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Friday, July 1, 2022

BSEB Class 9 Hindi Godhuli Chapter 12 कुछ सवाल (पाब्लो नेरुदा) Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 9th Hindi Godhuli Chapter 12 कुछ सवाल (पाब्लो नेरुदा) Book Answers

BSEB Class 9 Hindi Godhuli Chapter 12 कुछ सवाल (पाब्लो नेरुदा) Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 9th Hindi Godhuli Chapter 12 कुछ सवाल (पाब्लो नेरुदा) Book Answers
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Bihar Board Class 9th Hindi Godhuli Chapter 12 कुछ सवाल (पाब्लो नेरुदा) Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 9th
Subject Hindi Godhuli Chapter 12 कुछ सवाल (पाब्लो नेरुदा)
Chapters All
Provider Hsslive


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Bihar Board Class 9 Hindi कुछ सवाल Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
समुद्र के खारेपन तथा नदियों के मीठेपन की इंगित कर कवि ने प्रकृति के किस सत्य से परिचित कराना चाहता है?
उत्तर-
उपरोक्त पंक्तियों में समुद्र के खारेपन और नदियों के मीठेपन की ओर इशारा करते हुए कवि ने प्रकृति की विशेषताओं एवं उसके विविध रूप-गुणों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। नदियों का उद्गम स्थल भी प्रकृति ही है और समुद्र का भी रूप प्रकृति द्वारा ही प्रदत्त है। मीठापन और खारापन के माध्यम से प्रकृति के दोनों रूपों का दर्शन हमें कवि की कविता में होता है। सृजन और संहार के बीच ही प्रकृति का संतुलन कायम है। यही प्रकृति का सत्य है। एक तरफ सृजन रूप दृष्टिगत होता है तो दूसरी तरफ विनाश रूप भी। प्रकृति का यह निजी गुण है। उसकी अपनी खास विशेषता है। यह प्रकृति का सत्य स्वरूप है।

प्रकृति के माध्यम से मनुष्य के जीवन के यथार्थ सत्य को भी उद्घाटित किया गया है। मानव जीवन भी सुख-दुख के बीच पलता-बढ़ता और शून्य में विलीन हो जाता है। मानव जीवन प्रकृति की तरह ही है। दोनों में साम्यता है। दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।

प्रश्न 2.
कवि अपने सवालों के माध्यम से प्रकृति में होने वाली दो असमान घटनाओं-विध्वंस और निर्माण को साथ दिखलाता है। पठित-कविता से कुछ उदाहरण देकर इसे अपने शब्दों में समझाइए।
उत्तर-
1. ऋतुओं को कैसे मालूम पड़ता है कि अब पोल के बदलने का वक्त आ गया इन पंक्तियों में कवि ने प्रकृति के परिवर्तल के रूपों को दर्शाया है। ही अपने आवरण में परिवर्तन लाकर स्वरूप बदल लेती है। इन पंक्तियों में प्रकृति के परिवर्तन और गतिमय जीवन पर प्रकाश डाला गया है। जड़ और चेतन के स्वरूप में जो बदलाव आता है उसके पीछे प्रकृति का हाथ है।

2. जाड़े इतने सुस्त-रफ्तार क्यों होते हैं
और दूसर कटाई की घास इतमी चंचल उड्डीयमान?

इन पंक्तियों में भी प्रकृति के परिवर्तित रूप का दर्शन होता है। एक तरफ जाड़े की ऋतु में जीव-जंतुओं की गति में शिथिलता आ जाती है जबकि दूसरी ओर घास जो निर्जीव पदार्थ है उसके स्वरूप में जल्दी-जल्दी बदलाव दिखता है। यह भी तो प्रकृति के सृजन रूप ही है। एक तरफ घास कटाई होती है और वह पुनः जल्दी-जल्दी बढ़कर अपनी वृद्धि का दर्शन कराता है। उसमें चंचलता का दिग्दर्शन होता है यह प्रकृति की ही विशेषता तो है।

3. कैसे जानती हैं जड़ें
कि उन्हें उजाले की ओर चढ़नी ही है?
और फिर बयार का स्वागत
‘ऐसे रंगों और फूलों से करना?

इन पंक्तियों में भी सृजन-संहार प्रकृति के दोनों रूपों का दर्शन होता है। जो जड़ पदार्थ है उनमें भी गतिमयता आ जाती है और लगता है कि उन्हें भी उजाले की ओर चढ़ना है यानि विकसित होना है। बयार भी तो नए रूप रंग में दस्तक दे रही है क्योंकि रंगों और फूलों से सजी-धजी धरती बयारों के स्वागत में प्रतीक्षारत है। यहाँ प्रकृति के आंतरिक सौंदर्य की व्याख्या की गयी है।

4. क्या हमेशा वही वसंत होता है,
वही किरदार फिर दुहराता हुआ?

इन पंक्तियों में भी वसंत के भिन्न-भिन्न रूपों की चर्चा है। भूतकालीन वसंत अब लौट नहीं सकता। वर्तमान का वसंत न भूत वाला बन सकता है न भविष्य के समान हो सकता है। ठीक भविष्य का भी वसंत अपने रूप-रंग में दृष्टिगत होगा? यही प्रकृति की विभिन्नता और विशेषता है।

इस प्रकार सृजन और संहार के बीच प्रकृति संतुलन रखते हुए अपनी निजी विशेषताओं को आंतरिक और वाह्य रूपों में सौंदर्य और परिवर्तन के द्वारा नित नयापन का दर्शन करती है।

प्रश्न 3.
इस कविता को पढ़कर आपको क्या संदेश मिला?
उत्तर-
‘कुछ सवाल’ पाब्लो नेरुदा की चर्चित कविता है। इस कविता में कवि ने कुछ प्रकृति संबंधी सवाल उठाए हैं जिनका जबाब भी उसी सवाल में निहित है। इस प्रकार यह कविता प्रकृति के विविध रूपों, गुणों एवं विशेषताओं से युक्त कविता है। इस कविता में प्रकृति के साथ-साथ मानवीय संबंधों पर भी सम्यक प्रकाश डाला गया है। प्रकृति और मनुष्य के बीच रूपों, गुणों एवं कर्म के आधार पर जो संबंध स्थापित हुए है उसकी भी चर्चा कवि ने की है।

इस कविता के द्वारा प्रकृति में होनेवाली दो असमान घटनाओं-विध्वंस और निर्माण को साथ-साथ दिखाते हुए मनुष्य की अदम्य जिजीविषा में विश्वास की झलक भी कवि कराता है। कवि को पक्का विश्वास है कि अंततः जड़ों को उजाले की ओर ही चढ़ना है। बयार का स्वागत अनेक रंगों और फूलों से करना है। यहाँ प्रकृति की बाह्य और आंतरिक सौंदर्य का दर्शन होता है। इस कविता द्वारा प्रकृति की विविधता का दर्शन होता है। इस कविता द्वारा प्रकृति के परिवत्तनशील रूपों की झलक देखने को मिली है। ‘कुछ सवाल’ नामक कविता अपने आप में पूर्ण कविता है जो सवाल तो उठाती ही है जवाब के रूप में स्वयं में छिपे समाधान का भी बिंब उभारती है।

कवि ने ‘कुछ सवाल’ शीर्षक कविता के द्वारा प्रकृति और मनुष्य के बीच के संबंधों को भी दर्शाता है। वह जड़-चेतन के स्वरूपों गुणों की चर्चा करते हुए किसी परम सत्ता की ओर भी ध्यान आकृष्ट करता है। जिस प्रकार प्रकृति किसी न किसी परम सत्ता का प्रत्यक्ष चाहे परोक्ष हाथ है।

दूसरी ओर मनुष्य भी तो प्रकृति का ही एक अंग है। यह चेतनस्वरूप है। इसके बीच भी कई प्रकार के परिवर्तन विद्यमान हैं। मनुष्य चेतना संपन्न प्राणी है अतः इसके भीतर अदम्य जिजीविषा पलती रहती है। वह इसी जिजीविषा के बल पर विकास के पथ पर कदम बढ़ाता है। प्रकृति में विविधता, विशेषताएँ हैं तो मनुष्य में भी अदम्य उत्साह, उमंग विद्यमान है।

सजन और संहार के दोनों रूपों का सम्यक् चित्रण करते हुए कवि ने प्रकृति की इन असमान घटनाओं से हमें परिचित कराया है।
दूसरी ओर मनुष्य के भीतर पल रही अदम्य जिजीविषा के प्रबल विश्वास को भी रेखांकित किया है।

जड़ों को उजाले की ओर चढ़ना है यानि स्वयं को विकसित रूप में लाना है। बयार और रंग-फूल भी तो प्रकृति वाह्य और आंतरिक सौंदर्य हैं। इनका भी ज्ञान इस कविता द्वारा होता है।

प्रश्न 4.
कवि ने प्रकृति को शक्ति कहा है-“ऋतुओं को कैसे मालूम पड़ता है कि अब पोल के बदलने का वक्त आ गया है।” इस पंक्ति में प्रकृति के किस प्रकार के बदलाव को कवि ने प्रकट करना चाहा है?
उत्तर-
‘कुछ सवाल’ नामक कविता में कवि ने प्रकृति में जो बदलाव या परिवर्तन होता है, उसका सबसे पहले ज्ञान ऋतुओं को हो जाता है। इन पंक्तियों में प्रकृति के वाह्य रूप में जो परिवर्तन दिखाई पड़ता है उसकी गंध सबसे पहले ऋतुओं को होती है क्योंकि वसंत ऋतु में पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं के जीवन में एक नया उमंग, आनंद दृष्टिगत होता है। सारे पेड़ों के पुरातन पत्ते झड़ जाते हैं और नयी-नयी कोंपलें निकलने लगती हैं। इस प्रकार मौसम के बदलते ही प्रकृति का निजी रूप भी बदल जाता है।

ठीक दूसरी ओर जब ग्रीष्म का महीना आता है तब पेड-पौधे शष्कता का रूप-दर्शन कराते हैं। पशु-पक्षी भी तीखी धूप में बेचैनी का अनुभव करते हैं। मौसम के अनुसार बदलते आवरण या बाह्य रूप-सज्जन के रंग में परिवर्तन होने से भी हमें प्रकृति के बदलाव का ज्ञान हो जाता है।

उपरोक्त वर्णन तो प्रकृति के सामान्य बदलाव का हुआ लेकिन कवि प्रकृति के विशिष्ट बदलाव की यहाँ चर्चा करता है। मौसम के अनुसार प्रकृति के बाह्य और आंतरिक रूपों में मौसम के अनुसार रूप परिवर्तन तो दिखाई पड़ता ही है लेकिन प्रकृति अपने रूप में जो विशिष्ट परिवर्तन करती है वह है सृजन और संहार का रूप। प्रकृति का अकाट्य नियम है कि वह पुरातन को नवीन साँचे में ढालकर नूतन-आवरण में प्रस्तुत करती है। कहने का मूल आशय है कि जब प्रकृति का रूप पुरातन को प्राप्त कर लेता है, निष्क्रियता को प्राप्त कर लेता है तब प्रकृति नए सृजन द्वारा नया स्वरूप गढ़ती है। यही पुरातन सत्य है।

प्रकृति के इस मूल रूप में बदलाव की ओर कवि ने ध्यान आकृष्ट किया है। प्रकृति का यह कर्म निरंतर अबाध गति से चलता रहता है। सृजन और संहार के बीच संतुलन ही प्रकृति का न्यायसंगत न्याय कहा जा सकता है।

एक तरफ विध्वंस के द्वारा जीर्ण-शीर्ण रूप का विनाश हो जाता है और नए निर्माण में प्रकृति संलग्न हो जाती है।
ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी अपनी अदम्य जिजीविषा में विश्वास रखते हुए विकास पथ पर अग्रसर होता है। मनुष्य की यही जिजीविषा जीने और कुछ करने के लिए विवश करती है और प्रकृति के साथ मनुष्य का जीवन-मरण सनातन रूप से जड़ा रहता है।

प्रश्न 5.
‘कुछ सवाल’ शीर्षक कहाँ तक सार्थक है? तर्कपूर्ण उत्तर दें:
उत्तर-
‘कुछ सवाल’ नामक कविता के रचयिता महाकवि पाब्लो नेरुदा हैं। नेरुदा ने अपनी उपरोक्त कविता में अपने मौलिक विचारों को मूर्त रूप देते हुए प्रकृति विषयक गंभीर बातों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है।

‘कुछ सवाल’ शीर्षक एक ऐसा कौतुहलबर्द्धक शीर्षक है जिसके पढ़ने से मनुष्य के मस्तिष्क में हलचल पैदा हो जाती है। कवि की यह बौद्धिकता से पूर्ण एवं रहस्यात्मकता से युक्त कविता भी है। कवि ने सूक्ष्म भाव से प्रकृति के रहस्यों को उद्घाटित करने का प्रयत्न किया है। बौद्धिकता से युक्त कविता की इतनी सघन बनावट है कि इसके परत-दर-परत को उघाड़ने एवं उसमें निहित सूक्ष्म भावों के अर्थ समझने में दिमागी कसरत करनी पड़ती है।

नेरुदा विश्वविख्यात कवि हैं। वे एक प्रख्यात चिंतक भी थे। अतः उक्त कविता में कवि के वैचारिक धरातल की व्यापकता का भी दर्शन होता है।

भावों की अभिव्यक्ति में भी कवि को सफलता मिलती है। सरल और सहज शब्दों द्वारा कविता का सृजन करते हुए कवि ने प्रकृति के गूढ़ भाव को चित्रित करने में सफलता पाई है। कवि ने प्रकृति के रहस्यों की परत-दर-परत को खोलते हुए कहा है कि एक तरफ नदियों में मीठा पानी और दूसरी ओर समुद्र का पानी खारा क्यों? इसी प्रश्न में उत्तर भी छिपा हुआ है। कवि के कहने का आशय है कि प्रकृति के दो रूप हैं, सृजन और संहार। इन्हीं के बीच प्रकृति संतुलन रखने का काम करती है।

ऋतुओं को भी प्रकृति के बदलते मौसम की जानकारी सबसे पहले होती है। प्रकृति मौसम के अनुकूल आवरण परिवर्तन कर स्थूल रूप में दृष्टिगत होती है।

जाड़े के मौसम में भी चेतन रूप में शिथिलता को दर्शन होता है जबकि जड़ता में गतिमयता दिखाई पड़ती है।
कवि जड़ों की बात करता है कि उन्हें पता है कि उजाले की ओर चढ़ना ही उनकी नियति है। यानि जड़ में गति का जब संचार होगा तो उसकी वृद्धि होगी ही।
और फिर बयार का स्वागत भी रंगों एवं फूलों द्वारा होता है जो प्रकृति का शाश्वत निर्भय है।

वसंत भी सर्वदा एक समान नहीं होता? उसका भी रूप परिवर्तन समयानुकूल होता रहा है और उनमें समानता नहीं मिलती। भूत, वर्तमान और भविष्य के वसंत में शुरू से भिन्नता रही है और आगे भी रहेगा। उपरोक्त बिन्दुओं पर चिंतन करने पर यह बात साफ दृष्टिगत होती है कि “कुछ सवाल” शीर्षक नाम से जो कविता रची गयी है वह सार्थक है। विवेचना और विश्लेषण के आधार पर यह सिद्ध हो जाता है कि कुछ सवाल शीर्षक सार्थक शीर्षक है।

प्रश्न 6.
क्या वसंत हर व्यक्ति या परिवेश या परिस्थिति के लिए एक जैसा होता है? तर्क सहित उत्तर दें:
उत्तर-
कवि ने अपनी कविता में वसंत के स्वरूप की चर्चा सूक्ष्म रूप में प्रस्तुत किया है।
कवि ने अपनी कविता में-“क्या हमेशा वही वसंत होता है” द्वारा प्रश्न उठाता है कि क्या हमेशा वसंत एक रूप में हर मनुष्य के जीवन में होता है?

क्या सबके जीवन में वसंत की भूमिका समान होती है। कवि के विचार भिन्न हैं। कवि कहता है कि हर मनुष्य के जीवन में अलग-अलग वसंत अलग-अलग रूपों में आता है। कहने का भाव यह है कि वसंत की भूमिका विभिन्नता लिए रहती है। भूत में जो वसंत था, जिस रूप में था वह वर्तमान के वसंत से मेल नहीं खाएगा। ठीक उसी प्रकार वर्तमान का वसंत भी भविष्य के वसंत से भिन्न होगा। कभी भी कहीं भी किसी भी परिस्थिति या परिवेश में वसंत का रूप विभिन्नता लिए आता है। यही उसकी विशेषता है अतः वसंत के रूप, रंग गुण में परिवेश एवं परिस्थिति के अनुकूल भिन्नता दिखाई पड़ती है। कवि के कथनानुसार वसंत मानव जीवन में अलग अलग रूपों में दिखाई पड़ता है।

भाव स्पष्ट करें:

प्रश्न 7.
(क) कैसे जानती हैं जड़ें कि उन्हें उजाले की ओर चढ़ना ही
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘कुछ सवाल’ काव्य पाठ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता महाकवि पाब्लो नेरुदा जी हैं। नेरुदा जी विश्वविख्यात कवि और विचारक के रूप में जाने जाते हैं।
इसी कारण नेरुदा की कविताएँ बौद्धिकता से पूर्ण हैं साथ ही रहस्यमयी भी। नेरुदा ने अपनी कविताओं में प्रकृति के गूढ़ रूपों के रहस्य का उद्घाटन किया है।

कवि कहता है कि जो जड चीजें हैं वे कैसे जानती हैं कि उन्हें उजाले की र चढना ही है। इन पंक्तियों में कवि ने प्रकृति के गूढ़ कर्म की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। कवि कहता है कि सृष्टि का सृजन करना ही प्रकृति का सनातन नियम है। साथ ही सृजन में ही संहार की क्रिया में छिपी रहती है।

प्रकृति हमें दो रूपों में दिखाई पड़ती है-एक रूप जड़ है और दूसरा रूप चेतनमय। इन्हीं दोनों के बीच सष्टि और संस्कति का क्रम चलता रहता है और प्रकति अपने रूप परिवर्तन द्वारा हमारे समक्ष प्रकट होती है।

प्रकृति का शाश्वत नियम है कि यह गतिमय रूप में है। प्रकृति का रूप वह जड़ हो चाहे चेतन अपने गतिमय होती रहती है क्रिया के बीच संचालित प्रकृति का यही गतिमय होना ही जड़ को उजाले की ओर चढना ही है कि ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है। कहने का भाव यह है कि जड़ें भी गतिमय रूप में वृद्धि की ओर बढ़ती हैं। उनके रूप में भी परिवर्तन दृष्टिगत होता है। जड़ गति के कारण अपने वृद्धि को पूर्णता का रूप देने में सक्षम होती है।

जड़ पदार्थों में गतिमयता के कारण जीवन संचार के लक्षण दिखाई पड़ते हैं, उसे कवि ने अपनी कविताओं के द्वारा व्यक्त किया है। जड़ भी चेतन की तरह स्वरूप धारण कर लेते हैं। उनमें भी ऊर्जा और गति आ जाती है।

जड़ों को उजाले की ओर चढ़ाना है कि जानकारी प्रकृति की आंतरिक क्रियाओं के द्वारा हो जाती है। ये ही आंतरिक क्रियाएँ ऊर्जा और गति से संचालित होती है। ऊर्जा और गति प्रकृति के मौलिक रूप हैं जिसकी ओर कवि ने हमारा ध्यान आकृष्ट किया है।
भाव स्पष्ट करें:

प्रश्न 7.
(ख) क्या हमेशा वही वसंत होता है, वही किरदार फिर दुहराता हुआ?
उत्तर-
‘कुछ सवाल’ नामक कविता महाकवि पाब्लो नेरुदा द्वारा रचित है जिसमें प्रकृति के गूढ़ रहस्यों को उद्घाटित में किया गया है।

कवि कहता है कि हर मनुष्य के जीवन में वसंत का आगमन समान रूप नहीं होता। हर मनुष्य के जीवन में वसंत का रूप अलग-अलग होता है। वसंत अपनी भूमिका परिवेश और परिस्थिति के अनुकूल हर मनुष्य के जीवन में अलग-अलग रूपों में प्रस्तुत करता है। वसंत के आगमन में भी भिन्नता है। भूतकाल में जो वसंत था वह वर्तमान काल के वसंत से भिन्न था। ठीक उसी प्रकार वर्तमान काल के वसंत का रूप भी भविष्य काल के वसंत से भिन्न रहेगा। भविष्य में भी वसंत का रूप अलग ढंग से होगा। अतः हर मनुष्य के जीवन में वसंत अपनी भूमिका भिन्न-भिन्न रूपों में निभाता है।

कवि ने अत्यंत ही साफ और सटीक शब्दों में वसंत के किरदार रूप की व्याख्या की है।
अतः वसंत का रूप मानव जीवन में हर मनुष्य के लिए अलग-अलग रूप । में उपस्थित होता है।


BSEB Textbook Solutions PDF for Class 9th


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