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Thursday, June 23, 2022

BSEB Class 10 Science Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास (Heredity and Evolution) Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 10th Science Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास (Heredity and Evolution) Book Answers

BSEB Class 10 Science Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास (Heredity and Evolution) Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 10th Science Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास (Heredity and Evolution) Book Answers
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Bihar Board Class 10th Science Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास (Heredity and Evolution) Textbooks Solutions PDF

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Bihar Board Class 10th Science Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास (Heredity and Evolution) Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 10th
Subject Science Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास (Heredity and Evolution)
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Bihar Board Class 10 Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास InText Questions and Answers

अनुच्छेद 9.1 पर आधारित

प्रश्न 1.
यदि एक ‘लक्षण – A’ अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि के 10 प्रतिशत सदस्यों में पाया जाता है तथा ‘लक्षण – B’ उसी समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता
है, तो कौन-सा लक्षण पहले उत्पन्न हुआ होगा?
उत्तर:
लक्षण-B पहले उत्पन्न हुआ होगा; क्योंकि पीढ़ी-दर-पीढ़ी अनुकूलनता के कारण लक्षण का प्रतिशत बढ़ता जाता है।

प्रश्न 2.
विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज़ का अस्तित्व किस प्रकार बढ़ जाता है?
उत्तर:
किसी प्रजाति में वातावरणीय कारकों के प्रभाव से उत्पन्न विभिन्नताएँ उसे विपरीत परिस्थितियों में जीवित रखने में सहायक होती हैं। विभिन्नताएँ जैव विकास का आधार हैं।

अनुच्छेद 9.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
मेण्डल के प्रयोगों द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं?
या शुद्ध लम्बे तथा शुद्ध बौने पौधों के बीच एकसंकर संकरण का वर्णन कीजिए। (2018)
उत्तर:
मेण्डल ने दो विकल्पी मटर के पौधे चुने जैसे लंबे जो कि लंबे मटर के पौधे ही पैदा करते थे तथा बौने जो कि बौने मटर के पौधे ही उत्पन्न करते थे। मेण्डल ने इन दोनों पौधों का संकरण कराया, तो प्रथम संतति पीढ़ी (F1 ) में सभी मटर के पौधे लंबे उगे। इसका अर्थ यह है कि लंबाई का लक्षण ही F1 पीढ़ी संतति में दिखाई दिया और बौनेपन का लक्षण प्रदर्शित नहीं हुआ। जब मेण्डल ने F1 पीढी के पौधों में स्वपरागण कराया तो F2 पीढी में दोनों लक्षण दिखे अर्थात् लंबे पौधे भी और बौने भी (3 : 1 अनुपात में)। इसका अर्थ हुआ कि लंबे होने का लक्षण प्रभावी और बौनेपन का लक्षण अप्रभावी है।

यह इंगित करता है कि F1 पौधों द्वारा लंबाई एवं बौनेपन दोनों के विकल्पी लक्षणों की वंशानुगति हुई। F1 पीढ़ी में लंबाई वाला विकल्प अपने आपको व्यक्त कर पाया क्योंकि वह प्रभावी विकल्प है और बौनापन अप्रभावी विकल्प है।

प्रश्न 2.
मेण्डल के प्रयोगों से कैसे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं?
उत्तर:
मेण्डल ने दो विकल्पी जोड़ों गोल बीज वाले लंबे पौधों तथा झुर्शीदार बीज वाले बौने पौधों का संकरण कराया तो F1 पीढ़ी में सभी पौधे लंबे एवं गोल बीज वाले थे। अतः लंबाई तथा गोल बीज प्रभावी लक्षण हैं।
F1 पीढ़ी के पौधों का स्वपरागण कराने पर चार प्रकार के पौधे पाए गए –

F2 पीढ़ी की संतति:
में झुरींदार बीज वाले लंबे पौधे तथा गोल बीज वाले बौने पौधे नए संयोजन प्रदर्शित करते हैं, इससे सिद्ध होता है कि विभिन्न विकल्पी लक्षण स्वतन्त्र रूप से वंशानुगत होते हैं।

प्रश्न 3.
एक ‘A-रुधिर वर्ग’ वाला पुरुष एक स्त्री जिसका रुधिर वर्ग ‘O’ है, से विवाह करता है। उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग – ‘O’ है। क्या यह सूचना पर्याप्त है यदि आपसे कहा जाए कि कौन-सा विकल्प लक्षण-रुधिर वर्ग – ‘A’ अथवा ‘O’ प्रभावी लक्षण है? का स्पष्टीकरण दीजिए।
उत्तर:
यह सूचना पर्याप्त नहीं है। इसमें माता-पिता के इस लक्षण का जीनोम भी देना चाहिए। क्योंकि इस सूचना से यह नहीं पता चलता कि पिता में इस लक्षण के IIA जीन हैं अथवा IIO जीन हैं। पूर्वज्ञान के आधार पर हम कह सकते हैं कि IIO लक्षण प्रभावी है और पिता में IIO का जोड़ा होगा एवं माता में IIO विकल्प होंगे तथा पुत्री में IIO जीन का जोड़ा होगा।

प्रश्न 4.
मानव में बच्चे का लिंग-निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:
लिंग गुणसूत्र लिंग-निर्धारण का कार्य करते हैं –

  • महिलाओं में दोनों लिंग गुणसूत्र एक ही प्रकार युग्मक के होते हैं- X और X(XX)।
  • पुरुषों में दोनों लिंग गुणसूत्र भिन्न-भिन्न होते हैं- X और Y(XY)।
  • पुरुष दो प्रकार के शुक्राणु बराबर मात्रा में उत्पन्न करते हैं। एक प्रकार के शुक्राणुओं में X गुणसूत्र होता है जबकि दूसरे प्रकार के शुक्राणु Y गुणसूत्र रखते हैं।
  • महिलाएँ एक ही प्रकार के अंडाणु उत्पन्न करती हैं जिसमें x गुणसूत्र होते हैं।
  • जब X गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडे को निषेचित करता है तो (XX) युग्मनज लड़की में विकसित होता है।
  • जब Y गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडे को निषेचित करता है तो (XY) युग्मनज लड़के में विकसित होता है।

अनुच्छेद 9.3 पर आधारित

प्रश्न 1.
वे कौन-से विभिन्न तरीके हैं जिनके द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है?
उत्तर:
एक विशेष लक्षण वाले वयष्टि जीवों की संख्या समष्टि में निम्नलिखित कारणों से बढ़ सकती है –
1. जनन के दौरान विभिन्नता का उद्भव जो कि पर्यावरण के अनुकूल हो और इस विभिन्नता का वंशागत होना। उदाहरण के लिए, लाल भंग की समष्टि में हरे रंग के भंगों का उत्पन्न होना। कौए हरे रंग के भंग हरी पत्तियों के बीच पहचान नहीं पाते और लाल रंग के भुंग को शिकार बनाते हैं। जिससे लाल रंग के भृग की संख्या समष्टि में कम होती जाती है और हरे रंग के भंग की संख्या समष्टि में बढ़ती जाती है। यह एक प्राकृतिक चयन था जो कि कौओं के द्वारा सम्पन्न हुआ।

2. आकस्मिक दुर्घटनाओं के कारण। उदाहरण के लिए, भृग समष्टि में लाल भुंग नीले भंग की अपेक्षा संख्या में अधिक थे। परन्तु संयोग से एक हाथी ने उन झाड़ियों को कुचल डाला जिनमें भृग रहते थे। इसमें लाल रंग के भंग रौंद दिए गए पर कुछ नीले शृंग बच गए। धीरे-धीरे नीले रंग के भंगों की संख्या प्रजनन द्वारा बढ़ती जाती है जिससे समष्टि का रूप बदल जाता है। यह मात्र संयोग था कि एक दुर्घटना के कारण एक रंग की भृग समष्टि बच गई।

प्रश्न 2.
एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतः अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते। क्यों?
उत्तर:
उपार्जित लक्षण का प्रभाव केवल कायिक ऊतकों पर पड़ता है परन्तु जनन कोशिकाओं के डी०एन०ए० पर नहीं पड़ता। अतः ये लक्षण वंशानुगत नहीं होते।

प्रश्न 3.
बाघों की संख्या में कमी आनुवंशिकता के दृष्टिकोण से चिंता का विषय क्यों है?
उत्तर:
1. बाघों की संख्या में कमी दर्शाती है कि बाघ प्राकृतिक चयन में पिछड़ गए हैं। उनमें उत्तम परिवर्तन उत्पन्न नहीं हो रहे जो कि पर्यावरण के अनुकूल हों और जिसके कारण वे अपनी समष्टि का आकार बढ़ा सकें।

2. छोटी समष्टि पर दुर्घटनाओं का प्रभाव अधिक पड़ता है। छोटी समष्टि में दुर्घटनाएँ किसी जीन की आवृत्ति को भी प्रभावित कर सकती हैं चाहे उनका उत्तरजीविता हेतु कोई लाभ हो या न हो। प्राकृतिक चयन और दुर्घटनाओं के कारण बाघों की प्रजाति लुप्त भी हो सकती है।

अनुच्छेद 9.4 पर आधारित

प्रश्न 1.
वे कौन-से कारक हैं जो नयी स्पीशीज के उद्भव में सहायक हैं?
उत्तर:
निम्न कारक नयी स्पीशीज के उद्भव में सहायक हैं –

  1. प्राकृतिक चयन।
  2. जीन प्रवाह का न होना अथवा बहुत कम होना।
  3. आनुवंशिक विचलन।
  4. डी०एन०ए० में गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन जिससे कि दो समष्टियों के सदस्यों की जनन कोशिकाएँ (युग्मक) संलयन न कर पाएँ।
  5. दो उप-समष्टियों का रूपेण अलग होना जिससे कि उनके सदस्य परस्पर लैंगिक प्रजनन न कर पाएँ।

प्रश्न 2.
क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज़ के पौधों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है? क्यों या क्यों नहीं?
उत्तर:
नई स्पीशीज़ का उद्भव तब होता है जबकि एक समष्टि की दो उप-समष्टियाँ परस्पर लैंगिक जनन न कर पाएँ। लैंगिक जनन में डी०एन०ए० में आनुवंशिक विचलन एवं प्राकृतिक वरण और भौगोलिक पृथक्करण के कारण एक उप-समष्टि दूसरी उप-समष्टि से भिन्न होती जाती है। अन्ततः एक नई स्पीशीज़ का उद्भव होता है। स्वपरागित स्पीशीज़ में अन्य जीवों से नए जीन समष्टि में नहीं आ पाते।

अतः आने वाली पीढ़ियों में नए-नए संगठन नहीं हो पाते और अधिक विभिन्नताएँ उत्पन्न नहीं हो पातीं। ऐसे पौधों में विभिन्नता केवल तभी आती है जब डी०एन०ए० प्रतिकृति के समय त्रुटि के कारण डी०एन०ए० में परिवर्तन आ जाए जिसकी संभावना बहुत कम होती है। अतः भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज़ पौधों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण नहीं हो सकता।

प्रश्न 3.
क्या भौगोलिक पृथक्करण अलैंगिक जनन वाले जीवों के जाति उद्भव का प्रमुख कारक हो सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर:
भौगोलिक पृथक्करण अलैंगिक जनन वाले जीवों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण नहीं हो सकता। क्योंकि अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति में परस्पर बहुत कम अंतर होता है, समानताएँ बहुत अधिक होती हैं। जो थोड़ी-बहुत विविधता होती है वह DNA प्रतिकृति के समय न्यून त्रुटियों के कारण होती है। ये नई विभिन्नताएँ इतनी प्रमुख नहीं होती जिससे कि किसी नई जाति का उद्भव हो सके।

अनुच्छेद 9.5 पर आधारित

प्रश्न 1.
उन अभिलक्षणों का एक उदाहरण दीजिए जिनका उपयोग हम दो स्पीशीज के विकासीय संबंध निर्धारण के लिए करते हैं?
उत्तर:
समजात अभिलक्षण से भिन्न दिखाई देने वाली विभिन्न स्पीशीज़ के बीच विकासीय सम्बन्ध की पहचान करने में सहायता मिलती है। उदाहरण के लिए, मेंढक, छिपकली, पक्षी तथा मनुष्य के अग्रपादों की आधारभूत संरचना एकसमान है। यद्यपि ये विभिन्न कशेरुकों में भिन्न-भिन्न कार्य करने के लिए रूपान्तरित हैं। ये समजात अंग समान पूर्वज की ओर इशारा करते हैं।

प्रश्न 2.
क्या एक तितली और चमगादड़ के पंखों को समजात अंग कहा जा सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर:
तितली और चमगादड़ के पंख समजात अंग नहीं होते। ये समरूप अंग हैं जो उड़ने का कार्य करते हैं। कारण तितली के पंखों की संरचना चमगादड़ के पंख से बिल्कुल भिन्न होती है। चमगादड़ के पंख में अग्रपाद की अंगुली की हड्डियाँ होती हैं जबकि तितली के पंख में हड्डियाँ नहीं होती।

प्रश्न 3.
जीवाश्म क्या हैं? वे जैव-विकास प्रक्रम के विषय में क्या दर्शाते हैं?
उत्तर:
लाखों अथवा हजारों साल पहले पाए जाने वाले जीवों के परिरक्षित कठोर अवशेष, चट्टानों पर पैरों के निशान, मिट्टी में बने मृत जीवों के साँचे आदि को जीवाश्म कहते हैं।

जीवाश्म हमें जैव विकास के बारे में निम्नलिखित बातें दर्शाते हैं –
1. ऐसी कौन-सी स्पीशीज़ हैं जो कभी जीवित थीं परन्तु अब लुप्त हो गई हैं।
2. ऐसे जीवों के अवशेष जीवाश्म के रूप में मिले हैं जोकि एक वर्ग के जीवों का उनसे विकसित उच्च वर्ग के बीच की कड़ी के जीवों का स्वरूप बताते हैं।
उदाहरण के लिए, आर्कीऑप्टैरिक्स जीवाश्म में कुछ लक्षण सरीसृप के हैं तो अन्य लक्षण पक्षियों के। यह इंगित करता है कि पक्षी सरीसृप से विकसित हुए
3. जीवाश्म पृथ्वी के अंदर विभिन्न स्तर पर खुदाई करके निकाले जाते हैं। इससे पता चलता है कि पृथ्वी की सतह के निकट पाए जाने वाले जीवाश्म गहरे स्तर पर पाए गए जीवाश्मों की अपेक्षा अधिक नए हैं।

अनुच्छेद 9.6 पर आधारित

प्रश्न 1.
क्या कारण है कि आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई पड़ने वाले मानव एक ही स्पीशीज़ के सदस्य हैं?
उत्तर:
आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई पड़ने वाले मानव एक ही स्पीशीज़ (होमो सैपिएन्स) के सदस्य हैं।

1. यह बात उत्खनन, समय-निर्धारण, जीवाश्म अध्ययन तथा डी०एन०ए० अनुक्रम के निर्धारण द्वारा सिद्ध होती है। हम सभी का उद्भव अफ्रीका से हुआ। जहाँ से हमारे पूर्वज सारे संसार में फैले और उनमें धीरे-धीरे आकृति, आकार, रंग-रूप की विभिन्नता आती गई। परन्तु उनके डी०एन०ए० में ऐसा कोई परिवर्तन नहीं हुआ जो उनको नई जाति-उद्भव का स्तर दे पाता।

2. किसी भी स्पीशीज़ के सदस्य किसी अन्य स्पीशीज के सदस्यों के साथ सफल लैंगिक प्रजनन नहीं कर पाते (गुणसूत्रों की संरचना तथा संख्या में भिन्नता के कारण)। परन्तु मानव आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न होते हुए भी परस्पर सफल लैंगिक प्रजनन कर सकते हैं। उनसे उत्पन्न संतति अपनी पीढी बनाए रख सकती है। वे परस्पर रक्त का अनुदान कर सकते हैं। अतः आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई पड़ने वाले मानव एक ही स्पीशीज़ के सदस्य हैं।

प्रश्न 2.
विकास के आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि जीवाणु, मकड़ी, मछली तथा चिम्पैंजी में किसका शारीरिक अभिकल्प उत्तम है? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जीवाणु, मछली, मकड़ी तथा चिम्पैंजी में से चिम्पैंजी में शारीरिक अभिकल्प की जटिलता सबसे अधिक है। चिम्पैंजी का शारीरिक डिज़ाइन, विकसित शारीरिक अंग संस्थान, मस्तिष्क का जीवाणु, मकड़ी और मछली से अधिक विकसित होना तथा हाथों में अंगूठे का अँगुलियों के विपरीत होना जिससे वे चीजें पकड़ सकें आदि लक्षण उनको बाकी सभी से उत्तम बना देते हैं। हालाँकि विकास की दृष्टि से इसे अतिउत्तम नहीं माना जा सकता।

क्योंकि सरलतम अभिकल्प वाले जीवाणु के समूह विभिन्न पर्यावरण में आज भी पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, जीवाणु आज भी विषम पर्यावरण; जैसे कि-उष्ण झरने, गहरे समुद्र के गर्म स्रोत तथा अन्टार्कटिका की बर्फ में भी पाए जाते हैं। दूसरे शब्दों में यह नहीं कहा जा सकता कि चिम्पैंजी का शारीरिक अभिकल्प अन्य से उत्तम है, वरन् वह जैव विकास शृंखला में उत्पन्न एक और स्पीशीज़ है।

Bihar Board Class 10 Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मेण्डल के एक प्रयोग में लंबे मटर के पौधे जिनके बैंगनी पुष्प थे, का संकरण बौने पौधों जिनके सफेद पुष्प थे, से कराया गया। इनकी संतति के सभी पौधों में पुष्प बैंगनी रंग के थे। परंतु उनमें से लगभग आधे बौने थे। इससे कहा जा सकता है कि लंबे जनक पौधों की आनुवंशिक रचना निम्न थी।
(a) TTWW
(b) TTww
(c) TtWW
(d) TtWw
उत्तर:
(c) TtWW

प्रश्न 2.
समजात अंगों का उदाहरण है –
(a) हमारा हाथ तथा कुत्ते के अग्रपाद
(b) हमारे दाँत तथा हाथी के दाँत
(c) आलू एवं घास के उपरिभूस्तारी
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 3.
विकासीय दृष्टिकोण से हमारी किससे अधिक समानता है?
(a) चीन के विद्यार्थी
(b) चिम्पैंजी
(c) मकड़ी।
(d) जीवाणु
उत्तर:
(a) चीन के विद्यार्थी

प्रश्न 4.
एक अध्ययन से पता चला कि हलके रंग की आँखों वाले बच्चों के जनक (माता-पिता) की आँखें भी हलके रंग की होती हैं। इसके आधार पर क्या हम कह सकते हैं कि आँखों के हलके रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी?
उत्तर:
इस विवरण के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि आँखों के हलके रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी। क्योंकि जनक (माता-पिता) दोनों में ही आँखें हलके रंग की हैं। यह हो सकता है कि माता तथा पिता में जीन के दोनों विकल्प अप्रभावी हों। इसलिए आँखों के रंग का दूसरा विकल्प है ही नहीं। अतः सन्तान में हलके रंग की आँखें पाई गईं। अगर दूसरी संधारणा पर विचार करें कि आँखों का हलके रंग का लक्षण प्रभावी है तो इस अवस्था में कुछ बच्चों की आँखें गहरे रंग की होनी चाहिए। क्योंकि अप्रभावी लक्षण 4 में से 1 बच्चे (3 : 1 अनुपात में) में व्यक्त होना चाहिए।

प्रश्न 5.
जैव-विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन क्षेत्र किस प्रकार परस्पर संबंधित है?
उत्तर:
जैव-विकास के अध्ययन से पता चलता है कि पहले उत्पन्न जीवों का शरीर बाद में उत्पन्न जीवों के शरीर से सरलतम है। अर्थात् जीवों के शरीर में सरलता से जटिलता की तरफ विकास हुआ है। यही आधार वर्गीकरण का भी है। जीवों को उनके शरीर के डिज़ाइन के आधार पर ही विभिन्न वर्गों में रखा गया है। अत: जैव-विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन परस्पर संबंधित है।

प्रश्न 6.
समजात तथा समरूप अंगों को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
समजात अंग उन अंगों को जो अलग-अलग स्पीशीज़ के जीवों में अलग-अलग कार्य करते हैं परन्तु आधारभूत संरचना में एकसमान हैं, समजात अंग कहते हैं। उदाहरण के लिए, पक्षी के पंख तथा मनुष्य का हाथ दोनों ही रूपान्तरित अग्रपाद हैं। समरूप अंग ऐसे अंग जो अलग-अलग जीवों में एकसमान कार्य करते हैं परन्तु उनकी आधारभूत संरचना समान नहीं होती है, उन्हें समरूप अंग कहते हैं। उदाहरण के लिए, तितली के पंख और कबूतर के पंख दोनों ही उड़ने का कार्य करते हैं, परन्तु कबूतर के पंख में हड्डियाँ होती हैं, तितली के पंख में नहीं होती।

प्रश्न 7.
कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग कत्ता कुतिया ज्ञात करने के उद्देश्य से एक काली खाल (BB) x (bb) सफ़ेद खाल प्रोजेक्ट बनाइए।
उत्तर:
इसके लिए एक शुद्ध काली खाल वाले कुत्ते (BB) तथा एक शुद्ध सफेद खाल वाली F1 संतान पिल्ले कुतिया (bb) का चयन किया जाता है। उनका समय पर संकरण कराएँ। यदि उनसे उत्पन्न सभी पिल्ले (कुत्ते के बच्चे) काली खाल वाले हैं, तो (Bb) सभी काली खाल वाले काली खाल का लक्षण प्रभावी है।

प्रश्न 8.
विकासीय संबंध स्थापित करने में जीवाश्म का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
जीवाश्म पुराने जीवों के अवशेष अथवा चिह्न या साँचे होते हैं। जीवाश्मों के अध्ययन से पता चलता है कि अमक जीव कब पाया जाता था, कब लुप्त हो गया, जीवों के विकास क्रम में पहले जीवों की संरचना कैसी थी और बाद में उसमें क्या-क्या परिवर्तन होते गए।

प्रश्न 9.
किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है?
या स्टैनले मिलर के प्रयोग का सचित्र वर्णन कीजिए। (2011, 12, 13, 17)
उत्तर:
वैज्ञानिक जे०बी०एस० हाल्डेन ने 1929 ई. में सुझाव दिया कि जीवों की सर्वप्रथम उत्पत्ति उन सरल अकार्बनिक अणुओं से ही हुई होगी जो पृथ्वी को उत्पत्ति के समय बने थे। स्टेनले मिलर तथा हेराल्ड सी० यूरे ने 1953 ई. में प्रयोग किए और प्रमाण दिए कि सरल अकार्बनिक अणुओं से कार्बनिक अणु उत्पन्न हो सकते हैं। उन्होंने ऐसे वातावरण का निर्माण किया जो सम्भवतः प्राथमिक वातावरण के समान था।

जिसमें अमोनिया, मीथेन तथा हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) गैसें तो थीं परन्तु स्वतन्त्र ऑक्सीजन नहीं थी। पात्र में जल भी था। इस सम्मिश्रण को 100°C से कुछ कम ताप पर रखा गया। गैसों के इस मिश्रण में कृत्रिम रूप से समय-समय पर चिंगारियाँ उत्पन्न की गईं; जैसे किआकाश में तड़ित बिजली उत्पन्न होती है।

इस प्रयोग में देखा गया कि 15% मीथेन का कार्बन उपयोग हुआ और सरले अकार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित हो गया। इन अकार्बनिक यौगिकों में विभिन्न, अमीनो अम्ल भी संश्लेषित हुए जो कि प्रोटीन के अणुओं के निर्माण के लिए आवश्यक हैं। उपर्युक्त प्रमाण के आधार पर हम परिकल्पना कर सकते हैं कि शायद जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है।

प्रश्न 10.
अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं, व्याख्या कीजिए। यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों के विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
अलैंगिक जनन में जनक एक ही होता है और उसी का डी०एन०ए० संतति में जाता है। अतः संतति में विभिन्नता तभी आती है जब डी०एन०ए० प्रतिकृति में त्रुटियाँ हों जो कि न्यून होती हैं। लैंगिक जनन में दो जनक होते हैं जो कि डी०एन०ए० का एक-एक सेट संतति को प्रदान करते हैं। इससे संतति में भिन्न-भिन्न लक्षणों का समावेश होता है और अलैंगिक जनन से लैंगिक जनन में विविधता अपेक्षाकृत अधिक होती है।

लैंगिक जनन से उत्पन्न विभिन्नताएँ जीन (डी०एन०ए०) में परिवर्तन के कारण होती हैं। अतः ये स्थिर होती हैं और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होती हैं। प्राकृतिक चयन के कारण वही विभिन्नताएँ प्रगति करती हैं जो कि पर्यावरण वरण के अनुकूल हों। अतः समय काल में मौजूदा पीढ़ी अपने पूर्वजों से इतनी भिन्न हो सकती हैं कि वे उनसे लैंगिक जनन न कर पाएँ और एक अन्य स्पीशीज़ के रूप में उभरकर आ जाएँ तथा जीवों के विकास में सहायक हों।

प्रश्न 11.
संतति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर:
जैसा कि चित्र में दिखाया गया है कि मटर के गोल बीज वाले लंबे पौधों का यदि झुर्रादार बीज वाले बौने पौधों से संकरण कराया जाए तो F2 पीढी में P RRYy लंबे/बौने लक्षण तथा गोल/झुरींदार लक्षण स्वतन्त्र रूप से (गोल, हरे बीज) (झुरींदार, पीले बीज) वंशानुगत होते हैं।

यदि संतति पौधे को जनक पौधे से संपूर्ण जीनों का एक पूर्ण सेट प्राप्त होता है तो चित्र में दिया प्रयोग सफल नहीं हो सकता। क्योंकि दो लक्षण R तथा Y सेट में एक-दूसरे से संलग्न रहेंगे तथा स्वतन्त्र रूप में आहरित नहीं हो सकते। (गोल, पीले बीज) वास्तव में जीन सेट केवल एक डी०एन०ए० श्रृंखला के रूप में न होकर, डी०एन०ए० के अलग-अलग स्वतन्त्र अणु के रूप में होते हैं। इनमें से प्रत्येक एक गुणसूत्र का अनुपात निर्माण करता है।

इसलिए प्रत्येक कोशिका में प्रत्येक गुणसूत्र की दो प्रतिकृति होती है। जिनमें से एक उन्हें नर तथा दूसरी मादा जनक से प्राप्त होते हैं। प्रत्येक जनक कोशिका से गुणसूत्र के प्रत्येक जोड़े का केवल एक गुणसूत्र ही एक जनन कोशिका (युग्मक) में जाता है। जब दो युग्मकों का संलयन होता है, तो इनसे बने युग्मज में गुणसूत्रों की संख्या पुनः सामान्य हो जाती है। इस प्रकार लैंगिक जनन 556 बीज द्वारा संतति में जनक कोशिकाओं जैसी ही गुणसूत्रों की संख्या निश्चित बनी रहती है।

प्रश्न 12.
“केवल वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी होती हैं, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों एवं क्यों नहीं?
उत्तर:
इस कथन से हम सहमत हैं; क्योंकि जो विभिन्नताएँ एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी हैं, वे वर्तमान पर्यावरण के अनुकूल हैं और प्राकृतिक चयन प्रक्रम में वे अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। इसका अर्थ है कि समय के साथ-साथ इन विभिन्नताओं वाले जीव समष्टि में प्रमुख हो जाएँगे क्योंकि इनकी विभिन्नताएँ (लक्षण) परिवर्तित पर्यावरण में जीवित रह सकती हैं। ये जीव प्रकृति में सफल रहेंगे तथा अपनी संतति को सतत बनाए रख सकते हैं।

Bihar Board Class 10 Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास Additional Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आनुवंशिकता के प्रयोग के लिए मेण्डल ने निम्नलिखित में से कौन-से पौधों का उपयोग किया? (2016, 18)
(a) पपीता
(b) आलू
(c) मटर
(d) अंगूर
उत्तर:
(c) मटर

प्रश्न 2.
विपरीत लक्षणों के जोड़ों को कहते हैं – (2013)
(a) युग्मविकल्पी या एलिलोमॉर्फ
(b) निर्धारक
(c) समयुग्मजी
(d) समरूप
उत्तर:
(a) युग्मविकल्पी या एलिलोमॉर्फ

प्रश्न 3.
मटर में बीजों का गोल आकार तथा पीला रंग दोनों होते हैं –
(a) अप्रभावी
(b) अपूर्ण प्रभावी
(c) संकर
(d) प्रभावी
उत्तर:
(d) प्रभावी

प्रश्न 4.
उद्यान मटर में अप्रभावी लक्षण है – (2015, 16)
(a) लम्बे तने
(b) झुर्रादार बीज
(c) गोल बीज
(d) फैली हुई फली
उत्तर”:
(b) झुरींदार बीज

प्रश्न 5.
एकसंकर संकरण के F2 पीढ़ी में शुद्ध तथा संकर लक्षणों वाले पौधों का अनुपात होगा
(a) 2 : 1
(b) 3 : 1
(c) 1 : 1
(d) 1 : 3
उत्तर:
(c) 1 : 1

प्रश्न 6.
एक संकर क्रॉस का जीन प्रारूप अनुपात होता है –
(a) 3 : 1
(b) 1 : 2 : 1
(c) 2 : 1 : 2
(d) 9 : 3 : 3 : 1
उत्तर:
(b) 1 : 2 : 1

प्रश्न 7.
मटर के लम्बे पौधों का क्रॉस बौने पौधों से कराने पर प्रथम पीढ़ी में लम्बे मटर के पौधे प्राप्त होते हैं, द्वितीय पीढ़ी में प्राप्त पौधे होंगे (2017)
(a) लम्बे तथा बौने दोनों
(b) लम्बे मटर के पौधे
(c) बौने मटर के पौधे
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) लम्बे तथा बौने दोनों

प्रश्न 8.
F2 पीढ़ी में 3 : 1 अनुपात प्राप्त होता है – (2015)
(a) एक संकर क्रॉस में
(b) द्विसंकर क्रॉस में
(c) (i) तथा (ii) दोनों में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) एक संकर क्रॉस में

प्रश्न 9.
पृथक्करण का नियम प्रस्तुत किया था – (2012, 14)
(a) चार्ल्स डार्विन ने
(b) ह्यूगो डी वीज ने
(c) जॉन ग्रेगर मेण्डल ने
(d) राबर्ट हुक ने
उत्तर:
(c) जॉन ग्रेगर मेण्डल ने।

प्रश्न 10.
गुणसूत्र किस पदार्थ के बने होते हैं? (2013)
(a) प्रोटीन
(b) आर०एन०ए०
(c) डी०एन०ए०
(d) डी०एन०ए० और प्रोटीन
उत्तर:
(d) डी०एन०ए० और प्रोटीन

प्रश्न 11.
मनुष्य में कौन-सा गुणसूत्र जोड़ा स्त्रीलिंग निर्धारण करता है?
(a) XY
(b) XX
(c) XXY
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) XX

प्रश्न 12.
सामान्य मनुष्य में गुणसूत्रों की संख्या है –
(a) 45
(b) 46
(c) 30
(d) 23
उत्तर:
(b) 46

प्रश्न 13.
मनुष्य के शुक्राणु में ऑटोसोम की संख्या कितनी होती है? (2016)
(a) 22
(b) 24
(c) 42
(d) 44
उत्तर:
(d) 44

प्रश्न 14.
मनुष्य में लड़का पैदा होगा जब –
(a) माँ का पोषण गर्भावस्था में अधिक पौष्टिक हो
(b) पिता माँ से अधिक शक्तिशाली हो
(c) बच्चे में XY गुणसूत्र हों
(d) बच्चे में XX गुणसूत्र हों
उत्तर:
(c) बच्चे में XY गुणसूत्र हों

प्रश्न 15.
लक्षण, जिनके जीन्स x गुणसूत्रों पर होते हैं, कहलाते हैं। (2011)
(a) लिंग प्रभावित
(b) लिंग सहलग्न
(c) लिंग सीमित
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) लिंग सहलग्न

प्रश्न 16.
जीवन की उत्पत्ति हई – (2012)
(a) सागर में
(b) धरती पर
(c) वायुमण्डल में
(d) अंतरिक्ष में
उत्तर:
(a) सागर में

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आनुवंशिकता की खोज करने वाले वैज्ञानिक का पूरा नाम बताइये। या आनुवंशिकता के जनक का नाम बताइये।
या आनुवंशिकता के जन्मदाता कौन थे? (2012, 13)
उत्तर:
ग्रेगर जॉन मेण्डल।

प्रश्न 2.
मेण्डल ने आनुवंशिकता का प्रयोग किस पौधे पर किया था? उसका वैज्ञानिक नाम लिखिए। (2018)
उत्तर:
मटर। वैज्ञानिक नाम-पाइसम सटाइवम (Pisum satism)

प्रश्न 3.
मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के पौधे को क्यों चुना? (2017)
उत्तर:
मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के पौधे को चुना; क्योंकि –
1. मटर कम समय में ही उगने वाला पौधा है जिसे आसानी से उगाया जा सकता है तथा इसमें स्वपरागण के फलस्वरूप अनेक बीज बनाने की समान क्षमता है।
2. मटर में विभिन्न-विभिन्न लक्षणों वाली प्रजातियाँ सरलता से मिल जाती हैं तथा ये विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में भी सामान्य प्रजनन क्षमता रखती हैं।

प्रश्न 4.
प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षणों से आप क्या समझते हैं? (2017)
उत्तर:
एक लक्षण के दो कारकों में जो अपना प्रभाव प्रदर्शित करता है वह प्रभावी लक्षण कहलाता है जबकि दूसरा जो होते हुए भी अपने प्रभाव को प्रदर्शित नहीं कर पाता, उसे अप्रभावी लक्षण कहते हैं।

प्रश्न 5.
लक्षणरूपी 9:3:3:1 मेण्डल के किस नियम का प्रतिपादन करता है?
उत्तर:
स्वतन्त्र अपव्यूहन के नियम का।

प्रश्न 6.
मनुष्य के नर तथा मादा गुणसूत्रों को प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
नर गुणसूत्र = 22 + XY तथा मादा गुणसूत्र = 22 + XX गुणसूत्र।

प्रश्न 7.
यदि किसी जीव की कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या 20 है, तो उसकी जनन कोशिकाओं में कितने गुणसूत्र होंगे?
उत्तर:
जनन कोशिका अर्थात् युग्मकों में n = 10 गुणसूत्र होंगे।

प्रश्न 8.
प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में डी०एन०ए० कहाँ पाया जाता है? (2013)
उत्तर:
प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में डी०एन०ए० एक गुणसूत्र के रूप में कोशिकाद्रव्य में पड़ा रहता है।

प्रश्न 9.
आनुवंशिक रोग किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो रोग आनुवंशिक विशेषकों की त्रुटिपूर्ण संख्या. प्रभावी या अप्रभावी स्वरूप आदि के कारण पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंशानुगत होते रहते हैं, उन्हें आनुवंशिक रोग कहते हैं।

प्रश्न 10.
किस आनुवंशिक लक्षण के जीन्स x गुणसूत्रों पर पाये जाते हैं? (2011)
उत्तर:
वर्णान्धता।

प्रश्न 11.
यदि किसी व्यक्ति को हल्की चोट लगने पर भी रक्तस्राव नहीं रुकता तो उसे कौन-सा रोग हो सकता है?
उत्तर:
उसे हीमोफीलिया रोग है।

प्रश्न 12.
लिंग सहलग्नता से सम्बन्धित किन्हीं दो बीमारियों के नाम लिखिए। (2013, 15, 18)
उत्तर:
हीमोफीलिया तथा वर्णान्धता लिंग सहलग्न रोग हैं।

प्रश्न 13.
एक व्यक्ति हीमोफीलिया का रोगी है और उसकी पत्नि में हीमोफीलिया का एक जीन है। उस दंपत्ति के बच्चों में रोग से ग्रसित होने की संभावना क्या होगी? (2013)
उत्तर:
50%

प्रश्न 14.
यदि किसी बच्चे में 46 के स्थान पर 47 गुणसूत्र हों, तो उस बच्चे में किस प्रकार के रोग होने की सम्भावना है? या एक बच्चे में 47 गुणसूत्र हैं। उसे किस रोग की सम्भावना है?
उत्तर:
उसे मंगोली जड़ता रोग हो सकता है। इस प्रकार का दोष

प्रश्न 15.
मानव आनुवंशिकी विशेषकों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मनुष्य में जो लक्षण वंशानुगत होते हैं उन्हें मानव आनुवंशिकी विशेषक कहते हैं।

प्रश्न 16.
स्वत: जनन सिद्धान्त में विश्वास रखने वाले किसी एक वैज्ञानिक का नाम बताइये। या स्वतः जननवाद मत के प्रवर्तक का नाम लिखिये।
उत्तर:
स्वत: जनन सिद्धान्त में बैप्टिस्ट वॉन हेलमॉण्ट (1652) का विश्वास था।

प्रश्न 17.
मिलर ने अपने प्रयोग में कौन-कौन सी गैसों का मिश्रण लिया?
उत्तर:
मिलर ने अपने प्रयोग में मेथेन (CH4) अमोनिया (NH3) हाइड्रोजन (H2) तथा जलवाष्प (H2O) गैसें लीं।

प्रश्न 18.
जीवन के उद्भव का आधुनिक ओपेरिन सिद्धान्त क्या है ? (2011, 13)
उत्तर:
रूस के प्रसिद्ध जीव-रसायनज्ञ ए० आई० ओपेरिन ने नवीनतम खोजों के आधार पर जीवन के उद्भव की जीव-रसायन परिकल्पना प्रस्तुत की। इस परिकल्पना के अनुसार आदिकालीन पृथ्वी पर केवल कार्बनिक यौगिक उपस्थित थे जो समुद्र के जल में घुले हुए थे। इन्हीं यौगिकों के संयोग से एक ऐसी रचना का निर्माण हुआ जिसमें जीवन के लक्षण विद्यमान थे।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आनुवंशिकता को परिभाषित कीजिए। इसकी खोज कब और किसने की? (2011, 17)
उत्तर:
कुछ ऐसे लक्षण सभी जीवों में होते हैं, जो उन्हें अपने जनकों से प्राप्त होते हैं और पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते रहते हैं। इन लक्षणों को आनुवंशिक लक्षण कहते हैं। इन लक्षणों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी या एक जीव से दूसरे जीव में जाना आनुवंशिकता (heredity) कहलाता है। आनुवंशिकता के कारण ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवों में समानता बनी रहती है।

इसी कारण मनुष्य की सन्तान मनुष्य, बन्दर की सन्तान बन्दर, गाय की सन्तान गाय तथा हाथी की सन्तान सदैव हाथी ही रहती है। विज्ञान की उस शाखा को जिसमें आनुवंशिक लक्षणों के माता-पिता से सन्तान में आने की रीतियों का अध्ययन करते हैं, आनुवंशिकी कहते हैं। इसकी खोज ग्रेगर जॉहन मेण्डल ने सन् 1866 में की।

प्रश्न 2.
मानव आनुवंशिकी से आप क्या समझते हैं? इसके जनक कौन थे? इसके क्या लाभ हैं? (2013)
उत्तर:
मानव आनुवंशिकी में मनुष्य के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाने वाले लक्षणों या गुणों का अध्ययन किया जाता है। मानव आनुवंशिकी के जनक गाल्टन थे। मानव आनुवंशिकी के लाभ (Advantages of Human Genetics) मानव आनुवंशिकी का अध्ययन मानव समाज के लिए अनेक प्रकार से लाभप्रद है। इसके द्वारा मानव संततियों में आने वाले रोगों के बारे में अध्ययन किया जाता है। इन रोगों के निदान के बारे में जानकारी प्राप्त कर, मनुष्य इनकी चिकित्सा पहले से ही कर सकता है।

सुजननिकी (eugenics) द्वारा अच्छे लक्षणों की वंशागति के लिए समाज के आनुवंशिकी स्तर का अध्ययन किया जाता है। इसके बाद निषेधात्मक (negative) अथवा स्वीकारात्मक (positive) विधियाँ काम में लायी जाती हैं, अर्थात् निम्नकोटि के आनुवंशिकी लक्षणों की वंशागति से व्यक्तियों को रोका जाता है अथवा उच्च कोटि के लक्षणों वाले व्यक्तियों को वंशागति के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

दोनों प्रकार की सुजननिकी. के लिए विभिन्न प्रकार की विधियाँ प्रयोग में लायी जाती हैं; जैसे-निषेधात्मक सुजननिकी के लिए वैवाहिक प्रतिबन्ध, बन्ध्यीकरण, सन्तति नियन्त्रण आदि के लिए गर्भपात इत्यादि; तथा स्वीकारात्मक सुजननिकी के लिए उत्कृष्ट चयन, उच्च आनुवंशिक लक्षणों का अधिकाधिक उपयोग, उच्चकोटि के लक्षणों वाले पुरुष का वीर्य संचित करना तथा कृत्रिम गर्भाधान के लिए उसका उपयोग करना आदि।

यूथेनिक्स (euthenics) द्वारा पहले से ही वंशानुगत गुणों को अच्छा वातावरण प्रदान कर उपचारित किया जा सकता है। वर्तमान समय में जीन की खोजों के आधार पर अच्छे जीन को खराब जीन के स्थान पर बदला जा सकता है। इसको जीन सर्जरी तथा जीन इन्जीनियरिंग या जीन अभियान्त्रिकी (genic surgery and genetic engineering) कहा जाता है। इस प्रकार हम मानव आनुवंशिकता का अध्ययन करके एक सुदृढ़ मानव समाज की कल्पना कर सकते हैं, जिसमें कोई भी मनुष्य बीमार, निम्नस्तरीय अथवा बुद्धिहीन उत्पन्न नहीं होगा।

प्रश्न 3.
आनुवंशिकी के गुणसूत्र सिद्धान्त का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर:
इस सिद्धान्त के अनुसार –

  1. सभी जीवों में प्रत्येक लक्षण के लिए कम-से-कम एक जोड़ी जीन या कारक अवश्य होते हैं।
  2. आनुवंशिक लक्षणों के जीन या आनुवंशिक कारक गुणसूत्रों पर पंक्तिबद्ध होते हैं और गुणसूत्रों के साथ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत होते हैं।
  3. बहुकोशिकीय जीवों में जनन कोशिकाओं के माध्यम से विभिन्न पीढ़ियों में जैविक सम्बन्ध स्थापित रहता है। इसका अर्थ है कि आनुवंशिक लक्षणों के जीन जनन कोशिकाओं या युग्मकों द्वारा दूसरी पीढ़ी के जीवों में पहुँचते हैं।
  4. किसी जीव के लक्षणों में शुक्राणु व अण्डाणु दोनों ही का बराबर का योगदान होता है।
  5. युग्मक निर्माण के समय अर्धसूत्री विभाजन में गुणसूत्रों के व्यवहार से प्रमाणित होता है कि जीन गुणसूत्रों पर होते हैं।
  6. जीवों की प्रत्येक कोशिका में गुणसूत्र जोड़ों में मिलते हैं किन्तु युग्मकों में प्रत्येक गुणसूत्र-युग्म में से केवल एक गुणसूत्र होता है।
  7. अगुणित शुक्राणु व अण्डाणु के संलयन से बना युग्मज द्विगुणित होता है जिससे पूर्ण जीव का विकास होता है।

प्रश्न 4.
एकसंकर तथा द्विसंकर क्रॉस से आप क्या समझते हैं? उदाहरण देते हुए समझाइए। (2015, 17)
उत्तर:
एकसंकर संकरण Monohybrid cross विपरीत लक्षण वाले नर तथा मादा के मध्य जब केवल एक जोड़ा विपरीत लक्षणों के अध्ययन के लिए संकरण कराया जाता है तो इन विपरीत लक्षणों के संकरण को एकसंकर (गुण) संकरण कहते हैं; जैसे-लाल फूल वाले तथा सफेद फूल वाले पौधों के मध्य संकरण। द्विसंकर संकरण Dihybrid cross जब विपरीत लक्षणों वाले नर तथा मादा के मध्य दो जोड़ा विपरीत लक्षणों के अध्ययन के लिए संकरण कराया जाता है तो इसे द्विसंकर संकरण कहते हैं; जैसे-पीले-गोल बीज वाले और हरे-झुरींदार बीज वाले पौधों के मध्य संकरण।

प्रश्न 5.
प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षण में अन्तर कीजिए। (2013)
उत्तर:
प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षण में अन्तर –

प्रश्न 6.
लक्षण प्रारूप तथा जीन प्रारूप में अन्तर कीजिए। (2011, 12, 16, 18)
या जीनोटाइप तथा फीनोटाइप में अन्तर कीजिए। (2013, 15, 18)
या फीनोटाइप एवं जीनोटाइप को स्पष्ट कीजिए। (2018)
उत्तर:
जीनोटाइप या जीन प्ररूपी आकारिक लक्षण में जीव चाहे जैसा हो उसमें पायी जाने वाली जीनी संरचना को जीन प्ररूपी या जीनोटाइप कहते हैं। फीनोटाइप या समलक्षणी जीन किसी भी प्रकार की हों यदि बाह्य रूप में समान लक्षण या उसका प्रभाव दिखायी दे रहा है तो उसे समलक्षणी या फीनोटाइप कहते हैं।

प्रश्न 7.
समयुग्मजी तथा विषमयुग्मजी में अन्तर कीजिए। (2011, 12, 16)
उत्तर:
समयुग्मजी तथा विषमयुग्मजी में अन्तर –

प्रश्न 8.
एलिलोमॉर्फ एवं कारक को उदाहरण सहित समझाइए। (2011)
या एलील पर टिप्पणी लिखिए। (2012)
उत्तर:
एलील या एलिलोमॉर्फ विपरीत लक्षणों वाले युग्मों को एलील्स कहते हैं; जैसे – पौधों की लम्बाई के लिए लम्बा-बौना, बीज के लिए गोल-झुरींदार, पुष्प के लिए लाल-सफेद रंग इत्यादि। कारक जीवों में सभी लक्षण इकाइयों के रूप में होते हैं जिन्हें कारक कहते हैं। प्रत्येक इकाई लक्षण कारकों के एक युग्म से नियन्त्रित होता है। इनमें से एक कारक मातृक तथा दूसरा पैतृक होता है। युग्म के दोनों कारक विपरीत प्रभाव के हो सकते हैं, किन्तु उनमें से एक ही कारक अपना प्रभाव प्रदर्शित कर सकता है। दूसरा छिपा रहता है।

प्रश्न 9.
शुद्ध एवं संकर जाति ( नस्ल) में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2013)
उत्तर:
शुद्ध एवं संकर जाति (नस्ल) में अन्तर –

प्रश्न 10.
गुणसूत्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2013)
या कायिक गुणसूत्र एवं लिंग गुणसूत्र में अन्तर कीजिए। (2013)
उत्तर:
‘गुणसूत्र’ शब्द का प्रयोग वाल्डेयर (Waldeyer) ने सन् 1888 में उन गहरी अभिरंजित छड़ सदृश रचनाओं के लिए किया था जो केन्द्रक में कोशिका विभाजन के समय दिखाई देती हैं। ये केन्द्रक में पाये जाने वाले न्यूक्लिओ-प्रोटीन जालक के संघनन से बनते हैं। गुणसूत्र या क्रोमोसोस का अर्थ है रंगीन कार्य।

गुणसूत्रों के कार्य

  • आनुवंशिकी में भूमिका गुणसूत्र पर जीन्स उपस्थित होते हैं, जीन्स आनुवंशिक लक्षणों के वाहक होते हैं।
  • जनक की इकाई गुणसूत्रों के प्रतिलिपिकरण से संतति गुणसूत्र बनते हैं जो संतति कोशिकाओं में पहुँचते हैं।

गुणसूत्रों के प्रकार:
1. कायिक गुणसूत्र या ऑटोसोम (Autosome) जो गुणसूत्र लिंग-लक्षणों को छोड़कर जीन के अन्य लक्षणों का निर्धारण करते हैं, कायिक गुणसूत्र कहलाते हैं। ये नर तथा मादा दोनों प्रकार के जीवों में समान होते हैं।

2. लिंग गुण सूत्र (Sex chromosomes) जो गुणसूत्र लिंग-निर्धारण करते हैं उन्हें लिंग गुणसूत्र या हेटरोसोम कहते हैं। ये नर तथा मादा में अलग-अलग होते हैं। ये प्राय: X तथा Y गुणसूत्र कहलाते हैं। मनुष्य में लिंग निर्धारण XY गुणसूत्र द्वारा होता है। मनुष्य में 22 जोड़ी कायिक या ऑटोसोम तथा एक जोड़ी लिंग गुणसूत्र या हेटरोसोम होते हैं।

प्रश्न 11.
जीन का क्या अर्थ है? जीन की प्रकृति संक्षेप में समझाइये। (2018)
या जीन क्या है? इसका सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया? इसकी उपयोगिता का उल्लेख कीजिए। (2014, 15)
उत्तर:
सभी जीवों में आनुवंशिक लक्षणों का नियन्त्रण एवं संचरण आनुवंशिक इकाइयों द्वारा होता है। मेण्डल ने इन इकाइयों को कारक (factor) कहा था तथा जोहनसन ने इनके लिए जीन शब्द का प्रयोग किया।
जीन की विशेषताएँ –

  1. जीन गुणसूत्र के क्रोमोनीमा पर माला के मोतियों के समान रैखिक क्रम में लगी रचनाएँ हैं जो आनुवंशिक लक्षणों का नियन्त्रण करती हैं।
  2. जीन संचरण की इकाई (unit of transmission) हैं जो जनक से सन्तानों में पहुँचती हैं।
  3. जीन उत्परिवर्तन की इकाई (unit of mutation) हैं जिनकी संरचना में परिवर्तन होता रहता है।
  4. जीन कार्यिकी की इकाई (physiological units) हैं। ये जीवों के विभिन्न लक्षणों का नियन्त्रण करती हैं।
  5. जीन DNA का वह भाग है जिसमें एक प्रोटीन या पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला के संश्लेषण की सूचना होती है।

प्रश्न 12.
मनुष्य में लिंग सहलग्न गुण से क्या तात्पर्य है? वे किस प्रकार वंशागत होते हैं? (2013, 14)
या लिंग सहलग्न लक्षण को समझाइए। (2017)
या लिंग सहलग्न रोग क्या है? मानव के किन्हीं दो लिंग सहलग्न रोगों के नाम लिखिए। (2018)
उत्तर:
लिंग सहलग्न लक्षण तथा इनकी वंशागति:
प्राय: लिंग गुणसूत्रों पर जो लक्षणों के जीन्स होते हैं, उनका सम्बन्ध लैंगिक लक्षणों से होता है। ये जीन्स ही जन्तु में लैंगिक द्विरूपता के लिए जिम्मेदार होते हैं, फिर भी जन्तुओं की लैंगिकता अत्यन्त जटिल तथा व्यापक होती है और इसे बनाने के लिए अनेक अन्य जीन्स, जो सामान्य गुणसूत्रों पर होते हैं, भी प्रभावी होते हैं। दूसरी ओर लिंग गुणसूत्रों पर कुछ जीन्स लैंगिक लक्षणों के अतिरिक्त अन्य लक्षणों वाले अर्थात् कायिक या दैहिक लक्षणों वाले भी होते हैं। ये लिंग सहलग्न जीन्स कहलाते हैं, और लिंग सहलग्न लक्षण उत्पन्न करते हैं।

इनकी वंशागति लिंग सहलग्न वंशागति अथवा लिंग सहलग्नता (sex linkage) कहलाती है। मनुष्य में लगभग 120 प्रकार के लक्षणों की वंशागति ज्ञात है। मनुष्य में लिंग निर्धारित करने वाले गुणसूत्र; X तथा Y गुणसूत्र कहलाते हैं। यद्यपि इनकी संरचना में भिन्नता दिखायी देती है, फिर भी वर्तमान जानकारी के अनुसार इन गुणसूत्रों में कुछ भाग समजात होता है। ये भाग अर्द्धसूत्री विभाजन के समय सूत्रयुग्मन करते हैं, अन्यथा शेष भाग असमजात होता है।

उपर्युक्त आधार पर लिंग-सहलग्न लक्षण तीन प्रकार के हो सकते हैं –
1. X-सहलग्न लक्षण X गुणसूत्रों के असमजात खण्डों पर इनके लक्षणों के जीन्स स्थित होते हैं अर्थात् इनके एलील्स Y गुणसूत्र पर नहीं होते। वंशागति में ये लक्षण पुत्रों को केवल माता से तथा पुत्रियों को माता व पिता दोनों से प्राप्त हो सकते हैं। इन्हें डायेण्ड्रिक (diandric) लिंग सहलग्न लक्षण भी कहा जाता है; जैसे-वर्णान्धता (colour blindness), रतौंधी (night blindness) तथा हीमोफीलिया (haemophilia)।

2. Y-सहलग्न लक्षण इसके जीन्स Y गुणसूत्रों के असमजात खण्डों पर स्थित होते हैं। इस प्रकार सहयोगी x गुणसूत्रों पर इनके एलील्स नहीं पाये जाते, अत: प्रत्येक संतति में पिता से केवल पुत्रों तक ही जाते हैं। इन्हें होलैण्ड्रिक लिंग सहलग्न गुण भी कहते हैं तथा इनकी वंशागति को होलैण्डिक वंशागति कहा जाता है; उदाहरणार्थ-बाह्य कर्ण पर बालों की उपस्थिति।

3. XY-सहलग्न लक्षण इनके जीन्स एलील्स के रूप में X एवं Y गुणसूत्रों के समजात खण्डों पर स्थित होते हैं, अतः इनकी वंशागति पुत्रों एवं पुत्रियों में सामान्य ऑटोसोमल लक्षणों की भाँति होती है। इन्हें अपूर्ण लिंग सहलग्न गुण भी कहा जाता है।

प्रश्न 13.
लिंग प्रभावित एवं लिंग सीमित लक्षणों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। (2011)
उत्तर:
लिग प्रभावित लक्षण मनुष्य में कुछ ऐसे लक्षण भी होते हैं जिनके जीन्स तो ऑटोसोम्स पर होते हैं, परन्तु इनका विकास व्यक्ति के लिंग से प्रभावित होता है अर्थात् पुरुष और स्त्री में जीनप्ररूप (genotype) समान होते हुए भी लक्षणप्ररूप (phenotype) भिन्न होता है। उदाहरण के लिए मनुष्य में गंजापन (baldness) काफी पाया जाता है। यह विकिरण, थाइरॉइड ग्रन्थि की अनियमितताओं आदि के कारण हो सकता है अथवा आनुवंशिक भी होता है।

आनुवंशिक गंजापन एक ऑटोसोमल एलीलोमॉर्फिक जीन जोड़ा (B, b) पर निर्भर करता है। समयुग्मकी प्रभावी जीनप्ररूप (BB) हो तो गंजापन पुरुषों और स्त्रियों दोनों में विकसित होता है, लेकिन विषमयुग्मकी जीनप्ररूप (Bb) होने पर यह स्त्रियों में नहीं, केवल पुरुषों में ही प्रदर्शित होता है क्योंकि इस जीनप्ररूप के प्रदर्शित होने के लिए नर हॉर्मोन्स का होना आवश्यक होता है। समयुग्मकी अप्रभावी जीनप्ररूप (bb) में गंजापन नहीं होता है।

लिंग सीमित लक्षण
कुछ ऑटोसोम्स पर कुछ ऐसे आनुवंशिक लक्षणों के जीन्स भी होते हैं जिनकी वंशागति सामान्य मेण्डेलियन नियमों के अनुसार ही होती है, किन्तु इनका विकास पीढ़ी-दर-पीढ़ी केवल एक ही लिंग के सदस्यों में होता है। इस प्रकार का प्रदर्शन इनमें विशेष हॉर्मोन्स (hormones) के बनने के कारण होता है। गाय, भैंस आदि में दुग्ध का स्रावण, भेड़ों की कुछ जातियों में केवल नर में सींगों का विकास, पुरुष में दाढ़ी आदि के लक्षण ऐसे ही होते हैं। इनको हम लिंग सीमित लक्षण कहते हैं।

प्रश्न 14.
मनुष्य में वर्णान्धता की वंशागति को समझाइए। यदि वर्णान्ध पुरुष सामान्य स्त्री से विवाह करता है, तो उनसे उत्पन्न सन्तानों में वर्णान्धता की वंशागति स्पष्ट कीजिए। (2016)
उत्तर:
वर्णान्ध पुरुष के x-गुणसूत्र पर वर्णान्धता का जीन होता है। यह जीन पिता से पुत्री में और पुत्री से पुत्र में वंशागत होता है। सामान्य स्त्री एवं वर्णान्ध पुरुष की पुत्रियाँ वाहक होती हैं क्योंकि इनमें सामान्य X-गुण सूत्र माता से और वर्णान्ध जीन वाला गुणसूत्र पिता से मिलता है। वर्णान्ध व्यक्ति (XC Y) व सामान्य स्त्री (XX) की सभी सन्ताने सामान्य होती हैं क्योंकि सभी पुत्रों को माता से सामान्य X-गुणसूत्र मिलता है अत: वे सभी सामान्य होते हैं।

पुत्रियों को सामान्य X-गुणसूत्र माता से तथा दूसरा X गुणसूत्र पिता से प्राप्त होता है जिस पर वर्णान्धता का जीन होता है। इस जीन के अप्रभावी होने के कारण पुत्रियों में वर्णान्धता का लक्षण प्रकट नहीं हो पाता। ये केवल वाहक होती हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मेण्डल के आनुवंशिकता के नियमों की विवेचना कीजिए। (2018)
या मेण्डल के वंशागति के नियमों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। (2011, 12, 14, 18)
या मेण्डल के प्रभाविता नियम (प्रथम नियम ) से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए। (2012, 15)
या मेण्डल का प्रथम नियम लिखिए। इसको विस्तृत रूप से समझाइए। (2016)
या यदि शुद्ध लम्बा एवं शुद्ध बौना पौधों के मध्य संकरण हो, तो ई पीढ़ी में किस प्रकार के वंशज प्राप्त होंगे? (2011)
या मेण्डल के पृथक्करण नियम को उपयुक्त उदाहरण सहित समझाइए। (2013, 16, 17)
या मेण्डल द्वारा प्रतिपादित स्वतन्त्र अपव्यूहन नियम उदाहरण देकर समझाइए। (2014)
उत्तर:
मेण्डल के आनुवंशिकता के नियम या मेण्डलवाद मेण्डल ने मटर के विभिन्न गुणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया और संकरण प्रयोगों से प्राप्त परिणामों के आधार पर वंशागति के महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले। उनके बाद जब डी वीज, कार्ल कॉरेन्स तथा एरिक वॉन शैरमैक नामक तीन वैज्ञानिकों ने अलग-अलग मेण्डल जैसे प्रयोग किये तथा उनसे मेण्डल के काम की पुष्टि हुई तब जाकर मेण्डल का सिद्धान्त प्रकाश में आ सका। मेण्डल के सैद्धान्तिक बिन्दुओं का ही तीनों वैज्ञानिकों ने नियमों के रूप में प्रतिपादन किया। इन्हें मेण्डल के आनुवंशिकता के नियम कहा गया।

ये नियम निम्नलिखित हैं –
1. एकल लक्षण तथा प्रभाविता का नियम जीवों में सभी लक्षण इकाइयों के रूप में होते हैं। इन्हें कारक (जीन) कहते हैं। प्रत्येक इकाई लक्षण कारकों के एक युग्म से नियन्त्रित होता है। वास्तव में, इसमें से एक कारक मातृक तथा दूसरा पैतृक होता है। युग्म के दोनों कारक एक-दूसरे के विपरीत प्रभाव के हो सकते हैं, किन्तु उनमें से एक ही कारक अपना प्रभाव प्रदर्शित कर सकता है, दूसरा छिपा रहता है। जब विपरीत लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है, तो उनकी सन्तानों में इन लक्षणों में से एक लक्षण ही परिलक्षित होता है और दूसरा दिखाई नहीं देता। पहले लक्षण को प्रभावी तथा दूसरे लक्षण को अप्रभावी कहते हैं।

उदाहरणार्थ:
जब शुद्ध समयुग्मजी (गुणसूत्रों में एक ही प्रकार के लक्षणों की उपस्थिति) लम्बे तथा शुद्ध बौने पौधों के बीच संकरण कराया जाता है, तो प्रथम सन्तानीय पीढ़ी (F1) में विपरीत लक्षणों में से केवल एक लक्षण (लम्बापन), जो प्रभावी है, दिखाई देता है और अप्रभावी लक्षण (बौनापन) छिपा रहता है। (F1) पीढ़ी के सन्तान पौधे विषमयुग्मजी Tt होते हैं।

2. लक्षणों के पृथक्करण का नियम जब F पीढ़ी के विषमयुग्मजी पौधों में स्वपरागण (self pollination) कराया जाता है, तो दूसरी पीढ़ी (F2) की सन्तानों में परस्पर विपरीत लक्षणों का एक निश्चित अनुपात में पृथक्करण हो जाता है। इसे लक्षणों के पृथक्करण का नियम कहते हैं। इससे स्पष्ट है कि प्रथम पीढ़ी में साथ-साथ रहने पर भी लक्षणों का आपस में मिश्रण नहीं होता और युग्मक निर्माण के समय ये लक्षण अलग-अलग हो जाते हैं अर्थात् युग्मकों की शुद्धता बनी रहती है। इसलिए इस नियम को युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहते हैं।

उदाहरणार्थ:
मटर के पौधे के संकरण के उपर्युक्त उदाहरण में द्वितीय पीढ़ी (F2 पीढ़ी) प्राप्त करने के लिए जब स्वपरागण कराया जाता है तो लम्बेपन तथा बौनेपन के लक्षण फिर से प्राप्त हो जाते हैं। अर्थात् लम्बेपन का कारक (T) तथा बौनेपन का कारक (t) शुद्ध रूप में फिर से मिलकर 3 : 1 के अनुपात में लम्बे तथा बौने पौधे उत्पन्न करते हैं। इनमें 25% शुद्ध लम्बे, 50% संकर लम्बे तथा 25% शुद्ध बौने पौधे होते हैं अर्थात् यह अनुपात 1:2 :1 का होता है।

3. स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम जब दो लक्षणों के लिए दो जोड़ा विपरीत प्रभावों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है, तो इन लक्षणों का पृथक्करण स्वतन्त्र रूप से होता है, अर्थात् एक लक्षण की वंशागति दूसरे को प्रभावित नहीं करती है।

इस नियम को मेण्डल ने द्विसंकर क्रॉस से स्पष्ट किया। इसके लिए उन्होंने दो प्रकार के मटर के पौधों को चुना। एक प्रकार के पौधे के बीज का आकार गोल तथा रंग पीला था। दूसरे प्रकार के पौधे के बीज का आकार झुर्सदार तथा रंग हरा था। इन दो विपरीत प्रभावों के लक्षणों वाले पौधों में संकरण कराने पर जो प्रथम सन्तानीय पीढ़ी (F1) प्राप्त हुई उसमें सभी बीज गोल तथा पीले थे। इस पीढ़ी (F2) के स्वपरागण से उत्पन्न द्वितीय सन्तानीय पीढ़ी (F1) में चार प्रकार के बीज प्राप्त हुए।
(क) गोल व पीले
(ख) गोल व हरे
(ग) झुरींदार व पीले
(घ) झुरींदार व हरे।

उपर्युक्त चार प्रकार के बीजों के प्राप्त होने से यह स्पष्ट होता है कि (F2) पीढ़ी की सन्तानों में दोनों लक्षण गोल आकार व पीला रंग तथा झुरींदार आकार व हरा रंग जो जनकों में एक साथ थे, संकरण से प्राप्त F1 पीढ़ी में अलग-अलग लक्षणों के प्रभाव से पृथक् हो गये तथा (F2) पीढ़ी में ये स्वतन्त्र रूप से संयुक्त होकर प्रकट हुए। इसी कारण झुर्रादार बीजों के साथ पीला रंग भी और गोल बीजों के साथ हरा रंग भी प्रकट हुआ। इससे यह स्पष्ट होता है कि लक्षणों का पृथक्करण स्वतन्त्र रूप से होता है और एक लक्षण की वंशागति दूसरे को प्रभावित नहीं करती है। यहाँ बीज के आकार व रंग का F2 पीढ़ी में अनुपात= 9:3:3:1

प्रश्न 2.
मेण्डल के स्वतन्त्र अपव्यूहन के नियम को द्विसंकरीय संकरण द्वारा स्पष्ट कीजिए। (2014)
या मेण्डल के द्विसंकर संकरण से आप क्या समझते हैं? मटर के गोल एवं पीले बीजों का मटर के हरे व झुर्रादार बीजों के साथ संकरण किया। F1 पीढ़ी में या सभी मटर के बीज पीले व गोल थे।F2 पीढ़ी का फीनोटाइप का अनुपात ज्ञात कीजिए। (2014)
या द्विसंकर क्रॉस क्या होता है? इसको उदाहरण सहित समझाइए। (2015, 17)
या स्वतन्त्र अपव्यूहन से आप क्या समझते हैं? केवल रेखाचित्र द्वारा द्विसंकर क्रॉस समझाइए। (2017, 18)
उत्तर:
द्विसंकरीय संकरण –
जब दो युग्म विकल्पी लक्षणों वाले पौधों में संकरण कराया जाता है तो उसे द्विसंकरीय या द्विसंकर संकरण (dihybrid cross) कहते हैं। एक उदाहरण में मटर के बीज के बीजावरण के रंग तथा उसके आकार के आधार पर अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन के लिए निम्न प्रकार के मटर के बीज लिए गये तथा संकरण कराया गया –

इन दो युग्मविकल्पी लक्षणों वाले पौधों में संकरण कराने पर जो प्रथम सन्तानीय पीढ़ी (F1) उत्पन्न हुई उसमें सभी बीज गोल तथा पीले थे। इस प्रथम सन्तानीय पीढ़ी (F1) से उत्पन्न द्वितीय सन्तानीय पीढ़ी (F2) में चार प्रकार के बीज प्राप्त हुए।

  • गोल-पीले
  • गोल-हरे
  • झुरींदार-पीले
  • झुरींदार-हरे।

इन चार प्रकार के बीजों में 9 : 3 : 3 : 1 का अनुपात था अर्थात् 16 बीजों में से 9 बीज गोल-पीले, 3 बीज गोल-हरे, 3 बीज झुरींदार-पीले तथा 1 बीज झुरींदार-हरा प्राप्त हुआ अर्थात् बीजावरण का पीला या हरा रंग बीज के गोल या झुरींदार आकार में से किसी के साथ भी जा सकता है। या यों कहें – “किसी लक्षण के कारक युग्म में से कारकों का चयन स्वतन्त्र होता है।”

प्रश्न 3.
लिंग गुणसूत्र का क्या अर्थ है? मनुष्य में लिंग निर्धारण किस प्रकार होता है? रेखाचित्र की सहायता से समझाइए। (2012, 15)
लिंग गुणसूत्र पर टिप्पणी लिखिए। (2013)
लिंग निर्धारण को समझाइए। (2013)
लिंग गुणसूत्र से आप क्या समझते हैं? नर तथा मादा में लिंग गुणसूत्र का विन्यास लिखिए। (2014)
उत्तर:
लिंग गुणसूत्र मनुष्य की सभी कायिक तथा जनन कोशिकाओं में 46 गुणसूत्र होते हैं। इनमें से 44 गुणसूत्रों के 22 समजात जोड़े होते हैं, जिन्हें ऑटोसोम्स (autosomes) कहते हैं। शेष एक जोड़ा गुणसूत्र लिंग गुणसूत्र कहलाते हैं। पुरुष तथा स्त्री में यह गुणसूत्रों का जोड़ा एक-दूसरे से भिन्न होता है। पुरुष में इस जोड़े (23वें जोड़े) के दोनों गुणसूत्र एक-दूसरे से भिन्न होते हैं, जिनमें से एक छोटा तथा दूसरा बड़ा होता है। इस प्रकार ये हेटरोसोम्स (heterosomes) हैं। इनमें से बड़ा ‘X’ तथा छोटा ‘Y’ गुणसूत्र कहलाता है। स्त्री में दोनों लिंग गुणसूत्र भी समजात तथा ‘X’ प्रकार के होते हैं।

इस प्रकार –
पुरुष की जनन कोशिका में 22 जोड़ा + XY = 46 गुणसूत्र तथा
स्त्री की जनन कोशिका में 22 जोड़ा + XX = 46 गुणसूत्र होते हैं अर्थात् मनुष्य में लड़के अथवा लड़की का होना इन्हीं लिंग गुणसूत्रों पर निर्भर करता है।

मनुष्य में लिंग निर्धारण:
संकेत – कृपया ‘पाठ के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर’ शीर्षक में पृष्ठ 174 पर प्रश्न 4 का उत्तर देखें।

प्रश्न 4.
विकास के आधुनिक संश्लेषणात्मक वाद को समझाइये। (2014)
या जीवन की उत्पत्ति की आधुनिक संकल्पना (ओपैरिन परिकल्पना) पर टिप्पणी दीजिए। (2013)
या जीवन के उद्भव की आधुनिक परिकल्पना का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर:
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति:
ओपैरिन की आधुनिक परिकल्पना जीवन की उत्पत्ति के विषय में यह आधुनिकतम मत (संश्लेषणात्मक वाद) है। इस मत को और अधिक स्पष्ट रूप से रूसी वैज्ञानिक ओपैरिन (A. I. Oparin, 1924) ने प्रस्तुत किया। पदार्थवाद (materialistic theory) के रूप में प्रचलित अपने मत को ओपैरिन ने सन् 1936 में ‘जीवन की उत्पत्ति’ (The Origin of Life) नामक पुस्तक द्वारा प्रकाशित किया। उपर्युक्त परिकल्पना के अनुसार आधुनिक पृथ्वी के निर्माण एवं

इस पर जीवन की उत्पत्ति की प्रक्रिया को निम्नलिखित आठ चरणों में विभाजित किया जा सकता है –
1. परमाणु अवस्था प्रारम्भिक चरण में पृथ्वी आग का गोला थी, जिसमें सभी तत्त्व परमाणु के रूप में उपस्थित थे जो अपने घनत्व के अनुसार व्यवस्थित थे। भारी परमाणु; जैसे लोहा, निकिल आदि केन्द्र में और हल्के परमाणु; जैसे हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, कार्बन, ऑक्सीजन आदि बाहर की ओर थे।

2. अणु अवस्था द्वितीय चरण में पृथ्वी का तापक्रम अपेक्षाकृत कम हो जाने के कारण स्वतन्त्र परमाणुओं का परस्पर संयोग सम्भव हुआ, जिसके फलस्वरूप अणुओं (molecules) की उत्पत्ति हुई। आदि वायुमण्डल अपचायक (reducing) था तथा इसमें हाइड्रोजन के परमाणु लगभग 90% थे। आदि वायुमण्डल में जल, वाष्प, अमोनिया व मेथेन गैसें अस्तित्व में आयीं।

पृथ्वी का तापक्रम और ठण्डा होने पर जल-वाष्प ने बादलों एवं कोहरे का रूप लिया तथा पृथ्वी पर वर्षा के रूप में यह जल बरसने लगा; अतः धीरे-धीरे पृथ्वी की सतह पर झरनों, नदियों एवं समुद्रों की उत्पत्ति हुई। इन आदि स्रोतों के जल में आदि वायुमण्डल की गैसें; जैसे मेथेन (CH4) व अमोनिया (NH3) आदि घुल गयीं।

3. कार्बनिक यौगिकों का निर्माण आदि भूमण्डल पर सघन ज्वालामुखी थे, जिनसे निरन्तर लावा निष्कासित होता रहता था। लावा के धातु तत्त्वों ने आदि वायुमण्डल की नाइट्रोजन व कार्बन से संयोग कर नाइट्राइड्स व कार्बाइड्स बनाये, जिनसे भूपटल (earth’s crust) का निर्माण सम्भव हुआ। आदि वायुमण्डल में सर्वप्रथम मेथेन बनी तथा तापमान और कम होने पर एथेन व प्रोपेन आदि बनीं।

इस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणों, कॉस्मिक किरणों एवं ज्वालामुखी के तापक्रम आदि से प्राप्त ऊर्जा की उपस्थिति में उपर्युक्त अणुओं के संघनन एवं बहुलीकरण के फलस्वरूप जटिल कार्बनिक यौगिकों का निर्माण हुआ। इनमें शर्करायें, वसीय अम्ल, पिरीमिडीन, प्यूरीन तथा अमीनो अम्ल आदि मुख्य रूप से थे।

4. जटिल कार्बनिक अणुओं का निर्माण उबलते हुए गर्म समुद्र में तीसरे चरण के बने कार्बनिक यौगिक परस्पर क्रिया करके तथा जुड़-जुड़ कर जटिल कार्बनिक यौगिक तथा उनके बहुलकों का निर्माण करते रहे। ये गर्म सूप में विभिन्न शर्कराओं से पॉलीसैकैराइड्स; जैसे स्टार्च (starch), सेल्युलोज (cellulose), ग्लिसरॉल (glycerol) आदि।

विभिन्न वसीय अम्लों व ग्लिसरॉल से वसायें तथा अमीनो अम्लों से विभिन्न जटिल पॉलीपेप्टाइड शृंखलायें तथा प्रोटीन्स (proteins), एन्जाइम्स आदि का निर्माण हुआ। विभिन्न क्षारकों; जैसे प्यूरीन्स व पिरिमिडीन्स ने शर्कराओं तथा फॉस्फेट्स के साथ मिलकर न्यूक्लियोटाइड्स (nucleotides) तथा बाद में इनकी पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं से न्यूक्लियक अम्लों का निर्माण हुआ। हेल्डेन (Haldane, 1929) ने आदि समुद्र में इस उबलते कार्बनिक पदार्थों के जलीय मिश्रण को ‘कार्बनिक यौगिकों का एक गर्म, पतला सूप’ या पूर्वजीवी सूप’ (probiotic soup) कहा

5. कोलॉइड्स, कोएसरवेट्स एवं वैयक्तिकता आदि सागर के ‘पूर्वजीवी सूप’ के विभिन्न यौगिकों के अणुओं में परस्पर प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप कोलॉइडल कण बने, जिनसे अघुलनशील बूंदों के रूप में कोलॉइडलीय तन्त्रों का निर्माण हुआ। प्रोटीन की कोलॉइडलीय बूंदों के विद्युतावेशित होने के कारण इनकी सतह पर जल की नन्हीं-नन्हीं बूंदें चिपक जाती थीं। इन्हें फॉक्स (Fox, 1958) द्वारा प्रोटीनॉइड माइक्रोस्फीयर्स कहा गया। इसके विपरीत विद्युतावेशित कोलॉइडलीय बूंदों के परस्पर संयोग से अपेक्षाकृत बड़े व घने कोलॉइडलीय यन्त्र बने, इन्हें ओपैरिन ने कोएसरवेट्स कहा।

उन्होंने प्रयोगों द्वारा गोंद व जिलेटिन आदि से कृत्रिम कोएसरवेट्स बनाकर दिखाये। कोएसरवेट्स के धातु तत्त्वों अथवा प्रोटीन्स ने विकर अथवा कार्बनिक उत्प्रेरकों का कार्य किया। इस प्रकार इनमें प्रारम्भिक जैविक क्रियाओं का उदय हुआ। अपने चिपचिपेपन की सामर्थ्य के आधार पर कोएसरवेट्स एक निश्चित आकारीय वृद्धि के पश्चात् छोटी-छोटी बूंदों में टूट जाते थे। इस प्रकार इनमें गुणन की क्रिया प्रारम्भ हुई।

इसी तारतम्य में इन कोलॉइडलीय तन्त्रों में स्वउत्प्रेरक तन्त्र, जीन्स, विषाणु एवं प्रारम्भिक जीवन की उत्पत्ति हुई क्योंकि अब तक न्यूक्लियक अम्ल तथा प्रोटीन के मिलने से न्यूक्लियोप्रोटीन का निर्माण हो चुका था। न्यूक्लियोप्रोटीन एक ओर तो वर्तमान जीन्स के समान कार्य करते अथवा दूसरी ओर गुणन करके विषाणुओं (viruses) के समान विषाणुओं को ‘प्रारम्भिक जीव’ माना गया है।

6. असीमकेन्द्रकीय कोशिका की उत्पत्ति न्यक्लियक अम्लों द्वारा अपने चारों ओर खाद्य पदार्थ एकत्र करके अथवा कोएसरवेट्स में उत्पत्ति द्वारा असीमकेन्द्रकीय कोशिकाओं (prokaryotic cells) का निर्माण हुआ, जीवाणु इसी प्रकार की कोशिकायें हैं जिनसे स्पष्ट केन्द्रक की कोशिकायें अर्थात् सुकेन्द्रकीय कोशिकायें (eukaryotic cells) बनी थीं।

7. स्वपोषण की उत्पत्ति आदि सागर में उत्पन्न असीम केन्द्रकीय कोशिकायें परपोषी थीं। धीरे-धीरे ये कोशिकायें आदि सागर में उपलब्ध सरल अकार्बनिक पदार्थों से जटिल कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण करने लगीं। यह स्वपोषण की दिशा का प्रथम चरण था। इसके बाद कोशिकाओं में मैग्नीशियम पोरफाइरिन्स से वर्तमान पर्णहरित के समान उत्प्रेरक उत्पन्न हुए। वर्तमान जीवाणु-पर्णहरित इसका उदाहरण है।

इसकी सहायता से कोशिकायें सौर ऊर्जा से प्रकाश संश्लेषण करने लगीं। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के परिणामस्वरूप वायुमण्डल में ऑक्सीजन का मुक्त होना, आदि जीवों के उद्विकास क्रम में एक क्रान्तिकारी घटना थी। पृथ्वी से लगभग 24 किमी ऊँचाई पर ओजोन का एक स्तर बन गया जो सूर्य के प्रकाश की पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी पर पहुँचने से रोकने लगा।

8. सुकेन्द्रीय कोशिकाओं की उत्पत्ति आदि भूमण्डल लगभग 2 अरब वर्ष पूर्व वायवीय अथवा ऑक्सी श्वसन के योग्य हो चुका था। इसके साथ ही आदि कोशिकाओं की रचना में क्रमिक विकास का क्रम प्रारम्भ हो गया। आदि सुकेन्द्रकीय कोशिकायें सामान्यत: दो प्रकार की थीं –

  • क्लोरोप्लास्ट विहीन जन्तु कोशिकायें तथा
  • क्लोरोप्लास्ट युक्त पादप कोशिकायें।

इन दोनों प्रकार की कोशिकाओं ने सम्मिलित रूप से प्रकृति में जैव सन्तुलन की स्थापना की। इन्हीं कोशिकाओं के क्रमिक विकास के फलस्वरूप जन्तुओं एवं पादपों की वर्तमान जातियों का विकास हुआ है।

प्रश्न 5.
डार्विन के प्राकृतिक वरणवाद को उदाहरण सहित समझाइए। (2015, 18)
या जैव विकास के सम्बन्ध में डार्विन के प्राकृतिक वरण एवं योग्यतम की उत्तरजीविता के सिद्धान्त को समझाइए। चार्ल्स डार्विन के अनुसार जैव विकास या के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिए। प्राकृतिक वरणवाद सिद्धान्त किसके द्वारा प्रतिपादित किया गया है ?
या इसको उदाहरण देकर समझाइए। नई जातियों के उद्भव का सिद्धान्त किसने प्रतिपादित किया ?
या इसकी मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2011)
या डार्विन के प्राकृतिक वरणवाद के मुख्य चार बिन्दुओं का उल्लेख कीजिए। (2018)
या जीव जगत में जीवन संघर्ष होता है। यह किस वैज्ञानिक का मत है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जैव विकास के सम्बन्ध में डार्विन का सिद्धान्त या डार्विनवाद चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin, 1809-1882) एक अंग्रेज जीव वैज्ञानिक थे। डार्विन ने समुद्री यात्राओं द्वारा विभिन्न देशों तथा द्वीपों के जीवों का अध्ययन किया और जीवों के विकास के सम्बन्ध में अपने सिद्धान्त को “प्राकृतिक वरण द्वारा जातियों का उद्भव”(Origin of Species by Natural Selection) नामक पुस्तक में प्रकाशित किया। डार्विन का सिद्धान्त प्राकृतिक वरणवाद या डार्विनवाद (theory of natural selection or Darwinism) के नाम से प्रचलित है।

यह सिद्धान्त निम्नलिखित तथ्यों को आधार मानकर प्रतिपादित किया गया –
1. जीवों में सन्तानोत्पत्ति की प्रचुर क्षमता प्रत्येक जीव प्रजनन द्वारा अपनी सन्तान उत्पन्न करता है। जीवों में सन्तान उत्पन्न करने की बहुत अधिक क्षमता होती है। निम्न श्रेणी के जन्तुओं में तो प्रजनन क्षमता इतनी अधिक होती है कि अगर सभी सन्तानें जीवित रहें, तो पृथ्वी पर उनके सिवा और कोई जन्तु दिखाई भी न देगा, परन्तु ऐसा नहीं होता। जीवों की संख्या की वृद्धि इस प्रकार रेखागणितीय अनुपात में हो सकती है।

2. जीवन संघर्ष सभी जीवों को जीवित रहने के लिए स्थान, प्रकाश तथा भोजन चाहिए, परन्तु सीमित स्थान तथा भोजन के कारण यह सम्भव नहीं हो पाता। अत: पैदा होते ही प्रत्येक जीव को जीवित रहने की आवश्यक सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इसको जीवन संघर्ष कहते हैं। इस जीवन संघर्ष के कारण ही रेखागणितीय अनुपात में बढ़ती जनसंख्या स्थिर रहती है। एक ही जाति के जीवों के मध्य होने वाला जीवन संघर्ष सबसे अधिक घातक होता है।

3. योग्यतम की उत्तरजीविता वही जीव जीवित रहता है, जो जीवन संघर्ष में वातावरण के अनुकूल होता है और आवश्यकतानुसार परिवर्तन करके स्वयं को और अधिक अनुकूल बना लेता है। अनुकूलन से वह सशक्त हो जाता है। संघर्ष में निर्बल जीव नष्ट हो जाते हैं अर्थात् योग्यतम ही जीवित रहता है। इस प्रकार प्रत्येक जाति के जीवों की संख्या लगभग स्थिर बनी रहती है।

4. प्राकृतिक वरण जीवित रहने के लिए जीवों में जो संघर्ष होता है, इसमें जो जीव प्राकृतिक वातावरण के अनुकूल होते हैं, वे ही जीवित रहते हैं तथा अन्य नष्ट हो जाते हैं। अतः प्रकृति स्वयं ही श्रेष्ठ व अनुकूल जीवों का वरण करती है, जिसको प्राकृतिक वरण कहते हैं।

5. विभिन्नतायें प्रत्येक जाति के जीवों में विभिन्नतायें मिलती हैं। इन्हीं विभिन्नताओं के कारण कुछ जीव वातावरण के अनुकूल होते हैं। जो विभिन्नतायें उत्पन्न होती हैं, वे सन्तानों में वंशानुगत हो जाती हैं, जिससे सन्तान भी उस वातावरण के लिए अनुकूलित हो जाती है। यहाँ यह भी माना गया है कि विभिन्नतायें लाभदायक अथवा हानिकारक हो सकती हैं। लाभदायक अथवा उपयोगी विभिन्नतायें ही जीव को योग्य बनाने में सक्षम होती हैं तथा उस जीव को जीवित रहने में सहायता करती हैं।

6. नयी जातियों की उत्पत्ति जीवन संघर्ष में योग्य सिद्ध करने के लिए उत्पन्न विभिन्नतायें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशानुगत होती रहती हैं, साथ-ही-साथ सन्तान में भी स्वयं कुछ विशेष लक्षण तथा विभिन्नतायें उत्पन्न हो जाती हैं। कुछ पीढ़ियों के बाद लक्षणों तथा विभिन्नताओं की वंशागति इतनी अधिक हो जाती है कि सन्तानें अपने पूर्वजों से भिन्न हो जाती हैं और इस तरह नयी जातियों की उत्पत्ति हो जाती हैं।

प्रश्न 6.
लैमार्कवाद को समझाइए। लैमार्कवाद की आलोचनाओं पर प्रकाश डालिए। (2013, 15, 17)
या उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धान्त क्या है? (2012)
उत्तर:
लैमार्कवाद जैव विकास के प्रचलित सिद्धान्तों में यह सबसे पुराना सिद्धान्त है। लैमार्क (1744-1829) एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक थे। इन्होंने 1809 ई० में जैव विकास के बारे में अपने सिद्धान्त को फिलोसॉफी जूलोजिक (Philosophie Zollogique) नामक पुस्तक में प्रकाशित कराया। उनका सिद्धान्त लैमार्कवाद (Lamarckism) के नाम से प्रचलित हुआ।

इन्होंने मुख्यत: चार बातों पर प्रकाश डाला –
1. जीवों की आकार में वृद्धि की प्रवृत्ति जीवों में उनके शरीर अथवा विभिन्न अंगों के आकार में वृद्धि करते रहने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है।

2. वातावरण का प्रभाव वातावरण के परिवर्तन के अनुसार जीव स्वयं को अनुकूल बनाने के लिए अपने शरीर की संरचना तथा आदतों में परिवर्तन कर लेता है। इस प्रकार के प्रभावों से उसके कुछ अंगों का उपयोग बढ़ सकता है, अन्य का अपेक्षाकृत कम हो जाता है। इस प्रकार उसके शरीर की रचना में परिवर्तन आ जाते हैं।

3. अंगों का उपयोग और अनुपयोग वातावरण में किसी अंग के उपयोग की अधिक आवश्यकता हो जाती है, तो वह अंग अधिकाधिक पुष्ट तथा विकसित हो जाता है। इसके विपरीत जो अंग कम प्रयोग में आता है, वह धीरे-धीरे क्षीण हो जाता है और अन्त में लुप्त हो जाता है या अवशेषी अंग (vestigeal organ) का रूप ले लेता है।

4. उपार्जित लक्षणों की वंशागति वातावरण के प्रभाव से शारीरिक अंगों के लगातार उपयोग या अनुपयोग से जो नये परिवर्तन उत्पन्न होते हैं, उन्हें उपार्जित लक्षण (acquired character) कहते हैं। ये लक्षण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँच जाते हैं। यदि उपार्जित लक्षणों की वंशागति का क्रम चलता रहे, तो सन्तानों में नये परिवर्तन स्थायी तथा नये लक्षण विकसित हो जायेंगे।

इस प्रकार बनने वाली सन्तति अपने पूर्वजों से पूर्णतया भिन्न हो जायेंगी और इस तरह नयी जाति का निर्माण हो जायेगा। अपने सिद्धान्त के समर्थन में लैमार्क ने जिराफ का उदाहरण दिया है। जिराफ दक्षिण अफ्रीका के रेगिस्तान में मिलते हैं। इनकी गर्दन तथा अगली टाँगें अधिक लम्बी होती हैं, जिनकी सहायता से ये ऊँचे वृक्षों की पत्तियाँ खाकर अपना जीवन निर्वाह करते हैं। लैमार्क के अनुसार जिराफ के पूर्वज आकार में अपेक्षाकृत छोटे थे, उनकी गर्दन कम लम्बी तथा अगली टाँगें पिछली टाँगों के बराबर लम्बी थीं। ये ऐसे युग में रहते थे, जब अफ्रीका की जलवायु इतनी गर्म तथा रेगिस्तानी नहीं थी।

वहाँ घास के मैदान थे जिनमें वे चरते रहते थे। धीरे-धीरे यहाँ की जलवायु शुष्क तथा रेगिस्तानी होने लगी। घास के मैदान लुप्त होते गये। अत: उन्हें गर्दन तथा अगली टाँगों को उचका-उचकाकर ऊँचे-ऊँचे वृक्षों की पत्तियाँ खाने के लिए विवश होना पड़ा। इस प्रकार गर्दन तथा अगली टाँगों के निरन्तर अधिक उपयोग करने के कारण दोनों ही अंगों की लम्बाई बढ़ती गयी।

यह उपार्जित लक्षण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत होते रहे और अन्त में जिराफ की वर्तमान जाति के स्थायी लक्षण बन गये। एक अन्य उदाहरण में उन्होंने बताया कि सर्प का शरीर लम्बा होने के कारण उसे झाड़ियों आदि में घुसने में उसकी टाँगें असुविधाजनक थीं। इस प्रकार उसने टाँगों का उपयोग करना बन्द कर दिया। धीरे-धीरे उसकी टाँगें अनुपयुक्त होकर विलुप्त हो गईं और वर्तमान बिना टाँगों वाली सर्यों की जातियाँ विकसित हुईं।

लैमार्कवाद की आलोचना लैमार्कवाद के जैव विकास सम्बन्धी विचारों में अंगों के उपयोग-अनुपयोग की बात कही गई है, साथ ही इनसे उपार्जित लक्षणों को वंशानुगत लक्षण मान लिया गया है। वैज्ञानिकों ने अप्रमाणिकता के आधार पर इस विचार को पूर्णत: अस्वीकार कर दिया। इस आधार पर तो पहलवान का बच्चा पहलवान, अन्धे माता-पिता का बच्चा अन्धा होना चाहिए। एक लोहार के बराबर लोहा पीटते रहने से, उसके हाथ की पेशियाँ अत्यधिक मजबूत हो जाती हैं, किन्तु उसका यह लक्षण उसकी सन्तान में नहीं आता।

वीजमान (Wiesmann) नामक जर्मन वैज्ञानिक ने लैमार्कवाद का अत्यधिक विरोध किया। उन्होंने चूहों पर अनेक प्रयोग किये। एक प्रयोग में कई पीढ़ियों तक वे चूहों की पूँछ काटते रहे, किन्तु उन्हें अन्त तक एक भी पूँछ कटा चूहा प्राप्त नहीं हो सका। किसी भी सन्तति में चूहे की पूँछ उतनी ही लम्बी, मोटी तथा मजबूत मिली जितनी से उन्होंने अपने प्रयोग आरम्भ किये थे। लैमार्क के अनुसार तो अन्तिम पीढ़ी में प्राप्त चूहे बिना पूंछ वाले उत्पन्न होने चाहिए थे। वीजमान का मानना था कि अंगो में उपार्जित होने वाले लक्षण कायिक होते हैं तथा ये वंशानुगत नहीं होते, केवल जननद्रव्य में पहुँचने वाले लक्षणों की ही वंशानुगति होती है।


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