BSEB Class 12 Political Science Regional Aspirations Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Political Science Regional Aspirations Book Answers |
Bihar Board Class 12th Political Science Regional Aspirations Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 12th |
Subject | Political Science Regional Aspirations |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 12th Political Science Regional Aspirations Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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प्रश्न 1.
निम्नलिखित में मेल करें भाग –
उत्तर:
(1) – (स)
(2) – (द)
(3) – (ब)
(4) – (अ)
प्रश्न 2.
पूर्वोत्तर के लोगों की क्षेत्रीय आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति कई रूपों में होती है। बाहरी लोगों के खिलाफ आन्दोलन ज्यादा स्वतन्त्रता की माँग के आन्दोलन और अलग देश की माँग करना ऐसी ही कुछ अभिव्यक्तियाँ है। पूर्वोत्तर के मानचित्र पर इन तीनों के लिए अलग-अलग रंग भरिए व दिखाईए कि राज्य में कौन-सी प्रवृत्ति ज्यादा प्रबल हैं।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 3.
आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के विवादास्पद होने के क्या कारण थे?
उत्तर:
1970 के दशक में पंजाब में अकालियों का आन्दोलन और अधिक तेज हो गया व इसके एक समूह ने पंजाब के लिए अधिक स्वायत्तता की मांग उठाई। 1973 में आनंदपुर साहिब में हुए एक सम्मेलन में इस आशय का प्रस्ताव पारित किया जिसे आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है। इस प्रस्ताव में केन्द्र व प्रांतों के सम्बन्धों को पुनः पारिभाषित करने की माँग की जिसमें राज्यों के सभी क्षेत्राधिकार देकर केन्द्र को कुछ सीमित विषयों (विदेश, सम्बन्ध, रक्षा व बजट) पर क्षेत्राधिकार सीमित किया।
विभिन्न स्तर पर इस प्रस्ताव को अलग राज्य की माँग के रूप में देखा गया। आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव को प्रारम्भ में पंजाब में ऐसी भावना का विकास किया कि पहले सीमा क्षेत्र व पानी के बँटवारे के मद्दे की राजनीति प्रारम्भ हुई व बाद में पंजाब को सिख राज्य के रूप (खालिस्तान) में माँग का आन्दोलन प्रारम्भ किया जिससे पूरा राज्य उग्रवाद की चपेट में आ गया।
प्रश्न 4.
जम्मू-कश्मीर की अंदरुनी विभिन्नताओं की व्याख्या कीजिए व बताइए कि इस राज्य में किस तरह अनेक क्षेत्रीय आकांक्षाओं में इन विभिन्नताओं के कारण सर उठाया।
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर में तीन राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र शामिल हैं-जम्मू, कश्मीर व लद्दाख। कश्मीर को इस राज्य का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है। कश्मीरी बोलने वाले ज्यादातर लोग मुस्लिम हैं। बहरहाल, कश्मीरी भाषा लोगों में अल्पसंख्यक हिन्दु भी शामिल हैं। जम्मू क्षेत्र पहाड़ी तलहटी एवं मैदानी इलाके का मिश्रण है जहाँ हिन्दू, मुस्लिम और सिख यानी कई धर्म व भाषाओं के लोग रहते हैं। लद्दाख पर्वतीय इलाका है जहाँ बौद्ध व मुस्लिमों की आबादी है। इस क्षेत्र में बहुत कम आबादी है। जम्मू-कश्मीर की समस्या के दोनों पहलू है, बाहरी भी व आन्तरिक भी।
जम्मू-कश्मीर अपनी अलग पहचान के संघर्ष में लगा है जहाँ भारत व पाकिस्तान भी इस समस्या से जुड़े हैं । जम्मू कश्मीर को भारत अपना अभिन्न अंग मानता है जबकि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय को विवादित मानता है। वहीं जम्मू कश्मीर का एक वर्ग जम्मू-कश्मीर को अलग स्वतंत्र प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य के रूप में देखना चाहते हैं।
1948 के बाद से ही यह विवाद जारी है। दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर की अपनी आन्तरिक समस्या भी है जम्मू क्षेत्र पहाड़ी व मैदानी इलाके का मिश्रण है व अपनी अधिक राजनीतिक स्वायत्तता की माँग करता रहा है। कश्मीर राज्य का दिल है व इसकी पहचान को कश्मीरियत के रूप में जाना जाता है। समय-समय पर लद्दाख के लोगों की ओर से भी मांग उठती रहती है कि इस क्षेत्र को सांस्कृतिक व आर्थिक विकास के लिए पर्याप्त स्वायत्तता मिलनी चाहिए।
प्रश्न 5.
कश्मीर की क्षेत्रीय स्वायत्तता के मसले पर विभिन्न पक्ष क्या हैं? इनमें कौन-सा पक्ष आपको समुचित जान पड़ता है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर भारत का वह राज्य है जिसने भारत सरकार अधिनियम 1947 के कानून के आधार पर प्रारम्भ में तो स्वतन्त्र राज्य के रूप में रहने की इच्छा व्यक्त की थी परन्तु 1948 में जब कबालियों ने इस पर आक्रमण कर इसके एक भाग को अपने कब्जे में कर लिया तो उस समय के राजा हरि सिंह ने भारत के साथ जम्मू-कश्मीर को विलय कर दिया परन्तु कुछ विशेष स्थिति को ध्यान में रखते हैं इसे विशेष दर्जा दिया जाए अत: भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 व 371 के तहत इसे विशेष दर्जा दिया गया। विशेष दर्जे से यह व्यवस्था है कि जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान होगा व भारत की संसद का कानून जम्मू-कश्मीर में तभी लागू होगा जब जम्मू-कश्मीर की विधान सभा उस बिल को पास कर दे।
जम्मू-कश्मीर को अधिक स्वायत्तता देने के लिए दिए गए अनुच्छेद 370 के सम्बन्ध में अलग-अलग विचार है। कुछ लोगों का यह कहना है कि इसके दिए गए प्रावधान जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय स्वायत्तता के लिए अपर्याप्त है व इनको पूर्ण रूप से लागू नहीं किया जाता। जबकि अन्य वर्ग का यह मानना है कि 370 को समाप्त कर देना चाहिए व जम्मू-कश्मीर को भी अन्य राज्यों की तरह ही बराबर का दर्जा मिलना चाहिए।
दोनों पक्षों के निष्पक्ष अध्ययन से यह बात कही जा सकती है कि जम्मू-कश्मीर का विषय निश्चित रूप से अलग है व जरूरत है एक ऐसा वातावरण बनाने की कि जम्मू-कश्मीर के लागे कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानने लगे इसके लिए जम्मू-कश्मीर के पूर्ण सांस्कृतिक व आर्थिक विकास की आवश्यकता है। जम्मू कश्मीर के नौजवानों को अधिक से अधिक रोजगारों व स्वयं रोजगारों में लगाकर उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता है। जम्मू-कश्मीर के विकास को इस प्रकार से नियोजित करने की आवश्यकता है कि अन्य राज्यों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव ना पड़े। आज की सच्चाई यह है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है जिसके पूर्ण विकास की जिम्मेवारी सभी पर है।
प्रश्न 6.
असम आन्दोलन सांस्कृतिक अभियान और आर्थिक पिछड़ेपन की मिली-जुली अभिव्यक्ति था। व्याख्या करें।
उत्तर:
असम भारत का एक प्रमुख राज्य है जिसके साथ भारत की महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय सीमा लगती है। असम पूर्वोत्तर के सात राज्यों (जिन्हें सात बहनें भी कहा जाता है) में सबसे बड़ा व सबसे प्रमुख राज्य है। असम की अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान है। असमी भाषा बोलने वालों का इन राज्यों में पहलवाद है जिसके प्रभुत्व का अन्य राज्यों में बोली जाने वाली भाषा के लोगों ने इसका विरोध किया है।
यह सच है कि असम के लोगों को अपनी विशिष्ट भौगोलिकता व सांस्कृतिक धरोहर व पहचान पर अभिमान रहा है यही कारण है कि जब भी इनके इस अभिमान को किसी भी क्षेत्र से ठेस लगती है तो इनका विरोध अत्यधिक तीव्र होता है। इनके द्वारा चलाए गए विभिन्न आन्दोलन इस सच्चाई का परिणाम है।असम आन्दोलन का एक और कारण है असम का आर्थिक पिछड़ापन, जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव वहाँ के युवाओं पर पड़ा जिन्होंने विभिन्न हिंसात्मक आन्दोलनों में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया।
केन्द्र सरकार भी विभिन्न राजनीतिक व आर्थिक कारणों से असम के विकास की ओर ध्यान नहीं दे पायी जिससे असम के लोगों का असन्तोष लगातार बढ़ता रहा जिसमें हिंसात्मक आन्दोलन का जन्म हुआ। अब असम के लोग किसी भी बाहरी लोगों को बर्दास्त नहीं करते। यही कारण है कि बंगला देश, बिहार व पश्चिम बंगाल से आए व बसे लोगों को वे इसलिए सहन नहीं कर पाते क्योंकि उनका यह मानना है कि उनके श्रोतों पर ये बाहर के लोग कब्जा कर रहे हैं। अत: यह सत्य है कि असम आन्दोलन सांस्कृतिक अभियान व आर्थिक पिछड़ेपन की मिली-जुली अभिव्यक्ति है।
प्रश्न 7.
हर क्षेत्री आन्दोलन अलगाववादी माँग की तरफ अग्रसर नहीं होता। इस अध्याय से उदाहरण देकर इस तथ्य की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में विभिन्नता में एकता है। भारत एक बहुल समाज है जिसमें विभिन्न जाति, धर्म, भाषा व सांस्कृतिक पहचान के लोग रहते हैं। सभी लोग अपने व्यवसायिक व आर्थिक हितों के प्रति सजग हैं। भारत एक प्रजातन्त्रीय देश है जिसमें सभी को अपनी बात कहने व संघ बनाने व विरोध जताने का अधिकार है। इसी सन्दर्भ में भारत में लोगों के द्वारा अपने हितों की रक्षा करने व विकसित करने का अधिकार है। अपने हितों को प्राप्त करने के लिए लोग एकत्रित होते हैं, संघ बनाते हैं व आन्दोलन भी चलाते हैं।
भारत के कई क्षेत्रों में इस प्रकार के आन्दोलन जारी रहते हैं जो भारतीय राजनीति को गहराई से प्रभावित करते हैं। आन्दोलन को प्रजातन्त्रीय प्रणालियों में स्वीकार किया जाता है परन्तु जब ये आन्दोलन उग्रवादियों व असामाजिक तत्वों के हाथों में चले जाएँ अथवा कट्टरवादियों का नियन्त्रण इन आन्दोलनों पर हो जाए तब सीमा समाप्त हो जाती है व प्रजातन्त्र के लिए खतरा भी पैदा हो जाता है।
भारत के कई राज्यों जैसे पंजाब, जम्मू-कश्मीर व कई उत्तर पूर्वी राज्यों जैसे नागालैंड व मिजोरम में उग्रवादी आन्दोलन चले हैं जो भारत की एकता अखंडता के लिए खतरा बन गए थे क्योंकि वे भारत से अलग होने की माँग कर रहे थे। पंजाब के आन्दोलनकारी भी हिंसात्मक हो गए थे व खालिस्तान (सिख राज्य’ की माँग कर रहे थे।
लेकिन कई राज्यों में विभिन्न क्षेत्रीय व्यवसायिक व आर्थिक हितों के लिए आन्दोलन चलाए गए हैं जैसे उत्तर प्रदेश में किसान आन्दोलन, असम में बोडो आन्दोलन भी अलगाववाद जैसे कोई माँग नहीं कर रहा था। असमी लोगों का विरोध बाहरी राज्यों से आए विस्थापित लोगों के खिलाफ है। झारखंड व छत्तीसगढ़ व उत्तराखंड भी ऐसे ही आन्दोलनों का परिणाम है जिसमें वे एक निश्चित क्षेत्र के विकास का मुद्दा उठा रहे थे।
प्रश्न 8.
भारत के विभिन्न भागों से उठने वाली क्षेत्रीय मांगों से विविधता में एकता के सिद्धान्त की अभिव्यक्ति होती है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
उत्तर:
यह कथन सही है कि विभिन्न राज्यों व क्षेत्रों से उठने वाली माँगों व उन मांगों के सम्बन्ध में चल रहे आन्दोलनों को हम भारत की विविधताओं की अभिव्यक्ति के रूप में समझ सकते हैं क्योंकि भारत एक बहुल समाज है जिसमें विभिन्न जाति, धर्म, भाषा व संस्कृति व भौगोलिकताओं के लोग रहते हैं जिनके प्रति लोगों में प्रजातन्त्र की प्रक्रिया के साथ-साथ लगाव व जागरूकता बढ़ी है। अत: वे अपने क्षेत्रीय भाषीय व भौगोलिक तथा सांस्कृतिक हितों की सुरक्षा के लिए विभिन्न रूपों में अपनी आवाज उठाते रहते हैं।
ये सब कुछ भारतीय संविधान द्वारा तय की गई सीमाओं में ही करते हैं क्योंकि प्रत्येक भारतीय में क्षेत्रीय व राष्ट्रीय भावनाएँ हैं जिसके आधार पर भारत में विभिन्नता में एकता है। यद्यपि कुछ क्षेत्रों से इस प्रकार की माँगें उठती रही है जिससे एकता व अखंडता को आघात लगा है। पंजाब, नागालैंड व मीजोरम व जम्मू व कश्मीर से भी ऐसी माँगें अर्थात् अलग राज्यों की मांग अर्थात् भारत से अलग होने की माँग उठती रही है जिससे भारत की विभिन्नता में एकता की भावना को चोट लगी है। धीरे-धीरे सभी अलगाववादी तत्व भारत की राष्ट्रीय मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं। भारत में बहुल समाज होने के बावजूद एकता की भावना छिपी हुई है।
प्रश्न 9.
नीचे लिखे अवतरण को पढ़े व इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें –
हजारिका का गीत एकता की विजय पर है …… पूर्वोत्तर के सात राज्यों को इस गीत में एक ही माँ की सात बेटियाँ कहा गया है …….. मेघालय अपने रास्ते गई …… अरुणाचल भी अलग हुई व मिजोरम असम के द्वार पर दूल्हे की तरह दूसरी बेटी से ब्याह रचाने को खड़ा है ……. इस गीत का अन्त असमी लोगों की एकता को बनाए रखने के संकल्प के साथ होता है और इसमें समकालीन असम में मौजूद छोटी-छोटी कौमो को भी अपने साथ एक जुट रखने की बात कही गई है …….. कबरी और मिसिंग भाई बहन हमारे ही प्रियजन हैं। संजीव व वरुथा।
(क) लेखक यहाँ किस एकता की बात कर रहा है?
(ख) पुराने राज्य असम से अलग करके पूर्वोत्तर के अन्य राज्य क्यों बनाए गए?
(ग) क्या आपको लगता है कि भारत के सभी क्षेत्रों के ऊपर की यही बात लागू हो सकती है? क्यों?
उत्तर:
(क) इस लेख में लेखक ने असम के उन सब लोगों व क्षेत्रों की बात कर रहा है जो बाद में सात राज्यों में विभाजित हो गए। लेखक ने इन सात राज्यों को एक ही माँ अर्थात् (असम) की सात बेटियाँ कहा है जो भले ही असम से अलग हो गए हों पर उन सबका सामाजिक, सांस्कृतिक व भौगोलिक साथ है व एकता है।
(ख) आजादी के समय मणिपुर और त्रिपुरा रियासतें थी शेष पूर्वोत्तर इलाका असम कहलाता था। गैर असमी लोगों को लगा कि असम की सरकार उन पर असमी भाषा थौंप रही है। अत: गैर असमी लोगों ने अपनी भाषीय पहचान को सुरक्षित करने के लिए अपने निश्चित क्षेत्र के लिए राजनीतिक स्वायत्तता की माँग उठा ली। पूरे राज्य में असमी भाषा को लादने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और दंगे हुए व असम से अलग होकर अपनी भाषीय पहचान के आधार पर अलग राज्य की माँग करने लगे।
पूर्वोत्तर के पूरे इलाके का बड़े व्यापक स्तर पर राजनीतिक पुनर्गठन हुआ। नागालैंड को 1960 में राज्य बनाया गया। 1972 में मेघालय, मणिपुर व त्रिपुरा राज्य बने। असम से अन्य राज्यों के अलग होने का कारण आर्थिक विसमताएँ भी थी। 1959 में मिजो पर्वतीय इलाके में भारी अकाल पड़ा। असम की सरकार इस अकाल में समुचित प्रबन्ध ना कर सकी जिससे मिजोरम के लोगों में असंतोष बढ़ गया जो धीरे-धीरे हिंसात्मक अलगाववादी आन्दोलन का रूप लेने लगा।
1986 में राजीव गाँधी व लाल डेगा के बीच समझौते के आधार पर मिजोरम राज्य का गठन हुआ। इसी प्रकार से राजीव गाँधी व फिजो के समझौते के आधार पर नागालैंड भी एक राज्य के रूप में गठित किया गया। इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि असम से अन्य राज्यों के अलग होने के दो प्रमुख कारण रहे –
- भाषीय पहचान के खोने का डर
- आर्थिक पिछड़ापन
(ग) भारत जब 1947 में आजाद हुआ था उस समय लगभग 13 राज्य व 9 केन्द्र शासित प्रदेश थे। आज भारत 29 राज्यों का संघ है। नए राज्यों का निर्माण विभिन्न राज्यों में विभिन्न आधारों पर विभिन्न क्षेत्रों से उठी मांगों के आधार पर किया गया। भारत एक बहुल समाज है जिसमें विभिन्न संस्कृतियों, बोलियों, भाषाओं व भौगोलिकताओं के लोग रहते हैं जिनकी अपनी एक विशिष्ट पहचान है। बड़े-बड़े राज्यों में आर्थिक स्तर पर भी क्षेत्रीय असन्तुलन हो जाना भी स्वाभाविक है जिससे एक क्षेत्र में दूसरे क्षेत्र के साथ प्रतियोगिता प्रारम्भ हो जाता है जिससे अलगाववाद की भावना उत्पन हो जाती है।
1955 तक कई राज्यों में भाषा के आधार पर क्षेत्रीय विकास में आर्थिक असन्तुलन को लेकर अलग राज्यों के गठन की मांग बड़ी तेजी से उभरी जिसके परिणाम स्वरूप कई बड़े राज्यों जैसे महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से अलग राज्य बनाने की मांग उठी। 1956 भाषा के आधार पर राज्य पुनर्गठन कानून पास किया गया जिसके आधार पर भाषा के आधार पर अनेक राज्यों का गठन किया गया। 1966 में हरियाणा का पंजाव से विभाजन हुआ। क्षेत्रीय आर्थिक व प्रशासनिक विकास के मुद्दों के आधार पर झारखंड, छत्तीसगढ़ व उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आए।
Bihar Board Class 12 Political Science क्षेत्रीय आकांक्षाएँ Additional Important Questions and Answers
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
उन प्रमुख प्रवर्तियों को बताइए जो भारतीय एकता अखंडता के लिए खतरा उत्पन्न कर रही है।
उत्तर:
निम्न वे प्रमुख प्रवर्तियाँ भारतीय राजनीतिक व्यवस्था से उभर रही है जो भारतीय एकता अखंडता के लिए खतरा पैदा कर रही हैं –
- सांस्कृतिक पहचान खोने का डर विशेषकर अल्पसंख्यकों के द्वारा
- क्षेत्रवाद
- क्षेत्रीय आर्थिक असन्तुलन
- एक भाषा का अन्य भाषाओं पर प्रभुत्व का डर
- धार्मिक कट्टरवाद
- स्थानीय प्राकृतिक श्रोतो पर बाहरी लोगों का प्रभाव।
प्रश्न 2.
कुछ प्रमुख क्षेत्रीय आन्दोलनों के नाम बताइए जिन्होंने भारतीय राजनीति को प्रभावित किया है।
उत्तर:
कुछ प्रमुख आन्दोलन निम्न हैं जो भारतीय राजनीति को लम्बे समय से प्रभावित करते रहे हैं –
- जम्मू-कश्मीर में चल रहे आन्दोलन
- आसाम आन्दोलन
- मिजोरम आन्दोलन
- नागालैंड का आन्दोलन
- पंजाब आन्दोलन
- भाषा को लेकर दक्षिण में चल रहे अनेक आन्दोलन।
प्रश्न 3.
कुछ राज्यों के नाम बताइए जिनको भाषा के आधार पर गठित किया गया है।
उत्तर:
निम्न प्रमुख राज्य हैं जिनको भाषा के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन कानून के आधार पर गठित किया गया –
- आन्ध्र प्रदेश
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- गुजरात
- पंजाब
- हरियाणा।
प्रश्न 4.
जम्मू-कश्मीर के भौगोलिक व सांस्कृतिक गठन को समझाइए।
उत्तर:
जम्मू एवं कश्मीर में तीन राजनीतिक सामाजिक क्षेत्र शामिल हैं जम्मू, कश्मीर व लद्दाख। कश्मीर में ज्यादातर लोग कश्मीरी भाषा बोलते हैं व ज्यादातर लोग मुस्लिम हैं। कश्मीरी भाषी लोगों में अल्पसंख्यक हिन्दू भी शामिल हैं। जम्मू क्षेत्र पहाड़ी एवं मैदानी इलाके का मिश्रण हैं जहाँ हिन्दू, मुस्लिम और सिख यानी कई धर्म और भाषाओं के लोग रहते हैं।
लद्दाख का इलाका पर्वतीय है जिसमें बौद्ध एवं मुस्लिमों की आबादी है। यह क्षेत्र कम आबादी का क्षेत्र है। जम्मू-कश्मीर बहुलवादी समाज व राजनीति का एक जीवन्त उदाहरण है। यहाँ विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषायी, जातीय समूह के लोग रहते हैं। इसी कारण इन समूहों की अलग-अलग राजनीतिक आकांक्षाएँ हैं।
प्रश्न 5.
कश्मीर के विभिन्न समूहों के लोगों की अलग-अलग माँगे क्या हैं? कश्मीर के भविष्य के बारे में उनकी क्या सोच है?
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर का जब से भारत में विलय हुआ है तभी से यह विलय विवादों के घेरे में रहा है क्योंकि उस समय के कश्मीर के राजा ने कश्मीर का भारत में विलय उस समय स्वीकार किया जब कबीलियों ने जम्मू कश्मीर के ऊपर आक्रमण करके जम्मू-कश्मीर के एक भाग पर कब्जा कर लिया था। पाकिस्तान ने इस विलय पर आपत्ति की व इस मसले को संयुक्त राष्ट्र में भी ले गया। जम्मू-कश्मीर के भविष्य के सम्बन्ध में विभिन्न पक्षों की अलग-अलग माँगे निम्न हैं –
- कश्मीर के कुछ लोग कश्मीर को अलग स्वतंत्र प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य के रूप में प्राप्त करना चाहते हैं।
- कुछ लोग कश्मीर का पाकिस्तान में विलय चाहते हैं।
- एक बड़ा वर्ग वह है जो जम्मू-कश्मीर को भारत के साथ ही रखना चाहते हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर के लिए और अधिक स्वायत्तता चाहते हैं।
प्रश्न 6.
अनुच्छेद 370 के बारे में आप क्या जानते है?
उत्तर:
जब जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हुआ तो कुछ शर्तों के साथ हुआ जिसमें संविधान के अनुच्छेद 370 में जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष दर्जे की व्यवस्था की। अनुच्छेद 370 के आधार पर जम्मू-कश्मीर का अपना अलग संविधान है व भारतीय संसद का कोई भी कानून जम्मू-कश्मीर में तभी चलेगा जब जम्मू-कश्मीर की विधान सभा उसे पारित कर देगी।
प्रश्न 7.
द्रविड़ आन्दोलन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
द्रविड़ आन्दोलन भारतीय राजनीति में सबसे ताकतवर व क्षेत्रीय भावनाओं की सर्वप्रथम व सबसे प्रबल अभिव्यक्ति था। यह आन्दोलन एक शान्तिप्रिय आन्दोलन था। इस आन्दोलन के लोगों ने अपनी मांगों को केवल राजनीतिक मन्त्रों के द्वारा ही रखा। द्रविड़ आन्दोलन – की बागडोर तमिल सुधारक ई.वी.राधास्वामी (पेरियार) के द्वारा हुई।
इस आन्दोलन की प्रक्रिया से एक राजनीतिक संगठन ‘द्रविड कषगय’ का सुत्रपात हुआ जिसका उद्देश्य व्यवस्था पर ब्राह्मणों के प्रभुत्व को समाप्त करना था व राजनीति में उत्तर राज्यों के प्रभाव को कम करके क्षेत्रीय गौरव की प्रतिष्ठा पर जोर देता था। यह आन्दोलन प्रमुख रूप से तमिलनाडू तक सीमित रहा।
प्रश्न 8.
जम्मू-कश्मीर के लोग अनुच्छेद 370 के विशेष दर्जे के प्रावधानों से सन्तुष्ट क्यों नहीं हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देता है जिसमें कई प्रमुख प्रावधान है जैसे जम्मू कश्मीर का अपना अलग संविधान का होना । परन्तु जम्मू कश्मीर के लोग इस अनुच्छेद के द्वारा विशेष दर्जे देने से भी सन्तुष्ट नहीं जिसके निम्न कारण हैं –
- भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के सम्बन्ध में कश्मीर के लोगों से जनमत नहीं करवाया।
- अनुच्छेद 370 के द्वारा दिए गए प्रावधानों को ठीक से लागू नहीं किया गया।
- जिस प्रकार से भारत में प्रजातन्त्र का विकास हुआ उस प्रकार से जम्मू कश्मीर से प्रजातन्त्रीय संस्थाओं को मजबूत व प्रभावशाली नहीं बनाया गया।
प्रश्न 9.
आपरेशन ब्लूस्टार’ के क्या प्रमुख कारण थे?
उत्तर:
उग्रवादियों ने पवित्र स्वर्ण मन्दिर को अपनी नापाक उग्रवादी गतिविधियों का अड्डा बना दिया जिससे स्वर्ण मन्दिर में हथियार जमा करें जिससे यह एक हथियार बंद किले के रूप में परिवर्तित हो गया। जून 1984 को भारत सरकार ने आपरेशन ब्लूस्टार चलाया जिसके तहत सैनिक कार्यवाही से अमृतसर के. स्वर्ण मन्दिर से सभी उग्रवादियों व उनमें हथियारों को वहाँ से साफ किया जसमें अनेक हत्याएँ भी हुई।
प्रश्न 10.
1973 के आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के सम्बन्ध में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अकालीदल की राजनीति धीरे-धीरे उग्र विचारधारा के नेताओं के हाथों में चली गई। अकाली दल क्षेत्रीय राजनीति करने लगे व केन्द्र व प्रान्तों के सम्बन्धों की पुन: व्याख्या की माँग करने लगे। 1973 के आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में केन्द्र व प्रान्तों के सम्बन्ध में निम्न विचार दिए गए कि केन्द्र के पास केवल निम्न विषय केन्द्र चाहिए। शेष विषय प्रान्तों के पास होने चाहिए –
- विदेश नीति व प्रतिरक्षा
- संचार व्यवस्था
- बजट
प्रश्न 11.
राजीव लोंगवाल समझौते की मुख्य विशेषताएँ समझाइए।
उत्तर:
1985 के चुनावों में कांग्रेस को भारी सफलता मिली व राजीव गाँधी देश के प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने देश में चल रहे विभिन्न आन्दोलनों व उनसे जुड़े मुद्दों की ओर ध्यान दिया व बातचीत के द्वारा उन सभी समस्याओं को हल करने का प्रयास किया। इसी कड़ी में पंजाब समस्या का समाधान निकालने के लिए उन्होंने तत्कालीन अकाली दल अध्यक्ष श्रीहरचंद लोंगवाल के साथ समझौता किया जिसकी मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं –
- चंडीगढ़ पंजाब को दे दिया जाएगा।
- सीमा विवाद को निपटाने के लिए एक अलग से कमीशन गठित किया जाएगा जो यह भी देखेगा कि चंडीगढ़ के बदले हरियाणा को और कौन-सा व कितना क्षेत्र दिया जाएगा।
- पानी के बँटवारे को निश्चित करने के लिए ‘इरादी आयोग’ का गठन किया गया।
प्रश्न 12.
असम आन्दोलन के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
असम आन्दोलन के निम्न प्रमुख कारण थे –
- असमी भाषा का अन्य भाषाओं के लोगों पर प्रभुत्व
- बिहार व बंगला देश के लोगों का असम की अर्थव्यवस्था पर प्रभुत्व
- असम का केन्द्र सरकारों के द्वारा पक्षपात पूर्ण रवैया
- आसाम का आर्थिक पिछड़ापन
प्रश्न 13.
राजीव गाँधी व आसाम के विद्यार्थी संगठन के बीच समझौते की प्रमुख बातें क्या थी?
उत्तर:
असम में 6 वर्षों की राजनीतिक व आर्थिक अस्थिरता के बाद राजीव गाँधी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने असम के ‘आसू’ आल इंडिया स्टूडंटस यूनियन’ के नेताओं से सफलतापूर्वक बात कर समझौता किया जिससे आसाम में स्थिरता व चमन लौट आया। इस समझौते से यह तय किया गया कि जो लोग बंगला देश के युद्ध के दौरान अथवा इसके बाद में स्मालों में असम में आए हैं उनकी पहचान की जाएगी व उन्हें बापस भेजा जाएगा। इस समझौते के बाद आसू के नेताओं ने एक क्षेत्रीय दल का गठन किया जिसका नाम आसामगण परिषद रखा। 1985 में इस वायदे के साथ यह सत्ता में आई कि विदेशी लोगों की समस्या को हल कर दिया जाएगा।
प्रश्न 14.
ऐ-जेड फिलो कौन था?
उत्तर:
असमी जादू फिजो का जन्म 1904 में हुआ व इनकी मृत्यु 1990 में हुई। वे नागालैंड के प्रमुख नेता जिन्होंने नागालैंड की स्वतन्त्रता व विकास के लिए विदेशों से संघर्ष किया। वे नागा नेशनल काउंसिल के अध्यक्ष थे। इन्होंने भारत सरकार के खिलाफ विदेशी जमीन से लम्बा संघर्ष किया। लम्बे समय तक वे भूमिगत रहे। उन्होंने जीवन के अन्तिम 30 वर्ष ब्रिटेन में गुजारे। फीजो को पाकिस्तान व चीन का भी लगातार समर्थन मिलता रहा।
प्रश्न 15.
भारत में चल रहे आन्दोलन अन्य देशों में चल रहे आन्दोलनों से किस प्रकार से भिन्न थे?
उत्तर:
प्रजातन्त्रीय प्रणालियों में विभिन्न हितों के लोगों के द्वारा अपने-अपने हितों के विकास के लिए आन्दोलनों का रास्ता कई रास्ता कई बार स्वाभाविक प्रतीत होता है परन्तु आन्दोलन का स्वरूप उस देश की संस्कृति व वहाँ के सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक वातावरण पर भी निर्भर करता है। भारत में चल रहे आन्दोलनों व अन्य देशों में चल रहे आन्दोलनों में प्रमुख अन्तर यह रहा है कि भारत का आन्दोलन प्रायः संविधान की सीमाओं में रहे व अहिंसात्मक रहे व राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करते रहे परन्तु अन्य देशों में आन्दोलन संविधान की सीमाओं से बाहर रहे व हिंसात्मक रहे।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
विभिन्न राज्यों में होने वाले प्रमुख आन्दोलनों के क्या प्रमुख कारण थे?
उत्तर:
आजादी के बाद भारत में प्रजातन्त्रीय प्रक्रिया प्रारम्भ हुई जिसके पलस्वरूप लोगों में अपनी व्यक्तिगत व क्षेत्रीय हितों के प्रति भी जागरूकता पैदा हुई फलस्वरूप विभिन्न राज्यों में अनेक आन्दालेन अपना प्रभाव दिखाने लगे। इन आन्दोलन के प्रमुख कारण निम्न माने जा सकते हैं –
- राजनीतिक व प्रजातन्त्रीय प्रक्रिया के कारण लोगों में राजनीतिक चेतना का विकास।
- भारतीय समाज का बहुल स्वरूप अर्थात् भारत में विभिन्न जाति, धर्म व संस्कृति व भौगोलिकता के लोग रहते हैं।
- कई राज्यों में सीमा विवादों का जारी रहना।
- क्षेत्रीय असमानताएँ।
- नियोजन की राजनीति का प्रभाव।
- संविधान के अनुच्छेद 356 का राज्यों में दुरुपयोग।
- विभिन्न राज्यों में नए नेतृत्व का विकास।
- क्षेत्रीय दलों का विकास।
- नदियों के पानी बँटवारे के सम्बन्ध में झगड़े।
- राष्ट्रीय व क्षेत्रीय हितों में सामंजस्य का अभाव।
प्रश्न 2.
भारत की विभिन्नता में एकता के अर्थ को समझाइए।
उत्तर:
भारत में विभिन्न जाति, धर्म, संस्कृति, भाषा, बोली व भौगोलिकता के लोग रहते हैं इस प्रकार. भारत एक बहुल समाज है। भारत में विभिन्न आधारों पर लोगों की अपनी-अपनी पहचान हैं जिसके प्रति इनकी अपनी वफादारी है। परन्तु इसके साथ-साथ राष्ट्रीय एकता व भाईचारे की भावना से भी सभी बँधे होते हैं। भारत के बारे में यह युक्ति सही ही है कि भारत में विभिन्नता में एकता है। भारत के लागों में क्षेत्रीयता व भारतीयता में सामंजस्य पाया जाता है। भारत की जलवायु व भौगोलिकता थोड़ी-थोड़ी दूर पर बदल जाती है, इसमें अनेक मौसम हैं, अनेक प्रकार की विभिन्नताएँ हैं जो भारत को बहुलवाद का रूप प्रदान करती है।
प्रश्न 3.
भारतीय राजनीति में विभिन्न राज्यों में उभर रहे आन्दोलनों के प्रभावों को समझाइए।
उत्तर:
भारत एक प्रजातन्त्रीय गणराज्य है। सभी नागरिकों को महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार दिए गए। इन सभी अधिकारों में महत्वपूर्ण लोगों को अपने विचारों, भावनाओं व कला को व्यक्तकेरने का अधिकार है। इसी अधिकार के आधार पर प्रजातन्त्रीय प्रक्रिया के चलते लोगों में अपने सामाजिक आर्थिक, भाषीय व भौगोलिक हितों के प्रति जागरूकता व संवेदना विकसित हुई है जिसको प्राप्त करने के लिए आवश्यकता पड़ने पर आन्दोलन का रास्ता अपना लेते हैं।
इसी कारण हम देखते है कि पिछले 60 वर्षों में विभिन्न राज्यों में विभिन्न आधारों पर अनेक प्रकार के आन्दोलन चल रहे हैं जिन्होंने भारतीय राजनीति को नकारात्मक व सकारात्मक दोनों प्रकार से प्रभावित किया है। आमतौर पर सभी आन्दोलन भारतीय संविधान की सीमाओं के अन्दर रहकर अपने मौलिक अधिकारों के आधार पर कर रहे हैं। कुछ एक राज्यों जैसे पंजाब, जम्मू-कश्मीर, मिजोरम व नागालैंड में कुछ एक आन्दोलन ऐसे विकसित हुए जिन्होंने अलगाववाद की सोच रखी परन्तु धीरे-धीरे वे भी राष्ट्रीय मुख्य धारा में शामिल हो गए। यह भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की क्षमता का प्रतीक है।
प्रश्न 4.
जम्मू-कश्मीर की समस्या का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर की प्रमुख समस्या इसका भारत में विलय का स्वरूप है। भारत सरकार अधिनियम 1947 के अनुसार सभी देशी रियासतों को यह अधिकार था कि अपना विलय भारत में करे या पाकिस्तान में। उन्हें स्वतन्त्र रूप से रहने का अधिकार भी दिया गया था। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राजा हरिसिंह ने प्रारम्भ में स्वतन्त्र रहने की स्थिति को स्वीकारा परन्तु बाद में कबिलों के आक्रमण के कारण भारत में विलय को कश्मीर के एक वर्ग ने व पाकिस्तान ने स्वीकार नहीं किया। पाकिस्तान ने कश्मीर में उग्रवाद को भड़काया। तभी से कश्मीर में अलगाववाद का उदय हुआ। आज यद्यपि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है परन्तु हिंसा का दौर जारी रहता है।
प्रश्न 5.
संविधान के अनुच्छेद 370 का क्या महत्त्व है? इसके सम्बन्ध में विभिन्न वर्गों की प्रक्रियाएँ समझाइए।
उत्तर:
जिस समय जम्मू-कश्मीर का विलय किया गया। इसमें दी गई शर्त के अनुसार जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया। जिसकी व्यवस्था भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में की गई। इस प्रकार का विशेष दर्जा भारत में किसी अन्य राज्य को नहीं दिया गया। विशेष दर्जे देने के कई पक्ष हैं। प्रथम तो यह है कि जम्मू-कश्मीर केवल एक वह राज्य है जिसका अपना संविधान है।
दूसरा यह कि भारतीय संसद के द्वारा बनाया गया कोई भी कानून तब तक जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किया जा सकता जब तक कि जम्मू-कश्मीर की विधान सभा उसको पारित ना कर दे। संविधान में जम्मू-कश्मीर के बारे में दिए विशेष दर्जे (अनुच्छेद 370) के बारे में कई प्रकार की प्रतिक्रियाएँ हैं। कश्मीर के लोगों का एक बड़ा समूह यह कहता है कि कश्मीर अनुच्छेद 370 को पूर्ण रूप से लागू नहीं किया गया। भारत में कई विरोधी दलों विशेषकर भारतीय जनता पार्टी का यह मानना है कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देना अन्य राज्यों के साथ भेदभाव व्यवहार है अतः इसे समाप्त कर देना चाहिए।
प्रश्न 6.
अकालियों ने पंजाब की अधिक स्वायत्तता की माँग क्यों उठाई?
उत्तर:
पंजाब में अकाली दल के अधिकांशतः
मिली जूली सरकार अर्थात् गठबन्धन की सरकारें ही चलायी। अकाली दल का नेतृत्व यह महसूस करता है कि पंजाब से हरियाणा अलग होने के बावजूद भी अकाली दल की स्थिति मजबूत नहीं हुई। अकाली दल इसके तीन प्रमुख कारण मानता है जो निम्न है –
- अकालियों की पंजाब में सरकारें बार-बार केन्द्र से हटायी हैं।
- अकालियों का यह भी मानना है कि इनकी सरकारों को व पार्टी का हिन्दुओं से अपेक्षित समर्थन नहीं मिलता।
- तीसरा प्रमुख कारण यह है कि खुद अकालीदल विभिन्न जातियों व वर्गों में बँटा हुआ है। इन कारणों से अकाली बार-बार पंजाब के लिए अधिक स्वायत्तता की माँग करते रहे हैं।
प्रश्न 7.
आपरेशन ब्लू स्टार 1984 से लेकर राजीव लोंगवाल समझौते तक की प्रमुख घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1980 के दशक में अकाली दल का नेतृत्व नरम दल के नेताओं के हाथों से निकलकर गरम दल के नेताओं के हाथों में चला गया जो धीरे-धीरे उग्रवाद का रूप धारण करने लगा। धार्मिक समुदाय के लोगों में आपसी अविश्वास व नफरत का वातावरण बनने लगा। एक समुदाय के लोग दूसरे समुदाय के लोगों को चुन-चुन कर मारते थे। अमृतसर का पवित्र स्थान स्वर्ण मन्दिर उग्रवादियों का अड्डा बन गया जिसमें हथियारों को इकट्ठा किया गया।
इस स्थिति को समाप्त करने के लिए केन्द्र सरकार को कड़ा निर्णय लेना पड़ा। जून 1984 में स्वर्ण मन्दिर से उग्रवादियों को निकालने के लिए सैनिक कार्यवाही की गई जिसको आपरेशन ब्लू स्टार कहा गया। इस सैनिक कार्यवाही से सिख समुदाय की भावनाओं को चोट लगी जिससे सिखों में अन्य समुदायों, यहाँ तक दल के खिलाफ भी कड़वाहट आ गई जिससे उग्रवाद को और अधिक बल मिला।
इसका परिणाम यह हुआ कि 31 अक्टूबर 1984 में प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गाँधी के दो सुरक्षाकारों सिखों ने उनकी निर्मम हत्या कर दी जिससे पूरे देश में सिखों को चुन-चुन मारा। इस प्रकार साम्प्रदायिकता का भयंकर रूप सामने आ गया। राजीव गाँधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 1985 में राजीव गाँधी व लोंगवाल के बीच विभिन्न विवादित मुद्दों पर समझौता हुआ जिससे पंजाब में हालात को शांत करने में सहायता मिली।
प्रश्न 8.
राजीव लोंगवाल समझौते की मुख्य विशेषताएँ क्या थी?
उत्तर:
1985 में राजीव गाँधी व संत हरचन्द लोंगवाल के बीच हुआ समझौता पंजाब के हालात को सुधारने व विभिन्न विवादित मुद्दों को हल करने में एक ईमानदारी का प्रयास था। इसकी मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं –
- चंडीगढ़ को पंजाब को हस्तानान्तरित करना
- चंडीगढ़ के बदले हरियाणा को दिए जाने वाले क्षेत्र को निश्चित करने के लिए एक आयोग का गठन करना
- सतलज व्यास के पानी के बंटवारे के सम्बन्ध में विवाद को हल करने के लिए ईरादी आयोगका गठन किया गया
प्रश्न 9.
पूर्वोत्तर के सात राज्यों के नाम बताइए। इनको किस प्रकार से संगठित किया गया?
उत्तर:
पूर्वोत्तर के सात राज्यों को उनकी समान सामाजिक सांस्कृतिक व भौगोलिक पहचान के आधार पर सात बहनें कहा जाता है। इन सात राज्यों के नाम हैं असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश व नागालैंड। इन राज्यों को मुख्य रूप से इनकी सांस्कृतिक व भाषायी आधार पर गठित किया गया। मणिपुर व त्रिपुरा पहले रियासतें थी जो आजादी के बाद भारत में विलय हो गए थे। आसाम पहले मुख्य बड़ा राज्य था।
इसके विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाने वाली अन्य भाषाओं के लोगों को महसूस हुआ कि असमी भाषा उनके ऊपर थोपी जा रही है अत: उन्होंने असम से अलग होकर अपनी भाषाओं के विकास के लिए पृथक राज्यों की मांग उठाना प्रारम्भ कर दिया जिनको विभिन्न समयों में स्वीकार कर लिया गया। नागालैंड का गठन 1960 में पृथक राज्य के रूप में हुआ।
1972 में मेघालय, मणिपुर व त्रिपुरा का गठन किया गया। 1986 में अरुणाचल प्रदेश व मिजोरम का अलग राज्यों के रूप में गठन किया गया। भाषायी व सांस्कृतिक कारणों के अलावा इन राज्यों ने आर्थिक विकास के अभाव के कारण वे राजनीतिक भेदभाव के कारण अलग राज्यों की मांग उठायी थी जिसमें वे अन्ततः सफल भी हो गए।
प्रश्न 10.
पूर्वोत्तर क्षेत्रों की स्वायत्तता की मांग के औचित्य को समझाइए।
उत्तर:
आजादी के बाद सम्पूर्ण पूर्वोत्तर क्षेत्र (केवल मणिपुर व त्रिपुरा को छोड़कर) असम कहलाता था। आसामी भाषा के अन्य भाषाओं के ऊपर प्रभुत्व के डर से गैर असमी भाषा के लोगों ने अपने क्षेत्रों को अलग राज्य के रूप में गठित करने की मांग उठाई। ये अपने क्षेत्र के लिए राजनीतिक स्वायत्तता चाहते थे ताकि अपनी बोली, भाषा, संस्कृति व आर्थिक हितों की रक्षाकर सके। इसके लिए उन्होंने विभिन तरीकों से आन्दोलन प्रारम्भ कर दिए। कभी-कभी ये आन्दोलन हिंसात्मक भी हुए। ये क्षेत्र असम से अलग होकर अपना एक नेतृत्व विकसित करना चाहते थे जो उनके आर्थिक व सांस्कृतिक व भाषीय हितों की रक्षा कर सके।
प्रश्न 11.
मिजोरम में विघटनकारी व अलगाववादी आन्दोलन के कारणों को समझाइए।
उत्तर:
मिजोरम को आजादी के बाद असम के भीतर ही एक स्वायत्त जिला बना दिया गया था। कुछ मिजो लोगों का मानना था कि वे ब्रिटिश इंडिया के अंग नहीं रहे अत: भारत से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है। 1959 में मिजोरम में अकाल पड़ा जिसकी ओर भारत सरकार ने अधिक ध्यान नहीं दिया जिससे मिजोरम के लोगों की नाराजगी और भी अधिक बढ़ गई व 1966 में मिजो नेशनल फ्रंट ने आजादी की माँग करते हुए सशस्त्र अभियान प्रारम्भ कर दिया व भारतीय सेना व केन्द्र सरकारयों को अपने गुस्से का निशाना बनाया इस प्रकार मिजो नेशनल फ्रंट ने गुरिल्ला युद्ध प्रारम्भ कर दिया।
चीन व पाकिस्तान से मिजो उग्रवादियों को सैनिक ट्रेनिंग व आर्थिक सहायता प्राप्त हुई। दो दशकों तक मिजोरम इस आतंकी हिंसा का शिकार हुआ जिसमें स्थानीय लोगों को भी नुकसान हुआ व भारतीय सैनिक व केन्द्र सरकार के कर्मचारी व अधिकारी भी इस हिंसा के शिकार हुए। मिजोरम आन्दोलन के प्रमुख नेता लालडेगाँ थे जिन्होंने 1986 में मिजोरम में शान्ति लाने व इसको भारत के साथ राष्ट्रीय मुख्य धारा में लाने के लिए समझौता किया जिसके फलस्वरूप लालडेगा राज्य के मुख्यमन्त्री बने व मिजोरम के उग्रवादियों ने हिंसा त्यागने का वायदा किया।
प्रश्न 12.
नागालैंड में उग्रवादी घटनाओं के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मिजोरम के समान ही नागलैंड की परिस्थितियाँ रही। नागालैंड में 1951 के बाद ही ए-जैंड-फिजो के नेतृत्व में उग्रवादी गतिविधियाँ व आन्दोलन प्रारम्भ हो गए थे। नागालैंड के प्रमुख नेता फिजो को केन्द्र सरकार से वार्ता के बार-बार प्रस्ताव मिलते रहे परन्तु फिजो का रवैयाअडियल ही रहा। नागालैंड के आन्दोलन को बाहरी शक्तियों विशेषकर चीन व पाकिस्तान से लगातार समर्थन मिलता रहा। हिंसक विद्रोह के एक दौर के बाद नागा लोगों ने भारत की सरकार के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए। नागालैंड का सन्तोषजनक समाधान अभी भी होना बाकी है। इनकी प्रमुख माँग थी कि नागालैंड को अलग राज्य के रूप में स्थापित करना है।
प्रश्न 13.
राजीव व आसाम के विद्यार्थियों के बीच हुए आसाम समझौते की प्रमुख विशेषताएँ समझाइए।
उत्तर:
1979 से 1985 तक चला आसाम आंदोलन बाहरी लोगों के खिलाफ चले आंदोलनों का सबसे अच्छा उदाहरण है। असमी लोगों को यह डर था कि बिहार व बंगला देश से आए बाहरी लोग स्थानीय व्यापार व प्रशासन पर कब्जा कर एक दिन स्थानीय लोगों को अल्पसंख्यक बना देंगे जिसके खिलाफ उन्होंने आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया जो 1979 में ऑल आसाम स्टूडेन्ट्स यूनियन ने चलाया। आसूं का आन्दोलन गैर राजनीतिक था व उनका उद्देश्य केवल बाहर से आए अवैध अप्रवासी बंगालियों के दबदबे को समाप्त करना था।
आन्दोलनकारियों की माँग थी कि 1951 के बाद जितने भी लोग असम में आकर बसे हैं उन्हें असम से बाहर भेजा जाए। इस आन्दोलन में इन्हें आसाम के प्रत्येक वर्ग का समर्थन मिला। धीरे-धीरे यह आन्दोलन हिंसक भी हुआ व इस आन्दोलन का राजनीतिकरण भी हुआ आन्दोलन की शुरुआत शान्तिपूर्ण अवश्य हुई लेकिन बाद में हिंसात्मक होने के कारण जान माल का काफी नुकसान हुआ।
छ: वर्ष की अस्थिरता के बाद राजीव गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी तथा राजीव गाँधी के साथ असम समझौता हुआ। इस समझौते में यह तय किया गया कि बंगला देश युद्ध के दौरान व उसके बाद के सालों में जो लोग असम में आए हैं उनको पहचान कर असम से बाहर निकाला जाएगा। इसके बाद असम में शांति का युग प्रारम्भ हुआ।
प्रश्न 14.
क्षेत्रीय समस्याओं को हल करने में श्री राजीव गाँधी के योगदान को समझाइए।
उत्तर:
जिस समय श्री राजीव गाँधी ने देश के प्रधानमंत्री का पद सम्भाला, देश के अनेक क्षेत्रों में विभिन्न समस्याओं को लेकर आन्दोलन चल रहे थे। इनमें से कई आन्दोलन हिंसात्मक थे व अलगाववादी सोच भी रखते थे। ऐसे प्रमुख आन्दोलन पंजाब, जम्मू-कश्मीर, मिजोरम व नागालैंड में चल रहे थे। राजीव गाँधी ने अपनी व्यापक सोच समझ-बूझ के आधार पर सभी मुद्दों को समझा जिन पर आन्दालेन चल रहा था। सभी विषयों पर एक व्यवहारिक दृष्टिकोण रखते हैं आन्दोलनकारियों से बात की व समझौतों पर हस्ताक्षर किए जिससे लगभग सभी क्षेत्रों की समस्याओं को हल करने में नहीं तो कम से कम उस तनाव को कम करने में मदद मिली जो हिंसा को जन्म दे रहे थे।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
पिछले साठ वर्षों की राजनीति में भारत में चली आन्दोलन की राजनीति से क्या सबक लिया जा सकता है?
उत्तर:
भारत एक प्रजातन्त्रीय देश है जिसका निर्माण उदारवादी मूल्यों के आधार पर किया गया है। भारतीय नागरिकों को मौलिक अधिकार प्राप्त हैं जिसके आधार पर उनको अपनी सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक व भौगोलिक पहचान को बनाने, विकसित करने व सुरक्षित रखने का अधिकार है। सभी नागरिकों को अपने आर्थिक हित भी सुरक्षित रखने का अधिकार है। नागरिकों को अपने को व्यक्त करने व अपने हितों को प्राप्त करने के लिए शान्तिपूर्ण आन्दोलन करने व विरोध करने का भी अधिकार है।
इन अधिकारों का प्रयोग भारत के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले नागरिक करते रहे हैं जिसके परिणाम स्वरूप प्रजातन्त्रीय प्रक्रिया के विकास के साथआन्दोलनों की राजनीति का भी विकास हुआ जिसने भारतीय राजनीति को नकारात्मक व सकारात्मक रूप में प्रभावित किया है। इन अनुभवों के आधार पर हम निम्न सबक प्राप्त कर सकते हैं –
- प्रजातन्त्रीय प्रणाली में लोगों के द्वारा अपनी क्षेत्रीय आकांक्षाओं को व्यक्त करने को सकारात्मक रूप से स्वीकार करना चाहिए ताकि उनमें किसी प्रकार विद्रोह की भावना उत्पन्न ना हो।
- राजनीतिक व प्रशासनिक व्यवस्था का निर्माण इस प्रकार से होना चाहिए जिससे क्षेत्रीय भावनाओं का समायोजन हो सके।
- आन्दोलनकर्ताओं के साथ प्रशासनिक स्तर पर व राजनीतिक स्तर पर जल्द से जल्द बात करने की प्रक्रिया प्रारम्भ होनी चाहिए।
- शक्तियों को विभिन्न स्तर पर यथा सम्भव विकेन्द्रित किया जाना चाहिए व स्थानीय संस्थाओं को मजबूत किया जाना चाहिए ताकि वे स्थायी समस्याओं का निपटारा कर सके।
- सभी राजनीतिक दलों को स्थानीय आकांक्षाओं, माँगों व हितों को ठीक से समझकर उनहें सरकार के पास प्रस्तुत करना चाहिए।
- क्षेत्रीय पक्षपात को समाप्त करना चाहिए।
- संविधान के प्रावधानों का पक्षपात रहित तरीके से प्रयोग करना चाहिए। सही संधीय भावना के अनुसार शासन चलना चाहिए।
प्रश्न 2.
जम्मू-कश्मीर की समस्या का मुल कारण समझाते हुए इसके निवारक का तरीका सुझाइए।
उत्तर:
आजादी से पहले जम्मू-कश्मीर एक देशी रियासत थी । भारत सरकार अधिनियम 1947 के आधार पर जम्मू-कश्मीर को भी यह छूट दी गई थी कि यह चाहे तो स्वतंत्र राज्य के रूप में रहे अथवा पाकिस्तान या भारत में विलय हो जाए। जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने स्वतंत्र रहना चाहा परन्तु कबिलियों के 1948 में जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण के कारण राजा हरि सिंह ने 1948 में कुछ शर्तों के आधार पर भारत में विलय स्वीकार कर लिया। परन्तु इस विलय को पाकिस्तान ने व जम्मू-कश्मीर के एक वर्ग ने स्वीकार नहीं किया।
इसी आधार पर पाकिस्तान के साथ भारत के सम्बन्ध लगातार खराब ही चल रहे हैं। 1948, व 1965 में पाकिस्तान व भारत के बीच युद्ध चला। भारत ने जम्मू-कश्मीर को भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 के आधार पर विशेष दर्जा जिसके आधार पर कश्मीर का अपर अलग स्थानमा के द्वारा बनाया गया कोई कानून तभी लागू हो सकता है जब उस कानून को जम्मू-कश्मीर की विधान सभा पारित कर दे।
इस विलय के बाद नेशनल कांफ्रेंस के नेता श्री शेख अबदुल्ला को जम्मू-कश्मीर का प्रधान मंत्री बनाया गया व यह भी निश्चित किया गया कि जब जम्मू-कश्मीर के हालात सामान्य हो जाएँगे इस विलय पर जम्मू-कश्मीर के लागों की राय अथवा स्वीकृति प्राप्त कर ली जाएगी। केवल इस विलय से समस्या समाप्त नहीं हुई बल्कि इस विलय के बाद समस्या प्रारम्भ हो गई। पाकिस्तान ने ना केवल इसे अस्वीकार कर दिया बल्कि जम्मू-कश्मीर के लागों को भी लगातार इस विषय पर गुमराह करके वहाँ पर उग्रवाद व आतंकवाद को जन्म दिया। जम्मू-कश्मीर समस्या के सम्बन्ध में तीन धारणाएँ हैं –
- जम्मू-कश्मीर के लोगों का समूह पाकिस्तान के साथ विलय का पक्षधर है।
- जम्मू-कश्मीर में एक समूह ऐसा है जो पाकिस्तान के साथ विलय नहीं चाहता बल्कि स्वतंत्र कश्मीर चाहता है।
- जम्मू-कश्मीर के लोगों का एक बड़ा समूह ऐसा है जो भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय को स्वीकार करता है परन्तु और अधिक स्वायत्तता की माँग करते हैं।
प्रश्न 3.
सिक्किम के भारत में विलय की परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत की आजादी के समय सिक्किम को भारत की शरणागति प्राप्त थी जिसका अर्थ यह है कि सिक्किम भारत का अंग तो नहीं था परन्तु वह पूरी तरह प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य भी नहीं था। सिक्किम की रक्षा व विदेशों के मामलों की जिम्मेवारी भारत की थी जबकि सिक्किम का आन्तरिक प्रशासन व विकास का कार्य वहाँ के राजा चोगयाल के पास था। यह व्यवस्था अधिक सफल नहीं हो पा रही थी क्योंकि राजा लोगों की स्थानीय प्रजातन्त्रीय आकांक्षाओं को पूरा करने में सफल नहीं हो पा रही थी जिसके कारण जनता में राजा चोगयाल के खिलाफ विरोध के स्वर उठने लगे।
सिक्किम में एक बड़ा हिस्सा नेपालियों का था जिनका यह मानना था कि राजा चोगयाल अल्पसंख्यक लेपया-भूटिया के एक छोटे से वर्ग का शासन उन पर लाद रहा है। चौगयाल के खिलाफ नेपालियों में विरोध उठा जिसको भारत सरकार का भी समर्थन मिल गया। सिक्किम विधान सभा के लिए पहला लोकतान्त्रिक चुनाव 1974 में हुआ जिसमें सिक्किम कांग्रेस को भारी सफलता प्राप्त हुई। यह पार्टी सिक्किम को भारत में विलय करने की पक्षधर थी।
सिक्किम विधान सभा में 1975 में एक प्रस्ताव पारित कर सिक्किम के भारत में विलय का प्रस्ताव पारित कर दिया जिस पर तुरन्त सिक्किम की जनता का जनमत संग्रह कराने के लिए जनता के पास भेजा गया जिस पर जनता ने इस प्रस्ताव पर जनमत संग्रह कर दिया। भारत सरकार ने सिक्किम विधान सभा के इस अनुरोध को तुरन्त स्वीकार कर लिया जिससे सिक्किम भारत का 22 वाँ राज्य बन गया। चोगयाल ने भारत के इस फैसले की निन्दा की तथा इस फैसले को भारत द्वारा षड्यन्त्र का नाम दिया। क्योंकि सिक्किम के भारत में विलय के फैसले पर जनता की राय प्राप्त कर ली गई थी इसलिए सिक्किम की राजनीति में इस विलय का कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा। आज सिक्किम भारत का अन्य राज्यों की तरह अभिन्न अंग है व इसका भारत में विलय अन्तिम है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
I. निम्नलिखित विकल्पों में सही का चुनाव कीजिए
प्रश्न 1.
जम्मू-कश्मीर को किस अनुच्छेद के तहत विशेष दर्जा दिया गया है?
(अ) 356
(ब) 370
(स) 368
(द) 352
उत्तर:
(ब) 370
प्रश्न 2.
भारत में जम्मू-कश्मीर का विलय किस राजा ने किया?
(अ) हरि सिंह
(ब) शेख अब्दुल्ला
(स) राजवेन्द्र सिंह
(द) मीर कासिम
उत्तर:
(अ) हरि सिंह
प्रश्न 3.
आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव किस वर्ष पारित किया गया?
(अ)1971
(ब) 1972
(स) 1973
(द) 1958
उत्तर:
(स) 1973
प्रश्न 4.
निम्न में से कौन-से राज्य का नाम नेफा था?
(अ) मेघालय
(ब) मिजोरम
(स) सिक्किम
(द) अरुणाचल प्रदेश
उत्तर:
(द) अरुणाचल प्रदेश
प्रश्न 5.
संविधान के किस संशोधन द्वारा शक्तियों के केन्द्रीकरण का प्रयास किया गया?
(अ) 24 वाँ संविधान संशोधन
(ब) 42 वाँ संविधान संशोधन
(स) 44 वाँ संविधान संशोधन
(द) 52 वाँ संविधान संशोधन
उत्तर:
(ब) 42 वाँ संविधान संशोधन
प्रश्न 6.
सुन्दर लाल बहुगुणा का संबंध किस आंदोलन से है?
(अ) पर्यावरण
(ब) महिला सशक्तिकरण
(स) किसान समस्या
(द) आतंकवाद
उत्तर:
(द) आतंकवाद
प्रश्न 7.
जम्मू-कश्मीर के संबंध में भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद पर आपत्ति उठाई जाती है?
(अ) 352
(ब) 356
(स) 360
(द) 370
उत्तर:
(द) 370
प्रश्न 8.
पंजाब समस्या का समाधान हेतु राजीव गाँधी ने पंजाब के किस नेता के साथ समझौता किया था?
(अ) सुरजीत सिंह बरनाला
(ब) प्रकाश सिंह बादल
(स) हरचरण सिंह लौंगोवाल
(द) अमरिन्दर सिंह
उत्तर:
(स) हरचरण सिंह लौंगोवाल
प्रश्न 9.
1992 में विश्व पर्यावरण के मुद्दे पर पृथ्वी सम्मेलन कहाँ हुआ?
(अ) रियो द जनेरियो
(ब) न्यूयार्क
(स) जेनेवा
(द) टोकियो
उत्तर:
(अ) रियो द जनेरियो
प्रश्न 10.
नेशनल कॉन्फ्रेंस किस राज्य से संबंधित है?
(अ) राजस्थान
(ब) पंजाब
(स) जम्मू-कश्मीर
(द) हिमाचल प्रदेश
उत्तर:
(स) जम्मू-कश्मीर
प्रश्न 11.
क्षेत्रीय दलों के उदय का सबसे बड़ा कारण क्या है?
(अ) कांग्रेस के नेतृत्व का पतन
(ब) क्षेत्रीय असंतुलन
(स) भारत की संघीय व्यवस्था
(द) बहु-दलीय व्यवस्था
उत्तर:
(अ) कांग्रेस के नेतृत्व का पतन
प्रश्न 12.
संविधान में 42वाँ संशोधन कब हुआ?
(अ) 1971
(ब) 1976
(स) 1977
(द) 1978
उत्तर:
(ब) 1976
प्रश्न 13.
गठबंधन सरकारों के आने से संसदीय व्यवस्था में क्या प्रमुख खामियाँ आयी हैं?
(अ) राष्ट्रपति की कमजोर स्थिति
(ब) प्रधानमंत्री की सबल स्थिति
(स) सामूहिक उत्तरदायित्व की अवहेलना
(द) क्षेत्रीय दलों का उत्कर्ष
उत्तर:
(द) क्षेत्रीय दलों का उत्कर्ष
II. मिलान वाले प्रश्न एवं उनके उत्तर
उत्तर:
(1) – (स)
(2) – (द)
(3) – (ब)
(4) – (अ)
(5) – (य)
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