BSEB Class 12 Hindi हार-जीत Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Hindi हार-जीत Book Answers |
Bihar Board Class 12th Hindi हार-जीत Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 12th |
Subject | Hindi हार-जीत |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
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BSEB Class 12th Hindi हार-जीत Textbooks Solutions with Answer PDF Download
Find below the list of all BSEB Class 12th Hindi हार-जीत Textbook Solutions for PDF’s for you to download and prepare for the upcoming exams:हार-जीत वस्तुनिष्ठ प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ
प्रश्न 1.
अशोक वाजपेयी के पिता जी कौन थे?
(क) परमानंद वाजपेयी
(ख) रमाकांत वाजपेयी
(ग) शियानंद वाजपेयी
(घ) दयानंद वाजपेयी
उत्तर-
(क)
प्रश्न 2.
अशोक वाजपेयी की माँ का नाम क्या था?
(क) निर्मला देवी
(ख) विमला देवी
(ग) सुधा देवी
(घ) राधिका देवी
उत्तर-
(क)
प्रश्न 3.
इनमें अशोक वाजपेयी की कौन–सी रचना है?
(क) गाँव का घर
(क) गाव ५
(ख) हार–जीत
(ग) कवित्त
(घ) कड़बक
उत्तर-
(ख)
4. अशोक वाजपेयी का जन्म कब हुआ था?
(क) 16 जनवरी, 1941 ई.
(ख) 16 जनवरी, 1940 ई.
(ग) 16 जनवरी, 1930 ई.
(घ) 16 जनवरी, 1935 ई.
उत्तर-
(क)
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
प्रश्न 1.
वे……… मना रहे है।
उत्तर-
उत्सव
प्रश्न 2.
सारे शहर में……… की जा रही है।
उत्तर-
रौशनी
प्रश्न 3.
उन्हें बताया गया है कि उनकी सेना और रथ………….. लौट रहे हैं।
उत्तर-
विजय प्राप्त कर
प्रश्न 4.
नागरिकों में से ज्यादातर को पता नहीं है कि किस युद्ध में उनकी सेना और……….. थे, युद्ध कि बात पर था।
उत्तर-
शासक गए
प्रश्न 5.
यह भी नहीं कि शत्रु कौन था पर वे………… की तैयारी में व्यस्त हैं।
उत्तर-
विजय पर्व मनाने
प्रश्न 6.
उन्हें सिर्फ इतना पता हैं कि…….. हुई।
उत्तर-
उनकी विजय
हार-जीत अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
अशोक वाजपेयी की कविता का नाम है :
उत्तर-
हार–जीत।
प्रश्न 2.
हार–जीत कैसी कविता है?
उत्तर-
गद्य कविता है।
प्रश्न 3.
उत्सव कौन मना रहे हैं?
उत्तर-
शासक वर्ग।
प्रश्न 4.
हार–जीत कविता में किसका प्रश्न उठाया गया है?
उत्तर-
हार और जीत का।
हार-जीत पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
उत्सव कौन और क्यों मना रहे हैं?
उत्तर-
किसी शहर विशेष में रहने वाले सामान्य नागरिक उत्सव मना रहे हैं। उनके उत्सव मनाने के कारण निम्नलिखित हैं
- कुछ लोगों द्वारा यह बता दिया गया है कि उनकी सेना ने विजय प्राप्त कर ली है और वह युद्ध क्षेत्र से वापस आ रही है।
- उन्हें इस युद्ध की वास्तविक स्थिति का ज्ञान नहीं है।
- उन्हें युद्ध में मारे गए लोगों के विषय में कुछ भी पता नहीं है।
- सच बोलने वाले अपनी जिम्मेदारी का उचित निर्वहन नहीं कर रहे हैं।
प्रश्न 2.
नागरिक क्यों व्यस्त हैं? क्या उनकी व्यस्तता जायज है?
उत्तर-
नगारिक इसलिए व्यस्त है क्योंकि
- उन्हें उत्सव मनाने के लिए नाना प्रकार की तैयारियाँ करनी है।
- उन्हें विजयी भाव प्रदर्शित करते हुए विजयी सेना तथा शासक का स्वागत करना है।
- उन्हें युद्ध में गए लोगों की संख्या का पता है पर लौटकर आने वालों का ठीक–ठीक पता नहीं है।
- अर्थात् युद्ध में कितने लोग मारे गए इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। उन्हें तो बस सुखद परन्तु असत्यपूर्ण समाचार ही ज्ञात हुआ है।
उनकी व्यस्तता जायज नहीं है क्योंकि उन्हें वास्तविक स्थिति का पता नहीं है। उन्हें नहीं है पता है कि वास्तव में उनकी जीत नहीं बल्कि हार हुई है।.
प्रश्न 3.
किसकी विजय हुई सेना की, कि नागरिकों की? कवि ने यह प्रश्न क्यों खड़ा किया है? यह विजय किनकी है? आप क्या सोचते हैं? बताएँ।
उत्तर-
किसी की विजय नहीं हुई। विजय प्रतिपक्ष की हुई। कवि ने देश की वस्तुस्थिति से अवगत कराया है। कवि के विचारों पर चिन्तन करते हुए यही बात समझ में आती है कि झूठ–मूठ के आश्वासनों एवं भुलावे में हमें रखा गया है। यथार्थ का ज्ञान हमें नहीं कराया जाता। यानि सत्य से दूर रखने का प्रयास शासन की ओर से किया जा रहा है।
प्रश्न 4.
‘खेत रहनेवालों की सूची अप्रकाशित है।’ इस पंक्ति के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है? कविता में इस पंक्ति की क्या सार्थकता है? बताइए।
उत्तर-
‘खेत रहनेवालों की सूची अप्रकाशित है’ के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि युद्ध में दोनों पक्षों के अनेक वीर मारे जाते हैं। विजय के मद में चूर सेना इन मृत सैनिकों या लोगों की परवाह नहीं करती। वह भूल जाती है कि इस विजय में उनका भी अप्रत्यक्ष योगदान है। उनके बिना विजय मिलनी संभव न थी।
इस पंक्ति की कविता में यह सार्थकता है कि विजय की खुशी में चूर विजयोत्सव मना रहे लोगों को. मरे हुए लोगों तथा सैनिकों का जरा भी ध्यान नहीं है। उनके आश्रितों पर क्या बीत. रही है, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। वे तो बस विजयोत्सव मनाने में व्यस्त है।
वास्तव में शासक अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए जनता के जीवन का मोल नहीं समझता है। वह बनावटी राष्ट्रीयता का नारा देकर पूरे राष्ट्र को युद्ध की भीषण ज्वाला में झोंक देता है। वह तो अपना अधिनायकत्व बनाये रखने के लिए युद्ध लड़ते हैं। इस पंक्ति के माध्यम से सत्ता वर्ग की सत्तालोलुप प्रवृत्ति का पर्दाफाश होता है।
प्रश्न 5.
सड़कों को क्यों सींचा जा रहा है?
उत्तर-
सड़कों को इसलिए सींचा जा रहा है ताकि उनकी धूल–गुबार समाप्त हो सके और युद्ध क्षेत्र से छत्र चंवर और गाजे–बाजे के साथ जो विजयी राजा आ रहे हैं उन पर धूल न उड़े। उन्हें पहले जैसा बनाया जा सके। अर्थात् युद्ध के कारण उनकी टूटी–फूटी हालत में सुधार लाया जा सके।
प्रश्न 6.
बूढ़ा मशकवाला क्या कहता है और क्यों कहता है?
उत्तर-
बूढ़ा मशकवाला कहता है कि–
- एक बार फिर हमारी हार हुई है।
- गाजे–बाजे के साथ विजय नहीं हार लौट रही है।
- ऐसी विजय पर खुश होकर जश्न मनाने का कोई औचित्य नहीं है वह।
ऐसा इसलिए कहता है क्योंकि–
- बूढा अनुभवी व्यक्ति है। उसे जीवन के यथार्थ का अनुभव है।.
- उसे पता है कि समाज में घृणा, द्वेष, हत्या, लूटपाट, दंगे, आतंकवाद आदि मानवता के विनाश के कारण बने हुए हैं। इन पर विजय पाए बिना विजय का जश्न मनाना अनुचित है।
- लोगों को मरने वालों की कोई जानकारी न देकर वास्तविक स्थिति पर पर्दा डाला जा रहा है।
- उसकी बातों में सच्चाई तो है पर उसे कोई सुनना नहीं चाहता है।
प्रश्न 7.
बूढा, मशकवाला किस जिम्मेवारी से मुक्त है? सोचिए, अगर वह जिम्मेवारी उसे मिलती तो क्या होता?
उत्तर-
बूढ़ा मशकवाला देश की राजनीति से वंचित है। अगर उसे जिम्मेवारी मिली होती तो हार को हार कहता जीत नहीं कहता। वह सत्य प्रकट करता। उसे तो मात्र सड़क सींचने का काम सौंपा गया है। यही उसकी जिम्मेवारी है। सत्य लिखने और बोलने की मनाही है। इसलिए वह मौन है और अपनी सीमाओं के भीतर ही जी रहा है। वह विवश है, विकल है फिर भी दूसरे क्षेत्र में दखल नहीं देना केवल सींचने से ही मतलब रखता है। इसमेकं बौद्धि वर्ग की विवशता झलकती है। अगर उसे सत्य कहने और लिखने की जिम्मेवारी मिली होती तो राष्ट्र की यह स्थिति नहीं होती। झूठी बातों और झूठी शान में जश्न नहीं मनाया जाता। जीवन के हर क्षेत्र में अमन–चैन, शिक्षा–दीक्षा, विकास की धारा बहती। अबोधता ओर अंधकार में प्रजा विवश बनकर नहीं जीती।
प्रश्न 8.
‘जिन पर है वे सेना के साथ ही जीतकर लौट रहे हैं जिन किनके लिए आया है? वे सेना के साथ कहाँ से आ रहे हैं? वे सेना के साथ क्यों थे? वे क्या जीतकर लौटे हैं? बताएँ।
उत्तर-
इन पंक्तियों में ‘जिन’ नेताओं के लिए प्रयोग हुआ है। वे लड़ाई के मैदान से लौट रहे हैं। वे सेना के साथ इसलिए हैं कि सेना सच न बोले। वे हारकर लौटे हैं। इन पंक्तियों में नेताओं के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है। उनका जीवन–चरित्र कितना भ्रम में डालनेवाला है। कथनी–करनी में कितना अंतर है? झूठी प्रशंसा और अविश्वसनीय कारनामों के बीच उनका समय कट रहा है। उनके व्यवहार और विचार में काफी विरोधाभास है। तनिक समानता और स्वच्छता नहीं दिखायी पड़ती।
प्रश्न 9.
गद्य कविता क्या है? इसकी क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर-
दैनदिन जीवन अनुभवों की धरती से बोलचाल बातचीत और सामान्य मन:चिन्तन के रूप में उगा हुआ, विवरणधर्मी और चौरस कविता गद्य कविता है। इस कविता की विशेषता ये होती हैं कि सबसे पहले यह कविता विचार कविता होती है। एक–एक शब्द के कई अर्थ परत–दर–परत खुलते जाते हैं। इस प्रकार की कविता में जीवनानुभव की बात भोगे हुए यथार्थ मानों सामने दिखलाई पड़ती है। क्योंकि ये वर्णनात्मक होती हैं। इनकी भाषा बोल–चाल से सम्पृक्त होने के कारण उसमें स्थानीयता का गहरा रंग भी झलकता है।
प्रश्न 10.
कविता में किस प्रश्न को उठाया गया है? आपकी समझ में इसके भीतर से और कौन से प्रश्न उठते हैं?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में देश की ज्वलन्त समस्याओं की ओर कवि ने ध्यान आकृष्ट किया। है। इस देश की जनता अबोध और चेतनाविहीन है। वह अंधविश्वासों, अफवाहों में जी रही है।
सत्य से कोसों दूर नीति–नियम हैं। सिद्धान्त और व्यवहार में काफी असमानता है।
कवि ने अपनी कविताओं के माध्यम से जीवन की विसंगतियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। जनता की हालत दयनीय है। श्रमिक वर्ग कष्ट में जी रहा है। बौद्धिक वर्ग संकट मेकं जी , रहा है। उसे विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं मिली है। संस्कृति पर खतरा दिखायी पड़ता है। शासक वर्ग बेपरवाह मौज–मस्ती जश्न में अपना समय बीता रहा है और नागरिक भूख की. ज्वाला में तड़प रहा है। सुरक्षा देनेवाले भी गैर जिम्मेवार है। झूठे–मूठे भुलावा में सभी लोग जी रहे हैं। सत्य से प्रजा को दूर रखने की कोशिश हो रही है। बौद्धिक वर्ग सर्वाधिक संकट में जी रहा है। वह राष्ट्र निर्माण में संकल्पित होकर तो लगा है लेकिन उचित सम्मान और स्थान नहीं मिलता। इतिहास हम भूल रहे हैं। दिग्भ्रमित होकर भटकाव की स्थिति में जी रहे हैं।
हार-जीत भाषा की बात।
प्रश्न 1.
हार–जीत में कौन समास है?
उत्तर-
हार–जीत = हार और जीत–द्वन्द्व समास।
प्रश्न 2.
ज्यादातर में ‘तर’ प्रत्यय है, ‘तर’ प्रत्यय से पाँच अन्य शब्द बनाएँ।
उत्तर-
कमतर, लघुतर, अधिकतर, निम्नतर, मेहतर।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित के पर्यायवाची शब्द चुनें
- युद्ध–जंग, फसाद, रण, लड़ाई, वार, संग्राम, समर, कलह।
- सेना–वाहिनी, लश्कर, सैन्य।
- शत्रु–अप्रिय, अरिष्ट, दुश्मन, द्रोही।
- सड़क–पथ, रास्ता, राह, पंथ, मार्ग, डगर।
- रोशनी–प्रकाश, उजाला, ज्योति, उजियाला।
- उत्सव–जश्न, त्योहार, पर्व, महोत्सव।
- शहर–नगर, पुर, पुरी, टाउन, स्थान, नगरी।
- विजय–जय, जीत, फतह, सफलता।
- हार–पराजय, पराभव, शिकस्त, नाकामयाबी।
प्रश्न 4.
उत्पत्ति की दृष्टि से निम्नलिखित शब्दों की प्रकृति बताएँ। रोशनी, सड़क, अवकाश, रथ, सिर्फ, सच, बूढ़ा।
उत्तर-
- रोशनी – फारसी
- सड़क – अरबी
- अवकाश – संस्कृत
- रथ – संस्कृत
- सेना – संस्कृत
- सिर्फ – फारसी
- नागरिक – संस्कृत
- सच – संस्कृत
- बूढ़ा – हिन्दी
प्रश्न 5.
‘हार’ प्रत्यक्ष से पाँच अन्य शब्द बनाएँ और उसका अर्थ बताएँ।
उत्तर-
- खेवनहार = खेनेवाला।
- पालनहार = पालन करने वाला।
- चन्द्रहार = एक तरह का कंठहार।
प्रश्न 6.
‘विजय पर्व’ में कौन समास है?
उत्तर-
विजय पर्व = विजय का पर्व (षष्ठी तत्पुरुष समास)
प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों से सर्वनाम चुनें एवं यह बताएँ कि वे किस सर्वनाम के उदाहरण हैं?
(क) किसी के पास पूछने का अवकाश नहीं है।
(ख) यह भी नहीं कि शत्रु कौन था।
(ग) वे उत्सव मना रहे हैं।
(घ) उन्हें सिर्फ इतना पता है कि उनकी विजय हुई।
उत्तर-
शब्द – सर्वनाम
- किसी के – अनिश्चय वाचक सर्वनाम
- यह भी – निश्चयवाचक सर्वनाम
- कौन – प्रश्नावाचक सर्वनाम
- वे – पुरुषवाचक सर्वनाम
- उन्हें – पुरुषवाचक सर्वनाम
- उनकी – पुरुषवाचक सर्वनाम (अन्य पुरुष)
हार–जीत कवि परिचय अशोक वाजपेयी (1941)
अशोक वाजपेयी का जन्म 16 जनवरी, 1941 ई. को दुर्ग, छत्तीसगढ़ (मध्यप्रदेश) में हुआ था। उनकी माता का नाम निर्मला देवी एवं पिता का नाम परमानन्द वाजपेयी था। उनकी. प्राथमिक शिक्षा गवर्नमेंट हायर सेकेन्ड्री स्कूल में हुई। सागर विश्वविद्यालय से बी. ए. और सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली से अंग्रेजी में एम. ए. किये। वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे तथा महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति पद से सेवानिवृत्ति हुए। वे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हुए जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, दयाविती मोदी कवि शेखर सम्मान प्रमुख है। सम्प्रति वे दिल्ली में रहकर स्वतन्त्र लेखन कर रहे हैं।
अशोक वाजपेयी की तीन दर्जन के लगभग उनकी मौलिक एवं संपादित रचनाएँ प्रकाशित हुई। इनकी निम्नलिखित कविताएँ प्रकाशित हुई–”शहर अब भी संभावना है”, “एक पलंग अनन्त में” “अगर इतने से”, “तत्पुरुष”, “कहीं नहीं वहीं”, बहुरि अकेला, थोड़ी सी जगह, “घास में दुबका आकाश”, आविन्यों, अभी कुछ और समय के पास समय, इबादत से गिरी मात्राएँ, कुछ रफू कुछ थिगड़े, उम्मीद का दूसरा नाम, विवक्षा, “दुख चिट्ठीरसा है” (कविता संग्रह) है।
अशोक वाजपेयी समसामयिक हिन्दी के एक प्रमुख कवि, आलोचक, विचारक, कला मर्मज्ञ, संपादक एवं संस्कृतिकर्मी हैं। उनकी संवेदना भाषा और रचनात्मक चिन्ताओं ने व्यापक पाठक वर्ग का ध्यान आकृष्ट किया। उनकी कविता में वैयक्तिक आग्रह बढ़ने लगे। खुशहाल मध्यवर्ग की अभिरुचियों को तुष्ट करने में उनकी कविता में एक तरह की स्वच्छंदता विकसित हुई। एक समर्थ कवि की पहचान उनकी कविता में कौंधती है, एक ऐसी कवि जिसका मानस विस्तृत है, उदार है; संवेदनायुक्त है और भाषा स्फूर्त, समर्थ, भारहीन और अर्थग्रहिणी है।
कविता का सारांश हिन्दी साहित्य के प्रखर प्रतिभा संपन्न कवि अशोक वाजपेयी की “हार–जीत” कविता अत्यन्त ही प्रामाणिक है। इसमें कवि ने युग–बोध और इतिहास बोध का सम्यक् ज्ञान जनता को. कराने का प्रयास किया है। इस कविता में जन–जीवन की ज्वलन्त समस्याओं एवं जनता की अबोधता, निर्दोष छवि को रेखांकित किया गया है?
कवि का कहना है कि सारे शहर को प्रकाशमय किया जा रहा है और वे यानी जनता जिसे हम तटस्थ प्रजा भी कह सकते हैं, उत्सव से सहभागी हो रहे हैं। ऐसा इसलिए वे कर रहे हैं कि ऐसा ही राज्यादेश है। तटस्थ प्रजा अंधानुकरण से.प्रभावित है। गैर जवाबदेह भी है। तटस्थ जनता को यह बताया गया है कि उनकी सेना और रथ विजय प्राप्त कर लौट रहे हैं लेकिन नागरिक में से अधिकांश को सत्यता की जानकारी नहीं है। उन्हें सही–सही बातों की जानकारी नही है।. किस युद्ध में उनकी सेना और शासक शरीक हुए थे। उन्हें यह भी ज्ञात नहीं था कि शत्रु कौन थे।
विडंबना की बात यह है कि इसके बावजूद भी वे विजय पर्व मनाने की तैयारी में जी–जान से लगे हुए हैं। उन्हें सिर्फ यह बताया गया है कि उनकी विजय हुई है? ‘उनकी’ से आशय क्या है यानी उनकी माने किनकी? यह एक प्रश्न उभरता है। यह भी स्थिति साफ नहीं है कि वे जश्न मनाने में इतना मशगूल हैं कि उन्हें यह भी सही–सही पता नहीं है कि आखिर विजय किसकी हुई–सेना की, शासक की या नागरिकों की कितनी भयावह शोचनीय स्थिति है कि किसी के पास यह फुर्सत नहीं है कि वह पूछे कि आखिर ये कैसे और क्यों हुआ?
वे अपनी निजी समस्याओं में इतना खोए हुए हैं कि मूल समस्याओं की ओर ध्यान ही नहीं जाता, यह उनकी विवशता ही तो है। वह कौन–सी विवशता है, यह भी विवेचना का विषय है। नागरिकों की यह भी सही–सही पता नहीं है कि युद्ध में कितने सैनिक गए थे और कितने विजय प्राप्त कर लौट रहे हैं। खेत रहने वालों यानी जो शहीद हुए हैं उनकी सूची भी नदारत है।
कवि उपरोक्त पंक्तियों पर इतिहास और लोक जीवन की ज्वलंत समस्याओं की ओर अपनी कविताओं के माध्यम से सच्चाई से वाकिफ कराने का प्रयास किया है।
कवि कहता है–इन सारी बातों की जानकारी रखने वाला चाहे कोई साक्षी है तो वह है मशकवाला। वह मशकवाला जिसका काम है मशक के पानी से सड़क को सींचना। मशकवाला कह रहा है कि हम एक बार फिर हार गए हैं और गाजे–बाजे के साथ जीत नहीं हारकर लौट रही है? मूल बात की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। विडंबना है कि मशकवाले की एकमात्र जिम्मेवारी सड़क सींचने भर की है। सच लिखने या बोलने की नहीं। जिनकी हैं वे सेना के साथ जीतकर लौट रहे हैं”. यह एक प्रश्नवाचक चिह्न खड़ा करता है।
प्रस्तुत कविता अत्यन्त ही यथार्थपरक रचना है। कवि सच्चाई से वाकिफ कराना चाहता है। वर्तमान में राष्ट्र और जन की क्या स्थिति है, इस ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। उक्त गद्य कविता में कवि द्वारा प्रयुक्त शासक, सेना, नागरिक और मशकवाला शब्द प्रतीक प्रयोग हैं। शासक वर्ग अपनी दुनिया में रमा हुआ है। उसमें उसके अन्य प्रशासकीय वर्ग भी सम्मिलित है। नागरिकों की स्थिति बड़ी ही असमंजस वाली है। मशकवाला पूरे घटनाक्रम की सही जानकारी रखता है लेकिन उस पर बंदिशें हैं कि वह सत्य से अवगत किसी को नहीं कराये। इसे सख्त हिदायत है न लिखने की, न बोलने की।
उक्त कविता में कवि ने पूरे देश की जो वस्तुस्थिति है, उससे अवगत कराने का काम किया है–राज्यादेश के कारण तटस्थ प्रजा जश्न मनाने में मशगूल है। प्रजा चेनता के अभाव में गैर जिम्मेवार भी है। उसे यह भी ज्ञान नहीं है कि उसकी जिम्मेवारी, कर्तव्य और अधिकार क्या है? नागरिकों को पेट की चिन्ता है। नागरिक स्वार्थ में अंधा है वे अपनी स्वार्थपरता में इतना अंधे हैं कि राष्ट्र की चिन्ता ही नहीं याद आती। यह एक प्रश्न खड़ा करता है हमारे राष्ट्र के समक्ष, जबतक जना सुशिक्षित प्रज्ञ एवं चेतना संपन्न नहीं होगी तबतक राष्ट्र विकसित और कल्याणकारी नहीं हो सकता।
कवि कहता है कि आजादी के लिए जिन्होंने अपने को बलिवेदी पर चढ़ाया आज उनका इतिहास ही नहीं है। उनकी सूची अपूर्ण है। उनकी शहादत को देश और शासक भूल गए हैं। शहीदों की कुरबानी के महत्व को तरजीब नहीं दी जाती है। उधर किसी का न ध्यान जाता है न श्रद्धा ही है। बड़ी ही त्रासद स्थिति है।
श्रमिकों/मजदूरों/किसानों की दीन–दशा की ओर भी कवि ने ध्यान आकृष्ट किया है। वे सड़क सींचते हैं यानी अपने श्रम द्वारा राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं लेकिन आजादी के इतने दिनों बाद उनकी सामाजिक, आर्थिक दशा सुधरी क्या? वे जीवन बोध से अवगत हुए क्या? अगर हुआ होता तो वे ऐसा नहीं करते यानि गैर जवाबदेही और अंधभक्त होकर शासनादेश के अविवेकपूर्ण आदेश को नहीं मानते।
किसकी जीत हुई या हार यह भी सोचने की बात है। चिन्तन करने की बात है। जीवन के यथार्थ और देश की वास्तविक समस्याओं की ओर से हमारा ध्यान हटकर झूठमूठ के दिखावे, ठाकुरसुहाती बातों के द्वारा जश्न मनाने की तैयारी यह लोकतंत्र के लिए खिलवाड़ नहीं तो क्या है? देश की प्रजा राजनीतिक चेतना से चर्चित है। वह राजनैतिक अधिकारों की बातें क्या समझे या जानें। उसे तो भूख के आगे कुछ सूझता नहीं।
अबोधता और अज्ञानता में पल रही प्रजा सत्य से कोसों दूर है। अगर उसे राजनीति की सही शिक्षा मिलती तो वह जिम्मेवारी से भागता नहीं तथा हार को, हार कहती जीत नहीं कहती। यानि सत्य के लिए संघर्ष करती, आन्दोलन करती। अपने अधिकारों के लिए सचेत रहती। अपनी अबोधता और विवशता के कारण ही वह दूसरे क्षेत्रों में दखल नहीं देती।।
इस कविता में देश के नेताओं के चरित्र को भी उद्घाटित किया गया है। नेताओं के चारित्रिक गुणों का पर्दाफाश किया जाता है। लड़ाई के मैदान से वे लौटे हैं लेकिन सेना के साथी। इसका तात्पर्य है कि सेना सच बोलकर भेद नहीं खोल दे कि वे हार कर लौट रहे हैं और झूठी प्रशंसा में जीत का प्रचार कर रहे हैं। उक्त गद्य कविता में कवि का कहना है कि देश की वास्तविक स्थिति से अवगत नहीं कराया जा रहा है। झूठे–प्रचारतंत्र के द्वारा यह शासन चल रहे हैं। मशकवाला बुद्धिजीवी वर्ग का प्रतीक है। बुद्धिजीवियों के आगे भी संकट है–क्या वे सत्य के उद्घाटन में स्वयं को सक्षम पाते हैं?
कई प्रकार की बंदिशें हैं–सत्य कहने, लिखने की। जनता मूकदर्शक बनकर सही स्थितियों को देख रही है किन्तु उसे ज्ञान ही नहीं है कि ऐसा क्यों हो रहा है, क्योंकि अपनी विवशता में वह अभिशप्त है। घोर दुर्व्यवस्था, प्रपंच, झूठे आडम्बरों एवं दकियानूसी बातों में समय व्यतीत हो रहा है। लोक जीवन में अराजकता, अशिक्षा, बेकारी, बेरोजगारी भवाह रूप से परिव्याप्त है। उसे और किसी का भी ध्यान नहीं आ रहा है।
शासक वर्ग को इन समस्याओं से निजात दिलाने के लिए न कोई उपाय है और न वे हृदय से इसे चाहते हैं। वे तो अपने शान–शौकत, जय–जयकार में लीन है। प्रजा मौन है। बुद्धिजीवी विवश है लोकतंत्र खतरे में है। राष्ट्रीय चेतना सुषुप्तावस्था में है। सांस्कृति और राजनीतिक संकट के आवरण में देश घिरा हुआ है। अनेक सामाजिक विसंगतियों एवं समस्याओं से जन–जलवन त्रस्त है। कवि व्यग्र है, चिन्तित है। इन समस्याओं से कैसे मुक्ति मिले।
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