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BSEB Class 9 Hindi व्याकरण सन्धि Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 9th Hindi व्याकरण सन्धि Book Answers |
Bihar Board Class 9th Hindi व्याकरण सन्धि Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 9th |
Subject | Hindi व्याकरण सन्धि |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 9th Hindi व्याकरण सन्धि Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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सन्धि-दो-वर्गों के पारस्परिक मेल को सन्धि कहते हैं, जैसे-देव + आलय = देवालय । कपि + ईश = कपीश । महा + इन्द्र = महेन्द्र । जगत् + नाथ = जगन्नाथ । यहाँ देव + आलय में ‘देव’ (देव + अ) अन्तिम अक्षर ‘अ’ स्वर है और ‘आलय’ में ‘आ’ स्वर लगा हुआ है। इन दोनों के मेल से ‘आ’ हो जाता है इसलिए ‘देव’ और ‘आलय’ (अ + आ) मिलकर देवालय हो गया । इसी प्रकार जगत् + नाथ में ‘जगत्’ में त् व्यंजन है तथा ‘नाथ’ में न व्यंजन है । सन्धि में त् और न मिलकर ‘न्न’ हो गया । सन्धि में अक्षर बदल जाते हैं। तदनुसार उसके उच्चारण में अन्तर पड़ जाता है । जैसे-महा + इन्द्र = महेन्द्र । जिन अक्षरों के बीच सन्धि हुई हो उन्हें सन्धि के पहले रूप से पृथक करने की क्रिया की सन्धि-विच्छेद कहते हैं: जैसे-महेन्द्र का सन्धि-विच्छेद ‘महा + इन्द्र’ होगा । जिन अक्षरों की सन्धि की जाती है उनके बीच ‘+’ चिह्न देने का प्रचलन है।
सन्धि के प्रकार-सन्धि के तीन भेद हैं-(1) स्वर-सन्धि (2) व्यंजन-सन्धि और (3) विसर्ग-सन्धि ।
(1) स्वर सन्धि
स्वर सन्धि की परिभाषा-दो स्वर वर्णों के पारस्परिक मेल को स्वर-सन्धि कहते हैं। जैसे-देव + इन्द्र । यहाँ ‘देव’ शब्द में ‘अ’ स्वर वर्ण है तथा इन्द्र शब्द में ‘इ’ स्वर वर्ण है । सन्धि में ये दोनों स्वर मिलकर ‘ए’ हो जाते हैं। अतः ‘देव’ और ‘इन्द्र’ मिलकर देवेन्द्र हो जाता है।
स्वर सन्धि के पाँच भेद हैं । (1) दीर्घ-सन्धि (2) गुण-सन्धि (3) वृद्धि-सन्धि (4) यण-सन्धि और (5) अयादि-सन्धि ।
(1) दीर्घ-सन्धि-ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, के बाद यदि हस्व या दीर्घ क्रमशः आ, इ, उ, हो तो दोनों मिलकर दीर्घ हो जाते हैं। इस प्रकार की सन्धि को शीर्ष सन्धि कहते हैं, जैसे –
अ + अ = आ
अधम + अधम = अधमाधम
क्रम + अनुसार = क्रमानुसार
पर + अधीन = पराधीन
परम + अर्थ = परामर्थ
अ+ आ = आ
गज + आनन = गजानन
चित्र + आलय = चित्रालय ।
छात्र + आलय = छात्रालय
छात्र + आवास = छात्रावास
जल + आधार = जलाधार
जल + आशय = जलाशय
मंगल + आचरण = मंगलाचरण
मृत् + आत्मा = मृतात्मा
मर्म + आहत = मर्माहत
पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
सत्य + आग्रह = सत्याग्रह
शिष्ट + आचार = शिष्टाचार
आ+ अ = आ
कदा + अपि = कदापि
तथा + अपि = तथापि
परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी ।
इच्छा + अनुसार = इच्छानुसार
यथा + अर्थ,= यथार्थ
रेखा + अंकित = रेखांकित
सहायता + अर्थ = सहायतार्थ
मुरा + अरी = मुरारी
आ + आ = आ
विद्या + आलय = विद्यालय
महा + आशय = महाशय
महा + आत्मा = महात्मा
कला + आत्मक = कलात्मक
इ + इ = ई
कवि + इन्द्र = कवीन्द्र
रवि + इन्द्र = रवीन्द्र
अति + इव = अतीव
अति + इत = अतीत
इ + ई = ई
गिरि + ईश = गिरीश
कवि + ईश्वर = कवीश्वर
ऋषि + ईश = ऋषीश
अधि + ईश = अधीश
ई + इ = ई
नदी + इन्द्र = नदीन्द्र
महती + इच्छा = महतीच्छा
गौरी + इच्छा = गौरीच्छा
रवी + इन्द्र = रवीन्द्र
ई + ई = ई
मही + ईश्वर = महीश्वर
सती + ईश = सतीश
नदी + ईश = नदीश
रजनी + ईश = रजनीश
उ + उ = ऊ
विधु + उदय = विधूदय
भानु + उदय = भानूदय
कटु + उक्ति = कटूक्ति
सु + उक्ति = सूक्ति ।
उ + ऊ = ऊ
लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
गुरु + ऊर्मि = गुरुर्मि
सिन्धु + ऊर्मि = सिन्धूर्मि
वायु + ऊर्ध्व = वायूर्ध्व ।
ऊ + उ = ऊ
वधू + उत्सव = वधूत्सव
भू + उन्नति = भून्नति
स्वयम्भू + उदय स्वयम्भूदय
वधू + उत्सुकता = वधूत्सुकता
ऊ + ऊ = ऊ
भू + ऊसर = भूसर
वधू + ऊर्मिला = वधूमिला
वधू + ऊहन = वधूहन
भू + ऊर्ध्व = भूल
(2) गुण सन्धि-यदि अ या आ के बाद ह्रस्व या दीर्घ इ, उ या ऋ रहे तो अ + इ मिलकर ए, अ + उ मिलकर ओ और अ +ऋ मिलकर अर होता है । इस प्रकार की सन्धि को गुण-सन्धि कहते है । जैसे –
अ + इ = ए
देव + इन्द्र = देवेन्द्र
नर + इन्द्र = नरेन्द्र
नव + इन्दु =नवेन्दु
सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
भारत + इन्दु = भारतेन्दु
गज + इन्द्र = गजेन्द्र
रस + इन्द्र = रसेन्द्र
स्व + इच्छा = स्वेच्छा
अ + ई = ए
गण + ईश = गणेश
धन + ईश = धनेश
नर + ईश = नरेश
कोशल + ईश = कोशलेश
परम् + ईश्वर = परमेश्वर
सुर + ईश = सुरेश
आ + इ = ए
महा + इन्द्र = महेन्द्र
यथा + इष्ट = यथेष्ट
आ + ई = ए
उमा + ईश = उमेश
रमा + ईश = रमेश
अ + उ = ओ
चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय
वीर + उचित = विरोचित
अरुण + उदय = अरुणोदय
ग्राम + उद्धार = ग्रामोद्धार
पुरुष + उत्तम = पुरुषोत्तम
सूर्य + उदय = सूर्योदय
धन + उपार्जन = धनोपार्जन
पत्र + उत्तर = पत्रोत्तर
पर + उपकार = परोपकार
प्रश्र + उत्तर = प्रश्रोत्तर
अ + ऊ = ओ
जल + ऊर्मि =जलोमि
नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा
आ + उ = ओ
जीविका + उपार्जन = जीविकोपार्जन
महा + उत्सव = महोत्सव
महा + उदय = महोदय
यथा + उचित = यथोचित
आ + ऊ = ओ
बाल + ऊषा = बालोषा
महा + ऊसर = महोसर
अ + ऋ = अर
देव + ऋषि = देवर्षि
ब्रह्म + ऋषि = ब्रह्मर्षि
राज + ऋषि = राजर्षि
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
आ + ऋ= अर
महा + ऋषि = महर्षि
राजा + ऋषि = राजर्षि
(3) वृद्धि सन्धि-अ या आ के बाद यदि ए या ऐ रहे तो दोनों मिलकर ‘ऐ’ और ओ या औ रहे तो ‘औ’ होता है। इसे वृद्धि-सन्धि कहते हैं। जैसे –
अ + ए = ए = एक + एक = एकैक ।
अ + ऐ = ऐ = मत + एक्य = मतैक्य ।
आ + ए = ऐ = तथा + एव = तथैव ।
अ + ऐ = ऐ = महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य ।
आ + औ = औ = परम + औषध = परमौषध
अ + औ = औ = गुण + औदार्य = गुणौदार्य
आ + ओ = औ= महा + औषधि = महौषधि
आ + औ = औ = कला + औचित्य = कलौचित्य
हित + एषी = हितैषी
परम + ऐश्चर्य = परमैश्चर्य
सदा + एव = सदैव
सखा + ऐक्य = सखैक्य
(4) यण सन्धि-हस्व या दीर्घकार, इकार या ऋ के बाद यदि कोई भिन्न स्वर वर्ण रहे तो दोनों मिलकर क्रमशः य, व, या र होता है । इस प्रकार की सन्धि को यण सन्धि कहते है। जैसे- इ + अ = य्
यदि + अपि = यद्यपि
अति + अन्त = अत्यन्त
प्रति + अंग = प्रत्यंग
वि + अयव्यय
वि + अर्थ = व्यर्थ
वि+ अवस्था = व्यवस्था ।
इ + आ = या
इति + आदि = इत्यादि
अति + आचार = अत्याचार
वि + आख्या = व्याख्या
वि + आकुल = व्याकुल
वि + आपक = व्यापक
वि+ आहार = व्यवहार
ई + अ = य = रजनी + अन्त = रजयन्त
ई + आ = या = सती + ओसक्त = सत्यासक्त
इ + उ = यु = प्रति + उत्तर + प्रत्युत्तर
इ + ऊ = यू = नि + ऊन = न्यून
इ + ए =ऐ = प्रति + एक = प्रत्येक
इ + ए = 2 = अति + ऐश्वर्य = अत्यैश्वर्य
इ + अव = अनु + अय = अन्वय
उ + अ = वा = सु + आगत = स्वागत
उ + इ =वि = अनु + इत = अन्वित
उ + ए = वे = अनु + ऐषण = अन्वेषण ।
उ + ओ = वो = सु + औषधि = स्वौषधि
(5) अयादि सन्धि-ए, ऐ, ओ, या औ के बाद कोई भिन्न स्वर आये तो ए का अय, ऐ, का आय, ओ का अव तथा औ का आव हो जाता है। जैसे-
ए + अ = अय = ने + अन = नयन
ऐ + अ = आय = ने + अक = नायक
ओ + अ =अव = पो + अन = पवन
औ + अ = आव् = पौ + अक = पावक
ओ + ई = आवि = पो + इत्र = पवित्र
औ + इ = आवि = नौ + इक = नाविक
औ + उ = आवु = भौ + उक = भावुक
(2) व्यंजन-सन्धि
व्यंजन-सन्धि-व्यंजन के साथ किसी स्वर या व्यंजन के संयोग संधि कहते हैं, जैसे-
(i) किसी वर्ग के प्रथम वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प) के बाद कोई स्वर वर्ण हो तो प्रथम वर्ण के बदले में उस वर्ग का तीसरा वर्ण होता है, जैसे –
वाक् + इेश = वागीश
तत् + अनुसार = तदनुसार
अच् + अन्ता = अजन्ता
दिक् + अन्त = दिगन्त
दिक् + अम्बर = दिगम्बर
षट् + आनन = षडानन
उत् + हारण = उदाहरण
सत + इच्छा = सदिच्छा
जगत् + ईश्वर = जगदीश्वर
सत् + आचार = सदाचार
(ii) किसी वर्ग के प्रथम वर्ण के पश्चात किसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण र, या व् हो तो प्रथम वर्ण के बदले तीसरा वर्ण होता है, जैसे-
षट् + दर्शन = षड्दर्शन
सत् + गति =सद्रति
उत् + घाटन = उद्घाटन
दिक् + गज = दिग्गज
उत् + योग = उद्योग
उत् + वेग = उद्वेग
तत् + रूप = तद्रूप
अज + ज = अब्ज ।
(iii) किसी वर्ग के प्रथम वर्ण के बाद किसी वर्ग का पंचम वर्ण रहे, तो प्रथम – वर्ण का पंचम वर्ण (ङ, न, म) हो जाता है, जैसे
वाक् + मय = वाङ्मय
उत् + मत = उन्मत्त
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
उत् + नत् = उन्नत
सत् + मार्ग = सन्मार्ग
उत् + नायक = उन्नायक
प्राक् + मुख = प्राङ्मुख
उत् + मद = उन्मद।
(iv) यदि म् के बाद किसी वर्ग का कोई वर्ण हो तो म् उस वर्ग का पंचम वर्ण होता है; जैसे-
आलम् + कार = अलंकार
अहम् + कार = अहंकार
सम् + चार = संचार
किम् + तु = किन्तु
सम् + जय = संजय
सम् + देह =सन्देह
सम् + धि = सन्धि
शम् + कर = शंकर
शाम् + ति = शांति
सम् + भव = सम्भव ।
(v) यदि म् के बाद अन्तस्थ (य, र, ल, व्) या ऊष्म (श्, ष, ह) वर्ण हो तो स् का अनुस्वार होता है, जैसे –
सम् + वाद = संवाद
सम् + सार = संसार
सम् + हार = संहार
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + रक्षक = संरक्षक
किम् + वदन्ति = किवदन्ती
(vi) न् या म् के बाद कोई स्वर वर्ण रहे तो दोनों मिलकर संयुक्त हो जाते है, जैसे –
अन् + अंग =अनंग
सम् + सार = संसार
सम् + हार = संहार
सम् + अन्वय = समन्वय
अन् + आदर = अनादर
अन् + इष्ट = अनिष्ट।
(vii) (क) त् के बाद अगर च, ज या ल हो तो त् + च = च्च, त् + ज = ज्ज, त् + ल = ल्ल हो जाता है, जैसे
उत् + चारण = उच्चारण
उत् + ज्वल = उज्जवल
उत्त + लंघन = उल्लंघन
तत् + लीन = तल्लीन
उत् + लेख = उल्लेख
उत् + जयिनि = उज्जयिनी
सत् + जन सज्जन
शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
सत् + चरित्र = सच्चरित्र
उत् + लास + उल्लास
(ख) त् के बाद छ् या श् हो, तो त के बदले में च और श के बदले में छ हो जाता है, जैसे
उत् + छंद = उच्छंद
उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
उत् + शृंखल = उच्छंखल
उत् + श्वास = उच्छवास
(ग) त् के बाद ह हो तो त् के बदले में ट् और ह, के बदले में ‘ध’ हो जाता है, जैसे
तत् + हित = तद्धित
उत् + हित = उद्धत
उत् + हरण = उद्धरण
उत् + हार = उद्धार ।
(घ) त् के बाद क, प् या स् हो तो दोनों मिलकर संयुक्त हो जाता हैं, जैसे
तत् + काल = तत्काल
तत् + त्व = तत्त्व
महत् + त्व = महत्त्व
उत् + पात = उत्पात
सत् + कर्म = सत्कर्म
सत् + संग = सत्संग
(viii) ए के पश्चात् त् या थ् हो तो त् के बदले में ट् और थ् के बदले में ठ हो जाता है, जैसे –
अष् + त= अष्ट
नष् + त =नष्ट
इष् + त = इष्ट
दुष् + त दुष्ट
षष् + थ = षष्ठ
पृष् + थ = पृष्ठ
शिष + त = शिष्ट
कष् + त = कष्ट
(ix) मूल या दीर्घ स्वर के पश्चात् छ रहे तो छ के पहले च की वृद्धि हाती है, जैसे
अनु + छेद = अनुच्छेद
परि + छेद = परिच्छे
वि + छिन्न = विच्छिन्न
वि + छेद + विच्छेद
प्रति + छाया = प्रतिच्छाया
श्री + छाया = श्रीच्छाया
(x) यदि परि या सम् उपसर्ग के बाद कृ धातु का संयोग हो, तो ष् या स की वृद्धि होती है और म् के बदले अनुस्वार हो जाता है, जैसे –
परि + कार = परिष्कार
परि = कृत = परिष्कृत
सम् + कार = संस्कार
सम + कृत = संस्कृत
(3) विसर्ग सन्धि
विसर्ग सन्धि-विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मेल को विसर्ग-सन्धि कहते हैं, जैसे
निः+ फल = निष्फल
दुः+ लभ = दुर्लभ
तपः + वन = तपोवन
अन्तः + आत्मा = अन्तरात्मा
निः + काम = निष्काम
दु: + दशा = दुर्दशा
(i) यदि विसर्ग के पहले इ या उ हो तथा उसके बाद क, ख, ट, उ प या फ हो तो विसर्ग का प् हो जाता है, जैसे
आवि: + कार = आविष्कार
निः + कपट = निष्कपट
दुः+ कार = दुष्कार
धातुः + पद = चतुष्पद
निः + काम = निष्काम
निः+ ठुर = निष्ठुर
(ii) यदि विसर्ग के पहले इ या उ हो तथा इसके बाद च या छ हो तो विसर्ग के स्थान में श् तथा त या थ रहे तो स् हो जाता है, जैसे
दुः+ चरित = दुश्चरित
दुः+ तर = दुस्तर
निः + छल =निश्छल
निः + तार = निस्तार
(iii) यदि विसर्ग के पहले इ या उ हो तथा विसर्ग के बाद श, ष, या स् हो तो विसर्ग का विसर्ग ही रह जाता है या उसके स्थान पर क्रमशः श, ष, या स् । हो जाता है, जैसे
दु: + शासन = दुःशासन, दुश्शासन
निः + संतान = नि:संतान, निस्संतान
दु: + साहस = दुःसाहस, दुस्साहस
निः + सन्देह = नि:संदेह, निस्संदेह
(iv) यदि विसर्ग के पहले अ या आ तथा उसके बाद कर या कार हो तो विसर्ग का स् हो जाता है, जैसे
तिरः + कार = तिरस्कार
नमः + कार = नमस्कार
भाः + कर = भास्कर
पुरः + कार = पुरस्कार
(v) विसर्ग के पहले अ या आ के अतिरिक्त कोई स्वर हो तथा उसके बाद किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पाँचवाँ वर्ण हो या य, स, व हो या स्वर वर्ण हो __ तो विसर्ग के स्थान पर र हो जाता है, जैसे-
दु: + दशा = दुर्दशा
निः + धन = निर्धन
दु: + लभ = दुर्लभ
निः + अक्षर = निरक्षर
निः + ईक्षण = निरीक्षण
दुः+ बल = दुर्बल
निः + मम = निर्मम
टुः + वचन = दुर्वचन|
नि: + अन्तर = निरंतर
निः + आदर = निरादर ।
(vi) यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ हो तथा बाद में किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पाँचवाँ वर्ण हो या व, र, ल, द, हो तो विसर्ग के स्थान में ‘ओ’ हो जाता है, जैसे
अधः + गति = अधोगति
पयः + धि = पयोधि
मनः + मोहक =मनमोहक
मनः + रथ = मनोरथ
सरः + वर = सरोवर
तपः + बल = तपोबल
मनः + भाव = मनोभाव
मनः + योग = मनोयोग
यशः + लाभ = यशोलाभ
तपः + वन = तपोवन।
(vii) यदि विसर्ग के पहले इ या उ हो तथा उसके बाद र हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है तथा विसर्ग के पहले वाला स्वर दीर्घ हो जाता है, जैसे
दुः + राज = दूराज
निः + रस- नीरस
निः + रव = नीरव
निः + रोग = नीरोग ।
(viii) यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ हो और बाद में भी ‘अ’ हो तो विसर्ग और अ मिलकर ओ हो जाता है तथा बाद वाले का लोप हो जाता है, जैसे-
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
मनः + अनुसार = मनोनुसार
(ix) र – जात विसर्ग के बाद किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पाँचवाँ वर्ग हो या य, र, ल, व, ह, हो या कोई स्वर हो तो विसर्ग का र् हो जाता है। जैसे
अन्तः + जातीय = अन्तर्जातीय
अन्तः + यामी = अन्तर्यामी
अतः+ आत्मा = अन्तरात्मा
अन्तः + नाद = अन्तर्नाद
पुनः + जन्म = पुनर्जन्म
(x) स-जात विसर्ग के बाद किसी वर्ग का प्रथम या द्वितीय वर्ण या व हो तो दूसरे नियम के अनुसार का स् य श् हो जाता है, जैसे
अन्तः + तल = अन्तस्थल
मनः + ताप = मनस्ताप
(xi) यदि विसर्ग के पहले अ हो या उसके बाद कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग लुप्त हो जाता है, जैसे-
अतः + एव = अतएव ।
अभ्यास प्रश्न
1. निम्नलिखित प्रश्नों में सन्धि कीजिए-
हिम + आलय
स + अवधान
पो + अक
उत् + ज्वल
सु + अगत
सम् + कृत
सूर्य + उदय
जगत् + ईश
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