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BSEB Class 9 Hindi Godhuli Chapter 6 अष्टावक्र Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 9th Hindi Godhuli Chapter 6 अष्टावक्र Book Answers |
Bihar Board Class 9th Hindi Godhuli Chapter 6 अष्टावक्र Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 9th |
Subject | Hindi Godhuli Chapter 6 अष्टावक्र |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 9th Hindi Godhuli Chapter 6 अष्टावक्र Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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अष्टावक्र क्या-क्या बेचा करता था Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 1.
इस रेखाचित्र के प्रधान पात्र को लेखक ने अष्टावक्र क्यों कहा है?
उत्तर-
उसके पैर कवि की नायिका की तरह बलखाते थे और उसका शरीर हिंडोले की तरह झूलता था। इसलिए लेखक ने उसे अष्टावक्र कहा है।
अष्टावक्र Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 2.
कोठरियाँ कहाँ बनी हुई थी?
उत्तर-
खजांचियों की विशाल अट्टालिका को जानेवाले मार्ग पर सौभाग्य से चिरसंगी दुर्भाग्य की तरह अनेक छोटी-छोटी, अंधेरी और बदबूदार कोठरियाँ बनी हुई थीं।
Ashtavakra Ki Kahani Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 3.
अष्टावक्र कहाँ रहता था?
उत्तर-
अष्टावक्र कुएँ की जगत पर रहता था।
अष्टावक्र कहां रहता था Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न: 4.
अष्टावक्र के पिता कब चल बसे थे?
उत्तर-
अष्टावक्र के पिता से परिचय होने से पहले ही उसके पिता चल बसे थे।
Ashtavakra Kahan Rahata Tha Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 5.
चिड़चिड़ापन अष्टावक्र की मां का चिरसंगी क्यों बन गया?
उत्तर-
यद्यपि असमय से आ जानेवाले बुढ़ापे के कारण अष्टावक्र की मां का शरीर प्रायः शिथिल हो चुका था, वह कुछ लंगड़ाकर भी चलती थी। निरंतर अभावों से जूझते-जूझते चिड़चिड़ापन भी उसका चिरसंगी बन चुका था।
अष्टावक्र के पिता का नाम Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 6.
अष्टावक्र: क्या-क्या बेचा करता था?
उत्तर-
अष्टावक्र कचालू की चाट, मूंग की दाल की पकौड़ियाँ, दही के आलू और पानी के बतासे बेचा करता था।
Rishi Ashtavakra Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 7.
चार की संख्या अष्टावक्र के स्मृति पटल पर पत्थर की रेखा की तरह अंकित क्यों हो गई थी?
उत्तर-
माँ ने अष्टावक्र को समझाया था-पैसे के चार बतासे देना, चार पकौड़ी
दना और चार चम्मच आलू देना। इस चार की संख्या उसके मानस-पटल पर पत्थर की रेखा की तरह अंकित थे।
अष्टावक्र ऋषि Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 8.
माँ माथा क्यों ठोका करती थी?
उत्तर-
अष्टावक्र की मां अपने माथा में यूँ का स्थान बताकर कहती की देख तो। अष्टावक्र दार्शनिक की तरह गंभीरता से इधर-उधर देखता और जवाब देता, ‘माँ! यहाँ तो बाल है तोड़ दूँ? मां माथा ठोक लेती थी।
अष्टावक्र कौन थे Bihar Board Class 9 Hindi प्रश 9.
गर्मी के दिनों में माँ-बेटा कहाँ सोया करते थे?
उत्तर-
गर्मी के दिनों में माँ-बेटा कुएँ की जगत पर सोया करते थे।
ऋषि अष्टावक्र Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 10.
अष्टावक्र ‘हाय माँ’ कहकर वहीं क्यों लुढक गया?
उत्तर-
अष्टावक्र ने पैर जलने के भय से कुछ ऊँचे से जो मुट्ठी भर आलू बेसन कड़ाही में छोड़े तो तेल सीधा छाती पर आया। तब ‘हाय माँ’ कहकर वह वहीं लुढ़क गया।
अष्टावक्र की कहानी Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 11.
माँ के शुष्क नयन सजल क्यों हो उठे?
उत्तर-
एक दिन अष्टावक्र ने माँ से कहा कि माँ चाट तू बेचा कर मुझे लडके मारते हैं। यह बात सुनकर माँ ने अपने बेटे को कुछ इस तरह देखा कि उसके शुष्क नयन सजल हो उठे।
Ashtavakra Ki Kahani In Hindi Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 12.
अष्टावक्र विमूढ़ सा क्यों बैठा था?
उत्तर-
अष्टावक्र की मां के प्राण-पखेरू उड़ जाने के बाद भी जब विश्वास नहीं हुआ तो एक डाक्टर ने बताया कि उसकी मां मर गई है तो वह विमूढ़ सा बैठ गया।
प्रश्न 13.
कुलफीवाले ने ईश्वर को धन्यवाद क्यों दिया?
उत्तर-
अष्टावक्र की मां मर गई और वह जिस अव्यवस्थित अवस्था में अस्पताल में कराह था फिर वह भी मर गया तो कुलफीवाले ने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि आपने अष्टावक्र को अपने पास बुलाकर सुख की नींद सोने का अवसर दिया।
प्रश्न 14.
इस पाठ का सबसे मार्मिक प्रसंग कौन है और क्यों?
उत्तर-
इस पाठ में सबसे मार्मिक प्रसंग दो जगह आये हैं। एक जगह जब अष्टावक्र की माँ मर गई है माँ की मृत्यु पर वह कितना व्यथित विकल है कि वह यह मानने को तैयार नहीं है कि अगर उसकी मां मर गई है तो वह लौटकर नहीं आयगी। दूसरी जगह जब वह खुद दर्द से कराह रहा है एक कुलफी वाला उसको अस्पताल पहुंचाता है। वहाँ उसका अपना कोई नहीं है उस परिस्थिति में वह दम तोड़ता है। यह बड़ा ही मार्मिक प्रसंग है।
प्रश्न 15.
इस रेखाचित्र का सारांश लिखें।
उत्तर-
पाठ का सारांश देखें।
प्रश्न 16.
माँ की मृत्यु के पश्चात् अष्टावक्र की मानसिक स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर-
माँ की मृत्यु के बाद अष्टावक्र की मानसिक स्थिति एकदम बदल गई है। वह हतप्रभ है। कई बार उसकी बुद्धि जाग्रत होती है, लेकिन फिर शांत हो जाती है वह पागल सा हो जाता है।
नीचे लिखे गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें।
1. खजांचियों की विशाल अट्टालिका को जानेवाले मार्ग पर सौभाग्य के
चिरसंगी दुर्भाग्य की तरह अनेक छोटी-छोटी, अँधेरी और बदबूदार कोठरियाँ बनी हुई थीं। उन्हीं में से एक में विचित्र व्यक्ति रहता था जिसे संस्कृत पढ़े-लिखे लोग अष्टावक्र कहा करते थे। उसके पैर कवि की नायिका की तरह बलखाते थे और उसका शरीर हिंडोले की तरह झूलता था। बोलने में वह साधारण आदमी के अनुपात से तिगुना समय लेता। वर्ण श्याम, नयन निरीह, शरीर एक शाश्वत खाज से पूर्ण, मुख लंबा
और वक्र, वस्त्र कीट से चिकटे, यह था उसका व्यक्तित्व और इसमें यदि कुछ कमी रह जाती तो उसे शीनके-शडाके पूरा कर देते। इस आखिरी बात के लिए उसकी माँ अक्सर उसकी लानत-मलामत करती थी।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) ‘अष्टावक्र’ किस भाषा का शब्द है? उसका अर्थ स्पष्ट करें।
(ग) अष्टावक्र कहाँ रहता था?
(घ) अष्टावक्र के शारीरिक स्वरूप का परिचय दें।
(ङ) अष्टावक्र की माँ किस बात के लिए उसकी लानत-मलामत ।किया करती थी?
उत्तर-
(क) पाठ-अष्टावक्र, लेखक-विष्णु प्रभाकर।
(ख) अष्टावक्र संस्कृतभाषा का शब्द है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है विकलांग अर्थात् टेढ़ा-मेढ़ा शारीरिक स्वरूप वाला। अर्थात् जिस व्यक्ति के शरीर के अंग और हिस्से टेढ़े-मेढ़े शक्ल के असामान्य होते है उस व्यक्ति को अष्टावक्र कहा जाता है। अष्टावक्र के नाम से एक बड़े ही बुद्धिमान ऋषिपुत्र भी हुए हैं।
(ग) अष्टावक्र शहर की अट्टालिकाओं की ओर जानेवाले मार्ग पर बनी हुई एक छोटी अँधेरी और बदबूदार कोठरी में अपनी माँ के साथ रहता था।
(घ) अष्टावक्र विकलांग था। उसके पैर कवि की नायिका की तरह बलखाने वाले थे। उसका शरीर हिंडोले की तरह झूलता था। उसका वर्ण श्याम था। उसकी आँखें बेबस थीं। उसका मुख लंबा और टेढ़ा था। उसका सारा शरीर खाज दादा से भरा हुआ था। बोलने में वह सामान्य आदमी के अनुपात से तिगुना समय ले लेता था।
(ङ) अष्टावक्र का सम्पूर्ण व्यक्तित्व निर्विवाद रूप से असामान्य था। यदि इस असामान्यता में कुछ कमी भी रही होती तो उसे शीनके-शडाके पूरा कर देने के लिए काफी थे। इसी शीनके-शडाके के पूरा कर देने की आखिरी बात के लिए अष्टावक्र की माँ अक्सर उसकी लानत-मलामत किया करती थी।
2. यद्यपि असमय से आ-जानेवाले बुढ़ापे के कारण उसकी माँ का शरीर प्रायः शिथिल हो चुका था, वह बहुत लंगड़ाकर भी चलती थी और निरंतर अभावों से जूझते-जूझते चिड़चिड़ापन भी उसका चिरसंगी बन चुका था, पर बेटे से मुक्ति पाने की बात उसके मन में कभी नहीं उठी। वह विधवा थी इसलिए उसके वस्त्र काले-किष्ट ही नहीं थे, कटे हुए भी थे जिनमें गरीबी ने पैबंद लगाने के लिए कोई स्थान नहीं छोड़ा था। उसके सिर के बाल सदा उलझे रहते थे। कभी-कभी खुजलाने से तंग आकर जब वह अष्टावक्र को जूं दिखाने के लिए बैठाती तो अच्छा-खासा मनोरंजक दृश्य बन जाता था।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) अष्टावक्र की माँ का चिरसंगी कौन था और वह किस परिस्थिति में बना हुआ था?
(ग) अष्टावक्र की माँ असमय में ही बूढ़ी हो गई थी। उसके क्या लक्षण प्रकट थे?
(घ) अष्टावक्र की माँ के वैधव्य का पता कैसे चलता था?
(ङ) अष्टावक्र और उसकी माँ के बीच कब अच्छा-खासा मनोरंजक दृश्य बन जाता था?
उत्तर-
(क) पाठ-अष्टावक्र, लेखक का नाम-विष्णु प्रभाकर।
(ख) अष्टावक्र की माँ के चिरसंगी के रूप में उसका बुढ़ापा, उसके शरीर की शिथिलता और उसका चिड़चिड़ापन था। बुढ़िया का यह चिरसंगी इस बुढ़ापे में अब शाश्वत रूप में बना हुआ था। अर्थात जब तक उसका प्यारा बेटा उसके सामने जीवित खड़ा है तब तक उसके चिरसंगी के बने रहने की स्थिति रहेगी।
(ग) अष्टावक्र की माँ की असामायिक वद्धा हो जाने का लक्षण यह था कि उसका शरीर करीब-करीब शिथिल और सुस्त हो चुका था। पैर के रुग्न होने के कारण वह कुछ लंगड़ा कर चलती थी और वह बराबर अभावों से जूझते रहने के कारण चिड़चिड़ापन का शिकार हो गई थी।
(घ) अष्टावक्र की माँ के वैधव्य का पता उसकी शारीरिक अवस्था, उसकी मानसिक स्थिति और उसके वस्त्रों के स्वरूप और स्थिति को देखकर ही चल जाता था। उसके वस्त्र कालेकिष्ट होने के साथ-साथ फटे हुए भी थे। उसके सिर के बाल सूखे, कंड़े और उलझे बिखरे रहते थे।
(ङ) जब कभी अष्टावक्र की माँ अष्टावक्र को खोज-खुजाने से तंग आकर उसे नँ दिखाने के लिए बैठती तब वह अष्टावक्र को उँगली से वह स्थान बताकर वहाँ देखने के लिए कहती तो उस समय माँ और बेटे के बीच एक अच्छा खासा मनोरंजक दृश्य बन जाता।
3. तब माँ माथा ठोक लेती है और अष्टावक्र महाराज अपने वक्रमुख को ‘ और भी वक्र करके या तो कुएँ की जगत पर जा बैठते या फिर वहीं
बैठकर आने-जाने वालों को ताकने लगते। उस समय उसे देखकर जड़ भरत या मलूकदास की याद आ जाना स्वाभाविक था। वास्तव में वह उसी अवतार-परंपरा का रत्न था। नींद खुलते ही वह पैरों को नीचे लटकाकर और हाथों को गोदी में रखकर कुछ इस प्रकार बैठ जाता था, जिस प्रकार एक शिशु जननी के अंक में लेट जाता है। माँ आकर उसे नित्यकर्म की याद दिलाती और जब कई बार के कहने पर भी वह न उठता तो तंग आकर उसका मुँह ऐसे रगड़-रगड़ धोती जैसे वह कोई अबोध शिशु हो। उसके बाद उसे कलेउ मिला था जिसमें प्रायः रात की बची हुई रोटी या खोमचे की बची हुई चाट रहती थी।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) माँ के माथा ठोक लेने के उपरांत अष्टावक्र क्या करने लगता?
(ग) लेखक को कब और क्यों जड़ भरत या मलूक दास की याद आ जाती?
(घ) नींद खुल जाने पर अष्टावक्र कौन-सी शारीरिक क्रिया करता?
(ङ) अष्टावक्र की माँ क्यों तंग आ जाती थी और उस मानसिक स्थिति में वह कौन-सा कार्य करने लगती?
उत्तर-
(क) पाठ-अष्टावक्र, लेखक-विष्णु प्रभाकर।
(ख) अष्टावक्र की माँ जब अष्टावक्र की शारीरिक और मानसिक स्थिति से तंग आकर माथा ठोक लेती तब उस समय अष्टावक्र अपने टेढ़े मुख को और भी टेढ़ा करके या तो कुएँ की जगत पर जाकर बैठ जाता या वहीं बैठकर उस रास्ते से गुजरनेवाले लोगों को असामान्य ढंग से देखने लगता।
(ग) अष्टावक्र की माँ उसकी मानसिक स्थिति को देखकर जब माथा ठोक लेती तब अष्टावक्र की उस समय की शारीरिक मुद्रा और गतिविधि को देखकर लेखक को जड़ भरत या मलूक दास की याद आ जाती। इसका कारण यह था कि अष्टावक्र की उस समय की शारीरिक मुद्रा जड़ भरत या मलूक दास की शारीरिक मुद्रा से साम्य रखनेवाली थी।
(घ) जब अष्टावक्र की नींद खुल जाती थी तब वह पैरों को नीचे लटकाकर और हाथों को गोदी में रखकर इस रूप और ढंग से बैठ जाता था मानो कोई शिशु अपनी जननी की गोद में पड़ा हुआ हो।
(ङ) अष्टावक्र नींद खुलने के बाद अपने पैर और हाथों को समेटकर माँ की गोद में लेटे शिशु के रूप में मालूम होता तो उस समय उसकी माँ आकर उसे नित्य कर्म से निबटने के लिए बार-बार कहती। अष्टावक्र कई बार माँ के कहने पर जब नहीं उठता, तब उसकी माँ प्रतिक्रिया के रूप में तंग आ जाती। उस मानसिक स्थिति में वह अष्टावक्र का मुँह खूब रगड़-रगड़कर धोती मानो वह कोई अबोध शिशु हो।
4. संध्या को उसके लौटने के समय माँ उसकी बाट जोहती बैठी रहती। उसपर निगाह पड़ते ही वह ललककर उठती। पहले उसका थाल सँभालती। फिर पानी भरे लोटे में से पैसे निकालकर गिनती। उस समय माथा ठोक लेना उसका नित्य का धर्म बन गया था। लगभग डेढ़ रुपये की बिक्री का समान ले जाकर वह सदा दस-बारह आने के पैसे लेकर लौटता था। माँ की डाँट-डपट या सिखावन उसके अटल नियम को कभी भंग नहीं कर सकी। वैसे कभी-कभी उसकी बुद्धि जाग्रत हो उठती थी। उदाहरण के लिए, एक दिन उसने माँ से कहा-“माँ! चाट तू बेचा कर। मुझे लड़के मारते हैं।”
(क) पाठ तथा लेखक के नाम लिखें।
(ख) अष्टावक्र की माँ संध्या के समय अपने पुत्र की बाट किस रूप में जोहती और क्यों जोहती?
(ग) अष्टावक्र के लौटने के समय उसकी माँ का माथा ठोक लेना, उसका नित्य का धर्म क्यों बन गया था?
(घ) यहाँ लेखक ने अष्टावक्र के किस नियम को अटल नियम की संज्ञा दी है और क्यों दी है?
(ङ) इस गद्याांश का आशय लिखिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-अष्टावक्र, लेखक का नाप-विष्णु प्रभाकर
(ख) अष्टावक्र अपनी माँ के द्वारा दिए गए पैसे और की गई व्यवस्था के तहत हर दिन दिनभर खोमचा लगाकर चाट बेचा करता था और संध्या के समय वह कार्य और पैसे समेटकर माँ के पास लौटा करता। अष्टावक्र की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि माँ उसकी हर गतिविधि से मुँह फेरकर निश्चितता की साँस लेती। इसीलिए, वह शाम को रोज उत्सुकता के साथ अष्टावक्र के लौटने की प्रतीक्षा करती।
(ग) अष्टावक्र की माँ अष्टावक्र को डेढ़ रुपये की पूँजी लगाकर बिक्री के समान के साथ चाट बेचने के लिए उसे घर के बाहर भेजती, लेकिन अष्टावक्र अपने भोलेपन के कारण रोज दस-बारह आने बिक्री के पैसे लेकर शाम में लौटता। उसकी माँ इस बात के लिए रोज समझाती और डाँट-डपट करती। इसके बावजद अवक के बिक्री के पैसे के इस रूप में लौटाने के नियम में कोई अंतर नहीं पड़तः सनः । कारण वह बेचारी नित्य माथा ठोककर रह जाती और इस रूप में उसका यह माथा ठोंक लेना उसका नित्य का धर्म बन गया था।
(घ) यहाँ लेखक ने अष्टावक्र द्वारा डेढ़ रुपये की पूँजी के बदले में सदा दस-बारह आने पैसे के लौटाने के नियम को अटल नियम की संज्ञा दी है। यह नियम इसलिए अटल कहा गया कि माँ की डाँट के बावजूद पूँजी की आधी राशि लौटाने के उसके नियम में कभी कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
(ङ) इस गद्यांश में लेखक ने अष्टावक्र की मानसिक अपरिपक्वता और सोच-विचार करने की अयोग्यता पर प्रकाश डाला है। अष्टावक्र की माँ रोज अपने ‘पुत्र को डेढ़ रुपये की पूँजी लगाकर चाट का समान तैयार कर देती और उसे बेचने के लिए भेज देती। अष्टावक्र संध्या समय रोज डेढ़ रुपये की पूँजी की आधी राशि ही बिक्री के पैसे के रूप में लेकर लौटता। उसकी माँ उसे रोज डाँट-फटकार करती और विक्रय-कार्य में सुधार लाकर घाटे की बात के संबंध में समझाती। लेकिन अष्टावक्र के विक्रय-कार्य की पद्धति पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। लेखक ने उसे अष्टावक्र के अटल नियम की संज्ञा दी है।
5. उसी रात को कुल्फीवाले ने सुना, अष्टावक्र बार-बार माँ-माँ पुकार रहा है। उस पुकार में सदा की तरह सरल विश्वास नहीं है, एक कराहट है। कुल्फीवाले ने करवट बदल ली, पर इस ओर कर्ण-रंध्र में वह कराहट और भी कसक उठी। वह लेट न सका। धीरे-धीरे उठा और झंझलाता हुआ वहाँ आया जहाँ अष्टावक्र छटपटा रहा था। देखकर जाना उसके पेट में तीव्र दर्द है। यहाँ तक कि देखते-देखते उसे दस्त शुरू हो गए। अब तो कुल्फीवाला घबरा उठा। दौड़ा हुआ खजाँची के पास पहुंचा। वे पहले तो चिनचिनाए, फिर अस्पताल फोन किया। कुछ देर बाद गाड़ी आई और अष्टावक्र को लाद कर ले गई। उसके दो घंटे बाद कुल्फीवाले ने फिर उसे आइसोलेशन वार्ड में दूर से देखा। वह अकेला था। उसकी कराहट बढ़ती जा रही थी। प्राण खिंच रहे थे। वह लगभग मूर्च्छित था। कभी-कभी उसकी जीभ होठों से सम्पर्क स्थापित करने की चेष्टा करती थी। शायद वह प्यासा था।
(क) पाठ तथा लेखक के नाम लिखें।
(ख) अष्टावक्र की बार-बार माँ की पुकार में कुल्फीवाले ने क्या महसूस किया? कुल्फीवाले पर उसका क्या प्रभाव पड़ा?
(ग) कुल्फीवाला क्यों घबरा उठा और उसने उस घबराहट में क्या किया?
(घ) अंतिम समय में अष्टावक्र की क्या दशा थी?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का सारांश/आशय लिखिए।
उत्तर-
(क) पाठ-अष्टावक्र, लेखक का नाम-विष्णु प्रभाकर।
(ख) अपनी बीमारी की स्थिति में उस रात में अष्टावक्र बार-बार माँ-माँ की पुकार लगा रहा था। कुल्फीवाले ने उसे सुना और यह महसूस किया कि आज अष्टावक्र की माँ की पुकार के उस स्वर में पहले की तरह सरल विश्वास का भाव छिपा हुआ नहीं है, बल्कि उस पुकार में एक प्रकार की कराह और घबराहट है। कुल्फीवाले को नींद नहीं आई। उसके कानों में भी कराह और कसक उठ गई।
(ग) कुल्फीवाला सो नहीं सका। वह अष्टावक्र के पास जा पहुंचा। अष्टावक्र वहाँ छटपटा रहा था। वह पेट-दर्द और फिर दस्त से परेशान था। यह देख कुल्फीवाला घबरा उठा। वह उस घबराहट की स्थिति में दौड़ता हुआं खजाँची के पास पहुंचा और उनसे अस्पताल फोन करवाया।
(घ) जीवन के अंतिम क्षणों में अष्टावक्र की बड़ी दयनीय दशा थी। वह अस्पताल में अकेला पडा था। उसकी कराह बढ़ती जा रही थी। उसके प्राण खिंच रहे थे। वह अर्द्ध मूर्छितावस्था में था। उसकी जीभ होंठों से सम्पर्क करने के लिए लगातार चेष्टा कर रही थी। शायद वह बहुत प्यासा था।
(ङ) इस गद्यांश में लेखक ने अष्टावक्र के जीवन के अंतिम क्षणों की बेहाली का वर्णन किया है। अष्टावक्र रात्रि के समय बार-बार माँ को पुकार रहा था। उसकी पुकार के स्वर में दर्दनाक कराह थी। वह पेट-दर्द और दस्त की पीड़ा से बुरी तरह पीड़ित था। कुल्फीवाले के प्रयास से उसे अस्पताल पहुंचाया गया। वहाँ उसकी पीड़ा और बेचैनी बढ़ती ही चली जा रही थी। वह कुछ होश में रहकर भी बहोश था! उसकी जीप प्यास से सूख रही थी।
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