BSEB Class 12 Political Science Era of One Party Dominance Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Political Science Era of One Party Dominance Book Answers |
Bihar Board Class 12th Political Science Era of One Party Dominance Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 12th |
Subject | Political Science Era of One Party Dominance |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर खाली जगह को भरो –
(क) 1952 के पहले आम चुनाव में लोकसभा के साथ-साथ ………… के लिए भी चुनाव कराए गए थे। (भारत के राष्ट्रपति पद/राज्य विधान सभा/राज्य सभा/प्रधानमंत्री)
(ख) ………….. लोकसभा के पहले आम चुनाव 16 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही (प्रजा सोशलिष्ट पार्टी/भारतीय जनसंघ/भारतीय कम्पयुनिष्ट पार्टी/भारतीय जनता पार्टी।
(ग) …………. स्वतंन्त्र पार्टी का एक निर्देशक सिद्धान्त था। कामगार तबके का हित / रियासतों का बचाव/राज्य के नियन्त्रण से मुक्त अर्थ व्यवस्था/संघ के भीतर राज्यों को स्वायत्तता)।
उत्तर:
(क) राज्य विधान सभा
(ख) कम्युनिष्ट पार्टी
(ग) राज्यों के नियन्त्रण से मुक्त अर्थव्यवस्था
प्रश्न 2.
यहाँ दो सूचियाँ दी गई है। पहले में नेताओं के नाम दर्ज हैं व दूसरे में दलों के। दोनों सूचियों में मेल बैठाएँ।
उत्तर:
प्रश्न 3.
एकल पार्टी के प्रभुत्व के बारे में यहाँ चार बयान लिखे गए हैं। प्रत्येक के आगे सही या गलत का चिह्न लगाएँ।
(क) विकल्प के रूप में किसी मजबूत राजनीतिक दल का अभाव एकल पार्टी-प्रभुत्व का कारण था।
(ख) जनमत की कमजोरी के कारण एक पार्टी का प्रभुत्व कायम हुआ।
(ग) एकल पाटी-प्रभुत्व का सम्बन्ध के औपनिवेशिक अतीत से है।
(घ) एकल पाटी-प्रभुत्व से देश में लोकतान्त्रिक आदर्शों के अभाव की झलक मिलती है।
उत्तर:
(क) – सही
(ख) – गलत
(ग) – गलत
(घ) – गलत
प्रश्न 4.
अगर पहले आम चुनाव के बाद भारतीय जनसंघ अथवा भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी की सरकार बनी होती तो किन मामलों में इस सरकार ने अलग नीति अपनाई होती? इन दोनों दलों द्वारा अपनाई गई नीतियों के बीच तीन अन्तरों का उल्लेख करें।
उत्तर:
अगर पहले आम चुनाव के बाद भारतीय जनसंघ अथवा भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी की सरकार बनी होती तो इन सरकारों ने किसान मजदूरों, केन्द्र व प्रान्तों के सम्बन्धों के बारे में, उद्योगों के बारे में व विदेश की नीति के बारे में अलग नीतियाँ बनाई होती।
भारतीय जनसंघ व भारतीय कम्युनिष्ट पार्टियों की नीतियों में निम्न तीन अन्तर प्रमुख हैं –
- भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी की सामाजिक आर्थिक नीतियाँ किसान व मजदूरों के हितों की पक्षधर हैं। जबकि भारतीय जनसंघ पार्टी की नीतियाँ व्यापारियों व उद्योगपतियों के हितों की पक्षधर मानी जाती है।
- भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी धर्म निरपेक्ष का समर्थन करती है। जबकि भारतीय जनसंघ पार्टी हिंदूवाद का समर्थन करती है।
- भारतीय जनसंघ पार्टी कश्मीर के अनुच्छेद 370 को हटाने का पक्षधर है जबकि भारतीय कम्युनिष्ट दल जम्मू कश्मीर को 370 के तहत विशेषदर्जा देने के पक्ष में है।
प्रश्न 5.
कांग्रेस किन अर्थों में एक विचारधारात्मक गठबन्धन थी? कांग्रेस में मौजूद विभिन्न विचाराधारात्मक उपस्थितियों का उल्लेख करें।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म 1885 को हुआ। उस समय यह केवल एक राजनीतिक दल ही नहीं था बल्कि यह आन्दोलन था उसमें प्रत्येक वर्ग जाति, क्षेत्र, भाषा व हित समूह के लोग शामिल थे जो वर्ग व समूह कांग्रेस से किन्हीं मुद्दों पर मतभेद रखते थे वे भी कुछ क्षेत्रों में कांग्रेस के साथ कंधे से कन्धे मिलाकर चलते थे। इस प्रकार कांग्रेस एक पथदर्शक थी। प्रारम्भ में यद्यपि कांग्रेस का नेतृत्व उच्च वर्ग व वकील पेशे तक के लोगों तक सीमित था परन्तु जैसे जैसे कांग्रेस का जनाधिकार बढ़ा कांग्रेस का नेतृत्व भी विस्तृत हुआ अब इसमें खेती किसान की बुनियाद वाले तथा गाँव-गिराव की तरफ रूझान रखने वाले नेता भी उभरे।
आजादी के समय कांग्रेस एक सतरंगे सामाजिक गठबन्धन के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर छाया हुई थी। वैज्ञानिक स्तर पर भी साम्यवादी दल, समाजवादी दल, स्वतन्त्र दल, भी कांग्रेस के साथ कार्यरत थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्वयं समाजवादी व साम्यवादी चिन्तन के नजदीक थे। गांधीजी को भी अराजकतावादी व साम्यवादी कहा गया। सुभाषचन्द्र भी एक साम्यवादी विचारधारा के थे उन्होंने फारवर्ड ब्लॉक पार्टी बनायी। इस अर्थ में कांग्रेस एक विचारात्मक गठबन्धन थी। कांग्रेस ने अपने अंदर क्रान्तिकारी, शान्तिवाद, मनुदारवादी, उग्रवादी, अर्थात् नर्मपंथी, दक्षिणपंथी, वामपंथी हर धारा के लोग समूह में थे। इस प्रकार कांग्रेस एक ऐसा समुद्र था जिसमें अनेक नदियों का संगम था। कांग्रेस में विलय व समायोजन की संस्कृति थी।
प्रश्न 6.
क्या एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतान्त्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ?
उत्तर:
एक लम्बे समय तक भारतीय राजनीति में एक राजनीतिक दल अर्थात् कांग्रेस का प्रभुत्व रहा जिसका कारण प्रमुख रूप से यह था कि अन्य कोई दूसरा दल कांग्रेस के समान रूप में उभर कर नहीं आया। दूसरा कारण यह भी था कि कांग्रेस के पास राष्ट्रीय आन्दोलन की विरासत साथ थी व पंडित जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गाँधी व सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री जैसे लोगों का नेतृत्व रहा जिन्होंने देश, को मजबूत किया बल्कि समाज को भी एक नई दिशा दी। 1952 से लेकर 1967 तक 1971 से लेकर 1977 तक 1980 से लेकर 1989 तक 1991 से 1996 तक कांग्रेस का प्रभाव रहा है अर्थात् प्रभुत्व रहा है।
भारतीय राजनीति में कांग्रेस के एकल दल के रूप में प्रभुत्व के भारतीय राजनीति पर निश्चित रूप से कुछ नकारात्मक प्रभाव अवश्य पड़े हैं जिनमें से प्रमुख रूप से निम्न हैं –
- राजनीतिक दलों में आन्तरिक प्रजातन्त्र का अभाव।
- केन्द्रवाद का विकास
- संविधान के प्रावधानों, (जैसे अनुच्छेद 356 का प्रयोग 356 का प्रयोग) का प्रयोग
- राज्यपाल के पद की गरिमा में, कभी
- विरोधी दलों का अभाव
- केन्द्र व प्रान्तों में टकराव की राजनीति
- मुख्यमंत्री के पद की गरिमा में गिरावट
- क्षेत्रीय दलों का उदय
- क्षेत्रवाद का उदय
- केन्द्र व प्रान्तों के सम्बन्धों की पुनः व्याख्या की माँग।
प्रश्न 7.
समाजवादी दलों और कम्युनिष्ट पार्टी के बीच के तीन अन्तर बताएँ। इसी तरह भारतीय जनसंघ व स्वतन्त्र पार्टी के बीच के तीन अंतरों का उल्लेख करें।
उत्तर:
समाजवादी दलों व कम्युनिष्ट पार्टी एक दूसरे के काफी करीब ही थे यूँ भी कह सकते हैं कि समाजवाद एक रास्ता है। व साम्यवाद एक मंजिल है परन्तु फिर भी इनमें कई बुनियादी अन्तर है जो कि निम्न हैं –
- समाजवाद एक सामाजिक आर्थिक विचारधारा है जबकि साम्यवाद सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक भी है।
- समाजवाद सामाजिक आर्थिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए राज्य को बनाए रखना चाहता है बल्कि राज्य को सामाजिक आर्थिक परिवर्तन की जिम्मेवारी सौपना चाहता है जबकि साम्यवाद राज्य को समाप्त करने के पक्ष में है।
- संवैधानिक व शान्तिपूर्ण तरीकों से सामाजिक व आर्थिक परिवर्तन के पक्ष में है जबकि साम्यवादी हिंसक क्रान्ति से व्यवस्था परिवर्तन करना चाहते हैं।
भारतीय जनसंघ व स्वतंत्र पार्टी में अन्तर:
भारतीय जनसंघ वे स्वतंत्र पार्टी में कुछ समानताएँ होते हुए भी कुछ असमानताएँ हैं जिनमें से प्रमुख निम्न हैं –
- जनसंघ एक हिंदूवादी राजनीतिक दल है जो हिंदूत्व का प्रचार कर भारत को एक हिंदू राज्य बनाने की पक्षधर है जबकि स्वतंत्र पार्टी एक धर्म निरपेक्ष दल है।
- जनसंघ समाजवादी चिन्तन व राज्य की अधिक भूमिका समर्थन करती है जबकि स्वतंत्र दल मनुष्य की स्वतंत्रता की पक्षधर है व राज्य के कम से कम हस्तक्षेप के पक्ष में है।
- भारतीय जनसंघ गुटनिरपेक्षता की नीति का समर्थन करती है, जबकि स्वतंत्र पार्टी भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का विरोध करता था।
प्रश्न 8.
भारत और मैक्सिको दोनों में एक खास समय तक एक पार्टी का प्रभुत्व रहा। बताएँ कि मैक्सिको में स्थापित एक पार्टी का प्रभुत्व कैसे भारत के एक पार्टी के प्रभुत्व से अलग था?
उत्तर:
इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी का मैक्सिकों में लगभग साठ वर्षों तक शासन रहा। मूलरूप से इस दल में राजनेता और सैनिक नेता, मजदूर और किसान संगठन तथा अनेक राजनीतिक दलों सहित कई प्रकार के हितों के संगठन में शामिल थे। इस पार्टी की प्रत्येक चुनाव में जीत निश्चित की जाती थी। अन्य दल केवल नाम मात्र के लिए ही चुनाव में शामिल होते थे ताकि शासक दल (पी.आर.आई.) को वैधता मिल जाए। चुनाव में नियम इस प्रकार से तय किए जाते थे कि पी.आर.आई दल की जीत निश्चित हो। प्रत्येक प्रकार के हेरा-फेरी शासक दल के आदेश व निर्देश से की जाती थी। इस प्रकार गलत तरीकों से मैक्सिको में पी.आर.आई. दल का शासन लम्बा अर्थात् 60 वर्षों से भी अधिक तक चला।
अगर हम मैक्सिको की तुलना भारत में कांग्रेस के प्रभुत्व से तुलना करते हैं तो हम दोनों में कई प्रकार के अन्तर पाते हैं जिनमें निम्न प्रमुख हैं –
- भारत में कांग्रेस का प्रभुत्व एक साथ नहीं रहा। जबकि मैक्सिको में पी.आर.आई. का शासन लगातार 60 वर्षों तक चला।
- भारत में प्रत्येक बार स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव होते रहे तथा सभी के लिए प्रयोग होने वाले नियमों के द्वारा होते थे परन्तु मैक्सिको में चुनावों में हेरा-फेरी होती रही व नियमों को शासक दल की जीत निश्चित करने के लिए फेरबदल की जाती थी।
- भारत में प्रजातंत्रीय संस्कृति व प्रजातंत्रीय प्रणाली के तहत कांग्रेस का प्रभुत्व रहा जबकि मैक्सिको में शासक दल की तानाशाही के कारण इसका प्रभुत्व रहा।
प्रश्न 9.
भारत का एक राजनीतिक नक्शा लीजिए। जिसमें राज्यों की सीमाएँ दिखाई गई हों और उसमें निम्नलिखित को चिह्नित करें।
(क) ऐसे दो राज्य जहाँ 1952-67 के दौरान कांग्रेस सत्ता में नहीं थी।
(ख) दो ऐसे राज्य जहाँ इस पूरी अवधि में कांग्रेस सत्ता में रही।
उत्तर:
प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
कांग्रेस के संगठनकर्ता पटेल कांग्रेस को दूसरे राजनीतिक समूह से निसंग रखकर उसे एक सर्वांगसम तथा अनुशासित राजनीतिक पार्टी बनाना चाहते थे। वे चाहते थे कि कांग्रेस सबको समेटकर चलने वाला स्वभाव छोड़े और अनुशासित कॉडर से युक्त एक संगुफित पार्टी के रूप में उभरे। ‘यथार्थवादी’ होने के कारण पटेल व्यापकता की जगह अनुशासन को ज्यादा तरजीह देते थे। अगर “आंदोलन को चलाते चले जाने” के बारे में गाँधी के ख्याल हद से ज्यादा रोमानी थे तो कांग्रेस को किसी एक विचारधारा पर चलने वाली अनुशासित तथा धुरंधर राजनीतिक पार्टी के रूप में बदलने की पटेल धारणा भी उसी तरह कांग्रेस की उस समन्वयवादी भूमिका को पकड़ पाने में चूक गई जिसे कांग्रेस को आने वाले दशकों में निभाना था।
(क) लेखक क्यों सोच रहा है कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए?
(ख) शुरुआती सालों में कांग्रेस द्वारा निभाई गई समन्वयवादी भूमिका के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
1. लेखक सरदार पटेल के विचारों के सन्दर्भ में लिख रहे हैं कि भारत में लौह पुरुष सरदार पटेल कांग्रेस को किसी अन्य रूप में देखना चाहते थे। सरदार पटेल चाहते थे कि कांग्रेस एक व्यापक समूह न बने बल्कि साम्यवादी विचारधारा वाली साम्यवादी दल व जनसंघ जैसी एक निश्चित विचारधारा वाली केडर वाली व अनुशासित दल बनें। शायद ये कांग्रेस को एक राजनीतिक दल के बजाय एक आन्दोलन के रूप में देखना चाहते थे।
2. कंग्रेस की समन्वयवादी भूमिका के अनेक उदाहरण हैं जैसे कांग्रेस समाज के प्रत्येक वर्ग जैसे किसान, मजदूर, व्यापारी वकील आदि को लेकर चली अर्थात् इन सभी वर्गों से कंग्रेस को समर्थन मिला। दूसरे कांग्रेस को अनुसूचित जाति, जनजाति, ब्राह्मण, राजपूत व पिछड़ा वर्ग सभी का समर्थन मिला। इसी प्रकार प्रत्येक विचारधारा जैसे वामपन्थी व दक्षिण पन्थी विचारधारा के लोग भी कांग्रेस में शामिल थे।
Bihar Board Class 12 Political Science एक दल के प्रभुत्व का दौर Additional Important Questions and Answers
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
दलीय प्रभुत्व से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
दलीय प्रभुत्व का सम्बन्ध किसी राजनीतिक व्यवस्था की उस स्थिति से है जब किसी एक दल का प्रभाव पूरी सामाजिक व्यवस्था, प्रशासनिक व्यवस्था व राजनीतिक व्यवस्था पर होता है। चुनावी राजनीति में भी अन्य दल उसके सामने कमजोर होते हैं। एक दल के प्रभुत्व के कारण अन्य कोई दल इस स्थिति में नहीं आ पाता कि वह किसी एक विशेष दल के बराबर मतदाताओं को अपनी ओर प्रत्यक्ष रूप से अथवा अप्रत्यक्ष रूप से आकर्षित कर सकें एक दल का प्रभुत्व प्रजातन्त्रीय व्यवस्था में भी सम्भव है जैसे की भारत में कांग्रेस का प्रभुत्व इसी प्रकार तानाशाही में भी एक दल का प्रभुत्व सम्भव है जैसा कि साम्यवादी देशों में व मैक्सिको में।
प्रश्न 2.
भारत मे एक दलीय प्रभुत्व का युग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भारत में बहुदलीय प्रणाली है अर्थात् भारत में अनेक राजनीतिक दल हैं रिपोर्ट बताती है कि भारत में लगभग 1800 राजनीतिक दल हैं। जिनमें से 6 राष्ट्रीय दल हैं व 45 क्षेत्रीय दल हैं। एक दल के प्रभुत्व के युग को प्रायः 1885 से लेकर 1967 के समय को माना जाता है – क्योंकि 1885 से लेकर 1947 तक राष्ट्रीय आन्दोलन में कांग्रेस का ही प्रभुत्व रहा व 1952 में हुए प्रथम आम चुनाव से लेकर 1962 तक के सभी चुनावों में कांग्रेस को लोकसभा में सर्वाधिक सीटें प्राप्त हुई व केन्द्र व प्रान्तों में कांग्रेस का ही शासन रहा। 1967 में जाकर इस स्थिति में परिवर्तन आया जब कांग्रेस को लोकसभा में केवल साधारण बहुमत प्राप्त हुआ व कई राज्यों में कांग्रेस की सरकार नहीं बन पायी।
प्रश्न 3.
कुछ उन राजनीतिक दलों के नाम बताइये जो कांग्रेस के विरोध में विकसित हुए।
उत्तर:
कांग्रेस के विरोध में जो राजनीतिक दल विकसित हुए उनमें से मुख्य थे भारतीय जनसंघ पार्टी, भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी, मुस्लिम लीग, सोसालिस्ट पार्टी व स्वतंत्र पार्टी।
प्रश्न 4.
प्रजातंत्र से आप क्या समझते हैं? प्रजातंत्र की आवश्यक शर्ते समझाइए।
उत्तर:
प्रजातंत्र सरकार का वह रूप है जिसमें अन्तिम शक्ति जनता के पास होती है। यह वह सरकार है जिसमें जनता प्रत्यक्ष रूप से अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रशासनिक प्रक्रिया व निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेते हैं। प्रजातंत्र एक व्यापक शब्द है जिसमें सामाजिक, नैतिक आर्थिक पक्षों में व्यापक अर्थ है। वास्तव में प्रजातंत्र राजनीतिक प्रणाली के साथ-साथ एक दृष्टिकोण है। प्रजातन्त्र की सफलता के लिए कुछ आवश्यक शर्ते हैं। जैसे नागरिक शिक्षित होने चाहिए, जागरूक होने चाहिए, स्वतंत्र न्याय पालिका होनी चाहिए व स्वतंत्र प्रेस होनी चाहिए । सामाजिक व आर्थिक समानता भी प्रजातंत्र के लिए आवश्यक शर्त है।
प्रश्न 5.
भारतीय प्रजातंत्र की प्रमुख चुनौतियाँ समझाइए।
उत्तर:
भारत ने आजादी प्राप्त करने के बाद प्रजातन्त्रीय प्रणाली को अपनाया। अनेक लोगों का विचार था कि भारत में प्रजातंत्र निम्न परिस्थितियों के कारण सफल नहीं होगा –
- अनपढ़ता
- बेरोजगारी
- जातिवाद व साम्प्रदायिकवाद
- क्षेत्रीय असन्तुलन
- राज्य का व्यापक क्षत्र अर्थात् राज्य का बड़ा आकार
- क्षेत्रवाद
- उपनिवेशवादी व सामान्तवादी अतीत
- आर्थिक पिछड़ापन
- राजनीतिक ट्रेनिंग का अभाव
प्रश्न 6.
चुनाव आयोग का कार्य समझाइए।
उत्तर:
भारत में चुनावी प्रक्रिया को सम्पन्न करने के लिए भारतीय संविधान में एक सदस्ययी चुनाव आयोग के गठन की व्यवस्था की गई है जिसका प्रमुख कार्य विभिन्न स्तर पर स्वतन्त्र रूप से व शान्तिपूर्ण तरीके से चुनाव सम्पन्न कराना है। इस समय चुनाव आयोग तीन सदस्ययी है। जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त है व दो अन्य चुनाव आयुक्त है। सुमेरसैन प्रथम चुनाव आयुक्त था। चुनाव आयोग का गठन 1950 में किया गया था। प्रथम आम चुनाव भारत में 1952 में हुआ था।
प्रश्न 7.
भारतीय प्रजातंत्र की प्रमुख विशेषताएँ समझाइए।
उत्तर:
यद्यपि भारत को आजादी के बाद एक साम्यवादी व उपनिवेशवादी सामाजिक आर्थिक व्यवस्था विरासत में प्राप्त हुई फिर भी भारत में प्रजातंत्रीय प्रणाली को अपनाया जिसकी निम्न प्रमुख विशेषताएँ हैं –
- गणतंत्रात्मक सरकार
- संसदीय सरकार
- कार्यपालिका की संसद के प्रति जवाब देही
- संविधान की सर्वोच्चता
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता
- निश्चित समय पर स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव
- मन्त्रियों की व्यक्तिगत व सामूहिक जिम्मेवारी
प्रश्न 8.
व्यस्क मताधिकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आजादी से पहले भारत में केवल सीमित मताधिकार था अर्थात् कुछ विशेष आधारों जैसे जाति शिक्षा स्तर व व्यक्तिगत सम्बन्धों के आधार पर ही मताधिकार प्राप्त होता है। परन्तु भारत के संविधान बनाने वाले भारतीय नागरिकों को व्यस्क मताधिकार दिया जिसका अर्थ है कि प्रत्येक व्यस्क नागरिक को मताधिकार प्राप्त होगा चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, सामाजिक स्तर, आर्थिक स्तर व भाषा व लिंग व रंग का हो। किसी भी आधार पर मताधिकार मामले में भेदभाव नहीं किया जाएगा। प्रारम्भ में 21 वर्ष के व्यक्ति को वयस्क माना जाता था परन्तु अब संविधान संशोधन के बाद यह उम्र 18 वर्ष कर दी गई। वयस्क मताधिकार नागरिकों के सर्वांगिक विकास के लिए व प्रजातंत्र के सिद्धान्तों के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
प्रश्न 9.
आजादी के बाद के प्रारम्भिक वर्षों के चुनावों में कांग्रेस की अत्यधिक सफलता के कारण समझाइए।
उत्तर:
1952 में भारत में प्रथम आम चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस को भारी सफलता मिली। कांग्रेस की इस सफलता का सिलसिला 1957 व 1962 के चुनावों में भी चलता रहा इसके निम्न प्रमुख कारण थे।
- भारत की आजादी का गौरव भी कांग्रेस को प्राप्त था।
- राष्ट्रीय आन्दोलन की विरासत भी कांग्रेस के साथ थी।
- कांग्रेस में पंडित जवाहरलाल जैसे चमत्कारिक व्यक्तित्व के नेता थे।
- कांग्रेस के अलावा कोई अन्य प्रभावकारी राजनीतिक दल नहीं था। प्रश्न 10. 1967 के चुनाव में कांग्रेस के प्रभुत्व की गिरावट के प्रमुख क्या कारण थे।
उत्तर:
1967 के आम चुनाव में प्रथम बार कांग्रेस के प्रभाव में कमी आयी क्योंकि लोकसभा के चुनाव में भी कांग्रेस की काफी सीटें घटी व कई राज्यों में भी कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी है। कांग्रेस के प्रभुत्व में कमी के प्रमुख कारण थे –
- चमत्कारिक नेतृत्व का अभाव
- राष्ट्रीय आन्दोलन के समय की राजनीतिक संस्कृति का अभाव
- क्षेत्रवाद का उदय
- अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों का उदय व उनकी चुनावी सफलता
- गठबन्धन की राजनीति उदय
प्रश्न 11.
साम्यवादी पार्टी का उदय भारत में किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
सोवियत संघ में प्रारम्भ हुए साम्यवाद का पूरे विश्व पर प्रभाव पड़ा। भारत में साम्यवादी पार्टी का गठन 1921 में ही हो गया था। परन्तु साम्यवादी विचारधारा को भारत में जड़े पकड़ने में काफी समय लगा। भारत को साम्यवादी आन्दोलन सोवियत संघ में आन्दोलन से प्राप्त प्रेरणा का परिणाम है। 1952 व 1957 के चुनावों तक भारत में साम्यवादी पार्टी को ज्यादा सफलता नहीं मिली परन्तु 1967 के हुए चुनावों में साम्यवादी दल को केन्द्र व कुछ राज्यों में सफलता मिली। 1957 में सर्वप्रथम केरल में ई.एम.एस. नम्बूदरीपाद के नेतृत्व में साम्यवादी दल की सरकार बनी। 1957 के बाद भारत के कई अन्य महत्वपूर्ण राज्यों में इसके प्रभाव में वृद्धि हुई जैसे पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, पंजाब, हरियाणा व बिहार आदि।
प्रश्न 12.
भारत में समाजवादी पार्टी के उदय को समझाइए।
उत्तर:
भारत में समाजवादी आन्दोलन विश्व में विकसित व प्रचलित विशेषकर यूरोप में विकसित प्रक्रिया का ही हिस्सा है। आजादी से पहले ही समाजवादी विचारधारा का प्रभाव राष्ट्रीय आन्दोलन के समय ही पड़ने लगा था। आजादी के समय कांग्रेस में भी अनेक नेता समाजवादी विचारधारा से सम्बन्धित थे। कांग्रेस में ही कांग्रेस सोशलिष्ट पाटी का 1934 में गठन किया गया। 1948 में सोशलिष्ट पार्टी का गठन किया गया यद्यपि आजादी में बाद की चुनावी राजनीति समाजवादी पाटी को ज्यादा सफलता नहीं मिली। आज वास्तविक समाजवादी चिन्तन पर कोई राजनीति दल नहीं है।
प्रश्न 13.
समाजवादी आन्दोलन के कुछ प्रमुख नेताओं व चिन्तकों के नाम बताइए।
उत्तर:
समाजवाद के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यह एक ऐसा टोप है जिसका अधिक प्रयोग होने से आकार बिगड़ गया है। यह कथन सही है। भारत में ही नहीं विश्व के अनेक देशों में समाजवाद एक लोकप्रिय विचारधारा रही है जिससे अनेक चिन्तक जुड़े रहे परन्तु व्यवहार में इसे सफलता नहीं मिली। भारत के प्रमुख समाजवादी चिन्तकों के नाम निम्न हैं –
- आचार्य पटवर्धन
- आचार्य नरेन्द्र देव
- जय प्रकाश नारायण
- राजनारायण
- अशोक मेहता
- राम मनोहर लोहिया
प्रश्न 14.
उन प्रमुख राजनीतिक दलों के नाम बताइए जिनकी जड़े समाजवादी आन्दोलन के साथ जुड़ी हुई हैं।
उत्तर:
समाजवादी आन्दोलन से 1950 के दशक अनेक राजनीतिक दल प्रभावित हुए। यहाँ तक कि कांग्रेस ने भी 1955 के अपने अवधि अधिवेशन में प्रस्ताव पारित कर समाजवाद को अपनाया था। समाजवादी विचारधारा से जुड़ी प्रमुख राजनीतिक दल निम्न है –
- राष्ट्रीय जनता दल
- समाजवादी पार्टी
- जनता दल (संयुक्त)
- जनता दल (सेक्यूलर)
- समाजवादी जनता पार्टी
प्रश्न 15.
भारतीय जनसंघ पाटी की उत्पत्ति समझाइए।
उत्तर:
भारतीय जनसंघ पार्टी का गठन सन् 1951 में किया गया था। इसके संस्थापक अध्यक्ष श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे। इसकी जड़ें व वैचारिक प्रभाव आर.एस.एस. हिंदू महासभा का है। वैचारिक तौर पर भारतीय जनसंघ पार्टी कांग्रेस व साम्यवादी दलों से अलग है। भारतीय जनसंघ पाटी की प्रथमिकताएँ निम्न हैं –
- एक शब्द
- एक संस्कृति
- एक भाषा
- एक धर्म
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
भारत के संविधान के निर्माताओं ने संसदीय सरकार को क्यों अपनाया?
उत्तर:
15 अगस्त, 1947 को भारत ने आजादी प्राप्त करने के बाद अपना संविधान बनाया जिसके लिए 1946 में ही एक संविधान सभा का गठन किया गया था। लम्बे विचार विमर्श की प्रक्रिया में संविधान बनाने में लम्बा समय अर्थात् 2 वर्ष 11 माह व 18 दिन का समय लगा जो 26 नवम्बर 1949 को पूरा हुआ व 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। भारतीय संविधान में संसदीय प्रजातन्त्र को अपनाया गया। भारत में संसदात्मक प्रजातन्त्र को अपनाने से दुनिया के अनेक क्षेत्रों में इस बात पर संदेह व्यक्त किया गया कि भारत में जल्द ही फिर राजनीतिक अनिश्चितता आ जाएगी क्योंकि भारत की परिस्थिति प्रजातन्त्रीय सरकार के अनुकूल नहीं है।
भारत में 70% लोग ग्रामों में रहते हैं 30% गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं। यहाँ पर बड़े पैमाने पर लोग गरीब बेरोजगार व अशिक्षित हैं। परन्तु भारत के संविधान के बनाने वालों भारत के लोगों को जिम्मेवार व शक्तिशाली बनाने के लिए ही संसदात्मक सरकार को चुना ताकि वे अपने प्रतिनिधि चुन सके जो उनके प्रति जिम्मेवार हो तथा जो उनके बीच के ही सदस्य हो भारतीयों को विकसित करने व उनमें एक नया विश्वास पैदा करने के लिए संसदात्मक सरकार को अपनाया गया।
प्रश्न 2.
भारतीय प्रजातंत्र के सम्मुख कौन-कौन-सी प्रमुख चुनौतियाँ थी।
उत्तर:
भारतीय संविधान के निर्माताओं ने भारतीय समाज की कमजोरियों व शक्तियों को समझ कर अच्छी तरह से सोच विचार करने के बाद ही संसदीय प्रजातन्त्र को अपनाने का निर्णय लिया उन परिस्थितियों में निश्चित रूप से भारतीय प्रजातंत्र की सफलता में निम्न चुनौतियाँ थी –
- गरीबी
- राजनीतिक शिक्षा की कमी
- अनपढ़ता
- क्षेत्रीय असन्तुलन
- साम्प्रदायिकता
- साम्यवाद
- आर्थिक स्रोतों के विकास का अभाव
प्रश्न 3.
1967 के चुनाव में कांग्रेस के प्रभुत्व में गिरावट के प्रमुख कारण समझाइए।
उत्तर:
जैसा कि हम जानते हैं कि कांग्रेस का राष्ट्रीय आन्दोलन के समय में भी आजादी के बाद भी प्रभुत्व रहा। राष्ट्रीय आन्दोलन तो कांग्रेस के नेतृत्व में ही लड़ा गया। ऐसा कहा जाता है कि राष्ट्रीय आन्दोलन का इतिहास कांग्रेस का इतिहास है। आजादी के बाद भी कांग्रेस का चुनावी राजनीति में प्रभुत्व रहा। इसके कुछ निश्चित कारण भी थे। 1952 में प्रथम चुनाव हुआ इसमें कांग्रेस को भारी सफलता मिली। इसी प्रकार से 1957 व 1962 के चुनावों में भी कांग्रेस का प्रभुत्व केन्द्र व प्रान्त दोनों में बना रहा।
परन्तु 1967 के चुनाव में कांग्रेस के प्रभुत्व में केन्द्र के स्तर पर भी व प्रान्तों के स्तर पर भी गिरावट आयी जिसके निश्चित रूप से कुछ स्पष्ट कारण थे। एक प्रमुख कारण यह था कि हमारी चुनावी प्रक्रिया में जिस विधि का प्रयोग किया जाता है उसमें जिस पार्टी को वोट ज्यादा प्राप्त होते हैं उसकी सीटें भी ज्यादा आती हैं उन पार्टी के अनुपात में जो चुनाव में हिस्सा लेती हैं। 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में यही हुआ लेकिन 1967 के चुनाव में विरोधी दलों की वोट नहीं बटी जिससे कांग्रेस की वोट तो वही रही परन्तु उसकी सीटों की संख्या घट गई। इस प्रकार से 1967 में कांग्रेस का प्रभुत्व कम लगा।
प्रश्न 4.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रभुत्व का स्वरूप समझाइए।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रभुत्व में स्वरूप की दिन विशेषताएं हैं –
- कांग्रेस के प्रभुत्व का आधार भारत में प्रजातंत्रीय संस्कृति था।
- कांग्रेस का प्रभाव पूरे भारत में था तथा समाज के सभी वर्गों में था।
- कांग्रेस दल आम जनता का एक ऐसा दल था जिस पर विशिष्ट वर्गों का भी नियन्त्रण रहा।
- कांग्रेस एक ऐसा समूह है जिसमें विभिन्न हित समूह व विचार धाराओं का विलय व मिश्रण पाया जाता है।
- कांग्रेस विशेष प्रकार का सामाजिक राजनीतिक व वैचारिक गठबन्धन है।
- निर्णय लेने की प्रक्रिया आम सहमति व समायोजन पर आधारित थी।
- कांग्रेस में चमत्कारिक व्यक्तित्व के नेता थे।
प्रश्न 5.
भारत के प्रथम आम चुनावों में चुनाव आयोग को किन समस्याओं का सामना करना पड़ा।
उत्तर:
जिस समय देश आजाद हुआ उस समय का वातावरण अत्यन्त तनावपूर्ण व अनिश्चितताओं से भरा हुआ था। कुछ वर्ष पहले ही साम्प्रदायिक उन्माद के कारण भारत का विभाजन हुआ था। भारत की जनता को व्यस्क मताधिकार तो दे दिया गया परन्तु इसके प्रयोग का ज्ञान बहुत कम लोगों को था। आर्थिक पिछड़ापन भी व्याप्त था। उस वातावरण में चुनाव आयोग को स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनाव कराने में अनेक परेशानियाँ आयी जिनमें निम्न प्रमुख थी –
- चुनाव क्षेत्र की सीमाओं को निर्धारित करने थे।
- योग्य मतदाताओं की मतसूचियाँ तैयार करना भी एक बड़ी चुनौती थी। क्योंकि उचित रिकार्ड का अभाव था।
- 1952 के चुनाव में लगभग 17 करोड़ मतदाता थे जिनसे प्रत्यक्ष रूप से मतदान कराना एक बड़ा कार्य था। शायद यह विश्व का इस प्रकार का पहला चुनाव था जिसमें इतने मतदाता थे।
- इस चुनाव में 17 करोड़ मतदाताओं के द्वारा 489 लोकसभा के सदस्यों व 3200 विधान सभा सदस्यों का चुनाव मापा जाना था।
- 17 करोड़ मतदाताओं में से केवल 17% शिक्षित थे।
- चुनावी प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी रखने वाले चुनावी कर्मचारी बहुत कम थे। अतः यह भी एक बड़ी समस्या थी।
प्रश्न 6.
भारतीय राजनीति में कांग्रेस के प्रभुत्व को समझाइए।
उत्तर:
कांग्रेस का भारतीय राजनीति में प्रभुत्व एक वास्तविकता है। राष्ट्रीय आन्दोलन के समय में कांग्रेस ने ही आन्दोलन का नेतृत्व किया व 1947 से लेकर आज तक भी भारतीय राजनीति कांग्रेस का प्रभुत्व कायम है यद्यपि इसके प्रभाव में विभिन्न कारणों से कमी आयी है। जैसे 1977 से लेकर 1980 तक 1989 से लेकर 1991 तक व 1996 से लेकर 2000 तक। इस समय भी कांग्रेस यू.पी.ए. का सबसे बड़ा दल थे। व इसके नेतृत्व में केन्द्र की सरकार 2013 तक चली थी जिसके प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह जी हैं। कांग्रेस के प्रभुत्व का प्रमुख कारण यह है कि इसको भारत के अतीत की विरासत के साथ देखा जाता है। तथा इसके प्रारम्भिक काल में उन नेताओं का नेतृत्व रहा जिनके हाथों में राष्ट्रीय आन्दोलन की बागडोर रही थी। कांग्रेस का प्रभुत्व आज भी कायम है।
प्रश्न 7.
भारत में साम्यवादी दल की सफलता समझाइए।
उत्तर:
भारत में साम्यवादी विचारधारा का प्रभाव सोवियत संघ में मार्क्सवादी आन्दोलन व वहाँ की कम्युनिष्ट पार्टी के प्रभाव में देखा जा सकता है। भारत में कम्युनिष्ट पार्टी का गठन 1920 में किया गया। यद्यपि साम्यवादी दल एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल था जो राष्ट्रीय आन्दोलन में भागीदार था परन्तु भारत की कम्युनिष्ट पार्टी की विचारधारा व कार्यशैली कांग्रेस से मिलती थी। भारत की आजादी के बाद भी साम्यवादी दल का प्रभाव भारतीय राजनीति पर बना रहा इसकी विचारधारा कार्यक्रम कांग्रेस से अलग थी।
इसकी प्राथमिकता किसानों मजदूरों व अल्पसंख्यकों के हितों के प्रति थी। केरल व पश्चिमी बंगाल में कम्युनिष्ट पार्टी का विशेष प्रभाव रहा। केरल व त्रिपुरा में इस दल की सरकारें सफलतापूर्वक कार्य कर रही हैं। 1964 में कम्युनिष्ट पार्टी में विभाजन हुआ। CPI (M) पार्टी चीन की कम्युनिष्ट पार्टी के प्रभाव में आ गयी। प्रथम चुनावों में अर्थात् 1952 में साम्यवादी पार्टी को कांग्रेस के बाद दूसरा स्थान प्राप्त हुआ। (आज भी भारत के अनेक राज्यों में कम्युनिष्ट पार्टी का प्रभाव है विशेषकर पंजाब, बिहार, हरियाणा व आन्ध्र प्रदेश।
प्रश्न 8.
भारत में समाजवादी आन्दोलन का विकास समझाइए।
उत्तर:
1950 के दौरान भारत में समाजवादी आन्दोलन का विकास हुआ। दुनिया भर में फैली समाजवादी आन्दोलन से भारत भी प्रभावित हुए बिना न रह सका क्योंकि भारत की सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियाँ समाजवादी व्यवस्था नियम के अनुकूल थी। भारतीय संविधान का उद्देश्य भी समाजवादी सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था का निर्माण करना था। जिसको राज्य की नीति के निर्देशक के अध्याय में व्यक्त किया गया है। कांग्रेस ने अपने अन्दर 1934 में कांग्रेस सोशलिष्ट पार्टी बनाए कांग्रेस ने भवन आबादी अधिवेशन में समाजवाद के सिद्धान्तों को अपनाया। 1948 में कांग्रेस के युवा नेताओं ने अलग समाजवादी पार्टी का गठन किया। भारत में समाजवादी आन्दोलन से जुड़े प्रमुख नेताओं में, जयप्रकाश नारायण राम मनोहर लोहिया, अशोक मेहता व आचार्य नरेन्द्र के नाम शामिल हैं।
प्रश्न 9.
भारत में समाजवादी आन्दोलन की सफलता व असफलताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत में समाजवादी आन्दोलन को बड़े ही जोश व उम्मीद से प्रारम्भ किया गया क्योंकि भारत की सामाजिक व आर्थिक समस्याओं का हल समाजवादी व्यवस्था में ही देखा गया राम मनोहर लोहिया, आचार्य नरेन्द्र देव व बाबू जय प्रकाश नारायण (जे.पी.) ने भारत में समाजवाद की नींव डाली जिसको भारत के अनेक राज्यों में सोशलिष्ट पार्टी के रूप से राजनीतिक दलों के माध्यम से लोकप्रिय बनाया गया। भारतीय संविधान सभा भी इसके प्रभाव से मुक्त नहीं थी व भारतीय संविधान के चौथे भाग में दिए गए राज्य की नीति के निर्देशक तत्वों के अध्याय में समाजवादी सिद्धान्तों को जगह दी अर्थात् सरकारों को यह निर्देश दिया गया कि अपनी सामाजिक व आर्थिक नीतियाँ व कार्यक्रम समाजवादी विचारधारा के आधार पर बनाए।
कांग्रेस जो आजादी से पहले भी व बाद में भी भारत का एक प्रमुख राजनीतिक दल रहा है, जो समाजवादी चिन्तन के प्रभाव में रहा है अनेक कांग्रेस नेता समाजवादी विचारधारा के समर्थक रहे। भारत में समाजवादी विचारधारा के प्रभाव में ही मिश्रित अर्थव्यवस्था कायम है परन्तु राजनीतिक प्रभाव में अर्थात् चुनावी राजनीति में समाजवादी विचारधारा के समर्थकों को ज्यादा सफलता प्राप्त नहीं हुई व ये दल बार-बार बनते व टूटते रहे हैं। समाजवादी विचारधारा भारत की समाजिक आर्थिक समस्याओं को भी हल करने में असफल रही।
प्रश्न 10.
भारतीय चुनावी व्यवस्था में कांग्रेस के प्रभुत्व के प्रमुख कारण क्या रहे ?
उत्तर:
भारत में प्रथम चुनाव 1952 में हुआ 1952 के बाद 1957 व 1962 तक के बाद 1957 व 1962 तक के चुनावों में कांग्रेस का प्रभुत्व बना रहा हालांकि 1967 के चुनाव में प्रथम बार कांग्रेस का प्रभाव कम हुआ क्योंकि केन्द्र में भी सरकार बनाने के लिए इसे केवल साधारण ही प्राप्त हुआ व कई राज्यों में इसकी सरकार नहीं बन पायी। इसके निम्न प्रमुख कारण थे। ये केवल पहले तीन आम चुनावों में कांग्रेस का अत्यधिक प्रभाव रहा।
- राष्ट्रीय आन्दोलन के वातावरण का प्रभाव
- चमत्कारिक नेतृत्व का प्रभाव
- कांग्रेस का जन आन्दोलन स्वरूप
- विरोधी दलों का अभाव
प्रश्न 11.
मैक्सिको व भारत में प्रचलित एक दलीय प्रभुत्व के अन्तर को समझाइए।
उत्तर:
भारत में राजनीतिक दल के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन 1885 को बोम्बे में हुआ। राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व कांग्रेस ने ही किया 1947 में देश आजाद हुआ व 1952 में भारत में प्रथम आम चुनाव हुआ। 1952 से लेकर आज तक कांग्रेस का प्रभुत्व किसी ना किसी रूप में कायम है 1952 से लेकर आज तक केवल एक दो बाद (1977 व 1996) को छोड़कर कांग्रेस एक सबसे बड़े दल के रूप में उभरी है। मैक्सिको भी एक ऐसा लेटिन अमेरिकन देश है जिसमें एक दल का प्रभुत्व रहा है।
इस दल का नाम है नेशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी जिसका जन्म 1929 में हुआ पिछले 60 वर्षों से मैक्सिको की राजनीति पर नेशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी का ही प्रभुत्व है। भारत में कांग्रेस के प्रभुत्व व मैक्सिकों में नेशनल रिवोलूशनरी पाटी के प्रभुत्व में एक प्रमुख अन्तर यह है कि भारत में यह प्रभुत्व प्रजातन्त्रीय प्रक्रिया मूल्यों व प्रणाली के अन्तर्गत है जबकि मैक्सिको में यह प्रभुत्व तानाशाही संस्कृति, मूल्यों व प्रणाली के तहत है। वहाँ पर चुनाव प्रणाली पूर्ण रूप से सरकार द्वारा नियन्त्रित है। जबकि भारत में चुनाव प्रणाली पूर्ण रूप से स्वतन्त्र है। मैक्सिको के चुनाव में नेशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी सदैव जीतती है जबकि भारत में कांग्रेस को हार भी देखनी पड़ी है।
प्रश्न 12.
भारतीय चुनाव आयोग का गठन व कार्य समझाइए।
उत्तर:
भारतीय संविधान में स्वतन्त्र व शान्तिपूर्ण तरीके से विभिन्न स्तरों पर चुनाव सम्पन्न कराने के लिए एक स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनाव आयोग के गठन की व्यवस्था है। जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त व दो चुनाव आयुक्त होते हैं। निश्चित रूप से चुनाव आयोग का कठिन कार्य है। मुख्य रूप से वह निम्न कार्य करती है –
- चुनावों की तैयारी करना
- चुनावों की घोषणा करना
- मतसूचियाँ तैयार करना
- E.V.M. तैयार करना
- मत पत्र तैयार करना
- चुनाव से जुड़े कर्मचारियों व अधिकारियों को प्रशिक्षण देना
- परिणाम घोषित करना
प्रश्न 13.
भारत में कांग्रेस के अलावा अन्य दलों का विकास समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान ही कांग्रेस के अलावा कुछ अन्य राजनीतिक दलों का विकास होना प्रारम्भ हो गया था यद्यपि उस समय सभी राजनीतिक दलों का उद्देश्य राष्ट्रीय स्वतंत्रता प्राप्त करना था। भले ही उनके तरीके अलग अलग थे परन्तु मंजिल सबकी एक थी। 1906 में मुस्लिम संगठन का गठन किया गया। 1920 में साम्यवादी दल का गठन किया गया। 1923 में स्वराज्य दल का गठन किया गया। इसके बाद अन्य राजनीतिक समूहों व दबाव समूहों के रूप में उभरे जो बाद में राजनीतिक दल बन गए इनमें मुख्य रूप से हिंदू महासभा जिसके उद्देश्य के अनुरूप 1951 में भारतीय जनसंघ का गठन हुआ।
इसी प्रकार समाजवादी विचारधारा के आधार पर समाजवादी पार्टियाँ बनी। किसानों व महिलाओं व मजदूरों तथा व्यापारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले दबाव समूहों का भी राजनीतिक दलों के विकास में योगदान रहा। आजादी के बाद कांग्रेस के अलावा साम्यवादी दल, समाजवादी दल, मुस्लिम लीग अर्थात् साम्प्रदायिक दल व कांग्रेस से अलग हुए लोगों के द्वारा विभिन्न आधारों पर बनाए गए राजनीतिक दलों का अस्तित्व रहा। 1980 के दशक के बाद भारत में अनेक क्षेत्रीय दलों का विकास हुआ। इस समय भारत में 900 राजनीतिक दल जिसमें केवल 6 राष्ट्रीय दल है।
प्रश्न 14.
स्वतंत्र पार्टी का उदय समझाइए।
उत्तर:
स्वतंत्र पार्टी का जन्म 1959 में हुआ इसका नेतृत्व सी. राजगोपालाचार्य, के.एम.मुन्शी, एस.जी.रंगा और मीनुमसानी ने किया। यह पाटी अपने विशेष कार्यक्रमों के आधार पर अन्य राजनीतिक दलों से अलग थी। स्वतंत्र पाटी व्यक्तिवादी विचारधारा का समर्थन करती थी जिसके आधार पर आर्थिक क्षेत्र में सरकार को कम से कम हस्तक्षेप करना चाहिए। यह राज्य द्वारा की गई केन्द्रीयकृत नियोजन राष्ट्रीयकरण व सार्वजनिक क्षेत्र के विकास का विरोध करती थी। इस दल ने निजी क्षेत्र को अधिक स्वतंत्रता देने की वकालत की। यह दल सोवियत संघ के साथ कम व संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अधिक सम्बन्धों का पक्षधर था। स्वतंत्र पाटी का समर्थन आधार उच्चवर्ग, पूँजीपति, बड़े किसान आदि थे।
प्रश्न 15.
भारत में 1980 के बाद उत्पन्न हुए राजनीतिक दलों का स्वरूप समझाइए।
उत्तर:
बहुदलीय प्रणाली भारतीय राजनीतिक प्रणाली की प्रमुख विशेषता रही है। यह एक ऐसी बहुदलीय व्यवस्था रही है जिसमें एक ही राजनीतिक दल अर्थात् कांग्रेस का प्रभुत्व रहा है। यद्यपि अनेक विरोधी दलों का अस्तित्व रहा है लेकिन मजबूत व स्वस्थ विरोधी दलों का अभाव रहा अर्थात् विरोधी दल विभाजित रहे। 1980 तक के वर्षों में मुख्य राजनीतिक दलों का स्वरूप राष्ट्रीय रहा है जैसे साम्यवादी दल, जनसंघ व कुछ प्रमुख समाजवादी राजनीतिक दल प्रमुख राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दल रहा है जो केवल किसी विशेष क्षेत्र तक सीमित नहीं थे।
बल्कि बड़े क्षेत्रों में इनका प्रभाव व्याप्त था। परन्तु 1980 बाद विभिन्न कारणें से विभिन्न आधारों पर क्षेत्रीय दलों का विकास प्रारम्भ हो गया। इन दलों का विकास मुख्य रूप से क्षेत्र, भाषा व क्षेत्रीय असन्तुलन की राजनीति के आधार पर हुआ। इन क्षेत्रीय दलों को जल्द ही चुनावी राजनीति में भी सफलता मिलने लगी। परिणाम स्वरूप 1996 के बाद से केन्द्रीय स्तर पर कांग्रेस के प्रभुत्व के तौर पर मिली जुली राजनीति के आधार पर केन्द्र में भी इनका प्रभुत्व हो गया। सरकार एन.डी.ए. की रही हो या यू.पी.ए. की सरकार रही हो इनसे क्षेत्रीय दलों का ही बोलबाला रहा है।
प्रश्न 16.
भारतीय दलीय प्रणाली की प्रमुख समस्याएँ समझाइए।
उत्तर:
भारतीय दलीय प्रणाली की निम्न प्रमुख समस्याएँ है –
- आन्तरिक प्रजातन्त्र का अभाव
- अनुशासन हीनता
- गुटबाजी
- निश्चित विचारधारा का अभाव
- अवसर वादिता
- विघटित विरोधी दल
- केन्द्र की राजनीति पर क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व
- राजनीतिक अस्थिरता
- राजनीतिक अनिश्चितता
- चमत्कारिक व आदर्श नेताओं का अभाव
- जाति के आधार पर राजनीतिक दल
- साम्प्रदायिकता के आधार पर राजनीतिक दल
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भारतीय राजनीति में प्रभुत्व के कारण व प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
1885 में कांग्रेस के गठन के बाद से ही कांग्रेस का राष्ट्रीय आन्दोलन पर भी व स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभुत्व रहा जो 1952 में सम्पन्न हुए प्रथम चुनाव से लेकर 2004 में हुए चुनावों तक देखा जा सकता है यह अलग बात है कि कांग्रेस को चुनावी राजनीति में असफलताओं का सामना करना पड़ा जिसका कारण क्षेत्रीय दलों का विकास होना है। परन्तु यह सत्य अवश्य है कि कांग्रेस का भारतीय राजनीति पर प्रभुत्व अवश्य कायम है जिसके प्रमुख कारण निम्न है –
- कांग्रेस को राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
- कांग्रेस को राष्ट्रीय आन्दोलन की विरासत प्राप्त हुई।
- कांग्रेस का जन आधार रहा अर्थात् कांग्रेस का देश के प्रत्येक क्षेत्र व प्रत्येक वर्ग में प्रभाव कायम है।
- कांग्रेस के पास चमत्कारिक नेतृत्व रहा।
- नेहरू परिवार का कांग्रेस पर प्रभाव।
- प्रत्येक राष्ट्रवादी अवसरों जैसे 15 अगस्त व 26 जनवरी को कांग्रेस के इतिहास को ही राष्ट्रीय आन्दोलन की यादों के माध्यम से दोहराया जाता है।
- कांग्रेस के कुछ वर्ग जैसे अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति, जन जाति व महिलाएँ सदैव लगातार समर्थक रहे हैं।
कांग्रेस के भारतीय राजनीतिक पर लगातार प्रभुत्व का निम्न प्रभाव रहा है –
- कांग्रेस एक सामाजिक गठबन्धन है क्योंकि कांग्रेस को विभिन्न वर्गों का समर्थन प्राप्त है। अत: इसने सम्पूर्ण वर्ग को सामाजिक व राजनीतिक रूप से प्रभावित किया है।
- कांग्रेस एक वैचारिक गठबन्धन है क्योंकि इसमें सामाजिक तौर पर समाजवादी, साम्यवादी, व दक्षिणपन्थी विचारधाराओं में लोग शामिल रहे हैं।
- कांग्रेस ने भारतीय संस्कृति जैसे सहनशीलता, धर्मनिर्पेक्षता व गुटनिर्पक्षता को बढ़ाया है।
- कांग्रेस ने भारतीय राजनीति में समायोजन व आम सहमति की राजनीति को बढ़ाया है।
- इसने राजनीतिक दलों में आन्तरिक प्रजातन्त्र को बढ़ाया।
- इसने भारत की विभिन्नता में एकता के स्वरूप को मजबूत किया है।
प्रश्न 2.
1967 के भारतीय राजनीति में कांग्रेस के प्रभुत्व में गिरावट के कारणों को समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन की विरासतों का भारतीय राजनीति में विशेषतौर से राजनैतिक व्यवहार पर 1962 के चुनाव तक रहा व बाद में यह प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगा जिसका प्रभाव 1967 के चुनाव में दिखने लगा जब 1967 के चुनाव में कांग्रेस को केवल इतनी ही सीटें मिली कि साधारण बहुमत से सरकार बन सके। अतः कांग्रेस के प्रभुत्व में गिरावट आ गई। कांग्रेस के प्रभुत्व की गिरावट के निम्न प्रमुख कारण माने जाते हैं।
- 1964 में पंडित जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद कांग्रेस में चमत्कारिक व्यक्तित्व का अभाव।
- 1964 में कई अन्य राजनीतिक दलों जैसे साम्यवादी दल भारतीय जन संघ, समाजवादी दल व मुस्लिम लीग के प्रभावों में बढ़ोत्तरी हुई।
- भारत में क्षेत्रवाद का विकास होने लगा जिसके आधार पर कई राज्यों में अनेक क्षेत्रीय दलों का विकास होने लगा।
- कांग्रेस के वोट बैंक का अन्य राजनीतिक दलों के पास खिसक जाने से भी कांग्रेस की सीटों की संख्या में कमी आ गई।
- केन्द्र में विरोधी दलों के खिलाफ कांग्रेस की सरकार के द्वारा संविधान के कुछ प्रावधानों के दुरूपयोग के कारण कांग्रेस के खिलाफ लोगों में नकारात्मक भावना बढ़ गई।
- राज्यों में मिली जुली सरकारों की राजनीति का आरम्भ होना।
- अनेक राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का बनना व उनका सफलता के साथ चलना।
- कांग्रेस विरोधी राजनीति का प्रचार।
- कांग्रेस में इसकी परम्परागत वोट बैंक द्वारा किए गए विश्वास में गिरावट।
- कांग्रेस में नेतृत्व का संकट।
- 1975 से 1977 तक आपात कालीन का खराब अनुभव।
- कांग्रेस की पुरानी संस्कृति में गिरावट।
- कांग्रेस में 1969 व 1978 में विभाजन।
- गैर-कानूनी वोट का एक होना। उपरोक्त कारणों से 1967 के बाद से कांग्रेस के प्रभुत्व में कमी आई है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
I. निम्नलिखित विकल्पों में से सही का चुनाव कीजिए।
प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आन्दोलन की विरासत किस राजनीतिक दल को मिली?
(अ) कांग्रेस पार्टी
(ब) साम्यवादी पार्टी
(स) समाजवादी पार्टी
(द) भारतीय जनसंघ
उत्तर:
(अ) कांग्रेस पार्टी
प्रश्न 2.
निम्न में उस देश का नाम बताइए जहाँ एक दल का प्रभुत्व नहीं है।
(अ) मैक्सिको
(ब) चीन
(स) क्यूबा
(द) संयुक्त राज्य अमेरिका
उत्तर:
(द) संयुक्त राज्य अमेरिका
प्रश्न 3.
निम्न में से किस राज्य में सबसे पहले गैर कांग्रेसी सरकार बनी।
(अ) तमिलनाडु
(ब) केरल
(स) उत्तर प्रदेश
(द) पश्चिमी बंगाल
उत्तर:
(ब) केरल
प्रश्न 4.
किस वर्ष के केन्द्र में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी।
(अ) 1971
(ब) 1975
(स) 1977
(द) 1989
उत्तर:
(स) 1977
II. मिलान वाले प्रश्न एवं उनके उत्तर
उत्तर:
(1) – द
(2) – स
(3) – य
(4) – अ
(5) – ब
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