BSEB Class 12 Political Science Politics of Planned Development Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Political Science Politics of Planned Development Book Answers |
Bihar Board Class 12th Political Science Politics of Planned Development Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 12th |
Subject | Political Science Politics of Planned Development |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 12th Political Science Politics of Planned Development Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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प्रश्न 1.
‘बॉम्बे प्लान’ के बारे में निम्नलिखित में कौन-सा बयान सही नहीं है।
(क) यह भारत के आर्थिक भविष्य का एक ब्लू-प्रिंट था।
(ख) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।
(ग) इसकी रचना कुछ अग्रणी उद्योगपतियों ने की थी।
(घ) इसमें नियोजन के विचार का पुरजोर समर्थन किया गया था।
उत्तर:
(ख) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।
प्रश्न 2.
भारत ने शुरुआती दौर में विकास की जो नीति अपनाई उसमें निम्नलिखित में से कौन-सा विचार शामिल नहीं था।
(क) नियोजन
(ख) उदारीकरण
(ग) सहकारी खेती
(घ) आत्म निर्भरता
उत्तर:
(ख) उदारीकरण
प्रश्न 3.
भारत में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का विचार ग्रहण किया गया था।
(क) बॉम्बे प्लान से
(ख) सोवियत खेमे के देशों के अनुभव से
(ग) समाज के बारे में गाँधीवादी विचार से
(घ) किसान संगठनों की मांगों से
उत्तर:
(ख) सोवियत खेमे के देशों के अनुभव से
प्रश्न 4.
निम्नलिखित का मेल करें।
उत्तर:
(क) – (ii)
(ख) – (i)
(ग) – (ii)
(घ) – (iv)
प्रश्न 5.
आजादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद क्या थे? क्या इन मतभेदों को सुलझा लिया गया?
उत्तर:
आजादी के समय भारत के सामने अनेक प्रकार की सामाजिक व राजनीतिक समस्याएँ थी जिनका हल निकालने के लिए भारत ने नियोजित अर्थव्यवस्था को अपनाया। परन्तु नियोजन की यह प्रक्रिया इतनी सहज व सरल नहीं हो पायी व अनेक प्रकार के मतभेदों के दायरे में आ गयी सबसे पहले मतभेद वैचारिक था। वैचारिक स्तर पर भारतीय नेतृत्व में प्रमुख रूप से दो वर्ग थे। प्रथम उदारवादी चिन्तक जो विकास का पश्चिमी उदारवादी मॉडल अपनाना चाहते थे व दूसरा वर्ग उन नेताओं व चिंतकों का था जो साम्यवादी समाजवादी मॉडल को अपनाने के पक्ष में था।
दूसरा मतभेद प्राथमिकताओं को लेकर था। कुछ लोग निजी क्षेत्र को प्राथमिकता दे रहे थे व अन्य सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक आर्थिक गतिविधियाँ व निवेश के पक्ष में थे ताकि राज्य के माध्यम से आर्थिक विकास हो ताकि उसका अधिक से अधिक लाभ जनता तक पहुँच सके। तीसरा मुद्दा कृषि बनाम उद्योग था। जिस पर विभिन्न सोच के लोगों में मतभेद था। कुछ लोग जैसे पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत की गरीबी, बेरोजगारी की समस्या का हल औद्योगिकरण के द्वारा करना चाहते थे जबकि अन्य वर्ग के लोगों का यह मानना था कि ग्रामीण क्षेत्र कृषि की कीमत पर अगर औद्योगिकरण किया जाता है तो वह कृषि क्षेत्र के लिए हानिकारक होना इसी संदर्भ में ग्रामीण बनाम शहरी मुद्दा भी इस अवसर पर रहा कि ग्रामीण क्षेत्र को अधिक निवेश व विकास की जरूरत है शहरी विकास ग्रामीण विकास की कीमत पर नहीं होना चाहिए।
इस प्रकार से नियोजन की प्रक्रिया कई प्रकार के मतभेदों से घिरी रही लेकिन क्योंकि सभी राष्ट्रीय हितों से प्रेरित थे अतः मतभेद होते हुए भी समायोजन व आम सहमति के माध्यम से मतभेद दूर किए गए तथा उचित रास्ता अपनाया गया। जैसे निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए मिश्रित अर्थव्यवस्था अपनाई गई। ग्रामीण क्षेत्र के साथ शहरी क्षेत्र का विकास भी निश्चित किया गया। इसी प्रकार से कृषि विकास व औद्योगिक विकास में भी सम्बन्ध स्थापित किया गया।
प्रश्न 6.
पहली पंचवर्षीय योजना का किस चीज पर सबसे ज्यादा जोर था? दूसरी पंचवर्षीय योजना पहली से किन अर्थों में अलग थी?
उत्तर:
प्रथम पंचवर्षीय योजना 1951 में बनी जिसका कार्यकाल 1956 तक का था इस पंचवर्षीय योजना का सबसे प्रथम उद्देश्य गरीबी को दूर करना था। इस योजना को तैयार करने में जुटे विशेषज्ञों में एक के. एन. राज थे। पहली पंचवर्षीय योजना का मुख्य क्षेत्र अर्थात् प्राथमिकता कृषि विकास पर था। इसी योजना के अन्तर्गत खाद्य और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया। विभाजन का सबसे बुरा असर कृषि पर पड़ा था अतः कृषि के विकास की ओर सबसे अधिक ध्यान देने की जरूरत थी। कृषि को उचित रूप से उपयोगी बनाने के लिए इसी योजना में भूमि सुधारों पर जोर दिया गया।
दूसरी पंचवर्षीय योजना का समय 1957 से 1962 तक का था। इस पंचवर्षीय योजना के प्रमुख रूप से निर्माता पी.सी. महालनोबिस थे। यह योजना प्रथम पंचवर्षीय योजना से इस रूप में मिली थी कि इसमें जोर औद्योगीकरण पर दिया। अर्थात् इस योजना कि प्राथमिकता औद्योगिक विकास पर थी जबकि प्रथम योजना में प्राथमिकता कृषि विकास पर थी। प्रथम योजना का मूलमंत्र था धीरज, लेकिन दूसरी योजना की कोशिश तेज गति से संरचनात्मक बदलाव करने की थी। सरकार ने देशी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाया। संरक्षण की इस नीति से निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को आगे बढ़ने में मदद मिली।
प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति क्या थी? हरित क्रान्ति के दो सकारात्मक और दो नकारात्मक परिणामों का उल्लेख करें।
उत्तर:
भारत 1960 के दशक में खाद्य के संकट से जूझ रहा था। कृषि पैदावार व जनसंख्या विस्तार में अनुपात बिगड़ रहा था। अनाज की कमी के कारण अमेरिका की गलत नीतियों व दबावों के बावजूद भी अमेरिका से अनाज का आयात करना पड़ रहा था। इसी समय पर सूखे के कारण अनाज उत्पादन का संकट और अधिक गहरा गया था। 1962 के चीन युद्ध व 1965 के पाकिस्तान के युद्ध ने अनाज के संकट को और बढ़ा दिया। अनाज खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा भी चुकानी पड़ती थी।
इस स्थिति से निपटने के लिए कुछ नए उपयों का सूत्रपात किया गया जिसमें से एक थी हरित क्रान्ति। हरित क्रान्ति का अर्थ था विज्ञान तकनीकी, रसायनिक खाद, उन्नत बीजों का प्रयोग करके अन्न उत्पादन को बढ़ाना। 1960 के दशक में ही भारत में हरित क्रान्ति का सूत्रपात किया गया। इसका प्रयोग पहले केवल उन राज्यों में किया गया जो पहले से ही अपेक्षाकृत संसाधन रखने वाले राज्य थे। इन राज्यों में हरियाणा, पंजाब व उत्तर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र थे। निश्चित रूप से हरित क्रान्ति से अन्न पैदावार में बड़ी क्रान्ति आयी।
हरित क्रान्ति के दो निम्न सकारात्मक परिणाम –
- जमीन का उचित प्रयोग।
- अनाज उत्पादन में वृद्धि।
हरित क्रान्ति के दो निम्न नकारात्मक परिणाम थे –
- केवल कुछ ही राज्यों तक इसका प्रभाव सीमित रहा।
- अनाज की गुणवत्ता में कमी आयी।
प्रश्न 8.
दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक विकास बनाम कृषि-विकास का विवाद चला था। इस विवाद में क्या-क्या तर्क दिए गए थे?
उत्तर:
(1951 – 1956) तक की प्रथम पंचवर्षीय योजना में उम्मीद के अनुसार कृषि क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता दी गई क्योंकि कृषि भारत का एक बड़ा क्षेत्र था वह भारत की 80% जनता ग्रामों में रहती थी खेती क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या इसके प्रबन्धन की कमी व इसके सही प्रकार से उपयोग का अभाव था। अत: कृषि का विकास की अत्यन्त आवश्यकता थी ताकि भारतीय समाज की मूल समस्याएँ बेरोजगारी व गरीबी को दूर किया जा सके।
परन्तु इसी बीच एक अन्य सोच का जन्म हुआ जिसमें कृषि के स्थान पर औद्योगिक विकास को अधिक प्राथमिकता देने पर बल दिया गया क्योंकि गरीबी व बेरोजगारी को दूर करने के लिए कृषि के स्थान पर उद्योगों को अधिक उपयुक्त समझा गया। इस विचार को दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-1961) में लागू किया गया। पी.सी. महालनोबिस के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों और योजनाकारों की एक टोली ने यह योजना तैयार की थी। इस योजना में औद्योगीकरण पर दिए गए जोर ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को एक नया आयाम दिया। परन्तु कुछ नए मुद्दों व समस्याओं अर्थात् विवादों का भी जन्म हुआ। इसमें सबसे बड़ा मुद्दा कृषि बनाम उद्योग बना विवाद यह था कि किस क्षेत्र में अधिक संसाधन लगाए जाए।
कुछ लोगों का यह मानना था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना में औद्योगिक विकास को अधिक प्राथमिकता देने से कृषि विकास के हितों का नुकसान हुआ है। जे.सी. कुमारप्पा जैसे गाँधीवादी अर्थशात्रियों ने एक वैकल्पिक योजना का खाका तैयार किया जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर बल दिया। उनका तर्क यह था कि अगर औद्योगीकरण ही करना है तो कृषि के क्षेत्र में औद्योगीकरण किया जाना चाहिए ताकि ग्रामों में रहने वाले लोगो को रोजगार मिले व उनके जीवन में सुधार किया जा सके। जबकि अन्य वर्ग के लोगों का यह मानना था कि बगैर भारी औद्योगीकरण के गरीबी का निवारण नहीं किया जा सकता। इन लोगों का मानना था कि ग्रामीण व कृषि विकास के लिए भी औद्योगीकरण विकास आवश्यक है।
प्रश्न 9.
“अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर देकर भारतीय नीति निर्माताओं ने गलती की। अगर शुरुआत से ही निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जाती तो भारत का विकास कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से होता” इस विचार के पक्ष में व विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका के बारे में काफी विवाद रहा। कुछ लोग सार्वजनिक क्षेत्र के पक्ष में थे जिसमें राज्य को अधिक से अधिक भूमिका दी जाती है जबकि अन्य वर्ग आर्थिक विकास के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को अधिक महत्त्व दी जाती है जबकि अन्य वर्ग आर्थिक विकास के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को अधिक महत्व देते थे तथा राज्य के क्षेत्र को सीमित करना चाहते थे। अन्त में बीच का रास्ता अर्थात् मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया लेकिन यह निश्चित है कि सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया गया क्योंकि भारत अर्थव्यवस्था को समाजवादी सिद्धान्तों पर बनाना चाहता था।
उपरोक्त कथन के पक्ष में तर्क निम्न है। पक्ष में –
- व्यक्तिगत विकास के लिए अधिक उपयुक्त होता।
- औद्योगिक विकास की रफ्तार तेज होती।
- रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त होते।
- गरीबी दूर करने में अधिक सहायक होता।
- आर्थिक गतिविधियाँ तेज होती जिससे आर्थिक विकास तेज होता।
- विदेशी मुद्रा कमाने में सहायक होता।
विपक्ष में –
- संविधान की भावना के प्रतिकूल होता।
- समाज में असमानताएँ व विषमताएँ बढ़ती।
- कृषि क्षेत्र का विकास रुक जाना।
- ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में टकराव बढ़ता।
- पूँजीपतियों में वृद्धि होती।
- सामाजिक न्याय का उद्देश्य प्राप्त नहीं होता।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें –
आजादी के बाद के आरम्भिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी के भीतर परस्पर विरोधी प्रवृत्तियाँ पनपी। एक तरफ राष्ट्रीय पार्टी कार्यकारिणी ने राज्य के स्वामित्व का समाजवादी सिद्धान्त अपनाया, उत्पादकता को बढ़ाने के साथ-साथ आर्थिक संसाधनों के संकेंद्रण को रोकने के लिए अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों का नियंत्रण और नियमन किया। दूसरी तरफ कांग्रेस की राष्ट्रीय सरकार ने निजी निवेश के लिए उदार आर्थिक नीतियाँ अपनाई और उसके बढ़ाने के लिए विशेष कदम उठाए। इससे उत्पादन में अधिकतम वृद्धि की अकेली कसौटी पर जायज ठहराया गया।
(क) यहाँ लेखक किस अंतर्विरोध की चर्चा कर रहा है? ऐसे अंतर्विरोध के राजनीतिक परिणाम क्या होंगे?
(ख) अगर लेखक की बात सही है तो फिर बताएँ कि कांग्रेस इस नीति पर क्यों चल रही थी? क्या इसका संबंध विपक्षी दलों की प्रकृति से था?
(ग) क्या कांग्रेस पार्टी के केन्द्री: और इसके प्रान्तीय नेताओं के बीच भी कोई अंतर्विरोध था?
उत्तर:
(क) आजादी के बाद में प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी के भीतर दो परस्पर विरोधी प्रवृत्तियाँ पनपी जिनमें से एक आर्थिक गतिविधियों के निजी क्षेत्र में करने की पक्षधर थी दूसरी विचारधारा के लोग वे थे जो आर्थिक गतिविधियों को सार्वजनिक क्षेत्र में देकर राज्य की एक बड़ी भूमिका के पक्षधर थे। दोनों दबावों के मद्देनजर मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक गतिविधियाँ दोनों क्षेत्रों में की गई।
(ख) कांग्रेस की सरकार के निर्णय ने निजी निवेश के लिए उदार आर्थिक नीतियाँ अपनाई और उसके बढ़ाने के लिए विशेष कदम उठाए। सरकार ने ये कार्य बड़े-बड़े पूँजीपतियों व उद्योगपतियों के समूह के दबाव में उठाये।
(ग) कांग्रेस पार्टी एक अनुशासित दल जिसमें पंडित जवाहर लाल नेहरू का चमत्कारिक व प्रभावशाली नेतृत्व था। अतः यह मानना गलत ही होगा कि कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व व प्रान्तीय नेतृत्व में किसी प्रकार का अन्त:विरोध था। अधिकांश राज्यों में कांग्रेस दल की ही सरकारें थीं जिनको केन्द्र के लगभग सभी निर्णय मान्य होते थे।
Bihar Board Class 12 Political Science नियोजित विकास की राजनीति Additional Important Questions and Answers
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद की प्रमुख विरासतें समझाइए।
उत्तर:
भारत में आजादी के बाद ब्रिटिश साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद को निम्न प्रमुख आर्थिक विरासतें मानी जा सकती हैं –
- आर्थिक गरीबी
- बेरोजगारी
- क्षेत्रीय असंतुलन
- आर्थिक पिछड़ापन
- विकसित स्रोतों का अभाव
- प्रति व्यक्ति कम आय
- अर्थव्यवस्था में पूँजीवादी व सामन्तवादी प्रवृतियाँ
- कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था
प्रश्न 2.
आजादी के बाद आर्थिक विकास की प्रमुख दृष्टिकोण कौन-कौन से थे?
उत्तर:
आजादी के बाद भारत के सामने आर्थिक विकास के बड़ी चुनौती थी जिसमें अनेक प्रकार की आर्थिक समस्याएँ थीं जिनको दूर करने के लिए कई प्रकार की विधियाँ व माडल थे जिनमें से कुछ प्रमुख निम्न थे।
1. समाजवादी सिद्धान्त:
समाजवादी चिन्तक, भारत की अर्थव्यवस्था का निर्माण समाजवादी सिद्धान्तों पर करना चाहते थे जिससे समाज में व्याप्त असमानता, अन्याय व शोषण को दूर किया जा सके। समाजवादी चिन्तन का दूसरा पक्ष यह था कि आर्थिक विकास के क्षेत्र में राज्य की अधिक से अधिक भूमिका हो।
2. उदारवादी पूँजीवादी सिद्धान्त:
उदारवादी चिन्तक खुली व मार्केट अर्थव्यवस्था का निर्माण करना चाहते थे जिससे राज्य के कम से कम नियन्त्रण व हस्तक्षेप से आर्थिक विकास किया जा सके।
प्रश्न 3.
नियोजित आर्थिक विकास से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
नियोजित आर्थिक विकास का अर्थ है कि आर्थिक विकास के क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियाँ इस प्रकार से की जाए जिनसे निश्चित समय अवधि में निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। तथा जिससे उपलब्ध श्रोतों का अधिक से अधिक प्रयोग व उपयोग करके उत्तम परिणाम प्राप्त किया जा सके।
प्रश्न 4.
मिश्रित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें आर्थिक गतिविधियाँ दोनों क्षेत्रों अर्थात् निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र में की जाती है। निजी क्षेत्र में राज्य का हस्तक्षेप व नियन्त्रण न्यूनतम होता है व आर्थिक गतिविधियाँ खुली प्रतियोगिता के आधार पर की जाती है। यह पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को जन्म देता है। दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र वह क्षेत्र होता है जहाँ पर आर्थिक गतिविधियाँ खुली प्रतियोगिता के आधार पर की जाती है। यह पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को जन्म देता है। दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र वह क्षेत्र होता है जहाँ पर आर्थिक गतिविधियों में राज्य का अधिक से अधिक नियन्त्रण व हस्तक्षेप होता है। इसमें लोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर चीजों का उत्पादन किया जाता है। भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया था। 1990 तक भारत में सार्वजनिक क्षेत्र में दबदबा रहा परन्तु 1990 के बाद भारत में निजी क्षेत्र का महत्त्व बढ़ रहा है।
प्रश्न 5.
योजना आयोग क्या है? इसके प्रमुख कार्य क्या हैं?
उत्तर:
योजना आयोग एक महत्त्वपूर्ण संस्था है जिसका उद्देश्य भारत में नियोजन की क्रिया का संचालन करना है यह एक गैर संवैधानिक संस्था है वह इसका स्वरूप व भूमिका एक परामर्शदाता के रूप में होता है। इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं व एक उपाध्यक्ष व कुछ सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। इसके निम्न कार्य हैं –
- स्रोतों का मूल्यांकन करना
- योजनाओं के लिए प्राथमिकता निश्चित करना
- योजनाओं का बीच में मूल्यांकन करना
- उद्देश्यों को निश्चित करना
- योजनाओं के लिए वजट निश्चित करना
- राज्यों की योजनाओं को मंजूरी देना
प्रश्न 6.
प्रथम पंचवर्षीय योजना का मुख्य क्षेत्र क्या था?
उत्तर:
प्रथम पंचवर्षीय योजना का समय 1951 से 1956 का था जिसका निर्माण श्री के. एन. राज ने किया था। क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है इसलिए प्रथम योजना में प्राथमिकता के तौर पर कृषि को महत्व दिया गया। कृषि की स्थिति बहुत खराब थी। जमीन की सिंचाई के साधन उपयुक्त नहीं थे। प्राकृतिक जल पर ही खेती चलती थी। अधिकांश लोग ग्रामों में रहते थे जिनका सम्बन्ध जमीन व कृषि से था। इसलिए इस प्रथम योजना में कृषि विकास को ज्यादा प्राथमिकता दी गई।
प्रश्न 7.
निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र में मुख्य अन्तर समझाइए।
उत्तर:
निजी व सार्वजनिक क्षेत्र दोनों को भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई। दोनों की अपनी-अपनी विशेषताएँ व क्षेत्र हैं। दोनों में निम्न प्रमुख अन्तर हैं।
- निजी क्षेत्र उदारवादी पूँजीवादी चिन्तन पर आधारित हैं। जबकि सार्वजनिक क्षेत्र समाजवादी चिन्तन पर आधारित हैं।
- निजी क्षेत्र में आर्थिक क्षेत्रों का केन्द्रीकरण होता है जबकि सार्वजनिक क्षेत्र में श्रोतों का विकेन्द्रीकरण होता है।
- निजी क्षेत्र में राज्य की सीमित भूमिका होती है। जबकि सार्वजनिक क्षेत्र में राज्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
- निजी क्षेत्र में व्यक्तिगत लाभ को महत्व दिया जाता है जबकि सार्वजनिक क्षेत्र में सर्वहित को महत्व दिया जाता है।
- निजी क्षेत्र प्रतियोगिता पर आधारित होता है। जबकि सार्वजनिक क्षेत्र सभी के सहयोग पर आधारित होता है।
प्रश्न 8.
जमीन सुधार उपायों का क्या उद्देश्य या?
उत्तर:
भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि मुख्य रूप से जमीन पर आधारित है। आजादी के समय जमीन का प्रबन्ध उचित नहीं था। इसका वितरण व रखरखाव भी ठीक नहीं था जिसके कारण इसका उपयोग भी पूर्ण नहीं होता था जिससे पैदावार भी कम होती थी। आजादी के बाद भारत सरकार ने जमीन सुधार कार्यक्रम के तहत जमीन के प्रबन्धन व वितरण को न्यायोचित बनाने के लिए विभिन्न उपाय प्रारम्भ किए जिसमें प्रमुख था जमींदारी प्रणाली को समाप्त करना, चकबन्दी करना व जमीन की अधिकतम सीमा पर सीलिंग करना। इस प्रकार से जमीन को उन लोगों को सौंपा जो वास्तव में खेत पर खेती करते थे इस प्रकार से इन उपायों से जमीन की गुणवत्ता बढ़ी व साथ साथ पैदावार भी बढ़ा व हम खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हुए।
प्रश्न 9.
द्वितीय पंचवर्षीय योजना की प्राथमिकता क्या थी?
उत्तर:
द्वितीय पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1956-1962 तक का था। प्रथम पंचवर्षीय योजना के बाद यह महसूस किया गया कि बिना औद्योगिक विकास की रफ्तार को तेज किए बिना भारत की मूल समस्याओं जैसे गरीबी, बेरोजगारी व क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर नहीं किया जा सकता अतः द्वितीय पंचवर्षीय योजना में औद्योगिक विकास को प्राथमिकता दी गई तथा आर्थिक विकास की गतिविधियों को तेज किया गया। इस योजना में भारत की अर्थव्यवस्था में रचनात्मक व संगठनात्मक. परिवर्तन किए गए।
प्रश्न 10.
गाँधीवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ समझाइए।
उत्तर:
जहाँ एक तरफ भारत में भारतीय अर्थव्यवस्था की समाजवादी चिन्तन व उदारवादी चिन्तन के आधार पर बनाने वाले लोग एक वर्ग गाँधीवादियों का था जो भारतीय अर्थव्यवस्था को गाँधीवादी सिद्धान्तों पर बनाना चाहता था इसमें प्रमुख रूप से जे.सी. कुमारप्पा व चौधरी चरण सिंह के नाम लिए जा सकते हैं। गाँधीवादी चिन्ता व सिद्धान्त की निम्न विशेषताएँ हैं –
- कृषि विकास पर अधिक जोर।
- ग्राम विकास को प्राथमिकता देने वाली नियोजन प्रक्रिया।
- छोटे व लघु उद्योगों का विकास।
- सादा जीवन।
- आत्मनिर्भरता।
- अपने श्रोतों में ही जीना।
प्रश्न 11.
भारत में आजादी के बाद पहले दो दशकों में आर्थिक विकास की कौन-सी नीति अपनाई गई और क्यों?
उत्तर:
यद्यपि भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया लेकिन आर्थिक विकास के क्षेत्र में भारत में अधिक जोर सार्वजनिक क्षेत्र में रहा जिसके कारण अधिकांश आर्थिक गतिविधियाँ राज्य के नियन्त्रण में की गई। इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि भारत में संविधान की भावना के अनुरूप भारतीय अर्थव्यवस्था को समाजवादी सिद्धान्तों के आधार बनाना था ताकि वर्षों से चल रही गरीबी, बेरोजगारी सामाजिक व आर्थिक असमानताओं को दूर किया जा सके। इस कारण इन दर्शकों में निजी क्षेत्र को सीमित भूमिका दी गई।
प्रश्न 12.
समाजवादी विचारधारा के आधार पर आर्थिक नीतियों के मुख्य परिणाम समझाइए।
उत्तर:
भारत में समाजवादी विचारधारा अधिक लोकप्रिय रही जिसके आधार पर आर्थिक नीतियाँ बनाई गई। इसकी निम्न प्रमुख सफलताएँ हैं –
- नियोजित आर्थिक विकास राज्य के नियन्त्रण व निर्देशन में चला।
- समाज में व्याप्त सामाजिक व आर्थिक असमानताओं को दूर किया गया।
- गरीब वर्ग का जीवन स्तर उठाया गया।
- सामाजिक न्याय को प्राप्त करने का प्रयास किया गया।
- सामन्तवादी व पूँजीवादी प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण लगा।
- समाजवादी चिन्तन पर प्रजातन्त्र का विकास हुआ।
प्रश्न 13.
हरित क्रान्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भारत में 1960 के दशक में अनाज व अन्य खाद्यान्न का गम्भीर संकट था। खाद्यान्न अभाव के कारण अमेरिका से पी.एल. 480 के तहत अनाज आयात करना पड़ा। खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के उद्देश्य से कुछ एक अन्य राज्यों में जहाँ स्रोत उपलब्ध थे विज्ञान व तकनीकी का प्रयोग कर उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग करके अनाज की पैदावार बढ़ाने का प्रयास किया इसमें रासायनिक खाद व दवाइयों का भी प्रयोग किया। इस प्रकार से अनाज पैदावार में बढ़ोत्तरी को हरित क्रान्ति कहा गया। इसका लाभ केवल उन विकसित राज्यों तक ही सीमित रहा जो पहले से ही समृद्ध थे। जैसे पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश। हरित क्रान्ति के पीछे डा. एम.एस. स्वामीनाथन का विचार एक प्रेरणा थी।
प्रश्न 14.
भारत में खाद्य संकट के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
भारत को 1960 के दशक में खाद्य संकट से गुजरना पड़ा इसका एक प्रमुख कारण यह था किस अन्न की पैदावार व जनसंख्या वृद्धि में बड़ा अन्तर था। जमीन का बड़ा भाग खेती के लिए उपयुक्त नहीं था। उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश, व बिहार सबसे ज्यादा प्रभावित थे।
इस संकट के प्रमुख कारण निम्न थे –
- खाद्य पैदावार व जनसंख्या वृद्धि में बड़ा अन्तर
- 1965 व 1962 के युद्धों का प्रभाव
- प्राकृतिक संकट
- विदेशी मुद्रा का संकट
- भूमि का अन्याय संगत बँटवारा
- सिंचाई के साधनों का अभाव
प्रश्न 15.
हरित क्रान्ति की मुख्य उपलब्धियाँ समझाइए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति भारत में उस समय जबकि भारत एक बड़े खाद्य संकट से गुजर रहा था। हरित क्रान्ति की निम्न उपलब्धियों मान सकते हैं –
- खाद्य पैदावार में वृद्धि
- कृषि में विज्ञान का प्रयोग
- किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ
- कृषि का मशीनीकरण किया गया
- उन्नत बीज बनाने व रासायनिक खाद्य बनाने वाले कारखाने लगे।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
आजादी के बाद आर्थिक विकास के सम्बन्ध में कौन-सी प्रमुख धारणाएँ व विधियाँ थी?
उत्तर:
जब देश आजाद हुआ तो कई प्रकार की सामाजिक व आर्थिक समस्याएँ हमें ब्रिटिश साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद की विरासत में मिली, जिनमें प्रमुख रूप से गरीबी, बेरोजगारी व क्षेत्रीय असन्तुलन व अनपढ़ता थी। वास्तव में ये समस्याएँ उस समय के नेतृत्व के सामने बड़ी चुनौतियाँ थी। विभिन्न स्तरों पर इस पर लम्बी बहस हुई कि इन सामाजिक व आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिए विकास का कौन-सा मॉडल अपनाया जाए।
उस समय दुनिया में प्रमुख रूप से दो मॉडल प्रचलित थे, एक तो समाजवादी मॉडल एक पश्चिमी उदारवादी पूँजीवादी मॉडल। यद्यपि भारत में समाजवादी चिन्तन का व्यापक प्रभाव था परन्तु उदारवादी विचारधारा के आधार पर स्वतंत्र अर्थव्यवस्था के समर्थन भी मौजूद थे। कांग्रेस में अनेक नेता यहाँ तक कि पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे भी समाजवादी सिद्धान्तों से प्रभावित थे। कांग्रेस ने स्वयं गुवाहाटी अधिवेशन में समाजवादी सिद्धान्तों को अपनाने का प्रस्ताव पारित किया। संविधान की प्रस्तावना में भी बाद में समाजवाद जोड़ा गया व संविधान में ही चौथे भाग में अर्थात् राज्य की नीति के निर्देशक तत्वों के अध्याय में समाजवादी सिद्धान्तों के आधार पर अर्थव्यवस्था को बनाने का निर्देश दिया गया है। लेकिन पूँजीवादी विचारकों की भावी मजबूत थी। जिन्होंने अपना दबाव बनाया व भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया।
प्रश्न 2.
नियोजित आर्थिक विकास की राजनीति से आप क्या समझते हो?
उत्तर:
देश की आजादी के बाद विभिन्न सामाजिक आर्थिक समस्याओं से निपटने के लिए व उपलब्ध स्रोतों का उचित प्रयोग करने के लिए एक निश्चित तकनीकी व विधि की आवश्यकता थी जिस पर विचार करने व निर्णय लेने की प्रक्रिया विभिन्न स्तर पर प्रारम्भ हुई। इसी को ही नियोजित आर्थिक विकास की राजनीति कहते हैं। विभिन्न दृष्टिकोणों व विचारधाराओं के समर्थक अपने-अपने तरीकों से इस बात का प्रयास कर रहे थे कि भारत की समस्याओं का हल उनकी विचारधारा के माध्यम से हो सकता है। विकास का कार्यक्रम जब प्रारम्भ हुआ तो विभिन्न स्तर पर कई प्रकार के विवाद पैदा हो गए। नियोजकों व स्थानीय लोगों में विवाद पैदा हुए। इस प्रकार विकास की प्रक्रिया का राजनीतिकरण हो गया।
प्रश्न 3.
वामपंथी व दक्षिण पंथी राजनीतिक दलों से आप क्या समझते हैं।
उत्तर:
आमतौर से राजनीतिक दलों को उनकी विचारधारा, कार्यविधि व प्राथमिकता के आधार पर तीन भागों में बाँटते हैं –
- वामपंथी
- दक्षिणपंथी व
- केन्द्रपंथी
वामपंथी वे राजनीतिक दल होते हैं जो कि सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक परिवर्तन तेजी से समाज में आमूल परिवर्तन करके लाना चाहते हैं। ये राज्य की भूमिका को सीमित करना चाहते हैं। आमतौर से वामपंथी दल किसान मजदूर व अन्य गरीब वर्गों के हितेशी माने जाते हैं। भारत में साम्यवादी दलों को वामपथी दल कहा जाता है ये उस सरकार का समर्थन करते हैं जो समाज के कमजोर वर्गों के हितों को सुरक्षित करें।
उधर दक्षिणपंथी वे राजनीतिक दल के होते हैं सामाजिक आर्थिक व्यवस्था में स्थिरता अर्थात् यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं अर्थात् कोई बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन का विरोध करते हैं। ये राजनीतिक दल परम्पराओं में विश्वास करते हैं व पुरानी परम्पराओं को बनाए रखना चाहते हैं। भारतीय जनता पार्टी व शिवसेना, अकाली दल व मुस्लिम लीग को हम दक्षिणपंथी दल मान सकते हैं। इसके अलावा जो राजनीतिक दल बीच का रास्ता अपनाते हैं उनको केन्द्रपंथी कहते हैं। कांग्रेस, जनतादल व अन्य दल केन्द्रपंथी है।
प्रश्न 4.
समाजवादी समाज से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रमुख विशेषताएँ समझाए।
उत्तर:
एक ऐसा समाज जिसकी सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था को समाजवादी सिद्धान्तों पर बनाया जाता है। अर्थात् समता व न्याय के आधार पर बनाया जाता है उसे समाजवादी समाज कहते हैं। भारतीय संविधान सभा में ही यह निर्णय लिया गया था कि भारत की सामाजिक आर्थिक नीतियाँ समाजवादी सिद्धान्तों पर, निर्धारित की जाएंगी। राज्य की नीति के निर्देशक तत्वों में समाजवादी सिद्धान्तों का वर्णन किया गया है। इसकी निम्न प्रमुख विशेषताएँ हैं –
- अधिक से अधिक सामाजिक व आर्थिक नीतियाँ सार्वजनिक क्षेत्र में। अर्थात् राज्य को अधिक से अधिक जिम्मेवारी।
- सामाजिक आर्थिक समानताएँ व न्याय प्रमुख उद्देश्य।
- सामाजिक आर्थिक प्रजातन्त्र का निर्माण करना।
- विभिन्न प्रकार की विषमताओं को दूर करना।
- पूँजीवादी व सामन्तवादी प्रवृत्तियाँ समाप्त करना।
प्रश्न 5.
विकास से आप क्या समझते हैं? भारत में आर्थिक सामाजिक विकास से जुड़ी अवधारणाओं को समझाइए।
उत्तर:
विकास शब्द का अर्थ अलग-अलग व्यक्तियो के लिए अलग-अलग है। वास्तव में विकास शब्द का अर्थ उपलब्ध स्रोतों का सर्वोत्तम प्रयोग करके अर्थात् स्रोतों का नियोजित वैज्ञानिक व विवेकपूर्ण आधार पर प्रयोग करके एक आधुनिक समाज का निर्माण करना है। विकास शब्द का अर्थ मनुष्य के शारीरिक मानसिक व बौद्धिक विकास से है। विकास शब्द का सम्बन्ध, एक विवेकयुक्त, व आत्मनिर्भर समाज का गठन करना है। विकास समाज की मूल रचना, मूल्य व सोच में सकारात्मक परिवर्तन करता है। विकास का सम्बन्ध परिवर्तन व आधुनिकीकरण से है। भारत में सामाजिक आर्थिक विकास के लिए मुख्य रूप से दो प्रकार के मॉडल की वकालत की गई थी। प्रथम समाजवादी चिन्तन में आधार पर मॉडल व दूसरा उदारवादी पूँजीवादी मॉडल।
समाजवाद का प्रभाव उन दिनों पूरी दुनिया में था। भारत में समाजवादी चिन्तन के आधार पर समाज का विकास करने के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ थीं। कांग्रेस के अनेक नेता समावादी मॉडल के पक्षधर रहे। प्रारम्भ में भारत में कई दशकों समाजवादी सिद्धान्तों के आधार पर सामाजिक आर्थिक विकास किया गया। परन्तु कुछ लोग उदारवादी पूँजीवादी मॉडल के पक्षधर थे जो राज्य को कम से कम क्षेत्र देकर व्यक्ति को अधिक से अधिक स्वतन्त्रता के पक्षधर रहे। अन्त में भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल को भारत के सामाजिक व आर्थिक विकास के लिए अपनाया गया।
प्रश्न 6.
योजना की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं? इसका क्या महत्त्व है।
उत्तर:
योजना वह प्रक्रिया है जिसमें संसाधनों का वैज्ञानिक तरीके से अधिक से अधिक उपयोग करके कम से कम समय व खर्च में अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके। योजना एक वैज्ञानिक व क्रमबद्ध प्रक्रिया है। इसकी निम्न विशेषता है।
- यह एक क्रमबद्ध प्रक्रिया है।
- इसमें निश्चित उद्देश्य तय किया जाता है।
- उद्देश्यों व लक्ष्यों को कम से कम समय में प्राप्त कराने की योजना होती है।
- योजनाएँ निश्चित समय के लिए निश्चित उद्देश्य तय किए जाते हैं।
प्रश्न 7.
योजना आयोग का गठन व कार्य समझाइए?
उत्तर:
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भारत का वैज्ञानिक पद्धति से। विकास करना चाहते थे। भारत की सामाजिक आर्थिक समस्याओं को क्रमबद्ध तरीके से हल करना चाहते थे। वे सोवियत संघ की योजना प्रक्रिया से अत्यन्त प्रभावित थे। अतः उन्होंने भारत में नियोजन की प्रक्रिया प्रारम्भ की। नियोजन की प्रक्रिया का संचालन करने के लिए उन्होंने 1950 में योजना आयोग का गठन किया। योजना आयोग का एक उपाध्यक्ष होता है। जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। इसके अलावा योजना आयोग के कई सरकारी व गैर सरकारी सदस्य होते हैं। कुछ मन्त्री इसके पदेन सदस्य होते हैं। भारत का प्रधानमंत्री योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष होता है। योजना आयोग का स्वरूप एक सलाहकार संस्था के रूप में होता है।
योजना आयोग का कार्य –
- पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण करना।
- स्रोतों का अवलोकन करना।
- योजनाओं की प्राथमिकता निश्चित करना।
- योजनाओं के लक्ष्यों को प्राप्त करना।
- योजनाओं के बीच में प्रगति प्राप्त करना व मूल्यांकन करना।
- योजना की प्रक्रिया में आने वाली बाधाओं को दूर करना।
- विभिन्न प्रकार की सलाह प्रदान करना।
प्रश्न 8.
मिश्रित अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ समझाइए।
उत्तर:
भारत में आजादी के बाद दो प्रकार की विचारधाराओं के आधार पर भारत के आर्थिक विकास के लिए प्रतियोगिता व बहस जारी थी। समाजवादी चिन्तन के लोग अधिक गतिविधियाँ सार्वजनिक क्षेत्र में चाहते थे जबकि उदारवादी चिन्तक पूँजीवाद के विस्तार के पक्षधर थे। इस विवाद को समाप्त करने के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया। मिश्रित अर्थव्यवस्था की निम्न विशेषताएँ हैं।
- आर्थिक गतिविधियाँ दोनों क्षेत्रों में चलाए जाने की व्यवस्था अर्थात् निजी क्षेत्र व: सार्वजनिक क्षेत्र में भी थी।
- निजी क्षेत्र भी सरकार की नीतियों का नियमों के तहत ही काम करता है।
- दोनों ही क्षेत्रों को विकसित करने के अवसर।
- राज्य की ही अन्तिम जिम्मेदारी सामाजिक व आर्थिक विकास की होती है।
प्रश्न 9.
प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रमुख क्षेत्र क्या था?
उत्तर:
प्रथम पंचवर्षीय योजना का समय 1951 से 1956 तक का था। इस समय देश की आर्थिक दशा ठीक नहीं थी। खाद्य के क्षेत्र में अत्यधिक अभाव था। देश की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार खेती को ही माना जाता था। देश का अधिकांश भाग ग्रामों में था जो कि खेती पर निर्भर रहते थे अत: कृषि के विकास को ही प्रथम पंचवर्षीय योजना में प्राथमिकता मिली। प्रथम पंचवर्षीय योजना के प्रमुख निर्माताओं में श्री के.एन.राज एक थे। उनका मानना था कि प्रारम्भिक दशकों में आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी ही रखनी चाहिए क्योंकि तेज रफ्तार से आर्थिक विकास को नुकसान होगा। इसी योजना में बाँध निर्माण और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया।
कृषि को ही भारत में विभाजन का सबसे अधिक खामयाजा उठाना पड़ा था। भाखड़ा नांगल जैसी विशाल परियोजनाओं के लिए बड़ी धन राशि निश्चित की गई थी। इन सभी का उद्देश्य सिंचाई के साधन बढ़ाकर कृषि के क्षेत्र में पैदावार बढ़ाना था क्योंकि अभी तक अनाज पैदावार व जनसंख्या वृद्धि में एक बड़ा अन्तर था। कृषि पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर करती है। अतः इस स्थिति में प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि विकास पर प्राथमिकता देना आवश्यक था व उचित भी था। इस योजना में ही जमीन सुधार जैसे कार्यक्रम प्रारम्भ किए गए व अधिक से अधिक जमीन को कृषि के लिए तैयार किया गया।
प्रश्न 10.
द्वितीय पंचवर्षीय योजना का प्रमुख प्राथमिकता का क्षेत्र क्या था?
उत्तर:
द्वितीय पंचवर्षीय योजना का समय 1956-1961 तक का था। इसके निर्माता श्री पी. सी. महालनोबिस थे। इस योजना का प्राथमिक क्षेत्र औद्योगिक विकास था। पहली योजना का मूलतंत्र था धीरज परन्तु द्वितीय पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य तेज गति से संरचनात्मक बदलाव करने की थी। यद्यपि प्रथम पंचवर्षीय योजना में खाद्य पूर्ति के लिए कृषि विकास को आवश्यक समझा गया था परन्तु द्वितीय पंचवर्षीय योजना में गरीबी व बेरोजगारी को दूर करने के लिए औद्योगिक विकास को जरूरी समझा गया अत: इसे प्राथमिक स्थान दिया गया। रोजगार को ही लोगों के जीवन स्तर को उठाने के लिए आवश्यक समझा गया। औद्योगीकरण पर दिए गए इस बल ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को एक नया आयाम दिया।
प्रश्न 11.
द्वितीय पंचवर्षीय योजना के आधार पर किए गए औद्योगीकरण में प्रारम्भिक वर्षों में कौन-कौन-सी प्रमुख समस्याएँ सामने आयी?
उत्तर:
द्वितीय पंचवर्षीय योजना में गरीबी व बेरोजगारी जैसी प्रमुख समस्याओं को दूर करने के उद्देश्य से औद्योगिक विकास पर जोर दिया गया जबकि प्रथम योजना कृषि विकास को प्रथमिकता मिली थी। औद्योगीकरण की प्रक्रिया के प्रारम्भिक चरणों में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ा। क्योंकि भारत प्रौद्योगिकी की दृष्टि से पिछड़ा हुआ था। अत: विश्व बाजार से तकनीकी खरीदने के लिए अपनी बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ी।
इसके अतिरिक्त उद्योगों ने कृषि की अपेक्षा निवेश को अधिक आकर्षित किया। क्योंकि इस योजना में कृषि को उचित प्राथमिकता नहीं मिल पायी। अत: खाद्यान्न संकट बढ़ गया। भारत में योजनाकारों को उद्योग व कृषि के बीच सन्तुलन साधने में भारी कठिनाई आई। इसके अलावा औद्योगीकरण की नीति के सम्बन्ध में भी योजनाकारों व अन्य विशेषज्ञों में मतभेद था। कुछ लोग कृषि से जुड़े उद्योगों के पक्ष में थे व अन्य भारत में विकास के लिए भारी उद्योगों की स्थापना के पक्ष में थे। इसके अलावा औद्योगीकरण की नीति को लागू करने में भी स्थानीय लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। अनेक सामाजिक संगठनों व वातावरण बचाओ अभियान से जुड़े लोगों ने भी भारी औद्योगीकरण का विरोध किया।
प्रश्न 12.
भारत में समाजवादी व्यवस्था निर्माण की प्रमुख विशेषाएँ समझाइए।
उत्तर:
1950 के दशक में समाजवादी विचारधारा का पूरी दुनिया की तरह भारत में भी इसका प्रभाव पड़ा भारत की प्रमुख सामाजिक व आर्थिक समस्याओं का हल समाजवादी चिन्तन के माध्यम से देखा गया। अतः भारत के नेतृत्व ने भारत को एक समाजवादी व्यवस्था के आधार पर निर्माण करने का निर्णय लिया जिसके आधार पर सरकारों को निर्देश दिए गए कि वे सामाजिक आर्थिक नीतियाँ समाजवादी सिद्धान्तों के आधार पर बनाएँ। इसकी प्रमुख निम्न विशेषताएँ हैं।
- पैदावार व वितरण के साधनों पर सामूहिक नेतृत्व।
- असमानताओं व अन्याय को समाप्त करना।
- सामाजिक व आर्थिक न्याय प्राप्त करना।
- राज्य की मुख्य भूमिका।
- सार्वजनिक क्षेत्र का विकास।
प्रश्न 13.
हरित क्रान्ति का अर्थ व महत्त्व समझाइए।
उत्तर:
भारत में आजादी के बाद से खाद्यान्न संकट चल रहा था। इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि कृषि के लिए जमीन का सही उपयोग नहीं चल रहा था। अधिकांश जमीन पर सिंचाई की सुविधा नहीं थी। जमीन का प्रबन्ध भी उचित नहीं था खेती करने का ढंग भी परम्परागत था। प्रथम पंचवर्षीय योजना में हालाँकि खेती को प्राथमिकता दी गई थी परन्तु कृषि उत्पादन में इतनी वृद्धि नहीं हो पायी कि हम खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएँ।
1970 के दशक में कृषि वैज्ञानिक श्री एम.एस.स्वामीनाथन के विचारों व प्रयासों के आधार पर भारत के उत्तरी राज्यों विशेषकर पंजाब हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पैदावार बढ़ाने के उद्देश्य से कृषि के लिए वैज्ञानिक व तकनीकी का प्रयोग किया गया। नए उपकरण व मशीनों का प्रयोग किया गया। अधिक पैदावार देने वाले उन्नत बीजों का प्रयोग किया। रासायनिक खाद व दवाइयों का प्रयोग कर अनाज पैदावार में अत्यधिक वृद्धि की गई। इस प्रकार से इन नई विधियों व रासायनिक खाद के प्रयोग से पैदावार में हुई वृद्धि को हरित क्रान्ति के नाम से जाना गया। हरित क्रान्ति प्रारम्भ में केवल कुछ विकसित राज्यों तक ही सीमित रही व इसका लाभ भी उच्च किसानों व बड़े जमींदारों को मिला इस कारण से किसानों में भी हरित क्रान्ति के प्रभावों के कारण विशिष्ट वर्ग पैदा हो गया।
प्रश्न 14.
जमीन सुधार से आप क्या समझते हैं? इसका क्या महत्त्व था?
उत्तर:
आजादी के बाद कृषि के क्षेत्र में कम पैदावार का सबसे बड़ा कारण यह था कि जमीन का ना तो सही प्रबन्धन था और ना ही इसका समुचित प्रयोग किया जा रहा था। जिसके नाम पर जमीनें थी वे उस पर खेती करते नहीं थे व जो वास्तव में खेती करते थे उनके नाम जमीन नहीं होती थी। दूसरा कारण यह था कि जमीन का उचित प्रयोग भी नहीं हो पाता था इन सभी को दूर करने के लिए भारत में आजादी के बाद जमीन सुधार कार्यक्रम चलाया गया जिसके तहत जमीन की चकबन्दी की गई। जमींदारी प्रणाली को समाप्त किया गया जो अपने आप में एक बड़ा कदम था। इसके अलावा जमीन पर सीलिंग लगा कर यह निश्चित किया गया कि एक नाम पर अधिक से अधिक कितनी जमीन हो सकती है। इस प्रकार से कृषि के क्षेत्र में सम्बन्ध बदले व जमीन की उपयोगिता भी बढ़ी।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
भारत में नियोजित विकास की राजनीति समझाइए।
उत्तर:
भारत एक कल्याणकारी राज्य है। लोगों के जन कल्याण के लिए श्रोतों का समुचित प्रयोग व आर्थिक विकास का लक्ष्य प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक था। इसके लिए भारत में नियोजन की प्रक्रिया का आरम्भ किया गया। 1950 में योजना आयोग का गठन किया गया व 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना तैयार की गई।
प्रथम पंचवर्षीय योजना में कार्य को प्राथमिकता दी गई क्योंकि कृषि ही भारत की सबसे प्रमुख पूँजी है व भारत की अधिकांश जनता कृषि पर ही निर्भर करती है। अतः ग्रामीण विकास भारत समाज के सामाजिक व आर्थिक विकास के लिए आवश्यक समझा गया। नियोजन की प्रक्रिया जो पंडित जवाहर लाल नेहरू के कुशल निर्देशन में प्रारम्भ हुई, राजनीतिकरण व विवादों के घेरे से नहीं बच पायी। इस सम्बन्ध में जो प्रमुख विवाद सामने आए वो निम्न प्रकार के थे।
1. वैचारिक विवाद-सबसे प्रमुख विवाद नियोजन के सम्बन्ध में अपनाई जाने वाली विचारधारा के सम्बन्ध में उत्पन्न हुआ जो समाजवादी चिन्तक थे वे चाहते थे कि आर्थिक गतिविधियाँ सार्वजनिक क्षेत्र में दी जाए जिनके संचालन में राज्य की अधिक से अधिक भूमिका हो। सार्वजनिक क्षेत्र में ही अधिक निवेश हो। परन्तु दूसरी ओर उदारवादी चिन्तक इस बात पर जोर देते थे कि व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को विकसित करने के लिए अधिक से अधिक भूमिका व महत्व निजी क्षेत्र के विकास को दिया जाए।
2. कृषि बनाम उद्योग-आर्थिक नियोजन के क्षेत्र में इसका प्रमुख विवाद कृषि बनाम उद्योग से सम्बन्धित था। दूसरी पंचवर्षीय योजना में जब उद्योगों के विकास को प्राथमिकता दी गई अनेक गाँधीवादी नेताओं व विचारकों ने विरोध किया कि कृषि विकास की कीमत पर उद्योग विकास करना ग्रामीण क्षेत्र के लिए हानिकारक रहेगा क्योंकि देश के अधिकतम लोग खेती पर अर्थात् कृषि पर निर्भर करते हैं। अतः भारी उद्योग देश के हित में नहीं है।
3. सार्वजनिक क्षेत्र बनाम निजी क्षेत्र-भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाने पर तो समझौता हो गया परन्तु इसके दोनों क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा पैदा कर दी जिससे एक विवाद को जन्म मिला।
4. ग्रामीण क्षेत्र बनाम शहरी क्षेत्र-नियोजन की राजनीति के संदर्भ में ही ग्रामीण क्षेत्र व शहरी क्षेत्र की भावनाओं को जन्म मिला।
प्रश्न 2.
मिश्रित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं? सार्वजनिक क्षेत्र की सफलता व असफलता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ पर आर्थिक गतिविधियाँ निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र दोनों में की जाती है, उसे मिश्रित अर्थव्यवस्था कहते हैं। भारत में एक लम्बी बहस के बाद यह निश्चित किया गया कि भारत के सामाजिक व आर्थिक विकास में निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र दोनों को ही अपनी अपनी भूमिका निभाने देना चाहिए। अत: भारत एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है। सार्वजनिक क्षेत्र समाजवादी चिन्तन पर कार्य करता है। जबकि निजीक्षेत्र उदारवादी चिन्तन पर कार्य करता है। भारत में अधिकांश महत्त्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियाँ सार्वजनिक क्षेत्र में हैं।
पहले कुछ दशकों में सार्वजनिक क्षेत्र में बहुत उत्साह से कार्य हुआ परन्तु इसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों से कोई अधिक लाभ नहीं हुआ। पहले दशकों में सार्वजनिक क्षेत्र ने स्टील उत्पादन, बीज उत्पादन, तेल उत्पादन, खाद उत्पादन, दवाइयों के उत्पादन व सीमेंट उत्पादन में अच्छे परिणाम दिए परन्तु इसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र में कई प्रकार के दोष पैदा हो गए जिससे इसके परिणाम पर ही नकारात्मक प्रभाव पड़ा बल्कि निजी क्षेत्र को विकसित होने का अवसर भी प्राप्त हुआ। इस सबके परिणामस्वरूप 1990 के बाद निजीकरण, उदारीकरण व वैश्वीकरण के प्रभाव में सार्वजनिक क्षेत्र का महत्व काफी घट गयीं।
सार्वजनिक क्षेत्र के दोष –
- निष्क्रियता।
- लाल फीताशाही।
- उपक्रम का आभाव।
- भ्रष्टाचार।
- पैदावार में गिरावट।
- सरकारीकरण का माहौल।
- जिम्मेवारी व जवाबदेही का अभाव।
सार्वजनिक क्षेत्र में उपरोक्त दोष होने के कारण सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्व घट गया। सरकार को भी अपनी नीति में परिवर्तन करना पड़ा। कई महत्वपूर्ण अनुसंधान बंद किए गए व इन गतिविधियों को निजी क्षेत्र में लाया गया। आज ऐसी स्थिति है कि सार्वजनिक क्षेत्र में चलने वाली महत्वपूर्ण गतिविधियाँ जैसे, यातायात, संचार व्यवस्था, बीमा, बैंकिंग, उड्यान को भी निजी क्षेत्र में दे दिया गया है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
I. निम्नलिखित विकल्पों में सही का चुनाव कीजिए।
प्रश्न 1.
किस देश से भारत में योजना की प्रक्रिया की प्रेरणा ली गई?
(अ) अमेरिका
(ब) सोवियत संघ
(स) चीन
(द) जापान
उत्तर:
(ब) सोवियत संघ
प्रश्न 2.
किस वर्ष में योजना आयोग का गठन किया गया?
(अ) 1950
(ब) 1952
(स) 1948
(द) 1955
उत्तर:
(अ) 1950
प्रश्न 3.
प्रथम पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल क्या था?
(अ) 1956-1961
(ब) 1951-1956
(स) 1950-1955
(द) 1948-1953
उत्तर:
(ब) 1951-1956
प्रश्न 4.
द्वितीय योजना की प्राथमिकता का विषय क्या था?
(अ) कृषि
(ब) उद्योग
(स) टूरिज्म
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) उद्योग
II. मिलान वाले प्रश्न एवं उनके उत्तर
उत्तर:
(1) – (स)
(2) – (द)
(3) – (य)
(4) – (ब)
(5) – (अ)
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