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BSEB Class 7 Science Chapter 17 पौधों में जनन Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 7th Science Chapter 17 पौधों में जनन Book Answers |
Bihar Board Class 7th Science Chapter 17 पौधों में जनन Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 7th |
Subject | Science Chapter 17 पौधों में जनन |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 7th Science Chapter 17 पौधों में जनन Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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अभ्यास
प्रश्न 1.
सही विकल्प पर (✓) निशान लगाएँ-
(क) पौधों का जनन अंग है –
(i) तना
(ii) जड़
(iii) फूल
(iv) पत्ती
उत्तर:
(iii) फूल
(ख) परागकण का वर्तिकान पर स्थानान्तरण कहलाता है –
(i) निषेचन
(ii) परागण
(iii) जनन
(iv) फल का बनना
उत्तर:
(ii) परागण
(ग) परिपक्व होने पर भ्रूण विकसित होकर बदल जाता है –
(i) फल में
(ii) बीज में
(iii) पुंकेसर में
(iv) जड़ में
उत्तर:
(i) फल में
(घ) नर एवं मादा युग्मक का मिलना कहलाता है –
(i) परागकण
(ii) निषेचन
(ii) जनन
(iv) बीज निर्माण
उत्तर:
(ii) निषेचन
प्रश्न 2.
रिक्त स्थनों को भरें –
(क) जनन पौधों के कायिक भागों से नए पौधों का उत्पन्न होना ………………. कहलाता है।
(ख) जिन फूलों में केवल नर या मादा जनन अंग होते हैं वे ………………. फूल कहे जाते हैं।
(ग) पराग कोष से परागकणों का वर्तिकाग्र पर स्थानान्तरण की क्रिया ………………. कहलाती है।
(घ) नर एवं मादा युग्मकों के मिलने से ………………. का निर्माण होता है।
उत्तर:
(क) अलैंगिक
(ख) एकलिंगी
(ग) परागण
(घ) युग्मनज ।
प्रश्न 3.
पौधों में अलैंगिक जनन की विधियों की चर्चा करें।
उत्तर:
पौधों के जड़, तना, पत्तियाँ, कली आदि कायिक भागों से नए पौधे की उत्पत्ति होती है। कायिक प्रवर्धन एक प्रकार का अलैंगिक जनन है। आलू, गन्ना, ब्रायोफाइलम, गुलाब, चमेली अलैंगिक जनन प्रक्रिया करते हैं। अलैंगिक जनन की विधि इस प्रकार होता है।
(1) लेयरिंग विधि – इस विधि में पौधों की तना को मिट्टी में दबा दिया -जाता है। वहाँ पानी देते रहना चाहिए ताकि नमी रहे। 10-15 दिनों में वहाँ से जड़ें निकलने लगती हैं। काड़ेंकर दूसरी जगह लगा देते हैं।
(2) मुकुलन – यीस्ट एककोशिकीय जीव है। जब पावरोटी या बिस्कुट को छोड़ दिया जाए और उसे पोषण उपलब्ध हो तो तेजी से जनन करने लगता है। यीस्ट कोशिकाओं से छोटी-छोटी बल्ब जैली संरचना करने लगता है इसे मुकुल संरचना कहते हैं। वृद्धि के फलस्वरूप जनक कोशिका से बदलकर यीस्ट कोशिका में बदल जाता है और फिर नई कोशिकाएँ उत्पन्न करता है।
खंडन – शैवाल को जब जल और पोषक तत्व प्राप्त होते हैं तो खंडन द्वारा तेजी से बढ़ते हैं। शैवाल दो या दो से अधिक भागों में खंडित हो जाते हैं जो कुछ दिनों में अपने जनकों के समान हो जाते हैं।
बीजाणु – अनुकूल परिस्थिति में बीजाणु अंकुरित होते हैं और नये जीव में विकसित होते हैं। माँस तथा फर्न निम्न स्तरीय पौधों में भी जनन बीजाणुओं द्वारा ही होता है।
प्रश्न 4.
बीजों के बनने के लिए लैंगिक जनन आवश्यक है। क्यों ?
उत्तर:
लैंगिक जनन में नर युग्मक मादा युग्मक से बीजाण्ड में मिलते हैं। मिलन के फलस्वरूप निषेचन होता है। निषेचन के कारण युग्मनक भ्रूण में विकसित होता है और भ्रूण विकसि होकर बीज बनते हैं। अण्डाशय का आकार बढ़ता है और फल के रूप में विकसित होता है। निषेचन के लिए लैंगिक जनन आवश्यक है।
प्रश्न 5.
स्व-परागण तथा पर परागण में अन्तर बताएँ ?
उत्तर:
परागकण का वर्तिकाग्र तक जाने की क्रिया को परागण कहते हैं। जब परागकण अपने ही फूल के वर्तिकाग्र तक जाता है तो इसे स्व-परागण कहते हैं और यदि परागकणों का अपने ही पौधों के दूसरे फूलों के वर्तिकाग्र तक अपने जाति या दूसरे फूलों के वर्तिकाग्र तक ले जाने की क्रिया को पर – परागण कहते हैं।
प्रश्न 6.
बीजों के प्रकीर्णन से क्या समझते हैं ? ये किस प्रकार होते हैं, चर्चा करें।
उत्तर:
अधिकांश पौधे बीजों के कारण नये पौधे उगते हैं। पौधों के विकास के लिए पर्याप्त मात्रा में धूप, जल खनिज एवं स्थान की आवश्यकता होती है। एक स्थान पर ज्यादा पौधे विकसित नहीं हो पाते हैं। बीजों का दूर-दूर तक विभिन्न स्थानों तक पहुँचना बीजों का प्रकीर्णन कहलाता है। बीज हवा, पानी से बहकर तथा जन्तुओं द्वारा बीजों का प्रकीर्णन होता है। सूर्यमुखी, घास, नारियल के बीज पानी में बहकर । काँटेदार एवं हुक जैसी आकृति वाले बीज जन्तुओं के माध्यम से पीपल, बरगद के बीज पक्षियों द्वारा प्रकीर्णन होता है।
प्रश्न 7.
फूल का चित्र बनाकर उनके प्रमुख अंगों को नामांकित करें।
उत्तर:
प्रश्न 8.
जिन पौधों में कायिक प्रवर्धन होता है उनकी एक सूची बनाएँ ?
उत्तर:
प्रश्न 9.
यदि पौधों में बीजों का निर्माण न हो तो क्या होगा? कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर:
नये पौधों का उगना ज्यादातर बीजों के द्वारा ही होता है। अगर बीज का निर्माण न होगा तो पृथ्वी पर पौधों की संख्या कम होगी और CO2 और O2 का संतुलन बिगड़ जाएगा। जंगल खत्म हो जाएँगे। पौधों की कमी मानव के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न होगा। गेहूँ, धान, मक्का बहुत सारे खाद्य पदार्थों का खात्मा हो गया । इस तरह कई तरह की कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
Bihar Board Class 7 Science पौधों में जनन Notes
सभी जीव और पौधे अपने वंश को कायम रखने की प्रवृत्ति होती है। जनकों द्वारा संतति उत्पन्न करना अथवा जन्म देना ‘जनन’ कहलाता है। जनन के फलस्वरूप ही अपनी जाति को बनाये रखते हैं। पौधों की उत्पत्ति बीज के अलावा अन्य भागों से भी होती है। पौधों में जड़, तना तथा पत्तियाँ होती हैं इन्हें कायिक अंग कहते हैं। पौधों की वृद्धि के बाद फूल निकलते हैं। फूलों से फल और फल से बीज प्राप्त होते हैं। बीजों से एक नये पौधे उत्पन्न होते हैं। कायिक अंगों जैसे जड़, तना, पत्ती से भी नये पौधे उत्पन्न होते हैं। पौधे दो प्रकार से जनन क्रिया करते हैं और संतति उत्पन्न करते हैं। जनन के प्रकार अलैंगिक जनन और लैंगिक जनन । अलैंगिक जनन में पौधे बिना बीजों के ही नए पौधे उत्पन्न करते हैं। पौधों के जड़, तना और पत्तियों से नये पौधों की उत्पत्ति अलौंगक विधि कहलाती है। कायिक भागों द्वारा जनन होने के कारण इसे कायिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation) कहते हैं। गुलाब का तना, ब्रायोफाइलम को पनियाँ, मुकुलन द्वारा नये पौधे की उत्पत्ति होती हैं। लैंगिक जनन-फूलों में पुंकेसर नर जनन अंग और स्त्री केसर (Pistil) मादा जनन अंग होते हैं।
जिन फूलों में दोनों जनन अंग होते हैं उसे द्विलिंगी फूल, कहते हैं। एक ही जनन अंग वाले फूल एकलिंगी (Unisexual) फूल कहते हैं। पँकेसर के ऊपर परागकोष होते हैं इनमें परागकण रहते हैं। ये नर युग्मक बनाते हैं। स्वीकंसर के अण्डाशय में एक या अधिक बीजाण्ड होते हैं जो मादा युग्मक बनाते हैं। लैंगिक जनन प्रक्रिया में नर युग्मक मादा युग्मक से बीजाण्ड में मिलते हैं और एक संरचना का निर्माण होता है वह युग्मनज कहलाता है। रागकणों का, स्थानान्तरण परागकोष से वर्तिकान तक होता है। परागकणों का वर्तिकान पर स्थानान्तरण वायु, कीट, जल आदि के माध्यम से होता है। परागकण हल्के होते हैं। जब हवा बहती है तो उड़कर वर्तिकार तक पहुँच जाते हैं। कीटों के द्वारा भी वर्तिकाग्र एक पहुँच जाते हैं। परागकण वर्तिकाग्र के चिपचिपा होने के कारण चिपक जाते हैं।
इस प्रकार परागकण वर्तिकाग्र तक पहुंच जाता है। परागकण का वर्तिकान तक आना परागकण कहलाता है। जल पराग कण अपने ही फूल के वर्तिकान तक पहुँचता है तो इसे स्वयं परागकण कहते हैं । यदि परागकणों अपने ही पौधों के दूसरे फूलों के वर्तिकाग्र तक हो या अपने जाति के दूसरे के फूलों के वर्तिकाग्र तक हो तो परागण कहते हैं। जब वर्तिकान पर परागकण चिपकते हैं तो पागकण में अंकुर निकलता है और पराग नलिका का निर्माण करता है जो स्त्रीकेसर के वर्तिका से होते हुए बोजाण्ड तक जाता है इसी नली से पराग नर युग्मक के रूप में बीजाण्ड (मादा युग्मक) से मिलता है। इस मिलन को क्रिया को निषेचन कहते हैं। निषेचन के कारण युग्मनक भ्रूण में विकसित होने लगता है और चीज बनता है। अण्डाशय का आकार बढ़ने लगता है, फल बन जाता है। बीजों को दूर दूर तक दूसरे स्थानों तक पहुँचाना बीजों का प्रकोर्णन कहलता है । जल, वायु तथा जन्तुओं द्वारा स्थानान्तरण होता है। पीपल, बरगद वृक्षों के बीज चिड़ियों द्वारा होता है। काँटेदार एवं हक जैसी आकृति वाले बीज जन्तुओं के माध्यम से दूर-दूर तक जाते हैं।
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