BSEB Class 12 Hindi जीवन का झरना Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Hindi जीवन का झरना Book Answers |
Bihar Board Class 12th Hindi जीवन का झरना Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 12th |
Subject | Hindi जीवन का झरना |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 12th Hindi जीवन का झरना Textbooks Solutions with Answer PDF Download
Find below the list of all BSEB Class 12th Hindi जीवन का झरना Textbook Solutions for PDF’s for you to download and prepare for the upcoming exams:जीवन का झरना अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
आरसी प्रसाद सिंह को किस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था?
उत्तर-
राजेन्द्र शिखर सम्मान।
प्रश्न 2.
आरसी प्रसाद सिंह ने मर जाना किसे कहा है?
उत्तर-
रुक जाने को।
प्रश्न 3.
आरसी प्रसाद के आरंभिक काव्य पर किस धारा की कविता का प्रभाव था?
प्रश्न 4.
जब गति ही जीवन है तो मृत्यु क्या है?
उत्तर-
स्थिरता।
प्रश्न 5.
प्रस्तुत कविता के अनुसार हमें जीवन में क्या करते रहना चाहिए?
उत्तर-
हमें जीवन में सुख-दुःख दोनों को सहज भाव से अपना कर सदा आगे बढ़ते रहना चाहिए।
प्रश्न 6.
मनुष्य को किसके समान सतत् गतिशील रहना चाहिए?
उत्तर-
निर्झर के समान।
प्रश्न 7.
कवि आरसी प्रसाद के आरंभिक काव्य पर किस छायावादी कवि का विशेष प्रभाव था?
उत्तर-
सुमित्रा नंदन पंत।
प्रश्न 8.
निर्झर और यौवन दोनों में कौन-सी मुख्य समानता है?
उत्तर-
आगे बढ़ना।
प्रश्न 9.
आरसी प्रसाद सिंह की प्रथम कविता संग्रह कौन-सी है?
उत्तर-
कलापी।
प्रश्न 10.
‘आँधी के पत्ते’ कहानी संग्रह किसकी रचना है?
उत्तर-
आरसी प्रसाद सिंह की।
जीवन का झरना लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
अर्थ लिखें
निर्झर में गति ही जीवन है, रुक जायेगी यह गति जिस दिन।
उस दिन मर जायेगा, जग-दुर्दिन की घड़ियाँ गिन-गिन।
उत्तर-
कवि आरसी प्रसाद कहते हैं कि निर्झर तथा जीवन दोनों के लिए गतिशीलता अनिवार्यः। है। जीवन में कर्म की प्रगतिशीलता ही उसे सार्थकता तथा जीवन्तता का आकर्षण प्रदान करती है। गतिशीलता के अवरुद्ध हो जाने या जीवन में ठहराव आ जाने का तात्पर्य संसार या जीवन के अस्तित्त्व पर ही खतरा होता है। ठहराव निर्झर तथा जीवन दोनों के लिए समान रूप से अंत या मृत्यु का सूचक होता है क्योंकि दोनों का धर्म समान है।
प्रश्न 2.
अर्थ स्पष्ट करें कब फूटा गिरि के अंतर से, किस अंचल से उतरा नीचे? किस घाटी से बहकर आया, समतल में अपने को खींचे?
उत्तर-
कवि आरसी प्रसाद सिंह कहते हैं कि झरने के विषय में यह निश्चित नहीं कहा जा सकता है कि पर्वत के अन्दर से वह कब फूटा और किन पहाड़ी भागों से होता हुआ नीचे आकर घाटियों के बीच से बहता हुआ समतल तक पहुँच गया। तात्पर्य यह कि कब और किसके ये प्रश्न झरने के विषय में कोई महत्त्व नहीं रखते हैं। महत्त्वपूर्ण यह है कि जल का प्रवाह पर्वत को भी फोड़कर उसके अंदर से बाहर आकर और दुर्गम पहाड़ी अंचलों को पार करता तथा घाटियों के बीच बहता हुआ समतल तक आ पहुँचा। जीवन की मस्ती भी इस तरह अपने वेग में काल और देश के बन्धनों.को महत्त्वहीन सिद्ध करती हुई प्रगति, आनन्द तथा कर्म के पथ पर लगातार बढ़ती जाती है।
प्रश्न 3.
अर्थ स्पष्ट करें
निर्झर में गति है, यौवन है, वह आगे बढ़ता जाता है।
धुन एक सिर्फ है, चलने की, अपनी मस्ती में गाता है।
उत्तर-
कवि आरसी प्रसाद सिंह इन पंक्तियों में निर्झर के आवाज से मस्तीपूर्ण जीवन की विशिष्टता का उद्घाटन करते हैं। कवि का कहना है कि निर्झर अपनी जलपूर्णता में पूरी गतिशीलता ये युक्त रहता है। वैसी अवस्था में, जवानी में भी गत्यात्मकता ही एकमात्र स्वभाव होना चाहिए। जिस तरह झरना अपने मस्तीपूर्ण गान, कल-कल निनाद और आगे बढ़ते जाने के अलावा अन्य कोई चिन्ता नहीं करता या लक्ष्य नहीं रखना, उसी तरह मनुष्य-जीवन का लक्ष्य सतत् विकास-पथ पर प्रगति करते जाना ही होना चाहिए। उसे अन्य तरह की चिन्ताओं में नहीं उलझना चाहिए।
प्रश्न 4.
अर्थ स्पष्ट कीजिए।
यह जीवन क्या है? निर्झर है,
मस्ती ही इसका पानी है।
सुख-दुख के दोनों तीरों से
चल रहा राह मनमानी है।
उत्तर-
मनुष्य का जीवन गतिशीलता का पर्याय है। गति ही जीवन है। यह निर्झर के समान गतिशील है। निर्झर में पानी बहता है। जीवन मस्ती-मौज में आगे बढ़ता है। जीवन प्रेम में आगे बढ़ता है।
मनुष्य के जीवन में सुख और दुख आते-जाते हैं। मानो जीवन के ये दो किनारे हैं। यह मनमानी सुख-दुख के मध्य गतिशील रहता है। निर्झर भी इसी तरह अपनी मंजिल की तरफ गतिशील रहता है।
‘जीवन-झरना’ में जीवन को झरने के समान गतिशील कवि ने माना है।
प्रश्न 5.
अर्थ स्पष्ट कीजिए।
‘लहरें उठती हैं, गिरती हैं,
नाविक तट पर पछताता है।
तब यौबन बढ़ता है आगे
निर्झर बढ़ता ही जाता है।’
उत्तर-
इन पंक्तियों में कवि कहता है कि निर्झर में लहरें उठती हैं, गिरती हैं। नाविक किनारे पर पछताता रहता है। झरना यौवन की तरह आगे बढ़ता रहता है। निर्झर गतिशील रहता है।
इसी तरह मनुष्य का जीवन भी गतिशील रहता है। इसमें भी लहर उठती-गिरती रहती हैं। यौवन रुकने का नाम नहीं है। यह बढ़ता ही जाता है। जीवन आगे बढ़ता ही रहता है।
प्रश्न 6.
अर्थ स्पष्ट कीजिए।
चलना है केवल चलना है;
जीवन चलता ही रहता है।
मर जाना है रुक जाना ही,
निर्झर यह झरकर कहता है।
उत्तर-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में कवि ने झरना से तुलना करते हुए गतिमय जीवन की कामना करता है। जीवन का मूल उद्देश्य है-गतिशील रहना। अगर कहीं रुकावट आ गयी तो समझो कि जीवन है ही नहीं। जीवन मृतप्राय हो गया। पथ में विराम का आ जाना ही मरण है, विनाश है। अत: जीवन सदैव गतिमय रहे। हम अनवरत अपने कर्तव्य पथं पर सदैव अग्रसर होते रहें, यही सच्चे जीवन की पहचान है। कवि के कहने का मूल भाव है कि जीवन मूल धर्म है-कर्त्तव्यनिष्ठता के साथ प्रगति पथ पर चलते रहना। यही जीवन की विशेषता है। गतिहीन होने का अर्थ है-मृत्यु को प्राप्त हो जाना। अतः मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के लिए मानवता के आदर्शों को स्थापित करने के लिए सदैव चलते रहना है।
प्रश्न 7.
अर्थ स्पष्ट करें-
निर्झर कहता है-“बढ़े चलो।
तुम पीछे मत देखो मुड़कर।”
यौवन कहता है-“बढ़े चलो!
सोचो मत होगा क्या चलकर।”
उत्तर-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में कवि ने मानव जीवन की तुलना झरना से करते हुए प्रेरित करता है। निर्द्वन्द झरने की तरह आगे बढ़ते चलो ! बढ़ते चलो ! कवि पुनः कहता है हे मानव ! तुम पीछे मुड़कर मत देखो। जवानी निर्भय होती है। वह कहती है कि आगे बढ़ते चलो, चलते चलो ! अवरोधों एवं आपदाओं की परवाह मत करो। परिणाम की चिंता मत करो। आगे बढ़ो ! तत्पर रहो। गतिमय बने रहो। उक्त कविता का मूल भाव यह है कि जीवन गतिमय रहे।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि आरसी प्रसाद सिंह के जीवन और व्यक्तित्त्व का एक संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करें।
उत्तर-
कवि आरसी प्रसाद सिंह का जन्म सन् 1911 ईस्वी में दरभंगा जिले के इरावत नामक ग्राम में हुआ था। सामान्य मध्यवर्गीय, पर कुलीन परिवार में जन्मे आरसी बाबू का नाम रामचन्द्र प्रसाद सिंह रखा गया था। जो कवि व्यक्तित्त्व और अंग्रेजी भाषा के प्रभाव से कालान्तर में आरसी हो गया। अंग्रेजी में रामचन्द्र प्रसाद सिंह का संक्षिप्त रूप और (R) और सी (C) वर्णों के सहारे लिखने की सुविधा ने इन दोनों वर्गों को एक में मिलाकर हिन्दी के सर्वधा भिन्न अर्थ वाले शब्द से जोड़कर आर. सी. बना दिया। रामचन्द्र आर. सी. बने और फिर आरसी के रूप में अपने को परिवर्तित कर लिया। आरसी का अर्थ होता है-आईना।
वैसे भी आरसी नाम किसी नारी का हो सकता है या कवि का। जो भी हो आर. प्रसाद में षष्ठी तत्पुरुष समास तो नहीं माना जा सकता है।
आरसी बाबू की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा बहुत आगे नहीं बढ़ पाई थी। वे मात्र इंटरमीडिएट कर सके थे। पर स्वाध्याय के बल पर हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, धर्म, दर्शन, पुराण, इतिहास आदि की उन्होंने प्रभूत विद्वता हासिल की है।
कोशी कॉलेज, खगड़िया में वे अनेक वर्षों तक हिन्दी प्राध्यापक भी रहे हैं। आरसी प्रसाद सिंह छायावादोत्तर हिन्दी कविता की स्वच्छंद धारा के एक महत्त्वपूर्ण कवि हैं उन्होंने शतदल, आजकल, कलापी, संचयिता, आरसी नई दिशा, पाञ्चजन्य, नंददास, प्रेमगीत, संजीवनी आदि अनेक महत्त्वपूर्ण काव्य-संग्रह हिन्दी को दिये हैं। यह कुशल कवि की ही नहीं व्यक्तित्त्व की भी पहली विशेषता है। सजीली केश राशि से युक्त कवि का गौरांग और लम्बा छरहरा शरीर आज भी ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। कुछ ही वर्ष पहले बिहार सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा एक लाख रुपये के राजेन्द्र शिखर सम्मान से आरसी बाबू सम्मानित किए गए हैं।
इनकी अब तक निम्नलिखित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं-
- आरसी,
- संचयिता,
- कलापी,
- नई दिशा,
- पाञ्चजन्य,
- जीवन और यौवन,
- पंच पल्लव,
- खोटा सिक्का
- काल रात्रि,
- एक प्याला चाय,
- आँधी के पत्ते इत्यादि।
प्रश्न 2.
श्री आरसी प्रसाद सिंह द्वारा रचित कविता “जीवन का झरना” का सारांश लिखिए।
उत्तर-
महाकवि आरसी प्रसाद सिंह ने “जीवन का झरना” शीर्षक कविता में हमेशा गतिशील रहने का संदेश दिया है। जीवन उस झरने के समान है जो अपने लक्ष्य तक पहुँचने की लगन लिए पथ की बाधाओं से मुठभेड़ करता बढ़ता ही जाता है गति ही जीवन है और स्थिरता मृत्यु। अतः मनुष्य को भी निर्झर के समान गतिमान रहना चाहिए। . “जीवन. और झरना” दोनों का स्वरूप और आचरण एक जैसा ही है। जिस प्रकार झरने के विषय में यह कहना कठिन है कि वह किस पहाड़ के हृदय से कब कहाँ-क्यों फुट पड़ा।
यह पहले किसी पतले से सोते के रूप में और फिर एक विशाल झरने के रूप में झरता हुआ समतल पर उतरकर दोनों किनारों के बीच एक विशाल नदी के रूप में बहने लगा। इसी प्रकार इस मानव जीवन में सहसा नहीं कहा जा सकता है कि यह ‘मानव जीवन’ कब, कैसे, क्यों प्रारंभ हुआ, कब धरती पर, मानवों के जीवन प्रवाह के रूप में उतर आया और सुख एवं दु:ख के दो किनारों के बीच निरंतर बहने लगा।
निर्झर अपनी जलपूर्णता में पूरी गतिशीलता से युक्त रहता है। वैसी अवस्था में, जवानी में भी सत्यात्मकतां ही एक मात्र स्वभाव होना चाहिए। जिस तरह झरना अपने मस्ती-पूर्णगान, कलकल निनाद और आगे बढ़ते जाने के अलावा अन्य कोई चिन्ता नहीं करता था लक्ष्य नहीं रखता, उसी तरह मनुष्य-जीवन का लक्ष्य सतत् विकास-पथ पर प्रगति करते जाना ही होना चाहिए। उसे अन्य तरह की चिन्ताओं में नहीं उलझना चाहिए।
यह कविता हमें याद दिलाती है कि जीवन में सुख-दुख दोनों को सहज भाव से अपनाते हुए हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए। हमें काम करने का उत्साह भर रहना चाहिए। आगे बढ़ने में विघ्न-बाधाएँ यदि आती हैं तो आएँ हम उनका जमकर सामना करें, उनपर काबू प्राप्त करें और अपनी मंजिल की ओर बढ़ चलें जैसा एक झरने की होती हैं। हमें भी वैसी मस्ती भरी रहनी चाहिए।
कवि का कहना है कि निर्झर तथा जीवन दोनों के लिए गतिशीलता अनिवार्य है। जीवन में कर्म प्रगतिशीलता ही उसे सार्थकता तथा जीवन्तता का आकर्षण प्रदान करती है। अन्यथा जीवित , अवस्था में होने के बावजूद मृत्यु बोधक स्थायित्व या ठहराव आ जायेगा।
निर्झर का प्रवाह रुक जाने का मतलब है उसकी स्रोत बन्द हो चुकी है और वैसी अवस्था में उसका अस्तित्त्व ही समाप्त हो जाता है। जीवन में भी कर्मगत गतिशीलता ही जीवन होने तथा सृष्टि अथवा संसार के विकास की मुख्य शर्त है। गतिशीलता के अवरुद्ध हो जाने या जीवन में ठहराव आ जाने का तात्पर्य संसार या जीवन के अस्तित्त्व पर ही खतरा होता है। ठहराव निर्झर तथा जीवन दोनों के लिए समान रूप से अंत या मृत्यु का सूचक होता है क्योंकि दोनों का समान धर्म है।
जीवन का झरना कवि-परिचय – आरसी प्रसाद सिंह
महाकवि आरसी प्रसाद सिंह का जन्म 1911 ई. में दरभंगा जिले के इरावत नामक गाँव में हुआ था। आरसी प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही सम्पन्न हुआ। आर्थिक निर्धनता के कारण वे उच्च शिक्षा से वंचित हो गये। अन्तर स्नातक की परीक्षा के बाद उनका पठन-पाठन बन्द हो गया लेकिन स्वाध्याय के बल पर उन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत, हिन्दी, दर्शनशास्त्र आदि की विद्वता हासिल की। – अपनी बहुमुखी प्रतिभा के बल पर आरसी बाबू कॉलेज, खगड़िया में हिन्दी के प्राध्यापक के पद पर कार्य किये। बिहार सरकार के राजभाषा विभाग ने उन्हें राजेन्द्र शिखर सम्मान से विभूषित किया। आस्सी प्रसाद ने हिन्दी साहित्य जगत को अनेक अनुपम रचनाओं से विभूषित किया।
उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
- शतदल
- आजकल
- कलापी
- संचयिता
- नई दिशा
- पाञ्चजन्य
- जीवन और यौवन
- पंच पल्लव
- खोटा सिक्का
- कालरात्रि
- एक प्याला चाय
- आँधी के पत्ते आदि।
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