्यादा मित्तव्ययी हो जाते हैं तो या तो वे अपने आय का पूर्व स्तर रखेंगे या उनकी आय का स्तर गिर जायेगा।

Bihar Board Class 12 Economics आय निर्धारण Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
उपभोग माँग क्या होता है?
उत्तर:
उपभोक्ताओं द्वारा माँगी जाने वाली वह माँग जिन्हें परिवार खरीदने के लिए तैयार है और खरीदने की क्षमता रखते हैं। उपभोक्ता माँग कहलाती है। यह माँग कई कारकों से प्रभावित होती है जैसे वस्तु या सेवा की कीमत, आय, सम्पत्ति, प्रत्याशित आय, रुचि, पसंदगी आदि। कींस के अनुसार उपभोग माँग में वृद्धि हो जाती है यदि आय के स्तर में बढ़ोतरी होती है। कींस ने इसे उपभोग का मनोवैज्ञानिक नियम कहा है।

प्रश्न 2.
समष्टि अर्थशास्त्र का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र का अर्थ अर्थव्यवस्था की उस शाखा से हैं, जिसमें अर्थव्यवस्था का अध्ययन सम्पूर्ण रूप से किया जाता है। जैसे कुल माँग, कुल पूर्ति, रोजगार, आय, व्यय, बचत आदि।

प्रश्न 3.
निवेश प्रेरणा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
निवेश प्रेरणा-निवेश में वृद्धि करने की प्रेरणा को निवेश प्रेरणा कहते हैं। यह इस बात पर निर्भर करती है कि उद्यमियों को ब्याज दर की तुलना में निवेश पर किस दर से प्रतिफल मिलने की आशा है। निवेशकर्ता निवेश करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखता है कि उसे निवेश पर भविष्य में कितना लाभ प्राप्त होगा।

प्रश्न 4.
निवेश माँग फलन क्या है?
उत्तर:
निवेश माँग और ब्याज दर के सम्बन्ध में निवेश माँग को फलन कहते हैं। ब्याज दरें और निवेश माँग के बीच ऋणात्मक (-) सम्बन्ध होता है। अन्य शब्दों में, यदि ब्याज की दर उच्च हो तो निवेश माँग निम्न रह जाती है।

प्रश्न 5.
समग्र माँग के घटक लिखिए।
उत्तर:
समग्र माँग के घटक निम्नलिखित हैं –

  1. निजी अन्तिम उपभोग व्यय।
  2. निजी निवेश।
  3. सार्वजनिक फलन तथा शुद्ध नियमित निर्यात-आयात।

प्रश्न 6.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सीमान्त बचत प्रवृत्ति-यह अवधारणा बचत में परिवर्तन तथा आय में परिवर्तन के अनुपात को प्रकट करती है। इसे निम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है –
MPS = ∆𝑆∆𝑌

प्रश्न 7.
निवेश को समझने के लिए किन तत्त्वों की जानकारी महत्त्वपूर्ण होती है?
उत्तर:
निवेश को समझने के लिए निम्नलिखित तत्त्वों की जानकारी महत्त्वपूर्ण होती है –

  1. आगत
  2. लागत
  3. अपेक्षाएँ

प्रश्न 8.
उपभोग के मनोवैज्ञानिक नियम को लिखिए।
उत्तर:
जब किसी देश की कुल आय में बढ़ोतरी होती है तो उसके कुल उपभोग में भी बढ़ोतरी होती है परन्तु उपभोग में होने वाली बढ़ोतरी आय में हुई बढ़ोतरी से कम होती है। इसे कींस का मनोवैज्ञानिक नियम कहते हैं।

प्रश्न 9.
पूर्ण-रोजगार संतुलन का अर्थ बताएँ।
उत्तर:
जब समग्र माँग (AD) तथा समग्र पूर्ति (AS) का सन्तुलन उस बिन्दु पर हो कि सभी साधनों को काम मिल जाये। पूर्ण-रोजगार के लिए आवश्यक जितनी समग्र माँग की जरूरत है। समग्र माँग उतनी हो तो इसे पूर्ण-रोजगार सन्तुलन कहते हैं।

प्रश्न 10.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की अवधारणा बताइए।
उत्तर:
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति-सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का अर्थ है कुल उपभोग में परिवर्तन तथा कुल आय में परिवर्तन का अनुपात। इस अवधारणा से यह ज्ञात किया जा सकता है कि लोग अपनी बढ़ी हुई आय का कितना भाग उपभोग पर व्यय करते हैं। MPC का मूल्य हमेशा शून्य तथा एक के बीच होता है। इसे निम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है।
MPC = ∆𝐶∆𝑌
∆C = उपभोग में परिवर्तन
∆Y = आय में परिवर्तन

प्रश्न 11.
अतिरेक माँग क्या होती है?
उत्तर:
जब पूर्ण-रोजगार के लिए आवश्यक समग्र माँग समग्र पूर्ति से अधिक होती है तो उसे अतिरेक माँग कहते हैं।

प्रश्न 12.
बचत प्रवृत्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आय के विभिन्न स्तरों और बचत की विभिन्न मात्राओं के बीच कार्यात्मक सम्बन्ध बताने वाली अनुसूची को बचत प्रवृत्ति कहते हैं।
[S = F (y)]

प्रश्न 13.
जब सामूहिक माँग और सामूहिक पूर्ति बराबर होती है तो उसका आय और रोजगार पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब सामूहिक माँग और सामूहिक पूर्ति बराबर होती है तो आय और रोजगार में सन्तुलन की स्थिति होगी।

प्रश्न 14.
अवस्फीतिकारी अन्तराल का अर्थ बताएँ।
उत्तर:
अवस्फीतिकारी अन्तराल वह स्थिति है, जब कुल पूर्ति कुल माँग से अधिक होती है। उत्पादन व रोजगार घटने लगता है, लोगों की क्रय शक्ति घट जाती है।

प्रश्न 15.
किसी देश में पूर्ण-रोजगार आय का सन्तुलन स्तर कब प्राप्त होता है?
उत्तर:
जब सामूहिक माँग पूर्ण-रोजगार स्तर प्राप्त करने के लिए आवश्यक समग्र माँग और पूर्ण-रोजगार स्तर की पूर्ति के बराबर हो।
AS = AQ

प्रश्न 16.
बचत फलन का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
बचत फलन-बचत फलन का अर्थ बचत तथा आय के सम्बन्ध से है । राष्ट्रीय आय बढ़ने से बचत में भी बढ़ोतरी होती है।

प्रश्न 17.
समग्र पूर्ति से क्या आशय है?
उत्तर:
समग्र पूर्ति से आशय एक अर्थव्यवस्था में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित कुल वस्तुओं और सेवाओं के भौद्रिक मूल्य से है।
सामूहिक पूर्ति = उपभोग + बचत
AS = C + S

प्रश्न 18.
अर्थव्यवस्था में अभावी माँग की स्थिति कब उत्पन्न होती है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में अभावी माँग की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब पूर्ण-रोजगार बिन्दु पर सामूहिक पूर्ति सामूहिक माँग से अधिक होती है।

प्रश्न 19.
अनैच्छिक बेरोजगारी का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
अनैछिक बेरोजगारी का अर्थ एक ऐसी अवस्था जिसमें काम करने की इच्छा रखने वाले लोगों को प्रचलित मजदूरी की दर पर रोजगार प्राप्त नहीं होता है।

प्रश्न 20.
माँग प्रबन्धन नीति का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
समग्र आपूर्ति की बजाय सरकार द्वारा समग्र माँग में परिवर्तन के अपूर्ण-रोजगार स्तर से पूर्ण-रोजगार स्तर प्राप्त करने के प्रयास को माँग प्रबन्धन नीति कहते हैं।

प्रश्न 21.
उपभोग का मनोवैज्ञानिक नियम लिखिए।
उत्तर:
जब किसी देश की कुल आय में बढ़ोतरी होती है तो उसके कुल उपभोग में वृद्धि भी होती है परन्तु उपभोग में होने वाली बढ़ोतरी आय में हुई वृद्धि से कम होती है।

प्रश्न 22.
उपभोग फलन को समझाइए।
उत्तर:
उपभोग और व्यय योग्य आय के बीच फलनात्मक सम्बन्ध को उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग फलन कहते हैं।
C = F (y)
C = उपभोग
F = फलन
y = आय

प्रश्न 23.
कुल माँग के मुख्य घटक बताइए। उत्तर-कुल माँग के मुख्य घटक निम्नलिखित है –

  1. उपभोग।
  2. निवेश।
  3. सरकारी व्यय।
  4. las farta [AD = C + I + G + (X – M)]

प्रश्न 24.
अत्यधिक माँग (अतिरेक माँग) किस स्थिति में उत्पन्न होती है?
उत्तर:
जब वर्तमान माँग पूर्ण-रोजगार के लिए आवश्यक समग्र माँग, समग्र पूर्ति से अधिक हो जाती है तो अतिरेक माँग की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 25.
सन्तुलन कितने प्रकार का हो सकता है?
उत्तर:
सन्तुलन निम्नलिखित प्रकार का हो सकता है –

  1. पूर्ण-रोजगार सन्तुलन।
  2. अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन।

प्रश्न 26.
अपूर्ण-रोजगार स्तर का उपचार कर अर्थव्यवस्था को पूर्ण-रोजगार स्तर तक पहुँचाने का सूत्र किसने बताया था तथा वह सूत्र क्या है?
उत्तर:
अपूर्ण-रोजगार स्तर का उपचार कर अर्थव्यवस्था को पूर्ण-रोजगार स्तर तक पहुँचाने का सूत्र कीन्स ने बताया था। समग्र माँग में वृद्धि करके पूर्ण-रोजगार प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 27.
प्रतिष्ठित समग्र आपूर्ति की मान्यताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रतिष्ठित समग्र आपूर्ति की मान्यताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. जे. बी. से का बाजार नियम एवं
  2. मजदूरी कीमत नम्यता

प्रश्न 28.
MPS = 1 – MPC का क्या अर्थ है? MPC एवं MPS का योग हमेशा एक क्यों होता है?
उत्तर:
MPS = 1 – MPC का अर्थ है कि अर्थव्यवस्था अतिरिक्त राष्ट्रीय आय का वह भाग जो उपभोग पर खर्च नहीं हुआ बचत कर लिया गया या बचत में जुड़ गया। क्योंकि आय का उपभोग किया जाता है या बचत की जाती है। इसलिए सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति एवं सीमान्त बचत प्रवृत्ति का योग हमेशा एक होता है।
∆C + ∆S = ∆Y
𝐷𝐶𝐷𝑌 + 𝐷𝑆𝐷𝑌 = 𝐷𝑋𝐷𝑌
MPC + MPS = 1

प्रश्न 29.
उपभोग फलन को समीकरण द्वारा व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
C = 𝑐¯ + by
𝑐¯ > 0 = 0 < b < 1
C = उपभोग
𝑐¯ = स्वायत्त उपभोग
b = सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति
y = राष्ट्रीय आय

प्रश्न 30.
‘से’ के बाजार का नियम लिखिए।
उत्तर:
जे. ब. से के बाजार नियम के अनुसार “पूर्ति अपनी माँग का स्वयं निर्माण करती है।”

प्रश्न 31.
स्वायत्त उपभोग का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
जीवित रहने के लिए आवश्यक न्यूनतम उपभोग को स्वायत्त निवेश कहते हैं। स्वायत निवेश आय के शून्य स्तर पर भी होता है। स्वायत्त निवेश हमेशा धनात्मक (+) होता है।

प्रश्न 32.
अपबचत का अर्थ लिखें।
उत्तर:
यदि उपभोग वक्र 45° रेखा से ऊपर होता है तो आय के प्रत्येक स्तर पर उपभोग व्यय आय से अधिक होता है। इसको अपबचत भी कहते हैं।

प्रश्न 33.
सन्तुलन का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सन्तुलन अर्थव्यवस्था की वह अवस्था है, जिसमें किसी सामान्य कीमत पर समग्र माँग एवं समग्र आपूर्ति एक समान हो जाती है। सन्तुलन स्तर पर रोजगार के स्तर को सन्तुलन रोजगार कहते हैं।

प्रश्न 34.
समीकरण C =cY में निर्वहन उपभोग या न्यूनतम उपभोग स्तर जोड़ने की आवश्यकता क्यों पड़ती है।
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय का स्तर शून्य होता है तो उपभोग का स्तर शून्य नहीं होता है लोग अपनी पुरानी बचतों या ऋण लेकर न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति अवश्य करते हैं। इसलिए समीकरण C = cY निर्वहन उपभोग जोड़ने की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 35.
अव्यवहारिक अथवा काल्पनिक विचार का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
C = c (Y – 0) = cY यह एक अव्यवहारिक उदाहरण है क्योंकि इसका अभिप्राय राष्ट्रीय आय शून्य तो उपभोग भी शून्य होगा। जबकि आय का स्तर शून्य होने पर भी उपभोग शून्य नहीं होता है। निर्वहन उपभोग स्तर आय के शून्य स्तर पर भी पाया जाता है।

प्रश्न 36.
C = c (Y – 0) = cY, जहाँ c का अभिप्राय सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से है समीकरण का अभिप्राय स्पष्ट करो।
उत्तर:
इस समीकरण का अभिप्राय है यदि किसी विशिष्ट वर्ष में आय शून्य है तो अर्थव्यवस्था का उपभोग शून्य रहेगा अर्थात् अर्थव्यवस्था पूरे वर्ष भूखी रहेगी।

प्रश्न 37.
निर्वहन उपभोग को शामिल किए बिना एक अर्थव्यवस्था में कुल उपभोग को दर्शाने वाला समीकरण लिखिए।
उत्तर:
C = c (Y – 0)
= cY
जहाँ C कुल उपभोग, c सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा Y राष्ट्रीय आय

प्रश्न 38.
निर्वहन उपभोग को शामिल करके एक अर्थव्यवस्था में कुल उपभोग को दर्शाने वाले समीकरण को लिखिए।
उत्तर:
C = C’ + cY

प्रश्न 39.
C = C’ + cY एक अर्थव्यवस्था में कुल उपभोग का समीकरण है। इस समीकरण में स्थिराँक मद को लिखिए।
उत्तर:
C’ स्थिराँक मद हैं इसे निर्वहन उपभोग (न्यूनतम उपभोग) भी कहते हैं। यह उपभोग स्तर अर्थव्यवस्था में शून्य आय स्तर पर भी पाया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
मजदूरी-कीमत नभ्यता की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
मजदूरी-कीमत नभ्यता का आशय है कि मजदूरी व कीमत में लचीलापन। वस्तु-श्रम की माँग व पूर्ति की शक्तियों में परिवर्तन होने पर मजदूरी दर व कीमत में स्वतन्त्र रूप से परिवर्तन को मजदूरी-कीमत नभ्यता कहा जाता है। श्रम बाजार में श्रम की मांग बढ़ने से मजदूरी दर बढ़ जाती है तथा श्रम की माँग कम होने से श्रम की मजदूरी दर कम हो जाती है। इसी प्रकार वस्तु बाजार में वस्तु की माँग बढ़ने पर वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तथा इसके विपरीत माँग कम होने से कीमत घट जाती है। मजदूरी-कीमत नम्यता के कारण श्रम एवं वस्तु बाजार में सदैव सन्तुलन बना रहता है।

प्रश्न 2.
वास्तविक मजदूरी का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
श्रमिक अपनी शारीरिक एवं मानसिक सेवाओं के प्रतिफल के रूप में कुल जितनी उपयोगिता प्राप्त कर सकते हैं उसे वास्तविक मजदूरी कहते हैं। दूसरे शब्दों में श्रमिक की अपनी आमदनी से वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदने की क्षमता को वास्तविक मजदूरी कहते हैं। वास्तविक मजदूरी का निर्धारण श्रमिक की मौद्रिक मजदूरी एवं कीमत स्तर से होता है। वास्तविक मजदूरी एवं मौद्रिक मजदूरी में सीधा सम्बन्ध होता है अर्थात् ऊँची मौद्रिक मजदूरी दर पर वास्तविक मजदूरी अधिक होने की सम्भावना होती है। वास्तविक मजदूरी व कीमत स्तर में विपरीत सम्बन्ध होता है। कीमत स्तर अधिक होने पर मुद्रा की क्रय शक्ति कम हो जाती है अर्थात् वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदने की क्षमता कम हो जाती है।

प्रश्न 3.
कीमत स्तर चाहे कुछ भी हो, उत्पादन तो पूर्ण-रोजगार स्तर पर ही होता है। प्रतिष्ठित सिद्धान्त के इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
जे. बी. से के बाजार नियम एवं मजदूरी-कीमत नम्यता से मिलकर स्वचालित बाजार सन्तुलन की रचना होती है। दूसरे शब्दों में, लोचशील मजदूरी व कीमत के द्वारा श्रम बाजार एवं वस्तु बाजार में सदैव सन्तुलीन की अवस्था कायम रहती है। अस्थायी सन्तुलन मजदूरी व कीमत लोच के द्वारा ठीक हो जाता है। अर्थव्यवस्था हमेशा पूर्ण-रोजगार स्तर पर ही उत्पादन करती है। इसलिए प्रतिष्ठित समग्र आपूर्ति वक्र उत्पादन के पूर्ण-रोजगार स्तर पर ऊर्ध्व रेखा होती है। कीमत परिवर्तन का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। संक्षेप में, कीमत स्तर चाहे कुछ भी हो, उत्पादन तो पूर्ण-रोजगार स्तर पर ही रहता है।

प्रश्न 4.
लोग काम करने को क्यों तैयार हो जाते हैं? जबकि काम करना कष्टप्रद होता है?
उत्तर:
प्रो. जे. बी. से का मानना था कि काम करने में लोगों को कष्ट होता है। अतः लोग काम के उद्देश्य से काम नहीं करते हैं। लोग काम करने के लिए इसलिए तैयार होते हैं क्योंकि काम के बदले उन्हें सन्तुष्टि प्राप्त होती है। काम करने के प्रतिफल के रूप में उन्हें नकद, किस्म या सामाजिक सुरक्षा के रूप से पारिश्रमिक प्राप्त होता है अर्थात् काम के बदले उन्हें उपभोग करने के लिए वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्राप्त होती है या उन्हें प्राप्त करने की क्षमता प्राप्त होती है।

प्रश्न 5.
मजदूरी दर की नम्यता श्रम बाजार को सन्तुलन में बनाए रखती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मजदूरी दर की नम्यता (लोचशीलता) के कारण श्रम की माँग व आपूर्ति सन्तुलन में रहती है। यदि श्रम की माँग, श्रम की आपूर्ति से अधिक होती है तो श्रम की मजदूरी दर में बढ़ोतरी हो जाती है। ऊँची मजदूरी दर पर श्रम की माँग में कमी आ जाती है तो श्रम की आपूर्ति बढ़ जाती है। श्रम की मजदूरी दर में तब तक वृद्धि जारी रहती है जब तक पुनः श्रम की माँग एवं आपूर्ति दोनों समान नहीं होती है। इसके विपरीत यदि श्रम की माँग, श्रम की आपूर्ति से कम होती है तो बाजार में प्रचलित मजदूरी दर कम हो जाती है। मजदूरी दर से कमी श्रम की माँग व पूर्ति में पुनः सन्तुलन स्थापित करती है।

प्रश्न 6.
समग्र आपूर्ति की प्रतिष्ठित संकल्पना केन्जीयन संकल्पना से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
समग्र आपूर्ति की प्रतिष्ठित संकल्पना:
पुरानी विचारधारा के अनुसार समग्र आपूर्ति पर कीमत परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात् समग्र पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होती है। समग्र आपूर्ति वक्र Y – अक्ष के समान्तर होती है। इस विचारधारा के अनुसार अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण-रोजगार स्तर पाया जाता है।

समग्र आपूर्ति की केन्द्रीय संकल्पना:
कीन्स के अनुसार समग्र आपूर्ति पर सामान्य कीमत स्तर में परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है। समग्र आपूर्ति पूर्णत: लोचशील होती है। कीमतों में बिना उतार-चढ़ाव के उत्पादन स्तर पूर्ण-रोजगार स्तर तक बढ़ाया जा सकता है।

प्रश्न 7.
पूर्ण-रोजगार सन्तुलन एवं अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन में भेद कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण-रोजगार सन्तुलन:
यदि कोई अर्थव्यवस्था अपने सभी संसाधनों की पूर्ण क्षमता का प्रयोग कर रही है तो इसे पूर्ण-रोजगार सन्तुलन की अवस्था कहते हैं। प्रतिष्ठित सिद्धान्त के अनुसार अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण-रोजगार सन्तुलन बना रहता है। इस अवस्था में समग्र माँग व आपूर्ति बराबर होती है। समग्र आपूर्ति हमेशा पूर्ण-रोजगार स्तर पर उत्पादन के बराबर होती है।

अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन:
यदि कोई अर्थव्यवस्था समग्र माँग व आपूर्ति की सन्तुलन अवस्था में अपने सभी संसाधनों की पूर्ण क्षमता का प्रयोग नहीं कर रही है तो इसे अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन कहते हैं। कीन्स ने अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन के आधार पर ही आय एवं रोजगार सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था।

प्रश्न 8.
प्रतिरोधात्मक बेरोजगारी क्या दर्शाती है?
उत्तर:
प्रतिरोधात्मक बेरोजगारी उस स्थिति की ओर इशारा करती है, जिसमें कुछ लोग किसी कारणवश. एक काम को छोड़कर दूसरे काम की खोज करते हैं। नया रोजगार मिलने में कुछ समय लग सकता है। अत: किसी समय विशेष पर अर्थव्यवस्था में कुछ लोग बेरोजगार पाए जा सकते हैं। अतः प्रतिबन्धात्मक बेरोजगारी अस्थायी प्रकृति की होती है। इसे हल करने के लिए सरकार को अलग से प्रयास करने की आवश्यकता नहीं होती है। स्थायी बेरोजगारी की तरह यह अर्थव्यवस्था के लिए गम्भीर समस्या नहीं होती है।

प्रश्न 9.
प्रतिष्ठित विचारधारा का काल एवं सन्तुलन के बारे में ‘से’ की विचारधारा समझाइए।
उत्तर:
18 वीं शताब्दी में एडम स्मिथ से लेकर 20 शताब्दी में पीगू तक के सभी अर्थशास्त्रियों के चिन्तन को प्रतिष्ठित विचारधारा कहते हैं। दूसरे शब्दों में, प्रो. जे. एम. कीन्स से पूर्व की सभी अर्थशास्त्रियों की विचारधारा को प्रतिष्ठित अर्थशास्त्र कहते हैं। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री ऐसा मानते थे कि अर्थव्यवस्था में सन्तुलन पूर्ण-रोजगार स्तर पर पाया जाता है। उनके इस मत का आधार जे. बी. से का बाजार नियम था। वे समग्र माँग के अभाव या अधिक्य को स्वीकार नहीं करते थे तथा अर्थव्यवस्था में वे बेरोजगारी की अवस्था को भी स्वीकार नहीं करते थे।

प्रश्न 10.
श्रम विभाजन व विनिमय पर आधारित अर्थव्यवस्था में किस प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है?
उत्तर:
श्रम विभाजन एवं विनिमय पर आधारित अर्थव्यवस्था में लोग अभीष्ट वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन नहीं करते हैं बल्कि उन वस्तुओं अथवा सेवाओं का उत्पादन करते हैं, जिनके उत्पादन में उन्हें कुशलता या विशिष्टता प्राप्त होती है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में लोग आवश्यकता से अधिक मात्रा में उत्पादन करते हैं और दूसरे लोगों के अतिरेक से विनिमय कर लेते हैं। दूसरे शब्दों में, इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में स्व-उपभोग के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन नहीं करते हैं बल्कि विनिमय के लिए उत्पादन करते हैं।

प्रश्न 11.
कीमत नम्यता वस्तु बाजार में सन्तुलन कैसे बनाए रखती है?
उत्तर:
कीमत नम्यता (लोचशीलता) के कारण वस्तु व सेवा बाजार में सन्तुलन बना रहता है। यदि वस्तु की माँग, आपूर्ति से ज्यादा हो जाती है अर्थात् अतिरेक माँग की स्थिति पैदा हो जाती तो वस्तु बाजार में कीमत का स्तर अधिक होने लगता है। कीमत के ऊँचे स्तर पर वस्तु की माँग घट जाती है तथा उत्पादक वस्तु आपूर्ति अधिक मात्रा में करते हैं। वस्तु की कीमत में वृद्धि उस समय तक जारी रहती है जब तक माँग व आपूर्ति सन्तुलन में नहीं आ जाती है। इसके विपरीत अभावी माँग की स्थिति में कीमत स्तर घटना शुरू हो जाता है। नीची कीमत पर उपभोक्ता अपेक्षाकृत वस्तु की माँग बढ़ाते हैं तथा उत्पादक आपूर्ति कम करते हैं। माँग व पूर्ति में परिवर्तन उस समय तक कायम रहता है जब तक माँग व आपूर्ति सन्तुलन में नहीं आ जाती है।

प्रश्न 12.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की परिभाषा करें।
उत्तर:
आय में एक इकाई बढ़ोतरी होने पर उपभोग में होने वाली परिवर्तन की दर को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
MPC = ∆𝐶∆𝑌
MPC = सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति
AY = राष्ट्रीय आय में परिवर्तन

प्रश्न 13.
व्यष्टि स्तर एवं समष्टि स्तर उपभोग को प्रभावित करने वाले कारक बताइए।
उत्तर:
व्यष्टि स्तर पर उपभोग उन वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य के बराबर होता है, जिन्हें विशिष्ट समय एवं विशिष्ट कीमत पर परिवार खरीदते हैं। व्यष्टि स्तर पर उपभोग वस्तु की कीमत आय एवं सम्पत्ति संभावित आय एवं परिवारों की रूचि अभिरूचियों पर निर्भर करता है। समष्टि स्तर पर केन्ज ने मौलिक एवं मनोवैज्ञानिक नियम की रचना की है। केन्ज के अनुसार अर्थव्यवस्था में जैसे-जैसे राष्ट्रीय आय का स्तर बढ़ता है लोग अपना उपभोग बढ़ाते हैं परन्तु उपभोग में वृद्धि की दर राष्ट्रीय आय में वृद्धि की दर से कम होती है। आय के शून्य स्तर पर स्वायत्त उपभोग किया जाता है। स्वायत्त उपभोग से ऊपर प्रेरित निवेश उपभोग प्रवृत्ति एवं राष्ट्रीय आय के स्तर से प्रभावित होता है।
C = C + by, जहाँ C उपभोग 𝑐¯ स्वायत्त निवेश
b सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति, y राष्ट्रीय आय।

प्रश्न 14.
मजदूरी अनम्यता (लोचहीनता) अनैच्छिक बेरोजगारी उत्पन्न करती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण-रोजगार उत्पादन स्तर तक मजदूरी पूर्णतया लोचशील रहती है। पूर्ण-रोजगार उत्पादन स्तर पर पहुँचते ही मजदूरी दर बेलोच हो जाती है। पूर्ण-रोजगार स्तर पर सभी संसाधनों का चरम सीमा तक प्रयोग हो जाता है। अतः इससे आगे उत्पादन बढ़ाना सम्भव नहीं रहता है। इसके बाद पूर्ण-रोजगार प्राप्ति की बाधाएँ उत्पन्न हो जाती है। यदि मजदूरी दर किसी ऐसे स्तर पर स्थिर हो जाती है, जहाँ श्रम की आपूर्ति, श्रम की माँग से ज्यादा होती है तो श्रम के आधिक्य के कारण अतिरिक्त श्रम अनैच्छिक रूप से बेरोजगार हो जाता है। श्रम की लोचहीनता श्रम की आपूर्ति की अधिकता को कम करने में बाधा पैदा करती है। अतः श्रम की अनम्यता पूर्ण-रोजगार स्तर की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करती है।

प्रश्न 15.
रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की मान्यताएँ बताइए।
उत्तर:
यह सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है –

  1. अर्थव्यवस्था पूंजीवादी है अर्थात् आर्थिक समस्याएँ कीमत तन्त्र के द्वारा हल की जाती है।
  2. सामान्य कीमत स्तर मजदूरी दर एवं ब्याज दर पूर्णत: लोचशील होती है।
  3. समग्र आपूर्ति, कीमत के प्रति पूर्ण लोचविहीन होती है जबकि समग्र माँग कीमत के प्रति पूर्णलोचशील होती है।
  4. बचत एवं निवेश ब्याज सापेक्ष होते हैं।
  5. सरकारी हस्तक्षेप शून्य स्तर का होना चाहिए।

प्रश्न 16.
रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की आलोचनाएँ बताइए।
उत्तर:
रोजगार का परम्परावादी सिद्धान्त जिन मान्यताओं पर आधारित है, उसमें से ज्यादातर काल्पनिक है। इसकी प्रमुख आलोचनाएँ निम्नलिखित है –

  1. सभी अर्थव्यवस्थाएँ पूंजीवादी नहीं है।
  2. व्यष्टि अर्थशास्त्र के लिए निकाले गए निर्णयों को समष्टि अर्थशास्त्र पर लागू कर दिया जिससे वे महामंदी के चक्र को नहीं तोड़ पाए।
  3. समग्र आपूर्ति कीमत के प्रति लोचविहीन न होकर लोचशील होती है।
  4. बचत पूर्णतः ब्याज सापेक्ष नहीं होती है। बचत का स्तर आय के स्तर एवं उपभोग प्रवृत्ति से प्रभावित होता है।
  5. निवेश का स्तर भी पूर्णतः ब्याज सापेक्ष न होकर पूंजी की सीमान्त कार्यक्षमता पर भी निर्भर रहता है।
  6. समग्र माँग एवं समग्र आपूर्ति के साम्य स्तर रोजगार स्तर पूर्ण-रोजगार स्तर न होकर सन्तुलन रोजगार स्तर कहलाता है। सन्तुलन रोजगार स्तर पूर्ण-रोजगार अथवा अपूर्ण-रोजगार स्तर भी हो सकता है।

प्रश्न 17.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
आय में परिवर्तन की वजह से बचत में होने वाली परिवर्तन की दर को सीमान्त बचत प्रवृत्ति कहते हैं।

MPS = ∆𝐶∆𝑌
MPS = सीमान्त बचत प्रवृत्ति, AC = बचत में परिवर्तन, AY = राष्ट्रीय आय में परिवर्तन

प्रश्न 18.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से चित्र बनाकर सम बिन्दु, अपबचत एवं बचत को दर्शाइए।

उत्तर:
आय के 500 स्तर से पूर्व उपभोग, वक्र, 45° रेखा के ऊपर है अर्थात् व्यय, आय से अधिक है। अतः बिन्दु से नीचे अपबचत का क्षेत्र है। बिन्दु (E) पर आय व व्यय दोनों एक समान 500 है। अतः बिन्दु (E) सम बिन्दु है इस पर बचत व अपबचत दोनों शून्य है। बिन्दु (E) के बाद आय के 500 से ऊपर स्तर पर आय, व्यय से अधिक है। अत: इसके बाद बचत प्राप्त होती है।

प्रश्न 19.
अपबचत क्या है? यह उपभोग के लिए किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
अपबचत बचत की विपरीत प्रक्रिया है। अपबचत के द्वारा लोग व्यय की तुलना में आय की कमी को पूरा करके उपभोग स्तर को बनाए रखते हैं। अपबचत को ऋणात्मक बचत भी कहते हैं। यदि परिवारों का उपभोग व्यय आय से ज्यादा होता है तो व्यय को पूरा करने के लिए लोग पुरानी बचतों का प्रयोग करते हैं अथवा पुरानी परिसम्पत्तियों को बेचते हैं अथवा उधार लेते हैं। उपरोक्त एक या अधिक युक्ति का प्रयोग करके ही लोग उपभोग के लिए आवश्यक व्यवस्था कर पाते हैं। इस प्रकार अपबचत आय से अधिक उपभोग व्यय को पूरा करने के लिए वित्तीय साधन जुटाने में मदद करती है।

प्रश्न 20.
उपभोग फलन के सम्बन्ध में किन दो बातों का ध्यान रखना चाहिए।
उत्तर:
उपभोग फलन के बारे में निम्नलिखित दो बातों का ध्यान रखना चाहिए –
1. उपभोग का स्तर वैयक्तिक प्रयोज्य आय के स्तर पर निर्भर करता है। वैयक्तिक प्रयोज्य आय वैयक्तिक आय में से प्रत्यक्ष करों के भुगतान, दण्ड जुर्माना एवं सामाजिक सुरक्षा व्यय को घटाने पर प्राप्त होती है। उपभोग एवं वैयक्तिक प्रयोज्य आय का सीधा सम्बन्ध होता है। वैयक्तिक प्रयोज्य आय के ऊँचे स्तर पर उपभोग अधिक किया जाता है।

2. आय का स्तर शून्य होने पर लोग उपभोग के लिए पुरानी बचतों का प्रयोग करते हैं। जब तक आय, उपभोग से कम रहती है उपभोग के लिए पुरानी बचतों का ही प्रयोग किया जाता है। यह उपभोग जीवित रहने के लिए आवश्यक न्यूनतम उपभोग कहलाता है।

प्रश्न 21.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की सीमाओं का निर्धारण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की न्यूनतम एवं अधिकतम सीमाओं का निर्धारण उपभोग के मौलिक एवं मनोवैज्ञानिक नियम की सहायता से होता है। इस नियम के आधार पर राष्ट्रीय आय के शून्य स्तर पर भी उपभोग शून्य नहीं होता है अर्थात् उपभोग प्रवृत्ति भी शून्य नहीं होती है। दूसरे शब्दों में, सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति शून्य से ज्यादा रहती है। आय के वृद्धि के साथ उपभोग में वृद्धि होती है परन्तु उपभोग में वृद्धि दर आय में वृद्धि दर से कम होती है अर्थात् सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति इकाई से कम रहती है। इन दोनों सीमाओं को मिलाकर हम कह सकते हैं कि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मान 0 व 1 के बीच में होता है।

प्रश्न 22.
45° रेखा क्या है? इसका क्या उपयोग है?
उत्तर:
अक्ष केन्द्र से 45° कोण पर खींची गई रेखा को 45° रेखा कहते हैं। दोनों अक्षों पर मापन का एक. समान पैमाना लिया जाता है। अत: 45° रेखा के प्रत्येक बिन्दु पर क्षैतिज एवं ऊर्ध्व अन्तर (राष्ट्रीय आय एवं उपभोग व्यय) बराबर रहते हैं। इस रेखा की सहायता से राष्ट्रीय आय एवं उपभोग की तुलना की जा सकती है। यदि उपभोग वक्र 45° रेखा से ऊपर होता है तो उपभोग व्यय आय से अधिक होता है। जब उपभोग वक्र, 45° रेखा को काटता है तो आय व्यय दोनों एक समान होते हैं और यदि 45° रेखा उपभोग के ऊपर होती है तो उपभोग व्यय आय से कम होता है।

प्रश्न 23.
माँग का अभाव क्या होता है?
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में समग्र माँग पूर्ण-रोजगार स्तर पर समग्र आपूर्ति से कम होती है तो इसे माँग का अभाव या अभावी माँग या न्यून माँग कहते हैं। न्यून माँग की स्थिति में अवस्फीति अन्तराल उत्पन्न हो जाता है।

चित्र में राष्ट्रीय आय के OY1 स्तर पर समग्र माँग = AY1
समग्र पूर्ति = BY1 समग्र माँग AY1 < समग्र पूर्ति BY1
माँग का अभाव = BY1 – AY1 = AB

प्रश्न 24.
MPS = 1 – MPC का क्या अर्थ है? MPC एवं MPS का योग सदैव एक क्यों होता है?
उत्तर:
MPS = 1 – MPC का अर्थ है कि अर्थव्यवस्था अतिरिक्त राष्ट्रीय आय का वह भाग जो उपभोग पर खर्च नहीं हुआ बचत कर लिया गया या बचत में जुड़ गया क्योंकि आय को उपभोग किया जाता है या बचत की जाती है। इसलिए सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति एवं सीमान्त बचत प्रवृत्ति का योग हमेशा एक होता है। गणितीय रूप में –
∆C + ∆S = ∆Y
∆𝐶∆𝑌 + ∆𝑆∆𝑌 = ∆𝑌∆𝑌 ∆Y से भाग देने पर
MPC + MPS = 1

प्रश्न 25.
औसत उपभोग प्रवृत्ति एवं औसत बचत प्रवृत्ति का अर्थ लिखिए। इनका सम्बन्ध बताइए।
उत्तर:
औसत उपभोग प्रवृत्ति-आय के किसी स्तर पर उपभोग एवं आय के अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
औसत उपभोग प्रवृत्ति

औसत बचत प्रवृत्ति:
आय के किसी स्तर पर बचत एवं आय के अनुपात को औसत बचत प्रवृत्ति कहते हैं।

औसत बचत प्रवृत्ति APS = बचत/आय = (S/Y)

APC तथा APS का योग सदैव एक के बराबर होता है क्योंकि आय का या तो उपभोग किया जाता है या बचत की जाती है।
APC + APS = 1
C + S = Y
𝐶𝑌 + 𝑆𝑌 = 𝑌𝑌 Y से भाग करने पर
APC + APS = 1

प्रश्न 26.
निम्नलिखित आँकड़ों से APC एवं APS ज्ञात कीजिए।
आय (Y) 0 100 200 300 400 500 600 700 800 900
उपभोग (C) 100 190 270 360 450 540 630 720 810 900
उत्तर:

प्रश्न 27.
स्वायत्त एवं प्रेरित निवेश का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
स्वायत्त निवेश-निवेश का वह भाग जो राष्ट्रीय आय के सभी स्तरों पर एक समान पाया जाता है स्वायत्त निवेश कहलाता है। स्वायत्त निवेश लाभ प्रेरित नहीं होता है। स्वायत्त निवेश को अल्पकाल में नहीं बदला जा सकता है। दीर्घकाल में जनसंख्या परिवर्तन एवं तकनीकी परिवर्तन के साथ ही इस निवेश में परिवर्तन सम्भव होता है। इस प्रकार का निवेश राष्ट्रीय आय के शून्य स्तर पर भी होता है। प्रेरित निवेश-निवेश का वह भाग जो राष्ट्रीय आय के भिन्न-भिन्न स्तरों पर अलग-अलग पाया जाता है प्रेरित निवेश कहलाता है। प्रेरित निवेश लाभ से प्रभावित होता है। लाभ अधिक होने पर यह निवेश ज्यादा किया जाता है। इस प्रकार का निवेश अल्पकाल में भी बढ़ाया जा सकता है। इस प्रकार के निवेश को माल तालिका निवेश भी कहते हैं। इस प्रकार का निवेश राष्ट्रीय आय के शून्य स्तर पर शून्य होता है।

प्रश्न 28.
माँग आधिक्य क्या होता है?
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में समग्र माँग, पूर्ण-रोजगार स्तर पर समग्र आपूर्ति से अधिक होती है तो इसे माँग आधिक्य कहते हैं। माँग आधिक्य को अतिरेक माँग या अधिमाँग भी कहते हैं। माँग आधिक्य से स्फीति अन्तराल उत्पन्न होता है।

चित्र में:
आय के OY1 स्तर पर
समग्र माँग = AY1
समग्र आपूर्ति = BY1
समग्र माँग AY1 समग्र आपूर्ति BY1
माँग आधिक्य = AY1 – BY1 = AB

प्रश्न 29.
सरकार क्षेत्र के समावेश से अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ते हैं?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में सरकार क्षेत्र की अनुपस्थिति में समग्र माँग, उपभोग व निवेश के योग के समान होते हैं।
AD = C + 1
सरकार क्षेत्र के समावेश के बाद समग्र माँग की स्थिति बदल जाती है। सरकार जन कल्याण के लिए व्यय करती है। अतः सरकारी व्यय के कारण समग्र माँग का स्तर बढ़ जाता है। सरकारी व्यय को हम स्थिर मानते हैं। अत: नया समग्र माँग वक्र पूर्व समग्र के समान्तर होता है परन्तु उसकी स्थिति ऊपर की ओर होती है। सरकारी समावेश के बाद सरकार माँग अभाव एवं माँग आधिक्य की स्थितियों से निपटने के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जैसे अभावी माँग की अवस्था सरकारी व्यय को बढ़ाकर प्रभावी माँग का स्तर ऊँचा किया जा सकता है। इससे अर्थव्यवस्था में उत्पादक अधिक उत्पादन करने के लिए और अधिक संसाधनों को रोजगार प्रदान करते हैं। इस प्रकार सरकारी हस्तक्षेप से अर्थव्यवस्था अपूर्ण-रोजगार से उत्पन्न स्फीतिकारी प्रभावों को कम करने के लिए सरकारी व्यय कम करके प्रभावी माँग का स्तर घटाया जा सकता है।

प्रश्न 30.
समझाइए कि अधिक बचत कम बचत को कैसे जन्म देती है?
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में परिवार अधिक बचत करते हैं तो इसका अभिप्राय यह है कि वे उपभोग को घटा रहे हैं। दूसरे शब्दों में, वे उत्पादकों द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की वांछित मात्रा से कम क्रय करते हैं। इससे उत्पादकों के पास बिना बिके माल का स्टॉक बढ़ता है। बिना बिके माल के स्टॉक को कम करने के लिए उत्पादक कीमत स्तर को घटाते हैं और संसाधनों का प्रयोग भी कम करते हैं। परिणामस्वरूप उत्पादन, रोजगार एवं राष्ट्रीय आय के स्तर में कमी आ जाती है। आय के निम्न स्तर पर अथवा बेरोजगारी के स्तर पर परिवारों की बचत करने की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है अर्थात् बचत का स्तर कम हो जाता है। इस प्रकार अधिक बचत, बचत स्तर को घटाती है।

प्रश्न 31.
समझाइए कि कम बचत से अधिक बचत कैसे हो जाती है?
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में बचत का स्तर कम पाया जाता है तो इसका अभिप्राय यह है कि परिवार अपनी आय का अधिक भाग व्यय करते हैं। दूसरे शब्दों में, वे उपभोग को अधिक करने के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं की अधिक खरीदारी करते हैं। परिणामस्वरूप उत्पादकों का माल भण्डार स्तर वांछित स्तर में कम हो जाता है। माल भण्डार को वांछित स्तर पर लाने के लिए वे अधिक उत्पादन करने का प्रयास करते हैं। उत्पादन के स्तर को बढ़ाने के लिए अधिक संसाधनों को काम पर लगाते हैं। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय उत्पादन आय एवं रोजगार के स्तर में वृद्धि होती है। राष्ट्रीय आय एवं रोजगार का स्तर ऊँचा होने से परिवारों की बचत क्षमता में वृद्धि हो जाती है अर्थात् वे अधिक बचत कर सकते हैं। अतः कम बचत से बचत का स्तर ऊँचा होता है।

प्रश्न 32.
यदि अर्थव्यवस्था में प्रायोजित बचत प्रायोजित निवेश से अधिक हो तो इसका राष्ट्रीय आय, रोजगार एवं कीमतों पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में प्रायोजित बचत का स्तर प्रायोजित निवेश से अधिक है तो इसका अभिप्राय यह होगा कि परिवार उससे कहीं अधिक उपभोग से बचने का प्रयास कर रहे हैं, जितना कि निदेशक निवेश करना चाहते हैं। परिणामस्वरूप बिना बिके हुए माल के स्टॉक में वृद्धि होगी अर्थात् उत्पादकों ने जो योजना बनाई थी वह पूरी नहीं होगी। बिना बिके माल को कम करने के लिए उत्पादक संसाधनों का कम प्रयोग करेंगे और सामान्य कीमत स्तर को भी कम करेंगे। इससे रोजगार उत्पादन, बचत और आय में कमी आएगी। परिवर्तन की यह प्रक्रिया उस समय तक जारी रहेगी जब तक प्रायोजित बचत प्रायोजित निवेश के समान होगी।

प्रश्न 33.
यदि अर्थव्यवस्था में प्रायोजित बचत प्रायोजित निवेश से कम हो तो इसका राष्ट्रीय आय, रोजगार एवं कीमतों पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में यदि प्रायोजित बचत प्रायोजित निवेश से कम होती है तो इसका अभिप्राय यह है कि परिवार जितनी राशि बचा रहा है वह फर्मों के निवेश के लिए पर्याप्त नहीं होगी अर्थात् परिवार ज्यादा व्यय करना चाहते हैं। इससे उपलब्ध वस्तुओं के भण्डार में कमी आएगी। फर्मों का वास्तविक निवेश प्रायोजित निवेश से कम रह जायेगा। ये बाध्य होकर माल भण्डार के स्तर को वांछित स्तर पर बनाए रखने के लिए अधिक संसाधनों को काम पर लगाएंगे। परिणामस्वरूप उत्पादन, रोजगार और आय के स्तर में वृद्धि होगी। आय के ऊँचे स्तर पर बचत करने की क्षमता बढ़ेगी। परिवर्तन की यह प्रक्रिया उस समय तक जारी रहेगी जब तक बचत और निवेश समान होंगे।

प्रश्न 34.
अधिमाँग का अर्थ बताओ। इसका उत्पादन, रोजगार व कीमत स्तर पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
अधिमाँग-यदि पूर्ण-रोजगार स्तर पर नियोजित सामूहिक माँग, नियोजित सामूहिक पूर्ति से अधिक होती है तो इस स्थिति को अधिमाँग कहते हैं। अधिमाँग की स्थिति में सामान्य कीमत स्तर ऊँचा होता है परिणामस्वरूप उत्पादक को सम्भावित आय से अधिक आय प्राप्त होती है। इससे उत्पादन बढ़ना या न बढ़ना निम्न स्थितियों पर निर्भर करता है –

1. यदि पर्ण-रोजगार स्तर. साम्य रोजगार स्तर से कम है तो अर्थव्यवस्था में रोजगार का स्तर नहीं बढ़ेगा। इसलिए उत्पादन का स्तर भी नहीं बढ़ेगा। इस स्थिति, में केवल कीमत स्तर में तीव्र वृद्धि होगी। कीमतों में तीव्र वृद्धि को मुद्रा स्फीति कहते हैं।

2. यदि पूर्ण-रोजगार स्तर साम्य रोजगार स्तर से अधिक है, तो अधिक उत्पादन करने के लिए फर्म रोजगार की संख्या बढ़ा सकते हैं। इससे उत्पादन भी बढ़ेगा। इस स्थिति में उत्पादन, रोजगार व कीमत तीनों का स्तर ऊँचा होगा।

प्रश्न 35.
अभावी माँग से क्या समझते हैं? इसके प्रभाव को चित्र द्वारा उत्पादन रोजगार और आय पर दर्शाइए।
उत्तर:
अभावी माँग-यदि अनुमानित सामूहिक उपभोग पूर्ण-रोजगार प्रदान करने वाला अनुमानित सामूहिक पूर्ति से कम होती है तो इसे अभावी माँग कहते हैं। उत्पादन, रोजगार व आय पर प्रभाव-अभावी माँग की स्थिति में सामान्य कीमत स्तर नीचे गिर जाता है। इससे उत्पादकों को अनुमानित आय से कम आय प्राप्त होती है। वे निरुत्साहित होते हैं और उत्पादन कम करने का निर्णय लेते हैं। उत्पादन स्तर घटाने के लिए उत्पादक कुछ उत्पादन साधनों को उत्पादन प्रक्रिया से हटा देते हैं। इस प्रकार सामान्य कीमत स्तर के साथ-साथ उत्पादन, रोजगार व आय सभी का स्तर गिर जाता है। गिरावट का यह चक्र अर्थव्यवस्था को आर्थिक मन्दी की
ओर धकेल सकता है।

प्रश्न 36.
प्रोफेसर जे. एम. कीन्स के ‘मितव्ययिता के विरोधाभास’ की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक महामन्दी के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए जे. एम. कीन्स ने बचत का विरोध किया था। उससे अधिक उपभोग करने पर जोर दिया था क्योंकि अधिक बचत कम बचत को तथा कम बचत अधिक बचत को जन्म देती है। इसे निम्न प्रकार समझाया जा सकता है यदि अर्थव्यवस्था में परिवार अधिक बचत करते हैं तो इसका अभिप्राय है कि वे उपभोग को घटा रहे हैं। दूसरे शब्दों में, वे उत्पादकों द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की वांछित मात्रा से कम क्रय करते हैं। इससे उत्पादकों के पास बिना बिके माल का स्टॉक बढ़ता है। बिना बिके माल के स्टॉक को कम करने के लिए उत्पादक कीमत स्तर को घटाते हैं और संसाधानों का प्रयोग भी कम करते हैं। परिणामस्वरूप उत्पादन, रोजगार एवं राष्ट्रीय आय के स्तर में कमी आ जाती है। आय के निम्न स्तर पर अथवा बेरोजगारी के स्तर पर परिवारों की बचत करने की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है अर्थात् बचत का स्तर कम हो जाता है। इस प्रकार अधिक बचत, बचत स्तर को घटाती है।

यदि अर्थव्यवस्था में बचत का स्तर कम पाया जाता है तो इसका अभिप्राय यह है कि परिवार अपनी आय का अधिक भाग व्यय करते हैं। दूसरे शब्दों में, वे उपभोग को अधिक करने के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं की अधिक खरीदारी करते हैं। परिणामस्वरूप उत्पादकों का माल भण्डारण स्तर वांछित स्तर से कम हो जाता है। माल भण्डार को वांछित स्तर पर लाने के लिए वे अधिक उत्पादन करने का प्रयास करते हैं। उत्पादन के स्तर को बढ़ाने के लिए अधिक उत्पादन करने का प्रयास करते हैं। उत्पादन के स्तर को बढ़ाने के लिए अधिक संसाधनों को काम पर लगाते हैं। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय उत्पादन, आय एवं रोजगार के स्तर में वृद्धि होती है। राष्ट्रीय आय एवं रोजगार का स्तर ऊँचा होने से परिवारों की बचत क्षमता में वृद्धि हो सकती है अर्थात् वे अधिक बचत कर सकते हैं। अतः कम बचत से बचत का स्तर ऊँचा होता है।

प्रश्न 37.
स्थिर कीमत पर साम्य सामूहिक माँग के निर्धारक तत्त्व बताइए।
उत्तर:
स्थिर कीमत व व्याज दर पर साम्य सामूहिक माँग का समीकरण होता है –
AS = AD
य Y = AD
य Y = A + CY
य (A = C + I)
य Y – CY = AY
य (1 – c) = A
य Y = 𝐴1−𝐶
Y का मान A तथा (के मान से निर्धारित होगा।
A = स्वायत्त उपभोग + स्वायत्त निवेश A का मान बढ़ने पर रेखा ऊपर की ओर खिसक जाती है।
C → रेखा का ढाल है इसमें वृद्धि से रेखा ऊपर की ओर झुक जाती है।

प्रश्न 38.
उदाहरण की सहायता से अधिमाँग की अवधारणा स्पष्ट करो।
उत्तर:
प्रभावी माँग सिद्धान्त के अनुसार यदि पूर्व नियोजित सामूहिक माँग नियोजित सामूहिक पूर्ति के समान हो तो अर्थव्यवस्था सन्तुलन में होती है। यदि नियोजित सामूहिक माँग, नियोजित सामूहिक पूर्ति से ज्यादा हो तो इस स्थिति को अधिमाँग कहते हैं।
माना स्वायत्त उपभोग व्यय (C) = 50
स्वायत्त निवेश व्यय (I) = 20
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति = 0.8
नियोजित सामूहिक पूर्ति = 300
नियोजित सामूहिक माँग = C+ I + cY
= 350 + 20 + 0.8 × 300
= 70 + 240 = 310
सामूहिक माँग AD (310 रु.), सामूहिक पूर्ति AS (300 रु.) से अधिक है।

प्रश्न 39.
एक उदाहरण की सहायता से अभावी माँग की अवधारणा स्पष्ट करो।
उत्तर:
प्रभावी माँग सिद्धान्त के अनुसार यदि पूर्व नियोजित सामूहिक माँग नियोजित सामूहिक पूर्ति के समान है तो अर्थव्यवस्था सन्तुलन में होती है। यदि नियोजित सामूहिक माँग, नियोजित सामूहिक पूर्ति से कम होती है तो इस स्थिति को अभावी माँग या न्यून माँग कहते हैं। माना स्वायत्त अन्तिम उपभोग 50 रु. है, सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति MPC = 0.8 है तथा आय का स्तर 500 रु. है तब
सामूहिक माँग = C + I + cY
= 50 + 20 + 0.8 × 500
= 70 + 400 = 470 रु.
अर्थव्यवस्था अभावी माँग की स्थिति होगी क्योंकि साम्य अवस्था के लिए सामूहिक माँग का स्तर 500 रु. होना चाहिए।

प्रश्न 40.
Y = C+ I + cY समीकरण में समाशोधन कीजिए जब सरकार आर्थिक क्रियाओं में हस्तक्षेप करती है।
उत्तर:
जब सरकार आर्थिक क्रियाकलापों में हस्तक्षेप नहीं करती है तो राष्ट्रीय आय एवं सामूहिक माँग का समीकरण होता है –
Y = C + I + cY
Y = A+ cY
जब सरकार आर्थिक क्रियाओं में हस्तक्षेप करती है तो वस्तुओं एवं सेवाओं पर व्यय करके उपभोग माँग को बढ़ाती है दूसरी ओर सरकार जनता पर कर लगाकर प्रयोज्य आय को कम कर देती है। इस प्रकार से समाशोधित समीकरण निम्नलिखित होगा
Y = C + I + G + c (Y – T)

प्रश्न 41.
b = ma + एक सीधी रेखा का समीकरण है। प्रयुक्त संकेताक्षरों का अर्थ लिखो।
उत्तर:
b = ma एक सीधी रेखा का समीकरण है।
चर m का मान शून्य से अधिक है। इसे समीकरण का ढाल कहते हैं। (“) चार उर्ध्वाधर अक्ष का भाग है जिसे रेखा काटती है। जब a में एक (इकाई) वृद्धि होती है तो m का मान m इकाई बढ़ जाता है। इसे रेखा के साथ चरों का संचरण कहते हैं।

प्रश्न 42.
स्थिरॉक क्या करते हैं?
उत्तर:
समीकरण b = ma + “में m तथा” को रेखा के स्थिराँक कहते हैं। ये स्थिराँक चरों की भाँति अक्षों पर नहीं दर्शाए जाते हैं। लेकिन ये पर्दे के पीछे काम करते हैं और रेखा की स्थिति को नियंत्रित करते हैं। जैसे जब m का मान बढ़ता है तो रेखा ऊपर की ओर संचरित हो जाती है जिसे स्थिराँक खिसकाव कहते हैं। जब ” का मान बढ़ता है तो रेखा ऊपर (समान्तर) खिसक जाती है।

प्रश्न 43.
समीकरण Y = C + I + cY अथवा Y = A + CY क्या दर्शाता है?
उत्तर:
समीकरण Y = C + I + cY तथा Y = A + cY दर्शाता है –
बाँया पक्ष का चर Y अर्थव्यवस्था की पूर्व नियोजित आय या उत्पाद या सामूहिक पूर्ति को दर्शाता है। दाँया पक्ष C+ I + cY या A+ cY अर्थव्यवस्था में सामूहिक माँग को दर्शाता है सामूहिक माँग C + I या A भाग राष्ट्रीय आय से प्रभावित नहीं होता है जबकि cY भाग राष्ट्रीय आय में परिवर्तन या सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से प्रभावित होता है। यदि अर्थव्यवस्था में नियोजित सामूहिक पूर्ति व नियोजित सामूहिक माँग दोनों समान होते हैं तो अर्थव्यवस्था सन्तुलन में होगी।

प्रश्न 44.
जब A तथा C के मान में वृद्धि होती है तो साम्य सामूहिक माँग तथा साम्य सामूहिक पूर्ति पर प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
जब अर्थव्यवस्था में स्वायत्त उपयोग A में बढ़ोतरी होती है तो साम्य सामूहिक माँग एवं सामूहिक पूर्ति ऊपर की ओर खिसक जायेगी। स्वायत्त उपभोग में बढ़ोतरी होने से अर्थव्यवस्था में अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न होगी। अधिमाँग की स्थिति अर्थव्यवस्था को पुनः सन्तुलन स्थापित करने की दिशा में परिवर्तन करना पड़ता है। परिणामतः साम्य उत्पाद एवं सामूहिक माँग बढ़ जायेगी। इसे निम्नांकित चित्र में दर्शाया गया है –

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
उपभोग प्रवृत्ति को प्रभावित करने वाले कारक समझाइए।
उत्तर:
उपभोग प्रवृत्ति को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं –
1. राष्ट्रीय आय-जे. एम. कीन्स ने उपभोग प्रवृत्ति का सबसे प्रमुख निर्धारित तत्त्व आय को बताया है। आय के बढ़ने पर उपभोग बढ़ता है परन्तु आय के बढ़ने पर उपभोग प्रवृत्ति घटती है और आय के घटने पर वह घटता है।

2. आय का वितरण-धन के असमान रूप से वितरण होने पर समाज के धनी वर्ग की बचत क्षमता बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति घटती है। अतः उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि के लिए आय का समान वितरण आवश्यक है।

3. भावी परिवर्तन – भविष्य में होने वाली घटनाओं के प्रति अपेक्षाओं से भी उपभोग प्रवृत्ति प्रभावित होती है। यदि किसी युद्ध या अन्य प्रकार के संकट की सम्भावना हो तो लोग अधिक वस्तुओं का क्रय करेंगे और इससे उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा।

4. साख की उपलब्धता-आजकल उपभोक्ताओं को किस्त व साख सुविधाएँ मिलने लगी है। उपभोक्ता नयी-नयी वस्तुओं जैसे मकान, कार आदि उधार क्रय करते हैं या साख सुविधा प्राप्त कर किस्तों में क्रय कर सकते हैं। जिससे उपभोग प्रवृत्ति बढ़ती है।

5. ब्याज दर में परिवर्तन-यदि ब्याज में वृद्धि हो जाती है तो ऊँची ब्याज दर का लाभ उठाने के उद्देश्य से लोग उपभोग कम करके अधिक बचत करते हैं अर्थात् उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है।

6. कर नीति-यदि सरकार ज्यादा कर लगाती है तो प्रयोज्य आय कम हो जाती है परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है तथा इसके विपरित यदि सरकार कम कर लगाती है तो प्रयोज्य आय बढ़ जाती है परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है।

7. लाभांश नीति-यदि निगम अथवा संयुक्त पूँजी कम्पनियाँ अधिक धन सुरक्षित कोष में रखने का निर्णय लेती है अर्थात् अंशधारियों को कम राशि लाभांश के रूप में वितरित करती है तो लोगों को कम आय प्राप्त होगी और उपभोग कम होगा।

8. भविष्य में आय-परिवर्तन की सम्भावना-यदि भविष्य में लोगों को आय में बढ़ोतरी की उम्मीद होती है तो वर्तमान उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है तथा इसके विपरीत यदि भविष्य में लोगों को आय में कमी की उम्मीद होती है तो वर्तमान उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है।

प्रश्न 2.
आय एवं रोजगार का परम्परावादी सिद्धान्त समझाइए।
उत्तर:
आय एवं रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्तों में जे. बी. से का बाजार नियम सबसे प्रमुख है। से के नियम के अनुसार आपूर्ति अपनी माँग की स्वयं ही जननी होती है। दूसरे शब्दों में यदि उत्पादन हो तो उसके लिए बाजार भी पैदा हो जाता है। कीमत तन्त्र के सहारे चलने वाली अर्थव्यवस्था में अति उत्पादन, बेरोजगारी एवं मुद्रा स्फीति की समस्या उत्पन्न नहीं होती है। यदि उपरोक्त कोई समस्या उत्पन्न हो जाती है तो लोचशील वस्तु की कीमत, लोचशील मजदूरी दर एवं लोचशील ब्याज दर से स्वतः ही ठीक हो जाती है। अतः परम्परावादी सिद्धान्त में सरकारी हस्तक्षेप को नकारा गया है। मजदूरी-कीमत नम्यता मिलकर ऐसे स्वचालित बाजार प्रक्रिया की रचना करते हैं कि अर्थव्यवस्था में हमेशा पूर्ण-रोजगार स्तर उत्पादन होता है। वस्तु बाजार, श्रम बाजार एवं मुद्रा बाजार में सन्तुलन की प्रक्रिया निम्नलिखित ढंग से कायम रहती है।

1. वस्तु बाजार:
कीमत नम्यता के आधार पर वस्तु बाजार में सदैव संतुलन की स्थिति रहती है। आपूर्ति माँग की जननी होती है। उत्पादन से आय का सृजन होता है। सृजित आय उत्पादन साधनों को प्राप्त होती है। साधनों के स्वामी वस्तुओं की माँग करते हैं। यदि किसी समय समग्र आपूर्ति, समग्र माँग से अधिक हो जाती है तो कीमत नभ्यता के कारण वस्तुओं का साम्य कीमत स्तर गिर जाता है। अतः समग्र माँग बढ़ने लगती है। कीमत में परिवर्तन के कारण समग्र माँग में परिवर्तन उस स्थिति तक जारी रहता है जब तक समग्र माँग, समग्र आपूर्ति के बराबर होती है।

2. श्रम बाजार-से के अनुसार श्रम बाजार में सदैव पूर्ण-रोजगार की स्थिति पायी जाती है। यदि किसी समय अनैच्छिक बेरोजगारी उत्पन्न होती है तो मजदूरी सम्यता उसे स्वतः ठीक कर देती है। प्रचलित मजदूरी दर पर सबको काम मिल जाता है। बेरोजगारी की अवस्था में मजदूरी दर गिर जाती है। कम मजदूरी दर पर श्रम की माँग अधिक होती है। अत: उत्पादन उस बिन्दु पर होता है जहाँ विश्राम वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन से ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है।

3. मुद्रा बाजार-से के नियमानुसार मुद्रा की माँग एवं आपूर्ति दोनों ब्याज सापेक्ष होती है एवं दोनों सन्तुलन में होती है। मुद्रा की माँग निवेश के लिए की जाती है तथा मुद्रा की आपूत्ति बचत के द्वारी होती है। ब्याज दर बचत एवं निवेश को सन्तुलन में रखती है। संक्षेप में, अर्थव्यवस्था में सन्तुलन का निर्धारण लोचशील कीमत, लोचशील मजदूरी दर एवं लोचशील ब्याज दर से होता है। कीमत-मजदूरी नम्यता के द्वारा स्वचालित सन्तुलन प्रक्रिया कायम रहती है।

प्रश्न 3.
अधिमाँग को ठीक करने के राजकोषीय उपाय समझाइए।
उत्तर:
समग्र माँग एवं समग्र पूर्ति पर नियंत्रण करने के लिए सरकार जो उपाय करती है उन्हें राजकोषीय उपाय-नीति कहते हैं। माँग आधिक्य को ठीक करने के लिए निम्नलिखित राजकोषीय उपाय है –
1. बजट:
एक लेखा वर्ष के लिए सरकारी आय-व्यय के अनुमान का विस्तृत लेखा-जोखा बजट कहलाता है। अधिक माँग की स्थिति में सरकार सार्वजनिक व्यय को आय से कम करके समग्र माँग के स्तर को कम कर सकती है। यदि सरकारी व्यय को जन कल्याण की भावना से कम करना असंभव हो तो सरकार संतुलित बजट बनाकर समग्र माँग के स्तर को बढ़ने से रोक सकती है।

2. कर नीति:
कर नीति के द्वारा सरकार प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों की दर तय करती है। अधिमाँग की अवस्था में सरकार कठोर कर नीति बना सकती है। कठोर नीति में सरकार ऊँचे कर लगाती है। कर की ऊँची दर पर लोगों
की प्रयोज्य आय कम हो जाती है। प्रयोज्य आय घटने से लोगों का उपभोग कम हो जाता है।

3. मजदूरी नीति:
इस नीति के द्वारा सरकार श्रमिकों के पारिश्रमिक की दर तय करती है। अधिमाँग को ठीक करने के लिए सरकार कठोर मजदूरी नीति बनाकर अनावश्यक रूप से मजदूरों के वेतन एवं भत्ते बढ़ाने पर रोक लगा सकती है। इससे मजदूरों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ती है। वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग अनावश्यक रूप से नहीं बढ़ती है।

4. आयात-निर्यात:
आयात के द्वारा अर्थव्यवस्था शेष विश्व से वस्तुएँ क्रय करती है इससे वस्तुओं की आपूर्ति बढ़ती है। दूसरी ओर, निर्यात के द्वारा अर्थव्यवस्था शेष विश्व को वस्तुएँ बेचती है इससे अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की आपूर्ति कम हो जाती है और समग्र माँग बढ़ जाती है। अधिमाँग की स्थिति में सरकार आपूर्ति को बढ़ाने के लिए कठोर निर्यात नीति एवं उदार आयात नीति बना सकती है।

5. उत्पादन नीति:
इस नीति के द्वारा सरकार फर्मों को पंजीकरण, लाइसेंस, आर्थिक अनुदान आदि प्रदान करती है। वस्तुओं एवं सेवाओं की समग्र आपूर्ति को बढ़ाने के लिए सरकार उदार उत्पादन नीति बनाकर पंजीकरण, लाइसेंसिग आदि में छूट देकर उत्पादन को प्रोत्साहित कर सकती है। इससे उत्पादन में बढ़ोतरी होती है।

प्रश्न 4.
अधिमाँग का अर्थ बताइए। इसे ठीक करने के मौद्रिक उपाय समझाइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में यदि वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग पूर्ण-रोजगार स्तरीय वांछित समग्र उत्पादन से ज्यादा होती है तो इसे अधिमांग या माँग आधिक्य कहते हैं। अधिमाँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक जो उपाय करता है उन्हें मौद्रिक उपाय या मौद्रिक नीतियाँ कहते हैं। ये उपाय निम्नलिखित हैं –

1. बैंक दर-अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक जिस दर पर व्यापारिक बैंकों को उधार या अग्रिम प्रदान करता है या उनके बिलों के भुगतान पर कटौती करता है उसे बैंक दर कहते हैं।
अधिमाँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक दर ऊँची कर सकता है। ऐसा करने से व्यापारिक बैंकों के लिए साख सृजन करना महंगा हो जाता है। अत: कम साख का सृजन होता है। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति घट जाती है और उपभोग का स्तर कम हो जाता है। समग्र माँग का आधिक्य कम होने लगता है।

2. नकद जमा अनुपात-व्यापारिक बैंक अपनी जमाओं का कुछ भाग केन्द्रीय बैंक के पास जमा कराते हैं। जिस दर पर व्यापारिक बैंक को नकद राशि जमा करानी पड़ती है उसे नकद जमा अनुपात कहते हैं।
अधिमाँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक नकद जमा अनुपात CRR की दर को बढ़ा सकता है। ऐसा करने से व्यापारिक बैंकों के पास नकद राशि कम रह जाएगी और कम साख का सृजन कर सकेंगे। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति एवं उपभोग कम होंगे। इस प्रकार समग्र माँग का आधिक्य कम हो सकेगा।

3. संवैधानिक तरलता अनुपात-माँग जमाओं की मांग को पूरा करने के लिए व्यापारिक बैंक को जिस दर पर नकद मुद्रा रखनी पड़ती है उसे संवैधानिक तरलता अनुपात (SLR) कहते हैं। माँग आधिक्य को कम करने के लिए केन्द्रीय बैंक SLR को ऊँची कर सकता है। व्यापारिक बैंकों के उधार देने की क्षमता घट जाएगी। कम साख की वजह से उपभोग का स्तर घटेगा और माँग आधिक्य का प्रभाव कम हो सकेगा।

4. खुले बाजार की क्रियाएँ-इन क्रियाओं के माध्यम से केन्द्रीय बैंक सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय व्यापारिक बैंकों के साथ कर सकता है। अधिमाँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक सरकारी प्रतिभूतियाँ व्यापारिक बैंक को बेच सकता है। इससे नकद मुद्रा का प्रवाह व्यापारिक बैंकों से केन्द्रीय बैंक की ओर होने लगता है और व्यापारिक बैंकों की साख सृजन क्षमता घट जाती है। परिवारों का उपभोग भी कम हो जाता है। इस प्रकार माँग आधिक्य पर नियंत्रण हो सकता है।

5. साख की राशनिंग-केन्द्रीय बैंक यदि व्यापारिक बैंकों की साख सृजन की उच्च सीमा तय कर देता है तो इसे साख की राशनिंग कहते हैं। साख राशनिंग होने से व्यापारिक बैंक निश्चित सीमा से अधिक साख का सृजन नहीं कर सकते हैं। इस प्रकार परिवारों का उपभोग भी नियंत्रण में रहता है। माँग आधिक्य बेकाबू नहीं हो पाता है।

प्रश्न 5.
न्यून माँग को ठीक करने के राजकोषीय उपाय समझाइए।
उत्तर:
समग्र माँग एवं समग्र पूर्ति पर नियंत्रण करने के लिए सरकार जो उपाय करती है उन्हें राजकोषीय नीति कहते हैं। माँग न्यूनता को ठीक करने के लिए निम्नलिखित राजकोषीय उपाय है –
1. बजट:
एक लेखा वर्ष के लिए सरकारी आय-व्यय के अनुमान का विस्तृत लेखा-जोखा बजट कहलाता है। न्यून माँग की स्थिति में सरकार सार्वजनिक व्यय को आय से अधिक करके समग्र माँग के स्तर को बढ़ा सकती है। यदि सरकारी व्यय को जनकल्याण की भावना से अधिक करना असंभव हो तो सरकार संतुलित बजट बनाकर समग्र माँग के स्तर को घटने से रोक सकती है।

2. कर नीति:
कर नीति के द्वारा सरकार प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों की दर तय करती है। न्यून माँग की अवस्था में सरकार उदार कर नीति बना सकती है। उदार नीति में सरकार नीचे कर लगाती है। कर की नीचि दर पर लोगों की प्रयोज्य आय अधिक हो जाती है। प्रयोज्य आय बढ़ने से लोगों का उपभोग अधिक हो जाता है।

3. मजदूरी नीति:
इस नीति के द्वारा सरकार श्रमिकों के पारिश्रमिक की दर तय करती है। न्यून माँग को ठीक करने के लिए सरकार उदार मजदूरी नीति बनाकर मजदूरों के वेतन एवं भत्ते बढ़ा सकती है। इससे मजदूरों की क्रय शक्ति बढ़ती है। वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग बढ़ती है।

4. आयात-निर्यात-आयात के द्वारा अर्थव्यवस्था शेष विश्व से वस्तुएँ क्रय करती है। इससे वस्तुओं की आपूर्ति बढ़ती है। दूसरी ओर, निर्यात के द्वारा अर्थव्यवस्था शेष विश्व को वस्तुएँ बेचती है इससे अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की आपूर्ति कम हो जाती है और समग्र माँग बढ़ जाती है। न्यून माँग की स्थिति में सरकार आपूर्ति को घटाने के लिए उदार निर्यात नीति एवं कठोर आयात नीति बना सकती है।

प्रश्न 6.
न्यून माँग का अर्थ बताएँ। इसे ठीक करने के पौद्रिक उपाय समझाइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में यदि वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग पूर्ण-रोजगार स्तरीय वांछित समग्र उत्पादन से कम होती है तो इसे न्यून माँग या माँग अभाव कहते हैं। न्यून माँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक जो उपाय करता है उन्हें मौद्रिक उपाय या मौद्रिक नीति कहते हैं। ये उपाय निम्नलिखित है –

1. बैंक दर-अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक जिस पर व्यापारिक बैंकों को उधार या अग्रिम प्रदान करता है या उनके बिलों के भुगतान पर कटौती करता है उसे बैंक दर कहते हैं। न्यून माँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक दर को नीची कर सकता है। ऐसा करने से व्यापारिक बैंकों के लिए साख सृजन करना सस्ता हो जाता है। अतः ज्यादा साख का सृजन होता है। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है और उपभोग का स्तर अधिक हो जाता है। समग्र माँग का अभाव कम होने लगता है।

2. नकद जमा अनुपात-व्यापारिक बैंक अपनी जमाओं का कुछ भाग केन्द्रीय बैंक के पास जमा कराते हैं। जिस दर पर व्यापारिक बैंक को नकद राशि जमा करानी पड़ती है उसे नकद जमा अनुपात कहते हैं।
न्यून माँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक नकद जमा अनुपात (CRR) की दर को कम कर सकता है। ऐसा करने से व्यापारिक बैंकों के पास नकद् राशि बढ़ जाएगी और वे अधिक साख का सृजन कर सकेंगे। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति एवं उपभोग अधिक होंगे। इस प्रकार समग्र माँग का अभाव कम हो सकेगा।

3. संवैधानिक तरलता अनुपात-माँग जमाओं की माँग को पूरा करने के लिए व्यापारिक बैंक को जिस दर पर नकद मुद्रा रखनी पड़ती है उसे संवैधानिक तरलता अनुपात (SLR) कहते हैं। माँग अभाव को अधिक करने के लिए केन्द्रीय बैंक SLR को नीची कर सकता है। इससे व्यापारिक बैंकों के उधार देने की क्षमता बढ़ जाएगी। अधिक साख की वजह से उपभोग का स्तर बढ़ेगा। माँग अभाव का प्रभाव कम हो सकेगा।

4. खुले बाजार की क्रियाएँ-इन क्रियाओं के माध्यम से केन्द्रीय बैंक सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय व्यापारिक बैंकों के साथ कर सकता है। न्यून माँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक सरकारी प्रतिभूतियाँ व्यापारिक बैंकों को बेच सकता है। इससे नकद मुद्रा का प्रवाह केन्द्रीय बैंक से व्यापारिक बैंकों की ओर होने लगता है और व्यापारिक बैंकों की साख सृजन क्षमता बढ़ जाती है। परिवारों का उपभोग की अधिक हो सकता है। इस प्रकार माँग न्यूनता पर नियंत्रण हो सकता है।

5. साख को प्रोत्साहन-माँग अभाव से मुक्ति पाने के लिए केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों को अधिक से अधिक साख सृजन करने के निदेश देने के अलावा अधिक साख सृजन करने वाले बैंकों को पुरस्कृत भी कर सकता है। अधिक साख से उपभोग में वृद्धि होती है।

प्रश्न 7.
आय एवं रोजगार का केन्जीयन सिद्धान्त समझाइए।
उत्तर:
केन्जीयन सिद्धान्त में आपूर्ति को सामान्य कीमत स्तर के प्रति लोचशील माना गया है। जे. एम. कीन्स का लोचशील आपूर्ति विचार मजदूरी-कीमत लोचहीनता एवं श्रम की स्थिर सीमान्त उत्पादकता पर आश्रित है। बेलोच मजदूरी दर तथा स्थिर सीमान्त उत्पादकता के ही कारण कीमत में लोचहीनता उत्पन्न होती है। प्रत्येक अतिरिक्त इकाई की उत्पादन लागत एक समान रहती है। यह लागत अतिरिक्त श्रम की संख्या एवं मजदूरी दर के गुणनफले के समान होती है।

इसलिए कीमतों में कोई परिवर्तन किए बगैर उत्पादन पूर्ण-रोजगार स्तर तक बढ़ाया जा सकता है। पूर्ण-रोजगार स्तर प्राप्त होने के बाद उत्पादन में बढ़ोतरी की तमाम उम्मीद खत्म हो जाती है। क्योंकि पूर्ण-रोजगार स्तर पर अर्थव्यवस्था सभी संसाधनों की चरम सीमा का प्रयोग करती है। मजदूरी अन्म्यता पूर्ण-रोजगार प्राप्ति में बाधक होती है। यदि मजदूरी ऐसी अवस्था में जड़ हो जाती है जहाँ श्रम की आपूर्ति माँग से अधिक होती है तो अतिरिक्त श्रम अनैच्छिक रूप से बेरोजगार हो जाता है।

अर्थव्यवस्था में सन्तुलन उस अवस्था में होता है जब किसी सामान्य कीमत स्तर पर समग्र माँग एवं समग्र आपूर्ति दोनों बराबर होती है। वह सामान्य कीमत स्तर, सन्तुलन कीमत स्तर एवं सन्तुलन बिन्दु पर रोजगार स्तर, सन्तुलन रोजगार कहलाता है। सन्तुलन दो प्रकार का हो सकता है –

  1. पूर्ण-रोजगार सन्तुलन
  2. अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन

1. पूर्ण-रोजगार सन्तुलन:
सन्तुलन की इस अवस्था में सभी संसाधनों की पूर्ण क्षमता का विदोहन होता है। इसलिए इस स्तर की प्राप्ति के बाद अर्थव्यवस्था में आय एवं उत्पादन की मात्रा को नहीं बढ़ाया जा सकता है। केवल सामान्य कीमत स्तर तेजी से बढ़ता है। सामान्य कीमत स्तर में तीव्र, वृद्धि को मुद्रा स्फीति कहते हैं।

2. अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन:
इस स्थिति में अर्थव्यवस्था सभी साधनों की पूर्ण क्षमता का प्रयोग नहीं कर पाती है। कुछ साधन बिना प्रयोग या अधूरे प्रयोग के कारण बेकार पड़े रहते हैं। कीन्स साधनों की बेकारी का कारण समग्र माँग के अभाव को मानते हैं। प्रभावी माँग का स्तर बढ़ाने से सामान्य कीमत स्तर में बढ़ोतरी होती है। कीन्स के प्रतिमान में समग्र आपूर्ति कीमत के प्रति लोचशील होती है। अतः कीमत स्तर बढ़ने पर उत्पादक अधिक आपूर्ति करने के लिए संसाधनों का नियोजन बढ़ाते हैं। अतः माँग प्रबन्धन नीति के माध्यम से सरकार प्रभावी माँग के स्तर को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को अपूर्ण-रोजगार स्तर से पूर्ण-रोजगार स्तर तक ले जा सकती है। चित्र में-सन्तुलन बिन्दु E पर
प्रभावी माँग = EY
सन्तुलन रोजगार = ON1
प्रभावी माँग का बढ़ा हुआ स्तर = E1Y1
सन्तुलन रोजगार = ON1
ON1 > ON

प्रश्न 8.
रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त तथा केन्ज (कीन्स) के सिद्धान्त में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

प्रश्न 9.
समग्र माँग एवं समग्र पूर्ति के द्वारा आय, उत्पादन एवं रोजगार का निर्धारण किस प्रकार होता है। समझाइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में सामान्य कीमत स्तर पर सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की कुल वांछित माँग के योग को समग्र माँग (AD) कहते हैं। अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की कुल वांछित आपूर्ति को समग्र आपूर्ति (AS) कहते हैं। अर्थव्यवस्था में सन्तुलन की अवस्था उस समय होगी जब (AD) व (AS) दोनों एक समान होंगे। दूसरे शब्दों में, जब उपभोक्ता एवं निवेश वस्तुओं एवं सेवाओं की उतनी मात्रा खरीदने के लिए तैयार है जितनी सभी उत्पादक पैदा करते हैं। इसके अलावा सन्तुलन की कोई स्थिति नहीं हो सकती है। आय व रोजगार के जिस स्तर पर (AD) व (AS) समान होते हैं उसे सन्तुलन राष्ट्रीय आय एवं सन्तुलन रोजगार कहते हैं। इस सन्तुलन को निम्न अनुसूची एवं चित्र की सहायता से भी दर्शाया जा सकता है –

तालिका में सन्तुलन राष्ट्रीय आय = 80
क्योंकि इस स्तर पर (AD) = (AS) = 80
चित्र में बिन्दु E सन्तुलन बिन्दु है क्योंकि इस बिन्दु पर AD = AS
इस बिन्दु पर सन्तुलन आय = OY
सन्तुलन आय/रोजगार = ON

प्रश्न 10.
माँग अभाव एवं माँग आधिक्य की समस्याओं से कैसे निपटा जा सकता है?
उत्तर:
माँग अभाव:
यदि अर्थव्यवस्था में समग्र माँग, पूर्ण-रोजगार स्तरीय समग्र आपूर्ति सक कम होती है तो इसे माँग अभाव कहते हैं। इसमें सामान्य कीमत स्तर गिर जाता है और उत्पादकों के पास बिना बिके माल का भण्डार अधिक होने लगता है। अत: कम उत्पादन करने के लिए वे संसाधनों को रोजगार से हटाने लगते हैं। अर्थव्यवस्था बेरोजगारी एवं आर्थिक मंदी से जूझने लगती है। इस समस्या का निराकरण प्रभावी माँग के स्तर को बढ़ाकर किया जा सकता है। सरकार आर्थिक गतिविधियों में हस्तक्षेप करके समग्र माँग को बढ़ाती है। समग्र माँग को बढ़ाने के लिए सरकार राजकोषीय एवं मौद्रिक उपाय अपना सकती है। राजकोषीय उपायों में सरकार सार्वजनिक व्यय को बढ़ा सकती है अथवा कर कम करके लोगों की प्रयोज्य आय को बढ़ा सकती है।

प्रयोज्य आय के ऊँचे स्तर पर उपभोग ज्यादा किया जा सकता है। सरकार मौद्रिक उपायों जैसे बैंक दर, नकद जमा अनुपात, खुले बाजार की क्रियाओं आदि के माध्यम से अधिक साख का सृजन करके उपभोग को बढ़ा सकती है। माँग आधिक्य-यदि अर्थव्यवस्था में समग्र माँग पूर्ण-रोजगार स्तरीय समन आपूर्ति से अधिक होती है तो माँग आधिक्य कहते हैं। इसके स्फीतिकारी प्रभाव होते हैं। स्फीतिकारी प्रभावों पर लगाम कसने के लिए सरकार राजकोषीय एवं मौद्रिक उपाय अपना सकती है। राजकोषीय उपायों के माध्यम से सरकार सार्वजनिक व्यय को घटा सकती है अथवा करों की दर बढ़ा कर लोगों की प्रयोज्य आय कम कर सकती है अथवा दोनों उपायों का प्रयोग कर माँग आधिक्य में कमी ला सकती है। माँग आधिक्य को कम करने के लिए या अर्थव्यवस्था को सन्तुलन में बनाये रखने के लिए केन्द्रीय बैंक, बैंक दर, नकद जमा अनुपात, खुले बाजार की क्रियाओं आदि उपायों के माध्यम से साख सृजन को घटा सकता है। कम साख पर उपभोग कम किया जाता है।

प्रश्न 11.
साम्य राष्ट्रीय आय एवं रोजगार निर्धारण की वैकल्पिक विधि समझाइए अथवा, बचत एवं निवेश के द्वारा सन्तुलन आय एवं रोजगार का निर्धारण बताइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में बचत फलन का प्रत्येक बिन्दु राष्ट्रीय आय के विशेष स्तर पर वांछित बचत योजनाओं को प्रदर्शित करता है। उपभोग एवं बचत का योग राष्ट्रीय आय के समान होता है। दूसरे शब्दों में, उपभोग एवं बचत एक-दूसरे के पूरक हैं। निवेश माँग मुख्य रूप से ब्याज दर से तय होती है। परन्तु हम अपने प्रतिमान में ब्याज दर नहीं दिखा रहे हैं। यह मान रहे हैं कि उत्पादन एवं आय स्तर का निर्धारण निवेश के द्वारा होता है। अर्थव्यवस्था में सन्तुलन की अवस्था उस समय उत्पन्न होगी जब परिवारों की बचत योजनाएँ निवेशकों की निवेश योजनाओं के समान होगी।

उत्पादन के जिस स्तर पर परिवारों की बचत योजनाओं एवं निवेश योजनाएँ समान होती है। वह सन्तुलन उत्पादन, सन्तुलन राष्ट्रीय आय एवं रोजगार का सन्तुलन स्तर होता है क्योंकि यदि परिवारों की बचत योजनाएँ निवेशकों की निवेश योजना से मेल खाती है तो उनकी योजनाएँ सफल होती है। दोनों पक्ष उसी तरह काम करेंगे जैसे काम कर रहे थे। बचत एवं निवेश की असमानता में सन्तुलन कायम नहीं हो सकता है। निवेश एवं बचत के द्वारा साम्य को निम्न तालिका एवं चित्र में भी दर्शाया गया है –

तालिका में राष्ट्रीय आय के 80 स्तर पर
बचत = निवेश = 20
अतः सन्तुलित राष्ट्रीय/आय = 80 चित्र में बिन्दु E पर
प्रायोजित बचत = प्रायोजित निवेश
S = I
अतः बिन्दु E साम्य बिन्दु है।

प्रश्न 12.
निवेश गुणक का अर्थ बताएँ। गुणक सिद्धान्त की प्रक्रिया समझाइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में निवेश में परिवर्तन के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय में परिवर्तन एवं निवेश में परिवर्तन के अनुपात को निवेश गुणक कहते हैं।

K = ∆𝑌∆𝐼

निवेश में परिवर्तन के कारण राष्ट्रीय आय में परिवर्तन की दर को निवेश गुणक कहते हैं। निवेश गुणक सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रो. जे. एम. कीन्स ने किया था । गुणक सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि एक व्यक्ति द्वारा किया गया व्यय अन्य लोगों की आमदनी बनता है। इस सिद्धान्त में आय एवं रोजगार का स्तर बढ़ाने के लिए मितव्ययिता का विरोध किया गया है। निवेश गुणक की क्रिया को काल्पनिक उदाहरण की सहायता से समझाया जा सकता है।

माना अर्थव्यवस्था 100 करोड़ अतिरिक्त निवेश करती है। उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है। 100 करोड़ निवेश का अर्थ होगा कि पूंजीगत वस्तु बेचने वालों को 100 करोड़ रुपये की आय प्राप्त होगी। उपभोग प्रवृत्ति 0.8 होने के कारण वे 80 करोड़ रुपये व्यय करेंगे। इससे वस्तुएँ एवं सेवाएँ बेचने वालों को 80 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे। उपभोग प्रवृत्ति के आधार पर वे 64 करोड़ खर्च करेंगे। यह क्रम चलता रहेगा और अर्थव्यवस्था में 500 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय का सृजन होगा। इस प्रक्रिया को निम्न तालिका के द्वारा भी दर्शाया जा सकता है –

आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
यदि आय 600 रुपये से बढ़कर 1000 रुपये हो जाती है और बचत का स्तर 200 रुपये से बढ़कर 500 रुपये हो जाता है; तो सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर:
आय में परिवर्तन = 1000 – 600 रुपये = 400 रुपये
बचत में परिवर्तन = 500 – 200 रुपये = 300 रुपये

प्रश्न 2.
प्रश्न संख्या 1 के आँकड़ों का प्रयोग करके सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
आय = 600 रुपये, बचत = 200 रुपये
उपभोग = 600 – 200 रुपये = 400 रुपये
आय = 1000 रुपये, बचत = 500 रुपये

प्रश्न 3.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।

उत्तर:

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से समग्र माँग अनुसूची एवं समग्र माँग वक्र बनाएँ। समग्र माँग अनुसूची (करोड़ रु. में)

उत्तर:
अर्थव्यवस्था में समग्र माँग, उपभोग माँग और निवेश माँग के जोड़ के बराबर होती है। इसलिए उपभोग मांग अनुसूची और निवेश माँग अनुसूची को जोड़कर समग्र माँग अनुसूची प्राप्त हो जाती है। इसे निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है –

समग्र माँग अनुसूची से बनाया गया रेखाचित्र समग्र माँग वक्र कहलाता है या समग्र माँग वक्र को उपभोग माँग वक्र एवं निवेश माँग वक्र को जोड़कर भी बनाया जा सकता है। इसे रेखाचित्र में दर्शाया गया है।

प्रश्न 5.
यदि कोई अर्थव्यवस्था 500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त निवेश करती है और अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 9 है, तो निम्नलिखित की गणना करें –

  1. निवेश गुणांक
  2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि

उत्तर:
1.

= 11−𝑀𝑃𝐶 = 11−9 = 11 = 101 = 10

2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि = निवेश गुणांक × निवेश वृद्धि
∆Y = K × AI = 10 × 500 = 5000 करोड़ रु.
निवेश गुणांक (K) = 10; राष्ट्रीय आय में वृद्धि (∆Y) = 5000 करोड़ रु.

प्रश्न 6.
निम्नलिखित बचत फलन और तालिका से सन्तुलन राष्ट्रीय आय का स्तर बताइए।
बचत फलन -S = -1000 + 5Y

उत्तर:

प्रश्न 7.
निम्नलिखित उपभोग फलन और तालिका से सन्तुलन उत्पादन स्तर बताइए। उपभोग फलन – C = 1000 + 5Y

उत्तर:
उत्पादन स्तर का निर्धारण –

उपरोक्त तालिका में सन्तुलन उत्पादन स्तर 2500 होगा, क्योंकि इस स्तर पर समग्र माँग समग्र आपूर्ति के बराबर है।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए।

उत्तर:

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य क्या होगा, यदि सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.2 है –
(A) 0.8
(B) 0.7
(C) 0.6
(D) 0.4
उत्तर:
(A) 0.8

प्रश्न 2.
The General Theory of Employment, interest and Money 7140 y Fitch लिखी है –
(A) रिकार्डो ने
(B) जे. एम. कीन्स ने
(C) जे. बी. से. ने
(D) मार्शल ने।
उत्तर:
(B) जे. एम. कीन्स ने

प्रश्न 3.
एक निश्चित समयावधि में अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को कहते हैं –
(A) समग्र माँग
(B) समग्र पूर्ति
(C) समग्र निवेश
(D) समग्र ब्याज
उत्तर:
(B) समग्र पूर्ति

प्रश्न 4.
अर्थव्यवस्था में उस समय सन्तुलन अवस्था होगी –
(A) पूर्ति के बराबर होगी
(B) पूर्ति से अधिक होगी
(C) पूर्ति के कम होगी।
(D) पूर्ति से कोई संबंध नहीं होगा
उत्तर:
(A) पूर्ति के बराबर होगी

प्रश्न 5.
आय के सन्तुलन स्तर पर –
(A) बचत और निवेश बराबर होते हैं
(B) बचत निवेश से कम होती है
(C) बचत निवेश से अधिक होती है
(D) बचत का निवेश से कोई सम्बन्ध नहीं है
उत्तर:
(A) बचत और निवेश बराबर होते हैं

प्रश्न 6.
समग्र माँग –
(A) उपभोग माँग + निवेश
(B) उपभोग माँग × निवेश माँग
(C) उपभोग माँग + निवेश माँग
(D)
उत्तर:
(A) उपभोग माँग + निवेश

प्रश्न 7.
यह समग्र माँग का घटक नहीं है –
(A) निजी उपभोग माँग
(B) निजी निवेश माँग
(C) शुद्ध निर्यात
(D) कुल लाभ
उत्तर:
(D) कुल लाभ

प्रश्न 8.
बाजार का नियम प्रस्तुत किया –
(A) जे. बी. क्लार्क ने
(B) जे. बी. से. ने
(C) जे. एम. कीन्स ने
(D) ए. सी. पीगू ने
उत्तर:
(B) जे. बी. से. ने

प्रश्न 9.
जे. बी. से. का बाजार नियम लागू होता है –
(A) वस्तु विनिमय पर
(B) मुद्रा विनिमय पर
(C) उपर्युक्त दोनों पर
(D) किसी पर नहीं।
उत्तर:
(C) उपर्युक्त दोनों पर

प्रश्न 10.
कीन्स के अनुसार बेरोजगारी दूर की जा सकती है –
(A) समग्र माँग बढ़ाकर
(B) समग्र माँग एवं समग्र पूर्ति बढ़ाकर
(C) समग्र पूर्ति बढ़ाकर
(D) किसी पर नहीं
उत्तर:
(A) समग्र माँग बढ़ाकर

प्रश्न 11.
एक धनात्मक ढाल वाली रेखा ऊपर समान्तर खिसक जाती है यदि –
(A) Intercept (भाग) में वृद्धि होती है
(B) ढाल में वृद्धि होती है
(C) Intercept (भाग) घट जाता है
(D) ढाल कम हो जाता है
उत्तर:
(A) Intercept (भाग) में वृद्धि होती है

प्रश्न 12.
दी गई कीमतों पर साम्य उत्पादन का निर्धारण पूर्णतः निर्धारित होगा –
(A) सामूहिक पूर्ति से
(B) सामूहिक माँग से
(C) A तथा B दोनों से
(D) इनमें किसी से नहीं
उत्तर:
(C) A तथा B दोनों से

प्रश्न 13.
एक अर्थव्यवस्था में कीमतों को बदलने में समय लगता है –
(A) अधिशेष आपूर्ति की प्रतिक्रिया में
(B) अधिशेष माँग की तुलना में
(C) A या B
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) A या B

प्रश्न 14.
एक व्यक्तिगत उत्पादक –
(A) को कीमत स्वीकार करनी पड़ती है
(B) कीमत निर्धारक होता है
(C) कीमत स्वीकारक व निर्धारक दोनों होता है
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) को कीमत स्वीकार करनी पड़ती है

प्रश्न 15.
जब एक अर्थव्यवस्था में सभी बाजारों में समायोजन असफल हो जाता है, तो कीमतों में परिवर्तित होता है –
(A) अधिमाँग की स्थिति या अधिशेष उत्पादन की स्थिति
(B) सरकार द्वारा अधिशेष करों का आरोपण करने पर
(C) सरकार द्वारा आर्थिक सहायता देने पर
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) अधिमाँग की स्थिति या अधिशेष उत्पादन की स्थिति

प्रश्न 16.
अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का नियोजित उत्पादन समान होता है –
(A) नियोजित निवेश
(B) नियोजित बचत
(C) नियोजित ब्याज
(D) नियोजित माँग
उत्तर:
(D) नियोजित माँग

प्रश्न 17.
नियोजित सामूहिक माँग यदि उत्पादन से कम होती है, तो यह स्थिति होती है –
(A) अधिशेष आपूर्ति
(B) अधिशेष माँग
(C) नियोजित अधिशेष आपूर्ति
उत्तर:
(C) नियोजित अधिशेष आपूर्ति

प्रश्न 18.
Y + A + cY समीकरण का हल है –
(A) A = Y (1 – c)
(B) A = Y-A/Y
(C) Y = A/1 – C
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) Y = A/1 – C

प्रश्न 19.
एक अर्थव्यवस्था में अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न होती है, जब –
(A) स्वायत्त उत्पादन में वृद्धि होती है
(B) स्वायत्त ब्याज बढ़ता है
(C) स्वायत्त सामूहिक माँग बढ़ती है
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(C) स्वायत्त सामूहिक माँग बढ़ती है

प्रश्न 20.
उत्पाद गुणक होता है –
(A) ∆𝐴∆𝑌
(B) ∆𝐶∆𝑌
(C) ∆𝑌∆𝐴
(D) ∆𝐼∆𝐶
उत्तर:
(C) ∆𝑌∆𝐴


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