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Thursday, June 30, 2022

BSEB Class 9 Science Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 9th Science Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार Book Answers

BSEB Class 9 Science Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 9th Science Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार Book Answers
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Bihar Board Class 9th Science Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार Textbooks Solutions PDF

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Bihar Board Class 9th Science Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 9th
Subject Science Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार
Chapters All
Provider Hsslive


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Bihar Board Class 9 Science खाद्य संसाधनों में सुधार InText Questions and Answers

प्रश्न श्रृंखला # 01 (पृष्ठ संख्या 229)

प्रश्न 1.
अनाज, दाल, फल तथा सब्जियों से हमें क्या प्राप्त होता है ?
उत्तर:
अनाज से हमें कार्बोहाइड्रेट, दाल से प्रोटीन तथा फल एवं सब्जियों से विभिन्न खनिज लवण व विटामिन्स प्राप्त होते हैं।

प्रश्न श्रृंखला # 02 (पृष्ठ संख्या 230)

प्रश्न 1.
जैविक तथा अजैविक कारक किस प्रकार फसल उत्पादन को प्रभावित करते हैं ?
उत्तर:
किसी फसल के उत्पादन पर अनेक जैविक तथा अजैविक कारक प्रभाव डालते हैं। जैविक कारकों के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव (जैसे-जीवाणु, कवक आदि), अनेक प्रकार के कीट-पतंगे तथा अन्य जीव-जन्तु आते हैं। इनमें से जीवाणु एवं कवक जहाँ एक तरफ हमारी फसलों में रोग उत्पन्न करके उत्पादन को काफी कम कर देते हैं वहीं कुछ जीवाणु ऐसे भी होते हैं (जैसे दालों की छड़ों में पाये जाने वाली जीवाणु)।

जो भूमि की उर्वरता को बढ़ाकर हमारे उत्पादन में बढ़ोत्तरी करते हैं। इसी प्रकार जहाँ कीट-पतंगे हमारी खड़ी फसलों एवं उनके उत्पाद को नुकसान पहुंचाते हैं वहीं दूसरी ओर कुछ कीट जैसे केंचुए भूमि की उर्वरता को बढ़ाते हैं। अजैविक कारकों के अन्तर्गत सूखा, क्षारकता, जलाक्रान्ति, गरमी, ठण्ड, वर्षा तथा पाला आदि आते हैं। इन सभी कारकों के विपरीत प्रभाव के कारण फसल उत्पादन कम हो सकता है।

प्रश्न 2.
फसल सुधार के लिए ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण क्या है ?
उत्तर:
फसल सुधार के लिए ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण निम्न प्रकार हैं –
(1) किसी चारे वाली फसल के लिए लम्बी एवं सघन शाखाएँ ऐच्छिक गुण हैं ताकि इन फसलों से अधिक मात्रा में चारा प्राप्त हो सके।
(2) अनाज की फसलों के लिए बौने पौधे उपयुक्त गुण है ताकि इन फसलों को उगने हेतु कम पोषकों की आवश्यकता पड़े।

प्रश्न शृंखला # 03 (पृष्ठ संख्या 231)

प्रश्न 1.
वृहत् पोषक क्या हैं ? और इन्हें वृहत् पोषक क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
ऐसे पोषक जिनकी पौधों को अपनी वृद्धि एवं विकास हेतु अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है, वृहत् पोषक कहलाते हैं। चूँकि इनकी अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। इसी कारण इन्हें वृहत् पोषक कहा गया है। पौधों को मृदा से प्राप्त होने वाले 13 पोषकों में से 6 वृहत् पोषक होते हैं। ये हैं-पोटैशियम, नाइट्रोजन, सल्फर, कैल्सियम, फॉस्फोरस तथा मैग्नीशियम।

प्रश्न 2.
पौधे अपना पोषण कैसे प्राप्त करते हैं ?
उत्तर:
पौधे पोषक पदार्थ हवा, पानी तथा मिट्टी से प्राप्त करते हैं। पौधों को अपनी वृद्धि एवं विकास हेतु कुल 16 पोषक पदार्थों की आवश्यकता होती है जिनमें से तीन कार्बन, ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन वह वायु एवं जल से तथा शेष बचे 13 पोषक पदार्थ वह मिट्टी से ग्रहण करते हैं।

प्रश्न शृंखला # 04 (पृष्ठ संख्या 232)

प्रश्न 1.
मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए खाद तथा उर्वरक के उपयोग की तुलना कीजिए।
उत्तर:
मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए खाद तथा उर्वरक के उपयोग की तुलना निम्न प्रकार से कर सकते हैं –

प्रश्न श्रृंखला # 05 (पृष्ठ संख्या 235)

प्रश्न 1.
अग्रलिखित में से कौन-सी परिस्थिति में सबसे अधिक लाभ होगा ? क्यों ?
(a) किसान उच्चकोटि के बीज का उपयोग करें, सिंचाई न करें अथवा उर्वरक का उपयोग न हों।
(b) किसान सामान्य बीजों का उपयोग करें, सिंचाई करें तथा उर्वरक का उपयोग करें।
(c) किसान अच्छी किस्म के बीज का प्रयोग करें, सिंचाई करें, उर्वरक का उपयोग करें, तथा फसल सुरक्षा की विधियाँ अपनायें।
उत्तर:
उपर्युक्त में से –
(c) परिस्थिति जिसमें किसान ने अच्छे बीजों का चयन किया, समय पर सिंचाई एवं उर्वरकों का उपयोग किया तथा फसल सुरक्षा की उचित विधियाँ अपनाईं में अधिक लाभ होगा। क्योंकि –
(1) अच्छे बीजों का चयन करने पर अधिकांश बीज अंकुरित हो जायेंगे तथा उनसे उगे पौधे स्वस्थ एवं उच्च लक्षणों युक्त होंगे।
(2) समय पर सिंचाई और उर्वरकों का उपयोग करने पर उनकी बढ़वार अच्छी होगी तथा पौधे स्वस्थ रहेंगे जिससे उन पर फूल एवं फलों का विकास अच्छा होगा।
(3) फसल सुरक्षा की विधियों के अन्तर्गत फसल की खरपतवारों कीटों तथा रोगों से रक्षा आती हैं। यदि किसान ने इनसे फसल को बचाने हेतु आवश्यक कदम उठाये तो निश्चित रूप से फसल का उत्पादन बहुत अच्छा होगा। परिणामस्वरूप किसान को अधिक लाभ पहुँचेगा।

प्रश्न शृंखला # 06 (पृष्ठ संख्या 235)

प्रश्न 1.
फसल की सुरक्षा के लिए निरोधक विधियाँ तथा जैव नियन्त्रण क्यों अच्छा समझा जाता है ?
उत्तर:
फसल की सुरक्षा के लिए निरोधक विधियों (जैसेसमय पर फसल उगाना, अन्तराफसलीकरण, फसल चक्र, प्रतिरोधक क्षमता वाली फसलों को उगाना तथा ग्रीष्मकाल में गहरी जुताई) तथा जैव नियन्त्रण (जैसे-जैव कीटनाशी एवं जैवपीड़कों का उपयोग), अच्छा माना जाता है क्योंकि इनसे वातावरण में किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता।

जबकि रासायनिक विधियों, जिनमें विभिन्न शाकनाशी, कीटनाशी एवं कवकनाशी आते हैं, का छिड़काव फसलों पर किया जाता है। इससे वातावरण में अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जो पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनती हैं। ये रसायन फसलों के लिए उपयोगी दूसरे अन्य जीवों को भी नष्ट कर देते हैं। अतः स्पष्ट है कि फसल की सुरक्षा के लिए निरोधक विधियाँ तथा जैव नियन्त्रण ही उत्तम है।

प्रश्न 2.
भंडारण की प्रक्रिया में कौन-से कारक अनाज की हानि के लिए उत्तरदायी हैं ?
उत्तर:
भंडारण की प्रक्रिया में अनेक जैविक तथा अजैविक कारक अनाज को हानि पहुँचाते हैं। जैविक कारकों के अन्तर्गत विभिन्न कीट, कृन्तक, कवक, चिंचड़ी तथा जीवाणु हैं जो अनाज को नष्ट कर देते हैं। वहीं अजैविक कारकों के अन्तर्गत भण्डारण के स्थान पर उपयुक्त नमी एवं ताप का अभाव है। ये सभी कारक अनाज की गुणवत्ता को खराब कर उसका वजन एवं अंकुरण की क्षमता को कम कर देते हैं।

प्रश्न श्रृंखला # 07 (पृष्ठ संख्या 236)

प्रश्न 1.
पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्रायः कौन-सी विधि का उपयोग किया जाता है और क्यों ? .
उत्तर:
पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्रायः संकरण विधि का उपयोग किया जाता है। इनमें दो विभिन्न गुणों (नस्लों) वाले पशुओं के बीच संकरण कराकर ऐसी संकर सन्तान उत्पन्न की जाती है जिसमें दोनों नस्लों के गुण विद्यमान होते हैं। उदाहरण के लिए हमारे देश की गायों की रोगरोधक क्षमता बहुत अच्छी होती है लेकिन दुग्ध उत्पादन कम। लेकिन विदेशी नस्ल की गायों की प्रतिरोधक क्षमता तो कम होती है परन्तु इनका दुग्ध उत्पादन अधिक होता है। अब इन दोनों गायों में संकरण कराने से संकर नस्ल की गाय उत्पन्न की गई हैं जिनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता एवं प्रतिरोधक क्षमता दोनों ही अच्छी हैं।

प्रश्न श्रृंखला # 08 (पृष्ठ संख्या 237)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित कथन की विवेचना कीजिए –
“यह रुचिकर है कि भारत में कुक्कुट, अल्प रेशे के खाद्य पदार्थों को उच्च पोषकता वाले पशु प्रोटीन आहार में परिवर्तन करने के लिए सबसे अधिक सक्षम है। अल्प रेशे के खाद्य पदार्थ मनुष्यों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।”
उत्तर:
कुक्कुट या मुर्गीपालन अण्डे एवं माँस उत्पादन के. लिए किया जाता है। मुर्गियों को आहार में प्रमुख रूप से अल्प (सस्ते) रेशे के खाद्य पदार्थ दिये जाते हैं और वह इन रेशे युक्त पदार्थों को खाकर, हमें उच्च गुणवत्ता वाली प्रोटीन से युक्त अण्डे एवं माँस देती है। अतः यह ठीक ही कहा गया है कि भारत में कुक्कुट पालन, अल्प रेशे के खाद्य पदार्थों को उच्च पोषकता वाले पशु प्रोटीन आहार में परिवर्तन करने के लिए सबसे अधिक सक्षम है। अल्प रेशे के खाद्य पदार्थ मनुष्य के लिए उपयुक्त नहीं होते क्योंकि इनसे उसे ऊर्जा तो मिलती है लेकिन शरीर वृद्धि एवं विकास तथा टूट-फूट की मरम्मत हेतु प्रोटीन की पूर्ति इस आहार द्वारा सम्भव नहीं है।

प्रश्न शृंखला # 10 (पृष्ठ 238 पर)

प्रश्न 1.
पशुपालन तथा कुक्कुट पालन के प्रबन्धन प्रणाली में क्या समानता है ?
उत्तर:
पशुपालन तथा कुक्कुट पालन के प्रबन्धन प्रणाली में प्रमुख समानताएँ इस प्रकार हैं –

  1. दोनों के आवास छायादार, उचित ताप, प्रकाश एवं वायु युक्त होने चाहिए।
  2. दोनों में ही स्वच्छता की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
  3. दोनों में ही आहार की गुणवत्ता तथा पशुओं एवं कुक्कुटों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 2.
ब्रौलर तथा अण्डे देने वाली लेयर में क्या अन्तर है ? इनके प्रबन्धन के अन्तर को स्पष्ट कीजिए। .
उत्तर:
ब्रौलर माँस के लिए पाली जाने वाली कुक्कुटों को कहा जाता है जबकि अण्डे देने वाली मुर्गी लेयर कहलाती हैं। अण्डे देने वाली (लेयर) मुर्गियों को आहार में सस्ता रेशेदार आहार दिया जाता है जबकि ब्रौलर चूजों को अच्छी वृद्धि दर तथा अच्छी आहार दक्षता के लिए विटामिन, प्रोटीन तथा वसा से प्रचुर आहार देते हैं। इनकी देखभाल में भी विशेष ध्यान दिया जाता है ताकि इनकी मृत्युदर कम रहे तथा उनके पंख एवं माँस की गुणवत्ता बनी रहे।

प्रश्न शृंखला # 11 (पृष्ठ संख्या 239)

प्रश्न 1.
मछलियाँ कैसे प्राप्त करते हैं ?
उत्तर:
मछलियाँ दो तरह से प्राप्त की जा सकती हैं –
1. प्राकृतिक स्रोतों से मछली पकड़कर, तथा
2. मछली पालन या मछली संवर्धन द्वारा।
प्राकृतिक स्रोतों के अन्तर्गत समुद्र तथा ताजा जल; जैसेनदियों, तालाबों आदि से मछलियों को पकड़ा जा सकता है।

प्रश्न 2.
मिश्रित मछली संवर्धन से क्या लाभ हैं ?
उत्तर:
मिश्रित मछली संवर्धन में एक तालाब में मछलियों की कई जातियों का संवर्धन एक साथ किया जाता है। इसके अन्तर्गत मछलियों के साथ-साथ प्रॉन एवं मोलस्क का संवर्धन भी कर सकते हैं। एकल संवर्धन की तुलना में मिश्रित संवर्धन अधिक लाभदायक होता है क्योंकि विभिन्न जाति की मछलियों की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न होती हैं जिससे उनमें आहार के लिए प्रतिस्पर्धा भी कम होती है।

कुछ मछलियाँ; जैसे-कटला जल की सतह.से अपना आहार लेती हैं, कुछ जैसे रोहू तालाब के मध्य क्षेत्र से तथा कुछ जैसे कॉमन कार्प तालाब की तली से। इस प्रकार तालाब के प्रत्येक भाग में उपलब्ध आहार का उपयोग हो जाता है। परिणामस्वरूप हमारी लागत कम आती है तथा मछलियों के उत्पादन में अपेक्षाकृत वृद्धि होती है जिससे अधिक लाभ कमाया जा सकता है।

प्रश्न श्रृंखला # 12 (पृष्ठ संख्या 240)

प्रश्न 1.
मधु उत्पादन के लिए प्रयुक्त मधुमक्खी में कौन-से ऐच्छिक गुण होने चाहिए ?
उत्तर:
मधु उत्पादन के प्रयुक्त मधुमक्खी में निम्नलिखित गुण होने चाहिए –

  1. उसमें मधु एकत्र करने की क्षमता बहुत अधिक होनी चाहिए।
  2. वह गुस्सैल कम होनी चाहिए अर्थात् डंक कम मारती हो।
  3. वह निर्धारित छत्ते में अधिक समय तक रहती हो तथा प्रजनन भी तीव्रता से करती है।

प्रश्न 2.
चारागाह क्या है और ये मधु उत्पादन से कैसे सम्बन्धित है ?
उत्तर:
चारागाह वास्तव में वह स्थान है जहाँ से कोई जीव अपना प्राकृतिक भोजन लेता है। किसी पशु के लिए ये घास का मैदान तथा मधुमक्खी के लिए ये फूलों का बगीचा या ऐसा क्षेत्र जिसमें पर्याप्त फूल वाले पौधे हों, हो सकता है। अधिक तथा उत्तम गुणवत्ता वाले मधु का उत्पादन तभी सम्भव है जब मधुमक्खियों को पर्याप्त मात्रा में चारागाह अर्थात् फूल उपलब्ध हों, क्योंकि इन्हीं से ये पराग एवं मकरन्द एकत्र करती हैं। मधु का उत्पादन, उसकी गुणवत्ता एवं स्वाद सभी इन फूलों पर ही निर्भर करता है।

क्रियाकलाप

नोट:
इस अध्याय के सभी क्रियाकलाप अवलोकनार्थ हैं। अतः विद्यार्थियों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने शिक्षक महोदय के साथ खेत/कृषि फार्म हाउस/पशुशालाओं/ कुक्कुटशालाओं आदि का भ्रमण करें तथा उनके निर्देशानुसार विभिन्न सूची बनायें।

Bihar Board Class 9 Science परमाणु एवं अणु Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
फसल उत्पादन की एक विधि का वर्णन करो जिससे अधिक पैदावार प्राप्त हो सके।
उत्तर:
हमारे अनुसार फसल चक्र अपनाकर अधिक पैदावार प्राप्त हो सकती है। फसल चक्र खेती की ऐसी विधि है जिसमें किसी निश्चित क्षेत्र पर एक निश्चित अवधि में फसलों को इस प्रकार हरे-भरे करके उगाया जाता है ताकि भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट न हो और किसान को अधिकतम लाभ प्राप्त हो सकें। प्रत्येक फसल की अपनी कुछ निश्चित आवश्यकताएँ होती हैं। लगातार किसी भू-भाग में एक ही फसल उगाने से इस क्षेत्र में किसी खास तत्व की कमी हो जाती है जिससे आगे आने वाली फसल का उत्पादन कम हो जाता है।

फसल चक्र अपनाने से इसी कमी को दूर किया जा सकता है। फसल चक्र अपनाते समय ध्यान में रखना है कि अनाज वाली फसलों के बाद दलहनी फसलों, उथली जड़ों वाली फसलों के बाद गहरी जड़ों वाली फसलें, अधिक खाद चाहने वाली फसलों के बाद कम खाद चाहने वाली फसलें तथा अधिक पानी चाहने वाली फसलों के बाद कम पानी चाहने वाली फसलों को उगाना है। इस प्रकार से हमें अपने संसाधनों का पूरा लाभ प्राप्त होगा तथा पैदावार निश्चित रूप से अधिक प्राप्त होगी।

प्रश्न 2.
खेतों में खाद तथा उर्वरकों का उपयोग क्यों करते हैं ?
उत्तर:
विभिन्न फसलें पोषक पदार्थ मृदा से ग्रहण करती हैं जिससे मृदा में कुछ खाद्य तत्वों की कमी होने लगती है। इस कमी को दूर करने तथा फसल के उचित विकास एवं अधिक उत्पादन प्राप्त करने हेतु खेतों में खाद एवं उर्वरकों का उपयोग किया जाता है। इससे मृदा की संरचना में सुधार होता है तथा उसमें लाभदायक जीवाणुओं की संख्या एवं जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है जिसका सीधा प्रभाव हमारी फसलों पर पड़ता है और उत्पादन बढ़ जाता है।

प्रश्न 3.
अंतराफसलीकरण तथा फसल चक्र के क्या लाभ हैं ?
उत्तर:
अंतराफसलीकरण तथा फसल चक्र दोनों ही फसलों का उत्पादन बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अंतराफसलीकरण द्वारा पीड़क एवं रोगों को एक प्रकार की फसल के सभी पौधों में फैलने से रोका जा सकता है तथा भूमि की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाया जा सकता है जबकि फसल चक्र से भूमि के क्षय को रोककर उसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। इन दोनों विधियों से फसलों की उर्वरकों पर निर्भरता को कम किया जा सकता है। उन्हें रोगों एवं पीड़कों के प्रकोप से बचाकर अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
आनुवंशिक फेरबदल क्या हैं ? कृषि प्रणालियों में से कैसे उपयोगी हैं ?
उत्तर:
ऐसी प्रक्रिया या विधि, जिसमें किसी पौधे या जन्तु में कुछ इच्छित गुणों को जीन में बदलाव करके प्रविष्ट करा दिया जाता है, आनुवंशिक फेरबदल कहलाती है। जब किसी इच्छित गुण के जीन्स को पौधे में प्रविष्ट कराते हैं तो ट्रांसजेनिक पौधों का विकास होता है। वे ट्रांसजेनिक पौधे नये प्रविष्ट जीन के कारण इच्छित गुणों को प्रदर्शित करते हैं। – कृषि प्रणालियों में इसके उपयोग से फसलों की गुणवत्ता, रोग एवं कीट से प्रतिरोधकता एवं उत्पादन क्षमता सभी में वृद्धि होती है।

उदाहरण के लिए किसी अनाज वाले पौधे की जंगली जाति जो रोगों एवं कीड़ों के प्रति अधिक प्रतिरोधी थी लेकिन उसकी अनाज की बाली छोटी आकृति की थी, में ऐसे जीन्स को प्रवष्टि कराया जो अनाज की बड़ी बाली के लिए जिम्मेदार था तो उत्पन्न ट्रांसजेनिक पौधे की बालियाँ भी बड़े आकार की प्राप्त हुईं। इससे हमें ऐसे पौधे प्राप्त हुए जो रोगों एवं कीटों से प्रतिरोधी भी थे। साथ-ही-साथ बड़ी बाली होने के कारण उनसे अनाज का उत्पादन भी अधिक प्राप्त हुआ।

प्रश्न 5.
भण्डारगृहों (गोदामों) में अनाज की हानि कैसे होती है ?
उत्तर:
भण्डारगृहों में अनाज की हानि दो प्रकार के कारकों जैविक तथा अजैविक द्वारा हो सकती है। जैविक कारकों में विभिन्न प्रकार के कीट, कृन्तक, कवक एवं जीवाणु आदि होते हैं जबकि अजैविक कारकों में उपयुक्त नमी एवं तथा ताप आते हैं। इन कारणों के परिणामस्वरूप अनाज की गुणवत्ता खराब हो जाती है। अनाज को वजन एवं अंकुरण करने की क्षमता कम या बिल्कुल नष्ट हो सकती है, इसका रंग खराब हो सकता है जिससे उसका बाजार मूल्य कम हो जाता है।

प्रश्न 6.
किसान के लिए पशुपालन प्रणालियाँ कैसे लाभदायक हैं ?
उत्तर:
किसान के लिए पशुपालन अत्यन्त लाभदायक है। इसके द्वारा एक ओर तो किसान की अतिरिक्त आमदनी बढ़ती है, वहीं दूसरी ओर कृषि की उप-उत्पाद (भूसा आदि) पशुपालन में तथा पशुपालन के उप-उत्पाद (गोबर, खाद आदि) कृषि में उपयुक्त होने पर लागत कम हो जाती है जिससे धन की बचत होती है तथा किसान की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो जाती है। किसान की आर्थिक स्थिति, उसे अच्छे बीज, उर्वरक एवं कृषि यन्त्र आदि खरीदने के लिए उत्साहित करती है। परिणामस्वरूप उसे कृषि में भी अच्छा लाभ होने लगता है।

प्रश्न 7.
पशुपालन के क्या लाभ हैं ?
उत्तर:
पशुपालन के प्रमुख लाभ हैं –

  1. किसान की स्वयं की तथा बाजार की आवश्यकता हेतु उत्तम दूध की आपूर्ति होती है।
  2. कृषि कार्य करने; जैसे-हल चलाना, सिंचाई एवं बोझा उठाना आदि हेतु पशु उपलब्ध हो जाते हैं।
  3. पशुओं द्वारा प्राप्त मलमूत्र से कार्बनिक खाद बनती है जो भूमि की उर्वरता बढ़ाने में सहायक है।
  4. कुक्कुटपालन द्वारा उत्तम किस्म के अण्डे एवं माँस प्राप्त होता है।
  5. पशुपालन से किसान की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है।

प्रश्न 8.
उत्पादन बढ़ाने के लिए कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन तथा मधुमक्खी पालन में क्या समानताएँ हैं ?
उत्तर:
उत्पादन बढ़ाने के लिए कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन तथा मधुमक्खी पालन में प्रमुख समानता सही प्रबन्धन की विधियों का प्रयोग है जिसके अन्तर्गत फार्म की उचित एवं दैनिक सफाई अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सही तापमान, उचित समय पर भोजन की उपलब्धता, रोगों से सुरक्षा तथा प्राप्त उत्पादन का उचित एवं शीघ्र विपणन की व्यवस्था आदि तीनों के लिए ही लगभग समान है। इसके अतिरिक्त नये एवं संकर सदस्यों की संख्या में वृद्धि भी उत्पादन को बढ़ाती है।

प्रश्न 9.
प्रग्रहण मत्स्यन, मेरीकल्चर तथा जल संवर्धन में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
प्रग्रहण मत्स्यन, प्राकृतिक स्रोतों से मछली पकड़ने की विधियाँ हैं, जबकि मेरीकल्चर के अन्तर्गत समुद्री मछलियों का व्यावसायिक उपयोग के लिए संवर्धन किया जाता है तथा जल संवर्धन में उच्च आर्थिक महत्व के जलीय जन्तुओं; जैसे-प्रॉन (झींगा), केकड़े तथा मछलियाँ आदि का उत्पादन किया जाता है।


BSEB Textbook Solutions PDF for Class 9th


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