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Monday, June 20, 2022

BSEB Class 11 Chemistry s-ब्लॉक तत्त्व Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Chemistry s-ब्लॉक तत्त्व Book Answers

BSEB Class 11 Chemistry s-ब्लॉक तत्त्व Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Chemistry s-ब्लॉक तत्त्व Book Answers
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Bihar Board Class 11th Chemistry s-ब्लॉक तत्त्व Textbooks Solutions PDF

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Bihar Board Class 11th Chemistry s-ब्लॉक तत्त्व Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 11th
Subject Chemistry s-ब्लॉक तत्त्व
Chapters All
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Bihar Board Class 11 Chemistry s-ब्लॉक तत्त्व Text Book Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 10.1
क्षार धातुओं के सामान्य भौतिक तथा रासायनिक गुण क्या हैं?
उत्तर:
वर्ग 1 के तत्व : क्षार धातुएँ (Elements of Group 1 : Alkali Metals):
क्षार धातुओं के भौतिक तथा रासायनिक गुणों में परमाणु-क्रमांक के साथ एक नियमित प्रवृति पाई जाती है। इन तत्वों के भौतिक तथा रासायनिक गुणों की व्याख्या निम्नलिखित हैं –

भौतिक गुण (Physical Properties):
क्षार धातु-परिवार के सदस्यों के महत्त्वपूर्ण भौतिक गुण सारणी-1 में सूचीबद्ध है।

सारणी-1 : क्षार धातुओं के भौतिक गुण (Physical Properties of the Alkali Metals):

1. परमाणु त्रिज्या (Atomic radii):
क्षार धातुओं की परमाणु त्रिज्या (धात्विक त्रिज्या का मान अपने आवर्तों में सबसे अधिक होता है तथा ये मान वर्ग में नीचे जाने पर बढ़ते जाते हैं। किसी परमाणु के नाभिक के केन्द्र से संयोजकता कोश में उपस्थित बाह्यतम इलेक्ट्रॉन के बीच की दूरी परमाणु त्रिज्या कहलाती है। क्षार धातुएँ, आवर्त का प्रथम तत्व होते हुए, सर्वाधिक परमाणु त्रिज्या रखती है, चूँकि इनके संयोजकता कोश में केवल एक इलेक्ट्रॉन होता है। परिणामस्वरूप नाभिक के साथ आकर्षण बल का परिमाण न्यूनतम होता है।

वर्ग में नीचे जाने पर इलेक्ट्रॉन कोशों की क्रमिक वृद्धि के कारण परमाणु त्रिज्या बढ़ती है। इसके अतिरिक्त आवरण प्रभाव का परिमाण भी बढ़ता है जो परमाणु के नाभिक के साथ संयोजी 5-इलेक्ट्रॉनों के आकर्षण को कम कर देता है, इसके साथ-साथ नाभिकीय आवेश भी बढ़ता है जो नाभिक तथा इलेक्ट्रॉनों के मध्य आकर्षण को बढ़ा देता है। परन्तु इसका परिमाण आवरण प्रभाव की तुलना में अत्यन्त कम होता है। इस प्रकार परमाणु आकार पर कुल परिमाण द्वारा यह प्रेक्षित होता है – कि वर्ग में नीचे जाने पर तत्वों के परमाणु आकार बढ़ते हैं।

2. आयनिक त्रिज्या (Ionic radii):
क्षार धातु परमाणु संयोजी s (ns1)इलेक्ट्रॉन खोकर एकल-संयोजी धनायन बनाते हैं। ये धनायनी त्रिज्या मूल परमाणु की तुलना में छोटी होती हैं। सारणी-1 के अनुसार आयनिक त्रिज्या के मान वर्ग में नीचे जाने पर बढ़ते हैं। चूँकि एकलसंयोजी धनायनों का निर्माण परमाण के संयोजकता कोश में उपस्थित केवल एक इलेक्ट्रॉन के निष्कासन पर होता है; अतः शेष इलेक्ट्रॉन परमाणु के नाभिक द्वारा अधिक आकर्षित होकर उसके समीप हो जाते हैं। परिणामस्वरूप धनायनों का आकार कम हो जाता है। जैसा कि आयनों का आकर अपने मूल परमाणुओं से सम्बद्ध होता है; इसलिए आयनिक त्रिज्या भी परमाणु त्रिज्या के समान वर्ग में नीचे जाने पर बढ़ती है।

3. आयनन एन्थैल्पी (Ionisation enthalpies):
गैसीय अवस्था में किसी उदासीन विलगित परमाणु से सर्वाधिक शिथिल बद्ध (loosely bound) इलेक्ट्रॉन हटाने के लिए आवश्यक ऊर्जा की न्यूनतम मात्रा, आयनन एन्थैल्पी कहलाती है। इसे kJ mol-1 या eV इकाइयों में व्यक्त किया जा सकता है।

1eV = 96.472kJmol-1

क्षार धातुओं की आयनन एन्थैल्पी अपने आवर्तों में न्यूनतम होती है तथा वर्ग में नीचे जाने पर यह घटती है। इन तत्वों के प्रथम आयनन ऊर्जा के मान सारणी-1 में दिए गए हैं। क्षार धातुओं की आयनन एन्थैल्पी के मान कम होने का कारण इनका परमाणु आकार अधिक होना है जिसके कारण संयोजी s-इलेक्ट्रॉन (ns1) को सरलता से निकाला जा सकता है। आयनन एन्थैल्पी के मान वर्ग में नीचे जाने पर भी घटते हैं; क्योंकि परमाणु त्रिज्या के बढ़ने तथा आवरण प्रभाव का परिमाण अधिक होने पर नाभि के आकर्षण बल का परिमाण घट जाता है। इसके अतिरिक्त एक ही तत्व के लिए प्रथम तथा द्वितीय आयनन एन्थैल्पी के मानों में बहुत अधिक अन्तर होता है।

उदाहरणार्थ-सोडियम के लिए प्रथम आयनन एन्थैल्पी का मान 496kJmol-1 है, जबकि इसकी द्वितीय आयनन एन्थैल्पी का मान 4562kJmol-1 है। इसका प्रमुख कारण है कि एक इलेक्ट्रॉन खोकर बनने वाला एकलसंयोजी धनायन (M+) उच्च सममिताकार तथा समीपवर्ती उत्कृष्ट गैस की स्थायी संरचना को प्राप्त कर लेता है। परिणामस्वरूप दूसरे इलेक्ट्रॉन का निष्कासन अत्यन्त कठिन प्रक्रिया हो जाती है जैसा कि उपर्युक्त उदाहरण में दिए सोडियम के प्रथम तथा द्वितीय आयनन एन्थैल्पी के मानों से स्पष्ट हो जाता है।

4. विद्युत-ऋणात्मकता (Electronegativity):
किसी तत्व की विद्युत-ऋणात्मकता इसके परमाणु की इलेक्ट्रॉनों (बन्ध के साझे युग्म के लिए) को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता को कहते हैं। क्षार धातुओं की विद्युत-ऋणात्मकता कम होती है जिसका अर्थ है कि इनकी इलेक्ट्रॉन आकर्षित करने की क्षमता कम होती है। विद्युत-ऋणात्मकता के मान वर्ग में नीचे जाने पर घटते क्षार धातु परमाणुओं का ns1 इलेक्ट्रॉनिक विन्यास होता है जिसका अर्थ है कि इनकी प्रवृत्ति इलेक्ट्रॉन त्यागने की होती है न कि ग्रहण करने की। अतः इनकी विद्युत-ऋणात्मकता के मान कम होते हैं। चूँकि वर्ग में नीचे जाने पर परमाणु आकार बढ़ते हैं; अतः परमाणु की संयोजी इलेक्ट्रॉन को थामे रखने की क्षमता में क्रमिक कमी आती है। इसलिए वर्ग में नीचे जाने पर विद्युत-ऋणात्मकता घटती है।

5. ऑक्सीकरण-अवस्था एवं धन विद्युती गुण (Oxidation states and electropositive characters):
क्षार धातु परिवार के सभी सदस्य अपने यौगिकों में +1 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं तथा प्रबल धन-विद्युती होते हैं। वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर धन-विद्युती गुण बढ़ता है। क्षार धातुओं की आयनन एन्थैल्पी के मान बहुत कम होने के कारण इनके परमाणुओं में संयोजी इलेक्ट्रॉन खोकर एकलसंयोजी धनायन बनाने की प्रवृति बहुत अधिक होती है। परिमाणस्वरूप एन्थैल्पी का मान घटता है; अतः धन-विद्युती गुण बढ़ता है।

6. धात्विक लक्षण (Metallic character):
वर्ग 1 के तत्व प्रारूपिक धातुएँ हैं तथा अत्यन्त कोमल हैं। इन्हें चाकू द्वारा सरलता से काटा जा सकता है। वर्ग में ऊपर नीचे जाने पर इनके धात्विक लक्षणों में अत्यधिक वृद्धि होती है। किसी तत्व का धानित्व गुण उसके इलेक्ट्रॉन त्याग कर धनायन बनाने की प्रवृत्ति से सम्बन्धित होता है। धात्विक बन्ध की प्रबलता इलेक्ट्रॉन समुद्र (electron sea) में उपस्थित संयोजी इलेक्ट्रॉनों तथा करनेल (kernal) के मध्य आकर्षण बल पर निर्भर करती है।

करनेल का आकार जितना छोटा होगा तथा संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या जितनी अधिक होगी, धात्विक बन्ध उतना ही प्रबल होगा। दूसरे शब्दों में धातु की कठोरता धात्विक बन्ध के प्रबल होने पर अधिक होगी। क्षार धातुओं में करनेल बड़े आकार के होते हैं तथा इनमें केवल एक संयोजी इलेक्ट्रॉन होता है। अतः क्षार धातुओं में धात्विक बन्ध दुर्बल होते हैं तथा क्षार धातुएँ कोमल होती हैं। लीथियम सबसे कठोर होता है, चूँकि इसका करनेल सबसे छोटे आकार का होता है।

7. गलनांक तथा क्वथनांक (Melting and boiling points):
क्षार धातुओं के गलनांक तथा क्वथांक अत्यन्त कम होते हैं, जो वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर घटते हैं। क्षार धातुओं के परमाणुओं का आकार अधिक होता है; अतः क्रिस्टल-जालक में इनकी बन्धन ऊर्जा बहुत कम होती है। परिणामस्वरूप इनके गलनांक कम होते हैं। वर्ग में नीचे जाने पर परमाणु आकार में वृद्धि के साथ-साथ गलनांक के मान घटते हैं। क्वथनांक कम होने का कारण भी यही होता है।

8. घनत्व (Density):
क्षार धातुएँ अत्यन्त हल्की होती हैं। इस परिवार के पहले तीन सदस्य जल से भी हल्के होते हैं। वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर घनत्व बढ़ता है। क्षार धातुओं के परमाणुओं का आकार अधिक होता है; अतः वे अन्तराकाश से अधिक संकुलित (closely packed) नहीं होते हैं तथा इनका घनत्व कम होता है। वर्ग में नीचे जाने पर परमाणु आकार बढ़ने के कारण घनत्व कम होना चाहिए; परन्तु यह बढ़ता है। चूंकि परमाणु आकार के साथ-साथ परमाणु भार भी बढ़ता है जिसका प्रभाव अधिक है; अतः घनत्व (भार/आयतन) वर्ग में नीचे जाने पर बढ़ता है। इसका एक अपवाद पोटेशियम (K) है जिसका घनत्व सोडियम से कम है। इसका मुख्य कारण पोटैशियम के परमाणु आकार तथा परमाणु आयतन में असामान्य वृद्धि है।

9. जलयोजन एन्थैल्पी (Hydration enthalpy):
जलयोजन एन्थैल्पी (∆Hhyd) वह ऊर्जा है जो जलीय विलयन में आयनों के जलयोजित होने पर मुक्त होती है। क्षार धातु आयनों की जलयोजन एन्थैल्पी निम्नलिखित क्रम में होती है –
Li+ > Na+ > K+ > RB+ > Cs+

जलयोजन में आयनों तथा चारों ओर उपस्थित जल अणुओं के मध्य आकर्षण होता है। अत: आयन का आकार छोटा होने पर, इस पर आवेश का परिमाण अधिक होगा तथा इनकी जलयोजित होने की क्षमता उतनी ही अधिक होगी। क्षार धातुओं में Li+ आयन की जलयोजन एन्थैलपी सर्वाधिक होती है। इसलिए लीथियम के लवण अधिकतर जलयोजी प्रवृत्ति के होते हैं (LiCl.2H2O)

10. ज्वाला में रंग देना (Colouration to the flame):
क्षार धातुओं के यौगिकों (मुख्य रूप से क्लोराइड) को प्लैटिनम के तार पर गर्म करने पर ये ज्वाला को विशिष्ट रंग प्रदान करते हैं। उदाहरणार्थ –

चूँकि क्षार धातुओं की आयनन एन्थैल्पी बहुत कम होती है; अत: इनके इलेक्ट्रॉनों को उच्च ऊर्जा स्तर तक उत्तेजित करना सरल होता है। जब इन धातुओं को प्लैटिनम की तार पर रखकर ज्वाला दी जाती है तो ज्वाला की ऊर्जा से इलेक्ट्रॉन नाभिक से दूर उच्च ऊर्जा स्तर पर पहुँच जाते हैं। पुनः जब ये उत्तेजित इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर से निम्न ऊर्जा स्तर पर आते है तो विकिरण के रूप में दृश्य प्रकाश उत्सर्जित करते हैं। फलस्वरूप क्षार धातुएँ ज्वाला को विशिष्ट रंग प्रदान करती हैं।

11. प्रकाश-विद्युत प्रभाव (Photoelectric effect):
लीथियम के अतिरिक्त सभी क्षार धातुएँ प्रकाश-विद्युत प्रभाव प्रदर्शित करती हैं। प्रकाश-विद्युत प्रभाव को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है-“जब किसी धातु की सतह पर निश्चित आवृत्ति की किरणें टकराती हैं तो धातु की सतह से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होकर निकलते हैं। इसे प्रकाश-विद्युत प्रभाव कहते हैं।” दूसरे शब्दों में धातु की सतह पर फोटॉन के प्रहार से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन प्रकाश-विद्युत प्रभाव कहलाता है।

प्रकाश-विद्युत प्रभाव का कारण क्षार धातुओं की न्यूनतम आयनन एन्थैल्पो है। धातु की सतह पर गिरने वाले फोटॉनों के पास इतनी ऊर्जा होती है कि वे इलेक्ट्रॉनों को धातु की सतह से उत्सर्जित कर देते हैं। चूँकि लीथियम के छोटे आकार के कारण इसकी आयनन ऊर्जा अधिक होती है; अत: इस धातु पर गिरने वाला फोटॉन नाभिक और इलेक्ट्रॉनों के बीच आकर्षण बल को कम करने में सक्षम नहीं होता है। इस प्रकार प्रकाश के दृश्य क्षेत्र में यह धातु प्रकाश-विद्युत प्रभाव प्रदर्शित नहीं करती।

रासायनिक गुण (Chemical Properties):
क्षार धातुएँ बड़े आकार तथा कम आयनन एन्थैल्पी के कारण अत्यधिक क्रियाशील होती हैं। इनकी क्रियाशीलता वर्ग में ऊपर से न नीचे क्रमश: बढ़ती जाती है। इस वर्ग के सदस्यों के महत्त्वपूर्ण रासायनिक गुण निम्नलिखित हैं –

(1) वायु के साथ अभिक्रियाशीलता (Reactivity with air):
क्षार धातुएँ वायु की उपस्थिति में मलिन (exposed) हो जाती हैं, क्योंकि वायु की उपस्थिति में इन पर ऑक्साइड तथा हाइड्रॉसाइड की पर्त बन जाती है। ये ऑक्सीजन में तीव्रता से जलकर ऑक्साइड बनाती हैं। लीथियम और सोडियम क्रमशः मोनोक्साइड तथा परॉक्साइड का निर्माण करती हैं, जबकि अन्य धातुओं द्वारा सुपर ऑक्साइड आयन का निर्माण होता है। सुपर ऑक्साइड O2, बड़े धनायनों; जैसे – K+, Rb+ या Cs+ की उपस्थिति में स्थायी होता है।
4Li + O2 → 2Li2O (ऑक्साइड)
2Na + O2 → Na2O2 (परॉक्साइड)
M + O2 → MO2 (सुपर ऑक्साइड) (M =K,Rb,Cs)
इन सभी ऑक्साइडों में क्षार की ऑक्सीकरण अवस्था +1 होती है। लीथियम अपवादस्वरूप वायु में उपस्थित नाइट्रोजन से ‘अभिक्रिया करके नाइट्राइड, Li3 N बना लेता है। इस प्रकार लीथियम भिन्न स्वभाव दर्शाता है। क्षार धातुओं को वायु एवं जल के प्रति उनकी अति सक्रियता के कारण साधारणतया रासायनिक रूप से अक्रिय विलायकों; जैसे-किरोसिन में रखा जाता है।

(2) जल के साथ अभिक्रियाशीलता (Reactivity with water):
क्षार धातुएँ, इनके ऑक्साइड, परॉक्साइड तथा सुपर ऑक्साइड भी जल के साथ अभिक्रिया करके हाइड्रॉक्साइड, जो घुलनशील होते हैं तथा क्षार (alkalies) कहलाते हैं, बनाती हैं।
2Na + 2H2O → 2Na+ + 20H + H2 ↑
Li2O + H2O → 2LiOH
Na2O2 + 2H2O → 2NaOH + H2O2
2KO2 + 2H2O → 2KOH + H2O2 + O2 ↑

यद्यपि लीथियम के मानक इलेक्ट्रोड विभव (EΘ) का मान अधिकतम ऋणात्मक होता है, परन्तु जल के साथ इसकी अभिक्रियाशीलता सोडियम की तुलना में कम है, जबकि सोडियम के EΘ का मान अन्य क्षार धातुओं की अपेक्षा न्यून ऋणात्मक होता है। लीथियम के इस व्यवहार का कारण इसके छोटे आकार तथा अत्यधिक जलयोजन ऊर्जा का होना है। अन्य क्षार धातुएँ जल के साथ विस्फोटी अभिक्रिया करती हैं। चूँकि अभिक्रिया उच्च ऊष्माक्षेपी होती है तथा विमुक्त होने वाली हाइड्रोजन आग पकड़ लेती है, इसलिए क्षार धातुओं को जल के सम्पर्क में नहीं रखते। क्षार धातुएँ प्रोटॉनदाता (जैसे-ऐल्कोहॉल, गैसीय अमोनिया, ऐल्काइन आदि) से भी अभिक्रियाएँ करती हैं।

(3) डाइहाइड्रोजन से अभिक्रियाशीलता (Reactivity with dihydrogen):
लगभग 673K (लीथियम के लिए 1073K) पर क्षार धातुएँ डाइहाइड्रोजन से अभिक्रिया कर हाइड्राइड बनाती हैं। सभी क्षार धातुओं के हाइड्राइड रंगहीन, क्रिस्टली एवं आयनिक होते हैं। इन हाइड्राइडों के गलनांक उच्च होते हैं।

हाइड्राइडों का आयनिक गुण Li से Cs तक बढ़ता है। क्षार धातुओं की कम आयनन एन्थैल्पी के कारण इनके परमाणु सरलता से संयोजी इलेक्ट्रॉन खोकर आयनिक हाइड्राइड (M+H) बनाते हैं। चूँकि आयनन एन्थैल्पी वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर घटती है; अत: धनात्मक आयन बनाने की प्रवृत्ति उसी अनुसार बढ़ती है। इसलिए हाइड्राइडों का आयनिक गुण भी बढ़ता है।

(4) हैलोजेन से अभिक्रियाशीलता (Reactivity with halogens):
क्षार धातुएँ हैलोजेन से शीघ्र प्रबल अभिक्रिया करके आयनिक ऑक्साइड हैलाइड M+ X बनाती हैं।
2M + X2 → 2M+X
यद्यपि लीथियम के हैलाइड आंशिक रूप से सहसंयोजक होते हैं। इसका कारण लीथियम की उच्च ध्रुवण-क्षमता है। (धनायन के कारण ऋणायन के इलेक्ट्रॉन अभ्र का विकृत होना ‘धुवणता’ (polarisation) कहलाता है।) लीथियम आयन का आकार छोटा है; अत: यह हैलाइड आयन के इलेक्ट्रॉन अभ्र को विकृत करने की अधिक क्षमता दर्शाता है। चूंकि बड़े आकार का ऋणायन आसानी से विकृत हो जाता है, इसलिए लीथियम आयोडाइड सहसंयोजक प्रकृति सबसे अधिक दर्शाते हैं। अन्य क्षार धातुएँ आयनिक प्रवृत्ति की होती हैं। इनके गलनांक तथा क्वथनांक उच्च होते हैं। गलित हैलाइड विद्युत के सुचालक होते हैं। इनके प्रयोग क्षार धातुएँ बनाने में किया जाता है।

(5) अपचायक प्रकृति (Reducing nature):
क्षार धातुएँ प्रबल अपचायक के रूप में कार्य करती हैं, जिनमें लीथियम प्रबलतम एवं सोडियम दुर्बलतम अपचायक है। मानक इलेट्रोड विभव (EΘ), जो अपचायक क्षमता का मापक है, सम्पूर्ण परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है –
M(s) →M(g) ऊर्ध्वपातन एन्थैल्पी
M(g) → M+ (g) + e
M+ (g) + H2O → M+ (aq) जलयोजन एन्थैल्पी
स्पष्ट है कि EΘ का मान जितना कम होगा अपचायक गुण उतना ही अधिक होगा। लीथियम आयन का आकार छोटा होने के कारण इसकी जलयोजन एन्थैल्पी का मान अधिकतम होता है, जो इसके उच्च ऋणात्मक E मान तथा इसके प्रबल अपचायक होने की पुष्टि करता है।

(6) द्रव अमोनिया में विलयन (Solution in liquid ammonia):
क्षार धातुएँ द्रव अमोनिया में घुलनशील हैं। अमोनिया में इनके विलयन का रंग गहरा नीला होता है एवं विलयन प्रकृति में विद्युत का सुचालक होता है।
M + (x + y)NH3 → [M(NH3)x] + [e(NH3)y] विलयन का नीला रंग अमोनीकृत इलेक्ट्रॉनों के कारण होता है, जो दृश्य प्रकाश क्षेत्र की संगत ऊर्जा का अवशोषण करके विलयन को नीला रंग प्रदान करते हैं। अमोनीकृत विलयन अनुचुम्बकीय (paramagnetic) होता है, जो कुछ समय पड़े रहने पर हाइड्रोजन को मुक्त करता है। फलस्वरूप विलयन में ऐमाइड बनता है।
M+ (am) + e + NH3 (l) → MNH2 (am) + 1/2H2 (g)
जहाँ ‘am’ अमोनीकृत विलयन दर्शाता है। सान्द्र विलयन में नीला रंग ब्रॉन्ज रंग में बदल जाता है और विलयन प्रतिचुम्बकीय (diamagnetic) हो जाता है।

(7) सल्फर तथा फॉस्फोरस के साथ अभिक्रिया (Reaction with sulphur and phosphorus):
क्षार धातुएँ सल्फर तथा फॉस्फोरस से गर्म करने पर अभिक्रिया करके सम्बन्धित सल्फाइड तथा फॉस्फाइड बनाती हैं।

सोडियम फॉस्फाइड सल्फाइड तथा फॉस्फाइड दोनों जल द्वारा जल अपघटित हो जाते हैं।

प्रश्न 10.2
क्षारीय मृदा धातुओं के सामान्य अभिलक्षण एवं गुणों में आवर्तिता की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
वर्ग 2 के तत्व :क्षारीय मृदा धातुएँ (Elements of Group 2 : Alkaline Earth Metals):
आवर्त सारणी के वर्ग 2 के तत्व हैं – बेरिलियम (Be), मैग्नीशियम (Mg), कैल्सियम (Ca), स्ट्रॉन्शियम (Sr), बेरियम (Ba) एवं रेडियम (Ra) बेरिलयम के अतिरिक्त अन्य तत्व संयुक्त रूप में मृदा धातुएँ’ कहलाती हैं। प्रथम तत्व बेरिलियम वर्ग के अन्य तत्वों से भिन्नता दर्शाता है एवं ऐलुमिनियम के साथ विकर्ण सम्बन्ध (diagonal relationship) दर्शाता है। वर्ग का अन्तिम तत्व रेडियम रेडियोऐक्टिव प्रकृति का है। इन तत्वों को विशिष्ट नाम निम्नलिखित कारणों से दिया जाता है –

  1. इन तत्वों के ऑक्साइड क्षार धातुओं के समान जल में घुलकर हाइड्रॉसाइड अथवा क्षार बनाते हैं।
  2. “मृदा” नाम इन्हें इसलिए दिया गया; क्योंकि ऐलुमिना (Al2O3) जैसे पदार्थ ऊष्मा के प्रति अधिक स्थायी होते हैं।

कैल्सियम, स्ट्रॉन्शियम तथा बेरियम के ऑक्साइड भी ऊष्मा के प्रति स्थायी होते हैं तथा अत्यधिक गर्म किए जाने पर भी अपघटित नहीं होते। ये धातु ऑक्साइड तथा धातुएँ भी क्षारीय मृदा कहलाती हैं।

इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (Electronic Configuration):
इन तत्वों के संयोजकता-कोश के s – कक्षक में 2 इलेक्ट्रॉन होते हैं। इनका सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (उत्कृष्ट गैस) ns2 होता है। क्षार धातुओं के सामन ही इनके यौगिक भी मुख्यतः आयनिक प्रकृति के होते हैं।

क्षारीय मृदा धातुओं के सामान्य अभिलक्षण तथा गुणों में आवर्तिता इनके भौतिक तथा रासायनिक गुणों से स्पष्ट होती है। इनकी विवेचना निम्नवत् है –

भौतिक गुण (Physical Properties):
क्षारीय मृदा धातु-परिवार के सदस्यों के महत्त्वपूर्ण भौतिक गुण सारणी-2 में सूचीबद्ध हैं। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है –

1. परमाण्वीय एवं आयनिक त्रिज्या (Atomic and ionic radii):
आवर्त सारणी के संगत आवर्तों में क्षार धातुओं की तुलना में क्षारीय मृदा धातुओं की परमाण्वीय एवं आयनिक त्रिज्याएँ छोटी होती हैं। ये वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर बढ़ती हैं। इसका कारण इन तत्वों के नाभिकीय आवेशों में वृद्धि होना है।

2. आयनन एन्थैल्पी (Ionisation enthalpies):
क्षारीय मृदा धातुओं के परमाणुओं के बड़े आकार के कारण इनकी आयनन एन्थैल्पी के मान न्यून होते हैं। चूँकि वर्ग में आकार ऊपर से नीचे क्रमश: बढता जाता है; अतः इनकी आयनन एन्थैल्पी के मान कम होते जाते हैं जैसा कि सारणी में स्पष्ट है। क्षारीय मृदा धातुओं के प्रथम आयनन एन्थैल्पी का मान क्षार धातुओं के प्रथम आयनन एन्थैल्पी के मानों की तुलना में अधिक है। यह इनकी क्षार धातुओं की संगत तुलनात्मक रूप से छोटे आकार होने के कारण होती है, परन्तु इनके द्वितीय आयनन एन्थैल्पी के मान क्षार धातुओं के द्वितीय आयनन एन्थैल्पी के मानों की तुलना में कम हैं।

उदाहरणार्थ:
Mg के प्रथम आयनन एन्थैल्पी का मान Na से अधिक है जिसका कारण Mg का छोटा आकार तथा सममिताकार इलेक्ट्रॉनिक विन्यास है। परन्तु एक इलेक्ट्रॉन खोकर Na+ आयनन उत्कृष्ट गैस निऑन का विन्यास (1s2, 2s2 2p6 प्राप्त कर लेता है, जबकि Mg के संयोजकता कोश में अभी भी एक इलेक्ट्रॉन शेष रह जाता है (1s2, 2s2 2p6, 3s1)। सोडियम के द्वितीयक आयनन एन्थैल्पी का उच्च मान इसके सममितकार इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के कारण होता है।

3. जलयोजन एन्थैल्पी (Hydration enthalpy):
क्षार धातुओं के समान इसमें भी वर्ग में ऊपर से नीचे आयनिक आकार बढ़ने पर इनकी जलयोजन एन्थैल्पी के मान कम होते जाते हैं।
Be2+ > Mg2+ > Ca2+ > Sr2+ > Ba2+

क्षारीय मृदा धातुओं की जलयोजन एन्थैल्पी क्षार धातुओं की जलयोजन एन्थैल्पी की तुलना में अधिक होती है। इसीलिए मृदा धातुओं के यौगिक क्षार धातुओं के यौगिकों की तुलना में अधिक जलयोजित होते हैं, जैसे –
MgCl2 एवं CaCl2 जलयोजित अवस्था MgCl2.6H2O एवं CaCl2.6H2O में पाए जाते हैं, जबकि NaCl एवं KCl ऐसे हाइड्रेट नहीं बनाते हैं।

4. धात्विक गुण (Metallic character):
क्षारीय मृदा धातुएँ सामान्यतया चाँदी की भाँति सफेद चमकदार एवं नर्म, परन्तु अन्य धातुओं की तुलना में कठोर होती हैं। बेरिलियम तथा मैग्नीशियम लगभग धूसर रंग (greyish) के होते हैं। क्षारीय मृदा धातुओं में समान आवर्त में उपस्थित क्षार धातुओं की तुलना में प्रबल धात्विक बन्ध होते हैं। उदाहरणार्थ-मैग्नीशियम, सोडियम की तुलना में अधिक कठोर तथा सघन होता है।

5. गलनांक तथा क्वथनांक (Melting and boiling points):
इनके गलनांक एवं क्वथनांक क्षार धातुओं की तुलना में उच्च होते हैं; क्योंकि इनके आकार छोटे होने के कारण ये निबिड़ संकुलित (closely packed) होते हैं तथा इनमें प्रबल धात्विक बन्ध होते हैं। फिर भी इनके गलनांकों तथा क्वथनांकों में कोई नियमित परिवर्तन नहीं दिखता है।

6. धन-विद्युती गुण (Electro-positive character):
निम्न आयनन एन्थैल्पी के कारण क्षारीय मृदा धातुएँ प्रबल धन-विद्युती होती हैं। धन-विद्युती गुण ऊपर से नीचे Be से Ba तक बढ़ता है।

7. ज्वाला को रंग प्रदान करना (Colouration to the flame):
कैल्सियम, स्ट्रॉन्शियम एवं बेरियम ज्वाला को क्रमश: ईंट जैसा लाल (brick red) रंग, किरमिजी लाल (crimson red) एवं हरा (apple green) रंग प्रदान करते हैं। ज्वाला में उच्च ताप पर वाष्प-अवस्था में क्षारीय मृदा धातुओं के बाह्यतम कोश के इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होकर उच्च ऊर्जा-स्तर पर चले जाते हैं। ये उत्तेजित इलेक्ट्रॉन जब पुनः अपनी तलस्थ अवस्था में लौटते हैं, तब दृश्य प्रकाश के रूप में ऊर्जा उत्सार्जित होती है। परिणामस्वरूप ज्वाला रंगीन दिखने लगती है।

बेरिलियम तथा मैग्नीशियम के बाह्यतम कोशों के इलेक्ट्रॉन इतनी प्रबलता से बँधे रहते है कि ज्वाला की ऊर्जा द्वार इनका उत्तेजित होना कठिन हो जाता है। अतः ज्वाला में इन धातुओं का अपना कोई अभिलाक्षणिक रंग नहीं होता है। गुणात्मक विश्लेषण में Ca, Sr एवं Ba मूलकों की पुष्टि ज्वाला-परीक्षण के आधार पर की जाती है तथा इनकी सान्द्रता का निर्धारण ज्वाला प्रकाशमापी द्वारा किया जाता है। क्षारीय मृदा धातुओं की क्षार धातुओं की तरह विद्युत एवं ऊष्मीय चालकता उच्च होती है। यह इनका अभिलाक्षणिक गुण होता है।

सारणी-2 : क्षारीय मृदा धातुओं के परमाण्वीय एवं भौतिक गुण (Atomic and Physical Properties of the Alkaline Earth Metals):

8. विद्युत-ऋणात्मकता (Electronegtativity):
क्षारीय मृदा धातुओं के विद्युत-ऋणात्मकता मान क्षार धातुओं के लगभग समान होते हैं (कुछ अधिक)। विद्युत-ऋणात्मकता मान बेरिलियम से रेडियम तक घटते हैं तथा आयनिक यौगिक बनाने की प्रवृति में वृद्धि व्यक्त करते हैं। बेरिलियम का उच्च विद्युतऋणात्मकता मान (1.5) प्रदर्शित करता है कि यह धातु आयनिक यौगिक बनाती है।

रासायनिक गुण (Chemical Properties):
क्षारीय मृदा धातुएँ क्षार धातुओं से कम क्रियाशील होती हैं। _इन तत्वों की अभिक्रियाशीलता वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर बढ़ती है –

(1) वायु एवं जल के प्रति अभिक्रियाशीलता (Reactivity with air and water):
बेरिलियम एवं मैग्नीशियम गतिकीय रूप से ऑक्सीजन तथा जल के प्रति निष्क्रिय हैं; क्योंकि इन धातुओं के पृष्ठों (surfaces) पर ऑक्साइड की फिल्म जम जाती है। फिर भी, बेरिलियम चूर्ण रूप में वायु में जलने पर BeO एवं Be3N2 बना लेता है। मैग्नीशियम अधिक धनविद्युतीय है, जो वायु में अत्यधिक चमकीले प्रकाश के साथ जलते हुए MgO तथा Mg3N2 बना लेता है। कैल्सियम, स्ट्रॉन्शियम एवं बेरियम वायु से शोघ्र अभिक्रिया करके ऑक्साइड तथा नाइट्राइड बनाते हैं। ये जल से और भी अधिक तीव्रता से अभिक्रिया करते है; यहाँ तक कि ठण्डे जल से अभिक्रिया कर हाइड्रॉक्साइड बनाते हैं।

(2) हैलोजेन के प्रति अभिक्रियाशीलता (Reactivity with halogens):
सभी क्षारीय मृदा धातुएँ हैलोजन के साथ उच्च ताप पर अभिक्रिया करके हैलाइड बना लेती हैं –
M + X2 → MX2 (X = F, Cl, Br, I)
BeF2 बनाने की सबसे सरल विधि (NH4), BeF4 का तापीय अपघटन है, जबकि BeCl2, ऑक्साइड से सरलतापूर्वक बनाया जा सकता है –

इन धातुओं के ऑक्साइडों, हाइड्रॉक्साइडों तथा कार्बोनेटों पर हैलोजेन अम्लों (HX) की प्रतिक्रिया द्वारा भी हैलाइड बनाए जा सकते हैं।
M + 2HX → MX2 + H2 ↑
MO + 2HX → MX2 + H2O
M(OH)2 + 2HX → MX2 + 2H2O
MCO3 + 2HX → MX2 + H2O + CO2 ↑

(3) हाइड्रोजन के प्रति अभिक्रियाशीलता (Reactivity with dihydrogen):
बेरिलियम के अतिरिक्त सभी क्षारीय मृदा धातुएँ गर्म करने पर डाइहाइड्रोजन से अभिक्रिया करके हाइड्राइड बनाती हैं।

BeH2 को BeCl2 एवं LiAlH4 की अभिक्रिया से बनाया – जा सकता है –
2BeCl2 + LiAlH4 → 2BeH2 + LiCl + AlCl3

BeH2 तथा MgH2 प्रवृत्ति में सहसंयोजी होते हैं, जबकि अन्य धातुओं के हाइड्राइडों की आयनिक संरचना होती है। आयनिक हाइड्राइड; जैसे – CaH2 (यह हाइड्रोलिथ भी कहलाता है।) जल से क्रिया करके डाइहाइड्रोजन गैस मुक्त करता है।

(4) अम्लों के प्रति अभिक्रियाशीलता (Reactivity with acids):
क्षारीय मृदा धातुएँ शीघ्र ही अम्लों से अभिक्रिया कर डाइहाड्रोजन गैस मुक्त करती हैं।
M + 2HCl → MCl2 + H2

(5) अपचायक प्रकृति (Reducing nature):
प्रथम वर्ग की धातुओं के समान क्षारीय मृदा धातुएँ प्रबल अपचायक हैं। इसका बोध इनके अधिक ऋणात्मक अपचयन विभव के मानों से होता है। यद्यपि इनकी अपचयन-क्षमता क्षार धातुओं की तुलना में कम होती है। बेरिलियम के अपचयन विभव का मान अन्य क्षारीय मृदा धातुओं से कम ऋणात्मक होता है फिर भी इसकी अपचयन-क्षमता का कारण Be2+ आयन के छोटे आकार, इसकी उच्च जलयोजन ऊर्जा एवं धातु की उच्च परमाण्वीयकरण ‘एन्थैल्पी का होना है।

(6) द्रव अमोनिया में विलयन (Solution in liquid ammonia):
क्षार धातुओं की भाँति क्षारीय मृदा धातुएँ भी द्रव अमोनिया में विलेय होकर गहरे नीले-काले रंग का विलयन बना लेती हैं। इस वियलन से धातुओं के अमोनीकृत आयन प्राप्त होते है –
M + (x + y)NH3 → [M(NH3)x]2+ + 2[e(NH3)y]
इन विलयनों से पुन: अमोनिएट्स (ammoniates) [M(NH3)6]2+ प्राप्त किए जा सकते हैं।

(7) कार्बोनेटों का बनना (Formation of carbonates):
धातु के हाइड्रॉक्साइडों के जलीय विलयनों में CO2 की वाष्प की सीमित मात्रा प्रवाहित करने पर धातुओं के कार्बोनेट सफेद अवक्षेप के रूप में प्राप्त किए जा सकते हैं।

प्रश्न 10.3
क्षार धातुएँ प्रकृति में क्यों नहीं पाई जाती हैं?
उत्तर:
क्षार धातुएँ प्रबल धन विद्युती तथा कम आयनन एन्थैल्पी गुण के कारण अधिक क्रियाशील होती हैं। ये अन्य तत्वों के साथ संयुक्त अवस्था में पाई जाती हैं। अत: ये प्रकृति में नहीं पाई जाती हैं।

प्रश्न 10.4
Na2O2 में सोडियम की ऑक्सीकरण अवस्था ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
माना Na2O2 में Na की आ०सं० x है।
∴ 2x + 2(-1) = 0
या 2x = 2 या x = +1

प्रश्न 10.5
पोटैशियम की तुलना में सोडियम कम अभिक्रियाशील क्यों है? बताइए।
उत्तर:
चूँकि पोटैशियम की तुलना में सोडियम की आयन एन्थैल्पी कम है, अतः सोडियम पोटैशियम अधिक धन-विद्युती तथा प्रबल अपचायक हैं। सोडियम की तुलना में पोटैशियम जल से अधिक तीव्रता से क्रिया करता है। अतः पोटैशियम की तुलना में सोडियम कम अभिक्रियाशील है।

प्रश्न 10.6
निम्नलिखित के सन्दर्भ में क्षार धातुओं एवं क्षारीय मृदा धातुओं की तुलना कीजिए –
(क) आयनन एन्थैल्पी
(ख) ऑक्साइडों की क्षारकता
(ग) हाइड्रॉक्साइडों की विलेयता।
उत्तर:
(क) आयनन एन्थैल्पी (lonisation enthaply):
क्षारीय मृदा धातुओं (वर्ग 2) की आयनन एन्थैल्पी समान आवर्त में उपस्थित क्षार धातुओं (वर्ग 1) की तुलना में अधिक होती है। इसका कारण क्षारीय मृदा धातुओं के परमाणुओं का छोटा आकार तथा अधिक सममिताकार विन्यास है।

उदाहरणार्थ –
सोडियम (Na) की प्रथम आयनन एन्थैल्पी = 496 kJmol-1
मैग्नीशियम (Mg) की प्रथम आयनन एन्थैल्पी = 737 kJmol-1

(ख) ऑक्साइडों की क्षारकता (Basicity of oxides):
क्षार धातुओं के ऑक्साइड समान आवर्त में उपस्थित क्षारीय मृदा धातुओं के ऑक्साइडों की तुलना में प्रबल क्षारक होते हैं। उदाहरणार्थ-जब Na2O को जल में घोला जाता है, NaOH प्राप्त होता है जो एक प्रबल क्षारक है, जबकि MgO को जल में घोलने पर दुर्बल क्षारक, Mg(OH2) प्राप्त होता है।

(ग) हाइड्रॉक्साइडों की विलेयता (Solubility of hydroxides):
क्षार धातु हाइड्रॉसाइड समान आवर्त में उपस्थित क्षारीय मृदा धातु हाइड्रॉसाइड की तुलना में जल में अधिक विलेय होते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि क्षारीय मृदा धातुओं के हाइड्रॉक्साइडों की जालक ऊर्जा (lattice energy) क्षार धातुओं के हाइड्रॉक्साइडों की तुलना में उच्च होती है।

प्रश्न 10.7
लीथियम किस प्रकार मैग्नीशियम से रासायनिक गुणों में समानताएँ दर्शाता है?
उत्तर:
लीथियम तथा मैग्नीशियम के रासायनिक गुणों में समानताएँ –
1. लीथियम तथा मैग्नीशियम दोनों के कार्बोनेट गर्म करने पर अपघटित हो जाते हैं।

2. दोनों नाइट्रोजन में जलकर नाइट्राइड बनाते हैं।
6Li + N2 → 2Li3N
3Mg + N2 → Mg3M2

3. LiCl तथा MgCl2 दोनों ही प्रस्वेद्य यौगिक हैं। ये जलीय विलयन में LiCl.2H2O तथा MgCl2. 8H2O के रूप में क्रिस्टलीकरण होते हैं।

प्रश्न 10.8
क्षार धातुएँ तथा क्षारीय मृदा धातुएँ रासायनिक अपचयन विधि से क्यों नहीं प्राप्त की जा सकती हैं? समझाइए।
उत्तर:
क्षार धातुएँ तथा क्षारीय मृदा धातुएँ परिवार के प्रबल अपचायक होते हैं, अतः इनके ऑक्साइडों को साधारण अपचायकों; जैसे-कार्बन (कोक), जिंक आदि की अभिक्रिया द्वारा अपचयित नहीं किया जा सकता है। इनके लवणों को गलित अवस्था में विद्युत-अपघटन कराने पर किया जा सकता है।

प्रश्न 10.9
प्रकाश-विद्युत सेल में लीथियम के स्थान पर पोटैशियम एवं सीजियम क्यों प्रयुक्त किए जाते हैं?
उत्तर:
लीथियम की आयनन एन्थैल्पी अत्यन्त उच्च होती है। इस कारण प्रकाश के फोटॉन लीथियम धातु की सतह से इलेक्टॉन निष्कासित नहीं कर पाते हैं। अतः लीथियम धातु को प्रयोग करने पर प्रकाश-विद्युत प्रभाव नहीं देखा जाता है। पोटैशियम तथा सीजियम की आयनन एन्थैल्पी अपेक्षाकृत कम होती है, इसलिए जब निश्चित न्यूनतम आवृत्ति के फोटॉन इन धातुओं की सतह से टकराते हैं तो इन धातुओं की सतह से इलेक्ट्रॉन सरलता से उत्सर्जित हो जाते हैं। इस कारण प्रकाश-विद्युत सेल में लीथियम के स्थान पर पोटैशियम एवं सीजियम प्रयुक्त किए जाते हैं।

प्रश्न 10.10
जब एक क्षार धातु को द्रव अमोनिया में घोला जाता है, तब विलयन विभिन्न रंग प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार के रंग-परिवर्तन का कारण बताइए।
उत्तर:
क्षार धातुएँ द्रव अमोनिया में घुलनशील हैं अमोनिया में इनके विलयन का रंग गहरा नीला होता है एवं विलयन प्रकृति में विद्युत का सुचालक होता है –
M + (x + y)NH3 → [M(NH3)x]+ + [e(NH3)y]
विलयन का नीला रंग अमोनीकृत इलेक्ट्रॉनों के कारण होता है, जो दृश्य प्रकाश क्षेत्र की संगत ऊर्जा का अवशोषण करके विलयन को नीला रंग प्रदान करते हैं। अमोनीकृत विलयन अनुचुम्बकीय (paramagnetic) होता है, जो कुछ समय पड़े रहने पर हाइड्रोजन को मुक्त होता है। फलस्वरूप विलयन में ऐमाइड बनता है।
M+ (am) + e + NH3 (l) → MNH2 (am) + 12H2 (g) (यहाँ ‘am’ अमोनीकृत विलयन दर्शाता है।) सान्द्र विलयन का नीला रंग ब्रॉन्ज में बदल जाता है और विलयन प्रतिचुम्बकीय हो जाता हैं।

प्रश्न 10.11
ज्वाला को बेरिलियम एवं मैग्नीशियम कोई रंग नहीं प्रदान करते हैं, जबकि अन्य क्षारीय मृदा धातुएँ ऐसा करती हैं, क्यों?
उत्तर:
Be तथा Mg परमाणुओं का आकार छोटा होता है। इससे इन दोनों के बाह्यतम कोशों के इलेक्ट्रॉन इतनी प्रबलता से बँधे रहते हैं जिससे ज्वाला की ऊर्जा द्वारा इनका उत्तेजित होना कठिन होता है। अतः ज्वाला को Be तथा Mg कोई रंग प्रदान नहीं करते हैं।

Be तथा Mg के अतिरिक्त क्षय मृदा धातु परिवार के अन्य सदस्य, कैल्शियम, स्ट्रॉन्शियम एवं बेरियम ज्वाला को क्रमशः ईंट जैसा लाल (brick red) रंग, किरमिची लाल (crimson red) एवं हरा (apple green) रंग प्रदान करते हैं। ज्वाला में उच्च ताप पर वाष्प-अवस्था में क्षारीय मृदा धातुओं के बाह्यतम कोश में इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होकर उच्च ऊर्जा स्तर पर चले जाते हैं। ये उत्तेजित इलेक्ट्रॉन जब पुन: अपनी तलस्थ अवस्था में लौटते हैं, तब दृश्य प्रकाश के रूप में ऊर्जा उत्सर्जित होती है। फलस्वरूप ज्वाला रंगीन दिखाई देने लगती है।

प्रश्न 10.12
सॉल्वे प्रक्रम में होने वाली विभिन्न अभिक्रियाओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
नमक के विलयन (ब्राइन विलयन) को अमोनिया से संतृप्त करके इसमें CO2 गैस प्रवाहित करने पर सोडियम बाइकार्बोनेट बनता है जिसे गर्म करने पर सोडियम कार्बोनेट प्राप्त हो जाता है।

इस प्रक्रम में NH4Cl विलयन को Ca(OH)2 की अभिक्रिया से अमोनिया को पुनः प्राप्त कर सकते हैं।
2NH4Cl + Ca(OH)2 → CaCl2 + 2H2O + 2NH3 ↑

प्रश्न 10.13
पोटैशियम कार्बोनेट सॉल्वे विधि द्वारा नहीं बनाया जा सकता है, क्यों?
उत्तर:
चूँकि पोटैशियम बाइकार्बोनेट के जल में अधिक विलेय होने के कारण इसे KCl के संतृप्त विलयन में अमोनियम बाइकार्बोनेट के संयोग द्वारा अवक्षेपित करना सम्भव नहीं है अतः साल्वे विधि द्वारा पोटैशियम कार्बोनेट नहीं बनाया जा सकता।

प्रश्न 10.14
Li2CO3 कम ताप पर एवं Na2CO3 उच्च ताप पर क्यों विघटित होता है?
उत्तर:
गर्म करने पर Li2CO3 विघटित होने पर Li2O तथा CO2 देता है। Li+ आयन का आकार छोटा होता है जिससे Li2O के जालक को Li2CO3 के जालक से अधिक स्थायी बनाता है जबकि Na+ आयन का आकार बड़ा होने के कारण Na2O के जालक को Na2CO3 के जालक से कम स्थायी बनाता है। अतः Li2CO3 कम ताप पर और Na2CO3 अधिक ताप पर विघटित होते हैं।

प्रश्न 10.15
क्षार धातुओं के निम्नलिखित यौगिकों की तुलना क्षारीय मृदा धातुओं के संगत यौगिकों से विलेयता एवं तापीय स्थायित्व के आधार पर कीजिए –
(क) नाइट्रेट
(ख) कार्बोनेट
(ग) सल्फेट।
उत्तर:
विलेयता एवं तापीय स्थायित्व के आधार पर क्षार धातुओं के यौगिकों की तुलना क्षारीय मृदा धातुओं के संगत यौगिकों से निम्नलिखित प्रकार की जा सकती है –

प्रश्न 10.16
सोडियम क्लोराइड से प्रारम्भ करके निम्नलिखित को आप किस प्रकार बनाएँगे?

  1. सोडियम धातु
  2. सोडियम हाइड्रॉक्साइड
  3. सोडियम परॉक्साइड
  4. सोडियम कार्बोनेट।

उत्तर:
1. सोडियम क्लोराइड से सोडियम धातु प्राप्त करना:
सोडियम क्लोराइड लवण का गलित अवस्था में विद्युत-अपघटनी अपचयन करने पर सोडियम धातु पर सोडियम धातु कैथोड पर प्राप्त होती है।

कैथोड पर: Na+ + e → Na
ऐनोड पर: Cl → Cl + e
Cl + Cl → Cl2

2. सोडियम क्लोराइड से सोडियम हाइड्रॉक्साइड प्राप्त करना-सोडियम क्लोराइड के जलीय विलयन का नेलसन सेल विद्युत अपघटन पर प्राप्त होता है।
NaCl → Na+ + Cl
H2O ⇄ H+ + OH
Na+ + OH → NaOH

3. सोडियम क्लोराइड से सोडियम परॉक्साइड प्राप्त करना-सर्वप्रथम सोडियम क्लोराइड के विद्युत अपघटनी अपचयन द्वारा सोडियम प्राप्त करते हैं। फिर धातु को 573K पर ऑक्सीजन के आधिक्य के साथ नमी तथा CO2 से मुक्त वायुमण्डल में गर्म करने पर सोडियम परॉक्साइड बनता है।

4. सोडियम क्लोराइड से सोडियम कार्बोनेट प्राप्त करना:
सर्वप्रथम सोडियम क्लोराइड के सान्द्र विलयन (लगभग 30%) CO2 में प्रवाहित करने पर सोडियम बाइकार्बोनेट का अवक्षेप प्राप्त हो जाता है।

विलयन में Na+ आयनों की उपस्थिति में सोडियम बाइकार्बोनेट है। अवक्षेप को छानकर अलग करके गर्म करने पर सोडियम कार्बोनेट प्राप्त होता है।

प्रश्न 10.17
क्या होता है, जब –

  1. मैग्नीशियम को हवा में जलाया जाता है –
  2. बिना बुझे चूने को सिलिका के साथ गर्म किया जाता है।
  3. क्लोरीन बुझे चुने से अभिक्रिया करती है।
  4. कैल्शियम नाइट्रेट को गर्म किया जाता है।

उत्तर:
1. मैग्नीशियम ऑक्साइड तथा मैग्नीशियम नाइट्राइड बनते हैं।

2. कैल्शियम सिलिकेट प्राप्त होता है।
CaO + SiO2 → CasiO3

3. कैल्शियम ऑक्सी-क्लोराइड (विरंजक चूर्ण) बनता है।

4. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड तथा ऑक्सीजन मुक्त होती है।

प्रश्न 10.18
निम्नलिखित में से प्रत्येक के दो-दो उपयोग बताइए –

  1. कॉस्टिक सोडा
  2. सोडियम कार्बोनेट
  3. बिना बुझा चूना।

उत्तर:
1. कॉस्टिक सोडा के उपयोग –
(क) साबुन, कुछ, कृत्रिम रेशम तथा कई अन्य रसायनों के निर्माण में।
(ख) पेट्रोलियम के परिष्करण में।
(ग) प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में।

2. सोडियम कार्बोनेट के उपयोग –
(क) जल के मृदुकरण, धुलाई एवं निर्मलन में।
(ख) काँच, साबुन बोरेक्स एवं कॉस्टिक सोडा के निर्माण में।
(ग) प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में।

3. बिना बुझा चूना के उपयोग –
(क) सीमेण्ट के निर्माण के लिए प्राथमिक पदार्थ के रूप में तथा क्षार के सबसे सस्ते रूप में।
(ख) शर्करा के शुद्धिकरण में एवं रंजकों के निर्माण में।
(ग) शर्करा के शुद्धिकरण में तथा रंजकों के निर्माण में।

प्रश्न 10.19
निम्नलिखित की संरचना बताइए –

  1. BeCl2 (वाष्प)
  2. BeCl2 (ठोस)।

उत्तर:

प्रश्न 10.20
सोडियम एवं पोटैशियम के हाइड्रॉक्साइड एवं कार्बोनेट जल में विलेय हैं, जबकि मैग्नीशियम एवं कैल्शियम के संगत लवण जल में अल्प विलेय हैं,समझाइए।
उत्तर:
दिए गए सभी यौगिक क्रिस्टलीय ठोस हैं तथा इनकी जल में विलेयता जालक एन्थैल्पी तथा जलयोजन एन्थैल्पी दोनों के द्वारा निर्धारित होती है। सोडियम तथा पोटैशियम यौगिकों की स्थिति में जालक एन्थैल्पी का परिमाण जलयोजन एन्थैल्पी की तुलना में अत्यन्त कम होता है। चूंकि धनायनों का आकार बड़ा होता है, इसलिए सोडियम तथा पोटैशियम के यौगिक जल में तुरन्त विलेय हो जाते हैं।

यद्यपि संगत मैग्नीशियम तथा कैल्शियम यौगिकों की स्थिति में धनायनों का आकार कम होता है तथा धनावेश का परिमाण अधिक होता है। इसका अर्थ है कि इनकी जलाक ऊर्जा (एन्थैल्पी) सोडियम तथा पोटैशियम के यौगिकों की तुलना में अधिक होती है। इसलिए इन धातुओं के हाइड्रॉक्साइड तथा कार्बोनेट जल में अल्प विलेय होते हैं।

प्रश्न 10.21
निम्नलिखित की महत्ता बताइए –

  1. चूना पत्थर
  2. सीमेण्ट
  3. प्लास्टर ऑफ पेरिस।

उत्तर:
1. चूना पत्थर की महत्ता:

  • संगमरमर के रूप में भवन के निर्माण में।
  • बुझे चूने के निर्माण में।
  • कैल्शियम काबोंनेट को मैग्नीशियम कार्बोनेट के साथ लोहे जैसी धातुओं के निष्कर्षण में फ्लक्स (flux) के रूप में।
  • विशेष रूप में अवक्षेपित CaCO3 के प्रयोग से वृहद् रूप में गुणवत्ता वाले कारज के निर्माण में।
  • ऐन्टासिड, टूथपेस्ट में अपमार्जक के रूप में, च्यूइंगम के संघटक एवं सौन्दर्य प्रसाधनों में पूरक के रूप में।

2. सीमेण्ट की महत्ता:
लोहा तथा स्टील के पश्चात् सीमेण्ट ही एक ऐसा पदार्थ है, जो किसी राष्ट्र की उपयोगी वस्तुओं की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसका उपयोग कंक्रीट (concrete), प्रबलित कंक्रीट (Reinforced concrete), प्लास्टरिंग, पुल-निर्माण आदि में किया जाता है।

3. प्लास्टर ऑफ पेरिस की महत्ता प्लास्टर ऑफ पेरिस का वृहत्तर उपयोग भवन निर्माण उद्योग के साथ-साथ टूटी हुई हड्डियों के प्लास्टर में भी होता है। इसका उपयोग दन्त-चिकित्सा-अलंकरण-कार्य एवं मूर्तियों तथा अर्द्ध-प्रतिमाओं को बनाने में भी होता है।

प्रश्न 10.22
लीथियम के लवण साधारणतया जलयोजित होते हैं, जबकि अन्य क्षार धातुओं के लवण साधारणतया निर्जलीय होते हैं, क्यों?
उत्तर:
लीथियम लवणों में Li+ आयन का आकार छोटा होता है। इस कारण ये लवण जल के साथ सम्पर्क में आने पर तुरन्त जलयोजित हो जाते हैं। परन्तु आयन क्षार धातु आयन अपेक्षाकृत बड़े आकार के होने के कारण जलयोजित नहीं होते हैं। अतः ये लवण निर्जलीय होते हैं।

प्रश्न 10.23
LiF जल में लगभग अविलेय होता है, जबकि LiCl न सिर्फ जल में, बल्कि ऐसीटोन में भी विलेय होता है। कारण बताइए।
उत्तर:
जल में LiF की अल्प विलेयता इसकी उच्च जालक एंथैल्पी के कारण होती है क्योंकि F आयन का आकार बहुत छोटा होता है। दूसरी ओर LiCl में जालक एंथैल्पी कम Cl के अपेक्षाकृत बड़े आकार के कारण होती है। इससे यह तात्पर्य है कि जलयोजन एंथैल्पी का परिमाण अधिक है। यह LiCl द्विध्रुवीय आकर्षण के कारण जल एवं ऐसीटोन दोनों में घुल जाता है।

प्रश्न 10.24
जैव-द्रवों में सोडियम, पोटैशियम मैग्नीशियम एवं कैल्शियम की सार्थकता बताइए।
उत्तर:
सोडियम एवं पोटैशियम का जैव-द्रवों में सार्थकता:
70 किग्रा भार वाले एक सामान्य व्यक्ति में लगभग 90 ग्राम सोडियम एवं 170 ग्राम पोटैशियम होता है, जबकि लोहा केवल 5 ग्राम तथा ताँबा 0.06 ग्राम होता है। सोडियम आयन मुख्यत: अन्तराकाशीय द्रव में उपस्थित रक्त प्लाज्मा जो कोशिकाओं को घेरे रहता है, में पाया जाता है। ये आयन शिरा संकेतों के संचरण में भाग लेते हैं, जो कोशिका झिल्ली में जलप्रवाह को नियमित करते हैं तथा कोशिकाओं में शर्करा और ऐमीनों अम्लों के प्रवाह को भी नियन्त्रित करते हैं।

सोडियम एवं पोटैशियम रासायनिक रूप में समान होते हुए भी कोशिका झिल्ली को पार करने की क्षमता एवं एन्जाइम को सक्रिय करने में मात्रात्मक रूप से भिन्न हैं। इसीलिए कोशिकाद्रव्य में पोटैशियम धनायन बहुतायत में होते हैं, जहाँ ये एन्जाइम को सक्रिय करते हैं तथा ग्लूकोस के ऑक्सीकरण से ATP बनने में भाग लेते हैं। सोडियम आयन शिरा-संकेतों के संचरण के लिए उत्तरदायी हैं।

कोशिका झिल्ली के अन्य भागों में पाए जाने वाले सोडियम एवं पोटैशियम आयनों की सान्द्रता से अत्यधिक भिन्नता पाई जाती है। उदाहरण के लिए-रक्त प्लाज्मा में लाल रक्त कोशिकाओं में सोडियम की मात्रा 143 mmol L-1 है, जबकि पोटैशियम का स्तर केवल 5mmol L-1 है। यह सान्द्रता 10mmol L-1 (Na+) एवं 105mmol L-1 (K+) तक परिवर्तित हो सकती है।

यह असाधारण आयनिक उतार-चढ़ाव, जिसे सोडियम-पोटैशियम पम्प कहते हैं, कोशिका झिल्ली पर कार्य करता है, जो मनुष्य की विश्रामावस्था के कुल उपभोगित ATP को एक-तिहाई से ज्यादा का उपयोग कर लेता है, जो मात्र लगभग 15 किलो जूल प्रति 24 घण्टे तक हो सकती है।

मैग्नीशियम एवं कैल्शियम की जैव द्रवों में सार्थकता:
एक वयस्क व्यक्ति में लगभग 25 ग्राम मैग्नीशियम एवं 1200 ग्राम कैल्शियम होता है, जबकि लोहा मात्रा 5 ग्राम एवं ताँबा 0.06 ग्राम होता है। मानव-शरीर में इनकी दैनिक आवश्यकता 200-300 मिग्रा अनुमानित की गई है। समस्त.एन्जाइम, जो फॉस्फेट के संचरण में ATP का उपयोग करते हैं, मैग्नीशियम का उपयोग सह-घटक के रूप में करते हैं। पौधों में प्रकाश-अवशोषण के लिए मुख्य रंजक (pigments) क्लोरोफिल में भी मैग्नीशियम होता है।

शरीर का 99% कैल्शियम दाँतों तथा हड्डियों में होता है। यह अन्तरतांत्रिकीय पेशीय कार्यप्रणाली, अन्तरतांत्रिकीय प्रेषण, कोशिका झिल्ली अखण्डता (cell membrane integrity) तथा रक्त-स्कन्दन (blood-coagulation) में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्लाज्मा में कैल्शियम की सान्द्रता लगभग 100mg L-1 होती है। दो हॉर्मोन कैल्सिटोनिन एवं पैराथायरॉइड इसे बनाए रखते हैं। चूँकि हड्डी अक्रिय तथा अपरिवर्तनशील पदार्थ नहीं है, यह किसी मनुष्य में लगभग 400 मिग्रा प्रतिदिन के अनुसार विलेयित और निक्षेपित होती है। इसका सारा कैल्शियम प्लाज्मा में से ही गुजरता है।

प्रश्न 10.25
क्या होता है जब –

  1. सोडियम धातु को जल में डाला जाता है।
  2. सोडियम धातु को हवा की अधिकता में गर्म किया जाता है।
  3. सोडियम परॉक्साइड को जल में घोला जाता है।

उत्तर:
1. हाइड्रोजन गैस मुक्त होती है।
2Na + 2H2O → 2NaOH + H2

2. सोडियम परॉक्साइड बनाता है।
2Na + O2 → Na2O2

3. ऑक्सीजन मुक्त होती है।
2Na2O2 + 2H2O → 4NaOH + O2

प्रश्न 10.26
निम्नलिखित में से प्रत्येक प्रेक्षण पर टिप्पणी लिखिए –
(क) जलीय विलयनों में क्षार धातु आयनों की गतिशीलता Li+ < Na+ < K+ < Rb+ < Cs+ क्रम में होती है।
(ख) लीथियम ऐसी एकमात्र क्षार धातु है, जो नाइट्राइड बनाती है।
(ग) M2+ (aq) + 2e → M(S) हेतु EΘ (जहाँ M = Ca, Sr या Ba) लगभग स्थिरांक है।
उत्तर:
(क) जलीय विलयनों में क्षार धातु आयनों की गतिशीलता निम्नलिखित क्रम में होती है –
Li+ < Na+ < K+ < Rb+ < Cs+
इसे धनायनों के जल में जलयोजित होने के आधार पर समझाया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप धनायन का आकार बढ़ने पर इसकी गतिशीलता घटती है। Li+ आयन छोटे आकार के कारण अधिकतम जलयोजित होता है तथा न्यूनतम गतिशीलता रखता है, जबकि Cs+ न्यूतनम जलयोजन के कारण अधिकतम गतिशीलता रखता है।

(ख) लीथियम एक प्रबल अपचायक है; अत: यह नाइट्रोजन से सीधे संयोग करे नाइट्राइड (Li3N) बनाता है।

(ग) क्षार धातुओं के इलेक्ट्रोड विभव (EΘ), जो M(s) से M+ (aq) तक सभी परिवर्तनों में अन्य धातुओं द्वारा प्रदर्शित अपचायक क्षमता को मापते हैं, तीन कारकों पर निर्भर करते हैं –
(a) ऊर्ध्वपातन
(b) आयनन तथा
(c) जलयोजन एन्थैल्पी। समीकरण
M2+ (aq) + 2e → M(s)
प्रदर्शित करती है कि Ca, Sr तथा Ba के मानक इलेक्ट्रोड विभव सदैव समान होते हैं।

प्रश्न 10.27
समझाइए कि क्यों –
(क) Na2CO3 का विलयन क्षारीय होता है।
(ख) क्षार धातुएँ उनके संगलित क्लोराइडों के विद्युत-अपघटन से प्राप्त की जाती हैं।
(ग) पोटैशियम की तुलना में सोडियम अधिक उपयोगी हैं।
उत्तर:
(क) Na2CO3 का जलीय विलयन जल अपघटन पर प्रबल क्षार तथा दुर्बल अम्ल देता है।

(ख) चूँकि क्षार धातुओं का मानक अपचयन विभव ऋणात्मक होता है, अतः क्षार धातुओं के क्लोराइड केवल गलित अवस्था में विद्युत अपघटन के रूप में से अपचयित होते हैं। अतः क्षार धातुएँ उनके संगलित क्लोराइडों के विद्युत अपघटन से प्राप्त की जाती है।

(ग) सोडियम के निम्नलिखित उपयोग हैं –

  • इसे रंजक उद्योग में प्रयुक्त करते हैं।
  • द्रव सोडियम धातु को नाभिकीय रिएक्टर में शीतलक के रूप में प्रयुक्त करते हैं।
  • इसे प्रबल अपचायक सोडियम अमलगम के रूप में प्रयुक्त करते हैं।
  • इसका उपयोग कार्बनिक यौगिकों में नाइट्रोजन सल्फर तथा हैलोजनों तत्त्वों की उपस्थिति के निर्धारण में करते हैं। पोटैशियम की जैवीय क्रियाओं में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान है।

प्रश्न 10.28
निम्नलिखित के मध्य क्रियाओं के संतुलित समीकरण लिखिए –
(क) Na2CO3 एवं जल
(ख) KO2 एवं जल
(ग) Na2O एवं CO2
उत्तर:
(क) Na2CO3 + H2O → 2NaOH + H2O + CO2
(ख) 2KO2 + 2H2O → 2KOH + H2O + O2
(ग) Na2O + CO2 → Na2CO3

प्रश्न 10.29
आप निम्नलिखित तथ्यों को कैसे समझाएँगे –
(क) BeO जल में अविलेय है, जबकि BeSO4 विलेय है।
(ख) BaO जल में विलेय है, जबकि BaSO4 अविलेय है।
(ग) एथेनॉल में LIL, KI की तुलना में अधिक विलेय है।
उत्तर:
(क) BeO की जालक ऊर्जा BesO4 की तुलना में उच्च होती है; क्योंकि O2- आयन का आकार छोटा होता है, जबकि SO42- आयन बड़े आकार का होता है। चूंकि उच्च जालक ऊर्जा पदार्थ के जल में विलेय होने का विरोध करती है; इसलिए BeO लगभग अविलेय होता है, जबकि BeSO4 जल में विलेय होता है।

(ख) बेरियम ऑक्साइड (BaO) जल में विलेय होता है; क्योंकि इसकी जलयोजन ऊर्जा इसकी जालक ऊर्जा से अधिक होती है। दूसरी ओर BaSO4 की जालक ऊर्जा इसके द्विसंयोजी आवेशों के कारण उच्च होती है; इसलिए मुक्त होने वाली जलयोजन ऊर्जा जालक ऊर्जा से अधिक नहीं हो पाती तथा बन्ध टूट नहीं पाते हैं। इस कारण BaSO4 अविलेय होता है।

(ग) लीथियम आयोडाइड प्रवृत्ति में थोड़ा सहसंयोजी होता है। इसका कारण इसकी ध्रुवणता है (Li+ छोटे आकार के कारण सर्वाधिक ध्रुवण-क्षमता रखता है तथा आयोडाइड आयन बड़े आकार के कारण अधिकतम ध्रुवित किया जा सकता है)। Li+ आयन की जलयोजन ऊर्जा K+ आयन से अधिक होती है; अत: Li+ आयन K+ आयन से बहुत अधिक जलयोजित हो जाते हैं। इसलिए LiI, KI की तुलना में अधिक विलेय है।

प्रश्न 10.30
इसमें से किस क्षार-धातु का गलनांक न्यूनतम है?
(क) Na
(ख) K
(ग) Rb
(घ) Cs
उत्तर:
(घ) Cs

प्रश्न 10.31
निम्नलिखित में से कौन-सी क्षार धातु जलयोजित लवण देती है?
(क) Li
(ख) Na
(ग) K
(घ) Cs
उत्तर:
(क) Li

प्रश्न 10.32
निम्नलिखित में से कौन-सी क्षारीय मृदा धातु कार्बोनेट ताप के प्रति सबसे अधिक स्थायी है?
(क) MgCO3
(ख) CaCO3
(ग) SrCO3
(घ) BaCO3
उत्तर:
(घ) BaCO3


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