BSEB Class 12 Hindi रोज Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Hindi रोज Book Answers |
Bihar Board Class 12th Hindi रोज Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 12th |
Subject | Hindi रोज |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 12th Hindi रोज Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ
रोज कहानी का सारांश Bihar Board Class 12th प्रश्न 1.
रोज शीर्षक निबंध के लेखक कौन है?
(क) नामवर सिंह
(ख) अज्ञेय
(ग) मोहन राकेश
(घ) उदय प्रकाश
उत्तर-
(ख)
रोज शीर्षक कहानी में किसने पूछा तुम कुछ पढ़ती लिखती नहीं Bihar Board Class 12th प्रश्न 2.
अज्ञेय का जन्म कब हुआ था?
(क) 7 मार्च, 1911 ई.
(ख) 8 जनवरी 1910 ई.
(ग) 9 मार्च, 1909 ई.
(घ) 7 मार्च, 1908 ई.
उत्तर-
(क)
Roj Summary In Hindi Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
अज्ञेय हिन्दी के अलावा किस भाषा के जानकार थे?
(क) हिन्दी
(ख) उर्दू
(ग) संस्कृत
(घ) सिंहली
उत्तर-
(ग)
Roj Kahani Bihar Board Class 12th प्रश्न 4.
अज्ञेय की अभिरूचि किसमें-किसमें थी?
(क) बागवानी में
(ख) पर्यटन में
(ग) अध्ययन में
(घ) बागवानी, पर्यटन, अध्ययन आदि
उत्तर-
(घ)
Roj Kahani Ka Saransh Bihar Board Class 12th प्रश्न 5.
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा अज्ञेय को कौन पुरस्कार मिला था?
(क) राजेन्द्र पुरस्कार
(ख) पद्मश्री
(ग) भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार
(घ) अर्जुन पुरस्कार
उत्तर-
(ग)
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
रोज कहानी का सारांश लेखन Bihar Board Class 12th प्रश्न 1.
मालती के पति का नाम ……… है।
उत्तर-
महेश्वर
रोज कहानी का ऑब्जेक्टिव Bihar Board Class 12th प्रश्न 2.
अज्ञेय का जन्म स्थान कसेया ……….. उत्तर प्रदेश में है।
उत्तर-
कुशीनगर
रोज कहानी का सारांश लिखिए Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
अज्ञेय के पिताजी………….. शास्त्री जी थे।
उत्तर-
पं. हीरानंद
रोज कहानी Pdf Download Bihar Board Class 12th प्रश्न 4.
अज्ञेय ने …….. में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की।
उत्तर-
1925 ई.
Roj Kahani Ka Saransh Likhe Bihar Board Class 12th प्रश्न 5.
अज्ञेय जी एकांतप्रिय …………… स्वभाव के थे।
उत्तर-
अंतर्मुखी
प्रश्न 6.
उनका व्यक्तित्व सुंदर, लंबा, ………. शरीर वाला था।
उत्तर-
गठीला
रोज अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
अज्ञेय की कौन-सी कहानी ‘गैंग्रीन’ शीर्षक नाम से प्रसिद्ध है?
उत्तर-
रोज।
प्रश्न 2.
‘रोज’ शीर्षक निबन्ध के लेखक कौन हैं?
उत्तर-
अज्ञेय।
प्रश्न 3.
अज्ञेय मूलतः क्या हैं?
उत्तर-
कवि।
प्रश्न 4.
‘छोड़ा हुआ रास्ता’ कहानी के लेखक हैं :
उत्तर-
अज्ञेय।
प्रश्न 5.
अज्ञेय जी ने इंटर कहाँ से किया?
उत्तर-
मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज।
प्रश्न 6.
अज्ञेय जी ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर की किस कृति का हिन्दी में अनुवाद किया है?
उत्तर-
कुलवधू।
प्रश्न 7.
लेखक कितने वर्ष बाद मालती से मिलने आया था?
उत्तर-
दस।
रोज पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
मालती के घर का वातावरण आपको कैसा लगा? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
कहानी के प्रथम भाग में ही मालती के यन्त्रवत् जीवन की झलक मिल जाती है जब वह अतिथि का स्वागत केवल औपचारिक ढंग से करती है। अतिथि उसके दूर के रिश्ते का भाई है। जिसके साथ वह बचपन में खूब खेलती थी पर वर्षों बाद आए भाई का स्वागत उत्साहपूर्वक नहीं कर पाती बल्कि जीवन की अन्य औपचारिकताओं की तरह एक और औपचारिकता निभा रही है। हम देखते हैं कि मालती अतिथि से कुछ नहीं पूछती बल्कि उसके प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर ही देती है। उसमें अतिथि की कुशलता या उसके वहाँ आने का उद्देश्य या अन्य समाचारों के बारे में जानने की कोई उत्सुकता नहीं दिखती। यदि पहले कोई उत्सुकता, उत्साह जिज्ञासा या किसी बात के लिए उत्कंठा भी थी तो वह दो वर्षों के वैवाहिक जीवन के बाद शेष नहीं रही।
विगत दो वर्षों में उसका व्यक्तित्व बुझ-सा गया है जिसे उसका रिश्ते का भाई भाँप लेता है। अत: मालती का मौन उसके दम्भ का या अवहेलना का सूचक नहीं बल्कि उसके वैवाहिक जीवन की उत्साहहीनता, नीरसता और यान्त्रिकता का ही सूचक है। यह एक विवाहित नारी के अभावों में घुटते हुए पंगु बने व्यक्तित्व की त्रासदी का चित्रण है। यह एक नारी के सीमित घरेलू परिवेश में बीतते ऊबाऊ जीवन का चित्रण है।
प्रश्न 2.
‘दोपहर में उस सूने आँगन में पैर रखते ही मुझे ऐसा जान पड़ा, मानो उस पर किसी शाप की छाया मँडरा रही हो’, यह कैसी शाप की छाया है? वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जब लेखक दोपहर के समय मालती के घर पहुँचा तो उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि मानो वहाँ किसी शाप की छाया मँडरा रही हो। यह शाप की छाया उस घर में रहने वाले लोगों के बीच अपनेपन तथा प्रेमभाव का न होना थी। वहाँ रहने वाला परिवार एक ऊब भरी, नीरस और निर्जीव जिन्दगी जी रहा था। माँ को अपने इकलौते बेटे के चोट लगने या उसके गिरने से कोई पीडा नहीं होती है। इसी प्रकार एक पति को अपने काम-काज से इतनी भी फुर्सत नहीं है कि वह अपनी पत्नी के साथ कुछ समय बिता सके। इस कारण उसे एकाकी जीवन जीना पड़ता है। इस प्रकार यह शाप पति-पत्नी और बच्चे तीनों को ही भुगतना पड़ता है।
प्रश्न 3.
लेखक और मालती के संबंध का परिचय पाठ के आधार पर दें।
उत्तर-
लेखक और मालती के बीच एक घनिष्इ संबंध है। मालती लेखक की दूर के रिश्ते की बहन है, लेकिन दोनों के बीच मित्र जैस संबंध है। दोनों बचपन में इकट्ठे खेले लड़े और पिटे हैं। दोनों की पढ़ाई भी साथ ही हुई थी। उनका रिश्ता सदा मित्रतापूर्ण रहा था, वह कभी भाई-बहन या बड़े-छोटे के बंधन में नहीं बंधे थे।
प्रश्न 4.
मालती के पति महेश्वर की कैसी छवि आपके मन में बनती है? कहानी में . महेश्वर की उपस्थिति क्या अर्थ रखती है? अपने विचार दें।
उत्तर-
कहानीकार अज्ञेय ने महेश्वर के नित्य कर्म का जो संक्षिप्त चित्र प्रस्तुत किया है पता चलता है कि वह रोज सबेरे डिस्पेन्सरी चला जाता है दोपहर को भोजन करने और कुछ आराम करने के लिए आता है, शाम को फिर डिस्पेन्सरी जाकर रोगियों को देखता है। उसका जीवन भी रोज एक ही ढर्रे पर चलता है। एक यांत्रिक जीवन की यन्त्रणा पहाड़ के एक छोटे स्थान पर मालती का पति भी भोग रहा है। यांत्रिक जीवन के संत्रास के शिकार सिर्फ बड़े शहरों के ही लोग नहीं हैं पहाड़ों के एकान्त में उसके शिकार मालती और महेश्वर भी है। महेश्वर भी इस एक एक ढर्रे पर चलती हुई खूटे पशु की तरह उसी के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने वाली जिन्दगी से उकताए हुआ है।
कहानी के महेश्वर एक कटा हुआ पात्र है, परन्तु जब कहीं भी कहानी में उपस्थित होता है तो उसकी उपस्थिति माहौल को तनावपूर्ण और अवसादग्रस्त बनाती है। उसकी बदलती मन:स्थिति वातावरण को और अधिक नीरस और ऊबाउ बनाती है।
प्रश्न 5.
गैंग्रीन क्या है?
उत्तर-
पैंग्रीन एक खतरनाक रोग है। पहाड़ियों पर रहने वाले व्यक्तियों पैरों में काँटा चुभना आम बात है। परन्तु काँटा चुभने के बाद बहुत दिनों तक छोड़ देने के बाद व्यक्ति का पाँव जख्म का शक्ल अख्तियार कर लेता है जिसका इलाज मात्र पाँव का काटना ही है। कभी-कभी तो इस रोग से पीड़ित रोगी की मृत्यु तक हो जाती है।
प्रश्न 6.
कहानी से उन वाक्यों को चुनें जिनमें ‘रोज’ शब्द का प्रयोग हुआ है?
उत्तर-
सर्वप्रथम कहानी का शीर्षक ही रोज है। इसके अलावे कई स्थानों पर रोज शब्द का प्रयोग हुआ है।
- मालती टोककर बोली, ऊँहूँ मेरे लिए तो यह नई बात नहीं है रोज ही ऐसा होता है..।
- क्यों पानी को क्या हुआ? रोज ही होता है, कभी वक्त पर आता नहीं।
- मैं तो रोज ऐसी बातें सुनती हूँ।
- मालती का जीवन अपनी रोज की नियत गति से बहा जा रहा था और एक चन्द्रमा की चन्द्रिका के लिए एक संसार के लिए रूकने को तैयार नहीं था।
- मालती ने रोते हुए शिशु को मुझसे लेने के लिए हाथ बढ़ाते हुए कहा, “इसको चोटें लगती ही रहती है, रोज ही गिर पड़ता है।
प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट करें-मुझे ऐसा लग रहा था कि इस घर पर जो छाया घिरी हुई है, वह अज्ञात रहकर भी मानो मुझे वश में कर रही है, मैं भी वैसा ही नीरस निर्जीव-सा हो रहा हूँ जैसे हाँ जैसे…..यह घर जैसे मालती।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से लेखक वातावरण, परिस्थिति और उसके प्रभाव में ढलते हुए एक गृहिणी के चरित्र का चित्रण अत्यन्त कलात्मकता रीति से किया है। अतिथि तो मालती के घर में कई वर्षों बाद कुछ समय के लिए आया है पर अतिथि को लगता है कि उस घर पर कोई काली छाया मँडरा रही है। उसे अनुभव होता है कि इस घर पर जो छाया घिरी हुई है वह अज्ञात रह कर मानों मुझे भी वश में कर रही है मैं भी वैसा ही नीरस निर्जीव सा हो रहा हूँ जैसे हाँ-जैसे यह घर जैसे मालती। लगता है कि अतिथि भी उस काली छाया का शिकार हो गया है, जो उस घर पर मँडरा रही है। यहाँ मालती के अन्तर्द्वन्द्व के साथ अतिथि का अन्तर्द्वन्द्व भी चित्रित हुआ है। उस घर की जड़ता, नीरसता, ऊबाहट ने जैसे अनाम अतिथि को भी आच्छादित कर लिया है। अतिथि भी घर की जड़ता का शिकार हो जाता है।
प्रश्न 8.
‘तीन बज गए’, ‘चार बज गए’, ‘ग्यारह बज गए’, कहानी में घंटे की इन खड़कों के साथ-साथ मालती की उपस्थिति है। घंटा बजने का मालती से क्या संबंध है?
उत्तर-
‘तीन बज गए’ ‘चार बज गए’, ‘ग्यारह बज गए’ से लगता है कि मालती प्रत्येक घंटा मिनती रहती है। समय उसके लिए पहाड़ जैसा है। एक घंटा बीतने पर उसे लगता हे चलो एक मनहूस घंटा तो बीता। घर में नौकर नहीं है तो बर्तन माँजने के लिए पानी चाहिए जो रोज ही वक्त पर नहीं आता है। मालती के इस कथन में कितनी विवशता है” रोज ही होता है आज शाम को सात बजे आएगा। “उस घर में बच्चे का रोना, उसके द्वारा प्रत्येक घंटा की गिनती करना, महेश्वर का सुबह, शाम डिस्पेन्सरी जाना सब कुछ एक जैसा है। यह सब कुछ एक जैसा उसके एक ढर्रे पर चल रही नीरस, ऊबाउ जिन्दगी का परिणाम है कि वह घंटे गिनने को मजबूर है। जैसे ही उसका घंटा पार होता है थोड़ी वह राहत महसूस करती है।
प्रश्न 9.
अभिप्राय स्पष्ट करें :
(क) मैंने देखा, पवन में चीड़ के वृक्ष….गर्मी में सूखकर मटमैले हुए चीड़ के वृक्ष धीरे-धीरे गा रहे हों…….कोई राग जो कोमल है, किन्तु करुण नहीं अशांतिमय है, उद्वेगमय नहीं।
(ख) इस समय मैं यही सोच रहा था कि बड़ी उद्धत और चंचल मालती आज कितनी सीधी हो गई है, कितनी शांत और एक अखबार के टुकड़े को तरसती है…..यह क्या…यह.
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्तियाँ रोज शीर्षक कहानी से उद्धत है। इसमें विद्वान लेखक अज्ञेय जी ने प्रकृति के माध्यम से जीवन के उन पक्षों का रहस्योद्घाटन करने की कोशिश की गई जिससे मानव जीवन प्रभावित है। इन पंक्तियों में लेखक द्वारा चाँदनी का आनन्द लेना, सोते हुए बच्चे का पलंग से नीचे गिर जाना, ऐसे प्रसंग हैं जो नारी के जीवन को विषम स्थिति के सूचक हैं। लेखक द्वारा प्रकृति से जुड़कर नारी की अन्तर्दशाओं को देखना एक सूक्ष्म निरीक्षण है। चीड़ के वृक्ष का गर्मी से सूखकर मटमैला होना मालती के नीरस जीवन का प्रतीक है।
चीड़ के वृक्ष जो धीरे-धीरे गा रहे हैं कोई राग जो कोमल है यह नारी के कोमल भावनाओं के प्रतीक है। किन्तु करुण नहीं अशान्तिमय है किन्तु उद्वेगमय नहीं। यह मालती के नीरस जीवन का वातावरण से समझौता का प्रतीक है। हमें यह जानना चाहिए कि जहाँ उद्वेग होगी, वहीं सरसता होगी। परन्तु मालती के जीवन में सरसता नहीं है। वह जीवन के एक ढर्रे पर रोज-रोज एक तरह का काम करने, एकरस जीवन, उसकी सहनशीलता आदि उसके जीवन को ऊबाऊ बनाते हैं। मालती के लिए यह एक त्रासदी है। जहाँ नारी की आशा-आकांक्षा सब एक घुटनभरी जिन्दगी में कैद हो जाती है।
नारी के जीवन में जो राग-रंग होने चाहिए यहाँ कुछ नहीं है। यहाँ दुख की स्थिति यह है कि घुटनभरी जिन्दगी को सरल बनाने के बजाए उससे समझौता कर लेती है। यही उसके अशान्ति का कारण है। मालती को अपना जीवन मात्र घंटों में दिखाई देता है। वह घंटों से छूटने का प्रयास करने के बजाय उसके निकलने पर थोड़ी राहत महसूस तो करती है। परन्तु घंटे के फिर आगे आ जाने पर नीरस हो जाती है। यही राग है जो कोमल है, किन्तु करुण नहीं, अशान्तिमय है।
मालती की जिजीविषा यदा-कदा प्रकट होती है जो समझौते और परिस्थितियों के प्रति सहनशीलता का है। इसके मूल में उसकी पति के प्रति निष्ठा और कर्तव्यपरायणता को अभिव्यक्त करती है। वह भी परंपरागत सोच की शिकार है जो इसमें विश्वास करती है कि यही उसके
जीवन का सच है, इससे इतर वह सोच भी नहीं सकती। यही कारण है उसके दाम्पत्य जीवन में रोग की कमी व्यजित होती है।
(ख) प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रतिष्ठित साहित्यकार अज्ञेय द्वारा रचित रोज शीर्षक पाठ से उद्धृत है। प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से लेखक मालती के बचपन के दिनों को याद करता है कि मालती कितनी चंचल लड़की थी। जब हम स्कूल में भरती हुए थे तो हम हाजिरी हो चुकने के बाद चोरी से क्लास से भाग जाते थे और दूर के बगीचों के पेड़ों पर चढ़कर कच्ची अमियाँ तोड़-तोड़ खाते थे।।
मालती पढ़ती भी नहीं थी, उसके माता-पिता तंग थे। लेखक इसी प्रसंग से जुड़ा एक वाक्य सुनाता है कि मालती के पिता ने एक किताब लाकर पढ़ने को दी। जिसे प्रतिदिन 20-20 पेज. पढ़ना था। मालती रोज उतना पन्ना फाड़ते जाती थी। इस प्रकार पूरी किताब फाड़कर फेंक डाली।
लेखक उपर्युक्त बातों के आलोक में आज की मालती जिसकी शादी हो गई। और उसके बच्चे भी हैं, उसमें आये बदलाव को लेकर चिंतित है। आज मालती कितनी सीधी हो गई है। जिंदगी एक दर्रे में होने के कारण मालती यंत्रवत कर्त्तव्यपालन को मजबूत है। लेखक ने देखा कि पति महेश्वर ने मालती को आम लाने के लिए कहा। आम अखबार के एक टुकड़े में लिपटे थे। अखबार का टुकड़ा सामने आते ही मालती उसे पढ़ने में ऐसी तत्लीन हो गयी है, मानो उसे अखबार पहली बार मिला हो। इससे पता चलता है कि वह अपनी सीमित दुनिया से बाहर निकलकर दुनिया के समाचार जानने को उत्सुक है। वह अखबार के लिए भी तरस गई थी। उसके जीवन के अनेक अभावों में अखबार का अभाव भी एक तीखी चुभन दे गया। यह जीवन की जड़ता के बीच उसकी जिज्ञासा और जीवनेच्छा का प्रतीक है। इस तरह लेखक एक मध्यवर्गीय नारी को अभावों में भी जीने की इच्छा का संकेत देखता है और जीवन संघर्ष की प्रेरणा देता है।
प्रश्न 10.
कहानी के आधार पर मालती के चरित्र के बारे में अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत काहनी ‘रोज’ की मालती मुख्य पात्र तथा नायिका है। बचपन में वह बंधनों से पड़े उन्मुक्त और स्वच्छंद रहकर चंचल हिरणी के समान फुदकती रहती है। उसका रूप-लावण्य बरबस ही लोगों को आकर्षित करता है। महज चार-पाँच वर्षों के अन्तराल में ही विवाहिता है, एक बच्चे का माँ भी है। उसके जीवन में मूलभूत परिवर्तन सहज ही दृष्टिगोचर होता है। वह वक्त के साथ समझौता करनेवाली कुशल गृहिणी तथा वात्सल्य की वाटिका है। चार साल पहले मालती उद्धात और चंचल था। विवाहोपरान्त उसने अपने जीवन को यंत्रवत् बना लिया है। उसका शरीर जीर्ण-शीर्ण होकर कान्तिविहीन हो गया है। वह शांत और सीधी बन गई है। वह अपने जीवन को परिवार की धुरी पर नाचने के लिए छोड़ देती है। मालती भारतीय मध्यवर्गीय समाज के घरेलू स्त्री के जीवन और मनोदशा का सजीव प्रतीक केन्द्रित करने के लिए बाध्य करती है।
प्रश्न 11.
बच्चे से जुड़े प्रसंगों पर ध्यान देते हुए उसके बारे में अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
रोज’ शीर्ष कहानी की नायिका मालती का पुत्र टिटी बाल-सुलभ रस से परिपूरित है। यद्यपि वह दुर्बल, बीमार तथा चिड़िचिड़ा है तथापि वह ममता को एकांकी जीवन का आधार से रात ग्यारह बजे तक घर के कार्यों में अपने को व्यस्त रखती है। अपरिचितों को देखकर बच्चों . की प्रतिक्रिया का सजीव जिक्र इन पंक्तियों से स्पष्ट होता है ___मैंने पंक्तियों के अध्ययन लेखक का मनोविज्ञान पकड़ को भी दर्शाता है। वास्तव में बच्चा एकांत समय का बड़ा ही सारगर्भित समय बिताने में सोपान का कार्य करता है। बच्चे के साथ अपने को मिलाकर एक अनन्य आनन्द की प्राप्ति होती है। बच्चे की देखभाल करने के लिए माता-पिता को ध्यान देना पड़ता है और इससे इनमें सजगता आती है। ____वास्तव में बच्चा मानव-जीवन की अमूल्य निधि है। बच्चे में घुल-मिलकर मनुष्य अपने दुष्कर समय को समाप्त कर सकता है।
रोज भाषा की बात
प्रश्न 1.
उद्वेगम, शान्तिमय शब्दों में ‘मय’ प्रत्यय लगा हुआ है। ‘मय’ प्रत्यय से पाँच अन्य शब्द बनाएँ।
उत्तर-
‘मय’ प्रत्यय से बने अन्य शब्द-जलमय, दयामय, ध्यानमय, ज्ञानमय, भक्तिमय।
प्रश्न 2.
दिए गए वाक्यों में कारक चिह्न को रेखांकित करें और वह किस कारक का चिह्न है, यह भी बताएँ।
(क) थोड़ी देर में आ जाएँगें।
(ख) मैं कमरे के चारों तरफ देखने लगा।
(ग) हम बचपन से इकट्ठे खेले हैं।
(घ) तभी किसी ने किवाड़ खटखटाए।
(ङ) शाम को एक-दो घंटे फिर चक्कर लगाने के लिए जाते हैं।
(च) एक छोटे क्षण भर के लिए मैं स्तब्ध हो गया।
उत्तर-
(क) में-अधिकरण कारक।
(ख) के-संबंध कारक।
(ग) से-करण कारक।
(घ) ने-कर्ता कारक।
(ङ) को, के लिए-सम्प्रदान कारक।
(च) के लिए-सम्प्रदान कारक।
प्रश्न 3.
उसने कहा, “आ जाओ।” यहाँ “आ जाओ” संयुक्त क्रिया है, पाठ से ऐसे पाँच वाक्य चुनें जिनमें संयुक्त क्रिया का प्रयोग हुआ हो।
उत्तर-
उसने कहा “आ जाओ” में संयुक्त क्रिया है। पाठ से ऐसे पाँच वाक्य निम्नलिखित हैं जिनमें संयुक्त क्रिया है
- कोई आता-जाता है तो नीचे से मँगा लेते हैं।
- तुम कुछ पढ़ती-लिखती नहीं?
- एक काँटा चुभा था, उसी से हो गया।
- हर दूसरे-चौथे दिन एक केस आ जाता है।
- वह मचलने लगा और चिल्लाने लगा।
प्रश्न 4.
आपने दिगंत (भाग-1) में प्रेमचन्द की कहानी ‘पूस की रात’ पढ़ी थी, ‘पूस की रात’ की भाषा और शिल्प को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत कहानी की भाषा और शिल्प पर विचार कीजिए। दोनों कहानीकारों में इस आधार पर भिन्नता के कुछ बिन्दुओं को पहचानिए और उसे कक्षा में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कहानी की भाषा और शिल्प ‘पूस की रात’ के समान ही सरल, सहज तथा प्रसंगानुकूल है। भाषा में कहीं भी ठहराव की स्थिति नहीं है और वह कथ्य को प्रवाह के साथ आगे बढ़ाती है। भाषा में विभिन्न प्रकार के शब्दों का प्रयोग है। मुहावरों के प्रयोग से भावों को सरलतापूर्वक अभिव्यक्त किया है। संवाद शैली के कारण वाक्य छोटे-छोटे हैं जिससे भाषा का प्रवाह दुगुना हो गया है। चित्रात्मकता, भावानुकूलता तथा काव्यात्मकता जैसे गुण भी भाषा में विद्यमान हैं। वर्णनात्मक शैली के प्रयोग से कथ्य को बिलकुल सरल बना दिया गया है।
दोनों कहानीकारों की भाषा में भिन्नता के कुछ बिन्दु शब्द प्रयोग- रोज’ आधुनिक परिवेश पर आधारित कहानी है। इसलिए इसमें देशज शब्दों का प्रयोग कम है जबकि ‘पूस की रात’ में देशज शब्दों का भरपूर प्रयोग है।
संवादात्मक शैली-‘रोज’ कहानी में संवादात्मक शैली का प्रयोग प्रमुखता से किया गया है जबकि ‘पूस की रात’ में सीमित संवाद है।
आम बोलचाल की भाषा-दोनों ही कहानियों में आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया गया है। लेकिन जहाँ ‘रोज’ कहानी में भाषा शहरी परिवेश की है तो वहीं ‘पूस की रात’ में भाषा ग्रामीण परिवेश पर आधारित है।
छात्र अन्य बिन्दु खोजकर कक्षा में प्रस्तुत करें।
प्रश्न 5.
नीचे दिए गए वाक्यों में अव्यय चुनें
(क) अब के नीचे जाएँगे तो चारपाइयाँ ले आएँगे।
(ख) एक बार तो उठकर बैठ भी गया था, पर तुरंत ही लेट गया।
(ग) टिटी मालती के लेटे हुए शरीर से चिपट कर चुप हो गया था, यद्यपि कभी एक-आध सिसकी उसके छोटे से शरीर को हिला देती थी।
उत्तर-
(क) तो
(ख) तो, पर
(ग) यद्यपि।
रोज लेखक परिचय सच्चिदानन्द हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय (1911-1987)
जीवन-परिचय :
हिन्दी के आधुनिक साहित्य में प्रमुख स्थान रखने वाले साहित्यकार सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय का जन्म 7 मार्च, सन् 1911 के दिन कुशीनगर, उत्तर प्रदेश के कसेया नामक स्थान पर हुआ। वैसे इनका मूल निवास कर्तारपुर, पंजाब था। इनकी माता का नाम व्यंती देवी और पिता का नाम हीरानंद शास्त्री था जो कि प्रख्यात पुरातत्ववेत्ता थे। अज्ञेय . जी की प्रारम्भिक शिक्षा लखनऊ में घर पर ही हुई। सन् 1925 में इन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की तथा सन् 1927 में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से इंटर किया। इसके उपरांत सन् 1929 में फोरमन कॉलेज, लाहौर, पंजाब से बी.एससी. किया और फिर लाहौर से एम.ए. (अंग्रेजी, पूवार्द्ध) किया। क्रान्तिकारी आन्दोलनों में भाग लेने तथा गिरफ्तार हो जाने के कारण इनकी पढ़ाई बीच में ही रूक गई।
इनका व्यक्तित्व बड़ा ही प्रभावशाली था तथा ये सुन्दर व गठीले शरीर के स्वामी थे। इनका स्वभाव एकांतप्रिय अंतर्मुखी था तथा ये एक अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे। गंभीर, चिन्तनशील एवं मितभाषी व्यक्तित्व के स्वामी अज्ञेय जी अपने मौन तथा मितभाषण के लिए प्रसिद्ध थे। पिताजी का तबादला बार-बार होते रहने के कारण इन्हें परिभ्रमण का संस्कार बचपन में ही मिला था। इन्हें संस्कृत, अंग्रेजी, फारसी, तमिल आदि कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। ये बागवानी, पर्यटन आदि के अलावा कई प्रकार के पेशेवर कार्यों में दक्ष थे। इन्होंने यूरोप, एशिया, अमेरिका सहित कई देशों की साहित्यिक यात्राएँ भी की थी।
अज्ञेय जी को साहित्य अकादमी, भारतीय ज्ञानपीठ, मुगा (युगास्लाविया) का अंतर्राष्ट्रीय स्वर्णमाल आदि पुरस्कार प्रदान किए गए। देश-विदेश के कई विश्वविद्यालयों में इन्हें ‘विजिटिंग प्रोफेसर’ के रूप में आमंत्रित किया गया। इन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं आदि में कार्य किया। जैसे-सैनिक (आगरा), विशाल भारत (कोलकाता), प्रतीक, (प्रयाग), दिनमान (दिल्ली), नया प्रतीक (दिल्ली), नवभारत टाइम्स (नई दिल्ली), थॉट, वाक एवरीमैंस (अंगेजी में सम्पादन)। साहित्य के इस महान साधक का निधन 4 अप्रैल, सन् 1987 के दिन हुआ।
रचनाएँ :
अज्ञेय जी अद्भुत प्रतिभा के स्वामी थे। इन्होंने दस वर्ष की अवस्था से ही कविता लिखना आरम्भ कर दिया था। वहीं बचपन में ही खेलने के उद्देश्य से ‘इन्द्रसभा’ नामक नाटक लिखा। ये घर में एक हस्तलिखित पत्रिका ‘आनन्दबन्धु’ निकालते थे। इन्होंने सन् 1924-25 में अंग्रेजी में एक उपन्यास लिखा। सन् 1924 में ही इनकी पहली कहानी इलाहाबाद की स्काउट पत्रिका ‘सेवा’ में प्रकाशित हुई और इसके बाद इन्होंने नियमित रूप से लेखन कार्य प्रारम्भ कर दिया। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
कहानी संकलन-विपथगा, जयदोल, ये तेरे प्रतिरूप, छोड़ा हुआ रास्ता, लौटती पगडंडियाँ आदि।
उपन्यास-शेखर : एक जीवनी (प्रथम भाग 1941), द्वितीय भाग 1944), नदी के द्वीप (1952), अपने-अपने अजनबी (1961)।
नाटक-उत्तर प्रियदर्शी (1967)।
कविता संकलन-भग्नदूत, चिन्ता, इत्यलम्, हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, आँगन के पार द्वार; कितनी नावों में कितनी बार, सदानीरा, ऐसा कोई घर आपने देखा है आदि।
यात्रा साहित्य-अरे यायावर रहेगा याद (1953), एक बूंद सहसा उछली (1961)। निबन्ध-त्रिशंकु, आत्मनेपद, आलवाल, अद्यतन, भवंती, अंतरा, शाश्वती, संवत्सर आदि।
रोज पाठ के सारांश।
कहानी के पहले भाग में मालती द्वारा अपने भाई के औपचारिक स्वागत का उल्लेख है जिसमें कोई उत्साह नहीं है, बल्कि कर्तव्यपालन की औपचारिकता अधिक है। वह अतिथि का कुशलक्षेम तक नहीं पूछती, पर पंखा अवश्य झलती है। उसके प्रश्नों का संक्षिप्त उत्तर देती है। बचपन की बातूनी चंचल लड़की शादी के दो वर्षों बाद इतनी बदल जाती है कि वह चुप रहने लगती है। उसका व्यक्तित्व बुझ-सा गया है। अतिथि का आना उस घर के ऊपर कोई काली छाया मँडराती हुई लगती है।
मालती और अतिथि के बीच के मौन को मालती का बच्चा सोते-सोते रोने से तोड़ता है। वह बच्चे को संभालने के कर्तव्य का पालन करने के लिए दूसरे कमरे में चली जाती है। अतिथि एक तीखा प्रश्न पूछता है तो उसका उत्तर वह एक प्रश्नवाचक हूँ से देती है। मानो उसके पास कहने के लिए कुछ नहीं है। यह आचरण उसकी उदासी, ऊबाहट और यांत्रिक जीवन की यंत्रणा को प्रकट करता है। दो वर्षों के वैवाहिक जीवन के बाद नारी कितनी बदल जाती है वह कहानी के इस भाग में प्रकट हो जाती है। कहानी के इस भाग में मालती कर्त्तव्यपालन की औपचारिकता पूरी करती प्रतीत होती है पर से कर्त्तव्यपालन में कोई उत्साह नहीं है जिसमें उसके नीरस, उदास, यांत्रिक जीवन की ओर संकेत करता है। अतिथि से हुए उसके संवादों में भी एक उत्साहहीनता और ठंढापन है। उसका व्यवहार उसकी द्वन्दग्रस्त मनोदशा का सूचक है। इस प्रकार कहानीकार बाह्य स्थिति और मन:स्थिति के संश्लिष्ट अंकन में सफल हुआ है।
रोज कहानी के दूसरे भाग में मालती का अंतर्द्वन्द्वग्रस्त मानसिक स्थिति, बीते बचपन की स्मृतियों में खोने से एक असंज्ञा की स्थिति, शारीरिक जड़ता और थकान का कुशल अंकन हुआ है। साथ ही उसके पति के यांत्रिक जीवन, पानी, सब्जी, नौकर आदि के अभावों का भी उल्लेख हुआ है। मालती पति के खाने के बाद दोपहर को तीन बजे और रात को दस बजे ही भोजन करेगी और यह रोज का क्रम है। बच्चे का रोना मालती का देर से भोजन करना, पानी का नियमित रूप से वक्त पर न आना, पति का सबेरे डिस्पेन्सरी जाकर दोपहर को लौटना और शाम को फिर डिस्पेन्सरी में रोगियों को देखना यह सब कुछ मालती के जीवन की सूचना देता है अथवा यह बताता है कि समय काटना उसके लिए कठिन हो रहा है।
इस भाग में मालती, महेश्वर, अतिथि के बहुत कम क्रियाकलापों और अत्यन्त संक्षिप्त संवादों के अंकन से पात्रों की बदलती मानसिक स्थितियों को प्रस्तुत किया गया है जिससे यही लगता है कि लेखक का ध्यान बाह्य दृश्य के बजाए अंतर्दृश्य पर अधिक है। कहानी के तीसरे भाग में महेश्वर की यांत्रिक दिनचर्या, अस्पताल के एक जैसे ढर्रे रोगियों की टांग काटने या उसके मरने के नित्य चिकित्सा कर्म का पता चलता है, पर अज्ञेय का ध्यान मालती के जीवन संघर्ष को चित्रित करने पर केन्द्रित है।
महेश्वर और अतिथि बाहर पलंग पर बैठकर गपशप करते रहे और चाँदनी रात का आनन्द लेते रहे पर मालती घर के अन्दर बर्तन मांजती रही, क्योंकि यही उसकी नियति थी।
बच्चे का बार-बार पलंग से नीचे गिर पड़ना और उस पर मालती की चिड़चिड़ी प्रतिक्रिया मानो पूछती है वह बच्चे को संभाले या बर्तन मले? यह काम-नारी को ही क्यों करना पड़ता है? क्या यही उसकी नियति है? इस अचानक प्रकट होने वाली जीवनेच्छा के बावजूद कहानी का मुख्य स्वर चुनौती के बजाए समझौते का और मालती की सहनशीलता का है। इसमें नारी जीवन की विषम स्थितियों का कुशल अंकन हुआ है। बच्चे की चोटें भी मामूली बात है, क्योंकि वह रोज इन चोटों को सहती रहती है। ‘रोज’ की ध्वनि कहानी में निरन्तर गूंजती रहती है।
कहानी ‘का अंत ‘ग्यारह’ बजने की घंटा-ध्वनि से होता है और तब मालती करुण स्वर में कहती है “ग्यारह बज गए” उसका घंटा गिनना उसके जीवन की निराशा और करुण स्थिति कान्द्रत ह। को प्रकट करता है। कहानी एक रोचक मोड़ पर वहाँ पहुँचती है, जहाँ महेश्वर अपनी पत्नी को आम धोकर लाने का आदेश देता है। आम एक अखबार के टुकड़े में लिपटे हैं। जब वह अखबार का टुकड़ा देखती है, तो उसे पढ़ने में तल्लीन हो जाती है। उसके घर में अखबार का भी अभाव है। वह अखबार के लिए भी तरसती है। इसलिए अखबार क टुकड़ा हाथ में आने पर वह उसे पढ़ने में तल्लीन हो जाती है।
यह इस बात का सूचक है कि अपनी सीमित दुनिया से बाहर निकल कर वह उसके आस-पास की व्यापक दुनिया से जुड़ना चाहती है। जीवन की जड़ता के बीच भी उसमें कुछ जिज्ञासा बनी है जो उसकी जिजीविषा की सूचक है। मालती की जिजीविषा के लक्षण कहानी में यदा-कदा प्रकट होते हैं, पर कहानी का मुख्य स्वर चुनौती का नहीं है, बल्कि समझौते और परिस्थितियों के प्रति सहनशीलता का है जो उसके मूल में उसकी पति के प्रतिनिष्ठा और कर्त्तव्यपरायणता को अभिव्यक्त करता है। वह भी परंपरागत सोच की शिकार है जो इसमें विश्वास करती है कि यह उसके जीवन का सच है।
इससे इतर वह सोच भी नहीं सकती। जिस प्रकार से समाज के सरोकारों से वह कटी हुई है उसे रोज का अखबार तक सीमित नहीं है। जिससे अपने ऊबाउपन जीवन से दो क्षण निकालकर बाहर की दुनिया में क्या कुछ घटित हो रहा है उससे जुड़ने का मौका मिल सके। ऐसी स्थिति में एक आम महिला से अपने अस्तित्व के प्रति चिन्तित होकर सोचते उसके लिए संघर्ष करने अथवा ऊबाऊ जीवन से उबरने हेतु जीवन में कुछ परिवर्तन लाने की उम्मीद ही नहीं बचती।
BSEB Textbook Solutions PDF for Class 12th
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