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Saturday, June 18, 2022

BSEB Class 12 History Bhakti-Sufi Traditions Changes in Religious Beliefs and Devotional Texts Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th History Bhakti-Sufi Traditions Changes in Religious Beliefs and Devotional Texts Book Answers

BSEB Class 12 History Bhakti-Sufi Traditions Changes in Religious Beliefs and Devotional Texts Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th History Bhakti-Sufi Traditions Changes in Religious Beliefs and Devotional Texts Book Answers
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Bihar Board Class 12th History Bhakti-Sufi Traditions Changes in Religious Beliefs and Devotional Texts Textbooks Solutions PDF

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Bihar Board Class 12th History Bhakti-Sufi Traditions Changes in Religious Beliefs and Devotional Texts Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 12th
Subject History Bhakti-Sufi Traditions Changes in Religious Beliefs and Devotional Texts
Chapters All
Provider Hsslive


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Bihar Board Class 12 History भक्ति सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए(100-150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए कि सम्प्रदाय के समन्वय से इतिहासकार क्या अर्थ निकालते हैं?
उत्तर:
सम्प्रदाय के समन्वय का अर्थ:
इतिहासकारों के अनुसार विभिन्न पूजा प्रणालियों का एक-दूसरे में मिलन और सहिष्णुता की भावना ही संप्रदाय का समन्वय है। इतिहासकारों के विचार से इस विकास में दो प्रक्रियायें कार्य कर रही थीं। पहली पौराणिक ग्रंथों की रचना, संकलन और संरक्षण से ब्राह्मणीय विचारधारा के प्रचार की थी। ये ग्रंथ सरल संस्कृत छंदों में थे और स्त्रियों और शूद्रों द्वारा भी इन्हें पढ़ा जा सकता था।

दूसरी प्रक्रिया स्त्री, शूद्रों व समाज के अन्य वर्गों की आस्थाओं और आचरणों को ब्राह्मणों की स्वीकृति वाली और उसे एक नया रूप प्रदान करने की थी। समाज शास्त्रियों का विचार है कि सम्पूर्ण महाद्वीप में धार्मिक विचारधाराएँ और पद्धतियाँ एक-दूसरे के साथ संवाद की ही परिणाम हैं। इस प्रक्रिया का सबसे विशिष्ट उदाहरण पुरी (उड़ीसा) में दिखाई देता है। यहाँ मुख्य देवता को 12वीं शताब्दी तक आते-आते जगन्नाथ (सम्पूर्ण विश्व का स्वामी) विष्णु के रूप में प्रस्तुत किया गया।

प्रश्न 2.
किस हद तक उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली मस्जिदों का स्थापत्य स्थानीय परिपाटी और सार्वभौमिक आदर्शों का सम्मिश्रण है?
उत्तर:
कुछ सीमा तक उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली मस्जिदों का स्थापत्य स्थानीय परिपाटी और सार्वभौमिक आदर्शों का सम्मिश्रण दिखाई पड़ता है। उदाहरणार्थ-मस्जिदों इमारत का मक्का की ओर मेहराब (प्रार्थना का आला) के रूप में अनुस्थापन मंदिरों में मिलबार (व्यासपीठ) की स्थापना से दिखाई पड़ता है। अनेक छत और निर्माण के मामले में कुछ भिन्नता भी दिखाई पड़ती है।

केरल में तेरहवीं शताब्दी की एक मस्जिद की छत चौकोर है जबकि भारत में बनी कई मस्जिदों की छत गुम्बदाकार है। उदाहरणार्थ-दिल्ली की जामा मस्जिद। बांग्लादेश की ईंट की बनी अतिया मस्जिद की छत भी गुम्बदाकार है। श्रीनगर की झेलम नदी के किनारे बनी शाह हमदान मस्जिद की छत चौकार है। इसके शिखर और नक्काशीदार छज्जे बहुत आकर्षक हैं।

प्रश्न 3.
बे-शरिया और बा-शरिया सूफी परंपरा के बीच एकरूपता और अंतर दोनों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बे-शरिया और बा-शरिया सूफी परम्परा के बीच एकरूपता और अंतर:
मुसलमान समुदाय को निर्देशित करने वाला कानून शरिया कहलाता है। यह कुरानशरीफ और हदीस पर आधारित है। शरिया की अवहेलना करने वालों को बे-शरिया कहा जाता था। कुछ रहस्यवादियों ने सूफी सिद्धांतों की मौलिक व्याख्या से भिन्न कुछ नए सिद्धान्तों को जन्म दिया। ये सिद्धांत मौलिक सिद्धांतों पर ही आधारित थे। परंतु खानकाह (सूफी संगठन) का तिरस्कार करते थे। ये सूफी समुदाय रहस्यावादी फकीर का जीवन व्यतीत करते थे। निर्धनता और ब्रह्मचर्य को इन्होंने गौरव प्रदान किया।

शरिया का पालन करने वालों को बा-शरिया कहा जाता था जिनको सूफियों से अलग माना जाता था। बा-शरिया के लोग शेख से जुड़े रहते थे अर्थात् उनकी कड़ी पैगम्बर मुहम्मद से जुड़ी थी। इस कड़ी के द्वारा अध्यात्मिक शक्ति और आशीर्वाद मुरीदों (शिष्यों) तक पहुँचता था। दीक्षा के विशिष्ट अनुष्ठान विकसित किए गए जिसमें दीक्षित को निष्ठा का वचन देना होता था और सिर मुंडाकर थेगड़ी लगे वस्त्र धारण करने होते थे।

प्रश्न 4.
चर्चा कीजिए कि अलवार, नयनार और वीर शैवों ने किस प्रकार जाति प्रथा की आलोचना प्रस्तुत की?
उत्तर:
कुछ इतिहासकारों के अनुसार अलवार और नयनार संतों ने जाति प्रथा की आलोचना की। उन्होंने ब्राह्मणों की प्रभुता को गैर-आवश्यक बताया। वस्तुतः समाज में ब्राह्मणों का आदर था और उनके आदेशों का पालन राजाओं द्वारा भी किया जाता था जिससे अन्य जातियों की उपेक्षा होती थी। अलवार, नयनार और वीर शैवों ने ब्राह्मण, शिल्पकार, किसान और यहाँ तक कि अस्पृश्य मानी जाने वाली जातियों को भी समान आदर दिया और इस धर्म का अनुयायी स्वीकार किया। उल्लेखनीय है कि ब्राह्मणों ने वेदों को प्रश्रय दिया था। चारों वेदों का महत्त्व आज भी है। अलवार और नयनार संतों की रचनाओं को वेदों जैसा ही महत्त्व दिया गया। उदाहरण के लिए अलवार संतों के एक मुख्य काव्य संकलन ‘नलयिरा दिव्य प्रबंधम्’ का वर्णन तमिल वेद के रूप में किया जाता था।

प्रश्न 5.
कबीर तथा बाबा गुरु नानक के मुख्य उपदेशों का वर्णन कीजिए। इन उपदेशों का किस तरह संप्रेषण हुआ।
उत्तर:
(I) कबीर के उपदेश:

  • कबीर एकेश्वरवाद के प्रबल समर्थक थे। उनका कहना था कि ईश्वर एक है और उसे ही राम, रहीम, साईं, साहिब, अल्लाह आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है।
  • कबीर ईश्वर को सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान् सर्वज्ञ, सर्वत्र तथा सर्वरूप मानते थे। वे परमात्मा के निराकार स्वरूप के उपासक थे। इसके लिए किसी मंदिर, मस्जिद तथा तीर्थस्थान की कोई आवश्यकता नहीं थी।
  • कबीरदास जी का कहना था कि ईश्वर की भक्ति गृहस्थ जीवन का पालन करते हुए करनी चाहिए। वे आजीवन गृहस्थी रहे। वे व्यावहारिक ज्ञान तथा सत्संग में विश्वास रखते थे। वे पुस्तकीय ज्ञान को व्यर्थ बताते थे। पंडितों को यह कहकर निरूत्तर कर देते थे कि “तू कहता कागज की लेखी, मैं कहता आँखन की देखी।”
  • कबीर ज्ञान मार्ग को अधिक कठिन समझते थे। उन्होंने ईश्वर प्राप्ति के लिए भक्ति मार्ग पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि भक्ति के बिना ईश्वर प्राप्ति असंभव है।
  • गाँधीजी की तरह वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के महान् पक्षधर थे। उन्हें धर्म के नाम पर हिन्दू मुसलमानों की कलह पसंद नहीं थी। वे समन्वयकारी थे। उन्होंने दोनों को फटकारते हुए कहा था “अरे इन दोउन राह न पाई। हिन्दुवन की हिन्दुता देखी, देखी तुर्कन की तुर्काई”।
  • कबीर बाह्य आडम्बरों, व्यर्थ की रूढ़ियों, अन्धविश्वासों, रीति-रिवाजों, कर्मकाण्डों, रोजा, नमाज, पूजा आदि के विरोधी थे। अपने प्रवचनों में उन्होंने इन पर निर्मम प्रहार किया है। मूर्तिपूजा का खंडन करते हुए उन्होंने कहा है: “पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजू पहाड़। याते तो चक्की भली, पीस खाय संसार।”

(II) बाबा गुरु नानक के उपदेश-गुरु नानक की शिक्षाएँ:

1. एक ईश्वर में विश्वास:
गुरु नानक के अनुसार ईश्वर एक है और उसके समान कोई दूसरी वस्तु नहीं है। “ईश्वर से बढ़कर कोई शक्ति नहीं है, ईश्वर अद्वितीय है। “परब्रह्म प्रभु एक है, दूजा नहीं कोय। वह अलख, अपर, अकाल, अजन्मा, अगम तथा इन्द्रियों से परे हैं।” मैकालिक के शब्दों में, “नानक जी ईश्वर को बहुत ऊँचा स्थान देते हैं और कहते हैं कि मुहम्मद सैकड़ों और हजारों हैं, परंतु ईश्वर एक और केवल एक ही है।”

2. ईश्वर सर्वव्यापी और इन्द्रियों से परे हैं:
भारत में असंख्य ऋषि-मुनि ईश्वर को सगुण तथा साकार मानते हैं, किन्तु नानक ईश्वर के निर्गुण रूप में विश्वास रखते हैं अत: उनका ईश्वर इन्द्रियों से परे अगम-अगोचर है। ईश्वर सर्वव्यापक तथा सर्वशक्तिमान है। उसे मन्दिरों तथा मस्जिदों की चारदीवारी में बंद नहीं किया जा सकता।

3. आत्म-समर्पण ही ईश्वर-प्राप्ति का एकमात्र साधन है:
नानकदेव जी की यह धारणा है कि ईश्वर उन लोगों पर दया करता है, जो दया के पात्र तथा अधिकारी हैं। किन्तु ईश्वर की दया को आत्म-समर्पण तथा इच्छाओं के परित्याग द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। वे अपने को ईश-इच्छा पर छोड़ना ही आत्म-समर्पण मानते हैं।

4. ‘सत्यनाम’ की उपासना पर बल:
नानक देव जी मोक्ष प्राप्ति के लिए ‘सत्यनाम’ की उपासना पर बल देते हैं। उनका विश्वास है कि “जो ईश्वर का नाम नहीं जपता, वह जन्म और मृत्यु के झमेलों में फँसकर रह जाएगा।” एक बार कुछ साधुओं ने उन्हें कोई चमत्कार दिखाने को कहा। उन्होंने बड़े सरल भाव से उत्तर दिया-“सच्चे नाम के अतिरिक्त मेरे पास कोई चमत्कार नहीं।” यहाँ तक कि उन्होंने अपनी माता से भी एक बार कहा था … “उसके नाम का जाप करना जीवन है और उसे भूल जाना ही मृत्यु है।”

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए। (लगभग 250-300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
सूफी मत के मुख्य धार्मिक विश्वासों और आचारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सूफी मत के मुख्य धार्मिक विश्वास और आधार:
इस्लाम के अन्तर्गत रहस्यवादियों का उदय हुआ जो सूफी कहलाते थे। सूफियों ने ईश्वर और व्यक्ति के बीच प्रेम सम्बन्ध पर बल दिया। वे राज्य से सरोकार नहीं रखते थे। सूफी मत का आधार इस्लाम ही था, परंतु भारत में हिन्दू धर्म के सम्पर्क में आने के बाद हिन्दू धर्म के अनुयायियों की विचारधारा और रीति-रिवाजों में काफी समानता आती गई। इस मत का उदय पहले-पहल ईरान में हुआ।

सूफी मत के बहुत से सिद्धांत भक्ति-मार्ग के सिद्धांतों से मिलते-जुलते हैं –

  1. ईश्वर एक है और संसार के सभी लोग उसकी संतान हैं। ईश्वर सृष्टि की रचना करता है। सभी पदार्थ उसी से पैदा होते हैं और अंत में उसी में समा जाते हैं।
  2. संसार के विभिन्न मतों में कोई विशेष अंतर नहीं है। सभी मार्ग भिन्न-भिन्न हैं तथापि उनका उद्देश्य एक ही है अर्थात्-सभी मत एक ही ईश्वर तक पहुँचने का साधन हैं।
  3. सूफी मानवतावाद में विश्वास रखते थे। उनका विचार था कि ईश्वर को पाने के लिए मनुष्यमात्र से प्रेम करना जरूरी है। किसी भी व्यक्ति को उसके धर्म के आधार पर भिन्न समझना भारो भूल है।
  4. मनुष्य अपने शुद्ध कर्मों द्वारा उच्च स्थान प्राप्त कर सकता है।
  5. समाज में सब बराबर हैं-न कोई बड़ा है और न छोटा।
  6. मनुष्य को बाह्य आडम्बरों से बचना चाहिए। भोग-विलास से दूर रहकर सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए। उसका नैतिक स्तर बहुत ऊँचा होना चाहिए।
  7. सूफियों ने अपने आपको जंजीर अथवा सिलसिलों में संगठित किया। प्रत्येक सिलसिले का नियंत्रण शेख, पीर या मुर्शीद के हाथ में।
  8. गुरु (पीर) और शिष्य (मुरीद) के बीच सम्बन्ध को बहुत महत्त्व दिया जाता था। गुरु ही शिष्यों के लिए नियमों का निर्माण करता था। उनका वारिस खलीफा कहलाता था।
  9. सूफी आश्रम-व्यवस्था, प्रायश्चित, व्रत, योग तथा साधना आदि पर भी बल देते थे।
  10. सूफी संगीत पर भी बहुत जोर देते थे।

प्रश्न 7.
क्यों और किस तरह शासकों ने नयनार और सूफी संतो से अपने संबंध बनाने का प्रयास किया?
उत्तर:
शासकों के संबंध नयनार और सूफी संतों के साथ : नयनार शैव परम्परा के संत थे। नयनार और सूफी संतों को शासकों ने अनेक प्रकार से संरक्षण दिया। चोल सम्राटों ने ब्राह्मणीय और भक्ति परम्परा को समर्थन दिया तथा विष्णु और शिव के मन्दिरों के निर्माण हेतु भूमि दान किया। चिदम्बरम्, तंजावुर और गंगैकोडा चोलापुरम् के विशाल शिव मंदिर चोल सम्राटों की सहायता से बनाये गये। इसी काल में कांस्य से ढाली गई शिव की प्रतिमाओं का भी निर्माण हुआ। स्पष्ट है कि नयनार संतों का दर्शन शिल्पकारों के लिए प्रेरणा स्रोत बना।

बेल्लाल क किसान नयनार और अलवार संतों का विशेष सम्मान करते थे। इसीलिए सम्राटों ने भी उनका समर्थन पाने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए चोल सम्राटों ने दैवीय समर्थन पाने का दावा अपने उत्कीर्ण अभिलेखों में किया है। अपनी सत्ता के प्रदर्शन के लिए उन्होंने सुन्दर मंदिरों का निर्माण करवाया जिनमें पत्थर और धातु निर्मित मूर्तियाँ प्रतिष्ठित की गयी थीं। नयनारों का समर्थन पाने के लिए इन सम्राटों ने मंदिरों में तमिल भाषा के शैव भजनों का गायन प्रचलित किया। उन्होंने ऐसे भजनों का संकलन एक ग्रंथ ‘तवरम’ में करने की जिम्मेदारी ली।

945 ई० के एक अभिलेख के अनुसार चोल सम्राट परांतक प्रथम ने संत कवि अप्पार संबंदर और सुंदरार की धातु प्रतिमाएँ एक शिव मंदिर में स्थापित करवायी। इन मूर्तियों को उत्सव में एक जुलूस में निकाला जाता था। सूफी संतों के साथ शासकों के संबंध जोड़ने का प्रयास मुगल बादशाह जहाँगीर का अजमेर की दरगाह पर जाने, गियासुद्दीन खलजी द्वारा शेख की मजार का निर्माण कराए जाने एवं अकबर का अजमेर की दरगाह पर 14 बार दर्शन करने हेतु जाने आदि से दिखाई पड़ता है। सुलतानों ने खानकाहों को कर मुक्त भूमि अनुदान में दी और दान संबंधी न्यास स्थापित किए। सुल्तान गियासुद्दीन ने शेख फरीदुद्दीन को चार गाँवों का पट्टा भेंट किया और धनराशि भी भेंट की थी।

प्रश्न 8.
उदाहरण सहित विश्लेषण कीजिए कि क्यों भक्ति और सूफी चिंतकों ने अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया?
उत्तर:
भक्ति और सूफी चितकों द्वारा विभिन्न भाषाओं का प्रयोग –
1. भक्ति और सूफी चिन्तक अपने उपदेशों और विचारों को आम-जनता तक पहुँचाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने कई क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग किया।

2. पंजाब से दक्षिण भारत तक, बंगाल से गुजरात तक भक्ति आंदोलन का व्यापक प्रभाव रहा। जहाँ-जहाँ संत सुधारक उपदेश देते थे, स्थानीय शब्द उनकी भाषा का माध्यम और अंग बन जाते थे। ब्रजभाषा, खड़ी बोली, राजस्थानी, गुजराती, बंगाली, पंजाबी, अरबी, आदि का उनके उपदेशों में अजीब समावेश है। इसी ने आगे चलकर आधुनिक भाषाओं का रूप निर्धारित किया।

3. स्थानीय भाषा संतों की रचनाओं को विशेष लोकप्रिय बनाती थी। उल्लेखनीय है कि चिश्ती सिलसिले के लोग दिल्ली हिन्दी में बातचीत करते थे ! बाबा फरीद ने भी क्षेत्रीय भाषा में काव्य रचना की जो गुरु ग्रन्थ साहिब में संकलित है। मोहम्मद जायसी का पद्मावत भी मसनवी शैली में है।

4. सूफियों ने लम्बी कवितायें मसनवी लिखी। उदाहरण के लिए मलिक मोहम्मद जायसी का पद्मावत पद्मिनी और चित्तौड़ के राजा रतन सेन की प्रेम कथा को रोचक बनाकर प्रस्तुत करता है। वह मसनवी शैली में लिखा गया है।

5. सूफी संत स्थानीय भक्ति भावना से सुपरिचित थे। उन्होंने स्थानीय भाषा में ही रचनाएँ की। 17-18वीं शताब्दी में बीजापुर (कर्नाटक) में दक्खनी (उर्दू का रूप) में छोटी कविताओं की रचना हुई। ये रचनाएँ औरतों द्वारा चक्की पीसते और चरखा कातते हुए गाई जाती थीं। कुछ और रचनाएँ लोरीनाना और शादीनामा के रूप में लिखी गईं।

6. भक्ति और सूफी चिन्तक अपनी बात दूर-दराज के क्षेत्रों में फैलाना चाहते थे। लिंगायतों द्वारा लिखे गए कन्नड़ की वचन और पंढरपुर के संतों द्वारा लिखे गए मराठी के अभंगों ने भी तत्कालीन समाज पर अपनी अमिट छाप अंकित की। दक्खनी भाषा के माध्यम से दक्कन के गाँवों में भी इस्लाम धर्म का खूब प्रचार-प्रसार हुआ।

प्रश्न 9.
इस अध्याय में प्रयुक्त किन्हीं पाँच स्रोतों का अध्ययन कीजिए और उनमें निहित सामाजिक व धार्मिक विचारों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
अध्याय में प्रयुक्त पाँच स्रोत:
1. मारिची की मूर्ति:
मारिची बौद्ध देवी थी। यह मूर्ति बिहार की 10वीं शताब्दी की है, जो तांत्रिक पूजा पद्धति का एक उदाहरण है। तांत्रिक पूजा पद्धति में देवी की आराधना की जाती है। यह मूर्ति शिल्पकला का उत्तम उदाहरण है।

2. तोंदराडिप्पोडि का काव्य:
तोंदराडिप्पोडि एक ब्राह्मण अलवार था। उसने अपने काव्य में वर्ण व्यवस्था की अपेक्षा प्रेम को महत्त्व दिया है। “चतुर्वेदी जो अजनबी हैं और तुम्हारी सेवा के प्रति निष्ठा नहीं रखते उनसे भी ज्यादा आप (हे विष्णु) उन “दासों” को पसंद करते हो-जो आपके चरणों से प्रेम रखते हैं, चाहे वह वर्ण व्यवस्था के परे हों।

3. नलयिरा दिव्य प्रबंधम्:
यह अलवारों (विष्णु के भक्त) की रचनाओं का संग्रह है। इसकी रचना 12वीं शताब्दी में की गई। इसमें अलवारों के विचारों की विस्तृत चर्चा है।

4. हमदान मस्जिद:
यह मस्जिद कश्मीर की सभी मस्जिदों में ‘मुकुट का नगीना’ समझी जाती है। यह कश्मीरी लकड़ी की स्थापत्य कला का सर्वोत्तम उदाहरण है। यह पेपरमैशी से सजाई गई है। (5) कश्फ-उल-महजुब-यह सूफी खानकाहों की एक पुस्तिका है। यह अली बिन उस्मान हुजाविरी द्वारा लिखी गई। इससे पता चलता है कि उपमहाद्वीप के बाहर की परम्पराओं ने भारत में सूफी चिंतन को कितना प्रभावित किया। यह सूफी विचारों और व्यवहारों के प्रबंध की उत्तम पुस्तक है।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
भारत के एक मानचित्र पर 3 सूफी स्थल ओर 3 वे स्थल जो मंदिर (विष्णु, शिव, तथा देवी से जुड़ा एक मंदिर ) से संबद्ध है, निर्दिष्ट कीजिए।
उत्तर:

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11.
इस अध्याय में वर्णित किन्हीं दो धार्मिक उपदेशकों/चिंतकों/संतों का चयन कीजिए और उनके जीवन व उपदेशों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कीजिए। इनके समय, कार्य क्षेत्रों और मुख्य विचारों के बारे में एक विवरण तैयार कीजिए। हमें इनके बारे में कैसे जानकारी मिलती है और हमें क्यों लगता है कि वे महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 12.
इस अध्याय में वर्णित सूफी. एवं देवस्थलों से संबद्ध तीर्थयात्रा के आचारों के बारे में अधिक जानकारी हासिल कीजिए। क्या यह यात्राएँ अभी भी की जाती हैं। इन स्थानों पर कौन लोग और कब-कब जाते हैं? वे यहाँ क्यों जाते हैं? इन तीर्थयात्राओं से जुड़ी गतिविधियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

Bihar Board Class 12 History भक्ति सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पुरी (उड़ीसा) के मंदिर की विशेषतायें बताइये।
उत्तर:

  1. पुरी (उड़ीसा) का मंदिर पूजा प्रणालियों के समन्वय का एक अच्छा उदाहरण है। हिन्दू धर्म से 12वीं शताब्दी तक विष्णु को संपूर्ण विश्व का स्वामी या जगन्नाथ माना जाता है। हिन्दू धर्मापुरी (उड़ीसा) का मंदिर की विशेषतायें बताइये मए गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट था। इस मंदिर से ऐसी जानकारी मिलती है।
  2. इस स्थानीय प्रतिमा को पहले और आज स्थानीय जनजाति के विशेषज्ञ काष्ठ-प्रतिमा के रूप में गढ़ते हैं। विष्णु का यह रूप देश के अन्य भागों में स्थित विष्णु प्रतिमाओं में दर्शित रूप से भिन्न है।

प्रश्न 2.
तांत्रिक पूजा पद्धति से आप क्या समझते हैं और इसकी क्या विशेषता है?
उत्तर:

  1. प्रायः देवी की आराधना पद्धति को तांत्रिक पूजा पद्धति या शाक्त पद्धति कहा जाता है।
  2. कर्मकाण्ड और अनुष्ठान की दृष्टि से इस पद्धति में स्त्री और पुरुष दोनों समान रूप से भाग ले सकते हैं।

प्रश्न 3.
आराधना पद्धतियों में कौन-सी दो प्रक्रियायें कार्य कर रही थीं?
उत्तर:

  1. एक प्रक्रिया ब्राह्मणीय विचारधारा के प्रचार की थी। इसका प्रसार पौराणिक ग्रंथों की रचना, संकलन और संरक्षण द्वारा हुआ।
  2. स्त्री, शूद्रों और अन्य सामाजिक वर्गों की आस्थाओं और आचरणों को ब्राह्मणों द्वारा स्वीकार किया गया और उसे एक नया रूप प्रदान किया।

प्रश्न 4.
उलमा कौन थे?
उत्तर:

  1. उलमा ‘आलिम’ शब्द का बहुवचन है। इसका अर्थ है-ज्ञाता या जानकार। वस्तुत: उलमा इस्लाम धर्म के ज्ञाता थे।
  2. इस परिपाटी के संरक्षक होने से उनकी कार्य धार्मिक कृत्य संपन्न करने, कानून बनाने, उसका अनुपालन कराने और शिक्षा देने का था।

प्रश्न 5.
बासन्ना ने अपनी कविताओं में कौन से विचार व्यक्त किये हैं?
उत्तर:

  1. संसार में लोग जीवित व्यक्ति या जानवर से घृणा करते हैं परंतु निर्जीव वस्तु को पूजा करते हैं जो सर्वथा असंगत है।
  2. उदाहरण- “जब वे एक पत्थर से बने सर्प को देखते हैं तो उस पर दूध चढ़ाते हैं। यदि असली साँप आ जाएं तो कहते हैं “मारो-मारो।”

प्रश्न 6.
भक्ति परम्परा की दो मुख्य शाखाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. भक्ति परम्परा दो मुख्य शाखाओं में विभाजित है-सगुण और निर्गुण ज्ञानाश्रयी शाखा। सगुण उपासना में शिव, विष्णु, उनके अवतार और देवियों की मूर्तियाँ बनाकर पूजी जाती है। इसमें देवताओं के मूर्त रूप की पूजा होती है।
  2. निर्गुण भक्ति परम्परा में अमूर्त एवं निराकार ईश्वर की उपासना की जाती है।

प्रश्न 7.
अंडाल कौन थी?
उत्तर:

  1. अंडाल एक अलवार स्त्री और प्रसिद्ध कवयित्री थी। उसके द्वारा रचित भक्ति गीत व्यापक स्तर पर गाये जाते थे और आज भी गाये जाते हैं।
  2. अंडाल स्वयं को विष्णु की प्रेयसी मानकर अपनी प्रेम भावना को छंदों में व्यक्त करती थी।

प्रश्न 8.
नयनारों द्वारा जैन और बौद्ध धर्म की आलोचना क्यों की जाती थी?
उत्तर:
राजकीय संरक्षण और आर्थिक अनुदान की प्रतिस्पर्धा रहने के कारण ही नयनार इन दोनों धर्मों में दोषारोपण किया करते थे। इनकी रचनाएँ अन्तत: शासकों से विशेष संरक्षण दिलाने में कारगर साबित हुई।

प्रश्न 9.
बासवन्ना (1106-68) कौन थे?
उत्तर:

  1. बासवन्ना वीर शैव परम्परा के संस्थापक थे। वे ब्राह्मण थे और प्रारम्भ में जैन धर्म के अनुयायी थे। चालुक्य राजदरबार में उन्होंने मंत्री का पद संभाला था।
  2. इनके अनुयायी वीर शैव (शिव के वीर) और लिंगायत (लिंग धारण करने वाले) कहलाए।

प्रश्न 10.
खोजकी लिपि की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:

  1. इस देशी साहित्यिक विधा या लिपि का प्रयोग पंजाब, सिंध और गुजरात के खोजा करते थे। ये इस्माइली (शिया) समुदाय के थे।
  2. खोजकी लिपि में “जीनन” नाम से राग बद्ध, भक्ति गीत लिखे गए। इसमें पंजाबी, मुल्तानी, सिंध, कच्छी, हिन्दी और गुजराती भाषाओं का सम्मिश्रण था।

प्रश्न 11.
सैद्धान्तिक रूप से इस्लाम धर्म के प्रमुख उपदेश क्या हैं?
उत्तर:

  1. अल्लाह एकमात्र ईश्वर है।
  2. पैगम्बर मोहम्मद उनके दूत (शाहद) हैं।
  3. दिन में पाँच बार नमाज पढ़नी चाहिए।
  4. खैरात (जकात) बांटनी चाहिए। (रमजान के महीने में रोजा रखना चाहिए और हज के लिए मक्का जाना चाहिए।

प्रश्न 12.
जिम्मियों ने अपने को संरक्षित कैसे किया?
उत्तर:

  1. जिम्मी अरबी शब्द ‘जिम्मा’ से व्युत्पन्न है। यह संरक्षित श्रेणी में थे।
  2. जिम्मी उद्घटित धर्मग्रंथ को मानने वाले थे। इस्लामी शासकों के क्षेत्र में रहने वाले यहूदी और ईसाई इस धर्म के अनुयायी थे। ये लोग जजिया नामक कर का भुगतान करने मात्र से मुसलमान शासकों का संरक्षण प्राप्त कर लेते थे। भारत के हिन्दुओं को भी मुस्लिम शासक ‘जिम्मी कहते थे और उनसे जजिया नामक कर की वसूली की जाती थी।

प्रश्न 13.
इस्लामी परम्परा में शासकों को शासितों के प्रति क्या नीति थी?
उत्तर:

  1. शासक शासितों के प्रति पर्याप्त लचीली नीति अपनाते थे। उदाहरण के लिए अनेक शासकों ने हिन्दू, जैन, फारसी, ईसाई और यहूदी धर्मों के अनुयायियों और धर्मगुरुओं को मंदिर आदि निर्माण के लिए भूमियाँ दान में दी तथा आर्थिक अनुदान भी दिए।
  2. गैर मुसलमान धार्मिक नेताओं के प्रति श्रद्धाभाव व्यक्त करना भी उनकी उदार नीति का एक हिस्सा था। अकबर और औरंगजेब जैसे मुगल सम्राटों ने ऐसी उदार नीति अपनाई थी।

प्रश्न 14.
अकबर की खम्बात के गिरजाघर के प्रति कैसी नीति रही?
उत्तर:

  1. यीशु की मुकद्दस जमात के पादरी खम्बात (गुजरात) में एक गिरजाघर का निर्माण करना चाहते थे। अकबर ने उनकी माँग स्वीकार कर ली और अपनी स्वीकृति दे दी।
  2. उसने अपने हुक्मनामें से खम्बात के अधिकारियों को यह आदेश दिया कि वे इस कार्य में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करें। वस्तुतः यह अकबर की उदार धर्मनीति का एक उदाहरण है।

प्रश्न 15.
वली का क्या महत्त्व है?
उत्तर:

  1. पीर या गुरु के उत्तराधिकारी को वली या खलीफा कहा जाता है।
  2. सूफीमत के प्रत्येक सिलसिले या वर्ग अथवा कड़ी का पीर या गुरु शिक्षा-दीक्षा का कार्य संपन्न करने के लिए अपना उत्तराधिकारी या वली अथवा खलीफा नियुक्त करता था।
  3. वली’ शब्द का अर्थ है-ईश्वर का मित्र। कई “वली” को एक साथ ‘औलिया’ कहा जाता था।

प्रश्न 16.
पीर और मुरीद में अंतर बताइए।
उत्तर:

  1. सूफीमत में अध्यात्मिक गुरु को पीर कहा जाता है। इनका बहुत अधिक महत्त्व था। यह मानता थी की पीर के बिना कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
  2. सूफी परम्परा में शिष्य या अनुयायी को मुरीद कहा जाता है। ये सूफी विचारधारा के बारे में पीर से ज्ञान प्राप्त करते थे। इन्हें भी पीर के आश्रम में रहना पड़ता था।

प्रश्न 17.
मातृगृहता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:

  1. वह परिपाटी जिसमें स्त्रियाँ विवाह के बाद अपने मायके में ही अपनी संतान के साथ् रहती हैं और उनके पति उनके साथ आकर रह सकते हैं।
  2. यह एक प्रकार की मातृसत्तात्मक परिपाटी है।

प्रश्न 18.
‘मुकुट का नगीना’ किस मस्जिद को कहा जाता है? इसकी क्या विशेषता है?
उत्तर:

  1. श्रीनगर की झेलम नदी के किनारे बनी शाह हमदान मस्जिद कश्मीर की सभी मस्जिदों में मुकुट का नगीना मानी जाती है।
  2. इसका निर्माण 1395 में हुआ और यह कश्मीरी लकड़ी की स्थापत्य कला का सर्वोत्तम नमूना है। इसके शिखर और नक्काशीदार छज्जे पेपरमैशी से अलंकृत है।

प्रश्न 19.
खानकाह क्या है?
उत्तर:

  1. खानकाह का अर्थ है-एक संगठित समुदाय का आश्रय स्थल या दरगाह। यह प्राचीन काल के गुरुकुल जैसा था क्योंकि इसमें खलीफा दुवारा मुरीदों को इस्लाम धर्म की शिक्षा दी जाती थी।
  2. सूफीवादी नेता या शेख अथवा पीर द्वारा इस समुदाय की व्यवस्था की जाती थी।

प्रश्न 20.
खालसा पंथ की नींव किसने रखी? इस पंथ के पाँच प्रतीक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. खालसा पंथ (पवित्रों की सेना) की स्थापना गुरु गोविंद सिंह जी ने की।
  2. खालसा पंथ के पाँच प्रतीक निम्नलिखित हैं: हाथ में कड़ा, कमर में कृपण, सिर में पगड़ी (केश), बालों में कंघा तथा कच्छ धारण करना।

प्रश्न 21.
मसनवी का किससे संबंध था?
उत्तर:

  1. मसनवी सूफियों द्वारा लिखित लम्बी कवितायें श्रीं । इनमें ईश्वर के प्रति प्रेम को मानवीय या दुनियावी प्रेम से अभिव्यक्त किया गया है।
  2. उदाहरण के लिए मलिक मोहम्मद जायसी के पद्मावत नामक प्रेम काव्य की कथा-वस्तु पद्मिनी और चित्तौड़ के राजा रत्नसेन के इर्द-गिर्द घूमती है।
  3. पद्मिनी और रत्नसेन का प्रेम आत्मा को परमात्मा तक पहुँचने की यात्रा का प्रतीक है।

प्रश्न 22.
वैदिक परम्परा तथा तांत्रिक आराधना में क्या अंतर है?
उत्तर:

  1. वैदिक परंपरा को मानने वाले उन सभी तरीकों की निंदा करते थे जो ईश्वर की उपासना के लिए मंत्रों के उच्चारण तथा यज्ञों के सम्पादन से हटकर थे।
  2. तांत्रिक लोग वैदिक सत्ता की अवहेलना करते थे। इसलिए उनमें कभी-कभी संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती थी।
  3. तांत्रिक आराधना में देवियों की मूर्ति पूजा हेतु कई तरह के भौतिक या वस्तु प्रधान साधन अपनाए जाते थे जबकि वैदिक परंपरा जप, मंत्रोच्चारण और यज्ञ पर आधारित थी।

प्रश्न 23.
अलवार और नयनार कौन थे?
उत्तर:

  1. अलवार तथा नयनार दक्षिण भारत के संत थे। अलवार विष्णु के पुजारी थे।
  2. नयनार शैव थे और शिव की उपासना करते थे।

प्रश्न 24.
चिश्ती उपासना से जुड़े कोई दो व्यवहार बताइए।
उत्तर:

  1. इस्लाम धर्म के सभी अनुयायी या मुसलमानों के साथ ही विश्व के लगभग सभी धर्मानुयायी सूफी संतों की दरगाह की जियारत (तीर्थयात्रा) करते हैं। इस अवसर पर संत के अध्यात्मिक आशीर्वाद अर्थात् बरकत की कामना की जाती है।
  2. नृत्य तथा कव्वाली जियारत के महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनके द्वारा अलौकिक आनन्द की भावना जगाई जाती है। हिन्दी भाषा में चिश्ती का अर्थ है-उपदेशक।

प्रश्न 25.
उर्स से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:

  1. उर्स का अर्थ है-विवाह अर्थात् पीर की आत्मा का ईश्वर से मिलन होना।
  2. सूफियों का यह मानना था कि मृत्यु के बाद पीर ईश्वर में समा जाते हैं। इस प्रकार वे पहले की अपेक्षा ईश्वर के और अधिक निकट हो जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
महान् और लघु परम्परा में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. इन दो शब्दों को 20वीं शताब्दी के समाजशास्त्री राबर्ट रेडफील्ड ने एक कृषक समाज के सांस्कृतिक आचरणों का वर्णन करने के लिए किया।
  2. इस समाजशास्त्री ने देखा कि किसान उन्हीं कर्मकाण्डों और पद्धतियों का अनुकरण करते थे जिनका पालन समाज के पुरोहित और राजा जैसे प्रभावशाली वर्ग द्वारा किया जाता था। इन कर्मकाण्डों को उसने ‘महान परम्परा’ की संज्ञा दी।
  3. कृषक समुदाय के अन्य लोकाचारों का पालन लघु परम्परा कहा गया।
  4. रेडफील्ड के अनुसार महान् और लघु दोनों प्रकार की परम्पराओं में समय के साथ परिवर्तन हुए।

प्रश्न 2.
वैदिक परिपाटी और तांत्रिक परिपाटी में संघर्ष की स्थिति क्यों उत्पन्न हो जाती थी?
उत्तर:
वैदिक परिपाटी और तांत्रिक परिपाटी में संघर्ष की स्थिति के कारण –

  1. वैदिक देवकुल के अग्नि, इन्द्र और सोम जैसे देवता पूर्णरूप से गौण हो गये थे। साहित्य और मूर्तिकला दोनों का निरूपण बंद हो गया था।
  2. वैदिक मंत्रों में विष्णु, शिव और देवी की झलक मिलती है और वेदों को प्रमाणिक माना जाता रहा। इसके बावजूद इनका महत्त्व कम हो रहा था।
  3. वैदिक परिपाटों के प्रशंसक ईश्वर की उपासना के लिए मंत्रों के उच्चारण और यज्ञों के संपादन से भिन्न आचरणों की निंदा करते थे।
  4. तांत्रिक पद्धति के लोग वैदिक सत्ता की अवहेलना करते थे। उनका बौद्ध अथवा जैन धर्म के अनुयायियों के साध भी टकराव होता रहता था।

प्रश्न 3.
आठवीं से अठारहवीं सदी के मध्य की साहित्यिक विशेषताएँ इंगित कीजिए।
उत्तर:
आठवीं से अठारहवीं सदी के मध्य की साहित्यिक विशेषतायें –

  1. इस काल की नूतन साहित्यिक स्रोतों में संत कवियों की रचनायें हैं। इनमें उन्होंने जनसामान्य की क्षेत्रीय भाषाओं में अपने उपदेश दिए हैं।
  2. ये रचनाएँ प्रायः संगीतबद्ध हैं और संतों के अनुयायियों द्वारा उनकी मृत्यु के उपरांत संकलित की गई।
  3. ये परम्परायें प्रवाहमान थी-अनुयायियों की कई पीढ़ियों ने मूल संदेश का न केवल विस्तार किया अपितु राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के परिप्रेक्ष्य में संदिग्ध और अनावश्यक लगने वाली बातों को बदल दिया या हटा दिया गया।
  4. इन रचनाओं का मूल्यांकन करना इतिहासकारों के लिए एक चुनौती का विषय बना है।

प्रश्न 4.
शरिया कैसे उद्भूत हुआ?
उत्तर:
शरिया का उद्भव –

  1. शरिया मुसलमान समुदायों को निर्देशित करने वाला कानून है। यह ‘कुरान शरीफ’ और ‘हदीस’ पर आधारित है।
  2. हदीस’ पैगम्बर साहब से जुड़ी परम्परायें हैं। इनके अंतर्गत उनके स्मृत शब्द और क्रियाकलाप भी आते हैं।
  3. जब अरब क्षेत्र के बाहर इस्लाम धर्म से भिन्न आचार-विचार वाले देशों में इस धर्म का प्रसार हुआ तो शरिया में कियास (समानता के आधार पर तर्क) और इजमा (समुदाय की सहमति) को भी कानूनी स्रोत मान लिया गया।
  4. इस प्रकार कुरान, हदीस, कियास और इजमा से शरिया का अभ्युदय एवं विकास हुआ।

प्रश्न 5.
लिंगायत सम्प्रदाय के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
लिंगायत सम्प्रदाय –

  1. कर्नाटक में लिंगायत सम्प्रदाय का विशेष महत्त्व है। शिव की आराधना लिंग के रूप में करना इस संप्रदाय का प्रमुख लक्षण है।
  2. इस समुदाय के पुरुष बायें कंधे पर चाँदी के एक पिटारे में एक लघु शिव लिंग धारण करते हैं।
  3. इस संप्रदाय में जंगम अर्थात् यायावर भिक्षु भी शामिल हैं।
  4. लिंगायतों का विश्वास है कि मृत्योंपरांत सभी शिव भक्त उन्हीं में लीन हो जायेंगे तथा जन्म एवं मरण चक्र से मुक्त हो जाएंगे।
  5. इस सप्रदाय के लोग धर्मशास्त्रीय श्राद्ध एवं मुंडन आदि संस्कारों का पालन नहीं करते थे परंतु अपने मृतकों को भली-भाँति दफनाते थे।

प्रश्न 6.
सूफीमत के प्रभावों की गणना कीजिए।
उत्तर:
सूफीमत के प्रभाव –
1. हिन्दू समाज में पहले की अपेक्षा निम्न वर्ग के साथ अच्छा व्यवहार होने लगा।

2. इस्लाम धर्म में हिन्दू धर्म की अच्छी बातों को स्थान दिया जाने लगा। भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति ने इस्लाम को प्रभावित किया और मुसलमानों ने हिन्दू रीति-रिवाजों को अपनाना आरंभ कर दिया।

3. सूफी मत ने अपने प्रचार में मुसलमानों को पहले की अपेक्षा अधिक उदार बनने में सहयोग दिया। मुसलमान हिन्दुओं को अपने समान समझने लगे। आपसी वैर-भाव दूर हुआ और एकता की भावना को बल मिला।

4. सम्राट अकबर की धार्मिक सहनशीलता की नीति तथा राजपूतों से विवाह सम्बन्ध, हिन्दुओं को राज्य के उच्च तथा महत्त्वपूर्ण पद प्रदान करना जैसे कार्य सूफी मत पर उसकी निष्ठा के ही परिणाम थे।

5. सूफी आंदोलन ने भारत की स्थापत्य कला को भी प्रभावित किया। सन्तों की समाधियों पर अनेक भव्य भवन खड़े किए गए। अजमेर में शेख मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह तथा दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया का मकबरा कला की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।

6. सूफी आंदोलन का भारतीय साहित्य पर भी अच्छा प्रभाव पड़ा। जायसी ने पद्मावत तथा अन्य रचनाएँ की। खुसरो ने अनेक काव्य-ग्रन्थ लिखे। निःसन्देह सूफी संतों की भारतीय समाज को यह बहुत बड़ी देन थी।

प्रश्न 7.
चिश्ती सिलसिला के विषय में एक नोट लिखिए।
उत्तर:
चिश्ती सिलसिला-मध्यकालीन भारत के भक्ति आंदोलन की तरह ही सूफी संप्रदाय का “सिलसिला” भी हिन्दु-मुस्लिम एकता, सामाजिक समानता तथा भाईचारे का संदेश दे रहा था। सूफी आंदोलन के साथ हुसैन बिन मंसूर अल हज्जाज, अब्दुल करीम, शेख शहाबुद्दीन सुहरावर्दी, ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया और शेख सलीम चिश्ती जैसे ‘सिलसिलों’ के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

“सिलसिलों” के सभी चिश्ती (उपदेशक) बड़े विद्वान तथा महान् संत थे। इन्हें फारसी, अरबी तक अनेक भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह अजमेर (राजस्थान) में है। उन्होंने भारत के अनेक भागों की पैदल यात्रा की। शेख सलीम चिश्ती उनके शिष्य थे। उनके आशीर्वाद से ही मुगल सम्राट अकबर के पुत्र सलीम (बाद का नाम जहाँगीर) का जन्म हुआ था। अकबर ने उसके सम्मान में फतेहपुर सीकरी में एक दरगाह बनवाई थी।

आज भी अजमेर की दरगाह पर हजारों हिन्दू तथा मुसलमान हर वर्ष जाते हैं। वहाँ के मेले में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अन्य देशों के लोग भी आते हैं। निजामुद्दीन औलिया की दरगाह दिल्ली में है, उनके भी हिन्दू और मुसलमान दोनों सम्प्रदाय के लोग शिष्य थे। सूफी सम्प्रदाय में चिश्ती सिलसिला के अनुयायी बहुत ही उदार थे। वे खुदा की एकता, शुद्ध जीवन तथा मानव मूल्यों पर बहुत जोर देते थे। वे सभी धर्मों की मौलिक एकता में यकीन रखते थे। चिश्ती सन्त घूम-घूमकर मानव प्रेम तथा एकता का उपदेश देते थे।

प्रश्न 8.
भक्ति परम्परा के सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभाव बताइए।
उत्तर:
सांस्कृतिक प्रभाव (Cultural Effects):
1. सांस्कृतिक विकास:
भक्ति आन्दोलनों के नेताओं ने अपनी शिक्षा का प्रचार जनसाधारण की भाषा में किया। इसके परिणामस्वरूप बंगाली, मराठी, गुजराती, पंजाबी, हिन्दी आदि अनेक देशी भाषाओं का विकास हुआ। जयदेव का ‘गीत गोबिन्द’ सूरदास का ‘सूरसागर’, जायसी का ‘पद्मावत’, सिक्खों का ‘आदि ग्रन्थ साहिब’, तुलसीदास जी का ‘रामचरित मानस’, कबीर और रहीम के ‘दोहे’ एवं रसखान की ‘साखियां’ जैसा हृदयस्पर्शी सद्साहित्य रचा गया।

2. हिन्दू-मुस्लिम कलाओं में समन्वय:
राजनीतिक, धार्मिक तथा सामाजिक भेदभाव, कटुता तथा वैमनस्य के कम होने पर हिन्दू और मुस्लिम कलाओं में समन्वय का एक नया युग प्रारम्भ हुआ और वास्तुकला, चित्रकला तथा संगीत का चरण विकास हुआ। ईरानी कलाओं का सम्मिश्रण तथा संगम हुआ और सभी क्षेत्रों में नई भारतीय कला का जन्म हुआ। इसका निखरा हुआ रूप मुगलकालीन भारतीय कलाकृतियों में देखने को मिलता है।

3. आर्थिक प्रभाव (Economic Effects):
इस आंदोलन के भारतीय सामाजिक जीवन पर कुछ आर्थिक प्रभाव भी पड़े । संत भक्तों ने यह महसूस किया कि अधिकांश सामाजिक बुराइयों की जड़ आर्थिक विषमता है। संत कबीर तथा गुरु नानकदेव जी ने धनी वर्ग के उन लोगों को फटकारा, जो गरीबों का शोषण करके धन संग्रह करते हैं। गुरु नानकदेव जी ने भी इस बात पर बल दिया कि लोगों को अपनी मेहनत तथा नेक कमाई पर ही संतोष करना चाहिए।

प्रश्न 9.
भक्ति आंदोलन के मुख्य सामाजिक प्रभाव बताइए।
उत्तर:
सामाजिक प्रभाव:
1. जाति-प्रथा पर प्रहार-भक्त संतों ने जाति-प्रथा, ऊँच-नीच तथा छुआछूत पर करारी चोट की। इससे देश की विभिन्न जातियों में भेदभाव के बंधन शिथिल पड़ गये और छुआछूत की भावना कम होने लगी।

2. हिन्दुओं नया मुसलमानों में मेल-मिलाप-भक्ति आंदोलन के फलस्वरूप हिन्दुओं और मुसलमानों में विद्यमान आपसी वैमनस्य, ईर्ष्या, घृणा, द्वेष, अविश्वास तथा सन्देह की भावना कम होने लगी। वे एक-दूसरे को सम्मान देने लगे और उनमें आपसी मेल-जोल बढ़ा।

3. व्यापक दृष्टिकोण-भक्ति आंदोलन ने संकीर्णता की भावना को दूर किया तथा लोगों के दृष्टिकोण को व्यापक तथा उदार बनाने में सहायता की। लोग अब प्रत्येक बात को तर्क तथा बुद्धि की कसौटी पर कसने लगे। ब्राह्मणों का प्रत्येक वचन उनके लिए ‘वेद-वाक्य’ न रहा। अंधविश्वास तथा धर्मांधता की दीवारें गिरने लगीं। देश की दोनों प्रमुख जातियों-हिन्दुओं तथा मुसलमानों का दृष्टिकोण उदार तथा व्यापक होने लगा।

4. निम्न जातियों का उद्धार-भक्ति आंदोलन के नेताओं ने समाज में एक नया वातावरण पैदा किया। जाति-पालि के बंधन शिथिल होने लगे, ऊँच-नीच तथा धनी-निर्धन का भेदभाव कम हुआ और उनमें आपसी घृणा समाप्त होने लगी।

प्रश्न 10.
प्रारम्भिक भक्ति परम्परा के स्वरूप की विशेषतायें बताइए।
उत्तर:
प्रारम्भिक भक्ति परम्परा के स्वरूप की विशेषतायें –

  1. देवताओं की पूजा के तरीकों विकास के दौरान संत कवि ऐसे नेता के रूप में उदित हुए जिनके आस-पास भक्तजनों की भीड़ लगी रहती थी। इन्हीं के नेतृत्व में प्रारम्भिक भक्ति आंदोलन आरम्भ हुआ।
  2. भारतीय भक्ति परम्परा में विविधता थी। कुछ कृष्ण के भक्त थे तो कुछ राम के। कुछ सगुण उपासक थे तो कुछ निर्गुण।
  3. भक्ति परम्परा में सभी वर्गों को स्थान दिया गया। स्त्रियों और समाज के निम्न वर्गों को भी सहज स्वीकृति दी गयी।
  4. इतिहासकारों ने भक्ति परम्परा को दो वर्गों में विभाजित किया है-सगुण भक्ति और निर्गुण भक्ति। प्रथम वर्ग में शिव, विष्णु और उनके अवतार तथा देवियों को मूर्त आराधना शामिल है। निर्गुण भक्ति परम्परा में अमूर्त अर्थात् निराकार ईश्वर की उपासना की जाती थी।

प्रश्न 11.
“सूफी सम्प्रदाय और भक्ति सम्प्रदाय के विचारों में पर्याप्त समानता मिलती है।” तर्क दीजिए।
उत्तर:
सूफी सम्प्रदाय और भक्ति सम्प्रदाय के विचारों में समानतायें:

  1. दोनों सम्प्रदाय एकेश्वरवादी थे। सूफियों का कहना था कि परमात्मा एक है और हम उसकी संतान है। भक्ति आंदोलन ने एक ईश्वर को माना और उसका भजन कीर्तन किया।
  2. दोनों ने मानवता को समान महत्त्व दिया और मानव-जाति को प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।
  3. सूफी और भक्त संत दोनों ने गुरु को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है। सूफी गुरु को पीर कहते थे।
  4. दोनों सम्प्रदायों ने हिन्दुओं और मुसलमानों को साथ मिलकर रहने और एक दूसरे की मदद करने का उपदेश दिया।
  5. सूफियों, हिंदू संतों और रहस्यवादियों के बीच प्रकृति, ईश्वर, आत्मा और संसार से सम्बन्धित विचारधारा में पर्याप्त समानता थी।
  6. दोनों ने ही यह बताया कि मानव प्रेम ही ईश्वर प्रेम है और नर-सेवा ही नारायण-सेवा है।

प्रश्न 12.
अलवार और नयनार कौन थे। इनकी प्रमुख उपलब्धियाँ क्या थी?
उत्तर:
अलवार और नयनार तथा उनकी उपलब्धियाँ –

  1. तमिलनाडु में प्रारम्भिक भक्ति आंदोलन का नेतृत्व अलवारों (वैष्णव भक्त) और नयनारों (शैव भक्त) ने दिया।
  2. वे एक स्थान से दूसरे स्थान का भ्रमण करते थे और अपने ईष्ट देव की स्तुति में गीत गाते थे। इन यात्राओं के दौरान इन संतों ने कुछ स्थानों को अपने पूजनीय देवता का निवास स्थान घोषित किया।
  3. ये स्थान तीर्थ स्थल बन गये और यहाँ विशाल मंदिर बनाये गये। इन संत कवियों के भजनों को मंदिर में उत्सव के समय गाया जाता था और साथ ही संतों की मूर्तियाँ बनाकर पूजा की जाने लगी।
  4. अलवार और नयनार जाति प्रथा के विरोधी थे और ब्राह्मणों को विशेष महत्त्व नहीं देते थे।
  5. इन संतों की रचनाओं को वेदों के समान महत्त्वपूर्ण माना जाता था। एक प्रसिद्ध काव्य संकलन ‘नलयिरा दिव्य प्रबंधम्’ का उल्लेख वेद के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 13.
मस्जिद के स्थापत्य की विशेषतायें बताइए।
उत्तर:
मस्जिद के स्थापत्य की विशेषतायें –

  1. मस्जिद को इस्लामिक कला को मूल रूप माना गया है। इसका मौलिक ढाँचा साधारण होता है।
  2. मस्जिद का अनुस्थापन मक्का की ओर किया जाता था। इसमें एक खुला प्रांगण होता है जिसके चारों ओर स्तम्भों वाली छतें होती हैं।
  3. आँगन के मध्य में नमाज से पूर्व स्नान करने के लिए एक सरोवर या जलाशय होता है। इसके पश्चिम में मेहराबों वाला एक विशाल कक्ष होता है। मक्का को सम्मुख दिशा में स्थित यह विशाल कक्ष नमाज की दिशा बताता है।
  4. इस विशाल कक्ष के दक्षिण की ओर एक मंच होता है जहाँ से इमाम प्रवचन देता है। मस्जिद में एक या अधिक मीनारें भी होती हैं जहाँ से अजान दी जाती है।
  5. जिस मस्जिद में मुसलमान जुम्मा की नमाज के लिए एकत्रित होते हैं उसे ‘जामी मस्जिद’ कहा जाता है।

प्रश्न 14.
आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि बाबा गुरु नानक की परम्पराएँ 21 वीं शताब्दी में महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
21 वीं शताब्दी के सन्दर्भ में नानक की परम्पराओं का महत्त्व –

  1. गुरु नानक ने बड़े-बड़े धार्मिक अनुष्ठानों, यज्ञों तथा मूर्ति पूजा का खंडन किया, जो आज भी उपयोगी हैं।
  2. उनका कहना था कि ईश्वर एक है और निराकार है। उसके साथ केवल शब्द के द्वारा ही संबंध जोड़ा जा सकता है।
  3. उनकी शिक्षायें इतनी सरल थीं कि आज भी व्यावहारिक हैं।
  4. नानक ने अपने शिष्यों को एक समुदाय के रूप में गठित किया और उनके लिए उपासना के नियम बनाये। ऐसे संगठन और एकता की आज भी खासी आवश्यकता है।
  5. उन्होंने जाति-प्रथा का विरोध किया और किसी को ऊँच-नीच नहीं समझा। भूमंडलीकरण के परिप्रेक्ष्य में आज भी ऐसी धारणा का रहना प्रासंगिक और श्रेष्ठ है।
  6. उन्होंने मानव सेवा तथा आपसी। प्रेम तथा भाईचारे को बढ़ावा दिया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सल्तनत काल में उत्तर भारत की धार्पिक दशा का वर्णन कीजिए। इसने ब्राह्मणों की स्थिति कि कैसे प्रभावित किया। अथवा, 13-14 वीं शताब्दी की धार्मिक स्थिति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सल्तनत काल में धार्मिक दशा:
दिल्ली सल्तनत एक इस्लामी राज्य था जिसमें इस्लाम राज्य धर्म था। दिल्ली के सुल्तान और अन्य विदेशी मुसलमान कट्टर सुन्नी मुसलमान थे। इन शासकों का यह धार्मिक कर्त्तव्य था कि वे धर्म का प्रसार करें और अन्य धर्मावलम्बियों को इस्लाम धर्म में दीक्षित करें। भारत में हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की कई मुहिम चलाई गयीं। जनता को डरा-धमका कर, लालच देकर तथा सम्मानित करके धर्म परिवर्तन कराने के अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं।

वस्तुतः धर्मान्तरण उनके लिए धार्मिक कृत्य था। हिन्दुओं को ‘जिम्भी’ कहा जाता था। इसका अर्थ यह है कि वे समझौता करके जीवित रहने का अधिकार प्राप्त करने वाले लोग हैं। जजिया नामक कर देकर हिन्दू जीवित रहने का अधिकार प्राप्त करते थे। जो लोग जजिया नहीं देते थे उन्हें जबरदस्ती मुसलमान बना लिया जाता था। हिन्दुओं के लिए अपने मंदिरों में पूजा करना, घंटा-घड़ियाल बजाना अथवा धार्मिक जुलूस निकालना अत्यन्त कठिन था। इस प्रकार धार्मिक क्षेत्र में आजादी नहीं थी और इस दृष्टि से राज्य असहिष्णु था। भारत में शिया मुसलमानों का भी वर्ग था ! सुन्नी मुसलमान शियाओं के भी विरोधी थे। उन्होंने शियाओं का दमन किया। शियाओं को प्राय: दूर ही रखा जाता था तथा उनके धार्मिक कार्यों में विघ्न डाला जाता था।

ब्राह्मणों की स्थिति पर प्रभाव:
ब्राह्मणों के प्रभाव में कमी होने लगी थी और गैर-ब्राह्मणीय नेताओं के प्रभाव बढ़ रहे थे। इन नेताओं में नाथ, जोगी और सिद्ध शामिल थे। उनमें में अनेक लोग शिल्पी समुदाय के थे। इनमें मुख्यतः जुलाहे थे। शिल्प कला के विकास के साथ उनका महत्त्व भी बढ़ रहा था। नगरों के विस्तार तथा मध्य एवं पश्चिमी एशिया के साथ व्यापार बढ़ने के कारण शिल्पी वस्तुओं की मांग बढ़ गई थी। सभी शिल्पकार धनाढ्य थे।

अनेक धार्मिक नये नेताओं ने वेदों की सत्ता को चुनौती दी और अपने विचार आम-लोगों की भाषा में सामने रखे। समय के साथ इन भाषाओं ने वह रूप धारण कर लिया जिस रूप में वे आज प्रयोग में लाई जाती हैं। अपनी लोकप्रियता के बावजूद नए धार्मिक नेता विशिष्ट शासक वर्ग का समर्थन प्राप्त न कर सके। सल्तनत राज्य की स्थापना से राजपूत राज्यों तथा उनसे जुड़े ब्राह्मणों का महत्त कम हो गया था। इन परिवर्तनों का प्रभाव संस्कृति और धर्म पर भी पड़ा। भारत में सूफियों का आगमन इन परिवर्तनों का एक महत्त्वपूर्ण अंग था।

प्रश्न 2.
सूफी मत क्या है? इसकी विशेषताओं अथवा सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सूफी मत (Sufism):
मध्यकालीन भारत में इस्लाम धर्म दो वर्गों-सुन्नी और शिया में बँट गया था। इनके बीच लगाकर तनाव और संघर्षों की स्थिति बन रही थी। इस बढ़ते हुए वैमनस्य को दूर करने के लिए कुछ मुसलमान संतों ने प्रेम एवं भक्ति पर बल दिया। ये सूफी संत कहलाए। सूफी मत के सम्बन्ध में इतिहासकार राय चौधरी ने लिखा है, “सूफी मत ईश्वर तथा जीवन की समस्याओं के प्रति मस्तिष्क तथा हृदय की भावना है ओर वह कट्टर इस्लाम से उसी प्रकार भिन्न है, जिस प्रकार कैथोलिक धर्म से “प्रोटेस्टेन्ट” भिन्न है।” जिस प्रकार हिन्दू धर्म की बुराइयों को दूर करने के लिए भक्ति आंदोलन का जन्म हुआ था, उसी प्रकार इस्लाम धर्म में आई हुई बुराइयों को दूर करने के लिए सूफीमत अस्तित्त्व में आया। यह मत प्रेम और मानवमात्र की समानता के सिद्धांत पर आधारित था।

सूफी मत का आरम्भ:
सूफी मत का जन्म ईरान में हुआ। हजरत मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात् इस्लाम धर्म के अनुयायी शिया और सुन्नी के दो वर्गों में बँट गए और एक-दूसरे से ईर्ष्या, घृणा तथा द्वेष रखने लगे। सूफी मत इन झगड़ों को समाप्त कर दोनों वर्गों में समन्वय स्थापित करना चाहता था। इस विचारधारा में प्रेम तथा आपसी भाइचारे का सन्देश दिया गया। सूफी उदार प्रकृति के मुसलमान थे और सभी धर्मों को समान समझते थे। सूफी विचार प्रेमपूर्ण भक्ति का द्योतक है। डॉ. ताराचन्द के अनुसार, “सूफीवाद प्रगाढ़ भक्ति का धर्म है, प्रेम इसका भाव है, कविता संगीत तथा नृत्य इसकी आराधना के साधन हैं, तथा परमात्मा में विलीन हो जाना इसका आदर्श है।”

सूफीमत के सिद्धांत अथवा विशेषताएँ (Principles or Characteristics of Sufism):
सूफी सन्त मानवीय गुणों के उपासक थे। वे नैतिक जीवन बिताने पर बल देते थे और धार्मिक संकीर्णता की भावना से दूर थे। सूफी नत के सिद्धांत इस प्रकार थे।

1. एकेश्वरवाद-सूफी सन्त केवल एक ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखते थे। वे पीरों तथा अवतारों को ईश्वर नहीं मानते थे, किन्तु उनकी निन्दा भी नहीं करते थे। वे राम, कृष्ण, रहीम को महापुरुष मानते थे। उनका विचार था कि सब-कुछ ईश्वर में है, उससे बाहर कुछ नहीं है।

2. मानव मात्र से प्रेम-सूफी संत सब लोगों को एक ईश्वर की सन्तान होने के कारण समान समझते थे। वे मानव-मानव में कोई भेदभाव नहीं करते थे। वे वर्ग तथा जाति-पाति तथा ऊँच-नीच के आधार पर भेदभाव के विरोधी थे। वे मानवमात्र से प्रेम तथा सहानुभूति में विश्वास रखते थे। वे सभी धर्मों को समान समझते थे। हिन्दु धर्म तथा इस्लाम उनकी दृष्टि में समान थे।

3. बाह्य आडम्बरों का विरोध-सूफी संत बाह्य आडम्बर, कर्मकाण्ड विधि-विधान, रोजा-नमाज के घोर विरोधी थे। वे जीवन की पवित्रता में विश्वास रखते थे। वे नैतिक सिद्धांतों के पोषक थे। वे मूर्ति-पूजा, हिंसा, माँस-भक्षण के पक्ष में नहीं थे। वे सांसारिक वस्तुओं का त्याग चाहते थे। वे ईश्वर को दयालु तथा उदार मानते थे। वे प्रेम तथा ईश्वर भक्ति में विश्वास रखते थे।

4. कर्म सिद्धांत में विश्वास-सूफी कर्म सिद्धांत में विश्वास रखते थे। उनके विचार से मनुष्य अपने कर्मों से अच्छा या बुरा होता है न कि जन्म से। उच्च वंश, में जन्म लेकर दुष्कर्म करने वाला व्यक्ति भी नीच कहलाएगा और निम्न वंश में जन्म लेकर अच्छे कर्म करने से आदर का पात्र होगा-उनका ऐसा विश्वास था।

5. दैवी चमत्कार में विश्वास-सूफी संत दैवी चमत्कार में विश्वास रखते थे। इसमें मनुष्य मानवीय स्थिति से ऊपर उठकर देवत्व को प्राप्त होता है। इस अवस्था में वह ईश्वर की शिक्षा
को सुन सकता है और लोगों के सामने उत्तम विचारों को रख सकता है।

6. गुरु की महिमा पर बल-सूफी संतों ने गुरु महिमा पर भी बल दिया है। एक व्यक्ति को धर्म में दीक्षित होने से पूर्व गुरु के सामने कुछ प्रतिज्ञाएँ करनी पड़ती हैं। शिष्य को गुरु की आज्ञा का पालन तथा उसकी सब प्रकार से सेवा करनी चाहिए। उनके अनुसार कठिन मार्ग को पार करने के लिए गुरु का होना परमावश्यक है। गुरु की सहायता से ही प्रत्येक व्यक्ति अपने वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त कर लेता है।

7. मनुष्य को प्रधानता-सूफी मत में मनुष्य को प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा गया है और उसकी प्रधानता को स्वीकार किया गया है। मनुष्य की आत्मा सार्वभौमिक है। उसकी आत्मा कर्मों से प्रभावित होती है, अतः मनुष्य को सदा अच्छे कर्म करने चाहिए।

8. प्रेम का विशेष महत्त्व-सूफी मत में प्रेम को विशेष महत्त्व दिया गया है। सूफी मत का आधार ही प्रेम है। सूफी सन्तों के अनुसार ईश्वर परम सुन्दर है और उसे प्रेम के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम की त्रिवेणी शारीरिक, मानसिक तथा अध्यात्मिक है।

प्रश्न 3.
सन्त कबीर एवं गुरु नानक के आरम्भिक जीवन और शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(I) सन्त कबीर का आरम्भिक जीवन:
सन्त कबीर भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता के महान् प्रचारक थे। वे भक्ति सुधारकों में सर्वाधिक प्रसिद्ध थे। उनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी से हुआ था। उसने लोक-लाज के भय से बालक को काशी के लहरतारा तालाब के किनारे फेंक दिया। नि:संतान जुलाहे नीरु ने उसे वहाँ से उठा लिया और उसकी पत्नी नीमा ने अपने पुत्र की तरह उसका पालन-पोषण किया। बड़े होने पर कबीर रामानन्द के शिष्य बन गए। कबीर का विवाह लोई नाम की लड़की से हुआ। उनके कमाल तथा कमाली नाम के दो बच्चे भी हुए लेकिन गृहस्थ जीवन में रहकर भी वे ईश्वर की भक्ति में लीन रहते थे।

कबीर की शिक्षाएँ-सन्त कबीर की प्रमुख शिक्षाएँ इस प्रकार हैं:
1. ईश्वर एक है, उसका कोई आकार नहीं है। कथन है कि-‘हिन्दु तुरक का कर्ता एकता गति लिखी न जाई।

2. ईश्वर सर्वव्यापक है। मूर्ति-पूजा से कोई लाभ नहीं। उसे पाने के लिए मन की पवित्रता आवश्यक है।

3. ईश्वर को पाने के लिए गुरु की अत्यन्त आवश्यकता है। यदि ईश्वर अप्रसन्न हो जाए तो गुरु के सहारे उसे फिर पाया जा सकता है, किन्तु यदि गुरु रूठ जाए तो कहीं भी सहारा नहीं मिलता (हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर)।

4. कबीर जाति-पाँति के भेद-भाव को स्वीकार नहीं करते थे उनका विश्वास था कि जाति के आधार पर कोई छोटा या बड़ा नहीं हो सकता। कबीर ने ब्राह्मणों की जाति को ऊँचा मानने से साफ इन्कार कर दिया था।

5. कबीर व्यर्थ के रीति-रिवाजों को आडम्बरों के विरोधी थे। उन्होंने पूजा-पाठ, रोजा-नमाज, तीर्थ-यात्रा और हज आदि का विरोध किया है। उन्होंने मुसलमानों की नमाज का विरोध करते हुए लिखा है:

“काँकर पाथर जोरि के, मसजिद लई चुनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, बहरा हुआ खुदाय।” इसी तरह उन्होंने हिन्दुओं की मूर्ति-पूजा का भी विरोध किया:

“पाहन पूजे हरि मिलै, तो मैं पूजें पहार।
ताते या चाकी भली, पीस खाय संसार ”

6. कबीर कर्म-सिद्धान में विश्वास रखते थे। उनका विश्वास था कि प्रत्येक व्यक्ति को उसके अच्छे या बुरे कर्म का फल अवश्य भुगतना पड़ेगा। उनके शब्दों में:

“कबिरा तेरी झोपड़ी, गलकटियन के पास।
जो करे सो भरे, तू क्यों भया उदास।

7. कबीर सभी धर्मों की एकता में विश्वास रखते थे। उनके अनुसार हिन्दू-मुसलमान में कोई भेदभाव नहीं है। उनके अनुसार दोनों की मौजल एक ही है, केवल रास्ते अलग-अलग हैं। इस प्रकार कवीर ने जाति-भेद का विरोध किया, कुसंग की निन्दा की तथा साधना और प्रेम पर बल दिया। उन्होंने गुरु को गोविन्द (ईश्वर) के समान मानः। उन्होंने हिन्दू-मुसलमान दोनों के आडम्बरों का विरोध किया। उनमें बैर-विरोध कम करके एकता की स्थापना की। डॉ० ताराचन्द के अनुसार, “कबीर का उद्देश्य प्रेम के धर्म का प्रचार करना था, जो धर्मों और जातियों के नाम पर पड़े भेदों को मिटा दे।” अत: डॉ० बनर्जी ने ठीक ही लिखा है कि “कबीर मध्यकाल के सुधारक मार्ग के पहले पथ-प्रदर्शक थे, जिन्होंने धर्म के क्षेत्र में हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए सक्रिय प्रयास किया।”

(II) गुरु नानक:
सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरु नानक का जन्म 1469 ई० में रावी नदी के तट पर स्थित एक गाँव जलवण्टी में हुआ। इनके पिता का नाम मेहता कालूराम और माता का नाम तृप्ता देवी था। इनका विवाह बचपन में ही कर दिया गया था। पिता के व्यवसाय-का लेखा-जोखा तैयार करने का प्रशिक्षण फारसी में दिया गया। आपके दो पुत्र भी हुए जिनका नाम श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द था। नानक जी का झुकाव अध्यात्मवाद की ओर था। उन्हें साधु-सन्तों की संगति अच्छी लगती थी। कुछ समय बाद उन्हें सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ।

उन्होंने मानवता को सच्ची राह दिखाने के लिए दूर-दूर तक यात्राएँ की जिन्हें सिक्ख धर्म में ‘उदासियाँ’ कहा जाता है। कहा जाता है कि वे सारे भारत के अतिरिक्त श्रीलंका, बर्मा, चीन और अरब (मक्का और मदीना) भी गए लेकिन जीवन के अंतिम दिनों में वे गुरदासपुर जिले के करतारपुर गाँव में बस गए। वे काव्य रचना करते थे और उनके शिष्य मरदाना और बाला, सारंगी व रबाब बजाते थे। उन्होंने करतारपुर में यात्रियों के लिए धर्मशाला बनवाई और अपने शिष्यों में समानता लाने का प्रयास किया। 1539 ई० में उनका देहांत हो गया।

कबीर की तरह गुरु नानक ने भी एकेश्वरवाद पर बल दिया। उन्होंने कहा कि ईश्वर के स्मरण और उसके प्रति भक्ति से ही मुक्ति मिल सकती है। वे ईश्वर की निकटता पाने के लिए व्यवहार और चरित्र की पवित्रता पर बहुत बल देते थे। मार्गदर्शन के लिए उन्होंने गुरु की अनिवार्यता पर भी बल दिया। कबीर की तरह वे भी मूर्ति-पूजा, तीर्थ-यात्रा तथा धार्मिक आडम्बरों के विरोधी थे। उन्होंने मध्यम मार्ग पर बल दिया। वे गृहस्थ जीवन के पक्षपाती थे। उन्होंने उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया तथा शान्ति, सद्भावना और भाई-चारे की भावना द्वारा हिन्दू-मुस्लिम एकता की स्थापना की। इस प्रकार, कबीर और नानक ने एक ऐसा जनमत तैयार किया जो शताब्दियों तक धार्मिक उदारता के लिए प्रयत्नशील रहा।

प्रश्न 4.
भक्ति आंदोलन के उदय के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भक्ति आंदोलन के उदय के कारण-भक्ति आंदोलन के उदय के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
1. हिन्दू धर्म का विघटन (Degeneration of Hindusim):
मध्ययुग में हिन्दू धर्म में अनेक बुराइयाँ आ चुकी थीं। धर्म अपनी पवित्रता और प्रभाव खो चुका था। अन्धविश्वास, रूढ़िवाद, आडम्बर और जातिवाद में लोगों का विश्वास बढ़ता जा रहा था। ब्राह्मण, भ्रष्ट और निर्दयी हो चुके थे। वे जनता का अधिक से अधिक शोषण करते थे। इन बुराइयों के विरुद्ध कुछ लोगों ने साहसी कदम उठाया और इस प्रकार भक्ति आंदोलन का श्रीगणेश हुआ।

2. इस्लाम धर्म का खतरा (Danger from Islam):
भारत में मुस्लिम शासन के कारण इस्लाम धर्म का प्रचार तेजी से हो रहा था इसके कारण हिन्दू धर्म समाप्त हो जाने का खतरा उत्पन्न हो गया था। इस्लाम-धर्म के सिद्धांतों ने एक ईश्वर और भाई-चारे के सिद्धांत का प्रचार किया। इन सिद्धांतों ने भारत के अधिसंख्यक निम्नवर्ग को बहुत अधिक प्रभावित किया। इस खतरे से हिन्दू धर्म को बचाने के लिए कुछ सुधारकों ने अपना कार्य शुरू कर दिया।

3. मुस्लिम शासन (Reign of Muslims):
भक्ति-आंदोलन के उदय का एक प्रमुख कारण मुस्लिम शासन था। धीरे-धीरे मुसलमान भारत में स्थायी रूप से बस गये और उन्होंने हिन्दुओं पर शासन करना शुरू कर दिया। जब उनका स्थायी राज्य स्थापित हो गया तो हिन्दू जनता उन्हें बाहर निकालने में असमर्थ हो गयी। ऐसी स्थिति में दोनों के सम्पर्क बढ़ने लगे। इस सम्पर्क को बढ़ाने वाले सन्त थे।

4. सूफी संत (Sufi Saint):
इस समय सूफी संतों जैसे ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया और नसीरूद्दीन चिराग-ए-दिल्ली आदि के कारण सूफी प्रभाव बढ़ता जा रहा था। इन्होंने कट्टर मुस्लिम विचारों पर अंकुश लगाया। इनके प्रभाव से भारत में सगुण-भक्ति विचारधारा को बल मिला।

5. भक्ति मार्ग को अपनाया (Selection of Bhakti Marg):
इस्लामी खतरे का सामना करने के लिए हिन्दू सुधारकों ने भक्ति मार्ग की शिक्षा को अपना प्रमुख सिद्धांत बनाये रखा। मोक्ष के तीन मार्गों-ज्ञान मार्ग, कर्म मार्ग और भक्ति मार्ग में सबसे सरल भक्ति मार्ग ही था। इसलिए मध्ययुग के धार्मिक सुधारकों ने इसी मार्ग पर जोर दिया।

प्रश्न 5.
भारत में सूफी सिलसिले पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत में सूफी:
सिलसिले (Sufi Order in India):
भारत में 13 वीं और 14 वीं शताब्दी में चिश्ती और सुहरावर्दी सिलसिले अधिक प्रचलित थे और इनके अनुयायियों की संख्या भी काफी थी।

चिश्ती सिलसिला (the Chisti Order):
भारत में चिश्ती की स्थापना का श्रेय ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती को जाता है। इनका जन्म 1142 ई० में मध्य एशिया में हुआ। 1192 ई० में वे भारत आये और कुछ समय लाहौर और दिल्ली में रहने के बाद अजमेर में आबाद हो गये जो उस समय एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक केन्द्र था। उनके स्वतंत्र विचारों का प्रचार बहुत जल्दी हुआ और उनके अनुयायियों की संख्या में दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती गई।

उनकी मृत्यु 1223 ई० में हुई। आज भी हजारों मुसलमान हर साल अजमेर में उनकी दरगाह पर जाते हैं। उनके शिष्यों में शेख हमीमुद्दीन और ख्वाजा बख्तियार उद्दीन काकी के नाम उल्लेखनीय हैं। काकी के शिष्य फरीदउद्दीन-गंज-ए-शंकर थे जिन्होंने पंजाब अपना केन्द्र बनाया। इन सन्तों ने अपने आपको राजनीति, शासकों तथा सरकारों से सदा दूर रखा। वे निजी सम्पत्ति नहीं रखते थे।

चिश्ती सन्तों में निजामुद्दीन औलिया और नसीरुद्दीन चिराग-ए-दिल्ली के नाम विशेषकर उल्लेखनीय हैं। उन्होंने दिल्ली को अपने प्रचार का केन्द्र बनाया। निजामुद्दीन औलिया सादा और पवित्र जीवन, मानववाद, ईश्वरीय प्रेम, अध्यात्मिक विकास एवं गीत-संगीत (सभा) पर बल देते थे। निम्न वर्ग के लोगों से विशेष सहानुभूति रखते थे। धर्म-परिवर्तन में वे विश्वास नहीं रखते थे। नसीरुद्दीन ने भी इस सिलसिले की उन्नति में बहुत योगदान दिया। उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली में उनका प्रभुत्व कम होने लगा। तत्पश्चात् उनके शिष्यों ने उनके सिद्धांतों का प्रचार दक्षिणी और पूर्वी भारत में किया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
संत कवियों के विवरण का स्रोत क्या है?
(अ) अभिलेख
(ब) महाकाव्य
(स) उनकी मूर्तियाँ
(द) अनुयायियों द्वारा लिखी गयी जीवनियाँ
उत्तर:
(द) अनुयायियों द्वारा लिखी गयी जीवनियाँ

प्रश्न 2.
लोग जजिया कर क्यों देते थे?
(अ) सुल्तान का खजाना भरने के लिए
(ब) सुल्तानों का संरक्षण प्राप्त करने के लिए
(स) सुल्तान के भय से
(द) राज्य निष्कासन से बचने के लिए
उत्तर:
(ब) सुल्तानों का संरक्षण प्राप्त करने के लिए

प्रश्न 3.
रेडफील्ड कौन था?
(अ) समाजशास्त्री
(ब) इतिहासकार
(स) राजनेता
(द) समाज सुधारक
उत्तर:
(अ) समाजशास्त्री

प्रश्न 4.
तांत्रिक पूजा पद्धति में पूजा की जाती है?
(अ) देवताओं की
(ब) देवियों की
(स) दोनों की
(द) दानवों की
उत्तर:
(ब) देवियों की

प्रश्न 5.
चतुर्वेदी का क्या अर्थ है?
(अ) हवन कुंड के चारों ओर बनी वेदी
(ब) चतुर वैद
(स) चारों वेदों का ज्ञाता
(द) विष्णु का पुजारी
उत्तर:
(स) चारों वेदों का ज्ञाता

प्रश्न 6.
करइक्काल अम्मइयार किससे संबंधित थी?
(अ) इस्लाम
(ब) भक्ति परम्परा
(स) अलवर
(द) नयनार
उत्तर:
(द) नयनार

प्रश्न 7.
नयनार संत बौद्ध और जैन धर्म को किस दृष्टि से देखते थे?
(अ) प्रेम
(ब) सौहार्द
(स) घृणा
(द) विरोधी
उत्तर:
(द) विरोधी

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में शिव मंदिर कहाँ नहीं है?
(अ) भीतरी
(ब) चिदम्बरम्
(स) तंजावुर
(द) गंगा कोडाचोलपुरम्
उत्तर:
(अ) भीतरी

प्रश्न 9.
किसका संबंध ब्राह्मणीय परम्परा से था?
(अ) नाथ परम्परा
(ब) भक्ति परम्परा
(स) जोगी परम्परा
(द) सिद्ध परम्परा
उत्तर:
(ब) भक्ति परम्परा

प्रश्न 10.
इस्लाम का उद्भव कब हुआ?
(अ) 10 वीं शताब्दी
(ब) 9वीं शताब्दी
(स) सातवीं शताब्दी
(द) छठी शताब्दी
उत्तर:
(स) सातवीं शताब्दी

प्रश्न 11.
जाजिया कर कौन देता था?
(अ) मुस्लिम वर्ग
(ब) गैर मुस्लिम वर्ग
(स) दोनों वर्ग
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(ब) गैर मुस्लिम वर्ग

प्रश्न 12.
मालाबार तट पर बसे मुसलमान व्यापारियों की भाषा क्या थी?
(अ) उर्दू
(ब) अरबी
(स) तमिल
(द) मलयालम
उत्तर:
(द) मलयालम

प्रश्न 13.
पारसीक कहाँ के रहने वाले थे?
(अ) तजाकिस्तान
(ब) सीरिया
(स) फारस
(द) काबुल
उत्तर:
(स) फारस

प्रश्न 14.
खानकाह का नियंत्रण कौन करता था?
(अ) शेख
(ब) मुरीद
(स) खलीफा
(द) संत
उत्तर:
(अ) शेख

प्रश्न 15.
ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह कहाँ है?
(अ) दिल्ली
(ब) अजमेर
(स) पाकिस्तान
(द) ईरान
उत्तर:
(ब) अजमेर


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