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Friday, June 17, 2022

BSEB Class 12 Hindi छप्पय Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Hindi छप्पय Book Answers

BSEB Class 12 Hindi छप्पय Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Hindi छप्पय Book Answers
BSEB Class 12 Hindi छप्पय Textbook Solutions PDF: Download Bihar Board STD 12th Hindi छप्पय Book Answers


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Bihar Board Class 12th Hindi छप्पय Textbooks Solutions PDF

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Bihar Board Class 12th Hindi छप्पय Books Solutions

Board BSEB
Materials Textbook Solutions/Guide
Format DOC/PDF
Class 12th
Subject Hindi छप्पय
Chapters All
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छप्पय वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

प्रश्न 1.
नाभादास का जन्म कब हुआ था?
(क) 1570 ई. (अनुमानित)
(ख) 1560 ई.
(ग) 1575 ई.
(घ) 1565 ई.
उत्तर-
(क)

प्रश्न 2.
नाभादास किसके शिष्य थे?
(क) रामानंद
(ख) तुलसीदास
(ग) महादास
(घ) अग्रदास
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 3.
कबीरदास किस शाखा के कवि हैं?
(क) सगुण शाखा
(ख) सर्वगुण शाखा
(ग) निर्गुण शाखा
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 4.
नाभादास जी कि समाज के विद्वान हैं?
(क) दलित वर्ग
(ख) वैश्य वर्ग
(ग) आदिवासी
(घ) संथाल वर्ग
उत्तर-
(क)

प्रश्न 5.
नाभादास जी कैसे संत थे?
(क) विरक्त जीवन जीते हुए
(ख) पारिवारिक जीवन जीते हुए
(ग) मंदिर में रहते हुए
(घ) व्यापारी बनकर रहते हुए
उत्तर-
(क)

प्रश्न 6.
‘भक्तमाल’ किस प्रकार की रचना है?
(क) भक्त चरित्रों की माला
(ख) जीवनी
(ग) नाटक
(घ) संस्मरण
उत्तर-
(क)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
नाभादास सगुणोपारूक…….. कवि थे।
उत्तर-
रामभक्त

प्रश्न 2.
संपूर्ण भक्तमाल’…….. छंद में निबद्ध हैं।
उत्तर-
छप्पय

प्रश्न 3.
छप्पय एक छंद है जो……….. पंक्तियों का गेय पद होता है।
उत्तर-
छः

प्रश्न 4.
नाभादास गोस्वामी तुलसीदास के……. थे।
उत्तर-
समकालीन

प्रश्न 5.
नाभादास जी स्वामी रामानंद की ही शिष्य………. में शिक्षित थे।
उत्तर-
परंपरा

प्रश्न 6.
………. विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए।
उत्तर-
भगति योग यज्ञ व्रतदान भजन बिदु तुच्छ दिखाए।

छप्पय अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘भक्तमाल’ किसकी रचना है?
उत्तर-
नाभादास की।

प्रश्न 2.
नाभादास किसके समकालीन थे?
उत्तर-
तुलसीदास के।

प्रश्न 3.
नाभादास किसके शिष्य थे?
उत्तर-
अग्रदास के।

प्रश्न 4.
नाभादास के अनुसार किसकी कविता को सुनकर कवि सिर झुका लेते हैं?
उत्तर-
सूरदास की।

प्रश्न 5.
नाभादास किस धारा के कवि थे?
उत्तर-
सगुणोपासक रामभक्त धारा।

छप्पय पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
नाभादास ने छप्पय में कबीर की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है? उनकी क्रम सूची बनाइए।
उत्तर-
नाभादास ने कबीर की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है

  • कबीर की मति अति गंभीर और अंत:करा भक्तिरस से सरस था।
  • वे जाति–पाँति एवं वर्णाश्रम का खंडन करते थे।।
  • कबीर ने केवल भगवद्भक्ति को ही श्रेष्ठ माना है।
  • भगवद्भक्ति के अतिरिक्त जितने धर्म हैं, उन सबको कबीर ने अधर्म कहा है।.
  • सच्चे हृदय से सप्रेम भजन के बिना तप, योग, यज्ञ, दान, व्रत सभी को कबीर ने तुच्छ बताया।
  • कबीर ने हिन्दू, मुसलमान दोनों को प्रमाण तथा सिद्धान्त की बातें सुनाई हैं।

प्रश्न 2.
‘मुख देखी नाहीं भनी’ का क्या अर्थ है? कबीर पर यह कैसे लागू होता है?
उत्तर-
कबीरदास सिद्धान्त की बात करते हैं। वे कहते हैं कि मुख को देखकर हिन्दू–मुसलमान होने का अनुमान नहीं लगाया जाता। वहीं उनके हित की बात बताते हैं कि भक्ति के द्वारा ही भवसागर से पार उतरा जा सकता है। वे सभी को भगवद्भक्ति का उपदेश देते हैं।

प्रश्न 3.
सूर के काव्य की किन विशेषताओं का उल्लेख कवि ने किया है?
उत्तर-
कवि ने सूर के काव्य की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है

  • सूर के कवित्त को सुनकर सभी प्रशंसापूर्वक अपना सिर हिलाते हैं।
  • सूर की कविता में बड़ी भारी नवीन युक्तियाँ, चमत्कार, चातुर्य, अनूठे अनुप्रास और वर्णों के यथार्थ की उपस्थिति है।
  • कवित्त के प्रारंभ से अन्त तक सुन्दर प्रवाह दर्शनीय है।
  • तुकों का अद्भुत अर्थ दिखाता है।
  • सूरदास ने प्रभु (कृष्ण) का जन्म, कर्म, गुण, रूप सब दिव्य दृष्टि से देखकर अपनी रसना से उसे प्रकाशित किया।

प्रश्न 4.
अर्थ स्पष्ट करें
(क) सूर कवित्त सुनि कौन कवि, जो नहिं शिरचालन करै।
(ख) भगति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए।
उत्तर-
कवि कहता है कि ऐसा कवि कौन है जो सूरदास जी का कवित्त सुनकर प्रशंसापूर्वक अप… सीस न हिलाये।

(ख) कबीर का कहना है कि भक्ति के विमुख जितने भी धर्म हैं उन सबको अधर्म कहा जाना चाहिए। अर्थात् प्रभुभक्ति या भगवद्भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ है। इसके अतिरिक्त सब व्यर्थ है।

प्रश्न 5.
‘पक्षपात नहीं वचन सबहि के हित की भाषी।’, इस पंक्ति में कबीर के किस गुण का परिचय दिया गया है?
उत्तर-
पक्षपात नहीं वचन सबहि के हित की भाषी’ से दर्शाया गया है कि कबीर हिन्दू, मुसलमान, आर्य, अनार्य में कोई भेद नहीं रखते हैं अपितु सबके हित की बात करते हैं। वे सिद्धान्तवादी हैं और सिद्धान्तों को लेकर आगे बढ़ते हैं।

प्रश्न 6.
कविता में तुक का क्या महत्त्व है? इन छप्पयों के संदर्भ में स्पष्ट करें।
उत्तर-
कविता में ‘तुक’ का अर्थ अन्तिम वर्गों की आवृत्ति है। कविता के चरणों के अंत में वर्णों का आवृत्ति को ‘तुक’ कहते हैं। साधारणतः पाँच मात्राओं की ‘तुक’ उत्तम मानी गयी है।

संस्कृत छंदों में ‘तुक’ का महत्व नहीं था, किन्तु हिन्दी में तुक ही छन्द का प्राण है।

“छप्पय’–यह मात्रिक विषम और संयुक्त छंद है। इस छंद के छह चरण होते हैं इसलिए इसे ‘छप्पय’ कहते हैं।

प्रथम चार चरण रोला के और शेष दो चरण उल्लाला के प्रथम–द्वितीय और तृतीय–चतुर्थ के योग होते हैं। छप्पय में उल्लाला के सम–विषम (प्रथम–द्वितीय और तृतीय–चतुर्थ) चरणों का यह योग 15 + 13 = 28 मात्राओं वाला ही अधिक प्रचलित है। जैसे–

भक्ति विमुख जो धर्म सु सब अधरमकरि गायो।
योग, यज्ञ, व्रत, दान, भजन बिनु, तुच्छ दिखाओ।

प्रश्न 7.
‘कबीर कानि राखी नहीं’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
कबीरदास महान क्रांतिकारी कवि थे। उन्होंने सदैव पाखंड का विरोध किया। भारतीय षड्दर्शन और वर्णाश्रम को ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया। वर्णाश्रम व्यवस्था का पोषक धर्म षडदर्शन। भारत के प्रसिद्ध छः दर्शन हिन्दुओं के लिए अनिवार्य थे। इनकी ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कबीर ने षड्दर्शन को बुराइयों की तीखी आलोचना की और उनके विचारों की और तनिक भी ध्यान नहीं दिया यानी कानों से सुनकर ग्रहण नहीं किया बल्कि उसके पाखंड की धज्जी–धज्जी उड़ा दी। कबीर ने जनमानस को भी षड्दर्शन द्वारा पोषित. वर्णाश्रम की बुराइयों की ओर सबका ध्यान किया और उसके विचारों को मानने का प्रबल विरोधी किया।

प्रश्न 8.
कबीर ने भक्ति को कितना महत्व दिया?
उत्तर-
कबीर ने अपनी सबदी, साख और रमैनी द्वारा धर्म की सटीक व्याख्या प्रस्तुत की। लोक जगत में परिव्याप्त पाखंड व्याभिचार, मूर्तिपूजा और जाति–पाति. छुआछूत का प्रबल विरोध किया। उन्होंने योग, यज्ञ, व्रत, दान और भजन की नदी या उसके समक्ष उपस्थित किया।

कबीर ने भक्ति में पाखंडवादी विचारों की जमकर खिल्लियाँ उड़ायी और मानव–मानव के बीच समन्वयवादी संस्कृति की स्थापना की। लोगों के बीच भक्ति के सही स्वरूप की व्याख्या की। भक्ति की पवित्र धारा को बहाने उसे अनवरत गतिमय रहने में कबीर ने अपने प्रखर विचारों से उसे बल दिया। उन्होंने विधर्मियों की आलोचना की। भक्ति विमुख लोगों द्वारा भक्ति की परिभाषा गढ़ने की तीव्र आलोचना की। भक्ति के सत्य स्वरूप का उन्होंने उद्घाटन किया और जन–जन के बीच एकता, भाईचारा प्रेम की अजस्र गंगा बहायी। वे निर्गुण विचारधारा के तेजस्वी कवि थे। उन्होंने ईश्वर के निर्गुण स्वरूप का चित्रण किया उसकी सही व्याख्या की। सत्य स्वरूप का सबको दर्शन कराया।

छप्पय भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों में विपरीतार्थक शब्द लिखें तुच्छ, हित, पक्षपात, गुण, उक्ति
उत्तर-

  • शब्द – विपरीतार्थक
  • तुच्छ – महान्
  • हित – अहित
  • पक्षपात – विरोध, तटस्थता
  • गुण – अवगुण
  • उक्ति – अनुक्ति

प्रश्न 2.
वाक्य प्रयोग द्वारा इन शब्दों का लिंग निर्णय करें। वचन, मुख्य, यज्ञ, अर्थ, कवि, बुद्धि।।
उत्तर-
वचन (स्त्री.)–हमें सदा सत्य वचन बोलनी चाहिए।।
मुख्य (पु.)–यह दुकान के मुख्य कार्यकर्ता है।
यज्ञ (पु.)–अब यज्ञ में पशुवलि नहीं दिया जाता।
अर्थ (पु.)–कविताओं का अर्थ सरल तथा सहज है।
कवि (पु.)–सूरदास एक अच्छे कवि हैं।
बुद्धि (स्त्री.)–उसकी बुद्धि कुशाग्र है।

प्रश्न 3.
विमल में ‘वि’ उपसर्ग है। इस उपसर्ग से पांच अन्य शब्द बनाएँ
उत्तर-
विमल, विमुक्त, विनाश, विशाल, विदग्ध, विहित।

प्रश्न 4.
पठित छप्पय से अनुप्रास अलंकार के उदाहरण चुनें
उत्तर-
अनुप्रास, अस्थिति अति, अर्थ–अद्भूत, दिवि–दृष्टि, हृदय–हरि, कौन कवि, ये प्रथम छप्पय के अनुप्रास अलंकार में प्रयुक्त हैं। अतः ये अनुप्रास अलंकार हैं।

प्रश्न 5.
रसना (जिह्व) का पर्यायवाची शब्द लिखें।
उत्तर-
रसना–जीभ, जबान, जुबान, रसाला, रसिका, स्वादेन्द्रिय आदि।

छप्पय कवि परिचय नाभादास (1570–1600)

नाभादास का जन्म संभवत: 1570 ई. में दक्षिण भारत में हुआ था। इनके पिता बचपन में ही चल बसे और इलाके में अकाल पड़ गया, जिस कारण वे अपनी माताजी के साथ राजस्थान में रहने आ गये। दुर्भाग्यवश कुछ समय पश्चात् इन्हें माता का विछोह भी सहना पड़ा। तत्पश्चात् ये भगवान की भक्ति में लीन रहने लगे गये और अपने गुरु और प्रतिपालक की देखरेख में स्वाध्याय और सत्संग के माध्यम से ज्ञानार्जन करने लग गये।

कवि नाभादास स्वामी रामानंद शिष्य परंपरा के स्वामी अग्रदासजी के शिष्य थे और वे वैष्णवों के निश्चित सम्प्रदाय में दीक्षित थे जबकि अधिकांशतः विद्वानों के अनुसार कवि जन्म से दलित वर्ग के रहनेवाले थे किन्तु अपने गुण, कर्म, स्वभाव और ज्ञान से एक विरक्त जीवन जीने वाले सगुणोपासक रामभक्त थे। कवि नाभादास का अविचलं भगवद् भक्ति भक्त–चरित्र और भक्तों की स्मृतियाँ ही अनुभव सर्वस्व है। इनकी मुख्य रचनाएँ भक्तमाल, अष्टयाम (ब्रजभाषा गद्य) (‘रामचरित’ की दोहा शैली में), रामचरित संबंधी प्रकीर्ण पदों का संग्रह है।

कवि नाभादास गोस्वामी तुलसीदासजी के समकालीन सगुणोपासक रामभक्त कवि थे जिनमें मर्यादा के स्थान पर माधुर्यता अधिक मिलती है। इनकी सोच और मान्यताओं में किसी प्रकार की संकीर्णता नहीं बल्कि ये पक्षपात, दुराग्रह, कट्टरता से मुक्त एक भावुक, सहृदय विवेक–सम्पन्न सच्चे भक्त कवि हैं। लेखक ने अपनी अभिरुचि, ज्ञान, विवेक, भाव–प्रसार आदि के द्वारा प्रतिभा का प्रकर्ष उपस्थित किया है।

कवि की रचना ‘छप्पय’ ‘कबीर’ और ‘सूर’ पर लिखे गये छः पंक्तियों वाले गेय पद्य हैं। कवि द्वारा रचित ‘छप्पय’ भक्तभाल में संकलित 316 छप्पयों और 200 भक्तों का चरित्र वर्णित ग्रन्थ है, में उद्धृत हैं। ‘छप्पय’ एक छंद है जो छः पक्तियों का गेय पद होता है। जो नाभादास की तलस्पर्शिणी अंतदृष्टि, मर्मग्राहणी प्रज्ञा और सारग्रही चिन्तनशैली के विशेष प्रमाण हैं।

छप्पय कविता का सारांश

‘छप्पय’ शीर्षक पद कबीरदास एवं सूरदास पर लिखे गये छप्पय ‘भक्तमाल’ से संकलित है। छप्पय एक छंद है जो छः पंक्तियों का गेय पद होता है। ये छप्पय नाभादास की अन्तर्दृष्टि, मर्मग्राहणी प्रज्ञा, सारग्राही चिन्तन और विदग्ध भाषा–शैली के नमूने हैं।

प्रस्तुत छप्पय में वैष्णव भक्ति के नितांत भिन्न दो शाखाओं के इन महान भक्त कवियों पर लिखे गये छंद हैं। इन कवियों से सम्बन्धित अबतक के संपूर्ण अध्ययन–विवेचन के सार–सूत्र इन छंदों से कैसे पूर्वकथित हैं यह देखना विस्मयकारी और प्रीतिकर है। ऐसा प्रतीत है कि आगे की शतियों में इन कविता पर अध्ययन विवेचन की रूपरेखा जैसे तय कर दी गई हो।

पाठ के प्रथम छप्पय में नाभादास ने आलोचनात्मक शैली में कबीर के प्रति अपने भाव व्यक्त किये हैं।

कवि के अनुसार कबीर ने भक्ति विमुख तथाकथित धर्मों की धज्जी उड़ा दी है। उन्होंने वास्तविक धर्म को स्पष्ट करते हुए योग, यज्ञ, व्रत, दान और भजन के महत्व का बार–बार प्रतिपादन किया है। उन्होंने अपनी सबदी साखियों और रमैनी में क्या हिन्दू और क्या तुर्क सबके प्रति आदर भाव व्यक्त किया है। कबीर के वचनों में पक्षपात नहीं है। उनमें लोक मंगल की भावना है। कबीर मुँह देखी बात नहीं करते। उन्होंने वर्णाश्रम के पोषक षट दर्शनों की दुर्बलताओं को तार–तार करके दिखा दिया है।

छप्पय में कवि नाभादास ने सूरदासजी की कृष्ण की भक्तिभाव प्रकट किये हैं। कवि का कहना है कि सूर की कविता सुनकर कौन ऐसा कवि है जो उसके साथ हामी नहीं भरे। सूर की कविता में श्रीकृष्ण की लीला का वर्णन है। उनके जन्म से लेकर स्वर्गधाम तक की लीलाओं का मुक्त गुणगान किया गया है। उनकः कविता में क्या नहीं है? गुण–माधुरी और रूप–माधुरी सब कुछ भरी हुई है। सूर की दृष्टि दिव्य थी। वही दिव्यता उनकी कविताओं में भी प्रतिम्बित है। गोप–गोपियों के संवाद के अद्भुत प्रीति का निर्वाह दिखायी पड़ता है। शिल्प की दृष्टि से उक्त वैचित्र्य, वर्ण्य–वैचित्र्य और अनुप्र.सों की अनुपम छटा सर्वत्र दिखायी पड़ता है।

पदों का भावार्थ।

कबीर 1.
भगति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए।
योग यज्ञ व्रत दान भजन बिनु तुच्छ दिखाए॥
हिंदू तुरक प्रमान रमैनी सबदी साखी।
पक्षपात नहिं वचन सबहिके हितकी भाषी॥
आरूढ़ दशा है जगत पै, मुख देखी नाहीं भनी।
कबीर कानि राखी नहीं, वर्णाश्रम षट दर्शनी।

प्रसंग–प्रस्तुत छप्पय ‘नाभादास’ द्वारा रचित ‘भक्तमाल’ से अवतरित है.। यह नाभादास की सहृदय आलोचनात्मक प्रतिभा का विशेष प्रमाण है। कवि कबीर से संबंधित अब तक के सम्पूर्ण अध्ययन तथा विवेचन का सार–सूत्र इस छंद में वर्णित है जो अत्यन्त विस्मयकारी व प्रीतिकर है।

व्याख्या–कबीर जी की मति अति गंभीर तथा अन्त:करण भक्ति रस से परिपूर्ण था। भाव भजन में पूर्ण कबीर जाति–पाँति वर्णाश्रम आदि साधारण धर्मों का आदर नहीं करते थे। नाभादास कहते हैं कि कबीर जी ने चार वर्ण, चार आश्रम, छ: दर्शन किसी की आनि कानि नहीं रखी। केवल श्री भक्ति (भागवत धर्म) को ही दृढ़ किया। वहीं ‘भक्ति के विमुख’ जितने धर्म हैं, उन सबको ‘अधर्म’ ही कहा है।

उन्होंने सच्चे हृदय से सप्रेम भजन (भक्ति, भाव, बंदगी) के बिना तप, योग, यज्ञ, दान, व्रत आदि को तुच्छ बताया। कबीर ने आर्य, अनार्यादि हिन्दू मुसलमान आदि को प्रमाण तथा सिद्धान्त की बात सुनाई। भाव यह है कि कबीर जाति–पाँति के भेदभाव से ऊपर उठकर केवल शुद्ध अन्त:करण से की गई भक्ति को ही श्रेष्ठ मानते हैं।

सूरदास 2.
उक्ति चौज अनुप्रास वर्ण अस्थिति अतिभारी।
वचन प्रीति निर्वही अर्थ अद्भुत तुकधारी॥
प्रतिबिम्बित दिवि दृष्टि हृदय हरि लीला भासी।
जन्म कर्म गुन रूप सबहि रसना परकासी।।
विमल बुद्धि हो तासुकी, जो यह गुन श्रवननि धरै।
सूर कवित सुनि कौन कवि, जो नहिं शिरचालन करै।

प्रसंग–प्रस्तुत छप्पय ‘नाभादास’ द्वारा रचित ‘भक्तमाल’ से उद्धृत है। इसमें सूरदास के पदों का वर्णन किया गया है।

व्याख्या–सूरदास की कविता में बड़ी भारी नवीन युक्तियाँ, चमत्कार, चातुर्य, बड़े अनूठे अनुप्रास और वर्गों के यथार्थ की अस्थिति है। वे कवित्त के आदि में जिस प्रकार का वचन तथा प्रेम उठाते हैं उसका अंत तक निर्वाह करते हैं। कविता के तुकों का अद्भुत अर्थ दिखाई देता है। उनके हृदय में प्रभु ने दिव्य दृष्टि दी जिसमें सम्पूर्ण हरिलीला का प्रतिबिम्ब भासित हुआ।

उन्होंने प्रभु का जन्म, कर्म, गुण, रूप आदि दिव्य दृष्टि से देखकर अपनी रसना (जीभ) वचन से प्रकाशित किया। जो कोई भी सूरदास कथित भगवद् गुणगान को अपने श्रवण में धारण करता है उसकी बुद्धि विमल गुण युक्त हो जाती है। आगे नाभादास जी कहते हैं कि ऐसा कौन सा कवि है जो सूरदास जी का कवित्त सुनकर प्रशंसापूर्वक अपना शीश न हिलाए।


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