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Wednesday, June 22, 2022

BSEB Class 11 Home Science Social and Emotional Development and The Adolescent Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Home Science Social and Emotional Development and The Adolescent Book Answers

BSEB Class 11 Home Science Social and Emotional Development and The Adolescent Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Home Science Social and Emotional Development and The Adolescent Book Answers
BSEB Class 11 Home Science Social and Emotional Development and The Adolescent Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Home Science Social and Emotional Development and The Adolescent Book Answers


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Bihar Board Class 11th Home Science Social and Emotional Development and The Adolescent Textbooks Solutions PDF

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Bihar Board Class 11th Home Science Social and Emotional Development and The Adolescent Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 11th
Subject Home Science Social and Emotional Development and The Adolescent
Chapters All
Provider Hsslive


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Bihar Board Class 11 Home Science किशोर और सामाजिक तथा संवेगात्मक विकास Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
मौरेनो में सामाजिक संबंधों को जानने के लिए समाज-आलेख का निर्माण कब किया ?
(क) 1940 ई. में
(ख) 1955 ई. में
(ग) 1934 ई. में
(घ) 1928 ई. में
उत्तर:
(ग) 1934 ई. में

प्रश्न 2.
बालक के विकास की प्रक्रिया में –
(क) ह्रास होता है
(ख) वृद्धि होती है
(ग) स्थिर होता है
(घ) अस्थिर होता है
उत्तर:
(ख) वृद्धि होती है

प्रश्न 3.
समाज आलेख (Sociogram) का निर्माण मोरेनो ने किया –
(क) 1930 ई. में
(ख) 1932 ई. में
(ग) 1940 ई. में
(घ) 1934 ई. में
उत्तर:
(घ) 1934 ई. में

प्रश्न 4.
किशोरावस्था के प्रमुख संवेग हैं –
(क) चिंता
(ख) जिज्ञासा
(म) स्नेह और प्रेम
(घ) इनमें से सभी
उत्तर:
(घ) इनमें से सभी

प्रश्न 5.
किशोरावस्था के विषय लिंगियों के प्रति प्रेम की आयु सीमा क्या है –
(क) 16-17 वर्ष
(ख) 18-20 वर्ष
(ग) 14-15 वर्ष
(घ) बाल्यावस्था में
उत्तर:
(क) 16-17 वर्ष

प्रश्न 6.
व्यावसाविक जीवन की नींव कब रखी जाती है –
(क) जीवन भर
(ख) उत्तर किशोरावस्था में
(ग) युकवस्था में
(घ) मल्यावस्था
उत्तर:
(घ) इनम

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
किशोरावस्था में सामाजिक विकास से आप क्या समझती हैं?
उत्तर:
सामाजिक विकास किशोरावस्था में उन सभी गुणों को अर्जित करता है, जिनके द्वारा समाज में उन्हें सम्मान मिलता है।

प्रश्न 2.
सामाजिक समूह से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वह समूह जिनके दृष्टिकोण, रुचियाँ, योग्यताएँ लगभग समान होती हैं, सामाजिक समूह. कहलाता है।

प्रश्न 3.
सामाजिक स्वीकृति किसे कहते हैं ?
उत्तर:
लड़के व लड़कियाँ अपने अन्दर उन गुणों को विकसित करते हैं जिनसे उन्हें अपने समूह में प्रतिष्ठित स्थान मिले व समूह के सदस्य अपने समूह को समाज में अच्छा स्थान दिला

प्रश्न 4.
“किशोरावस्था संवेगात्मक रूप से अस्थिर अवस्था है” से क्या तापलं है ?
उत्तर:
यह तनाव की अवस्था है जो किशोर के शरीर में हो रहे हारमोन्स की खलबली के कारण होती है। इससे बेचैनी व उत्तेजना तथा आस-पास का परिवेश बदला हुआ लगता है।

प्रश्न 5.
तनाव से आप क्या समझती हैं ?
उत्तर:
तनाव वह आन्तरिक स्थिति है जो शरीर के भौतिक परिवर्तन या अड़ोस-पड़ोस तथा सामाजिक स्थितियों से पैदा होती है।

प्रश्न 6.
प्रतिबल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
कारक जो तनाव तथा दबाव पैदा करते हैं, उन्हें प्रतिबल कहते हैं।

प्रश्न 7.
पहचान स्थापित करना (Achieving Identity) से आप क्या समझती हैं ?
उत्तर:
तनाव व संघर्ष के बावजूद अपने गुण व चतुराई द्वारा भविष्य की सम्भावनाओं का पता लगाना पहचान स्थापित करना कहलाता है।

प्रश्न 8.
किशोरावस्था में मुख्य संवेग कौन-कौन-से हैं ?
उत्तर:
क्रोध और आक्रामकता, भय और आकुलता, ईर्ष्या, स्पर्धा, हर्ष तथा स्नेह आदि किशोरावस्था के कुछ मुख्य संवेग हैं।

प्रश्न 9.
किशोरावस्था में सामाजिक विकास से आप क्या समझती हैं ?
उत्तर:
विभिन्न सामाजिक क्रियाओं के फलस्वरूप होने वाले विकास को सामाजिक विकास कहते हैं।

प्रश्न 19.
संवेगात्मक स्वाधीनता से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर;
संवेगात्मक स्वाधीनता अर्थात् माता-पिता पर संवेगात्मक रूप से निर्भर न रह कर स्वतंत्र रूप से निर्णय ले पाने की क्षमता से है।

प्रश्न 11.
लिंगोचित कार्य (Sex Roles) से आप क्या समझती हैं ?
उत्तर:
लिंगोचित कार्य का अर्थ दोनों लिंगों के सदस्यों का वह व्यवहार है जो समाज द्वास मान्य है तथा जिसके बस उनकी पहचान बनती है।

प्रश्न 12.
परिवर्ती शरीर का स्वकरच (Accepting the changed physique) क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
परिवर्ती शरीर का स्वीकरण इसलिए आवश्यक है ताकि आत्मस्वीकरण में सरलता हो, समायोजन में समस्या न हो और संतोष के साथ जीवन व्यतीत करने का सामर्थ्य प्राप्त हो ।

प्रश्न 13.
माता-पिता किस प्रकार किशोर की आजादी पर नियंत्रण करते हैं ?
उत्तर:
सही मार्गदर्शन।
मैत्रीपूर्ण व्यवहार पर कभी-कभी कठोर।

प्रश्न 14.
ऐसी दो परिस्थितियों के नाम लिखें जब किशोर दबाव का अनुभव करता है।
उत्तर:
तीव्र शारीरिक वृद्धि।
लैंगिक विशेषताओं का विकास।

प्रश्न 15.
रमेश किसी मित्रसमूह का हिस्सा नहीं है। इस स्थिति में होने वाली किन्हीं दो हानियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • मित्रसमूह से निकाल दिया जाता है।
  • समस्याओं को बाँटने के लिए किसी का साथ न होना।

प्रश्न 16.
ऐसी दो क्रियाएँ बताएँ जिनमें किशोर अपने माता-पिता से ज्यादा मित्र- समूह से प्रभावित होता है।
उत्तर:
वेशभूषा में।
संगीत, मनोरंजन व फिल्म में चयन करना तथा बातें करने के ढंग से।

प्रश्न 17.
राधा निम्न आय वर्ग के एक बड़े परिवार से संबंधित है। उसकी ऐसी चार आवश्यकताओं के नाम लिखें जिन पर विपरीत प्रभाव पड़ सकते हैं।
उत्तर:

  • सही पोषण (Proper Nutrition)
  • बीमारियों के प्रति बचाव (Protection from illness)
  • प्यार व स्नेह।
  • निजीपन की आवश्यकता।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
किशोरों के जीवन में तनाव व झंझावात पैदा करने वाले कारक बताइए।
उत्तर:

  • शारीरिक परिवर्तन (Physical Changes)
  • यौन सम्बन्धी परिवर्तन (Sexual Changes)
  • शैक्षिक और व्यावसायिक (Educational & Vocational)
  • पहचान स्थापित करना (Achieving Identity)
  • मित्रसमूह (Peer group)

प्रश्न 2.
शारीरिक परिवर्तन कारक को उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर:
शारीरिक विकास तथा भौतिक परिपक्वता के तूफानी दौर में किशोर कद में प्रौढ़ों के समान हो जाते हैं। लड़कों में यह वृद्धि 3-5 इंच प्रति वर्ष तथा लड़कियों में शारीरिक विकास लड़कों से पहले हो जाता है। बेशक अन्ततः लड़कों के शरीर लम्बे, चौड़े तथा अधिक हृष्ट-पुष्ट होते हैं।

प्रश्न 3.
किशोरों में यौन-सम्बन्धी परिवर्तन से आप क्या समझती हैं ?
उत्तर:
यौन-सम्बन्धी परिवर्तन किशोरों के जीवन में खलबली मचाता है। वे इस प्रकार की भावनाओं से चिन्तित रहते हैं तथा यही तनाव का कारण भी हो जाता है। वे सोचते रहते हैं कि विषमलिंगियों के प्रति आकर्षण क्यों हो रहा है? उन्हें जीव विज्ञान सम्बन्धी, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक व्यवहार के अपने-अपने समाज के प्रचलित रीति-रिवाजों के दायरे में ही होना चाहिए। जैसे कि आज के किशोर को पारिवारिक दायित्व केवल परिपक्वता आने पर और आर्थिक सुरक्षा के बाद ही सौंपा जाता है।

प्रश्न 4.
मित्रसमूह की किशोर को पहचान देने में क्या भूमिका है ? लिखें।
उत्तर:
मित्र-समूह किशोरों को अपनी पहचान देता है। हर सदस्य इस समूह का हिस्सा है तथा यही उसकी पहचान है।
समूह के सदस्य:

  • एक ही ‘अपनी’ तरह बोलते, सोचते, काम करते तथा संवरते हैं।
  • खुशमिजाज, मित्रता भाव तथा दूसरे समूहों के साथ संबंध रखते हैं।
  • आप अपनी तरह रहते हैं।
  • एक-दूसरे में पूरी दिलचस्पी रखते हैं।
  • ईमानदार, सत्यवादी तथा विश्वासपात्र होते हैं।
  • मित्रसमूह का परस्पर सौहार्द्रभाव सराहनीय होता है।
  • मित्रसमूह युवा के लिए एक सहारा है तथा जो युवा अपने परिवार तथा दूसरों से भिन्नता रखते हैं, उन्हें शरण देता है।

किशोर अपने मित्र-समूह के साथ काफी समय व्यतीत करते हैं। वह कला, संगीत, परिवार, खेलकूद, शैक्षिक, राजनीति और यहाँ तक कि सांसारिक समस्याओं पर विचार करते हैं। यह कह सकते हैं कि वे विश्व के सभी पक्षों पर विचार करते हैं। वे एक दूसरे के साथ तालमेल रखते हैं। वे एक-दूसरों की शरारतों में पूरा साथ देते हैं।

प्रश्न 5.
पहचान स्थापित करने से आप क्या समझती हैं ?
उत्तर:
पहचान स्थापित करना (Achieving Identity): सारे तनाव और संघर्ष के अतिरिक्त किशोरों में अपनी पहचान बनाने की लालसा भी होती है। अगर आप किशोर हैं तो अपने बारे में जल्दी से दस वाक्य लिखें। अब आप इसे आलोचनात्मक दृष्टि से पढ़ें। इस प्रकार आप अपने गुण व चतुराई को पहचान पाएंगे। अगर आपके गुण और संभावनाएँ मेल नहीं खाते तो आपको अपना लक्ष्य पाने के लिए अधिक परिश्रम करना होगा।

इरिकसन के अनुसार, पहचान की परिभाषा है –
“Identity is feeling of being at home in one’s body, a sense of knowing where one is going and an inner assurance of anticipated recognition from those who matter”.

प्रश्न 6.
सामाजिक स्वीकृति किसे कहते हैं ?
उत्तर:
सामाजिक स्वीकृति (Social Acceptance): किशोरावस्था में किशोर यह समझने लग जाते हैं कि समाज की स्वीकृति प्राप्त हो। लड़के व लड़कियाँ अपने अन्दर उन गुणों को पैदा करते हैं जिनसे समूह में उन्हें प्रतिष्ठित स्थान मिले व समूह के सदस्य अपने समूह को समाज में अच्छा स्थान दिला सकें। जिस किशोर को अधिक सामाजिक स्वीकृति प्राप्त होती है वह अधिक आत्म-विश्वास वाला, बहिर्मुखी, सहायता करने वाला, उदार और उत्तरदायित्वों को पूरा करने वाला होता है। कहने का तात्पर्य है कि किशोर समाज से पूर्ण रूप से जुड़ जाता है व अपने अधिकारों और उत्तरदायित्वों को समझने लगता है।

प्रश्न 7.
टोली और गिरोह से आप क्या समझती हैं ?
उत्तर:
टोली (Cliques): यह कुछ लोगों का समूह होता है। एक या दो चमस (Chums) की जोड़ी से भी बनता है। ये चमस आरम्भिक किशोरावस्था में समलिंगी होते हैं। ये सभी समान रुचियों वाले मित्र होते हैं व घनिष्ठ सम्बन्धों वाले होते हैं।

गिरोह (Gangs): यह काफी बड़ा समूह होता है। यह अधिकतर उन किशोरों का बनता है जिनका अपने आस-पास, घर, विद्यालय में सही समायोजन नहीं होता। ये आपस में मिलकर समाज विरोधी क्रियाओं में भाग लेने लगते हैं। यह खेलने, स्कूल से भागने, सिनेमा आदि देखने में अधिक रुचि लेते हैं। प्रायः ये बाल अपराधी बन जाते हैं और समाज को अपना दुश्मन समझते हैं। यह अधिकतर समलिंगी मित्र होते हैं, पर उत्तर किशोरावस्था में विपरीत लिंगी सदस्य भी इनके समूह के सदस्य बन जाते हैं।

प्रश्न 8.
सामाजिक समूह तथा मित्रसमूह क्या है ?
उत्तर:
सामाजिक समूह (Social Group): इसमें मित्र समूह छोटा होता है उसे लँगोटिया यार (Chums) कहते हैं। लड़के-लड़कियाँ अपने अन्तरंग मित्र अवश्य चुनते हैं। ये मित्र समलिंगी और पूर्ण विश्वास के होते हैं। इनके दृष्टिकोण, रुचियाँ, योग्यताएँ लगभग समान होती हैं। यह मित्रता घनिष्ठ होती है।

मित्रसमूह (Peer Group): यह सम आयु, योग्यता तथा सामाजिक स्थिति का एक समूह होता है जो आपस में नैतिक मूल्यों और रुचियों पर विचार करते हैं। माता-पिता प्रायः अपने किशोर बच्चों के मुकाबले में मित्रसमूह को कम महत्त्व देते हैं।

प्रश्न 9.
किशोर और समाजीकरण प्रक्रिया का क्या संबंध है ?
उत्तर:
किशोर और समाजीकरण प्रक्रिया-आपसी संबंध (Adolescent and Socialization Process : Inter Personal Relationship): किसी पर प्रभाव तथा पारस्परिक क्रिया ही संबंधों को बनाती है। आप निम्नलिखित प्रश्नों पर गौर करें

  • लोग एक-दूसरे की ओर आकर्षित. क्यों होते हैं?
  • आपको कोई मनुष्य दूसरे से अधिक पसंद क्यों आता है?
  • आपको कोई मनुष्य इतना बुरा क्यों लगता है कि आप उसके सामने नहीं पड़ना चाहते?
  • संबंधों को बनाने में क्या प्रक्रियाएं छिपी हुई हैं?

विचारों और भावों की समानता ही समान पारस्परिक क्रिया को जन्म देती है। व्यक्ति आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ता है। आरंभ में शारीरिक आकर्षण ही सामाजिक क्रिया को प्रभावित करता है। दीर्घकालीन संबंध आपसी समझदारी पर ही बना रह पाता है। प्राकृतिक निकटता और सामीप्य ही एक लम्बे संबंध की नींव रखता है। दूरी से संबंध रखना कठिन होता है तथा मिलने-जुलने के कम अवसरों से संबंध की कड़ी कमजोर पड़ जाती है।

“Our mental need for intellectual growth runs parallel to our need for food and sleep. It is fulfilled through our inter-personal relationship, meeting people, interacting with them, communicating ideas to each other.” – Descartes

प्रत्येक व्यक्ति को मित्र व संबंधी चाहिए जिससे वह मेल-जोल रख सके, स्नेह कर सके तथा विश्वास कर सके। किशोरावस्था एक अच्छी अवधि है जिसमें मित्र, अधिक मित्र तथा अच्छे मित्र बनाए जा सकते हैं। संबंधों की विभिन्न अवस्थाएँ होती हैं जो निम्न हैं –

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
किशोरों के मित्रसमूह का अध्यापकों व समाज के प्रति योगदान क्या है ?
उत्तर:
“व्यक्ति का रक्त ही एक सच्चे परिवार को जोड़ने का माध्यम नहीं है, बल्कि वह खुशी और आदर है जो एक-दूसरे के लिए दिए जाते हैं।”

किशोर और मित्र-समूह (Peers and the Adolescent): यह इस अध्याय में पहले ही बताया जा चुका है कि किशोर सामाजिक तथा सांस्कृतिक तनाव महसूस करते हैं। आप इससे उबर सकते हैं अगर आप अपने सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक मूल्यों को अच्छी तरह समझ लें। अपने सांस्कृतिक मूल्यों का गुणांकन करें जैसे कि वेदों के अनुसार 25 वर्ष की आयु तक ब्रह्मचर्य का पालन करना लड़के को हर प्रकार से परिपक्व बना देता है तथा वह पारिवारिक जीवन के उत्तरदायित्व के लिए तैयार हो जाता है। आप अपने इन मूल्यों को मित्रों के साथ बातचीत कर और सुदृढ़ बना सकते हैं।

किशोर और अध्यापक (Adolescent and Teacher): विद्यार्थी के जीवन में स्कूल के अध्यापक की अत्यंत आवश्यक भूमिका है। जब बच्चा प्राइमरी स्कूल में होता है तो उसे अपने अध्यापक पर पूरा विश्वास होता है। जो अध्यापक कहें वह सच। जैसे-जैसे बच्चा किशोरावस्था की ओर बढ़ता है, उसके तथा अध्यापक के बीच में एक झूठा अवरोध पैदा हो जाता है जैसा प्रायः इस आयु में माता-पिता के साथ होता है।

एक मित्र, मार्गदर्शक और दार्शनिक की अनुपस्थिति में, किशोर अपने तनाव, दबाव व प्रश्नों में उत्तर ढूँढ़ता है। अध्यापक को एक अच्छा मित्र होना चाहिए। जिससे किशोर अपने प्रश्न बेझिझक होकर अध्यापक से पूछ सके और सत्य पर आधारित सही उत्तर भी पा सके। स्कूल और अध्यापकों पर किशोरों को ठीक ज्ञान देकर इस तनाव की अवधि में से निकालने का बहुत बड़ा उत्तरदायित्व

किशोर और समाज (Adolescent and Members of Community): जब परिवार विशाल हुआ करते थे तो बच्चे को अपने पितामह, माता-पिता, चाचा-चाची, चचेरे भाई-बहनों, अपने भाई-बहनों से बातचीत करना स्वयं ही आ जाता था। आज के युग में इन संबंधों को सिखाना पड़त है। अगर आप अपने पितामह के साथ नहीं रहे ते आप कैसे सीखेंगे कि वृद्ध व्यक्ति प्यार करना चाहता है तथा बदले में प्यार मांगता है। आपकी दादी आपको स्वादिष्ट खाना देती है जब आप स्कूल से वापस आते हैं। आप अपना समय उनके साथ गुजारते हैं।

इस प्रकार आप दोनों ने अपना प्रेम जताया तथा एक दूसरे के निकट आए। ईमानदारी, विनम्रता, सहायता की भावना, उदार और विवेकपूर्णता वे मूल्य हैं जो परिवार में सीखे जाते हैं। किशोर, जिन्हें यह सब मूल्य परिवार से विरासत में मिलते हैं, समाज के सभी सदस्यों के साथ अच्छा संबंध बना लेते हैं । आयु, समाज, आर्थिक स्थिति और गति उसकी रुकावट नहीं बनते।

प्रश्न 2.
किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास विस्तारपूर्वक लिखें। [B.M. 2009 A]
उत्तर:
किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास (Emotional development in adolescence)-किशोरावस्था ‘तूफान एवं तनाव’ की आयु है क्योंकि शरीर और ग्रंथियों के परिवर्तनों के कारण संवेगात्मक तनाव बढ़ जाता है। पूर्व किशोरावस्था में संवेग (Emotions) प्रायः तीव्र, विवेकशून्य एवं अनियन्त्रित अभिव्यक्ति वाले होते हैं परन्तु आयु में बढ़ोतरी के साथ-साथ संवेगात्मक व्यवहार में परिवर्तन एवं ठहराव आता है। यही कारण है कि चौदह-पन्द्रह वर्ष की आयु के किशोर चिड़चिड़े, जल्दी उत्तेजित होने वाले तथा अपने भावों पर नियंत्रण नहीं कर पाते हैं। उत्तर किशोरावस्था में आते-आते संवर्गों पर नियंत्रण करना सीख जाते हैं और समस्याओं का सामना शांत होकर करते हैं।

किशोरावस्था में मुख्य संवेग :
1. क्रोध और आक्रामकता (Anger and Hostility): इस अवस्था में क्रोध उभारने वाली परिस्थितियाँ प्रायः सामाजिक होती हैं। पूर्व किशोरावस्था में किशोरों को क्रोध आने के अनेक छोटे-बड़े कारण हैं, जैसे उन्हें किसी बात पर चिढ़ाया जाए, उनकी बिना वजह आलोचना की जाए या उपदेश दिए जाएँ, उनके साथ बच्चों जैसा बर्ताव किया जाए, उनसे जबरदस्ती काम कराया जाए, उन्हें अनुचित रूप से दंड दिया जाए। इसके अतिरिक्त किशोर तब भी क्रोध में आता है जब वह कोई काम बड़ी रुचि के साथ प्रारम्भ करता है परन्तु उसे पूरा नहीं कर पाता है।

अपने क्रोध को नवकिशोर प्रायः अजीब ढंग से दर्शाते हैं जैसे जोर से दरवाजा बन्द करना, पैर पटकना, अपने कमरे का दरवाजा बन्द करके बैठ जाना, बोलना बन्द कर देना या फिर चुपचाप बैठ कर रोना । जैसे-जैसे आयु बढ़ती है किशोर अपने क्रोध पर नियंत्रण करना सीख जाते हैं। अब वह न चीजों को पटकता है और न ही हाथ-पैर चलाता है। इनके विपरीत अब वह क्रोध को प्रकट करने के लिए अपनी जुबान का अधिक प्रयोग करते हैं जैसे व्यंग्य करना, खिल्ली उड़ाना या फिर अभद्र भाषा का प्रयोग करना।

2. भय और आकुलता (Fear and anxiety): किशोरावस्था में सामाजिक परिस्थितियों का महत्त्व अधिक होता है। अत: बाल्यावस्था के भय धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं तथा उनका स्थान नए प्रकार के भय ले लेते हैं जैसे अंधेरे में अकेले होने का भय, रात को बाहर अकेले होने का भय, अपने घनिष्ठ दोस्तों को छोड़कर सभी के सामने शर्म अनुभव करना, अजनबियों एवं दूसरे लिंग वाले पर अच्छी छाप डालने की अयोग्यता का भय आदि। आयु की बढ़ोतरी के साथ-साथ किशोरों के भय पहले की अपेक्षा कम होते जाते हैं परन्तु आकुलताएँ बढ़ती जाती हैं। आकुलता भय का एक रूप है जो वास्तविक चीजों से न होकर काल्पनिक चीजों से होता है।

ज्यों-ज्यों वर्षानुवर्ष भयों की संख्या एवं तीव्रता घटती जाती हैं। त्यों-त्यों किशोर उनके स्थान पर आकुलताएँ अपनाते जाते हैं। जो कि ऐसी चीजों, लोगों और परिस्थितियों के बारे में होती हैं जो मुख्य रूप से उनकी कल्पना की उपज होती हैं। भविष्य के बारे में सोचते-सोचते किशोर भय की अवस्था में पहुंच जाते हैं।

उदाहरण के लिए किशोरों को परीक्षाओं, मंच पर आने की तथा खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने की आकुलता प्रायः इस काल्पनिक भय से होती है कि वह इनमें सफल हो जाएंगे अथवा नहीं। भय और आकुलताओं का प्रभाव भी किशोरों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। किशोरों की भय एवं आकुलताएं उनकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति, पारिवारिक दशा, अतीत की सफलताओं एवं असफलताओं पर निर्भर करते हैं।

3. ईर्ष्या (Jealousy): पूर्व किशोरावस्था में ईर्ष्या भली-भांति छिपाए हुए रूप में दिखाई देती है। प्रायः नव किशोर दूसरे लिंग वालों में सामूहिक रूप से दिलचस्पी रखते हैं और उनमें लोकप्रिय होने की कामना करते हैं। जो अपने इस उद्देश्य में सफल नहीं हो पाते उन्हें प्रायः दूसरों से ईर्ष्या होती है।

नव किशोरों को अपने उन साथियों से भी ईर्ष्या होती है जिन्हें अधिक सुविधाएँ और अधिक स्वतंत्रता प्राप्त होती है या फिर जो समाज व स्कूल में अधिक सफल व लोकप्रिय होते हैं। उत्तर किशोरावस्था में लड़के-लड़कियों दोनों को ही अपने विषमलिंगीय संबंधों में ईर्ष्या अनुभव होती है। लड़कियों में प्रायः लड़कों से अधिक ईर्ष्या का भाव होता है क्योंकि उन्हें लड़कों की तरह मनचाहा करने की सुविधा नहीं होती है।

4. स्पर्धा (Competition): किशोरावस्था में ईर्ष्या की भाँति स्पर्धा भी किसी व्यक्ति के प्रति होती है। प्रायः ईर्ष्या किसी व्यक्ति से होती है तो स्पर्धा उस व्यक्ति की चीजों से होती है । किशोर चाहते हैं कि उनके पास भी उतनी चीजें हों जितनी उनके मित्रों के पास हैं बल्कि यह भी चाहते हैं कि उनकी चीजें उनके मित्रों से अधिक अच्छी हो। जब किशोर दूसरों की चीजों से स्पर्धा करता है तब वह इस बात को छिपाने की बजाय इसे अपना दुर्भाग्य जानकर दूसरों को भाग्यशाली समझते हैं और उनके भाग्य से ईर्ष्या करने लगते हैं।

5. हर्ष अथवा प्रसन्नता (Joy or happiness): हर्ष अथवा प्रसन्नता एक सामान्य संवेगात्मक अवस्था है। जब किशोर अपने मनचाहे कामों में सफलता प्राप्त कर लेते हैं तथा काम करने के बाद अपनी श्रेष्ठता का अनुभव करते हैं तब उन्हें हर्ष अथवा प्रसन्नता होती है। हर्ष एवं प्रसन्नता को वह मुस्कराकर या हँस कर प्रकट करते हैं । जैसे-जैसे आयु बढ़ती है वैसे-वैसे किशोरों में मुक्त हँसी से हँसना कम होता जाता है।

6. स्नेह (Affection): किशोरावस्था में स्नेह एक आत्मसात् करने वाला संवेग है जो किशोरों को बराबर उस व्यक्ति या उन व्यक्तियों के साथ में रहने के लिए प्रेरित करता है जिनके प्रति उसका स्नेह सबसे गहरा होता है। किशोर सदैव अपने स्नेह के पात्र की सहायता करने के लिए तत्पर रहता है। जैसे-जैसे किशोरों की आयु बढ़ती है यह कदाचित आवश्यक नहीं है कि उनका स्नेह किसी एक व्यक्ति पर केन्द्रित हो अपितु उनका स्नेह मित्रों की छोटी-सी मंडली के प्रति या माता-पिता, भाई-बहन में किसी एक के प्रति गहरा हो जाता है।

प्रश्न 3.
किशोरावस्था में सामाजिक विकास विस्तार से लिखें।
उत्तर:
किशोरावस्था में सामाजिक विकास (Social development in adolescence): विभिन्न सामाजिक क्रियाओं के फलस्वरूप होने वाले विकास को सामाजिक विकास कहते हैं। जैसे-जैसे आयु बढ़ती है वैसे-वैसे किशोरों के व्यवहार में सामाजिकता की वृद्धि आती है। व्यक्ति को सम्पूर्ण जीवन में जितने सामाजिक समायोजन करने पड़ते हैं उनमें से सबसे कठिन समायोजन वे होते हैं जो किशोरावस्था में करने पड़ते हैं।

मित्रों के समूह का महत्त्व (Importance of peers group): आयु वृद्धि के साथ-साथ किशोरों का सामाजिक दायरा (Social Circle) भी बढ़ता जाता है। सर्वप्रथम किशोर को अपने समूह में स्वीकृत होने की इच्छा तथा इससे वह समूह के द्वारा अनुमोदित तरीके से अनुपालन की हर तरह की जो कोशिशें करता है उनके कारण समाज का उसके व्यक्तित्व पर प्रभाव बढ़ जाता है।

अपने समूह द्वारा स्वीकृत किशोरहीनता की भावना से दूर हो जाता है। धीरे-धीरे किशोरों की रुचियाँ एवं अनुभव और विशाल होते जाते हैं जिससे वह एक से अधिक समूहों से सम्बन्ध रखता है तथा कई बार समूह निर्माण भी करता है। किशोर प्रायः अपने समवयस्कों के साथ की आवश्यकता अनुभव करता है और उनके साथ उसे सुरक्षा की भावना प्राप्त होती है।

लड़कों के समूह बड़े होते हैं तथा लड़कियों के समूह छोटे होते हैं। किशोरावस्था में सम्बन्धों में घनिष्ठता भी आती है और अनेक विश्वासपात्र मित्र भी बनते हैं जिनकी संख्या में धीरे-धीरे बढ़ोत्तरी होती है। अब किशोर अपना अधिक समय इन्हीं मित्रों के साथ व्यतीत करते हैं और इन्हीं घनिष्ठ मित्रों के छोटे-छोटे समूह को मंडलियाँ कहते हैं। मंडलियों के सदस्यों की रुचियाँ एवं योग्यताएँ समान होती हैं और जहाँ तक सम्भव होता है वह अपना अधिक से अधिक समय एक साथ बिताते हैं। उत्तर किशोरावस्था में मित्रों के चयन पर अधिक महत्त्व दिया जाता है। धीरे-धीरे मित्रों की संख्या कम होती जाती है और परिचितों के समूह की संख्या बढ़ती जाती है।

किशोरावस्था के आगमन के साथ ही किशोरों की प्रवृत्ति परिवार के बाहर अपने साथियों की ओर जाने की हो जाती है। प्रायः साथियों के समूह की स्वीकृति उसके लिए माता-पिता से भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है। अत: किशोर को समझने के लिए उसके साथियों को समझना आवश्यक है। साथियों का समर्थन, स्वीकृति एवं प्रशंसा पाने के लिए किशोर सदाचार का उल्लंघन तक करते हैं। अतः किशोरों का व्यक्तित्व बहुत कुछ उनके मित्रों के व्यक्तित्व के ऊपर निर्भर करता है जिसके बारे में पूर्ण जानकारी रखी जाए अन्यथा कई बार गलत मित्रों की कुसंगति के कारण उनके व्यवहार पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 4.
विषमलिंगियों में रुचि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
विषमलिंगियों में रुचि (Interestin other sex): किशोरों में धीरे-धीरे विषमलिंगियों के प्रति आकर्षण एवं रुचि उत्पन्न होती है। इस रुचि का विकास निम्नलिखित तीन अवस्थाओं में होता है:

  1. स्वप्रेम (Auto erolism)
  2. समलिंगीय प्रेम (Homo sexuality)
  3. विषमलिंगीय प्रेम (Hetro sexuality)।

प्रारम्भ में किशोर अपने से ही प्रेम करने लगते हैं जो कि एक स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। इसके पश्चात् लड़के व लड़कियाँ दोनों में ही किसी बड़े अपने ही लिंग के व्यक्ति के प्रति स्नेह उत्पन्न होता है। प्रायः यह स्नेह ऐसे व्यक्ति के प्रति होता है जिसे किशोर जानता है, जिससे उसका व्यक्तिगत सम्पर्क है तथा जिसके गुणों एवं व्यक्तित्व से वह अत्यन्त प्रभावित होता है और भविष्य में उस व्यक्ति जैसा बनना चाहता है। वह अनजाने ही अपने आपको उस व्यक्ति के समरूप (Identify) मानने लगता है और उसका अनुयायी बन जाता है। वह व्यक्ति उसका शिक्षक, उसके किसी मित्र के परिवार का सदस्य अथवा कोई नेता या अभिनेता भी हो सकता है।

किशोर में उस व्यक्ति के अनुकरण करने की प्रबल इच्छा के साथ-साथ उसके साथ रहने की, उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की इच्छा बनी रहती है। यह स्नेह एवं नायक पूजा चौदह वर्ष की आयु के आस-पास अपनी पराकाष्ठा पर होती है किन्तु जैसे-जैसे किशोर की आयु बढ़ती जाती है वैसे-वैसे उसकी बड़े आयु के व्यक्तियों में रुचि समाप्त हो जाती है और उसकी जगह अपनी सम आयु वाले विषमलिंगीय व्यक्तियों में रुचि हो जाती है। आरम्भ में लड़कियाँ किसी भी लड़के की ओर आकर्षित हो जाती हैं और लड़के भी किसी एक विशेष लड़की की बजाय उन सभी लड़कियों से आकर्षित हो जाते हैं जो उनके सम्पर्क में आती हैं।

पन्द्रह वर्ष की आयु होने तक लड़कियाँ प्रायः अपनी आयु के लड़कों में निश्चित रूप से रुचि लेने लगती हैं परन्तु इसके विपरीत लड़के अब भी लड़कियों की उपस्थिति में झेंपते एवं संकोच करते हैं। लड़कियों का लड़कों के प्रति आकृष्ट होना, लड़कों का ध्यान अपनी ओर खींचने की चेष्टा करना तथा लड़कों का अलग रहना . प्रायः लड़कियों व लड़कों की लैंगिक विकास में भिन्नता का कारण होता है। 16-17 वर्ष की आयु में लड़के भी लड़कियों की ओर आकृष्ट होने लगते हैं और कुछ लड़के लड़कियों के साथ हमजोली ‘ बना लेते हैं। विषमलिंगियों को आकर्षित करने की इच्छा होते हुए भी प्रायः इस आयु में किशोरों में एक झेंप होती है।

प्रश्न 5.
किशोरावस्था में सामाजिक विकास व्यक्तित्व पर कैसे प्रभाव डालता है ?
उत्तर:
किशोरावस्था में शारीरिक विकास के साथ-साथ सामाजिक विकास का भी बहुत महत्त्व है। किशोरावस्था में किशोर फिर से अपने व्यक्तित्व का निर्माण करता है। वह उन सभी गुणों को अर्जित करता है, जिनके द्वारा समाज में उसे सम्मान मिलता है। अगर वह इनको ग्रहण नहीं करेगा तो समाज में विभिन्न परिस्थितियों में समायोजन स्थापित नहीं कर पाएगा।

इसीलिए किशोरावस्था समाप्त होते-होते किशोर में सामाजिक परिपक्वता का आना आवश्यक है। आरम्भिक किशोरावस्था में किशोर संवेगात्मक रूप से अस्थिर होता है। वह घबराया हुआ होता है। मन ही मन वह किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में होता है जिससे वह अपने मन की बात कह सके। बहुत ही कम पाथियों से वह अपनी अंतरंग बातें कह पाता है।

इस समय की दोस्ती उसके लिए महत्त्व रखती है। उसे अपना शरीर दूसरे परिवर्तनों के कारण अटपटा लगता है, इस कारण वह अन्तःमुर्ख हो जाती है। अपने ही लिंग के साथियों के साथ वह मित्रता करता है, विपरीत लिंगियों से; झेंपता व बचता है। उसका सामाजिक समायोजन बिगड़ जाता है। वह दबाब व तनाव की स्थिति में रहता है और समाज के लोगों के प्रति उसकी यह धारणा होती है कि वह उसे नहीं समझते हैं और उससे अनावश्यक अपेक्षाएँ रखते हैं जो वह पूर्ण करने में असमर्थ है। वह कुल दो-तीन अंतरंग मित्र ही बनाता है।

प्रश्न 6.
आज का किशोर एक उत्तरदायित्व प्रौढ़ किस प्रकार बन सकता है ?
उत्तर:
मित्रों, परस्पर लिंगों से मित्रता, परिवार, अध्यापक तथा समाज के उपयुक्त और आवश्यक संबंधों के विकास से ही आज का किशोर कल का एक उत्तरदायित्वपूर्ण प्रौढ़ बन सकता है। माता-पिता तथा अध्यापकों का स्थान पारिवारिक जीवन-शिक्षा के लिए अति महत्त्वपूर्ण है। उन्हें किशोरों को सही सूचना देने में किसी भी प्रकार की हिचकिचाहट महसूस नहीं करनी चाहिए। इस प्रकार किशोर एक सकारात्मक प्रौढ़ बन जाएगा।

शारीरिक स्वास्थ्य और इन्द्रिय विकास के ज्ञान से ही किशोर को विवाह तथा पारिवारिक जीवन के बारे में पता लगता है। स्वास्थ्य, सफाई, शारीरिक रचना व क्रिया-विज्ञान, जननांगों के ज्ञान के बाद यौन व लैंगिकता के बारे में कोई भी गलत धारणा नहीं रहती बल्कि इससे विषम लिंगों के मेल-जोल के मूल्यों के बारे में भी उत्तरदायित्व आता है।

पारिवारिक जीवन शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है-जनसंख्या, शिक्षा और नियोजित पितृत्व। यही उचित समय है जब किशोरों को बच्चों में अन्तर रखना तथा परिवार नियोजन के बारे में बताया जाए। उन्हें यौन रोगों, जैसे एड्स के बारे में बताने का समय है। किशोरों को चाहिए कि वे सहनशीलता व धैर्य जैसे मूल्यों को अपनायें क्योंकि विवाह व पारिवारिक जीवन को सुखी बनाने के लिए ये जीवन-मूल्य अति आवश्यक हैं।


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