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Friday, July 1, 2022

BSEB Class 9 Hindi Godhuli Chapter 1 कहानी का प्लाँट Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 9th Hindi Godhuli Chapter 1 कहानी का प्लाँट Book Answers

BSEB Class 9 Hindi Godhuli Chapter 1 कहानी का प्लाँट Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 9th Hindi Godhuli Chapter 1 कहानी का प्लाँट Book Answers
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Bihar Board Class 9th Hindi Godhuli Chapter 1 कहानी का प्लाँट Textbooks Solutions PDF

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Bihar Board Class 9th Hindi Godhuli Chapter 1 कहानी का प्लाँट Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 9th
Subject Hindi Godhuli Chapter 1 कहानी का प्लाँट
Chapters All
Provider Hsslive


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Bihar Board Class 9 Hindi कहानी का प्लाँट Text Book Questions and Answers

Kahani Ka Plot Ka Question Answer Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 1.
लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि कहानी लिखने योग्य प्रतिभा भी मुझमें नहीं है जबकि यह कहानी श्रेष्ठ कहानियों में एक है?
उत्तर-
लेखक को अपनी बड़ाई खुद करने में विश्वास नहीं है क्योंकि लेखक को कला-मर्मज्ञ होना चाहिए और यहाँ लेखक कलाविद् भी अपने को नहीं मानते हैं।

कहानी का प्लॉट का प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 2.
लेखक ने भगजोगनी नाम ही क्यों रखा? ।
उत्तर-
यह कहानी ग्रामीण परिवेश की कहानी है और उसमें लेखक को देहाती नाम अच्छा लग

कहानी का प्लॉट शिवपूजन सहाय प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 3.
मुंशीजी के बड़े भाई क्या थे? उत्तर-पलिस दारोगा।

कहानी का प्लॉट का प्रश्न उत्तर Pdf Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 4.
दारोगाजी की तरक्की रुकने की क्या वजह थी?
उत्तर-
दारोगा जी को एक घोड़ी थी। बहुत कम कीमत की मगर वह तुर्की घोड़े का कान काटती थी। उसको लेने के लिए बड़े-बड़े अंगरेज अफसर दाँत गड़ाए , हुए थे लेकिन दारोगा जी ने नहीं दिया। इसीलिए उनकी तरक्की रुक गई।

Kahani Ka Plot Ka Question Answer In Hindi Bihar Board Class 9 प्रश्न 5.
मुंशीजी अपने बड़े भाई से कैसे उऋण हुए?
उत्तर-
एक गोरे अफसर के हाथ खासी रकम पर घोड़ी को बेचकर मुंशीजी अपने बड़े भाई से उऋण हुए।

Kahani Ka Plot Question Answer Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 6.
‘थानेदार की कमाई और फूस का तापना दोनों बराबर हैं, लेखक ने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर-
दारोगाजी के रहते जितनी मौज मस्ती थी उनके मरने के बाद सारी बातें गायब हो गयी थी। इसी संदर्भ में उपर्युक्त बातें कही गई हैं।

कहानी का प्लॉट शिवपूजन सहाय Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 7.
‘मेरी लेखनी में इतना जोर नहीं’-लेखक ऐसा क्यों कहता है?
उत्तर-
भगजोगनी के रूप-लावण्य का वर्णन करने में लेखक सारी उपमाओं के बाद भी अपने को असमर्थ पाता है तभी उसने कहा है कि मेरी लेखनी में इतना जोर नहीं है कि मैं इसका सटीक वर्णन कर सकूँ।

कहानी का प्लॉट का सारांश Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 8.
भगजोगनी का सौंदर्य क्यों नहीं खिल सका?
उत्तर-
भगजोगनी, अनाथ बच्ची, गरीबी की चक्की में इतनी पिस गई थी कि उसे और बातों के अलावा दो जून खाना भी नसीब न था। फिर उसका सौंदर्य कैसे खिल सकता था।

प्रश्न 9.
मुंशीजी गल-फाँसी लगाकर क्यों करना मरना चाहते हैं?
उत्तर-
भगजोगनी की दशा देखकर अपनी गरीबी पर तरस खाकर बदहाली की जिंदगी जीने से मजबूर होकर गला-फाँसी लगा लेना चाहते हैं मुंशीजी।

प्रश्न 10.
भगजोगनी का दूसरा वर्तमान नवयुवक पति उसका ही सौतेला बेटा है। यह घटना समाज की किस बुराई की ओर संकेत करती है और क्यों?
उत्तर-
भगजोगनी की शादी वृद्ध से हुई थी जो उसके तरूणाई आते मर गया। आज वह युवती है, पूर्ण युवती। उसका सौंदर्य उसके वर्तमान पति का स्वर्गीय धन है। दूसरा पति उसका सौतेला बेटा। यही समाज की नियति है कि वह इस वातावरण में जीने को मजबूर है।

व्याख्याएँ

12. आशय स्पष्ट करें

(क) ‘जो जीभ एक दिन बटेरों का शोरबा सुड़कती थी, अब वह सराह-सराहकर मटर का सत्तू सरपोटने लगी। चुपड़ी चपातियाँ चबानेवाले दाँत अब चंद चबाकर दिन गुजरने लगे।’
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ शिवपूजन सहाय द्वारा लिखित ‘कहानी का प्लॉट’ शीर्षक से उद्धृत हैं। इसमें लेखक ने बड़े ही सहज ढंग से अमीरी से गरीबी में आने पर होनेवाले बदलाव का चित्रण किया है।

कहानी में लेखक को मुंशीजी ने जब रो-रोकर अपना दुखड़ा सुनाते हैं उसका बड़ा ही रोचक वर्णन लेखक ने किया है। मुंशीजी कहते हैं कि “क्या कहूँ बीते दिनों की, जब याद करता हूँ तो गश आ जाता है।” दारोगाजी के जीते-जी ऐश-मौज का बखान मुंशजी जी करते हैं और दारोगा जी मृत्यु के बाद आई गरीबी का इजहार करते हैं। उसका लेखक ने बड़े ही रोचक और सत्यता के साथ उजागर करता है। लोग अमीरी में कुछ भी नहीं सोचते। अनाप-शनाप, फिजूलखर्ची उनकी आदत बन जाती है। वही जब गरीबी आती है तो याद किस तरह सताती है इसका दिग्दर्शन लेखक ने ग्रामीण परिवेश में बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है।

(ख) “सचमुच अमीरी की कब्र पर पनपी हुई गरीबी बड़ी ही जहरीली होती है।’
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ शिवपूजन सहाय द्वारा लिखित ‘कहानी का प्लॉट’ शीर्षक से उदधत है। लेखक ने समाज में होनेवाले उतार-चढाव का. फिर बीते दिनों की याद को वर्तमान में पश्चाताप का इतना सुंदर विवेचन किया है कि वह ही सत्य हो गया है।
मुंशीजी कहते हैं कि एक दिन वह था कि भाई साहब के पेशाब से चिराग जलता था, और एक दिन यह भी है कि मेरी हड्डियों मुफसिसी की आँच से मोमबत्तियों की तरह घुल घुलकर जल रही है। बड़ा अफसोस होता है लेकिन सच ही कहा गया है कि अमीरी के कब्र पर पनपी हुई गरीबी बड़ी ही जहरीली होती है। लेखक ने इतनी मार्मिकता से इसका वर्णन किया है जो अत्यंत ही संवेदनायुक्त है।

निम्नलिखित गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

1. किंतु जब बहिया बह गई, तब चारों ओर उजाड़ नजर आने लगा।
दारोगाजी के मरते ही सारी अमीरी घुस गईं, चिलम के साथ-साथ चूल्हा-चक्की भी ठंढी हो गई। जो जीभ एक दिन बटेरों का शोखा सुड़कती थी, वह अब सराह-सराह कर मटर का सत्तू सरपोटने लगी। चुपड़ी चपातियाँ चबानेवाले दाँत अब चंद चने चबाकर दिन गुजारने लगे। लोग साफ कहने लग गए कि थानेदार की कमाई और फूस का तापना दोनों बराबर हैं।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखिए।
(ख) इस गद्यांश में किसके संबंध में क्या कहा गया है?
(ग) ‘बटेरों का शोरवा सुड़कना’ तथा ‘मटर का सत्तू सरपोटना’ के क्या प्रतीकार्थ हैं?
(घ) इस गद्यांश का आशय लिखिए।
(ङ) “थानेदार की कमाई और फूस का तापना दोनों बराबर हैं।”
इस कथन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ-कहानी का प्लॉट, लेखक-शिवपूजन सहाय।

(ख) इस गद्यांश में दारोगाजी की मृत्यु के बाद उनके भाई मुंशीजी की आर्थिक-बदहाली और बेबसी का विवरण प्रस्तुत किया गया है। उनकी कल की खुशियाली के बाद आई वर्तमान की विपन्नता बड़ी कारुणिक है।

(ग) ‘बटेरी का शोरवा सुड़कना’ प्रतीक है-सुख-समृद्धि में शानदार सुस्वादु भोजन के आनंद का। ‘मटर का सत्तू सरपोटना’ प्रतीक है-गरीबी की लाचारी में निम्नकोटि के भोजन से किसी तरह पेट भरने की क्रिया का।

(घ) इस गद्यांश में कल के अमीर और आज के फकीर बने मुंशीजी की आर्थिक तंगी और दयनीय दशा का अंकन उनकी खाद्य सामग्री के वर्णन के माध्यम से किया गया है। कल तक बटेर के शोरबे और घी में चुपड़ी चपातियों के भोजन का आनंद लेनेवाले मुंशीजी आज मटर के सत्तू और चने के चंद दाने पर ही जीने को मजबूर हैं।

(ङ) थानेदार की कमाई घूस की रकम की अप्रत्याशित आमदनी की कमाई होती है जो देखते-ही-देखते तुरंत लहलहा उठती है, लेकिन वह फूस की आग की तरह तुरत लहककर उतनी ही शीघ्रता से मिट या बुझ भी जाती है।

2. लेकिन जरा किस्मत की दोहरी मार तो देखिए। दारोगाजी के जमाने में मुंशीजी के चार-पाँच लड़के हुए। पर सब-के-सब सुबह के चिराग हो गए। जब बेचारे की पाँचों उँगलियाँ घी में थी, तब तो कोई खानेवाला न रहा और जब दोनों टाँगें दरिद्रता के दलदल में आ फँसी और ऊपर से बुढ़ापा भी कँधे दबाने लगा, तब कोढ़ में खाज की तरह एक लड़की पैदा हो गई और तारीफ यह कि मुंशीजी की बदकिस्मती भी दारोगाजी की घोड़ी से कुछ कम स्थावर नहीं थी।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखिए।
(ख) मुंशीजी की किस्मत की दोहरी मार क्या थी?
(ग) “तब कोढ़ में खाज की तरह एक लड़की पैदा हो गई।” इसका अर्थ या आशय स्पष्ट कीजिए।
(घ) इस गद्यांश का आशय लिखिए।
(ङ). लेखक ने यहाँ मुंशीजी की बदकिस्मती की तुलना किससे, क्यों तथा क्या कहकर की है?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-कहानी का प्लॉट, लेखक का नाम-शिवपूजन सहाय।

(ख) मुंशीजी की किस्मत की दोहरी मार में पहली मार यह थी कि जब मुंशीजी खशियाली की जिंदगी के सकल साधनों से मंडित थे. तब उस स्थिति में उनके चारों-पाँचों लड़के असामयिक मृत्यु के शिकार हो गए और इस रूप में उनकी संपत्ति को कोई भोगनेवाला नहीं बचा। उनकी किस्मत की दूसरी मार यह थी कि जब बाद के दिनों में वे गरीबी और तंगी के शिकार हुए तो बुढ़ापे में जी का जंजाल बनकर एक लड़की पैदा हो गई।

(ग) इस कथन का अर्थ या आशय यह है कि जिस प्रकार कोढ़ की संकटमयी बीमारी के कष्ट में खाज का होना विशेष परेशानी और पीड़ा का कारण बन जाता है, उसी तरह गरीबी और अभाव की कष्टदायी स्थिति में बुढ़ापे में मुंशीजी के लिए लड़की पैदा होना विशेष पीड़ा एवं कष्टदायी हो गया।

(घ) इस गद्यांश में लेखक ने कहानी के मुख्य पात्र मुंशीजी की दोहरी बदकिस्मती का अंकन किया है। उनकी इस दोहरी बदकिस्मती का पहला मंजर तो यह था कि खुशियाली के दिनों में उनके चारों-पाँचो बेटे असमय में ही मौत के शिकार हो गए और उनकी संपत्ति का कोई वारिस नहीं बचा। दूसरी ओर बदकिस्मती इस रूप में आ धमकी कि उनकी बुढ़ापे और गरीबी की किल्लत-भरी और अवसादमयी जिंदगी के बीच एक लड़की पैदा हो गई।

(ड) लेखक ने यहाँ मुंशीजी की बदकिस्मती की तुलना उनके घर में पल रही दारोगाजी द्वारा खरीदी गई घोड़ी की अवसादग्रस्त किस्मत से की है। यह तुलना लेखक ने इसलिए की है कि दोनों-मुंशीजी और घोड़ी समान बदकिस्मती की स्थिति में रहकर जीने को मजबूर थे।

3. सच पूछिए तो इस तिलक-दहेज के जमाने में लड़की पैदा करना ही बड़ी मूर्खता है, लेकिन युगधर्म की क्या दवा है? इस युग में अबला ही प्रबला हो रही है। पुरुष-दल को स्त्रीत्व खदेड़े जा रहा है। बेचारे मुंशीजी का क्या दोष? जब घी और गरम मसाले उड़ाते थे, तब हमेशा लड़का ही पैदा करते थे, मगर अब मटर के सत्तू पर बेचारे कहाँ से लड़का निकाल लाएँ। संचमुच अमीरी की कब्र पर पनपी हुई गरीबी बड़ी ही जहरीली होती है।
(क) इस गद्यांश के लेखक और पाठ के नाम लिखिए।
(ख) इस गद्यांश का आशय लिखिए।
(ग) लेखक के अनुसार, तिलक-दहेज के जमाने में लड़की पैदा
करना मुर्खता है, क्यों और कैसे?
(घ) “सचमुच अमीरी की कब्र पर पनपी गरीबी बड़ी ही जहरीली
होती है।”-इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का शीर्षक (नाम) है-कहानी का प्लॉट, लेखक का नाम , है-शिवपूजन सहाय।

(ख) इस गद्यांश में लेखक ने मुंशीजी की गरीबी और बेबसी का चित्रण ‘करने के क्रम में युगधर्म बनी तिलक-दहेज की प्रथा की बुराई की चर्चा की है। लेखक के अनुसार तिलक-दहेज की प्रथा की बुराई की युगीन स्थिति में लड़की पैदा करना मूर्खता है। लेकिन, मुंशीजी ऐसे गरीब और अतिसामान्य भोजन करनेवाले सहज कमजोर पिता के लिए तो पुत्र पैदा करना संभव ही नहीं है। अत: कल की अमीरी के बाद आज की आई गरीबी की पीड़ा की घड़ी में पैदा हुई बेटी कष्टदायक होती है।

(ग) लेखक के अनुसार तिलक-दहेज के जमाने में लड़की के पैदा होने पर उसके विवाह के आयोजन में अनावश्यक रूप से बहुत ज्यादा राशि अपेक्षित हो जाती है जिसे जुटाना लड़की के अभिभावक के लिए बड़ा कष्टकर हो जाता है। इस स्थिति में लड़की पैदा करना कष्टकर और मूर्खतापूर्ण हो जाता है।

(घ) लेखक के इस कथन का मंतव्य है कि अमीरी की सुख-सुविधा और ‘ खुशियाली के बाद गरीबी का आना बड़ा कष्टदायी और भयावह पीड़ाजनक होता है। इसका दुष्प्रभाव जहर के प्रभाव के रूप में बड़ा जहरीला है और विशेष कष्टदायी होता है। पहले से चली आ रही गरीबी में ऐसी बात नहीं होती।

4. कहते हैं प्रकृत-सुंदरता के लिए कृत्रिम श्रृंगार की जरूरत नहीं होती, क्योंकि जंगल में पेड़ की छाल और फूल-पत्तियों से सजकर शकुंतला जैसी सुंदरी मालूम होती थी, वैसी दुष्यंत के राजमहल में सोलहों सिंगार करके भी वह कभी न फबी। किंतु, शकुंतला तो चिंता-कष्ट के वायुमंडल में नहीं पत्ली थी। उसके कानों में उदर दैत्य का कर्कश हाहाकार कभी न गूंजा था। वह शांति और संतोष की गोद में पल कर सयानी हुई थी और तभी उसके लिए महाकवि की शैवाल-जाल-लिप्त कमलिनी वाली उपमा उपयुक्त हो सकी।
(क) गद्यांश के पाठ और लेखक के नाम लिखिए।
(ख) प्रकृत सुंदरता के लिए कृत्रिम श्रृंगार की जरूरत नहीं पड़ती। इसे एक उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस. गद्यांश का आशय लिखिए।
(घ) किंस महाकवि ने शकुंतला के सौंदर्य की उपमा किसके साथ क्या कहकर दी थी?
उत्तर-
(क) पाठ-कहानी का प्लॉट, लेखक-शिवपूजन सहाय।

(ख) प्रकृत, अर्थात् स्वाभाविक सौंदर्य में जो आकर्षण और मनोहरता होती है; वह कृत्रिम, अर्थात् बनावटी सौंदर्य में नहीं। बाग में खिले फूलों की सुंदरता के सामने कागज के रंग-बिरंगे फूलों की सुंदरता तो तुच्छ ही होती है। शकुंतला के – सौंदर्य की मनोरमता पेड़-पौधों और वन्य फूलों के बीच जितनी मोहक थी, उतनी राजा दुष्यंत के राजमहल के कृत्रिम सौंदर्य साधन मंडित परिवेश में कहाँ।

(ग) लेखक के अनुसार प्रकृत सौंदर्य कृत्रिम सौंदर्य की अपेक्षा ज्यादा मनोरम, मोहक और मनोहर होता है। इसीलिए शकुंतला वन-प्रदेश के प्राकृतिक सौंदर्यमंडित प्रसाधनों के बीच जितना अधिक सुंदर लगती थी, उतना राजमहल के कृत्रिम सौंदर्य प्रसाधनों से भूषित परिवेश के बीच नहीं। लेकिन लेखक के मतानुसार प्रकृत सुंदरता के लिए एक हद तक अच्छे खान-पान तथा रहन-सहन के भौतिक साधन भी जरूरी होते हैं अन्यथा उनके अभाव में प्रकृत सुंदरता कुम्हला जाती है। गरीबी की आँच में कुम्हलाई भगजोगनी की सुंदरता का यही हाल था।

(घ) महाकवि कालिदास ने शकुंतला के निष्कलुष सौंदर्य की उपमा शैवाल घास-मंडित जल में खिले सहज मनोरम कमल के फूल से दी है।

5. गाँव के लड़के अपने-अपने घर भरपेट खाकर जो झोलियों में चबेना लेकर खाते हुए घर से निकलते हैं, तो वह उनकी वाट जोहती रहती हैं-उनके पीछे-पीछे लगी फिरती है, तो भी मुश्किल से दिन में एक-दो मुट्ठी चबेना मिल पाता है। खाने-पीने के समय किसी के घर पहुँच जाती है तो इसकी डीढ लग जाने के भय से घरवालियाँ दुरदुराने लगती हैं। कहाँ तक अपनी मुसीबतों का बयान करूँ, भाई साहब! किसी की दी हुई मुट्ठी भर भीख लेने के लिए इसके तन पर फटा हुआ आँचल भी नहीं है। इसकी छोटी अँजुलियों में ही जो कुछ अँट जाता है, उसी से किसी तरह पेट की जलन बुझा लेती है। कभी-कभी एकाध फंका चना-चबेना मेरे लिए भी लेती आती है। उस समय हृदय दो टूक हो जाता है।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखिए।
(ख) इस गद्यांश का आशय लिखिए।
(ग) यहाँ किसकी गरीबी की दुर्दशा का क्या वर्णन किया गया है?
(घ) उस समय हृदय दो टूक हो जाता है-किसका और क्यों? इसे स्पष्ट कीजिए।
(ङ) कहाँ तक उसकी मुसीबतों का बयान करूँ, भाई साहब!-इस कथन में कौन, किसकी और किन मुसीबतों का बयान कर रहा है?
उत्तर-
(क) पाठ-कहानी का प्लॉट, लेखक-शिवपूजन सहाय।

(ख) इस गद्यांश में लेखक ने मुंशीजी और उनकी पुत्री भगजोगनी की आर्थिक बेहाली और दुर्दशा का बड़ा कारुणिक अंकन किया है। मुंशीजी की आर्थिक विपन्नता की यह स्थिति है कि उनकी एकमात्र पुत्री भगजोगनी पेट पालने के लिए भिक्षाटन की मुद्रा में डगर-डगर डोलती फिरती है। उसे घोर अपमान-उपेक्षा और तिरस्कार की स्थिति से गुजरकर किसी तरह अपने और अपने बाप के लिए भोजन के चंद दानों को जुटाने के प्रयास में पीड़ा की आग में तिल-तिलकर जलना पड़ता

(ग) यहाँ मुंशीजी और उनकी पुत्री की गरीबी की दुर्दशा का अंकन किया गया है। भाई दारोगाजी की मृत्यु के बाद मुंशीजी की गरीबी की दुर्दशा बर्णनातीत है। उनकी बेटी भिक्षाटन कर भोजन के चंद टुकड़ों को किसी तरह जुटा पाती है। इसके लिए कभी उसे झोलियों से चबाते खाते बच्चों के पीछे-पीछे भागते, तो कभी किसी के दरवाजे पर जाकर दुत्कार सहते, अपमान के विष यूंट पीकर प्रयासरत रहना पड़ता है। उसे भिक्षाटन से मिले चंद दानों को जुगाकर जमा करने के लिए आँचल के कपड़े भी मयस्सर नहीं हैं।

(घ) जिस समय भगजोगनी अपने भूखे-बाप के लिए बड़ी कठिनाई से प्राप्त भिक्षाटन के चंद दानें बचाकर लाती है उस समय उसके अभागे और दुर्भाग्यग्रस्त पिता की आँखों में करुणा, पीड़ा और ममता के आँसू उमड़ आते हैं।

(ङ) इस कथन में भगजोगनी के विपन्न पिता अपनी और अपनी पुत्री की आर्थिक दुर्दशा का बयान करते हैं। गरीबी की पीड़ा की आग में तिल-तिलकर कर जलती भगजोगनी भिक्षाटन करती है। उसके भिक्षाटन के क्रम में आई ये दो मुसीबतें बयान के काबिल नहीं हैं। इनमें मुसीबत यह है कि उसके पास भिक्षाटन में मिले चंद दानों को लपेटकर रखने के लिए फटे आँचल भी नहीं हैं और लाचारी की स्थिति में उसे अपनी अँजुली ही पसारनी पड़ती है।

6. सारे हिंदू-समाज के कायदे भी अजीब ढंग के हैं। जो लोग मोल-भाव करके लड़के की बिक्री करते हैं, वे भले आदमी समझे जाते हैं, और कोई गरीब बेचारा उसी तरह मोलभाव करके लड़की को बेचता है, तो वह कमीना समझा जाता है। मैं अगर आज इसे बेचना चाहता तो इतनी काफी रकम ऐंठ सकता था कि कम-से-कम मेरी जिंदगी तो जरूर ही आराम से कट जाती। लेकिन, जीते-जी हरगिज एक मक्खी भी न लूँगा। चाहे वह क्वाँरी रहे या सयानी होकर मेरा नाम न हँसाए।
(क) हिंदू-समाज के किन अजीब ढंग के कायदे की यहाँ चर्चा की गई है?
(ख) क्या ये कायदे आपकी दृष्टि में भी अजीब ढंग के हैं? टिप्पणी कीजिए।
(ग) समाज में लड़का बेचनेवाला भला और लड़की बेचनेवाला कमीना क्यों समझा जाता है?
(घ) इस गद्यांश का आशय लिखिए।
(ङ) पाठ और लेखक के नाम लिखिए।
उत्तर-
(क) यहाँ हिंदू-समाज के इन अजीब ढंग के कायदे की चर्चा की गई है कि मोल-जोल करके लड़के की बिक्री करनेवाला भला और गरीबी के कारण लड़की बेचनेवाला कमीना आदमी समझा जाता है।

(ख) मेरी दृष्टि में भी ये दोनों कायदे अजीब ढंग के हैं। यदि तिलक-दहेज लेकर लड़के बेचना भलापन है तो शादी-ब्याह के लिए लड़की बेचना कमीनापन क्यों है? तर्क की दृष्टि से लड़का और लड़की दोनों तो एक ही माँ-बाप की संतान होने के कारण समान स्तर के ही तो हैं। सबसे अजीब बात तो यह है कि . शादी-विवाह ऐसे पवित्र कार्य की संपन्नता में रुपये-पैसे को इतनी अहमियत देना ही नहीं चाहिए कि उसके लिए लड़की या लड़के बेचने की जरूरत आ जाए।

(ग) हिंदू-समाज की यह अजीब मान्यता है कि जो आदमी लड़के की शादी में तिलक-दहेज के रूप में जितनी मोटी रकम लड़की वाले से ले पाता है, वह आदमी उतना ही ज्यादा भला और गौरवशाली समझा जाता है। ऐसा इसलिए कि लड़के के तिलक-दहेज के रूप में मिले रुपये उस समाज में उसके आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक स्तर तथा मान-मर्यादा के सूचक माने जाते हैं। इसके विपरीत लड़की की शादी में लड़के वाले से रुपये लेकर लड़की की शादी करनेवाले को गरीब, निम्न, आर्थिक कोटि का और लड़की बेचवा’ कहा जाता है।

(घ) इस गद्यांश में लेखक ने हिंदू-समाज में व्याप्त तिलक-दहेज तथा लड़की बेचनेवाली दोनों प्रथाओं की आलोचना की है। लेखक की दृष्टि से ये दोनों प्रथाएँ त्याज्य है। शादी जैसे पवित्र संस्कार के आयोजन में लड़के या लड़की को बेचकर पैसे जुटाना घोर अमानवीय और घृणित कार्य है।

(ङ) पाठ-कहानी का प्लॉट. लेखक-शिवपूजन सहाय।

7. एक दिन वह था कि भाई साहब के पेशाब से चिराग जलता था और एक दिन यह भी है कि मेरी हड्डियाँ मुफलिसी की आँच से मोमबत्तियों की तरह घुल-घुलकर जल रही है।
(क) पाठ और इसके लेखक का नाम लिखिए।
(ख) ‘पेशाब से चिराग जलता था’-का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस गद्यांश का आशय लिखिए।
उत्तर-
(क) पाठ-कहानी का प्लॉट, लेखक-शिवपूजन सहाय।

(ख) ‘पेशाब से चिराग जलता था।’ कथन का अर्थ है कि दारोगाजी का उस क्षेत्र में काफी रोब-रुतबा था और सब जगह उनकी ऐसी धाक जमी हुई थी कि उनकी इच्छा के अनुकूल ही वहाँ के सारे कार्य संपन्न होते थे।

(ग) इस गद्यांश में लेखक के कथन का आशय यह है कि एक समय ऐसा था जबकि मुंशीजी के भाई दारोगा काफी संपन्न स्थिति में थे। उस क्षेत्र में लोग उनके रोब-रुतबे एवं शान-शौकत के कायल थे और वहाँ उनकी इच्छा के अनुकूल ही कार्यों का निष्पादन होता था। लेकिन, समय बदला और दारोगाजी की मृत्यु के बाद उनका परिवार आसमान से जमीन पर आ गया। उनके भाई मुंशीजी आर्थिक बेहाली और दुर्दशा के इस तरह शिकार हो गए कि उन्हें लोगों की दया और करुणा पर जीने के लिए मजबूर होना पड़ा।

8. आह! बेचारी उस उम्र में भी कमर में सिर्फ एक पतला-सा चिथड़ा लपेटे हुई थी, जो मुश्किल से उसकी लज्जा ढंकने में समर्थ था। उसके सिर के बाल तेल बिना बुरी तरह बिखरकर बड़े डरावने हो गए थे। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में एक अजीब ढंग की करुणा-कातर चितवन थी। दरिद्रता राक्षसी ने सुंदरता-सुकुमारी का गला टीप दिया था।
(क) इस गद्यांश का आशय लिखिए।
(ख) यहाँ किस बेचारी की, किस स्थिति का, क्या वर्णन किया गया
(ग) “दरिद्रता-राक्षसी ने सुंदरता सुकुमारी का गला टीप दिया था।”- इस कथन का आशय या अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) इस गद्यांश में लेखक शिवपूजन सहाय ने मुंशीजी की आर्थिक-विपत्रता के वर्णन के क्रम में गरीबी की पीड़ा की मार से बेहाल उनकी पुत्री भगजोगनी. की दुर्दशा का वर्णन किया है। सहज सुंदरी किशोरी भगजोगनी की दुर्दशा यह थी कि वस्त्र के नाम पर उसके तन पर लाज ढंकने के लिए एक फटा चिथड़ा ही था।

(ख) यहाँ मुंशीजी की पुत्री और स्वर्गीय दारोगाजी की फूल-सी कोमल सहज सुंदरी किशोरी भतीजी भगजोगनी की आर्थिक विपन्नता और बेहाली का बड़ा कारुणिक चित्रण किया गया है। उसके पिता मुंशीजी इतने असहाय, साधनहीन और विपन्न स्थिति में थे.कि वे अपनी इकलौती किशोरी पुत्री को तन ढकने के लिए पर्याप्त कपड़े और बालों में डालने के लिए तेल की व्यवस्था करने की स्थिति में भी नहीं

(ग) इस कथन का मतलब यह है कि गरीबी की मार और पीड़ा का भगजोगनी इस कदर शिकार हो गई थी कि साधनों की कमी के कारण उसकी सारी स्वाभाविक कायिक कोमलता और सुंदरता विनष्ट हो चुकी थी। मानो गरीबी की राक्षसी ने उस सुकुमार किशोरी की कोमलता और सुदंरता का वध कर दिया हो। उसके तन पर कपड़े के नाम पर चिथड़े ही लिपटे रहते थे और तेल के बिना उसके. सिर के सुखे बाल बड़े डरावने लगते थे।


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