BSEB Class 11 Home Science Fabric Constructions Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Home Science Fabric Constructions Book Answers |
Bihar Board Class 11th Home Science Fabric Constructions Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 11th |
Subject | Home Science Fabric Constructions |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
कताई प्रकार की होती है – [B.M.2009A]
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर:
(ख) दो
प्रश्न 2.
धागे को तंतुओं के आधार पर बाँटा गया है –
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर:
(ख) तीन
प्रश्न 3.
ताने के आप-पार बुने जाने वाले धागे को कहते हैं –
(क) ताने (Warp)
(ख) बाने (Weft)
(ग) फेल्टिंग (Felting)
(घ) निटिंग (Knitting)
उत्तर:
(ग) फेल्टिंग (Felting)
प्रश्न 4.
धागे से कपड़ा बनाने की प्रमुख विधियाँ हैं –
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर:
(ग) चार
प्रश्न 5.
साटिन बुनाई में तंतुओं (Filament) का प्रयोग किया जाता है –
(क) लंबा
(ख) छोटा
(ग) मोटा
(घ) गोलाकार
उत्तर:
(क) लंबा
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
सूत (Yam) किसे कहते हैं ?
उत्तर:
अनेक तन्तुओं को एक साथ खींच कर ऐंठने से जो अविरल धागा बनाया जाता है, उसे सूत कहते हैं।
प्रश्न 2.
कताई (Spinning) किसे कहते हैं ?
उत्तर:
कताई तन्तुओं के समूह में से धागा खींचकर व ऐंठन देते हुए अविरल सूत प्राप्त करने की प्रक्रिया है।
प्रश्न 3.
यान्त्रिक कताई के क्या कारण हैं ?
उत्तर:
यान्त्रिक कताई (Mechanical Spinning): यान्त्रिक कताई अधिकतर प्राकृतिक तन्तुओं से की जाती है, जैसे-सूती, ऊनी व रेशमी तन्तुओं की कताई यान्त्रिक विधि से होती है। यह प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है।
- कच्चे माल की सफाई (Opening and cleaning of raw material) ।
- धुनाई व कंघी करना (Carding and combing)।
- कताई (Spinning)।
- खींचना व ऐंठन देना।
प्रश्न 4.
सूत कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:
सूतों के प्रकार (Types of Yam):
1. साधारण सूत (Simple Yarm):
- इकहरा सूत (Simple Standard Yarm)
- दोहरा सूत (Two Ply or Cable yam)
- डोरिया सूत ।
2. सम्मिश्रित सूत (Complex or Novelty Yam)।
प्रश्न 5.
सम्मिश्रित सूत (Novelty or Complex Yarm) किसे कहते हैं ?
उत्तर;
दो या अधिक सूतों को मिलाकर बनने वाले सूत को सम्मिश्रित सूत कहते हैं। इससे बनने वाले वस्त्र में भी इन सभी धागों के गुण पाए जाते हैं।
प्रश्न 6.
वस्त्र निर्माण की कौन-कौन-सी विधियाँ हैं ? उनके नाम बताएँ।
उत्तर:
- करघे पर बुनाई (Weaving)।
- सिलाई द्वारा बुनाई (Knitting)।
- दबाकर वस्त्र बनाना (Felting)।
प्रश्न 7.
‘कताई’ (Spinning) की पहली अवस्था क्या होती है ?
उत्तर:
कताई की पहली अवस्था खोलना तथा सफाई करना है।
प्रश्न 8.
फेल्टिंग (Felting) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
फेल्टिंग से अभिप्राय, तन्तुओं के जुड़ने से है। यह एक प्रकार की कपड़े की बुनाई है, जिससे कम्बल, नमदा आदि बनाए जाते हैं।
प्रश्न 9.
‘ताना बाना’ (Wasp & Weft) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
कपड़े की बुनाई करघे पर की जाती है। लम्बाई की ओर जो धागा जाता है, उसे ‘ताना’ और चौड़ाई की ओर से जाने वाले धागे को ‘बाना’ कहते हैं। दोनों ओर से इन्हीं धागों को आपस में गूंथने की प्रक्रिया के द्वारा ही कपड़े का निर्माण होता है।
प्रश्न 10.
उस बुनाई का नाम बताएं जिससे सस्ता व चमकीला (Lumstrous) कपड़ा बनाया जा सके।
उत्तर:
साटिन बुनाई (Satin Weave)।
प्रश्न 11.
अन्तर बताएं:
(क) सिलाई द्वारा बुनाई (Knitting) व लेस बनाना (Lace making)।
(ख) बुनाई (Weaving) फेल्टिंग बनाना (Felting)।
उत्तर:
(क) सिलाई द्वारा बुनाई
1. लूप बनाना
(Looping)
2. लेस बनाना
गाँठ लगाना (knotting)
(ख) बुनाई
- इन्टर लेसिंग (Interlacing)
- फेल्टिंग तन्तुओं का जोड़ना आर्द्र गर्मी द्वारा
प्रश्न 12.
तन्तु और सूत (Fibre and Yarm) में अन्तर बताएँ।
उत्तर:
तन्तु सूत निर्माण की छोटी-से-छोटी इकाई है जबकि सूत में कई सारे तन्तु होते हैं। अनेक तन्तुओं को एक साथ ऐंठने से जो अविरल धागा बनता है, सूत कहलाता है।
प्रश्न 13.
एक व्यापारी धागे में ऐंठन देना भूल गया था। उसका सूत (Yarm) पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
धागे में ऐंठन न देने से कमजोर सूत (weak yarm) बनेगा । ऐंठन से सूत में मजबूती आती है।
प्रश्न 14.
कपड़ा बुनने की दो प्रक्रियाओं के नाम लिखें । इनका कपड़े के गुणों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
1. सिलाई द्वारा बुनना (Knitting)
2. बुनाई (Weaving)।
कपड़े के गुणों पर प्रभाव :
1. बुनाई (Weaving):
(क) मजबूत सूत
(ख) विभिन्न प्रकार के डिजाइन बनाए जा सकते हैं।
2. सिलाई द्वारा बुनना (Knitting):
(क) रिब प्रभाव (Rib Effect)
(ख) लचीलापन (Elasticity)
(ग) बनावट (Shape) जल्दी खराब हो जाती है।
(घ) कम मजबूत होता है (Less strong)।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
रेशे से धागे का निर्माण (Construction of yarn from fibre) किस प्रकार होता. है ?
उत्तर:
रेशे से धागे का निर्माण-सभी रेशों की लम्बाई एक-दूसरे से भिन्न होती है, कुछ बहुत छोटे तथा कुछ लम्बे होते हैं। छोटे रेशों को स्टेपल कहते हैं। अधिकतर प्राकृतिक रेशे स्टेपल (Staple) ही होते हैं। कृत्रिम रेशों को काट-काट कर छोटा कर लिया जाता है। छोटे-छोटे रेशों से बने वस्त्रों के अलग ही प्रकार के गुण होते हैं। लम्बे रेशों को फिलामेंट (Filament) कहते हैं। इससे बने धागे अपेक्षाकृत चिकने होते हैं क्योंकि उनकी सतह पर कम संख्या में रेशों के सिरे रहते हैं।
चिकनी, सीधी तथा यथाक्रम सतह होने के कारण, ऐसे लम्बे फिलामेंट से निर्मित धागों में चमक आ जाती है। चिकनी सतह के कारण धूलकण इनमें सटने या फंसने नहीं पाते तथा वस्त्र जल्दी गंदा नहीं होता। लम्बे रेशों के कारण ये बहुत मजबूत होते हैं। कृत्रिम रेशों को आवश्यकतानुसार छोटा, लम्बा, सीधा, मोटा या पतला बनाया जाता है।
अतः रेशों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जा सकता है –
- स्टेपल फाइबर (Staple fibre)।
- फिलामेंट फाइबर (Filament fibre)।
प्रश्न 2.
धागा निर्माण की कौन-कौन-सी अवस्थाएँ हैं ?
उत्तर:
धागा निर्माण की अवस्थाएँ-रेशों को अविरल धागों के रूप में बदलने के लिए अधिकतर प्राकृतिक धागों को कई चरणों से गुजरना पड़ता है ताकि वे अविरल रूप में तैयार किए जा सकें।
स्टेपल रेशों से धागा (Yam) बनाने की मूलभूत प्रक्रियाएं निम्नलिखित हैं:
- रेशों को स्वच्छ करना (Cleaning of fibres)
- रेशों को थोड़ा-बहुत समान्तर करना (Making the fiblres more or less paralled)।
- लम्बी पट्ट बनाना (पूनी) (Forming a long strand called sliver)।
- तैयार धागे को बोबिन पर चढ़ाना (Winding the yarn on bobbin) ।
- धागा बनाने के लिए पूनी पर बटाई देना (Twisting to form yarn)।
प्रश्न 3.
रासायनिक कताई की चार प्रक्रियाएँ क्या हैं ?
उत्तर:
रासायनिक कताई (Chemical Spinning): मानव-निर्मित तन्तु प्रकृति में लम्बे रिबन के आकार में होते हैं। उनको धागे में बदलने से पहले संसाधित करने की आवश्यकता होती है।
रासायनिक कताई में मूल रूप से चार प्रक्रियाँ हैं:
(क) गीली कताई
(ख) शुष्क कताई
(ग) पिघली कताई
(घ) इमलशन कताई।
(क) गीली कताई (Wet Spinning): जब तन्तु निर्माण करने वाले घोल को स्पिनरेट में से निकालने के पश्चात् रासायनिक पदार्थ भरे टब में सख्त होने के लिए डाला जाए तो उसे गीली कताई कहते हैं। रेयान इस प्रकार से बनाई जाती है।
(ख) शुष्क कताई (Dry Spinning): जब तन्तु निर्माण करने वाले घोल को स्पिनरेट से निकालने के पश्चात् गर्म हवा द्वारा वाष्पीकरण करके सुखाया जाता है तो उसे शुष्क कताई कहते हैं। ऐसिटेट और एक्रेलिक तन्तु इस प्रकार बनाए जाते हैं।
(ग) पिघली कताई-जब तन्तु निर्माण करने वाले पदार्थ को पिघला कर स्पिनरेट में से निकाला जाता है तथा ठण्डा होने पर सख्त कर लिया जाता है तो उसे पिघली कताई कहते हैं। पॉलिएस्टर/टेरीलीन तन्तु इस क्रिया से बनाये जाते हैं।
(घ) इमलशन कताई (Melt Spinning): जटिल तरीका होने के कारण यह कताई सामान्यतः प्रयोग में नहीं लाई जाती है । तन्तु निर्माण वाले पदार्थ को किसी दूसरे रासायनिक द्रव्य में मिलाया जाता है तथा फिर स्पिनरेट से निकाला जाता है।
प्रश्न 4.
कताई व बुनाई में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कताई (Spinning): कताई वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत तन्तुओं को एक समूह में से खींचकर व ऐंठ कर मजबूत अविरल सूत प्राप्त किया जाता है।
बुनाई (Weaving): यह कपड़ा निर्माण की विधि है जिसमें कम से कम दो धागों ताने और बाने का प्रयोग करके हथकरघे या मशीन पर कपड़ा निर्मित किया जाता है।
प्रश्न 5.
तन्तु व सूत में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1. तन्तु (Fibre): कपड़ा निर्माण की सबसे छोटी इकाई को तन्तु या रेशा कहते हैं। इससे तुरत कपड़ा निर्मित नहीं किया जा सकता जब तक कि इससे सूत या धागे का निर्माण नहीं किया जाता।
2. सूत (Yarn): सूत या धागा वह अखंड तार है जो अनेक तन्तुओं को एक साथ ऐंठने से बनता है। इससे कपड़े का निर्माण होता है। यह तन्तु से अधिक लम्बे, चौड़े और मजबूत होते हैं।
प्रश्न 6.
सम्मिश्रित वस्त्र (Novelty Clothes) क्यों उपयोगी हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सम्मिश्रित वस्त्र जैसे टेरीकॉट, टेरीवुल आदि इसलिए उपयोगी हैं क्योंकि
- ये सस्ते होते हैं, अतः मितव्ययी हैं।
- इनका रख-रखाव भी सरल है।
- प्रेस करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
- इनमें कीड़ा नहीं लगता।
प्रश्न 7.
‘हन परीक्षण’ (Flame Tact) को स्पष्ट करें।
उत्तर:
दहन परीक्षण अर्थात् कपड़े के तन्तु को ज्वाला के समीप ले जाने पर प्रभाव देखना। इसके लिए कपड़े की लम्बाई से एक रेशा निकाला जाता है। ऐंठन खोल कर तन्तु अलग किया जाता है । तन्तु को चिमटी से पकड़कर उसके सिरों को ज्वाला के निकट ले जाया जाता है और फिर निम्न प्रभाव आंके जाते हैं
- ज्वाला के समीप ले जाने पर तन्तु पर प्रभाव
- ज्वाला में तन्तु पर प्रभाव
- लौ का रंग
- गंध
- राख का प्रकार।
प्रश्न 8.
कपड़ा फाड़ परीक्षण (Tearing Test) का वर्णन करें।
उत्तर:
इसे विदीर्ण परीक्षण भी कहते हैं। किसी कपड़े के टुकड़े को फाड़ने में कितनी शक्ति लगती है, फटते समय कैसी ध्वनि उत्पन्न होती है एवं फटे हुए सिरों का स्वरूप कैसा होता है, इसके आधार पर रेशे की पहचान की जाती है।
प्रश्न 9.
सूत निर्माण (Yarm construction) की दो विधियाँ बताएँ। प्रत्येक का एक उदाहरण दें। किसमें सूत ज्यादा मजबूत है और क्यों ?
उत्तर:
1. तकली अथवा चरखा द्वारा सूत बनाना, जैसे सूती (cotton) व ऊनी (wool) सूत।
2. स्पिनरेट्स द्वारा (through Spinerrattes)-नाइलोन (Nylon) व पोलीएस्टर (Polyester) । (Spinerrates) द्वारा बनाया गया सूत ज्यादा मजबूत होता है क्योंकि इसकी विधि अत्यधिक वैज्ञानिक है और पर्याप्त लम्बाई का सूत प्राप्त होता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
धागों के विभिन्न प्रकार का वर्णन करें ? [B.M.2009A]
उत्तर:
धागा प्राकृतिक व मानवकृत तंतुओं से प्राप्त होता है। दोनों स्रोत से धागा बनाने की विधि अलग होती है । धागे का उपयोग वस्त्र के अतिरिक्त कई कार्यों के लिए किया जाता है
जैसे-सिलाई कढ़ाई करना । प्रत्येक कार्य के लिए धागे की प्रकार अलग होती है। कढ़ाई के लिए रेशमी चमकीले धागे का प्रयोग किया जाता है। सिलाई के लिए मजबूत धागा लिया जाता है।
कपड़े की बुनाई के लिए दो प्रकार के धागों का प्रयोग किया जाता है।
1. ताना
2. बाना।
1. ताना-इसका धागा मजबूत होता है।
2. बाना-बाने का धागा कम मजबूत होता है। धागे को तंतुओं के आधार पर तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है।
(a) साधारण धागे
(b) मिश्रित धागे
(c) जटिल धागे।
(a) साधारण धागा-यह एक ही आकार और प्रकार वाले तंतओं से बनता है इनका व्यास एक समान होता है। इन धागे की ऐंठन भी एक समान होती है। साधारण धागे को आवश्यकता अनुसार एकहरा, दोहरा, चौहरा या इनका केतल भी बनाया जा सकता है।
(b) मिश्रित धागा-यह एक से अधिक प्रकार के तंतुओं के रेशे को मिलाकर बनाया जाता है। उदाहरण-सूती धागे के साथ रेशमी धागा मिलाकर सिल्कों का निर्माण होता है। कॉटन में पालिएस्टर मिलाकर टेरिकॉट का निर्माण होता है।
(c) जटिल धागा-इसका प्रयोग वस्त्रों में भिन्नता लाने के लिए किया जाता है। यह एक दो या तीन धागों के लिए किया जाता है। इस विधि में प्रयोग किये जाने वाले धागे निम्न प्रकार से हैं –
- गाँठ वाला धागा
- चक्रदार या कॉर्क स्कू धागा
- स्लव धागा
- फ्लैक धागा
- फंदेदार एवं घुमाउदार धागा
- बीज धागा
- क्रेप धागा
प्रश्न 2.
कताई (Spinning) के विभिन्न प्रकारों को विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर:
कताई के प्रकार (Kinds of Spinning): यह दो प्रकार की होती है:
1. यांत्रिक कताई (Mechanical Spinning)
2. रासायनिक कताई (Chemical Spinning)
1. यान्त्रिक कताई-यान्त्रिक कताई अधिकतर प्राकृतिक तन्तुओं से की जाती है, जैसे-सूती, ऊनी व रेशमी तन्तुओं की कताई यान्त्रिक विधि से होती है। यह प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है।
- खोलना व सफाई करना
- कार्डिंग व कैबिंग
- पूनियाँ बनाना
- खींचना व घुमाना
यान्त्रिक कताई के चरण (Steps of Mechanical Spinning):
1. कच्चे माल की सफाई (Opening and Cleaning of Raw Material): सर्वप्रथम प्राकृतिक तन्तुओं को खोलकर उनकी सफाई की जाती है क्योंकि प्राकृतिक तन्तुओं में अशुद्धि काफी होती है।
2. धुनाई व कंघी करना (Carding and Combing): अब तन्तुओं को अच्छी तरह साफ किया जाता है और सुलझाया जाता है। छोटे-छोटे तन्तुओं को अलग कर दिया जाता है और लम्बे तन्तुओं को समान्तर बिछा दिया जाता है, इन्हें पूनियाँ बनाना कहते हैं।
3. खींचना व ऐंठन देना: अब पूनियों को खींचा जाता है व साथ ही साथ हल्का-सा घुमाव दिया जाता है ताकि रेशे एक साथ रह सकें और अलग-अलग न हो जाएँ।
4. कताई-सूत को अधिक मजबूत बनाने के लिए इससे तकली या चरखे या मशीनों पर चढ़ाकर ज्यादा घुमाव व ऐंठन दिया जाता है, जिससे यह सूत अपेक्षाकृत अधिक मजबूत और टिकाऊ हो जाता है। इस विधि द्वारा कपास व ऊन का सूत बनाया जाता है। रेशम का सूत काकून गोंद को हटाने के पश्चात् सीधा चरखे पर ही चढ़ाया जाता है।
2. रासायनिक कताई (Chemical Spinning): मानव-कृत तन्तुओं का निर्माण रासायनिक तरल पदार्थों द्वारा किया जाता है। यह एक गाढ़े घोल के रूप में होता है। इसे एक विशेष रूप से बने कातने वाले यन्त्र से, जिसमें छोटे-छोटे छिद्र होते हैं, तेजी से निकाला जाता है। जैसे ही यह तन्तु हवा को स्पर्श करते हैं तो ठोस बन जाते हैं और अपारदर्शी हो जाते हैं। इन्हें सूत के रूप में एकत्रित कर दिया जाता है। फिर इन सूतों को खींचा जाता है। यह लम्बा, लचीला और मजबूत बन जाता है।
प्रश्न 3.
सूत कितने प्रकार के होते हैं ? समझाइए।
उत्तर:
सूतों के प्रकार (Types of Yams): सूत का प्रयोग कहाँ करना है इस पर उसकी बनावट निर्धारित होती है। उसको कितनी ऐंठन देनी है ताकि इच्छित प्रकार का सूत प्राप्त किया जा सके । सूत में विभिन्न परिवर्तन करके उसकी विशेषताओं का निर्धारण किया जा सकता है। सूत को मुख्य रूप से हम दो भागों में बाँटते हैं
1. साधारण सूत (Simple Yam)
2. सम्मिश्रित सूत (Novelty Yam)
साधारण सूत-यह तीन प्रकार का होता है –
(क) इकहरा सूत (Simple Standard Yarn): इसे बनाने में एक प्रकार के तन्तु का इस्तेमाल किया जाता है। यह सभी भागों में समान होता है। ऐंठन भी एक-सी और एक ही दिशा में दी जाती है।
(ख) दोहरा सूत (Two Ply or Cable Yarn): यह दो या अधिक सूतों को ऐंठन देकर बनाया जाता है।
(ग) डोरिया सूत-बहुत से सूत मिलाकर रस्सी जैसी सूत बनाया जाता है।
2. सम्मिश्रित सूत (Complex or Novelty Yarm): इस प्रकार का सूत बनाने की प्रक्रिया काफी जटिल होती है। यह विभिन्न प्रकार के दोहरे सूत व अलग-अलग रंगों के धागों को मिला कर ऐंठन देकर एक सूत बनाने से बनता है। इसमें ऐंठन में परिवर्तन करके नए प्रकार का सूत बनाया जा सकता है। इसमें अलग-अलग तरीके के तन्तु मिलाए जा सकते हैं। जैसे रेयान व रुई, रुई व ऊन, रुई व रेशम आदि।
इससे धागे में नवीनता लायी जाती है। एक सूत आधार रहता है व दूसरा उस पर लपेटा जाता है। यह कई प्रकार से बनाए जाते हैं। जैसे-तौलिए के लिए, शनील के लिए, लेस के लिए आदि। इनमें ऐंठन देने की क्रिया में परिवर्तन लाते हैं। लपेटने वाले धागे को कहीं कसके लपेटा जाता है तो कहीं ढीला रखा जाता है।
कहीं अधिक लपेटा जाता है कहीं दूरी पर कम लपेटा जाता है। इस प्रकार की कई तरह की विभिन्न विशेषताओं वाले सूत व कपड़े का निर्माण हो सकता है। दो या अधिक सूतों को मिलाकर बनने वाले सूत को सम्मिश्रित सूत कहते हैं। इससे बनने वाले वस्त्र में इन सभी धागों के गुण पाए जाते हैं। आजकल ऐसे वस्त्रों का चलन खूब है, जैसे-टेरीकॉट, कॉट्सवुल, टेरीसिल्क आदि ।
प्रश्न 4.
बुनाई कला (weaving) से आप क्या समझती हैं ? इसके विभिन्न चरण लिखिए।
उत्तर:
बुनाई कला (Weaving): कपड़े का निर्माण करने की एक प्राचीन एवं लोकप्रिय विधि बुनाई है। प्राचीन काल में जब करघों का आविष्कार नहीं हुआ था तब जमीन पर निश्चित दूरी पर दोनों ओर खूटियां गाड़कर उनमें ताने के धागे कसकर बांधे जाते थे और हाथ से बाने के धागों को गूंथा जाता था। आज के युग में बुनाई हथकरघों (Hand-Loom) अथवा मशीनी करघों (Power Loom) से की जाती है, जिसमें कपड़ा बुनने की मूल विधि एक ही है। इसमें कपड़े की लम्बाई के समान्तर व्यवस्थित धागे अर्थात् बाने (Weft) के धागे होते हैं। इन दो जोड़ी धागों, तानों एवं बानों के पारस्परिक गुंथाव (Interlacing) को बुनाई कहते हैं।
बुनाई के चरण (Steps in Weaving):
करघे द्वारा बुनाई के निम्नलिखित चरण हैं –
1. ताना तनना एवं शेडिंग (Shedding): सर्वप्रथम जितना लम्बा कपड़ा बनाना हो उतने लम्बे ताने के धागे करघे पर कसे जाते हैं और फिर उन्हें करघे के पीछे के बेलन पर लपेटा जाता है जिस पर कपड़ा बुनने के बाद भी लपेटा जाता है। ताने के धागों को हार्नेस में से निकाल कर कसा जाता है। हार्नेस धातु की बनी तार होती है जिसके बीच में छेद होता है और एक फ्रेम में लगी होती है, जिसे हैंडल कहते हैं।
ताने के धागे इन्हीं हार्नेस के छेदों में से पिरो कर कसे जाते हैं। प्रत्येक करघे में सादी बुनाई के लिए कम से कम दो हार्नेस तो अवश्य होते हैं, परन्तु अन्य विभिन्न प्रकार की बुनाइयों के लिए 3 से लेकर 8 तक हार्नेस करघे में लगाए जा सकते हैं। हैंडलों एवं हार्नेसों के द्वारा ताने के कुछ निश्चित धागों को ऊपर या कुछ धागों के नीचे करने को शैडिंग कहते हैं। जब ताने के कुछ निश्चित धागे ऊपर और कुछ नीचे हो जाते हैं तो उनके बीच में एक सुरंग (शैड) जैसा मार्ग बन जाता है जिसमें से शटल पर लिपटा हुआ बाने का धागा एक ओर से दूसरी ओर अथवा दायीं से बायीं ओर ले जाया जाता है।
2. पिकिंग (Picking): बुनाई का दूसरा चरण पिकिंग है। यह क्रिया हार्नेस द्वारा ही होती है। इसमें दूसरा हार्नेस अन्य निश्चित धागों को ऊपर उठाता है तो पुनः एक सुरंग (शैड) जैसा मार्ग बनता है, जिसमें से अब शटल को बायीं ओर से पुनः दायी ओर ले जाते हैं। इस प्रकार बाने के धागे को दायीं से बायीं और बायीं से दायीं ओर ले जाकर गुथाई करने को पिकिंग कहते हैं।
3. बेटनिंग (Battening): बाने के धागों को ताने के धागों में पिरोने के बाद एक दांतेदार कंघी (रीड़) द्वारा अच्छी प्रकार ठोका जाता है। इसके अतिरिक्त करघे में एक छड़ जिसे बैटन कहते हैं बाने के धागे के समान्तर लगी होती है और यह बाने के नए धागों को ठोक पीटकर पहले धागे के अत्यन्त निकट लाती है, जिससे कपड़े में सघनता आए और बाने के धागे एक समान दूरी पर रहें।
4. कपड़ा लपेटना तथा धागे छोड़ना (Taking up and Letting Off): इस प्रक्रिया में जो कपड़ा बुना जाता है उसे सामने की छड़ पर लपेटा जाता है और पीछे के बेलन से ताने के धागे और कपड़ा बुनने के लिए छोड़े जाते हैं। इस प्रकार उपर्युक्त क्रियों को दोहरा कर कपड़े की बुनाई की जाती है।
प्रश्न 5.
विभिन्न प्रकार की बुनावटें कौन-कौन-सी हैं ? विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर:
विभिन्न प्रकार की बुनावटें (Different Weaves): कपड़ा कई प्रकार की बुनावटों से बुना जा सकता है। कुछ बुनावटें उत्तम धागे के लिए होती हैं जबकि दूसरी को मोटे व खुरदुरे धागे के लिए प्रयोग किया जाता है। भिन्न-भिन्न बुनावटों से जादुई प्रभाव पड़ते हैं। कुछ बुनावटों के नाम हैं-साधारण, धारीदार, बास्केट, ट्विल, साटिन, कार्डेराय, मखमलनुमा, पाइल इत्यादि। कुछ
महत्त्वपूर्ण बुनावटें निम्नलिखित हैं –
साधारण बुनाई (Plain weave): कपड़ा बनाने की सबसे सरल प्रकार की बुनाई साधारण बुनाई है। सूती कपड़ा आमतौर पर इस बुनाई से बनता है। बाने को एक-एक ताने को छोड़कर डाला जाता है। ऐसे कपड़े की उल्टी सतह नहीं होती। साधारण बुनाई सस्ती व सरल है। कपड़ा मजबूत होता है तथा समतल दिखाई देता है। यह बुनाई लट्ठा, मलमल, वायल के कपड़ों के लिए उपयुक्त है।
विल बुनाई (Twill weave): यह भी एक मूलभूत बुनाई है। इससे कपड़े की सतह पर एक प्रकार की तिरछी धारी बनने लगती है। ये धारियाँ कपड़े की उल्टी सतह पर भी दिखाई देती हैं तथा ताने से 14° से 75° तक का कोण बना सकती हैं। ये धारियां दो दिशाओं में चल सकती हैं। चित्र में बायां भुजा ट्विल और दायां ट्विल दिखाया गया है।
बाना दो तानों के ऊपर तथा एक के नीचे, नियमित रूप से चलता है तथा धारियाँ बनाता है। हैरिंगवोन डिजाइन बनाना एक भिन्नता है। यह धारियों की दिशा, कुल लम्बाई के बाद, बदलने से बन सकती है। यह नियमित रूप से V डिजाइन बनाता है। ट्विल बुनाई द्वारा फलालेन, डेनिम, ड्रिल, गेबरडीन, जीन आदि सूती कपड़े बनाये जाते हैं।
ताने-बाने की कर्ण व्यवस्था से कपड़े में मजबूती होती है, क्रीज जल्दी नष्ट नहीं होती। ट्विल बुनाई वाले कपड़े साधारण बुनाई के कपड़ों से महंगे होते हैं क्योंकि इनका उत्पादन मूल्य और कच्चा माल अधिक महंगा होता है। ऐसे कपड़े देखने में सुन्दर होते हैं तथा रख-रखाव साधारण बुनाई वाले कपड़ों के अनुकूल होता है।
साटिन बुनाई (Satin weave): इस बुनाई में बाने का धागा, ताने के एक धागे के ऊपर से और एक से अधिक धागों से नीचे से गुजरता है। ताने के साधारणत: 4 धागे ऊपर रहते हैं। यह 7 धागों तक भी हो सकता है। इस प्रकार का बना हुआ कपड़ा ‘साटिन’ कहा जाता है। अगर ताने के स्थान पर बाने का धागा ऊपर हो तो कपड़े को ‘स्टन’ कहा जाता है। साटिन बुनाई द्वारा बने कपड़ों में अधिक चमक होती है परन्तु यह कपड़ा अन्य बुनाई द्वारा बने कपड़ों की अपेक्षा कमजोर होता है।
कई बार अधिक चमक लाने के लिए तन्तुओं में कम ऐंठन दी जाती है। इस प्रकार की बुनाई (Snag) में अधिक आ जाते हैं। साटिन का रख-रखाव सुविधाजनक नहीं है। साटिन के कपड़ों को अधिक चमक वाला करने के लिए ताने में ऊन, रेयान तथा रेशम का प्रयोग किया जाता है। सूती कपड़े भी साटिन बुनाई से बुने जाते हैं।
बायीं ओर का चित्र दर्शाता है कि धागे में ऐंठन अच्छा साटिन बनाता है। दायीं ओर का चित्र दर्शाता है कि धागे में असमान ऐंठना टूटा ट्विल हुआ बनाता है।
बुना हुआ कपड़ा (Knitting Fabrics): बुनने की क्रिया में कपड़ा (वस्त्र) तैयार करने के लिए धागे के फंदे बनाए जाते हैं तथा फिर फंदों में डालकर कपड़ा बुना जाता है। बुने हुए कपड़े बहुत लोकप्रिय हैं क्योंकि ये वजन में हल्के तथा पहनने में आरामदायक होते हैं। इनमें ताने-बाने वाले कपड़ों की अपेक्षा कम सिलवटें पड़ती हैं तथा यह सुविधा से रखे अर्थात् संभाले जाते हैं। धागे इस प्रकार व्यवस्थित किये जाते हैं कि एक फंदों की पंक्ति ऊपर व नीचे की फंदों की पंक्ति के सहारे लटकी हो।
फंदों के स्तम्भ को Wale कहा जाता है जबकि लगातार फंदों की पंक्ति को Course कहते हैं। Gauge शब्द का अर्थ है – एक इंच में फंदों की संख्या। इस गिनती से कपड़े की दृढ़ता पता लगाई जा सकती है।
बुनाई वाले कपड़े दो प्रकार के होते हैं –
Tubular और flat गोलाकार (Tubular) बुनाई के कपड़ों में फंदे गोलाई में डाले जाते हैं। यह जुराबों के लिए उपयुक्त होता है। समतल (Flat) बुनाई में फंदे सीधी पंक्ति में होते हैं। यह उन कपड़ों के लिए उपयुक्त है जिनसे शरीर की गति होनी होती है। जब बुनाई के कपड़े का धागा टूटता है तो फंदा पंक्ति-दर-पक्ति नीचे गिरने लगता है, इसे laddering effect कहते हैं। बुनाई के समय एक अन्य ताने का धागा डालकर इसे रोका जा सकता है।
नमदे का कपड़ा (Felt fabrics): नमदे के कपड़े में बुने हुए कपड़े की तरह कोई ताना-बाना नहीं होता। वे ऊनी बुनाई से भी भिन्न होते हैं। इस प्रकार के कपड़े बुनने वाले कपड़ों की खोज से पहले प्रयोग होते थे। ये कपड़े ऊन, बालों व चर्म से बनते थे। आजकल ऊन व अन्य जानवरों से उपलब्ध तन्तुओं के मिश्रण से बनाये जाते हैं। कश्मीर के नमदों के ऊपर विभिन्न रंगों से सुन्दर डिजाइनों की कढ़ाई की जाती है। नमदे का कपड़ा नई या पुरानी ऊन के रेशों से बनाया जाता है।
इन तन्तुओं को यांत्रिक शक्ति से रासायनिक क्रिया, नमी और गर्मी से जुड़ाव किया जाता है तथा इसमें कोई चिपकने वाला पदार्थ का प्रयोग नहीं किया जाता। नमदे का कपड़ा फर्श को ढंकने के लिए कालीन बनाने में तथा विभिन्न औद्योगिक इकाइयों के काम आता है। यह विद्युत का कुचालक होता है तथा आवाजरोधी है। यह किसी भी आकार में काटा जा सकता है। कोनों को किसी भी परिसज्जा की आवश्यकता नहीं होती। नमदे का पतला कपड़ा लचीला होता है, अत: जैकेट बनाने में प्रयोग होता है। खुरदरी फेल्ट से टोप बनाए जाते हैं। फैल्ट या नमदे के कपड़ों के गुण बढ़ाये जा सकते हैं अगर हम उन्हें प्रतिरोधक, पानीरोधक व आगरोधक बना दें।
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