BSEB Class 11 Home Science Individual Differences Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Home Science Individual Differences Book Answers |
Bihar Board Class 11th Home Science Individual Differences Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 11th |
Subject | Home Science Individual Differences |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 11th Home Science Individual Differences Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
बाल्यावस्था के विकास की कितनी अवस्थाएँ हैं। [B.M.2009A]
(क) तीन
(ख) पाँच
(ग) चार
(घ) दो
उत्तर:
(ग) चार
प्रश्न 2.
‘पीढ़ियों का अंतर’ किस अवस्था में अधिक प्रभावित करता है –
(क) बाल्यावस्था
(ख) वृद्धावस्था में
(ग) किशोरावस्था में
(घ) प्रौढ़ावस्था में
उत्तर:
(ग) किशोरावस्था में
प्रश्न 3.
वैयक्तिक भिन्नता के मुख्य कारक हैं –
(क) दो
(ख) एक
(ग) चार
(घ) छ:
उत्तर:
(क) दो
प्रश्न 4.
गुणसूत्र में होता है –
(क) R.N.A.
(ख) D.N.A
(ग) Rh factor
(घ) Nucleus
उत्तर:
(ख) D.N.A
प्रश्न 5.
पुरुष में गुणसूत्र होते हैं –
(क) X
(ख) XY
(ग) XP
(घ) XT
उत्तर:
(ख) XY
प्रश्न 6.
मानव में रक्त समूह की संख्या होती है –
(क) दो
(ख) चार
(ग) छः
(घ) तीन
उत्तर:
(ख) चार
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
वैयक्तिक भिन्नताएँ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वैयक्तिक भिन्नताएँ (Individual differences) वे भिन्नताएँ हैं जिनके कारण एक ही समूह के सदस्य एक-दूसरे से शारीरिक, मानसिक व सामाजिक गुणों में भिन्न होते हैं।
प्रश्न 2.
व्यक्तिगत भिन्नताओं के आधार क्या हैं ?
उतर:
व्यक्तिगत भिन्नताएँ (Individual differences) के आधार:
- वंशानुक्रम (Heredity)।
- वातावरण (Environment)
प्रश्न 3.
आनुवंशिकता (Heredity) किसे कहते हैं ?
उत्तर:
यह माता-पिता की विषमताओं को बच्चों में अवतरण करने की प्रक्रिया है। गुण सूत्र में उपस्थित जीन माता-पिता की विशेषताओं के अवतरण के लिए उत्तरदायी हैं।
प्रश्न 4.
समलिंगीय किशोरों के विकास में दो भिन्नताओं के नाम बताएँ।
उत्तर:
- शीघ्र परिपक्व होने वाले किशोर (Early maturers)।
- देर से परिपक्व होने वाले किशोर (Late Maturers)।
प्रश्न 5.
वातावरण (Environment) को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
हमारे आस-पास जो कुछ भी है, उसे वातावरण कहते हैं। माता-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी, मित्र, पड़ोसी, अध्यापक, भौतिक वस्तुएँ आदि सभी वातावरण के अवयव हैं।।
प्रश्न 6.
वातावरण की भिन्नताओं के आधार कौन-कौन-से हैं ?
उत्तर:
परिवार (Family), साथी (Pear), विद्यालय (School), सामाजिक-सांस्कृतिक धरोहर (Socio-cultural heritage)।
प्रश्न 7.
किशोर-किशोरी को क्या-क्या सुविधाएँ व अवसर मिलेंगे यह किस बात पर निर्भर करता है ?
उत्तर:
किशोर-किशोरी को सुविधाओं व अवसर का मिलना उसके परिवार के आर्थिक स्तर या सामाजिक वर्ग पर निर्भर करता है।
प्रश्न 8.
व्यक्तिगत भिन्नता के मुख्य आधार हैं ?
उत्तर:
व्यक्तिगत भिन्नता के प्रमुख आधार आनुवंशिकता और वातावरण हैं।
प्रश्न 9.
माता-पिता के गुण बच्चों में कैसे आते हैं ?
उत्तर:
माता-पिता के गुण बच्चों में ‘जीन्स’ के द्वारा आते हैं जो गुणसूत्रों में उपस्थित होते हैं।
प्रश्न 10.
बच्चे के लिंग निर्धारण का उत्तरदायी कौन होता है ?
उत्तर:
बच्चे के लिंग निर्धारण का उत्तरदायी नर (पिता) है।
प्रश्न 11.
शीघ्र परिपक्व होने वाले किशोर समाज के साथ अधिक समायोजित क्यों होते हैं?
उत्तर:
यौवनारम्भ शीघ्र होने के कारण इनका बाल्यकाल तो छोटा हो जाता है परन्तु किशोरावस्था लम्बी हो जाती है। अतः इन्हें समाज के साथ समायोजन के लिए अधिक समय मिल जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
आनुवंशिक गड़बड़ी (Heredity Disorders) को स्पष्ट करें।
उत्तर:
कई प्रकार के रोग व अवगुण माता-पिता से बच्चों को विरासत में मिलते हैं, जैसे हीमोफीलिया, मधुमेह, गठिया आदि।
प्रश्न 2.
शीघ्र तथा देर से आने वाली परिपक्वता (Maturity) से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
जब गोनैडों के असामान्य विकास के कारण यौवनारंभ होने में विलम्ब हो जाता है, उसे देर से आने वाली परिपक्वता कहते हैं। जब गोनैडों की अति क्रियाशीलता से यौवनारंभ समय से पूर्व आता है तो उसे शीघ्र आने वाली परिपक्वता कहते हैं।
प्रश्न 3.
माता-पिता के गुण बालकों में कैसे आते हैं ? समझाइए।
उत्तर:
बालकों में माता-पिता के गुण (Qualities): मानव शरीर अनेक कोशिकाओं से मिलकर बना है। माता व पिता के अण्डाणु व शुक्राणु की कोशिका में जो केन्द्रक (Nucleus) होता है, उनमें गुणसूत्र पाए जाते हैं। उन्हीं पर बहुत-से बिंदु, जिन्हें हम जीन्स कहते हैं, पाए जाते हैं। ये ही विभिन्न गुणों को माता-पिता से बालकों तक भेजते हैं। जब अण्डाणु व शुक्राणु का मेल होता है तो दोनों के केन्द्रक आपस में मिल जाते हैं। इसी मेल में जो जीन्स अधिक ताकतवर हो जाते हैं, उनके गुण बालकों के व्यक्तित्व का निर्धारण करते हैं। यह मिलन अनेक संयोजनों (Combination) की संभावना रखता है।
प्रश्न 4.
शीघ्र तथा विलम्ब से होने वाली परिपक्वता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
शीघ्र तथा विलम्ब से होने वाली परिपक्वता (Early and late maturers): विकास की दर में भिन्नता होने के कारण कुछ किशोर शीघ्र परिपक्व हो जाते हैं तो कुछ किशोर देर से परिपक्व होते हैं। किशोरावस्था में विकास की दर बहुत कुछ यौन परिपक्वता पर निर्भर करती है क्योंकि यौन परिपक्वता के साथ किशोर की शारीरिक विकास की गति का सीधा सम्बन्ध है। जिन किशोर बालकों में यौन परिपक्वता शीघ्र आती है उनका शारीरिक गठन, ऊँचाई एवं भार उन किशोरों की अपेक्षा भिन्न होता है जिनमें यौन परिपक्वता देर से आती है।
शीघ्र परिपक्व होने वाले किशोर लड़कों का शारीरिक आकार जैसे कूल्हे चौड़े और टांगें छोटी होती हैं जबकि देर से परिपक्व होने वाले किशोर लड़कों का शारीरिक आकार पतला, कंधे चौड़े और टांगे लम्बी होती हैं। इसका मुख्य कारण है कि देर से परिपक्वता प्राप्त करने वाले किशोरों की वृद्धि प्रायः अनियमित और असंयमित होती है, जबकि शीघ्र परिपक्वता प्राप्त करने वाले किशोरों की वृद्धि अधिक नियमित होती है और अंगों की वृद्धि में भी कम असन्तुलन होता है।
प्रश्न 5.
समलिंगियों एवं विषमलिंगियों की भिन्नताओं में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
समलिंगियों एवं विषमलिंगियों में भिन्नताएँ (Interdifference between same sex and opposite sex)-प्रायः विकास के सभी पहलू जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व संवेगात्मक में समलिंगियों एवं विषमलिंगियों में भिन्नताएँ पायी जाती हैं। शारीरिक परिपक्वता की आयु में विभिन्नताएँ अंत:स्रावी ग्रन्थियों की क्रियाओं की भिन्नताओं के कारण होती हैं। अंत:स्रावी ग्रन्थियों पर भी व्यक्ति की आनुवंशिकता, बुद्धि तथा उसके सामान्य स्वास्थ्य का प्रभाव पड़ता है।
मानवीय विकास का क्रम बिना टूटे लगातार चलता रहता है। गर्भाधान के क्षण से लेकर मरने तक परिवर्तन निरन्तर होते रहते हैं। इन परिवर्तनों की गति कभी धीमी होती है और कभी तेज होती है। विकास के क्रम के अन्दर शारीरिक और मानसिक विकास में गहरा सम्बन्ध होता है। एक ही आयु एवं लिंग के व्यक्तियों के शारीरिक एवं मानसिक विकास में भिन्नता होती है। सभी व्यक्तियों में विकास का क्रम एक-सा होता है परन्तु उनमें विकास की गति भिन्न होती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
वैयक्तिक भिन्नताओं के दो कारण क्या हैं ? इनकी सूची बनाएँ।
उत्तर:
वैयक्तिक भिन्नताओं के दो मुख्य कारण हैं –
1. आनुवंशिकता
2. वातावरण या परिवेश।
1. आनुवंशिकता (Heredity): वैयक्तिक भिन्नताओं का पहला कारक है, आनुवंशिकता, जिसका सम्बन्ध जन्मजात विशेषताओं और लक्षणों से है। ये वे गुण हैं जो माता-पिता से बच्चों को मिलते हैं। शरीर की बनावट, आंख, त्वचा का रंग, ऊँचाई, मानसिक गुण जैसे, मानसिक योग्यता और निपुणता विरासत में मिलते हैं।
2. वातावरण/परिवेश (Environment): वातावरण अर्थात् समस्त बाह्य शक्तियों, प्रभावों और परिस्थितियों का सामूहिक प्रभाव जो व्यक्ति के जीवन, स्वभाव, व्यवहार, अभिवृद्धि, विकास तथा प्रौढ़ता पर पड़ता है। वस्तुतः वातावरण में वह सभी कुछ सम्मिलित हैं, जिनका व्यक्ति के मानसिक, नैतिकता व आध्यात्मिक जीवन से सम्बन्ध है।
इसमें व्यक्ति विशेष का आहार, आस-पास का वातावरण, रहने का स्थान, परिवार और साथियों से परस्पर क्रिया-प्रतिक्रिया, अनुभव व उपलब्ध अवसर, विद्यालय तथा सामाजिक वर्ग सम्मिलित हैं। जन्मजात गुण परिवेश के बिना विकसित नहीं होते और कितना भी अच्छा परिवेश क्यों न हो वह आनुवंशिक गुणों को पैदा नहीं कर सकता।
प्रश्न 2.
अपने वातावरण (Environment) के चार कारक लिखें जिससे आप अच्छा कार्य-प्रदर्शन (Performance) कर पाएँ।
उत्तर:
व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में परिवेश या वातावरण का प्रमुख स्थान है। आनुवंशिकता के साथ यदि उचित वातावरण न मिले तो उच्चतम सीमा तक नहीं पहुंचा जा सकता है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। अच्छे कार्य-प्रदर्शन हेतु उचित वातावरण अति आवश्यक है।
- पौष्टिक आहार की उपलब्धि (Availability of Nutritous food): आहार का शारीरिक परिपक्वता व वृद्धि पर अत्यन्त प्रभाव पड़ता है। पौष्टिक आहार से स्वास्थ्य का स्तर ऊँचा हो जाता है जो अच्छे कार्य प्रदर्शन के लिए अति आवश्यक है।
- परिवार का सहयोग (Co-operation of the family): माता-पिता का सहयोग, प्रेम व व्यवहार अच्छे कार्य प्रदर्शन हेतु अति आवश्यक है। स्वतंत्रता के गुणों के प्रदर्शन हेतु सही मार्गदर्शन व माता-पिता का प्रोत्साहन एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- विद्यालय का प्रभाव (Influence of School): जो व्यक्ति शिक्षाकाल में बच्चों के साथ सम्पर्क स्थापित करते हैं, उनका प्रभाव कशोर पर काफी गहरा पड़ता है। विद्यालय में वे सभी वस्तुएँ सम्मिलित हैं जो किशोर के समुचित विकास के लिए आवश्यक हैं। पुस्तकालय, संघ, गोष्ठियाँ आदि किशोर में स्वस्थ प्रतियोगिता विकसित करते हैं जो अच्छे कार्य प्रदर्शन के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं।
- साथीसमूह (Peer group): किशोर के साथी जो प्रायः उसके साथ उठते-बैठते, खेलते कूदते हैं, उसके व्यक्तित्व पर प्रभाव डालते हैं। अच्छी संगति किशोर को अच्छे कार्य प्रद नि हेतु प्रोत्साहित करती है, व काफी हद तक उत्तरदायी भी है।
प्रश्न 3.
व्यक्तिगत भिन्नता का महत्त्वपूर्ण कारण जीन्स हैं। संक्षेप में लिखिा’
उत्तर:
जीन्स-हर गुण के लिए अलग जीन्स होते हैं, जैसे आँख, बाल, त्वचा, लम्बाई, ड्राई, चेहरे की बनावट, बुद्धि, सृजनात्मकता व अन्य गुण। जिस समय दोनों (अंडाणु और शुक्राए। के केन्द्रकों का मिलन होता है उस समय जो संयोजन जीन्स का बनता है उसी के अनुरूप शिर् का व्यक्तित्व बनता है। इसी कारण भाई-बहन भी आपस में मिलते हैं क्योंकि उन्हें उन्हीं माता – रता के जीन्स प्राप्त होते हैं पर संयोजन में थोड़ा-सा अन्तर हो जाता है (कलाईडियोस्कोप जैसे)। वह आपस में मिलते-जुलते हैं पर बिल्कुल एक नहीं होते हैं। वैयक्तिक भिन्नता का यही एक महत्त्वपूर्ण कारण है।
प्रश्न 4.
शीघ्र परिपक्व होने वाले किशोर और देर से परिपक्व होने वाले किशोर में क्या अन्तर हैं ?
उत्तर:
शीघ्र परिपक्व होने वाले किशोर (Early Maturers):
- हमउम्र समलिंगियों से बड़े दिखाई देते हैं।
- शारीरिक वृद्धि एवं विकास के लिए अपेक्षाकृत कम समय मिलता है।
- इनकी बाल्यावस्था छोटी तथा किशोरावस्था लम्बी होती है।
- इन्हें प्रौढ़ जीवन की तैयारी के लिए अधिक समय मिलता है और प्रौढ़ावस्था में यह अपने दायित्व अच्छी तरह निभाते हैं।
- इनमें यौन परिपक्वता शीघ्र आती है।
देर से परिपक्व होने वाले किशोर (Late Maturers):
- हमउम्र समलिंगियों से छोटे दिखाई देते हैं।
- शारीरिक वृद्धि एवं विकास के लिए अपेक्षाकृत अधिक समय मिलता है।
- इनकी बाल्यावस्था बड़ी तथा किशोरावस्था छोटी होती है।
- इन्हें प्रौढ़ जीवन की तैयारी के लिए कम समय मिलता है। यह अधिक समय तक बच्चे बने रहते हैं।
- इनमें यौन परिपक्वता देर से आती है।
प्रश्न 5.
वंशानुक्रम नियम क्या है ? विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
वंशानुक्रम नियम (Laws of heredity) वंशानुक्रम के कुछ सामान्य नियम निर्धारित किये जा सकते हैं, जो इस प्रकार हैं
(क) समान समान को ही जन्म देती है
(ख) भिन्नता का नियम और
(ग) प्रत्यागमन।
(क) समान समान को जन्म देती है (Like begets like): इस नियम से तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार के माता-पिता होते हैं, उसी प्रकार की उनकी सन्तान होती है। बुद्धिमान माता-पिता के बच्चे बुद्धिमान, सामान्य बुद्धिवाले माता-पिता की संतान मन्दबुद्धि वाले होती है। इसी प्रकार गोरे रंग के माता-पिता के बच्चे गोरे और श्याम रंग के माता-पिता के बालक श्याम रंग के होते हैं।
इस नियम को हम पूर्ण रूप से सत्य मानकर नहीं चल सकते क्योंकि इसके भी अपवाद मिलते हैं। यह देखा गया है कि कभी-कभी गोरे रंग के माता-पिता की संतान काली होती है और काले माता-पिता की गोरे रंग की सन्तान होती है। इस अनियमितता और अपवाद के कारणों की व्याख्या वंशानुक्रम के दूसरे भिन्नता के नियम द्वारा की गई है।
(ख) भिन्नता का नियम (Laws of Variation): बच्चे अपने माता-पिता की सच्ची प्रतिकृति नहीं हुआ करते। वे अपनी आकृति और बनावट में माता-पिता से कुछ-न-कुछ भिन्न – अवश्य होते हैं। इस भिन्नता का कारण माता-पिता के बीज-कोषों की विशिष्टताएँ हुआ करती हैं। बीज-कोषों के अन्दर पित्राक या जीन्स होते हैं जो विभिन्न संयोजनों में मिलते हैं तथा आपस . में भिन्न होने के कारण ऐसी संतानों को जन्म देते हैं जो आपस में भिन्न होती हैं।
एक ही माता-पिता के बालक में भिन्न-भिन्न पित्राक-संयोजन के कारण उनमें आपस में। भिन्नता आ. जाती हैं। यह भी देखा गया है कि एक ही माता-पिता कभी गोरी सन्तान और कभी काली सन्तान को जन्म देते हैं। गोरेपन और कालेपन का निश्चय पित्राकों के संयोग से होता है। भिन्नता का नियम हमें यह बतलाता है कि एक ही परिवार के बालकों में शारीरिक, मानसिक और रंग-रूप की भिन्नता क्यों है, किन्तु यह निश्चित है कि वे आपस में अधिक समानता रखते हैं।
(ग) प्रत्यागमन (Regression): सारेनसन के अनुसार “प्रतिभाशाली माता-पिता के कम प्रतिभाशाली सन्तान होने की प्रवृत्ति और निम्न कोटि के माता-पिता के कम निम्न कोटि की सन्तान होने की प्रवृति ही प्रत्यागमन है।” प्रकृति में कुछ ऐसा नियम है कि वह प्रत्येक गुण (Trait) को सामान्य रूप में प्रकट करना चाहती है इसलिए एक प्रतिभाशाली माता-पिता की सन्तान में ‘सामान्य बुद्धि’ की ही प्रवृत्ति के गुण पाये जाएंगे। इससे तात्पर्य यह नहीं है कि सदैव ही सब प्राणियों में ‘प्रत्यागमन’ होता है किन्तु यह प्रवृत्ति पाई जाती है : यह तो प्रायः देखा जाता है कि अत्यन्त मेधावी माता-पिता की संतान उतनी मेधावी नहीं होती है। प्रत्यागमन के कारण इस प्रकार हैं
1. माता-पिता जो अत्यन्त प्रतिभाशाली होते हैं, उनके अन्दर अपने पितरों से प्राप्त बीजकोषों का संयोग होता है जो उन्हें प्रतिभा सम्पन्न बना देता है। पिता के सर्वोतम गुण (Best Trait) जब माता के सर्वोत्कृष्ट गुण वाहक पित्राकों से मिलते हैं तो प्रतिभा सम्पन्न बालक का जन्म होता है परन्तु इस प्रकार उत्पन्न प्रतिभावान माता-पिता में सामान्य अथवा न्यून कोटि के बीजकोष होते हैं जो उस संयोग की अपेक्षा जिससे उनका जन्म हुआ, हीन होते हैं, अत: इन माता-पिता के संयोग से बालक उत्पन्न होते हैं जिनमें निम्न कोटि के गुणों का प्रादुर्भाव हो जाता है।
2. प्रतिभावान माता अथवा पिता का दूसरे ऐसे व्यक्ति से समागम होता है जिसमें उसी के समान प्रतिभा उत्पादक तत्त्व नहीं होते तो इस समागम में उस प्रकार के उत्कृष्ट बीजकोषों का मेल नहीं हो सकता जैसा कि दो प्रतिभावान व्यक्तियों के संयोग से होता है। फलस्वरूप बालक उतना प्रतिभावान नहीं होगा।
प्रश्न 6.
विषमलिंगीय किशोरों के विकास में क्या भिन्नताएँ पायी जाती हैं ?
उत्तर:
विषमलिंगीय किशोरों के विकास में भिन्नताएँ (Inter differences between opposit sex): किशोर एवं किशोरियों के विकास में भी अनेक भिन्नताएँ पाई जाती हैं जो कि उनके विकास दर में भिन्नताओं के कारण होती हैं।
किशोर लड़कियाँ (Adolescent Girls)
- किशोर लड़कियों में विकास की दर आरम्भ में तीव्र होती है जो कुछ समय पश्चात् धीमी हो जाती है।
- लड़कियों में पतली आवाज बदलकर भरी हुई और सुरीली हो जाती है। स्वर परिवर्तन लड़कों की अपेक्षाकृत स्वर में भारीपन आ जाता है।
- लड़कियों को पूर्ण रूप से परिपक्व होने में लगभग तीन वर्ष तक का समय लगता है।
- किशोर लड़कियों में यौन परिपक्वता शीघ्र आती है जिसके कारण उनका लड़कों के प्रति आकर्षण जल्दी होता है।
- प्रारम्भिक किशोरावस्था में लड़कियाँ अपनी आयु के लड़कों से बड़ी दिखाई देती हैं।
- उत्तर किशोरावस्था में आते-आते लड़कियाँ विकसित हो जाती हैं और अपनी आयु के लड़कों से अपेक्षाकृत छोटी लगने लगती हैं।
किशोर लड़के (Adolescent Boys)
- किशोर लड़कों में विकास की दर आरम्भ में धीमी होती है जो बाद में तीव्र हो जाती है।
- लड़कों में किशोरावस्था में आरम्भ में स्वर में परिवर्तन आने लगते हैं। उनके कम होता है।
- लड़कों को पूर्ण रूप से परिपक्व होने में लगभग दो से चार वर्ष तक का समय लगता है।
- किशोर लड़कों में यौन परिपवक्ता देर से आती है। प्रायः किशोरावस्था के अन्त में लड़के लैंगिक रूप से परिपक्व होते हैं।
- प्रारम्भिक किशोरावस्था में लड़के अपनी आयु की लड़कियों से छोटे दिखाई देते हैं।
- किशोरावस्था में लड़के पूर्ण रूप से विकसित हो जाते हैं और अपना शारीरिक रूप व गठन प्राप्त कर लेते हैं।
प्रश्न 7.
व्यक्तियों में वातावरण किन आधारों से बनता है ?
उत्तर:
वातावरण (Environment): डारविन के सिद्धान्त ने यह बताया है कि वातावरण के अनुकूल अपने को व्यवस्थित करने के प्रयास में प्राणियों में कुछ स्वाभाविक शारीरिक परिवर्तन आ जाते हैं। ये परिवर्तन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संक्रमित होते हैं और दृढ़ होते हैं। कालान्तर में जीव का स्वरूप अपने मौलिक रूप से एकदम भिन्न हो सकता है। साधारण बोलचाल की भाषा में हम वातावरण का अर्थ अपने चारों तरफ की परिस्थितियों से लगाते हैं।
डगलस (Dougles) और हालैण्ड (Holland) ने अपनी पुस्तक “एजूकेशनल साइकोलॉजी” में वातावरण शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है-“वातावरण वह शब्द है जो समस्त बाह्यशक्तियों, प्रभावों और परिस्थितियों का सामूहिक रूप से वर्णन करता है, जो जीवधारी के जीवन, स्वभाव, व्यवहार, अभिवृद्धि विकास और प्रौढ़ता पर प्रभाव डालता है।”
वस्तुतः वातावरण के अन्तर्गत वह सभी कुछ सम्मिलित हैं जिनका व्यक्ति के मानसिक, नैतिक व आध्यात्मिक जीवन से सम्बन्ध है। किसी भी व्यक्ति के वातावरण के निम्नलिखित संघटक होते हैं, जो व्यक्तिगत भिन्नताओं के आधार हैं –
- परिवार (Family)
- साथी (Peer)
- विद्यालय (School)
- पास-पड़ोस (Neighbourhood)।
इन सबसे मिलकर ही व्यक्ति को सर्वांगीण विकास के लिए उचित मानसिक वातावरण (Mental Environment) तथा सामाजिक दायरा प्राप्त होता है।
मानसिक वातावरण (Mental Environment): बालक कुछ सहज योग्यताएँ लेकर जन्म लेता है। यदि उसे अनुकूल वातावरण के द्वारा कोई उपयुक्त उद्दीपन नहीं प्रदान किया जाता तो वे योग्याताएँ अपने प्राकृत स्वरूप में विकसित होती हैं। यद्यपि एक व्यक्ति की शारीरिक रचना, जैसे-लम्बाई, ठिगनापन आदि उसके वंशानुक्रम से निर्धारित होती हैं किन्तु यदि वे गन्दे वातावरण में कार्य करता है, जहाँ उसके शरीर को स्वस्थ वायु नहीं मिलती तो उसकी जीवन शक्ति के मर्म पर आघात होता है।
इसी प्रकार से बालक में किसी भी प्रकार की सम्भावनाएँ और योग्यताएँ क्यों न हों, जब तक उसे उचित मानसिक वातावरण नहीं मिलेगा वह उनका समुचित विकास नहीं कर सकता है। मानसिक वातावरण से हमारा तात्पर्य उन सभी परिस्थितियों से है जिनमें बालक का वांछित विकास हो सके और जो उसके मन पर प्रभाव डाल सके। एक छोटा परिवार जिसमें माता-पिता अपने बच्चों को प्यार करते हैं और उनकी सभी समस्याओं को दूर करने का प्रयत्न करते हैं बच्चों के व्यक्तित्व के विकास के लिए उत्तम मानसिक वातावरण प्रदान करते हैं।
माता-पिता के पारस्परिक सम्बन्धों, आचरणों एवं विचारों का प्रभाव भी बच्चों पर पड़ता है। टूटे हुए परिवारों, माता-पिता के झगड़ों आदि का बच्चों के व्यक्तित्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। विद्यालय के वातावरण का भी बच्चे पर बहुत प्रभाव पड़ता है। विद्यालय की वे सभी वस्तुएँ मानसिक वातावरण के अन्तर्गत आती हैं जिनसे बच्चे का समुचित विकास होता है।
बच्चे के समुचित विकास के लिए विद्यालय को बच्चे के शारीरिक विकास हेतु उचित वातावरण (खेलकूद, व्यायाम आदि) का प्रबन्ध करना चाहिए तथा मानसिक विकास के लिए उचित ‘मानसिक वातावरण का प्रबन्ध पुस्तकालय, प्रयोगशालाएँ, संघ या गोष्ठी द्वारा बच्चों में स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना पैदा की जा सकती है।
प्रत्येक शिक्षण संस्थान को अपने विद्यार्थियों के लिए एक स्वस्थ उपयुक्त मानसिक वातावरण प्रदान करना बहुत आवश्यक है क्योंकि केवल इसी से बच्चों का पूर्ण विकास सम्भव है। मानसिक वातावरण पर बच्चे के साथियों एवं पास-पड़ोस का प्रभाव भी पड़ता है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, वह घर के बाहर पास-पड़ोस में तथा विद्यालय में साथी बनाता है। इन साथियों का समूह बनता है जो प्रायः आपस में एक साथ उठते-बैठते व खेलते हैं।
एक समूह में नियमित सदस्यों के अतिरिक्त एक नेता होता है जो समूह का नेतृत्व करता है। इन समूहों का उनके सदस्यों के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है। विद्यालय में भी बच्चे का जो समूह होता है उसका उसके व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। कई बार गलत संगति में पड़कर बच्चा कई असामाजिक कार्यों में भी फंस सकता है और उसमें अपराध की प्रवृत्ति प्रबल हो जाती है। इसके विपरीत जिन बच्चों को अच्छा समूह और अच्छे साथी मिल जाते हैं, वे अपने जीवन में सफल होते हैं।
सामाजिक धरोहर (Social Heritage): किसी समाज की प्राचीन एवं अर्वाचीन संस्कृति ही उस सामाजिक समुदाय की धरोहर कहलाती है। वही उसकी सामाजिक सम्पत्ति होती है। यह सामाजिक धरोहर जाति की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित होती रहती है, किन्तु यह माता-पिता के बीजकोषों द्वारा संक्रमित न होकर रीति-रिवाजों, परम्पराओं, भाषा, साहित्य, शिष्टाचार और जातीय दर्शन द्वारा होती है।
किसी भी जाति की सामाजिक धरोहर उसके लिए गर्व का विषय होती है। जाति की प्रत्येक पीढ़ी इसे आगामी पीढ़ी में संक्रमित करती है और अपने सामाजिक जीवन को उनके अनुरूप बनाने की चेष्टा करती है, किन्तु इस हस्तान्तरण में प्रत्येक पीढ़ी में उस सामाजिक धरोहर में कुछ-न-कुछ और जुड़ जाता है।इस प्रकार संस्कृत का विकास होता रहता है और हर पीढ़ी के योगदान से उस जाति की संस्कृति का विकास होता रहता है। संस्कृति समृद्धशाली बनती है जो पुनः आगे की पीढ़ियों में संक्रमितहो जाती है।
व्यक्ति को सामाजिक धरोहर उसे उसके परिवार, शिक्षक अथवा साथियों द्वारा प्राप्त होती है। जिन बच्चों को उनके माता-पिता व शिक्षकों द्वारा उत्तम सांस्कृतिक दृष्टिकोण के कारण अपनी संस्कृति की वीरतापूर्ण गाथाएँ, साहित्य एवं कविताओं का ज्ञान प्राप्त होता है उनका व्यक्तित्व, उन बच्चों की अपेक्षा जिन्हें अपनी सांस्कृतिक धरोहर अथवा सामाजिक धरोहर का ज्ञान प्राप्त नहीं होता, बहुत उत्तम व सन्तुलित होता है।
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