BSEB Class 12 Hindi ठिठुरता हुआ गणतंत्र Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Hindi ठिठुरता हुआ गणतंत्र Book Answers |
Bihar Board Class 12th Hindi ठिठुरता हुआ गणतंत्र Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 12th |
Subject | Hindi ठिठुरता हुआ गणतंत्र |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 12th Hindi ठिठुरता हुआ गणतंत्र Textbooks Solutions with Answer PDF Download
Find below the list of all BSEB Class 12th Hindi ठिठुरता हुआ गणतंत्र Textbook Solutions for PDF’s for you to download and prepare for the upcoming exams:ठिठुरता हुआ गणतंत्र अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’ किस तरह की रचना है?
उत्तर-
‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’ व्यंग्यात्मक रचना है।
प्रश्न 2.
हरिशंकर परसाई का जन्म कब और कहाँ हआ था?
उत्तर-
हरिशंकर परसाई का जन्म 1924 ई. में इटारसी (मध्य प्रदेश) में हुआ था।
प्रश्न 3.
गणतंत्र दिवस समारोह में हर राज्य की ओर से क्या निकलता है?
उत्तर-
गणतंत्र दिवस समारोह में हर राज्य की ओर से झाँकी निकलती है।
प्रश्न 4.
लेखक ने गणतंत्र दिवस का जलसा दिल्ली में कितनी बार देखा है?
उत्तर-
चार बार।
प्रश्न 5.
हरिशंकर परसाई ने हिन्दी में एम. ए. कहाँ से पास किया था?
उत्तर-
नागपुर विश्वविद्यालय।
प्रश्न 6.
“रानी नागफनी की कहानी” किसकी रचना है?
उत्तर-
हरिशंकर परसाई।
ठिठुरता हुआ गणतंत्र लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
हरिशंकर परसाई ने “ठिठुरता हुआ गणतंत्र” के संबंध में क्या तर्क प्रस्तुत किया, स्पष्ट करें?
उत्तर-
ठिठुरता हुआ गणतंत्र एक व्यंग्यात्मक निबंध है। वह लिखते हैं कि हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर मौसम खराब रहता है। शीत लहर आती है। बादल छा जाते हैं बूंदा-बाँदी होती और सूर्य छिपा रहता है। हर गणतंत्र दिवस पर मौसम ऐसा ही धूपहीन ठिठुरन वाला होता है।
प्रश्न 2.
गणतंत्र दिवस को सूर्य की किरण में मनाने के लिए कांग्रेसी मंत्री की क्या भावना थी? स्पष्ट करें।
उत्तर-
हरिशंकर परसाई जी एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार हैं। उन्होंने सत्ता पक्ष पर बैठे कांग्रेसी मंत्री की भावना पर व्यंग्य करते हुए लिखा है कि जब यह प्रश्न मंत्री जी से पूछा गया कि हर गणतंत्र दिवस में सूर्य छिप क्यों जाता है? मंत्री जी ने बताया कि गणतंत्र दिवस को सूर्य की किरणों में मनाने की कोशिश हो रही है। इतने बड़े सूर्य को बाहर लाना या उसके सामने से बादलों को हटाना आसान नहीं है। हमें सत्ता में रहने के लिए कम-से-कम सौ वर्ष तो दीजिए।
प्रश्न 3.
कांग्रेस के विभाजन से गणतंत्र दिवस किस प्रकार प्रभावित हो जाता है? स्पष्ट करें।
उत्तर-
जब हरिशंकर परसाई जी ने अपने मित्र कांग्रेसी मंत्री जी से यह पूछा कि आप यह दावा कि गणतंत्र दिवस पर सूर्य बादल से बाहर आएगा अब कमजोर क्यों दिखाई पड़ रहा है.?
तो मंत्री महोदय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “हम हर बार सूर्य को बादल से बाहर निकालने की कोशिश करते थे पर हर बार सिंडिकेट वाले अडंगा डाल देते थे अब हम वादा करते हैं कि सूर्य को अगले गणतंत्र दिवस पर बाहर अवश्य निकालकर दिखायेंगे।
प्रश्न 4.
गणतंत्र दिवस.के ठिठुरन के विषय में विभिन्न विचारधाराओं के राज नेताओं पर किस प्रकार का व्यंग्य किया गया है? स्पष्ट करें।
उत्तर-
भारतीय जनता पार्टी के एक पुराने जनसंघी नेता का कहना था कि “सूर्य गैर कांग्रेसी विचार पर अमल कर रहा है। यदि सूर्य वास्तव में सेक्युलर होता तो इस सरकार की गणतंत्र परेड में निकल आता। इस सरकार से आशा मत करो केवल हमारे राज्य में ही सूर्य निकलेगा।”
एक साम्यवादी ने कहा “यह सब सी.आई.ए. का षडयंत्र है। सातवें बड़े दल दिल्ली भेजे जाते हैं।
किसी महाशय ने अंग्रेजों पर दोष आरोपित किया कि यह उसकी ही चाल है कि स्वतंत्रता दिवस भारी बरसात में मनाना पड़ता है स्वतंत्रता दिवस भींगता है और गणतंत्र दिवस ठिठुरता है।
प्रश्न 5.
“ठिठुरता हुआ गणतंत्र’ में रेखांकित भारतीय गणतंत्र की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
“ठिठुरता हुआ गणतंत्र’ हिन्दी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचना है। इसमें देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर व्यंग्य किया गया है। लोग कहते हैं कि देश विकास कर रहा है जबकि देखने को मिलता है काले कारनामे। स्वतंत्रता दिवस पर होने वाली बरसाती मौसम की बरसात पर व्यंग्यकार कहता है-स्वतंत्रता दिवस भी तो बरसात में होता है। अंग्रेज आया।
बहुत चालाक हैं। वे हमें भर बरसात में स्वतंत्र करके चले गए। उस कपटी प्रेमी की तरह जो प्रेमिका का छाता भी साथ लेते गए।
स्वतंत्रता दिवस भींगता है और गणतंत्र दिवस ठिठुरता है।
गणतंत्र दिवस पर झाँकियाँ निकलती हैं। ये झाँकियाँ झूठ बोलती हैं। इनमें विकास कार्य, जन-जीवन, इतिहास इत्यादि दिखलाए जाते हैं। कवि कहते हैं कि गुजरात की झाँकी में गुजरात दंगे की चर्चा होनी चाहिए। आँध्रप्रदेश की झांकी में हरिजन जलाते हुए दिखाया जाना चाहिए। मध्य प्रदेश की झांकी में राहत कार्यों में घपले को दिखाना चाहिए और बिहार की झाँकी निकले तो चारा खाते हुए अफसर, मंत्री दिखलाया जाना चाहिए।
हर वर्ष घोषणा होती है; समाजवाद आ रहा है। लेकिन यह सत्य नहीं है। साठ वर्ष आजादी के हो गये हैं लेकिन समाजवाद अभी तक नहीं आया।
व्यंग्यकार एक सपना देखता है कि समाजवाद आ गया है और बस्ती के बाहर टीले पर खड़ा है। अब प्रश्न यह है कि कौन इसे पकड़कर लायेगा-समाजवाद या पूँजीवाद। कांग्रेस, कम्युनिस्ट या सोशलिस्ट कौन समाजवाद लाएँगे। समाजवाद इन्हीं के चक्कर में अटका हुआ है और परेशान है। जनता भी परेशान है और लहूलुहान होकर समाजवाद भी टीले पर खड़ा है।
जो लोग इस देश की रक्षा के लिए वचनबद्ध हैं वही उसे नष्ट कर रहे हैं। हम कहते हैं-सदा सत्य बोलेंगे। बोलते हैं सदा झूठ। झूठ को बढ़ावा देते हैं। सहकारिता पूर्ण ढंग से सरकारी खजाने को खाली करते हैं।
समाजवादी ही समाजवाद को आने से रोकते हैं। दिल्ली से फरमान जारी होता है कि समाजवाद देश के दौरे पर निकल रहा है। लेकिन यह कागज पर ही सत्य होगा। अफसर कहेंगे कि समाजवाद आएगा तो दंगा हो जाएगा। समाजवाद की सुरक्षा नहीं की जा सकती है।
अंत में व्यंग्यकार कहता है कि जनता के द्वारा न आकर समाजवाद दफ्तरों के द्वारा आ गया तो एक ऐतिहासिक घटना होगी।
अतः भारत का गणतंत्र (26 जनवरी) ठिठुरता हुआ आता है।
ठिठुरता हुआ गणतंत्र दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
“ठिठुरता हुआ गणतंत्र” का सारांश लिखें।
उत्तर-
हिन्दी के प्रतिबद्ध व्यंगकार के रूप में हरिशंकर परसाई अद्वितीय माने जाते हैं। जीवन के सभी क्षेत्रों में व्याप्त विसंगतियों पर तीव्र प्रहार करने वाले निर्भीक किन्तु बेहतर मानवीय-समाज के स्वप्नद्रष्टा परसाई जी हैं।
“ठिठुरता हुआ गणतंत्र” शीर्षक व्यंग्य रचना के माध्यक से परसाई जी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के इस दावे पर व्यंग्य किया है कि देश के सभी राज्य हर क्षेत्र में तीव्र गति से विकास कर रहे हैं। गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश की राजधानी दिल्ली में हर राज्य की ओर से दिखाई जानेवाली झांकियाँ अपने आप में एक बड़ा परिहास होती है। पिछले वर्ष राज्य अपने जिन काले कारनामों के लिए प्रसिद्ध हुए थे, राज्यों को उन्हीं की झाँकी दिखलानी चाहिए, लेकिन वे तो अपने विकास और श्रेष्ठता प्राप्त प्रदर्शित करने वाली झाँकियाँ दिखलाते हैं।
सारांशतः लेखक का कथन है कि भारत में केवल गणतंत्र ही ठिठुरन का शिकार नहीं है बल्कि समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, सहकारिता इत्यादि भी ठिठुर कर रह गई है। यहाँ छीना-झपटी और अफसरशाही का राज है। लेखक ने गणतंत्र दिवस पर वर्षा की बूंदाबूंदी हर साल होने के संबंध में विभिन्न पार्टी के नेता के बयान पर कितना तीखा व्यंग्य किया है वह काबिले तारीफ है।
प्रश्न 2.
हरिशंकर परसाई के जीवन और व्यक्तित्व का एक सामान्य परिचय प्रस्तुत करें।
उत्तर-
हरिशंकर रसाई हिन्दी साहित्य के एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार हैं। इनकी रचनाओं में जीवन के सभी क्षेत्रों में व्याप्त विसंगतियों पर तीव्र प्रहार मिलता है।
उनका जन्म 1924 ई. में इटारसी, (मध्यप्रदेश) के निकट जमानी गाँव में हुआ था। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय में हिन्दी में एम.ए. किया था, लेकिन किसी प्रकार की नौकरी नहीं की थी। उन्होंने स्वतंत्र लेखन का ही जीवनचर्या के रूप में चुना। जबलपुर से वसुधा नाम की साहित्यिक मासिक पत्रिका निकाली, घाटे के बावजूद कई वर्षों तक उसे चलाया, अंत में परिस्थितियों ने बंद करने पर लाचार कर दिया। वह अनेक पत्र-पत्रिकाओं में वर्षों तक नियमित स्तंभ लिखते रहे।
नई दुनिया में “सुनो भाई साधो, नई कहानियाँ में “पाँचवाँ कालम” और “उलझी उलझी” कल्पना में “और अंत में” तथा देशबंधु में पूछो परसाई से आदि रचनाएँ प्रकाशित हुई जिनकी लोकप्रियता के बारे में दो मत नहीं है।
हरिशंकर परसाई जी ने बड़ी संख्या में कहानियाँ, उपन्यास एवं निबन्ध भी लिखे हैं। वे केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार और मध्यप्रदेश का शिखर सम्मान आदि अनेक पुरस्कारों से भी सम्मानित हुए थे।
उनकी प्रकाशित पुस्तकें निम्नलिखित हैं-
- हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे (कहानी संग्रह),
- रानी नागफनी की कहानी (उपन्यास),
- तट की खोज (उपन्यास),
- तब की बात और थी (निबन्ध संग्रह),
- भूत के पाँव पीछे,
- बेईमानी की परत,
- सदाचार की ताबीज,
- शिकायत मुझे भी है,
- वैष्णव की फिसलन,
- विकलांग श्रद्धा का दौर इत्यादि।
प्रश्न 3.
हरिशंकर परसाई के “ठिठुरता हुआ गणतंत्र” शीर्षक निबंध की समीक्षा प्रस्तुत करें?
अथवा,
पठित निबंध, “ठिठुरता हुआ गणतंत्र” में हरिशंकर परसाई के विचारों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
“ठिठुरता हुआ गणतंत्र” में हरिशंकर परसाई जी की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर एक व्यंग्य है। वह इस दावे पर व्यंग्य करते हैं कि देश के सभी राज्य हर क्षेत्र में तीव्र गति से विकास कर रहे हैं। गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश की राजधानी दिल्ली में हर राज्य की ओर से दिखाई जानेवाली झाँकियाँ अपने आप में एक बड़ा परिहास होती हैं। पिछले वर्ष राज्य अपने जिन काले कारनामे के लिए प्रसिद्ध हुए थे। राज्यों को उन्हीं की झाँकी दिखलानी चाहिए, लेकिन वे तो अपने विकास और श्रेष्ठता प्रदर्शित करनेवाली झाँकियाँ दिखलाते हैं।
हरिशंकर परसाई जी लिखते हैं कि हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र समारोह के अवसर. पर मौसम खराब रहता है। शीत लहर आती है। बादल छा जाते हैं। बूंदा-बाँदी वर्षा होती है और सूर्य छिपा रहता है। हर गणतंत्र दिवस पर मौसम ऐसा ही धूपहीन ठिठुरने वाला होता है। इस रहस्य की खोज करने पर हरिशंकर परसाई जी को उनके एक मित्र कांग्रेसी मंत्री ने बताया कि गणतंत्र दिवस को सूर्य की किरणों को मनाने की कोशिश हो रही है। इतने बड़े सूर्य को बाहर लाना या उसके सामने से बादलों को हटाना आसान नहीं है। हमें सत्ता में रहने के लिए कम-से-कम सौ वर्ष तो दीजिए।
इस पर हरिशंकर परसाई जी कहते हैं कि हाँ ! सौ. वर्ष दिए, मगर हर साल उसका कोई छोटा कोना निकलता तो दिखना चाहिए। सूर्य कोई बच्चा तो नहीं जो अंतरिक्ष की कोख में अटका है जिसे एक दिन आपरेशन करके निकाला जा सकता है।
हरिशंकर परसाई जी कहते हैं कि कांग्रेस का दो भागों में विभाजन हो गया। सूर्य को गणतंत्र दिवस पर बाहर निकालने का दावा कुछ कमजोर होने लगा। जब फिर एक कांग्रेसी से पूछा गया तो उसने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “हम हर बार सूर्य को बादलों से बाहर निकालने की कोशिश करते थे, पर हर बार सिंडिकेट वाले अड्गा डाल देते थे। अब हम वादा करते हैं कि अगले गणतंत्र दिवस पर सूर्य को निकाल कर दिखाएँगे।”
कांग्रेसी नेता की यह बातें सुनकर एक सिंटिकेटी मित्र बोल पड़े .”ये लेडी प्रधानमंत्री कम्युनिस्टों के चक्कर में आ गई है वही उसे उकसा रहे हैं कि सूर्य को निकाले। उन्हें उम्मीद है कि बादलों के पीछे से उनका प्यारा “लाल सूरज निकलेगा” ! वास्तव में सूर्य निकालने की क्या जरूरत है? क्या बादलों को हटाने से काम नहीं चल सकता है?
इस बात को सुनते ही एक जनसंघी भाई जो अब भारतीय जनता पार्टी में हैं कहने लगे कि “सूर्य गैर कांग्रेसवाद पर अमल कर रहा है। यदि सूर्य सेक्युलर होता है तो इस सरकार की परेड में निकल आता। इस सरकार से आशा मत करो केवल हमारे राज्य में ही सूर्य निकलेगा”। इस प्रकार अनेक दृष्टिकोण से बातें आती रहीं एक साम्यवादी ने कहा, “यह सब सी. आई. ए. का षडयंत्र है। सातवें बेड़े से बादल दिल्ली भेजे जाते हैं।
यह भी कैसी आश्चर्य की बात है कि स्वतंत्रता दिवस पर भारी बरसात होती है। स्वतंत्रता दिवस भींगता है और गणतंत्र दिवस ठिठुरता है। ठिठुरते गणतंत्र दिवस के अवसर पर ओवर कोट से हाथ बाहर निकालना बहुत कठिन होता है लेकिन रेडियो से प्रसारित समाचार में यह कहा जाता है कि करतल (तालियों) की ध्वनि अर्थहीन होती है। परन्तु भारत तो “सत्यमेव जयते” का प्रचारक है। यहाँ झूठ बोलना पाप है। इसी प्रकार राज्यों की झाँकियाँ भी विकास की झूठी प्रचार करती दिखाई देती है।
भारत में केवल गणतंत्र दिवस ही ठिठुरन का शिकार नहीं है बल्कि समाजवाद, धर्म निरपेक्ष, सहकारिता इत्यादि भी ठिठुर कर रह गई है। यहाँ छीना-झपटी और अफसरशाही का राज है।
ठिठुरता हुआ गणतंत्र लेखक परिचय – हरिशंकर परसाई (1924-1995)
हरिशंकर परसाई का जन्म 1924 ई. में इटारसी (मध्य प्रदेश) के निकट जमानी गाँव में हुआ। नागपुर विश्वविद्यालय से एम. ए. हिन्दी की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने स्वतंत्र लेखन पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। उन्होंने ‘वसुधा’ नामक साहित्यिक पत्रिका का भी सम्पादन किया।
वे हिन्दी साहित्य के एक चर्चित व्यंग्यकार हैं। उनकी रचनाएँ कई. पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी प्रसिद्ध कहानी ‘सुनो भाई साधो’ नई दुनिया में, पाँचवाँ कलम, नई कहानियों में प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
- कहानी संग्रह : हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे।
- उपन्यास : रानी नागफनी, तट की खोज।
- निबंध संग्रह : तब की बात और थी।।
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