BSEB Class 11 Economics Indian Economy on the Eve of Independence Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 11th Economics Indian Economy on the Eve of Independence Book Answers |
Bihar Board Class 11th Economics Indian Economy on the Eve of Independence Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 11th |
Subject | Economics Indian Economy on the Eve of Independence |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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प्रश्न 1.
भारत में औपनिवेशिक शासन की आर्थिक नीतियों का केन्द्र बिन्दु क्या था? उन नीतियों के क्या प्रभाव हुए?
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन की आर्थिक नीतियों के केन्द्र बिन्दु निम्नलिखित थे –
- भारत का इंगलैंड को कच्चे माल की पूर्ति करने वाला बनाना।
- भारत को इंगलैंड में बने तैयार माल की पूर्ति करने वाला बनाना।
नीतियों का प्रभाव (Effects of Policies):
इससे भारत का स्वरूप मूल रूप से बदल गया। भारत कच्चे माल का निर्यातक और निर्मित माल का आयातक बन गया। बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में राष्ट्रीय आय की वार्षिक संवृद्धि दर 20% से कम हो गई तथा प्रति व्यक्ति उत्पादन वृद्धि दर तो मात्र आधा प्रतिशत रह गई।
प्रश्न 2.
औपनिवेशिक काल में भारत की राष्ट्रीय आय का आकलन करने वाले प्रमुख अर्थशास्त्रियों के नाम बताएँ।
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में भारत की राष्ट्रीय आय का आकलन करने वाले प्रमुख अर्थशास्त्री दादाभाई नौरोजी, विलियम, डिगबी, किडल शिराज, डा० वी० के० आर० वी० राव० आर० सी० देसाई आदि थे।
प्रश्न 3.
औपनिवेशिक शासन काल में कृषि की गतिहीनता के मुख्य कारण क्या थे?
उत्तर:
कृषि क्षेत्र की गतिहीनता का मुख्य कारण औपनिवेशिक शासन द्वारा लागू की गई भू-व्यवस्था प्रणालियाँ थीं। साथ ही राजस्व और कृषि का व्यवसायीकरण भी प्रमुख कारण थे।
प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता के समय देश में कार्य कर रहे कुछ आधुनिक उद्योगों के नाम बताइए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के समय देश में कार्य कर रहे आधुनिक उद्योग निम्नलिखित थे:
- सूती उद्योग
- पटसन उद्योग
- लोहा इस्पात उद्योग
- चीनी
- सीमेंट तथा
- कागज उद्योग
प्रश्न 5.
स्वतंत्रता के पूर्व अंग्रेजों द्वारा भारत में व्यवस्थित वि-उद्योगीकरण के दोहरे ध्येय क्या थे?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पूर्व अंग्रेजों द्वारा भारत में अर्थव्यवस्था वि-उद्योगीकरण के दोहरे ध्येय निम्नलिखित थे –
- भारत को इंगलैंड में विकसित हो रहे आधुनिक उद्योगों के लिए कच्चे माल का निर्यातक बनाना।
- इंगलैंड में विकसित हो रहे आधुनिक उद्योगों के उत्पादन के लिए भारत को ही एक विशाल बाजार बनाना।
प्रश्न 6.
अंग्रेजी शासन के दौरान भारत के परम्परागत हस्तकला उद्योगों का विनाश हुआ। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में कारण बताएँ।
उत्तर:
हम इस विचार से पूर्ण सहमत हैं कि अंग्रेजी शासन के दौरान भारत के परंपरागत हस्तकला उद्यागों का विनाश हुआ। ब्रिटिश काल में भारत की विश्व प्रसिद्ध शिल्पकलाओं का पतन हुआ। शिल्पकला के पतन के प्रमुख कारण देशी राजाओं एवं नवाबों का अन्त, मशीनों द्वारा निर्मित विदेशी वस्तुओं की प्रतियोगिता, परिवहन के साधनों का विकास, ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा ब्रिटिश संसद की नीति आदि थे।
प्रश्न 7.
भारत में आधारिक संरचना विकास की नीतियों से अंग्रेज अपने क्या उद्देश्य पूरा करना चाहते थे?
उत्तर:
ब्रिटिश शासन काल में रेलों, बंदरगाहों, जल परिवहन आदि आधारिक संरचना का विकास प्रारंभ हुआ। इसका मकसद आम जनता को अधिक सुविधाएँ उपलब्ध कराना नहीं था, बल्कि देश के भीतर प्रशासन एवं पुलिस को चुस्त-दुरुस्त रखने एवं देश के कोने-कोने से कच्चा माल एकत्र करके अपने देश में भेजने एवं वहाँ तैयार किए गए माल को भारत के सुदूर क्षेत्रों में पहुंचाने के लिए आधारिक संरचना का विकास किया गया।
प्रश्न 8.
ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा अपनाई गई औद्योगिक नीतियों की कमियों की आलोचनात्मक विवेचना करें।
उत्तर:
प्राचीन समय से ही भारत एक महत्त्वपूर्ण देश रहा है किन्तु ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा अपनाई गई नीतियों का भारत के विदेशी व्यपार की संरचना, स्वरूप और आकार पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप भारत कच्चे उत्पाद जैसे रेशम, कपास, ऊन, चीनी, नील, पटसन आदि का निर्यातक होकर रह गया।
साथ ही वह सूती, रेशमी ऊनी वस्त्रों जैसे अन्तिम उपभोक्ता वस्तुओं और इंगलैंण्ड के कारखानों में बनी हल्की मशीनों आदि का आयातक हो गया। व्यावहारिक रूप से इंग्लैण्ड ने भारत के आयात-निर्यात व्यापार पर अपना एकाधिकार जमाए रखा। भारत का आधे से अधिक व्यापार तो केवल इंगलैंड तक सीमित रहा और कुछ व्यापार चीन, श्रीलंका और ईरान से भी होने दिया। स्वेज नहर का व्यापार मार्ग खुलने से तो भारत के व्यापार पर अंग्रेजी नियन्त्रण और भी सख्त हो गया।
प्रश्न 9.
औपनिवेशिक काल में भारतीय सम्पत्ति के निष्कासन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में भारत के विदेशी व्यापार पर ब्रिटिश शासन का एकाधिकार सा उत्पन्न हो गया था। भारत के विदेशी व्यापार में निर्यात अधिशेष होने के बावजूद भी इसका लाभ भारत को नहीं मिला। निर्यात अधिशेष के निष्कासन को अंग्रेजी सरकार ने बड़ी चालाकी से कानून, प्रशासन एवं युद्ध पर खर्च करके अपने हित में कर लिया। हमारे देश को निर्यात अधिशेष का कोई फायदा नहीं मिला बल्कि हमारी कई आवश्यक वस्तुओं का अभाव पैदा हो गया। संक्षेप में, अंग्रेज प्रशासन ने आयात व्यय, युद्ध व्यय, पुलिस-प्रशासन व्यय आदि के निमित्त भारतीय संमत्ति का निष्कासन किया।
प्रश्न 10.
जनांकिकीय संक्रमण के प्रथम से द्वितीय सोपान की ओर संक्रमण का विभाजन वर्ष कौन-सा माना जाता है।
उत्तर:
1921 वर्ष जनांकिकीय संक्रमण के प्रथम से द्वितीय सोपान की ओर संक्रमण का विभाजन वर्ष माना जाता है।
प्रश्न 11.
औपनिवेशिक काल में भारत की जनांकिकीय स्थिति का एक संख्यात्मक चित्रण प्रस्तुत करें।
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में भारत की जनांकिकीय स्थितियों का एक संख्यात्मक चित्रण –
- 1921 वर्ष: भारत के जनसंख्या का अधिक विशाल न होना तथा उसकी संवृद्धि दर का बहुत अधिक न होना।
- साक्षरता दर: 16 प्रतिशत से कम (महिला साक्षरता दर केवल 7 प्रतिशत)।
- सकल मृत्यु दर: बहुत ऊँची विशेषकर शिशु मृत्युदर (लगभग 218 प्रति हजार)।
- जीवन प्रत्याशा स्तर: केवल 32 वर्ष (जो अब 63 वर्ष है)।
प्रश्न 12.
स्वतंत्रता पूर्व भारत की जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना की प्रमुख विशेषताएँ समझाइए।
उत्तर:
स्वतंत्रता पूर्व भारतीय जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना की प्रमुख विशेषताएँ:
स्वतंत्रता पूर्व भारत में कृषि सबसे बड़ा व्यवसाय था जिसमें 70-75 प्रतिशत जनसंख्या लगी थी। विनिर्माण तथा सेवा क्षेत्र में क्रमश: 10 प्रतिशत तथा 10-25 प्रतिशत जनता लगी थी।
प्रश्न 13.
स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष उपस्थित प्रमुख आर्थिक चुनौतियों को रेखांकित करें।
उत्तर:
प्रमुख आर्थिक चुनौतियाँ (Main Economic Challenges):
1. स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष व्यवसायीकरण था। भूमि पर जनसंख्या का अधिक भार था। जोतों की उपविभाजन तथा विखण्डन की समस्या थी। अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई भू-राजस्व प्रणालियों के कारण सरकार तथा किसानों के बीच कई बिचौलिये (मध्यस्थ) हो गये। ये मध्यस्थ किसानों से बहुत अधिक लगान वसूल करने लगे। परिणामस्वरूप कृषि की उत्पादकता पर बुरा प्रभाव पड़ा। किसानों की ऋणग्रस्ता में वृद्धि हुई।
2. औद्योगिक क्षेत्रक (Industrial Sector):
औद्योगिक क्षेत्रक आधुनीकीकरण वैविध्य। (Diversity) क्षमता संवर्धन और सार्वजनिक निवेश में वृद्धि की माँग कर रहा था।
3. विदेशी व्यापार (Foreign Trade):
स्वतंत्रता के समय भारत का विदेशी व्यापार अधिकांश इंग्लैंड से होता था। यह व्यपार तो केवल इंग्लैंड की औद्योगिक क्रान्ति को पोषित कर रहा था। विदेशी शासन के दौरान भारत के विदेशी व्यापार का स्वरूप पूर्णरूप से औपनिवेशिक हो गया जिसके अनुसार मुख्य रूप से खाद्यान्न और कच्चे माल को निर्यात किया जाता था और उद्योगों में नियमित उपभोक्ता वस्तुओं को आयात किया जाता था।
4. आधारिक संरचनाएँ (Infrastractures):
आधारित संरचनाएँ पिछड़ी हुई थीं। उपनिवेशिक शासन के अन्तर्गत देश में रेलों, पत्तनों जल परिवहन व डाक-तार आदि का विकास हुआ किन्तु इनका विकास संतोषजनक नहीं हुआ। उस समय के आन्तरिक जलमार्ग अलाभकारी सिद्ध हुए। डाक सेवाएँ अवश्यक जन सामान्य को सुविधाएँ प्रदान कर रही थीं किन्तु वे बहुत ही अपर्याप्त थी। स्वतंत्रता के समय प्रसिद्ध रेलवे नेटवर्क सहित सभी आधारिक संरचनाओं में उन्नयन प्रसार तथा जनोन्मुखी विकास की आवश्यकता थी।
5. गरीबी तथा बेरोजगारी (Poverty and Unemployment):
स्वतंत्रता के समय भारत में बेरोजगारी व्यापक रूप से प्रचलित थी। बेरोजगारी के साथ-साथ भारत के सामने गरीबी की चुनौती थी। व्यापक गरीबी और बेरोजगारी सार्वजनिक आर्थिक नीतियों को कल्याणोन्मुखी बनाने पर आग्रह कर रही थी।
6. निष्कर्ष (Conclusion):
संक्षेप में हम वह सकते हैं कि स्वतंत्रता के समय देश में सामाजिक और आर्थिक चुनौतियाँ बहुत अधिक थीं।
प्रश्न 14.
भारत में प्रथम सरकारी जनगणना किस वर्ष में हुई थी?
उत्तर:
भारत में प्रथम सरकारी जनगणना, 1881 में हुई थे।
प्रश्न 15.
स्वतन्त्रता के समय भारत के विदेशी व्यापार के परिणाम और दिशा की जानकारी दें।
उत्तर:
विदेशी व्यापार की संरचना (Composition of Foreign Trade):
विदेशी व्यापार की संरचना से अभिप्राय आयात और निर्यात की जाने वाली मों से है। दूसरे शब्दों में विदेशी व्यापार की संरचना से हम इस बात का अध्ययन करते हैं कि एक देश किन-किन वस्तुओं का आयात तथा निर्यात करता है।
प्राचीन काल से ही भारत एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक देश रहा है, किन्तु औपनिवेशिक सरकार द्वारा अपनाई गई वस्तु उत्पादन, व्यापार और सीमा शुल्क और प्रतिबन्ध नीतियों का भारत के विदेशी व्यापार की संरचना पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप भारत कच्चे उत्पादन जैसे रेशम, कपास, ऊन, चीनी, नील और पटसन आदि का निर्यातक रह गया है और वह सूती रेशमी ऊनी वस्तुओं जैसी अन्तिम उपभोक्ता वस्तुओं और हल्की मशीने का आयात करने लगा।
विदेशी व्यापार की दिशा (Direction of Foreign Trade):
विदेशी व्यापार की दिशा का अर्थ है कि एक देश किन-किन देशों से वस्तुओं का आयात करता है और किन-किन देशों को वस्तुओं का निर्यात करता है। स्वतंत्रता के समय भारत का व्यापार केवल इंगलैंड तक सीमित रहा। शेष कुछ व्यापार चीन, श्रीलंका और ईरान से भी होने दिया जाता था। स्वेज नहर का व्यापार मार्ग खुलने से तो व्यापार पर अंग्रेजी नियंत्रण और भी सख्त हो गया।
प्रश्न 16.
क्या अंग्रेजों ने भारत में कुछ सकारात्मक योगदान भी दिया था? विवेचना करें।
उत्तर:
अंग्रेजी साम्राज्य का सकारात्मक योगदान (Constructive Contribution of the British Rule):
भारत में ब्रिटेश अपनी विनाशक भूमिका के लिये याद किए जाते हैं। स्वार्थों ने अंग्रेजों को अन्धा बना दिया था और वे भारत के हितों को सदा ही ताक पर रखकर बैठे रहे किन्तु, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अंग्रेजों का भारत में राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक उत्थान में बहुत योगदान है। प्रसिद्ध विचारात्मक और चिन्तक कार्ल मार्क्स भारत में ब्रिटिश शासन के इतिहास को अचेतक साधन मानते हैं। ब्रिटिश शासन ने भारत को निम्न प्रकार से योगदान दिया है –
- देश की राजनीतिक और आर्थिक एकता ब्रिटिश शासन की देन है।
- विदेशी पूँजी के प्रयोग से देश में औद्योगिक विकास हुआ। रेलवे की स्थापना से आर्थिक विकास के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य की नींव पड़ी।
- विदेशी पूँजी से भारत में औद्योगिक पूँजीवाद का जन्म हुआ जो अनेक रूपों में भारत के लिए वरदान सिद्ध हुआ है।
- विदेशी पूँजी से भारत में आधुनिक बैंकिंग बीमा तथा वित्तीय एवं व्यापारिक प्रणाली का सूत्रपात हुआ।
- विदेशी पूँजी के कदमों का अनुकरण करते हुए भारतीय पूँजीपति भी निवेश क्रियाओं में रुचि लेने लगे जो कि भावी विकास का प्रमुख उपकरण सिद्ध हुआ।
- नये उद्योगों और नई तरह की आर्थिक क्रियाओं को बढ़ावा देने से ब्रिटिश पूँजी तथा प्रबन्ध अभिकर्ता ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- ब्रिटिश शासन के फलस्वरूप भारत में जाति का बन्धन टूटने लगा।
- डाक व्यवस्था में पर्याप्त सुधार से सारे देश में एक निश्चित दर पर पत्र-व्यवहार करना सम्भव हो गया।
- डाक-तार के विकास के जरिए व्यापारी तथा लोगों के आपसी सम्बन्धों को बढ़ावा मिला।
- शिक्षा के प्रसार से भारतवासियों में विकास और स्वतंत्रता की चेतना जागी।
Bihar Board Class 11th Economics स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था Additional Important Questions and Answers
अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
पूँजीगत वस्तु उद्योगों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पूँजीगत वस्तु उद्योगों से अभिप्राय उन उद्योगों से है जो वर्तमान उपभोग में वस्तुओं के निर्माण के लिये मशीनों तथा औजारों का उत्पादन करते हैं।
प्रश्न 2.
कृषि के व्यवसायीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कृषि के व्यवसायीकरण से अभिप्राय बाजार में बिक्री के लिए फसलों का उत्पादन करना है।
प्रश्न 3.
स्वतंत्रता से पूर्व भारत में कितने प्रकार की भू-राजस्व प्रणालियाँ प्रचलित थीं? उनके नाम लिखें।
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय भारत में तीन प्रकार की भू-राजस्व प्रणालियाँ प्रचलित थीं –
- जमींदारी प्रथा
- महालवाड़ी प्रथा तथा
- रैयतवाड़ी प्रथा
प्रश्न 4.
स्वतंत्रता के समय भारत के विदेशी व्यापार की मात्रा तथा दिशा लिखें।
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय भारत का कुल विदेशी व्यापार 782 करोड़ रुपये का था। भारत का अधिकतर व्यापार इंगलैंड और राष्ट्रमंडल देशों से होता था।
प्रश्न 5.
देश के विभाजन से भारत के पटसन वस्तु उद्योग पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
देश के विभाजन से कच्चे माल की कमी के कारण भारत के पीटसन वस्तु उद्योग पर बुरा बहुत प्रभाव पड़ा। इसका मुख्य कारण पटसन उत्पन्न करने वाला क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान (अब बंगलादेश) का बन गया था।
प्रश्न 6.
औपनिवेशिक अवधि के दौरान भारत के विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषता क्या थी।
उत्तर:
औपनिवेशिक काल के दौरान भारत के विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषता निर्यात आधिक्य का अर्जन करना था।
प्रश्न 7.
व्यावसायिक संरचना (ढाँचे) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
व्यावसायिक से अभिप्राय किसी देश की श्रम शक्ति शक्ति का विभिन्न उद्योगों तथा। क्षेत्रों में वितरण करना है। क्षेत्रों को हम मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित करते हैं –
- कृषि
- उद्योग
- सेवाएँ
प्रश्न 8.
ब्रिटिश भारत की व्यावसायिक संरचना की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
- कार्यशील जनसंख्या का 70%-75% भाग कृषि में काम करता था।
- विनिर्माण क्षेत्र में कर्मचारियों का अनुपात केवल 10% था।
प्रश्न 9.
भारत में रेलवे का आरंभ कब हुआ?
उत्तर:
भारत में रेलवे का आरम्भ 1850 ई० में हुआ। प्रथम रेलगाड़ी 1853 ई० में चली।
प्रश्न 10.
1921 से पूर्व भारत जनांकिकीय संक्रमण की कौन-सी अवस्था में था?
उत्तर:
1921 से पूर्व भारत जनांकिकीय संक्रमण की पहली अवस्था में था।
प्रश्न 11.
ब्रिटिश का में भारत की जनांकिकीय संक्रमण की मुख्य विशेषताएँ लिखो।
उत्तर:
1921 से पूर्व भारत जनांकिकीय संक्रमण की पहली अवस्था में था। जन्म दर तथा मृत्यु दर दोनों ही ऊँची थी। जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या में संतुलन बना हुआ था परंतु 1921 के पश्चात् भारत ने जनांकिकीय संक्रमण की दूसरी अवस्था में प्रवश किया।
प्रश्न 12.
1921 के पश्चात् भारत के जनांकिकीय संक्रमण की दूसरी अवस्था में क्यों प्रवेश किया।
उत्तर:
क्योंकि 1921 के पश्चात् देश में आधारभूत सुविधाओं के प्राप्त होने तथा नये विचारों के विकसित होने से देश में मृत्यु दर में कमी आने लगी, परंतु जन्म दर में कोई कमी नहीं आई। ऐसी अवस्था में जनंसख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी।
प्रश्न 13.
ब्रिटिश काल में कृषि में निम्न उत्पादकता के क्या कारण थे?
उत्तर:
ब्रिटिश काल में कृषि में निम्न उत्पादन के मुख्य कारण पिछड़ी तकनीकी का प्रयोग, पर्याप्त वित्त का आवाज,दोषपूर्ण काश्तकारी प्रथा, सिंचाई सुविधाओं का अभाव, खाद नगण्य प्रयोग आदि थे।
प्रश्न 14.
विभाजन का कृषि पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
विभाजन के फलस्वरूप अधिक सिंचित तथा उपजाऊ भूमि का बहुत बड़ा भाग पाकिस्तान में चला गया, जिसके परिणामस्वरूप भारत के कृषि उत्पादन को बहुत बड़ा धक्का लगा।
प्रश्न 15.
आधारिक संरचना से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आधारिक संरचना से अभिप्राय उन सुविधाओं, क्रियाओं तथा सेवाओं से है जो अन्य क्षेत्रों के संचालन तथा विकास में सहायक होती हैं। आधारिक संरचनाओं द्वारा स्वयं वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन नहीं किया जाता, अपितु उनके द्वारा वस्तुओं के उत्पादन के प्रवाह को बनाया जाता है।
प्रश्न 16.
भारत को स्वतंत्रता कब प्राप्त हुई?
उत्तर:
भारत को स्वतंत्रता 15 अगस्त, 1947 ई० को प्राप्त हुई।
प्रश्न 17.
प्राचीन भारत में अधिकांश लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था?
उत्तर:
प्राचीन भारत में अधिकांश लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था।
प्रश्न 18.
प्राचीन भारत में सरकार की आय का मुख्य स्रोत क्या था?
उत्तर:
प्राचीन भारत में सरकार की आय का मुख्य स्रोत कृषि था।
प्रश्न 19.
औपनिवेशिक काल की आय की गणना करने वाले कुछ विद्वानों के नाम लिखें।
उत्तर:
दादाभाई नौरोजी, विलियिम डिगबोई, वी० के० आर० वी० राव०, आर० सी० देसाई आदि।
प्रश्न 20.
ब्रिटिश राज्य में भारत की कितने प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्य में लगी हुई थी?
उत्तर:
ब्रिटिश काल में भारत की लगभग 85% जनसंख्या कृषि कार्य में लगी हुई थी।
प्रश्न 21.
ब्रिटिश काल में भारत में कृषिक्षेत्र गतिहीन क्यों था? कोई तीन कारण लिखें।
उत्तर:
- दोषपूर्ण भू-प्रणालियाँ (इसमें एक जमींदारी प्रणाली थी)
- तकनीकी का निम्न स्तर
- सिंचाई सुविधाओं का अभाव
प्रश्न 22.
18 वीं शताब्दी के मध्य में भारतीय कृषि की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
- भारत की कुल जनसंख्या का 85% भाग कृषि कार्य में लगा हुआ था।
- कृषि के उत्पादन में पुरान ढंग अपनाये जाते थे।
प्रश्न 23.
18 वीं शताब्दी के मध्य में भारत के तीन प्रमुख उद्योग कोन से थे?
उत्तर:
- वस्त्र उद्योग
- चीनी उद्योग
- लोहा इस्पात उद्योग
प्रश्न 24.
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में हस्तशिल्प उद्योगों के पतन के कोई दो दुष्परिणाम लिखें।
उत्तर:
- बड़े पैमाने पर बेरोजगारी में वृद्धि हुई।
- भारतीय उपभोक्ता बाजार में ब्रिटेन में निर्मित वस्तुओ की माँग में वृद्धि हुई।
प्रश्न 25.
भारत की प्रथम लोहा और इस्पात कंपनी का क्या नाम था? इसकी स्थापना कब की गई?
उत्तर:
भारत की प्रथम लोहा और इस्पात कंपनी का नाम टाटा आयरन एण्ड स्टील कंपनी (TISCO) था। इसकी स्थापना अगस्त 1907 में की गई।
प्रश्न 26.
टैरिफ किन कारणों से लगाया जा सकता है।
उत्तर:
निम्न कारणों से टैरिफ लगाया जा सकता है –
- सरकारी आय में वृद्धि लाने के लिये।
- भुगतान शेष के घाटे को कम करने के लिये।
- घरेलू रोजगार को बढ़ाने के लिये या कम लागत वाली आयात वस्तुओं से घरेलू उद्योग को बचाने के लिये।
प्रश्न 27.
अदृश्य मदों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अदृश्य मदों से अभिप्राय वे मदें, जो दिखाई नहीं देती। इन्हें चालू खाते में दिखाया जाता है। परिवहन, बैकिंग, बीमा तकनीकी, सेवाएँ आदि।
प्रश्न 28.
उपभोक्ता वस्तुओं तथा पूंजीगत वस्तुओं में किन-किन वस्तुओं को शामिल किया जाता है?
उत्तर:
उपभोक्ता वस्तुओं में मुख्यतया खाद्य पदार्थों को शामिल किया जाता है जबकि पूँजीगत वस्तुओं में भारी मशीनों आधारभूत वस्तुओं तथा सुरक्षा उपकरणों को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 29.
टैरिफ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आयात वस्तुओं पर लगाये जाने वाले कर शुल्क को टैरिफ कहते हैं। यह कर भौतिक . इकाइयों (प्रतिटन) या कीमत के आधार पर लगाया जाता है।
प्रश्न 30.
भौतिक इकाई के आधार पर कर लगाने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भौतिक इकाई के आधार पर कर लगाने से अभिप्राय वस्तु के वजन के हिसाब से कर लगाना है। भारी वस्तु पर अधिक कर लगेगा और हल्की वस्तु पर कम। मान लें आयात की गई वस्तु पर कर की दर 100 रुपये क्विंटल है। यदि आयात की गई वस्तु का वजन दो क्विंटल है तो उस पर 200 रु. टैरिफ लगेगा और 4 क्विंटल पर 400 रुपये वस्तु के मूल्य से इसका कोई संबंध नहीं है।
प्रश्न 31.
वस्तु की कीमत के आधार पर कर लगाने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वस्तु की कीमत के आधार पर कर लगाने कर लगाने के लिये आयात की गई वस्तु की कीमत को आधार बनाया जायेगा। मान लो कर 3 रुपये प्रति हजार है आयात की गई वस्तु की कीमत 30,000 रुपये है ऐसी अवस्था में वस्तु 90 रुपये टैरिफ लगेगा।
प्रश्न 32.
जनांकिकीय संक्रमण की प्रथम अवस्था की विशेषताएं लिखें।
उत्तर:
जनांकिकीय संक्रमण की प्रथम अवस्था में जन्म दर तथा मृत्यु दर दोनो ही ऊँची होती हैं। अत: जनसंख्या वृद्धि की दर कम होती है।
प्रश्न 33.
स्वतंत्रता के समय हमारी अर्थव्यवस्था में कौन-कौन से उद्योग थे?
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था में निम्नलिखित उद्योग थे –
- सूती कपड़ा उद्योग
- पटसन उद्योग
- लोहा तथा इस्पात उद्योग
- कागज उद्योग
प्रश्न 34.
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यस्था की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था गतिहीन पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था उपनिवेशवादी अर्थव्यवस्था तथा-विक्षत अर्थव्यवस्था थी।
प्रश्न 35.
1921 ई० से पूर्व भारत में मृत्यु दर ऊँची क्यों थी?
उत्तर:
1921 ई० से पूर्व भारत में मृत्यु दर ऊँची होने के कई कारण थे। जैसे-बीमारियों की रोकथाम करने तथा उनके इलाज का ज्ञान होना खाने-पीने की कमी, सफाई व्यवस्था का उत्तम न होना। प्रभावशाली स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव आदि।
प्रश्न 36.
कुछ खाद्य फसलों के नाम लिखें।
उत्तर:
गेहूँ, ज्वार, बाजरा, चुना आदि।
प्रश्न 37.
कुछ नकदी फसलों के नाम लिखें।
उत्तर:
चाय, काफी आदि।
प्रश्न 38.
ब्रिटिश भारत में जीवन प्रत्याशा कितनी थी और अब कितनी हैं?
उत्तर:
ब्रिटिश भारत में जीवन प्रयाश 32 वर्ष थी जबकि अब यह 63 वर्ष है।
प्रश्न 39.
ब्रिटिश भारत में शिशु मृत्यु दर कितनी थी और अब कितनी है?
उत्तर:
ब्रिटिश भारत में शिशु मृत्यु दर 218 प्रति हजार थी। अब यह 63 प्रति हजार है।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
निर्यात के आधिक्य पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
निर्यात का आधिक्य (Large export surplus):
ब्रिटिश काल में भारतीय विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषता निर्यात का आधिक्य था। निर्यात आधिक्य से अभिप्राय भारत का आयातित निर्यात आयात से अधिक होना। परन्तु इस आधिक्य का भारतीय अर्थव्यवस्था का बुरा प्रभाव पड़ा। इससे घरेलू बाजार में कई आवश्यक वस्तुओं की बहुत कमी हो गई। इसके अतिरिक्त इस आधिक्य के परिणामस्वरूप भारत में सोने या चाँदी का कोई प्रभाव नहीं हुआ। निर्यात आधिक्य का प्रयोग निम्नलिखित खर्चों पर किया गया।
- अंग्रेजों द्वारा भारत, अफ्रीका आदि स्थानों पर भेजी गई सेना पर खर्च।
- भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा विभिन्न युद्धों में किये गये खर्चे।
- भारत द्वारा विदेशों से लिये गये ऋणों पर ब्याज, पेंशन अवकाश भत्ता, सामान की खरीद पर किये गये खर्चे।
- इंग्लैण्ड में स्थित भारतीय कार्यालय का व्यय।
- विदेशी जहाजरानी, विदेशी विनिमय बैंक और विदेशी कंपनियों को किया जाने वाला भुगतान।
प्रश्न 2.
जमींदारी प्रथा पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
जमींदारी प्रथा (ZamindariSystem):
भारत में भू-राजस्व की इस प्रणाली का आरंभ लार्ड कार्नवालिस ने बंगाल में स्थायी बंदोबस्त (Permanent settlement) के अंतर्गत किया, इसके अनुसार कुछ किसानों को भूमि का स्वामित्व दे दिया गया जो वास्तव में पहले मालजुगारी एकत्रित करने वाले सरकारी कर्मचारी थे। इन नये भू-स्वामियों ने अधिकांश भूमि पट्टे पर दे दी जिससे वे मनचाहा लगान प्राप्त करते थे।
ये जमींदार सरकार तथा काश्तकारों के बीच मध्यस्त थे। जमींदार सरकार को स्थायी रूप से निर्धारित लगान की निश्चित राशि देते थे। जमींदार के रुचि काश्तकरों से अधिक से अधिक लगान ऐठने तक ही सीमित थी। वे भूमि के विकास में रुचि नहीं लेते थे। इधर काश्तकार भूमि से किसी भी समय बेदखल किये जाने के डर से भूमि सुधार में कम रुचि लेते थे। फलस्वरूप कृषि की उत्पादकता कम होती गई।
प्रश्न 3.
ब्रिटिश प्रशासन के खर्चों पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
ब्रिटिश प्रशासन के खर्चे (Cost of British Administration):
ब्रिटिश प्रशासन के खर्चों से अभिप्राय उन खर्गों से है जिनका वहन भारत को करना पड़ा। इन खर्चों की पूर्ति भारत में ही आय जुटाकर की जाती थी। ये खर्चे निम्नलिखित थे –
- भारत द्वारा विदेशों से लिये गये ऋणों पर ब्याज, पेंशन सामान पर किये गये व्यय।
- ब्रिटिश शासन अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए युद्ध करता था। इन खर्चों का वहन भी भारत को करना पड़ा। मैसूर युद्ध, मराठा युद्ध, अफगान और बर्मा की लड़ाइयाँ आदि युद्धों और लड़ाई में किये गये खर्च का बोझ भारत पर ही थोपा गया।
- इंगलैण्ड से भारत के बीच जो टेलीग्राम लाइनें बिछाई गईं, उन सबका खर्चा भारत के नाम लिख दिया गया।
- अदृश्य वस्तुओं के भुगतान का खर्च आदि।
प्रश्न 4.
कृषि के वाणिज्यीकरण पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
कृषि का वाणिज्यीकरण (Commercialisation of Agriculture):
कृषि के वाणिज्यीकरण से अभिप्राय यह है कि व्यापारिक फसलों का अधिक बोया जाना। व्यापारिक फसलों के अंतर्गत कपास, जूट, गन्ना, रोपण फसलें, तिहलन आदि फसलें आती हैं। ब्रिटिश शासन में कृषि का वाणिज्यीकरण एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन था। इस परिवर्तन के कारण खाद्यान्नों और स्वयं उपभोग की वस्तुओं के उत्पादन के स्थान पर व्यापारिक फसलों का उत्पादन अधिक हो गया।
इसका मुख्य कारण ब्रिटेन के उद्योगों के लिये कच्चे माल की पूर्ति को बढ़ाना था। साथ ही बढ़ती हुई लगान की राशि के लिये किसान पहले की अपेक्षा अधिक व्यापारिक फसलों का उत्पादन करने लगे क्योंकि इन फसलों का मूल्य खाद्यान्नों की अपेक्षा ऊँचा होता था। वाणिज्यीकरण के कारण खाद्यान्नों के उत्पादन में कमी आई। अकाल की भयंकरता बढ़ गई।
प्रश्न 5.
अंग्रेजों के मन में भारत के रेल विकास के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:
भारत में रेल विकास के प्रमुख उद्देश्य (Main objectives for developing Railways):
भारत की पहली रेलगाड़ी 16 अप्रैल, 1853 में चली। इसने कुल 34 किलोमीटर की दूरी तय की थी। अंग्रेजों ने भारत में रेल का विकास निम्नलिखित उद्देश्यों से किया –
1. प्रशासनिक उद्देश्य (Administrative objectives):
अंग्रेजों ने विशाल भारतीय क्षेत्र पर कड़ा नियंत्रण रखने के लिए प्रशासन की सुविधा की दृष्टि से रेलवे के विस्तृत जाल का निर्माण किया।
2. व्यापारिक उद्देश्य:
रेलवे के विकास का पहला उद्देश्य इंगलैंड के कारखानों के लिये आवश्यक कच्चे माल को देश के भीतरी भागों से लेकर बंदरगाहों तक पहुँचाना था। दूसरा यापारिक उद्देश्य इंग्लैण्ड के कारखानों में उत्पादित तैयार माल को देश के विभिन्न भागों में हुँचाना था।
3. लाभकारी निवेश संबंधी उद्देश्य (Objective of Profitable investment):
रेलवे के विकास का उद्देश्य अंग्रेजों के धन का लाभकारी निवेश था। रेल विकास में इंग्लैण्ड के पूंजीपतियों ने भारी राशि का निवेश किया और लाभ कमाये।
प्रश्न 6.
ब्रिटिश सरकार ने भारत में 1850 में रेल यातायात आरंभ किया था। इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
रेलवे का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव (Impact of Railway on Indian Economy):
रेलवे से भारतीय अर्थव्यवस्था कई तरह से प्रभावित हुई। इनका वर्णन नीचे किया जा रहा है –
- रेलवे के शुरू होने से भारतीय लोग लंबी दूरी तक यात्रा करने के योग्य बन गये।
- इससे भौगोलिक तथा सांस्कृतिक बाधाएँ समाप्त हो गई।
- रेलवे ने कृषि का व्यवसायीकरण किया।
- इसने भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की आत्मनिर्भरता को समाप्त किया।
- भारत में विदेशी व्यापार का बहुत ही अधिक विस्तार हुआ।
प्रश्न 7.
भारत के आर्थिक निष्कासन से क्या अभिप्राय है? उन सभी साधनों की समीक्षा कीजिए, जिनसे भारत का आर्थिक निष्कासन संभव हो पाया?
उत्तर:
आर्थिक निष्कासन का अर्थ (Meaning of drain of Indian wealth):
भारतीय आर्थिक निष्कासन से अभिप्राय भारतीय अर्थव्यवस्था का नियमित ढंग से शोषण करना (exploitation) और उपहारस्वरूप भारी मात्रा में भारत की सम्पत्ति को अपने देश में भेजना। दूसरे शब्दों में ब्याज, रायल्टी विदेश व्यापार का अधिकांश लाभ आदि के रूप में भारत के वित्तीय साधनों के निष्कासन से है। भारतीय आर्थिक निष्कासन की विधियाँ (Methods of drains of Indian wealth) भारतीय आर्थिक निष्कासन निम्नलिखित विधियों में से किया गया –
- अंग्रेज कर्मचारियों की आवश्यकता पूर्ति के लिये विदेशों से खरीदी गई वस्तुओं के भुगतान के रूप में प्रेषण।
- इंगलैण्ड में रखे गये भारत के सार्वजनिक साख के ब्याज के रूप में आने वाले व्यय का प्रेषण।
- ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों द्वारा भारत में की गई बचतों का इंगलैण्ड में निवेश के लिए प्रेषण क्योंकि ये कर्मचारी अपनी पूँजी अपने ही देश में प्रयोग करना अधिक बेहतर समझते थे।
- यूरोपीय कर्मचारियों द्वारा इंगलैण्ड स्थित अपने परिवारों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए मुद्रा का प्रेषण।
- अंग्रेजों द्वारा भारत अफ्रीका आदि स्थानों पर भेजी गई सेना का खर्च को करना पड़ा।
प्रश्न 8.
कृषि के वाणिज्यीकरण के प्रभाव लिखें।
उत्तर:
वाणिज्यीकरण के प्रभाव (Effect of Commercialisation):
कृषि के वाणिज्यीकरण के फलस्वरूप खाद्यान्नों के उत्पादन में कमी आई जिसके फलस्वरूप प्रति व्यक्ति खाद्यान्नों की उपलब्धता में कमी हो गई।
- ब्रिटिश उद्योगों को कच्चा माल मिलने लगा।
- अकाल की भयंकरता बढ़ गई।
- अकाल के समय विदेशों पर खाद्यान्नों की निर्भरता बढ़ गई।
- भारत के घरेलू उद्योगों पर द्यातक प्रभाव पड़ा।
प्रश्न 9.
स्वतंत्रता पूर्व भारत के विदेशी व्यापार की क्या दशा थी?
उत्तर:
1. विदेशी व्यापार की दशा (Direction of foreign trade):
स्वतंत्रता पूर्व भारत का अधिकतर व्यापार इंगलैण्ड तथा राष्ट्रमण्डल के देशों के साथ होता था। कुल निर्यात का 34% तथा कुल आयात का 31% व्यापार इंगलैण्ड के साथ होता था। इसके अतिरिक्त दूसरे ब्रिटिश उपनिवेशों जैसे बर्मा (म्यांमार) कनाडा श्रीलंका आदि से निर्यात व्यापार 21% और आयात 10% था।
2. विदेशी व्यापार की संरचना (Composition of Foreign trade):
स्वतंत्रता पूर्व भारत के विदेशी व्यापार में बहुत कम वस्तुएँ सम्मिलित थीं। भारत से कच्चे माल और कृषि वस्तुओं का निर्यात किया जाता था। भारत के निर्यातों में मुख्य स्थान सूती वस्त्र और कपास अनाज, जूट की वस्तुएं चाय और तिलहन का था।
प्रश्न 10.
भारत के विभाजन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
भारत के विभाजन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव (Efects of partition of Indian Economy):
भारत के विभाजन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा –
1. खाद्यान्न में कमी (Food shortage):
विभाजन के फलस्वरूप भारत में खाद्यान्न की। गंभीर कमी अनुभव की जाने लगी।
2. कच्चे माल की कमी (Shortage of raw materials):
विभाजन का दूसरा गंभीर प्रभाव कच्चे माल की पूर्ति पर पड़ा। विभाजन के बाद पाकिस्तान में वे क्षेत्र खोले गये जो कृषिजन्य पदार्थों की पूर्ति करते थे और इन पदार्थों को कच्चे माल के रूप में उपयोग करने वाली अधिकांश मिलें भारत में स्थित थीं। अत: भारत को कच्चे माल की कमी अनुभव हुई। इस तरह से प्रभावित उद्योगों में पंटसन और सूती उद्योग विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
3. संकुचित बाजार (Loss of Market):
विभाजन के परिणामस्वरूप भारत के कई उद्योगों के बाजार का अकार बहुत ही सीमित हो गया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
स्वतंत्रता के समय अथवा कुछ समय बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की क्या स्थिति थी? संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति (Condition of the Indian Economy at the time of Independence):
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था निम्न प्रकार की थी –
1. गतिहीन अर्थव्यवस्था (Stagnant Economy):
अंग्रेजों ने भारतीय अर्थव्यवस्था का गतिहीन अर्थव्यवस्था बना दिया था। गतिहीन अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसमें वृद्धि दर न के बराबर होती है। स्वतंत्रता से पूर्व 100 वर्ष की अवधि में प्रति व्यक्ति आय की औसत दर 0.5 प्रतिशत के लगभग थी। अर्थव्यवस्था की गतिहीनता के कारण भारत एक पिछड़ा हुआ निर्धन देश बनकर रह गया जबकि संसार के अधिकतर देशों ने बड़ी तीव्रता से प्रगति
की थी।
2. पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था (Backward Economy):
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी हुई थी। भारतीय अर्थव्यवस्था की निम्नलिखित विशेषताएँ इसके पिछड़ेपन को प्रकट करती हैं –
(क) स्वतंत्रता के समय भारत में कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था थी। कृषि का सकल घरेलू में योगदान लगभग चालू कीमतों पर 54% थी।
(ख) स्वतंत्रता के समय मशीनरी तथा अन्य आवश्यक यंत्रों का आयात करता था।
(ग) स्वतंत्रता के समय भारत में उद्योगों का बहुत ही कम विकास हुआ था।
(घ) स्वतंत्रता के समय भारत में सीमेंट, चीनी, लोहा, इस्पात आदि कुछ ही गिने-चुने उद्योग थे।
(ङ) भारत में उस समय न के बराबर पूँजीगत वस्तु उद्योग थे।
(च) राष्ट्रीय आय में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान ही कम था।
3. औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था (Colonial Economy):
विभाजन के समय भारतीय अर्थव्यवस्था पूर्णरूप से औपनिवेशिक थी। यह बात निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट होती है –
(क) 17 वीं और 18 वीं शताब्दी में भारत के निर्यात व्यापार में कपास जूट और चाय का हिस्सा 60% से अधिक था।
(ख) औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप यूरोप के देशों में ओद्योगिक क्षमता का निर्माण हो चुका था और वे अपने बने माल को भारत तथा अन्य अपनिवेशों को भेजते थे।
(ग) विदेशी पूंजी का उपयोग कृषि और बागान (Plantation) उद्योगों में किया जाता था जिसका मुख्य कारण औद्योगिक देशों की कच्चे माल की मांग को पूरा करना था।
4. क्षीण अर्थव्यवस्था (Deplected Economy):
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था क्षीण तथा खोखली थी। इंगलैंड और इसके भिन्न देशों की युद्ध संबंधी आवश्यकताओं पूर्ति के लिये भारतीय उद्योगों को निरंतर रूप से 24 घंटे कार्य करना पड़ा। सारे उत्पादन का निर्यात किया जाता और भारतीयों को प्रायः सामान्य जीवन की वस्तुओं से वंचित रहना पड़ता है।
5. विच्छेदित अर्थव्यवस्था (Amputed Economy):
स्वतंत्रता के समय देश के विभाजन के फलस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था विच्छेदित हो गई थी। देश का विभाजन अनेक रूपों से काफी समय तक आर्थिक दृष्टि से देश के लिये घातक सिद्ध हुआ। विभाजन के घातक प्रभाव निम्नलिखित थे –
(क) भारत में स्थापित जूट (पटसन) मिलों को कच्चा माल (Raw Material) मिलान बंद हो गया क्योंकि विभाजन के फलस्वरूप पटसन के लिये कच्चा माल पैदा करने वाले इलाके पाकिस्तान में चले गये।
(ख) बम्बई तथा अहमदाबाद के कपड़ों की मिलों को कपास मिलना बंद हो गया।
(ग) देश खाद्यन्नों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं रहा।
(घ) सभी वस्तुओं के लिए बाजार सीमित हो गया।
(ङ) लाखों की संख्या में जनसंख्या के हस्तानान्तरण में अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई।
प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यस्था की मुख्य विशेषताएँ (Main features of Indian Economy at the eve of independence)
1. कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था (Agriculatural Economy):
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान था। देश की जनसंख्या का लगभग 85% भाग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से. अपनी आजीविका कृषि से ही कमाता था।
देश की लगभग 72% श्रमशक्ति कृषि में लगी हुई थी। इतना होने पर भी भारत की कृषि पिछड़ेपन के कई कारण थे, जैसे जमींदारी प्रथा, वर्षा पर अधिक निर्भरता या सिंचाई सुविधाओं का अभाव, भूमि पर जनसंख्या का अधिक दबाव, कृषि करने के पुराने ढंग, खाद का नगण्य प्रयोग आदि। भारत के विभाजन ने कृषि व्यवसाय को एक और झटका दिया। अविभाज्य देश का सिंचित तथा उपजाऊ भाग पाकिस्तान में चला गया।
2. औद्योगिक क्षेत्र (Industrial Sector):
कृषि की ही तरह स्वतंत्रता के समय औद्योगिक क्षेत्र भी पिछड़ा हुआ था। ब्रिटिश भारत में के विश्व-प्रसिद्ध हस्तकला उद्योगों का पतन हुआ। अंग्रेजी सरकार ने ऐसी नीति अपनाई जिससे भारत में उद्योगों का विकास न हो सका। उनका मुख्य उद्देश्य ब्रिटेन में उद्योगों को विकसित करने के लिये भारत को केवल कच्ची वस्तुओं का निर्यातक बनाया तथा ब्रिटेन में निर्मित वस्तुओं का उपभोक्ता बनाना था। भारत में देशी हस्तशिल्प उद्योगों के पतन से बेरोजगारी को बढ़ावा मिला।
19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में आधुनिक उद्योग शुरू हुए परन्तु वे बहुत ही धीमी गति से विकसित हुए। प्रारम्भ में सूती और पटसन मिलें स्थापित की गई। सूती कारखानों पर अधिकतर भारतीयों का स्वामित्व था और ये कारखाने भारत के पश्चिमी भागों (महाराष्ट्र तथा गुजरात) में स्थित थे। जूट के कारखानों पर अंग्रेजों का स्वामित्व था और वे बंगाल में केन्द्रित थे। 20 वीं शताब्दी के आरंम्भ में लोहा तथा इस्पात उद्योग शुरू हुआ।
प्रथम लोहा तथा इस्पात कंपनी (टाटा आयरन तथा स्टील कंपनी) अर्थात TISCO) की स्थापना जमशेदुर में हुई। इस कंपनी ने 1912 में उत्पादन करना शुरू कर दिया था। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भारत का और अधिक औद्योगीकरण करने के लिये यहाँ पर पूंजीगत वस्तु उद्योग न बराबर थे। देश के अधिकतर उद्योग अपने पूँजीगत पदार्थों अर्थात् मशीनों के लिये इंग्लैण्ड पर निर्भर करते थे। औद्योगिक क्षेत्र की विकास दर तथा इसका सकल घरेलू उत्पादन में योगदान बहुत ही कम था। अधिकांश उद्योग निजी स्वामित्व में थे। रेलवे, संचार तथा बंदरगाहों पर स्वामित्व सरकार का था।
3. विदेशी व्यापर (Foreign Trade):
स्वतंत्रता के समय भारत के कच्चे माल और कृषि पदार्थों का निर्यात करता था। भारत के निर्यातों में मुख्य स्थान कपास, चीनी, नील, पटसन आदि का था। भारत, इंग्लैंड तथा अन्य देशे से अधिकतर उपभोग की तैयार वस्तुएँ, मशीन आदि मंगवाता था। भारत का अधिकतर इंगलैंड तथा राष्ट्रमण्डल देशों से होता था।
4. आर्थिक संरचना का अल्प विकास (Less development of economic infrastructure):
स्वतंत्रता के समय भारत में आर्थिक संरचना जैसे यातायात, बिजली, संचार, बैंकिंग आदि का कम विकास हुआ था। ब्रिटिश सरकार ने 1850 ई० में रेलवे की शुरुआत की थी। रेलवे ने भारतीय अर्थव्यवस्था को कई प्रकार से प्रभावित किया। रेलवे के अतिरिक्त ब्रिटिश शासन ने सड़क परिवहन का भी विकास किया। सड़क और रेलवे परिवहन के विकास के साथ-साथ आंतरिक जल यातायात तटीय जल यातयात तथा सामुद्रिक यातायात को विकसित करने का प्रयत्न किया गया। परन्तु इनका विकास संतोषजनक नहीं था।
5. जनांकिकीय दशा (Demographic condition):
जनांकिकीय संक्रमण की तीन अवस्थाएँ होती हैं-प्रथम अवस्था, द्वितीय अवस्था तथा तृतीय अवस्था। 1921 के पूर्व भारत जनांकिकीय संक्रमण की प्रथम अवस्था में था। इस अवस्था में अंधविश्वास तथा चिकित्सा की सुविधाएँ न होने के कारण मृत्यु दर ऊँची होती है। मृत्यु दर के ऊँचा होने के साथ-साथ जन्म दर भी ऊँची होती है। अतः जनसंख्या में वृद्धि दर बहुत ही कम होती है। 1921 के पश्चात् भारत ने जनांकिकीय संक्रमण की दूसरी अवस्था में प्रवेश किया। ऊँची जन्म दर तथा कम मृत्यु दर के कारण भारत में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी। स्वतंत्रता के समय भारत की जनसंख्या लगभग 33 करोड़ थी।
6. व्यावसायिक संरचना (Occupational structure):
व्यावसायिक संरचना का अभिप्राय है अर्थव्यवस्था में कार्यशील जनसंख्या का विभिन्न व्यवसायों में वितरण। साधारणतया इसका अध्ययन किसी अर्थव्यवस्था के विभिन्न व्यवसायों अथवा विभिन्न क्षेत्रों में कार्यशील कुल श्रम-शक्ति के प्रतिशत के रूप में किया जाता है –
- प्राथमिक क्षेत्र के व्यवसाय
- द्वितीयक क्षेत्र के व्यवसाय, तथा
- तृतीयक क्षेत्र के व्यवसाय। औपनिवेशिक काल में भारत की व्यावसायिक संरचना में नगण्य परिवर्तन हुए। स्वतंत्रता के समय 70-75% कार्यशल जनसंख्या प्राथमिक क्षेत्र में लगी हुई थी। 10% तथा 15-20% कार्यशील जनसंख्या क्रमशः द्वितीयक क्षेत्र तथा तृतीयक क्षेत्र में लगी हुई थी।
अतिरिक्त गतिविधियाँ (Suggested Additional Activities)
प्रश्न 1.
अपने शिक्षक के सहयोग से इस विषय पर परिचर्चा करें-क्या भारत में जमींदारी प्रथा का सचमुच उन्मूलन हो गया है? यदि आपका सामान्य मत नकारात्मक है, तो आपके विचार से इसे समाप्त करने के लिए क्या कदम उठाया जाना चाहिए और क्यों?
उत्तर:
छात्र कक्षा मे जमींदारी प्रथा के आरम्भ एवं दुष्परिणाम आदि पर वहस करेंगे तथा तथ्यों आँकड़ों से यह सिद्ध करेंगे कि जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के लिये सरकार द्वारा किये गये प्रयत्न पूर्ण रूप से सफल नहीं हुए हैं। अब भी भारत के अधिकांश भागों में जमींदारी प्रथा प्रचलन में है। इसके बाद छात्र सुझाव देंगे कि किस प्रकार जमींदारी प्रथा का पूर्ण रूप से उन्मूलन किया जा सकता है – जैसे कानून ऐसे बनाये जायें जिनकी अवमानना संभव न हो। कानूनों को सख्ती से लागू किया जाये। वह कार्य अनुभवी योग्य, ईमानदार तथा निष्ठावान सरकारी अधिकारियों को सौंपा जाना चाहिए। राजनैतिक नेताओं का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
प्रश्न 2.
स्वतंत्रता के समय हमारे देश की जनता अपनी आजीविका के लिए क्या-क्या कार्य करती थी? आज जनता के मुख्य व्यवसाय क्या हैं? देश में चल रहे आर्थिक सुधारों को ध्यान में रखकर आज से पंद्रह वर्ष 2020 में आप किस प्रकार के व्यावसायिक परिदृश्य की कल्पना करेंगे।
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय हमारी अर्थव्यवस्था के लोगों का मुख्य व्यवसाय (Majar occupation followed by the people of our economy at the time of independence):
स्वतंत्रता के समय हमारे देश के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेतीवाड़ी (कृषि) था। राष्ट्रीय उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान 50% से अधिक था। कृषि के उतार-चढ़ाव भारतीय अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से प्रभावित करते थे। भारत की जनसंख्या का लगभग 85% भाग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से अपनी आजीविका का अर्जन करते थे। वर्तमान समय में यद्यपि भारतीय लोगों का व्यावसाय कृषि है, परन्तु समय के साथ लोग कृषि कार्य को छोड़कर शहरों में नौकरी करने लगे हैं। आज से 15 वर्ष के बाद सन् 2020 तक परिदृश्य पूरी तरह बदल जाएगा। भारत एक कृषि प्रधान देश नहीं रहेगा। वह अमेरिका की तरह एक विकसित राष्ट्र होगा और उसकी अर्थव्यवस्था वर्तमान अमेरिका के समान होगी। व्यावसायिक परिदृश्य में कम्प्यूटर तकनीक अपने चरम पर होगी तथा सुपर कम्प्यूटरों का युग प्रारम्भ हो गया होगा।
प्रश्न 3.
स्वतंत्रता के पूर्व भारत में ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में लोगों की उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं की सूची बनाइए। उस सूची की आज के उपभोग स्वरूप से तुलना करें। इस प्रकार जन-सामान्य के जीवन स्तर में आए परिवर्तनों का आकलन करें।
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय ग्रामीण क्षेत्र में उपलब्ध होने वाली वस्तुओं तथा सेवाओं की सूची (List of goods and services available in rural sector at the time of Independence):
स्वतंत्रता के समय ग्रामीण क्षेत्र में निम्नलिखित वस्तुएँ एवं सेवाएँ उपलब्ध थीं –
- कुओं से जल की आपूर्ति।
- खेतों से ताजी सब्जियाँ तथा फल।
- खाद्यान्न पदार्थ।
- पहनने के लिए मोटा कपड़ा।
- बैलगाड़ियाँ, घोड़े खच्चर द्वारा प्रदान की गई सेवाएँ।
- गाय, भैसों तथा बकरियों से दूध की प्राप्ति।
- चूसने के लिए गन्ना और खाने के लिए गुड़ की प्राप्ति।
- मनोरंजन के लिए कुश्ती या दंगल आदि।
- लोहार, बढ़ई, नाई आदि की सेवाएँ।
- दाइयों, हकीमों को सेवाएँ।
- रहने के लिए कच्चे मकान तथा झोपड़ियाँ।
स्वतंत्रता के समय शहरी क्षेत्र में उपलब्ध होने वाली वस्तुओं तथा सेवाओं की सूची (List of goods and services available inurban sector in urban sector at the time of independence):
स्वतंत्रता के समय शहरी क्षेत्र में निम्नलिखित वस्तुएँ तथा सेवाएँ उपलब्ध थीं –
- रहने के लिए पक्के मकान।
- इलाज कराने के लिए अस्पताल तथा डॉक्टर।
- बड़े शहरों में विद्युत की सुविधाएँ।
- यातायात के साधन-टांगा, बसें रेलवे।
- जल-आपूर्ति (कुओं, नलकों से)।
- जल निकासी की सुविधाएँ।
- कई शहरों में पक्की सड़कें।
- वस्तुएँ खरीदने के लिये बाजार।
- शिक्षा प्राप्त करने के लिये स्कूल तथा कॉलेज।
- मनोरंजन के लिए सिनेमा हॉल।
जीवन स्तरों में तुलना (Comparison of Standard of living):
गाँवों की अपेक्षा शहरों में जीवन स्तर अच्छा था। गाँवों की अपेक्षा शहरों में अधिकतर लोग पिछड़े हुए अन्धविश्वासी शिक्षित आदि थे। वे अपने स्वास्थ्य के प्रति भी सचेत नहीं थे। गाँव वालों का मुख्य व्यवसाय कृषि था जो कि पिछड़ी हुई थी। भूमिहीन किसानों की हालत तो बहुत ही खराब थी। उन्हें दो समय का खाना भी नसीब नहीं होता था। साहूकार उनका शोषण करते थे। वे ऋणग्रस्त थे। कहा जाता है कि वे कर्जे में पैदा होते थे, कर्ज में रहते थे और कर्ज में ही मर जाते थे।
उनकी आय बहुत ही कम थी। गाँवों में प्रच्छन (छिपी हुई) बेरोजगारी थी। इसके विपरीत शहरों में लोग कारखानों कार्यालयों तथा दुकानों में काम करते थे। उनकी निश्चित आय/वेतन था। उनको समय का भोजन सरलता से मिल जाता था। वे शिक्षित भी थे। कुछ ऐसे लोग भी जो बहुत ही गरीब थे। वे मजदूरी करते थे रिक्शा चलाते थे, घरों में काम करते थे फेरी लगाते थे। स्टेशनों तथा बस अड्डों पर कली का काम करते थे। इनमें से अधिकांश वे लोग थे जो गाँवों से शहर में रोजगार की तलाश में आते थे। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि शहर में रहने वाले लोगों का जीवन स्तर गाँव में रहने वाले लोगों की अपेक्षा ऊँचा था।
प्रश्न 4.
अपने आस-पास के गाँवों और शहरों के स्वतंत्रता पूर्व के चित्र संग्रहित करें। उन्हें आज के परिदृश्यों से मिला कर देखें। आप उसमें क्या परिवर्तन देखते हैं? क्या इनमें आए परिवर्तन सुखद हैं या दुखद? चर्चा करें।
उत्तर:
हमने अपने निकट के शहर की स्वतंत्रता से पूर्व तथा स्वतंत्रता के बाद की तस्वीरें तथा फोटोग्राफ एकत्रित किये। इन चित्रों से प्राप्त होने वाले परिदृश्य की वर्तमान परिदृश्य से तुलना करने पर हमें निम्नलिखित अन्तर दिखाई देते हैं –
- पहले शहर में पक्की सड़कें बहुत कम थीं पर अब सड़कों का जाल बिछा हुआ है।
- पहले उस शहर में केवल एक ही सरकारी विद्यालय था, जिसमें केवल दसवीं तक शिक्षा दी जाती थी। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये विद्यार्थियों को दूसरे शहर में जाना पड़ता था। परन्तु इस शहर में कई सरकारी, मान्यताप्राप्त तथा पलिब्क स्कूल हैं जिसमें 12 वीं तक शिक्षा दी जाती है। इसके अतिरिक्त इस शहर में एक डिग्री कॉलेज भी हैं।
- पहले शहर में यातयात का साधन मुख्यतः साइकिल तथा बसें थीं। कार या स्कूटर मोटर साइकिल बहुत ही कम लोगों के पास थे। परन्तु अब स्कूटरों मोटरसाइकिलों तथा कारों की भरमार है।
- पहले शहर में केवल एक ही सरकारी अस्पताल था परन्तु अब कई सरकारी तथा गैरसरकारी अस्पताल हैं। डॉक्टरों तथा दवाइयों की दुकानों की भरमार है जबकि पहले उस शहर में इक्का-दुक्का डॉक्टर और दवाई की दुकान होती थी।
- पहले शहर में केवल एक ही मंदिर गुरुद्वारा तथा मस्जिद थे पर अब तो इनकी भरमार हो गई है।
- इस शहर में पहले होटल, चाय की दुकानें रेस्टोरेंट ढाबे कम मात्रा में पाये जाते थे, परन्तु अब इनकी भरमार है। अब तो इस शहर में एक पाँच सितार होटल भी है।
- पहले एक सिनेमाघर था, परन्तु अब सिनेमाघर हैं।
- पहल केवल एक बैंक था (स्टेट बैंक ऑफ इंडिया) परन्तु अब अनेकों बैंक हैं जहाँ हमेशा भीड़ लगी रहती हैं।
- पहले बच्चे पैदल या रिक्शा पर पढ़ने के लिये जाते थे परन्तु अब में प्रायः स्कूल की बसों में जाते हैं।
- पहले मकान एकमंजिला थे और आबादी कम थी परन्तु अब लगभग सभी मकान दो मंजिले हो गये हैं, अब आबादी भी बढ़ गई है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
TISCO का मतलब है –
(a) टाटा आयरन एण्ड स्टील कंम्पनी
(b) टाइटन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी
उत्तर:
(a) टाटा आयरन एण्ड स्टील कंम्पनी
प्रश्न 2.
आर्थिक विकास के लिए कौन-सा कम महत्वपूर्ण है –
(a) उद्योग
(b) कृषि
उत्तर:
(b) कृषि
प्रश्न 3.
लोहा, इस्पात, चीनी और सीमेण्ट, कागज और वस्त्र उद्योग किस शताब्दी में शुरू होने लगे –
(a) अठारहवीं शताब्दी
(b) उन्नीसवीं शताब्दी
(c) बीसवीं शताब्दी
उत्तर:
(c) बीसवीं शताब्दी
प्रश्न 4.
ब्रिटिश शासन काल में कितनी प्र. श. जनसंख्या भारत के गाँवों में रहती थी –
(a) 60 प्र. श.
(b) 70 प्र. श.
(c) 85 प्र. श.
उत्तर:
(c) 85 प्र. श.
प्रश्न 5.
भारत में प्रथम जनगणना किस वर्ष में हुई –
(a) 1881
(b) 1882
उत्तर:
(a) 1881
प्रश्न 6.
TARIFF का मतलब है –
(a) आयातित वस्तुओं पर लगाया गया कर
(b) निर्यातित वस्तुओं पर लगाया गया कर
उत्तर:
(a) आयातित वस्तुओं पर लगाया गया कर
प्रश्न 7.
20 वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में कुल वास्तविक उत्पाद बढ़ोतरी दर थी –
(a) 2 प्र. श.
(b) 2 प्र. श. से कम
उत्तर:
(b) 2 प्र. श. से कम
प्रश्न 8.
20 वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि दर थी –
(a) आधा प्र. श.
(b) एक प्र. श.
उत्तर:
(a) आधा प्र. श.
प्रश्न 9.
अंग्रेजी शासन में जीवन प्रत्याशा थी –
(a) 32 वर्ष
(b) 30 वर्ष
उत्तर:
(a) 32 वर्ष
प्रश्न 10.
वर्तमान जीवन प्रत्याशा है –
(a) 65 वर्ष
(b) 60 वर्ष
उत्तर:
(a) 65 वर्ष
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