BSEB Class 11 Home Science Cognitive Development Among Adolescents Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Home Science Cognitive Development Among Adolescents Book Answers |
Bihar Board Class 11th Home Science Cognitive Development Among Adolescents Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 11th |
Subject | Home Science Cognitive Development Among Adolescents |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
प्रसिद्ध स्वीस मनोवैज्ञानिक ‘जीन पियाजे’ के अनुसार सभी बच्चे जन्म से ही क्रिया से प्रभावित होते हैं –
(क) प्रतिक्रिया
(ख) स्कीमा
(ग) रचनात्मक
(घ) प्रतिनियोजन
उत्तर:
(ख) स्कीमा
प्रश्न 2.
ज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएं होती हैं
(क) 4
(ख) 6
(ग) 3
(घ) 5
उत्तर:
(क) 4
प्रश्न 3.
‘आत्मवाद की अवस्था’ (Egocentric Stage) कहते हैं –
(क) बाल्यावस्था
(ख) किशोरावस्था
(ग) युवावस्था
(घ) वृद्धावस्था
उत्तर:
(क) बाल्यावस्था
प्रश्न 4.
संज्ञान या ज्ञान एक मानसिक प्रक्रिया है
(क) इसमें भाषा का विकास होता है
(ख) कल्पनाशक्ति का विकास होता है
(ग) स्मरणशक्ति का विकास होता है
(घ) इनमें से सभी सही है
उत्तर:
(घ) इनमें से सभी सही है
प्रश्न 5.
प्रतीक प्रत्ययों के लिए महत्त्वपूर्ण है
(क) ज्ञान या जानकारी के लिए
(ख) वस्तुओं के नाम के लिए
(ग) तंत्रों की व्यवस्था के लिए
(घ) वातावरण के लिए
उत्तर:
(ग) तंत्रों की व्यवस्था के लिए
प्रश्न 6.
स्वीस मनोवैज्ञानिक ‘जीन पियाजे’ के अनुसार सभी बच्चे ‘स्कीमा’ से प्रभावित होते हैं –
(क) बड़े होने पर
(ख) किशोर होने पर
(ग) जन्म से ही
(घ) वयस्क होने पर
उत्तर:
(ग) जन्म से ही
प्रश्न 7.
बाल्यावस्था में विकास की कितनी अवस्थाएँ हैं –
(क) तीन
(ख) पाँच
(ग) सात
(घ) चार
उत्तर:
(घ) चार
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
संज्ञान (Cognition) शब्द से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
‘संज्ञान’ वह मानसिक प्रक्रिया है जो विद्या को प्रयोग करने के लिए चाहिए। यह आयु के साथ-साथ विकसित होती है। इसका अर्थ है सोचना व समझना।
प्रश्न 2.
संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development) की चार अवस्थाओं के नाम लिखें।
उत्तर:
जीन पियाजे नामक स्विस मनोवैज्ञानिक के अनुसार ज्ञानात्मक विकास की निम्नलिखित चार अवस्थाएँ हैं :
- संवेदनशील अवस्था (Sensory motor stage)।
- क्रिया से पूर्व अवस्था (Pre-operational stage)
- साकार प्रक्रिया (Concrete operational stage)।
- तात्त्विक प्रक्रिया (Formal operational stage)।
प्रश्न 3.
प्रत्यक्ष ज्ञान (Perception) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
किसी घटना को देखकर उसका अर्थ निकालने और अनुभव के अनुसार समझने को प्रत्यक्ष ज्ञान (Perception) कहते हैं।
प्रश्न 4.
प्रतीक (Symbol) क्या है ?
उत्तर:
किसी व्यक्ति, वस्तु या विचार को व्यक्त करने वाला चिह्न प्रतीक (Symbol) कहलाता है।
प्रश्न 5.
बुद्धि (Intelligence) के कितने स्तर हैं ? नाम लिखें।
उत्तर:
बुद्धि के तीन स्तर हैं जो निम्न हैं-(i) अमूर्त बुद्धि, (ii) सामाजिक बुद्धि, (iii) गायक अथवा यान्त्रिक बुद्धि।
प्रश्न 6.
मानसिक आयु (Mental age) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
किसी व्यक्ति की मानसिक आयु उसके द्वारा प्राप्त विकास की वह अभिव्यक्ति है, जो उसके कार्यों द्वारा जानी जाती है तथा किसी आयु विशेष में उसकी परिपक्वता बताती है।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
बुद्धिलब्धि (Intelligence Quotient) से क्या तात्पर्य है ? समझाएँ।
उत्तर:
प्रत्येक व्यक्ति में बुद्धि की निश्चित मात्रा होती है। व्यक्ति के पास उपलब्ध बुद्धि की मात्रा को बताने वाली संख्या को ‘बुद्धिलब्धि’ कहते हैं।
इसे निम्न सूत्र से निकाला जाता है –
बुद्धिलब्धि मानसिक योग्यता को दर्शाती है।
प्रश्न 2.
साकार प्रक्रिया (Concrete operational stage) वाले बच्चे की विशिष्टताएँ बताइए।
उत्तर:
लगभग सात वर्ष की आयु से बच्चे में सोच-विचार की प्रक्रिया के विकास का आरम्भ होता है। इस प्रक्रिया को साकार प्रक्रिया कहते हैं। यह सात से बारह वर्ष तक की आयु वाली अवधि होती है। इस अवस्था की मुख्य विशेषताएँ हैं :
- संरक्षण में प्रवीण (Efficient Conservation): प्रत्यक्ष ज्ञान और तर्क के आधार पर निर्णय लेने की योग्यता होना।
- बच्चा अपने से हटकर दूसरों के विचारों पर भी ध्यान देता है और उसकी आत्मकता में कमी आ जाती है।
- श्रेणीबद्धता (Seriation): वर्गीकरण तथा संबंधात्मक विचार करने की योग्यता न करना।
प्रश्न 3.
औपचारिक प्रवृत्ति अवस्था या औपचारिक संक्रियाओं के दो लक्षण लिखें।
उत्तर:
किशोरावस्था औपचारिक प्रवृत्ति अवस्था (Formal Operational Stage) है। इसमें सोचना, समझना या विचार करना केवल वर्तमान या मूर्त सक्रियाओं से सम्बन्ध नहीं रखता अपितु काल्पनिक समस्याओं पर भी विचार-विनिमय होता है।
इसके दो लक्षण हैं –
- व्यंग्य चित्र समझ पाने की क्षमता।
- सैद्धान्तिक समस्याओं में रुचि व हल की क्षमता ।
प्रश्न 4.
मानसिक विकास के अन्तर्गत जिन योग्यताओं का होना आवश्यक है, उनके नाम लिखें।
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक स्किनर (Skinner) के अनुसार मानसिक विकास हेतु निम्नलिखित योग्यताओं का होना आवश्यक है :
- स्मृति (Memory)
- कल्पना एवं आलोचनात्मक चिन्तन (Imagination and critical thinking)।
- भाषा एवं शब्द भण्डार वृद्धि (Language or Vocabulary)।
- प्रत्यक्षण (Percepts)।
- संप्रत्न (Concepts)।
- बुद्धि (Intelligence)।
- समस्या समाधानिक व्यवहार (Problem solving behaviour), जिसमें वर्गीकरण (Classification), संबद्धता (Association), तर्क-वितर्क, अनुमान लगाना (Estimation) और निष्कर्ष पर पहुँचना (Inference) आदि सम्मिलित हैं। उपर्युक्त सभी योग्यताएँ व्यक्ति की बुद्धि पर निर्भर करती हैं और स्मृति के बिना बुद्धि का भी अस्तित्व नहीं।
प्रश्न 5.
किशोरावस्था में रुचियों में किस प्रकार के परिवर्तन आते हैं ?
उत्तर:
किशोरावस्था में शारीरिक एवं सामाजिक परिवर्तनों के कारण किशोरों की रुचियों में परिवर्तन आते हैं। किशोरों की रुचियाँ उनके लिंग, बुद्धि, वातावरण, योग्यताओं एवं परिवार व सम-वयस्कों की रुचियों पर निर्भर करती हैं। किशोरों की समस्त क्रियाओं को प्रभावित करने वाले दो घटक हैं-पर्यावरण एवं प्रारम्भिक अनुभव। बाल्यावस्था की रुचियाँ प्राय: व्यक्तिगत रुचियों पर निर्भर करती हैं, और आस-पास की जानकारी तक सीमित होती हैं, परन्तु किशोरों में यह सरल एवं सामान्य रुचियों, वैज्ञानिक बनती जाती हैं। पर्यावरण, बुद्धि, लिंगभेद, परिपक्वता, प्रशिक्षण आदि भी रुचियों की वृद्धि को प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 6.
किशोरावस्था में मनोरंजन की क्या आवश्यकता है ? [B.M. 2009A]
उत्तर:
किशोरावस्था में मनोरंजन का बहुत महत्त्व है। यह मानसिक तनाव से मुक्त होता है यह नई शक्ति उत्पन्न करता है। मनोरंजन से शारीरिक व्यायाम भी हो जाता है। संबंध को मजबूत बनाने में भी सहायता करता है । सामाजिक मनोरंजन क्रियाएँ समाज के प्रति और समय के महत्त्व को समझ कर आगे बढ़तने को प्रेरित करता है।
प्रश्न 7.
किशोर किन-किन विषयों में रुचि रखते हैं ?
उत्तर:
प्रायः किशोर की रुचियाँ तीन प्रकार की होती हैं :
- स्वयं से सम्बन्धित रुचियाँ।
- विद्यालय सम्बन्धी रुचियाँ।
- विद्यालय से बाहर की रुचियाँ।
1. स्वयं से सम्बन्धित रुचियाँ (Interest in Self-related activities): किशोरावस्था आरम्भ होते ही किशोर के मन में शारीरिक दिखावे की भावना जागृत होती है। वे सर्वोतम दिखने का प्रयत्न करते हैं व उनका अधिकांश समय अपने व्यक्तित्व को सुधारने में ही लगा रहता है । किशोरियाँ अपना अधिकांश समय साज-सज्जा में लगाती हैं, शरीर स्वच्छता, बोलने के ढंग व हाव-भाव की ओर विशेष सतर्क रहती हैं, जबकि किशोर अपने पुरुषार्थ को सिद्ध करने के लिए खेल-कूद पर अधिक ध्यान देते हैं।
2. विद्यालय सम्बन्धी रुचियाँ (School related Interest): किशोरावस्था में रोमांस एवं भावनाओं से भरे साहित्य की ओर रुचि विकसित होती है। जीवन चरित्र एवं यात्रा सम्बन्धी रुचियाँ बढ़ जाती हैं। अपने रुचि के विषय का अध्ययन करने की इच्छा बढ़ती है।
3. विद्यालय से बाहर की रुचियाँ (Interest in Outside School Activities): किशोरों की खेलों में रुचि बढ़ जाती है। सिनेमा, रेडियो, दूरदर्शन में भी रुचि बढ़ जाती है। किशोरावस्था में रुचियाँ अस्थिर होती हैं परन्तु उचित प्रेरणा, प्रोत्साहन, सामयिक सूचना एवं परामर्श द्वारा पूर्णतया विकसित की जा सकती हैं।
प्रश्न 8.
ज्ञानात्मक विकास में साकार प्रक्रिया (Concrete Operations) या मूर्त संक्रियाओं से क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
यह संज्ञानात्मक विकास प्रक्रिया की तीसरी अवस्था है। लगभग 7 से 12 वर्ष तक की आयु वाली अवधि में यह प्रक्रिया आरम्भ होती है। इस अवस्था में बच्चों में सोच-विचार की प्रक्रिया का विकास आरम्भ होता है। इस अवस्था में बच्चा संरक्षण में प्रवीण हो जाता है और प्रत्यक्ष ज्ञान और तर्क के आधार पर निर्णय लेने की योग्यता ग्रहण करता है। इस अवस्था में बच्चों की आत्मकेन्द्रिता में कमी आ जाती है और बच्चा कई दिशाओं में सोचने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। दूसरों के विचारों के साथ तुलना करने में भी सक्षम हो जाता है। इससे बच्चा आत्मकेन्द्रित न रहकर कई प्रक्रियाएँ सोच सकता है।
धीरे-धीरे बच्चा क्रम परिमाण अर्थात् लम्बाई तथा आकार के अनुसार क्रम में जोड़ने की प्रक्रिया को प्राप्त कर लेता है। वह धीरे-धीरे श्रेणीबद्धता भी हासिल कर लेता है। इस अवस्था की एक उपलब्धि यह भी है कि बच्चा अलग-अलग गुणों में पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित करने की क्षमता भी अर्जित कर लेता है। यद्यपि साकार प्रक्रिया वाले बच्चों के तर्क प्रश्न हल करने से विकसित होते हैं परन्तु उनके विचार तात्कालिक साकार अनुभव तक ही सीमित रहते हैं। यहाँ बच्चे विवेचन विश्लेषण कर सकते हैं, परन्तु उनकी क्षमता जीवन की प्रत्यक्ष परिस्थितियों तक ही सीमित रहती है।
प्रश्न 9.
किशोर अपने भविष्य के प्रति किस प्रकार की सतर्कता बरतते हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
किशोरों की भविष्य के प्रति रुचि इस प्रकार होती है कि उनका अधिकांश समय और विचार इनमें लग जाता है। बड़े किशोर के लिए जीवन में व्यावसायिक रुचि चिन्ता का विषय भी बन जाती है, जबकि वह अनिश्चित होता है कि वह क्या काम करना पसन्द करेगा और उसकी कार्य करने की क्षमता क्या है ? इस बारे में यह समझ जाने के बाद रहन-सहन के लिए कितने धन की आवश्यकता होती है, वह अपने व्यवसाय के चयन में अधिक व्यावहारिक तथा यथार्थवादी हो जाती है।
जीवन के व्यवसाय के चयन में दोनों लिंग एक-दूसरे से भिन्न रुचि रखते हैं। सामान्यतः जीवन के लिए लड़के जीवनपर्यन्त और लड़कियाँ विवाह के पहले तक के व्यवसाय को महत्त्व देती हैं। साधारणतया लड़कियाँ अंशकालिक कार्य करना चाहती हैं। व्यवसाय चुनाव के लिए आवश्यक कौशल या योग्यताएँ, किशोर की रुचियों को विकसित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
साकार प्रक्रिया वाले बच्चे तात्त्विक प्रक्रिया वाले बच्चों से किस प्रकार भिन्न हैं ?
उत्तर:
साकार प्रक्रिया वाले बच्चों के विचार तात्कालिक साकार अनुभव तक ही सीमित रहते हैं, परन्तु बारह वर्ष की आयु से अधिक के बच्चे तात्त्विक प्रक्रिया के योग्य हो जाते हैं। इसमें किशोर दी हुई समस्या के हर संभव हल को सोचने की क्षमता रखता है। उसके विचारों का महत्त्व वास्तविकता से हटकर संभवता की ओर चला जाता है। वह सावधानी से, तर्कपूर्ण ढंग से, हर विकल्प को जाँचता है तथा सही विकल्प को चुनने की क्षमता रखता है।
निर्णय लेने से पहले वह सब सामान्य अनुमान सोच लेता है। किशोरों में प्रस्तावित विचार की भी योग्यता आ जाती है। वह मौखिक रूप से पूछे जाने वाले प्रश्न के उत्तर देने की योग्यता रखता है। इतना ही नहीं वह सुव्यवस्थित सोच-विचार की भी योग्यता रखता है। काल्पनिक स्थितियों के बारे में तर्क कर सकता है। मात्रिक, गुणात्मक और भावनात्मक तीन क्षेत्र हैं जो किशोरों को साकार प्रक्रिया अवस्था के बच्चों से अलग करते हैं।
प्रश्न 2.
बोधात्मक विकास (Cognitive Development) की चार अवस्थाएँ विस्तृत रूप से लिखें।
उत्तर:
प्याजे (Piaget) नामक मनोवैज्ञानिक ने बच्चों में बोधात्मक विकास का जो सिद्धान्त बताया है वह प्याजे का सिद्धान्त (Piaget’s Theory of Cognitive Development) के नाम से जाना जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चा किशोरावस्था के अंत तक चार मुख्य अवस्थाओं में बोध प्राप्ति करता है। यह चार अवस्थाएँ हैं –
- संवेदी-प्रेरक अवस्था (Sensory motor stage)-0-2 वर्ष की आयु।
- पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (Pre-operational stage)-2-7 वर्ष की आयु।
- मूर्त-संक्रियाओं की अवस्था (Concrete-operational stage)-7-12 वर्ष की आयु।
- औपचारिक संक्रिया की अवस्था (Formal operational stage)-12 वर्ष से किशोरावस्था के अंत तक।
किशोरावस्था में बच्चा मूर्त सक्रियाओं की अवस्था से होकर औपचारिक संक्रिया की अवस्था में प्रवेश करता है। वह इस अवस्था के अनुसार अपने बोध का विकास करता है। बोधात्मक विकास के लिए यह आवश्यक है कि बच्चा अपनी इन्द्रियों द्वारा अपने संसार को महसूस कर अनुक्रिया करे और ज्ञान को प्रत्यक्ष रूप में जाने और महसूस करे अर्थात् प्रत्यक्षीकरण करे।
किशोरावस्था में बच्चा जिस तरह से अपने वातावरण में प्रत्यक्षीकरण करता है वह सब बाल्यावस्था के प्रत्यक्षीकरण के प्रारूप से सुधरा हुआ होता है। किशोरावस्था में बच्चा प्रत्येक बात के होने का कारण जानने की इच्छा रखता है कि जो भी कुछ हुआ, क्यों हुआ? किशोरावस्था में बोधात्मक विकास के लिए आवश्यक प्रत्यक्षीकरण की तीनं प्रवृत्तियों को आँका गया है जो निम्न हैं :
1. यथार्थ के प्रति तीव्र भावना (Strong emotions for rightly felt concepts): इस अवस्था में आदर्शवाद (idealism) की भावना बहुत तीव्र होती है इसलिए बच्चे न्याय और औचित्य के बहुत पक्षपाती होते हैं। वे औचित्यपूर्ण व्यवहार का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को चुनौती देने से भी नहीं घबराते हैं। वे उनकी आलोचना करते हैं और उनके दोहरे आदर्शों को सहन नहीं कर पाते। यदि किसी कारणवश वे अनौचित्यपूर्ण व्यवहार की आलोचना नहीं कर पाते तो उनके आदर्शों को ठेस पहुँचती है और वे अपने जीवन के यथार्थ से दूर होते चले जाते हैं।
2. शारीरिक, क्रियात्मक (गत्यात्मक) और प्राकृतिक परिवर्तनों तथा घटनाओं के बारे में प्रभावपूर्ण ढंग से सोचने के समय अस्थायी सम्बन्धों के उपयोग की क्षमता।
3. व्यापक पठन-पाठन, शैक्षिक उपलब्धि, घटनाओं, समस्याओं (राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक) विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होने वाले विकासों को समझने की तीव्र इच्छा। रेडियो, टेलीविजन तथा सिनेमा के कार्यक्रमों में अधिक रुचि लेना। वैज्ञानिक ढंग से समस्याओं का हल करना। इस अवस्था में आत्म-मूल्यांकन में भी बहुत अधिकं रुचि उत्पन्न हो जाती है।
इसके अतिरिक्त किशोर प्रत्येक वस्तु, व्यक्ति इत्यादि का भी सम्पूर्ण विश्लेषणं करने लग जाते हैं। इस अवस्था में मूर्त (concrete) परिकल्पनाओं से हटकर अमूर्त चिंतन करने लग जाते हैं। वह अपने विकसित ज्ञान तथा विकसित भाषा के आधार पर तर्क करने लग जाते हैं और सत्यता के प्रमाण तक पहुँचने की क्षमता उनमें विकसित हो जाती है।
प्रश्न 3.
किशोरावस्था में सामान्यतया पायी जाने वाली रुचियाँ (General Interests) कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर:
1. अपनी ओर अधिक ध्यान देना (Giving more attention towards self)इस अवस्था में बच्चा अपनी पोशाक, त्वचा, साज-संवार इत्यादि की ओर बहुत ध्यान देता है। शारीरिक परिवर्तन के कारण उसमें आंतरिक रूप से सुन्दर बनने की इच्छा जागृत हो जाती है। इस अवस्था में चूँकि वह अपना अधिक समय मित्रों के साथ व्यतीत करना पसन्द करता है इसलिए वह यह चाहता है कि वह सुंदर लगे और उसके अच्छे मित्र बने।
मित्र उसकी प्रशंसा करें और मित्रों द्वारा ही उसके अपने कार्यों को करने की प्रेरणा मिले। इस प्रकार अपनी ओर ध्यान देने के कारण उसमें आत्म-प्रयत्ल (Self-concept) तथा आत्म-विश्वास (Self-confidence) दोनों ही बढ़ते हैं।
2. इस अवस्था के बच्चों की रुचि खेल-खिलौने से हट कर अन्य बच्चों में हो जाती है। उन्हें यह जानने की उत्सुकता होती है कि जो परिवर्तन उनमें हो रहा है क्या वह अन्य बच्चों में भी हो रहा है। उन्हें यह भी जानने की उत्सुकता रहती है कि अन्य बच्चे परिवर्तन के परिणामस्वरूप आयी कठिनाइयों में किस प्रकार समायोजन (adjustment) करते हैं। उनका रुचि-क्षेत्र केवल मनोरंजन करने वाले साधनों तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि जानकारी देने वाले साधन, जैसे-टीवी, रेडियो, अखबार, पत्रिकाएँ इत्यादि उनके जीवन का एक अंग बन जाती हैं।
3. प्रत्येक बात का विश्लेषण (analysis) कर तथ्य की जाँच करते हैं और सत्यता (Truth) पर पहुँचते हैं। बात की सत्यता को जाँचने के लिए वह तर्क-वितर्क (discussion) भी करते हैं। सामान्यदया जब वह तर्क करते हैं तो : नके तर्क को बहस कह कर रोक दिया जाता है । ऐसी स्थिति में उनका भाषा-विकास तथा मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।
4. उनकी बातों का दायरा अपने आस-पास के समाज की बातों से हटकर देश, राजनीतिक, आर्थिक, पारिवारिक, व्यावसायिक इत्यादि हो जाता है। इसके अतिरिक्त किशोरावस्था के अंत तक शारीरिक परिवर्तन में जिज्ञासा होने के कारण लड़के लड़कियों में रुचि लेते हैं और उनकी बातें करते हैं तथा लड़कियाँ लड़कों में रुचि लेती हैं और उनकी बातें करती हैं।
5. शारीरिक शक्ति अधिक होने के कारण वह चुनौतियाँ देते भी हैं और स्वीकार भी करते हैं। व्यक्तिगत भिन्नताओं वाली रुचियाँ (Varied interests)-इस अवस्था में कुछ बच्चे बैठकर करने वाले कार्यों, मानसिक कार्यों में अधिक रुचि लेते हैं तथा कुछ अपने पेशी-बल का प्रयोग होने वाले कार्यों में अधिक रुचि लेते हैं । इस अवस्था में बच्चों की व्यक्तिगत रुचियाँ कैसी होंगी यह उनके लिंग, वातावरण, समाज इत्यादि पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं।
उदाहरण के लिए भारतीय समाज में किशोरावस्था में लड़कियाँ घर के कामों में रुचि लेने लग जाती हैं और लड़के घर से बाहर के कामों में रुचि लेते हैं। लड़कियाँ यदि घर से बाहर निकल कर समलिंगीय टोली में एकत्रित होती हैं तो वह किसी सभ्य स्थान पर ही एकत्रित होती हैं, असभ्य स्थान पर नहीं बल्कि लड़के रुचि-अनुसार कहीं भी एकत्रित हो सकते हैं।
आयु बढ़ने के साथ-साथ रुचियों में बदलाव (Changing interests): किशोरावस्था के अन्त तक रुचियों में बदलाव आना शुरू हो जाता है, जैसे विभिन्न व्यवसायों के लिए शैक्षिक योग्यता क्या होनी चाहिए ? उसका भविष्य क्या होगा ? (concern about future) आदि प्रश्न अब उसे अपनी ओर आकर्षित करते हैं। अन्त में यह कहा जा सकता है कि बच्चे की आयु तथा वातावरण बदलने के साथ-साथ उसकी आवश्यकताएँ भी बदलती जाती हैं और आवश्यकतानुसार उसकी रुचियों में परिवर्तन होता जाता है।
प्रश्न 4.
किशोरों के प्रत्यक्षीकरण की विशेषताएँ (Features of Perception) बताएँ। उत्तर-किशोरों के प्रत्यक्षीकरण की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:
1. विस्तार में अधिकता (More expanded knowledge): किशोरावस्था तक बालक .का वातावरण संबंधी ज्ञान काफी विकसित हो चुका होता है। वह अपने विभिन्न विकासों के माध्यम से आस-पास के वातावरणों के प्रति अपना दृष्टिकोण कायम कर लेता है।
2. उत्साह एवं प्रेरणा का न्यून महत्त्व (Less importance of gay & inspiration): वातावरण तथा अन्य विषयों के संबंध में बच्चों की जानकारी कम होती है। अतः उन्हें उत्साहित तथा प्रेरित करना आवश्यक होता है क्योंकि बिना उसके वे स्वतः रूप से ज्ञान प्राप्ति की कोशिश नहीं कर सकेंगे, परन्तु किशोरों में ऐसी बात नहीं होती है। वे स्वयं ही वातावरण की जानकारी की चेष्टा में रहते हैं। किशोर के प्रत्यक्षीकरण का विकास पहले से हुआ रहता है।
3. मूर्तिमान प्रत्यक्षीकरण की विशेषता (Direct Visual Characteristic): बालक के प्रत्यक्ष ज्ञान में दृष्टि मूर्ति (visual image) एवं श्रवणमूर्ति (auditory image) आदि का आधिक्य रहता है क्योंकि वह जिस किसी वस्तु को मूर्त रूप में देखता है उसे उसी प्रकार अपने मस्तिष्क में स्थान देता है, जैसे-कोई भी बच्चा हाथी कहने पर उसका आकार, डील-डौल आदि को मस्तिष्क में रखेगा। बच्चों के प्रत्यक्षीकरण में शब्दों के स्थान पर मूर्तियों या आकार की अधिकता रहती है। वही बच्चा अपने प्रत्यक्षीकरण के विकास के साथ-ही-साथ उसके वर्णन की क्षमता भी अपने में उत्पन्न करता जाता है।
4. भ्रम की विशेषता (Characteristics of doubt): अनुभव हो जाने के कारण किशोर का ज्ञान बाल्यकाल की अपेक्षा विस्तृत हो जाता है। अतः वह भ्रम से बहलाया नहीं जा सकता। जिस प्रकार बच्चे को खिलौने द्वारा बहला दिया जाता है किशोर को नहीं।
5. प्रत्यक्षीकरण की यथार्थता (Relevance of direct behaviour): किशोरों का ज्ञान · बच्चों की अपेक्षाकृत यथार्थ होता है। इस दिशा में माता-पिता और अभिभावकों को ध्यान देना . चाहिए कि उनके बालक या किशोर भ्रमपूर्ण अथवा यथार्थहीन ज्ञान के शिकार न बने।
6. विशेष वस्तु का ज्ञान (Knowledge of special objects): ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर किसी विशेष वस्तु के प्रत्यक्षीकरण में अंतर पड़ जाता है। बालक के समक्ष पैंसिल कहने से वह अपनी ही पेंसिल समझता है क्योंकि अब तक वह अपनी पेंसिल को ही जानता है परन्तु यदि किशोरों के समक्ष पेंसिल कहा जाए तो वह इसका सामान्य अर्थ लेता है क्योंकि उसने बहुत सी पेंसिलें देखी हैं। उसका ज्ञान क्षेत्र विस्तृत है।
7. पदार्थ का गुण (Property of Matter): किशोरों के प्रत्यक्षीकरण में स्थूल पदार्थों के साथ उनके सूक्ष्म गुणों का ज्ञान भी सम्मिलित रहता है।
8. ज्ञान की प्रकृति (Nature of Knowledge): ज्ञान दो प्रकार का होता है संश्लेषणात्मक (Synthetic) तथा विश्लेषणात्मक (Analytic) । मनुष्य का ध्यान सर्वप्रथम वस्तु के सम्पूर्ण आकार पर जाता है तथा उसके पश्चात् अन्य अंगों पर जाता है। प्रारंभिक क्रिया संश्लेषणात्मक है और बाद की प्रक्रिया विश्लेषणात्मक । किशोरों के ज्ञान में विस्तार होते-होते उनका विश्लेषण ज्ञान भी बढ़ता जाता है जो कि बाल्यकाल में अनुपस्थित रहता है। उदाहरण के लिए एक हवाई जहाज देखने पर बालक इसे मात्र हवाई जहाज मानता है जबकि एक किशोर इसके विभिन्न भागों, चालक का स्थान, चलाने की विधि, पहिए, पंख इत्यादि पर भी ध्यान देगा। अतः दोनों के प्रत्यक्षीकरण में ज्ञान की प्रकृति की दृष्टि से अंतर है।
9. तात्कालिक रुचि का संबंध (Relation of Immediate interest): रुचि के आधार पर भी किशोरों और बालकों के प्रत्यक्षीकरण में अंतर होता है। बालकों को केवल उन्हीं वस्तुओं का प्रत्यक्षीकरण होता है, जिनमें उनकी तात्कालिक अभिरूचि रहती है जैसे-मिठाई, गीत, खिलौने, पुष्प आदि।
प्रश्न 5.
साकार प्रक्रिया (Concrete Operations) की विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
लगभग सात वर्ष की आयु से बच्चे में सोच-विचार की प्रक्रिया का विकास आरम्भ होता है, जिसे आकार प्रक्रिया कहते हैं । यह सात से बारह वर्ष तक की आयु वाली अवधि है। इस अवस्था की मुख्य विशेषताएँ हैं –
- संरक्षण में प्रवीण
- आत्मकेन्द्रिता में कमी
- क्रमबद्धता
- श्रेणीबद्धता
1. संरक्षण में प्रवीण (Master in Conservation): साकार प्रक्रिया वाला बच्चा प्रत्यक्ष ज्ञान और तर्क के आधार पर निर्णय लेने की योग्यता प्राप्त करता है। बच्चे की यह योग्यता संरक्षितः। ज्ञान का प्रमाण है। पाँच वर्ष और आठ वर्ष के बच्चे को दो बर्तन क और ख दीजिए। बर्तन क चौड़ा है और ख संकरा है। क बर्तन में कोई द्रव, कुछ ऊँचाई तक डालिए। दोनों बच्चों को उस द्रव को ख बर्तन में डालने के लिए कहिए। द्रव की ऊँचाई बर्तन ख में अधिक होगी।
दोनों बच्चों से पूछिए कि द्रव बर्तन ख में, बर्तन क से अधिक है, कम है या बराबर है। दोनों में से छोटे बच्चे का उत्तर ‘अधिक’ होने की आशा है जबकि बड़े बच्चे का उत्तर ‘बराबर’ होगा क्योंकि वह समझता है कि बर्तन को बदलने से द्रव उतना ही रहेगा। यह साकार प्रक्रिया के विकास का परिणाम है। ऐमी मानसिक योग्यता आने का अर्थ है कि एक ही दिशा में सोचने की शक्ति अब, कम होकर कई दिशाओं में जाने लगी है। इससे ही वह ज्ञान का संरक्षण कर सकता है।
2. आत्मकेन्द्रिता में कमी (Decline in Egocentrism): कई दिशाओं में सोचने की योग्यता बच्चे को अपने विचार की दूसरों के विचार के साथ तुलना करने में सहायता करती है। बच्चा यह समझता है कि किसी दूसरे का दृष्टिकोण उससे अलग भी हो सकता है। इससे पता चलता है कि बच्चा अपने ही विचारों से ग्रस्त है और वह कई प्रक्रियाएँ सोच सकता है।
3. क्रमबद्धता (Seriation): इस अवस्था की यह असाधारण विशिष्टता है कि बच्चों को कुछ वस्तुओं को किसी क्रम में जोड़ने की प्रक्रिया आसान लगती है । इस क्रम परिमाण से अर्थात् लम्बाई. साकार की कल्पना-शक्ति, परखने की शक्ति तथा अन्तर्दृष्टि सुधरती है। सोच-विचार की प्रक्रिया के विकास से व्यक्ति अड़ोस-पड़ोस के हालात को समझ सकता है तथा उसका समाधान कर सकता है। वह विगत स्थितियों की कमियों को दूर करता हुआ अगले मानसिक स्तर पर पहुँच जाता है।
4. श्रेणीबद्धता (Class Inclusion): इस अवस्था में बच्चा आपस के संबंध भी समझना शुरू कर देता है। संबंध के अनुसार वह वस्तुओं को बांट लेता है। अगर उसे आठ मोती नीले रंग के तथा तीन मोती पीले रंग के दिये जाएँ तो उसे पता रहता है कि ये मोती दो रंगों में हैं परन्तु इनकी श्रेणी एक ही है। जैसे कई वस्तुओं में से उसे खाने की वस्तुएँ अलग करनी हों तो वह मोतियों को उसके बीच में नहीं गिनेगा जबकि केला, संतरा आदि को खुराक की श्रेणी में डालेगा।
संबंधित विचार (Relational Thinking): इस अवस्था की एक और उपलब्धि है, अलग-अलग गुणों में पारस्परिक संबंध स्थापित करना। साकार प्रक्रिया की अवस्था वाला बच्चा समझ लेता है कि चमकीला, गहरा, हल्का आदि शब्द कोई संबंध पैदा करते हैं न कि पूरा गुण का वर्णन करते हैं। अगर बच्चे को तीन गुड़िया दी जाएँ और कहा जाए कि इन्हें कद के अनुसार जोड़ो तो पूरी आशा है कि वह यह एकदम ही कर लेगा। तुलना की इसी योग्यता को संबंधित विचार कहते हैं।
प्रश्न 6.
संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले तत्त्व कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
संज्ञानात्मक विकास को बहुत से तत्त्व प्रभावित करते हैं। हर व्यक्ति का यह विकास अलग-अलग गति व क्षमता लिये हुए होता है। संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं :
1. संवेदना ग्रहण करने की शक्ति (Sensory Development): जितनी उसकी यह शक्ति तेज होती है वह उतना ही अधिक व शीघ्र वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त होता है।
2. क्रियात्मक हस्त व्यापार (Motor Manipulation): जिंतना वह वस्तुओं को छूता, तोड़ता-फोड़ता है उतना ही वह उनके प्रति सचेत होता है। असल में यह तोड़-फोड़ की क्रिया उसकी अपने वातावरण को पहचानने की प्रक्रिया होती है।
3. जिज्ञासु प्रवृत्ति (Curosity): जिन बालकों में जिज्ञासु प्रवृत्ति अधिक होती है वह अधिक-से-अधिक प्रश्न पूछते हैं। उनके प्रत्यय भी अधिक बनते हैं और उनका अधिक संज्ञानात्मक विकास होता है।
4. प्रत्यक्ष व परोक्ष अनुभव (Concrete and Vicarious Experience): जिस तरह के अनुभव बालक को होंगे उसके प्रत्यय उन्हीं पर निर्धारित होंगे । जैसे अगर बालक बचपन में समाज द्वारा दुत्कारा जाता है तो वह समाज के प्रति नकारात्मक प्रत्यय बना लेगा। बड़े होने पर परोक्ष रूप में समाचार-पत्र, भाषण, टी० वी०, रेडियो आदि से वह कई अनुभव ग्रहण करके संज्ञानात्मक विकास करता है।
5. सीखने का अवसर (Opportunity for Learning): जिन बालकों को सीखने के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं, उनका संज्ञानात्मक विकास तीव्र गति से होता है।
6. बुद्धि (Intellect): जो व्यक्ति जितना बुद्धिमान होगा उसका संज्ञानात्मक विकास उतना ही बेहतर होगा। वह अपने वातावरण को ज्यादा अच्छी तरह समझ सकेगा।
7.सामाजिक आर्थिक स्तर (Socio-Economic Status): इसका भी बालकों के प्रत्यात्मक ज्ञान के विकास पर प्रभाव पड़ता है। भोजन, वस्त्र, शिक्षा आदि के अन्तर से बालक के प्रत्ययों पर प्रभाव पड़ता है। गरीब परिवार के बालक के लिए भोजन रोटी-दाल तक सीमित है जबकि उच्च स्तर के परिवार के बालक भोजन में फल, दूध, अण्डा आदि को भी शामिल करता है। नौकर, फ्रिज, टी०वी०, एयरकंडीशन के प्रत्यय भी उच्च वर्गीय परिवार के बालकों में बनते हैं। निम्न स्तर के परिवार के बालकों में इन प्रत्ययों का निर्माण नहीं होता।
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