BSEB Class 12 Hindi हिमालय का संदेश Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Hindi हिमालय का संदेश Book Answers |
Bihar Board Class 12th Hindi हिमालय का संदेश Textbooks Solutions PDF
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Board | BSEB |
Materials | Textbook Solutions/Guide |
Format | DOC/PDF |
Class | 12th |
Subject | Hindi हिमालय का संदेश |
Chapters | All |
Provider | Hsslive |
How to download Bihar Board Class 12th Hindi हिमालय का संदेश Textbook Solutions Answers PDF Online?
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BSEB Class 12th Hindi हिमालय का संदेश Textbooks Solutions with Answer PDF Download
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प्रश्न 1.
अर्थ स्पष्ट करें
वृथा मत लो भारत का नाम
मानचित्र पर जो मिलता है, नहीं देश भारत है।
भू पर नहीं, मनों में हो, बस कहीं शेष भारत है।
भारत एक स्वप्न, भू को ऊपर ले जाने वाला
भारत एक विचार, स्वर्ग को भू पर लाने वाला।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियों में, राष्ट्रकवि कवि रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं कि भारत का नाम व्यर्थ बदनाम न करो संसार के मानचित्र पर जो भारत मिलता है वह केवल एक भौगोलिक रूप है। भारत को केवल भूमि पर नहीं बल्कि मनों में स्थापित करना चाहिए। वह कहते हैं कि भारत का एक स्वप्न है जो भूवासियों को उन्नति के मार्ग पर ले जाने वाला है। उसी प्रकार भारत स्वर्ग को भूमि पर लाने वाला एक विचार का नाम है। इसकी भावनाओं और दर्शनों में मनुष्यों को जगाने की शक्ति है।
प्रश्न 2.
राष्ट्रकवि “दिनकर” ने हिमालय का संदेश किन शब्दों में दिया है?
उत्तर-
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने ‘हिमालय का संदेश’ शीर्षक कविता के माध्यम से एक राष्ट्र के रूप में भारत की चेतना और संवेदना से युक्त व्यक्तित्व से हमारा साक्षात्कार कराया है। भारत मात्र भौगोलिक सत्ता नहीं है। उसका वास्तविक स्वरूप प्रेम, ऐक्य और त्याग की साधना में प्रकट होता है। भारतीयों के त्याग, माधुर्यपूर्ण निष्काम व्यवहार से मानवता फैल रही है। इन्हीं आदर्शों के कारण संसार में भारत का मान और सम्मान बढ़ा है।
प्रश्न 3.
अर्थ स्पष्ट करें
भारत जहाँ, वहाँ जीवन-साधना नहीं है भ्रम में,
धाराओं को समाधान है मिला हुआ संगम में।
जहाँ त्याग माधूर्यपूर्ण हो, जहाँ भोग निष्काम
समरस हो कामना, वहीं भारत को करो प्रणाम।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियों में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने भारत के आदर्शों को प्रस्तुत करते हुए यह याद दिलाया है कि भारत में विषमता, विभिन्नता के बीच एकता, अखण्डता, प्रेम और अहिंसा विकसित हो रही है। भारत में जीवन साधना के आदर्श मिलते हैं। यहाँ भ्रम और भूल नहीं है। बल्कि त्याग, माधुर्यपूर्ण और निष्काम सेवाएँ मिलती हैं। अच्छे विचार और व्यवहार भारतीयों की जीवन शैली रही है। नैतिकता का पाठ भारत से विश्व के अनेकों देशों में पहुँचा है। हमें भारत के मान-सम्मान को हमेशा बढ़ाना चाहिए।
हिमालय का संदेश अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
“दिनकर” के अलावा और किस एक हिन्दी कवि के साथ राष्ट्रकवि की उपाधि जुड़ती है?
उत्तर-
मैथिली शरण गुप्त।
प्रश्न 2.
‘दिनकर’ जी को किस काव्य-पुस्तक का ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था?
उत्तर-
उर्वशी।
प्रश्न 3.
‘दिनकर’ का संबंध हिन्दी की किस धारा से है?
उत्तर-
छायावादोत्तर स्वच्छंद धारा।
प्रश्न 4.
‘दिनकर’ ने अपनी किस रचना में कामाध्यात्मक की व्याख्या की है?
उत्तर-
उर्वशी।
प्रश्न 5.
दिनकर जी का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
1908 ई. में
प्रश्न 6.
‘दिनकर’ की मृत्यु कब हुई?
उत्तर-
1974 ई. में
प्रश्न 7.
“संस्कृति के चार अध्याय” किसकी रचना है?
उत्तर-
रामधारी सिंह दिनकर की।
प्रश्न 8.
“दिनकर” ने भारत-चीन युद्ध के काल में भारतीय जनमानस को झकझोरने के लिए कौन-सी कविता लिखी थी?
उत्तर-
परशुराम की प्रतीक्षा।
प्रश्न 9.
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर-
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म बेगूसराय जिले के सिमरिया गाँव में हुआ था।
प्रश्न 10.
दिनकर जी का भारत किस रूप में प्रकट होता है?
उत्तर-
दिनकर जी का भारत मात्र भौगोलिक सत्ता नहीं है, उसका वास्तविक स्वरूप प्रेम, ऐक्य और त्याग की साधना में प्रकट होता है।
प्रश्न 11.
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के नाम के आगे कौन-सा शब्द लगता है?
उत्तर-
राष्ट्रकवि।
प्रश्न 12.
‘वृथा मत लो भारत का नाम’ दिनकर की किस कविता की पहली पंक्ति है?
उत्तर-
हिमालय संदेश।
प्रश्न 13.
विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाला कौन-सा देश है?
उत्तर-
भारतवर्ष।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जीवन परिचय प्रस्तुत करें।
उत्तर-
भारतीय संस्कृति की विराट चेतना, मानव मूल्यों और उपलब्धियों के ओजस्वी गायक दिनकर का जन्म 1908 ई. में बेगूसराय के सिमरिया नामक गाँव में हुआ। दिनकर जी के पिता श्री रवि सिंह कुलीन तो थे पर एक सामान्य मध्यमवर्गीय कृषक परिवार के ही मुखिया थे। आरंभिक शिक्षा गाँव की ही पाठशाला में लेने के उपरांत दिनकर जी ने मोकामा हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की तथा पटना विश्वविद्यालय से इतिहास प्रतिष्ठा के साथ स्नातक की उपाधि पाई।
शिक्षा पूरी करने के उपरांत दिनकर जी सर्वप्रथम वरबीघा विद्यालय में अध्यापक हुए। सन् 1950 ई. में लंगट सिंह कॉलेज, मुजफ्फरपुर में हिन्दी विभागाध्यक्ष होने के पूर्व वे सहकारिता तथा जनसंपर्क विभाग में क्रमशः रजिस्ट्रार तथा निदेशक भी रह चुके थे। उसके बाद भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति बनाये गये थे। सन् 1952 ईस्वी में वे राज्य सभा के सदस्य मनोनीत हुए, जहाँ सन् 1964 ईस्वी तक रहे। सन् 1965-1971 ई. तक उन्होंने भारत सरकार के – हिन्दी सलाहकार के रूप में कार्य किया उसके बाद सन् 1974 ईस्वी में मृत्यु से पूर्व उन्होंने स्वतंत्र लेखन, चिन्तन तथा भ्रमण में अपने को सक्रिय रखा।
बेगूसराय जिले के सिमरिया नामक गाँव में, राष्ट्रीयता के उद्गार कवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 1908 ई. में हुआ था।
दिनकर जी का व्यक्तित्त्व बहुआयामी था। एक सामान्य परिवार के मुखिया और अनिश्चित आय वाला व्यक्ति होने के कारण अनेक बार बहुत बड़ी-आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। सन् 1934 ई. से उन्हें कवि के रूप में प्रसिद्धि मिलने लगी थी और अंग्रेजी सरकार . की वक्र दृष्टि भी उन पर पड़ने लगी थी। चार वर्षों में लगभग बाइस-तेईस बार उन्हें तबादले का शिकार होना पड़ा था, पर इस दौरान स्थान-परिवर्तन के लिए मिलने वाले अवकाशों का उपयोग वे प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल के सान्निध्य में किया करते थे।
डॉ. जायसवाल उन्हें पत्रवत् स्नेह देते थे। र सन् 1933 ईस्वी में लिखित “हिमालय” शीर्षक कविता से दिनकर जी को विशेष प्रसिद्धि मिली। स्वयं दिनकर जी ने स्वीकार किया है कि इस कविता के बाद ही वे कवि-रूप में स्थापित हुए, यानी उन्हें गंभीरता से लिया जाने लगा। उसके बाद से रश्मिरथी, कुरूक्षेत्र और उर्वशी जैसे प्रबंधों तथा रसवंती, नील कुसुम, सामधेनी, दिल्ली आदि स्फुट कविताओं के संग्रहों द्वारा उन्होंने हिन्दी काव्य को अकूत समृद्धि दी। “परशुराम की प्रतीक्षा” कविताओं द्वारा उन्होंने भारत चीन-युद्ध के काल में भारतीय जनमानसं को झकझोर कर रख दिया था।
पद्य के क्षेत्र में दिनकर जी ने अपनी लेखनी की प्रौढ़ता का खूब परिचय दिया है। “संस्कृति .. के चार अध्याय” कूल रूप से इतिहास ग्रंथ है, पर किसी कवि द्वारा लिखी गयी शायद आज तक वह अपने ढंग की अकेली पुस्तक है। “मिट्टी की ओर” काव्य की भूमिका और पंत, प्रसाद, मैथिली शरण जैसी पुस्तकों से स्पष्ट हो जाता है कि दिनकर जी एक प्रौढ़ पद्य लेखक भी थे और समालोचना के क्षेत्र में भी उन्होंने सार्थक भागीदारी निभायी थी।
दिनकर जी ने अपने जीवन में अनेक उतार-चढ़ावों के दिन गुजारे थे। पर अपने तेवर, सृजनशीलता तथा अध्ययन के स्तर पर कोई समझौता नहीं किया था। उस महान राष्ट्रकवि को राष्ट्र ने विभिन्न अलंकारों से सम्मानित भी किया था। सन् 1960 ईस्वी में उन्हें पद्मभूषण की उपाधि भी प्रदान की गयी थी और सन् 1962 ईस्वी में भागलपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डी. लिट की उपाधि से सम्मानित किया था। क्रमशः सन् 1953 ईस्वी और 1973 ईस्वी में दिनकर जी को उनकी दो कृतियाँ, “संस्कृति के चार अध्याय” और “उर्वशी” पर साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे। मैथिलीशरण गुप्त के बाद हिन्दी के एकमात्र कवि हैं। जिन्हें। राष्ट्र कवि के रूप में ख्याति मिली। उनकी मृत्यु 1974 ईस्वी में हुई।
दिनकर की प्रमुख कृतियाँ में रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, सामधेनी, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी और उर्वशी के नाम विशेष रूप से स्मरणीय हैं।
प्रश्न 2.
“हिमालय का संदेश” शीर्षक कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर-
राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह “दिनकर” एक मुक्त काव्यालोक के निर्माता थे। उन्होंने। कविताओं के माध्यम से सामाजिक और सामयिक प्रश्नों और चिन्ताओं को प्रस्तुत किया है।
दिनकर जी ने “हिमालय का संदेश” शीर्षक कविता के माध्यम से एक राष्ट्र के रूप में भारत की चेतना और संवेदना से युक्त व्यक्तित्त्व से हमारा साक्षात्कार कराया है। भारत मात्र एक भौगोलिक सत्ता नहीं है, उसका वास्तविक स्वरूप प्रेम, ऐक्य और त्याग की साधना में प्रकट होता है।
यह कविता 1933 ईस्वी में लिखी गई। स्वयं दिनकर जी ने स्वीकार किया है कि इस कविता। के बाद ही वे कवि रूप में स्थापित हुए।
वह कहते हैं कि संसार के मानचित्र पर जो भारत मिलता है वह केवल एक भौगोलिक रूप है। भारत को केवल भूमि पर नहीं बल्कि मनों में स्थापित करना चाहिए। भारत की महानताओं और विशेषताओं का वर्णन करते हुए कहते हैं कि भारत एक स्वप्न है जो भूवासियों को ऊपर ले जानेवाला है। इसी प्रकार भारत स्वर्ग की भूमि पर लानेवाला एक विचार का नाम है। इसकी भावनाओं और दर्शनों में मनुष्यों को जागने की शक्ति है। भारत का आदर्श चरित्र एक जलज जगाती है।
भारत में विषमता, विभिन्नता के बीच एकता, अखण्डता, प्रेम और अहिंसा विकसित हो रही है। भारतीयों के त्याग, माधुर्यपूर्ण और निष्काम व्यवहार से मानवता फैल रही है। इन्हीं आदर्शों के कारण संसार में भारत का मान-सम्मान बढ़ा है। कवि रामधारी सिंह दिनकर ने भारत की चेतना और संवेदना को हिमालय का संदेश बनाकर प्रस्तुत करते हुए भारतवासियों से कहते हैं कि भारत के मान, मर्यादा और सम्मान को बढ़ाते रहना चाहिए। भारत का नाम व्यर्थ बदनाम होने से बचाना चाहिए।
हिमालय का संदेश। कवि-परिचय- रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (1908-1974)
भारतीय संस्कृति की विराट चेतना, मानव मूल्यों और उपलब्धियों के ओजस्वी गायक दिनकर का जन्म 1908 ई. में बेगूसराय के सिमरिया नामक गाँव में हुआ। उन्होंने छायावादी काव्यधारा से फैली धुंध को काटकर एक मुक्त काव्यालोक का निर्माण किया।
छायावाद के संगीत निकुंज से कविता को जीवन के खुरदरे धरातल पर प्रतिष्ठा करने वाले दिनकर एक बहुत बड़े काव्य के रचयिता हैं। पद्य और पद्य दोनों में ही ‘दिनकर’ जी की लेखनी बड़ी समृद्ध रही है। एक ओर जहाँ उनका अध्ययन गहरा और व्यापक है वहीं चिंतन भी मौलिक है और अभिव्यक्ति तो सशक्त है ही विद्या की दृष्टि से उन्होंने कविता के साथ-साथ इतिहास, समालोचना, यात्रावृत्तांत संस्मरण, डायरी, रम्यं रचना और रेडियो नाटक भी लिखे हैं।
दिनकर भारतीय संस्कृति के व्याख्याता रहे हैं। भारतीय संस्कृति के चार अध्याय में उन्होंने आर्य संस्कृति की विशद व्याख्या की है। दिनकर जी को अपने राष्ट्रस्वरूप की गहरी पहचान है वे उन राष्ट्रीय स्थानों और चरित्रों को अपने काव्य में बार-बार प्रतीक्षात्मक प्रयोग करते हैं जो हमारी सांस्कृतिक चेतना और आदर्शों के आधार स्तंभ हैं। दिनकर जी के प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
स्फुटकाव्य-
- रेणुका,
- हुंकर,
- रसवन्ती,
- द्वन्द गीत,
- बापू,
- परशुराम की प्रतीक्षा,
- नीम के पत्ते,
- नील कुसुम,
- आत्मा की आँखें आदि।
- रश्मिरथी महाकाव्य,
- उर्वशी।
सम्पादित काव्य संकलन-
- चक्रवात,
- संचेतना,
- रश्मि लोक,
- दिनकर की सूक्तियाँ,
- दिनकर के गीत,
सांस्कृतिक इतिहास–
- संस्कृति के चार अध्याय,
- हमारी सांस्कृतिक एकता,
- भारत की सांस्कृतिक कहानी।
साहित्यालोचना-
- मिट्टी की ओर,
- अद्धनारीश्वर,
- रेती के फूल,
- चेतना की शिखा,
- आधुनिक बोध,
- बट पीपल आदि।
यात्रावृत्तांत-
- देश-विदेश,
- मेरी यात्राएँ।
संस्मरण-
- लोकदेव नेहरूं,
- संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ।
- डायरी-दिनकर की डायरी।
- रम्य रचना-उजली आग।
- रेडियो नाटक-हे। राम
बाल साहित्य-
- मिर्च का मजा,
- सूरज का ब्याज,
- धूप-छाँह,
- चित्तौड़ का साका।
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