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BSEB Class 7 Hindi Kislay Chapter 20 यशास्विनी Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 7th Hindi Kislay Chapter 20 यशास्विनी Book Answers |
Bihar Board Class 7th Hindi Kislay Chapter 20 यशास्विनी Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 7th |
Subject | Hindi Kislay Chapter 20 यशास्विनी |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 7th Hindi Kislay Chapter 20 यशास्विनी Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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पाठ से –
प्रश्न 1.
इन पद्यांशों के अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(क) पग-नुपूर कंगन हार नहीं,
तुम विद्या से श्रृंगार करो।
अर्थ – हे नारी ! पैर में पायल, हाथ में कंगन और गले में हार पहनना हों अपना शृंगार मत समझो। आज तुझे विद्या से अपने को शृंगार करने का समय है।
(ख) वह दान दया की वस्तु नहीं,
वह जीव नहीं वह नारी है।
अर्थ – हे पुरुषो ! नारी को मात्र दान-दया का जीव मत मानो। वह पुरुषों के साथ-साथ चलने वाली नारी है।
(ग) उसे टेरेसा बन जीने दो,
उसे इंदिरा बन जीने दो।
अर्थ-हे पुरुषो। इसी नारी में कोई महान समाज सेविका मदर टेरेसा अथवा कोई इंदिरा भी बन सकती है। अत: इन्हें भी टेरेसा, इंदिरा बनने दो।
पाठ से आगे –
प्रश्न 1.
समाज में लिंग-भेद मिटाना क्यों जरूरी है ? इसको मिटाने के लिए आप क्या-क्या कर सकते हैं ?
उत्तर:
समाज में अभी भी लिंग भेद व्याप्त है जिसे मिटाना जरूरी है क्योंकि बेटा-बेटी दोनों एक समान हैं। बेटियाँ भी अच्छी विद्या पाकर राष्ट्र के उत्थान में अपना योगदान दे रही हैं। इसके बाद भी स्त्री-पुरुष में विभेद किया जा रहा है जो स्त्री के साथ अन्याय हो रहा है।
इसको मिटाने के लिए हम सबसे पहले भ्रूण हत्या रोकने की कोशिश करेंगे। लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देंगे। लड़कियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करेंगे। बेटा-बेटी को एक समान बताने का प्रयास कर लिंग-भेद मिटाया जा सकता है।
प्रश्न 2.
समाज में स्त्री एवं पुरुष में भेद-भाव किन-किन रूपों में दिखाई देता है। इन्हें समाप्त करने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है ?
उत्तर:
आज के युग में भी स्त्री-पुरुष में भेद-भाव विभिन्न रूपों में दिखाई देता है जिसे हम निम्न रूप में देखते हैं –
- विशेषतः स्त्रियों को पुरुष अपना सेविका मानती हैं।
- विशेषत: स्त्रियों को घर के कामों में सीमित रखा जाता है।
- स्त्रियों को शिक्षित करना अभिशाप मानते हैं।
- उनके रहन-सहन पढ़ाई-लिखाई और खान-पान भी पुरुषों की अपेक्षा कमजोर दिखाई पड़ते हैं।
अर्थात् पुरुषों की अपेक्षा नारियों का महत्व समाज में कम देते हैं। इसको दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं –
- समाज में नारी के योगदान की चर्चा करना चाहिए।
- नारी सह पुरुष शिक्षा का समान शिक्षा प्रणाली बने ।
- नारी को शिक्षा के प्रति जागरूक किया जाय ।
- नारी को आगे बढ़ने देने के लिए सहयोग करना चाहिए।
प्रश्न 3.
समाज में भ्रूण हत्याएं हो रही हैं। लगातार महिलाओं की संख्या में कमी हो रही है। लोग लड़के की कामना करते हैं तथा लड़कियों को दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में देखा जाता है। वर्तमान समय में कमोवेश नारी की यही स्थिति है। इस परिदृश्य को ध्यान में रखकर एक स्वरचित कविता का निर्माण कीजिए।
उत्तर:
बेटी
गर्भ में बेटो को कम मत समझो,
मात्र नारी नहीं तुम जननी समझो।
कौन कहता जो पुत्र तुम्हारें गर्भ में है,
वह कुकर्मी, शैतान चोर-डाकू नहीं है।
तुम्हारी बेटी क्यों नहीं हो सकती.ऐसा,
कल्पना, इंदिरा लता मंगेशकर के जैसा।
जन्म लेने दो उसे उसका यह अधिकार है।
नहीं तो तुम्हें नारी होने पर धिक्कार है।
व्याकरण –
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम लिखिए –
उत्तर:
तोड़ो = जोड़ो
संवारना = मिटाना
नफरत = प्रेम
सम्मान = असम्मान
स्वीकार = अस्वीकार
दया = कठोरता
प्रश्न 2.
दिये गये पुलिङ्ग शब्दों के स्त्रीलिंग शब्द लिखिए –
उत्तर:
अभिनेता = अभिनेत्री।
नेता = नेताइन।
लेखक = लेखिका।
छात्र = छात्रा।
अध्यापक = अध्यापिका।
नर = नारी।
कुछ करने को –
प्रश्न 1.
बाल विवाह, दहेज-प्रथा, भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीतियाँ हमारे समाज में हैं। आपके विद्यालय में “मीना मंच” से संबंधित या कुछ अन्य पुस्तकें होगी। जिनमें बालिका शिक्षा तथा नारी गणनितकरण से सम्बन्धित कहानियाँ हैं। आप उनका अध्ययन कीजिए और नुक्कड़ नाटक के द्वारा समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने के लिए लोगों को प्रेरित कीजिए।
उत्तर:
बालिका शिक्षा और नारी सशक्तिकरण से सम्बन्धित अनेक पुस्तकें हैं उसका अध्ययन कर नुक्कड़ नाटक करें।
प्रश्न 2.
प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस दिन क्या-क्या होता है। अपने शिक्षक से चर्चा कीजिए।
उत्तर:
प्रतिवर्ष 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है जिसमें राष्ट्र के श्रेष्ठ महिलाओं को सम्मानित किया जाता है। मेघावी छात्राओं को सम्मानित किया जाता है।
प्रश्न 3.
भारतीय नारी विभिन्न क्षेत्रों में अपना परचम लहराया है, जैसे –
इन्दिरा गाँधी – राजनीति क्षेत्र में।
कल्पना चावला – अंतरिक्ष क्षेत्र में।
मदर टेरेसा – समाज सेवा क्षेत्र में।
लता मंगेशकर – संगीत के क्षेत्र में।
क्या आपके आस-पास कोई ऐसी नारी है, जिसने किसी क्षेत्र में अपना विशेष नाम किया हो । शिक्षक, अभिभावक की सहायता से पता कर उनसे मिलिए और बातचीत कीजिए।
उत्तर:
हमारे पास एक वयोवृद्ध महिला भगवती देवी जी हैं मैं उनसे मिलकर बातचीत किया और जाना।
प्रश्न 4.
क्या आप महिलाओं की शिक्षा के प्रति अधिक व्यस्त रही?
उत्तर:
हाँ मैंने जीवन में अधिकाधिक महिलाओं को शिक्षित करने का व्रत रख लिया है।
प्रश्न 5.
आपने महिलाओं की क्या दशा देखी?
उत्तर:
पहले महिलाओं को केवल बच्चा पैदा करने वाली और खाना बनाने वाली मानकर उसे पुरुष रखते थे। उनको शिक्षा से वंचित रखा जाता था । उनको घर से निकलने नहीं दिया जाता था।
प्रश्न 6.
आपके द्वारा कितनी महिलाएँ शिक्षित हुई ?
उत्तर:
गिनती करना तो मुश्किल है लेकिन हजारों की संख्या में लड़कियाँ एवं महिलाओं को मैंने शिक्षा देकर उन्हें शिक्षित किया है।
प्रश्न 7.
महिला शिक्षा के लिए आपने क्या-क्या उपाय किये?
उत्तर:
सबसे पहले उन्हें चर्खा कतवाकर, गुड़िया बनवाकर अर्थोपार्जन के लिए आकृष्ट किया। फिर उनके बच्चे को पढ़ाने का काम भी करने लगे तथा अनपढ़ महिलाओं को भी साक्षर होने के लिए प्रोत्साहित किया। लड़कियों का स्कूल खोला।
प्रश्न 8.
आज आपके विद्यालय में कहाँ तक लड़कियाँ अध्ययन कर सकती हैं?
उत्तर:
वर्तमान समय में हमारे यहाँ वर्ग प्रथम से दशम वर्ग तक की छात्राएँ शिक्षा प्राप्त कर रही हैं।
प्रश्न 9.
आपके इस कार्य में सरकार का क्या सहयोग रहा?
उत्तर:
सरकार भी बालिका शिक्षा के प्रति जागरूक है। हमारे यहाँ वर्ग आठ तक की शिक्षा को सरकार अपने अधिकार में लेकर मान्यता दे दी है। लेकिन हाई स्कूल के शिक्षिकागण सरकारी सहायता से वंचित है। हाईस्कूल को भी वित्तरहित मान्यता देकर छोड़ दिया गया है।
प्रश्न 10.
क्या आए सरकार से संतुष्ट हैं ?
उत्तर:
वर्तमान सरकार नारी शिक्षा के प्रति अधिक जागरूक है जिससे हम संतुष्ट हैं।
गतिविधि –
जूतों की दुकान में जाकर जूते-चप्पलों तथा सैंडलों की बनावट, रंग तथा उपयोग में लाई गई सामग्री पर जानकारी एकत्रित करके नीचे दिये गये प्रश्नों के जवाब दीजिए।
(क) क्या लड़के तथा लड़कियों के जूते-चप्पल तथा सैंडल में अन्तर है ? यदि हाँ तो ये अन्तर कान-कौन से हैं ?
उत्तर:
लड़कियों के जूते चप्पल तथा सैंडल प्रायः लड़के के जूते चप्पलों से ऊँची ऐडियों की होती हैं। लड़कियों के जूते-चप्पल विशेषतः रंग-बिरंगी रंगों में होती है।
(ख) लड़के तथा लड़कियों के लिए अलग-अलग जूते-च बनाने के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर:
लड़कियों के जूते-चप्पल को अलग-अलग बनाने का मुख्य कारण उन्हें आकर्षक बनाना है तथा लिंग-भेद कायम रखना है।
(ग) लड़के तथा लड़कियों के जूते चप्पलों तथा सैंडलों में अन्तर ‘लिंग-भेद को बनाये रखने का एक तरीका है। चर्चा कीजिए।
उत्तर:
हाँ, लड़के तथा लड़कियों के जूते चप्पलों तथा सैंडड़ों में अन्तर कर लिंग-भेद में बढ़ावा देना है। जो नहीं होना चाहिए।’
शारीरिक ताकत का भ्रम
स्त्रियाँ तेजी से दौड़ नहीं सकतों—यह धारणा ‘सुसंस्कृत’ गृहिणियों’ को देखकर पैदा होती है। लेकिन तथ्य गवाह है कि यदि स्त्री को समान अवसर मिले तो वह पुरुपों से ज्यादा पीछे नहीं रह सकतीं । ओलंपिक के रिकार्ड इसके गवाह हैं। ओपिक प्रतियोगिताओं में 100 मीटर की दौड़ में पुरुषों का रेकार्ड 1183 सेकेंड (1984 में) का है और स्त्रियों का रेकार्ड 10.76 सेकेंड (1984 में) का । यानि स्त्री की अधिकतम रफ्तार पुरुष की अधिकतम रफ्तार से सिर्फ 17.94 प्रतिशत कम है। लेकिन 10 हजार मीटर की दौड़ में यह फर्क लगभग आधा हो जाता है। 0 हजार मीटर की दौड़ में पुरुषों का अब तक का रेकार्ड है 27 मिनट 18,81 सेकेंड और स्त्रियों का 30 मिनट 13.74 सेकेंड। यानी स्त्री की अधिकतम रफ्तार पुरुष से सिर्फ 9.95 प्रतिशत कम. है। क्या 9.95 प्रतिशत की कमी स्त्री और पुरुष की दौड़ने की क्षमता में किसी बड़े, मूलभूत फर्क की ओर इशारा करती है? फिर यह सर्वोच्च अंतर्राष्ट्रीय रेकॉर्ड का मामला है।
औसत के स्तर पर यह फर्क और भी कम हो सकता है। बल्कि कम हो जाता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि स्त्रियों की रफ्तार स्थिर नहीं है। यह पिछले पाँच दशकों में लगातार बढ़ती गयी है। उदाहरण के लिए 100 मीटर की दूरी स्त्री द्वारा तय करने का रेकार्ड 1928 में 12.2 सेकेंड था, जो 1984 में घटकर 10.97 सेकेंड रह गया। 800 मीटर की दूरी में यह फर्क इस प्रकार रहा : 1928 में 4 मिनट 16.8 सेकेंड और 1984 में 1 मिनट 57.60 सेकेंड । इससे क्या हम यह अनुमान नहीं लगा सकते कि आदिम युग में, जल विषमता नहीं थी या न्यूनतम थी तथा स्त्री को बलपूर्वक सुकुमार नहीं किया जाता था, तब यह भी पुरुष की तरह ही हष्ट-पुष्ट होती होगी-उतनी ही सक्षम, उतनी ही चुस्त और शायद उतनी ही हिंसक भी ?
(राजकिशोर स्त्री-पुरुष : कुछ पुनर्विचार से साभार)
यशास्विनी Summary in Hindi
सारांश – आज के युग में भी नारियों को स्थान पुरुषों की अपेक्षा पीछे माना जा रहा है जबकि नारियों ने सभी क्षेत्रों में अपना योगदान पुरुष से कम नहीं दे रही हैं। इसी पर आधारित इस कविता में नारियों के प्रति सम्मान व्यक्त किया गया है।
अर्थ लेखन –
मत उसके नभ को छीनो तम,
मत तोड़ो उसके सपनों को।
वह दान दया की वस्तु नहीं,
वह जीव नहीं वह नारी है।
अर्थ – ई पुरुषो । नारी की स्वतंत्रता को तुम मत छीनो । उसके सपनों को साकार होने दो । नारी केवल दान, दया की वस्तु नहीं है। नारी सामान्य जीव नहीं बल्कि नर के साथ-साथ चलने वाली, सहायक रूप में काम आने वाली नारी है।
अगर कर सकते हो कुछ भी तम,
तो कुछ न करो-यह कार्य करो!
जो चला गया पर अब जो है
उसको संवारना आर्य करो।
अर्थ – हे आर्य । आपने नारियों का बहुत परित्याग किया है। भ्रूण हत्या आदि से उसको नाश किया है लेकिन जो बची है उसको संवारने का कार्य करो।
क्या दादी-नानी-चाची मां।
बस यह बनकर है रहने को?
निर्जीव नहीं, वह नारी है
उसे टेरेसा बन जीने दो,
उसे इंदिरा बन जीने दो।
अर्थ – क्या नारी को दादी-नानी-चाची और माँ बनाना ही औचित्य है। वह निर्जीव पत्थर नहीं कि जिस रूप में चाहो बना लो । वह तो पुरुषों को साथ देने वाली नारी है। उसे मदर टेरेसा या इंदिरा बनकर जीने दो।
हाँ तोड़ो उस बेड़ी को जरा
जिसमें नफरत की कड़ियाँ हैं।
फिर पंखों को खुल जाने दो,
उसे कल्पना बन जीने दो,
उसे लता बन जीने दो।
अर्थ – बेटी से नफरत की बेड़ी को काँट दो उसे भी स्वतंत्रता से जीने दो जिससे वे भी कल्पना चावला बनकर आकाश में विचरण करें या लता मंगेशकर की तरह संगीत की दुनिया में नाम कमा सकें।
पग-नुपूर कंगन-हार नहीं
तुम विद्या से श्रृंगार करो ।
तुम खुद अपना सम्मान करो
अपना नारीत्व स्वीकार करो।
अर्थ – हे नारी ! पैर में पायल पहनना, हाथ में कंगन पहनना और गले में हार पहनना ही तुम्हारा श्रृंगार नहीं। अब तुम विद्या से अपना श्रृंगार करो। तुम अपने आपको सम्मान करो। अपने नारीत्व गुण को स्वीकार करो । अर्थात् नारी होने का गौरव प्राप्त करो।
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