BSEB Class 12 Economics Open Economy Macroeconomics Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Economics Open Economy Macroeconomics Book Answers |
Bihar Board Class 12th Economics Open Economy Macroeconomics Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 12th |
Subject | Economics Open Economy Macroeconomics |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 12th Economics Open Economy Macroeconomics Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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प्रश्न 1.
संतुलित व्यापार शेष और चालू खाता संतुलन में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यापार शेष एवं चालू खाता शेष में अन्तर –
- व्यापार के निर्यात एवं आयात शेष को कहते हैं जबकि व्यापार शेष, सेवाओं के निर्यात व आयात शेष तथा हस्तातरण भुगतान शेष के योग को चालू खाता शेष कहते हैं।
- चालू खाता शेष की तुलना में व्यापार शेष एक संकुचित अवधारण है।
- व्यापार शेष में केवल भौतिक वस्तुओं के आयात-निर्यात को ही शामिल किया जाता है जबकि चालू खाता शेष में भौतिक वस्तुओं के निर्यात आयात के साथ-साथ सेवाओं व हस्तातरण भुगतान के लेन-देन को भी शामिल करते हैं।
प्रश्न 2.
आधिकारिक आरक्षित निधि का लेन-देन क्या है? अदायगी-संतुलन में इनके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मौद्रिक अधिकारियों द्वारा वित्तीय घाटे का वित्तीयन करने के लिए परिसपत्तियों को बेचना अथवा ऋण लेना आधिकारिक लेन-देन कहलाता है। दूसरा भुगतान शेष धनात्मक होने पर मौद्रिक अधिकारियों द्वारा उधार देना या परिसंपत्तियों का क्रय करना भी आधिकारिक लेन-देन की श्रेणी में आता है।
आधिकारिक लेन-देन का महत्त्व:
- समग्र भुगतान शेष घाटे या अधिशेष का समायोजन आधिकारिक लेन-देन से किया जा सकता है।
- भुगतान शेष घाटे का भुगतान मौद्रिक सत्ता का दायित्व होता है तथा भुगतान शेष अधिशेष मौद्रिक सत्ता की लेनदारी होती है इस उद्देश्य की पूर्ति आधिकारिक लेन-देन से पूरी होती है।
- रेखा से ऊपर व रेखा से नीचे के समायोजन आधिकारिक लेन-देन पूरा करते हैं।
प्रश्न 3.
मौद्रिक विनिमय दर और वास्तविक विनिमय दर में भेद कीजिए। यदि अपको घेरलू वस्तु अथवा विदेशी वस्तुओं के बीच किसी को खरीदने का निर्णय करना हो, तो कौन सी दर अधिक प्रासंगिक होगी?
उत्तर:
दूसरी मुद्रा के रूप में एक मुद्रा की कीमत को विनिमय दर कहते हैं। दूसरे शब्दों में विदेशी मुद्रा की एक इकाई मुद्रा का क्रय करने के लिए घरेलू मुद्रा की जितनी इकाइयों की जरूरत पड़ती है उसे विनिमय दर कहते हैं। इसे मौद्रिक अथवा सांकेतिक विनिमय दर कहते हैं क्योंकि इसे मुद्रा के रूप में व्यक्त किया जाता है। एक ही मुद्र में मापित विदेशी एवं घरेलू कीमतों के अनुपात को वास्तविक विनिमय दर कहते हैं।
वास्तविक विनिमय दर = e 𝑃𝐹𝑃 जहाँ e विदेशी की एक इकाई की कीमत अथवा सांकेतिक विनिमय दर P r विदेशी कीमत स्तर तथा P देशी कीमत स्तर
घरेलू अथवा विदेशी वस्तुओं को खरीदने के लिए सांकेतिक विनिमय दर अधिक प्रभावशाली होती हैं क्योंकि एक देश का संबंध कई देशों से होता है अतः द्विवर्षीय दर के बजाय एकल दर अधिक पसंद की जाती है। करेन्सियों की विनिमय दर की सूची सांकेतिक विनियिम दर के आधार पर की जाती है जिससे विदेशी करेंसियों की प्रतिनिधि टोकरी की कीमत प्रकट होती है। वास्तविक विनिमय दर का प्रयोग किसी देश की अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा की माप के लिए किया जाता है।
प्रश्न 4.
यदि 1 रुपये की कीमत 1.25 येन है और जापान में कीमत स्तर 3 हो तथा भारत में 1.2 हो, तो भारत और जापान के बीच वास्तविक विनिमय दर की गणना कीजिए (जापानी वस्तु की कीमत भारतीय वस्तु के संदर्भ में) संकेत : रुपये में येन की कीमत के रूप में मौद्रिक विनिमय दर को पहले ज्ञात कीजिए।
हल:
PF = 3 एवं P = 1.2; 1.25 येन की कीमत = 1 रुपया
1 येन की कीमत 11.25 रूपय 1125 रुपया = 1125 रुपया
वास्तविक विनिमय दर = 1100, 45 × 30100 = 2
उत्तर:
वास्तविक विनिमय दर = 2
प्रश्न 5.
स्वचलित युक्ति की व्याख्या कीजिए जिसके द्वारा स्वर्णमान के अंतर्गत अदायगी-संतुलन प्राप्त किया जाता था।
उत्तर:
वर्ष 1870 से प्रथव विश्व युद्ध तक स्थायी विनिमय दर के लिए मानक स्वर्ण-मान पद्धित ही आधार थी। इस पद्धति में सभी देश अपनी मुद्रा की कीमत सोने के रूप में परिभाषित करते थे। प्रत्येक भागीदार देश को अपनी मुद्रा को निःशुल्क स्वर्ण में परिवर्तित करने की गारंटी देनी पड़ती थी। स्थिर कीमतों पर मुद्रा की सोने में परिवर्तनीयता सभी देशों को स्वीक त थी।
विनिमय दर समष्टीय खुली अर्थव्यवस्थाओं के द्वारा सोने की कीमत के आधार पर परिकलित किए जाते थे। विनिमय दर उच्चतम एवं न्यूनतम सीमाओं के मध्य उच्चवचन करते थे। उच्चतम एवं न्यूनतम सीमाओं का निर्धारण मुद्रा की ढलाई, दुलाई आदि के आधार पर तय की जाती थी। आधिकारिक विश्वसनीयता कायम रखने के लिए प्रत्येक देश को स्वर्ण का पर्याप्त भण्डार आरक्षित रखना पड़ता था। स्वर्ण के आधार पर सभी देश स्थायी विनिमय दर रखते थे।
प्रश्न 6.
नम्य विनिमय दर व्यवस्था मे विनिमय दर का निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:
परिवर्तनशील विनिमय दर का निर्धारण विदेशी मुद्रा की मांग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है। लोचशील विनिमय दर प्रणाली में केन्द्रीय साधारण नियमों को अपनाता है। ये नियम प्रत्यक्ष रूप से लोचशील दर को निर्धारित करने में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। इस प्रणाली में आधिकारिक लेन-देन का स्तर शून्य होता है।
लोचशील विनिमय दर में परिवर्तन विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति की समानता लाने के लिए होता है। दूसरे शब्दों में एक दूसरी मुद्रा के रूप में कीमत के रूप में विनिमय दर तय होती हैं। एक मुद्रा की दूसरी मुद्रा के रूप में कीमत मुद्रा की मांग व पूर्ति पर निर्भर करती हैं। विदेशी मुद्रा की मांग-निम्नलिखित कारको के कारण विदेशी मुद्रा की मांग उत्पन्न होती है।
- वस्तुओं एवं सेवाओं का आयात करने के लिए।
- वित्तीय परिसंपत्तियों का आयात करने के लिए।
- उपहार या हस्तातरण भुगतान विदेशों को भेजने के लिए।
- विदेशी विनिमय दर पर सट्टा उद्देश्य के लिए। विदेशी मुद्रा की मांग एवं विनिमय दर से विपरीत संबंध होता है इसलिए विदेशी मुद्रा का मांग वक्र ऋणात्मक ढ़ाल का होता है।
विदेशी मुद्रा की आपूर्ति:
विदेशी मुद्रा की पूर्ति के निम्नलिखित स्रोत हैं –
- घरेलू वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात
- वित्तीय परिसपत्तियों का निर्यात
- विदेशों से उपहार तथा हस्तातरण भुगतान की प्राप्ति
- सट्टा उद्देश्य के लिए
विदेशी मुद्रा की आपूर्ति एवं विनिमय दर में सीधा संबंध होता है अतः विदेशी मुद्रा का आपूर्ति वक्र धनात्मक ढाल का होता है। विनिमय दर का निर्धारण-जहाँ विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति समान हो जाती है, विनिमय दर वहाँ निर्धारित होती है। विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति का साम्य बिन्दु वह होता है मुद्रा का मांग वक्र तथा पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं। साध्य बिन्दु पर विनिमय दर को साम्य विनिमय दर तथा मांग व पूर्ति की मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं। इसे निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है –
प्रश्न 7.
अवमूल्यन और मूल्यह्रास में अंतर कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा अवमूल्न का अभिप्राय सामाजिक क्रिया के द्वारा विनिमय दर को बढ़ाने से है। विनिमय दर Pagged Exchange पद्धति से बढ़ायी जाती है। व्यापार शेष घाटे को पूरा करने के लिए अवमूल्न एक उपकरण माना जाता है। अवमूल्यन से घरेलू उत्पाद सापेक्ष रूप से सस्ते हो जाते हैं इसके विपरीत विदेशी उत्पादों की घरेलू बाजार में मांग बढ़ जाती है। बार-बार अवमूल्न से आधिकारिक आरक्षित कोष समाप्त हो जाते हैं। जब बाजार की मांग एंव पूर्ति शक्तियों के प्रभाव से एक देश की मुद्रा का मूल्य बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के विदेशी मुद्रा में कम हो जाता है तो इसे मूल्य ह्रास कहते हैं।
प्रश्न 8.
क्या केंद्रीय बैंक प्रबंधित तिरती व्यवस्था में हस्तक्षेप करेगा? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्धित तरणशीलता पद्धति दो विनिमय दर पद्धतियों का मिश्रण होती है। यह दो चरम विनिमय दरों-स्थिर विनिमय दर एवं लोचशील विनिमय दर के बीच की दर हैं। इस पद्धति में सरकार विनिमय दर निर्धारण में हस्तक्षेप कर सकती है जब कभी केन्द्रीय बैंक विनिमय दर में मामूली परिवर्तन उचित समझता है तो विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय करके हस्तक्षेप कर सकता है। अर्थात् विनिमय दर की इस पद्धति में आधिकारिक लेन-देन शून्य नहीं होता है।
प्रश्न 9.
क्या देशी वस्तुओं की मांग और वस्तुओं की देशीय माँग की संकल्पनाएँ एक समान है?
उत्तर:
एक बन्द अर्थव्यवस्था में घरेलू वस्तुओं की मांग तथा वस्तुओं की घरेलू मांग समान होती हैं। ऐसा इसलिए होता है कि देश की घरेलू सीमा के बाहर न तो घरेलू वस्तुओं की मांग होती है और न ही घरेलू सीमा में विदेशी वस्तुओं की मांग होती है। लेकिन एक खुली अर्थव्यवस्था में घरेलू वस्तुओं की मांग तथा वस्तुओं की घरेलू मांग समान नहीं होती है।
घरेलू वस्तुओं की मांग में उपभोग मांग (परिवार क्षेत्र द्वारा), निवेश मांग, सरकारी उपभोग के लिए मांग व निर्यात के लिए मांग के योग में आयात की मांग को घटाते हैं। संक्षेप में घरेलू वस्तुओं की मांग = परिवार क्षेत्र की उपयोग मांग + निवेश मांग + सरकारी व्यय मांग + निर्यात (मांग) – आयात (मांग)
= C + I + G + X – M
= C + I + G + NX (NX शुद्ध निर्यात)
वस्तुओं के लिए घरेलू मांग में परिवार क्षेत्र का उपयोग व्यय, निवेश व्यय, सरकारी व्यय व आयात के योग से निर्यात मांग को घटाते हैं।
वस्तुओं की घरेलू मांग = C + I + G + M – X
= C + I + G + NX (NX शुद्ध निर्यात)
यदि शुद्ध निर्यात का मूल्य शून्य होता होगा तो घरेलू वस्तुओं की मांग तथा वस्तुओं की घरेलू मांग दोनों समान होंगे। यदि शुद्ध निर्यात का मूल्य धनात्मक होता है तो घरेलू वस्तुओं की मांग, वस्तुओं की घरेलू मांग से अधिक होगी। इसके विपरीत यदि शुद्ध निर्यात का मान ऋणात्मक होता है तो घरेलू वस्तुओं की मांग, वस्तुओं को घरेलू मांग से कम होगी।
प्रश्न 10.
जब M = 3D60 + 0.06Y हो, तो आयात की सीमांत प्रवृत्ति कया होगी? आयात की सीमांत प्रवृत्ति और समस्त माँग फलन में क्या संबंध है?
उत्तर:
आयात की सीमान्त प्रवृत्ति अतिरिक्त मुद्रा आय का वह भाग है जो आयात पर व्यय किया जाता है। आयात की सीमान्त प्रवृत्ति की अवधारणा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति जैसी ही है। इसलिए आयात की मांग आय के स्तर पर निर्भर करती है तथा कुछ भाग स्वायत्त होता है। M = m + my M स्वायत्त आयात, m आयात की सीमान्त प्रवृत्ति m = 60 + 0.06Y उक्त दोनों समीकरणों की तुलना करने पर स्वायत्त आयात M = 60, आयात की सीमान्त प्रवृत्ति m = 0.06 आयात की सीमान्त प्रवृत्ति का मान 1 से कम तथा शून्य से अधिक होता है।
MPC का मान शून्य से अधिक उपभोग होने पर प्रेरित प्रभाव विदेशी वस्तुओं की मांग पर चला जाता है। इससे घरेलू वस्तुओं की मांग घट जाती है। आयात एक प्रकार का स्राव होता है अतः साम्य आय का स्तर कम हो जायेगा। अत: आयात की स्वायत्त मांग में वृद्धि घरेलू वस्तुओं की मांग को घटाता है।
प्रश्न 11.
खुली अर्थव्यवस्था स्वायत्व व्यय खर्च गुणक बंद अर्थव्यवस्था के गुणक की तुलना में छोटा कयों होता है?
उत्तर:
बंद अर्थव्यवस्था में साम्य आय कर स्तर
Y = C + cY + 1 + G या, Y – cY = C + 1 + G
या, Y(1 – c) = C + 1 + G या, Y = 𝐶+1+𝐺1−𝑐 = 𝐴1−𝑐 (C + 1 + G = A)
∆𝑌∆𝐴 = 11−𝑐, व्यय गुणक = 11−𝑐
खुली अर्थव्यस्था में साम्य आय का स्तर Y = C+ cY + 1 + G + X – M – mY
Y – cY + mY = C + 1 + G + X
Y(1 – c + m) = C + 1 + G + X
Y = 𝐶+1+𝐺+𝑋1−𝐶+𝑚 या Y = 𝐴1−𝑐+𝑚 (A = C + 1 + G + X)
व्यय गुणक ∆𝑌∆𝐴 = 11−𝑐+𝑚
आयात की सीमान्त प्रवृत्ति का मान शून्य से अधिक है अतः उपभोग का प्रेरित कुछ भाग आयात के लिए वस्तुओं की मांग पर चला जाता है। दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं के व्यय गुणकों की तुलना करने पर बन्द अर्थव्यवस्था का व्यय गुणक, बन्द अर्थव्यवस्था के व्यय गुणक से ज्यादा है।
प्रश्न 12.
पाठ में एकमुश्त कर की कल्पना के स्थान पर आनुपातिक कर T = tY के साथ खुली अर्थव्यवस्था गुणक की गणना कीजिए।
उत्तर:
अनुपतिक कर की स्थिति में साम्य आय स्तर
Y = 3DC + C (I – t)Y + I + G + X – M – mY
Y – C (1 – t)Y+ mY = C + I + G + X – M
Y [1 – C + ct + m] = C + I + G + X – M
Y = 𝐶+𝐼+𝐺+𝑋–𝑀1–𝐶(1–𝑡)+𝑚 (A = DC + I + G + X – M)
व्यय गुणक ∆𝑌∆𝐴 = 11−𝑐(1−𝑡)+𝑚
एकमुश्त कर की स्थिति में साम्य आय
Y = C + C (Y – T) + I + G + X – M – mY
Y – cY + mY = C – CT + I + G + X – M
Y [1 – c + m] = C – CT + I + G + X – M
Y = 𝑐–𝑐𝑡+𝐼+𝐺+𝑋–𝑀1–𝑐+𝑚
= 𝐴1–𝑐+𝑚 (A = C – CT + I + G + X – M)
व्यय गुणक ∆𝑌∆𝐴 = 11−𝑐+𝑚
प्रश्न 13.
मान लीजिए C = 40 + 08YD, T = 50,G = 40, X = 90, M = 50 + 0.05Y
(a) संतुलन आया ज्ञात कीजिए
(b) संतुलन आय पर निवल निर्यात संतुलन ज्ञात कीजिए
(c) संतुलन आय और निवल निर्यात संतुलन क्या होता है, जब सरकार के क्रय में 40 से 50 की वृद्धि होती है।
उत्तर:
C = 40 + 0.8YD, T = 50, 1 = 60, G = 40, X = 90, M = 50 + 0.05Y
(a) साम्य आय का स्तर:
Y = C + C(Y – T) + I + G + X – (M + mY)
या Y = 𝐴1−𝐶+𝑀, = 𝐶−𝐶𝑇+𝐼+𝐺+𝑋−𝑀1−𝐶+𝑀
= 40–0.8×50+60+40+90–501–0.8+0.05 = 40–40+60+40+90–501–0.75
= 1400.25 = 140×10025 = 560
(b) साम्य आय स्तर पर शुद्ध निर्यात –
NX = X – M – my = 90 – 50 – 0.05 × 560 = 40 – 28.0 = 12
(c) जब सरकारी व्यय 40 से 50 हो जायेगा साम्य आय
Y = C – CT + 1 + G + X – MI – C + m
= 40 – 8 × 50 + 60 + 50 + 90 – 50
= 1 – 0.08 – 0.05
= 150.25
= 600
साम्य आय सतर शुद्ध निर्यात शेष NX = X – M – mY
= 90 – 50 + 0.05 × 600 = 90 – 50 + 30
= 10
उत्तर:
(a) साम्य आय = 560
(b) साम्य आय पर शुद्ध निर्यात शेष = 12
(c) नई साम्य आय = 600
शुद्ध निर्मात शेष = 10
प्रश्न 14.
उपर्युक्त उदाहरण में यदि निर्यात में x = 100 का परिवर्तन हो, तो सन्तुलन आय और निवल निर्यात संतुलन में परिवर्तन ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
C = 40 + 0.08 YD, T = 50, I = 60, G = 40, X = 100, M = 50 + 0.05Y
साम्य आय Y = 𝐴1−𝐶+𝑀 = 𝐶−𝐶𝑇+𝐺+𝐼+𝑋−𝑀𝐼−𝐶+𝑀
[∵ A = C – CT + G + I + X – M]
= 40−0.8×50+40+60+100−501−0.8+0.05
= 40−40+40+60+100−501−0.75 = 1500.25 = 150×10025 = 600
= 100 – 50 – 30 = 20
उत्तर:
साम्य आय स्तर = 600
शुद्ध निर्यात शेष = 20
प्रश्न 15.
व्याख्या कीजिए कि G – T = (SG – 1) – (X – M)
उत्तर:
एक बन्द अर्थव्यवस्था में बचत एवं निवेश आय के साम्य स्तर पर समान होते है। लेकिन एक खुली अर्थव्यवस्था में साम्य आय स्तर पर बचत एवं निवेश असमान हो सकते हैं।
Y = C + G + I + NX
S – I + NX
एक अर्थव्यवस्था में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की बचतों का योग समग्र बचत के बराबर होता है –
NX = SP + SG – 1
NX = Y – T + T – G – 1
[∵SP = Y – C – T & SG = T – G]
NX = Y – C – G – 1
G = Y – C – 1 – NX
G – T = Y – C – T – 1 – NX
= [SP – 1] – N [∵ SP = Y – C – T]
प्रश्न 16.
यदि देश B से देश A में मुद्रास्फीति ऊँची हो और दोनों देशों में विनिमय दर स्थिर हो, तो दोनों देशों के व्यापार शेष का क्या होगा?
उत्तर:
देश ‘अ’ में स्फीति का स्तर देश ‘ब’ से ऊंचा है। स्थिर विनयम दर की स्थिति में देश ‘ब’ से देश ‘अ’ को वस्तुओं का आयात करना लाभ-प्रद होगा। परिणाम स्वरूप देश ‘अ’ अधिक वस्तुओं का अधिक मात्रा में आयात करेगा और देश ब को कम मात्रा में वस्तुओं का निर्यात करेगा। अतः ‘अ’ के सामने व्यापार शेष घाटे की समस्या उत्पन्न होगी। दूसरी ओर देश ‘ब’ देश ‘अ’ से कम मात्रा में वस्तुओं का आयात करेगा और निर्यात अधिक मात्रा में करेगा। अतः देश ‘ब’ का व्यापार शेष अधिशेष (धनात्मक) होगा।
प्रश्न 17.
क्या चालू पूँजीगत घाटा खतरे का संकेत होगा? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि व्यापार शेष घाटा कम बचत और अधिक बजट घाटे को जन्म देता है यह चिन्ता का विषय हो भी सकता है और नहीं भी। यदि इस स्थिति में निजी क्षेत्र अथवा सरकारी क्षेत्र का उपभोग अधिक हो तो उस देश के पूंजी भण्डार अधिक दर से नहीं बढ़ेगा और पर्याप्त आर्थिक समृद्धि नहीं होगी। इसके अलावा इसे ऋण का भुगतान भी करना होगा पडेगा। इस दशा में चालू खाता घाटा चेतावनीपूर्ण एवं चिन्ता का विषय होता है। यदि व्यापार शेष व्यापार शेष घाटा अधिक निवेश के लिए काम आता है तो भण्डार स्टॉक अधिक दर बढ़कर पर्याप्त आर्थिक सवृद्धि को जन्म देता है। इस दशा में चालू खाता घाटा चिन्तनीय नहीं होता है।
प्रश्न 18.
मान लीजिए C + 100 + 0.75 YD, I = 500, G – 750, कर आय का 20 प्रतिशत है, x = 150, M = 100 + 0.2Y, तो संतुलन आय, बजट घाटा अथवा आधिक्य और व्यापार घाटा अथवा आधिक्य की गणना कीजिए।
उत्तर:
साम्य आय Y = C + C(Y – T) + 1 + G + X – M – mY
= 100 + 0.75 (Y – Y) का 20%) + 500 + 750 + 150 – 100 – 0.2Y
= 100 + 7.5 [y – 5) + 500 + 750 + 150 – 100 – 0.2Y
= 1400 + 2 + 4y – 0.2Y
= 1400 + 34 + 45 Y – 0.2Y = 1400 + 25Y
Y – 25Y = 1400 – 35Y = 1400
Y = 1400 × 53 = 70003
सरकारी व्यय = 750
सरकारी प्राप्तियाँ = 20% of Y
20% of Y 70003 = 20×70003×100 = 1400003×100 = 466.67
सरकारी व्यय सरकारी प्राप्तियों से अधिक हैं इसलिए यह बजट घाटा है।
NX = X – M – mY
Y = 150 – 100 – 2 × 70003 = 150 – 100 – 466.67 = – 416.67
यह व्यापार घाटा दर्शा रहा है क्योंकि NX ऋणात्मक है।
प्रश्न 19.
उन विनिमय दर व्यवस्थाओं की चर्चा कीजिए, जिन्हें कुछ देशों ने अपने बाहा खाते में स्थायित्व लाने के लिए किया है।
उत्तर:
विभिन्न देशों ने अपने विदेशी खातों में स्थायित्व लाने के उद्देश्य विभिन्न विनिमय दर पद्धतियों को अपनाया जैसे –
(I) स्थिर विनिमय दर:
इस विनिमय दर से अभिप्राय सरकार द्वारा निर्धारित स्थिर विनिमय दर से है। स्थिर विनिमय दर की उप-पद्धतियां इस प्रकार है –
1. विनिमय दर की स्वर्णमान पद्धति:
1920 तक पूरे विश्व में इस पद्धति को व्यापक स्तर पर प्रयोग किया गया। इस व्यवस्था में प्रत्येक भागीदार देश को अपनी मुद्रा की कीमत सोने के रूप में घोषित करनी पड़ती थी। मुद्राओं का विनिमय स्वर्ण के रूप में तय की गई कीमत सोने की स्थिर कीमत पर होता है।
2. ब्रैटन वुड पद्धति:
विनिमय की इस प्रणाली में भी विनिमय दर स्थिर रहती है। इस प्रणाली में सरकार अथवा मौद्रिक अधिकारी तय की गई विनिमय दर में एक निश्चित सीमा तक परिवर्तन की अनुमति प्रदान कर सकते हैं। सभी मुद्राओं का मूल्य इस प्रणाली में अमेरिकन डालर में घोषित करना पड़ता था। अमेरिकन डालर की सोने में कीमत घोषित की जाती थी। लेकिन दो देश मुद्राओं का समता मूल्य अन्त में केवल स्वर्ण पर ही निर्भर होता था। प्रत्येक देश की मुद्रा के समता मूल्य में समायोजन विश्व मुद्रा कोष का विषय था।
(II) लोचशील विनिमय दर:
यह वह विनिमय दर होती है जिसका निर्धारण अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति की शक्तियां के द्वारा होता है। जिस विनिमय दर पर विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति समान हो जाती है वही दर साम्य विनिमय दर कहलाती है। आजकल समूचे विश्व में विभिन्न देशों के मध्य आर्थिक लेन-देन का निपटरा लोचशील विनिमय दर के आधार पर होता है।
Bihar Board Class 12 Economics खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र Additional Important Questions and Answers
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
अन्तर्राष्ट्रीय भुगतानों का सार क्या होता है?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय भुगतानों का सार है कि आय से अधिक खर्च की भरपाई स्वर्ण, स्टाँक, विदेशी ऋण आदि के द्वारा की जायेगी।
प्रश्न 2.
चालू खाते में घाटे का वित्तीय स्रोत लिखो।
उत्तर:
चालू खाते में घाटे का वित्तीय स्रोत शुद्ध पूंजी प्रवाह से किया जाता है।
प्रश्न 3.
वह अवधि लिखो जिसमें भारत का व्यापार शेष घाटे वाला था।
उत्तर:
लगभग 24 वर्ष भारत का व्यापार शेष घाटे वाला था।
प्रश्न 4.
वह अवधि लिखो जिसमें भारत का व्यापार शेष घाटा कम हो गया और अधिशेष में बदल गया।
उत्तर:
2001 – 02 से 2003 – 04 की अवधि में भारत का चालू घाटे में अधिशेष था।
प्रश्न 5.
चालू खाते में अधिक घाटे को किससे पूरा नहीं करना चाहिए?
उत्तर:
अदृश्य अधिशेष से चालू खाते के घाटे की भरपाई नहीं करनी चाहिए।
प्रश्न 6.
अर्थव्यवस्था के खुलेपन की माप क्या होती है?
उत्तर:
कुल विदेशी व्यापार (आयात व निर्यात) का सकल घरेलू उत्पाद के साथ अनुपात से अर्थव्यवस्था के खुलेपन को मापते हैं।
प्रश्न 7.
2004 – 05 में भारत का विदेशी व्यापार कितना था?
उत्तर:
2004 – 05 में भारत की विदेशी व्यापार सकल घरेलू उत्पाद का 38.9 प्र.श. था। इसमें 17.1 प्र.श. आयात व 11.8 प्र.श निर्यात था।
प्रश्न 8.
5 वर्ष 1985-86 में भारत का विदेशी व्यापार कितना था?
उत्तर:
वर्ष 1985-86 में भारत का विदेशी व्यापार सकल घरेलू उत्पाद का 16 प्र.श. था।
प्रश्न 9.
विदेशी आर्थिक एजेन्ट राष्ट्रीय मुद्रा को कब स्वीकार करते हैं?
उत्तर:
विदेशी आर्थिक एजेन्ट राष्ट्रीय मुद्रा को तब स्वीकार करते है जब उन्हें विश्वास होता मुद्रा की क्रय शक्ति स्थिर रहेगी।
प्रश्न 10.
मुद्रा का अधिक मात्रा में प्रयोग करने वाले लोगों का विश्वास जीतने के लिए सरकार क्या काम करती है?
उत्तर:
सरकार को यह घोषणा करनी पड़ती है कि मुद्रा को दूसरी परिसपत्तियों में स्थिर कीमतों पर परिवर्तित किया जायेगा।
प्रश्न 11.
भुगतान शेष के चालू खाते में क्या दर्ज किया जाता है?
उत्तर:
वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात-आयात तथा हस्तातरण भुगतान चालू खाते में दर्ज किए जाते हैं।
प्रश्न 12.
भुगतान शेष के पूंजीगत खाते में क्या दर्ज किया जाता है?
उत्तर:
भुगतान शेष के पूंजीगत खाते में मुद्रा, स्टॉक, बॉण्ड आदि का विदेशों के साथ क्रय विक्रय दर्ज किया जाता है।
प्रश्न 13.
आधुनिक अर्थव्यवस्थाएं कैसी हैं?
उत्तर:
आधुनिक अर्थव्यवस्थाएं खुली अर्थव्यवस्थाएं हैं।
प्रश्न 14.
एक खुली अर्थव्यवस्था क्या होती है?
उत्तर:
एक खुली अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है जिसके दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के साथ आर्थिक संबंध होते हैं खुली अर्थव्यवस्था कहलाती है।
प्रश्न 15.
विनिमय दर की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
एक मुद्रा का दसूरी मुद्रा में मूल्य विनिमय दर कहलाता है।
प्रश्न 16.
विदेशी विनिमय बाजार के मुख्य भागीदार के नाम लिखो।
उत्तर:
विदेशी बाजार के मुख्य भागीदार होते हैं –
- व्यापारिक बैंक
- विदेशी विनिमय एजेन्ट
- आधिकारिक डीलर्स तथा
- मौद्रिक सत्ता
प्रश्न 17.
विदेशी विनिमय बाजार की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
वह अन्तर्राष्ट्रीय बाजार जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं का आदान-प्रदान होता है विदेशी विनिमय बाजार कहलाता है।
प्रश्न 18.
वास्तविक विनिमय दर की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
एक मुद्रा में मापी गई विदेशी कीमत एसं घरेलू कीमत के अनुपात को वास्तविक विनिमय दर कहते हैं।
वास्तविक विनिमय दर = ePF eP
जहाँ e सांकेतिक/मौद्रिक विनिमय दर, PF विदेशी कीमत तथा P घरेलू कीमत
प्रश्न 19.
लोचशील विनिमय दर की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
वह विनिमय दर जिसका निर्धारण विदेशी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है लोचशील विनिमय दर कहलाती है।
प्रश्न 20.
विदेशी विनिमय दरों में परिवर्तन को क्या कहते हैं?
उत्तर:
विदेशी विनिमय दरों में परिवर्तनों को मुद्रा का अपमूल्यन या अवमूल्यन कहते हैं।
प्रश्न 21.
स्थिर विनिमय दर की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर से अभिप्राय उस विनिमय दर से जो एक निश्चित स्तर पर रहती है। इसमें मुद्रा की मांग व पूर्ति में परिवर्तन होने पर परिवर्तन नहीं होता है।
प्रश्न 22.
क्या स्थिर विनिमय दर से भुगतान शेष घाटे या अधिशेष को समायोजित किया जा सकता है?
उत्तर:
स्थिर विनियिम दर से भुगतान शेष घाटे या अधिशेष को समायोजित नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न 23.
भुगतान शेष के समग्र घाटे (अधिशेष) का अर्थ लिखो।
उत्तर:
आधिकारिक आरक्षित कोष में कमी (वृद्धि) को भुगतान शेष का समग्र घाटा (अधिशेष) कहते हैं।
प्रश्न 24.
भुगतान शेष का मूल वचन (वायदा) क्या है?
उत्तर:
भुगतान शेष का मूल वचन यह है कि मौद्रिक सत्ता भुगतान शेष के किसी घाटे को पूरा करने के लिए उत्तरदायी होती है।
प्रश्न 25.
एक अर्थव्यवस्था साम्य की अवस्था में कब कही जाती है?
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था भुगतान शेष के संबंध में सन्तुलन में कही जाती हैं जब इसके चाले खाते तथा पूंजी के गैर आरक्षित कोषों का योग शून्य होता है।
प्रश्न 26.
भुगतान शेष के चालू खाते को सन्तुलित करने की विधि लिखो।
उत्तर:
बिना आरक्षित कोष में परिवर्तन किए अन्तर्राष्ट्रीय उधार से चालू खाते को संतुलित किया जाता है।
प्रश्न 27.
किन मदों का अर्थ लिखो।
उत्तर:
स्वायत्त मदों को रेखा से ऊपर कहते हैं।
प्रश्न 28.
स्वायत्त मदों का अर्थ लिखो।
उत्तर:
ऐसे विनिमय (लेन-देन) जो भुगतान शेष की स्थिति से स्वतंत्र होते हैं स्वायत्त मदें कहलाती हैं।
प्रश्न 29.
किन मदों को रेखा से नीचे कहा जाता है?
उत्तर:
समायोजन मदों को रेखा से नीचे कहा जाता है।
प्रश्न 30.
आधिकारिका लेन-देन किस श्रेणी में रखे जाते हैं?
उत्तर:
आधिकारिक लेन-देन समायोजन या रेखा से नीचे वाले मंदों में रखे जाते हैं।
प्रश्न 31.
खुली अर्थव्यस्था में घरेलू वस्तुओं की मांग के स्रोत लिखो।
उत्तर:
घरेलू वस्तुओं की मांग के स्रोत –
- उपभोग
- सरकारी व्यय
- घरेलू निवेश
- शुद्ध निर्यात
प्रश्न 32.
एक बंद अर्थव्यवस्था में घरेलू वस्तुओं के मांग के स्रोत लिखो।
उत्तर:
घरेलू वस्तुओं की मांग के स्रोत –
- उपभोग
- सरकारी उपभागे
- घरेलू निवेश
प्रश्न 33.
उन देशों के नाम लिखो जिन्होंने लोचशील विनिमय दर को अपनाया।
उत्तर:
1970 के दशक के आरंभ में स्विट्जलैंड एवं जापान ने लोचशील विनिमय दर को अपनाया था।
प्रश्न 34.
प्रबंधित तरणशील विनिमय दर का अर्थ लिखो।
उत्तर:
प्रबंधित तरण शील विनिमय दर, स्थिर विनिमय दर तथा लोचशील विनिमय दर का मिश्रण होती है। इस प्रणाली में प्रत्येक अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक विनिमय दर में मामूली परिवर्तन के द्वारा विदेशी मुद्रा को क्रय-विक्रय में हस्तक्षेप कर सकता है।
प्रश्न 35.
खुली अर्थव्यवस्था के लिए गुणक का सूत्र लिखो।
उत्तर:
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
एक अर्थव्यवस्था में आयात की मांग के लिए निर्धारक कारक बताइए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में आयात की वस्तुओं की मांग के निर्धारक कारक –
- घरेलू आग एवं
- विनिमय
घरेलू आय का स्तर जितना ऊँचा होता है आयात की मांग की उतनी ज्यादा होती है। इस प्रकार घरेलू आय तथा आयात की मांग में सीधा संबंध होता है। विनियिम दर और आयात में विपरीत संबंध होता है। ऊंची विनिमय से आयातित वस्तुएं महंगी हो जाती है। इसलिए ऊँची विनिमय दर आयात की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा कम हो जाती है।
प्रश्न 2.
एक खुली अर्थव्यवस्था के लिए राष्ट्रीय आय प्रतिमान को समझाए।
उत्तर:
एक खुली अर्थव्यस्था में आर्थिक लेन-देन देश की भौगोलिक सीमा तक ही सीमित नहीं रहते हैं बल्कि आर्थिक क्रियाओं का विस्तार समूचे विश्व में रहता है। खुली अर्थव्यवस्था निर्यात के लिए घरेलू वस्तुओं की मांग, घरेलू वस्तुओं की मांग अतिरिक्त रूप में बढ़ाती है।
इसके विपरीत घरेलू अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की आपूर्ति को बढ़ाती है। इस प्रकार घरेलू अर्थव्यवस्था में उपभोग, निवेश सरकारी व्यय तथा शुद्ध निर्यात से राष्ट्रीय आय प्रतिमान बनता है, संक्षेप में इसे निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है –
Y + M = DC + I + G + x
Y = C + I + G + X – M
Y = C + I + G + NX
जहाँ NX शुद्ध निर्यात है।
प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था में शुद्ध निर्यात का अर्थ लिखो।
उत्तर:
एक लेखा वर्ष की अवधि में एक देश कके शेष विश्व को निर्यात एवं अर्थव्यवस्था द्वारा शेष विश्व से आयात के अन्तर को शुद्ध निर्यात कहते हैं। जब निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य से अधिक होता है तो शुद्ध निर्यात धनात्मक होता है। जब निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य से कम होता है तो शुद्ध निर्यात का मूल्य ऋणात्मक होता है, जब निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य के बराबर होता है तो शुद्ध निर्यात शून्य होता है, शुद्ध निर्यात के मूल्य पर व्यापार शेष निर्भर करता है। इसे निम्नलिखित ढंग से व्यस्त किया जा सकता है –
- निर्यात – आयात = धनात्मक शुद्ध निर्यात = व्यापार शेष
- निर्यात – आयात = ऋणात्मक शुद्ध निर्यात = व्यापार शेष घाटा
- निर्यात – आयात = शून्य निर्यात = सन्तुलित व्यापार शेष
प्रश्न 4.
निर्यात को स्थिर मानकर X = 𝑋¯, अपनी अर्थव्यवस्था के लिए आय का निर्धारण करो।
उत्तर:
आयात की मांग अर्थव्यवस्था में घरेलू आय पर निर्भर करती है और आयात की मांग का एक स्वायत्त भाग तथा दूसरा भाग सीमान्त आयात प्रवत्ति पर निर्भर करता है –
M = M + mY
जहाँ M → स्वायत्त आयात मांग एवं m – सीमान्त आयात प्रवृत्ति
अर्थव्यवस्था में आय के स्तर को उपभोग व्यय, निवेश, सरकारी व्यय के साथ आयात-निर्यात की मांग को समायोजित करके साम्य आय को निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है –
Y = C + C(Y – T) + I + G + X – (M – mY)
Y = C – CT + I + G + X – M = A
माना Y = A + CY – MY
Y – CY + mY = A
Y(I – C + m) = A
Y = 𝐴1−𝐶+𝑀
प्रश्न 5.
एक बन्द एवं खुली अर्थव्यवस्था के लिए साम्य आय के स्तर गुणक की तुलना करो।
उत्तर:
एक बन्द अर्थव्यवस्था में आर्थिक लेन-देन घरेलू अर्थव्यवस्था तक ही सीमित रहते है अतः साम्य आय को गणितीय रूप में निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है –
Y = C + C(Y – T) + G + 1
Y = C + CY – CT + G + 1
Y – Cy = C – CT + G + 1
Y(1 – C) = C – CT + G + 1
Y = 𝐶−𝐶𝑇+𝐺+11−𝐶 = 𝐴1−𝐶 = (जहाँ A = C – CT + G + I)
एक खुली अर्थव्यवस्था में आर्थिक लेन-देन घरेलू अर्थव्यवस्था तक ही सीमित नहीं रहते हैं बल्कि खुली अर्थव्यवस्था वस्तुओं एवं सेवाओं का लेन-देन शेष विश्व के साथ भी करती है। खुली अर्थव्यवस्था में साम्य आय प्रतिमान को गणितीय रूप में निम्न प्रकार से दर्शाया जा सकता है –
Y = C + C(Y – T) + I + G + X – (M + mY)
Y = C + CY – CT + I + G + X – M – mY
या Y – CY + mY = C – CT + I + G + X – M
Y (1 – C + M) = C – CT + 1 + G + X – M
Y = 𝐴1−𝐶+𝑀, [∵A = C – CT + I + G + X – M]
दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्था में साम्य आय, स्वायत व्यय गुणक तथा स्वायत्त व्यय के गुणनफल के समपन है सीमान्त आयात प्रवृत्ति का मान शून्य से अधिक होता है अत: 1 – C + m का मान 1 – C के मान से अधिक होता है। अतः खुली अर्थव्यवस्था गुणक का मान बन्द अर्थव्यवस्था में गुणक के मान से छोटा होता है।
प्रश्न 6.
निर्यात के लिए वस्तुओं की मांग का स्वायत्त व्यय गुणक पर प्रभाव समझाए।
उत्तर:
निर्यात के लिए वस्तुओं की मांग घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए वस्तुओं की सामूहिक मांग को बढ़ाती है। बन्द अर्थव्यवस्था में घरेलू वस्तुओं की मांग वृद्धि उपभोग, सरकारी व्यय एवं निवेश में वृद्धि के कारण होती है। खुली अर्थव्यवस्था में निर्यात के लिए वस्तुओं की मांग गुणक प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में अतिरिक्त अन्तः क्षेपण को जन्म देती है इसलिए स्वायत्त गुणक में वृद्धि होती है। इसकी गुणना निम्नलिखित सूत्र से की जाती है –
∆𝑌∆𝑋 = 11−𝐶+𝑀
प्रश्न 7.
पत्राचार निवेश क्या है? परिसंपत्ति की खरीददारी को क्रेता देश के पूंजी खाते में ऋणात्मक चिन्ह के साथ क्यों अंकित किया जाता है?
उत्तर:
किसी देश द्वारा विदेशों के अंश पत्रों तथा ऋण पत्रों की खरीददारी को पत्राचार निवेश कहते हैं। इस प्रकार के निवेश से क्रेता का परिसंपत्ति पर नियंत्रण नहीं होता है। परंपरानुसार यदि कोई देश दूसरे देश से परिसंपत्ति की खरीददारी करता है तो इसे क्रेता देश के पूंजी खाते में ऋणात्मक चिन्ह के साथ दर्शाया जाता है क्योंकि इस लेन-देन में विदेशी मुद्रा का प्रवाह देश से बाहर की ओर होता है। यदि विदेशी मुद्रा का प्रवाह दूसरे देश की तरफ होता है तो इसे ऋणात्मक चिह्न दिया जाता है। इसके विपरीत यदि विदेशी मुद्रा का प्रवाह दूसरे से उस देश की ओर होता है तो उसे धनात्मक चिन्ह से दर्शाया जाता है।
प्रश्न 8.
आयात में वृद्धि घरेलू आय के चक्रीय प्रवाह में अतिरिक्त स्राव को जन्म देती है। समझाइए।
उत्तर:
उपभोग पर प्रेरित उपभोग का कुछ भाग विदेशी वस्तुओं की मांग पर हस्तांतरित हो जाता है। MPC में वृद्धि का मान धनात्मक या शून्य से अधिक होता है। अतः घरेलू वस्तुओं की मांग व घरेलू आय प्ररेति प्रभाव कम हो जाएगा। इसीलिए आयात में अतिरिक्त वृद्धि घरेलू आय के चक्रीय प्रवाह में अतिरिक्त स्राव का कारण बनता है। गुणक प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में घरेलू आय का अधिक स्राव होता है। व्यय गुणक का मान कम हो जाता है –
∆𝑌∆𝑀 = 11−𝐶+𝑀
प्रश्न 9.
एक खुली अर्थव्यवस्था में सामूहिक मांग वक्र बन्द अर्थव्यवस्था की तुलना में अधिक चपटा होता है। समझाए।
उत्तर:
एक खुली अर्थव्यवस्था में उपभोग, निवेश एवं सरकारी व्यय के योग को सामूहिक मांग कहते हैं।
AD = C + I + G
एक खुली अर्थव्यवस्था में उपभोग, निवेश एवं सरकारी व्यय के अलावा निर्यात व आयात भी सामूहिक मांग को प्रभावित करते हैं। आयात के लिए विदेशी वस्तुओं की मांग से घरेलू अर्थव्यवस्था की वस्तुओं की मांग कम होती है तथा निर्यात के लिए वस्तुओं की मांग से घरेलू अर्थव्यवस्था की वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है। खुली अर्थव्यवस्था के सामूहिक मांग को निम्नलिखित सूत्र से दर्शाया जाता है –
AA = C + I + G + X – M
AA वक्र तथा AD वक्र के बीच की दूरी आयात की मात्रा की समान होती है। दोनों रेखाओं के बीच दूरी, आयात की मांग बढ़ने से अधिक हो जाती है। आय बढ़ने पर घरेलू अर्थव्यवस्था की वस्तुओं की घरेलू मांग घटती है जबकि निर्यात के लए वस्तुओं की मांग आय बढ़ने पर नहीं बढ़ती है। इसलिए खुली अर्थव्यवस्था का सामूहिक मांग वक्र AA बन्द अर्थव्यवस्था के लिए सामूहिक मांग AD से चपटा या कम ढालू होता है। दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्था के लिए सामूहिक मांग वक्र नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
प्रश्न 10.
खुली अर्थव्यवस्था के दो बुरे प्रभाव बताइए।
उत्तर:
खुली अर्थव्यवस्था के दो बुरे प्रभाव निम्नलिखित हैं –
- अर्थव्यवस्था में जितना अधिक खुलापन होता है गुणक का मान उतना कम होता है।
- अर्थव्यवस्था जितनी ज्यादा खुली होती है व्यापार शेष उतना ज्यादा घाटे वाला होता है।
खुली अर्थव्यवस्था में सरकारी व्यय में वृद्धि व्यापार शेष घाटे को जन्म देती है। खुली अर्थव्यवस्था में व्यय गुणक का प्रभाव उत्पाद व आय पर कम होता है। इस प्रकार अर्थव्यव्था का अधिक खुलापन अर्थव्यवस्था के लिए कम लाभ प्रद या कम आकर्षक होता है।
प्रश्न 11.
शुद्ध निर्यात की आय के फलन के रूप में समझाइए।
उत्तर:
एक लेखा वर्ष की अवधि के लाए एक अर्थव्यवस्था के निर्यात मूल्य एवं आयात मूल्य के अन्तर को शुद्ध निर्यात कहते है। शुद्ध निर्यात घरेलू आय का घटता फलन है। घरेलू आय बढ़ने पर निर्यात मूल्य पर प्रभाव नहीं पढ़ता है लेकिन आयात मूल्य में बढ़ोतरी होती है। दूसरे शब्दों में आय बढ़ने व्यापार शेष घाटे में बढोतरी होती है। इसे निम्नलिखित चित्र दर्शाया गया है।
प्रश्न 12.
उत्पाद में वृद्धि व्यापार शेष घाटे के द्वार है? अथवा व्यापार शेष घाटा उत्पाद में वृद्धि के गलियारे से होकर गुजरता है। समझाइए।
उत्तर:
घरेलू उत्पाद अथवा घरेलू आय में वृद्धि व्यापार शेष घाटे को बढ़ाती है। व्यापार शेष में घाटा अथवा छोटा (कम) गुणक दोनों के उदय का मूल कारण एक है। घरेलू आय बढ़ने पर घरेलू अर्थव्यवस्था में घरेलू वस्तुओं की मांग कम हो जाती है और घरेलू अर्थव्यवस्था में गुणक प्रभाव के कारण आयात-वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है आयात वस्तुओं की मांग में परिवर्तन स्वायत्त प्रभाव व प्रेरित प्रभाव के सामूहिक प्रभाव से आयात वस्तुओं की मांग आय से प्रभावित होती है, इस कारण आय बढ़ने पर व्यापार शेष घाटे में बढ़ोतरी होती है अथवा व्यापार शेष घाटे में वृद्धि होती है इस प्रभाव को निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है।
प्रश्न 13.
स्थायी क्रय शक्ति के विश्वास के अभाव में होता मुद्रा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में विनिमय का माध्यम अथवा लेखे की इकाई का काम नहीं करती है। टिप्पणी करो।
उत्तर:
जब वस्तुओं का प्रवाह अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं में होता है तो मुद्रा का प्रवाह, वस्तुओं के प्रवाह की विपरीत दिशा में होता है अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अकेली मुद्रा से विनिमय कार्य नहीं होता है। अतः विदेशी आर्थिक एजेन्ट ऐसी किसी मुद्रा को स्वीकार नहीं करते हैं जिसकी क्रय शक्ति में स्थिरता न हो। इसलिए सरकार समूचे विश्व को मुद्रा की क्रय शक्ति की स्थिरता का दायित्व लेने का विश्वास दिलाती है। अतः स्थायी क्रय शक्ति के विश्वास के अभाव में कोई भी मुद्रा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विनिमय का माध्यम अथवा लेखे की इकाई नहीं बन सकती है।
प्रश्न 14.
किस प्रकार से एक अर्थव्यवस्था का दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के साथ लेन-देन चयन व्यापक बनाता है?
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था का दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के साथ लेन-देन तीन प्रकार से चयन को व्यापक बनाता है –
- उपभोक्ताओं एवं उत्पादकों को घरेलू एवं विदेशी वस्तुओं में चयन का अधिक अवसर प्राप्त होता है। इससे वस्तु बाजार का आकार अधिक व्यापक हो जाता है।
- निवेशकों को घरेलू एवं विदेशी पूंजी बाजारों में निवेश करने के लिए अधिक अवसर प्राप्त होते हैं। इससे अनेक पूंजी बाजार आपस में जुड़कर वृहत्त पूंजी बाजार को जन्म देते हैं।
- फर्म उत्पादन करने के लिए सर्वोत्तम स्थिति का चयन कर सकती है। उत्पादन साधनों विशेष रूप से श्रमिकों को कम करने के लिए सर्वोत्तम विकल्प चुनने के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 15.
विदेशी व्यापार से अर्थव्यवस्था की सामूहिक मांग किस प्रकार से प्रभावित होती है?
उत्तर:
विदेशी व्यापार एक अर्थव्यवस्था में सामूहिक मांग को दो प्रकार से प्रभावित करता है –
- जब एक देश के निवासी विदेशों से वस्तुओं को खरीदते हैं तो घरेलू आय के चक्रीय प्रवाह में से स्राव होता है इससे उस अर्थव्यवस्था में आय का स्तर गिरता है और अर्थव्यवस्था में सामूहिक मांग का स्तर कम हो जाता है।
- जब एक देश निवासी उत्पादक वस्तुओं को विदेशों में बेचते हैं तो इससे आय के चक्रीय प्रवाह में अन्तःक्षेपण होता है अर्थात् आय में बढ़ोतरी होती है। सामूहिक मांग का स्तर निर्यात के कारण बढ़ जाता है।
प्रश्न 16.
आय एवं विनिमय दर में संबंध लिखो।
उत्तर:
जब घरेलू आय बढ़ती है तो उपभोक्ताओं का व्यय बढ़ जाता है। घरेलू अर्थव्यवस्था की वस्तुओं की मांग बढ़ने के साथ-साथ आयातित वस्तुओं या विदेशी वस्तुओं की मांग में भी वृद्धि होती है। अर्थात् विदेशी वस्तुओं की खरीद पर व्यय बढ़ जाता है। विदेशी वस्तुओं की मांग में वृद्धि होने पर विदेशी मुद्रा का मांग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है और घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन हो जाता है।
इसके विपरीत यदि विदेशी अर्थव्यवस्थाओं की आय बढ़ती है तो घरेलू अर्थव्यवस्था की वस्तुओं की वस्तुओं का मांग वक्र अन्तर्राष्ट्रीय बाजार मे दायीं ओर खिसक जायेगा इससे घरेलू मुद्रा का अपमूल्यन होगा। अन्य बाते समान रहने पर जिस देश में वस्तुओं की मांग तेजी से बढ़ती है उस देश की मुद्रा का अवमूल्यन होता है क्योंकि ऐसे देश में निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य से अधिक होता है। इस देश में विदेशी मुद्रा का मांग वक्र पूर्ति की तुलना में ज्यादा दायीं ओर खिसक जाता है।
प्रश्न 17.
ब्याज दर एवं विनिमय दर में संबंध लिखिए।
उत्तर:
अल्पकाल में विनिमय दर निर्धारण में ब्याज दर की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। विनिमय दर में चलन ब्याज दरों का अन्तर होता है। बैंकों के कोष, बहुर्राष्ट्रीय कम्पनियाँ, धनी व्यक्ति ऊंची ब्याज दर की तलाश में पूरे विश्व में घूमते हैं। जिन देशों में ब्याज दर कम होती है उनकी मुद्रा की मांग वक्र बायीं ओर तथा पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। उपरोक्त ढंग से मांग व पूर्ति में खिसकाव से मुद्रा का अवमूल्यन होता है। इसके विपरीत जिन देशों में ब्याज दर ऊंची पायी जाती है उनकी मुद्रा का मांग वक्र दायीं ओर तथा पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसकता है वहाँ मुद्रा अपमूल्यन होता है।
प्रश्न 18.
सट्टा उद्देश्य एवं विनिमय दर में संबंध लिखो।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार विनियिम दर निर्यात व आयात के लिए वस्तुओं की मांग व पूर्ति की शक्तियों पर निर्भर करने के साथ-साथ सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग पर भी निर्भर करती है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में मुद्रा की मांग मुद्रा के अपमूल्यन से होने वाले संभावित लाभ पर निर्भर करती है। मुद्रा अपमूल्यन से जितने अधिक लाभ की संभावना होती है उतनी अधिक मात्रा में मुद्रा की मांग की जाती है विनिमय दर ऊँची होती है। इसके विपरीत मुद्रा के अवमूल्यन से होने वाली हानि की स्थिति में मुद्रा की मांग कम की जाती है और विनिमय दर नीची पायी जाती है।
प्रश्न 19.
एक मुद्रा की साथ को प्रभावित करने वाले कथनों को बताइए।
उत्तर:
एक मुद्रा की साख कथनों से निम्न प्रकार से प्रभावित होती है –
1. असीमित रूप से निः
शुल्क परिवर्तनीयता का गुण। मुद्रा के परिवर्तन की कीमत जिस मुद्रा में अरिवर्तनीयता का गुण जितना अधिक एवे कीमत स्थिरता का दावा पेश किया जायेगा उस मुद्रा की साख उतनी ही ज्यादा होती है। इसके विपरीत मुद्रा में परिर्वनीयता का गुण जितना कम होगा और कीमत स्थिरता का कमजोर दावा पेश किया जायेगा मुद्रा की साख उतनी ही ज्यादा कमजोर होगी।
2. अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सत्ता (पद्धति) जो अन्तर्राष्ट्रीय लेन-देन में स्थिरता का आश्वासन दे।
प्रश्न 20.
लोचशील विनिमय दर को समझाए।
उत्तर:
वह विनिमय दर जो विदेशी मुद्रा बाजार में मुद्रा की मांग व आपूर्ति के सन्तुलन के आधार पर तय की जाती है उसे लोचशील विनिमय दर कहते हैं। लोचशील विनिमय दर विदेशी बाजार में मुद्रा की मांग अथवा आपूर्ति अथवा दोनों में परिवर्तन होने पर बदल जाती है। लोचशील विनिमय दर दो प्रकार की होती है –
- स्वतन्त्र लोचशील
- प्रबंधित लोचशील
स्वतन्त्र लोचशील विनिमय दर पूरी तरह मुद्रा की मांग व आपूर्ति की शक्तियों के आधार पर तय होती है केन्द्रीय बैंक इसके निर्धारण में कोई हस्तक्षेप नहीं करता है जबकि प्रबन्धित लोचशील विनिमय दर को प्रभावित करने के लिए केन्द्रीय बैंक विदेशी मुद्राओं का क्रय-विक्रय करता है।
प्रश्न 21.
स्थिर और नम्य विनिमय दरों में भेद समझाइए।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर:
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के अन्तर्गत एक देश की सरकार अपनी विनिमय दर की घोषणा करती है। यह दर स्थिर रखी जाती है। इस दर में होने वाले मामूली परिवर्तन भी अर्थव्यवस्था में सहनीय नहीं होते हैं।
नम्य विनिमय दरः
यदि विनिमय की दर बाजार में आपूर्ति और मांग के सन्तुलन के द्वारा तय होती है तो इसे नम्य विनिमय दर कहते हैं। नम्य विनिमय दर का मान बदलता रहता है।
प्रश्न 22.
स्थिर विनिमय दर प्रणाली को समझाइए।
उत्तर:
स्थिर विनयिम दर सरकार द्वारा तय की जाती है। अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक इस विनिमय दर का निर्धारण करता है। सामान्यतः स्थिर विनिमय दर में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता है। केन्द्रीय बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में विनिमय दर को स्थिर बनाए रखने के लिए निश्चित सीमाओं के बीच में परिवर्तन कर सकता है। केन्द्रीय बैंक विदेशी मुद्राओं का कोष स्थापित करता है इसका प्रयोग विनिमय दर को स्थिर बनाए रखने के लिए किया जाता है।
स्थिर विनयिम दर देश की स्टैण्डर्ड मुद्रा सोने (Gold) की मात्रा पर निर्भर करती है। देसरे शब्दो में, स्थिर विनिमय दर का निर्धारण मुद्रा के सरकार द्वारा घोषित सोने के मूल्य पर निर्भर करता है। माना भारत की सरकार ने एक रूपये की कीमत 1 ग्राम सोना तथा इंग्लैण्ड की सरकार ने एक पौंड कीमत 10 ग्राम सोना तय की तो पौण्ड की विनिमय दर 10 रूपया होती तथा रूपये विनिमय दर। 110 पौंड होगी। 1977 के बाद इस विनिमय दर का प्रचलन अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सदस्यों ने समाप्त कर दिया है।
प्रश्न 23.
विनिमय दर तथा दीर्घकाल में संबंध लिखो।
उत्तर:
समयावधि जितनी अधिक होती है उतने ही व्यापार प्रतिबन्ध जैसे प्रशुल्क, कोटा, विनयम दर आदि समायोजित हो जाते हैं। विभिन्न मुद्राओं में मापी जाने वाले उत्पाद की कीमत समान होनी चाहिए लेकिन लेन-देन का स्तर भिन्न-भिन्न हो सकता है। इसलिए लम्बी समयावधि में दो देशों के बीच विनिमय दर दो देशों में कीमत स्तरों के आधार पर समायोजित होती है। इस प्रकार देशों में विनिमय की दर दो देशों में कीमतों में अन्तर के आधार पर निर्धारित होती है।
प्रश्न 24.
विदेशी मुद्रा की पूर्ति को समझाइए।
उत्तर:
एक लेखा वर्ष की अवधि में ऐ देश को समस्त लेनदारियों के बदले जितनी मुद्रा प्राप्त होती हैं उसे विदेशी मुद्रा की पूर्ति कहते हैं।
विदेशी विनिमय की पूर्ति को निम्नलिखित बातें प्रभावित करती हैं –
- निर्यात दृश्य व अदृश्य सभी मदें शामिल की जाती हैं।
- निर्यात दृश्य उस देश में निवेश।
- विदेशों से प्राप्त हस्तातरण भुगतान।
विदेशी विनिमय की दर तथा आपूर्ति में सीधा संबंध होता है। ऊंची विनिमय दर पर विदेशी मुद्रा की अधिक आपूर्ति होती हैं।
प्रश्न 25.
विदेशी मुद्रा की मांग को समझाएं। यह विनिमय दर को किस प्रकार प्रभावित करती है।
उत्तर:
एक लेखा वर्ष के दौरान एक देश को समस्त विदेशी दायित्वों का निपटारा करने के लिए जितनी विदेशी मुद्रा की आवश्यकता होती है उसे विदेशी मुद्रा की मांग कहते हैं। एक देश निम्नलिखित कार्यों के लिए विदेशी मुद्रा की मांग करता है –
- आयात का भुगतान करने के लिए दृश्य एवं अदृश्य सभी मदें शामिल की जाती है।
- विदेशी अल्पकालीन ऋणों का भुगतान करने के लिए।
- विदेशी दीर्घकालीन ऋणों का भुगतान करने के लिए।
- शेष विश्व में निवेश करने के लिए।
- विदेशों को उपहार या आर्थिक सहायता देने के लिए। विदेशी मुद्रा की मांग व विनिमय दर में उल्टा संबंध है। विनिमय दर ऊँची हाने पर विदेशी मुद्रा की मांग कम हो जाती है।
प्रश्न 26.
भारतीय नागरिकों द्वारा विदेशों में खर्च विदेशी मुद्रा बाजार भारतीय रूपयों की आपूर्ति के समान है। समझाइए।
उत्तर:
यदि भारत के लोग विदेशों से वस्तुएं एवं सेवाएं क्रय करते हैं तो भुगतान करने के लिए भारत के लोगों के पास रूपये होते हैं। परन्तु विदेशी विक्रेता अपनी वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य अपने देश की मुद्रा में स्वीकार करते हैं। अतः भारत के लोग भारतीय मुद्रा रूपये से विदेशी मुद्रा प्राप्त करते हैं। विदेशी मुद्रा के समान भारत लोग रूपये की आपूर्ति विदेशी मुद्रा बाजार को करते हैं। इस प्रकार भारत के लोग का खर्च विदेशी मुद्रा बाजार को भारतीय रूपयों की आपूर्ति होती है। माना एक भारतीय पर्यटक अमेरिका में बीमार पड़ने पर चिकित्सक की सेवाएं प्राप्त करता है। चिकित्सक की फीस 20 डालर प्राप्त करने के विदेशी मुद्रा बाजार को 800 रूपये देगा। अतः विदेशी मुद्रा बाजार को 800 रूपये की आपूर्ति होती है।
प्रश्न 27.
क्रय शक्ति समता सिद्धांत की तीन आलोचनाएं लिखें।
उत्तर:
- यह सिद्धांत कीमत सूचकांक पर आधारित है। जबकि कीमत सूचकांक अनिश्चित एवं अविश्वसनीय होते हैं।
- अदृश्य मदों की उपेक्षाः यह सिद्धांत यह मानता है कि विनिमय दर केवल वस्तुओं के आयात निर्यात से प्रभावित होती है। सेवाएं प्रभावित नहीं करती हैं जबकि व्यवहार में यह बात सही नहीं है।
- ऊपरी लागतों की उपेक्षा: इस सिद्धांत में परिवहन व्यय की अनदेखी की गई है जबकि परिवहन व्यय एक देश में वस्तुओं की कीमत कम ज्यादा कर सकता है।
प्रश्न 28.
विस्तृत सीमा पट्टी व्यवस्था पर चर्चा करें।
उत्तर:
विस्तृत सीमा पट्टी व्यवस्था में देश की सरकार अपनी मुद्रा की विनिमय दर की घोषणा करती है। परन्तु इस व्यवस्था के स्थिर घोषित विनिमय दर के दोनों ओर 10 प्रतिशत उतार-चढाव मान होने चाहिए। ससे सदस्य देश अपने भुगतान शेष के समजन का काम आसानी से कर सकते हैं। उहाहरण के लिए यदि किसी देश का भुगतान शेष घाटे का है तो इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उस देश को अपनी मुद्धा की दर 10 प्रतिशत तक घटाने को छूट होनी चाहिए। मुद्रा की दर कम होने पर दूसरे देशों के लिए उस देश की वस्तुएं एव सेवाएं सस्ती हो जाती हैं जिससे विदेशों में उस देश की वस्तुओं की मांग बढ़ जाती हैं और उस देश को विदेशी मुद्रा पहले से ज्यादा प्राप्त होती है।
प्रश्न 29.
प्रबंधित तरणशीलता की अवधारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबंधित तरणशीलता स्थिर एवं नम्य विनिमय दर के बीच की व्यवस्था है। इस व्यवस्था में विनिमय दर को स्वतंत्र रखा जाता है। देश के मौद्रिक अधिकारी यदा कदा हस्तक्षेप करते हैं। मौद्रिक अधिकारी अधिकारिक रूप से बनाए गए नियमों एवं सूत्रों के अन्तर्गत ही हस्तक्षेप कर सकते हैं। अधिकारी विनिमय दर तय नहीं करते हैं। विनिमय दर के उतार-चढ़ाव की कोई सीमा तय नहीं की जाती है। हस्तक्षेप की आवश्यकता महसूस होने पर मौद्रिक अधिकारी समन्वय के लिए उचित कदम उठा सकते हैं। नियमों एवं मार्गदर्शकों के अभाव में यह व्यवस्था गन्दी तरणशीलता बन जाती है।
प्रश्न 30.
चालू खाते व पूंजीगत खाते में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चालू खाता:
- भुगतान शेष के चालू खाते में वस्तुओं व सेवाओं के निर्यात व आयात शामिल करते हैं।
- भुगतान शेष के चालू खाते के शेष का एक देश की आय पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। यदि किसी देश का चालू खाते का शेष उस देश के पत्र में होता हैं तो उस देश की राष्ट्रीय आय बढ़ती है।
पूंजी खाता:
- भुगतान शेष के पूंजी खातों में विदेशी ऋणों का लेन-देन ऋणों का भुगतान व प्राप्तियों, बैंकिग पूंजी प्रवाह आदि को दर्शाते हैं।
- भुगतान शेष का देश की राष्ट्रीय आय पर प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ता है ये केवल परसिम्पतियों की मात्रा को दर्शाते हैं।
प्रश्न 31.
लोग विदेशी मुद्रा की मांग किसलिए करते हैं?
उत्तर:
लोग विदेशी मुद्रा की मांग निम्नाकिंत उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करते हैं –
- दूसरे देशों से वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदने के लिए।
- विदेशों में उपहार भेजने के लिए।
- दूसरे णों का लेन-देन ऋणों का भाव देश में भौतिक एवं वित्तीय परिसंपत्तियों को क्रय करने के लिए।
- विदेशी मुद्राओं के मूल्य के संदर्भ में व्यापारिक दृष्टि से सट्टेबाजी के लिए।
- विदेशों में पर्यटन के लिए।
- विदेशों में स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाएं प्रापत करने के उद्देश्य के लिए आदि।
प्रश्न 32.
भुगतान शेष की संरचना के पूंजी खाते को समझाएं।
उत्तर:
पूंजी खातों में दीर्घकालीन पूंजी के लेन-देन को दर्शाया जाता है। इस खाते में निजी व सरकारी पूंजी लेन-देन, बैंकिंग पूंजी प्रवाह व अन्य वित्तीय विनिमय दर्शाए जाते हैं। पूंजी खाते की मदें: इस खाते की प्रमुख मदें निम्नलिखित हैं –
1. सरकारी पूंजी का विनिमय:
इसमें सरकार द्वारा विदेशों से लिए गए ऋण तथा विदेशों को दिए गए ऋणों के लेन-देन, ऋणों के भुगतान तथा ऋणों की प्राप्तियों के अलावा विदेशी मुद्रा भण्डार, केन्द्रीय बैंक के स्वर्ण भण्डार, विश्व मुद्रा कोष के लेन-देन आदि को दर्शाया जाता है।
2. बैंकिग पूंजी:
बैंकिग पूंजी प्रवाह में वाणिज्य बैंकों तथा सहकारी बैंकों की विदेशी लेनदारियों एवं देनदारियों को दर्शाया जाता है। इसमें केन्द्रीय बैंक के पूंजी प्रवाह को शामिल नहीं करते हैं।
3. निजी ऋण:
इसमें दीर्घकालीन निजी पूंजी में विदेशी निवेश ऋण, विदेशी जमा आदि को शामिल करते हैं। प्रत्यक्ष पूंजीगत वस्तुओं का आयात व निर्यात प्रत्यक्ष रूप से विदेशी निवेश में शामिल किया जाता है।
प्रश्न 33.
इनकी परिभाषा करें:
- NEER
- REER
- Rer
उत्तर:
1. NEER(मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर):
मुद्रा की औसत सापेक्ष पर कीमत स्तर के परिवर्तन के प्रभावों को खत्म नहीं करने का प्रयास नहीं किया जाता है अर्थात् मुद्रा की औसत सापेक्ष शक्ति कीमत स्तर के परिवर्तन प्रभावों से प्रभावित होती है इसिलए इसे मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर कहते हैं।
2. REER:
वास्तविक प्रभावी विनिमय दर इससे वास्तविक विनिमय की गणना की जाती है।
3. RER:
स्थिर कीमतों पर आधारित विनिमय दर को (RER) कहते है। इसमें कीमत परिवर्तन का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
प्रश्न 34.
विदेशी मुद्रा के –
- हाजिर बाजार तथा
- वायदा बाजार क्या होते हैं?
उत्तर:
1. हाजिर बाजार:
विदेशी विनिमय बाजार में यदि लेन-देन दैनिक आधार पर होते हैं तो ऐसे बाजार को हाजिर बाजार या चालू बाजार कहते हैं। इस बाजार में विदेशी मुद्रा की तात्कालिक दरों पर विनिमय होता है।
2. वायदा बाजार:
विदेशी विनिमय बाजार में यदि लेन-देन भविष्य में देयता के आधार पर होता है तो इसे वायदा बाजार कहते हैं। इस बाजार में भविष्य में निश्चित तिथि पूरी होने पर लेन-देन का काम होता है।
प्रश्न 35.
विदेशी विनिमय बाजार में चलित सीमाबन्ध व्यवस्था की भूमिका समझाइए।
उत्तर:
चलित सीमा बन्ध व्यवस्था स्थिर एवं नम्य व्यवस्थाओं के बीच की व्यवस्था होती है। इस व्यवस्था में एक देश की सरकार विनिमय दर की घोषणा करने के बाद उसे दोनों ओर 1 प्रतिशत परिवर्तन कर सकती है अथात् विनिमय दर को 1 प्रतिशत बढ़ा भी सकती है और घटा भी सकती है। परन्तु देश के विनिमय भण्डरों की समीक्षा के कारण निश्चित विनिमय दर में समय-समय पर संशोधन किए जाते हैं। संशोधन करते वक्त मुद्रा की आपूर्ति व कीमतों में उतार-चढ़ाव का भी ध्यान रखा जाता है। देश के मौद्रिक अधिकारी उच्चतम एवं न्यूनतम सीमाओं के माध्यम से वित्तीय अनुशासन रख सकते हैं।
प्रश्न 36.
क्रोलिंग पेग और मैनेजड फ्लोटिंग समझाइए।
उत्तर:
क्रोलिग पेग:
(स्थिर विनिमय दर) वह योजना जिसके द्वारा एक देश अपनी मुद्रा के सम मूल्य (Parity Vaiue) की घोषणा करता है और सम मूल्य में बहुत कम उच्चावन 1 प्रतिशत का समायोजन करता है उसे क्रोलिग पेग कहते हैं। हालाकि सम मूल्य में समायोजन देश के विदेशी भण्डार के आधार पर बहुत कम मात्रा में निरन्तर समायोजित किये जाते हैं। सम मूल्य में परिवर्तन मुद्रा की आपूर्ति, कीमत व विनिमय दर के आधार पर भी किए जाते हैं।
प्रबंधित लोचशल (मैनेजड फ्लोटिंग):
स्थिर व परिवर्तनशील विनिमय दर के प्रबन्धन में यह अंतिम और विकसित विधि है। इस व्यवस्था में विनिमय दर की बाधाओं को मुद्रा अधिकारी बातचीत के जरिए ठीक कर देते हैं। दूसरे शब्दों में इस व्यवस्था में सम मूल्य पूर्व निर्धारित नहीं होता है, उच्चावन की घोषणा का समय भी नहीं होता, मुद्रा अधिकारी स्थिति को भांप कर हस्तक्षेप करते हैं। हस्तक्षेप दूसरे देशों के साथ ताल मेल के आधार पर भी हो सकता है। लेकिन इस व्यवस्था में विनिमय दर से संबंधित दिशा निर्देशों की औपचारिक घोषणा की जाती है। दिशा निर्देशों के अभाव में यह अभिशाप भी सिद्ध हो सकता है।
प्रश्न 37.
भुगतान शेष तथा राष्ट्रीय आय लेखों के बीच संबंध की व्याख्या करें।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर दो प्रकार से भुगतान प्राप्त करने एवं भुगतान प्राप्त करने की जरूरत होती है। एक उत्पादन एवं बिक्री तथा दो, वित्तीय ओर वास्तविक परिसंपत्तियों का क्रय-विक्रय। खुली अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन पर कुल व्यय में निजी उपभोग, सरकारी अन्तिम उपभोग, निवेश के अलावा विदेशियों द्वारा आयात पर व्यय को शामिल किया जाता है।
राष्ट्रीय आय = उपभोग + सरकारी उपभोग + निर्यात
सृजित आय का प्रयोग, बचत, कर भुगतान एवं आयात पर किया जाता है।
राष्ट्रीय आया = उपभोग + बचत + कर + आयात।
इस प्रकार भुगतान शेष की मदें निर्यात एवं आयात राष्ट्रीय आय अथवा राष्ट्रीय व्यय को प्रभावित करते हैं। अतः भुगतान शेष एवं राष्ट्रीय आय लेखें परस्पर संबंधित हैं। इसके अतिरिक्त खुली अर्थव्यवस्थाएं अदृश्य मदों का भी लेन-देन करती हैं। विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय राष्ट्रीय आय का अंग हैं अर्थात् भुगतान शेष की अदृश्य मदें भी राष्ट्रीय लेखा से संबंध रखती हैं। भुगतान शेष एवं राष्ट्रीय आय दोनों के लेखांकन की पद्धति द्विअंकन प्रणाली है।
प्रश्न 38.
भुगतान शेष में असंतुलन के कारण बताएं।
उत्तर:
भुगतान शेष में असंतुलन के निम्नलिखित कारण है –
1. एक देश का वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात, आयात से कम ज्यादा होने पर। यदि निर्यात का मूल्य आयात से अधिक होगा तो भुगतान शेष पक्ष का होगा लेकिन यदि निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य से कम होगा तो भुगतान शेष प्रतिकूल होता है।
2. एक देश को विदेशों से प्राप्त अन्तरण भुगतान प्राप्ति एवं व्यय की असमानता। यदि देश को अन्तरण भुगतान प्राप्त होते हैं तो जमा में और यदि देश अन्तरण भुगतान देता है तो ये नामें में दर्शाए जाते हैं। यदि एक देश को विदेशों से प्राप्त अन्तरण ज्यादा होते हैं। अन्तरण भुगतान व्यय प्राप्ति की तुलना में ज्यादा होते हैं तो भुगतान शेष पक्ष का होता है। समष्टीय आधार पर भुगतान शेष संतुलन में होता है। भुगतान शेष में असंतुलन चालू खातें एवं अन्तरण खातों के असन्तुलन की वजह से होता है।
प्रश्न 39.
इन खातों के घटकों की व्याख्या करें –
- चालू खाता।
- पूंजी खाता।
उत्तर:
1. चालू खाता:
चालू खाते के घटक निम्नलिखित है –
- वस्तुओं का आयात-निर्यात।
- सेवाओं का आयात-निर्यात।
- एक पक्षीय अन्तरण भुगतानों की प्राप्ति एवं वयय।
वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात एवं विदेशों से अन्तरण भुगतानों की प्राप्ति को ‘जमा’ में तथा वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात तथा अन्तरण भुगतानों पर व्यय को ‘नामे’ में दर्शाया जाता है।
2. पूंजीगत खाता:
इस खाते में पूंजीगत परिसंपत्तियों तथा दायित्वों का लेन-देन दर्शाया जाता है। इस खाते के घटक निम्नलिखित हैं –
- निजी लेन-देन
- सरकारी लेन-देन
- प्रत्यक्ष निवेश
- पत्राचार निवेश
एक देश द्वारा विदेशों से परिसंपत्ति की खरीद को उस देश के पूंजी खाते के नामे में और देश द्वारा विदेशों को परिसपत्तियों की बिक्री को जमा में दर्शाया जाता है।
प्रश्न 40.
भुगतान सन्तुलन की संरचना में शामिल ‘चालू खाते’ पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष के चालू खाते में अल्पकालीन वास्तविक सौदों को दर्शाया जाता है।
चालू खाते की मदें:
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के के अनुसार चालू खाते में निम्नलिखित मदों को दर्शाया जाता है –
1. दृश्य मदें:
इसमें एक देश द्वारा निर्यात व आयात की जाने वाली सभी भौतिक वस्तुओं को शामिल किया जाता है।
2. अदृश्य मदें:
इसमें एक देश द्वारा निर्यात व आयात की जाने वाली सेवाओं को शामिल करते हैं। जैसे: व्यक्तियों द्वारा सेवाओं का विनिमय (सेवाओं का निर्यात व आयात
व्यापारिक उपक्रमों की सेवाएं –
- बीमा व बैकिंग
- परिवहन सेवाएं
- सरकारी लेन-देन
- निवेश/पूंजी की आय
- हस्तातरण भुगतान
- विशेषज्ञों की सेवाएं आदि
चालू खाते का भुगतान शेष = निर्यात (दृश्य + अदृश्य मदें) – आयात (दृश्य + अदृश्य)
प्रश्न 41.
व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यापार शेष:
- व्यापार शेष विदेशी विनिमय की एक संकुचित अवधारण हैं।
- इसमें निर्यात व आयात की केवल दृश्य मदों को शामिल करते हैं।
- व्यापार शेष संतुलित एवं असंतुलित दोनों तरह का हो सकता हैं।
- व्यापार शेष विदेशी आर्थिक विश्लेषण के लिए पूरी जानकारी नहीं देता है।
भुगतान शेष:
- भुगतान शेष विदेशी विनिमय की विस्तृत अवधारणा है।
- भुगतान शेष में दृश्य एवं अदृश्य सभी प्रकार की मदों को शामिल करते हैं।
- भुगतान शेष सदैव संतुलन शेष में हो सकता है।
- भुगतान शेष विदेशी लेनदारियों व देनदारियों के आर्थिक विश्लेषण के लिए पर्याप्त जानकारी देता है।
प्रश्न 42.
भुगतान शेष के खातों का महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
भुगतान शेष के खातों का निम्नलिखित महत्त्व है –
- भुगतान शेष के खाते एक देश की विदेशों से सभी लेनदारियों तथा उस देश की विदेशों को देनदारियों का विवरण प्रदान करते हैं। जिससे किसी भी विनिमय के गलत दिशा में जाने पर उसे रोका जा सकता है।
- इन खातों से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक लेन-देन की कमजोरियों की जानकारी प्राप्त होती है।
- इन खातों के आधार पर एक देश भावी आर्थिक नीति का निर्माण कर सकता है।
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में होने वाले लाभ व हानि की भी जानकारी प्राप्त होती है।
प्रश्न 43.
किसी देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा विदेशी सुरक्षित निधियों का परिवर्तन भुगतान शेष खाते को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
यदि किसी देश का केन्द्रीय बैंक सुरक्षित निधियों में वृद्धि या किसी करता है तो इसे अधिकारिक विदेशी परिसंपत्तियों में परिवर्तन कहते हैं। यदि किसी देश का केन्द्रीय बैंक विदेशी मुद्रा का सुरक्षित भण्डार बढ़ाता है तो दूसरे देश के भुगतान शेष खाते के धनात्मक पक्ष (जमा पक्ष) में प्रविष्टि होगी क्योंकि दूसरे देश में विदेशी मुद्रा प्रवाह बढ़ेगा या उस देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होगी।
प्रश्न 44.
विशेष आहरण अधिकार व्यवस्था को समझाइए।
उत्तर:
विशेष आहरण अधिकार व्यवस्था के अन्तर्गत एक देश अपनी मुद्रा के बदले एक तय सीमा के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से जरूरी विदेशी मुद्राएं प्राप्त कर सकता है। किसी देश के निधि कोष के परिवर्तन उस देश के भुगतान शेष खाते के बाकी सभी घटकों के परिणामस्वरूप होते हैं। इन कोषों की कमी से विदेशी में व्यय करने की जरूरत पूरी होती है। कमियां उत्पन्न करने से विदेशी मुद्रा का प्रवाह उस देश की ओर होता है अतः भुगतान शेष खाते के जमा पक्ष में प्रविष्टि पाते हैं। यदि नामे पक्ष की ओर दर्शाया जाता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
किसी अर्थव्यवस्था के लिए भुगतान संतुलन का महत्त्व समझाइए।
उत्तर:
आर्थिक दृष्टि से किसी देश के लिए भुगतान संतुलन का बड़ा महत्त्व होता है। इस बात की पुष्टि निम्न तथ्यों से हो जाती है –
1. आर्थिक स्थिति का सूचक:
भूगतान संतुलन अर्थव्यवस्था की स्थिति के अनेक पक्षों को उजागर करता है। जिन देशों में भुगतान संतुलन की स्थिति होती है वहाँ इसे ठीक माना जाता है जबकि प्रतिकूल भुगतान संतुलन की स्थिति में अर्थव्यवस्था को ठीक नहीं समझा जाता।
2. विदेशी निर्भरता का सूचक:
भुगतान संतुलन से पता चल जाता है कि कोई देश किस सीमा तक विदेशों पर निर्भर है। किसी देश के भुगतान शेष में प्रतिकूलता जितनी अधिक होती है उसकी अन्य देशों पर निर्भरता उतनी ही ज्यादा होती है।
3. शेष विश्व प्राप्तियों एवं भुगतानों का ज्ञान:
शेष विश्व को दिए गए कुल भुगतानों व प्राप्तियों का ज्ञान भुगतान संतुलन खाते लग जाता है।
4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की स्थिति का सूचक:
भुगतान संतुलन के अध्ययन से देश के विदेशी व्यापार की स्थिति का ज्ञान होता है।
5. आर्थिक नीतियों का निर्धारण:
भुगतान संतुलन राष्ट्रीय आर्थिक नीति के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। अनेक बार भुगतान संतुलन की स्थिति के आधार पर ही देश की आर्थिक नीतियों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए जाते हैं।
6. विदेशी निवेश का ज्ञान:
भुगतान संतुलन से पता चल जाता है कि विदेशियों द्वारा किसी देश में किए गए निवेश से उनको कितनी आय प्राप्त हुई है और इसी प्रकार किसी देश द्वारा विदेशों में किए गए निवेश से क्या लाभ हो रहा है।
7. अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के लिए सूचक:
भुगतान संतुलन की स्थिति के आधार पर ही अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं जैसे-विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि किसी देश के लिए सहायता राशि को तय करती है।
8. भुगतान शेष के खातों की सहायता से हम यह जान सकते हैं कि संसार के साथ लेन-देन का देश की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है और वह उन्हें कैसे प्रभावित करती है।
प्रश्न 2.
भुगतान शेष के असन्तुलन का क्या अर्थ है? यह कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
समुचित भुगतान शेष सदैव सन्तुलन में रहता है। भुगतान शेष से अभिप्राय एक देश की विदेशों से समस्त लेनदारियों व विदेशों के प्रति समस्त दायित्त्वों के अन्तर से है। तुलन पत्र (Balance Sheet) में समस्त लेनदारियां व देनदारियां बराबर दर्शायी जाती है। भुगतान शेष के असंतुलन को समझने के लिए भुगतान शेष में शामिल खातों को जानना पड़ेगा। भुगतान शेष में शामिल खाते निम्नलिखित हैं –
- चालू खाता-चालू खाते का सन्तुलन = निर्यात (दृश्य + अदृश्य) आयात (दृश्य + अदृश्य)।
- पूंजी खाता पूंजी खाते का सन्तुलन = स्वर्ण आदान – प्रदान + दीर्घकालीन ऋणों का आदान – प्रदान अल्पकालीन ऋणों का आदान – प्रदान
उपरोक्त दोनों खातों में समग्र रूप से सन्तुलन रहता है। परन्तु चालू खाते में सदैव सन्तुलन होना जरूरी नहीं है। जब किसी देश के चालू खाते में असंतुलन होता है तो उसे पूंजी खाते से पूरा किया जाता है। इसे पूरा करने के लिए कर्को देश आरक्षित स्वर्ण भण्डारों व विदेशी आरक्षित मुद्रा भण्डारों में परिवर्तन कर सकता है। जैसे भुगतान शेष के घाटे को पूरा करने के लिए वह अपने उक्त भण्डारों में कमी कर सकता है।
भुगतान शेष के घाटे को पूरा करने के लिए एक देश विदेशों से अल्पकालीन व दीर्घकालीन ऋण भी ले सकता है। परन्तु भुगतान शेष के घाटे को पूरा करने के लिए उपरोक्त उपाय हमेशा उचित नहीं होते हैं। वास्तविक भुगतान शेष को जानने के लिए सन्तुलन के लिए इस्तेमाल किये जाने वाली मदों को अलग रखना चाहिए जैसे स्वर्ण भण्डारों व विदेशी मुद्रा के आरक्षित भण्डारों में कमी, विदेशी से अल्पकालीन या दीर्घकालीन ऋण। यदि इन मदों को निकाल कर किसी देश का भुगतान में है तो यह वास्तविक सन्तुलन माना जायेगा अन्यथा भुगतान शेष वास्तव में असन्तुलन में माना जायेगा । सन्तुलन संबंधी तीन स्थितियां हो सकती हैं –
- सन्तुलित भुगतान शेष – निर्यात = आयात
- बचत का भुगतान शेष – निर्यात > आयात
- घाटे का भुगतान शेष – निर्यात < आयात
प्रश्न 3.
विदेशी मुद्रा बाजार मे संतुलन की प्रक्रिया समझाए।
उत्तर:
विनिमय बाजार में संतुलन की प्रक्रिया सामान्य बाजार की तरह मुद्रा की मांग और आपूर्ति के साम्य द्वारा तय होती है। विदेशी विनिमय बाजार में मुद्रा का मांग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला और आपूर्ति वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है। मांग वक्र तथा पूर्ति वक्र जिस बिन्दु पर काटते हैं उस बिन्दु को साम्य बिन्दु कहते हैं। साम्य बिन्दु पर विनिमय की दर संतुलन विनिमय दर कहलाती है तथा मात्रा को संतुलन मात्रा कहते हैं। विनिमय बाजार में संतुलन को चित्र की सहायता से भी दर्शाया जा सकता है। आपूर्ति वक्र S का ढाल धनात्मक है।
जिसका अभिप्राय यह है कि विनिमय दर ऊँची होने पर विदेशी मुद्रा अधिक मात्रा में प्राप्त हो सकती है। इससे विदेशियों को वस्तुएं सस्ती लगती हैं और परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा की आपूर्ति बढ़ जाती है। मुद्रा का मांग वक्र DD ऋणात्मक ढाल वाला है। पूर्ति वक्र और वक्र दोनों बिन्दु E पर काटते हैं। बिन्दु E साम्य बिन्दु है। बिन्दु Eसे X अक्ष पर डाले गए लम्ब का पाद (फुट) संतुलन मात्रा को दर्शाया है तथा साम्य बिन्दु से Y अक्ष पर डाले गए लम्ब का पाद संतुलन विनिमय दर को दर्शाया है।
प्रश्न 4.
विश्व व्यापार में नम्य विनिमय दर व्यवस्था पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विश्व व्यापार में नम्य विनिमय दर व्यवस्था स्थिर विनिमय दर व्यवस्था से एकदम उल्टी है। विश्व स्थिर विनिमय दर का निर्धारण सरकार करती है और उसमें परिवर्तन की गुंजाइश बहुत कम होती है। जबकि नम्य विनिमय दर व्यवस्था में सरकार अथवा मौद्रिक अधिकारियों का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत विश्व मुद्रा बाजार में विनिमय की दर विश्व बाजार में मुद्रा की मांग एवं आपूर्ति के साम्य से तय होती है। मांग और आपूर्ति में परिवर्तन होने पर विनिमय दर बदलती रहती है।
पूर्णतः नम्य विनिमय दर व्यवस्था के निम्नलिखित गुण हैं –
- विश्व मुद्रा बाजार में नम्य विनिमय दर व्यवस्था के कारकों की वजह से देशों के केन्द्रीय बैकों को विदेशी मुद्राओं के भण्डार रखने की जरूरत नहीं होती है।
- नम्य विनिमय दर व्यवस्था लागू होने से सदस्य देशों के बीच व्यापार तथा पूंजी के आवागमन की रुकावटें समाप्त हो जाती हैं।
- नम्य विनिमय दर व्यवस्था से अर्थव्यवस्था संसाधनों का अभीष्टतम वितरण करके अर्थव्यवस्था की कुशलता में बढ़ोतरी करती है।
प्रश्न 5.
भारत के भुगतान शेष खातों की संरचना समझाइए।
उत्तर:
भुगतान शेष खाते को द्विअंकन पद्धित (Double Entry System) में तैयार किया जाता है। अतः भुगतान शेष खाते में जमा व नामे की दो प्रविष्टियां होती है। इस प्रविष्टियों का आकार समान होता है इसलिए यह खाता हमेशा संतुलन में होगा है। भुगतान शेष के सभी लेन-देनों को 5 वर्गों में बाटकर निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है नामे (-)
(I) श्रेणी – 1:
- वस्तु का आयात
- सेवाओं का आयात
श्रेणी – 2:
प्रदान गए अन्तरण भुगतान
श्रेणी – 3
- देश के निवासियों एवं सरकार द्वारा धारित दीर्घकालिक विदेशी परिसंपत्तियों में वृद्धि
- विदेशी नागरिको एवं सरकारों द्वारा धारित इस देश की दीर्घकालिक परिसपत्तियों में कमी।
श्रेणी – 4
- देश के नागरिकों द्वारा अल्पकालिक विदेशी परिसंपत्तियों में वृद्धि।
- विदेशी नागरिकों द्वारा धारित विदेशी परिसंपत्तियों में कमी।
जमा (+)
- वस्तुओं का निर्यात
- सेवाओं का आयात
(II) प्राप्त किए गए हस्तातरण भुगतान
(III)
- देश के नागरिकों और सरकार द्वारा धारित दीर्घ कालिक विदेशी परिसंपत्तियों में कमी।
- विदेशी नागरिकों एवं सरकारों द्वारा धारित इस देश की दीर्घकालिक परिसंपत्तियों में वृद्धि।
(IV)
- देश के नागरिकों द्वारा धारित अल्पकालिक विदेशी परिसंपत्तियों में कमी।
- विदेशी नागरिकों द्वारा धारित इस देश की अल्पकालिक परिसपत्तियों में वृद्धि।
प्रश्न 6.
विदेशी विनिमय बाजार की कार्यपद्धति के हाजिर बाजार एवं वायदा बाजार पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विदेशी विनिमय बाजार के विश्लेषण में लेन-देन की विधि समय अवधि से जुड़ी होती है। लेन-देन के समय अवधि के आधार पर इसे दो भागों में बांटा जा सकता है –
1. हाजिर बाजार:
इस बाजार को चालू बाजार भी कहा जाता है। इस बाजार में लेन-देन दैनिक आधार पर किया जता है। किसी देश की मुद्रा की औसत सापेक्ष शक्ति के नाम को प्रभावी विनिमय दर कहते हैं। प्रभावी विनिमय दर में कीमत परिवर्तन के प्रभावों को समाप्त नहीं किया जाता है। इसलिए इसे मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर भी कहते है। विश्व विनिमय दर सुधार या गिरावट का अनुमान वास्तविक विनिमय दर के आधार पर किया जाता है। इसमें केवल चालू खाते के लेन-देनों में संतुलन होता है। इसका आधार यह है कि एक ही मुद्रा में आकलन करने से सभी देशों में कीमतें एक समान हो जाती है। सापेक्ष क्रय शक्ति दर से सदस्य देशों की कीमत वृद्धि दर को विश्व विनिमय दर से जोड़ा जाता है।
2. वायदा बाजार:
इस बाजार में लेन-देन भविष्य में देयता के आधार पर होता है। इस बाजार में भविष्य में किसी तिथि पर पूरे होने वाले लेन-देन का कामकाज होता है। विश्व व्यापार में ज्यादातर लेन-देन उसी दिन पूरे नहीं होते हैं जिस दिन लेन-देन के दस्तावेजों पर दो देश हस्ताक्षर करते हैं। लेन-देन उसके कई दिन बाद होता है इसलिए इस बाजार में भविष्य में होने वाली सम्भावित विनिमय दर पर भी ध्यान दिया जाता है। इससे सदस्य देशों को सम्भावित विनिमय दर से उत्पन्न होने वाले जोखिमों का उपाय करने का मौका मिल जाता है। वायदा बाजार में ऐसे व्यापारी भागीदार होते हैं जिनको भविष्य में किसी दिन किसी मुद्रा की जरूरत होगी अथवा वे मुद्रा की आपूर्ति करेंगे। भविष्य के सौदे करने में दो उद्देश्य होते हैं –
- विनिमय दर परिवर्तन के कारण सम्भवित जोखित को कम करना।
- लाभ कमाना, पहले उद्देश्य को जोखिम का पूर्व उपाय कहते हैं और दूसरे को सट्टेबाजी।
प्रश्न 7.
भुगतान शेष के चालू एवं पूंजी खाते में सम्मिलित विभिन्न मदों के ब्यौरे दर्शाइए।
उत्तर:
चालू खाता-चालू खाते के घटक निम्नलिखित हैं –
- वस्तुओं का आयात निर्यात
- सेवाओं का आयात निर्यात
- एक पक्षीय अन्तरण भुगतानों की प्राप्ति एवं व्यय
वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात विदेशों से अन्तरण भुगतानों की प्राप्ति जमा में तथा वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात तथा अन्तरण भुगतानों पर व्यय को नामे में दर्शाया जाता है। चालू खाते की मदों को तालिका में निम्न प्रकार से दर्शाया जा सकता है –
चालू खाते की मदें लेनदारी:
- वस्तओं का निर्यात (दृश्य)
- अदृश्य मदें
शेष विश्व को दी गई सेवाएं (शिक्षा, स्वास्थ, यात्रा, बीमा, यातायात, बैकिंग आदि।)
शेष विश्व से हस्तातरण भुगतान –
- सरकारी
- निजी
शेष विश्व से प्राप्त/आर्जित निवेश –
- शेष विश्व से प्राप्त निवेश आय
- शेष विश्व से प्राप्त कर्मचारियों की क्षतिपूर्ति। मुआवजा।
देनदारी:
- वस्तुओं का आयात (दृश्य)
- अदृश्य मदें
- शेष विश्व से प्राप्त सेवाए
- शेष विश्व से हस्तातरण भुगतान (दान एवं उपहार)
- शेष विश्व को प्रदान की गई अर्जित आय
- शेष विश्व को दी गई निवेश आय
- शेष विश्व को दी गई कर्मचारियों की क्षतिपूर्ति/मुआवजा
पूंजीगत खाता:
इस खाते में पूंजीगत परिसंपत्तियों तथा दायित्वों का लेन-देन दर्शाया जाता है। इस खाते के घटक निम्नलिखित हैं –
- निजी लेन-देन
- सरकारी लेन-देन
- प्रत्यक्ष निवेश
- पत्राचार निवेश
एक देश द्वारा विदेशों से परिसम्पत्तियों की खरीद को उस देश के पूंजी खाते के नामे में और देश द्वारा विदेशों को परिसम्पत्तियों की बिक्री को जमा में दर्शाया जाता है। पूंजी खाते की मदें कुल पूंजीगत प्राप्तियां –
- विदेशी निजी ऋणों की प्राप्ति।
- बैकिंग पूंजी का आन्तरिक प्रवाह।
- सरकारी क्षेत्र द्वारा प्राप्त ऋण।
- रिजर्व एवं मौद्रिक स्वर्ण प्राप्तियां।
- स्वर्ण अन्तर विक्रय।
कुल पूंजीगत भुगतान –
- स्वदेशियों द्वारा निजी ऋणों की वापसी।
- बैकिंग पूंजी का बाहा प्रवाह।
- सरकार क्षेत्र द्वारा ऋणों का भुगतान।
- रिजर्व एवं मौद्रिक स्वर्ण अन्तरण भुगतान।
- स्वर्ण क्रय।
प्रश्न 8.
विनिमय दर के भुगतान संतुलन सिद्धान्त को समझाइए।
उत्तर:
विनिमय दर के भुगतान सन्तुलन सिद्धान्त को विनिमय दर का आधुनिक सिद्धान्त भी कहते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार विनिमय दर का निर्धारण एक देश की अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार ‘मैं मुद्रा की मांग व आपूर्ति के सन्तुलन से तय होती है। प्रो. कुरीहारा के अनुसार स्वतन्त्र विनिमय दर उस बिन्दु पर तय हाती है जिस पर विदेश विनिमय की मांग तथा आपूर्ति दोनों बराबर हो जाए। इस सिद्धांत के अनुसार निम्न स्थितियों में विनिमय दर में परिवर्तन होता है –
1. अनुकूल भुगतान शेष:
यदि किसी देश का भुगतान शेष अनुकूल होता है तो इसका अभिप्राय यह है कि उसे देश की विदेशों से समस्त लेनदारियां, समस्त देनदारियों से ज्यादा हैं। इससे विदेशी मुद्रा की आपूर्ति उस देश में बढ़ जाएगी और उस देश की मुद्रा की विनिमय दर में वृद्धि हो जाएगी।
2. प्रतिकूल भुगतान शेष:
प्रतिकूल भुगतान शेष की अवस्था में एक देश की विदेशों में समस्त लेनदारियां, समस्त देनदारियों से कम होती हैं। इससे उसे देश में विदेशी पूंजी की आपूर्ति कम हो जायेगी और उस देश की मुद्रा की विनिमय दर में कमी आ जायेगी।
3. सन्तुलित भुगतान शेष:
इस स्थिति में एक देश की विदेशों से स्मस्त लेनदारियां, समस्त देनदारियां के समान होती हैं अर्थात् विदेशी पूंजी की आपूर्ति स्थिर रहेगी और उस देश की मुद्रा की विनिमय दर भी स्थिर रहेगी। इस सिद्धान्त को मुद्रा की मांग व आपूर्ति वक्रों के सन्तुलन से भी समझाया जा सकता है।
चित्र में विदेशी मुद्रा का मांग वक्र = DD
विदेशी मुद्रा का पूर्ति वक्र = SS
सन्तुलन बिन्दु E पर विनिमय दर = OR
सन्तुलित मांग व आपूर्ति = OQ
सिद्धान्त की मान्यताएं –
- अर्थव्यवस्था में पूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है।
- सरकारी हस्तक्षप आर्थिक मामलों में नगण्य होता है।
- विनिमय दर आयात व निर्यात से प्रभावित होता है।
- विनिमय दर निर्धारण से देश के कीमत स्तर पर प्रभाव नहीं पड़ता है।
- विनिमय दर केवल विदेशी मुद्रा की मांग व आपूर्ति के सन्तुलन से निर्धारित होती है।
सिद्धान्त की आलोचनाएं –
- अर्थव्यवस्था में पूर्णप्रतियोगिता की मान्यता कोरी कल्पना है।
- सरकारी अहस्तक्षेप की मान्यता भी अव्यावहारिक है।
- विनियिम दर आयात-निर्यात से प्रभावित होती है परन्तु विनिमय दर भी आयात-निर्यात से परिवर्तन करती है।
- देश का कीमत स्तर भी आयात व निर्यात को प्रभावित करता है अर्थात् अप्रत्यक्ष रूप से देश में कीमत स्तर विदेशी विनिमय को प्रभावित करता है।
- विदेशी विनिमय दर केवल विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति से ही प्रभावित नहीं होती है बल्कि सट्टा बाजार, राजनैतिक परिवर्तन, वित्तीय संस्थाओं की कार्यपद्धति, विदेशी आर्थिक क्रियाकलाप भी विदेशी विनिमय दर पर प्रभाव डालते हैं।
प्रश्न 9.
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था तथा समजंनीय सीमा व्यवस्था को समझाइए।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था:
इस व्यवस्था के अन्तर्गत देश की सरकार देश की अपनी मुद्रा की विनिमय दर की घोषणा करती है। सरकार द्वारा घोषित दर स्थिर रखी जाती है। इसमें बहुत मामूली परिवर्तन ही मान्य होते हैं। इस प्रकार की व्यवस्था 1880 से लेकर 1914 तक स्वर्ण मांग व्यवस्था के रूप में थी। प्रत्येक देश स्वर्ण मांग में स्वर्ण के निश्चित भार का देश की मुद्राओं का निर्धारण किया जाता था। घोषित मूल्यों के अधार पर विभिन्न देशों की मुद्राओं का निर्धारण किया जाता था। इसे टकसाल मांग समता दर कहते थे। उदाहरण के लिए यदि 1 रूपये के बदले 150 शुद्ध कण मिल रहे हैं ओर एक येन के बदले 25 तो 1 = 150/25 = 6 येन अर्थात् एक रूपया = 6 येन की विनिमय दर तय की जाती थी।
समजनीय सीमा व्यवस्था:
विनिमय दर की स्वर्ण व्यवस्था भुगतान शेष की समस्याओं को सुलझाने में नाकाम रही। अतः इस व्यवस्था को 1920 में त्याग दिया गया और 1944 में ब्रेटन बुडस व्यवस्था लागू की गई। इस व्यवस्था में केवल बार घोषित दर को बनाए रखने का दायित्व सरकार का रहता था। अतः यह व्यवस्था स्थिर विनिमय दर व्यवस्था का संशोधित रूप है। स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं –
- स्थिर विनिमय दर की सहायता से आर्थिक नीतियों को कमजोर बनाने वाले संकटों पर नियंत्रण रहता है।
- स्थिर विनिमय दर सदस्य देशों की समष्टि स्तरीय आर्थिक नीतियों में समन्वय बनाने में मदद करती है।
- स्थिर विनिमय दर से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अनिश्चितता और जोखिम समाप्त होते हैं और विश्व व्यापार में बढ़ोतरी होती है।
आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
आपको एक प्रतिदर्श दिया गया है जो एक काल्पनिक अर्थव्यवस्था के उपभोग फलन को दर्शाता है:
उत्तर:
(a) Y = C + I + G + X – M
= 100 + 8(y – 40) + 38 + 75 + 25 – 0.05(y – 40)
= 238 + 8y – 8 × 40 – 0.05Y + 0.056 × 40 = 208 + 0.75y
y – 0.75y = 208
25y = 208
(b) सरकारी घाटा = G – T
= 75 – 40 = 35
(c) चालू खाता शेष = X – M = X – 0.05 yD [∵YD = Y – T]
= 25 – 0.05 (832 – 40) T = tax
325 – 0.05 × 792
= 25 – 39.60 = -14.6
(a) साम्य राष्ट्रीय आय = 432
(b) सरकारी घाटा = 35
(c) चालू खाता शेष = -14.6
प्रश्न 2.
माना एक रुपया खरीदने के लिए 2.45 येन देने पड़ते हैं। जापान में कीमत स्तर और भारत में कीमत स्तर 2.21 है भारत व जापान के बीच वास्तविक विनिमय दर ज्ञात करो।
उत्तर:
PF = 5 व P = 2.2 अ
2.45 येन की कीमत = 1 रुपया
1 येन की कीमत = 12.46 रुपया
= 100245 = 0.408 रुपया
वास्तविक विनिमय दर –
= ePF/P
= 0.408×52.2
= 0.92
वास्तविक विनिमय दर = 0.92
प्रश्न 3.
जब M = – 40 + 0.25 y है तो आयात की सीमान्त प्रवृत्ति क्या होगी? आयात की सीमान्त प्रवृत्ति व सामूहिक व्यय में क्या संबंध होगा?
उत्तर:
M = – 40 + 0.25y (दी गई समीकरण)
M = m + my (मानक समीकरण) दोनों समीकरणों की तुलना करने पर स्वायत आयात
M = -40 आयात की सीमान्त प्रवृत्ति
m = 0.25 आयात की सीमान्त प्रवृत्ति 0.25 है इसका अभिप्राय यह है कि सामूहिक व्यय प्रयोज्य आय बढ़ने पर इसका 25 प्र. श. आयात बढ़ेगा । अर्थात् आयात की सीमान्त प्रवृत्ति व सामूहिक व्यय में सीधा संबंध है।
प्रश्न 4.
माना C = 85 + 5yD, T = 60, I = 85, G = 60, X = 90, M = 40 + 0.05 y
(a) साम्य आय क्या होगी?
(b) साम्य आय पर शुद्ध निर्यात ज्ञात करो।
उत्तर:
(a) साम्य आय
y = 𝐶−𝐶𝑇+𝐼+𝐺+𝑋−𝑀1−𝐶+𝑚
= 85–0.560+85+60+90–451−0.5+0.5
= 2500.55 = 454.5
(b) साम्य आय पर शुद्ध निर्यात शेष
NX = X – M – mY
= 90 – 40 – 0.5 × 454.5
= 52 – 22.7 = 27.3
(a) साम्य आय = 454.3
(b) साम्य आय पर शुद्ध निर्यात शेष = 27.3
प्रश्न 5.
माना MPC = 0.8 or C = 0.8, M = 60 + 0.06Y तो व्यय गुणक ज्ञात करो।
उत्तर:
MPC = 0.8
c = 0.8
M = M + mY (मानक समीकरण)
M = 60 + 0.06Y (दी गई समीकरण)
दोनों समीकरणों की तुलना करने पर
M = 0.06
∆𝑌∆𝐴 = 11−𝐶+𝑚 = 11−0.5+0.6
= 12+0.06 = 10.26 = 10026 = 3.84
व्यय गुणक = 3.84
प्रश्न 6.
यदि C = 0.05 व M = 0.45 बन्द व खुली अर्थव्यवस्था के लिए व्यय गुणक ज्ञात करो।
उत्तर:
बन्द अर्थव्यवस्था के लिए – ∆𝑌∆𝐴 = 11−𝐶+𝑚 = 11−0.5 = 195 = 1.05
खुली अर्थव्यवस्था के लिए – ∆𝑌∆𝐴 = 11−𝐶+𝑚 = 11−0.05+0.45 = 11.4 = 0.71
बन्द अर्थव्यवस्था में व्यय गुणक = 1.05
खुली अर्थव्यवस्था में व्यय गुणक = 0.71
प्रश्न 7.
माना एक रुपया खरीदने के लिए 0.25 येन की आवश्यकता पड़ती है। जापान व पाकिस्तान में कीमत स्तर 5 व 0.2 है। जापान व पाकिस्तान के बीच वास्तविक विनिमय दर ज्ञात करो।
उत्तर:
PF = 5, P = 0.2
0.25 येन की कीमत = 1 रुपया
1 येन की कीमत = 10.25 = 10025 = 4 रुपया
वास्तविक विनिमय दर = e𝑃𝐹𝑃 = 4 × 50.2 = 20 × 5 = 100
वास्तविक विनिमय दर = 100
प्रश्न 8.
यदि C = 0.5 एवं m = 0.2, बन्द व खुली अर्थव्यवस्था का व्यय गुणक ज्ञात करो।
उत्तर:
1. बन्द अर्थव्यवस्था का व्यय गुणक ∆𝑌∆𝐴 = 11−𝐶 = 11−0.5 = 10.5 = 2
2. खुली अर्थव्यवस्था का व्यय गुणक ∆𝑌∆𝐴 = 11−𝐶+𝑚 = 11−0.5+0.2 = 10.7 = 1.42
बन्द अर्थव्यवस्था में व्यय गुणम = 2
खुली अर्थव्यवस्था में व्यय गुणक = 1.42
प्रश्न 9.
आपको नीचे एक प्रतिदर्श दिया गया है जो एक काल्पनिक अर्थव्यवस्था से संबंधित है –
उत्तर:
(a) Y = C + I + G + X – M
= 85 + 5(y – 50) + 60 + 85 + 90 – 0.05(y – 60)
= 85 + 5y – 25 + 60 + 85 + 90 – 0.5y + 30 = 325 + 0 = 325
(b) सरकारी घाटा = G – T = 85 – 50 = 35
(c) निर्यात शेष = X – M = 90 – 0.5 (325 – 60)
= 90 – 132.5 = -42.5
उत्तर:
(a) साम्य आय = 325
(b) सरकारी घाटा 335
(c) निर्यात शेष = – 42.5
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
केन्द्रीय दर से 25 प्र. श. ऊपर या नीचे विनिमय पट्टी पर चलन देश घाटे के प्रभाव को कम करते हैं यह तर्क संबंधित है –
(A) 1971 में स्मिथ सोनियन तर्क से
(B) कीनस के आय, रोजगार और मुद्रा सिद्धांत से
(C) रिकार्डो सिद्धांत से
(D) उपभोक्ता सिद्धांत से
उत्तर:
(A) 1971 में स्मिथ सोनियन तर्क से
प्रश्न 2.
कुछ देश अपनी मुद्राओं को जोड़ते हैं –
(A) पौड़ से
(B) रुपये से
(C) येन से
(D) डालर से
उत्तर:
(D) डालर से
प्रश्न 3.
यूरोपियन मुद्रा संघ का गठन किया गया
(A) जनवरी 1999 में
(B) फरवरी 1999 में
(C) मार्च 1999 में
(D)अप्रैल 1999 में
उत्तर:
(A) जनवरी 1999 में
प्रश्न 4.
यूरोप के देशों की सामान्य (common) मुद्रा है –
(A) डालर
(B) पौड़
(C) यूरो
(D) स्टर्लिंग
उत्तर:
(C) यूरो
प्रश्न 5.
25 में से 12 यूरोप के देशों के सदस्यों ने यूरो को स्वीकृत किया?
(A) 1991 में
(B) 1981 में
(C) 1971 में
(D) 1961 में
उत्तर:
(A) 1991 में
प्रश्न 6.
समग्र रूप से अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति की विशेषता है –
(A) वर्गीकृत पद्धति
(B) बहुविकल्पीय पद्धति
(C) पद्धतियों का योग
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) बहुविकल्पीय पद्धति
प्रश्न 7.
अर्जेन्टिना ने यूरो बोर्ड पद्धति को अपनाया?
(A) 1991 में
(B) 1981 में
(C) 1996 में
(D) 1961 में
उत्तर:
(A) 1991 में
प्रश्न 8.
एक बंद अर्थव्यवस्था के लिए साम्य आय का प्रारूप है –
(A) Y = C + I + G
(B) Y = C + I + G + X – M
(C) Y = C + I + G – X – M
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) Y = C + I + G
प्रश्न 9.
एक खुली अर्थव्यवस्था के लिए साम्य आय का प्रारुप है –
(A) Y = C + I + G
(B) Y = C + I + G + X – M
(C) Y = C + I + G – X – M
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) Y = C + I + G + X – M
प्रश्न 10.
खुली अर्थव्यवस्था का व्यय गुणक है –
(A) ∆𝑌∆𝐴 = 11−𝐶+𝑚
(B) ∆𝑌∆𝐴 = 11−𝐶
(C) ∆𝑌∆𝐴 = −𝐶1−𝐶
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) ∆𝑌∆𝐴 = 11−𝐶+𝑚
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