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BSEB Class 6 Sanskrit Amrita Chapter 12 नीतिश्लोकाः Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 6th Sanskrit Amrita Chapter 12 नीतिश्लोकाः Book Answers |
Bihar Board Class 6th Sanskrit Amrita Chapter 12 नीतिश्लोकाः Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 6th |
Subject | Sanskrit Amrita Chapter 12 नीतिश्लोकाः |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 6th Sanskrit Amrita Chapter 12 नीतिश्लोकाः Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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अभ्यासः
मौखिकः
प्रश्न 1.
निम्न श्लोकों को सस्वर गावें
उत्तर-
नीति श्लोकाः पाठ के प्रत्येक श्लोक को लय (सुन्दर स्वर) में . गावें।
लिखितः
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें –
(क) ……………… सर्वे तुष्यन्ति ………………।
तस्मात्तदेव ………………….. दरिद्रता ।।
उत्तर-
प्रिय वाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ।।
(ख) काव्यशास्त्र विनोदेन …………………….. ।
…………… निद्रया. …………… वा ॥
उत्तर-
काव्यशास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम् ।
व्यसनेन तु मुर्खाणां निद्रया कलहेन वा
प्रश्न 3.
श्लोकों को जोड़ें –
- काव्यशास्त्रविनोदेन – (i) सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः
- हस्तस्यभूषणं दानं – (ii) कालो गच्छति धीमताम्
- प्रियवाक्यप्रदानेन । – (iii) न प्रीतिर्न च बान्धवाः
- यस्मिन् देशे न सम्मानो – (iv) अविद्यस्य कुतो धनम्
- अलसस्य कुतो विद्या – (v) सत्यं कण्ठस्य भूषणम्
उत्तर-
- काव्यशास्त्रविनोदेन – (ii) कालो गच्छति धीमताम्
- हस्तस्यभूषणं दानं – (v) सत्यं कण्ठस्य भूषणम्
- प्रियवाक्यप्रदानेन । – (i) सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः
- यस्मिन् देशे न सम्मानो – (iii) न प्रीतिर्न च बान्धवाः
- अलसस्य कुतो विद्या – (iv) अविद्यस्य कुतो धनम्
प्रश्न 4.
उपयुक्त कथनों के सामने सही ✓ का तथा अनुपयुक्त कथनों के सामने गलत ✗ का चिह्न लगावें :
यथा – प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्तिा – ✓
मूर्खाणां कालः काव्यशास्त्रविनोदन गच्छति। – ✗
प्रश्नोत्तर साथ दिये गए हैं
- दानं हस्तस्य भूषणम् । – ✓
- सत्यं श्रोत्रस्य भूषणम् । – ✗
- धीमतां कालः निद्रया गच्छति। – ✗
- यत्र सम्मानः तत्र वसेत्। – ✓
- श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रम् । – ✓
प्रश्न 5.
उत्तराणि लिखत –
- सर्वे जन्तवः केन तुष्यन्ति ?
- कुत्र न वसेत् ?
- धीमताम् कालः कधं गच्छति ?
- मूर्खाणां कालः कथं गच्छति ?
- हस्तस्य भूषणं किम् ?
उत्तर-
- सर्वे जन्तवः प्रियवाक्यप्रदानेन तुष्यन्ति ।।
- यत्र न सम्मानः मिलति, न प्रीतिः ना च बान्धवाः न विद्या आगमनस्य साधनं तत्र न वसेत् ।
- धीमताम् कालः काव्यशास्त्र विनोदेन गच्छति ।
- मूर्खाणां काल: व्यसनेन निद्रया कलहेन वा गच्छति ।
- हस्तस्य भूषणं दानम् ।
Bihar Board Class 6 Sanskrit नीतिश्लोकाः Summary
प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ।।1।।
अर्थ – प्रिय वचन बोलने से सभी जीव प्रसन्न होते हैं। इसलिए वैसा ही बोलना चाहिए। बोलने में गरीबी (कंजूसी) कैसी । अर्थात प्रिय वाक्य बोलने से क्या गरीबी आ जाएगी?
यस्मिन्देशे न सम्मानो न प्रीतिर्न चबा-वाः।
न च विद्यागमः कश्चिन्न तत्र दिवसं वसेत् ।।2।।
अर्थ – जिस स्थान पर सम्मान न मिले, जहाँ प्रसन्नता नहीं हो, जहाँ कोई बान्धव (मित्र) नहीं हो, और जहाँ विद्याध्ययन की व्यवस्था नहीं हो, वहाँ एक दिन भी नहीं रहना चाहिए।
काव्यशास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम् ।
व्यसनेन तु मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा ।।3।।
अर्थ – बुद्धिमानों का समय काव्य शास्त्र के अधययन-अध्यापन में बीतता है। लेकिन मूखों का समय बुरे कार्यों में सोने में या झगड़ा (विवाद) करने में बीतता है।
आलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् ।
अधनस्य कुतो मित्रममित्रस्य कुतः सुखम् ।।4।।
अर्थ – आलसी को विद्या कहाँ प्राप्त होती है, जो विद्याहीन (मूर्ख) होते हैं उनको धन नहीं प्राप्त होता है। धनहीन को मित्र नहीं होता तथा बिना मित्र के सुख की प्राप्ति नहीं होती है।
हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कण्ठस्य भूषणम् ।
श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्र भूषणैः किं प्रयोजनम् ।।5।।
अर्थ- हाथ की शोभा दान देने से होती है। कण्ठ की शोभा सत्य वचन बोलने से होती है। कान की शोभा शास्त्र की बातें सुनने से होती है। जिसने दान-सत्य और शास्त्ररूपी आभूषण धारण कर लिया है उसके लिए. अन्य आभूषण (स्वर्णालंकार) की क्या आवश्यकता है।
शब्दार्थ:-प्रियवाक्यप्रदानेन – प्रिय वचन बोलने से। तुष्यन्ति ( तुष् + लट्)- प्रसन्न होते हैं। जन्तवः (जन्तु, प्रथमा, बहु०) – प्राणियों (सभी प्राणी)। तस्मात्तदेव (तस्मात् + तत् + एव) – इसलिए वैसा ही। वक्तव्यम् – (वच् + तव्यत्) – बोलना चाहिए। दक्षिा – निर्धनता, कंजूसी, कमजोरी। . सम्मानः – आदर, मान, सम्मान। प्रीतिः – प्रसन्नता। विद्यागमः (विद्या + आगम:) – विद्या-प्राप्ति की व्यवस्था। वसेत् (वस् + विधिलिङ्) – वसना
चाहिए, रहना चाहिए। काव्यशास्त्र-विनोदेन – काव्य शास्त्र के अध्ययन-अध्यापन से। धीमताम् (धीमत् + षष्ठी बहुवचन) – बुद्धिमानों का व्यसनेन – बुरी आदतें/ बुरे काम सो निद्रया (निद्रा + तृतीया विभक्ति) – सोने से । सोकर। कलहेन – झगड़ा करने / विवाद करने में। आलसस्य – आलसी का। कुतः – कहाँ से, कैसे। अविद्यस्य – विद्या से हीन (मूर्ख) का। अधनस्य – ध नहीन (दरिद्र) का। अमित्रस्य – मित्रहीन (मित्ररहित) व्यक्ति का। श्रोत्रस्य – कान का।
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